1 ईश्वरईश्वरीय रचना,अद्भुत रचना
खग-विहग,जल ,जंगल
सौंदर्य संपदा अद्भुत रचना।
मैनाक कुंदन मणियों जड़ित
निशा समय मादकता
सम्पूर्ण अनुपम अद्भुत रचना।
देवदूत सी धरा, कनक रूप कामिनी
पल-पल निहारती हरियाली
मनोहारी अद्वेत रचना।
मातृ-पितृ छाया अनमोल
सौभाग्य मुदित,अनमोल रचना।
वंशीधर वंदना धरा
करताल सी तरंगिणी
ईश्वरीय अद्वेत रचना।
अलौकिक चंद्र किरणें
धरा कर रही पान
धुति रूप धारिणी
प्रभामयी रचना।
महाशंख,महर्षि प्रस्फुटित ज्ञान-वाणी
मनभावनी पवित्र रचना।
भव्य भूमण्डल,तारामंडल
प्रसून रूपी जगतारिणी
अद्भुत ,अमिय रचना।
कृषक हलधर स्वर्णिम भूमि
धान उपजे,लहलहाती धरा
अनुपम अद्भुत रचना।।
*वीणा शर्मा
पंचकूला
स्वरचित मौलिक रचना
ईश्वर एक अनुभूति है
उसी की बोलती तूती है ।।
वो जो चाहे वो होता है
इंसा कठपुतली बन रोता है ।।
कभी हँसता है कभी गाता है
क्या क्या अर्थ वो लगाता है ।।
वो रहस्य जो कोई जान न पाये
जितना जाने वो कम कहलाये ।।
अखण्ड ऊर्जा का स्रोत वो
ज्यों जलती कोई ज्योत वो ।।
जग नियंता वो कर्ता धर्ता
साकार रूप बन दुख हर्ता ।।
हम सब में उसकी हस्ती है
पर ये नश्वर काया डसती है ।।
उससे मिलने में व्यधान करे
उसके अनुरूप न पग धरे ।।
जुड़िये वो जो अखण्ड ज्योत है
कौन कितना उससे ओतप्रोत है ।।
सद मार्ग ही ''शिवम" पहुँचायेंगे
उसका रस्ता हमको सुझायेंगे।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जो भी देखते हम सब रचना।
सुबह शाम दिन रात बनाऐ,
सुंन्दर सुखद प्राकृतिक रचना।
यह हरित धरा हरयाली छाई।
रक्तिम रश्मियां रवि की आई।
मोती समान जो चमकती बूँदे,
ओस की हैं जो सब प्रकृति लाई।
जीव जंन्तु सभी प्राणी बनाऐं।
ताल,तडाग, तरू ईश बनाऐ।
सुंन्दर बाग बगीचे ये फुलवारी,
प्रभु ने यहाँ मधुरम दृश्य बनाऐ।
प्रकृति की सब अलौकिक रचना।
यहाँ कितनी अजीब अद्भुत रचना।
सुखद अनुभूति होती है हम सबको,
जब हम सबजन निहारते हैं ये रचना।
परमपिता परमात्मा परमेश्वर,
ये सभी नाम तो हैं इस ईश्वर के।
राम, रहीम, ईशा, गुरूनानक जी,
हम सभी वंन्दे हैं अखिलेश्वर के।
जीवन मरण सब है ईश के हाथों में
इन पर नहीं चलता जोर किसी का।
क्षणभंगुर है जब ये जीवन अपना,
क्यों दुखाऐं हम हृदय किसी का।
आओ मिलजुल कर प्रेमाश्रय ढूँढें,
प्रेमपूर्ण हम ये सुखी जीवन जी लें।
सुसंस्कार और मर्यादाओं में रहकर,
हम इस जीवन को मनभावन जी लें।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
सर्वव्यापी तू ही निराकार है l
तुम ही अल्लाह तुम ही ईश्वर ,
सब प्राणियों का तुम ही आधार है ll
तुम बिन यह जीवन निराधार है ,
तुम से ही घृणा तुम से ही प्यार है l
तुम ही धरती तुम ही हो आसमान ,
तुम से ही यह सारा संसार है ll
हे ईश्वर यह जीवन तेरा उधार हैं ,
तुम बिन खुद की कल्पना बेकार है l
मानव जीवन दे कर श्रेष्ठ बनाया ,
मुझ मूढ़ तेरा असीम उपकार हैं ll
मैं नया नवेला मेरे लिए नया संसार है ,
कुछ समझ न आता विकट मझधार है l
फिर भी मन में मेरे कोई संसय नहीं है ,
संग में मेरे जो रब तुम सा पतवार है ll
तुम ही जन्मदाता तुम ही पालनहार है ,
तुम ही भूख प्यास मेरे तुम ही आहार है l
तुम बिन कुछ भी सूझता नहीं है मुझको ,
तुम ही तीज तीरथ तुम ही मेरा त्यौहार है ll
विष्णु उसका पालनहार....
शिव करते हैं सब संहार....
त्रिदेव रूप ही ये संसार.....
मात-पिता जन्म दिया है...
दोनों मेरे ही पालनहार...
सब अवगुण मेरे हर लीन्हे...
मात-पिता है मेरा संसार...
नहीं देखा मैंने कोई ईश्वर...
जगत रचाया जो जगदीश्वर....
नहीं सुना कानों में उसको...
नहीं हुआ वो मुझसे मुखरित...
हुआ पैदा तो माँ को देखा....
पिता मेरे ने गोद उठाया....
माँ ने मुझको मधु चटाया....
माँ ने मीठी लोरी को गाया....
जब दुःख मुझको कभी घेरा...
बहुत पुकारा त्रिदेव न आया....
हाथ जोड़े माथा भी मैं रगड़ा...
वो कभी मेरे सामने न आया....
बिन बोले बिन कुछ पूछे मुझसे...
माँ ह्रदय मेरे की भाषा बोली....
पिता मेरे ने पकड़ी जो उंगली...
दुःख से मुझे उभरना सिखाया....
माँ बाहों में जब झूला झुलाया....
बैकुंठ धाम तब समझ में आया...
पिता मेरा जब घोड़ी बन बैठा...
पुष्पक विमान मेरा तब आया....
मेरे इश्वर हैं मुझ में समाये...
मैं इश्वर का अंश कहलाया....
मात-पिता के चरणों में मैंने...
सब तीरथ का संगम पाया...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
शीर्षक - ईश्वर
हे! ईश्वर इतना वर दो
दिन ईद रात दीवाली हो
भूखा प्यासा रहे न कोई
भरी हुई हर थाली हो
आंसू हों बस खुशियों के
आंगन में खुशहाली हो
खेलता खाता बचपन हो
झूमता गाता माली हो
चांद सितारों सा हो आंचल
रात ना कोई काली हो
राहों पर ना भटके जीवन
छत एक छप्पर वाली हो
मुसकानों से लदी फदी
हर विरवा की डाली हो
सपना सक्सेना
स्वरचित
अम्बर हैं एक खुशियाँ हैं अनेक .
सबको बनाने वाला ईश्वर हैं एक
ईश्वर की महिमा हैं बड़ी प्यारी
जिसके दिल में हैं खुशियाँ सारी.
निराकार रूप हैं जिसका
ह्रदय की धड़कन में आवाज हैं उसकी
हर रूप में ईश्वह का रूप बसता हैं .
कभी प्रकृति में कभी पंछियों की चहक में
कभी मासूम बच्चपन में कभी किसी के
ईमान में कभी किसी के फरेब में .
पहचान लो ईश्वर के स्वरूप को
अच्छे रूप में उसका गुणगान करो
उसकी भक्ति में ढल जाओ सबकी
नैया को पार लगाने वाला ही
ईश्वर हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
मन में गूंजाता मैं ईश्वर
अगले क्षण का ही कुछ पता नहीं
तूने जीवन दिया ऐसा नश्वर।
तेरा ही अद्भुत सृजन सारा
नदिया मीठी सागर खारा
कहीं तो पानी जम जाता
और कहीं चढ़ जाता है पारा।
तेरी अद्भुत जो सबसे चीज
हम उसे कहते हैं बीज
इस बीज का चमत्कार ऐसा होता
तेरी कृति पर सब जाते रीझ।
बीज का चरित्र नहीं बदलता
फूलों का माधुर्य इत्र में ढलता
चन्दन से ही सुगन्ध पथ निकलता
कमल तो दलदल में पलता।
तेरे पथ पर सदा आनन्द है
क्योंकि तू ही तो परमानन्द है
मेरा विश्वास है तू मेरे मन में
हर समय घूम रहा स्वच्छंद है।
केवल एक अनुभूति , एक आभास है !!
उसका स्वंय का कोई आकार नहीं , किन्तु उसने सारी सृष्टि को साकार बनाया !
ब्रह्माण्ड के एक-एक कण को उसने ,
बड़ी खूबसूरती से है सजाया !!
कहीं प्राकृतिक सौन्दर्य है , तो कहीं भौतिक सुख के साधन !
कहीं है भक्ति-मार्ग सुहाना , कहीं टेढ़ा-मेढ़ा भी जीवन-यापन !!
विचित्र है उस प्रभु की माया , कहीं पर धूप , कहीं पर छाया !
उसका पार तो ब्रह्मा आदि , देवताओं ने भी नहीं पाया !!
हे ईश ! तुझसे प्रार्थना है कि दुर्गुणों से बचाते रहना !
एवं सद्बुद्धि देकर , सन्मार्ग पर चलाते रहना !!
तूझे कोटि कोटि प्रणाम है
तू ही आदि तू ही अंत है
तू ही शून्य तू ही अनंत है
परा अपरा तेरी शक्ति है
तूझसे ही अंधकार और ज्योति है
तू ही सृष्टि का आधार है
हम सब तेरे ही संतान हैं
जीवों में तेरा ही अंश है(सूक्ष्म अंश)
तेरे विस्तार ही ब्रह्मांड है
अद्भुत तेरी रचना है
तू ही सृष्टि तू ही विनाश है
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
मुस्काती पली
ये फूल जब खिलता है
हाँ ईश्वर दिखता है...
एक मदद का हाथ जब
जरुरतमंद को थामता है
जहां रहते मिलके धर्म सभी
एक पता रहता है
हाँ... ईश्वर दिखता है...
रवि आता रश्मि संग
तम को जब निगलता है
तारों के बीच मुस्काता चंदा
चाँदनी संग निकलता है
हाँ... ईश्वर दिखता है....
निर्दोष भोला बचपन
चंदा के लिए मचलता है
माँ की आंखों का प्यार जब
ज्वार बनकर उमड़ता है
हाँ... ईश्वर दिखता है....
ऋतुराज दवे
हिन्दू करे अराधना उसकी,
मुस्लिम करे इबादत उसकी,
बाँट दिया धर्मानुसार,
फिर भी करे सबका उद्धार.
कौन हो तुम, कैसे पहचानूँ,
भिन्न -भिन्न हैं रूप तुम्हारे,
कण-कण में हो तुम समाये,
सबपे कृपा तुम करते हो,
कहीं नजर नहीं आते हो.
तेरी महिमा तू ही जाने,
माया रूपी इस संसार मे,
तूने लिए कई अवतार
हरी-भरी धरती है बनाई,
नील गगन भी बनाया अपार.
तुमने दी है हमें ये काया,
संसार में है तुम्हारी माया,
नित्त करते हो चमत्कार ,
फिर भी, ईश्वर बँट गया है आज !!
"संगीता कुकरेती "
क्या आप आस्तिक
या नास्तिक हैं
क्या आपकी कोई कसौटी है
या आपका कोई प्रतीक है
आप कहाँ रहते हैं
मंदिर,मस्जिद, गुरूद्वारा या गिरिजाघर में
क्या आप धर्म
या दर्शन
या कर्म हैं
या मात्र कल्पना
या हकीकत हैं
आप कब से हैं
अनादिकाल से
या अभी-अभी से
क्या आपका भी जन्म होता है
क्या आपका भी अंत होता है
क्या आप मोक्ष
या निर्वाण
या समाधि
या ध्यान हैं
क्या आप शून्य
या अनंत हैं
क्या है आपका अस्तित्व
मुझे मालूम नहीं
क्योंकि मैं जानता हूँ
इस संसार में
लोग बुद्ध पर भी पत्थर
फेंकते हैं
महावीर के कानो में भी कीलें ठोक देते हैं
ईसा को भी फांसी दे देते हैं
कृष्ण को भी अर्जुन
कभी ईश्वर नहीं कहते हैं
हे ईश्वर
जगत मूच्छा है
आप अमूच्छा हैं
आप कण-कण में हैं
आप जगत में भी हैं
और जगत के पार भी हैं
आप अनुभव में भी हैं
आप अनुभव में नहीं भी नहीं हैं
आप परम अभिव्यक्ति हैं
आप स्वयं सत्ता हैं
आप में ही अस्तित्व है
आप ऐश्वर्यपूर्ण विभूति हैं
आप योगशक्ति हैं
आप जीवन का
परम रहस्य हैं
आप जीवन का
परम आधार हैं
आप परम उत्कर्ष हैं
आप अंतिम सीमा हैं
हे ईश्वर
आप अकल्पनीय हैं
स्वतःस्फूर्त हैं
आप स्वशासित हैं
सच कहूँ तो
आप प्रेम हैं
आप सत्यम् शिवम् सुन्दर् हैं
आपको कहीं बाहर
ढूंढने की जरूरत नहीं
आप अंदर ही रहते हैं
बस आपको जानने के लिये
आत्मा ज्ञान की जरूरत है
@शाको
स्वरचित
ईश्वर निराकार,
रज रज में दीप्त,
पूर्ण अलौकिक प्रदीप्त,
अनुपम ब्रह्माण्ड रचियेता ,
आदि एवं अन्त प्रणेता,
पालनहार नारायण स्वरूप,
मोक्ष गामी साक्षात शिव रूप,
उत्कृष्ठ जीवन उत्प्रेरक,
अलौकिक चैतन्य रूप,
सौन्दर्य से परिपूर्ण,
सत्य प्रकाशित पुंज,
निश्चल भक्ति प्रारूप,
परम शक्ति स्वरूप,
निष्कपट ,उदार ,कल्याणकारी,
दयालु ,कृपालु ,हितकारी,
मर्यादित प्रेम ,प्रीत ,सदाचार
उत्तम धर्म ,दर्शन ,आचार
अनन्ताअनंत भवों के ज्ञाता,
सम्पूर्ण सृष्टि के भाग्य विधाता,
अन्तःकरण शुद्धि दायक,
परमज्ञानी ,परमब्रह्म,
साक्षात ज्योतिर्मय,
मात- पिता ,गुरू तुल्य,
ईश्वर की अनुभूति से,
ह्रदय हुआ वशीभूत,
बारम्बार जयकार करे,
होकर अभिभूत ।
स्वरचित : मिलन जैन
तुम न हो तो जीवन ही नहीं l
इस ब्रम्हांड के ग्रह-उपग्रह
आकाश-पाताल, लोक-परलोक
मेरे आगे भी तुम्हीं से है
मेरे पीछे भी तुम्हीं से है,
हे ईश्वर !
कैसे ढूंढू तुम्हें
ये सृष्टि विराट ही विराट है
और कहीं नहीं दिखता किनारा
हर तरफ बिखरी है पृकृति
तेरी बनाई माया ही माया,
हर तरफ ये मायावी जाल
आनें न देता तुझ तक हमें
और सांझ होकर जिन्दगी
फिर भुला देती तुम्हें l
हे ईश्वर !
कभी मिला ले मुझ अंश को भी
तेरे विराट अमर अस्तित्व में,
तोड़ के बंधन मोह-माया के
जन्मों के इस संदर्भ में,
तुम्हीं मेरे अन्त-अनन्त हो
और तुम्ही हो मेरे ध्यान
इन ग्रहों के किस ग्रह में है
आखिर तेरा सुन्दर स्थान,
हे ईश्वर !
तुम हो तो जीवन सत्य है
तुम न हो, तो जीवन ही नहीं l
--श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर (मैसूरू)
कहते हैं जिन्हें "ईश्वर ",
एक वो ही तो है मेरा वर l
है मेरा सम्पूर्ण संसार
निहित जिसमें l
ये सूर्य, चन्द्र, तारे,
धरती और आकाश,
इनसे बसे सर्वोपरि हैं,
है उन्हीं का वास l
नहीं वो कण कण में,
रखो ये विश्वास l
वो तो एक सम्पूर्ण
सर्वोच्च हैं सत्ता, हैं
बस परमधाम के रहवास l
महिमा उनकी अपरमअपार l
ग्यान के सागर वो तो,
अंधकार जग का मिटाने
लेते हैं अवतार l
अवतरित होते वो
साधारण से तन में ही
नहीं पाता उन्हें,
पहचान ये संसार l
पतितों को पावन बनाने
का उनका ही व्यौपार l
सत्य तो ये है,
नहीं इस लेखनी में सामर्थ्य
लिख सके जो यूं
"उनका "ही विस्तार l
पहचान सको तो
पहचान लो "उनको ",
दिव्य चक्षु ग्यान के से
हो ही जाएगा "उनका "
तुम्हें यूं साक्षात्कार l
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