Tuesday, July 24

"रिमझिम"24जुलाई 2018



रिम झिम बरखा बरस जाने दो
इन फुहारो मैं हमे भींग जाने दो।


बंद न हो जाए छाते से डरकर वारिष 
सावन को जरा जमकर बरस जाने दो।

कभी हम भींगते थे वारिष के खेल मे
मेरी कागज की कश्ती तो बह जाने दो।

वो बादल की घटा वो बिजुरी की चमक
इन्है देखकर मेरे बचपन को डर जाने दो।

वो मेंढक की टर टर हरिदुब पे गोकल गाय
उन्है देखकर अब मन भी हर्षाने दो।

तन मन भींगे धरा का नवजीवन भींगे
इसलिए हामिद खूब सावन को आने दो।

हामिद सन्दलपुरी की कलम से



तु
म्हारी आहट मन में रिमझिम 
तुम्हारी मुस्कराहट मन में रिमझिम 
तुम्हारे गीत मन में रिमझिम 
तुम्हारी प्रीत मन में रिमझिम। 

बदरे की छमछम रिमझिम 
भँवरे की अनुपम रिमझिम
कजरे की प्यारी रिमझिम 
गजरे की न्यारी रिमझिम।

हरियाली प्रकृति की रिमझिम 
कवितावली कवि की रिमझिम 
सरसों में उल्लास की रिमझिम
खुशहाली लिए उल्लास की रिमझिम।

सब ओर ही बरसे रिमझिम
मानवता में हरषे रिमझिम 
बड़ी सुहानी होती रिमझिम 
महादानी भी होती रिमझिम।



रिमझिम रिमझिम बदरा बरसें।
पिया मिलन को हम तो तरसे।
ऋतु सुहानी आई रे
भन को बहुत लुभाई रे।
मनमयूर पुलकित होता 
जब नेहा मेह बरसता है।
कुहु कुहु बोले कोयलिया,
जैसे कंठ नेह हर्षता है।
सावन भादों की छवि आई रे। सुहानी................
हरित ओढनी ओढी धरती ने
रंग बिरंगी चूनर ओढी धरनी ने
फूल खिले हैं रंगबिरंगे
झूम उठे अब खूब पतंगे
ऋतु सुहावन आई रे।
ऋतु सुहानी..................
मेघ मल्हार सुनाते मेघा
जैसे हरषित हुए सब देवा
पावस ऋतु आई तो समझें
प्रफुल्लित हुए सब देवी देवा।
ये ऋतु हरसाने आई रे
ऋतु सुहानी.............
टर्र टर्र मेंढक टर्राते
झींगुर अच्छा राग सुनाते
उडगन उतर उतर कर जैसे
रस्ते शायद हमें बतलाते।
अब तो वसुधा खुश होई रे।
ऋतु सुहानी..........
ताल तलैया पूरे भर गये
बांध लवालव पूरे भर गये। 

रिमझिम रिमझिम बरसे पानी,
प्यास धरा की पूरी कर गये।
हमें बरखा बहुत सुहाई रे
ऋतु सुहानी.............
चातक मोर पपीहा बोले
पशुपक्षी मानव सब डोलें
हिय प्रसन्न सबही का कैसे,
एकहु राज कोई नहीं खोले।
यह अमृत बरसाने आई रे।
ऋतु सुहानी.................

स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


रिमझिम-रिमझिम हुई बरसात 
सभी खुशियों के संग नाचने लगे एकसाथ .


मयूर और मोरनी मस्त होकर करने लगे नृत्य 
कोयल मस्त होकर गाने लगी मन मीत .

सूखी बंजर धरती हुई हरी भरी 
रिमझिम बरसात की देखो कैसे झड़ी लगी .

घुमड़-घुमड़ कर बादल गरजे 
फिर बरखा रानी रिमझिम-रिमझिम बरसे .

कितनी प्यारी हरी भरी लगी ये धरती 
रिमझिम बरखा के आने से फिर लगे 
नव यौवन सी ये धरती .
स्वरचित:- रीता बिष्ट


हाँ ये काली घटा,
आयी रिमझिम लीये,
अब नशा हो रहा है,

बिना ही पिये.....

कभी टिप-टिप,कभी रिमझिम,
मयूरा नाचे मगन.....

खेत सिमटे हैं,
धानी चुनर ओढ़कर,
जबसे बरसी है,
काली घटा घेरकर,

चल पड़ी जो पवन,
आह ठंढी लीये,
हँस पड़ीं डालियाँ,
अपनी मुँह फेरकर,

....कभी खर-खर कभी सर-सर,
गीत गाती पवन......

हाँ ये काली घटा,
आयी रिमझिम लीये,
अब नशा हो रहा है,
बिना ही पिये.....

बूंद बजती है,
की जैसे पायल बजे,
जैसे धुनपर कोई,
साज सुन्दर सजे,

सज उठी ताल-पोखर, 
सजी क्यारियां,
जैसे यौवन भरी ,
कोई नारी सजे,

...कहीं कल-कल कहीं छल-छल,
की जैसे झरना कोई......

हाँ ये काली घटा,
आयी रिमझिम लीये,
अब नशा हो रहा है,
बिना ही पिये.....

अब तो आजा तू भी,
शहर छोड़कर,
अपने बाबुल की,
गालियां और घर छोड़कर,

जो भी समझे तुझे,
उनसे मिलके गले,
जो ना समझे,
उनसे मुह मोड़कर,

....साथ मेरे तेरे हँस पड़ेंगी फिजा,
हाय मिलकर गले.....

हाँ ये काली घटा,
आयी रिमझिम लीये,
अब नशा हो रहा है,
बिना ही पिये.....

.....राकेश,




रिमझिम तराने मल्हारी राग

नीरद नाद दामिनी साज़
बूँद नर्तन पल्लवित सुहास
मुग्ध धरा मोहिनी अहसास

प्रीत पंकज मुदित उल्लास
पूरवैया का सौंधा कयास
रिमझिम झरती हदय की आस
खोजे अखियाँ जीवन श्वांस

रिमझिम फुहार प्यार उदास
विरहा तड़पत नेह पलाश
नैन बरसे रिमझिम रिमझिम
पिया बावरी मिलन की आस

रिद्धि सिद्धि मेघ मल्हार
बासंती हुई प्रकृति नार
उत्सव बेला महुआ बहार
अमृत संजीवन रिमझिम फुहार

स्वरचित : मिलन जैन


रिमझिम रिमझिम बरसे पानी
पवन बहे चहूं ओर

हरी चुनरिया प्रकृति ने पहनी
झूम उठे मन मोर

आया प्रकृति का सौंदर्य निखर
खुशहालि छाई चारो ओर
साखा,लाता मिल एक भई
गलबहियाँ कर इतरायें।

घन नभ मे देख मोरवृन्द नाचे
दादुर खड़े टर्राये
ताल तलैया मिल एक भये
देख मन घबराये।

नारी वृन्द पहने हरी चुनरिया
हरी चुड़ी से भरी है कल ईया
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल
कृषक मन हरषाये।

बच्चे चलाये कागज़ के नाव
मन मसोस बड़े खड़े
हम भी बच्चे बन जाये
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल
सावन की आई बहार
प्रकृती ने पहनी हरी चुनड़िया
सौन्दर्य निखर निखर जाये।
. स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।

रिमझिम रिमझिम बरखा की हिलोरें
गिरती बूंदें तन पे भङका रही शोले!


छनक छनक छन, यूं घुंघरवा बोले
निरखत नैन नैन, चितवन हिय डोले!

धिनक धिनक धिन धा, हौले हौले
तबले की धाप पे चंद्रमुख तन डोले!

खनन खनन खन पिया कंगना बोले
उन्मुक्त सी स्मित के राज सब खोले!

झमझम झमझम घनघोर घटायें डोलें
अंगङाई ले मौसम मनवा ले हिचकोलें!

सनन सनन सन पुरवइयां चहुं डोले
मेघदूत संग प्रिय की चिट्ठियां खोले!

रूनक रूनक झुन झुन पायलिया बोले
रिदम की ताल थिरकत तनमन हौले!

झरझर झरझर मेरा कजरा बहे डोले
बूंद बूंद विरह चक्षुजल नैनों में घोले!

-----डा. निशा माथुर-


1

ये जो बादल ठहर गये हैं गगन में 
टूटकर शहर को कर देंगे बर्बाद 
रिमझिम बारिश क्या होगी ?
पलभर में ही शहर को कर देंगे बर्बाद ।

2

रातभर रिमझिम बारिश होती रही 
टूटती रही घटाएँ शहर नहाता रहा।

3

रिमझिम बारिश में ही घटाओं का पैगाम आया 
रेत से हाथ मिलाने 
बूँदों का नज़राना आया।

4

मैं मिट्टी का घर हूँ 
रिमझिम बारिश ही 
मुझको मिटा देगी 
क्यूँ माँगते हो तेज बारिश की दुआएँ 
कच्चे मकान की हस्ती मिटा देगी ।
@शाको 
स्वरचित

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