रविवार -1/7/18
स्वतंत्र लेखन
अलफाज
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बेसबब बेइंतहा बेहद परेशान हूं मैं
वक्त तेरी चालों पर बड़ा हैरान हूं मैं
खोल कर रखे हैं खिड़कियां दरवाजे सब
बरसों से बंद पड़ा खुला मकान हूं मैं
बात उसूल की हो तो साथ छोड़ देता हूं
दोस्तों की नजर में बड़ा बेईमान हूं मैं
कहीं भी रुख करो मिलोगे मुझसे आकर
आखिर समंदर हूं दरिया का जहान हूं मैं
बेशक नाज रख अपनी दौलत पे ऐ जमीं
मेरी हद से निकल कर दिखा आसमान हूं मैं
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स्वरचित
सपना सक्सेना
वो कुछ लोगों पर मेहरबान दिखाई देता है
गरीब को दो रोटी एक गिलास पानी दे दो
उसको तो उसी में भगवान दिखाई देता है
जिनके बच्चे बड़े हो गए अब वो नौकरी करेंगे
मां-बाप को अब यहीं अरमान दिखाई देता है
उनसे पूछो जिनका हर त्योहार खत्म हो गया
सरकार को तो सिर्फ़ रमजान दिखाई देता है
जब आन पड़ती है हमारी आन बान शान पर
फिर तुमको किसान और जवान दिखाई देता है
समझते हो समझदार अपने को ए हिंदुस्तानी
फिर क्यों नहीं तुम्हें अपना हिन्दुस्तान दिखाई देता है।।
जय हिन्द वन्देमातरम
स्वरचित
बिजेंद्र सिंह चौहान
चंडीगढ़
क्यूं तू कल कल करता है
सुख निन्द्रा में डूबी वसुधा
तू क्यूं कोलाहल करता है
तू उच्चश्रृंखल होकर
क्यूं वसुधा को खिजाता है
जो वसुधा जाग गई तो
तू क्या तू रह पाता है
मस्त होकर झरना बोले
मैं तो कल कल करता हूँ
सुख निन्द्रा में सोई वसुधा को
मीठे गीत सुनाता हूँ
तुम क्या जानों प्रेम हमारा
इंक दूजे में बसते हैं
जब भी काले मेघा बरसे
इक दूजे में खो जाते हैं
मैं मतवाला मीठा झरना
वसुधा की पीड़ हटाता हूँ
अपने निर्मल नीर से
वसुधा की प्यास बुझाता हूँ
प्रेम वसुधा कितना करती
तुमने ये नहीं जाना है
खुद को छलनी करके उसने
मुझको मार्ग दिखाया है
मेरे प्रीतम प्यारे सुन लो
बात पते की कहती हूँ
तुम हो मेरे निर्मल झरने
मैं तेरी वसुधा प्यारी हूँ
स्वरचित : मिलन जैन
''जीवन यात्रा संस्मरण"
काँटों से भरा जीवन कुछ फूल भी मिले
उनके सहारे जिन्दगी में रहे हम खिले ।।
जब फूल भी बिखरे आँखे बहुत मले
अच्छे भी दिन आये पर अदाओं से ढले ।।
चाहा उन्हे पकड़ना पर हाथ से फिसले
चलना ही है जीवन ये स्वयं पते चले ।।
मुड़कर के फिर न देखे हम रहे अधखिले
ये जिन्दगी है दोस्तो इसके यही सिले ।।
वैसे तो घाव हैं कई पर अपनों के खले
अब हँसते हैं तो कहते हैं लोग बावले ।।
हँसना भी दोस्तो अब पैसों के तले
ये रीत अब बनी है जो टाले न टले ।।
ये जिन्दगी के अनुभव मस्तिक तले पले
पढ़ा करें ''शिवम" ये पन्ने हैं कुछ खुले ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
*भावों के मोती*
विषय-खुशबू
विधा-हाइकु
तिथि-01-07-2018
⚜⚜⚜⚜⚜⚜
1-भीनी खुशबू
माटी मेरे देश की
मन मगन।
2-खिले प्रसून
भ्रमर आये पास
फैली सुवास।
3-गिरती बूँद
बरसता अमृत
सौंधी खुशबू।
4-मीठी सी गंध
रिश्तों का एहसास
नव आनन्द।
⚜⚜⚜⚜⚜सर्वेश पाण्डेय"
मैं सोऊँ चैन की साँस, लगे पडौस आग
वक्त का बदला राग ,मुबारक तुमको
मूल्यों को जला सेंकी अपनी रोटी
स्वार्थ का व्यापार मुबारक तुमको
शान्ति के नाम पर मासूम हलाल
दुनियाँ का ये हाल मुबारक तुमको
मात- पिता को दिया निकाल
वृद्धाश्रम उदघाटन ,मुबारक तुमको
खुद को लगे खुद की ही नजर
खुद से इतना प्यार मुबारक तुमको
ऋतुराज दवे
है गुजारिश कि पहलू में आजाइये।
प्रेम क्या है ये खुद भी समझ लीजिए,
और जमाने को भी समझाइये।।
तुम मुझे देखकर अश्क पीती रहो,
मैं तुम्हे देखकर गम को पीता रहूँ।
तुम मुझे देखकर दर्द सहती रहो,
मैं तुम्हे देखकर गम में जीता रहूँ।।
तुम मुझे सारे जग से बचाती रहो,
मैं तुम्हे सारे जग से बचाता रहूँ।
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो,
मै तुम्हे देखकर मुस्कुराता रहूँ।।
दर्द ही प्यार का दूसरा नाम है,
रौंदते तुम गमो को चले आईये।।
भुलकर........
है गुजारिश.......
प्रेम क्या........
और जमाने को..........
प्रेम इक राग है प्रेम अनुराग है,
प्रेम है माधुरी प्रेम ही छाग है।
प्रेम जिसने किया ओ समझता है ये,
जैसे बजता हुआ ये कोई साज है।।
प्रेम मे जो पड़ा ओ पड़ा ही रहा,
प्रेमी जिद पे अड़ा तो अड़ा ही रहा।
प्रेम के नाम से हमको छलिये नही,
प्रेम में मेरे तुम भी तो ढल जाईये।।
भुलकर सारी दुनिया की जुल्मों सितम
है गुजारिश के पहलू में आजाइये।।.........
प्रेम क्या.........
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