Friday, July 6

"कलम"06जुलाई 2018


चंद हाइकु
विषय "कलम"
(1)
खिले "कलम"
इंद्रधनुषी रंग
भाव गगन
(2)
आँसू की स्याही
"कलम"का आक्रोश
उकेरे दर्द
(3)
सत्य पे खड़ा
"कलम" का सिपाही
झूठ से लड़ा
(4)
दी पहचान
"कलम" ने दिलाया
भावों को मान
(5)
चेतना जगी
"कलम" की फूंक से
कुर्सी भी हिली
(6)
सत्य का अस्त्र
"कलम" की लड़ाई
असत्य पस्त
(7)
साहित्यकार
"कलम" का पुजारी
दबी चिंगारी

ऋतुराज दवे


कलम
""""""""

सदियों से उकेरती रहीं हूँ
अनगिनत भावो को
उगलती रही मैं...
खुद को मिटाकर, जलाकर
लकीरों में तब्दील हो
आग,जज्बात, प्यार, फुंहार
लिखते-लिखते अब
भौतरी हो गई हूँ....
साहित्य को श्रंगारित किया
वीर रस भी बहाया
हास्य से मन बहलाया
क्रांतियों की ज्वाला बन
देश प्रेम जगाया....
शहीदों के खूं की हर बून्द पर
मैंने अपना रक्त बहाया
और तुमने.....?
कलम की ताकत को बिसराकर
वेद,कुरान, बाईबिल, गीता बनाया
महज़..इन्हें किताबें समझ
मानवता को लजाया...
क्या अब मेरी स्याही सफेद हो गई है
या....कोई कबीर नहीं बनना चाहता है??
कलम को हथियार बना लो
कलम घसीट मत बनो
दरिन्दे जल जाऐ जिस आग में
कलम से वो ज्वालामुखी बहा दो.. 

दिनांक 6.7.18
विषय कलम
रचयिता पूनम गोयल
आज़ कलम चलेगी मेरी , कलम विषय पर !
लिखना है बहुत-कुछ मुझे , इस कलम विषय पर !!
कलम चले तो , वीरों के सीने धधक उठें !
कलम चले तो , सोये हुए ह्रदय भी जाग उठें !!
कलम चले तो , वह मौनव्रती के व्रत को तोड़ दे !
कलम चले तो , वह सारी दुनिया को जोड़ दे !!
कलम की ताकत बेपनाह , बेमिसाल है !
इसके सामने तलवार की धार भी बेकार है !!
बड़े-बड़े ऋषि-मुनि व सन्तों ने , कलम से ही विविध ग्रन्थों का निर्माण किया !
कलम से ही देशभक्तों ने , वीरों की गाथा गाकर , देश का नाम रोशन किया !!
मैं क्या कहूँ ? कैसे कहूँ ? इस कलम की ताकत के विषय में !
शब्द कम पड़ जाएँ लिखते-लिखते , इसकी ताकत के विषय में !!
बस ईश्वर से यही प्रार्थना है मेरी कि 
चलती जाए कलम यह मेरी !
एवं हरदम अच्छे से अच्छा , 
लिखती जाए कलम यह मेरी !!

" क़लम "

क़लम और तलवार में कौन अधिक शक्तिशाली होती है

अक़्सर ऐसी बहस लोगों के बीच होती है

दोनों के ही हैं अलग अलग धर्म और क्षेत्र कार्य के

एक लिखती है फैसला तो दूसरी सिर उतार लेती है

एक जीतती है युद्ध पर युद्ध तो
दूसरी जीती जमीन का बंदोबस्त करती है

अतः नहीं हो सकती कोई विरोध इनमें या फ़िर तुलना

अक़्सर ये दोनों हर समय एक दूसरे के साथ और पूरक ही होती हैं

(स्वरचित)

जब साथ न कोई देता 
तब कलम उठा लेता 
सुना है सदा से ये 
जग की रही प्रणेता

हँसने में भी संग संग
रोने में भी संग संग
कोई जग नही ये
जो मुँह बना लेता 

जितनी करूँ प्रशंसा
उतनी कम कहाय
हर गमगीन को ये
गले से लगाय 

कलम के सहारे
कई जिन्दगी बिताय
कलम ने प्रभु के
दर्शन कराय 

कलम ने मैदान में
युद्ध भी जिताय
कहाँ नही कलम ने
जादू दिखाय 

चंद छंदों में ये
वर्णित न की जाय
कितने अनसुलझे पथ
कलम ने सुझाय 

चहुँ ओर चमत्कार
कलम से दिखाय
मानव की सुन्दरता में
चार चाँद भी लगाय

जानिये ''शिवम"
कलम के ये मरम
कवि हो तो कलम के
निभाइये धरम 

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


मेरे मन के आकाश पर,

नित कल्पना के बादल छा जाते हैं।
उमड़ते हैं, घुमडते हैं ,
बारिश कर जाते हैं,
मन के हर पोर को भिगो देते हैं।
मैं बावरी ,उनमें खो जाती हूँ,
भावों में डूबी माण्डणे सजाती हूँ।
ये बारिश मुझ में ठहर सी गई है,
इसकी सोंधी खुशबू ,मुझमें रच बस गई है,
नन्हीं कोंपलो से कँवले भाव स्फुटित होते हैं
मेरे सम्पूर्ण मस्तिष्क में हरा रंग बिखेरते हैं,
टेसू गुलाब जूही के जैसे शब्द कलम से महकते है,
मेरी महकती कल्पना मेरे सृजन में ताज़गी भर देती है,
मेरे तन मन को सुखद अहसासों से दीप्त करती है,
सम्पूर्ण सावन मैं स्वयं में मनाती हूँ ,और 
सावन में भीगकर स्वयं में,
हर मौसम का मुख चूम आती हूँ।
कभी पतझर सी झरती हूँ,
कभी सूरज सी पिघलती हूँ,
कभी फागुन सी बहार हूँ,
तो कभी शीत की बयार हूँ,
मेरी कल्पना हर मौसम का श्रृंगार करती है, 
और मेरा मुझसे ही परिचय कराती है।
ये कल्पना के जो बादल हैं ,
बड़े चंचल हैं,
शरारत भी करते हैं, उपद्रव भी करते हैं,
पहाड़ो से टकराते हैं, 
बिजली भी गिराते हैं, 
पर मानते नहीं,
गिरते पडते रहते हैं,
मगर सुनते नहीं,
जी भर के शोर मचाते हैं, और
भावों में उतर जाते हैं।
मेरी कलम मेरी कल्पना के सारे नाज़ उठाती है,
मेरे भावों को समझती है कागज़ पे सजाती है,
मैं मेरी कलम की पूजा करती हूँ रात दिन,
क्योंकि वो प्रतिपल प्रतिक्षण मेरा साथ निभाती है।
मेरी कलम मजबूत है, बाहरी झंझावतों से न टूटती है ,
ना बिखरती है,
बस सावन की तरह मेरी रूह तक को भिगो देती है I
कलम मेरी कभी कोयल सी कूकती है
कभी शिखी के पंखों सी इन्द्रधनुषी छ्टा बिखेरती है
मैं कलम की नाव में बैठकर,
भावों में गहरे गोते लगाती हूँ,
और हृदय के समन्दर से,
चुन चुन के मोती लाती हैं ।

स्वरचित : मिलन जैन

गिरा बडा है वकार, जब जब झुकी कलम है। 
कहाँ बचा है मयार, जब जब बिकी कलम है।


हौसलो के हर्फो में, हिम्मत की लिखावट है। 
थके थके हम यार, जब जब थकी कलम है।

तहरीर ने लिखे है यहां, तहरीक के अन्जाम। 
रुके हैं सिलसिले के जब जब रुकी कलम है। 

लिखे हैं दर्द भरे जाने, ये कितने ही अफसाने। 
हंसी की बरसात हुई ,जब जब हंसी कलम है।

इसकी कुर्बानियों के सिलसिलो की हद नहीं। 
फूंक दी जान वतन मे जब जब फुंकी कलम है। 

विपिन सोहल

प्रभु कलम सद् साहित्य सृजन करती रहे।
मेरी कलम सदा तुम्हारे भजन लिखती रहे।

कलम चले ऐसी चले हे परमेश परमपिता,
यह रूके नहीं कुछ मादरे वतन लिखती रहे।

कलम लिखे तो कुछ समाजोपयोगी बने।
कलम लिख सके वही जो सदुपयोगी बने।
जब कलम हाथ में थामूँ हो सुखद सृजन,
लिखूँ तो हे परमात्मा जो जनोपयोगी बने।

कलम चलाऊँ जिसमें मातृभूमि विजय हो।
कलम चलाऊँ जिसमें मेरे वीरों की जय हो।
कलम सदैव चलती रहे मेरी ये अखिलेश्वर,
जिसमे सदियों तक माँ भारती की जय हो।

लिखूँ तो ऐसा कि मै झकझोर सरकार दूँ।
लिखूँ कुछ व्यभिचारियों को तिरस्कार दूँ।
गर चले कलम मेरी कहीं तो ऐसी चले प्रभु,
लिखूँ तो कुछ ऐसा कि समाज को उपहार दूँ।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

कलम तुम अभय हो , 
निडर हो ,निर्भय हो l
दूर कर,सघन अँधेरा ,

बनकर नया सबेरा l
विप्लव का गीत लिख ,
सत्य की जीत लिख l
भाई का भाई से प्रीत लिख ,
बदलाव की नयी रीत लिख l
मान सम्मान भूल जा ,
सत्य लिखने पर तूल जा l
आशाओ की नई रह बन ,
दबे कुचले की कराह बन l
मूक की आवाज बन ,
जनमन का अंदाज बन l
घृणा छोड़ प्रेम की धार बन ,
मूढ़ विचारो पर प्रहार बन l
झूठ का प्रतिकार हो ,
सत्य सदा स्वीकार हो l
ऐसा तू कहानी गढ़ ,
हार मत आगे बढ़ l
चाणक्य के लाज तुम ,
अशोक के आगाज तुम l
राणा की ललकार तुम ,
रानी की तलवार तुम l
सदा सर्वदा तुम अजय हो ,
हर जंग में तुम्हारी विजय हो l
अभय हो ,तुम निर्भय हो ,
कलम तुम्हारी जय हो l
........................................
...............BP....................
ये कागज, कलम और 
तूं जिन्दगी
उस वक्त से साथ हैं

जब बहारें आती थी खेत में,
जब पैर जलते थे रेत में,
जब झूले खुलते थे शाम को,
जब भोर होती थी काम को,
जब पनघट पर भरनें आती थी पानी,
क्या मधुर थी जिन्दगानी !
वो परम्पराएं ही कुछ गीत थी
जीवन का संगीत थी,
ये कागज, कलम और तूं जिन्दगी 
उस वक्त से साथ हैं l

फिर पायल खनकी थी एक दिन
प्यार की बजी थी धुन,
पिघलती लय में गीत बजा था
तेरे सुर का साज़ सजा था,
अंकुर फूटे थे इक पौध के
ममता की उस गोद के,
फिर तूं गुनगुनाई थी
मुझे कलम याद आई थी,
महक रहा था जीवन-मधुवन
रीत चली थी जनम-जनम,
बागडोर सौंपे आगे
हमसे नया अंकुर जागे,
काश कोई मधुवन बन जाए
फिर कलम अपना काम कर जाए
ये कागज, कलम और तूं जिन्दगी
उस वक्त से साथ हैं l

पर बहुत मुश्किल है सपना
जीवन भी नहीं है अपना,
अब खिलते नहीं राह में फूल
नहीं जगह है कहीं पनघट को
पैर नहीं जलाती धूल,
परम्पराएं ही रूप खो चुकी
अपनों से पराई हो चुकी,
पनघट अब सपनें हो गए
झाड़ी के काँटे कहीं खो गए,
शाम तो होती कहां है
दिन बेचारे कभी सो गए,
उम्र की सीढी बची है
इस तरह मेंहदी रची है,
उड़ रही जीवन की रेत
कहां रहेंगे मेरे खेत,
आदमी बढता गया है
वक्त से लड़ता गया है,
तस्वीर को कैसे झुठलाऊं
छांयां ही छोटी हो गई है
जिन्दगी, तूं खो गई है
ये मेरे मन की बात है
कि
कागज और कलम ही
बस मेरे साथ है l

श्रीलाल जोशी "श्री "
तेजरासर (मैसूरू)


कलम 
------

इतिहास गढ़ता हूं
तकदीर रचता हूं 
बेमिसाल ईजाद हूं 
बस छोटा दिखता हूं 

जिधर चल दूं 
जमाना चलता है 
अपनी आहट से 
धड़कन लिखता हूं 

ना आंखे हैं 
न जुबान फिर भी 
हर शय पर 
गिरफ्त रखता हूं 

तुम ही रखो 
शौक हथियार का
कलम हूं !
तेज धार रखता हूं 

जिद पर आ जाऊं 
तो कदमों में ले आऊं 
प्यार से खरीदो 
कौड़ी में बिकता हूं ।

सपना सक्सेना 
स्वरचित


तेरे दिल की कलम ,
मेरे दिमाग की कलम।
तुझे प्यारा है सनम,
मुझे प्यारा है वतन।
तुझे प्यारा है धरम,
मुझे प्यारा है करम।
तेरी सोच में फरक,
मेरी सोच में फरक।
तेरी बाते भरती है भरम,
मेरी बातें भरती है जुनून।
तू लिखता है चुम्बन,
मैं लिखता हूँ चुभन। 
तू लिखता है दरद,
मैं लिखता हूँ मलहम।

तेरी रूप रंग की कलम, 
मेरी खून की कलम।
तू बहकाता है हालात, 
मैं सुलझाता हूँ हालात।
तेरा जोश है अलग,
मेरा जोश है अलग।
तू लिखता गीता कुरान,
मैं लिखता वतन के लिए इंकलाब।
तू लिखता है अल्ला राम,
मैं लिखता आराम है हराम।
तू करता नैनो पर भरम,
मेरी नैने करती शहीदों 
को नमन।

"प्रदीप रामटेके"
लांजी,मध्यप्रदेश
हम तो है कलम के सिपाही
हमें रखना है इसका लाज।
नही करना है सिर्फ मनोरंजन के 
लिए इसका उपयोग।

कलम के तो है दायित्व भारी
इसे समझना होगा नर ओ नारी।
विसंगतियों से दूर रहकर
करना है इसका उपयोग।

जहाँ बड़े बड़े है दिग्गज हारे
वहा खड़े हैं कलम हमारे
डर कर नही डटकर चलेंगे
कलम हमारे।

भले ही रूठे दुनिया हमसे
रूठे ना कलम हमसे।
कलम के नाम है दुनिया में भारी
तभी तो डर जाये तलवार भी भारी।

रूके न कलम झूके न कलम
अनवरत चलते रहे सच्चाई का कलम
कलम तो है मात्र एक औजार
इसका सही उपयोग करना है हमारा काम।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।

कभी चले ठुम्मक ठुम्मक तो...
पैंजनियां छनकाये...
तुलसी के छंदों में तू...
राम धुन सुनाये....
बच्चों की हंसी में तू भी...
मिश्री सी घुल जाए....
कभी बारिश में भीगी कागज़ पे...
नाव चलती जाए....
बच्चों की हठखेलियों में शामिल तू...
सब मन मोह ले जाए......
बिलकुल नटखट बच्चे जैसे तू भी...
न जाने कब क्या कर जाए....

जवाँ दिलों की धड़कन में तू ...
धक् धक् कर रह जाए....
बन आवाज़ खामोश दिलों की...
दिल को दे समझाए....
कभी टूटे जो दिल किसी का....
मरहम दे लगाए....
दर्द में जब कोई डूबा आशिक़, तू...
सैलाब भी ले आये....
उड़े चुनरिया गोरी की तो...
पवन ठहर जाए....
गाल पे काला तिल गोरी के...
कभी पहरेदार दिखाए....
जब लहराए पवन मस्त सी, तू...
ज़ुल्फ़ गोरी की लहराए....
कंगना...बिंदिया चमकी जब, तू...
बिजली बन गिर जाए...
कभी गाल गुलाबी बनाती, कभी...
लब पंखुड़ी से सजाये....
कितने रूप हैं तेरे कलम जी....
कैसे कोई बताये....

आती जब ठहरे हाथों में तो...
नया सृजन कर जाए....
ज़िन्दगी के हर सफ़े को तू....
खोल खोल समझाए.....
हर गली हर मोड़ हर बाग़ में बैठी...
तू अपने गीत सुनाये....
कभी दुहाई देती उम्र..जज़्बों की...
कभी देह चिल्लाये....
पर नासमझ ये दुनिया ऐसी, उसको...
तेरी बोली समझ न आये....

जात पात न धर्म लिहाज तुझे है....
तू सबके ताज सजाये.....
गीत गोबिंद कभी बने तुझसे, कभी...
गीता राह दिखाए....
बन कबीर तू दिल को खोजा....
नहीं बहरा खुदा बतलाये....
पहुंची जब सूरदास के हाथ में...
जग दंग देख रह जाए.....
कभी रसखान कभी मीरा में...
कृष्णा बोल सुनाये....

कभी बन लक्ष्मी बाई तू...
देश की आन दिखाए....
कभी वीरों के चरण कमलों में....
फूल बन बिछ जाए.....
कभी हिमालय पे ललकारे तू....
कभी सियाचिन जाए....
ज़िन्दगी और मौत का सच तू....
आँखों से दिखलाये....
माँ के जांबाज़ों को देती सलाम, तू...
रूह पिघल जाये.....
जब ललकारे देश के दुश्मन को तू....
शमशीर सी चमक जाए....
किस विद करून तुझे मैं वर्णन....
मुझे समझ न आये....
जब मांगू मैं सुकून खुदा से...
तू माँ की लोरी सुनाये....
क्या और कैसे करून मैं तुझको अर्पण...
दे किरपा कर बतलाये....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 


लम शिलालेख बनाती
पुरानी पुरानी बात बताती 
देश काल से अवगत कराती
एक सच्चा इतिहास लाती। 

कलम में एक से एक रस मिलते
सुन पढ़कर सब चेहरे खिलते
कई बार तो साम्राज्य भी हिलते
किसी के तो ज़ख्म भी सिलते। 

कलम से तुलसी और कलम से सूर
कलम से गौरी का घमण्ड हुआ चूर
कलम से पन्त दिनकर निराला
कलम से ही प्रेमचन्द हुए मशहूर।

कलम सबसे परिचय कराती
कलम दिलों को पास लाती
कलम यदि मंझी हो भावों से 
तो कलम ही नये गुल खिलाती। 

कलम देश काल सभ्यता की पहचान है
उस समय के रीति रिवाजों की खान है
युगों का एक जीवंत प्रमाण है
कलम ही बताती क्या होता विद्वान है।

कलम हमारी शक्ति है 
भावों की अभिव्यक्ति है 
अक्षर अक्षर का ज्ञान सिखलाती 
बच्चों का भविष्य संवारती

कलम दिल को दिल से मिलाती
दिल में आग भी लगाती
यह प्रियतम की बातें बताती
रुठे यार को भी मनाती

कलम से कभी मुसकाती खुशियाँ 
कभी-कभी बह जाते आँसू भी
कभी पराये हो जाते अपने
कभी टूट जाते रिश्ते भी

कलम से सत्य की समझ है
तो अपनाती भूल की ग्लानि भी
कलम हमारे मन की निचोड़ है 

कलम की भी क्या तकदीर है
बिना तलवार कत्ल करती है 
आज के जीवन की जादूई छड़ी है

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


कोरे कागज़ पर कलम के अल्फाजों से 
दिल के अरमान लिखती हूँ 
कुछ जिंदगी के नये अफ़साने कुछ तराने के 
कुछ गीत गजल लिखती हूँ .

कलम से कभी प्रकृति की हरियाली कभी 
नभ में उड़ते चहकते पंछियों की आवाज 
लिखती हूँ .

कभी किसी का कभी अपना दर्द 
कभी ख़ुशी दिल की कलम से 
बयां कर अपने जज्बात लिखती हूँ .

कभी अपना बच्चपन कभी अपने बच्चों 
का बच्चपन लिखती हूँ कभी गीत कभी 
गजल कभी कोई कहानी कोई कविता 
दिल की कलम से लिखती हूँ कभी आने 
वाले कल के नये अरमान लिखती हूँ .

जो भी लिखती हूँ दिल से निष्काम 
भाव से लिखती हूँ .
स्वरचित :- रीता बिष्ट

कलम

मै
ं कलम हूँ
शांत चित्त कार्यरत
दो उंगली जगह समेटे
संसार रचती हूँ।
अधखुले ख्वाबों को
सम्पूर्ण करने में
मन -मस्तिष्क में दबी
कश्ती तलाशती हूँ।
गहन अंदरूनी
भावों विचारों की कश्ती दौड़ा
अकेले ही अथाह सागर में
निडरता की पतवार लिए
दूर तक चली जाती हूँ।
मैं कलम,
बवंडरों को झेलती
कभी हृदय की धमनी सिकोड़ती
धीमें धीमें श्वासों को लेती
शब्दों को संवारती हूँ।
स्वयं धुंधलेपन को नकारती
स्पष्टता का आगाज़ करती हूँ।
गहन अंधकार में
चपला चमक से कभी न डरती
चमक को ढाल बना
मनसूबों पर अपने 
सुनहरी किरणें लगा
लेखनी को धारदार करती हूँ।
मैं निडर,स्वाभिमानी कलम
पर्वतों की चोटियों को लांघती
कँटीले, भयावह रास्तों से गुजरती
अंततः समाज के सुखद अहसास का सामीप्य पा
स्वयं की चेष्टाओ पर गर्व करती हूँ।
मैं कलम हूँ,
दायित्वों को समर्पित
दो उँगली जगह में राज करती हूँ।

वीणा शर्मा

 कलम
-------
1


कलम आवाज भी देती है 
कलम आवाज छीन भी लेती है 
है कलम जन की शक्ति
कभी जन को ताज भी देती है 
कभी जन से ताज भी छीन लेती है 
रंग हो स्याही का जैसा 
कलम वैसा काम करती है 

2

कोई धड़ कलम करता है 
कोई इतिहास कलम से लिखता है 
देखो है कलम का रंग कैसा 
कोई खेत में कलम रोपता है 
कोई अपनी जुल्फों का 
कलम कराता है
@शाको
स्वरचित


कलम
--------
समय की रेत पर

काल की कलम चले
कब ,कहाँ,क्या,कैसे
बांच जाये

बह गई रेत पर तो
कदमों के निशां छोड़ आये
रेला इक लहर का आये
सगरे निशान मिटा जाये

लाल स्याही में डूबे तो
रक्त की गाथाएँ लिख जाए
नील वर्ण में डूब कर
हलाहल संस्कृति रचा जाए

स्वेत पत्रक पर पाक पावनता के चित्र आंक दे
गुलाबी रंग हिना की खुश्बू
में रचे तो प्रीत की पाती लिख जाए

प्रलय में कलम यही पतवार
बनती है
विपदा आ जाये तो काल-कराल की तलवार बनती है

कागज की सड़क पर 
वक्त की कलम सरपट
दौड़ी जाये



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