Sunday, July 15

"तस्वीर"14जुलाई 2018



तस्वीर 
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भावनाओं के रंगो से 
गीतों की तस्वीर बनी 
फूल सजाए शब्दों के 
सुर वाली जंजीर बनी 
अक्षर अक्षर नाच रहा है 
साथ कलम की थिरकन पर 
ठहरावों के चांद सजे हैं 
लय ताल की बिखरन पर 
गूंज रही हैं मन की कूकें 
शांत पलों के बिरवा में 
बुला रही हैं पास प्रिय को 
मन महकती पुरवा में 
आ जाओ जो प्रियवर तुम तो 
जीवन का संगीत सजे 
धीमे-धीमे दरिया जैसे 
बूंद बूंद से गीत बने .....

सपना सक्सेना 
स्वरचित

तस्वीर रहे प्रभु की हृदय में,
बदलेगी निश्चित ये तकदीर।

सतकर्म करें भक्ति भाव से,
बदल सकें सांसारिक तस्वीर।

काम क्रोध मोह लोभ बसा है,
यहाँ जन जन के मानस में।
परमेश्वर को हम नहीं मानते,
जब रागद्वेष सबके मानस में।

तस्वीरें टांगें कुछ नहीं मिलता,
सुंन्दर छवि सुखद भावना हो,
रहें सभी सुखीजन दुनिया में,
नहीं कोईभी दुखद कामना हो।

मनमंदिर गर दूषित है अपना,
प्रतिदिन पूजा करें तस्वीरों की।
नहीं कर सकते परोपकार हम,
छोड सपन दें शुभ तकदीरों का।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.




मन की कूची लिए
हरीतिमा भावों से
प्रकृति तस्वीर रँगती हूँ।
इस अनमोल धरा को मैं
पल-पल,प्रतिपल
हर कोने से रँगती हूँ।
उच्च शिखर हो
या हो नभ -तल
या कोयल की कूक रहे
समस्त धरा के अनुभवों को
रंगने की क्षमता मैं रखती हूँ।
कल्पनाओं से सजी-धजी
भारत भूमि की क्षमता को भी
विश्व विख्यात में करती हूँ
तस्वीर मनोहर रंग कर मैं
विश्व के आगे रखती हूँ।
मन की कूची लिए 
हरीतिमा भावों से
मंद मुस्कानों में,मैं
गुलाबी भावों को खिलाने का
प्रयत्न सदा ही करती हूँ।
भाव भूमि के कागज़ पर
तस्वीर नई सी रँगती हूँ।

वीणा शर्मा


तेरी तस्वीर को सीने से लगा रक्खा है !
तेरी यादों को दिल में छुपा रक्खा है !!
कभी जी चाहे , तुझसे मिलने को अ'दोस्त ,
तो दिल की गहराइयों में , एक घर बसा रक्खा है !!
जहाँ तुम हो , मैं हूँ , कोई और नहीं है !
वहाँ दुनिया के लोगों का भी , कोई शोर नहीं है !!
वहाँ मोहब्बत ही मोहब्बत है , नहीं नफ़रत की दीवार !
और मिलता है वहाँ , प्यार बेशुमार !!
लाख़ चाहा कि तुमसे मिलकर , तुम्हारा जी-भरके दीदार करूँ !
और दिल में जो बातें हैं , वे सभी न सही , भले ही 2-4 करूँ !!
पर कभी भी ऐसा हो न सका !
बेरहम दुनिया से टकराव होता ही रहा !!
सो अब तेरी यह तस्वीर ही सहारा है ! 
जिसने हर पल मुझे सम्भाला है !!

मुझको अच्छी लगती भारत माता की तस्वीर।
भारत भूमि बना सारा निर्मल स्वच्छ शरीर।
मुझको अच्छी ------
यू पी , एम पी, बिहार, हिमाचल।
केरल , तमिलनाडु ,अरुणाचल,
पंजाब, असम हैं इसके आँचल।
गुजरात ,गोवा और कश्मीर।
मुझको अच्छी --------

मुकुट बना सिरमौर हिमालय।
गंगा यमुना का सुंदर आलय।
राम कृष्ण के सुंदर देवालय।
चरण पखारे सागर जिसके। 
बहता मन्द समीर।
मुझको अच्छी----

शान न इसकी जाने देंगे।
हरदम इसका मान रखेंगे।
जो भी इससे टकराएगा।
वो मिट्टी में मिल जायेगा।
इसकी रक्षा की खातिर।
खनकेंगी शमशीर ।
मुझको अच्छी------

शिवेन्द्र सिंह चौहान(सरल)
ग्वालियर म.प्र.

तुम्हारी इंतजारी पे तेरी तस्वीर से मेरा मन ये कह रहा, 
कि काश तुम होते यहां!!!! 
तुम्हैं निरखते, पथ तकते, मेरे भी कुछ हर्फ होते यहां वहां ! 

मेरी आखों में छलका समुन्दर उफान लिये ये कह रहा,
कि काश तुम होते यहां!!!! 
तुम्है छूती, मेरे अश्रु मोती बनकर समा जाते यहां वहां ! 

मेरी बाहों का पिघलता वो नीलाभ सा फैला ये आंसमां, 
कि काश तुम होते यहां!!!!
तुम्हारे आगोश में बिखर जाती फिर मदहोशियां यहां वहां ! 

मेरी लटो पे झूलती, पलकों पे ठहरती, वो बरसात की बूंदे 
कि काश तुम होते यहां!!!! 
अंजुरी में भरते, अमृत पी लेते, दर्द ना बरसाती यहां वहां ! 

ये सूना सफर अच्छा नहीं लगता, कोई मंजिल जंचती नहीं 
कि काश तुम होते यहां!!!! 
जज्बातों, मुलाकातों, हसीन बातों का जमाना होता यहां वहां ! 

निशा की नीरवता में गगन से टूटा सितारा, ये तेरी तस्वीर,
कि काश तुम होते यहां!!!! 
तुम्है जन्म जन्मातंर मांग लेती और दुआऐं करती मैं यहां वहां ! 

---------- डा. निशा माथुर




बूढ़े चेहरे की झुर्रियों में जवानी के पल ढूंढता हूं
पुरानी तस्वीरों में गुजारा हुआ कल ढूंढता हूं
इस कदर गुम हुए हैं दुनिया की भीड़ में
के आईने में खुद की शक्ल ढूंढता हूं

सच ही बोलेगा, ऐसा थोड़ी है
तस्वीर है ,आईना थोड़ी है
हुकूमत के नशे में चूर है तो क्या
नेता हैं, खुदा थोड़ी है

आंखों से बहता हुआ नीर बनके रह गया
लुटता हुआ एक जागीर बन के रह गया
एक तेरे चले जाने के बाद ऐ सनम
दर्द की जिन्दा तस्वीर बन के रह गया

कागज़ों पर शायरी की तकदीर बनाता हूं
इस तरह कलम को शमशीर बनाता हूं
ऐ बादलों जरा रूख़ मोड़ लो उस जानिब
मैं पानियो पर महबूब की तस्वीर बनाता हूं




तस्वीरों के शहर में कुछ जाने पहचाने चेहरे दिखते हैं

जिन्हें देखकर हम गुमनाम से दिखते हैं
ये मुर्दो का शहर है
जहाँ लोग चिर परिचित शान्त मुस्कान लिए दिखते हैं
इस भूतहा दुनिया के लोग सिर्फ कफन बाँटते दिखते हैं
कृत्रिम मालाओं से ढकी ये तस्वीरें
बिचारेपन की संवेदनाएँ बटोरती है
और खामोशी से तमाशे देखती हैं
एक स्वांग के मुखौटे ओढ़े रहती हैं
मैं झांकती हूँ उनमें इंसानियत का अंश देखने की खातिर
पर वे सपाट चेहरा लिए किंकर्तव्य विमूढ़ सी दिखती है
हर पाप को देखकर मौन रहती हैं
क्यों नहीं विसर्जित करते हम इन तस्वीरों को
जो बच्चियों के दुराचार में भी नहीं पिधलती हैं
नहीं चाहती मैं खोखली तस्वीरों की बस्ती 
मैं जिन्दा इंसानों में जिन्दा रहना चाहती हूँ
मर चुकी संवेदनाओं को जिन्दा करऩा चाहती हूँ
आओ हम मशाल बनें
ऐसी तस्वीरों का विसर्जन करें
और मुर्दों के शहर में प्राण भरें

स्वरचित : मिलन जैन




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