Thursday, July 12

"सवेरा"12जुलाई 2018

 मेरे दुखो की रात हो गई है 
इतनी काली की 
कुछ नजर नही आता

चंहु ओर छा गया अंधेरा
फिर सुनकर अंतरमन 
की आवाज
मन मे आशा की
किरण फूट पड़ी
जो मुझे ले जा रही है
सफलता के उजाले की ओर
जो मुझे ऐसा महसूस
करा रहा था कि
हो गया मेरे जीवन का सबेरा

गरिमा
डिंडोरी

1
" जब लाल वसन धारण कर 
सूरज आता है 
तब उम्मीदों का चिराग जलता है 
जीवन में सवेरा होता है 
विश्वासों का बसेरा होता है 
धरती मुस्कुराती है 
हवा भी आँचल लहराती है "

2

कली कली इठलाती है 
फूल सुहाने खिलते हैं 
जब सवेरा होता है
भौंरे मीठी गुंजन करते हैं 

3

मंदिर में भजन होते हैं 
मस्जिद में अज़ान होती है
जब सवेरा होता है
आपस में लोग मिलते हैं

4

कितने फुटपाथों पे सोते हैं 
कितने बेघर बेचारे हैं 
कोहरा ने कोहराम मचाया है
सूरज को छुपाया है

5

सर्द हवाएं हैं 
शीत लहर है
सवेरा हुआ है
पर उजाला नहीं है

6

भोर का तारा है
उषा के आँचल में 
बच्चों की टोली है
शहरों के चौराहों पे 
सवेरा हुआ है पर 
माँ की मीठी
पुकार नहीं है

@शाको
स्वरचित
सुबह सुहानी बड़ी मस्तानी
लगती है हम सबको प्यारी

हरी हरी घास पर नंगे पैर
हम जब दौड़ लगाये
सुधर जाये सेहत हमारी।

मुर्गे ने जब बागँ लगाई
चिडियों ने भी कूंज लगाई
आलस छोड़ फेंक उठे रजाई
सुबह की लालिमा उतर आईं।

जाग गये बच्चे सारे
सुबह की करने लगे तैयारी
पापा को भी है आफिस की तैयारी
मम्मी तो है किचेन मे बीजी।

दादी को है पूजा की तैयारी
सुबह की पूजा की बात निराली
रात बीती है तभी आई है सुबह
सब हो गये है कितने बीजी।

हर रात की सुबह होती है
जैसे होते है सुख दुख जीवन में।
दुख के बाद सुख आता है
यही है मानव का जीवन दर्शन।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।


सुखद सबेरा हो सबका,

प्रभु भक्ति में लीन रहें।
रहें सुखी सभीजन जग में,
नहीं कोई गमगीन रहे।

ईश प्रार्थना करूँ सबेरे,
प्रभु ऐसा मुझे आशीष मिले।
क्या चाहिए मुझे जीवन में,
गुरूजनों का शुभाशीष मिले।

हृदय निर्मल हो जाऐ मेरा, 
कुछ किसी के काम आऊँ।
चंद दिनों के इस पुतले को,
सुखद सृजन में लगा पाऊँ।

कुत्सित विचार भावनाओं से,
रोज सुबह सबेरे मुक्ति पाऊँ।
अंतर्मन प्रफुल्लित हो जाऐ,
ईश विनय कर भक्ति वर पाऊँ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



अंधेरा ही नसीब है तो अंधेरों पर सब छोड़ दिया
देख अंजाम आंसू का आंखों ने नम होना छोड़ दिया
तकदीर का उजाला लिख उसके क़िस्मत में
मेरे चौखट पर आकर सवेरे ने दम तोड दिया

क्या हाल किया है देख अंधेरा मेरा
कोई तो जाके दे उसे संदेशा मेरा
मैं पलकें बिछा कर इंतजार में हूं
जाने क्यूं रुठ के बैठा है सवेरा मेरा

ओस गिरती रही रात भर
लगता है रात रोती रही रात भर
धरती का दामन भीग गया पूरा
और भोर सोती रही रात भर





हुआ सवेरा , तो आकाश में सूर्यदेव का आगमन हुआ !

हुआ सवेरा , तो पंछियों का चहचहाना आरम्भ हुआ !!
होने पर सवेरा , एक उज्जवल भविष्य की आस में , सभी अपने काम पर निकल पड़े ! 
स्त्री ने रसोई सम्भाली , गृहस्थी ने कारोबार व पशु-पक्षी झुंड बनाकर , भोजन की तलाश में चल दिए !!
विधाता ने हर समय को बहुत सोच-समझ कर बनाया !
एवं कदम-कदम पर , हमें समय का महत्व समझाया !!
उसने सवेरा बनाया , भविष्य के उजाले के लिए !
उसने दिन बनाया , पुरुषार्थ करने के लिए !!
उसने रात बनाई , दिन-भर की थकान को दूर करने के लिए !
व उसके बाद , आने वाले समय के मधुर-मधुर सपनों में खो जाने के लिए !!
इसलिए हर समय का अपना एक अलग महत्व है !
जिसकी उपयोगिता को समझना , हम-सबके लिए अत्यंत आवश्यक है !!




मुर्गे की पहली बाँग पर,
सूरज अंगड़ाई लेता है।
चांद उनींदा होकर ,
गहरी उबासी लेता है।
निशा बिखरे केशो को,
जुडे में खोस देती है।
तब विटप की फुनगी से,
सुबह झाँकती दिखती है ।
सवेरे की अगुवाई में
ओस मोती सी बिछ जाती है।
रश्मि कण कण में बिखर,
राहों में दीप जलाती है।
धूप अगरबत्ती की खुशबू ,
तन मन महकाती है।
मंन्दिर की घण्टियाँ,
मंगल गीत गाती है।
भोर की बेला जीवन में,
आस्था की जोत जगाती है।
ये स्वर्ण बेला जीवन में,
उत्सव लेकर आती हैं।
कलियाँ चटकने लगती हैं ,
फूल खिलने लगते है,
भ्रमर तितलियाँ मकरन्द से,
मदहोश होने लगते हैं।
भोर भी इक रुपसी सी,
छम छम पायल पहन निकलती हैं।
पंछियों के कलरव से शहनाई सी बजती है।
बैलों की घण्टियाँ भी खेतों को जगाती है,
लुहार की घौंकनी उत्साह सी
सीने में उतर जाती है।
कुम्हार की चाक पर भोर बैठ चक्कर खूब लगाती है,
भूले बटोही को उजली राह दिखाती है ।
पनघट चहकने लगते है,
दर्पण बहकने लगते हैं,
बच्चों की किलकारियों से,
घर आंगन महकने लगते हैं।
सवेरे की उजासी हर तम को मिटाती है,
इसकी भोली सी मुस्कान जीवन सफल बनाती है |


बीती रात सवेरा आया 
तम के बंधन तोड़ के आया 

जो भी था वो बीत गया है 
पल पुराने छोड़ के आया 

आशाओं के धारे को 
बार-बार मोड़ के लाया 

किरणों के रेशम तारों में 
सुख के मोती जोड़ के लाया 

सपना सक्सेना 
स्वरचित



सुबह बड़ी सुहानी है
जाग उठे सब प्राणी  है ।।

गीत गा रहे सब मिलकर
बागों में मस्त जवानी है ।।

चम्पा और चमेली फूले 
नदियों में मस्त रवानी है ।।

निकल पड़े हलजोत खेत को 
मेहनत की रोटी खानी है ।।

प्रकृति के संग खेलो कभी
प्रकृति बड़ी दीवानी है ।।

वो भी सजती धजती है
सुबह का न कोई सानी है ।।

ढूड़ो खुशी तो बिखरी है
कदर न हमने जानी है ।।

सुबह सुबह की सैर ''शिवम"
बुद्धि बल की महारानी है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



**सवेरा **
*******************

नयी शुरुआत लेकर आया
नया सवेरा 
उमंगें लेकर आया 
आशाओं का मेला
उड़ा परिन्दा आसमान में 
छोड़ा अपना बसेरा 
मुट्ठी भर सपने लाया
नया सवेरा 
कुछ स्वपनिल सृष्टि 
और मीठी अनुभूति लाया 
नया सवेरा 
जीवन पथ में चलते रहना
लड़ते रहना
शौर्य तिलक है सजाना
ऐसा नव संचार लाया 
नया सवेरा 

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल




" सवेरा"

हुआ संतरी आँचल नभ का,
धरती पर किरणें फैली,
पंख फैला छूने नभ को,
चिड़ियों की उड़ गई रैली,

नई उम्मीदों को लेकर ,
सवेरा नया आता है,
ओस की बुंदे मोती का रूप लिए,
घास को गहनों की तरह सजाता हैं,

काली अंधेरी रात के बाद,
उजियारा छा जाता है,
दुख के बाद आएगा सुख,
ये सवेरा ही सीखलाता है।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/7/18
वीरवार



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