भव सागर में नाव है गुरू ही है पतवार ।।
दूजा न कोई रास्ता न कर सोच विचार
बिन पतवार के नाव न होती भव से पार ।।
गुरू समान न दूसरा जग में कोई यार
परम हितेषी जानिये परमात्म का अवतार ।।
भाव से ही भगवान हैं भाव में कर सुधार
एकलव्य का गुरू प्रेम जाना है संसार ।।
सच्चे हृदय से करले गुरू कोई स्वीकार
श्रद्धा और विश्वास का ''शिवम" चमत्कार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
दैनिक कार्य स्वरचित लघु कविता
दिनांक 27.7.18
दिन शुक्रवार
विषय गुरु
रचयिता पूनम गोयल
मल-मल के साबुन से ,
नहाया तो क्या किया !
ग़र मैल न उतारा मन का ,
तो क्या किया !!
मल-मल के.....
१)--इस क्रोध की ज्वाला को देखो ,
कैसी भड़क रही !
हर एक के लिए ईर्ष्या ,
मन में सुलग रही !!
इस आग को ग़र न बुझाया ,
तो क्या किया !
मल-मल के.................
२)--मैं हूँ , ये सब मेरा है --
अहंकार भर गया !
क्या सोचके इन्सान ,
मद में चूर हो गया !!
इस अहं को ग़र न मिटाया ,
तो क्या किया !
मल-मल के.................
३)--अज्ञानी है तू , फिर भी ,
खुद को ज्ञानी समझें क्यों ?
इतराए खुद पे इतना ,
कि कोई दूसरा न हो !
जीवन में सद्गुरू न पाया ,
तो क्या किया !!
मल-मल के..............
४)--अब भी समय है, प्राणी ,
तू ध्यान दे अगर !
जीवन तेरा सँवर जाए ,
तू मान ले अगर !!
फिर बाद में पछताया भी ,
तो क्या किया !
मल-मल के...................
५)--ये मैल हैं तेरे मन के ,
धोले इन्हें !
सद्गुरू की ज्ञान-गंगा में ,
डुबो ले इन्हें !!
जीवन यूँ ही गंवाया ,
तो क्या किया !
मल-मल के................
मोह माया है ज्ञान कतरनी
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
लख चौरासी योनि भटकनी
जैसी करनी वैसी भरनी
पाप की गठरी शीश न धरनी
सतगुरु कृपा पार वैतरनी
मोह माया है ज्ञान कतरनी
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
मन की गति है सतत् विचरनी
फिर फिर आकर फिर वही करनी
कटुक वचन पर अमृत वरनी
सकल जगत पर पीड़ा हरनी
मोह माया है ज्ञान कतरनी
सतगुरु शरण जगत की तरनी।
सतगुरु की महिमा अनत जानहिं जाननहार,
जो जानेह सो तर गये हुइ भव सागर पार।
अनुराग दीक्षित
पूर्णिमा में ही होता एक अदभुत आकर्षण
गुरु कर देते इसमें अध्यात्म का सुन्दर वर्षण
मन की स्थिति फिर कुछ सुधर जाती
कम हो जाता जब अध्यात्म से भौतिक घर्षण।
इसलिये इस पूर्णिमा में गुरु लगाते चार चान्द
और शिष्य अध्यात्म जगत में लगाता अपनी ऊॅची फान्द
यही तो गुरु पूर्णिमा का है श्रॅगार
भौतिक बाधाओं की टूटने लगती दीवार।
गुरुवे नम:
Rekha Ravi Dutt
"गुरू"
करते ज्ञान की बरसात,
होते हैं गुरू महान,
प्रथम स्थान दूँ माँ को,
दूजा गुरू का है स्थान,
अक्षर ज्ञान के साथ,
व्यवहारिक ज्ञान भी देते हैं,
लक्ष्य खड़ा करने को,
जीवन की नींव वो रखते हैं,
सिखलाया गुरू ने हमको,
जीवन का सार,
करें मिलकर सब,
गुरू का आभार
स्वरचित-रेखा रविदत्त
27/7/18
शुक्रवार
जितना करू सम्मान गुरू का
उतना कम पड जाए ।
परम पिता भी जिसके आगे
नत मस्तक हो जाए।
अपने हर शिष्यो को गुरूवर
सत मार्ग दिखाते है।
जीवन को जीने का भी
सलिका सही सिखाते है
कोई बडा न कोई छोटा
ये बात न मन मे लाए।
सुनो हम गुरूवर के गुण गाए।
गुरू सदा ही देश को
देते है कर्णधार।
गुरू ही है स्तम्भ देश का
गुरू ही है आधार।
सुनलो सभी धर्म ग्रंथ भी
महिमा गुरु की गाए।
सुनो हम गुरूवर,,,,
अच्छा गुरू मिल जाए जिसको
वो है किस्मत वाला।
ज्ञान ज्योति के चक्षु खुलते
हो अन्तर मन उजियारा।
सुर्य सा पाकर शिष्य रू भी
मन ही मन हर्षाए।
सुनो हम गुरूवर के गुण गाए।
दिल से करो सम्मान गुरू का
ये बात तुम्है हम बताते।
जिसने किया न आदर उनका
वे बाद मे बहुत पछताते।
गुरू कृपा हो जाए जिस पर
वे भव सागर तर जाए।
सुनो हम गुरूवर ,,,,,,,
सदगुरू देकर हमको मालिक
हम पर किया उपकार।
इज्जत पाई है दुनियाॅ मे
अच्छे हो गये संस्कार ।
हामिद हम उनकी श्रृध्दा मे
क्यू न शिश झुकाए।
सुनो हम गुरूवर के गण गाए।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
(१)
"गु" से अज्ञान
"रु" से प्रकाश ज्ञान
"गुरु" विच्छेद ।
(२)
संस्कृति कहे
ये आध्यात्म प्रज्ञा है
गुरु व शिष्य ।
(३)
गुरु का ज्ञान
शिष्य के प्रति स्नेह
निःस्वार्थ भाव ।
(४)
गुरु ब्रह्मा है
गुरु महेश्वर है
गुरु विष्णु है ।
(५)
शिष्य का श्रद्धा
गुरु है संरक्षक
शाब्दिक ज्ञान ।
(६)
सर्व क्षेत्र में
गुरु सर्वोपरि है
गुरु विश्वास ।
(७)
गुरु ईश्वर
गुरु भ्रम नाशक
गुरु सर्वत्र ।
(८)
हिंद संस्कृति
है पुरातन कथ्य
गुरु श्रेष्ठ है ।
(९)
भिन्न प्रमाण
इतिहास साक्षी है
गुरु दक्षिणा ।
(१०)
शिष्य के त्याग
त्रेता से सतयुग
गर्वित हिंद ।
(११)
गुरु व शिष्य
धूमिल रीत आज
है कलयुग ।
(१२)
ज्ञान अधूरा
जीवन नैया भ्रम
गुरु से मोक्ष ।
(१३)
सर्व गुरु में
प्रथम गुरु माँ है
सत्य शाश्वत ।
(१४)
धन्य जीवन
प्राप्ति ज्ञान ज्योत की
गुरु छाँव में ।
शावर भकत "भवानी"
स्वरचित
गुरु छवि ऐसी प्यारी मनवा....
गुरु छवि ऐसी प्यारी.....
भोर मेरे जीवन की गुरु से....
निंदिया भी आये प्यारी...मनवा....
गुरु छवि ऐसी प्यारी...
राह न भटकूं जीवन में कभी....
गुरु अखियां रहत निहारी...मनवा.....
गुरु छवि ऐसी प्यारी...
सोच मेरी मन भाव प्रेम के....
गुरु दे हैं उभारी...मनवा.....
गुरु छवि ऐसी प्यारी....मनवा....
तृष्णा मिटी मन तृप्त भया अब....
गुरु सागर बलिहारी....मनवा....
गुरु छवि ऐसी प्यारी....
गुरु मेरे की ज्योत जगी जब से....
कुमति मेरी सब हारी....मनवा...
गुरु छवि ऐसी प्यारी....
देख देख छवि गुर आपण की....
मेरी नाचें वृतियां सारी...मनवा....
गुरु छवि ऐसी प्यारी.....
गुरु छवि मैं जब भी निहारूं....
पाऊं कृष्ण मुरारी....मनवा...
गुरु छवि ऐसी प्यारी.....
II गुरुकृपा रचित - सी.एम्.शर्मा II
काफ़िया- अते
रदीफ़- रहना है।
तिथि - २७/७/२०१८
वार - शुक्रवार
गुरु गुणों की खान सदा उनकी सुनते रहना है।
गुरु सेवा मार्ग में आए रुकावटें सहते रहना है।
कर तू तन -मन से सेवा प्रिय गुरुवर की।
निरन्तर हरि -मिलन के सपने बुनते रहना है।
गुरू - मुख से निकले जो अमृतवाणी।
शब्द-शब्द हृदयगंगा में उतारते रहना है।
सरल नही डगर गुरुसेवा की प्यारे।
सफलता की सीढ़ी चढ़ते रहना है।
जीवन बगिया कंटीले काँटों से भरी पड़ी।
बन फूल गुलाब तुझे हमेशा महकते रहना है।
कर संकल्प गुरुचरणों में लगा कर सच्ची प्रीत ।
बन सदशिष्य भवसागर से पार उतरते रहना है।
"वीणा" भी लगा चुकी अरज गुरु चरणों में।
निगाहें ऐ करम गुरुवर सदा बरसते रहना है।
गुरु कृपा बिन जगत में निखरता नहीं इंसान,
संकटों से जुझकर भी बिखरता नहीं इंसान।
जो करे नहीं जीवन में गुरु का आदर सम्मान,
उसको जगत में मिले नही किसी का भी मान।
गुरुदक्षिणा है रखना अपना मर्यादित आचरण,
तभी सुंदर सुफल है इंसान का संपूर्ण जीवन।
गुरु का रखना जीवन में हे इंसां, देवतुल्य स्थान ।
मिलता रहेगा आजीवन सुख,समृद्धि और वरदान।
अगर गुरु का होगा जीवन में, हाथ तुम्हारे माथ,
दुख तुम्हारे सब्र से भागेगा, मिलेगा सुख का साथ।
प्रथम गुरु जननी माता का रखना हरदम ख्याल,
उनकी खुशी से ही रहेंगे हम आजीवन मालामाल।
*रेणु रंजन
( शिक्षिका )
रा0प्रा0वि0 नरगी जगदीश ' यज्ञशाला
सरैया, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
1-है
गुरू
महान
धैर्यवान
चरित्रवान
मिटाता अज्ञान
पाता बहु सम्मान।
2-है
गुरू
असीम
अप्रतिम
अपरिमित
आनन्ददायक
ईश ज्ञान वाहक।
सर्वेश पाण्डेय
27-07-2018
स्वरचित
दी शिक्षा मुझको ऐसी, आ सकूँ जो समाज के काम ।।
भरा हुआ है पुस्तकों में ही, संसार का समस्त ज्ञान ।
पढ़ लो पुस्तक कितनी, बिना गुरु मिलता नहीं ज्ञान ।।
मुझको ही नहीं देते गुरु सारे समाज को विद्या दान ।
दान हैं सभी बड़े, विद्या दान से नहीं बड़ा कोई दान ।।
करो दान कितना ही, धटता नहीं इससे आपका ज्ञान ।
करोगे जितना विद्या का दान बढ़ता उतना ही ज्ञान ।।
लगाओगे शिक्षा पर जनाब, जितना ही अधिक ध्यान ।
पायेंगे आप भी ज्ञान में, आप उतना ही ऊँचा स्थान ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
बिना गुरू ना पा सकें,ज्ञान दृष्टी का क्षेत्र।।
त्रिदेवों के देव गुरू,महि मंडित श्री आप।
गुरूवर्य चिंतन मनन,संचित व्योमित व्याप।।
कोटीश: वंदन गुरू,बिरदु दिन और रात।
वरद् हस्त हो शीश पर,धन्य धन्य मम गात।।
सत्य सनातन संसकृति,और सोलह संस्कार।
भारतीय परिवेश में , प्रथमहि गुरू निर्धार।।
गुरु शिष्य कि परंपरा,सदियों सदि पुरानी।
आज मात्र जो रह गई,पन्नों पर ही मानी।।
स्वरचित:-रागिनी शास्त्री
जो समझे उसका हो बेड़ा पार
हाथ पकड़ कर लिखना सिखाया
कठिन डगर पर चलना सिखाया
ऐसे होते है हमारे गुरु महान
गुरु की महिमा है अपरम्पार
जीवन में झंझावात से लड़ना सिखाये
जीवन पथ पर आगे बढ़ाना सिखाया
गुरु की महिमा से जो है अन्जान
उसका जीवन हैं अंधकार
जिस गुरु ने मेरा जीवन संवारा
उसको हैं मेरा बारम्बार नमस्कार
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव
1
सत्य की ज्योति
गुरु जीवन पुंज
तम से मुक्ति।
2
अथ से इति
सर्वत्र अनुराग
गुरु पराग।
3
गुरुत्व आँच
शिष्य कर्म तपाता
सोना निखरा।
वीणा शर्मा
गुरू की महिमा अपरम्पार।
गुरू ही से मिलती राह है ,
मंजिल तक जो पहुँचाय।
गुरू की करते वन्दना हम
गुरू से पाते हम सन्मार्ग ।
गुरू से गुरू नहिं कोउ है,
ईश्वर तक जो पहुँचाय ।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु हैं ,
गुरू सब देवों के देव है।
गुरू यदि दिल से चाह ले,
जीवन सबका तर जाय ।
डॉ.सरला सिंह
गुरु ज्ञान का सागर हैं बाँटते रहते ज्ञान
जो उत्तम शिष्य होते ग्रहण करते ससम्मान
अन्य सभी पत्थर सरीखे बिन भीगे रह जाते हैं
और ज्ञान विद्द्या के बादल बरस के निकल जाते हैं
जरूरत इस बात की है अतः गुरु को गंभीरता से लिया जाये
और उनका सिखाया पूरे ध्यान मनोयोग से सुना जाये
(स्वरचित)
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