Monday, March 4

" सरहद "02मार्च 2019

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             ब्लॉग संख्या :-315

विधा- स्वतंत्र....(गीत)...
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सरहद पे जवान भारत माता का मान बढ़ाते हैं |
कर सर्वस्व समर्पण माँ का गौरव गान दिलातेे हैं ||

हों जो भी हालात डटे रहते हैं पूरी शिद्दत से |
करते हैं मुकाबला दुश्मन का पूरी हिम्मत से ||
हार कभी न मानें दुश्मन का अभिमान घटाते हैं |
सरहद पे जवान भारत माता का मान बढ़ाते हैं ||

अपने सारे सुख दुःख वो मातृभूमि के नाम करें |
बन सच्चे सपूत माँ की सेवा सुबह ओ शाम करें ||
राष्ट्रधर्म को सबसे ऊपर रख अभिमान जताते हैं |
सरहद पे जवान भारत माता का मान बढ़ातें हैं ||

ये हैं सच्चे मीत हमारे हमें सुरक्षा देते |
वतन रहे खुशहाल अनेकों कष्ट ये हँसकर सहते||
दें इनको सम्मान सदा ये ही मुस्कान सजाते हैं |
सरहद पे जवान भारत माता का मान बढ़ाते हैं ||

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प्रमोद गोल्हानी सरस 
कहानी सिवनी म.प्र

धरती बंटी हुई है , कुछ देश राज्य सूबों में
सरहद नहीं कोई भी इस प्यार की जहां में

सरहद शब्द का प्रयोग प्रायः देश की सीमा के लिए किया जाता है । देश की सरहदों पर वीर सैनिक विषम परिस्थितियों में जीते हैं। बर्फीली वादियों में सीना ताने , दुश्मन के प्रहार से खुद की रक्षा करते, दुश्मन का खात्मा करते हुए , सरहद की हिफाजत करते हैं।मातृभूमि की रक्षा उनका एकमात्र लक्ष्य होता है । 
प्यार में कोई सरहद नही होती, प्यार को सीमाओं में नही बांधा जा सकता । प्यार असीम , अनन्त और सार्वभौमिक है। प्यार संसार की किसी भी वस्तु या व्यक्ति से हो सकता है इसकी कोई सरहद या सीमा नहीं ।
कल्पना की उड़ान , सोच का सफर अंतहीन है । ख्वाबों और सपनों
की कोई सरहद नही होती । कवि अपने कल्पना लोक में धरा , व्योम, सूरज , चाँद
सितारों ,सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सैर कर लेता है । कोई सरहद उसे रोक नहीं पाती ।
मन की उमंग, हृदय की तरंगें, रंगीन ख्वाबों की कोई सरहद नहीं होती । तमन्नायें,आरजू सरहद से परे हैं । सरहद परमात्मा नहीं बनाता। ईश्वर ने तो बेहिसाब दौलत परोसी है , इंसान ही उनका बंटवारा करता है , हदें तय करता है। मनुष्य की अधिकाधिक पाने की लालसा ने लूट खसोट की भावना को जन्म दिया और बन गईं सरहदें ।

खुदा ने एक दी धरती , ये उसकी ही खुदाई है
क्यों टुकड़े कर दिए धरा के , क्यों सरहदें 
बनाई है
करो विश्वास सब पर , प्रेम इस धरती पे तुम बाँटो
तुम्हारी जिंदगी भी तो उस , प्रभु ने ही रचाई है

सरिता गर्ग
स्व रचित


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सरहद पर तैनात जवान को, 
दिल से मेरा सलाम है, 
कड़क पहरा जब उसका होता,
देश तभी सुख-चैन से सोता |

ठंडी, गर्मी, बरसात से, 
वो नहीं घबराते हैं ,
आँख उठा दे गर दुश्मन, 
बाज वो बन जाते हैं |

सरहद पार खड़ा है दुश्मन,
नजरे गाड़े भारत पर, 
उसकी एक ही हरकत पर, 
जहन्नुम उसे पहुँचाते हैं |

नमन है ऐसे जाँबाजों को, 
जो देश पे बलिदान हो जाते हैं, 
दुश्मन के चंगुल में रहकर भी, 
भारत की जय जयकार लगाते हैं |

जय हिंद!जय हिंद की सेना!
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
Vipin Sohal 
सरहद पर लुटा आए जो जानो तन नमन उन्हें। 
जो खेले आग से जिंदा जल शोले बन नमन उन्हें। 


होम किया जीवन ज्वलंत राष्ट्रप्रेम की ज्योति से। 
किया प्राणों को अर्पित आहूति सम नमन उन्हें। 

अडिग रहेगा मान देश का चाहे जान चली जाए। 
लहराया नभ वीर तिरंगा जन गण मन नमन उन्हें। 

गए छोड बिलखता घर आंगन न पीछे मुड देखा। 
निज सुख त्याग किया रण भीषणतम नमन उन्हें। 

रीते रह गए स्वप्न कई मन की मन में आशाएं। 
बलिबेदि पर चढे हंसे तरुण देह मन नमन उन्हें। 

तडपे आंचल जननी का यह न कभी घाव भरेगा। 
क्या देखे राह दे गये मां विप्लव रूदन नमन उन्हें। 

बिलख रहे भ्राता भगिनी है परिणय संगिनी बेसुध। 
मामा काका रोए पिता पाषाण हुए नम नमन उन्हें। 

घर का घाट बन गया अब नहीं जीवन में कोई बाट। 
राखी रोए फीकी होली हुई दीवाली गम, नमन उन्हें। 

स्मृतियाँ खडी लखाएं क्षण क्षण बीता भूल न पाए। 
संगी साथी करे शिकायत क्यूँ हुए न हम नमन उन्हें।

सो गए कर आरती जिये सनातन ए मां भारती। 
कर गए तुम्हारे हवाले जो है वतन नमन उन्हें। 

विपिन सोहल



ये सरहदें
करती तय देश
नामकरण।।


सरहद पे
है ड़टा जमावड़ा
युद्ध आशंका।।

सरहद की
करते रखवाली
जान जोखिम।।

सीमा लंघन
अपराध अक्षम्य
मचाये युद्ध।।

खून की होली
सरहद पे लाल
आया शहीद।।
भावुक



जय जय जय बजरंगबली,
रक्षा तुम्हें सरहद की करना।
डटे हुऐ सीमाओं पै सैनिक,
उनपर वरदहस्त ही रखना।

जो नहीं देखते कोई मौसम,
सदैव खडे रहें सीमाओं पर।
गर्मी सर्दी बर्षा झेलें हरदम,
सजग रहें अपनी सरहद पर।

बलशाली बजरंगबली तुम,
सचमुच महावीर बलवान हो।
सदा चिरंजीवी रहें जवान ये,
इन्हें अमर सुखद वरदान दो।

है सुरक्षित सैनिक के हाथों,
यह भारत और भारतवासी।
वीर जवानों की शहादत पर,
अभिमान करें सब रहवासी।

अजर अमर तुम वीर सपूतो,
स्वर्ण इतिहास में नाम रहेगा।
युगों युगों तक सरहद पर वीरो,
ये सबका अंकित काम रहेगा।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय 
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी



देशप्रेम की ज्योति जली आज सबमें प्रबल
शपथ ले , लौ इसकी यूँ जलती रहे प्रतिपल
आवश्यक तो नही सरहदों पर डटे हम
कहीं रह कर देशभक्ति दिखा सकते हम।
काट दे हाथ ,जो अबला की ओर बढ़े
सुनिश्चित करें हर नारी को सुरक्षा मिले।
सच के लिए लड़ते रहे आखिरी दम तक
भ्रष्टाचार हो खत्म, ये प्रयास मरते दम तक।
कर्तव्यनिष्ठ नागरिक का धर्म निभाना है
व्यर्थ ना पानी की एक बूँद बहाना है ।
दीप बन शिक्षा का प्रकाश फैलाते रहें
हर पेट को अन्न का निवाला खिलाते रहें।
धर्म मजहब की खाई को हम मिटाते चले
राजनीति करने वालों को सबक सिखाते चले ।
चतुर्दिक राष्ट्रविकास मे हो योगदान सबका
सर्वोपरि तिरंगा हमारा गर्व से फहराते चले।
आवश्यक तो नही सरहदों पर डटे हम
फर्ज निभा कर देशभक्ति दिखा सकते हम।

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव




विधा .. लघु कविता 
*********************
🍁
खींच दिया दिल मे ही सरहद,
तुम बैठी उस पार।
छलक रहे है नयना वियोगी,
तोड के आ इस पार।
🍁
रूदन रूदाली आप बने हम,
समझो मन की बात।
तोड के सरहद एक बने जब,
बीते दुख के रात।
🍁
क्या जानेगे वो बेदर्दी,
शेर हृदय की बात।
प्रेम पखेरू मर ना जाए,
सरहद के इस पार।
🍁
बहुत ही बातें है इस दिल मे,
कैसे तुझे बताए ।
सरहद के जो पार है होते,
दिल ना उनसे लगाए।

🍁
स्वरचित .
gSher Sinh Sarraf



Anuradha Narendra Chauhan 2
छूना पाए कोई सरहद को
बेटों का फर्ज निभा जाते
करते सरहद की रखवाली
धरती के लाल हैं बलशाली

वतन की खातिर कुर्बान होते
वतन की खातिर जीते ओर मरते
देखें सरहद को कोई आँख उठाकर
उसके लिए यह काल वन जाते

गर्व हमें अपने वीर जवानों पर
गर्मी,सर्दी या हो बरसात
हमारे लिए सदा ही बने यह ढाल हैं
तभी घरों में हम रहते हैं आराम से

हमारी आन-बान-शान वतन है
हम सबका ईमान वतन है
आंँच ना इस पर आने देंगे
हमको जान से प्यारा वतन है

काश ना होती यह सरहदें
नफ़रतें बढ़ाती हैं यह सरहदें
बांटती है दिलों को सरहदें
इंसानों को बांटती है यह सरहदें

खींच कर लकीरें दिलों में
जातियों में बांटती सरहदें
कभी धर्म के नाम कभी जाति नाम
हमें आपस में लड़वाती सरहदें
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित



अभिनन्दन वन्दन है चंदन
शौर्य पराक्रम तन में धारी
दुश्मन की सरहद से लौटे 
धन्य धन्य हो तुम बनवारी
आनबान शान सरहद है
सरहद हाथ छाला होता
वीर सिपाही के नित आगे
रिपुदल है अविरल रोता
ये भारत के वीर सिपाही
शौर्य पराक्रम के वे धारी
आगे बढ़ना मूल मंत्र नित
जग में यह पड़ते हैं भारी
सरहद निशदिन जगते वे
हमको मीठी नींद सुलाते
बर्फीली चोटी घाटी पर
थरथर कम्पन गीत सुनाते
सरहद अगर सुरक्षित है तो
वतन सदा सुरक्षित होता
अमन चैन की गङ्गा बहती 
हर नर मीठी नींद सुलाता
अदम्य साहस जाबाज़ों से
कौन यँहा टकरा सकता है
गङ्गा जमुना निर्झर बहता
विश्व शांति सन्देशक बनता
नमन करते प्रिय सरहद को
नमन करते वीर सिपाही
नमन करते जगति के त्राता
कर देता जग त्राहि त्राहि।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।



विषय=सरहद
विधा=हाइकु 
🌹🌹🌹🌹
(1)सरहद से
फहरा के तिरंगा 
आया है वीर
🌹🌹🌹
(2)जब दो हद
आपस में मिलती 
है सरहद
🌹🌹🌹
(3)है बेशुमार 
सरहद के पार
आतंकवाद 
🌹🌹🌹
(4)जहाँ हो स्वार्थ 
सरहद निर्माण 
करे मानव
🌹🌹🌹
(5)होता है रोज 
वाघा की सरहद 
आवागमन 
🌹🌹🌹

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 

पूरी है दुनियाँ एक
बांटा सरहदों में 
इन्सान ने

अखंड भारत था
एक
इतिहास ने बना दिये
देश अनेक

अपनी सरहद की
रक्षा करते 
वीर जवान
शहीद हो जाते
हँसते हँसते 

सरहदों में बंट गई
इन्सानियत 
एक दूसरे की
खून की प्यासी
हो गयी है
इन्सानियत 

हर एक है 
अपने , अपनों का 
प्यारा
अमन चैन से रहे 
जब सब
सरहदें हों शांत
उन्नति करे 
हर देश 
विकास करे
हर देश

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव 
भोपाल



अपने घर में हम आज होली दिवाली ईद मना रहे हैं 
सरहद पर देश के जवान हरदम पहरा दे रहे हैं 
नमन मेरे देश के उन महान वीर बेटों को 

जो देश की खातिर हरपल अपना फर्ज निभा रहे हैं.

हर तूफ़ान हर डर को हँसते हँसते सह लेते हैं 
तपती धूप सर्द हवाओं में भी देश के प्रहरी बनते हैं 
अपने घर परिवार को छोड़ दिया हैं फर्ज की खातिर 
सरहद पर लुटा दिया हैं अपना समस्त जीवन .

बड़ी अजब कहानियाँ हैं सरहद पर वीरों की 
हो जाते हैं कुर्बान सीना तानकर 
इनकी देशभक्ति वीरता का हर कोई कायल हैं 
इनके जज्बे और वीरता के आगे दुश्मन भी घायल हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट




सरहदें बांधती 
राष्ट्रीयता..
सरहदें बदलती 
सभ्यता..
सरहदें होती है 
मान राष्ट्र का..
इस पर बलि देती वीरता..
शौर्य की गाथा गाती..
सरहदें सर्वदा..
निर्भीकता बसाती
सरहदें सर्वदा..
सरहदें होती
रक्षक राष्ट्र की...
सरहदों पर टूटती..
चूड़ियां नववधुओं की..
ये सरहदें लूटती
सहारे बूढ़ापे के...
सरहदें छीनती आसरे..
मासूमियत के..
जात,पात व धर्म की
तोड़ दो सरहदें..
वसुधैव कुटुंबकम के
खोल दो रास्ते..
जी लो एक दूजे के वास्ते..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़




लघु कविता
हदें तन-मन की
हदें जन-मन की 
हदें तिंरगे की ।
सरहद एक मर्यादा हैं, 
एक-दूजे का वादा हैं ।
सरहद पर पहरा देता हैं, 
अपने सर सेहरा लेता हैं।
भीषण गर्मी ,सर्दी 
बादल फटे ओले गिरे 
चाहे आये झंझावात 
पर देखिए उसकी मुस्तैदी ।
जो आन-बान का पक्का , 
डंका उसका बजता सिक्का।
जो जिस देश की खाता हैं , 
उसकी घंटी बजाता हैं ।
छल -बल से जीत नहीं होती , 
झूठ बेईमानी मीत नहीं होती ।
हर अच्छे का स्वागत यहाँ , 
चौकस हरदम आतंक वहाँ ।
देश सेवा में जो जान लूटाते हैं , 
वह अमर नाम कर जाते हैं ।
परिजन को शत-शत नमन् , 
संतान जो करे तीव्र रिपु दमन।
वो हिम गिरी का ललाट चंदन, 
शौर्य सितारा परमवीर अभिनंदन
विमान पाक को करे ध्वस्त दहन, 
ऐसे अजेय योद्धा को सहस्त्र नमन् ।
स्वरचित - चन्द्र प्रकाश शर्मा 
'निश्छल'




 है सीमा तय देशों की , हम सरहद का मान करें ,

रहें 
सरहदशांति से हम सब भी,और प्रेरित सबको भी करते रहें| 


शांति स्थापित हो विश्व में ,सब मानवता का सम्मान करें ,

भाई चारा हो जन जन में, सबकी भावनाओं का मान करें | 

कुछ लालची कायरों ने , जब हद को अपनी भुला दिया है, 

झूठे धर्म के आडम्बर में , कितने निर्दोषों को मार दिया है |

बार बार की चेतावनी से भी , उसको कुछ न बोध हुआ है ,

तब थक हार कर मजबूरी में, दो देशों में युध्द हुआ है |

वीर जवान सजग प्रहरी बने , सरहद पर ही डटे रहे हैं ,

अपने देश की हिफाजत के लिऐ ,कितने ही कष्ट सहे हैं |

जीत सच्चाई की होती आई , पापी के ही किले ढहे हैं ,

भारत के वीर अभिनंदन , काल शत्रु के लिऐ बने हैं |

सरहद के ये पैमाने तो , बस समझदार के लिऐ बने हैं ,

आतंकी शैतानों के लिऐ ही , दुनियाभर के शस्त्र बने हैं |

निसंकोच हो खात्मा इनका ,आज सभी ये बोल रहे हैं ,

शांति प्रिय लोग सभी अब ,टकटकी लगाकर देख रहे हैं |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश 




विधा -हाइकु

1.
सरहद पे
करते रखवाली
वीर जवान
2.
तिरंगा झंडा
सरहद पोस्ट पे
शान देश की
3.
पैनी नजर
सरहद पोस्ट पे
रहते योद्धा
4.
ये सरहद
इंसान ने बनाई
बीच दीवार
5.
देश की रक्षा
जिम्मेदारी हमारी
सरहद पे
6.
खेत किसान
सीमा पे जवान
देश की शान
7.
आतंकी पाक
सरहद पार से
रोके आतंक

स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा



आज प्रत्यक्षीकरण 
पिघला अंतःकरण 
वंदन अभिनंदन 
अभिनंदन नमन 
सरहद पर रण 
महासंग्राम भीषण 
दुश्मनों को करे दमन 
मान गए यह अंतर्मन 
वायुपुत्र वायु पवन 
महक उठा चंदन 
वंदन अभिनंदन 
अभिनंदन नमन 
झूम उठा जन जन 
पुलकित हुआ तन मन 
लौह पुरुष अभिनंदन 
लोहा तुम्हारा बदन 
हिमालय करें वंदन 
आसमां बरसाए झरण 
आगमन है चरण 
अब नहीं होगा नियंत्रण 
नियंत्रण रेखा पर नियंत्रण ।।।

स्वरचित एवं मौलिक 
मनोज शाह मानस 
सुदर्शन पार्क 
मोती नगर नई दिल्ली




विषय सरहद
रचयिता पूनम गोयल

क्यों बँट जाती हैं सरहदें ?
क्यों लोग जुदा हो जाते हैं ।
क्यों नहीं मोती 
की माला जैसे ,
सभी साथ रह पाते हैं ।।
मेल-मिलाप में 
जो बात है ,
वह हिंसा-प्रतिहिंसा में नहीं ।
क्यों इतनी ज़रूरी बात ,
कुछ लोगों के दिमाग़ में 
बैठती ही नहीं ।।
सुना है कि
दुनिया बनाने वाले को भी ,
जंग बिल्कुल नहीं पसन्द ।
वह तो चाहे बस ,
कि रहें सब संग-संग ।।
फिर क्यों हम
धरती वाले ,
यूँ बँट जाते 
सरहदों में ।
और खोद देते 
स्वयं ही खाई ,
भाई-भाई के ही
आँगन में ।।





सरहद 
देखो सरहद पर कैसे वीर ने ललकारा है, 
तेरी धरती पर जाके मचाया हा हा कारा है, 
अभी तो देख आतंकी रखवाले, 
कैसे तेरा करदेंगे कबाड़ा है l

ये भारत के वीर सैनिक है, 
युद्ध कार्य तो इनका दैनिक है, 
अभी तो छूट मिली नहीं इनको, 
नहीं तो करते तेरा संहारा है ll

काहे बाज नहीं तू आता, 
बाजों को तू क्यों उकसाता, 
भूखा प्यासा मर जायेगा, 
गर नहीं रखेगा अमन चैन से नाता l

अभी जनता भड़की नहीं है, 
बुद्धि इसकी सटकी नहीं है, 
अभी भी बाज आजा मुर्ख, 
कच्ची गोलिया खेली नहीं है i ll

जय हिन्द जय भारत 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून


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