सावन की रुत भीगा मौसम....
भीगा है मेरा मन.....
राह मैं तेरी देखूं हर पल....
आ जाओ न अब साजन....
मेहंदी रचा हाथों पे मैंने...
नाम तेरा छुपाया उसमें....
बार बार चूमूँ मैं उसको....
जैसे तुम्हें हो पाया मैंने....
अब रह पाऊं न तुम बिन....
आ जाओ न अब साजन....
सखियाँ झूम झूम के गायें...
मन मेरा भी ललचाये....
पर गाऊं मैं तेरे ही संग...
जब तू झूला मुझे झुलाये...
बीत न जाए ये सावन....
आ जाओ न अब साजन....
हंसती हैं सब सखी सहेली..
देख मेरी हालत जो बनी....
कोई कहे मैं हुई बावरी...
कोई कहे मैं तुझसे हारी...
कोई न जाने दिल मेरे को...
और इसका ये पागलपन...
आ जाओ न अब साजन....
यूं तो मौसम आते जाते...
हर पल तेरी याद दिलाते....
जब भी आँगन फूल खिलते...
'चन्दर' दीखते तुम मुस्काते...
मन भंवरा समझाऊँ कैसे....
मुआ सावन आग लगाए....
जले है सब मेरा तन मन...
आ जाओ न अब साजन....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा
सावन आया आओ कन्हैया,
झूला तुम्हें झुलाऐं।
मनमयूर कैसे हर्षित होता है,
तुमको यहाँ बताऐं।
स्याह घने बदरा छा रहे,
रिमझिम मेह बरसता है।
तेरे दीदार को मेरे कान्हा,
सबका दिल तरसता है।
मनोरम दृश्य दिखाई देते,
चहुंओर हरयाली छाई है।
मनभावन जी बहुत सुहावन,
ये बर्षा खुशहाली लाई है।
सावन ने सबके मन मोहे,
दादुर झींगुर तान सुनाते हैं।
मधुर कुहकती कोयलिया कुछ,
राग मेघ मल्हार सा गाते हैं।
भर गऐ ताल तलैया सारे,
पूरे यौवन में नदियां बहती हैं।
चलो चलें सब मौज मनाऐं,
ये सब तुमसे सखियां कहती हैं।
स्वरचित ः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म.प्र.
शीर्षक : सावन
जब वसुधा की,
दरकती साँसे,
आकाश को चूमती हैं।
और उसकी प्रीत,
वाष्पित होकर ,
बादलों को बुनती है।
तो आकाश के ह्रदय से,
अनुराग स्वरूप,
सावन की वर्षा होती है।
गीत रागिनी मिल,
राग मल्हार छेड़ती हैं।
अतृप्त तृष्णाओं पर,
मधुर फुहार बरसती है।
यादों का झुरमुट,
तागे नए बुनता है।
स्वयं के समर्पण को,
बरसने से रोकता है किन्तु ,
मन चंचल ,
कहाँ रुकने वाला ,
शिखी से पंख फैलाकर,
इन्द्रधनुष बनकर,
नए रंग बिखेर देता है।
बेला जूही की महक,
और मदहोश करती महुआ
उद्धिग्न सी करती है,
मन मकरन्द सा
खिल जाता जब भ्रमर
रसपान करता है।
प्रीत कलियों सी,
खिल .जाती है।
कोयल की कूक,
दादुर की टर्र टर्र,
नए गीत सुनाती है।
झूलों पे बैठकर,
सुरमई संगीत छेड,
सावन गुदगुदाता है।
वसुधा को रंगीन चुनरिया
ओढाकर आसमान,
इतराता है।
इस प्रणय मिलन से,
तन मन हर्षित होता है
जब वसुधा का आलिंगन,
आकाश करता है।
इसी मधुमास से,
उत्सव सा छाता है।
नवांकुर की आभा,
नवजीवन में रस भरती है।
यादों से निकलकर वसुधा,
जब आकाश के संग,
सावन की बारिश में भीगकर,
बहार के गीत गाती है।
तब उस अलौकिक आभा से ,
सम्पूर्ण सृष्टि
पुलकित हो उठती है।
स्वरचित : मिलन जैन
अजमेर (राजस्थान)
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
रुन- झुन, रुन-झुन बजे पायलिया,
नुपरों ने शोर मचाया रे,
लहर-लहर-लहराई चूनर,
जब गोरी ने पेंग बढ़ाया रे,
मधुर-मधुर-मदमस्त जवानी,
बागों में हर्षाया रे.....
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
एक हुये थे स्याम रसीले,
थी राधा बरसाने की,
डार कदम पर चनन पालना,
रेशम की डोरी डाली थी,
रख होंठो पर मधुर मुरलिया,
झूले थे नंदलाला जी,
सृस्टि सारी झूल रही थी,
जब झूली थी राधा रानी जी
थी आयी ऋतु यौवन पर,
या यौवन पर ऋतु आया रे.....
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
वो खुश है जिनको वर्ष में,
एक ही सावन आता है,
मेरी ये बैरी अखियाँ,
हर दिन सावन कर जाता है,
गम की कारी घेर बदरिया,
रिमझिम नीर बहाता है,
मरुभूमि सा जीवन मेरा,
ना हर्षाया, ना हरीयाया रे,,
पता नही इस जीवन में,
कब झूम के सावन आया रे...
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
...राकेश,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
रुन- झुन, रुन-झुन बजे पायलिया,
नुपरों ने शोर मचाया रे,
लहर-लहर-लहराई चूनर,
जब गोरी ने पेंग बढ़ाया रे,
मधुर-मधुर-मदमस्त जवानी,
बागों में हर्षाया रे.....
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
एक हुये थे स्याम रसीले,
थी राधा बरसाने की,
डार कदम पर चनन पालना,
रेशम की डोरी डाली थी,
रख होंठो पर मधुर मुरलिया,
झूले थे नंदलाला जी,
सृस्टि सारी झूल रही थी,
जब झूली थी राधा रानी जी
थी आयी ऋतु यौवन पर,
या यौवन पर ऋतु आया रे.....
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
वो खुश है जिनको वर्ष में,
एक ही सावन आता है,
मेरी ये बैरी अखियाँ,
हर दिन सावन कर जाता है,
गम की कारी घेर बदरिया,
रिमझिम नीर बहाता है,
मरुभूमि सा जीवन मेरा,
ना हर्षाया, ना हरीयाया रे,,
पता नही इस जीवन में,
कब झूम के सावन आया रे...
पेड़ों पर हाय पड़ गये झूले,
मेघों ने शोर मचाया रे,
फैल गयी हरियाली प्यारी,
आया सावन-आया रे,
...राकेश,
हरियाला सावन, पायल खनखनावत
मोरा बिछुआ भी खनके, करे पुकार!!
कानन में सांवरिया, चुप चुप निरखत
झूमत सावन,सरस बरसे बरखा बहार!!
कारी कारी बदरीया, उमङ बरसावत
धरा रूप धर लीनी है, सौलह सिंगार!!
झूला झूंलू पींग, मस्त गगन को छुवत
मन फूल खिले कजरी के, राग मल्हार!!
चुनरीया धानी मोरी, बहकी बल खावत
अंगङाई लेत,सिलि सिलि चलत बयार!!
मन पंख फैला, केहू केहू मयूरा नाचत
पीहू पीहू बैरी सा पपीहा करे पुकार!!
उमङ घुमङ घङ घङ के बादल गरजत
नहनी नहनी तन बूंदियां बरसाये प्यार!!
भीगा अँचरा, कजरा नैनन में मुस्कावत
छुईमुई तन सांसों के बज गये तार!!
मेघ बिजुरी आलिंगन कर रास रचावत
रूत छेङे मोहे, रिमझिम बरसाये फुहार!!
मैं बैरन भीगा मन, सावन आग लगावत
बिन बोले नयनों से बहती अंसुवन धार!!
-- डॉ. निशा माथुर
सावन
*************
मन मयूर है नाच रहा,
देख घटा घनघोर।
पूर्वा करती मनमानी,
मन खींचे तेरी ओर।
बरखा रानी पहन के पायल,
छम-छम करती आती है।
मनभावन है सावन मास ये,
याद तेरी तड़पाती है।
सावन की ये रात चाँदनी,
तेरा नेह लुटाती है।
रिमझिम पड़ती फुहारें,
तन-मन मेरा भीगाती है।
बरखा,पवन ये नटखट बदली,
हाल तेरा बताते हैं।
सावन के झूले बागों में,
जिया में आग लगाते हैं।
निगहबानी सीमा पर करते,
बन के देश के प्रहरी तुम !
तेरे मन की दशा मैं सहज समझती,
सुन लेना मेरी भी स्वर लहरी तुम !
उषा किरण
*************
मन मयूर है नाच रहा,
देख घटा घनघोर।
पूर्वा करती मनमानी,
मन खींचे तेरी ओर।
बरखा रानी पहन के पायल,
छम-छम करती आती है।
मनभावन है सावन मास ये,
याद तेरी तड़पाती है।
सावन की ये रात चाँदनी,
तेरा नेह लुटाती है।
रिमझिम पड़ती फुहारें,
तन-मन मेरा भीगाती है।
बरखा,पवन ये नटखट बदली,
हाल तेरा बताते हैं।
सावन के झूले बागों में,
जिया में आग लगाते हैं।
निगहबानी सीमा पर करते,
बन के देश के प्रहरी तुम !
तेरे मन की दशा मैं सहज समझती,
सुन लेना मेरी भी स्वर लहरी तुम !
उषा किरण
सावन मास सुहाना , इसमें दूर कहीं न जाना
मेरे साजन मैंने माना , ये मौसम बड़ा दीवाना ।।
धरा ने रूप धरा सुन्दर , बादलों ने प्यार पहचाना
भर गये ताल तलैया, चहुँदिश खुशी का तानाबाना ।।
जिनके कंत थे दूर देश में , उनका हुआ है आना
ढोल मँजीरे घर घर बाजें , किसान भी गाये गाना ।।
गीत मल्हार कजरी धुन सुनना और सुनाना
झूला भी झूलेंगे ''शिवम" हाथ मेंहदी सजाना ।।
घड़ी सुहानी सावन की ये घड़ी नही विसराना
प्रेम का बन्धन जन्मों का प्रियतम ये निभाना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
बादल धरती का मन भावन
ये जब झूमें तो हो सावन
धरती भी खुश हो हरी हरी
बिछाती हे सुन्दर बिछावन।
सावन का सौन्दर्य निराला
मन को कर देता मतवाला
मल्हार गाती प्रकृति बाला
हर दृश्य हो जाता आला।
सरसों का आॅचल सुन्दर पीला
विमुग्ध होता गगन भी नीला
होता रहता मन भी रंगीला
सब कुछ ही दिखता है रसीला।
सावन में सरिता बड़ी विकल
सागर मिलन की बढ़ती हलचल
तोड़ती बाधायें सारी रस्ते की
और बहती जाती है छल छल।
आ रहा है झूमता सावन
हरा-भरा परिधान है उसका
श्रृंगार है पुष्प, लता,तरू और उपवन
स्वागत कर,रे मन
मिट जाएगी तन की तपन
हर्षित होंगे पशु,पक्षी,नर,नारी सब
जब बरसेगा धरती पर जल बन जीवन
स्वागत कर,रे मन
लाएगा अनगिनत सौगातें संग
लगेंगे झूले बागों में नाचेगा जन-जन
झूमेंगी फसलें खेतों में,बरसेगा अन्न और धन
-मनोज नंदवाना
कहीं गरज कर भी धरा को तरसा गया
अबके सावन मेरे अंगना हुम हुमा के आ गया
फूल बेल बूटे संग दिल की
दरो-दीवार भी भिगो गया
दिल की गलियों में यूं प्रेम का सैलाब उमड़ पड़ा
यादों का लिफाफा सहेज रखा था/ भीग भीग उसका
आखर गया।।
डा.नीलम
पट पट परत हैं तरूवर पात पे
छन छन छनत झांझर झनकार है
धम धम धमक रहे घन गगन में
ज्यों नृप कोई सिंह पे सवार है
चम चम चमक घटा घनघोर बिच
चंचल चपला है या कि तलवार है
गमक रहे घर वन भीनी गंध से
झूम रहा जग ठंडी बयार है
धन्य धरा है आओ ऋतुराज हे !
सावन के इसआवन को जुहार है ....
सपना सक्सेना
स्वरचित
सावन रोता मन बावरिया
पुकारता मन तूझे ओ साँवरिया
दे दो संदेशा ओ कारी बदरिया
आ जाओ पिया भेजी है पतिया
विरह गीत गाती झनकती पायलिया
रात सताती तेरी ही बतियां
अगन लगाती चँदा की चँदनिया
रात जागती ना थकती अँखियां
देख देख हँसती सारी सखियाँ
भर दो सजन प्रेम की गगरिया
महके जीवन बहके रतिया
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
चंद हाइकु -"सावन "पर
(1)
"सावन" खले
विरह की आग में
बूंदों से जले
(2)
मेघ सुनाते
"सावन" का सन्देश
मोर नाचते
(3)
भीगा "सावन"
हरिता में सरिता
मनभावन
(4)
"सावन"झड़ी
जैसे मेघों को पड़ी
डाँट या छड़ी
(5)
खेतों में मेले
"सावन" का उत्सव
पानी के रेले
(6)
सुर "सावन"
बूँदों की ताल पर
थिरका मन
(7)
दर्द छुपाये
सावन के आते ही
आँसू मिलाये
(1)
"सावन" खले
विरह की आग में
बूंदों से जले
(2)
मेघ सुनाते
"सावन" का सन्देश
मोर नाचते
(3)
भीगा "सावन"
हरिता में सरिता
मनभावन
(4)
"सावन"झड़ी
जैसे मेघों को पड़ी
डाँट या छड़ी
(5)
खेतों में मेले
"सावन" का उत्सव
पानी के रेले
(6)
सुर "सावन"
बूँदों की ताल पर
थिरका मन
(7)
दर्द छुपाये
सावन के आते ही
आँसू मिलाये
(8)
खिलती धरा
सावन ने सजाया
श्रृंगार हरा
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