''उत्सव"
रोज ही उत्सव मनाते हैं हम
मन में बसे हैं मेरे प्रियतम ।।
अटखेली खेलते हम उनसे दिन रात
क्या सुख क्या दुख लगे छोटी ये बात ।।
प्रेम की दीवानी में मीरा कहाऊँ
रोज ही सपने में कान्हा संग गाऊँ ।।
बाहर के उत्सव होते हैं क्षणिक
अन्दर बिखरे हैं हीरे माणिक ।।
भले भूले उसको सारी संसारी
हमें तो भाये हैं बाँके बिहारी ।।
प्रेम की परिभाषा जो जाने यहाँ
उनका हुआ है ये सारा जहाँ ।।
जीवन है उत्सव ये जान लीजिये
सच्चाई है ये पहचान लीजिये ।।
अखण्ड स्रोत से जिसने जोड़े ये तार
''शिवम्" उसके जीवन में आयी बहार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
पीहू नृत्य जब देखा था
सूना सूना खाली पन
उत्सव में परिवर्तित देखा था।।
मन मयूर मेरा डोल गया
मन पंछी बावरा हो गया
त्याग दिया क्षण भर में मैंने
बैर-भाव को त्याग दिया।।
इन्द्रधनुष स्वप्न सजोंकर
मन प्रफुल्लित हो गया
उम्मीदों के नव पंख फैलाए
नव उदय धरा पर हो गया।
हे प्रभु मै चाहूँ उत्सव घर घर होय।
इसमें झूमें सभी ये पसंद हर कोय।
उत्सव मिलजुलकर ऐसे मनाऐं कि
हंसमुख चेहरे खुशियाँ हर घर होंय।
उत्सव मन की बात है जब चाहे मनाऐं।
संगसाथ परिवार के मित्र पडौसी बुलाऐ।
निर्मल तनमनधन लगे परोपकार में सब,
प्रेमोत्सव में सबको मिलकर खूब हंसाऐं।
उछलकूद करें सभी अपने बच्चों के संग,
उत्सव सबको भाते हैं राजा रंक या भूप।
नहीं चाहें कोई बुराई दिखे ऐसा पर्व मनाऐं,
कूडा करकट अलग करें ज्यों करता है सूप।
होली दिवाली ईद सब उत्सव कहलाते।
हिंदू मुस्लिम भाई मिलकर खूब मनाते।
उत्सव में नहीं देखते जातपात हम लोग,
जो देखें मानें ऐसे सब विध्वंसी कहलाते।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
वादे हुए है झूठे यहाँ रोजगार के ।
आगे बढ़ो सदा ही हुनर को संवार के ।।
होता नही है काम बिना लूट मार के ।
लगते बशर हमें तो सियासी दयार के ।।
किस्मत सदा रही है यहाँ तो खफा खफा ।
सहते रहे है गम ,हम मौसम की मार के ।।
चाहे हो ईद या हो दिवाली की रात भी ।
त्यौहार भी बचे न यहां कोई प्यार के ।।
जीना नही है अब मुझे कोई करार पर ।
बाते किया करो यूँ नियत को सुधार के ।।
वो जा रहा है पाँव जरा सा पसार के ।
बाते भी अब किया करो सोच विचार के।।
कल तक जो मुफ़लिसों का मसीहा बना रहा ।
बैठा है वो गरीब का पैसा डकार के ।।
प्रदीप रामटेके
लांजी,मध्यप्रदेश
आओ,हम सब मिलकर मनायें एक उत्सव।
नही कोई खास कारण हैं इस उत्सव का।
यह तो बस एक बहाना हैं उत्सव मनाने का।
अपनो से मिलने मिलाने का।
इसे मनाने के लिए नहीं चाहिए कोई
तीथि या रीति।
हमें तो बस बहाना चाहिए खूश होने का
इस इलेक्ट्रॉनिक्स युग मे कही हम
मशीन बनकर न रह जाये।
इसलिए यह उत्सव मनाना जरूरी है
ताकि जीवन में फ्यूल भर जाये।
क्यों करें हम इंतजार उत्सव मनाने
के लिये बड़ी खुशियों का।
छोटी छोटी खुशियां भी काफी है
उत्सव मनाने के लिए।
स्वयं खुश हो जाये, और खुश होने का
कारण बन जाये दूसरो का।
रिश्तों को जिंदा रखने के लिए
क्यों न मनाये एक उत्सव हम आज।
रिश्तों के इस फेहरिस्त में
गुम न जायें कोई अनमोल रिश्ते
गिला शिकवा को दूर रखकर
आओ मिलकर मनाये हमसब
एक अभूतपूर्व उत्सव।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
नित नूतन मन आनन्द रहे...
हर दिल में उत्सव गंध रहे....
परिचित अपरचित संग रहे...
हर पल उत्सव आनन्द रहे...
नित नूतन मन आनन्द रहे...
मन शीतल जग भी शीतल हो...
भीतर स्नेहदीप तेरे जलते हों...
तेरे नयन वसुधा में कोपल से...
स्वप्न अपरिचित अंकुरित हों...
बहार सब मन आँगन रहे....
नित नूतन मन आनन्द रहे...
हो धूसर पर न कीचड हो मन..
अबोध बालक पुलकित हो मन...
वयोवृद्ध का हाथ पकड़ कर तू...
ले आये उसे अपने घर आँगन....
आशीष हर पल तुझे मिलता रहे...
नित नूतन मन आनन्द रहे...
जो हरी भरी निर्मल हो धरा...
हर मन रहे फिर खिला हुआ...
हर आँगन में पौधे लगा कर...
तू वसुधा का कम भार करे...
हर जीव में प्राण संचार करे...
नित नूतन मन आनन्द रहे...
हर पल उत्सव आनन्द रहे...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
धूसर - धूल में सना तन
बैठकर वीरानों में
क्यों शोक मनाता है ?
जीवन का हर पल
उत्सव है
क्यों शोक मनाता है?
जीवन क्या है ?
इस बात को समझो
जनम भी उत्सव है
मरण भी उत्सव है
वसन भी उत्सव है
कफन भी उत्सव है
इस बात को समझो
जीवन क्या है ?
इस बात को समझो
देखकर माँ को
सारा गम भूल जाता है
दर्द से तड़पता बच्चा
लिपटकर माँ से
सारा गम भूल जाता है
होकर बड़ा बच्चा
जब चलना सीख जाता है
उतरकर माँ की गोद से
जमीं पे नृत्य करता है
सुख-दुख क्या है ?
उसे मालूम नहीं
राह के कंकड़ो को
उठाकर मुस्कुराता है
जीवन क्या है ?
अभी जानता नहीं
बोलकर तोतली बोली
उत्सव मनाता है।
@शाको
स्वरचित
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