भावों के मोती
दैनिक कार्य स्वरचित लघु कविता
शीर्षक आशा
दिनांक 3.7.18
रचयिता पूनम गोयल
न जानें , क्यों ? हो जाते हैं हम ,
इतने आशावादी !
आशाएं बना देतीं हैं ,
हमें घोर निराशावादी !!
एक के बाद , दूसरी ,
फिर तीसरी , और , न जानें , कितनीं अनगिनत आशाएं !
हम आजीवन ,
अपने अपनों से लगाते जाएं !!
और जब पूरी न हों आशाएं ,
तो दुख के बादलों में घिर जाएं !
फिर स्वंय उदास होकर ,
बाकी सबको भी निराश कर जाएं !!
निकल कर , इनकी तृष्णा से बाहर ,
क्यों न ? यह जीवन सफल बनाएं !
खुशी-खुशी हम-सब अपना ,
पूरा जीवन बिताएं !!
सबको सब-कुछ नहीं मिलता ,
हर कोई भाग्य एवं पुरुषार्थ का फल ही पाए !
इसी अनुसार , उस परमात्मा ने ,
सबके खाँचे बनाएं !!
वैसे भी , विविधता के साथ ,
यदि हम यह जीवन बिताएं !
तो इसके विभिन्न रंगों का ,
हम आनन्द उठा पाएं !!
बँधकर , न रहें एक सूत्र में ,
और आशाओं के बन्धन में !
क्योंकि संतोष-धन सर्वोत्तम है ,
हमारे मानव-जीवन में !!
इसलिए आशावादी न बनकर ,
हम कर्म पर ध्यान लगाएँ !
और अच्छे कर्म करते हुए ,
स्वंय को भाग्यशाली बनाएँ !!
दैनिक कार्य स्वरचित लघु कविता
शीर्षक आशा
दिनांक 3.7.18
रचयिता पूनम गोयल
न जानें , क्यों ? हो जाते हैं हम ,
इतने आशावादी !
आशाएं बना देतीं हैं ,
हमें घोर निराशावादी !!
एक के बाद , दूसरी ,
फिर तीसरी , और , न जानें , कितनीं अनगिनत आशाएं !
हम आजीवन ,
अपने अपनों से लगाते जाएं !!
और जब पूरी न हों आशाएं ,
तो दुख के बादलों में घिर जाएं !
फिर स्वंय उदास होकर ,
बाकी सबको भी निराश कर जाएं !!
निकल कर , इनकी तृष्णा से बाहर ,
क्यों न ? यह जीवन सफल बनाएं !
खुशी-खुशी हम-सब अपना ,
पूरा जीवन बिताएं !!
सबको सब-कुछ नहीं मिलता ,
हर कोई भाग्य एवं पुरुषार्थ का फल ही पाए !
इसी अनुसार , उस परमात्मा ने ,
सबके खाँचे बनाएं !!
वैसे भी , विविधता के साथ ,
यदि हम यह जीवन बिताएं !
तो इसके विभिन्न रंगों का ,
हम आनन्द उठा पाएं !!
बँधकर , न रहें एक सूत्र में ,
और आशाओं के बन्धन में !
क्योंकि संतोष-धन सर्वोत्तम है ,
हमारे मानव-जीवन में !!
इसलिए आशावादी न बनकर ,
हम कर्म पर ध्यान लगाएँ !
और अच्छे कर्म करते हुए ,
स्वंय को भाग्यशाली बनाएँ !!
आशा
""""""""'"
अतीत की यादों के झरोखे से
कुछ पल स्वप्निल बनके उतरते है
श्रंगारित देह और सुन्दर घर-आंगन
अब,,,,
पूरानी दीवारों की पपडियां आज
दरारों का पालन करती नज़र आती है
उपेक्षित है वो छत जिसके नीचे
कभी अनगिनत सपनों ने करवटें
बदली थी....
और,,,,देह अपनी ही झूर्रियों से लबालब है
झील में उठती लहरों सी
आड़ी-तिरछी,
तट पर हंसो का कलरव करता झुंड
गहरे गोते लगाने को आतूर
मोती पाने को लालायित,,, पर
जीवन की झील उथली नहीं है
'आशा' की नाव, कर्म की पतवार ही
आनन्द विहार करा सकती है
इस संसार सागर में....।।
मुंह में हो जैसे बताशा
आगे बढ़ाती अभिलाषा
गढ़ती नई है परिभाषा।
आशा के पन्ने पर इतिहास होते
आशा के पन्ने पर विश्वास होते
आशा के पन्ने पर उल्लास होते
आशा के पन्ने पर सुखद प्रवास होते।
सच है की सबको ही मरना है
सारा माल यहीं पर धरना है
फिर भी आशा जीवित रहती
वह कहती क्यों मौत से डरना है।
आशा प्रेयसी है प्रियतम है
आशा ही सारा दमखम है
जो निराश भाव में रहता
उसको तो ग़म ही ग़म है।
आशा का श्रंगार कर दो
इसमें अपने उदगार भर दो
बाधायें जो भी आजायें
उनको साहस से पार कर दो।
ह्रदय में प्राण भरे
सूर्य किरण सी आशा ज्योति
जीवन में प्रकाश भरे
राह घनेरी पथरीली सी
निराशा का भाव भरे
आशा अलख दुर्गम राहों पर
सूर्य सा प्रकाश करे
हो निराशा भले ही कितनी
सब्र से तुम काम करो
संकल्प ज्योत प्रज्जवलित करके
कर्म पथ निर्माण करो
निष्ठा सी प्रेयसी का तुम
दृढ़ निश्चय से मिलन करो
आत्मबल को चूम कर तुम
जीत का वरण करो
आस अगर हो दिल में सच्ची
तो थार में भी फूल खिले
आशा के इन हौंसलों ने
दुर्गम हिमगिरी पार किये
आशाओं के दीप जलाकर
प्रगति पथ को दीप्त करो
सकारात्मक सोच अपनाकर
नित आशा का श्रृंगार करो
स्वरचित : मिलन जैन
उम्मीद का दामन न छोड़ो मंजिलें स्वयं पुकारें ।।
कौन सी मंजिल कद्रदान है, इस पर नजर डारें
भूल यहीं रह जाती है पहले सोचें और विचारें ।।
धरती तपे बारिषें आयें , पौधों में प्राण डारें
जो उम्मीदें छोड़ गये , उनको कैसे उबारें ।।
बोल भी न पायें बच्चे सो बार माँ उचारें
तब मिले दूध कठोरता जीवन न बिगारें ।।
पूछिये जौहरी से हीरे को कैसे वो निखारें
समझिये ''शिवम" उम्मीदें जीवन को सँवारें ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
मंगलवार - 2/7/18
दैनिक लेखन
शीर्षक - आशा
आशा
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घोर अंधेरा हो जाये तो
आशाओं के दीप जलाना,
राह कठिन हो, दूर हो मंजिल
दर्द में चाहे डूबा हो दिल
छोड़ ना देना आस का दामन
थोड़ा मन को धीर बंधाना ...
,कोई नहीं है साथ जो तेरे
गम ना कर ओ मनवा मेरे
कांटे ही तो फूल बनेंगे
चलते जाना चलते जाना .....
सुख-दुख दोनो आते जाते
हर पल में खुश रहना सीखो
जीवन है अनमोल ये साथी
हरदम इसका मान बढ़ाना .....
सपना सक्सेना
स्वरचित
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"आशा है तो
जग है
प्रकाश है
आकाश है
उड़ान है
सच कहूँ तो
जीवन में मुस्कान है"
1
आशाओं के दीप ले के
जीवन पथ पर
चलते रहना है
जग हो अमृत प्रकाश से
आलोकित
हर पथ में अमरदीप
प्रज्वलित करते रहना है।
2
जिन्दगी जंग है
हर कदम पर ,
हर पल संघर्ष है
संघर्ष पथों पे
संकल्प दीप ले के
होकर दृढ़ निश्चयी
निष्ठापूर्वक चलते रहना है
दूर हो जाए
अंधकार जीवन से
जीवन की नई परिभाषा
गढ़ते रहना है।
3
मुस्कुराती सुबह हो
गुनगुनाती रात हो
हर लफ्ज़ में
इबादत हो
जीवन को इन्ही
अनमोल रत्नों से
सजाते रहना है।
4
लोग कहते हैं
खुदा जब एक दरवाजा
बंद करते हैं
तब दूसरा दरवाजा
खोल देते हैं
दिल में इसी आशा का
दीप जलाकर
आगे बढ़ते रहना है
मिले सब को सर्वोत्कृष्ट प्रकाश
बनकर सूरज चमकते रहना है।
@शाको
स्वरचित
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