खिला मेरा मन,
पाकर तेरा संग,
छुआ जो पिया तुने,
मन में उठी तरंग,
चेहरे पर है लाली छाई,
पिया चढ़ा जो तेरा रंग,
आकर भर ले बाहों में,
लगाकर पिया अपने अंग,
बनाके दुल्हन तू लाया,
माँग में भर सिंदूरी रंग,
बाँधे विश्वास की ड़ोर,
निभाना सातों जन्म का संग,
तेरे रंग में रंग गई पिया,
चढ़े ना अब कोई रंग,
कर बातें तेरी याद,
निहार रही पलंग,
आहट पाकर द्वार पर,
पाकर समक्ष तुझे रह गई दंग।
सुख-दुःख जैसे जीवन में।
इसीलिये खुश होकर जियो।
प्रार्थना करते रहो मन में।
दुःख से मत घबड़ाना।
सुख भी आयेगा।
हवा के झोंकों की तरह।
दुःख तो टल जायेगा।
सुख में घमण्ड ना करना।
भजन करते रहो मन में।
कई.......
दुःख से घबड़ाकर जो भी।
ईश्वर को भूल जाते हैं।
वही अपने जीवन में कभी।
चैन नहीं पाते हैं।
भजते रहो प्राणी।
हरदम तुम ईश्वर को।
मन हीं मन में।
कई..........
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी
अगर रंग न होते जग में क्या होता जग का हाल
पता चला पैसा ही हँसता न हँसता कोई खाकर दाल ।।
पत्नि लड़ कर करती तंग पति का होता जीना बेहाल
पति बेचारा जिन्दा है हर हाल में रखा खुद को सम्हाल ।।
रंग ही हैं जो इंसान के जीवन में करते हैं कमाल
वरना दुख का अम्बार है सुख की न कोई दुशाल ।।
दुख तो अपने आप भी जाते बेफिजूल करते मलाल
अच्छा है कुछ रंग में रंग कर बना दें कोई मकां बिशाल ।।
कोशिश भर रंग अच्छे ढूड़ो जो करें जीवन खुशहाल
दुख भी हरलें खुशियाँ भरदें रखो ''शिवम"बस यही ख्याल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
उमंगो की ये बडी दिलकश बयार होली है।
हसीं महबूब से मिलने जवां ताक में हैं गुल।
हसीं कलियाँ की रंगत से गुलजार होली है।
कहीं भंग का घोटा कही गुझिया रसीली है।
कहीं मीठी कहीं खट्टी लज्जतदार होली हैं।
देवर कहीं भाभी कहीं जीजा कही साली ।
सभी हैं छेडखानी को बडे तैयार होली हैं।
कहीं सच में है राजी कहीं झूठी है नाराजी ।
मनाये सब कोई न मानें हुईं मनुहार होली है।
उठा ऊधम चले टोली गली गांव मुहल्ले में।
रंगों बचे सूखा न कोई सरे बाजार होली हैं।
मिटा दो आज हर शिकवा सब गले मिलके।
भुला दो भूल सबकी कहो मेरे यार होली है।
विपिन सोहल"
मेरी कूची के विभिन्न रंगों से , मेरे जीवन में रंग भर दो !
और भरके रंग तरह-तरह के , मेरी चुनरिया धानी कर दो !!
विरह से मन आकुल है , तुम आकर इसे खुश कर दो !
आया सावन झूम के , अब तो तुम भी आके मिल लो !!
विरह की पीर , बड़ी दुखदायिनी , कुछ तो इसे समझ लो !
कह रहा है सावन भी बार-बार कि मेरे संग जीवन जी लो !!
रिमझिम करती , बारिश की ये बूंदें , तन-मन भिगो रही हैं !और रह-रह कर , बार-बार , सजन , तुम्हें बुला रहीं हैं !!
Sangeeta Joshi Kukreti
ये जो जीवन है,
रंग का सैलाब है,
मिठास का इसमें रंग,
खटास का इसमें रंग!
प्यार का इसमें रंग,
नफरत का भी रंग,
किसके हिस्से क्या अाये,
ये उसकी किस्मत का रंग!
एक रंग जो सबमें समान,
वो है सबके लहु का रंग,
ईश्वर ने जब नहीं किया भेद,
फिर क्यों नहीं हम सब एक!
"स्वरचित संगीता कुकरेती "
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आँखें होती सपने बिन जब,
होता जीवन बेरंग।
आँखो में सपने जब सजते,
जीवन में भरते रंग।
मिट्टी के रंग एक है,
एक ही लहू के रंग।
अक्ल पर पट्टी बंधी,
मानसिकता हो गई तंग।
यह रंग बदलती दुनिया है,
यहाँ लोग बदलते रंग।
उन्हे देख गिरगिट भी,
रह जाता है दंग।
उषा किरण
बिन रंगों के जीवन बेरंग l
कुदरत ने नित दिये हमें,
जीवन जीने के अनेक ढंग l
है चहुँ ओर बिखरा सा ये,
प्रकृति का वो सुन्दर रंग l
उषा की लालिमा रंग लिए,
सूरज लाता सुनहरी रंग l
साँझ की फ़िर सिन्दूरी लालिमा
देती संदेश ढलता जीवन l
यूं आती निशा की कालिमा भी
रंग श्यामल लिए दिन का अंत l
चन्दा की वो शीतल चाँदनी,
नभ पर बिखेरे श्वेत रंग l
है कितने सुन्दर जीवन के ये
भिन्न भिन्न अनेकों रंग l
लिए इन्द्र्धनुष की मनोरम छटा
बनाती जीवन को सतरंग l
हर रंग में शामिल कोई संदेश
ये जीवन देता इक मन्त्र सम l
कई रंग हैं जीवन के
हर रंग सबसे अलग और जुदा हैं .
हर पल जीवन रंग बदलता हैं
कभी ख़ुशी कभी गम और दर्द के रंग हैं इस जीवन में .
रंगों की भी एक दुनियाँ
कभी जीवन में इंदरधनुषी रंग हैं
कभी सागर की तरह गहरे दुःख दर्द के रंग .
कभी जीवन में दिखता हैं
इन्सान के बदलते चहेरे के रंग
कभी उसके ईमान का रंग .
हर बार बदलता हैं इंसानियत का रंग
रंग का बदलाव उसके चहेरे से नहीं
उसके चरित्र से पता चलता हैं
स्वरचित:- रीता बिष्ट
हमारे ही सारे ग़लत हैं ढंग
हम ही करते सदा उसे बदरंग
और बाद में होते रहते तंग।।
फूलों की मधुर भव्य सुगन्ध
अलग अलग फूलों के रंग
आम पपीता नारंगी चीकू
कितना विराट है प्रबन्ध।
हरे पेड़ों की भव्य कतार
हरियाली बिखेरती भरमार
सबकी ही उदर पूर्ति करती
प्रकृति कितनी है उदार।
सात रंगों का इन्द्रधनुष
कर देता है सबको खुश
बचपन यौवन और बुढ़ापा
यह भी तो रंग की परिभाषा।
रंग में भरी प्रकृति रंग रंगीली
हर मुद्रा में होती यह नशीली
सरसों की चादर ओढ़ा देती
इसे ओढ़नी सुन्दर पीली ।
पीछे मां के पल्लू को थामे बच्चा टोली होती थी!!
मिष्ठानों पे छुटके की, कैसे घूरती नजरें रहती थी
दो आंखो संग मां की, तीसरी आंख भी होती थी
मनश्रद्धा की चाशनी में वो गुजिया घोल पगाती ,
मठरी भजिया सेव सलोने खूब भरपूर बनाती थी!!
बचपन वाली होली पे जब मां पकवान बनाती थी!!
एक एक मठरी को बेले, गाकर फाग सुनाती थी
मैया मेरी बिना थके ही यूं चूल्हे संग बौराती थी
मौहल्ले के लावण लारों की गिनती ध्यान रखती,
किसको क्या देना लेना है खाता संग चलाती थी!!
बचपन वाली होली पे जब मां पकवान बनाती थी!!
फागनवा के रंग में रंग के मन अबीर हर्षाती थी
मीठी मीठी सी धुन गाकर कोयलिया बन जाती थी
बर्फी बुजिया का थाल सजाये घर भर में इतराती,
मिठाइयों की सुगंध मदेरी मुंह पानी भर जाती थी!!
बचपन वाली होली पे जब मां पकवान बनाती थी!!
मस्त मस्त ठंडई में अपने नेह का रंग मिलाती थी
चोरी चुपके दाल पकौङो में भांग और मिलाती थी
बहके बहके होरियारों पे फिर हंसी ठिठोली करती,
मंदिर और शिवाले पूजती मान मनौती करती थी!!
बचपन वाली होली पे जब मां पकवान बनाती थी
पीछे मां के पल्लू को थामे बच्चा टोली होती थी!!
-------------- डा. निशा माथुर/8952874359
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कैसे कैसे रंग सजे हैं
जीवन के त्योहार में
आओ मिलकर चलते हैं
रंगों के संसार में
कोमलता का रंग गुलाबी
लाल लाज की लाली है
पीला यानि शुभारंभ
शूरता केसर वाली है
समृद्धि का रंग हरा है
नीला स्वच्छता से भरा है
रुपहला है सपनों वाला
खुशियों का सुनहरा है
सतरंगी है जीवन सारा
जिस भी चाहे रंग में ढालो
खुशियां बांटो खुशियां पाओ
हर पल को रंगीन बना लो
सपना सक्सेना
स्वरचित
होली आई है आज सखी ।
सब आपस में करते बरजोरी,
कान्हा कित खोये बैठे है?
रंग रंग के मेले में भी कान्हा,
क्यों आज अकेले बैठे हैं?
राधे रानी नहीं आयीं अभी,
सो आज कन्हैया अकेले हैं।
राधे संग प्रीत की रीत यही,
उनकी यादों में ही खोये हैं।
चल रहा अबीरगुलाल सखी,
रंगों की सतरंगी टोली भी है।
राधे आयीं रंग गुलाल लिए ,
संग उनके गोपिन की टोली है।
देखो कान्हां अब मुस्काय गये
गोप ग्वाल करते तैयारी हैं ।
सब मिलजुलकर हैं खेल रहे,
देखो सखि आज तो होली है।
डॉ.सरला सिंह
छुता रहै तिरंगा सदा यू ही आसमान को
ऑच न आने पाये इसकी आन बान को।
गौरे काले अंर भाषा मे भेद नही हम करते
गर्दिश कितनी ही आजाए हम नही है डरते
सीख भी यही हम देते है सारे जहान को।
छुता रहे तिरंगा सदा,,,,,,
जिस संस्कृति ने कमजोरो को कभी नही सताया
जिसने सदा मजलुमो को उनका हक दिलवाया
बराबरी कि हक मिलता यहाॅ हर इन्सान को।
छुता रहे तिरंगा सदा,,,,,
इस जमी को शहीदो ने अपने खून से सिंचा
यहाॅ के कर्म पुरूषो ने प्रगति का नक्शा खिंचा
हमको भी बढाना है आगे इसकी शान को
छुता रहे तिरंगा सदा, ,,,,,,,,,
देखे जो ख्बाव देश भक्तो ने ये उसकी ताबिर है
तीन रंग का यह तिरंगा भारत की तकदीर है
कुर्बान कर देगे इसकी खातिर हम सब जान को ।
छुता रहे तिरंगा सदा यू ही आसमान को
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
यहाँ चहुंओर हरयाली छाई है।
हरित परिधान पहनकर जैसे,
खुशियाँ वसुधा पर फैलाई हैं।
रंग बिरंगे फूल खिले हैं,
धरती के इस गुलशन में
प्रकृति पुलकित होती है,
खुशबू फैलाती जनजन में।
गिरगिट जैसे रंग बदलता,
कैसे ये सभी जानते मानव।
आज हाथ में फूल लिए हैं,
कल बन जानता है ये दानव।
रंग तिरंगा भारत के झंडे का,
कुछ कैनवास पर खींचे चित्र।
इंन्द्र धनुष धरा पर सजता है,
रंगे सुंंन्दर आकाश लगे बिचित्र।
सतरंगी रंगों में रंग लें हम दिल को
कुसमित और प्रफुल्लित होये मन।
सौहार्दपूर्ण वातावरण रंगों में भीगें,
सुरभित रंगीन आनंन्दित होये जन।
स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
*रंग *
सबको मिलता कोरा जीवन
इनमें रंग भरते संसार
सात रंगों की है दुनिया
रंग मिलकर बनते रंग हजार
धरती के आँगन में देखो
कुदरत ने दिया रंगों का भंडार
प्रकृति ओढ़े सतरंगी चादर
बहते जब वसंती बयार
हरी धरती हर्षित जीवन
सावन जब गाता मल्हार
सुनहरी धूप तपता जीवन
बनते कुंदन पड़ते जब वार
खुशियों के रंग से रंगीन हुए
तो बजते दिल के तार तार
दुःखों से गमगीन हुआ मन
तो गिरते अश्रु के धार
धवल चाँदनी मन्द मन्द मुस्काती
सपने होते जब साकार
कोरा जीवन रंगों से सजकर
जाना है प्रभु के द्वार
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
रंगना चाहूं उसको मै इंद्रधनुषी रंग मे माँ.
तीन रंग का तेरा तिरंगा लहर लहर लहराएगा
बीच मे उसके चक्र आसमा नी रंग दिखायेगा हिम्मत नहीं किसी काफिर की उसको हाथ लगाएगा
काट डालेंगे हाथ उसके तुझे जो छूने आएगा
अपनी भारत माँ के लिए लाल तेरा मिट जायेगा.
ऐ मेरी......
मेरे रक्त का कतरा कतरा करू न्योछावर तुझको माँ
एक संकेत गर हो जाये तो लुटा दूं अपने दोनों जहाँ
पर शान पर तेरी आंच ना आने देंगे माँ
ऐ मेरी........
कुसुम पंत
स्व रचित
ये रंग है तेरे मेरे प्यार के...
मेरे संसार के...
हर मौसम बहार के...
ये रंग...
खिलतें हैं जब तेरी हंसी की तरह...
मन कस्तूरी महकता है मेरा...
रोम रोम से निकलती फुहार से...
भीग जाता है तन मन मेरा...
खुलते हैं पट मेरी पलकों के जब...
सतरंगी से उभर...
तेरे अक्स जगमगाते हैं...
यादों के क्षितिज पे...
बेशक नहीं हो तुम साथ....
जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि ये आकाश...
देते हैं हर पल मुझे.....
तेरे होने का आभास....
नहीं होते धुंधले कभी ये...
न ही मटमैले होते हैं...
ये रंग हैं प्यार के...
मेरी चाह के...
मेरे इंतज़ार के...
ये रंग.....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
सुख-दुःख जीवन के हैं दो रंग
दोष ना देना प्रकृति को
जिसकी जैसी प्रवृत्ति
वो उस रंग में रंगा है
हमें विधाता के रंग में रंगना है
जीवन की गहराई में उतरकर
परदोष रंग पर अंकुश
लगाना है।
2
इंसानो ने दिल की रगो से
कई खंजर काटे हैं
हिम्मत का रंग नहीं बदला
थमता तूफां बता रहा है।
3
लहू का रंग नहीं बदला
घायल खंजर बता रहा है
सारे रिश्ते टूट गए
उजड़ा आँगन बता रहा है।
4
शराब का रंग नहीं बदला
बेहोश शराबी बता रहा है
दुश्मन भी दोस्त बनकर
गले मिल रहे हैं
मदहोश मधुशाला बता रहा है।
5
इंसानो के हैं कई रंग
आबाद श्मशान बता रहा है
मुर्दो का भी होता है मोल-भाव
पाक्-ए-कफन बता रहा है ।
@शाको
स्वरचित
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