खुशियाँ हैं आसपास ही कहीं,
ढूँढिए तो जरूर मिलेंगी।
कीजिए किसी नन्हे बालक से जरा बात,
उस की तोतली जुबान में मिलेंगी ।
कराइए किसी बुजुर्ग को सड़क पार,
उनके आशीषों की बौछार में मिलेंगी।
मंदिरों में न दीजिए दान,
वह आए किसी गरीब की रोटी में काम,
उनकी दुआओं में मिलेंगी।
कभी माता-पिता के भी बैठें पास,
उनसे बातें कर लें दो चार,
तो उनकी खुशी के इजहार में मिलेंगी।
बहुत हुई यारों के संग मौजमस्ती,
कभी मंदिर में जाकर बैठिये ,
उस मालिक के दीदार में मिलेंगी।
प्रकृति है हमारी सच्ची हमदम,
मिलिए हरे-भरे पेड़ पौधों से,
फूलों की महक खुशगवार में मिलेंगी।
नदिया के तीरे का दृश्य ही अप्रतिम,
पानी की लहरों के सुर-ताल में मिलेंगी।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बारिश की बूंदें,
बरखा की ठंडी फुहार में मिलेंगी।
छोड़िये उदासी, मायूसी को त्यागिये,
ढूँढेंगे तो ईश्वर की बनाई हर कृति,
हर आकार में मिलेंगी।
कहते हैं इस हाथ दीजिए,उस हाथ लीजिए,
खुशियां बांटेंगे तो खुशियाँ ही मिलेंगी।
फिर देखिए....
खुशियों हर पल खड़ी आप को,
आपके घर-द्वार में मिलेंगी।
- - - - रंजना माथुर
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
Copyright
बदरी का बरस जाना
सरिता का बहती जाना
कोयल का कहकहाना
बाल रुप का घुटने आना
और लावण्य का मुस्कराना
यही तो खुशी का है ठिकाना।
तपती धूप में पेड़ की छाॅव
लहरों की गोद में सुन्दर सी नाव
भूखा पेट माॅ के हाथों पुलाव
थका ह्दय और माॅ का सहलाव
निश्छल प्रेम नहीं मोल भाव
मन से बस मन का लगाव
यही जीवन का सुन्दर ठहराव
दिखावे का न हो ताना बाना
यही तो है खुशी का ठिकाना।
बचपन की हॅसी नहीं कोई कारण
अपने हाथों किसी का दुख हो निवारण
हमारे कारण न हो कोई ह्दय विदारण
मुसीबत में किसी का कर सकें तरणतारण
न बनायें कभी भी हम कोई बहाना
यही तो है खुशी का ठिकाना।
दौलत ही सारी नहीं खुशी हमारी
होठों पर ज़रुरी हॅसी प्यारी प्यारी
हँसता हूँ मुस्काता हूँ ,
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।
खुशियाँ जीवन्त करें जन को
सब साहस सम्बल दें मन को
फूलों सा पल पल मन महके
जीवन पतवार चलाता हूँ
हँसता हूँ मुस्काता हूँ ,
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।
मायूस न हो गर दुःख मिलता
कुछ अनुभव सीख, नया मिलता
व्यथित जनों को फिर फिर मैं,
नव धीरज ह्रदय बँधाता हूँ
हँसता हूँ मुस्काता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।
सबको खुशियों की राह मिले
सबकी अभिलाषा हो पूरी
ना दिखे कहीं पर मजबूरी
ईश्वर से यही मनाता हूँ
हँसता हूँ मुस्काता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।
मेहनत सब पीर हरे दुःख की
कर्मों से राह मिले सुख की
सुख शीतल छांव बताता हूँ
खुशियों की राह दिखाता हूँ
हँसता हूँ मुस्काता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।
अनुराग दीक्षित
बहुत सुन्दर सी फ्रॉक पहने झूम रही थी...
फुदक रही थी जैसे प्यारी सी चिड़िया....
जब वो झूमती उसकी फ्रॉक भी उसके साथ झूमती....
छतरी सी बन.....
जिसको देख वो खुश हो रही थी...
और मैं उसकी ख़ुशी से आनंदित....
मंत्रमुगध हो उसे देखे जा रहा था....
बस एक ही बात मुझे अटपटी सी लगी...
उसके ऊंचे से सैंडल....वो एक दो बार लड़खड़ाई....
मेरा मन धक् से रह गया कि कहीं चोट न लगे...
पर वह संभल जाती फिर झूमती....
मुझसे रहा नहीं गया पूछ ही लिया....
"बेटा...नाम क्या तुम्हारा"....
"ख़ुशी...."
"बहुत प्यारा नाम है और तुम भी बहुत प्यारे लग रहे हो....यह सैंडल तकलीफ नहीं देते"...
"नहीं तो".....
"किस लिए पहने इतने ऊंचे यह सैंडल"...
"भईया मुझे छोटी कहता है...मैं बड़ी दिखना चाहती आज"....
यह कहते उसके कोमल चेहरे पे इतनी प्यारी मनमोहक सी जो मुस्कान आयी...
यूं लगा जैसे वो मेरे "मोहन" की मासूम सी मुस्कान हो.....
मेरी आत्मा को उसने आनंद से अजीब से प्यार से भर दिया....
इतना अनमोल....प्रकिर्तिक....अदभुत...मनोहारी....
पर क्या हम ऐसा आनंद पा सकेंगे आने वाले समय में...
हम भ्रूण हत्या किये जा रहे हैं....
कहाँ से पाएंगे यह आनंद...यह सब मन की ख़ुशी....
कैसे मनाएंगे रक्षा बंधन...कैसे होगी दुर्गा पूजा...
ऐसी मुस्कान जो बिन मांगे आनंदविभोर कर दे.....
कहाँ से लाएंगे...
क्यूँ नहीं जाग रहे हम...
क्यूँ हम अपने सुनहरे भविष्य को ख़तम कर रहे हैं....
हम क्यूँ अपनी सच्ची ख़ुशी खो कर....
ख़ुशी का मुखौटा लगाए घूम रहे हैं....
आखिर क्यूँ.....
-----------------------------------
जीवन के घरौंदे में खुशी के पल है अनमोल,
इसे पाना चाहो तो मिल जाते हैं बिन मोल।
खुशी ऐसे मिलती नही, इसे पायी जाती है,
कर्म के रास्ते बढ़ इसे अनुभूत की जाती है।
खुशियां पाने का मन का अलग अंदाज है,
जीवन झंझावातों से उबरने का आगाज है।
मन चाहे तो कदम-कदम पर खुशी ढूंढ लेते,
नहीं तो खुशी के पल में भी नाखुशी ढूंढ लेते।
सच्ची खुशियां बिन बताए ही पास आती है,
मन के खोट में आकर भी दूर चली जाती है।
दोषरहित कर्म पथ पर निरंतर बढ़ते रहिए,
खुशियों भरे पल खुद-ब-खुद गढ़ते रहिए।
●रेणु रंजन
( शिक्षिका )
रा0प्रा0वि0 नरगी जगदीश ' यज्ञशाला '
सरैया, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
दिनांक 25/07/2018.
प्यार भरे लम्हों सी है खुशी
माता पिता की छाँव सी है खुशी
गरीब की दुआओं सी हैं खुशी
ना खोज इसे मन अपनी खुशी में
तेरी खुशी तो है औरों की खुशी में
कर देना कभी बेवजह मदद
किसी जरूरतमंद की
और देख लेना उनके चेहरे
की मुस्कान मे अपनी खुशी
- मनोज नन्दवाना
दिल ही दिल में खुशी में मनाई
घर आंगन पावन कर डाला
जब गोद में गुड़िया आई
परियों जैसा रूप है पाया
कोमल कोमल कली सी काया
अधर तो जैसे फूल गुलाबी
केशों में है घटा का साया
हंसी में हैं सतरंगी मौसम
बोली में मिश्री सी सरगम
ठुमक चले तो ताल दे धड़कन
अँखियाँ कजरारी मीन सम
किस्मत से है बिटिया पाई
सारे सुख आंचल में लाई
ना बाजा ना मिली बधाई
दिल ही दिल में खुशी मनाई ...
सपना सक्सेना
स्वरचित
खुश होने के लिए मुझे
नही चाहिए कोई बहाना
मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे
नही चाहिए दूसरो का खजाना।
जो कुछ भी मिला है ईश्वर से
मैं खुश और संतुष्ट हूँ उससे
मैं ख्याल रखती हूं सदैव दूसरो
की खुशियों का, तो आ जाती है
खुशियाँ अपने आप मेरी झोली में।
जब मैं करूँ गरीबो को मदद
उनके चेहरे का मुस्कान देख
छा जाती है मुस्कान मेरे चेहरे पर भी।
खुश होना तो हर एक का अधिकार है
किसी को खुशी देना तो सबसे बड़ा
अभिप्राय है
जब हम देते दूसरो को खुशी
तो खुशियाँ नही बना पाती हमसे दूरी।
यही तो है खुश होने का सबसे बड़ा फंडा
हम स्वयं खुश रहे ,और खुशियां बाटे हम सदा।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
यहाँ सब घर घर ही खुशहाल हो।
नहीं दुखित रहे दुनिया में मानव,
प्रभु कोई कभी नहीं बदहाल हो।
सदा रहे प्रफुल्लित ये सारा जग ,
चिरशांति हो दीप जलें खुशियों के।
मिलजुलकर यहाँ रहें सभी जन,
सभी कष्टनिवारण हों दुखियों के।
परमात्मा ने जो कुछ दिया है हमको
उस में खुश रहकर खुशियाँ फैलाऐं।
सम्मिलित हो एकदूजे की खुशियों में
क्यों नहीं भारतवासी खुशहाली लाऐं।
यहाँ खुशियाँ की कहीं खेती नहीं होती।
यदि ऐसा होता तो क्या ये दुनिया रोती।
खुशियाँ अगर खरीद सकता कोई फिर,
यह केवल अमीर गरीबों की नहीं होती।
स्वरचित ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
पल दो पल का झमेला हैं
कभी इन्सान सबके संग हैं तो
कभी अकेला हैं .
छोड़ दो गमों को भूल जाओ जीवन की परेशानियाँ
मुस्करा कर गीत ख़ुशी के गाओ
जीवन में ख़ुशी के साज सजाओ
कल क्या होगा मत सोचो
बस आज ख़ुशी मनाओ .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
खुशी कहीं न दूर है
पर मानव मन मगरूर है ।।
घडा़ भरा रखा घर में
पर नजर में ही सुरूर है ।।
सदियों से वेद बताते आये
खुशी अन्तस में भरपूर है ।।
बाहर की खुशी क्षणिक
पर बाहिर्मन में चूर है ।।
हीरे छोड़ कंकड़ को धावे
इंसा कितना बेशऊर है ।।
दोष देय विधाता को
जो बिल्कुल बेकसूर है ।।
हँसी आये इंसा पर ''शिवम"
इंसा में ही खुदा का नूर है ।।
मगर इधर उधर वो भागे
ये खुद का ही कुसूर है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
Abhimanyu Kumar
जन्नती खुशी
भूखें की नजर में
सूखी रोटियां
खोल के देखो
गम की सीपियो में
पलती खुशी
मिलना होगा तो मिल ही जायेगी एक दिन
तब तक दूसरे की खुशी में खुशी ढूंढते हैं
खुशी थी या खुशी का अहसास था
जो कुछ भी था बड़ा ही ख़ास था
ये अजीब मंज़र भी गुजरा है हम पर
आंखों में पानी और होंठों पे प्यास था
अपने तीर के लिए निशाना ढूंढ लेता हूं
अजनबी शहर में ठिकाना ढूंढ लेता हूं
खुशी से वास्ता तो पड़ा नहीं कभी भी
लेकिन मैं खुश होने का बहाना ढूंढ लेता हूं
मातमी धुन पर मैं खुशी कैसे लिख दूं
आंसुओं की स्याही से हंसी कैसे लिख दूं
उस गरीब के घर के सूखे बर्तन गवाह हैं
उसके कत्ल को मैं खुदकुशी कैसे लिख दूं
मेरे घर इक बिटिया आई
बरसो से जो रुठी बैठी थी
वो खुशी हुमहुमा कर लौट आई
थी जमाने भर की बर्बादियां
मेरी झोली में
बंजर कह कह के घोंपे थे
खंजर मेरे अपनों ने मेरे सीने में
दिन बेबसी की रात से बीते
रातें बीतती कारी अंधियारी
जैसे ज़हरीली नागिन -सी
डसती
इक दिन इक सितारा टूट
झोली में गिर गया
फिर फूलों की महक ,हवा से चपलता,
भंवरों से गुंजार ले लिया
चाँद से शीतल चाँदनी लेकर
सूरज की रौशनी ले आया
सबकुछ जब इकसाथ मिल गया ,
स्वरुप बना डाला
वही स्वरुप फिर बनी सुंदर
सृष्टि की छवि,बनी बिटिया
लाडली मेरी गोद फलीभूत हुई/
धरती की सारी खूशियाँ
सिमट मेरे आँगन आ गई।।
डा.नीलम.अजमेर.
स्वरचित
"खुशी"
क्या होती है खुशी,
आओ तुम्हे ये समझाएँ,
हँसते देखूँ दूसरों को,
मन मेरा भी हर्षाए,
हमारी खुशी में माँ-बाप,
अपनी खुशी पा जाएँ,
हम भी करें कुछ ऐसा आज,
चेहरा उनका खिल जाए,
नारी की खुशी,
है उसका परिवार,
भूल दर्द अपना,
देती सबको प्यार,
नाम दो वर्ण का 'खुशी',
जीवन पूरा महकाए,
देकर खुशी का अहसास,
परायों को भी अपना बनाए।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/7/18
चंद हाइकु "ख़ुशी"पर
25/07/2018
(1)
दर्द की गली
मुस्कान जब बांटी
झोली में "ख़ुशी"
(2)
सुकून बसा
माँ के आँचल तले
"ख़ुशी" का जहाँ
(3)
"ख़ुशी" समेट
बच्चों में बाँट देते
माता व पिता
(4)
"ख़ुशी"का स्वाद
नमकीन से आँसू
मीठे लगते
(5)
ख़ुशी की टोपी
धरी रही थी सर
ढूँढ़ते जग
(6)
धनी दुनियां
गरीब को चिढ़ाती
झूठी खुशियाँ
25/07/2018
(1)
दर्द की गली
मुस्कान जब बांटी
झोली में "ख़ुशी"
(2)
सुकून बसा
माँ के आँचल तले
"ख़ुशी" का जहाँ
(3)
"ख़ुशी" समेट
बच्चों में बाँट देते
माता व पिता
(4)
"ख़ुशी"का स्वाद
नमकीन से आँसू
मीठे लगते
(5)
ख़ुशी की टोपी
धरी रही थी सर
ढूँढ़ते जग
(6)
धनी दुनियां
गरीब को चिढ़ाती
झूठी खुशियाँ
ऋतुराज दवे
No comments:
Post a Comment