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ब्लॉग संख्या :-333
भुला दो नफ़रतें मन की सभी इस बार होली में।
लगा लो तुम गले सबको अरे इस बार होली में।
करें क्या साली से मस्ती दिला दी याद है नानी।
सुंघा दी रख के फूलों में है हमें नसवार होली में।
तुम्हारे बिन हमारी जिंदगी के सब रंग है फीके।
हुए मुश्किल से हैं प्यारे आपके दीदार होली में।
तुम्हारी हर अदा पर आज मेरा दिल हुआ शैदा।
फिर हुए नाराज क्यूँ तुम मेरे सरकार होली में।
मुश्किल से है मिलता मुहब्बत मे भिगो दें जो।
दो पडने जिस्म पर प्यार की ये बौछार होली में।
बदल लेते हैं फितरत ही जो रंग जाए इस रंग में।
हुए मासूम से गुल हैं जो कभी थे खार होली में।
करो तामीर आज मुहब्बत का इक नया मकतब।
गिरा दो आज नफरत की हरेक दीवार होली में।
इस मस्ती भरे मौसम में लिए फागुन है अंगड़ाई।
वही हल्ला वहीं हुल्लड रहेगा हर बार होली में।
विपिन सोहल
लगा लो तुम गले सबको अरे इस बार होली में।
करें क्या साली से मस्ती दिला दी याद है नानी।
सुंघा दी रख के फूलों में है हमें नसवार होली में।
तुम्हारे बिन हमारी जिंदगी के सब रंग है फीके।
हुए मुश्किल से हैं प्यारे आपके दीदार होली में।
तुम्हारी हर अदा पर आज मेरा दिल हुआ शैदा।
फिर हुए नाराज क्यूँ तुम मेरे सरकार होली में।
मुश्किल से है मिलता मुहब्बत मे भिगो दें जो।
दो पडने जिस्म पर प्यार की ये बौछार होली में।
बदल लेते हैं फितरत ही जो रंग जाए इस रंग में।
हुए मासूम से गुल हैं जो कभी थे खार होली में।
करो तामीर आज मुहब्बत का इक नया मकतब।
गिरा दो आज नफरत की हरेक दीवार होली में।
इस मस्ती भरे मौसम में लिए फागुन है अंगड़ाई।
वही हल्ला वहीं हुल्लड रहेगा हर बार होली में।
विपिन सोहल
होली आई रे
लो फिर आ गई है होली
अपने रंग में सबको रंगने को
घुलेंगे फिर रंग हवाओं में
प्यार के रंग होंगे बिखरने को
फैलेगी खुशबू अपनेपन की
भीगेंगे सब प्यार की फुहारों में
ढ़ोल संग गीत गूंजेंगे मधुर
कुछ दिल मे कुछ गलियारों में
दस्तख देगी घर घर उंगलियां
टोलियां बना संग साथी घूमेंगे
हर चेहरे पर होगी मुस्कान फिर
मस्ती में बच्चे बड़े सब झूमेंगे
ठंडाई मेवे गुजियां और मिठाई
पकवानों की खुशबू से घर महकेंगे
ऊंच- नीच भेद-भाव ना होगा
प्यार से मिल सब मिल गले लगेंगे।
सुमन जैन
नई दिल्ली
लो फिर आ गई है होली
अपने रंग में सबको रंगने को
घुलेंगे फिर रंग हवाओं में
प्यार के रंग होंगे बिखरने को
फैलेगी खुशबू अपनेपन की
भीगेंगे सब प्यार की फुहारों में
ढ़ोल संग गीत गूंजेंगे मधुर
कुछ दिल मे कुछ गलियारों में
दस्तख देगी घर घर उंगलियां
टोलियां बना संग साथी घूमेंगे
हर चेहरे पर होगी मुस्कान फिर
मस्ती में बच्चे बड़े सब झूमेंगे
ठंडाई मेवे गुजियां और मिठाई
पकवानों की खुशबू से घर महकेंगे
ऊंच- नीच भेद-भाव ना होगा
प्यार से मिल सब मिल गले लगेंगे।
सुमन जैन
नई दिल्ली
* विधा - बंधन मुक्त द्वी पदिका
****************************************
कर्तव्यों की कब खेलेगा फाग !!
***********************
स्नेह का विस्तार हो , इस बार होली में |
सदभाव का संकल्प हो, सबकी बोली में ||
राष्ट्र एकता महक उठे , ऐसा सबका हो संग |
मिलकर आओ जमा दें , ऐसा पक्का रंग ||
कब तक सोता रहेगा तू ,अब तो प्यारे जाग |
राहें तुझे पुकारे , कर्तव्यों की कब खेलेगा फाग ||
अबीर रंग तिलक लगा ,पढ़ लें ये पोथी आज |
जल की बचत कर ,चहकेगा अपना राष्ट्र समाज ||
गुलाल और गुलाब सुमन से, महका दे बग़िया सारी |
प्रेम रंग से सरोबार कर , यह है सबपे ही भारी ||
* प्रहलाद मराठा
* रचना ,स्वयं रचित ,मौलिक सर्व अधिकार सुरक्षित
****************************************
कर्तव्यों की कब खेलेगा फाग !!
***********************
स्नेह का विस्तार हो , इस बार होली में |
सदभाव का संकल्प हो, सबकी बोली में ||
राष्ट्र एकता महक उठे , ऐसा सबका हो संग |
मिलकर आओ जमा दें , ऐसा पक्का रंग ||
कब तक सोता रहेगा तू ,अब तो प्यारे जाग |
राहें तुझे पुकारे , कर्तव्यों की कब खेलेगा फाग ||
अबीर रंग तिलक लगा ,पढ़ लें ये पोथी आज |
जल की बचत कर ,चहकेगा अपना राष्ट्र समाज ||
गुलाल और गुलाब सुमन से, महका दे बग़िया सारी |
प्रेम रंग से सरोबार कर , यह है सबपे ही भारी ||
* प्रहलाद मराठा
* रचना ,स्वयं रचित ,मौलिक सर्व अधिकार सुरक्षित
.
विधा=हाइकु
(1)ज्ञान के रंग
जीवन में भरते
गुरु व संत
(2)धन का रंग
भरी दीनों की झोली
कान्हा की होली
(3)भोर उड़ाए
सतरंगी गुलाल
आसमां लाल
(4)सांझ के गाल
जाते जाते भी किए
सूर्य ने लाल
(5)स्नेह का रंग
हमेशा बरसाओ
होली मनाओं
(6)टेशू की टोली
भर केशर रंग
खेलेगी होली
(7)दोस्ती का रंग
दुश्मन पर डाला
दोस्त हो गया
(8)बैठी उदास
पिया है परदेश
होली है आज
(9)पिया की टोली
हम रगेंगे भौजी
आज है होली
(10)फ़िजा में मस्ती
हुरियारों की टोली
आयी जो होली
===रचनाकार ===
डाॅ.मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
(1)ज्ञान के रंग
जीवन में भरते
गुरु व संत
(2)धन का रंग
भरी दीनों की झोली
कान्हा की होली
(3)भोर उड़ाए
सतरंगी गुलाल
आसमां लाल
(4)सांझ के गाल
जाते जाते भी किए
सूर्य ने लाल
(5)स्नेह का रंग
हमेशा बरसाओ
होली मनाओं
(6)टेशू की टोली
भर केशर रंग
खेलेगी होली
(7)दोस्ती का रंग
दुश्मन पर डाला
दोस्त हो गया
(8)बैठी उदास
पिया है परदेश
होली है आज
(9)पिया की टोली
हम रगेंगे भौजी
आज है होली
(10)फ़िजा में मस्ती
हुरियारों की टोली
आयी जो होली
===रचनाकार ===
डाॅ.मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
फागण आया रंग रंगीला
रुक्का पड़ रह्या भारी
हरियाणे की होली खेलन
आये कृष्ण मुरारी।
कमर कै ऊपर बाँध कै पटका
बंसी बीच फंसाई
रूप अनोखा देखन आये
सारे लोग लुगाई
कट्ठी होकै सखियाँ नै
फेर घेर लिए गिरधारी।
हरियाणे की होली.......
राधा रानी बण कै जाटणी
ले कै कोरडा आई
गिरधारी की खैर नही अब
सोच सोच मुस्काई
आज जाटणी के चक्कर मैं
बुरे फंसे बनवारी।
हरियाणे.........
स्वरचित
सविता गर्ग "सावी"
पंचकूला (हरियाणा)
रुक्का पड़ रह्या भारी
हरियाणे की होली खेलन
आये कृष्ण मुरारी।
कमर कै ऊपर बाँध कै पटका
बंसी बीच फंसाई
रूप अनोखा देखन आये
सारे लोग लुगाई
कट्ठी होकै सखियाँ नै
फेर घेर लिए गिरधारी।
हरियाणे की होली.......
राधा रानी बण कै जाटणी
ले कै कोरडा आई
गिरधारी की खैर नही अब
सोच सोच मुस्काई
आज जाटणी के चक्कर मैं
बुरे फंसे बनवारी।
हरियाणे.........
स्वरचित
सविता गर्ग "सावी"
पंचकूला (हरियाणा)
होली आई मस्ती छाई
केसी अद्भुत होली आई
नर नारी बूढ़े और बच्चे
सबके मानस अति सुहाई
नीले लाल हरे और पीले
रंगों में रंग गए रंगीले
पक्के रंगों में सजधज के
बने आज सभी गर्वीले
देखें बरसाने की होली
वृषभानु पिचकारी मारे
कृष्णा संग गोप गोपियां
मिलकर घूम रहे द्वारे द्वारे
ढोल नगाड़े दुंदुभी बाजे
कर पकड़ मिल सब नाचे
रंग अबीर गुलाल उड़े ब्रज
कोलाहल है फिर भी साजे
चुर्र चुर्र पिचकारी चलती
सब मस्ती में अति भरपूर
अंगिया लहंगा साड़ी भीगी
अपनी मस्ती में चकनाचूर
राधे मोहन की बरजोडी
नाचे गावे रंग उछाले
दानव झुंड आये जैसे
उजले मुँह होगये काले
होली की हुड़दंग सुहानी
नाचे गावे भारी है शौर
ठंडाई मिल भांग पी रहे
पागलपन का छाया दौर।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
केसी अद्भुत होली आई
नर नारी बूढ़े और बच्चे
सबके मानस अति सुहाई
नीले लाल हरे और पीले
रंगों में रंग गए रंगीले
पक्के रंगों में सजधज के
बने आज सभी गर्वीले
देखें बरसाने की होली
वृषभानु पिचकारी मारे
कृष्णा संग गोप गोपियां
मिलकर घूम रहे द्वारे द्वारे
ढोल नगाड़े दुंदुभी बाजे
कर पकड़ मिल सब नाचे
रंग अबीर गुलाल उड़े ब्रज
कोलाहल है फिर भी साजे
चुर्र चुर्र पिचकारी चलती
सब मस्ती में अति भरपूर
अंगिया लहंगा साड़ी भीगी
अपनी मस्ती में चकनाचूर
राधे मोहन की बरजोडी
नाचे गावे रंग उछाले
दानव झुंड आये जैसे
उजले मुँह होगये काले
होली की हुड़दंग सुहानी
नाचे गावे भारी है शौर
ठंडाई मिल भांग पी रहे
पागलपन का छाया दौर।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
होलिया में उड़त रे गुलाल,
सजन मारो रंगीला है ...
रंग भरी पिचकारी मोये मारे,
लाज न आवे देखे सारे,
शर्म से हो गई मैं गुलाल,
सजन मारो रंगीला है....
भांग वो तो घोटण लागे,
ठंडई में उसे खूब ही मिलाये,
अपने संग मुझे भी पिलावे,
झूम के हुई मैं तो बेहाल,
सजन मारो रंगीला है....
फाग महीना जब भी आवे,
सजन तेरी याद सतावे,
रंग तेरे प्यार का मुझको भावे,
होली में उड़े अबीर, गुलाल,
सजन मारो रंगीला है....
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
सजन मारो रंगीला है ...
रंग भरी पिचकारी मोये मारे,
लाज न आवे देखे सारे,
शर्म से हो गई मैं गुलाल,
सजन मारो रंगीला है....
भांग वो तो घोटण लागे,
ठंडई में उसे खूब ही मिलाये,
अपने संग मुझे भी पिलावे,
झूम के हुई मैं तो बेहाल,
सजन मारो रंगीला है....
फाग महीना जब भी आवे,
सजन तेरी याद सतावे,
रंग तेरे प्यार का मुझको भावे,
होली में उड़े अबीर, गुलाल,
सजन मारो रंगीला है....
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
छंद मुक्त
रंग भरी पिचकारी तूने कस के मारी रे ,
भींग गयी चुनरीयां , तुम जीते मैं हारी रे ।
छिप छिप देखे श्याम हिय पे चलाए बाण,
ले अबीर रंग पलाश छोड लोक लाज सारी रे ।
जिय मचल-मचल जाए, मन डिग -डिग जाए,
कान्हा संग खेलत होरी सखी करत ठिठौरी रे ।
गोपी कहे अब के बरस यहाँ रहूँ न रहूँ ,
खेलन दो कान्हा संग बाबुल घर से उठेगी डोली रे ।
रंग प्यार का ले आई हिय माही नहीं समाई,
अंग-अंग चोली चुनर हर रंग भर जाई रे ।
गोपी कहे साजन से खेलन दो मोहे होरी रे,
चंग-मृदंग ढोल बाजे नाचन दे मैं भोली रे ।
गात पे लगाए कान्हा कसकर पिचकारी रे ,
उष्ण घात शीतल रंग, शीत से भरे सिसकारी रे ।
देह होगयी लाल, नीली, पीली , कनेर सी नारी रे ।
प्रेम रंग कोठरी रंगी यह कारी ही कारी रे ,
होली हुड़दग भाई सराबोर ग्वाल टोली सारी रे ।
हर नर -नारी मनमौज से भरे हैं सारे ,
ऊँच -नीच छोड़-छाड़ बृज की देखो होरी रे ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',
रंग भरी पिचकारी तूने कस के मारी रे ,
भींग गयी चुनरीयां , तुम जीते मैं हारी रे ।
छिप छिप देखे श्याम हिय पे चलाए बाण,
ले अबीर रंग पलाश छोड लोक लाज सारी रे ।
जिय मचल-मचल जाए, मन डिग -डिग जाए,
कान्हा संग खेलत होरी सखी करत ठिठौरी रे ।
गोपी कहे अब के बरस यहाँ रहूँ न रहूँ ,
खेलन दो कान्हा संग बाबुल घर से उठेगी डोली रे ।
रंग प्यार का ले आई हिय माही नहीं समाई,
अंग-अंग चोली चुनर हर रंग भर जाई रे ।
गोपी कहे साजन से खेलन दो मोहे होरी रे,
चंग-मृदंग ढोल बाजे नाचन दे मैं भोली रे ।
गात पे लगाए कान्हा कसकर पिचकारी रे ,
उष्ण घात शीतल रंग, शीत से भरे सिसकारी रे ।
देह होगयी लाल, नीली, पीली , कनेर सी नारी रे ।
प्रेम रंग कोठरी रंगी यह कारी ही कारी रे ,
होली हुड़दग भाई सराबोर ग्वाल टोली सारी रे ।
हर नर -नारी मनमौज से भरे हैं सारे ,
ऊँच -नीच छोड़-छाड़ बृज की देखो होरी रे ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',
रंग और खुशी जो ले के आई
सब कहते हैं होली
आ हमसफर तू राह बना दे
मै भी साथ हो ली
रुख पर तूने जो रंग डाला
उस दिन तेरी हो ली
आ सब गिले शिकवे भुला दें
खूब खेलें हम होली
झनक झनक पैजनीया छनके
नाच नचाये होली
रंग गुलाल की इस महफिल में
फाग सुनाये होली
तन सूखा मन रंग जाए
ऐसी स्नेह की होली
चलो चलें हम आज सभी के
संग मनायें होली ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
सब कहते हैं होली
आ हमसफर तू राह बना दे
मै भी साथ हो ली
रुख पर तूने जो रंग डाला
उस दिन तेरी हो ली
आ सब गिले शिकवे भुला दें
खूब खेलें हम होली
झनक झनक पैजनीया छनके
नाच नचाये होली
रंग गुलाल की इस महफिल में
फाग सुनाये होली
तन सूखा मन रंग जाए
ऐसी स्नेह की होली
चलो चलें हम आज सभी के
संग मनायें होली ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
फागुन है आया देखो सजन
दहक रहा पलाश का वन
टेसू भी है मस्त मलंग
महक रहा दिक-दिगंत
बहक रहा चितवन.....
ओढ़ ली धरा सतरंगी चुनर।
फागुन है आया देखो सजन
ब्रज की गलियों में उड़ रहा रंग
गोरी खेल रही होली ....
राधा-कृष्ण के संग....
खिला ना इसबार मेरा जीवन।
फागुन है आया देखो सजन
चाँद इतरा रहा चाँदनी के संग
याद आ रहा पल वो तेरे संग
गुजारे थे हमने लम्हों के रंग
तू भी होते काश!फाग के संग
है दिल में बस यही कसक।
फागुन है आया देखो सजन
उड़ रहा गुलाल व रंग...
हवा ने ज्यों पी ली हो भंग
मेरे मन में लगी है अगन
नहीं भूली मैं कभी....
लहू से रंगा वो तेरा वदन
फागुन से पहले खेला था तुमने
सरहद में होली ओ मेरे सजन
फिर बेरंग ही रहा मेरा वसंत
फागुन है आया देखो सजन।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
दहक रहा पलाश का वन
टेसू भी है मस्त मलंग
महक रहा दिक-दिगंत
बहक रहा चितवन.....
ओढ़ ली धरा सतरंगी चुनर।
फागुन है आया देखो सजन
ब्रज की गलियों में उड़ रहा रंग
गोरी खेल रही होली ....
राधा-कृष्ण के संग....
खिला ना इसबार मेरा जीवन।
फागुन है आया देखो सजन
चाँद इतरा रहा चाँदनी के संग
याद आ रहा पल वो तेरे संग
गुजारे थे हमने लम्हों के रंग
तू भी होते काश!फाग के संग
है दिल में बस यही कसक।
फागुन है आया देखो सजन
उड़ रहा गुलाल व रंग...
हवा ने ज्यों पी ली हो भंग
मेरे मन में लगी है अगन
नहीं भूली मैं कभी....
लहू से रंगा वो तेरा वदन
फागुन से पहले खेला था तुमने
सरहद में होली ओ मेरे सजन
फिर बेरंग ही रहा मेरा वसंत
फागुन है आया देखो सजन।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
होली फागुन गीत
कान्हा होली में आज तोहे रंग डारू
कान्हा होली में,हाँ रे कान्हा होली में
ओहो कान्हा होली में ..........
पिछले बरस तेने बहुत सतायो
मुख पै गुलाल तैने लपटायो
टूट गई नथ मेरी प्यारी
कान्हा होरी मे ,हाँ रे कान्हा
होरी में आज तोहे रंग डारू
कान्हा होरी में...........
गोरी गोरी बैयां पतली कलैया
संग चले मेरे जब सब सखियाँ
बाँह पकह पिचकारी भर मारी
कान्हा होरी में, कान्हा होरी में
आज तोहे रंग डारू
कान्हा होरी में............
जब तू मोहे रंग लगावैं
अंग अंग में तू बस जावे
केसरिया बालम की मैं हूँ प्यारी
कान्हा होली में ,कान्हा होली में
आज तोहे रंग डारू
कान्हा होली में। ..........
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
कान्हा होली में आज तोहे रंग डारू
कान्हा होली में,हाँ रे कान्हा होली में
ओहो कान्हा होली में ..........
पिछले बरस तेने बहुत सतायो
मुख पै गुलाल तैने लपटायो
टूट गई नथ मेरी प्यारी
कान्हा होरी मे ,हाँ रे कान्हा
होरी में आज तोहे रंग डारू
कान्हा होरी में...........
गोरी गोरी बैयां पतली कलैया
संग चले मेरे जब सब सखियाँ
बाँह पकह पिचकारी भर मारी
कान्हा होरी में, कान्हा होरी में
आज तोहे रंग डारू
कान्हा होरी में............
जब तू मोहे रंग लगावैं
अंग अंग में तू बस जावे
केसरिया बालम की मैं हूँ प्यारी
कान्हा होली में ,कान्हा होली में
आज तोहे रंग डारू
कान्हा होली में। ..........
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
हाइकु में अभिव्यक्ति
मैं - वृंदावन
फाग खेलत कान्हा
धन्य हो गई //
यमुना तट
आए श्याम रसिया
खेलन होरी //
कुँज की गली
गोपियाँ मनचली
मचावैं होली //
रंगीली होली
राधा मोहन सॅग
जी भर खेली //
भर पिचका
डारैं मनमोहन
रंग बरसै //
बृज सखियाँ
मल दियों गुलाल
गाल पे लाल//
मीरा के प्रभु
तन मन रंग दो
प्रेम रंग में//
****************
ब्रह्माणी वीणा
मैं - वृंदावन
फाग खेलत कान्हा
धन्य हो गई //
यमुना तट
आए श्याम रसिया
खेलन होरी //
कुँज की गली
गोपियाँ मनचली
मचावैं होली //
रंगीली होली
राधा मोहन सॅग
जी भर खेली //
भर पिचका
डारैं मनमोहन
रंग बरसै //
बृज सखियाँ
मल दियों गुलाल
गाल पे लाल//
मीरा के प्रभु
तन मन रंग दो
प्रेम रंग में//
****************
ब्रह्माणी वीणा
आ जाओ इस बार पिया होली में
कितने रंग सजाये हैं रंगोली में ..
मन के भाव भी लिख डाले हैं
जो रखे थे मन की तिजोरी में ...
वो सब मैं तुम्हे बताऊंगी
अपने स्वर और बोली में ..
कुछ तुम कुछ हम गायेंगे
रस होगा जीवन की झोली में ...
आँखें बिछाये बैठी 'शिवम'
समझो न हँसी ठिठोली में ...
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
कितने रंग सजाये हैं रंगोली में ..
मन के भाव भी लिख डाले हैं
जो रखे थे मन की तिजोरी में ...
वो सब मैं तुम्हे बताऊंगी
अपने स्वर और बोली में ..
कुछ तुम कुछ हम गायेंगे
रस होगा जीवन की झोली में ...
आँखें बिछाये बैठी 'शिवम'
समझो न हँसी ठिठोली में ...
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
तेरी यादों का उड़ता गुलाल आया
मैंने जाना फ़ागुन आया।
मदमस्त हवा में हुई रंगों की बौछार
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
चूड़ी की रुनझुन ने मौसम का मतवाला होरी गीत गाया
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
झुनक झुनक पायल बाजी
सुनकर मन इतराया
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
तेरे इश्क़ का रंग कर गया
नूरानी मुझको
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
धरती ,आकाश ,भौंरे ,तितली,धूप सब पर जादू छाया
मैंने जाना फ़ागुन आया।
डूब तेरे अहसासों के रंग में
मन खुद हुआ रंगरेज़
मैंने जाना फ़ागुन आया ।।
अंजना सक्सेना
मैंने जाना फ़ागुन आया।
मदमस्त हवा में हुई रंगों की बौछार
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
चूड़ी की रुनझुन ने मौसम का मतवाला होरी गीत गाया
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
झुनक झुनक पायल बाजी
सुनकर मन इतराया
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
तेरे इश्क़ का रंग कर गया
नूरानी मुझको
मैंने जाना फ़ागुन आया ।
धरती ,आकाश ,भौंरे ,तितली,धूप सब पर जादू छाया
मैंने जाना फ़ागुन आया।
डूब तेरे अहसासों के रंग में
मन खुद हुआ रंगरेज़
मैंने जाना फ़ागुन आया ।।
अंजना सक्सेना
रंगों भरी घटाएँ
घिर घिर आ गई
बे सावन अम्बर पर
बदली सी छा गई
महिना है फागुन का
सखि ! होली आ गई
वासन्ती वेला में
मस्ती सी छा गई
रंग अबीर गुलाल संग
टेसू गुड़हल के फूल
घर आंगन महक रहे
पावन रंगों के संग
चंग-ढोल की थाप पर
गूंज रहे हैं गीत
वैर-भाव को भूल कर
बने सभी मन मीत
इन्द्रधनुषी खुशियों से
सजा रहे संसार
आभामयी रंगों का
मंगलमय त्योहार
“मीना भारद्वाज”
(स्वरचित एवं मौलिक )
घिर घिर आ गई
बे सावन अम्बर पर
बदली सी छा गई
महिना है फागुन का
सखि ! होली आ गई
वासन्ती वेला में
मस्ती सी छा गई
रंग अबीर गुलाल संग
टेसू गुड़हल के फूल
घर आंगन महक रहे
पावन रंगों के संग
चंग-ढोल की थाप पर
गूंज रहे हैं गीत
वैर-भाव को भूल कर
बने सभी मन मीत
इन्द्रधनुषी खुशियों से
सजा रहे संसार
आभामयी रंगों का
मंगलमय त्योहार
“मीना भारद्वाज”
(स्वरचित एवं मौलिक )
(आया रंगो का त्यौहार)
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आया रंगों का त्यौहार।।
रंग भरी पिचकारी से अब।
धोयें राग द्वेष का मैल।।
ऊँच नीच की हो न भावना।
उड़े अबीर लाल गुलाल।।
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
आया रंगों का त्यौहार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
गुजिया मिठाई की मिठास से।
फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से।
धोयें जग का अत्याचार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।
बसंत बहार के रंगों से।
ओढ़े धरती है पितांबरी।।
ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
सिचें मानवता की क्यारी।।
रूठे श्याम को भी मनायें।
रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
रंगों और पानी से सिखें।
झलक एकता की दिखलायें।।
मानवता का हो संचार।
बहे सुख समृद्धि की धार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।
.........भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड)
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आया रंगों का त्यौहार।।
रंग भरी पिचकारी से अब।
धोयें राग द्वेष का मैल।।
ऊँच नीच की हो न भावना।
उड़े अबीर लाल गुलाल।।
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
आया रंगों का त्यौहार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
गुजिया मिठाई की मिठास से।
फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से।
धोयें जग का अत्याचार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।
बसंत बहार के रंगों से।
ओढ़े धरती है पितांबरी।।
ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
सिचें मानवता की क्यारी।।
रूठे श्याम को भी मनायें।
रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
रंगों और पानी से सिखें।
झलक एकता की दिखलायें।।
मानवता का हो संचार।
बहे सुख समृद्धि की धार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।
.........भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड)
जली होलिका खुशी मनाओ होली है
अच्छाई का बिगुल बजाओ होली है।
दहन होलिका में जल जाये दुःख सारे
झूमो नाचो मिलकर गाओ होली है।
राधा के संग होली खेले मन मोहन
नैनों की भाषा में बताओ होली है।
कोई बच ना पाये देखो बस्ती में
सबको मिल के रंग लगाओ होली है।
उड़ती हवा में फैली गुलालों की खुशबू
हाथो में भर रंग उड़ाओ होली है।
भंग मिला कर पी लो थोड़ी ठण्डाई
और न अब हुड़दंग मचाओ होली है।
आया फागुन स्वप्न मिलन के देखो तुम
ऐसे ना मुझको तड़पाओ होली है।
तोड़ो सब ये जाति धर्म की जंजीरे
'मन' सबको ही रंग लगाओ होली है।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
अच्छाई का बिगुल बजाओ होली है।
दहन होलिका में जल जाये दुःख सारे
झूमो नाचो मिलकर गाओ होली है।
राधा के संग होली खेले मन मोहन
नैनों की भाषा में बताओ होली है।
कोई बच ना पाये देखो बस्ती में
सबको मिल के रंग लगाओ होली है।
उड़ती हवा में फैली गुलालों की खुशबू
हाथो में भर रंग उड़ाओ होली है।
भंग मिला कर पी लो थोड़ी ठण्डाई
और न अब हुड़दंग मचाओ होली है।
आया फागुन स्वप्न मिलन के देखो तुम
ऐसे ना मुझको तड़पाओ होली है।
तोड़ो सब ये जाति धर्म की जंजीरे
'मन' सबको ही रंग लगाओ होली है।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
🍁
फागुन के दिन थोडे रह गये,
मन मे उडे उमँग ।
काम काज मे मन नही लागे,
चढा श्याम का रंग।
🍁
रंग बसन्ती, ढंग बसन्ती,
चाल बसन्ती छायो।
रोम-रोम भयो पुलकित मोरा,
का करू समझ ना पायो।
🍁
रंग भंग की चाह उठे है,
पाँव मोरा लहराये।
श्याम सखी बन राधा नाचू,
मन तरंग भर जाये।
🍁
काम काज दिन, रोज ही होये,
जीवन दुख बन जाये।
फाग माह ही जीवन बन कर,
अमृत रस बरसाये।
🍁
बसन्त पंचमी लगा के सम्मत,
फागुन मास जलायो।
चैत मास के प्रथम दिवस पे,
होली खेलन जायो।
🍁
होठ गुलाबी, गाल गुलाबी,
नैना गुलाबी लागे।
डगमग-डगमग चाल सखी तोरा,
मन जल तरंग बरसाये।
🍁
करके जोरा-जोरी मोहे,
रंग लगा ले कोई।
खोट बिठा के मन मे ना,
होली खेले कोई।
🍁
नैनो से नैन मिला लो हमसे,
बिना पलक झपकाये।
जिसका पहले नैन झपक गये,
उसको रंग लगाये।
🍁
बरसाने की राधा नाचे,
नन्द गली का काँन्हा ।
शिव-शम्भू ने भंग चढा है,
होली खेले आजा।
🍁
काशी की होली मस्तानी
वृन्दावन मे गुलाल।
शेर के मन मे फाग जगा है,
जिसका रंग है लाल।
🍁
भावों को दबने ना देना,
मन के भाव निकाल।
शेर के रंग मे डूब सखी रे,
आओ खेले फाग।
🍁
जोगिरा सा रा रा रा रा
🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
फागुन के दिन थोडे रह गये,
मन मे उडे उमँग ।
काम काज मे मन नही लागे,
चढा श्याम का रंग।
🍁
रंग बसन्ती, ढंग बसन्ती,
चाल बसन्ती छायो।
रोम-रोम भयो पुलकित मोरा,
का करू समझ ना पायो।
🍁
रंग भंग की चाह उठे है,
पाँव मोरा लहराये।
श्याम सखी बन राधा नाचू,
मन तरंग भर जाये।
🍁
काम काज दिन, रोज ही होये,
जीवन दुख बन जाये।
फाग माह ही जीवन बन कर,
अमृत रस बरसाये।
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बसन्त पंचमी लगा के सम्मत,
फागुन मास जलायो।
चैत मास के प्रथम दिवस पे,
होली खेलन जायो।
🍁
होठ गुलाबी, गाल गुलाबी,
नैना गुलाबी लागे।
डगमग-डगमग चाल सखी तोरा,
मन जल तरंग बरसाये।
🍁
करके जोरा-जोरी मोहे,
रंग लगा ले कोई।
खोट बिठा के मन मे ना,
होली खेले कोई।
🍁
नैनो से नैन मिला लो हमसे,
बिना पलक झपकाये।
जिसका पहले नैन झपक गये,
उसको रंग लगाये।
🍁
बरसाने की राधा नाचे,
नन्द गली का काँन्हा ।
शिव-शम्भू ने भंग चढा है,
होली खेले आजा।
🍁
काशी की होली मस्तानी
वृन्दावन मे गुलाल।
शेर के मन मे फाग जगा है,
जिसका रंग है लाल।
🍁
भावों को दबने ना देना,
मन के भाव निकाल।
शेर के रंग मे डूब सखी रे,
आओ खेले फाग।
🍁
जोगिरा सा रा रा रा रा
🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
फाग हुआ मनोहर
गांव गांव औ शहर
बुढ़े बच्चे नारी नर
होली तो मनाईए।
आया फाग मधुमासी
खेले सब ब्रजवासी
भर पिचकारी मारी
सा रा रा तो बोलिए।
फाग देखो हरषाती
पकवान भी खिलाती
गले मिल औ मिलाती
गुझिया तो खाइए।
फाग होती है रंगीली
जाम भांग सी नशीली
प्रिया प्रिय संग होली
रंग तो लगाइए ।
ज्योति अरूण जैन" अनु"
स्वरचित
गांव गांव औ शहर
बुढ़े बच्चे नारी नर
होली तो मनाईए।
आया फाग मधुमासी
खेले सब ब्रजवासी
भर पिचकारी मारी
सा रा रा तो बोलिए।
फाग देखो हरषाती
पकवान भी खिलाती
गले मिल औ मिलाती
गुझिया तो खाइए।
फाग होती है रंगीली
जाम भांग सी नशीली
प्रिया प्रिय संग होली
रंग तो लगाइए ।
ज्योति अरूण जैन" अनु"
स्वरचित
अहसासों के रंगों ने,हर सै पर अपना जादू चलाया।
मदहोश सबको बनाने, लो फिर फागुन आया।।
हवाओं में उड़ रहा हर तरफ, लाल, गुलाबी,हरा गुलाल,
धवल धरती की चुनरिया,हो गई शर्म से लाल।
खुशीयों से प्रकृति का कण-कण, तन-मन हर्षाया।
मदहोश सबको बनाने,लो फिर फागुन आया।।
छनछन करती चुड़ियां, छम-छम करती पायलीया।
भौंरे तितलियां,नर नारियां, मदमस्त हो गई ये दुनिया।
सब पर प्रीत की भांग के नशे ने अपना रंग जमाया।।
मदहोश सबको बनाने,लो फिर फागुन आया।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
मदहोश सबको बनाने, लो फिर फागुन आया।।
हवाओं में उड़ रहा हर तरफ, लाल, गुलाबी,हरा गुलाल,
धवल धरती की चुनरिया,हो गई शर्म से लाल।
खुशीयों से प्रकृति का कण-कण, तन-मन हर्षाया।
मदहोश सबको बनाने,लो फिर फागुन आया।।
छनछन करती चुड़ियां, छम-छम करती पायलीया।
भौंरे तितलियां,नर नारियां, मदमस्त हो गई ये दुनिया।
सब पर प्रीत की भांग के नशे ने अपना रंग जमाया।।
मदहोश सबको बनाने,लो फिर फागुन आया।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
रंगों भरा त्यौहार
रंगों सजा बाजार ।
दिखते हैं रंग कितने भले
गालों पे जब ये जा लगे।
होली हो उन रंगों भरी
रंग जिसमें हो बस प्यार के।
रंगों से हो जीवन भरा
हरेक रंग हो सबके संग ।
दे पाये गर थोड़ा से रंग
खुशियों भरे हम हर तरफ,
होगी वही होली सही
फागुन हँसे जब सबके मन।
रंगों सजा बाजार ।
दिखते हैं रंग कितने भले
गालों पे जब ये जा लगे।
होली हो उन रंगों भरी
रंग जिसमें हो बस प्यार के।
रंगों से हो जीवन भरा
हरेक रंग हो सबके संग ।
दे पाये गर थोड़ा से रंग
खुशियों भरे हम हर तरफ,
होगी वही होली सही
फागुन हँसे जब सबके मन।
होली का ये पावन त्योहार,
लेकर आए खुशियां अपार।
आओ मिल मनभेद मिटाएं,
छा जाए चहुं ओर बहार।
भूल जाएं सब बीती बातें,
भूल जाएं घातें-प्रतिघातें।
प्रेम-रंग में रंग कर हम सब,
पा लें जीवन की सौगातें।
क्यों जीवन में कटुता घोलें,
क्यों नफरत के रंग ले हम डोलें।
क्यों न लगाएं खुशियों के मेले,
धुल जाए जिसमें मन का मलाल।
वृंदावन हर घर बन जाए,
कान्हा प्रेम का रंग बरसाए।
तन-मन भींगे प्रेम के रंग में।
राधामय ये संसार हो जाए।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक
लेकर आए खुशियां अपार।
आओ मिल मनभेद मिटाएं,
छा जाए चहुं ओर बहार।
भूल जाएं सब बीती बातें,
भूल जाएं घातें-प्रतिघातें।
प्रेम-रंग में रंग कर हम सब,
पा लें जीवन की सौगातें।
क्यों जीवन में कटुता घोलें,
क्यों नफरत के रंग ले हम डोलें।
क्यों न लगाएं खुशियों के मेले,
धुल जाए जिसमें मन का मलाल।
वृंदावन हर घर बन जाए,
कान्हा प्रेम का रंग बरसाए।
तन-मन भींगे प्रेम के रंग में।
राधामय ये संसार हो जाए।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक
विधा:- अलीवर्णपाद छंद
(1)
फगुआ का दिन
होली खेले श्याम
पंकज पाखुर
अधर धरे से
राधा संग नाचे
मथुरा का ग्वाल
(2)
गोपी मारे लट्ठ
बरसाने आज
पकड़ न पावे
रंग रसिया को
छलता फिरता
देखो नन्द लाल
(3)
होली का हुड़दंग
ढपली का राग
भांग गोली खा के
गाते हैं मल्हार
रंग से भिगो दें
साड़ी चोली आज
(4)
रंग चंग भांग
लगा बजा पी के
चेहरा चमके
वो मस्ती में झूमे
होली के संग हो
गुलफाम घूमे
(5)
गुलाल से खिले
चेहरे दमके
काले सफेद से
भांग के मद में
हुड़दंगी नाचे
होली के रंग में
(6)
ढपली गुलाल
उड़ती बहार
भांग की जुगाड़
ले होली की आड़
नवयौवन सा
फाल्गुन है मास
स्वरचित: 20-03-2019
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
(1)
फगुआ का दिन
होली खेले श्याम
पंकज पाखुर
अधर धरे से
राधा संग नाचे
मथुरा का ग्वाल
(2)
गोपी मारे लट्ठ
बरसाने आज
पकड़ न पावे
रंग रसिया को
छलता फिरता
देखो नन्द लाल
(3)
होली का हुड़दंग
ढपली का राग
भांग गोली खा के
गाते हैं मल्हार
रंग से भिगो दें
साड़ी चोली आज
(4)
रंग चंग भांग
लगा बजा पी के
चेहरा चमके
वो मस्ती में झूमे
होली के संग हो
गुलफाम घूमे
(5)
गुलाल से खिले
चेहरे दमके
काले सफेद से
भांग के मद में
हुड़दंगी नाचे
होली के रंग में
(6)
ढपली गुलाल
उड़ती बहार
भांग की जुगाड़
ले होली की आड़
नवयौवन सा
फाल्गुन है मास
स्वरचित: 20-03-2019
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना(म.प्र.)
फिजां हुई रंगीन,
आया रंगों का त्योहार।
धरा रंगी वासंती,
आई सुर्ख पलाश पर बहार।
गुलमोहर भी खिल उठे,
धरा रंगने को।
तितलियों ने उड़ान भरी,
गगन रंगने को।
गलियों में गुंजने लगे अब,
फागुन के गीत।
रंग गुलाल चढ़ाने लगे,
एक दूजे को मीत।
आओ मिटाए मतभेद,
भरे हर दिल के छेद।
बनकर हमजोली,
खेले हम संग संग होली।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
आया रंगों का त्योहार।
धरा रंगी वासंती,
आई सुर्ख पलाश पर बहार।
गुलमोहर भी खिल उठे,
धरा रंगने को।
तितलियों ने उड़ान भरी,
गगन रंगने को।
गलियों में गुंजने लगे अब,
फागुन के गीत।
रंग गुलाल चढ़ाने लगे,
एक दूजे को मीत।
आओ मिटाए मतभेद,
भरे हर दिल के छेद।
बनकर हमजोली,
खेले हम संग संग होली।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
होली है प्यार भरी , हिल-मिल तन-मन रँग लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें ।।
सब छोड़ गिले-शिकबे, दिल फिर से मिल जायें,
रूठा न रहे कोई , हँस कर मन खिल जायें ।
फिर भाईचारे से , खुश हो कर गले मिलें ,
सुख-दुख में साथी बन, खुशियों के सुमन खिलें।
सब के मीता बन कर , घर- आँगन सुख भर लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें।।
नव प्रेम भरे हों रँग , सच्चाई की केसर ,
बादल से छा जायें , भक्ति गुलाल नभ पर ।
नेहा के बाणों को , पिचकारी में भर कर ,
प्रियतम पर बरसायें, हिय से पिय खुश हो कर।।
मन मिश्री सी घोलें , बोली रसमय कर लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें।।
ज्यों राधा जी खेलीं , मोहन संग प्रीति भरी ,
ब्रज में नित रास रचे , नाचें गोपी सिगरी ।
बरसाने धूम मची , लठ मारी होली से ,
ब्रजवासी झूम रहे , खुश आँख-मिचोली से ।
सत की है सदा विजय , मन को फागुन कर लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें ।।
🍊🍀🌻🌹☀️🌺
🌷🌸.... .रवीन्द्र वर्मा
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें ।।
सब छोड़ गिले-शिकबे, दिल फिर से मिल जायें,
रूठा न रहे कोई , हँस कर मन खिल जायें ।
फिर भाईचारे से , खुश हो कर गले मिलें ,
सुख-दुख में साथी बन, खुशियों के सुमन खिलें।
सब के मीता बन कर , घर- आँगन सुख भर लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें।।
नव प्रेम भरे हों रँग , सच्चाई की केसर ,
बादल से छा जायें , भक्ति गुलाल नभ पर ।
नेहा के बाणों को , पिचकारी में भर कर ,
प्रियतम पर बरसायें, हिय से पिय खुश हो कर।।
मन मिश्री सी घोलें , बोली रसमय कर लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें।।
ज्यों राधा जी खेलीं , मोहन संग प्रीति भरी ,
ब्रज में नित रास रचे , नाचें गोपी सिगरी ।
बरसाने धूम मची , लठ मारी होली से ,
ब्रजवासी झूम रहे , खुश आँख-मिचोली से ।
सत की है सदा विजय , मन को फागुन कर लें ।
नफरत को दूर भगा , जीवन पावन कर लें ।।
🍊🍀🌻🌹☀️🌺
🌷🌸.... .रवीन्द्र वर्मा
II सभी रंग फीके पड़ गए...II
सभी रंग फीके पड़ गए...
इक श्याम रंग के आगे....
सभी उड़ाएं अबीर गुलाल....
मोहे श्याम रंग ही भाये....
सभी रंग फीके पड़ गए...
इक श्याम रंग के आगे....
माथा कान्हां सुहाए ऐसा....
केसरिया गया मुरझाये...
देख तिरछी नजरिया कारी...
लाल रंग खड़ा शरमाये....
जब मैं देखूं रंग गुलाबी..
बदरंग नजर वो आये....
गाल लल्ला के चमकें ऐसे...
छटा गुलाबी बिखरी जाए....
रंग कनक को हाथ लगाऊं....
कुण्डल मोहे धमकाएं....
पीताम्बर धारी कृष्णा देख...
कनक रंग राख हो जाए....
रंग आसमानी रिक्त सा लागे..
जब कान्हां नयनों में झाँकूँ...
प्रेम भाव की गहराई ऐसी...
जिसे अम्बर देख ललचाये....
कैसे कहूँ मैं दुविधा अपनी....
हर रंग ही गया कुम्हलाये....
हर रंग रंगा मैं कृष्णा अपना...
पर कोई रंग वो रंग न पाय....
पीड़ा उमड़ी अश्रू बह आये...
व्यथा मेरी ने लल्ला हिलाये...
मधुर मधुर होंठों से कान्हा...
तब मुरली कर्ण में सुनाये....
प्रेम रंग रंगा जो मोहे कान्हा....
हर रंग में वो ही नज़र आये....
मन भीतर हर रंग में कान्हा....
हर रंग कान्हा में रहा समाये....
मुझे श्याम ही श्याम नज़र आये....
सखी श्याम ही श्याम नज़र आये...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
सभी रंग फीके पड़ गए...
इक श्याम रंग के आगे....
सभी उड़ाएं अबीर गुलाल....
मोहे श्याम रंग ही भाये....
सभी रंग फीके पड़ गए...
इक श्याम रंग के आगे....
माथा कान्हां सुहाए ऐसा....
केसरिया गया मुरझाये...
देख तिरछी नजरिया कारी...
लाल रंग खड़ा शरमाये....
जब मैं देखूं रंग गुलाबी..
बदरंग नजर वो आये....
गाल लल्ला के चमकें ऐसे...
छटा गुलाबी बिखरी जाए....
रंग कनक को हाथ लगाऊं....
कुण्डल मोहे धमकाएं....
पीताम्बर धारी कृष्णा देख...
कनक रंग राख हो जाए....
रंग आसमानी रिक्त सा लागे..
जब कान्हां नयनों में झाँकूँ...
प्रेम भाव की गहराई ऐसी...
जिसे अम्बर देख ललचाये....
कैसे कहूँ मैं दुविधा अपनी....
हर रंग ही गया कुम्हलाये....
हर रंग रंगा मैं कृष्णा अपना...
पर कोई रंग वो रंग न पाय....
पीड़ा उमड़ी अश्रू बह आये...
व्यथा मेरी ने लल्ला हिलाये...
मधुर मधुर होंठों से कान्हा...
तब मुरली कर्ण में सुनाये....
प्रेम रंग रंगा जो मोहे कान्हा....
हर रंग में वो ही नज़र आये....
मन भीतर हर रंग में कान्हा....
हर रंग कान्हा में रहा समाये....
मुझे श्याम ही श्याम नज़र आये....
सखी श्याम ही श्याम नज़र आये...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
हाइकु
प्रकृति होली
इंद्रधनुष रंग
हर्षित मन
होली महीना
तन मन नशीला
टेसू रंगीला
होली के रंग
जीजा साली के संग
है हुड़दंग
होलिका भस्म
उत्तम पकवान
पर्व महान
होली बेरंग
परिजन वियोग
भर दें रंग।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
प्रकृति होली
इंद्रधनुष रंग
हर्षित मन
होली महीना
तन मन नशीला
टेसू रंगीला
होली के रंग
जीजा साली के संग
है हुड़दंग
होलिका भस्म
उत्तम पकवान
पर्व महान
होली बेरंग
परिजन वियोग
भर दें रंग।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
पिया संग खेलू मैं भी होली
पूरा घर का आंगन रंग से भर जायें
पिया संग खेलू मैं भी होली
हर रंग ले कर खुशियाँ आयें
पिया संग खेलू मैं भी होली
होली के गीतों पर बजे ढोल हर ओर
पिया संग खेलू मैं भी होली
गुझिया पापड़ पकवानों के घर में हो मेले
पिया संग खेलू मैं भी होली
मन में खुशियों के फूल खिले रंग बिरंगी दुनिया में
पिया संग खेलू मैं भी होली
चारों ओर छाई उमंग खुशियों की आई होली
पिया संग खेलू मैं भी होली
पिया संग खेलू मैं भी होली
डॉ स्वाति श्रीवास्तव
पूरा घर का आंगन रंग से भर जायें
पिया संग खेलू मैं भी होली
हर रंग ले कर खुशियाँ आयें
पिया संग खेलू मैं भी होली
होली के गीतों पर बजे ढोल हर ओर
पिया संग खेलू मैं भी होली
गुझिया पापड़ पकवानों के घर में हो मेले
पिया संग खेलू मैं भी होली
मन में खुशियों के फूल खिले रंग बिरंगी दुनिया में
पिया संग खेलू मैं भी होली
चारों ओर छाई उमंग खुशियों की आई होली
पिया संग खेलू मैं भी होली
पिया संग खेलू मैं भी होली
डॉ स्वाति श्रीवास्तव
*************
22 12,2212,2212,2212 (मापनी)
हरिगीतिका छंद में,,,
~~~~~~~~~~
🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷
*********************************
होली हमारे हिंद का, मधुरिम सरस त्योहार है ।
उड़तीं फुहारें रंग की,ज्यों फुलझड़ी जलधार है।।
*
ये प्रेम का सुन्दर मिलन,,विखरे हृदय को जोड़ता,
सब नफरतों को तोड़ती, होली मिलन दमदार है।।
*
गोकुल बिरज में धूम है,,पिचकारियाँ छूटे वहाँ,
पीताभ रंगों में बसा,,राधा-किशन का प्यार है ।।
*
प्रहलाद की हरि साधना का,भक्तिमय विश्वास ये,
सत धर्म की ये विजय है,भगवान का उपहार है।।
*
होली मनाओ प्यार से,बदरंग बस ना कीजिए,
करलो हृदय को रंगमय,,,,ये प्रेम की बौछार है।।
*
ये भक्ति आस्था से मिला,भगवान का वरदान ज्यों,
जलती रहेगी होलिका,व्यभिचार का प्रतिकार है ।।
*
************************************
🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷🌷🌲
#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
22 12,2212,2212,2212 (मापनी)
हरिगीतिका छंद में,,,
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होली हमारे हिंद का, मधुरिम सरस त्योहार है ।
उड़तीं फुहारें रंग की,ज्यों फुलझड़ी जलधार है।।
*
ये प्रेम का सुन्दर मिलन,,विखरे हृदय को जोड़ता,
सब नफरतों को तोड़ती, होली मिलन दमदार है।।
*
गोकुल बिरज में धूम है,,पिचकारियाँ छूटे वहाँ,
पीताभ रंगों में बसा,,राधा-किशन का प्यार है ।।
*
प्रहलाद की हरि साधना का,भक्तिमय विश्वास ये,
सत धर्म की ये विजय है,भगवान का उपहार है।।
*
होली मनाओ प्यार से,बदरंग बस ना कीजिए,
करलो हृदय को रंगमय,,,,ये प्रेम की बौछार है।।
*
ये भक्ति आस्था से मिला,भगवान का वरदान ज्यों,
जलती रहेगी होलिका,व्यभिचार का प्रतिकार है ।।
*
************************************
🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷🌷🌲🌷🌷🌲
#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
चाहतों का खूब इजहार हुआ होली में
रंगों से चाहत को प्यार हुआ होली में
जो बेरंग थे फ़साने तुमसे खूब रंग हुए
कीमत ए दिल भी उधार हुआ होली में
सूने मन ने उमंगों का क्या दामन थामा
मन से मन का त्यौहार हुआ होली में
मिलन से मिलन के प्यासे थे तुम हम
गुलाबी लगा ,हरे का करार हुआ होली में
थाम के बैइया तुमसे नजर मिलाई
#राय मन मतंग ये सरोबार हुआ होली में
~```
पी राय राठी
स्व रचित
रंगों से चाहत को प्यार हुआ होली में
जो बेरंग थे फ़साने तुमसे खूब रंग हुए
कीमत ए दिल भी उधार हुआ होली में
सूने मन ने उमंगों का क्या दामन थामा
मन से मन का त्यौहार हुआ होली में
मिलन से मिलन के प्यासे थे तुम हम
गुलाबी लगा ,हरे का करार हुआ होली में
थाम के बैइया तुमसे नजर मिलाई
#राय मन मतंग ये सरोबार हुआ होली में
~```
पी राय राठी
स्व रचित
बोलो सा रा रा
होली का त्योहार सजीला सब जन चढी खुमारी ,
पास पड़ौसन रंग रंगीली, दूजे पति बलिहारी |
बोलो सा रा रा रा
उड़ते बादल रंग रंगीले , हुई रंगीली दुनियाँ,
बच्चों के सपने रंगीले ,रंग में भीगी दुनियाँ |
बोलो सा रा रा रा
दशों दिशा में रंग के बादल उमड़ घूमड़ कर बरसे
प्रेम रंग भीगे नर - नारी , झूमे जियरा हुलसे |
बोलो सा रा रा रा
बहे प्रेम की गंगा - यमुना , नफ़रत सब बह जाए ,
महर - महर अमराई महके , कोयल फाग सुनाए |
बोलो सा रा रा रा
जीजा - साली भंग चढ़ाए , देवर - भाभी गाये '
साजन सजनी हसि -हसि खेलै, ससुरा मन बौराये |
बोलो सा रा रा रा
©मंजूषा श्रीवास्तव "मृदुल"
होली का त्योहार सजीला सब जन चढी खुमारी ,
पास पड़ौसन रंग रंगीली, दूजे पति बलिहारी |
बोलो सा रा रा रा
उड़ते बादल रंग रंगीले , हुई रंगीली दुनियाँ,
बच्चों के सपने रंगीले ,रंग में भीगी दुनियाँ |
बोलो सा रा रा रा
दशों दिशा में रंग के बादल उमड़ घूमड़ कर बरसे
प्रेम रंग भीगे नर - नारी , झूमे जियरा हुलसे |
बोलो सा रा रा रा
बहे प्रेम की गंगा - यमुना , नफ़रत सब बह जाए ,
महर - महर अमराई महके , कोयल फाग सुनाए |
बोलो सा रा रा रा
जीजा - साली भंग चढ़ाए , देवर - भाभी गाये '
साजन सजनी हसि -हसि खेलै, ससुरा मन बौराये |
बोलो सा रा रा रा
©मंजूषा श्रीवास्तव "मृदुल"
होली रे होली रे होली रे
श्याम की हो ली रे
मै तो श्याम की हो ली रे
हाँ श्याम की हो ली रे
खेलूं श्याम संग होली रे। होली रे....
रंग गुलाल अबीर उडाऐं
झूम झूमकर फाग मनाऐं
नाचें सभी हमजोली रे।होली रे.......
जीवन नैया तू ही खिवैया
रास रचाय तू रास रचैया
काहे प्रेमरंग में घोली रे।होली रे.....
अंग अंग में मारी पिचकारी
काय भिगो दई तूने गिरधारी
मधु मुस्कान तेरी बोली रे।होली रे.....
मधुर तान बंशी की सुनावै
अंखियन में तू सबै झुलावै
रंगी अपने रंग में चोली रे। होली रे.......
तनमनधन सब तोय समर्पित
मेरो का जो करूं तोय अर्पित
मैने भाव पिटारी खोली रे।होली रे........
होली रे होली रे होली रे
मै तो श्याम की हो ली रे
खेलूं श्याम संग मै होली रे।
होली रे..................
स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
श्याम की हो ली रे
मै तो श्याम की हो ली रे
हाँ श्याम की हो ली रे
खेलूं श्याम संग होली रे। होली रे....
रंग गुलाल अबीर उडाऐं
झूम झूमकर फाग मनाऐं
नाचें सभी हमजोली रे।होली रे.......
जीवन नैया तू ही खिवैया
रास रचाय तू रास रचैया
काहे प्रेमरंग में घोली रे।होली रे.....
अंग अंग में मारी पिचकारी
काय भिगो दई तूने गिरधारी
मधु मुस्कान तेरी बोली रे।होली रे.....
मधुर तान बंशी की सुनावै
अंखियन में तू सबै झुलावै
रंगी अपने रंग में चोली रे। होली रे.......
तनमनधन सब तोय समर्पित
मेरो का जो करूं तोय अर्पित
मैने भाव पिटारी खोली रे।होली रे........
होली रे होली रे होली रे
मै तो श्याम की हो ली रे
खेलूं श्याम संग मै होली रे।
होली रे..................
स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
हाइकू
1भावो की रँग
प्यार भरे गुब्बारे
रिश्ते उमंग
2
रंगीली होली
कान्हा हो हमजोली
राधा हो संग
3
सैनिक टोली
सरहद की होली
खून रंगोली
4
पिया के बिन
प्रियसी तड़पती
फीकी है होली
5
बसंत फ़ाग
सनम संग होली
सुरीला राग
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
1भावो की रँग
प्यार भरे गुब्बारे
रिश्ते उमंग
2
रंगीली होली
कान्हा हो हमजोली
राधा हो संग
3
सैनिक टोली
सरहद की होली
खून रंगोली
4
पिया के बिन
प्रियसी तड़पती
फीकी है होली
5
बसंत फ़ाग
सनम संग होली
सुरीला राग
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
*********
"तुम रूठ गए तो होली क्या"
तुम रूठ गए तो होली क्या!
तुम रूठ गए दिवाली क्या!
तुम रूठ गए तो रंगों का
त्योहार रंग से है रीता...
तुम रूठ गए तो दीपोत्सव में
राम ! रो रही तेरी सीता...
तुम रूठ गए तो बागों से
हर रंग लुप्त हो जाता है...
तुम रूठ गए मेरे मन में
बस सूनापन छा जाता है...
तुम रूठ गए तो फूलों की
क्यारियाँ मुझे ना भाती है...
तुम रूठ गए तो रंग-बिरंगी
तितली नहीं लुभाती है...
तुम रूठ गए सूरज रूठा
भोर बुझी और दिन श्यामल...
तुम रूठ गए तो साँझ रुकी
वह एक सितारा भी टूटा...
तुम रूठ गए तो कोयल की
कू-कू सुनकर मैं जल जाती...
तुम रूठ गए तो नैनों से
गंगा-जमुना हीं ढ़ल जाती...
तुम खुश हो तो मेरी होली!
हर रंग, अंग चढ़ जाता है...
तुम हँस दो तो मने दिवाली
मन-दीप प्रदीप्त हो जाता है...
स्वरचित "पथिक रचना"
"तुम रूठ गए तो होली क्या"
तुम रूठ गए तो होली क्या!
तुम रूठ गए दिवाली क्या!
तुम रूठ गए तो रंगों का
त्योहार रंग से है रीता...
तुम रूठ गए तो दीपोत्सव में
राम ! रो रही तेरी सीता...
तुम रूठ गए तो बागों से
हर रंग लुप्त हो जाता है...
तुम रूठ गए मेरे मन में
बस सूनापन छा जाता है...
तुम रूठ गए तो फूलों की
क्यारियाँ मुझे ना भाती है...
तुम रूठ गए तो रंग-बिरंगी
तितली नहीं लुभाती है...
तुम रूठ गए सूरज रूठा
भोर बुझी और दिन श्यामल...
तुम रूठ गए तो साँझ रुकी
वह एक सितारा भी टूटा...
तुम रूठ गए तो कोयल की
कू-कू सुनकर मैं जल जाती...
तुम रूठ गए तो नैनों से
गंगा-जमुना हीं ढ़ल जाती...
तुम खुश हो तो मेरी होली!
हर रंग, अंग चढ़ जाता है...
तुम हँस दो तो मने दिवाली
मन-दीप प्रदीप्त हो जाता है...
स्वरचित "पथिक रचना"
विधा : ग़ज़ल
कच्चा निकला ,हर वो रंग , जो गहरा था ,
हल्के रंगों पर ,रंगरेज़ का सख्त पेहरा था ।
जो हमसे छूटा ,तो उनसे ,जाकर जुड़ गया ,
रंग ही तो था ,कब किसी एक पर ठहरा था ।
इल्ज़ाम लगा हम पर ,वो बरी हुए बाइज़्ज़त ,
रंग जिसका उड़ गए ,उसका हसीं चेहरा था ।
सुर्ख रंगों में उलझकर , यूँ ज़र्द पड़ गए हम ,
पशोपेश में फंस गए , दिल नादां ,दोहरा था ।
हम से पूछते हैं ,क्यों बेरंग पड़े हो, 'संध्या' ,
कहाँ घोलते रंग ,क़ल्ब तो ख़ुश्क सहरा था ।
स्वरचित
संध्या बक्शी
जयपुर
कच्चा निकला ,हर वो रंग , जो गहरा था ,
हल्के रंगों पर ,रंगरेज़ का सख्त पेहरा था ।
जो हमसे छूटा ,तो उनसे ,जाकर जुड़ गया ,
रंग ही तो था ,कब किसी एक पर ठहरा था ।
इल्ज़ाम लगा हम पर ,वो बरी हुए बाइज़्ज़त ,
रंग जिसका उड़ गए ,उसका हसीं चेहरा था ।
सुर्ख रंगों में उलझकर , यूँ ज़र्द पड़ गए हम ,
पशोपेश में फंस गए , दिल नादां ,दोहरा था ।
हम से पूछते हैं ,क्यों बेरंग पड़े हो, 'संध्या' ,
कहाँ घोलते रंग ,क़ल्ब तो ख़ुश्क सहरा था ।
स्वरचित
संध्या बक्शी
जयपुर
विधा - ग़ज़ल
काफिया - "आर" स्वर
रदीफ़ - होली में
वज्न - 1222 1222 - 1222 - 1222 - 1222
वार-बुधवार
दिनांक - 20--03-2019
***************************************
कभी तो कुर्ब में आकर, मिलो दिलदार होली में।।
मुहब्बत का जुबां से भी, करो इजहार होली में।।
खिले हर सिम्त गुल, कचनार, जूही औ चमेली के,
फिजां ने भी किया है, इश्क का इकरार होली में।।
अधूरे रंग खिल जायें, अगर हाथों से छू लो तन,
पपीहा प्रेम का कबसे, करे मनुहार होली में।।
खुशी सारी जमाने की, लगे फीकी तुम्हारे बिन,
भुला दो नफरतें मन की, सभी इस बार होली में ।।
गुलाबी होंठ, रतनारे नयन, दहका बदन गोरा,
ये मन फागुन हुआ, करता फिरे, इसरार होली में।।
करो श्रृंगार सोलह , यामिनी पे चांद है ठहरा,
करे फिर इश्क की खुशबू, चमन गुलजार होली में। ।
नशा छाया, घुली मस्ती, हवा में रंग जो बिखरे,
बचाये फिर भला कैसे, कोई किरदार होली में?
#पूर्णतः_मौलिक एवं_स्वरचित
विनीत मोहन औदिच्य
सागर, मध्य प्रदेश
काफिया - "आर" स्वर
रदीफ़ - होली में
वज्न - 1222 1222 - 1222 - 1222 - 1222
वार-बुधवार
दिनांक - 20--03-2019
***************************************
कभी तो कुर्ब में आकर, मिलो दिलदार होली में।।
मुहब्बत का जुबां से भी, करो इजहार होली में।।
खिले हर सिम्त गुल, कचनार, जूही औ चमेली के,
फिजां ने भी किया है, इश्क का इकरार होली में।।
अधूरे रंग खिल जायें, अगर हाथों से छू लो तन,
पपीहा प्रेम का कबसे, करे मनुहार होली में।।
खुशी सारी जमाने की, लगे फीकी तुम्हारे बिन,
भुला दो नफरतें मन की, सभी इस बार होली में ।।
गुलाबी होंठ, रतनारे नयन, दहका बदन गोरा,
ये मन फागुन हुआ, करता फिरे, इसरार होली में।।
करो श्रृंगार सोलह , यामिनी पे चांद है ठहरा,
करे फिर इश्क की खुशबू, चमन गुलजार होली में। ।
नशा छाया, घुली मस्ती, हवा में रंग जो बिखरे,
बचाये फिर भला कैसे, कोई किरदार होली में?
#पूर्णतः_मौलिक एवं_स्वरचित
विनीत मोहन औदिच्य
सागर, मध्य प्रदेश
विधा-हाइकु
1.
रंग गुलाल
हुड़दंग होली का
सने हैं गाल
2.
फागुन मस्ती
रंग जबरदस्ती
चहके बस्ती
3.
हँसी ठिठौली
रंग बिरंगी होली
फ़ाग की मस्ती
4.
सबकी गोरी
खेले संग में होरी
रंग में सनी
5.
बृज की गोरी
उड़ा रंग गुलाल
खेलती होरी
6.
रंग बरसे
भीगे चुनर वाली
खेलो रे होली
7.
होली के रंग
रंगेंगे तन मन
प्यार के रंग
8.
होली के रंग
बिन प्यार प्रेम के
हैं बदरंग
9.
ठुमके गोरी
लगाकर गुलाल
फागुन होली
10.
रंगों की होली
बदलते दौर में
अकेली खेली
11.
उड़ा गुलाल
चेहरा हुआ लाल
लाल ही लाल
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
1.
रंग गुलाल
हुड़दंग होली का
सने हैं गाल
2.
फागुन मस्ती
रंग जबरदस्ती
चहके बस्ती
3.
हँसी ठिठौली
रंग बिरंगी होली
फ़ाग की मस्ती
4.
सबकी गोरी
खेले संग में होरी
रंग में सनी
5.
बृज की गोरी
उड़ा रंग गुलाल
खेलती होरी
6.
रंग बरसे
भीगे चुनर वाली
खेलो रे होली
7.
होली के रंग
रंगेंगे तन मन
प्यार के रंग
8.
होली के रंग
बिन प्यार प्रेम के
हैं बदरंग
9.
ठुमके गोरी
लगाकर गुलाल
फागुन होली
10.
रंगों की होली
बदलते दौर में
अकेली खेली
11.
उड़ा गुलाल
चेहरा हुआ लाल
लाल ही लाल
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
जलाओ होली
तुम बनो प्रह्लाद
जले होलिका।।
फाग आयो रे
रंग खुशी का लायो
रंग ही खेलो।।
फाग में झूमें
बाल बृद्ध महिला
गायें कबीर।।
खेलो अबीर
उड़े रंग गुलाल
रंगीन ताल।।
चुनावी रंग
विरोधी बदरंग
फैलायें घृणा।।
भावुक
तुम बनो प्रह्लाद
जले होलिका।।
फाग आयो रे
रंग खुशी का लायो
रंग ही खेलो।।
फाग में झूमें
बाल बृद्ध महिला
गायें कबीर।।
खेलो अबीर
उड़े रंग गुलाल
रंगीन ताल।।
चुनावी रंग
विरोधी बदरंग
फैलायें घृणा।।
भावुक
शब्द-होली,फाग,रंग अबीर ,गुलाल
दोहे---
1.
धुलेंडी तथा पंचमी, उड़ते रंग गुलाल।
घर बाहर और सड़क पर, होती खूब धमाल।।
2.
डगर डगर पर बिछ रहा,रंग, अबीर,गुलाल।
आँगन आँगन झूमता,भरे रँगीले ताल।।
3.
होली मस्ती 'फाग'की, गाने का उत्साह।
अधिक से अधिक जोर से,गाकर पाते वाह ।।
4.
बूढ़े बच्चे बन गए, तन पर ढेरों रंग।
झांक झुर्रियों से रही, मन में भरी उमंग ।।
5.
टेसू फुले मन खिले,खिले रसीले अंग ।
तन केसरिया हो गया,मला सजन ने रंग।।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र)451551
दोहे---
1.
धुलेंडी तथा पंचमी, उड़ते रंग गुलाल।
घर बाहर और सड़क पर, होती खूब धमाल।।
2.
डगर डगर पर बिछ रहा,रंग, अबीर,गुलाल।
आँगन आँगन झूमता,भरे रँगीले ताल।।
3.
होली मस्ती 'फाग'की, गाने का उत्साह।
अधिक से अधिक जोर से,गाकर पाते वाह ।।
4.
बूढ़े बच्चे बन गए, तन पर ढेरों रंग।
झांक झुर्रियों से रही, मन में भरी उमंग ।।
5.
टेसू फुले मन खिले,खिले रसीले अंग ।
तन केसरिया हो गया,मला सजन ने रंग।।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र)451551
होली : एक पर्व
उल्लास से मनाते
होली : एक गर्व
शान से जताते
होली : एक रीत
निष्ठा से निभाते
होली : एक रंगोली
रंगों से सजाते
होली : एक मीत
प्रेम सुधा पिलाते
होली: एक प्रीत
राधा श्याम बन जाते
होली : एक विश्वास
शाश्वत मूल्य कहते
होली: एक लोकगीत
विविध भाषाओं में गाते
होली : एक संस्कृति
एकता सीख देती
होली : एक भक्ति
प्रह्लाद बन जाते
होली : एक शक्ति
जिससे होलिका जलती
होली को मेरा नमन
बुराइयों का होवे दमन
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
उल्लास से मनाते
होली : एक गर्व
शान से जताते
होली : एक रीत
निष्ठा से निभाते
होली : एक रंगोली
रंगों से सजाते
होली : एक मीत
प्रेम सुधा पिलाते
होली: एक प्रीत
राधा श्याम बन जाते
होली : एक विश्वास
शाश्वत मूल्य कहते
होली: एक लोकगीत
विविध भाषाओं में गाते
होली : एक संस्कृति
एकता सीख देती
होली : एक भक्ति
प्रह्लाद बन जाते
होली : एक शक्ति
जिससे होलिका जलती
होली को मेरा नमन
बुराइयों का होवे दमन
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
हाइकु
विषय:-"होली/फाल्गुन/रंग"
(1)🎈
मन बहार
होली ने छेड़ा दिल
गाल गुलाल
(2)🎈
फाल्गुन संग
होली ने बरसाए
सद्भाव रंग
(3)🎈
दल बदले
रंग भी शरमाये
नेता को देख
(4)🎈
सीने पे गोली
सैनिक का त्यौहार
खून की होली
(5)🎈
फाल्गुन राग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग
(6)🎈
दिलों को जोड़े
जातिगत बंधन
होली ने तोड़े
(7)🎈
फीका है मन
शहीद घर दर्द
होली बेरंग
(8)🎈
नशे की गोली
घायल है संस्कृति
विकृत होली
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-"होली/फाल्गुन/रंग"
(1)🎈
मन बहार
होली ने छेड़ा दिल
गाल गुलाल
(2)🎈
फाल्गुन संग
होली ने बरसाए
सद्भाव रंग
(3)🎈
दल बदले
रंग भी शरमाये
नेता को देख
(4)🎈
सीने पे गोली
सैनिक का त्यौहार
खून की होली
(5)🎈
फाल्गुन राग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग
(6)🎈
दिलों को जोड़े
जातिगत बंधन
होली ने तोड़े
(7)🎈
फीका है मन
शहीद घर दर्द
होली बेरंग
(8)🎈
नशे की गोली
घायल है संस्कृति
विकृत होली
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विधा - चौपाई छन्द
===========
होली आई होली आई l
फाल्गुन मास पूर्णिमा आई ll
फसल पकी सन्देशा लाया I
गज़ब रंग का उत्सव आया ll 1 ll
त्योहारों की कथा सुहानी I
होली की भी अजब कहानी ll
था प्रहलाद भक्त श्रीहरि का I
हिरण्यकश्यप बाप उसी का Il 2 ll
पिता विष्णु का सख्त विरोधी I
निज बेटे का पथ अवरोधी ll
बहुत डराया औ धमकाया I
बेटा उसकी राह न आया ll 3 ll
बुआ होलिका चिता जलाई I
ले प्रहलाद गोद बैठाई ll
जली होलिका पक्ष बुराई I
भक्त बचा नेकी हर्षाई ll 4 ll
विष्णु भक्त यह कथा सुनायें I
रंग लगा दिल से मिल जायें Il
रंगों से नख-शिख सन जाते l
जीवन हो रंगीन मनाते Il 5 ll
#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा ( उ. प्र. )
===========
होली आई होली आई l
फाल्गुन मास पूर्णिमा आई ll
फसल पकी सन्देशा लाया I
गज़ब रंग का उत्सव आया ll 1 ll
त्योहारों की कथा सुहानी I
होली की भी अजब कहानी ll
था प्रहलाद भक्त श्रीहरि का I
हिरण्यकश्यप बाप उसी का Il 2 ll
पिता विष्णु का सख्त विरोधी I
निज बेटे का पथ अवरोधी ll
बहुत डराया औ धमकाया I
बेटा उसकी राह न आया ll 3 ll
बुआ होलिका चिता जलाई I
ले प्रहलाद गोद बैठाई ll
जली होलिका पक्ष बुराई I
भक्त बचा नेकी हर्षाई ll 4 ll
विष्णु भक्त यह कथा सुनायें I
रंग लगा दिल से मिल जायें Il
रंगों से नख-शिख सन जाते l
जीवन हो रंगीन मनाते Il 5 ll
#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा ( उ. प्र. )
होली के रंग में रंगा संसार ,
चारों तरफ है अबीर गुलाल |
एक बरस में आता है फाग ,
रहता न मन में कोई मलाल |
भाई बंधु और मित्र पडोसी ,
सबके मन में बसी है होली |
है रंग प्यार का सबकी मुठ्ठी ,
चेहरों पर अबीर की लाली |
मिठाई सी मुस्कान है मीठी ,
भंग तरंग सी चाल है बहकी |
राधा कहीं कान्हा से रूठी ,
कहीं प्यार की बज रही बंशी |
टीस किसी के मन में उठती ,
की थी दुश्मन ने जो चालाकी |
नहीं पुलवामा की याद पुरानी ,
क्रोध के रंग की छायी है लाली |
ऋतु बसंत कितनी मतवाली ,
मोहक छटा फाग बिखरायी |
है मन मयूर की चाल निराली ,
सारी दुनियाँ हो गयी दिवानी |
बुराई दहन की घड़ी है आई ,
बर्षा प्रीत रंग की होती भाई |
अबीर गुलाल की बदली छाई ,
देखो देखो अब होली आई |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
चारों तरफ है अबीर गुलाल |
एक बरस में आता है फाग ,
रहता न मन में कोई मलाल |
भाई बंधु और मित्र पडोसी ,
सबके मन में बसी है होली |
है रंग प्यार का सबकी मुठ्ठी ,
चेहरों पर अबीर की लाली |
मिठाई सी मुस्कान है मीठी ,
भंग तरंग सी चाल है बहकी |
राधा कहीं कान्हा से रूठी ,
कहीं प्यार की बज रही बंशी |
टीस किसी के मन में उठती ,
की थी दुश्मन ने जो चालाकी |
नहीं पुलवामा की याद पुरानी ,
क्रोध के रंग की छायी है लाली |
ऋतु बसंत कितनी मतवाली ,
मोहक छटा फाग बिखरायी |
है मन मयूर की चाल निराली ,
सारी दुनियाँ हो गयी दिवानी |
बुराई दहन की घड़ी है आई ,
बर्षा प्रीत रंग की होती भाई |
अबीर गुलाल की बदली छाई ,
देखो देखो अब होली आई |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
रंग अबीर में भीग रहा हर गोरी का अंतरमन है,
फागुन की ठंडाई ने ली ये कैसी अंगड़ाई है।
ढोल मंजीरों की धुन पर नाची अब तन्हाई है,
गुझिया पापड़ के थाल सजे पर भाई सबको ठंडाई है।
देखो देखो इठलाई सी होली फिर से आई है।
बच्चों की छोड़ो बूढ़ों ने भी अब तो ली अंगड़ाई है,
भेदभाव को दूर भगाने की कसमें सबने खाई हैं,
रंग अबीर की बौछारों संग खुशियाँ घर घर आई हैं।
देखो होली अपने संग सबकी खुशहाली लाई है।
देखो होली अपने संग सबकी खुशहाली लाई है।।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
फागुन की ठंडाई ने ली ये कैसी अंगड़ाई है।
ढोल मंजीरों की धुन पर नाची अब तन्हाई है,
गुझिया पापड़ के थाल सजे पर भाई सबको ठंडाई है।
देखो देखो इठलाई सी होली फिर से आई है।
बच्चों की छोड़ो बूढ़ों ने भी अब तो ली अंगड़ाई है,
भेदभाव को दूर भगाने की कसमें सबने खाई हैं,
रंग अबीर की बौछारों संग खुशियाँ घर घर आई हैं।
देखो होली अपने संग सबकी खुशहाली लाई है।
देखो होली अपने संग सबकी खुशहाली लाई है।।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
शीर्षक रंग अबीर गुलाल
होली रे होली
रंगो की होली
भर पिचकारी
खेले रे गौरी
उडे रे गुलाल
मस्तों की टोली
खेलो रे खेलो
बन हमजोली
फागुनी बहार
करे सीना जोरी
अबीर गुलाल
स्नेह की डोरी
भूलों नफरतें
प्रेम की बोली
हिलमिल खेलें
आओ रे होली
कमरेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
होली रे होली
रंगो की होली
भर पिचकारी
खेले रे गौरी
उडे रे गुलाल
मस्तों की टोली
खेलो रे खेलो
बन हमजोली
फागुनी बहार
करे सीना जोरी
अबीर गुलाल
स्नेह की डोरी
भूलों नफरतें
प्रेम की बोली
हिलमिल खेलें
आओ रे होली
कमरेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
फागुन की इस बेला में
पुलकित मन संसार।
रंग बिरंगे रंगों की
होली पर
उड़ती रहे बयार।
होली के
हर रंग है मोहक
सबका अपना मोल।
प्रेम रंग जो मिल जाये
तो जीवन अनमोल।
नीले, पीले, हरे, गुलाबी,
लाल अबीर गुलाल।
तन मन झूमें मस्ती में
हर बार होली में
दूर करे सब रंजिशें,
ख़ुशियों के ये रंग।
श्याम रंग राधा रंगे,
दिल में जगे उमंग।
होली पर गाये फाग
और बजाऐ मृदंग
होली के रंग
में गये कान्हा
राधा संग
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
पुलकित मन संसार।
रंग बिरंगे रंगों की
होली पर
उड़ती रहे बयार।
होली के
हर रंग है मोहक
सबका अपना मोल।
प्रेम रंग जो मिल जाये
तो जीवन अनमोल।
नीले, पीले, हरे, गुलाबी,
लाल अबीर गुलाल।
तन मन झूमें मस्ती में
हर बार होली में
दूर करे सब रंजिशें,
ख़ुशियों के ये रंग।
श्याम रंग राधा रंगे,
दिल में जगे उमंग।
होली पर गाये फाग
और बजाऐ मृदंग
होली के रंग
में गये कान्हा
राधा संग
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
आज का विषय - होली के रंग
विधा - छंदमुक्त
फागुन का महीना, बसन्त की बहार,
आया रे आया देखो रंगों का त्यौहार,
लाल नीला हरा पीला, उड़ रहा गुलाल,
मस्ती में झूम रहे सब,रंगीन सबके गाल,
मस्ती भरी हुड़दंग,बच्चें बूढ़े नर या नार
टोली बन बन खेलते,चला रहे पिचकार,
कृष्ण खेलत होली,राधा रानी रही झूम,
गीत गाती गोपियां, ग्वाल मचाएं धूम,
पाप-द्वेष करे दहन, बैर भाव भूल जाये,
बांटे खुशी और प्यार, प्रेम रंग बरसाये,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
विधा - छंदमुक्त
फागुन का महीना, बसन्त की बहार,
आया रे आया देखो रंगों का त्यौहार,
लाल नीला हरा पीला, उड़ रहा गुलाल,
मस्ती में झूम रहे सब,रंगीन सबके गाल,
मस्ती भरी हुड़दंग,बच्चें बूढ़े नर या नार
टोली बन बन खेलते,चला रहे पिचकार,
कृष्ण खेलत होली,राधा रानी रही झूम,
गीत गाती गोपियां, ग्वाल मचाएं धूम,
पाप-द्वेष करे दहन, बैर भाव भूल जाये,
बांटे खुशी और प्यार, प्रेम रंग बरसाये,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
मनाया जाने लगा इस दिन से होली का त्यौहार
----
ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी दिति से से
हिरणाकश्यपु और हिरणाक्ष दो भाई और एक
उनकी बहिन जिसका नाम सिंहिका (होली या
हुण्डा) था होली पर एक मायावी चुन्नी थी जिसे
शीतल चुन्नी कहते थे उसकी खासियत यह थी
कि इस चुन्नी को ओढ़ कर अग्नि में प्रवेश करने
पर अग्नि का असर नहीं होता था
विष्णु भक्त प्रहलाद को हिरणा कशिपु ने मारने
के लिए होली को शीतल चुन्नी उढ़ा कर उसकी
गोद में बिठा कर होली बना कर उसमें आग
लगा दी
किन्तु भगवद भक्त के प्रभु कीर्तन करने से
ईश्वर ने भक्त प्रहलाद को बचाने उस शीतल
चुन्नी को होली से हटा कर प्रहलाद पर कर दिया
इससे प्रहलाद जलने से बच गया उलटी होली
ही जल गई
बस उसी दिन से उस होली के जलने के प्रतीक
में यह होलिका दहन (होली)का पर्व मनाया
जाने लगा
भगवान विष्णू ने वाराह का अवतार लेकर
हिरणाक्ष का संहार कर दिया था इससे
हिरणाकुश विष्णु से वैर करके बदला लेना
चाहता था उसने ब्रह्मा से अमर होने अकाट्य
वर प्राप्त किए तथा प्रहलाद को मारने का
प्रयास किया तब भगवान ने।
===========
असुर हिरणाकशिपु हन डारौ हरि ने रूप
नरसिंह धरके।
भगत प्रहलाद को है तारो हरि ने रूप
नरसिंह धरके।
थे हिरणाकशिपु हिरणाक्ष दोनौं ये भाई।
ये अति के थे बलवान अति के कुराई।
मारा हिरणाक्ष को प्रभु ने वाराह बन।
इससे रखता हिरणाकशिपु मन जलन।
लेना बदला निज भाई का उसने चहा।
मांगू बरदान ब्रह्मा से मन में कहा।
तप ब्रह्मा का हिरणाकशिपु न किया।
होके ब्रह्मा ने खुश उसको वरदां दिया।
पाके ब्रह्मा से वरदान हिरणा कशिपु।
बोला करदो चहा गर मुझ पर हो खुश।
मरूं न घर के अंदर मरूं न घर के बाहर।
न मारे नर मुझको न मारे कोई जिनावर।
न धरती न अम्बर न दिन हो न रैना।
और हथियार मुझ पर किसी का चले ना।
ऐसा ही होगा ब्रह्मा ने कह दिया
तब उत्पा त अति का उस खल ने किया।
इसी से तो प्रह्लाद को था सताया।
पर हरि ने भी मौके का फायदा उठाया।
तब हिरणाकशिपु ने कहा।
प्रहलाद मिटाऊं तेरी अब नामौं निशानी है।
कौन बचा सकता तेरी अब यहां जिन्दगानी है।
एक खम्भ है लोहे का अगिनी में गर्म किया।
हिरणाकुश ने बेटा उससे बंधवा है दिया।
ले कर में तेग कहैं यौं सुन ले अज्ञानी है।
कौन बचा सकता।।0।।
अब कहां है राम तेरा क्यौं नहीं बुलाता है।
तेरे राम का दिवाना अब जीवन से जाता है।
कह पुत्र पिता अपने से सुन ले अज्ञानी है।
कौन बच।।0।।
हरि भक्त ने देखा था खम्भे पर राम चले।
बन चींटीं घूम रहे खम्भे से नहीं जले।
कह पुत्र पिता अपने से सुन ले अज्ञानी है।
रग रग में राम रमा है वो तो आजमा है।
मेरे राम बिना तो ये खाली नहीं खम्भा है
मेरे राम की सूरत तो तेरी तेग में समानी हे।
सुन राम को खम्भे में झट दुष्ट ने बार किया।
हरि निकले खम्भे से नरसिंह अवतार लिया।
धर घौंटुन पै हिरणा कुश की खत्म कहानी है।
तब नरसिंह ने कहा।
वक्त संध्या का था घर की चौखट तले।
धर के घौटुंनु पै हिरणाकुशु नरसिंह बोले।
न निशि है न दिन है न घर है न बाहर।
मैं नर सिंह हूं नहीं नर ना जिनावर
न बसुधा है ये और नहीं है ये अम्बर
ये हाथौं के नख हैं नहीं है कोई खंजर।
ब्रह्मा के वरदान। जो सब बच गये।
नख नरसिंह के उसके तन घुस गये।
धर घौटुन पै हिरणाकुश की खत्म कहानी है
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
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ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी दिति से से
हिरणाकश्यपु और हिरणाक्ष दो भाई और एक
उनकी बहिन जिसका नाम सिंहिका (होली या
हुण्डा) था होली पर एक मायावी चुन्नी थी जिसे
शीतल चुन्नी कहते थे उसकी खासियत यह थी
कि इस चुन्नी को ओढ़ कर अग्नि में प्रवेश करने
पर अग्नि का असर नहीं होता था
विष्णु भक्त प्रहलाद को हिरणा कशिपु ने मारने
के लिए होली को शीतल चुन्नी उढ़ा कर उसकी
गोद में बिठा कर होली बना कर उसमें आग
लगा दी
किन्तु भगवद भक्त के प्रभु कीर्तन करने से
ईश्वर ने भक्त प्रहलाद को बचाने उस शीतल
चुन्नी को होली से हटा कर प्रहलाद पर कर दिया
इससे प्रहलाद जलने से बच गया उलटी होली
ही जल गई
बस उसी दिन से उस होली के जलने के प्रतीक
में यह होलिका दहन (होली)का पर्व मनाया
जाने लगा
भगवान विष्णू ने वाराह का अवतार लेकर
हिरणाक्ष का संहार कर दिया था इससे
हिरणाकुश विष्णु से वैर करके बदला लेना
चाहता था उसने ब्रह्मा से अमर होने अकाट्य
वर प्राप्त किए तथा प्रहलाद को मारने का
प्रयास किया तब भगवान ने।
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असुर हिरणाकशिपु हन डारौ हरि ने रूप
नरसिंह धरके।
भगत प्रहलाद को है तारो हरि ने रूप
नरसिंह धरके।
थे हिरणाकशिपु हिरणाक्ष दोनौं ये भाई।
ये अति के थे बलवान अति के कुराई।
मारा हिरणाक्ष को प्रभु ने वाराह बन।
इससे रखता हिरणाकशिपु मन जलन।
लेना बदला निज भाई का उसने चहा।
मांगू बरदान ब्रह्मा से मन में कहा।
तप ब्रह्मा का हिरणाकशिपु न किया।
होके ब्रह्मा ने खुश उसको वरदां दिया।
पाके ब्रह्मा से वरदान हिरणा कशिपु।
बोला करदो चहा गर मुझ पर हो खुश।
मरूं न घर के अंदर मरूं न घर के बाहर।
न मारे नर मुझको न मारे कोई जिनावर।
न धरती न अम्बर न दिन हो न रैना।
और हथियार मुझ पर किसी का चले ना।
ऐसा ही होगा ब्रह्मा ने कह दिया
तब उत्पा त अति का उस खल ने किया।
इसी से तो प्रह्लाद को था सताया।
पर हरि ने भी मौके का फायदा उठाया।
तब हिरणाकशिपु ने कहा।
प्रहलाद मिटाऊं तेरी अब नामौं निशानी है।
कौन बचा सकता तेरी अब यहां जिन्दगानी है।
एक खम्भ है लोहे का अगिनी में गर्म किया।
हिरणाकुश ने बेटा उससे बंधवा है दिया।
ले कर में तेग कहैं यौं सुन ले अज्ञानी है।
कौन बचा सकता।।0।।
अब कहां है राम तेरा क्यौं नहीं बुलाता है।
तेरे राम का दिवाना अब जीवन से जाता है।
कह पुत्र पिता अपने से सुन ले अज्ञानी है।
कौन बच।।0।।
हरि भक्त ने देखा था खम्भे पर राम चले।
बन चींटीं घूम रहे खम्भे से नहीं जले।
कह पुत्र पिता अपने से सुन ले अज्ञानी है।
रग रग में राम रमा है वो तो आजमा है।
मेरे राम बिना तो ये खाली नहीं खम्भा है
मेरे राम की सूरत तो तेरी तेग में समानी हे।
सुन राम को खम्भे में झट दुष्ट ने बार किया।
हरि निकले खम्भे से नरसिंह अवतार लिया।
धर घौंटुन पै हिरणा कुश की खत्म कहानी है।
तब नरसिंह ने कहा।
वक्त संध्या का था घर की चौखट तले।
धर के घौटुंनु पै हिरणाकुशु नरसिंह बोले।
न निशि है न दिन है न घर है न बाहर।
मैं नर सिंह हूं नहीं नर ना जिनावर
न बसुधा है ये और नहीं है ये अम्बर
ये हाथौं के नख हैं नहीं है कोई खंजर।
ब्रह्मा के वरदान। जो सब बच गये।
नख नरसिंह के उसके तन घुस गये।
धर घौटुन पै हिरणाकुश की खत्म कहानी है
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
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