"अनुराग'
कैसे दिखाऊँ तुम्हे मनाऊँ
है दिल मे अनुराग भरा
कृतज्ञ रहूँगी जीवन भर
ठुकराओ न अनुराग मेरा।
मान अपमान को करो किनारा
मत बनो गंधारी आज ।
देख सको तो देख लो आज
मैं लाई हूँ अनुराग की थाल।
समझ सकी न दुनिया सारी
केकैयी को भी था राम से अनुराग
बस मंथरा ने किया मतिभ्रम
दे डाली राम को बनवास।
भरत को भी था राम से अनुराग
सब जाने है दुनिया आज।
गोपियों को था श्री कृष्ण से
अलौकिक अनुपम अनुराग
उतार चढाव तो आये जीवन में
पर कम न हो अनुराग हमारा
तुम आज इसे समझ जाओ
अनुराग तो है जीवन का सार।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव
कैसे दिखाऊँ तुम्हे मनाऊँ
है दिल मे अनुराग भरा
कृतज्ञ रहूँगी जीवन भर
ठुकराओ न अनुराग मेरा।
मान अपमान को करो किनारा
मत बनो गंधारी आज ।
देख सको तो देख लो आज
मैं लाई हूँ अनुराग की थाल।
समझ सकी न दुनिया सारी
केकैयी को भी था राम से अनुराग
बस मंथरा ने किया मतिभ्रम
दे डाली राम को बनवास।
भरत को भी था राम से अनुराग
सब जाने है दुनिया आज।
गोपियों को था श्री कृष्ण से
अलौकिक अनुपम अनुराग
उतार चढाव तो आये जीवन में
पर कम न हो अनुराग हमारा
तुम आज इसे समझ जाओ
अनुराग तो है जीवन का सार।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव
मधुप स्पंदन ओर निस्पंद पराग हो तुम...
फूलों में रज ओर काया में कांति हो तुम....
मधुशाला में अरमान का प्याला हो तुम...
हो सिंदूर माथे का कंगन की पुकार तुम...
साजन के स्वप्नों की सजनी साकार तुम...
नयनों में करुणा विह्वलता पुकार हो तुम
प्रतिकार स्वीकार आभार में भी बस तुम....
माँ ममता पिता की छाया में अधिकार तुम ...
बहन भाई बंधू बांधव प्यार ओ सत्कार तुम...
एकलव्य के दिल में समायी मूरत हो तुम...
गुरु द्रोण की शिक्षा मन अभिमान हो तुम....
रामकृष्ण पुकार विवेकानंद आह्वान तुम....
जांबाज सीने धड़का देश हित बलिदान तुम...
हलधर पसीना रज में गिरे की गंध हो तुम...
धर्म अधर्म स्वार्थ निस्वार्थ का आधार तुम...
सूर्य चाँद सितारे भ्रमण की रफ़्तार हो तुम....
नभ धरा बीच हर जीव प्राण संचार हो तुम....
जीवन ज्योत सिद्ध वियोग ओ अनुराग तुम...
शिला जीव त्राण शमशान राख अनुराग तुम...
जीवन योग दर्शन मृत्यु का आभास हो तुम...
राग अनुराग वीतराग सब का आधार तुम...
देवलोक,भूलोक, पाताल ओ ब्रह्माण्ड तुम...
हिय मेरे उपजे भाव माँ शारदे अनुराग तुम...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
पाषाण काल से जीवन की
नही रही उमंग,कोरा हो गया मन
राह ताकती ढल गई
यौवन भरी, देह सुकोमल।
अस्थि पंजर बन गई
संध्या में ,मैं ढल गई
सूरज तपन सह कर भी मैं
विरह व्याकुल चंद्र किरणों से जल गई।।
वसंत भी देखो आ गया
क्षुब्ध हृदय भड़का गया
सुप्त इंद्रियों को सजन मेरे
काहें वो सहला गया।।
मौसम भले वसंत का
उष्णता हृदय धधक रही
अति उष्णता प्रकोप से,सजन
हिय अनुराग पिघल रहा
स्नेह अनुराग पिघल रहा।
वीणा शर्मा
स्वरचित
बोलते ही प्रेम टपकता, न्यारा न्यारा और सारा
भाव विह्वल हो बहती है, जब आंखों से जलधारा
बुरा नहीं लगता है, यह पानी खारा खारा।
अनुराग मय होती, प्रकृति की यह बेला
जब बादल और धरती का, जमता है सुन्दर मेला
दोनों में नहीं होता है, कोई भी एकदम अकेला
सब कुछ ही हो जाता है, सारा ही नया नवेला।
कोयल प्रेम के, गीत गाती
मयूरी इतराती, नहीं अघाती
भौंरे की गूंजन, खूब लुभाती
और कली बगिया में, खिलखिलाती।
अनुराग भरी मुस्कान की, सुन्दर भाषा
प्रेम से ही नहाई, होती अभिलाषा
प्रकृति ही देती, इसकी परिभाषा
अनुरागमय होती, सबकी आशा।
अनुराग में अध्यात्म की, ऊंचाई होती
इसमें नहीं व्यर्थ की, टांग खिंचाई होती
इसमें सुरूर की नई, अंगड़ाई होती
इसमें कृष्ण भी होते, और राधा माई होती।
अनुराग विराग के भंवरजाल में
प्रभुजी मैं तो फंसा हुआ हूँ।
नहीं विराग ले पाया हूँ अबतक
आसक्तियों में धंसा हुआ हूँ।
निस्वार्थ प्रेम मै कैसै कर पाऊँ
कुछ जानबूझकर नहीं समझा या
प्रेमानुराग और रागद्वेष के
किसी असमंजस में फंसा हुआ हूँ।
इस नश्वर जीवन की आपाधापी में,
मै बुरी तरह चकराया हूँ।
यहां कहाँ मिलेगा मुझे किनारा,
यह सोच सोच घबराया हूँ।
अनुराग नाती पोते बच्चों से
कैसे छोड पाऊँगा हे भगवन,
अनुराग छोड वैरागी बन जाऊं
इसी तिकडम में भरमाया हूँ।
आसक्तियों से छुटकारा पाना,
मुझे असहज दिखाई देता है।
अनुरागी जीवन से विमुक्ति पाना
नहीं सहज दिखाई देता है।
इस मायावी मकडजाल से
जबतक अंतिम विदाई न पाऊं,
अनुराग विराग से मुक्ति मिलना
बिल्कुल असहज दिखाई देता है।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
दैनिक कार्य स्वरचित लघु कविता
दिनांक 10.7.18
विषय अनुराग
रचयिता पूनम गोयल
अनुराग हो यदि प्रभु-चरणों में , तो यह जीवन सफल हो जाए !
आने वाली हर बाधा को , हम हँस के पार कर जाएं !!
जीवन-लीला बड़ी विचित्र , कभी सुख , तो कभी दुख आएँ !
दुख आने पर हम घबराएं , तो सुख आने पर खिलखिलाएं !!
और यदि अनुराग हमें , परम् पिता से हो जाए !
तो दुख-सुख , दोनों ही , हमें नहीं हिला पाएं !!
प्रभु की भक्ति शाश्वत भक्ति , उससे अनुराग दे शाश्वत सुख !
फिर क्या कोई कामना ? जिसका हो दुख !!
नित चरण-वन्दना है मेरी , हे प्रभु , तू यूँ ही स्वंय में रमाए रखना !
जब हो जाऊँ विचलित पथ से , तू झट से बाँह पकड़ लेना !!
अनुराग
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"मैं राख हो गया
वो मिट्टी हो गया
वो क्या मिट्टी हुआ
सब राख हो गया"
धरा है
उर्वरता है
हरियाली है
हरियाली में अनुराग है
मौसम है
बहार है
बसंत है
बसंत में अनुराग है
सावन है
बादल है
बारिश है
बारिश में अनुराग है
चमन है
सुमन है
सुगंध है
सुगंध में अनुराग है
नदी है
कलकल है
लहरें हैं
लहरों में अनुराग है
साज है
स्वर है
संगीत है
संगीत में अनुराग है
रवि है
सुबह है
नूतन प्रकाश है
नूतन प्रकाश में अनुराग है
रात है
शशि है
शीतलता है
शीतलता में अनुराग है
तिमिर है
दीप है
ज्योति है
ज्योति में अनुराग है
जीवन है
दिल है
धड़कन है
धड़कन में अनुराग है
देव है
देवालय है
भजन है
भजन में अनुराग है
वतन है
सरहद है
शहादत है
शहादत में अनुराग है
माँ है
ममता है
आँचल है
आँचल में अनुराग ही अनुराग है
@शाको
स्वरचित
जीवन में तेरा अनुराग रहे।
मन मकरन्द छेडे तराने
बहार के,
प्रसून सुहास बन जाऊँ
वर्षा फुहार से,
तीर खंजर संमिश्रित न
हो अनुराग तेरा,
प्रीत की अविरल धार
बन जाऊँ अनुराग से।
नित उपवन हों झंकृत
वीणा की तान से
रश्मि सी बरसे कौमुदी
के श्रृंगार से
एकाकार हो जाऊँ तुझमें
जैसे कान्हा में मीरा
प्रीत की क्षुब्धा मिटाऊँ
हृदय के अनुराग से
स्वरचित : मिलन जैन
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