काश्मीर की माटी में
छोड़ो बिरयानी परोसना
काश्मीर की घाटी में
कब तक खूनी खेल चलेगा
कश्मीरी परपाटी में
सीधे-सीधे गोली मारो
गद्दारों की छाती में
अगर समझते हैं समझा दो
भटकी हुई जवानी को
या फिर न उनको भेंट चढ़ा दो
अपनी मात भवानी को
यही तरीका केवल बाकी
घाटी ये खिल जाएगी
जिस भी अपनी सेना को
फुल पावर मिल जाएगी।।
जय हिन्द वन्देमातरम
स्वरचित
बिजेंद्र सिंह चौहान
चंडीगढ़
------------
हैं सरहदों के वीर ये,
मां भारती के लाल है....
कमाल है कमाल है,
कमाल है कमाल ....
जल-थल आकाश पर,
गजराज सा चिंघाड़ते,
दुश्मनों के छाती पर,
सिंह बन दहाड़ते,
हैं शेर के सपूत ये,
मां भारती के लाल है...
कमाल है कमाल है,
कमाल है कमाल ....
जब कहीं पर डट गये,
तो वीर ये हटे नही,,
लाठियों के वार से,
पानी ये फटे नही...
पर खो गये कुछ वीर,
हमें उसका ही मलाल है....
कमाल है कमाल है,
कमाल है कमाल ....
झूमते है रण में ,
जब ये सीना तान कर,
काटते दुश्मनों को,
नर असुर मानकर..
पाकर ऐसे लाल को ,
धरा हुई निहाल है....
कमाल है कमाल है,
कमाल है कमाल ....
थामकर प्यारा तिरंगा,
मिट गये अभिमान पर,
जान भी गवां दिये,
वसुंधरा के शान पर
इनके पावन रक्त से,
हुई धरा ये लाल है....
कमाल है कमाल है,
कमाल है कमाल ....
.....राकेश
माता करती आर्तव पुकार
अरि शांति भंग करता अपार
सीमा उल्लंघन बार बार
अब शीश काटने हैं अनंत
अब हो वीरो ऐसा बसंत !
है महाशक्ति का अरुण रंग
फड़के सैनिक का अंग अंग
रिपु का करने को अंग भंग
फिर रोक सकेगा कौन कंत
अब हो वीरो ऐसा बसंत !
दुंदभी बजे फिर इधर तान
डमरू शिव तांडव का विधान
रणभेरी का हो अखिल गान
सीमा भारत की हो अनंत
अब हो वीरो ऐसा बसंत !
हो वायु शक्ति या जल कमान
सब मिलकर रक्खें देश मान
गौरव का अपने रहे भान
हल सभी प्रश्न होवें ज्वलंत
अब हो वीरो ऐसा बसंत !
अरि का मस्तक फिर डोल उठे
हल्दी घाटी फिर बोल उठे
रिपु का फिर शोणित पीने को,
पाताल भैरवी डोल उठे
एक बार दिखा दो दुनिया को,
भारत की ताकत दिग- दिगंत
अब हो वीरो ऐसा बसंत !
रणभेरी से ही हल होंगे
इतिहास पूछता मूक प्रश्न
सिर हेमराज का बोल उठे
क़तरा क़तरा फिर खौल उठे
करना ही होगा आज तुम्हें,
इस छद्म युद्ध का सकल अंत
अब हो वीरो ऐसा बसंत !
अनुराग दीक्षित
शान देश की बनी रहे फिकर न करते प्रानों का ।।
दुश्मन के मन्सूबों को कामयाब न होने दें
माकूल जबाव देते हैं उनके गंदे अरमानों का ।।
सर पर मौत नाचती पर सिकन न रखते चेहरे पर
सिर्फ पता रखते हैं वो दुश्मन के ठिकानों का ।।
मातृभूमि पर आँच न आये चाहे जां भले जाये
हुनर उन्होने सीखा है तरकश तीर कमानों का ।।
ठण्डी गर्मी कभी न देखें हरदम तनकर पहरा दें
पलक झपकते वार न हो पता नही शैतानों का ।।
हर चुनौती है स्वीकार मातृभूमि की खातिर
धन्य ''शिवम" उनके इन बहुमूल्य बलिदानों का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
तिथि-16/07/2018
वार-सोमवार
विधा-दोहा छन्द
(1)-
सेवा सैनिक दे रहें, देखो सीना तान|
भारत माँ के लाडले,बचा रहें सम्मान||
(2)
मिट्टी का सजदा करें, पूजें देश जवान|
उनके दम पर सो रहें, घर में चादर तान||
(3)
सर्दी-गर्मी-बर्फ में, रहते वो दिन रात|
कर्म देशसेवा सदा, दूजा धर्म न जात||
(4)
दूर हुए माता-पिता, बिछड़ गया घर बार|
सांसे उनकी थम गईं, दिल में लेकर प्यार||
(5)
उनका ही वर्णन करें, सदा करें गुणगान|
उनकी ही पूजा करें, उनका ही सम्मान||
प्रियंका दुबे #प्रबोधिनी
गोरखपुर,उत्तर-प्रदेश !
हिंद की सेना तुम्हें प्रणाम
सबसे ऊपर देश का नाम
कहीं उठी जो बुरी नजर
पल में उसका काम तमाम
तुम रक्षक सरहद सीमा की
तुमसे रौशन सुबह शाम
मातृभूमि निज प्राण से बढ़कर
वार दिए सुख चैन आराम
भारत माँ की आंख के तारे
वीरगति पाते ईनाम ।
सपना सक्सेना
स्वरचित
कितना सुन्दर कितना प्यारा
सीमा पर पहरी बनकर देश की रक्षा करते
हर पल हर क्षण अपना फर्ज निभाते.
देश की खातिर कुर्बान हो जाते
तिरंगा लेकर सरहद पर दिल में फौलादी हौसला लेकर चलते हैं
पर्वत सी हिम्मत और दिल में देश के लिये मर मिटने
का जज्बा लेकर चलते हैं .
कर्ज हैं उनका हम सब पर इस देश पर
जब एक जवान सरहद पर जाग कर पहरा
देता हैं तभी हम चैन से सोते हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
कोई कैसे पूजे उनको देशभक्त भी छले जाते है यहाँ..
घर मे मुसीबत पड़ी है भारी
सेना की करता है लाल तयारी
उस माँ का दिल भी देखो
जो लाल देश पर करती है बलिहारी
जाने चले जाते है कहा..
आज भी युवा देश पर मरते
देशभक्ति की बाते करते
भर्ती होकर सेना हमको
है निभानी जिम्मेदारी
जाने चले जाते है कहा...
खड़े सीमा पर मेरे प्यारे
चाहे दिन हो या अंधियारे
किसी के भाई किसी के शौहर
किसी माँ के राजदुलारे
जाने चले जाते है कहा...
जब भी हमला सीमा पे होता
शहीद हो जाता किसी का पोता
जिगरी यार आंगन में आकर
चीख चीख पुकारे
जाने चले जाते ह कहाँ...
सारे नेता आशूं बहाते
सीमा पर भी कभी ना जाते
विदेश में पढ़ाते बच्चे
उनको सेना में कभी ना डारे
जाने चले जाते है कहां..
मेरी सैनिक देश पर मरते
फिर दुख है कि इनकमटैक्स है भरते
उनकी लाश भी बेच दो
क्यों घर पर लाते हो सारे
जाने चले जाते है कहा..
वो लोग बेफिक्र है सोते
जिनके घर से सेना में नही होते
रो रौ कर घर भरती मा बहने
जब युद्ध को दुश्मन है ललकारे
जाने चले जाते हैं कहा...
जब शहीद की लाश है घर पर आती
फ़ट फट जाती है सबकी छाती
माँ बाप के मुख से आवाज है आती
देश पर लाल लुटा देंगे लाल हम सारे
जाने चले जाते है कहाँ...
""देश के सेनिको के परिवार को समर्पित ये रचना""
""स्वरचित ----- विपिन प्रधान""
वो मस्त रहे अपनी ही धुन में;
जग से उसको कोई चाह नहीं।
उसकी तो अपनी है दुनिया
जिसमें सुख दुख का कोई थाह नहीं।
माता उसकी भारत की भूमि
पिता ये दिव्य हिमालय है।
चिरसंगिनी उसकी है गोली
सन्तान नागरिक सारे हैं ।
घर है उसका खुला गगन
जीवन मिट्टी का सोपान ।
नमन सदा उसको करतल से
जय जय जय हे वीर जवान।
फ़ौजी मस्त रहे अपनी ही धुन में
जग से उसको कोई चाह नहीं।
उसकी तो अपनी है दुनिया
जिसमें सुख दुख का कोई थाह नहीं।
बांध सके न उसको कोई
जग का मिथ्या साधन ।
बांध सके न माँ का आंचल
बांध सके न पत्नी का प्रेम।
बांध सके न पिता का स्नेह
बांध सके न पुत्र का मोह।
वो तो बंधा हुआ है अपने एक
कर्म से जो कि है रक्षा देश की ।
फ़ौजी मस्त रहे अपनी ही धुन में
जग से उसको कोई चाह नहीं। उसकी तो अपनी है दुनिया
जिसमें सुख दुख का कोई थाह नहीं।
करो कल्पना सीमाओं पर
किस संकट को सहता फौज़ी
उसका हमको किंचित आभास नहीं
हम घर में सोते है बेसुध।
कर रही है स्वाति नमन उन्हें
जो मस्त रहे अपने ही धुन में।
फ़ौजी मस्त रहे अपने ही धुन में
जग से उसको चाह नहीं।
उसकी तो अपनी है दुनिया
जिसमें सुख दुख का कोई थाह नहीं।
डॉ स्वाति श्रीवास्तव
आगे कदम बढाऐंगे।
जो भी मिलेगा दुश्मन देश का,
उसको मार भगाऐंगे्।
अपनी भारतमाता की रक्षा ही
अब हमें हमेशा करनी है,
तिरछी आँख से जिसने देखा
पाक उसे पहुंचाऐंगे।
जन्म लिया है इस धरती पर
एकमात्र कर्तव्य हमारा।
धन दौलत क्या है इसकी खातिर
न्यौछावर सर्वस्व हमारा।
सब कुछ मिला है जन्मभूमि से,
इसपर तनमनधन अर्पण
इस मातभूमि की सेवा हेतु
तत्पर हम, प्राणोत्सर्ग हमारा।
हम भारत माता के वीर सपूत हैं
हम पर कभी अविश्वास ना करना।
यही चाहते भारत की जनता से,
नहीं विवादित सेना को करना।
हम सैनिक मर्यादाओं में रहते
जाति धर्म का भेद न करते
आप सभीजनों से बस यही निवेदन
नहीं अमर्यादित हमको करना।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म,प्र.
जय जय श्री राम राम जी
भर गई है धरती अब
जयचंदों जैसे भेदी से
पीठ पर खंजर मार रहे है
सेना को किस बेदर्दी से।
विश्वास तोड़ते लोगो सुन लो
अब अदब रही न तुममें है
अपने घर को तोड़ने वालों
क्या अपनापन तेरे मन मे है।
मन मटमैला तेरा अब ये
भांप लिया अब हमने है
हिम्मत हो तो आओ सामने
वारों से हम न डरते है।
भारत की सेना है हम भी
स्व प्राणों से मोह न रखते है
घर के जयचंदों को बाहर हम
स्व भुजबल से ही करते है।
आन बान शान की खातिर
भूमि के लिए हम मरते है
एक बार नही,सौ सौ बार जन्म
भारत भू पर न्यौछावर करते है।
जिस थाली खाते हो और
छेद उसी में करते हो
शर्म करो तुम कुछ तो लोगो
भेद अपने दूजे को देते हो।
औकात तेरी दो कौड़ी की
भेड़ खाल में गीदड़ बैठे हो
छुप छुप कर वार क्यो करते हो
भारत सेना से इतना डरते हो?
दम हो तो तुम आओ सामने
जोश हमारे भी देखो
निडर रहे हम पहले-अब है
फौलादी ताकत अब तुम देखो।
तनिक सा लालच इसका अब
इसे माटी में मिलवाएगा
घर का भेदी नही कभी फिर
लौट के घर को आएगा।
मीठी मीठी बातों से तुम
गोली बरसाया करते हो
चुल्लू भर पानी नही कही
डूब कर तुम न मरते हो।
क्या सेना गोली से ही तुम
नरक सिधारे जाओगे
अनगिनत गज भूमि पर तुम
यहीं दो गज में ढेर हो जाओगे।।
वीणा शर्मा
स्वरचित
खड़े हैं चौहद्दी पर
हर पल हर क्षण तैनात रहे वो
देश की रक्षा करने को।
आग उगल रहा हो नभ
फिर भी नहीं पीछे हटे वो
बारिश हो रहा हो घनघोर
डटे रहे वे सीमा पर
अपने देश की रक्षा करने को
तत्पर रहते है वे हरदम
नही उन्हें हैं अपनी चिंता
न वे करते परवाह परिवार की
परवाह करते तो वे अपने देश
की इज्ज़त और देश की शान की।
होली हो या दीवाली या फिर हो
ईद या फिर रामजान की बाते
बस वे करते अपनी देश की बाते
जल,थल हो या फिर वायु सेना
वे रहते है देश पर कुर्बान
उनकी कुर्बानी पर ही
हम बिताते हैं चैन की रात।
हमारे देश के वीर सैनिक है
हमारे देश के प्राण, देश के शान
उनकी इज्ज़त करें हम सदा
नमन करें हम उनकी जज्बा को
आज हम भारत देश के वासी
देश की रक्षा देश की शान में ले
एक प्रण,भले जाये प्राण हमारा
देश के साथ गद्दारी न कभी करे हम।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव
कोटि कोटि नमन हिंद की सेना को
दे दिया जिसने अपना सीना देश की सीमा को.
जाता है ज़ब घर से बीवी तिलक लगाती है,
भीतर भीतर घुटती है, कह न किसी से पा ती है.
बेटा पूछे पापा से घर कब तक तुम आओगे,
बेटी पूछ रही पापा से पापा क्या तुम लाओगे?
आंसू भर नैनो मे बेटे को समझा दिया,
भारत माँ की आज्ञा होगी तब ही हम आ पाएंगे,
प्यारी सी बिटिया के लिए प्यारी सी गुड़िया लाएंगे.
नमन.......
माँ के आंसू थमते नहीं बोली की मत जाओ तुम,
क्या पता अगली बार मिल हमें न पाओ तुम.
ढलती शाम हो गयी माँ की दिया भी बुझने वाला है,
तेरे सिवा लाल मेरे ना देगा कोई निवाला है.
नमन......
बेटा कहता माँ मै सिर्फ तेरा लाल नहीं,
पीठ दिखा के भागे जो वो तेरा लाल नहीं.
भारत माँ की रक्षा करने को सेना ने बिगुल बजाया है,
उस माँ की रक्षा करने का सुनहरा अवसर पाया है.
नमन.......
स्व रचित
कुसुम पंत
दुश्मन को ललकार कर
तभी संरक्षित.हम रहते हैं
उनके ही उपकार.पर ।
देश की रक्षा सेना करती
उनके पीछे है देश खड़ा
गोली खाकर दुश्मन की
फिर भी आह नही भरते
छलनी भी हो जाये अगर
जयहिन्द !सदा कह मरते।
उनके त्याग और बलिदान का
माँ के वीर सपूत हैं
शत्रु के यमदूत हैं
आसमान के तारें है
हिन्दुस्तान के दुलारे हैं
अश्वों सी शक्ति है
दिल में वतन की भक्ति है
है तपती रेत या ठंड की कहर
सरहद की सीमा पर तत्पर हैं
देश के अवतार हैं
वतन के लिए जान भी कुरबान है
हिन्द की सेना हमारी शान है
🇮🇳 जय हिंद 🇮🇳
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
"सेना"
है इरादों से मजबूत,
देश का हैं ये संबल,
प्रहरी करते दिन रात,
सेना के तीनों दल,
हो दुश्मन पर भारी तुम,
लोहे के चने चबवाते हो,
कर देश की रक्षा ,
शहादत तुम पाते हो,
होती सेना सरहद पर,
चारदीवारी देश की,
करती कोशिश मिटाने की,
है मन में जो भावना द्वेष की।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/7/18
सोमवार
पर जागी रहती है सेना।
जब कहीं आ जाती बाढ़
होने लगता सब उजाड़
जब अनुशासन सीमा भंग होती
आतंकी प्रवृति उद्दण्ड होती
जब युद्ध के बादल छाते हैं
रण पिशाच मण्डराते हैं
जब प्राकृतिक आपदा होती है
सब्र अपना माद्दा खोती है
जब देश सम्मान की बात आती
तब जिव्हा एक ही गान गाती।
हमारा हर योद्धा ही हीरा है
इसने हर बाधा को चीरा है
सागर लहरों को झेला है
शत्रुओं को दूर तक ठेला है
पर्वतों की ऊंचाई नापी है
शत्रु की रुह भी कांपी है
बर्फीली घाटियों को इन्होंने चूमा है
इनके शौर्य से चप्पा चप्पा झूमा है
इनके सहारे देश सुरक्षित है
इनकी बाहों में अभिरक्षित है।
सेना हमारी वह पूंजी
जिसकी ललकार आकाश तक गूंजी।
वतन के लिए अपनी कुर्बानी देने चला है
दिल में चाह नहीं चाँद सितारों की
तिरंगे के लिए कोई अपना शीश कटाने चला है ।
मुल्क की आबरू बचाने चला है
दुश्मनों की हस्ती मिटाने चला है
छोड़कर गजरों की खुश्बू को कोई
सरहद पे गोली खाने चला है।
फौजियों के जनाजे हमेशा जवान रहते हैं
दुश्मनो के काफिलों को
आग के हवाले करने चला है
है इरादा इनका मजबूत
कर के लहू से अभिषेक
तिरंगे को कोई कफन बनाने चला है।
ऊँचे आसमां हो या सागर गहरे
या बर्फीली चोटियाँ हों
खाकर गोली सीने पे कोई देश को बचाने चला है।
भाता नहीं चमन की खुश्बू
वतन को महकाने चला है
छोड़कर नन्ही सी परी को
कोई अपनी कुर्बानी देने चला है।
नींद नहीं उसकी आँखो में
रात-दिन सरहद पर मुस्तैद होने चला है
कोई परिन्दा ना आये बिना इजाजत के
दुश्मनो के आगे कोई अपना सीना ताने चला है ।
मौत को भी मात देने चला है
तिरंगे को अपने लहू से
सींचने चला है
दूध का कर्ज छोड़कर
भारत माँ का कर्ज चुकाने चला है ।
ऐ कलम!
लिखो उसकी कुर्बानी
जो जान हथेली पे ले के
देश की हिफाजत करने चला है
कुर्बान कर के अपनी जवानी
जो तिरंगे से लिपटने चला है ।
@शाको
स्वरचित
(1)
धरा बिछौना
देशभक्ति चादर
ओढ़ती सेना
(2)
सुख न चैना
सरहद पे सेना
जगती रैना
(3)
दौड़े जुनून
देशभक्ति का लहू
सेना के रग
(4)
घड़ी आपदा
सेना की सहायता
दूत देवता
(5)
बाज़ है सेना
देशद्रोही का काल
छूटे पसीना
धरा बिछौना
देशभक्ति चादर
ओढ़ती सेना
(2)
सुख न चैना
सरहद पे सेना
जगती रैना
(3)
दौड़े जुनून
देशभक्ति का लहू
सेना के रग
(4)
घड़ी आपदा
सेना की सहायता
दूत देवता
(5)
बाज़ है सेना
देशद्रोही का काल
छूटे पसीना
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