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ब्लॉग संख्या :-488
नमन-भावो के मोती
विषय-शून्य
दिनांक28/08/2019
शून्य की प्रखर प्रहर में
अनंत अस्तबल में बैठा मेरा मन
प्रत्युतर से कहता......
देखा था ग्वालियर का वह गढ़
झांसी की वह शान नहीं।
दुर्गा दास ,प्रताप का बल
प्यारा वह राजस्थान नहीं।।
जलती नहीं चिता जौहर की मुट्ठी मे
राजपुताना का वह बलिदान नहीं।
टेढ़ी मूँछ लिए फिरना रण में
अब तो वह राजस्थान नहीं।
चढ़े अश्व पर, दौड़े चेतक रण में
कर मे लिये भालो को राणा।
खोज रहा मेवाड़ आज उन अल्हड़ मस्तानों को
कब आएंगे सुरजन हाड़ा।।
समय मांगता मूल्य मुक्ति का अब ऐसा संसार नहीं।
वैभव सजाए बैठे हैं ,तलवारों में वह रसधार नहीं।।
प्रचंड जौहर की जलती चिंगारी, थार के रेगिस्तानो में।
मेवाड़ देता प्राणों की आहुति
सल्तनत के कब्रिस्तानों में।
सुंदरियों को सौंप ,अग्निपथ पर निकल गए राजदुलारे।
बाल ,वृद्ध ,और तरुण खेले गए अग्नि के अंगारे- न्यारे ।
राजपूताना रोता रणबांकुरों की आहुति पर अरावली के किनारे।
भूल गए तुम यहां राणा के ऋतुपति बहते है, रुधिर के दिव्य पनारे।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विषय-शून्य
दिनांक28/08/2019
शून्य की प्रखर प्रहर में
अनंत अस्तबल में बैठा मेरा मन
प्रत्युतर से कहता......
देखा था ग्वालियर का वह गढ़
झांसी की वह शान नहीं।
दुर्गा दास ,प्रताप का बल
प्यारा वह राजस्थान नहीं।।
जलती नहीं चिता जौहर की मुट्ठी मे
राजपुताना का वह बलिदान नहीं।
टेढ़ी मूँछ लिए फिरना रण में
अब तो वह राजस्थान नहीं।
चढ़े अश्व पर, दौड़े चेतक रण में
कर मे लिये भालो को राणा।
खोज रहा मेवाड़ आज उन अल्हड़ मस्तानों को
कब आएंगे सुरजन हाड़ा।।
समय मांगता मूल्य मुक्ति का अब ऐसा संसार नहीं।
वैभव सजाए बैठे हैं ,तलवारों में वह रसधार नहीं।।
प्रचंड जौहर की जलती चिंगारी, थार के रेगिस्तानो में।
मेवाड़ देता प्राणों की आहुति
सल्तनत के कब्रिस्तानों में।
सुंदरियों को सौंप ,अग्निपथ पर निकल गए राजदुलारे।
बाल ,वृद्ध ,और तरुण खेले गए अग्नि के अंगारे- न्यारे ।
राजपूताना रोता रणबांकुरों की आहुति पर अरावली के किनारे।
भूल गए तुम यहां राणा के ऋतुपति बहते है, रुधिर के दिव्य पनारे।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
नमन. मंच भावों के मोती
28 /8 /1920 /
बिषय ,शून्य,,/ जीरो ,,
अत्यंत महत्वपूर्ण शून्य का योगदान
जरा सी चूक से बिगड़ते सब काम
जीरो से शुरुआत उँचाइयों तक पहुंचाती
आसमां को छूने की तमन्ना मन में जगाती
फुटपाथ पर जिनका रहा है बसेरा
आज वही डाले हुए महलों में डेरा
जीरो से हीरो सब किस्मत के खेल
जैसे रानू मंडल का जम गया तालमेल
वहीं चाय बाला सबके हृदय को भा गया
देश तो देश बिदेशों में छा गया
मुकद्दर कब किसका जीवन संवार दे
एक ही शून्य सिंहासन से पटरी पर उतार दे
बहुत अनोखा शून्य का गणित
इसके बिना सूने ज्ञानी पंडित
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
28 /8 /1920 /
बिषय ,शून्य,,/ जीरो ,,
अत्यंत महत्वपूर्ण शून्य का योगदान
जरा सी चूक से बिगड़ते सब काम
जीरो से शुरुआत उँचाइयों तक पहुंचाती
आसमां को छूने की तमन्ना मन में जगाती
फुटपाथ पर जिनका रहा है बसेरा
आज वही डाले हुए महलों में डेरा
जीरो से हीरो सब किस्मत के खेल
जैसे रानू मंडल का जम गया तालमेल
वहीं चाय बाला सबके हृदय को भा गया
देश तो देश बिदेशों में छा गया
मुकद्दर कब किसका जीवन संवार दे
एक ही शून्य सिंहासन से पटरी पर उतार दे
बहुत अनोखा शून्य का गणित
इसके बिना सूने ज्ञानी पंडित
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
नमन मंच भांवो के मोती
विषय शून्य,जीरो
विधा काव्य
28 अगस्त 2019,बुधवार
पृथ्वी का आकार शून्य सा
सूरज चाँद लगे शून्य से।
जिसने किया शून्य चिंतन
वे दुनियां में लगे मूर्घ्नये से।
जीरो दिया जब भारत ने
गिनती करना सीख गए सब।
नाप लिया बृह्माण्ड सारा
क्या बचता है दुनियां में अब।
दशमलव का ज्ञान सिखाया
इसीलिये तो धर्म विश्व गुरु हैं।
हमने सबको सबक सिखाया
हर विकास भारत से शुरू है।
शून्य सारमय है जीवन का
शून्य नहीं तो कुछ भी नहीं है।
स्वयं ॐ आकार शून्य सा
परम आत्मा निवास वंही है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय शून्य,जीरो
विधा काव्य
28 अगस्त 2019,बुधवार
पृथ्वी का आकार शून्य सा
सूरज चाँद लगे शून्य से।
जिसने किया शून्य चिंतन
वे दुनियां में लगे मूर्घ्नये से।
जीरो दिया जब भारत ने
गिनती करना सीख गए सब।
नाप लिया बृह्माण्ड सारा
क्या बचता है दुनियां में अब।
दशमलव का ज्ञान सिखाया
इसीलिये तो धर्म विश्व गुरु हैं।
हमने सबको सबक सिखाया
हर विकास भारत से शुरू है।
शून्य सारमय है जीवन का
शून्य नहीं तो कुछ भी नहीं है।
स्वयं ॐ आकार शून्य सा
परम आत्मा निवास वंही है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन भावों के मोती
विषय--शून्य/जीरो
प्रथम प्रस्तुति
शून्य का सार शून्य में शक्ति है
शून्य में मन रमायें यही भक्ति है ।।
न ऋण न धन न संपन्न न विपन्न
न आशक्ति और न ही विरक्ति है ।।
जानिए पहचानिए यह मन की
स्थिति इसी में मानिए मुक्ति है ।।
योगियों का योग आत्म परमात्म
का सुन्दर सुखद संयोग स्थिति है ।।
बन जाय बात मिले प्रभु का साथ
इत्ती बात न दुनिया समझती है ।।
भटकती इधर उधर करती ग़दर
कितने हिसाब में मति उलझती है ।।
शून्य तो शून्य ही कहाये 'शिवम'
क्यों न मन कि सुई वहाँ टिकती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/08/2019
विषय--शून्य/जीरो
प्रथम प्रस्तुति
शून्य का सार शून्य में शक्ति है
शून्य में मन रमायें यही भक्ति है ।।
न ऋण न धन न संपन्न न विपन्न
न आशक्ति और न ही विरक्ति है ।।
जानिए पहचानिए यह मन की
स्थिति इसी में मानिए मुक्ति है ।।
योगियों का योग आत्म परमात्म
का सुन्दर सुखद संयोग स्थिति है ।।
बन जाय बात मिले प्रभु का साथ
इत्ती बात न दुनिया समझती है ।।
भटकती इधर उधर करती ग़दर
कितने हिसाब में मति उलझती है ।।
शून्य तो शून्य ही कहाये 'शिवम'
क्यों न मन कि सुई वहाँ टिकती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/08/2019
जीरो
वैसे तो कहा जाता,
हो तुम "जीरो"
समझा जाता हीन ।
ना कोई बात,
ना कोई औकात ।
गाली के नाम पर,
देते हो साथ ।
कोई कहता "ढ"
कोई कहता "जीरो"
स्कोर में होते तुम,
होता हैं वज्राघात ।
रोते हैं किस्मत पर,
नही दिया साथ ।
लेकिन होते हो तुम,
जिसके साथ ।
बढ़ती हैं उसकी औकात ।
जीतने बार हो साथ,
उतनी ज्यादा औकात ।
यही हैं,
जिंदगी की बिसात ।
"जीरो" सा ना हो,
कोई हमारे साथ तो !
हमारी क्या औकात ?
स्वरचित_ प्रदीप सहारे
वैसे तो कहा जाता,
हो तुम "जीरो"
समझा जाता हीन ।
ना कोई बात,
ना कोई औकात ।
गाली के नाम पर,
देते हो साथ ।
कोई कहता "ढ"
कोई कहता "जीरो"
स्कोर में होते तुम,
होता हैं वज्राघात ।
रोते हैं किस्मत पर,
नही दिया साथ ।
लेकिन होते हो तुम,
जिसके साथ ।
बढ़ती हैं उसकी औकात ।
जीतने बार हो साथ,
उतनी ज्यादा औकात ।
यही हैं,
जिंदगी की बिसात ।
"जीरो" सा ना हो,
कोई हमारे साथ तो !
हमारी क्या औकात ?
स्वरचित_ प्रदीप सहारे
नमन मंच 🙏💐
दिनांक- 28/8/2019
शीर्षक- "शून्य / जीरो"
विधा- कविता
***************
शून्य को न कम तुम आंकों,
खूबियां बहुत इसमें झांकों,
जीवन हमारा शून्य से शुरू,
शून्य पर ही खत्म हो जायेगा,
एक से नौ तक के अंकों का,
शून्य बिना मान घट जायेगा |
चंदा शून्य, सूरज भी शून्य,
शून्य ही पूरा विज्ञान है,
शिव शून्य अंबर भी शून्य,
शून्य में ही सच्चा ध्यान है,
शून्य को न कम तुम आंकों,
ये जीवन का मूल आधार है ||
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
दिनांक- 28/8/2019
शीर्षक- "शून्य / जीरो"
विधा- कविता
***************
शून्य को न कम तुम आंकों,
खूबियां बहुत इसमें झांकों,
जीवन हमारा शून्य से शुरू,
शून्य पर ही खत्म हो जायेगा,
एक से नौ तक के अंकों का,
शून्य बिना मान घट जायेगा |
चंदा शून्य, सूरज भी शून्य,
शून्य ही पूरा विज्ञान है,
शिव शून्य अंबर भी शून्य,
शून्य में ही सच्चा ध्यान है,
शून्य को न कम तुम आंकों,
ये जीवन का मूल आधार है ||
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
नमनःभावों के मोती
दि.28/8/19.
विषयःशून्य/ज़ीरो
*
वह निराकार शिव -तत्व शून्य,
साकार सृष्टि बन खिलता है।
जड़-जंगम तरु-तृण,खग-मृग में,
शिव - सुंदर - सत्य झलकता है।
आत्मा की मौन महत्ता ही,
ज्योतित शुचिता संधान लिए।
जग - जगड्वाल में विहर रही,
लोकोत्तर रूप - विधान लिए।।
-डा.'शितिकंठ'
दि.28/8/19.
विषयःशून्य/ज़ीरो
*
वह निराकार शिव -तत्व शून्य,
साकार सृष्टि बन खिलता है।
जड़-जंगम तरु-तृण,खग-मृग में,
शिव - सुंदर - सत्य झलकता है।
आत्मा की मौन महत्ता ही,
ज्योतित शुचिता संधान लिए।
जग - जगड्वाल में विहर रही,
लोकोत्तर रूप - विधान लिए।।
-डा.'शितिकंठ'
दि- 28-8-19
शीर्षक- शून्य
सादर मंच को समर्पित --
🌹🍋 मुक्तक 🍋🌹
*************************
☀ शून्य ☀
💧💧💧💧💧💧💧💧💧
शून्य व्योम है , शून्य पूर्ण है ,
शून्य बहुगुणित कर देता है ।
शून्य में ब्रह्माण्ड समाया ,
सृष्टि स्वरूप सब भर देता है ।
भारत की यह खोज अनौखी ,
गणना चली विश्व भर इससे --
शून्य नहीं जीवन को मानें ,
शान्त रूप दुख हर देता है ।।
🌴 🌹💧🌻🌺
🍋🍀**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
शीर्षक- शून्य
सादर मंच को समर्पित --
🌹🍋 मुक्तक 🍋🌹
*************************
☀ शून्य ☀
💧💧💧💧💧💧💧💧💧
शून्य व्योम है , शून्य पूर्ण है ,
शून्य बहुगुणित कर देता है ।
शून्य में ब्रह्माण्ड समाया ,
सृष्टि स्वरूप सब भर देता है ।
भारत की यह खोज अनौखी ,
गणना चली विश्व भर इससे --
शून्य नहीं जीवन को मानें ,
शान्त रूप दुख हर देता है ।।
🌴 🌹💧🌻🌺
🍋🍀**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
दिनांक :28/08/2019
विधा:काव्य
विषय: शून्य
शून्य के जीवन मे महत्ता अनेक
शून्य थी खोज भारतीय वैज्ञानिक की।
एक से नौ अंक जब मिले शून्य से
गणना का हुआ अदभुत विस्तार ।
शून्य का अन्य संख्याओं संग
अजब गजब सा है योगदान ।
अको की है गणित निराली..
अगर शून्य पहले संख्या से
संख्या ज्यो की त्यों रहती है।
संख्या के बाद शून्य होने से
संख्या का मूल्यांकन बढता जाए ।
अंकों की है गणित निराली ...
शून्य मे अंक जोड देने से
अंक वही रह जाता है।
पर यदि घटा दिया शून्य से
अंक ॠणी हो जाता है।
अंकों की है गणित निराली...
गुणा किया यदि उसे सिफर से
गुणेत्तर शून्य हो जाता है।
पर यदि भाग दिया शून्य से
अंक अनन्त हो जाता है ।
अंकों की है गणित निराली ...
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
विधा:काव्य
विषय: शून्य
शून्य के जीवन मे महत्ता अनेक
शून्य थी खोज भारतीय वैज्ञानिक की।
एक से नौ अंक जब मिले शून्य से
गणना का हुआ अदभुत विस्तार ।
शून्य का अन्य संख्याओं संग
अजब गजब सा है योगदान ।
अको की है गणित निराली..
अगर शून्य पहले संख्या से
संख्या ज्यो की त्यों रहती है।
संख्या के बाद शून्य होने से
संख्या का मूल्यांकन बढता जाए ।
अंकों की है गणित निराली ...
शून्य मे अंक जोड देने से
अंक वही रह जाता है।
पर यदि घटा दिया शून्य से
अंक ॠणी हो जाता है।
अंकों की है गणित निराली...
गुणा किया यदि उसे सिफर से
गुणेत्तर शून्य हो जाता है।
पर यदि भाग दिया शून्य से
अंक अनन्त हो जाता है ।
अंकों की है गणित निराली ...
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
भावों के मोती
शीर्षक- शून्य
शून्य सा प्रतीत हो रहा
मेरा सम्पूर्ण जीवन,
वैगेर तेरे अय मेरे हमदम।
कोई खुशबू नहीं सुहाती
कोई सुन्दरता नहीं लुभाती
बैठे हैं तन्हा उदास से हम।
ठंडी पवन लगाए
रह-रहकर मन में अगन
ज़ख्मे-दिल चाहे बस तेरी मरहम
काश कि आ जाते तुम
दिखला जाते एक झलक
दरकिनार करके सारे भरम।
लगा देते अपनी इकाई
मेरे शून्य पलों के आगे तो
अनमोल हो जाता मेरा ये जीवन।
स्वरचित-
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
शीर्षक- शून्य
शून्य सा प्रतीत हो रहा
मेरा सम्पूर्ण जीवन,
वैगेर तेरे अय मेरे हमदम।
कोई खुशबू नहीं सुहाती
कोई सुन्दरता नहीं लुभाती
बैठे हैं तन्हा उदास से हम।
ठंडी पवन लगाए
रह-रहकर मन में अगन
ज़ख्मे-दिल चाहे बस तेरी मरहम
काश कि आ जाते तुम
दिखला जाते एक झलक
दरकिनार करके सारे भरम।
लगा देते अपनी इकाई
मेरे शून्य पलों के आगे तो
अनमोल हो जाता मेरा ये जीवन।
स्वरचित-
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
नमन मंच भावों के मोती
28/08 19
शून्य
पिरामिड
***
1)
क्यों
शून्य
जीवन
पीड़ा मन !
असंख्य कण
अनंत ब्रह्मांड
बने ऊर्जा भंडार !
2)
ले
रूप
संसद
शून्यकाल!
संख्या के बाद
अनंत आधार!
पहले निराधार ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
28/08 19
शून्य
पिरामिड
***
1)
क्यों
शून्य
जीवन
पीड़ा मन !
असंख्य कण
अनंत ब्रह्मांड
बने ऊर्जा भंडार !
2)
ले
रूप
संसद
शून्यकाल!
संख्या के बाद
अनंत आधार!
पहले निराधार ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
नमन मंच भावों के मोती
28/09/19
जीरो /शून्य
विधा - मुक्त
जीरो की महिमा अपरंपार
जिसके पीछे लग जाए बना दे उसको हीरो यार
शून्य अगर ना होता
आकाश अनंत ना होता
दुनिया जिसको समझे जीरो
वही हकीकत में होता हीरो
अन्नदाता को सब समझे जीरो
वही हमारा पेट है भरता वो असली हीरो
मेहनतकश मजदूर की भी तुलना है जीरो से
तेज धूप में भी वह करता काम मेहनत से
जीवन में हमारे काम करके बड़ा सुकून है इसको
क्योंकि जीरो दिलाता है सम्मान सबको |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
28/09/19
जीरो /शून्य
विधा - मुक्त
जीरो की महिमा अपरंपार
जिसके पीछे लग जाए बना दे उसको हीरो यार
शून्य अगर ना होता
आकाश अनंत ना होता
दुनिया जिसको समझे जीरो
वही हकीकत में होता हीरो
अन्नदाता को सब समझे जीरो
वही हमारा पेट है भरता वो असली हीरो
मेहनतकश मजदूर की भी तुलना है जीरो से
तेज धूप में भी वह करता काम मेहनत से
जीवन में हमारे काम करके बड़ा सुकून है इसको
क्योंकि जीरो दिलाता है सम्मान सबको |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
नमन भावों के मोती🙏
28/8/2019
विषय-शून्य
🌕🌑🎯💿
कितना दुष्कर है
तय करना
स्वयं से स्वयं की दूरी ..
यथा मृग खोज रहा हो
स्वयं अंतर्निहित कस्तूरी..
बाहर आकाश शून्य
भीतर का घटाकाश शून्य
चतुर्दिश शून्य ही शून्य
जब मैं नहीं हूं मुझमें
सब शून्य ही है जग में
फिर "मैं"का क्या है मूल्य..?
**वंदना सोलंकी©स्वरचित
28/8/2019
विषय-शून्य
🌕🌑🎯💿
कितना दुष्कर है
तय करना
स्वयं से स्वयं की दूरी ..
यथा मृग खोज रहा हो
स्वयं अंतर्निहित कस्तूरी..
बाहर आकाश शून्य
भीतर का घटाकाश शून्य
चतुर्दिश शून्य ही शून्य
जब मैं नहीं हूं मुझमें
सब शून्य ही है जग में
फिर "मैं"का क्या है मूल्य..?
**वंदना सोलंकी©स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
कहने को तो छोटा है ये शब्द।
पर बड़ी हीं है इसकी महत्ता।
ऐसे तो अकेले यह कुछ भी नहीं है।
लेकिन इसके पीछे जोड़ दो कोई अंक,
तो इसका महत्व बढ़ जाता।
शून्य से हीं है यह जीवन।
शून्य से धरती आकाश।
शुरू हुआ जीवन शून्य से।
शून्य पर हीं खत्म हो जायेगा।
सिर्फ अंक रहने से कुछ नहीं बनेगा।
जबतक नहीं लगेगा शून्य।
शून्य लगाकर हीं बनता है।
कोई भी संख्या अनगिन।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
कहने को तो छोटा है ये शब्द।
पर बड़ी हीं है इसकी महत्ता।
ऐसे तो अकेले यह कुछ भी नहीं है।
लेकिन इसके पीछे जोड़ दो कोई अंक,
तो इसका महत्व बढ़ जाता।
शून्य से हीं है यह जीवन।
शून्य से धरती आकाश।
शुरू हुआ जीवन शून्य से।
शून्य पर हीं खत्म हो जायेगा।
सिर्फ अंक रहने से कुछ नहीं बनेगा।
जबतक नहीं लगेगा शून्य।
शून्य लगाकर हीं बनता है।
कोई भी संख्या अनगिन।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
"शून्य"
छंदमुक्त
**********************
मैं आदि-अनादि शून्य हूँ..
अंक मेरा हमदम है....
मिलता साथ हमदम का.
बन जाती मैं पूर्णांक हूँ..।
हमदम से पहले न मोल मेरा
हमदम के पीछे बहुमूल्य हूँ..
हमदम से पहचान है मेरी..
हमदम के संग अनमोल हूँ..।
मेरे से ही अनंत विस्तार है..
मेरे कारण उत्पन्न संसार है.
खालीपन पहचान है मेरी..
मुझमें वायु का संचार है..।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
छंदमुक्त
**********************
मैं आदि-अनादि शून्य हूँ..
अंक मेरा हमदम है....
मिलता साथ हमदम का.
बन जाती मैं पूर्णांक हूँ..।
हमदम से पहले न मोल मेरा
हमदम के पीछे बहुमूल्य हूँ..
हमदम से पहचान है मेरी..
हमदम के संग अनमोल हूँ..।
मेरे से ही अनंत विस्तार है..
मेरे कारण उत्पन्न संसार है.
खालीपन पहचान है मेरी..
मुझमें वायु का संचार है..।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन "भावो के मोती"
28/08/2019
"शून्य"
वर्ण पिरामिड
1
है
शून्य
नगन्य
सम भार
योग,वियोग
अनंत विस्तार
अंक संग पूर्णांक।
2
है
शून्य
ब्राह्माण
स्व विस्तार
वायु संचार
संतुलन भार
संसार का आधार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
28/08/2019
"शून्य"
वर्ण पिरामिड
1
है
शून्य
नगन्य
सम भार
योग,वियोग
अनंत विस्तार
अंक संग पूर्णांक।
2
है
शून्य
ब्राह्माण
स्व विस्तार
वायु संचार
संतुलन भार
संसार का आधार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
शून्य कविता पूरी नहीं होगी...
----------------------------
रात के नीरस छोर में
करवटें बदलता उम्र के
अंतिम पड़ाव का सारथी
लकड़ी के सहारे खड़ा होकर
सोचने लगता है कि...
अब सौंपने लायक कुछ भी तो
छोड़ा नहीं है शेष...और
अपना कहने लायक भी कुछ नहीं।
नंगी आँखों में घुसा है सबके
भीषण क्लेश का तिनका
वहशियाना प्यार और
व्याकुलता के बवंडर की धूल
फ़रमान मिला है आराम फ़रमाने का
चंद रोशनी के कतरों के साथ
उदास गीले टीले पर...।
रिक्तता की ढ़ाल पर बे आवाज
बह रही है व्यथित कविता
क्षितिज पर खड़ी मृत्यु का
चमकदार चेहरा गुफा से
ताकझांक कर रहा है
और..दैहिक, देवीक, भौतिक ताप से तड़पती जर्जर काया से
यह शून्य कविता कभी पूरी नहीं होगी...।।
✍🏻 गोविन्द सिंह चौहान
28/8/19
----------------------------
रात के नीरस छोर में
करवटें बदलता उम्र के
अंतिम पड़ाव का सारथी
लकड़ी के सहारे खड़ा होकर
सोचने लगता है कि...
अब सौंपने लायक कुछ भी तो
छोड़ा नहीं है शेष...और
अपना कहने लायक भी कुछ नहीं।
नंगी आँखों में घुसा है सबके
भीषण क्लेश का तिनका
वहशियाना प्यार और
व्याकुलता के बवंडर की धूल
फ़रमान मिला है आराम फ़रमाने का
चंद रोशनी के कतरों के साथ
उदास गीले टीले पर...।
रिक्तता की ढ़ाल पर बे आवाज
बह रही है व्यथित कविता
क्षितिज पर खड़ी मृत्यु का
चमकदार चेहरा गुफा से
ताकझांक कर रहा है
और..दैहिक, देवीक, भौतिक ताप से तड़पती जर्जर काया से
यह शून्य कविता कभी पूरी नहीं होगी...।।
✍🏻 गोविन्द सिंह चौहान
28/8/19
२/कण कण में
ब्रम्ह रुप अनेक
शून्य में सृष्टि।।२।।
३/शून्य भित्ति में,
सृष्टि चित्र बनाया
सौन्दर्य मयी।।३।।
४/जीव रचना,
सृष्टि पर अनेक
ब्रम्ह अनेक।।४।।
५/जल में थल,
जीव अनेक खेले,
प्रभु रचना।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,गया,।।
ब्रम्ह रुप अनेक
शून्य में सृष्टि।।२।।
३/शून्य भित्ति में,
सृष्टि चित्र बनाया
सौन्दर्य मयी।।३।।
४/जीव रचना,
सृष्टि पर अनेक
ब्रम्ह अनेक।।४।।
५/जल में थल,
जीव अनेक खेले,
प्रभु रचना।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,गया,।।
बिषयःः #शून्य/जीरो#
विधाःः काव्यः ः
शून्य, शून्य यह शून्य नहीं है।
क्या शून्य का महत्व नहीं है।
नहीं गणित है बिना शून्य के,
शून्य बिना अस्तित्व नहीं है।
शून्य गणित आधारशिला है।
इसके बिन हमें क्या मिला है।
कभी धरातल पर ये ले आती
हमें शून्य से शिखर मिला है।
शून्य हमें अनंत तक ले जाऐ।
सोचें ये कहाँ से कहाँ ले जाऐ।
इसकी महिमा अजब निराली,
प्रत्येक ग्रह तक यही ले जाऐ।
भारत ने दिया शून्य का दान।
भारतबर्ष रखता स्वाभिमान।
विवेकानंद ने बता दिया क्या,
क्यों शून्य जगत में है महान।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधाःः काव्यः ः
शून्य, शून्य यह शून्य नहीं है।
क्या शून्य का महत्व नहीं है।
नहीं गणित है बिना शून्य के,
शून्य बिना अस्तित्व नहीं है।
शून्य गणित आधारशिला है।
इसके बिन हमें क्या मिला है।
कभी धरातल पर ये ले आती
हमें शून्य से शिखर मिला है।
शून्य हमें अनंत तक ले जाऐ।
सोचें ये कहाँ से कहाँ ले जाऐ।
इसकी महिमा अजब निराली,
प्रत्येक ग्रह तक यही ले जाऐ।
भारत ने दिया शून्य का दान।
भारतबर्ष रखता स्वाभिमान।
विवेकानंद ने बता दिया क्या,
क्यों शून्य जगत में है महान।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
नमन :भावों के मंच
विषय -शुन्य/ जीरो
दिनांक 28-8 -2019
भावों के मोती से, शारदे को माला पहनाऊंगा।
जीरो से हीरो बना, परिचय उसका करवाऊंगा।।
आर्यभट्ट का परिचय बता, इतिहास बताऊंगा।
आने वाली पीढ़ी को,राह उससे दिखलाऊंगा ।।
जीरो से यात्रा शुरू ,परिश्रम रंग लाएगा ।
जीरो हीरो बनने का, मार्ग प्रशस्त कर जाऊंगा।।
जो समझा तर गया ,ना समझा पछताएगा।
जीरो को जो समझा ,वो ही मंजिल पाएगा।।
प्रेरणा से आगे बढ़ ,जीरो से हीरो बन जाएगा।
कुछ करने का सुअवसर, बार -बार नहीं आएगा ।।
जमाना गुजर गया , इतिहास दोहराया जाएगा।
जीरो की महत्ता को, कभी न बिसरा पाएगा ।।
ना करेगा कुछ तो, हीरो से जीरो पर आएगा ।
लगना किसी अंक के पीछे, महत्व बढ़ जाएगा।।
जीरो के संग जुड़ने की, कला जो सीख जाएगा ।
मर कर भी जग में ,वो अमरता को पाएगा ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय -शुन्य/ जीरो
दिनांक 28-8 -2019
भावों के मोती से, शारदे को माला पहनाऊंगा।
जीरो से हीरो बना, परिचय उसका करवाऊंगा।।
आर्यभट्ट का परिचय बता, इतिहास बताऊंगा।
आने वाली पीढ़ी को,राह उससे दिखलाऊंगा ।।
जीरो से यात्रा शुरू ,परिश्रम रंग लाएगा ।
जीरो हीरो बनने का, मार्ग प्रशस्त कर जाऊंगा।।
जो समझा तर गया ,ना समझा पछताएगा।
जीरो को जो समझा ,वो ही मंजिल पाएगा।।
प्रेरणा से आगे बढ़ ,जीरो से हीरो बन जाएगा।
कुछ करने का सुअवसर, बार -बार नहीं आएगा ।।
जमाना गुजर गया , इतिहास दोहराया जाएगा।
जीरो की महत्ता को, कभी न बिसरा पाएगा ।।
ना करेगा कुछ तो, हीरो से जीरो पर आएगा ।
लगना किसी अंक के पीछे, महत्व बढ़ जाएगा।।
जीरो के संग जुड़ने की, कला जो सीख जाएगा ।
मर कर भी जग में ,वो अमरता को पाएगा ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन "भावों के मोती"🙏
28/08/2019छंदमुक्त रचना
विषय:-"शून्य"
समेटे हुए अस्तित्व
लिए ज्ञान ब्रह्म का ब्रह्मांड का प्रतीक...
आदि से आकाश का
हो सृष्टि का आरंभ
या..
खोज निराकार की
लिए बोध गंभीर
है खोज इस आकार की
प्रारंभ का गीत हो
या हो ध्यान का संगीत
रहस्यता इसी की
खोज से भी शुरू की
लिए अर्थ व्यापक और विशाल आधार भविष्य का...
आरंभ से अंत का
मन,कर्म,वचन से
उठने का प्रयास हो
निश्चित....
वही शून्यता का भास हो
आभास हो भर जाने का
एक शून्य के मर जाने का
अधूरापन रहेगा
लिए तृष्णा जीवन की
भटकना ही पड़ेगा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
28/08/2019छंदमुक्त रचना
विषय:-"शून्य"
समेटे हुए अस्तित्व
लिए ज्ञान ब्रह्म का ब्रह्मांड का प्रतीक...
आदि से आकाश का
हो सृष्टि का आरंभ
या..
खोज निराकार की
लिए बोध गंभीर
है खोज इस आकार की
प्रारंभ का गीत हो
या हो ध्यान का संगीत
रहस्यता इसी की
खोज से भी शुरू की
लिए अर्थ व्यापक और विशाल आधार भविष्य का...
आरंभ से अंत का
मन,कर्म,वचन से
उठने का प्रयास हो
निश्चित....
वही शून्यता का भास हो
आभास हो भर जाने का
एक शून्य के मर जाने का
अधूरापन रहेगा
लिए तृष्णा जीवन की
भटकना ही पड़ेगा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
दिनांक-28/8/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"शून्य"
(1)
अंतिम सत्य
जीवन गुणा-भाग
हाथ में "शून्य"
(2)
हर कदम
मरती संवेदना
भावशून्यता
(3)
दर्द बाँटता
गरीबी खालीपन
"शून्य" ताकता
(4)
कम न आंक
एक से जुड़कर
"शून्य" भी लाख
(5)
प्राण जो खिला
चहकती धरती
शून्य भी भरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"शून्य"
(1)
अंतिम सत्य
जीवन गुणा-भाग
हाथ में "शून्य"
(2)
हर कदम
मरती संवेदना
भावशून्यता
(3)
दर्द बाँटता
गरीबी खालीपन
"शून्य" ताकता
(4)
कम न आंक
एक से जुड़कर
"शून्य" भी लाख
(5)
प्राण जो खिला
चहकती धरती
शून्य भी भरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)
दिनांक :- 28/08/2019
शीर्षक :- शून्य/जीरो
शून्य एक बिंदु है...
जिसका आदि न अंत है...
है वह निराकार...
समाहित जिसमें अनंत है...
सकल सृष्टि का बीज यह...
शून्य ही ब्रम्हाण्ड है...
है सर्वव्यापी यह...
कण-कण का का आरंभ यह...
शून्य व्योम है..
शून्य ही भौम है...
शून्य तल है..
शून्य ही अतल है...
शून्य ही मृत्यु...
शून्य ही जन्म है..
शून्य नगण्य...
शून्य ही गण्य है...
शून्य अगुणित..
शून्य अविभाजि..
शून्य ही परमात्म..
शून्य ही अविनाशी..
शून्य वाद्य है..
शून्य गान है..
शून्य सकल सृष्टि में...
भारती की शान है..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शीर्षक :- शून्य/जीरो
शून्य एक बिंदु है...
जिसका आदि न अंत है...
है वह निराकार...
समाहित जिसमें अनंत है...
सकल सृष्टि का बीज यह...
शून्य ही ब्रम्हाण्ड है...
है सर्वव्यापी यह...
कण-कण का का आरंभ यह...
शून्य व्योम है..
शून्य ही भौम है...
शून्य तल है..
शून्य ही अतल है...
शून्य ही मृत्यु...
शून्य ही जन्म है..
शून्य नगण्य...
शून्य ही गण्य है...
शून्य अगुणित..
शून्य अविभाजि..
शून्य ही परमात्म..
शून्य ही अविनाशी..
शून्य वाद्य है..
शून्य गान है..
शून्य सकल सृष्टि में...
भारती की शान है..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन भावों के मोती
आज का विषय शून्य / जीरो
पड़ा रहे अकेला कहीं शून्य, का मूल्य नहीं होता।
किसी अंक से पहले लिखो,मूल्य अपना है खोता।।
संख्या के बाद लगाने पर मूल्य दस गुना बढ़ाते।
एक के बाद लगाने पर उसे एक से दस हैं बनाते।।
दस के बाद लगाने पर उसे दस से सौ हैं बना देते।
फिर जितने शून्य लगाओ, दस गुना बढ़ाते जाते।।
शून्य का आविश्कारक आर्यभट को है माना जाता।
रावण के दस सिरों को फिर कैसे गिना था जाता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
आज का विषय शून्य / जीरो
पड़ा रहे अकेला कहीं शून्य, का मूल्य नहीं होता।
किसी अंक से पहले लिखो,मूल्य अपना है खोता।।
संख्या के बाद लगाने पर मूल्य दस गुना बढ़ाते।
एक के बाद लगाने पर उसे एक से दस हैं बनाते।।
दस के बाद लगाने पर उसे दस से सौ हैं बना देते।
फिर जितने शून्य लगाओ, दस गुना बढ़ाते जाते।।
शून्य का आविश्कारक आर्यभट को है माना जाता।
रावण के दस सिरों को फिर कैसे गिना था जाता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
भावों के मोती
२८/०८/१९
विषय-शुन्य।
धरा से शुन्य तक
सिसकती मानवता ..
सिसकती मानवता
कराह रही है,
हर ओर फैली धुंध कैसी है,
बैठे हैं एक ज्वालामुखी पर
सब सहमें से डरे-डरे,
बस फटने की राह देख रहे ,
फिर सब समा जायेगा
एक धधकते लावे में ।
जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि-पुत्र ,भूमि को छोड़
"शून्य" के संग कर रहे समागम।
पद और कुर्सी का बोलबाला
नैतिकता का निकला दिवाला
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लिय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी,
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ,
देश की परवाह किसको
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे, नराधमो मनुज हो या दनुज।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी
२८/०८/१९
विषय-शुन्य।
धरा से शुन्य तक
सिसकती मानवता ..
सिसकती मानवता
कराह रही है,
हर ओर फैली धुंध कैसी है,
बैठे हैं एक ज्वालामुखी पर
सब सहमें से डरे-डरे,
बस फटने की राह देख रहे ,
फिर सब समा जायेगा
एक धधकते लावे में ।
जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि-पुत्र ,भूमि को छोड़
"शून्य" के संग कर रहे समागम।
पद और कुर्सी का बोलबाला
नैतिकता का निकला दिवाला
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लिय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी,
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ,
देश की परवाह किसको
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे, नराधमो मनुज हो या दनुज।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी
नमन भावों के मोती
शीर्षक--शून्य/जीरो
दिनांक--28-8-19
विधा --दोहे
1.
शून्य खोज कर हिन्द ने, जग को किया निहाल।
वाम अंग पत्नी दई, रखा दस गुना ख्याल।।
2.
शून्य अंक के दाहिने,मूल्य होय दस गून।
दहिने जितने शून्य हों,उत दस गुन मजमून।।
3.
संख्या इकाइ अंक यदि ,होय
शून्य या पाँच।
संख्या विभाज्य पाँच से,सदा तथ्य ये साँच।।
4.
शून्य,चार औ आठ हो,अगर इकाई अंक्य।
तथा दहाई होय सम,भाज्य चार से संख्य।।
5.
शून्य विभाजित शून्य से, आता सदा अनन्त।
भास्कर की ये शोध थी, ब्रह्मगुप्त नहिं जंत।।
6.
शून्य का वर्ग शून्य है,वर्गमूल भी शून्य।
भास्कर को ये ज्ञात थे, खरे शून्य के गुण्य।।
7.
शिखर पहुँचना सिफर से, भाग्य मानते लोग।
मगर कर्म ही भाग्य है,कर्म खरा है योग ।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
शीर्षक--शून्य/जीरो
दिनांक--28-8-19
विधा --दोहे
1.
शून्य खोज कर हिन्द ने, जग को किया निहाल।
वाम अंग पत्नी दई, रखा दस गुना ख्याल।।
2.
शून्य अंक के दाहिने,मूल्य होय दस गून।
दहिने जितने शून्य हों,उत दस गुन मजमून।।
3.
संख्या इकाइ अंक यदि ,होय
शून्य या पाँच।
संख्या विभाज्य पाँच से,सदा तथ्य ये साँच।।
4.
शून्य,चार औ आठ हो,अगर इकाई अंक्य।
तथा दहाई होय सम,भाज्य चार से संख्य।।
5.
शून्य विभाजित शून्य से, आता सदा अनन्त।
भास्कर की ये शोध थी, ब्रह्मगुप्त नहिं जंत।।
6.
शून्य का वर्ग शून्य है,वर्गमूल भी शून्य।
भास्कर को ये ज्ञात थे, खरे शून्य के गुण्य।।
7.
शिखर पहुँचना सिफर से, भाग्य मानते लोग।
मगर कर्म ही भाग्य है,कर्म खरा है योग ।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
नमन् भावों के मोती
28अगस्त19
विषय :शून्य
विधा: कविता
शून्य संसार
शून्य नही खाली
शून्य ब्रम्हाण्ड
इसकी महिमा आली
शून्य आकाश
अनन्त प्रकाश की लाली
संख्या संसार
शून्य का परिवार
गणित प्यार
अदभुत उपहार
शून्य काल
संसद का प्रश्न पुंज
शून्यवाद
दर्शन की अमूल्य निधि
शून्य विस्तृत क्षितिज
आत्मा-परमात्मा मिलन विन्दु
ज्ञान ज्योति
शून्य से आरम्भ
जीवन ज्योति
शून्य में समाहित
नश्वर जगत
शून्य ही शेष
मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
28अगस्त19
विषय :शून्य
विधा: कविता
शून्य संसार
शून्य नही खाली
शून्य ब्रम्हाण्ड
इसकी महिमा आली
शून्य आकाश
अनन्त प्रकाश की लाली
संख्या संसार
शून्य का परिवार
गणित प्यार
अदभुत उपहार
शून्य काल
संसद का प्रश्न पुंज
शून्यवाद
दर्शन की अमूल्य निधि
शून्य विस्तृत क्षितिज
आत्मा-परमात्मा मिलन विन्दु
ज्ञान ज्योति
शून्य से आरम्भ
जीवन ज्योति
शून्य में समाहित
नश्वर जगत
शून्य ही शेष
मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
शून्य संसार
शब्द बने आधार
भावाभिव्यक्ति
२
वर्णों से शब्द
शब्दों से बनें वाक्य
वाक्य दे भाव
३
जीवन है क्या
महाशून्य की यात्रा
शुरू शून्य से
४
ज्ञान चाहिये
शब्द ही हैं आधार
सीखो सिखाओ
५
शून्य की व्याख्या
विवेक का आनंद
विवेकानंद
भावुक
शब्द बने आधार
भावाभिव्यक्ति
२
वर्णों से शब्द
शब्दों से बनें वाक्य
वाक्य दे भाव
३
जीवन है क्या
महाशून्य की यात्रा
शुरू शून्य से
४
ज्ञान चाहिये
शब्द ही हैं आधार
सीखो सिखाओ
५
शून्य की व्याख्या
विवेक का आनंद
विवेकानंद
भावुक
28/8/19
भावों के मोती
विषय=शून्य/जीरो
===============
शून्य से आए हैं
शून्य में समा जाएंगे
शून्य के रहस्य को
हम फिर भी न समझ पाएंगे
शून्य में ब्रह्म छुपा
शून्य है परमात्मा
अनेकों रहस्य लिए
शून्य ही है आत्मा
शून्य से गणना शुरू
शून्य में अंत छिपा
शून्य का अनंत विस्तार
कोई भी न समझ सका
शून्य देकर ही जगत को
भारत जग में महान बना
शून्य ही निराकार शिव
शून्य में ब्रह्मांड बसा
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
भावों के मोती
विषय=शून्य/जीरो
===============
शून्य से आए हैं
शून्य में समा जाएंगे
शून्य के रहस्य को
हम फिर भी न समझ पाएंगे
शून्य में ब्रह्म छुपा
शून्य है परमात्मा
अनेकों रहस्य लिए
शून्य ही है आत्मा
शून्य से गणना शुरू
शून्य में अंत छिपा
शून्य का अनंत विस्तार
कोई भी न समझ सका
शून्य देकर ही जगत को
भारत जग में महान बना
शून्य ही निराकार शिव
शून्य में ब्रह्मांड बसा
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, शून्य, जीरो
दिनांक, 28,8,2019,
वार, बुधवार
हीरो हो या फिर हो जीरो।
मोल साथ मिलने में है ।
एक और एक होते हैं ग्यारह,
एकता चिन्हित करते हैं ।
जव पीछे आ जाते जीरो,
बहुसंख्यक हो जाते है ।
अस्तित्व ऐसा रखता है जीरो,
समझ बड़े बड़े नहीं पाते हैं ।
इक जीरो के फेरबदल में ,
राजा रंक व रंक राजा हो जाते हैं।
शून्य अमर है द्योतक रब का ,
जीवन की राह दिखाता है ।
जीरो का सहारा लेकर ही,
मानव आगे बढ़ता है ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
आज का विषय, शून्य, जीरो
दिनांक, 28,8,2019,
वार, बुधवार
हीरो हो या फिर हो जीरो।
मोल साथ मिलने में है ।
एक और एक होते हैं ग्यारह,
एकता चिन्हित करते हैं ।
जव पीछे आ जाते जीरो,
बहुसंख्यक हो जाते है ।
अस्तित्व ऐसा रखता है जीरो,
समझ बड़े बड़े नहीं पाते हैं ।
इक जीरो के फेरबदल में ,
राजा रंक व रंक राजा हो जाते हैं।
शून्य अमर है द्योतक रब का ,
जीवन की राह दिखाता है ।
जीरो का सहारा लेकर ही,
मानव आगे बढ़ता है ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
शीर्षक .. शून्य
*******************
क्या लिखूँ इस शून्य पर मै,
सोच कर मन शून्य है।
यादों मे उसकी कहानी,
आज पर वह शून्य है॥
**
सोचता हूँ उस पे लिख दूँ,
आदि ना जो अन्त है।
पर जो सोचू बात उसकी,
मन मेरा स्तब्ध है॥
**
शेर मन की भावना में,
जाने कितना दर्द है।
शून्य है प्रारब्ध मेरा,
शून्य मेरा अन्त है॥
**
राग में जो रागिनी है,
छंद और रसरंग है।
अब नही कविता मे मेरे,
भाव मेरे शून्य है॥
**
इक पहेली अब लगे है,
चाह नाही अन्त है।
शेर मन उलझा है जिसमें,
सच है प्रिय वो शून्य है॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
*******************
क्या लिखूँ इस शून्य पर मै,
सोच कर मन शून्य है।
यादों मे उसकी कहानी,
आज पर वह शून्य है॥
**
सोचता हूँ उस पे लिख दूँ,
आदि ना जो अन्त है।
पर जो सोचू बात उसकी,
मन मेरा स्तब्ध है॥
**
शेर मन की भावना में,
जाने कितना दर्द है।
शून्य है प्रारब्ध मेरा,
शून्य मेरा अन्त है॥
**
राग में जो रागिनी है,
छंद और रसरंग है।
अब नही कविता मे मेरे,
भाव मेरे शून्य है॥
**
इक पहेली अब लगे है,
चाह नाही अन्त है।
शेर मन उलझा है जिसमें,
सच है प्रिय वो शून्य है॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
दिनांक - 28/08/2019
विषय-शून्य /ज़ीरो
शून्य से आरंभ सृष्टि शून्य से ही अंत है ,
शून्य से ही जीवन शुरू और शून्य से ही अंत है ।
शून्य से बढ़कर शिखर तक पहुँचने में सब व्यस्त हैं ,
पर शून्य को कोसने में कौन करता हर्ज़ है ।
शून्य की ही गिनतियों में आज सब मस्त है,
कौन कितने शून्य वाला इस गणना में सब व्यस्त है ।
शून्य को शून्य न समझो है ये उन्नति का सोपान ,
यह न होता तो गणना न होती ,नभ में न चलते विमान।
आज है हम जो अपनी उपलब्धियों को गिन रहे ,
उस अंतरिक्षी पहुँच में भी तो शून्य का ही हाथ है ।
शून्य ही हमको सिखाता जड़ों से हम जुड़े रहें,
कितने बढ़े हम शिखर को आँखे सदा थल पर रहे।
भूलकर भी शून्य का अपमान न करना तुम कभी ,
शून्य है पहचान जीवन की और हमारा अस्तित्व भी ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
विषय-शून्य /ज़ीरो
शून्य से आरंभ सृष्टि शून्य से ही अंत है ,
शून्य से ही जीवन शुरू और शून्य से ही अंत है ।
शून्य से बढ़कर शिखर तक पहुँचने में सब व्यस्त हैं ,
पर शून्य को कोसने में कौन करता हर्ज़ है ।
शून्य की ही गिनतियों में आज सब मस्त है,
कौन कितने शून्य वाला इस गणना में सब व्यस्त है ।
शून्य को शून्य न समझो है ये उन्नति का सोपान ,
यह न होता तो गणना न होती ,नभ में न चलते विमान।
आज है हम जो अपनी उपलब्धियों को गिन रहे ,
उस अंतरिक्षी पहुँच में भी तो शून्य का ही हाथ है ।
शून्य ही हमको सिखाता जड़ों से हम जुड़े रहें,
कितने बढ़े हम शिखर को आँखे सदा थल पर रहे।
भूलकर भी शून्य का अपमान न करना तुम कभी ,
शून्य है पहचान जीवन की और हमारा अस्तित्व भी ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
नमन मंच 🙏
शीर्षक - शून्य
दिनांक - 28/08/19'भावों के मोती' को समर्पित
मेरी रचना ....
जब मृत्यु हो जाती है
किसी तरुण शाख की
विवश बिलखती
स्त्री के आत्मदाह से
मैं शून्य हो जाती हूँ ...
बिन मेघावरी के जब
गगन बरसता है अनंत ..
अस्तमित सूर्य की दीप्ति
और आभा मंडल से
मैं शून्य हो जाती हूँ।
विहंगमों की नृत्योत्सव
और श्रृंगारिता से
कदम्ब वन का विरह गीत
विरहिणी आलाप से
मैँ शून्य हो जाती हूँ।
अमानवीय निष्ठुरता
जीवन की कृत्रिमता
पूर्णतः प्रकृतस्थ
महामेरू की दृढ़ता से
मैं शून्य हो जाती हूँ ....
अस्पष्ट हो जाते हैं शब्द
अक्षर अवयव असंपूर्ण
अर्धसत्य भौतिकता
प्रलयकाल के नव सृजन से
मैं शून्य हो जाती हूँ ....
हे , धरा गगन ..!
इस महापर्व के
आगमन से
मैं शून्य हो जाती हूँ ...
निःशब्द ...मैं
शून्य हो जाती हूँ .....॥
#पूर्णतः #स्वरचित
अनिमा दास
कटक , ओडिशा ...
शीर्षक - शून्य
दिनांक - 28/08/19'भावों के मोती' को समर्पित
मेरी रचना ....
जब मृत्यु हो जाती है
किसी तरुण शाख की
विवश बिलखती
स्त्री के आत्मदाह से
मैं शून्य हो जाती हूँ ...
बिन मेघावरी के जब
गगन बरसता है अनंत ..
अस्तमित सूर्य की दीप्ति
और आभा मंडल से
मैं शून्य हो जाती हूँ।
विहंगमों की नृत्योत्सव
और श्रृंगारिता से
कदम्ब वन का विरह गीत
विरहिणी आलाप से
मैँ शून्य हो जाती हूँ।
अमानवीय निष्ठुरता
जीवन की कृत्रिमता
पूर्णतः प्रकृतस्थ
महामेरू की दृढ़ता से
मैं शून्य हो जाती हूँ ....
अस्पष्ट हो जाते हैं शब्द
अक्षर अवयव असंपूर्ण
अर्धसत्य भौतिकता
प्रलयकाल के नव सृजन से
मैं शून्य हो जाती हूँ ....
हे , धरा गगन ..!
इस महापर्व के
आगमन से
मैं शून्य हो जाती हूँ ...
निःशब्द ...मैं
शून्य हो जाती हूँ .....॥
#पूर्णतः #स्वरचित
अनिमा दास
कटक , ओडिशा ...
मन मंच🙏
🌹शुभ संध्या🌹
28/8/2019
विषय-शून्य
विधा-हायकू
द्वितीय प्रस्तुति
🥀🌹🥀🌹🥀
1.
अंक गणित
शून्य बिन बेकाम
हल सवाल
2.
बाहर शून्य
अंतस में रिक्तता
ब्रह्मांड शून्य
3.
अनोखा खेल
आती जाती स्वांस का
शून्य कीमती
4.
त्यागा मान
शून्यभाव अन्तस्
निर्गुण निःशेष
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
🌹शुभ संध्या🌹
28/8/2019
विषय-शून्य
विधा-हायकू
द्वितीय प्रस्तुति
🥀🌹🥀🌹🥀
1.
अंक गणित
शून्य बिन बेकाम
हल सवाल
2.
बाहर शून्य
अंतस में रिक्तता
ब्रह्मांड शून्य
3.
अनोखा खेल
आती जाती स्वांस का
शून्य कीमती
4.
त्यागा मान
शून्यभाव अन्तस्
निर्गुण निःशेष
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
दिनांक:28/08/2019
विषय:शून्य
विधा:हाइकु
मस्तिष्क शून्य
डिमेशिया बीमारी
बडी लाचारी ।
असहाय हूँ
ग्रसित बलात्कार
चेतना शून्य ।
मै हूई शून्य
लथपथ थी लाश
चीरे थे घाव।
आखरी साँस
बचा है देह शेष
व्यापी शून्यता ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
विषय:शून्य
विधा:हाइकु
मस्तिष्क शून्य
डिमेशिया बीमारी
बडी लाचारी ।
असहाय हूँ
ग्रसित बलात्कार
चेतना शून्य ।
मै हूई शून्य
लथपथ थी लाश
चीरे थे घाव।
आखरी साँस
बचा है देह शेष
व्यापी शून्यता ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
शीर्षकांतर्गत द्वितीय प्रस्तुति
शून्य में रमा,
सुकून ढूँढता हूँ।
हर स्याह रात में,
जुगनू ढूँढता हूँ।
ढूँढता हूँ आशातित रश्मि,
ढंक अपने नयन पलक।
खोया रहता हूँ जिसके,
इंतजार में मैं अपलक।
स्वार्थी इस जहां में,
इंसां में इंसान ढूँढता हूँ।
निरिह पाषाण खंडों में रंजित,
कण-कण भगवान ढूँढता हूँ।
खोकर खुद को शून्य में,
अपना ही आधार ढूँढता हूँ।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शून्य में रमा,
सुकून ढूँढता हूँ।
हर स्याह रात में,
जुगनू ढूँढता हूँ।
ढूँढता हूँ आशातित रश्मि,
ढंक अपने नयन पलक।
खोया रहता हूँ जिसके,
इंतजार में मैं अपलक।
स्वार्थी इस जहां में,
इंसां में इंसान ढूँढता हूँ।
निरिह पाषाण खंडों में रंजित,
कण-कण भगवान ढूँढता हूँ।
खोकर खुद को शून्य में,
अपना ही आधार ढूँढता हूँ।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शून्य से शिखर पर कैसे चढे हम
लोगअक्सर ये प्रश्न चिन्ह लगाते।
हम भी अपनी उपलब्धियों पर,
जितना हो सके फूले नहीं समाते।
कहाँ,कौन,कैसा ,कितने यहाँ पर
लोग क्यों कर प्रश्न चिन्ह उठाते।
जब आजादीआदमी को मिली है,
कुछ अनावश्यक आरोप लगाते।
प्रश्न उनसे करें जिन्होंने हमेशा,
अपने देश को बर्बाद किया है।
जो वास्तव में तब शून्य पर थे,
देश लूट खुद आवाद किया है।
प्रश्न चिन्ह उन्ही पर लगाऐं जो,
खाऐं देश की बजाऐं विदेश की।
शून्य जिनकी हैसियत यहाँ पर,
मगर आवाज बताऐं विदेश की।
प्रश्न उन बुद्धिजीवियों फर दागें
जो देशद्रोहियों का काम करते।
प्रश्न चिन्ह उन पर सभी उठाऐं,
जो सदा स्वदेश बदनाम करते।
लोगअक्सर ये प्रश्न चिन्ह लगाते।
हम भी अपनी उपलब्धियों पर,
जितना हो सके फूले नहीं समाते।
कहाँ,कौन,कैसा ,कितने यहाँ पर
लोग क्यों कर प्रश्न चिन्ह उठाते।
जब आजादीआदमी को मिली है,
कुछ अनावश्यक आरोप लगाते।
प्रश्न उनसे करें जिन्होंने हमेशा,
अपने देश को बर्बाद किया है।
जो वास्तव में तब शून्य पर थे,
देश लूट खुद आवाद किया है।
प्रश्न चिन्ह उन्ही पर लगाऐं जो,
खाऐं देश की बजाऐं विदेश की।
शून्य जिनकी हैसियत यहाँ पर,
मगर आवाज बताऐं विदेश की।
प्रश्न उन बुद्धिजीवियों फर दागें
जो देशद्रोहियों का काम करते।
प्रश्न चिन्ह उन पर सभी उठाऐं,
जो सदा स्वदेश बदनाम करते।
नमन भावों के मोती
विषय -शून्य /जीरो
अनंत की ड्योढ़ी पर
शून्य खड़ा लिए सवाल ।
तू बड़ा या मैं बड़ा
छिड़ा हुआ जमकर बवाल ।
प्रारंभ शून्य ,अंत भी शून्य
शून्य ही अनंत
अनंत ही शून्य ।
शून्य ही है असल निधि
हाथ जोड़े खड़ी सकल विधि ।
शून्य अनंत में जीवित है
अनंत शून्य बिन लंबित ।
जीवन की अवधि
ज्यों शून्य की परिधि ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय -शून्य /जीरो
अनंत की ड्योढ़ी पर
शून्य खड़ा लिए सवाल ।
तू बड़ा या मैं बड़ा
छिड़ा हुआ जमकर बवाल ।
प्रारंभ शून्य ,अंत भी शून्य
शून्य ही अनंत
अनंत ही शून्य ।
शून्य ही है असल निधि
हाथ जोड़े खड़ी सकल विधि ।
शून्य अनंत में जीवित है
अनंत शून्य बिन लंबित ।
जीवन की अवधि
ज्यों शून्य की परिधि ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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