Sunday, September 22

"स्वतंत्र लेखन""22 सितम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-513
दिनांक - 22/09/2019
स्वतंत्र सृजन


कामना और वासना क्षणिक होती है...

आलिंगन मौन मगन है

सजल चांदनी ,सजा गगन है

तारों की गलियों में घूमो

अवनि की अलकों को चुमो।

आलिंगन मौन मगन है...........

सपनों की सुषमा रंगीन

बिछा हुआ है जाल रश्मि का

आभा है तेरी कितनी संगीन

आलिंगन मौन मगन है.............

प्रेम कभी-कभी राक्षसी सी भूख हो जाता है...?

जहां प्रेम राक्षसी भूख से

क्षण-क्षण है अकुलाता

प्रथम ग्रास में ही

जीवन ज्योति निगल जाता।

भून देता है रूप को

दैहिक आलिगंन से

छवि को प्रभाहीन बना देता

ताप तृप्ति के चुंबन से।

वाटिका को पतझर बना देता

चूमता सुंदरता की ठठरी को.........

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

मनपसंद लेखन
नमन मंच भावों के मोती।

नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।

श्याम तेरे रूप अनेक।
......किस किसकी मैं करूं पूजा।
राधा के संग प्यारे मनमोहन।
...... मीरा के संग बांके बिहारी।
सुदामा के संग मित्र प्रेम में।
.......दे दिया आधा राज।
किस किसकी मैं करूं पूजा।
श्याम तेरे रूप अनेक।
....... किस किसकी मैं करूं पूजा।

द्रौपदी की रक्षा की लाज की।
....... उसका चीर बढ़ाया।
कंस मामा को मार गिराए।
.......मां पिता को कराया आजाद।
किस किसकी मैं करूं पूजा।
श्याम तेरे रूप अनेक।
......किस किसकी मैं करूं पूजा।
..... वीणा झा.....
.. बोकारो स्टील सिटी..
....... स्वरचित......

मोती
विषय स्वतंत्र लेखन
विधा काव्य

22 सितम्बर 2019,रविवार

जीवन अतुलनीय आनंद है
यशोदा के आँचल में खेले।
विद्यालय संदीपन गुरुओं से
मिटा लिये दुर्गुण सब मेले।

निष्ठा लगन और धैर्य से
मंथन करते जीवन सागर।
सुधा गरल मय जीवन में
सुख शांति भर लेते गागर।

जीवन सागर मंथन होता
सुधा सुदर्शन धारण करलो।
भारत माता नित सेवा में
जीवन को न्यौछावर करदो।

जीवन स्वर्गमयी उपवन
जीवन जीना एक कला है।
परोपकार करो सब मिल
जग जीवन अति भला है।

एक सहारा परमपिता का
हम संताने सब उसकी हैं।
स्नेह भाव बढ़ाओ हिय से
जीवनबेल कितनी लंबी है

स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

दिनाँक- 22/09/2019
विधा -गीत


ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे...ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे।
देश के वीर जवानों की, तू आज विजयगाथा लिख दे।

ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे..ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे।
अपना घर जो छोड़ चले,
भारत माँ का प्रहरी बनने।
दुश्मन के ध्वस्त मंसूबे कर,
भारत का सिर ऊँचा करने।
उन वीरों के यश गौरव की,
तू एक नई गाथा लिख दे।

ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे..ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे।
जिनके साहस के आगे तो,
पर्वत भी बौना लगता है।
वर्षा हो धूप या ओले पड़े,
मुस्तैद खड़ा जो रहता है।
भारत माँ के उन बेटों की,
तू आज अमरगाथा लिख दे।

ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे...ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे।
भारत का मान बचाने को,
बलिदान हुए जो सीमा पर।
पत्नी, बच्चों को छोड़ गए,
कुर्बान हुए जो सीमा पर।
उन अमर शहीदों की यादों में
नमन मेरा माथा लिख दे।

ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे..ऐ कलम शौर्यगाथा लिख दे।
(मौलिक,स्वरचित)

रविशंकर 'विद्यार्थी'
सिरसा मेजा प्रयागराज

।। पत्नि सम्मान ।।😂

रोज तो नही लिखता हूँ
भी कभार लिखता हूँ ।।
पत्नि खातिर भी कभी
भाट बनकर बिकता हूँ ।।

रहना है जो उसके घर में
लड़ना है जीवन सफ़र में ।।
चाहूँ या न चाहूँ फिर भी
दो छंद उसे भी गढ़ता हूँ ।।

दो छंद में वो खुश हो जाती
फिर वो मंद मंद मुस्काती ।।
कैसे कहूँ बताऊँ तुमको
कितनी छाती मेरी जुड़ाती ।।

इकलौती पत्नि एम ए पास
क्यों न आय मुझे वो रास ।।
ऊपर से हिन्दी में एम ए
मजाक ये मालिक का खास ।।

लाइसेन्स उसे फेक्ट्री मैं चलाऊँ
दो चार कविता मैं रोज बनाऊँ ।।
निश दिन का यह क्रम जो
कभी नही टूटे हरषूँ हरषाऊँ ।।

सच कहते रिश्ता बन कर आए
पूर्ण यहाँ कोई नही कहलाये ।।
पति पत्नि मिल पूर्ण हों ऐसा
ज्वलंत उदाहरण हमीं कहाये ।।

सोचूँ मैं बहुत स्थिति सोचनीय
पत्नि मेरी मुझे बेहद वंदनीय ।।
मेरा अनुकरण सब करें 'शिवम'
और मैं पत्नि का अनुकरणीय ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/09/2019

स्वतंत्र विषय सृजन
रविवार

2 2,9,2019,
विषय - * चलो विचारें *

निर्मल पावन है माँ गंगा ।
गर्वित जिससे हुआ तिरंगा।।

कर देती पतन जो पापों का ।
मार्ग प्रशस्त करे मुक्ति का ।।

मैला इसे ही बना डाला ।
जिसने हमको तुमको पाला ।।

स्वार्थी हुआ जीव ज्यादा ।
करता है मतलब का सौदा ।।

हो रही कुपित गंगा माता ।
पाप सबका सामने आता ।।

समय रहते जो चेत जाता ।
मानव सच्चा वह कहलाता ।।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश

"स्वतंत्र लेखन"
"आजादी"

पिंजरे में बंद पक्षी
बाहर जाने को अकुलाये
क्यों बंद किया तूने
किया क्या मैंने अपराध?

मेरे सारे संगी साथी
नील गगन को जाये
डालकर मेरे पैरों में बेड़ी
क्यों मुझे तड़पाये?

दे दो मुझे वह प्यारा क्षण
मैं उड़ू परिवार के संग
हमें भी जीने का पूर्ण अधिकार
हुये विवश पिंजड़े में आज।

तुमको भी आजादी प्यारी है,
हमें भी यह लुभाती है
लौटा दो तुम मेरी आजादी
तुम तो हो मानव ज्ञानी।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
तंत्र लेखनविधा- गीत
विषय- देशप्रेम
रस- वीर रस
**********
देश हित कुछ काम कर लें
==================

मुखड़ा
आ , वतन के नाम कर लें ,
देश हित कुछ काम कर लें ।

अंतरा
भेद सब दिल से भुलाएं ,
प्यार ही सब से जताएँ ।
देश हम से मांगता है ,
खून भी अब चाहता है ||
दूर भेद तमाम कर लें ,
देश हित कुछ काम कर लें ।

अंतरा

आज विपदा देश में है ,
देखें रिपु किस भेष में है ।
आँख अब तुम पर लगी है ,
आस अब तुम से जगी है ||
बाद में आराम कर लें ,
देश हित कुछ काम कर लें ।

अंतरा

देश संकट में पड़ा है ,
देख अरि सीमा खड़ा है ।
फूँक दो अब जोर अपना ,
चाह रिपु बन जाएँ सपना ||
जीत अपने नाम कर लें ,
देश हित कुछ काम कर लें ।
देश हित कुछ काम कर लें ।

जय हिंद

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- कलाधर छंद

दिनांक- 22/9/ 2019

रोम -रोम राम- राम देश है निहाल आज,
नेक भाव से सुजान गेह भी बनाइए।
एक धर्म एक मर्म एक चर्म एक कर्म,
बैर भाव भूल आप साथ- साथ आइए।
एक देश एक वेष एक गीत एक गान,
विश्व मंच जान ले सुहास गान गाइए।
काल है कराल त्याग भीत द्वंद सर्व आज,
अंध कूप अंध डोर आज ही भुलाइए।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

स्व पसंद /स्वैच्छिक
सादर मंच को समर्पित -

🌹🍊🌴 गीत 🌴🍊🌹
*******************************
🌻 पर्यावरण पुकार 🌻


मत सताओ अब नयी तुम राह पकड़ो ,
मैं तुम्हारे साथ हूँ , वातावरण हूँ ।
बस बचाओ तो सही तुम तनिक मुझको ,
मैं तुम्हारे हाथ हूँ , पर्यावरण हूँ ।।

जब तलक अनुमान सच का
मित्र कर पाओ न सच्चा ,
झेलते ही तुम रहोगे
मौत का साया न अच्छा ।
भेद डाला हूँ बिषैली गैस
पैदा कर रहे हो ,
आग उगलें चिमनियाँ ओजोन
छलनी कर रहे हो ।।

पढ़ सके जिसको न अब तक ,जान जाओ ,
मैं भयाभय सी व्यथा का आवरण हूँ ।
बस बचाओ तो सही तुम तनिक मुझको ,
मैं तुम्हारे हाथ हूँ , पर्यावरण हूँ ।।

दौड़ शहरीकरण की है होड़
अंधी हानिकारक ,
जंगलों को नष्ट कर कंक्रीट के
है जाल घातक ।
काट डाले पेड़ फलदायी
सहारे जीव के थे ,
जो थे संजीवन सभी को
प्राण वायु सींचते थे ।।

आज सूनी सड़क छाया बाग मरते ,
था हरित पर अब प्रदूषित आचरण हूँ ।
बस बचाओ तो सही तुम तनिक मुझको ,
मैं तुम्हारे हाथ हूँ , पर्यावरण हूँ ।।

पेड़ जब होंगे नहीं वर्षा न
होगी , पवन कैसी ?
दरकती धरती पुकारेगी
पपीहा प्यास जैसी ।
आज हम दोहन करें तो इसी
जल को तरस जायें ,
बूँद की कीमत न जानी जल
को युद्ध न रोक पायें ।।

चेत जाओगे अगर अब मनन करलो ,
स्वच्छ रख लो तो सदा सुख का वरण हूँ ।
बस बचाओ तो सही तुम तनिक मुझको ,
मैं तुम्हारे हाथ हूँ , पर्यावरण हूँ ।।

🌻🍊🌴🍎🍀🌹

🌴🌹**.... रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा

दिनांक 22-9-2019🙏माता-पिता🙏

🌹स्वतंत्र सृजन🌹

प्रभु नहीं आ सकते धरा, माता-पिता बनाय ।
बच्चा दिया गोद उन्हें, हर दुख वो बिसराय ।।

माता-पिता पालन-पोषण, अपना जीवन लगाय।
ना देना दुख तू उन्हें, वरना ठोर कहीं ना पाय।।

प्रभु मूरत मान उन्हें,आदर सम्मान दे जाय।
प्रभु श्रेष्ठ उपहार समझ,रहना उनकी छत्र छाय।।

होते वो सौभाग्यशाली, मात पिता संग पाय।
कर सेवा प्रभु समझ, हर सुख तू पाय।।

अपनी इच्छा त्याग कर, जीवन उत्तम तेरा बनाय।
दर्द छिपा सीने में ,सदा ही लोग समक्ष मुस्काय।।

खुद रहे भूखा, मगर तुझे न भूखा सुलाय।
जो किया अपमान कभी, जीवन नर्क बनाय ।।

बन श्रवण कर सेवा, जग सदा दोहराय।
जो तू भूल कंस बना, कभी न प्रीति पाय।।

जो करे सेवा मात पिता, स्वर्ग में जगह बनाए ।
आशीर्वाद पा उनका, जीवन सफल हो जाय।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय लेखन
दिनांकः22-9-2017
वारः-छुट्टी का दिन रविवार

विधाः- हास्य सृजन

शीर्षकः- होते नहीं पति ढ़ीले ढ़क्कन

सुना रहीं थी एक कवियत्रि, होते हैं पति ढ़ीले ढ़क्कन ।
कहा हमने उनसे मैडम, हुआ आप को एक बड़ा भ्रम ।।

उनके इस अल्पज्ञान पर हमको, तरस बहुत ही आया ।
ज्ञान बढ़ाने को उनका, हमने भी तसल्ली से समझाया ।।

होते नहीं हैं श्रीमतिजी पति तो, कभी भी ढ़ीले ढ़क्कन ।
होते हैं समस्त पति तो ऐसे, जैसे हो मुलायम मक्खन ।।

होते आदरणीया यदि पति आपके कोई ढ़ीले ही ढ़क्कन ।
हो जाते अब तो तो गिर कर, फिर कहीं पर भी वह गुम ।।

जैसे उड़ पंछी जहाज का, लौट सदा जहाज पर है आता ।
पति भी लौट कर सदा जुल्फों में तुम्हारी, ही तो समाता।।

बताता हूँ आपको रहे नहीं पति आपके, कभी ढ़ीले ढ़क्कन ।
होती है उनमें तो, फैविकौल से भी कहीं अधिक चिपकन।।

जाती हो मिलने माता पिता से,जब कभी तुम अपने मैके।
हो जाती हो बोर आप, कुछ दिनों में ही वहाँ पर जा के ।।

आती हो मैके से तुम, जब लौट कर पास पति के अपने।
चिपक जाती हो कितनी तड़प कर फिर उसी ढ़क्कन से ।।

उल्टा सीधा मत गाईये, रखिये भली प्रकार से संभाल कर ।
ले जायेगी वरना कोई, करीबी ही तुम्हारी उसको छीनकर ।।

पाया है पति को तुमने, आराधना भगवान शिव की करके ।
रखे उसके लिये ही तो तुमने, व्रत भी सोलह सोमवार के।।

ऐसी भाषा से बोलोगी तो, हो जायेंगे शिवजी तुंमसे नाराज़ ।
मिलेगा नहीं अगले जन्म में, अच्छा पति कहीं आस पास ।।

होता है पति से ही तो केवल पत्नी का, समस्त मान सम्मान ।
बाद पति के रहता ही नहीं, पत्नी का कोई पहले जैसा मान ।।

होती है पत्नी ही पति की, सच्ची मित्र तथा उत्तम सलाहकार ।
दिखाती है मार्ग वह ही तो, करने का भवसागर को भी पार ।।

होते एक दूसरे के लिये, दोनों ही तो प्रभु का सर्वोत्तम प्रसाद ।
करो ग्रहण प्रसाद प्रसन्नता से ही रहेगा नहीं कोई अवसाद ।।

कहता है व्यथित हृदय सदा, होते नहीं पतिदेव ढ़ीले ढ़क्कन ।
होते हैं वह तो सदा सर्वदा ही, जैसे चिकने मुलायम मक्खन ।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्यथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित

22.9.2019
रविवार

विषय -
रविवारीय मनपसंद
विषय लेखन
विधा - भक्ति गीत

नवरात्रि में माँ के आगमन हेतु प्रार्थना

वरदायिनी सुखदायिनी
माँ का आवाहन
🌹🌹🌹🌹🌹🌹

वरदायिनी सुखदायिनी
मातेश्वरी विघ्नेश्वरी
माँ अम्बिका कल्याण कर
आलोकमय तू प्रकाश भर ।।

मन कमल पुष्प विराज माँ
आसन पे अपने साज माँ
स्वागत है पावन - पावनी
मम हृदय कुंज निवास कर।।

ख़ुशियों से आँचल भर दो माँ
जीवन सुमंगल कर दो माँ
मुश्किल सभी अासान हो
उत्साह,उमंग, उछाह भर।।

कलुषित हृदय माँ शुद्ध हो
मन-प्राण मेरा प्रबुद्ध हो
शत्-शत् नमन वंदन तुम्हें। 
ममता का अपने प्यार भर ।।

जन-जन के मन में नेह हो
सुन्दर सुखद सा सनेह हो
पावन हृदय में उजास भर
हर ज़िन्दगी में प्रकाश भर ।।

शीतल,सजल मन हो मेरा
सार्थक सबल मन हो मेरा
सुन्दर , सुखद संसार दो
उदार -मन , विस्तार कर ।।

स्वरचित
🍁🍁
डॉ०दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

स्वतन्त्र लेखन के तहत
प्रस्तुत ग़ज़ल

दिनांक-22.09.2019
मात्राभार- 2122 2122 2122 212
अर्कान-फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
क़ाफ़िया - आरी
रदीफ़- चिट्ठियाँ
============================
जो तुम्हें भेजी थीं लिखकर के करारी चिट्ठियाँँ ।
बे पढ़े ही फाड़कर तुमने बुहारी चिट्ठियाँ ।।

फूट मत डालो हमारे बीच में आकर कि यूँ ,
क़त्ल कर देंगीं बनेंगी जब कटारी चिट्ठियाँ ।।

चैन से रहने नहीं देता ज़माना जब हमें ,
जाने क्यूँ इम्दाद करती हैं हमारी चिट्ठियाँ ।।

कब मुझे मालूम पड़ता क्या सबब नाराज़ तुम?
जड़ नहीं मुझको बताती हैं तुम्हारी चिट्ठियाँ ।।

मत सिकोड़ो नाक भौं तुम आजकल की बात पर,
यह कि चुपके से पढ़ी जातीं अटारी चिट्ठियाँ ।।
==========================
'अ़क्स ' दौनेरिया

22- 9 - 19 , रविवार
स्वतंत्र लेखन

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

( दोहा-छंद आधारित )
गीतिका
----------

विष का प्याला पी गई, ले माधव का नाम,
वो भी अमरित बन गया,घट में उसके श्याम।

भगती की महिमा बड़ी, कहते वेद पुराण,
मीरा ने साबित किया, सुखद रहे परिणाम।

राज महल सब छोड़कर, ली संतों की टेक,
रटती वो घनश्याम को, हर दिन आठों याम

रोम-रोम में था रमा, उसके श्री गोपाल,
जीवन धन उसको कहा,माना था सुखधाम।।

ताना-बोली सब सहे, तजे न मन के भाव,
मन की दृढ़ता से उसे, मिले पूर्ण घनश्याम।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

II मन पसंद विषय लेखन II नमन भावों के मोती...

विधा: ग़ज़ल - कहूँ तो किस से कहूँ...


तुम्हीं सुनो न हकीकत कहूँ तो किस से कहूँ...
मैं अपने दिल की तबीयत कहूँ तो किस से कहूँ...

तुम्हारे प्यार में ज़िंदा जला मरा न मगर....
मेरी थी मुझसे अदावत कहूँ तो किस से कहूँ.....

मचा है शोर जफ़ा ज़ुल्म तेरे रुतबे का...
न तुम में सुनने की ज़ुर्रत कहूँ तो किस से कहूँ....

सभी ने रोका मगर इश्क़ रोग ले ही लिया...
हुई है अब जो फ़ज़ीहत कहूँ तो किस से कहूँ...

ये लोग कहते मुझे हिज्र तेरा ले डूबा...
तेरे सिवा ये हकीकत कहूँ तो किस से कहूँ...

न जानता हूँ जिसे दौड़ता वही खून में...
जुनूँ-ए-दिल की ये वहशत कहूँ तो किस से कहूँ...

हलाल करती मुझे हर अदा तेरी "चन्दर".…
तुझे पता है अज़ीयत कहूँ तो किस से कहूँ...

अज़ीयत = पीड़ा / अत्याचार

II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
२२.०९.२०१९

22/9/2019
विष
य-स्वतंत्र लेखन
विधा-छंद मुक्त
👩‍⚕️👼👼👧

*बेटी ही रहने दो

अजब विडम्बना है कि
तारीफ भी मिलती है
तो ये कह कर कि
तुम बेटी नहीं,
"तुम तो मेरा बेटा हो"

पर आज हर आवाज़ ये कहती है कि
बेटी हूँ बेटी ही रहने दो...

एक साथ ही आज़ादी मिली थी हमें
पर देखो वो कहाँ और हम कहाँ???

तब एक कसक सी उठती है मन मे
जैसे कोई कली
मुरझा गयी हो किसी चमन में..
अब तो हर कली को
खुल के खिलने दो...
बेटी हूँ हमें बेटी ही रहने दो।।

नही मंज़ूर हमें अधूरी खुशियाँ
और कितने देने पड़ेंगे हमे इन्तिहाँ?
छू लिया है हमने अब तो
ज़मीं से सारा आसमान
ना काटो पर हमारे
अब तो खुले गगन में उड़ने दो...

बेटी हूँ बेटी ही रहने दो।।

वतन तो कब का आज़ाद हुआ है
हमारे हालात में
बस थोडा सा सुधार हुआ है
पढ़ाया है गर हमें तो
अब ज़िन्दगी का पाठ खुद ही पड़ने दो..
बेटी हूँ बेटी ही रहने दो....!!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®

22 / 9 /2019
बिषय ,, स्वतंत्र लेखन

सुर्ख हवाओ धीरे चलो तुम
. सितारे आंगन में उतर आओ
न वो आए न खबर आई
आज न जाने क्यों उनकी याद आई
पलकों में जाके डाला है डेरा
तन्हाइयों ने कुछ ऐसा घेरा
एक मैं संग निशा स्याह काली
नागिन सी डसती मतवाली
वक्त भी सारा ठहर गया है
नाम के उनकी देकर दुहाई
गमों से अभी तक अंजान थे
मुलाकातों की दिल में अरमान थे
गहरे सागर में गोते लगाते
कभी तैर जाते कभी डूब जाते
समझ न सके कितनी है गहराई।।
यादों को सजाने चमन आ गया है
दिल के द्वार पर कलियां बिछा गया है
खामोशियां गुनगुनाने लगीं हैं
मन की तरंगें लहराने लगीं हैं
रागनियों ने जब राग छेड़ा
पतझड़ के बाद बहार आई
स्वरिचत,, सुषमा ,ब्यौहार

तिथि .. 22-09-2019
आपके समक्ष एक रचना ....


*स्वप्न *
=======
तुझे भूलने की
जितनी कोशिश करता हूँ........
मुझे उतना ही याद आती हो, क्यों
जब आसमान में काले बादलों की ओट से
चाँद निकलता है
तो लगता है, जैसे तुम मेरे सामने हो
और
चांदनी सी शीतलता बिखेरती हुई
तारों संग, आवाज़ में कहती हो
हम यहीं हैं --- हम यहीं हैं
तभी हवा का झोंका आता है
और सब कुछ बिखर जाता है
तन्द्रा टूटती है
स्वप्न बिखर जाता है-मन उदास हो जाता है
फिर -- अगले स्वप्न को सजाने लगता है
रात आती है --जाती है
पर स्वप्न नहीं आता है
सब कुछ बिखर जाता है
स्वप्न बिखर जाता है
स्वप्न बिखर जाता है

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
स्वरचित मौलिक रचना
22/09/19
स्वतंत्र लेखन


बेटी
---------------------------------

बेटी समाज से बोल रही है
क्या हमें भी बराबरी का हक़ है

दुनिया में आने से मत रोको
मैं भी इस दुनिया में जीना चाह रही हूँ

कैसे बेटी बिना समाज की अपूर्ण कल्पना
प्यारी बेटियों से ही है संसार की नव रचना

मुझको अगर कोख में मार दोगे
तो बताओ बहु कहाँ से लाओगे

बेटी समाज से बोल रही है
बेटी के जन्म लेने में खुशी नहीं मिल रही है

हर रिश्ते में है बेटी का अद्भुत योगदान
माँ, बहन, बुआ, दादी ,भाभी,और दुल्हन

मैं बेटियों का महत्व गिना रही हूँ
समाज को बस आईना दिखा रही हूँ

हर बेटी की सुरक्षा समाज की नैतिक जिम्मेदारी हो
हर जगह सुरक्षित रहें बेटियां जब आपकी पहरेदारी हो

बेटी समाज से बोल रही है
हर बेटी का सम्मान जरूरी है |

- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित


22/09/19
स्वतंत्र विषय लेखन


बेटियां, पथरीले रास्तों की दुर्वा

रतनार क्षितिज का एक मनभावन छोर
उतर आया हो जैसे धीरे-धीरे क्षिति के कोर ।

जब चपल सी बेटियां उड़ती घर आंगन
अपने रंगीन परों से तितलियों समान ।

नाज़ुक,प्यारी मृग छौने सी शरारत में
गुलकंद सा मिठास घोलती बातों-बातों में ।

जब हवा होती पक्ष में बादल सा लहराती
भांपती दुनिया के तेवर चुप हो बैठ जाती ।

बाबा की प्यारी मां के हृदय की आस
भाई की सोन चिरैया आंगन का उजास ।

इंद्रधनुष सा लुभाती मन आकाश पर सजती
घर छोड़ जाती है तो मन ही मन लरजती ।

क्या है बेटियां लू के थपेड़ों में ठंडी पूर्वा
जीवन के पथरीले रास्तों में ऊग आई दुर्वा ।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।

22/09/19
स्वतंत्र दिवस

**

बेटी दिवस पर
दोहावली
***
बेटी बगिया की कली,पल पल यों मुस्काय ।
बहती मुग्ध बयार सी ,हिय हर्षित हो जाय ।।

पापा की नन्ही परी ,घर आँगन की शान,
बेटी की जिद पर करे ,सौ जीवन कुर्बान।

पायल की झंकार तुम ,करती दिल पर राज ,
लाडो तुमसे ही बजें ,....मेरे मन के साज ।

बेटी लाडों से पली ,घर आँगन की शान ।
बेटी को शिक्षित करें ,दो कुल का अभिमान ।।

बड़ा अखरता है हमें,अब बढ़ता व्यभिचार ।
नहीं सुरक्षित बेटियां ,यह कैसा संसार ।।

भेद भाव ये किसलिए, बेटी क्यों है भार,
मात पिता के प्रेम पर ,दोनों का अधिकार।

कुरीतियों पर वार कर ,रचती सभ्य समाज ।
आगे है हर क्षेत्र में , बेटी पर है नाज ।

भोले मुखड़े पर सदा ,सजी रहे मुस्कान,
जीवन खुशियों से सजे ,तू मेरा अभिमान ।

व्याकुल हूँ ये सोच के ,बेटी नाजुक काँच
प्रभु !विनती है आपसे,आय न इस पर आँच।

स्वरचित
अनिता सुधीर

आज का कार्यक्रम स्वपसंद
तिथि ==22/9 /2019 रविवार

बिषय ==बचपन
विधा ==काव्य

मात्रा भार (21)
सादर समक्षार्थ आ.

कहीं खो गया है बचपन हमारा ।
कहां चला गया लडकपन हमारा ।
मिल जाए कहीं कचरे के ढेर में,
बदहाल हो गया बचपन हमारा ।

पता तुम्हें कहीं सो गया दुलारा ।
दिखता नहीं है जो गया हमारा ।
बचपन की यादें भर रह गई हैं,
लगता था जो हमें प्यारा प्यारा ।

गरीब या हो अमीरों का बचपन
गिल्लीडंडे वो कंचों का बचपन ।
ढूंढते रहो कहीं नहीं मिलेगा,
समतासदभाव यारों का बचपन

स्वरचित:::।
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश

दिनांक 22 9 2019
दिन रविवार

स्वतंत्र लेखन विधा ग़ज़ल

वज़न -2122 2122 2122 212

#ग़ज़ल

आसमां पर बादलों की चित्रकारी चिट्ठियाँ ।
शाम, शब, शबनम, शज़र, गुल रब की प्यारी चिट्ठियाँ ॥

ले के आतीं हैं कभी उम्मीद के सूरज कई ।
या कभी ढलती हुई शामों सी हारी चिट्ठियाँ ॥

रात में तारीक़ियाँ बढ़ने लगीं तो फिर यहां ।
चांद तारे शम'अ सी रोशन उतारी चिट्ठियाँ ॥

दो घड़ी की ज़िंदगी का रोना रोना छोड़ कर ।
गुल पे शबनम लिख रही है देख प्यारी चिट्ठियाँ ॥

उस शज़र की हर हरी पत्ती ये सबसे कह रही ।
धूप सह कर छांव की लिक्खी है सारी चिट्ठियाँ ॥

ये परिंदे दे रहे हैं दावतें परवाज़ की ।
लिख रहे नाज़ुक परों से बारी बारी चिट्ठियाँ ॥

पढ़ सको तो पढ़ के देखो ये ख़ुदा ने ख़ुद लिखीं ।
हैं निहां क़ुदरत के हर मंज़र में न्यारी चिट्ठियाँ ॥

अश्क़ का सैलाब आंखों में मगर देखो ज़रा ।
'आरज़ू' ने कब लिखीं हैं रब को खारी चिट्ठियाँ ॥

-अंजुमन 'आरज़ू' ©
20/09/2019
22/09/2019
"स्वतंत्र लेखन"

1
नारंगी रवि
मनोरम गोधूली
मिलन बेला
दिवा संग रजनी
इंतजार चाँदनी।
2
रक्तिम साँझ
अंतस हुआ कवि
शोभा प्रकृति
भावनाओं की नदी
सुमधुर ये स्मृति ।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिन :- रविवार
दिनांक :- 22/09/2019

विषय :- स्वतंत्र लेखन

खत लिखे तो बहुत थे,
पर सिराहने ही रह गए।
लिखे थे अल्फाज़ जो,
सब आँसूओं में बह गए।
कुछ तराने थे गुनगुनाने,
वो सब ख्वाब ही रह गए।
चाहतों के इन मेलों में,
हम अकेले ही रह गए।
यादें कुछ गुजरे दिनों की,
अब भी याद आ जाती है।
यादें वो बिसरे लम्हों की,
अब भी तड़पा जाती है।
जागती आँखों को कुछ,
हसीन सपने दे जाती है।
यादें वो पुरानी हर वक्त,
चुपके से सब कह जाती है।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

भावों के मोती
विषय - स्वतंत्र लेखन

विधा -काव्य
रचना का शीर्षक-बेटियाँ
______________________
बेटियाँ भी अजीब होती हैं
इसलिए दिल के बेहद करीब होती हैं
लड़ती-झगड़ती रहती भाई-बहनों से
पीछे उनकी सलामती की दुआ माँगती
रूठ जाती माँ-बाप से नखरे दिखाती
माँ-बाप की तकलीफ़ देख तड़प जाती
यह बेटियाँ बहुत ही प्यारी होती हैं
इसलिए दिल के बेहद करीब होती हैं
करती हैं ढेरों फरमाइशें,ख्वाहिशें दिखाती
हालात को देखकर फिर उन्हें छुपा लेती
राखी लिए हाथ द्वार पे ताकती रहती
भाई के न आने पर कान्हा को बाँधती
भाई की लंबी उम्र की दुआ माँगती
ससुराल में रहकर भी पल-पल याद करती
मन की पीड़ा छुपाकर हँसती रहती
यह बेटियाँ मन ही मन रो लेती हैं
कभी अपनी परेशानी नहीं बताती
बहुत खुशनसीब वो दहलीज होती है
जिस दहलीज की शोभा बेटियाँ होती हैं
यह बेटियाँ भी अजीब होती हैं
इसलिए दिल के बेहद करीब होती हैं
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय :- "स्वतन्त्र सृजन"
दिनांक :- 22/9/19.

विधा :- "गज़ल"

जहर सा घुलने लगा है,आज के वातावरण में।
रक्त की दुर्गंध दुर्गंध फिर,आने लगी पर्यावरण में।

द्वेष-तम अब चौगुनी, रफ्तार से बढ़ने लगा है,
रोक दे सामर्थ्य ये दिखती नहीं सूरज किरण में।

अब न रावण तनिक दोषी राम का मिथ्या भ्रम ये।
मुख्य-प्रभारी हुआ जब, लक्ष्मण सीता हरण में।

चील कौओं की व्यवस्था से न कुछ उम्मीद रखना,
दोष निकलेंगे हजारों, हंस ही के आचरण में।

आज कह दो द्रोपदी से,चीर की ना रट लगाए,
कृष्ण ही नंगा खड़ा नव-सभ्यता के आवरण में।

सदाचारी आचरण औ', धर्म मरणासन्न हैं अब,
स्वार्थ और अन्याय फलते जिंदगी के हर चरण में।

देह की बोली लगा दे भूख रोटी के लिए जब,
रह गया क्या फर्क ऐसी जिंदगी में औ' मरण में।

ऐ-"तरुण" उम्मीद न रख, वो व्यथा तेरी सुनेगा,
अब मसीहा व्यस्तदिखता स्वयं के पोषणभरण में।
22/9/219
स्वतंत्र लेखन ने आज की श्रव्य प्रस्तुति

शीर्षक-परिंदा
***********
एक परिंदा हूँ मैं
पर मेरे पंख कहाँ???
ज़िंदा हूँ मैं
पर धड़कन कहाँ???

जब मैं पैदा हुई
सबके मुंह बने थे
अरे लड़की हुई!!
एक मातम सा छाया था वहां।।
बगल में लड़का हुआ
मानो रब का सज़दा हुआ
बड़े जोरों से जश्न मनाया गया था वहां।।
"बेटी लक्ष्मी है, दुर्गा है ,देवी है"
सच में??
ये दुनियां कितनी झूठी और फरेबी है..
हकीकत में
भला क्या ये मानता है जहाँ???
महज मंदिरों में पूजित है नारी
जिसकी वजह से ये कायनात है सारी
जग में उसकी अपनी पहचान है कहाँ??
जिसके वज़ूद से ये दुनियां कायम है..
छलनी हुआ आज उसका दामन है..
उसका स्वयं का वज़ूद है कहाँ???
परिंदा हूँ मैं
पर मेरे पंख कहाँ???

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
स्वतंत्र विषय

लघु कविता

यौवन के पहले पड़ाव पर,
आज शरारत सूझ रही।
मन में है भरी जो अभिलाषा,
रह रह कर है पूछ रही।

आंखों के सुनहरे सपनों में,
क्यों आज उमंगें मचल रही।
दिल कहता है यह बार बार,
वह रस्ता मेरा है देख रही।

मचल रही हैं आज उमंगें,
मैं भी तो उन संग झूम रहा।
कब पूरे होंगे अरमान मेरे,
मन कब से है यह पूछ रहा।

कब सजेगा वेणी में गजरा,
कब ला पाऊंगा पायल मैं।
मन मोहेगा अब कौन यहाँ,
कैसे लाऊंगा खुशियाँ मैं।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
दिनांक-22/9/2019
विधा-चंद हाइकु(5/7/5) "बेटियों"को समर्पित..
(1)
अजब मूढ़ें
"बिटिया" फेंकी कूड़े
बहु को ढूँढ़े
(2)
रस्सी पे चाल
पीहर -ससुराल
बेटी कमाल
(3)
यादें समेट
"बेटी" जो हुई विदा
कलेजा फटा
(4)
"बेटी "चिरैया
कर्तव्य तिनकों से
बुने घरौंदा
(5)
गृह चेतना
"बिटिया"संवेदना
बाँटे वेदना
(6)
घर महका
"बिटिया" की ऊर्जा से
चूल्हा चहका
(7)
यादें ही संग
"बेटी" के हाथ पीले
घर बेरंग

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)
भावों के मोती मंच को ,

* बेटी *

बेटी हमारी
पहचान पराई
यही बुराई ।

समझे बेटी
जरूरत की बात
प्यारे जज्वात ।

बेरूखी हाय
करते गर्भपात
दुख की बात ।

बैरी दहेज
पिता की मजबूरी
बेटी को सूली ।

सहनशील
भयानक सच्चाई
बेटी बनाई ।

फैली कुरीति
कुपोषित जीवन
बेटी का भाग्य ।

बेटी के लिए
शिक्षा का अधिकार
जागरूकता ।

मुस्कान बेटी
खुशहाल गृहस्थी
पते की बात ।

चलो पढ़ायें
आत्मविश्वास लायें
सुखी हो बेटी ।

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
दिनांक 22/09/2019
विधा: हाइकु

विषय बेटी गुमान

बेटी दिवस के अवसर पर समूह की सभी बेटियों को बधाई एवं शुभकामनायें। 🌷🌷
♥️♥️♥️♥️
मेरी बिटिया
माई का प्रतिबिम्ब
आँचल छुपी।

दिल की काव्य
सबको पढ कर
नयन भाषा ।

लावण्य निधि
शस्त्रों से सुसज्जित
संस्कृति पूर्ण ।

पंख पसारे
उठती नभ पर
बेटी गुमान ।

काव्या से काव्य
देवव्रत चरित्र
अमित प्यार।
♥️♥️♥️♥️
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
22/09/19
विधा हाइकु


नीड़ को उड़े
पंक्षियों के समूह-
रात्रि विश्राम

बिटिया चली
विद्यालय पढ़ने
चंचल मन

प्रार्थना स्थल
कर जोड़े विद्यार्थी
स्तुति करते

ह्यूस्टन मंच
पहुंचा हिन्दुस्तान
नई मंजिल
दिनाँक-22-09-2019
विषय-बेटियां

विधा -वर्ण पिरामिड
🔴🔴🔴
1-है
होती
बेटियां
मीठा साज
सर का ताज
घर की आवाज
परिवार की लाज।
🔴🔴🔴🔴🔴🔴

2-क्यों
मृत
संस्कार
भरे बाजार
होते अत्याचार
बेटी का बलात्कार।
🔴🔴🔴🔴🔴🔴

3- हैं
छूती
बेटियाँ
आसमान
बढ़ाती शान
जगा स्वाभिमान
होती ऊँची उड़ान।।
🔴🔴🔴🔴🔴🔴

सर्वेश पाण्डेय
स्वरचित


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