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ब्लॉग संख्या :-507
आम आदमी क्या है जानते हो ?
हाँ क्यों नहीं,
सरकारी दमाद है आम आदमी......
नहीं नहीं गलत समझ रहे
आम आदमी मतलब होता है दर्द
पुराने जख्म से झरता दर्द
आम आदमी नहीं जानता कौन मुसीबत
कब बरस पड़े.....
कब कोई दबंग थेसर मे पीस दे
कब कोई सडक़ पर नंगा कर दे
कब आम आदमी के मां बहन को
कौन अमानुष बेआबरू कर दे
कब कोई हको पर कब्जा कर ले
कैद नसीब का मालिक निरापद
आम आदमी नहीं जानता........
वह जानता है तो देश पर कुर्बान होना
देश की मांटी तो पुरखों की माटी है
आम आदमी के लिए
आम आदमी अनुरागी दर्द मे जी रहा है
अपनी धरती आसमान की आशा मे
कैद मुकदर के दर्द का विषपान कर.....
आम आदमी का दर्द जश्न बन जाता है
धर्म और सत्ता की चौपड़ पर
सत्ता से उठा तनिक शोर तनिक भर मे
मौन हो जाता है
धर्म से उठा शोर खड़ा कर देता है
फजीहत......
आम आदमी के हाथ लगता है तो
मरते सपनों का बोझ
सिमटती दुनिया मे नहीं बदल रही
तथाकथित उंचों की सोच.....
आम आदमी आरक्षित नहीं तनिक संरक्षित है
आरक्षित तो वे हैं
जो सर्वश्रेष्ठता नकाब ओढे
लूट रहे हैं पोथी का भय दिखाकर
दान- धर्म के नाम पर गुमराह कर......
पसीना बहाता है, सृजन हाथोँ मे रखता है
भय भूख मे रहता है
निरापद को जातीय विषधर,
आम आदमी कहता है....
दहकता सुलगता, भभकता
दर्द होता है
आम आदमी का दर्द सर्वश्रेष्ठता का मुखौटा
लगाए लोग कैसे समझ सकते हैं ?
आम आदमी दर्द मे जीने का नाम है
लहू को पानी बनाकर
अपनी जहाँ सींचने का नाम है आम आदमी
हाशिये पर सदियों से पडा है
हाड़फोड़कर भूख मिटा लेता है
अपनी जहां मे सम्मान का
भूखा है आम आदमी...
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्या पीठ इटंर कालेज प्रयागराज
विषय आम आदमी
विधा काव्य
16 सितम्बर,2019,सोमवार
सादा जीवन उच्च विचार
आम आदमी दूर दिखावा।
मोटा खाता मोटा पहने
बैर भाव उसको न भावा।
रोटी कपड़ा और मकान
पहली उसकी आवश्यकता।
श्रम जीवनभर करता है
सत्य कठोर जीवन में कहता।
शिक्षा स्वास्थ्य की गारंटी
लोकतंत्र सरकार पूर्ण हो।
बेरोजगारी मिटे देश भर
आम आदमी हर्ष पूर्ण हो।
निम्न मध्यम उच्च वर्ग से
समायोजित है जग जीवन।
खून पसीना सदा बहाता
खिलता नित जीवन उपवन।
जग रक्षक है आमआदमी
चिंतन मनन सदा करता है।
वक्त पड़े तो लोकतन्त्र को
मिलकर सदा हिला देता है।
भारत का कुलभूषण जन है
आवश्यकता होती सीमित।
पर सेवा उपकार करे नित
आमआदमी तुम अपरिमित।
स्व0 रचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
16 सितम्बर,2019,सोमवार
सादा जीवन उच्च विचार
आम आदमी दूर दिखावा।
मोटा खाता मोटा पहने
बैर भाव उसको न भावा।
रोटी कपड़ा और मकान
पहली उसकी आवश्यकता।
श्रम जीवनभर करता है
सत्य कठोर जीवन में कहता।
शिक्षा स्वास्थ्य की गारंटी
लोकतंत्र सरकार पूर्ण हो।
बेरोजगारी मिटे देश भर
आम आदमी हर्ष पूर्ण हो।
निम्न मध्यम उच्च वर्ग से
समायोजित है जग जीवन।
खून पसीना सदा बहाता
खिलता नित जीवन उपवन।
जग रक्षक है आमआदमी
चिंतन मनन सदा करता है।
वक्त पड़े तो लोकतन्त्र को
मिलकर सदा हिला देता है।
भारत का कुलभूषण जन है
आवश्यकता होती सीमित।
पर सेवा उपकार करे नित
आमआदमी तुम अपरिमित।
स्व0 रचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय:-आम आदमी
आम आदमी की कहानी।
रोज कमाना रोज ही खानी।
कभी पेट भर मिल जाए।
कभी भूखे ही सो जानी।
हाड तोड़ मैहनत है करता
दुनिया ने बस यही पहचानी
आम आदमी आरक्षित कर
सुरक्षित तो जान न मानी
आम आदमी कठपुतली बन
सत्ताधारी की उँगली का फानी
अकथनीयम अनादर सहता
जब बात दुनिया की न मानी
सुख चैन गवाता अपनो की खातिर
रग रग में उसके है रवानी
जान लुटाना मान बढ़ाना
कब ये उसने ना ठानी ।
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
आम आदमी की कहानी।
रोज कमाना रोज ही खानी।
कभी पेट भर मिल जाए।
कभी भूखे ही सो जानी।
हाड तोड़ मैहनत है करता
दुनिया ने बस यही पहचानी
आम आदमी आरक्षित कर
सुरक्षित तो जान न मानी
आम आदमी कठपुतली बन
सत्ताधारी की उँगली का फानी
अकथनीयम अनादर सहता
जब बात दुनिया की न मानी
सुख चैन गवाता अपनो की खातिर
रग रग में उसके है रवानी
जान लुटाना मान बढ़ाना
कब ये उसने ना ठानी ।
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
प्रथम प्रस्तुति
नेता जी बोले हम आम
कार से निकले भीड़ तमाम ।।
आम से मिलने भीड़ आना
निखालिस झूठ सरेआम ।।
ऐ सी में चलना रहना
आम तो रहे जहाँ है घाम ।।
वोट खातिर बदलें रूप
घर घर डोलें बोलें राम ।।
राजनीति हर बात पर होय
शब्द भी देंय खासा काम ।।
मेरे घर के बगल में रहें
नाम है जिनका भोलाराम ।।
नेता के हर फ़न उनमें
सबसे करें दुआ सलाम ।।
उनका नाम आया काम
अब न भोलू अब है नाम ।।
सिम्पलीसिटी भी देय काम
मैं भी हूँ इसका गुलाम ।।
महबूबा की बसी सादगी
जपा नाम सुवह और शाम ।।
मगर भाव से हो खिलवाड़
'शिवम' दर्द ये नही बाम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/09/2019
नेता जी बोले हम आम
कार से निकले भीड़ तमाम ।।
आम से मिलने भीड़ आना
निखालिस झूठ सरेआम ।।
ऐ सी में चलना रहना
आम तो रहे जहाँ है घाम ।।
वोट खातिर बदलें रूप
घर घर डोलें बोलें राम ।।
राजनीति हर बात पर होय
शब्द भी देंय खासा काम ।।
मेरे घर के बगल में रहें
नाम है जिनका भोलाराम ।।
नेता के हर फ़न उनमें
सबसे करें दुआ सलाम ।।
उनका नाम आया काम
अब न भोलू अब है नाम ।।
सिम्पलीसिटी भी देय काम
मैं भी हूँ इसका गुलाम ।।
महबूबा की बसी सादगी
जपा नाम सुवह और शाम ।।
मगर भाव से हो खिलवाड़
'शिवम' दर्द ये नही बाम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/09/2019
आज का विषय, आम आदमी
दिन, सोमवार
दिनांक, 16,9,2019 ,
रहे देश का जो सच्चा सेवक ,
नहीं लगा जिसे माया का रोग।
होतीं चाहतें नहीं सुरसा जैसी,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
उपलब्ध हो जो वो खा लेता ,
गुजर बसर जीवन को कहता।
जिसे वस्त्राभूषण नहीं है शौक,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
संस्कार संस्कृति का रखवाला,
आबरू वतन की रखने वाला ।
मतलब परस्ती न करे उपयोग ,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
भावनाओं का उजला सूरज,
कहते हैं सब उसको ही पूरब ।
जिसकी विरासत नहीं है भोग,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
राजनीति का है जो मोहरा ,
नेताओं का चमकाता चेहरा।
करते हैं जिसका वे दुरुपयोग,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
आम आदमी जब जब जागता,
नसीब बड़े बडों का बदलता।
दुष्टों को मिटाये जिसका क्रोध,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
दिन, सोमवार
दिनांक, 16,9,2019 ,
रहे देश का जो सच्चा सेवक ,
नहीं लगा जिसे माया का रोग।
होतीं चाहतें नहीं सुरसा जैसी,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
उपलब्ध हो जो वो खा लेता ,
गुजर बसर जीवन को कहता।
जिसे वस्त्राभूषण नहीं है शौक,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
संस्कार संस्कृति का रखवाला,
आबरू वतन की रखने वाला ।
मतलब परस्ती न करे उपयोग ,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
भावनाओं का उजला सूरज,
कहते हैं सब उसको ही पूरब ।
जिसकी विरासत नहीं है भोग,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
राजनीति का है जो मोहरा ,
नेताओं का चमकाता चेहरा।
करते हैं जिसका वे दुरुपयोग,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
आम आदमी जब जब जागता,
नसीब बड़े बडों का बदलता।
दुष्टों को मिटाये जिसका क्रोध,
आम आदमी उसे कहते लोग ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
द्वितीय प्रस्तुति
😂।। हास्य व्यंग्य का तड़का ।।😀
आम शब्द ने नाम कमाया
कवि हूँ ये चक्कर उलझाया ।।
शब्द से मैं भी खेलूँ रोज
मगर नेता अव्वल कहलाया ।।
या फिर किसी कवि ने जरूर
उनको खासा नाम सुझाया ।।
ख़ैर आम तो आम कहाए
मेरा बेटा प्रश्न उठाया ।।
बोला पापा मेंगो मीन्स
मैं बोला ये भी न आया ।।
स्कूल जाते हुए तूने
दो वर्ष यूँ ही बिताया ।।
क्या करे इंगलिश मीडियम
बेचारा न ये समझ पाया ।।
आम की महिमा जाने राम
कितनों को करोड़पति बनाया ।।
मैं कितने नही शब्द पढ़ा
फटेहाल अब भी कहाया ।।
हिन्दी में भी कम पड़ गये
कई भाषा में जोर लगाया ।।
काश आम को जाना होता
अब मैं 'शिवम' बहुत पछताया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/09/2019
😂।। हास्य व्यंग्य का तड़का ।।😀
आम शब्द ने नाम कमाया
कवि हूँ ये चक्कर उलझाया ।।
शब्द से मैं भी खेलूँ रोज
मगर नेता अव्वल कहलाया ।।
या फिर किसी कवि ने जरूर
उनको खासा नाम सुझाया ।।
ख़ैर आम तो आम कहाए
मेरा बेटा प्रश्न उठाया ।।
बोला पापा मेंगो मीन्स
मैं बोला ये भी न आया ।।
स्कूल जाते हुए तूने
दो वर्ष यूँ ही बिताया ।।
क्या करे इंगलिश मीडियम
बेचारा न ये समझ पाया ।।
आम की महिमा जाने राम
कितनों को करोड़पति बनाया ।।
मैं कितने नही शब्द पढ़ा
फटेहाल अब भी कहाया ।।
हिन्दी में भी कम पड़ गये
कई भाषा में जोर लगाया ।।
काश आम को जाना होता
अब मैं 'शिवम' बहुत पछताया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/09/2019
दिनांक- 16/9/2019
शीर्षक- "आम आदमी"विधा- कविता
*************
छलक रहा हूँ ऐसे आज,
जैसे कोई शराबी-जाम |
इस भड़कीली दुनियां में,
मैं केवल आदमी आम ||
पिसता रोज यहाँ मैं ऐसे,
आटे संग घुन पिसता जैसे |
छुपी हुई न, कोई पहचान ,
मैं तो केवल आदमी आम ||
शोषण मेरा ही होता है,
जग देता मुझको धोखा है |
दर्द भरी आवाज हूँ, मैं
नहीं आदमी खास हूँ मैं ||
सुनो समाज के ठेकेदारों!
नहीं कीमत मेरी कम उच्चारो |
अपने राष्ट्र की हम हैं शान ,
हम तो केवल आदमी आम ||
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- "आम आदमी"विधा- कविता
*************
छलक रहा हूँ ऐसे आज,
जैसे कोई शराबी-जाम |
इस भड़कीली दुनियां में,
मैं केवल आदमी आम ||
पिसता रोज यहाँ मैं ऐसे,
आटे संग घुन पिसता जैसे |
छुपी हुई न, कोई पहचान ,
मैं तो केवल आदमी आम ||
शोषण मेरा ही होता है,
जग देता मुझको धोखा है |
दर्द भरी आवाज हूँ, मैं
नहीं आदमी खास हूँ मैं ||
सुनो समाज के ठेकेदारों!
नहीं कीमत मेरी कम उच्चारो |
अपने राष्ट्र की हम हैं शान ,
हम तो केवल आदमी आम ||
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
15 // 9 // 2019 //
बिषय,, आम, आदमी,,
वर्तमान के छलतंत्र खास का जमाना
आम आदमी का नहीं कोई ठिकाना
निम्न तबके के लोगों का हर कार्य आसान
घर बैठे पा रहे रोटी कपड़ा मकान
नेताओं व उच्चवर्गीय लोगों का क्या कहना
गाड़ी बंगला,संपूर्ण ऐशोआराम से रहना
अधिकाधिक पिसता मध्यमवर्गीय परिवार
कहीं स्कूलों की फीस कहीं महंगाई की मार
सुरसा सम मुख फैलाए आरक्षण का अवतार
जिसका कोई अंत नहीं समुद्र सा आकार
समस्याएं इनकी भी बहुत बड़ी हैं
कांटे की बाड़ियां रास्ते में खड़ी हैं
इनका तो शुरू से ही हुआ
बाकी सब उड़ा रहे मालपुआ
आज भी है देश में समभाव का अभाव
स्वार्थ लोलुपता कि पूर्ण प्रभाव
कहीं पतझड़ तो कहीं मधुमास
इस तरह कैसे होगा देश का विकास
स्वरिचत, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, आम, आदमी,,
वर्तमान के छलतंत्र खास का जमाना
आम आदमी का नहीं कोई ठिकाना
निम्न तबके के लोगों का हर कार्य आसान
घर बैठे पा रहे रोटी कपड़ा मकान
नेताओं व उच्चवर्गीय लोगों का क्या कहना
गाड़ी बंगला,संपूर्ण ऐशोआराम से रहना
अधिकाधिक पिसता मध्यमवर्गीय परिवार
कहीं स्कूलों की फीस कहीं महंगाई की मार
सुरसा सम मुख फैलाए आरक्षण का अवतार
जिसका कोई अंत नहीं समुद्र सा आकार
समस्याएं इनकी भी बहुत बड़ी हैं
कांटे की बाड़ियां रास्ते में खड़ी हैं
इनका तो शुरू से ही हुआ
बाकी सब उड़ा रहे मालपुआ
आज भी है देश में समभाव का अभाव
स्वार्थ लोलुपता कि पूर्ण प्रभाव
कहीं पतझड़ तो कहीं मधुमास
इस तरह कैसे होगा देश का विकास
स्वरिचत, सुषमा ब्यौहार
बिषय:-आम आदमीविधा:-मुक्त
💐 व्यंग 💐
**********
पापा- सरकार ने सभी गरीबों को
मुफ्त बिजली,पानी,भोजन,
पढ़ाई,दवाई और शादी की भी
मुफ्त सुविधा दे कर गरीबी को
मिटाने की घोषणा की है।अब
कोई भी गरीब नहीं रहेगा बेटा।
बेटा:- फिर जनता को कोई काम भी
नहीं करना पड़ेगा.. पापा। ना
स्कूल जाना पड़ेगा और ना ही
रोजगार की जरूरत होगी।
पापा:- हाँ, बेटा ।
बेटा:- पापा ,जब कोई काम नहीं
करेगा तो प्रदेश का विकास
होगा या वह पिछड़ जाएगा?
पापा:- पता नहीं बेटा।
बेटा:- फिर ' आम आदमी ' दौलत का क्या करेगा ,जब उसे सबकुछ फ्री में मिल रहा हो?
पापा:- दौलत तो चाहिए ही बेटा।
बेटा:- वह किस लिये?
पापा:- दारू पीने, जुआ खेलने ,
दुश्मनों को निपटाने, केस
करने,वकीलों को फीस देने,
घूमने-फिरने,ऐश करने को
पैसा जरूरी है बेटा।
बेटा:- दौलत को तो मेहनत से ही
कमाना पड़ेगी न पापा?
पापा:- पता नहीं बेटा।
( स्वरचित: डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी,गुना-कैंट (म.प्र.)
💐 व्यंग 💐
**********
पापा- सरकार ने सभी गरीबों को
मुफ्त बिजली,पानी,भोजन,
पढ़ाई,दवाई और शादी की भी
मुफ्त सुविधा दे कर गरीबी को
मिटाने की घोषणा की है।अब
कोई भी गरीब नहीं रहेगा बेटा।
बेटा:- फिर जनता को कोई काम भी
नहीं करना पड़ेगा.. पापा। ना
स्कूल जाना पड़ेगा और ना ही
रोजगार की जरूरत होगी।
पापा:- हाँ, बेटा ।
बेटा:- पापा ,जब कोई काम नहीं
करेगा तो प्रदेश का विकास
होगा या वह पिछड़ जाएगा?
पापा:- पता नहीं बेटा।
बेटा:- फिर ' आम आदमी ' दौलत का क्या करेगा ,जब उसे सबकुछ फ्री में मिल रहा हो?
पापा:- दौलत तो चाहिए ही बेटा।
बेटा:- वह किस लिये?
पापा:- दारू पीने, जुआ खेलने ,
दुश्मनों को निपटाने, केस
करने,वकीलों को फीस देने,
घूमने-फिरने,ऐश करने को
पैसा जरूरी है बेटा।
बेटा:- दौलत को तो मेहनत से ही
कमाना पड़ेगी न पापा?
पापा:- पता नहीं बेटा।
( स्वरचित: डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी,गुना-कैंट (म.प्र.)
दिनांक १६/९/२०१९
शीर्षक-"आम आदमी"
छंदमुक्त कविता
बड़े बड़े सपने देखे
मेहनत करें दिन रात
अभ्यास करें जो हर काम का
बुद्धिमत्ता में हो खास,
कभी कठोर कभी कोमल
सच्चाई दमके माथ
आशा निराशा संग चले
पर आशा का थामे हाथ
बाहर भीतर एक सा रहे
झूठ का नही दे साथ
अनुराग भरा हो सबके लिए
वह आदमी है आम
पालन, पोषण वचन में फंसे रहे
पर कभी न हो हताश
ना कभी करें चरित्र का पतन
बन जाते वे आम से खास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-"आम आदमी"
छंदमुक्त कविता
बड़े बड़े सपने देखे
मेहनत करें दिन रात
अभ्यास करें जो हर काम का
बुद्धिमत्ता में हो खास,
कभी कठोर कभी कोमल
सच्चाई दमके माथ
आशा निराशा संग चले
पर आशा का थामे हाथ
बाहर भीतर एक सा रहे
झूठ का नही दे साथ
अनुराग भरा हो सबके लिए
वह आदमी है आम
पालन, पोषण वचन में फंसे रहे
पर कभी न हो हताश
ना कभी करें चरित्र का पतन
बन जाते वे आम से खास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
भावों के मोती
विषय=आम आदमी
==============
सुकून ही कहीं खो गया
इस शहर में आकर
चमक-दमक की ज़िंदगी
बस दिखावा ही दिखावा
समझ ही नहीं आता
यहाँ इंसान है या छलावा
इससे भले तो हम तब थे
जब रहते थे हम गाँव में
शहर के बड़े साहब से
हम आम आदमी भले थे
सुकून की ज़िंदगी थी
इंसानियत से भरी हुई
प्रेम और खुशी से छलकती
अपनेपन का अहसास था
मौसम भी अपना-सा लगता था
चारों तरफ़ हरियाली बिखरी
नीम आम के पेड़ थे
पेड़ों के नीचे चारपाई पर
दादा-दादी के मशहूर क़िस्से थे
बहती शीतल स्वच्छ नदी थी
ठंडी पवन के मस्त झोंके
इक ताजगी भरा अहसास जगाते
वो सुकून भरे पल-छिन
अब भी गाँव की याद दिलाते
इस शहर में कहाँ वो बात
जो गाँव सा सुकून दिला दे
***अनुराधा चौहान*** ✍स्वरचित
विषय=आम आदमी
==============
सुकून ही कहीं खो गया
इस शहर में आकर
चमक-दमक की ज़िंदगी
बस दिखावा ही दिखावा
समझ ही नहीं आता
यहाँ इंसान है या छलावा
इससे भले तो हम तब थे
जब रहते थे हम गाँव में
शहर के बड़े साहब से
हम आम आदमी भले थे
सुकून की ज़िंदगी थी
इंसानियत से भरी हुई
प्रेम और खुशी से छलकती
अपनेपन का अहसास था
मौसम भी अपना-सा लगता था
चारों तरफ़ हरियाली बिखरी
नीम आम के पेड़ थे
पेड़ों के नीचे चारपाई पर
दादा-दादी के मशहूर क़िस्से थे
बहती शीतल स्वच्छ नदी थी
ठंडी पवन के मस्त झोंके
इक ताजगी भरा अहसास जगाते
वो सुकून भरे पल-छिन
अब भी गाँव की याद दिलाते
इस शहर में कहाँ वो बात
जो गाँव सा सुकून दिला दे
***अनुराधा चौहान*** ✍स्वरचित
विषय-आम आदमी
*****************
जी हाँ, आदमी मैं आम हूँ
स्वतंत्र हूँ पर पराधीनता का नाम हूँ
कठिन जीवन जीने को मजबूर हूँ
धन दौलत के नशे से कोसों दूर हूँ
हर रोज,नव प्रभात में नई उमंग के संग जागता हूँ
आज तो कुछ अच्छा ही होगा,स्वयं को आस बंधाता हूँ
जब आशा निराशा में बदलती है तब
सरकार पर,किसी और पर
दबे लफ़्ज़ों में लगता इल्ज़ाम हूँ
दिल मे आक्रोश,रोष से भरपूर है
आम आदमी क्या करे बेचारा मजबूर है
महाभारत सी ही तो है मेरी ज़िंदगी
दुर्योधन जैसे सत्तालोलुपों की करनी पड़ती है बंदगी
सोच में पड़ा हूँ क्या मैं बिन नाम बिन शख्सियत का इंसान हूँ
भोले अभिमन्यु सा चक्रव्यूह में घिरा हूँ
भीष्म धृतराष्ट्र जैसे अंधों के लिए अनदेखा हूँ
सब मौजूद हैं पर सारथी केशव बिना बेबस अकेला नाम हूँ
निर्धन दुख का बोझ निरन्तर ढो रहा हूँ
ईश्वर का बिन पढ़ा हुआ मैं पैगाम हूँ
हां, आदमी मैं आम हूँ ...!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
*****************
जी हाँ, आदमी मैं आम हूँ
स्वतंत्र हूँ पर पराधीनता का नाम हूँ
कठिन जीवन जीने को मजबूर हूँ
धन दौलत के नशे से कोसों दूर हूँ
हर रोज,नव प्रभात में नई उमंग के संग जागता हूँ
आज तो कुछ अच्छा ही होगा,स्वयं को आस बंधाता हूँ
जब आशा निराशा में बदलती है तब
सरकार पर,किसी और पर
दबे लफ़्ज़ों में लगता इल्ज़ाम हूँ
दिल मे आक्रोश,रोष से भरपूर है
आम आदमी क्या करे बेचारा मजबूर है
महाभारत सी ही तो है मेरी ज़िंदगी
दुर्योधन जैसे सत्तालोलुपों की करनी पड़ती है बंदगी
सोच में पड़ा हूँ क्या मैं बिन नाम बिन शख्सियत का इंसान हूँ
भोले अभिमन्यु सा चक्रव्यूह में घिरा हूँ
भीष्म धृतराष्ट्र जैसे अंधों के लिए अनदेखा हूँ
सब मौजूद हैं पर सारथी केशव बिना बेबस अकेला नाम हूँ
निर्धन दुख का बोझ निरन्तर ढो रहा हूँ
ईश्वर का बिन पढ़ा हुआ मैं पैगाम हूँ
हां, आदमी मैं आम हूँ ...!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
#विषय:आम आदमी:
#विधा:काव्य:
**++** आम आदमी **++**
सांसत में हैं जान आफत में मुकाम,
जद्दोजहद में कटते सुबह और शाम,
जीवन संघर्ष में जो हर पल है जीता,
आम इंसान का होता है यही अंजाम,
दिन चलता है वो भी चल पड़ता है,
छोटे बड़े व्यवधानों से लड़ पड़ता है,
चैन ओ सुकून का वह अभ्यस्त नहीं,
कल क्या हो क्षण भर आश्वस्त नहीं,
सतत प्रयास से घर परिवार चलाता,
कामगार है यह या किसान कहलाता,
व्यवसाई भी कभी यह जो बन जाता,
लाभ उचित फिर भी यह ना पाता,
सीमित संसाधन व पूंजी का अभाव,
स्थाई ठिकाना ना समाज में प्रभाव,
अर्थ तंत्र भी इसे ना उबरने ही देता,
जोखिम से भी ये सदा चिंतित रहता,
परिवार भी कभी इसका बड़ा हुआ,
क़र्ज़ ब्याज से भी इसे निजात ही नहीं,
दिन रात की मेहनत का क्या फल है,
कुछ संचित धन भी इसके पास नहीं,
रचनाकार +*+ दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
भुआ बिछिया जिला मंडला
मध्यप्रदेश,
#विधा:काव्य:
**++** आम आदमी **++**
सांसत में हैं जान आफत में मुकाम,
जद्दोजहद में कटते सुबह और शाम,
जीवन संघर्ष में जो हर पल है जीता,
आम इंसान का होता है यही अंजाम,
दिन चलता है वो भी चल पड़ता है,
छोटे बड़े व्यवधानों से लड़ पड़ता है,
चैन ओ सुकून का वह अभ्यस्त नहीं,
कल क्या हो क्षण भर आश्वस्त नहीं,
सतत प्रयास से घर परिवार चलाता,
कामगार है यह या किसान कहलाता,
व्यवसाई भी कभी यह जो बन जाता,
लाभ उचित फिर भी यह ना पाता,
सीमित संसाधन व पूंजी का अभाव,
स्थाई ठिकाना ना समाज में प्रभाव,
अर्थ तंत्र भी इसे ना उबरने ही देता,
जोखिम से भी ये सदा चिंतित रहता,
परिवार भी कभी इसका बड़ा हुआ,
क़र्ज़ ब्याज से भी इसे निजात ही नहीं,
दिन रात की मेहनत का क्या फल है,
कुछ संचित धन भी इसके पास नहीं,
रचनाकार +*+ दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
भुआ बिछिया जिला मंडला
मध्यप्रदेश,
विषय आम आदमी
दिनांक 16/9/2019
सरकार चुनने का अधिकार पाता यह आम आदमी
चुने जाने पर गिरगिट सा रंग दिखलाता यह आम आदमी
अपनी बीवी बेटियों परिवार को सिखाता रंग संस्कार के
दूसरे की बेटियों पर क्यों जुर्म ढाहता यह आम आदमी
मर्म पर कुछ चोट खाकर लहू के आंसू बहाता
बन भीड़ का हिस्सा, हिंसा का तांडव दिखाता यह आम आदमी
एकता के सूत्र में जो पिरोना चाहता है देश को
कभी धर्म कभी जात के नाम पर बाँटता देश को यह आम आदमी
अपने विवेक से न ले काम, गुरु सद्गुरु नेताओं के कुचक्र से
उनका ही घातक हथियार बन जाता यह आम आदमी
उन्नाव हो या अनाथ बच्चियों का आश्रय स्थल
स्वयं भयभीत है इसलिए क्या औरों को डराता ये आम आदमी
खटखटायेंगी मुसीबत द्वार तेरा भी कभी तो मानव
पड़ोसी की तकलीफ पर दरवाजे बंद क्यूँ रखवाता यह आम आदमी
रोजी रोटी सड़क के सवाल पर नहीं घेरता सरकार को
उलझा उलझा सा क्यूँ अपनी ताकत नहीं पहचानता यह आम आदमी
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
दिनांक 16/9/2019
सरकार चुनने का अधिकार पाता यह आम आदमी
चुने जाने पर गिरगिट सा रंग दिखलाता यह आम आदमी
अपनी बीवी बेटियों परिवार को सिखाता रंग संस्कार के
दूसरे की बेटियों पर क्यों जुर्म ढाहता यह आम आदमी
मर्म पर कुछ चोट खाकर लहू के आंसू बहाता
बन भीड़ का हिस्सा, हिंसा का तांडव दिखाता यह आम आदमी
एकता के सूत्र में जो पिरोना चाहता है देश को
कभी धर्म कभी जात के नाम पर बाँटता देश को यह आम आदमी
अपने विवेक से न ले काम, गुरु सद्गुरु नेताओं के कुचक्र से
उनका ही घातक हथियार बन जाता यह आम आदमी
उन्नाव हो या अनाथ बच्चियों का आश्रय स्थल
स्वयं भयभीत है इसलिए क्या औरों को डराता ये आम आदमी
खटखटायेंगी मुसीबत द्वार तेरा भी कभी तो मानव
पड़ोसी की तकलीफ पर दरवाजे बंद क्यूँ रखवाता यह आम आदमी
रोजी रोटी सड़क के सवाल पर नहीं घेरता सरकार को
उलझा उलझा सा क्यूँ अपनी ताकत नहीं पहचानता यह आम आदमी
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
"आम आदमी"
-----------------------------------
चुनाव हो या आम बजट
करता इंतजार आम आदमी।
आपदा हो या मँहगाई की मार
प्रभावित होता आम आदमी।
दो जून की रोटी के लिए जुगाड़
भाग-दौड़ करता आम आदमी।
बीमार पड़े तो सरकारी अस्पताल
कतार में खड़ा रहता आम आदमी।
तिनका-तिनका बटोर परिवार चलाता
मुश्किलों से जूझता रहता आम आदमी।
दो मीठे बोल की खातिर
तरसता रहता आम आदमी।।
स्वरचित पूर्णिमा सा
-----------------------------------
चुनाव हो या आम बजट
करता इंतजार आम आदमी।
आपदा हो या मँहगाई की मार
प्रभावित होता आम आदमी।
दो जून की रोटी के लिए जुगाड़
भाग-दौड़ करता आम आदमी।
बीमार पड़े तो सरकारी अस्पताल
कतार में खड़ा रहता आम आदमी।
तिनका-तिनका बटोर परिवार चलाता
मुश्किलों से जूझता रहता आम आदमी।
दो मीठे बोल की खातिर
तरसता रहता आम आदमी।।
स्वरचित पूर्णिमा सा
विषय आम आदमी
विधा लघु कविता
आम आदमी क्या है
पता नही मुझको भैया
ये कहाँ पर रहता है
पता नही मुझको भैया
आम आदमी क्या खाता है
पता नही मुझको भैया
ये क्या करता रहता है
पता नही मुझको भैया
सब पागल हो क्या
नही जानते आम आदमी
नेताओं के हर भाषण में
आम आदमी रहता है
नेताओं की मीठी गोली
आम आदमी खाता है
नेताओं के हर जुबान पर
आम आदमी दौड़ा करता है
लोकतांत्रिक देश में
आम आदमी पिसता है
देश व्यवस्था चलाने को
वोट बैंक वह बनता है
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा लघु कविता
आम आदमी क्या है
पता नही मुझको भैया
ये कहाँ पर रहता है
पता नही मुझको भैया
आम आदमी क्या खाता है
पता नही मुझको भैया
ये क्या करता रहता है
पता नही मुझको भैया
सब पागल हो क्या
नही जानते आम आदमी
नेताओं के हर भाषण में
आम आदमी रहता है
नेताओं की मीठी गोली
आम आदमी खाता है
नेताओं के हर जुबान पर
आम आदमी दौड़ा करता है
लोकतांत्रिक देश में
आम आदमी पिसता है
देश व्यवस्था चलाने को
वोट बैंक वह बनता है
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
शीर्षक- आम आदमी
सीमित संसाधन, संघर्ष दिन-रात है।
किस्मत से यही मिली सौगात है।।
सुकून को तरसता पल-छिन
जीवन गुजरता दिन गिन-गिन।
आम आदमी होना ही शायद
दुनिया की सबसे खास बात है।
कभी घर की फिक्र में घुलता
कभी बाहर के तानों से डरता।
हर कदम सम्हल-सम्हल कर रखता
फिर भी कहीं-न-कहीं खा जाता मात है।
दर्द को दिल में दबाकर रखता
होंठों से हंसी छलकाते रहता।
खुन-पशीने की रोटी खाता
ऊपरवाले को कहता धन्यवाद है।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
सीमित संसाधन, संघर्ष दिन-रात है।
किस्मत से यही मिली सौगात है।।
सुकून को तरसता पल-छिन
जीवन गुजरता दिन गिन-गिन।
आम आदमी होना ही शायद
दुनिया की सबसे खास बात है।
कभी घर की फिक्र में घुलता
कभी बाहर के तानों से डरता।
हर कदम सम्हल-सम्हल कर रखता
फिर भी कहीं-न-कहीं खा जाता मात है।
दर्द को दिल में दबाकर रखता
होंठों से हंसी छलकाते रहता।
खुन-पशीने की रोटी खाता
ऊपरवाले को कहता धन्यवाद है।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
नमन मंच
विषय:-- आम आदमी
विधा:--मुक्त
दिनांक:--16 / 09 / 19
~~~<>~~~<>~~~
नर हूँ निराश नहीं हूँ
अकेला हूँ हताश नहीं हूँ
दुनिया की नजर में
हूँ माना आम आदमी
फिर भी हूँ काफी
खास आदमी
सत्ता के उलटफेर का
सबसे बडा़ मोहरा हूँ मैं
धरना हो या हो प्रदर्शन
भीड़ का मैं चेहरा हूँ
वोट हूँ मैं तंत्र का
हर पाँच साल बाद
बन जाता
हर नेता की आँख का
तारा मैं
माना दर दर भटकता हूँ
भूखा-प्यासा मरता हूँ
नीली बत्ती की खातिर
घंटो सड़क पर
रुकता हूँ मैं
मनमानी छुटभैयाओं की
हर बार मुझी पर
चलती है
पर सत्ता के चार पायों का
मजबूत एक
पाया हूँ मैं
नेताओं का नारा हूँ मैं
भरी भीड़ में सबसे पहले लाठी जिसके सर पर
पड़ती है
वही आम आदमी का
पहला सर हूँ मैं
माना आम आदमी हूँ मैं
पर पावरफुल भी हूँ मैं
सत्ता का पलटवार कर दूँ
इतना तो ताकतवर हूँ मैं।
डा.नीलम
विषय:-- आम आदमी
विधा:--मुक्त
दिनांक:--16 / 09 / 19
~~~<>~~~<>~~~
नर हूँ निराश नहीं हूँ
अकेला हूँ हताश नहीं हूँ
दुनिया की नजर में
हूँ माना आम आदमी
फिर भी हूँ काफी
खास आदमी
सत्ता के उलटफेर का
सबसे बडा़ मोहरा हूँ मैं
धरना हो या हो प्रदर्शन
भीड़ का मैं चेहरा हूँ
वोट हूँ मैं तंत्र का
हर पाँच साल बाद
बन जाता
हर नेता की आँख का
तारा मैं
माना दर दर भटकता हूँ
भूखा-प्यासा मरता हूँ
नीली बत्ती की खातिर
घंटो सड़क पर
रुकता हूँ मैं
मनमानी छुटभैयाओं की
हर बार मुझी पर
चलती है
पर सत्ता के चार पायों का
मजबूत एक
पाया हूँ मैं
नेताओं का नारा हूँ मैं
भरी भीड़ में सबसे पहले लाठी जिसके सर पर
पड़ती है
वही आम आदमी का
पहला सर हूँ मैं
माना आम आदमी हूँ मैं
पर पावरफुल भी हूँ मैं
सत्ता का पलटवार कर दूँ
इतना तो ताकतवर हूँ मैं।
डा.नीलम
विषय -आम आदमीदिनांक 16 -9- 2019
आम आदमी अभाव में, जिंदगी बसर कर लेता है।
सपने छोटे-छोटे देख, पूरा उन्हें कर लेता है।।
महलों के सपने देखने वाला, दुखी सदा होता है।
अपना गलत तरीके वह, मंजिल को पाता है।।
आम आदमी को दर्द दे,उस पर मंजिल बनाता है।
सफलता जिंदगी में वह, कभी नहीं पाता है।।
आम आदमी परिवार संग, रुखा सुखा प्रेम से खाता है।
पाँच पकवान का आनंद, वह उसी में पाता है ।।
आम आदमी विनम्रता से, सब के दिल में जगह बनाता है।
अहंकारी जग में,सिर्फ नफरत को पाता है ।।
महंगाई के दौर में भी, सुकून से वह जीता है।
ईमानदारी से फर्ज निभा, चैन की नींद सोता है।।
नहीं करता किसी का बुरा,स्नेह सम्मान पाता है।
आम आदमी आम होकर भी, गुणों से पूजा जाता है।।
वीणा वैष्णव
काकरोली
आम आदमी अभाव में, जिंदगी बसर कर लेता है।
सपने छोटे-छोटे देख, पूरा उन्हें कर लेता है।।
महलों के सपने देखने वाला, दुखी सदा होता है।
अपना गलत तरीके वह, मंजिल को पाता है।।
आम आदमी को दर्द दे,उस पर मंजिल बनाता है।
सफलता जिंदगी में वह, कभी नहीं पाता है।।
आम आदमी परिवार संग, रुखा सुखा प्रेम से खाता है।
पाँच पकवान का आनंद, वह उसी में पाता है ।।
आम आदमी विनम्रता से, सब के दिल में जगह बनाता है।
अहंकारी जग में,सिर्फ नफरत को पाता है ।।
महंगाई के दौर में भी, सुकून से वह जीता है।
ईमानदारी से फर्ज निभा, चैन की नींद सोता है।।
नहीं करता किसी का बुरा,स्नेह सम्मान पाता है।
आम आदमी आम होकर भी, गुणों से पूजा जाता है।।
वीणा वैष्णव
काकरोली
आम आदमी
मैं आम आदमी हूँ मेरी जात क्या है
दो रोटी के सिवा मेरी औकात क्या है
सारा दिन गुजरता है उधेड़-बुन में
तुम क्या जानों मेरे हालात क्या है
मुरगे भी अब कतराते हैं बांग देने में
ये सुबह क्या जाने कि मेरी रात क्या है
गुजर गई कितनी ही ईद और दिवाली
कोई बता दे कि मेरे जज़बात क्या है
हर बार ही आकर वो जो बरगलाता है
उसकी बातों में नवल मेरी बात क्या है
-©नवल किशोर सिंह
16-09-2019
मैं आम आदमी हूँ मेरी जात क्या है
दो रोटी के सिवा मेरी औकात क्या है
सारा दिन गुजरता है उधेड़-बुन में
तुम क्या जानों मेरे हालात क्या है
मुरगे भी अब कतराते हैं बांग देने में
ये सुबह क्या जाने कि मेरी रात क्या है
गुजर गई कितनी ही ईद और दिवाली
कोई बता दे कि मेरे जज़बात क्या है
हर बार ही आकर वो जो बरगलाता है
उसकी बातों में नवल मेरी बात क्या है
-©नवल किशोर सिंह
16-09-2019
विषय आम आदमी
विधा कविता
दिनांक 16.9.2019
दिन सोमवार
आम आदमी
💘💘🍓🍓🍓🍓
मैं नहीं हूँ कोई आदमी गणमान्य
मैं तो हूँ आदमी एकदम सामान्य
इतना पैसा भी नहीं मेरे पास
कि जोडूँ
अपने बुरे दिनों के लिये थोडा़ धन धान्य।
हर दिन कमाता हूँ होता है व्यय
मैं नहीं जानता क्या होता संचय
मुनिया बीमार हुई तो लग गया भय
डाक्टर की फीस ने तोड़ दी सब लय।
कैसे लाऊँ उसके लिये जीने का पैगाम
हर चीज की जाँच और उफनते हुए दाम
अनमनी सुबह और अनमनी शाम
याद करुँ कैसे बताओ तुम्हें राम।
बादल ने कंगाली में आटा किया गीला
पीलिया के जैसे हुआ चेहरा पीला
पैसे वालों का दल बगीचे में ये बोला
मौसम हुआ है तगडा़ बडा। रंगीला।
ना मौसम ही अच्छा ना दिन ही अच्छे
कुम्हलाये चेहरे लिये दिखते हैं बच्चे
उपहास उडा़ते हैं ये मकान कच्चे
काग़जी योजनायें खिलाती हैं गच्चे।
स्वरचित
सुमित्रानन्दन पन्त
विधा कविता
दिनांक 16.9.2019
दिन सोमवार
आम आदमी
💘💘🍓🍓🍓🍓
मैं नहीं हूँ कोई आदमी गणमान्य
मैं तो हूँ आदमी एकदम सामान्य
इतना पैसा भी नहीं मेरे पास
कि जोडूँ
अपने बुरे दिनों के लिये थोडा़ धन धान्य।
हर दिन कमाता हूँ होता है व्यय
मैं नहीं जानता क्या होता संचय
मुनिया बीमार हुई तो लग गया भय
डाक्टर की फीस ने तोड़ दी सब लय।
कैसे लाऊँ उसके लिये जीने का पैगाम
हर चीज की जाँच और उफनते हुए दाम
अनमनी सुबह और अनमनी शाम
याद करुँ कैसे बताओ तुम्हें राम।
बादल ने कंगाली में आटा किया गीला
पीलिया के जैसे हुआ चेहरा पीला
पैसे वालों का दल बगीचे में ये बोला
मौसम हुआ है तगडा़ बडा। रंगीला।
ना मौसम ही अच्छा ना दिन ही अच्छे
कुम्हलाये चेहरे लिये दिखते हैं बच्चे
उपहास उडा़ते हैं ये मकान कच्चे
काग़जी योजनायें खिलाती हैं गच्चे।
स्वरचित
सुमित्रानन्दन पन्त
दिनांक 16/09/19
शीर्षक आम आदमी
आम आदमी
सवेरे तडके
जब निकलोगे घर से
तो दौडते भागते मिलेंगे
रोजी रोटी की तलाश मे
कितने ही आम आदमी
अखबार की
टीवी की सुर्खियों पे
नजरे गडाए बतियाते मिलेंगे
खुश कहीं, कहीं चिंतामग्न
कितने ही आम आदमी
सपने लिए
उम्मीदों के संग
मंजिलों की तरफ बढते
हारते कभी, कभी जीतते
कितने ही आम आदमी
भीड मे
अस्तित्व की तलाश
कोशिश कुछ पाने की
खुद को जिंदा रखते मिलेंगे
कितने ही आम आदमी
फर्क कितना
खास और आम का
खास खास तो आम आम
खुद को खास बनाने मे लगे
कितने ही आम आदमी
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
शीर्षक आम आदमी
आम आदमी
सवेरे तडके
जब निकलोगे घर से
तो दौडते भागते मिलेंगे
रोजी रोटी की तलाश मे
कितने ही आम आदमी
अखबार की
टीवी की सुर्खियों पे
नजरे गडाए बतियाते मिलेंगे
खुश कहीं, कहीं चिंतामग्न
कितने ही आम आदमी
सपने लिए
उम्मीदों के संग
मंजिलों की तरफ बढते
हारते कभी, कभी जीतते
कितने ही आम आदमी
भीड मे
अस्तित्व की तलाश
कोशिश कुछ पाने की
खुद को जिंदा रखते मिलेंगे
कितने ही आम आदमी
फर्क कितना
खास और आम का
खास खास तो आम आम
खुद को खास बनाने मे लगे
कितने ही आम आदमी
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
आज का शीर्षकः- आम आदमी
मैं तो हूँ बस एक आदमी।
रखता है मेरी खास आदमी।
डाक्टर स्वास्थ ठीक रखता।
वकील हक मेरा है दिलवाता।।
न्यायाधीश मुझे न्याय देता ।
गुरु मुझको शिक्षित करता ।।
शाशन प्रशाशन सुरक्षा देता।
मैं हूँ बस इनके लिये कमाता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
मैं तो हूँ बस एक आदमी।
रखता है मेरी खास आदमी।
डाक्टर स्वास्थ ठीक रखता।
वकील हक मेरा है दिलवाता।।
न्यायाधीश मुझे न्याय देता ।
गुरु मुझको शिक्षित करता ।।
शाशन प्रशाशन सुरक्षा देता।
मैं हूँ बस इनके लिये कमाता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
विषय _आम आदमी |
वर्षा के कहर से प्रभावित सबसे ज्यादा आम आदमी |
मालवा अचंल मे भी सबसे ज्यादा|
मेरा जिला मंदसौर |
चंहू ओर मची तबाही घर धन जन की हानि |
तबाह आम आदमी रह रहे घर छोड |जाये कहा जीये कैसे आम आदमी |
बडे लोग बजाय मदद के करे सिहासत |
झेलना सारी आफदाये आम आदमी को |
प्रवासी बन गये इस आपदा से
कब कहां आ जाये ऐसे कहर|
आम आदमी ही प्रभावित होता |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा
वर्षा के कहर से प्रभावित सबसे ज्यादा आम आदमी |
मालवा अचंल मे भी सबसे ज्यादा|
मेरा जिला मंदसौर |
चंहू ओर मची तबाही घर धन जन की हानि |
तबाह आम आदमी रह रहे घर छोड |जाये कहा जीये कैसे आम आदमी |
बडे लोग बजाय मदद के करे सिहासत |
झेलना सारी आफदाये आम आदमी को |
प्रवासी बन गये इस आपदा से
कब कहां आ जाये ऐसे कहर|
आम आदमी ही प्रभावित होता |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा
दिनाँक-16/09/2019
शीर्षक-आम आदमी
विधा-हाइकु
1.
आम आदमी
पिसता है लाजमी
दुःख दर्द में
2.
आम आदमी
रोता मंहगाई को
बेरोजगार
3.
आम आदमी
रीढ़ लोकतंत्र की
वोट की शक्ति
4.
भाग्य का मारा
कैसे करे गुजारा
आम आदमी
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शीर्षक-आम आदमी
विधा-हाइकु
1.
आम आदमी
पिसता है लाजमी
दुःख दर्द में
2.
आम आदमी
रोता मंहगाई को
बेरोजगार
3.
आम आदमी
रीढ़ लोकतंत्र की
वोट की शक्ति
4.
भाग्य का मारा
कैसे करे गुजारा
आम आदमी
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
"नमन भावों के मोती"
दि. - 16.09.19
विषय - आम आदमी
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...
==========================
व्यथित और बेचारा है आम आदमी.
मुसीबत का मारा है आम आदमी.
है जद्दोजहद से भरी ज़िन्दगी,
यहाँ खुद से हारा है आम आदमी.
सहारा उसे खुद न मिलता मगर,
सभी का सहारा है आम आदमी.
बना इसको सीढ़ी सफल सब हुए,
कई को उबारा है आम आदमी.
उलझता सुलझता ये रहता सदा,
यूँ जीवन निखारा है आम आदमी.
==========================
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
दि. - 16.09.19
विषय - आम आदमी
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...
==========================
व्यथित और बेचारा है आम आदमी.
मुसीबत का मारा है आम आदमी.
है जद्दोजहद से भरी ज़िन्दगी,
यहाँ खुद से हारा है आम आदमी.
सहारा उसे खुद न मिलता मगर,
सभी का सहारा है आम आदमी.
बना इसको सीढ़ी सफल सब हुए,
कई को उबारा है आम आदमी.
उलझता सुलझता ये रहता सदा,
यूँ जीवन निखारा है आम आदमी.
==========================
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
विषय--आम आदमी
विधा--छन्दमुक्त
हाँ,
मैं एक आम आदमी हूँ
हूँ पथिक अनजान
नहीं रखता विशिष्ट पहचान
मानूँ खुद को सिर्फ इंसान
न मैं राम न रहमान
मैं एक गुमनाम आदमी हूँ
हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
मेरी मजबूरियों से किसी को
नहीं होता कोई सरोकार
आँख, कान बन्द कर
बैठी रहती है सरकार
ग़रीब को होती है
सिर्फ़ रोटी की दरकार
नहीं जानता हूँ मैं सीधा-सादा
अपने वोट का अधिकार
मैं एक बेनाम आदमी हूँ
हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विधा--छन्दमुक्त
हाँ,
मैं एक आम आदमी हूँ
हूँ पथिक अनजान
नहीं रखता विशिष्ट पहचान
मानूँ खुद को सिर्फ इंसान
न मैं राम न रहमान
मैं एक गुमनाम आदमी हूँ
हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
मेरी मजबूरियों से किसी को
नहीं होता कोई सरोकार
आँख, कान बन्द कर
बैठी रहती है सरकार
ग़रीब को होती है
सिर्फ़ रोटी की दरकार
नहीं जानता हूँ मैं सीधा-सादा
अपने वोट का अधिकार
मैं एक बेनाम आदमी हूँ
हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विषय :- "आम आदमी"
दिनांक :- 16/9/19.
विधा :- "मुक्त छन्द काव्य"
हाँ.........!
मैं हूँ आम आदमी।
भूषण मेरा है सादगी।
करता ना कोई बखेड़ा।
पालता हूँ पेट निज़ परिवार का,
चला कर के हाथ-रहड़ा।
छल-कपट से दूर का नाता नहीं है।
फरेबो-प्रपंच भी भाता नहीं है।
झूठ कितना शक्तिशाली जानता हूँ।
आज उसका प्रहर है,ये मानता हूँ।
सत्य अपना कर चला तो 'आम' हूँ मैं।
लाचार हूँ, कंगाल हूँ, बेनाम हूँ मैं।
सत्य मानो छुप गया है इस जहाँ से।
झूठ के ही सुर निकलते हर जबाँ से।
न्याय का मोहताज हूँ मैं युग-युगों से।
पेश नहीं जाती है,आधुनिक ठगों से।
तिस पर भी रहते अटल मेरे इरादे।
हौसले मज़बूत मेरे ठोस वादे।
लोकतंत्र के भवन का आधार हूँ मैं।
विघटनकारी तत्वों को संहार हूँ मैं।
कमजोर हूँ, मत समझने की भूल करना।
बिगड़ा मैं,सिर धुन के पछताओगे वर्ना।
माना हूँ साधनहीन,ना कमज़ोर भाई।
कितने साधन सम्पन्नों को धूल चटाई।
कितने तख्तो-ताज़ मिटे मेरी ताकत से।
कितने ज़ालिम राज हटे मेरी ताकत से।
मै सन्तोषी जीव छीन नही खाना आता।
हो सबका कल्याण मुझे ये नारा भाता।
दिनांक :- 16/9/19.
विधा :- "मुक्त छन्द काव्य"
हाँ.........!
मैं हूँ आम आदमी।
भूषण मेरा है सादगी।
करता ना कोई बखेड़ा।
पालता हूँ पेट निज़ परिवार का,
चला कर के हाथ-रहड़ा।
छल-कपट से दूर का नाता नहीं है।
फरेबो-प्रपंच भी भाता नहीं है।
झूठ कितना शक्तिशाली जानता हूँ।
आज उसका प्रहर है,ये मानता हूँ।
सत्य अपना कर चला तो 'आम' हूँ मैं।
लाचार हूँ, कंगाल हूँ, बेनाम हूँ मैं।
सत्य मानो छुप गया है इस जहाँ से।
झूठ के ही सुर निकलते हर जबाँ से।
न्याय का मोहताज हूँ मैं युग-युगों से।
पेश नहीं जाती है,आधुनिक ठगों से।
तिस पर भी रहते अटल मेरे इरादे।
हौसले मज़बूत मेरे ठोस वादे।
लोकतंत्र के भवन का आधार हूँ मैं।
विघटनकारी तत्वों को संहार हूँ मैं।
कमजोर हूँ, मत समझने की भूल करना।
बिगड़ा मैं,सिर धुन के पछताओगे वर्ना।
माना हूँ साधनहीन,ना कमज़ोर भाई।
कितने साधन सम्पन्नों को धूल चटाई।
कितने तख्तो-ताज़ मिटे मेरी ताकत से।
कितने ज़ालिम राज हटे मेरी ताकत से।
मै सन्तोषी जीव छीन नही खाना आता।
हो सबका कल्याण मुझे ये नारा भाता।
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