Sunday, March 10

"धन/दौलत/पैसा " 09मार्च 2019

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             ब्लॉग संख्या :-322


विषय-(एक बहाव) प्रेम पूर्व आग्रह
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🌾प्रियतमा के प्रति🌾
तुमको देखा ओढ़ीं दिल ने
कुछ कुछ यादें और मुरादें
किंचित भी संकोच नहीं है
कहने को लाखों अपवादें
धीरे धीरे बढ़ा प्यार को
छोड़ा दुनिया के व्यवहार को
काम नहीं कुत्सित कर्मों से
पड़ा साबिका निज धर्मों से
पहले सुन लो कान खोलकर
बाद में टालमटोल न होगी
दिल की दुनिया चपटी चपटी
किसी तरह फिर गोल न होगी
टूटा फूटा सा जीवन है
तुम्हें सिर्फ देने को मन है
यह जीवन अति दुःखदाई है
बात लबों पर यूँ आई है
प्रेम किया है विनत भाव से
सोच समझ कर बड़े चाव से
जो कुछ है पहले कर लेना
धन को मत आड़े धर लेना
गौरव मेरा बिका नहीं है
पास में मेरे टका नहीं है
पालन कर्ता का उसूल है
देने को बस एक फूल है।।
(🌹)
====================
स्वरचित-"अ़क्स "दौनेरिया
(आपका अपना )


निज दौलत न देखी औरों पर नजर टिकाई
इसी के चलते दुखी हुई यह सारी जगताई ।।

दौलत क्या है दौलत किसे नही दी उसने 
मगर किसी ने उस पर नजर नही घुमाई ।।

भागे इधर उधर मत पूछो किधर किधर
और तरकीब भी एक नही हजार लगाई ।।

मगर तरकीबों से कहीं काम चला क्या
जिन्दगी तो यह भूल भुलैयाँ कहलाई ।।

सीधी सच्ची राहें भी हैं हजारों यहाँ
मगर ये राह भला किसको है भायी ।।

चींटी क्या कभी सोची थककर वह बैठी 
कि मैं हाथी का ढीलडौल क्यों न पाई ।।

मगर मिसाल 'शिवम' चींटी कि हम क्या
सारे जग ने आज नही सदियों से गायी ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 09/03/2019


जितना लिखा होगा तकदीर में।
उतना हीं मिलेगा।
फिर पैसे के लिये अपनी नींद क्यूँ गंवाता है।
सबकी किस्मत ऊपर बाले ने अलग,अलग लिखी है।
तो,क्यूँ ना चैन से सो जाता है।

जितना भी धन होगा,कम हीं लगेगा।
और पैसे की चाहत जगती रहेगी।
किसी को दौलत से सन्तोष मिला क्या आजतक।
पैसे की चाहत सदा बढ़ती रहेगी।

जितना कमाया,लेकर जाओगे क्या ऊपर।
फिर पैसा,पैसा क्यूँ करता है।
कर्म तेरे हीं सिर्फ साथ जायेंगे।
फिर दिन,रात क्यूँ पैसे की चिंता करता है।
💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी


माँ लक्ष्मी तुम नारायण की
कमलारानी धनलक्ष्मी तुम।
मात शारदे नमन करूं मै,
बुद्धिदेवी माँ सर्वश्रेष्ठ तुम।

रिद्धि सिद्धि पीछे हो जाऐं।
ज्ञानवृद्धि सबकुछ हो जाऐ।
यदि बुद्धिदात्री आप पधारें,
चहुंओर सुखशांति हो जाऐ।

धन दौलत मुझे नहीं चाहिए।
पैसा प्रशंसा भी नहीं चाहिए।
बस मात शारदे की हो सुदृष्टि,
जीवन भर कुछ नहीं चाहिए।

ये धन दौलत आनी जानी है।
लक्ष्मी नारायण की पटरानी है।
सुखद शांति मनचैन मिले तो,
अपने घर की यह महारानी है।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

9/3/2019(शनिवार


धन दौलत लक्ष्मी माँ देती
उल्लू उसका वाहन होता
उल्लू गृह अपार सम्पदा
ईमानदार जीवन मे रोता
जग बाज़ार अजीब है यह
हर वस्तु का सौदा होता
ग्रन्थ मंत्र भजन बिकते
कोई रोता कोई है हँसता
बिकती है भगवान की मूरत
नीर अगन प्राणवायु बिकती
बिन पैसे के सब कुछ सुना 
हर विपदा जीवन हर लेती
स्वर्ण जड़ित कुर्सियां बिकती
कुर्सी दौड़ चलती जीवन भर
ज्ञान विज्ञान वातानुकूलित घर
मान ईमान डिग जाते पैसों पर
सब पैसों के पीछे भगते
छीना झपटी दिन रात चले
कौन चौर है कौन सिपाही
नहले ऊपर होते सब दहले
जीवन के ओ पालनहारा
कोई राजा कोई रंक है
अद्भुत तेरी जग की लीला
घुली हुई चंहु ओर भंग है
मात शारदे विद्या देती जग
वह भी पैसों में बिक जाती
बिन पैसों के माँ की ममता
हर पल जीवन उसे रुलाती
शिक्षित रोज़गार तरसते
मान ईमान पैसा ही होता
पैसा है तो सब जीवन में
बिन पैसों के मानव खोता
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


धन दौलत और रूपया पैसा ,
कुछ भी नहीं है इसके जैसा |
दुनियाँ के हर रहने वाले ने ,
यहाँ बिल्कुल ऐसा ही सोचा |

अनुभव ही मानव जीवन को ,
तरह तरह के रंग दिखलाता |
प्रमुख गौण है क्या जीवन में ,
सब कुछ हमें यही सिखलाता |

जब से है बच्चा होश में आता ,
चारों ओर ही दौलत को पाता |
रिश्ते नाते हों या जीवन यापन ,
एक ही बात है बस पैसा पैसा |

ज्यों ज्यों जीवन ये आगे बढ़ता ,
अधिक मजबूत धारणा को पाता |
उसका उद्देश्य बस पैसा बन जाता ,
जीवन को समर्पित पैसे को करता |

माना दौलत जीवन में बहुत जरूरी ,
हर विकास की होती यह डोरी |
पर नशा नहीं कभी इसका करना ,
औषधि तुल्य ही उपयोग है करना |

जीवन दर्शन ज्ञान विज्ञान रखना ,
दौलत परहित ही में खर्च करना |
आधार जीवन का प्रेम ही होता ,
धन से सामंजस्य बिठाकर रखना |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश


धन दौलत 
पाकर इंसान
बन जाता है धनवान
उड़ जाती है
रातों की नींद
दिन का चैन
दिल का करार
लगा रहता है
इसी उधेड़बुन में
कैसे इस पैसे को
दोगुना बनाऊँ
किस व्यापार में लगाऊँ
सरकार से छिपाऊँ
अधिक से अधिक टैक्स बचाऊँ
काला धन 
किस तिजोरी में छिपाऊँ
कुछ धन काला
करता मन्दिर में दान
देता रिश्वत के रूप में
अपने पाप छिपाता
बनवाता भगवान की 
सोने की मूरत
उस भगवान को गढ़वाता
जिसने उसे गढ़ा है
कुछ विरले
करते दान पुण्य
बनवाते
अस्पताल या वृद्ध आश्रम
सुधार गृह या नारी निकेतन
पर उसमें भी
देखते नफा नुकसान
गणित चलता रहता
हर पल मन में
न दे दौलत किसी को
अय खुदा इतनी
भुला दे दुख जहां के
वो भरे अपनी तिजोरी
अगर देनी ही है दौलत
किसी दिलदार को दे दे
लुटाए खोल दिल अपना
दुखी संसार पर दौलत

सरिता गर्ग
स्व रचित

धन, दौलत जरूरत तक सही, 
अति हो जाये तो नशा बन गई, 
गलत आ जाये तो सजा बन गई, 
घमंड हो जाये तो इंसानियत मर गई |

सबसे बड़ा होता है संतोष धन,
साधे रखे हरपल जो अपना मन, 
स्वस्थ शरीर हो और स्वस्थ मन, 
जीवन का यही है मूल मंत्र |

न कुछ साथ लाये, न कुछ साथ जायेगा, 
सब कुछ दौलत से खरीदोगे, 
मृत्यु को कैसे खरीद पाओगे? 
धड़कन रुकी शरीर मिट्टी हो जाएगा |

खराब नहीं है धन, दौलत, पैसा, 
बस ईमानदारी से कमाया हो, 
सही इस्तेमाल से होगी उन्नति, 
गलत ,अभिशाप बन जायेगा |

स्वरचित *संगीता कुकरेती
*


दौलत का नशा जब 
किसी को हो जाता है
फिर इंसानियत उसकी
मर ही जाती है
येन केन प्रकारेण
दौलत पाने के लिए
मचल जाता है
भौतिक सुखों में ही
जीवन का आनंद ढूँढता है
ऊँचे महलों में रहकर भी
नींद को तरस जाता है।

"स्वास्थ्य तन और मन"
यह दौलत खूशनसीबों को
ही मिल पाता है...
स्वास्थ्य तन में ही
स्वास्थ्य मन का वास 
होता है।

चरित्र हर इंसान का
अनमोल दौलत है
चरित्र के दामन पर
लगा दाग ना कभी 
मिट पाता है
फिर तो सम्पूर्ण व्यक्तित्व
ही धूमिल पड़ जाता है
यह ऐसी दौलत है जो
इंसान की प्रतिष्ठा का 
सबब बनता है
एक बार यह खो जाये
तो आजीवन दरिद्र
हो जाता है।।
पैसों से यह दौलत
ना खरीदी जा सकती है।

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


शीर्षक :- धन/दौलत/पैसा

दौलत तो बस इक रूत मस्तानी है...
फितरत इसकी बस आनी-जानी है..

अथक परिश्रम और कर्मठता की..
लिखती सदा ये अमित कहानी है...

सच्चाई व सद्कर्म से नाता इसका...
सहशीलता व मेहनत की दीवानी है...

रिश्तों के मध्य बढ़ाती सदा दरार ये...
बिखराव कराना आदत इसकी पुरानी है...

भाई भाई का टकराव कराती ये दौलत...
ग्रंथों में लिखी पुरातन इसकी कहानी है...

स्वरचित ;-मुकेश राठौड़


🌹सादर प्रणाम 🌹
विषय=धन/दौलत
विध
ा=हाइकु 
🌻🌻🌻
संस्कार ऐसे
मुर्दा भी नहीं चले 
बिना रू पैसे
🌻🌻🌻🌻
सफल वही
सदकर्म का धन
रखे जो सही
🌻🌻🌻
धन संचय 
जीवन में जरूरी 
व्यवहार का 
🌻🌻🌻
धन के लिए 
गलत करो नहीं 
कोई भी काम 
🌻🌻🌻
धन को माने
जग में भगवान 
वाह इंसान 
🌻🌻🌻
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश

विधा क्षणिकाएं

1)
दौलत की भूख़ ने 
आँखो पर पट्टी बांधी
जमीर को बेच 
मुल्क के अस्मिता 
की बोली लगा
भूख ,करोड़ों अरबों की लगाई 
क्या तनिक भी इन्हे लाज न आई ।
2)
पूजास्थलों मे दौलत 
का अंबार लगा 
भिखारी बाहर 
भूख और ठंड से
बेहाल नजर आए,
ऐ !प्रभु के बंदे 
तू अब तक दौलत का 
सही उपयोग न सीख पाये ।

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव


विषय-धन/दौलत/पैसा
-------------------------
दुनियाँ है दीवानी दौलत की
यह दौलत है जो दिल तोड़े
दौलत ही अब रिश्ते जोड़े
गरीब की यहाँ कोई पूछ नहीं
पैसों वालों का चलता ज़ोर
दौलत की मची है मारामारी
भ्रष्टाचारियों पर चलता नहीं
यहाँ किसी का भी ज़ोर
दौलत, शौहरत है सबकी चाहत
इसके आगे मर रही इंसानियत
अब उसका पलड़ा भारी है
जिस पर लक्ष्मी की मेहरबानी है
हर जगह चल रहे घोटाले
कुछ भी कैसे भी बस पैसा कमाने
भाई भूल रहे अपना प्यार
खड़ी हो रही दौलत की दीवार
दौलत का भूत सिर पर सवार
माँ-बाप का खर्च नहीं बर्दाश्त
अब दौलत से ही रिश्ते बनते
कमजोर की कोई मदद नहीं करते
पैसे कमाने की होड़ मची है
हमसे बेहतर कोई नहीं है
फ़ुरसत के पल पास नहीं
बच्चों का बचपन भी याद नहीं
पर पैसे का पल-पल का हिसाब सही
दौलत की भूख कभी मिटाए न मिटे
ज़िंदगी बीतती जाती दौलत के फेर में
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित


भावों के मोती
""""""""""""""""""""शनिवार विषयान्तर्गत

दौलत का नशा,मग़रूर लफ़्ज और 
ग़ुरूर भरे चार दिनों का बोझ लिए
ज़िन्दगी गुज़रती है धीरे-धीरे
और अधिक उजड्ड वेग से
इसके ख़त्म होने की प्रतीक्षा में
शनैः-शनैः इति होती है
जीवन की....।

जिन्दगी के तमाम सुगम रास्ते
जब कतारबद्ध होकर
खड़े हो जाते हैं चौराहे पर
निष्ठुर, पत्थर की मूर्तियां बन
विलाप करती मूरत की सूरत में
सुखों के चबूतरे पर, तब...
इंसान एक बटोही सा खड़ा
देखता है आसमां में वह इंद्रधनुष
जो मन की सूखी घास पर
ओस की बून्दें गिराकर मुस्कुराता है

और...और.
वक्त अपने कोमल पंखों से
छिड़कता है शीतल अमृत जल
दुखों पर,,प्रेम पर
बहती हुई बसंती हवाओं से, तब
मन के कोमल पत्ते, खाकर हल्के थपेड़े
वक्त के जल से सराबोर
दीप्त केसर पुष्ष जगाते हैं
जीवन क्यारियों में...।

स्वरचित

✍🏻 गोविन्द सिंह चौहान


तौहीन ए ईमान से खुद किनारा कर लिया। 
मैंने फाकों से दोस्ती की गुजारा कर लिया। 


उनके महल की सोने , के पिंजरे सी जिंदगी। 
काटे कटी ना रात सफर गवारा कर लिया। 

मै तुम वे और आप की चख चख है बेमजा। 
प्यारी सी एक हंसी सबको प्यारा कर लिया। 

उनकी हंसी पे कैसे हंसा यूं अरसे के बाद मैं। 
मालूम हो कि जख्मे- दिल दोबारा कर लिया। 

छुपाते रहे हैं लोग अक्सर ऐबों को पैरहन में। 
मैंने गिरते हुए मेयार का, नजारा कर लिया। 

आज उनके इल्म के हम भी हुए हैं कायल। 
दौलत को अपनी मांग का सितारा कर लिया। 

हंसती है आज सोहल ये जमाने की रौनके। 
तूने गिरती हुई दीवार का सहारा कर लिया। 

विपिन सोहल

माना ज़रूरत है पैसा
जीवन जीने हेतु
ईमानदारी का दामन थाम
मानवता हो सेतु
मूलभूत आवश्यकताओं की ख़ातिर
तुम पैसों का संचय करना
पर किसी दीन-हीन जीवनार्थ
कुछ पैसे दान अवश्य करना
पैसे का होत है चंचल रूप
स्थिर ना रह पाता है
एक हाथ से दूजे हाथ 
पलक झपकते जाता है
पैसों के मद में चूर ना होना
जीवन अनुभव बतलाता है
यदि चरित्र पर कलंक लग जाए
उसे पैसा कभी ना मिटा पाता है
गम्भीर बीमारी जब आ घेरे
दवा ज़रूर ले आते हैं
असर दवा का जब साथ छोड़ दे
दुआ हाथ स्वतः उठ जाते हैं
अंतिम यात्रा की जब होगी तैयारी
क्या पैसे साथ ले जा पाओगे ??
जग जीवन में जो नाम कमाया
केवल उस से ही जाने जाओगे ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित

शीर्षक-धन , दौलत , पैसे
विधा -हाइकु

1.
दौलत ले लो
लोटा दो बचपन
खिलौने दे दो
2.
बिन पैसे के
रहते हैं निर्धन
आलसी लोग
3.
अमूल्य धन
प्रकृति संसाधन
नष्ट न कर
4.
मन की सोच
बदलती धन से
है निसंकोच
5.
मिलती नहीं
बचपन की यादें
धन पोटली
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

9 मार्च 2019
विधा-हाइकु 

विषय- धन/ दौलत /पैसा

दौलत ढेर
गगनचुम्बी मॉल
बीच शहर

आज का दौर
मोहब्बत से ज्यादा
पैसों का प्यार

पैसे लुटाते
पानी की तरह से
अमीर लोग

मुंह फेरते
चन्द पैसों के लिए
मुसीबत में

झोली फैलाए
भिखारी मांगता है
चन्द रुपये

जीवन बने
सरल व सहज
धन भण्डार

पैसों की कमी
दूर इच्छित शिक्षा
सपने खोए

मेहनत से
मिले धन खजाना
कर्म का फल

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

विषय -पैसा /धन /दौलत 



आँखों का पानी 
संस्कार की दौलत 
लुटे ना कहीं 



पैसे की माया 
निश्छल मन ठगा 
मुस्कान बिकी 



स्वास्थ्य का धन 
कीमती धरोहर 
रखो सहेज 



प्रेम भी बिका 
प्रीत हुई है बौनी 
दौलत तले 



विद्या का धन 
खूब बांटते चलो 
बढ़े संग्रह 


पैसे की नदी 
तैरना भूले रिश्ते 
दम तोड़ते 



माया नर्तकी 
चापलूसी की होड़ 
धन की ढेरी 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )


आज का विषय - पैसा
विधा - छंदमुक्त कविता

**अमीरी**

आज के दौर में 
जिसे देखो बस 
एक ही दौड़ ,
पैसा...पैसा...पैसा...
और बनना अमीर ,
जिस अमीरी का 
ना कोई अन्त , न कोई छोर ,
एक दूसरे को 
पछाड़ने की लगी हौड़ ,

गिर गए इस कदर 
अपना हो या पराया ,
दिन हो या रात हो ,
छोटा बड़ा सब भूल 
बस पैसों का पहाड़ हो ,

सर्वविदित , कटु सत्य ,
रह जाएगा धन धरा का धरा ,
न जाएगा कुछ साथ ,
कितने सिकन्दर चले गए खाली हाथ ,
कितने हिटलर , कितने गज़नबी हो गए राख ,
फिर कैसा मिथ्याभिमान ,

अमीरी की लिप्सा में 
हो गए इतने मशगूल ,
पूर्वजों की विरासत ,
स्थावर सम्पति -
संस्कारों को गए भूल ,

गर कुछ करना है संचय 
तो करो संस्कारों का ,
संस्कार नहीं तो कुछ नहीं 
चाहे ढेर लाखों हजारों का ।

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा 
रिसालियाखेड़ा,सिरसा(हरियाणा)


विधा:-"वर्ण पिरामिड"

नोट/धन/रुपैया/पैसा/माया 

(1)
ये 
धन 
साधन
जग भोग
मन का रोग
बिक जाते लोग
गुणा भाग व योग
(2)
ये 
नोट 
ताकत 
स्वार्थ ओट 
रिश्तों पे चोट
खरीदते वोट
मन में लाते खोट
(3)
है
शक्ति 
रूपया 
चैन लेता 
इंसा बिकता 
लालच खिंचता
ज़मीर खरीदता 
(4)
है
धन्य 
दुर्लभ 
मुनि मन 
श्रम ही धन 
संतोष का धर्म 
संस्कारयुक्त कर्म 
(5)
हैं 
आज 
विडंबना 
रंक भूखा 
मन को दुखा 
पैसों का दिखावा 
करोड़ों में चढ़ावा 
(6)
है
वक़्त 
अखाड़ा 
जीती उम्र 
रुपैया हारा
जीवन सागर 
ईश्वर ही सहारा 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

विधा -मुक्त छंद

"धन-वैभव"

मिल गया बहुत कुछ
भागदौड़ अभी बाकी है
जोड़ लिया होगा बहुत-सा
धन वैभव तूने
पा लिया होगा 
पोते-पोतियों का सुख भी
फिर भी लालच
भरा है मन में
पास हो हीरे-जवाहरात
सोने-चाँदी का अथाह भंडार
तेरा कसूर नहीं है इसमें
प्रकृति का नियम है यह
अन्न पेट में नहीं जाता कीड़े के
फिर भी उठाकर लाता दूर-दूर से
देखो तुम नदी को
लिए है पानी का अथाह भंडार
फिर भी पानी की चाहत में
निकल पड़ती है 
उबड़-खाबड़ रास्तों पर
समुद्र की खोज में
लगा रह तू भी 
नित #धन-वैभव जोड़ने में
जीवन के अंतिम क्षण तक।

रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,


भूखे की रोटी है पैसा ,
नंगे तन पर कपड़ा है पैसा ,
बेसहारे के सर पर छत ,
लाचारों का ख़्वाब है पैसा ...
बच्चों के लिये खिलौना ,
विद्यार्थी की फीस है पैसा ,
नौजवानों की नौकरी ,
अफ़सरों की घूस है पैसा ....
नारी का श्रृगांर बने कभी तो ,
व्यापारी का भंडार है पैसा ,
आडंबर की शान कहीं तो ,
शोहरत की पहचान है पैसा ...
प्रगति और उन्नती की ज़रूरत ,
कार्य पूर्ति का चक्र है पैसा ,
माना बहुत कुछ करता है ये ,
पर सबकुछ नहीं देता है पैसा....
मन में अहम का संचार ये करता ,
मानव को दानव बनाता है पैसा ,
भाई को भाई से लड़वाता ,
परिवारों को तोड़ता है पैसा ...
लालच स्वार्थ की नींव बने ये ,
अंहकार और ईर्ष्या जगाता है पैसा ,
लाखों जीव पनप रहे इसके बिन ,
पर इन्सान को नाच नचाता है पैसा .....
क़ुदरत के साधन मिलते बिन मोल ,
फिर भी अपने पीछे भगाता हैं पैसा ,
सुख शान्ति नहीं ख़रीद सकते इससे ,
न जाने फिर क्यों अज़ीज़ लगता हैं पैसा ....?

कुन्ना ......
जयपुर।

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