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ब्लॉग संख्या :-503
विषय शहनाई
विधा काव्य
12 सितम्बर,2019 गुरुवार
गणपति बप्पा प्रिय मोरिया
बाजे ढोल बजे शहनाई।
मोदक खाते कभी न थकते
भक्त बांटते रोज मिठाई।
पार्वती सुत शिव के नन्दन
चतुर्दशी पावन दिन आया।
जल विसर्जन होगा प्रिय वर
छम छम घुंघरू शौर छाया।
ढोलक तबले गाजे बाजे
दुंदुभी साजे और शहनाई।
नर्तन करते करतल करते
नयी पौशाक बप्पा पहनाई।
बुद्धि दाता श्री गणपति जी
भक्तों पर खुशियां बरसाना।
भजन कीर्तन करते मिल सब
सुख शांति जन जन में लाना।
घर में आप विराजे दस दिन
भूल त्रुटि को क्षमा ही करना।
आज बजाऊ प्रिय शहनाई
भारत की हर विपदा हरना।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
12 सितम्बर,2019 गुरुवार
गणपति बप्पा प्रिय मोरिया
बाजे ढोल बजे शहनाई।
मोदक खाते कभी न थकते
भक्त बांटते रोज मिठाई।
पार्वती सुत शिव के नन्दन
चतुर्दशी पावन दिन आया।
जल विसर्जन होगा प्रिय वर
छम छम घुंघरू शौर छाया।
ढोलक तबले गाजे बाजे
दुंदुभी साजे और शहनाई।
नर्तन करते करतल करते
नयी पौशाक बप्पा पहनाई।
बुद्धि दाता श्री गणपति जी
भक्तों पर खुशियां बरसाना।
भजन कीर्तन करते मिल सब
सुख शांति जन जन में लाना।
घर में आप विराजे दस दिन
भूल त्रुटि को क्षमा ही करना।
आज बजाऊ प्रिय शहनाई
भारत की हर विपदा हरना।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-12/09/2029
विषय-शहनाई
मिलन की कसक गूंज उठी
झनक उठी की झाझर की शहनाई।
मेरा मस्तक सहलाकर
मुझसे बोली प्रचंड पुरवाई।।
पास ही कहीं बज रही है
प्रणय के झाझर की शहनाई।।
सुनकर के प्रणय की शहनाई
मेरी आंखें लड़ियां से भर आई।।
अंबर बीच ठहर चंद्रमा
लगा मुझे समझाने।
उसी क्षण टूटा नभ से एक तारा
तब मेरी तबीयत घबराई।।
मैं कली अकेली बगिया की
देख माली को मैं मुस्काई।
मंदिम मंदिम व्यथित रागिनी
आगोश के उन्मादों ने मुझे ललचाई
टूटे तार हृदय वीणा के
अश्रु की अविरल धार बह आई।।
खलबली मची है एकांत निशा में
कैद है आज मेरी तन्हाई।
चंद बूंदे मोतियों की छलक उठती
मेरे नैनो को देखो इनमें है अँगड़ाई।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विषय-शहनाई
मिलन की कसक गूंज उठी
झनक उठी की झाझर की शहनाई।
मेरा मस्तक सहलाकर
मुझसे बोली प्रचंड पुरवाई।।
पास ही कहीं बज रही है
प्रणय के झाझर की शहनाई।।
सुनकर के प्रणय की शहनाई
मेरी आंखें लड़ियां से भर आई।।
अंबर बीच ठहर चंद्रमा
लगा मुझे समझाने।
उसी क्षण टूटा नभ से एक तारा
तब मेरी तबीयत घबराई।।
मैं कली अकेली बगिया की
देख माली को मैं मुस्काई।
मंदिम मंदिम व्यथित रागिनी
आगोश के उन्मादों ने मुझे ललचाई
टूटे तार हृदय वीणा के
अश्रु की अविरल धार बह आई।।
खलबली मची है एकांत निशा में
कैद है आज मेरी तन्हाई।
चंद बूंदे मोतियों की छलक उठती
मेरे नैनो को देखो इनमें है अँगड़ाई।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास
जब बजती कहीं शहनाई दूर
आप मुझको याद आते हुजूर ।।
बजते दिल के तार आती बयार
झूमने लगता ये मन का मयूर ।।
संगीत की महफिलें सजी रहें
सदा दिल में जब से देखा नूर ।।
दिल गाता है और गुनगुनाता
शाम से ही आ जाय है सुरूर ।।
शहनाई तो गमों में भी बजे
और खुशी में भी बजे भरपूर ।।
वस्ल क्या हुई 'शिवम' है सौगात
शहनाई कि हूँ मस्ती में चूर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/09/2019
प्रथम प्रयास
जब बजती कहीं शहनाई दूर
आप मुझको याद आते हुजूर ।।
बजते दिल के तार आती बयार
झूमने लगता ये मन का मयूर ।।
संगीत की महफिलें सजी रहें
सदा दिल में जब से देखा नूर ।।
दिल गाता है और गुनगुनाता
शाम से ही आ जाय है सुरूर ।।
शहनाई तो गमों में भी बजे
और खुशी में भी बजे भरपूर ।।
वस्ल क्या हुई 'शिवम' है सौगात
शहनाई कि हूँ मस्ती में चूर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/09/2019
शीर्षक-- शहनाई
द्वितीय प्रस्तुति
सोचता हूँ जब उनके आने की
बजती है मन में मधुर शहनाई ।।
ये कैसी प्यास तड़फ या लगन है
जो अब तक भी नही गयी भुलायी ।।
मुद्दतें बीतीं ...मिले हुए उनसे
पर वही ताजगी अब तक कहायी ।।
दिल के तार ही हैं जो छेड़े थे
कभी खनक खत्म न हुई अजमायी ।।
जब गूँजती है शहनाई दिल में
लेती आकार होती कविताई ।।
शहनाई के स्वर का कमाल 'शिवम'
मौसिकि न तो शायरी हाथ आयी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/09/2019
द्वितीय प्रस्तुति
सोचता हूँ जब उनके आने की
बजती है मन में मधुर शहनाई ।।
ये कैसी प्यास तड़फ या लगन है
जो अब तक भी नही गयी भुलायी ।।
मुद्दतें बीतीं ...मिले हुए उनसे
पर वही ताजगी अब तक कहायी ।।
दिल के तार ही हैं जो छेड़े थे
कभी खनक खत्म न हुई अजमायी ।।
जब गूँजती है शहनाई दिल में
लेती आकार होती कविताई ।।
शहनाई के स्वर का कमाल 'शिवम'
मौसिकि न तो शायरी हाथ आयी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/09/2019
नमन🙏 भावों के मोती🙏 विषय -शहनाई
दिनांक 12-9-2019
सपनों में तुम्हें बसाया, हकीकत न पाया मैं।
बजा शहनाई ओर ले गया, देखता रह गया मैं।।
जागा कितनी रातें, यही सोच ना सो पाया मैं ।
शहनाई बजा एक दिन, तुझे ले आऊंगा मैं।।
सपना मेरा टूटा, हकीकत में बहुत रोया मैं ।
खो दिया तुझको,अब ना जी पाऊंगा मैं।।
अगले जन्म मिलने का, वादा करता हूँ मैं।
बजा शहनाई,सबसे पहले तुझे ले जाऊंगा मैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
दिनांक 12-9-2019
सपनों में तुम्हें बसाया, हकीकत न पाया मैं।
बजा शहनाई ओर ले गया, देखता रह गया मैं।।
जागा कितनी रातें, यही सोच ना सो पाया मैं ।
शहनाई बजा एक दिन, तुझे ले आऊंगा मैं।।
सपना मेरा टूटा, हकीकत में बहुत रोया मैं ।
खो दिया तुझको,अब ना जी पाऊंगा मैं।।
अगले जन्म मिलने का, वादा करता हूँ मैं।
बजा शहनाई,सबसे पहले तुझे ले जाऊंगा मैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
🌹 द्वितीय प्रयास 🌹
जब बजी शहनाई, खुशियांँ चहुँओर छाई थी।
मांँ का सपना पूरा हुआ, बेटी की आज विदाई थी।।
मेरे घर भी बजे शहनाई, हर मांँ का सपना होता है।
आए कोई राजकुमार, बेटी खुशियांँ सजाई थी।
रहे सदा वह खुश,यही सोच बजाई शहनाई थी।
ससुराल मिला पिहर जैसा,हुई भरपाई थी।।
नन्ही परी हुई पराई, विधि रचना बनाई थी।
मेरा आँगन खाली हुआ,बजी शहनाई थी ।।
सास मांँ है देना सुख, यह बात मैंने सिखलाई थी।
इसी राह चली वह, नहीं हुई कभी पराई थी ।।
सबके घर बजे शहनाई, प्रभु विधा बनाई थी ।
कहे वीणा सब खुश रहे, मांँ की सीख ना बिसराई थी।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
जब बजी शहनाई, खुशियांँ चहुँओर छाई थी।
मांँ का सपना पूरा हुआ, बेटी की आज विदाई थी।।
मेरे घर भी बजे शहनाई, हर मांँ का सपना होता है।
आए कोई राजकुमार, बेटी खुशियांँ सजाई थी।
रहे सदा वह खुश,यही सोच बजाई शहनाई थी।
ससुराल मिला पिहर जैसा,हुई भरपाई थी।।
नन्ही परी हुई पराई, विधि रचना बनाई थी।
मेरा आँगन खाली हुआ,बजी शहनाई थी ।।
सास मांँ है देना सुख, यह बात मैंने सिखलाई थी।
इसी राह चली वह, नहीं हुई कभी पराई थी ।।
सबके घर बजे शहनाई, प्रभु विधा बनाई थी ।
कहे वीणा सब खुश रहे, मांँ की सीख ना बिसराई थी।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक- 12/9/2019
शीर्षक- "शहनाई"विधा- गीत
**************
पूरी रात नींद टूटती रही मेरी,
मैं कुछ भी समझ नहीं पाई,
कानों में धुन गूँज रही थी तब,
कहीं दूर बज रही थी शहनाई |
सपने सलोने बुन रही थी मैं भी,
घर मेरे भी बजेगी जल्द शहनाई,
भाग्य कुंडली का न मैं जान पाई,
प्यार में मिली बड़ी ही रुसवाई |
बेखबर हम, मिला हमें ऐसा गम,
आँसुओं से ये आँखें हुई थी नम,
दर्दें बयां न किया जा रहा था,
न तो जिया न ही मरा जा रहा था |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- "शहनाई"विधा- गीत
**************
पूरी रात नींद टूटती रही मेरी,
मैं कुछ भी समझ नहीं पाई,
कानों में धुन गूँज रही थी तब,
कहीं दूर बज रही थी शहनाई |
सपने सलोने बुन रही थी मैं भी,
घर मेरे भी बजेगी जल्द शहनाई,
भाग्य कुंडली का न मैं जान पाई,
प्यार में मिली बड़ी ही रुसवाई |
बेखबर हम, मिला हमें ऐसा गम,
आँसुओं से ये आँखें हुई थी नम,
दर्दें बयां न किया जा रहा था,
न तो जिया न ही मरा जा रहा था |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय-शहनाई
१२-९-२९
मुक्तक
मांग़ल बेला द्वार सजाई।
स्वर मंगल वाद्य लगाई।
हिय डोले मन को खोले-
तान लगाई है शहनाई।।
बेदी द्वाराचार सजाई।
पुष्प कहें कौन है जाई।
स्वरों के संग फूल बोलें-
पुत्री चरण हुई विदाई।।
देवालय में ज्ञान है पाई।
आरती करें दीपक लाई।
नादस्वरम की श्रुतियों के-
स्वरों में डूबे प्राणी माई।।
सप्त स्वर शहनाई बजती
रूपों में संगीत के सजती।
सुमधुर सुंदर स्वध्वनि से-
कर्ण को तृप्त वह करती।
शहनाई की मृदु आवाज़।
लुप्त हो रहा है वाद्य राज।
अपनी पुरातन रीति थामें-
पुनः शहनाई का हो काज।।
स्वरचित
रचना उनियाल
बंग़लोरे
१२-९-२९
मुक्तक
मांग़ल बेला द्वार सजाई।
स्वर मंगल वाद्य लगाई।
हिय डोले मन को खोले-
तान लगाई है शहनाई।।
बेदी द्वाराचार सजाई।
पुष्प कहें कौन है जाई।
स्वरों के संग फूल बोलें-
पुत्री चरण हुई विदाई।।
देवालय में ज्ञान है पाई।
आरती करें दीपक लाई।
नादस्वरम की श्रुतियों के-
स्वरों में डूबे प्राणी माई।।
सप्त स्वर शहनाई बजती
रूपों में संगीत के सजती।
सुमधुर सुंदर स्वध्वनि से-
कर्ण को तृप्त वह करती।
शहनाई की मृदु आवाज़।
लुप्त हो रहा है वाद्य राज।
अपनी पुरातन रीति थामें-
पुनः शहनाई का हो काज।।
स्वरचित
रचना उनियाल
बंग़लोरे
12 /9 /2019
बिषय ,,"शहनाई""
बड़े दिनों के बाद वो आज मेरे घर आए हैं
गूंज उठी मन की शहनाई
मैंने वीणा तार सजाए हैं
अंतर्मन की तरंगें स्वागत गीत गाती हैं
सातों स्वर से सरगम छेड़ा गीत खुशी के गाए हैं
कलियों ने घूंघट खोल दिया और कुमुदिनी खिल उठी
मलय पवन महक उठी वो बहार साथ में लाए हैं
ऐसा लगता मानो धरा आसमां हुए एक
चकवी बन इंतजार किया मैंने
गहरे समुद्र में गोते लगाए हैं
नजरों से नजरें क्या मिली
पल में सारा जीवन जी लिया
मैं तो मोरनी सी चहक उठी
फिर उड़ने को पंख फैलाए हैं
आज चांदनी स्वयं मेरे आंगन उतर आई है
मेरी सदाओं का असर
मैंने मनमंदिर में दीप जलाए हैं
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
बिषय ,,"शहनाई""
बड़े दिनों के बाद वो आज मेरे घर आए हैं
गूंज उठी मन की शहनाई
मैंने वीणा तार सजाए हैं
अंतर्मन की तरंगें स्वागत गीत गाती हैं
सातों स्वर से सरगम छेड़ा गीत खुशी के गाए हैं
कलियों ने घूंघट खोल दिया और कुमुदिनी खिल उठी
मलय पवन महक उठी वो बहार साथ में लाए हैं
ऐसा लगता मानो धरा आसमां हुए एक
चकवी बन इंतजार किया मैंने
गहरे समुद्र में गोते लगाए हैं
नजरों से नजरें क्या मिली
पल में सारा जीवन जी लिया
मैं तो मोरनी सी चहक उठी
फिर उड़ने को पंख फैलाए हैं
आज चांदनी स्वयं मेरे आंगन उतर आई है
मेरी सदाओं का असर
मैंने मनमंदिर में दीप जलाए हैं
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
नमन मंच भावो के मोती
12/09/2019/
गुरुवार
विषय - शहनाई
विधा -- सायली छंदं
शहनाई
अच्छी लगती
धुन मीठी लगती
हूक उठाती
शहनाई
बाबुल
आस लगायें
कब करुंगा शादी
बाजेगी शहनाई
आँगन
बेटी
हुई पराई
रोये घर आँगन
लाज निभाना
सबकी
12/09/2019/
गुरुवार
विषय - शहनाई
विधा -- सायली छंदं
शहनाई
अच्छी लगती
धुन मीठी लगती
हूक उठाती
शहनाई
बाबुल
आस लगायें
कब करुंगा शादी
बाजेगी शहनाई
आँगन
बेटी
हुई पराई
रोये घर आँगन
लाज निभाना
सबकी
भावों के मोती
बिषय- शहनाई
सुन, क्या कहती है शहनाई
एक और बेटी हो गई पराई।
लिए अश्रुओं की धार नयन में
मां-बाप,रिश्तेदार दे रहे विदाई।।
मुख कमल यूंही रहे सदा खिला
दिल ही दिल में वे, कर रहे दुआ।
वो घर भी सजाए,इस घर की तरह
यही अरमान लिए, सभी दे रहे विदा।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर
बिषय- शहनाई
सुन, क्या कहती है शहनाई
एक और बेटी हो गई पराई।
लिए अश्रुओं की धार नयन में
मां-बाप,रिश्तेदार दे रहे विदाई।।
मुख कमल यूंही रहे सदा खिला
दिल ही दिल में वे, कर रहे दुआ।
वो घर भी सजाए,इस घर की तरह
यही अरमान लिए, सभी दे रहे विदा।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर
नमन मंच
12/09/19
शहनाई
***
दोहा और चौपाई के माध्यम से
***
घर अँगना बजते रहें ,शहनाई के साज ।
मधुर सुरों की गूँज से,पूरे मंगल काज ।।
किलकारी से गूँजा आँगन,नन्हीं परी गोद में आई
सुंदर मुखड़ा देख सलोना,माँ की ममता है अकुलाई।
मंगल गीतों से हिय हरषे,कलिका बगिया में मुस्काई,
तोरण द्वारे द्वारे सजते,देखो गूँज उठी शहनाई।
ठुमुक ठुमुक कर जब चलती वो,खन खन कर पायल खनकाई।
चन्द्रकला सी बढ़ती जाये ,आती जल्दी क्यों तरुणाई
हाथों में लेकर जयमाला ,बेटी की अब होय विदाई
छोड़ चली बाबुल का अँगना,देखो गूँज उठी शहनाई ।
शहनाई के साज से ,बसा रहे संसार ।
शुचिता शुभता से मिले ,खुशियों का भंडार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
12/09/19
शहनाई
***
दोहा और चौपाई के माध्यम से
***
घर अँगना बजते रहें ,शहनाई के साज ।
मधुर सुरों की गूँज से,पूरे मंगल काज ।।
किलकारी से गूँजा आँगन,नन्हीं परी गोद में आई
सुंदर मुखड़ा देख सलोना,माँ की ममता है अकुलाई।
मंगल गीतों से हिय हरषे,कलिका बगिया में मुस्काई,
तोरण द्वारे द्वारे सजते,देखो गूँज उठी शहनाई।
ठुमुक ठुमुक कर जब चलती वो,खन खन कर पायल खनकाई।
चन्द्रकला सी बढ़ती जाये ,आती जल्दी क्यों तरुणाई
हाथों में लेकर जयमाला ,बेटी की अब होय विदाई
छोड़ चली बाबुल का अँगना,देखो गूँज उठी शहनाई ।
शहनाई के साज से ,बसा रहे संसार ।
शुचिता शुभता से मिले ,खुशियों का भंडार।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
नमन भावों के मोती
आज का विषय, शहनाई
गुरुवार
12, 9, 2019,
जब नन्ही परी आई आँगन ,
मधुर वेला खुशियों की आई ।
स्पर्श पाकर माँ बाबा का मन,
झूमता है गूँज उठी शहनाई ।
नन्ही कली फूल बनी है जब ,
कितनी उमंगों की घड़ी आई ।
सपना बस यही पालक मन ,
कब मेरे द्वार बजे शहनाई ।
सुघड़ सलोना काबिल वर हो,
तो फिर बेटी की करूँ विदाई ।
अपने पिया संग आनंदित हो ,
उसके जीवन में बजे शहनाई ।
मंगलमय तिथि शुभ मुहूर्त में ,
बाबुल के द्वार बजी शहनाई ।
अब तक बसती थी पलकों में,
होने लगी है देखो वो पराई ।
छोड़ चली वो बाबुल का घर,
मन मंदिर में बसाकर शहनाई।
देश पराये बसना है जाकर के,
माता-पिता ने दे दी है विदाई ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
आज का विषय, शहनाई
गुरुवार
12, 9, 2019,
जब नन्ही परी आई आँगन ,
मधुर वेला खुशियों की आई ।
स्पर्श पाकर माँ बाबा का मन,
झूमता है गूँज उठी शहनाई ।
नन्ही कली फूल बनी है जब ,
कितनी उमंगों की घड़ी आई ।
सपना बस यही पालक मन ,
कब मेरे द्वार बजे शहनाई ।
सुघड़ सलोना काबिल वर हो,
तो फिर बेटी की करूँ विदाई ।
अपने पिया संग आनंदित हो ,
उसके जीवन में बजे शहनाई ।
मंगलमय तिथि शुभ मुहूर्त में ,
बाबुल के द्वार बजी शहनाई ।
अब तक बसती थी पलकों में,
होने लगी है देखो वो पराई ।
छोड़ चली वो बाबुल का घर,
मन मंदिर में बसाकर शहनाई।
देश पराये बसना है जाकर के,
माता-पिता ने दे दी है विदाई ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
नमन भावों के मोती।
नमन गुरूजनों, मित्रों।
12/9/2019
जब घड़ी मिलन की आई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
क्या,क्या सोचे ये मन।
कैसे बीते ये पल।
मुश्किल से समय बिताई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
कैसा होगा मेरा साथी।
होगा जैसे दिया और बाती।
मन को मैंने समझाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
जो भी होगा गुजारा कर लेंगे।
उसका रंग जीवन में भर लेंगे।
बस केवल खुशियों की हो भरपाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
घर आंगन में हो केवल रौनक।
उसके बिना कटे नहीं कभी वक्त।
ऐसे अनमोल ख्वाब सजाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
घर के पीछे हो अमराई।
दे कोयल की कूक सुनाई।
मीठे सुर में कोयल ने गाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन गुरूजनों, मित्रों।
12/9/2019
जब घड़ी मिलन की आई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
क्या,क्या सोचे ये मन।
कैसे बीते ये पल।
मुश्किल से समय बिताई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
कैसा होगा मेरा साथी।
होगा जैसे दिया और बाती।
मन को मैंने समझाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
जो भी होगा गुजारा कर लेंगे।
उसका रंग जीवन में भर लेंगे।
बस केवल खुशियों की हो भरपाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
घर आंगन में हो केवल रौनक।
उसके बिना कटे नहीं कभी वक्त।
ऐसे अनमोल ख्वाब सजाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
घर के पीछे हो अमराई।
दे कोयल की कूक सुनाई।
मीठे सुर में कोयल ने गाई।
कानों में बजने लगी शहनाई।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय-शहनाई
लो बजी शहनाई
दूर कहीं शहनाई बजी
आहा! आज फिर किसी के
सपने रंग भरने लगे,
आज फिर एक नवेली
नया संसार बसाने चली,
मां ने वर्ण माला सिखाई
तब सोचा भी न होगा
चली जायेगी
जीवन के नये अर्थ सीखने
यूं अकेली ,किसी अजनबी के साथ,
जो हाथ न छोडती थी कभी
गिरने के डर से,
वही हाथ छोड,
किसी और का हाथ थाम चल पड़ी,
जिसका पूरा आसमान
मां का आंचल था,
वो निकल पड़ी
विशाल आसमान में उडने
अपने पंख फैला,
जिसकी दुनिया थी
बस मां के आस पास,
वो चली आज एक
नयी दुनिया बसाने,
शहनाई बजी फिर
लो एक डोली उठी फिर।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
लो बजी शहनाई
दूर कहीं शहनाई बजी
आहा! आज फिर किसी के
सपने रंग भरने लगे,
आज फिर एक नवेली
नया संसार बसाने चली,
मां ने वर्ण माला सिखाई
तब सोचा भी न होगा
चली जायेगी
जीवन के नये अर्थ सीखने
यूं अकेली ,किसी अजनबी के साथ,
जो हाथ न छोडती थी कभी
गिरने के डर से,
वही हाथ छोड,
किसी और का हाथ थाम चल पड़ी,
जिसका पूरा आसमान
मां का आंचल था,
वो निकल पड़ी
विशाल आसमान में उडने
अपने पंख फैला,
जिसकी दुनिया थी
बस मां के आस पास,
वो चली आज एक
नयी दुनिया बसाने,
शहनाई बजी फिर
लो एक डोली उठी फिर।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
12/09/2019
"शहनाई"
-----------------------------------
नन्ही सी सोन परी मेरी
धीरे-धीरे बड़ी हो रही
प्रतिभा और लगन से
सफलता हासिल कर ली।
कुछ वर्षों के बाद ही
समाज में प्रतिष्ठित हो जायेगी..
मैं अभी से ख्वाब देखती
बेटी के करने हैं हाथ पीले।
अरमान मचलने लगे हैं खास
सपने सजते जो दिल के पास
हमारी अब एक ही है आस
बजे शहनाई हमारे आवास।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"शहनाई"
-----------------------------------
नन्ही सी सोन परी मेरी
धीरे-धीरे बड़ी हो रही
प्रतिभा और लगन से
सफलता हासिल कर ली।
कुछ वर्षों के बाद ही
समाज में प्रतिष्ठित हो जायेगी..
मैं अभी से ख्वाब देखती
बेटी के करने हैं हाथ पीले।
अरमान मचलने लगे हैं खास
सपने सजते जो दिल के पास
हमारी अब एक ही है आस
बजे शहनाई हमारे आवास।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन् भावों केमोती
दिनाँक 12/9/19
विषय:शहनाई
विधा:हाइकु
द्वार पूजन
शहनाई वादन
शुभ विवाह
दूल्हा-दुल्हन
शहनाई की धुन
सकुच दिल
भांवर पड़ी
मण्डप शहनाई
दुल्हन विदा
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
दिनाँक 12/9/19
विषय:शहनाई
विधा:हाइकु
द्वार पूजन
शहनाई वादन
शुभ विवाह
दूल्हा-दुल्हन
शहनाई की धुन
सकुच दिल
भांवर पड़ी
मण्डप शहनाई
दुल्हन विदा
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
नमन मंच
दिनांक १२/९/२०१९
शीर्षक"शहनाई"
सजने लगे है घर बार मेरा
बजने लगी है शहनाई
दीप घर में खुशियों के जल ग्रे
मंगल गीत बजे बधाई।
सजने लगे है घर बार मेरा
बजने लगी है शहनाई
दुल्हे राजा खूब सजे है
खुशियों की बेला आई।
सुखद संयोग बना है आज
सुन्दर वर व्याहने आये
माँ बाप की प्यारी बिटिया
आज हो रही पराई।
सजने लगे है घर बार मेरा
बजने लगी है शहनाई
मिलन विरह का अद्भुत संयोग
देखो परिणय की बेला आई।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक १२/९/२०१९
शीर्षक"शहनाई"
सजने लगे है घर बार मेरा
बजने लगी है शहनाई
दीप घर में खुशियों के जल ग्रे
मंगल गीत बजे बधाई।
सजने लगे है घर बार मेरा
बजने लगी है शहनाई
दुल्हे राजा खूब सजे है
खुशियों की बेला आई।
सुखद संयोग बना है आज
सुन्दर वर व्याहने आये
माँ बाप की प्यारी बिटिया
आज हो रही पराई।
सजने लगे है घर बार मेरा
बजने लगी है शहनाई
मिलन विरह का अद्भुत संयोग
देखो परिणय की बेला आई।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
बिषयःः ः३शहनाई#
विधाःः काव्यः ः
राग रागिनी मिल के गाऐं।
शहनाई सब खूब बजाऐं।
हम वैरभाव छोडकर सारे,
प्रीति साथ में रास रचाऐं।
प्रेम प्यार से रिश्ते जोडें।
सब रागद्वेष से नाते छोडें।
गुंजित हो घर घर शहनाई,
हर दुराचार से मुखडे मोडें।
घरआंगन कुसुमित हो जाऐं।
बलिहारी हम प्रभु की जाऐं।
बाजे ढोल,मंजीरे शहनाई तो
मनमंदिर प्रफुल्लित हो जाऐ।
डोली उठे बिटिया की घर से,
खुशियां हर घर में छा जाऐं।
यहाँ बजे चैन की बंशी प्यारी,
ये शहनाई की धुन आ जाऐ।
स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधाःः काव्यः ः
राग रागिनी मिल के गाऐं।
शहनाई सब खूब बजाऐं।
हम वैरभाव छोडकर सारे,
प्रीति साथ में रास रचाऐं।
प्रेम प्यार से रिश्ते जोडें।
सब रागद्वेष से नाते छोडें।
गुंजित हो घर घर शहनाई,
हर दुराचार से मुखडे मोडें।
घरआंगन कुसुमित हो जाऐं।
बलिहारी हम प्रभु की जाऐं।
बाजे ढोल,मंजीरे शहनाई तो
मनमंदिर प्रफुल्लित हो जाऐ।
डोली उठे बिटिया की घर से,
खुशियां हर घर में छा जाऐं।
यहाँ बजे चैन की बंशी प्यारी,
ये शहनाई की धुन आ जाऐ।
स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
बिषयःः#शहनाई#
विधाःः दोहाः ः
शहनाई आंगन बजे, बडी सुहानी बात।
डोली हर घर से उठे, बहुत बडी सौगात।(1)
बिटिया हमको चाहिऐ ,देंय ईश उपहार।
यहाँ बजती शहनाई,किया बडा उपकार।(2)
शहनाई सौभाग्य से, बजती अपने द्वार।
प्रभु इच्छा होती तभी, होता यहाँ उद्धार।(3)
मधु तान शहनाई की, सुनें चाहते लोग।
बिटिया घर वरदान है, पैसे का उपयोग(4)
बेटी तो शहनाई बजे, सुख की बहे वयार।
दुखी होंय सभीजन, डोली छोडे द्वार ।(5
स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधाःः दोहाः ः
शहनाई आंगन बजे, बडी सुहानी बात।
डोली हर घर से उठे, बहुत बडी सौगात।(1)
बिटिया हमको चाहिऐ ,देंय ईश उपहार।
यहाँ बजती शहनाई,किया बडा उपकार।(2)
शहनाई सौभाग्य से, बजती अपने द्वार।
प्रभु इच्छा होती तभी, होता यहाँ उद्धार।(3)
मधु तान शहनाई की, सुनें चाहते लोग।
बिटिया घर वरदान है, पैसे का उपयोग(4)
बेटी तो शहनाई बजे, सुख की बहे वयार।
दुखी होंय सभीजन, डोली छोडे द्वार ।(5
स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विषय शहनाई
विधा कविता
दिनांक 12.9.2019
दिन गुरुवार
युवा मन लेता अंगडा़ई
जब सुनता बजती शहनाई
जीवन का संगीत उमड़ता
गुनगुनाने लगती तरुणाई।
योगी को भी होता शहनाई भान
जब लग जाता है गहरा ध्यान
ओम् ओम् में डूबता अन्तरमन
खो जाता उसमें एकाकीपन।
चन्द्रयान की सफलता सब ओर गूँजी
अन्तरिक्ष कीओर की मिली
नई कुँजी
सब हुए प्रफुल्लित और सुन्दर खुशी छाई
कितनी अनुपम होती है ऐसी शहनाई।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनांक 12.9.2019
दिन गुरुवार
युवा मन लेता अंगडा़ई
जब सुनता बजती शहनाई
जीवन का संगीत उमड़ता
गुनगुनाने लगती तरुणाई।
योगी को भी होता शहनाई भान
जब लग जाता है गहरा ध्यान
ओम् ओम् में डूबता अन्तरमन
खो जाता उसमें एकाकीपन।
चन्द्रयान की सफलता सब ओर गूँजी
अन्तरिक्ष कीओर की मिली
नई कुँजी
सब हुए प्रफुल्लित और सुन्दर खुशी छाई
कितनी अनुपम होती है ऐसी शहनाई।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
शुभ संध्या
12/09/2019
विषय: शहनाई
विधा:कुडलिया छंद
यह एक दोहा और दो रोला का युग्म छंद है।इसमें 6 पद 24 मात्रा के एवं 12 चरण होते हे।
कुंडलियों का आरम्भ यदि 4 मात्राओ के शब्द से हो तो अच्छा भाव आता है।इनका प्रथम शब्द एवं आखरी शब्द एक ही होता है।(आई)
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
आई चुनरी ओढी के,कर सोलह श्रृंगार ।
शहनाई की गूंज से,सकुचित खडी कगार ।।
सकुचित खडी कगार, थाम मन की गति बोली।
हसते रहना साथ, उठे जब मेरी डोली।।
गाओ मंगल गान,बजाओ तुम शहनाई ।
आओ समधी मान,खुशियाँ संग घर आई।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
12/09/2019
विषय: शहनाई
विधा:कुडलिया छंद
यह एक दोहा और दो रोला का युग्म छंद है।इसमें 6 पद 24 मात्रा के एवं 12 चरण होते हे।
कुंडलियों का आरम्भ यदि 4 मात्राओ के शब्द से हो तो अच्छा भाव आता है।इनका प्रथम शब्द एवं आखरी शब्द एक ही होता है।(आई)
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
आई चुनरी ओढी के,कर सोलह श्रृंगार ।
शहनाई की गूंज से,सकुचित खडी कगार ।।
सकुचित खडी कगार, थाम मन की गति बोली।
हसते रहना साथ, उठे जब मेरी डोली।।
गाओ मंगल गान,बजाओ तुम शहनाई ।
आओ समधी मान,खुशियाँ संग घर आई।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
नमन मंच भावों के मोती
12/9/2019
विषय- शहनाई
कर्तव्यों व अधिकारों की बेमानी छिड़ी लड़ाई है,
देश,काल और परिवारों के अस्तित्वों पर बन आई है।
कर्तव्यों के बोधों पर अधिकारों ने की चढ़ाई है,
अधिकारों के चाबुक से कर्तव्यों की पौध मुरझाई है।
मेरे देश के गणतंत्र की सब व्यवस्थाएं चरमराई हैं,
मानो तो ये सहगामी हैं, पूरक हैं, भाई-भाई हैं।
अपनी-अपनी ढपली है, अपने रागों की #शहनाई है,
सात दशक की आजादी की क्या यही कीमत लगाई है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
12/9/2019
विषय- शहनाई
कर्तव्यों व अधिकारों की बेमानी छिड़ी लड़ाई है,
देश,काल और परिवारों के अस्तित्वों पर बन आई है।
कर्तव्यों के बोधों पर अधिकारों ने की चढ़ाई है,
अधिकारों के चाबुक से कर्तव्यों की पौध मुरझाई है।
मेरे देश के गणतंत्र की सब व्यवस्थाएं चरमराई हैं,
मानो तो ये सहगामी हैं, पूरक हैं, भाई-भाई हैं।
अपनी-अपनी ढपली है, अपने रागों की #शहनाई है,
सात दशक की आजादी की क्या यही कीमत लगाई है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
नमन भावों के मोती
12/9/2019
विषय -शहनाई
🎺🎺🎺🎺
दिल की नीरवता में क्यों
आज बज उठी शहनाई है
अनगिन यादों की बारात ले आई मेरी तन्हाई है
टूट गए हैं तार मेरी मन वीणा के
गीत निःशब्द हुए ये तुमने कौन सी रागिनी सुनाई है
सुनी अँखियाँ रास्ता निहार थक चुकीं हैं
मेरे सूखे नैनों ने आज अविरल अश्रु धार बहाई है
क्या रिझायेंगी ये शहनाइयां मुझे अब
रहने दो अंधेरों में मुझे रोशनी की चकाचौंध अब न सुहाई है
बस में नहीं रहा मेरे अब ये ज़िद्दी दिल
न जाने कैसी बीमारी इस दिल ने लगाई है।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
12/9/2019
विषय -शहनाई
🎺🎺🎺🎺
दिल की नीरवता में क्यों
आज बज उठी शहनाई है
अनगिन यादों की बारात ले आई मेरी तन्हाई है
टूट गए हैं तार मेरी मन वीणा के
गीत निःशब्द हुए ये तुमने कौन सी रागिनी सुनाई है
सुनी अँखियाँ रास्ता निहार थक चुकीं हैं
मेरे सूखे नैनों ने आज अविरल अश्रु धार बहाई है
क्या रिझायेंगी ये शहनाइयां मुझे अब
रहने दो अंधेरों में मुझे रोशनी की चकाचौंध अब न सुहाई है
बस में नहीं रहा मेरे अब ये ज़िद्दी दिल
न जाने कैसी बीमारी इस दिल ने लगाई है।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
दिनांकः- 12-9-2019
शीर्षकः- शहनाई
जिस दिन बारात हमारी तुम्हारे द्वार पर थी गई।
बज रही थी उस दिन बारात में बड़ी मधुर शहनाई।।
महिलाय़ें गा रही मंगल गीत खुशी की बेला है आई।
दे रहे थे एक दूसरे मिल कर गले मिल कर बधाई।।
शुभ अवसर पर सब जगह ही बजाई जाती शहनाई।
शहनाई की मधुर ध्वनि जा रही थी सबको ही भाई।।
तुम तो छोड़ कर हम सबको स्वर्ग को सिधार गयीं।
जब तुम घर अपने थीं आई, बज उठी मधुर शहनाई।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
शीर्षकः- शहनाई
जिस दिन बारात हमारी तुम्हारे द्वार पर थी गई।
बज रही थी उस दिन बारात में बड़ी मधुर शहनाई।।
महिलाय़ें गा रही मंगल गीत खुशी की बेला है आई।
दे रहे थे एक दूसरे मिल कर गले मिल कर बधाई।।
शुभ अवसर पर सब जगह ही बजाई जाती शहनाई।
शहनाई की मधुर ध्वनि जा रही थी सबको ही भाई।।
तुम तो छोड़ कर हम सबको स्वर्ग को सिधार गयीं।
जब तुम घर अपने थीं आई, बज उठी मधुर शहनाई।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
विषय - शहनाई
12/09/19
गुरुवार
रोला छंद
जगमग पूरा भवन , सजा कोना- कोना है।
आज तो बेटी का , शुभ गठबंधन होना है।।
शहनाई की गूँज , बनाती मंगल - बेला ।
लगा हुआ है खूब , अतिथियों का तो रेला।।
शोभित बंदनवार , विवाह मण्डप में सुन्दर।
गाएँ मंगल गीत , सभी सखियाँ हिलमिल कर।।
छाया है उत्साह , सभी परिजन पुलकित हैं।
देने को आशीष , हृदय सबके हर्षित हैं।।
ले बाजा बारात , सुमुख वर द्वार पधारे।
कर मस्तक पर तिलक, मात ने पैसे वारे ।।
कर सोलह श्रृंगार, वधू आयी मण्डप में ।
लेकर फेरे सात , बंधी वह गठबंधन में।।
भर आँखों में अश्रु , चढ़ी डोली में बेटी ।
वार -फेर के लिए , ससुर ने खोली पेटी।।
मात -पिता का हृदय, हो रहा कितना भारी।
घर - आँगन से दूर , हो रही बिटिया प्यारी।।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
12/09/19
गुरुवार
रोला छंद
जगमग पूरा भवन , सजा कोना- कोना है।
आज तो बेटी का , शुभ गठबंधन होना है।।
शहनाई की गूँज , बनाती मंगल - बेला ।
लगा हुआ है खूब , अतिथियों का तो रेला।।
शोभित बंदनवार , विवाह मण्डप में सुन्दर।
गाएँ मंगल गीत , सभी सखियाँ हिलमिल कर।।
छाया है उत्साह , सभी परिजन पुलकित हैं।
देने को आशीष , हृदय सबके हर्षित हैं।।
ले बाजा बारात , सुमुख वर द्वार पधारे।
कर मस्तक पर तिलक, मात ने पैसे वारे ।।
कर सोलह श्रृंगार, वधू आयी मण्डप में ।
लेकर फेरे सात , बंधी वह गठबंधन में।।
भर आँखों में अश्रु , चढ़ी डोली में बेटी ।
वार -फेर के लिए , ससुर ने खोली पेटी।।
मात -पिता का हृदय, हो रहा कितना भारी।
घर - आँगन से दूर , हो रही बिटिया प्यारी।।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
शहनाई
बज उठी शहनाई
दुल्हन शर्माई
सपने हो रहे पूरे
दूल्हा मन ही मन
हर्षाये
दिया
माता पिता ने
आशीर्वाद
करे बहन
ठिठोली
उठाई भाई ने
डोली
चली ससुराल
प्यारी बहना
लाडली है
सब की वो
मान मिले
ससुराल में भी
बन बेटी जाती है
बेटी रहे
वहाँ भी वो
मंगल
करती है
शहनाई
देते है सब
एक दूजे को
बधाई
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
बज उठी शहनाई
दुल्हन शर्माई
सपने हो रहे पूरे
दूल्हा मन ही मन
हर्षाये
दिया
माता पिता ने
आशीर्वाद
करे बहन
ठिठोली
उठाई भाई ने
डोली
चली ससुराल
प्यारी बहना
लाडली है
सब की वो
मान मिले
ससुराल में भी
बन बेटी जाती है
बेटी रहे
वहाँ भी वो
मंगल
करती है
शहनाई
देते है सब
एक दूजे को
बधाई
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन"भावों के मोती'"
विषय: शहनाई
विधा:-तांका
,🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹
1))
क्यों संकुचित ?
स्तर मेरा अब है
रो शहनाई
सिसकती साँसें हैं
कहीं हो न बिदाई¡
2)))
शहनाई में
रागिनी तब सजे
सुर छिड़ते
स्वर संगीत कहे
बहार आयी है।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विषय: शहनाई
विधा:-तांका
,🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹
1))
क्यों संकुचित ?
स्तर मेरा अब है
रो शहनाई
सिसकती साँसें हैं
कहीं हो न बिदाई¡
2)))
शहनाई में
रागिनी तब सजे
सुर छिड़ते
स्वर संगीत कहे
बहार आयी है।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹12-9-2019
विषय:-शहनाई
विधा :-पद्य
खबर पिया लो इस सावन में ,
सखियों में होती रुसवाई ।
शैया के मनुहार सताते ,
सही न जाती अब तन्हाई ।
प्रेमालाप से शुक सारिका ,
पुष्प लदी बेलों पर झूलें ।
बैठ अकेली रिक्त गेह में ,
सोचे विरहिण पी क्यों भूले ।
पंचम सुर में कोकिल गाए ,
विरह वेदना देत सुनाई ।
दिखने लगती पिकी सहचरी ,
उसमें दिखती निज परछाईं ।
नभ पर है सतरंगी झूला ,
झूले धरती के मन भावन ।
नभ तक देखूँ प्रेम हिलोरें ,
नयनों में भर जाता सावन ।
बूँदें जब सरगम में गाती ,
साथ निभा देती पुरवाई ।
प्रकृति के संगीत में बजती ,
मेरी पीड़ा की शहनाई ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
विषय:-शहनाई
विधा :-पद्य
खबर पिया लो इस सावन में ,
सखियों में होती रुसवाई ।
शैया के मनुहार सताते ,
सही न जाती अब तन्हाई ।
प्रेमालाप से शुक सारिका ,
पुष्प लदी बेलों पर झूलें ।
बैठ अकेली रिक्त गेह में ,
सोचे विरहिण पी क्यों भूले ।
पंचम सुर में कोकिल गाए ,
विरह वेदना देत सुनाई ।
दिखने लगती पिकी सहचरी ,
उसमें दिखती निज परछाईं ।
नभ पर है सतरंगी झूला ,
झूले धरती के मन भावन ।
नभ तक देखूँ प्रेम हिलोरें ,
नयनों में भर जाता सावन ।
बूँदें जब सरगम में गाती ,
साथ निभा देती पुरवाई ।
प्रकृति के संगीत में बजती ,
मेरी पीड़ा की शहनाई ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
विषय - शहनाई
12 / 9 / 19
आँखों से जब आँखे टकराई
कानों में बजने लगी शहनाई
ह्रदय अभ्र पर टिमटिमाये तारे
मन क्षितिज पर इंद्रधनुषी रंगत छाई ।
पावन प्रेम पराग ले उड़ी पवन
खिले ह्रदय सुमन मिटी विरह अगन
नयन सिपी में छलके पारद मोती
महका मन उपवन बढ़ने लगी हिय लगन ।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
12 / 9 / 19
आँखों से जब आँखे टकराई
कानों में बजने लगी शहनाई
ह्रदय अभ्र पर टिमटिमाये तारे
मन क्षितिज पर इंद्रधनुषी रंगत छाई ।
पावन प्रेम पराग ले उड़ी पवन
खिले ह्रदय सुमन मिटी विरह अगन
नयन सिपी में छलके पारद मोती
महका मन उपवन बढ़ने लगी हिय लगन ।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
भावों के मोती
विषय - शहनाई
12 / 9 / 19
आँखों से जब आँखे टकराई
कानों में बजने लगी शहनाई
ह्रदय अभ्र पर टिमटिमाये तारे
मन क्षितिज पर इंद्रधनुषी रंगत छाई ।
पावन प्रेम पराग ले उड़ी पवन
खिले ह्रदय सुमन मिटी विरह अगन
नयन सिपी में छलके पारद मोती
महका मन उपवन बढ़ने लगी हिय लगन ।
(स्वरचित) सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
नमन मंच भावों के मोती
विषय : शहनाई
विधा : छंदमुक्त कविता
दिनांक : 12/09/2019
स्वार्थ में अंधे को यारो ,
क्या लेना पीड़ पराई से ।
गमों से बोझिल जो जग में,
उसे काम क्या शहनाई से ।
दो टूक की भूख जिसे हो ,
क्या चिंतन करे गहराई से ।
कर्मों की मार झेले पागल ,
बेफिक्र जग हँसाई से ।
गुणी बड़े पर सब अनजान ,
मालिक की खेल रचाई से ।
दुआ करो फिर सब कहते ,
जब हार जाऐं दवाई से ।
संस्कार अब रो रहे हैं ,
नित नित की बेहयाई से ।
दाग दिखें सबको औरों में ,
अपरिचित अपनी बुराई से ।
सौगंध खाते अक्सर वो ही ,
दूर जो रहें सच्चाई से ।
स्वंय बीजते , फिर डरते ,
बुरे कर्मों की परछाई से ।
नाम , काम की दौड़ लगी ,
क्या लेना अच्छाई से ।
माँ बाप सब रिश्ते नाते ,
तौले जाऐं कमाई से ।
छोड़ "राम"अब निंदा करना ,
दूर रहो बुराई से ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब
विषय : शहनाई
विधा : छंदमुक्त कविता
दिनांक : 12/09/2019
स्वार्थ में अंधे को यारो ,
क्या लेना पीड़ पराई से ।
गमों से बोझिल जो जग में,
उसे काम क्या शहनाई से ।
दो टूक की भूख जिसे हो ,
क्या चिंतन करे गहराई से ।
कर्मों की मार झेले पागल ,
बेफिक्र जग हँसाई से ।
गुणी बड़े पर सब अनजान ,
मालिक की खेल रचाई से ।
दुआ करो फिर सब कहते ,
जब हार जाऐं दवाई से ।
संस्कार अब रो रहे हैं ,
नित नित की बेहयाई से ।
दाग दिखें सबको औरों में ,
अपरिचित अपनी बुराई से ।
सौगंध खाते अक्सर वो ही ,
दूर जो रहें सच्चाई से ।
स्वंय बीजते , फिर डरते ,
बुरे कर्मों की परछाई से ।
नाम , काम की दौड़ लगी ,
क्या लेना अच्छाई से ।
माँ बाप सब रिश्ते नाते ,
तौले जाऐं कमाई से ।
छोड़ "राम"अब निंदा करना ,
दूर रहो बुराई से ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब
नमन मंच
विषय:--शहनाई
विधा:--मुक्त
दिनांक:--१२ / ०९ /१९
~~~~<>~~~<>~~~~
थी हलचल सितारों में
घर- आँगन भी चहक रहा
कल तक जो घर की थी गुडि़या
चली आज पिया से मिलने
दादू-नानू की आँख का तारा
माँ-बापू के दिल की धड़कन
भैया-बहिना की लडै़ती छुटकी
चली आज बिहाने तारों की छाँव में
द्वार सजे बंदनवार तले
शहनाई की मधुर थी धुन
बैंड-बाजे की तड़ तड़ में भी
गूँज रही थी स्वर लहरी
हुई सप्तपदी तारों की छाँव में
हो गई पराई पलभर में
वो बेटी जो कुछ क्षण पहले थी
घरभर की दुलारी
शहनाई के सुर में फिर हुआ
बदलाव
गूँज रही थी जो मिलन की
अब विदाई धुन- सुनाने लगी।
डा.नीलम
विषय:--शहनाई
विधा:--मुक्त
दिनांक:--१२ / ०९ /१९
~~~~<>~~~<>~~~~
थी हलचल सितारों में
घर- आँगन भी चहक रहा
कल तक जो घर की थी गुडि़या
चली आज पिया से मिलने
दादू-नानू की आँख का तारा
माँ-बापू के दिल की धड़कन
भैया-बहिना की लडै़ती छुटकी
चली आज बिहाने तारों की छाँव में
द्वार सजे बंदनवार तले
शहनाई की मधुर थी धुन
बैंड-बाजे की तड़ तड़ में भी
गूँज रही थी स्वर लहरी
हुई सप्तपदी तारों की छाँव में
हो गई पराई पलभर में
वो बेटी जो कुछ क्षण पहले थी
घरभर की दुलारी
शहनाई के सुर में फिर हुआ
बदलाव
गूँज रही थी जो मिलन की
अब विदाई धुन- सुनाने लगी।
डा.नीलम
12/9/2019
गुरुवार
विषय -शहनाई
विधा-काव्य
शहनाई,
तुम्हें सुने एक जमाना हुआ
खूब बजती थी तुम
पहले के जमाने में
बड़ी -बड़ी शादियों में
दूर -दूर से बुलाये
जाते थे शहनाईवादक
मधुर ध्वनि से
झूमती रग -रग
किन्तु अब बदल
गया जमाना
कर्कश ध्वनि ने
अपना शासन
खूब जमाया
दीर्घ ध्वनि यंत्र
जोर -जोर से बजते
शोर होता प्रचण्ड
शहनाई वादकों
की करी हालत तंग
किन्तु राजघरानों
में आज भी
इसकी धाक
जमती इसके
सम्मुख
कर्णप्रिय ध्वनि
कोई ना लगती
शहनाई खूब जंचती
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
गुरुवार
विषय -शहनाई
विधा-काव्य
शहनाई,
तुम्हें सुने एक जमाना हुआ
खूब बजती थी तुम
पहले के जमाने में
बड़ी -बड़ी शादियों में
दूर -दूर से बुलाये
जाते थे शहनाईवादक
मधुर ध्वनि से
झूमती रग -रग
किन्तु अब बदल
गया जमाना
कर्कश ध्वनि ने
अपना शासन
खूब जमाया
दीर्घ ध्वनि यंत्र
जोर -जोर से बजते
शोर होता प्रचण्ड
शहनाई वादकों
की करी हालत तंग
किन्तु राजघरानों
में आज भी
इसकी धाक
जमती इसके
सम्मुख
कर्णप्रिय ध्वनि
कोई ना लगती
शहनाई खूब जंचती
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
भावों के मोती नमन
दिनांक -12/9/2019
विषय -शहनाई
भिन्न भिन्न मधुर संगीत वाद्य यंत्र
कानों में मधुर रस उड़ेल जाते
गीतों के साथ इनका तालमेल
जीवन तरंगित आनंदित कर जाते
नाम शहनाई से नही कोई अनजान
बिस्मिल्लाह खाँ से ही पाई पहचान
वादन में उनके अलग जादू सा था
हर शख़्स मंत्रमुग्ध हो जाता था
महान संगीतकार प्रतिभा दिखलाई
भारत रत्न से निज शान बढ़ाई
पन्ने इतिहास के उनसे रंगे हुए
शहनाई प्रतिमान अनेक लिखे गए
इसकी ध्वनि पावन और पुनीता
कोमल भावों की शहनाई लक्षिता
घर आँगन में जब बजती शहनाई
मंगल अवसर की याद दिलवाई
दक्षिण भारत में विवाह की बेला
शहनाई ने अब तलक शान बढ़ाई
परिणय सूत्र वर वधू को बाँधे
शहनाई की धुन रस्मों को साजे
अन्य किसी उत्सव का अवसर
इसने मधुरतम तान बहुत सुनाई
आनंदित हो जाते सब श्रोतागण
करतल ध्वनि से ख़ुशी जतलाई
राग विराग के आपसी समन्वय
इसने महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई
शास्त्रीय संगीत की बात अधूरी
शहनाई बिना ना होती कभी पूरी
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक -12/9/2019
विषय -शहनाई
भिन्न भिन्न मधुर संगीत वाद्य यंत्र
कानों में मधुर रस उड़ेल जाते
गीतों के साथ इनका तालमेल
जीवन तरंगित आनंदित कर जाते
नाम शहनाई से नही कोई अनजान
बिस्मिल्लाह खाँ से ही पाई पहचान
वादन में उनके अलग जादू सा था
हर शख़्स मंत्रमुग्ध हो जाता था
महान संगीतकार प्रतिभा दिखलाई
भारत रत्न से निज शान बढ़ाई
पन्ने इतिहास के उनसे रंगे हुए
शहनाई प्रतिमान अनेक लिखे गए
इसकी ध्वनि पावन और पुनीता
कोमल भावों की शहनाई लक्षिता
घर आँगन में जब बजती शहनाई
मंगल अवसर की याद दिलवाई
दक्षिण भारत में विवाह की बेला
शहनाई ने अब तलक शान बढ़ाई
परिणय सूत्र वर वधू को बाँधे
शहनाई की धुन रस्मों को साजे
अन्य किसी उत्सव का अवसर
इसने मधुरतम तान बहुत सुनाई
आनंदित हो जाते सब श्रोतागण
करतल ध्वनि से ख़ुशी जतलाई
राग विराग के आपसी समन्वय
इसने महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई
शास्त्रीय संगीत की बात अधूरी
शहनाई बिना ना होती कभी पूरी
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
नमन भावों के मोती
दिनांक -12/09/2019
विषय- शहनाई
वर्षों से है बात हृदय में
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
जब बच्चे बड़े होते हैं
तब सपने मन में पलते हैं
कब मेरी गुडि़या रानी की
बारात द्वारे आएगी?
यह बात हृदय में फिर आई
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
कब मेरा मुन्ना राजा भी
दूल्हा बनकर जाएगा
अपने साथ एक प्यारी
दुल्हनिया लेकर आएगा
यह सोच मन में भर आई
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
शहनाई तो शहनाई है
केवल शब्द बोलने से ही
मन में बजती है शहनाई
मन में आता है बार-बार
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
स्वरचित-मोहिनी पांडेय
दिनांक -12/09/2019
विषय- शहनाई
वर्षों से है बात हृदय में
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
जब बच्चे बड़े होते हैं
तब सपने मन में पलते हैं
कब मेरी गुडि़या रानी की
बारात द्वारे आएगी?
यह बात हृदय में फिर आई
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
कब मेरा मुन्ना राजा भी
दूल्हा बनकर जाएगा
अपने साथ एक प्यारी
दुल्हनिया लेकर आएगा
यह सोच मन में भर आई
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
शहनाई तो शहनाई है
केवल शब्द बोलने से ही
मन में बजती है शहनाई
मन में आता है बार-बार
कब गूँजेगी घर में शहनाई?
स्वरचित-मोहिनी पांडेय
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