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ब्लॉग संख्या :-335
- एक बार फ़िर दग़ाबाज़ ने पीठ में खंजर भोंका है
देकर साथ आतंकी का दिया मानवता को धोखा है
पनाह दे आतंक को नीच ने दिखा दी है अपनी औक़ात
जाने किस ख़ुशफ़हमी में है भूल रहा शायद यह बात
कितना भी दूध पिलाओ साँप को काट एक दिन खाएगा
आग में घी डालने वाला उन्हीं लपटों में भस्म हो जाएगा
छल फ़रेब करना तो चीन की फ़ितरत बड़ी पुरानी है
धमनियों में उसके रुधिर की जगह बहती बेईमानी है
याद करो कैसे बासठ में हमको आँख दिखाई थी
लद्दाख और मैकमोहन रेखा पर हिंद पर की चढ़ाई थी
संयुक्त राष्ट्र में ख़ुद पे किया नेहरू का भूल गया एहसान
और हिंदी-चीनी भाई-भाई का भूला हिंदुस्तानी सम्मान
आज वही कपटी भारत के बाजारों में सेंध है लगा रहा
पैसों से हमारे अपना घर भर धौंस हमीं को दिखा रहा
भारत से धन कमा-कमाकर दुष्ट पाक को बाँट रहा है
इस तरह मार हमें दोहरी मारकर जड़ें हमारी काट रहा है
यही सटीक समय है साथियो देशभक्ति दिखलाने का
पाक के सरपरस्त चीन को तगड़ा सबक़ सिखाने का
शहीद जवानों का बहा रक्त चीख-चीख कर रहा पुकार
दुश्मन के आक़ा चीन के माल का अब तुम करो प्रतिकार
सस्ते माल के लिए देश की आन से समझौता मत करना
डोकलाम और अरुणाचल के गुनहगार से मत डरना
जैसे गांधी के आह्वान पर देश में लहर क्रांति की छाई थी
चौराहों पर जनता ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी
स्वतंत्रता का तब जुनून सभी के सर पर चढ़कर बोला था
अंग्रेज़ी हुक़ूमत के ज़ुल्म ख़िलाफ़ देश ने मोर्चा खोला था
आज वही तेवर हम सबको चीन के ख़िलाफ़ दिखाना है
बहिष्कार कर चीनी माल का उसे रास्ते पर अब लाना है
तरजीह स्वदेशी को देकर अपने उद्योगों को बल देंगे
अहंकारी ड्रैगन के घमण्ड को जूते के नीचे मसल देंगे
अब दोगलापन बिल्कुल न चलेगा पैग़ाम उसे पहुँचा देंगे
अज़हर मसूद के चचाजान को हिंदुस्तानी मज़ा चखा देंगे
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स्वरचित
नीतू राजीव कपूर
पालमपुर(हिमाचल प्रदेश)
भावी पीढ़ी को क्या देगें
आजकल डर के कारण
साँसे कुछ कम ले रही हूं
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं,
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
धोखा, झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभी से
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजूं
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को
कुछ अच्छा देने की सोचें....
कुसुम कोठारी।
आजकल डर के कारण
साँसे कुछ कम ले रही हूं
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं,
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
धोखा, झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभी से
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजूं
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को
कुछ अच्छा देने की सोचें....
कुसुम कोठारी।
तू इतना भी गुमान मत करना।
दिखावे को झूठी शान मत करना।
उसकी हर कली गुंचे पे निगाह है।
छुप के भी ऐसे काम मत करना।
धोखे में भी अजब धोखा है दोस्त।
दे कर खाने का काम मत करना।
रकीब जो आए तो सीने से लगाना।
सिर्फ चाय का इन्तजाम मत करना।
मेरी सलाह है मानो न मानो तुम।
जीते जी वसीयत नाम मत करना।
मुझसे जो मिलो तो नजरें मिला के।
वरना झूठा एहतराम मत करना।
सरजमीं कुछ भी मांग सकती है।
जान दे देना लहू हराम मत करना।
विपिन सोहल
दिखावे को झूठी शान मत करना।
उसकी हर कली गुंचे पे निगाह है।
छुप के भी ऐसे काम मत करना।
धोखे में भी अजब धोखा है दोस्त।
दे कर खाने का काम मत करना।
रकीब जो आए तो सीने से लगाना।
सिर्फ चाय का इन्तजाम मत करना।
मेरी सलाह है मानो न मानो तुम।
जीते जी वसीयत नाम मत करना।
मुझसे जो मिलो तो नजरें मिला के।
वरना झूठा एहतराम मत करना।
सरजमीं कुछ भी मांग सकती है।
जान दे देना लहू हराम मत करना।
विपिन सोहल
धोखे और फरेब नगरिया
में बसते और क्लेश सहते
हम सदा विश्वास करते
वे सदा बस धोखा देते
धोखे इतने खाए हमने
खुद पर भी विश्वास न रहा
इनपर भी विश्वास न करते
उनपर भी विश्वास न रहा
विष देदो विश्वास मत दो
सत्य दो असत्य मत दो
विश्वासों पर हम आधारित
मान दो अपमान मत दो
विश्वासों के धागों पर ही
जग मित्रता टिकी हुई है
आस्तीन विषधर नित संग
सीने ऊपर मारे वे छुरी हैं
पाक चीन पडौसी होकर
झूँठ फरेब सदा नित बोते
विश्वासों पर खंजर भोंके
कभी चैन की नींद न सोते
अंधा होकर स्वार्थ नींव पर
जग में मानव खड़ा हुआ है
झूँठ फरेब विश्वास घात कर
सदा कूप नर डूब रहा है
विश्वासघात की बुनियादों पर
सुन्दर महल कभी न टिकते
धोखेबाज अविश्वासी मानव
कौड़ी के भाव नित बिकते।।
स्व0 गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
में बसते और क्लेश सहते
हम सदा विश्वास करते
वे सदा बस धोखा देते
धोखे इतने खाए हमने
खुद पर भी विश्वास न रहा
इनपर भी विश्वास न करते
उनपर भी विश्वास न रहा
विष देदो विश्वास मत दो
सत्य दो असत्य मत दो
विश्वासों पर हम आधारित
मान दो अपमान मत दो
विश्वासों के धागों पर ही
जग मित्रता टिकी हुई है
आस्तीन विषधर नित संग
सीने ऊपर मारे वे छुरी हैं
पाक चीन पडौसी होकर
झूँठ फरेब सदा नित बोते
विश्वासों पर खंजर भोंके
कभी चैन की नींद न सोते
अंधा होकर स्वार्थ नींव पर
जग में मानव खड़ा हुआ है
झूँठ फरेब विश्वास घात कर
सदा कूप नर डूब रहा है
विश्वासघात की बुनियादों पर
सुन्दर महल कभी न टिकते
धोखेबाज अविश्वासी मानव
कौड़ी के भाव नित बिकते।।
स्व0 गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
"विश्वासघात"
----राज़ बदायूँनी
सच्चाई विश्वासघात की,
खुली लड़ाई है।
मानस के अंतर्मन में,
यह पड़त दिखाई है।।
द्वापर त्रेता सतयुग में ही तो,
इसका निर्माण हुआ।
कलयुग में अब नंगे नांच,
पर बजत बधाई है।।
पांडवों के संग कौरवों ने,
भी तो विश्वासघात किया।
धोखे से हर ले गया रावण,
सीता का परिहास किया।।
विभीषण ने भाई के संग में,
कुछ ऐसा ही घात किया।
महाभारत रामायण में भी,
पड़त दिखाई है।।
सच्चाई----------------
जब भी रचना की तेरी मानव,
सोचा तू ही प्यारा है।
हाथ पांव बल बुद्धि जगत में,
हर प्राणी से न्यारा है।।
भोजन भजन भाव से,
तुझको जिसने दिया सहारा है।
जाति धर्म के नाम से फिर क्यों,
तूने लूट मचाई है।।
सच्चाई-------------------
पशु पक्षी जो बोल न जाने,
उसका हलाहल पान किया।
पेड़ रुख कटवाय दिए सारे,
प्राकृतिक आपमान किया।।
दया भाव गया भूल समस्या,
का नहीं कोई निदान किया।
तेरे सिर जब गाज पड़ी फिर,
अब क्यों रुदन मचाई है।।
सच्चाई------------------
जिस माँ ने तुझे कोख में पाला,
उसको ही लतियाय रहा।
पिता को जीते जी तूने मारा,
उसका गला दबाय रहा।।
भोग विलास में अंधा होकर,
दुर्बल को ही सताय रहा।
हटधर्मी अन्यायी तूने,
फिर औकात दिखाई है।।
सच्चाई---------------------
धन दौलत की प्यास में सारे ,
रिश्ते नाते भूल गया।
माँ की ममता बचपन की वो,
सारी बातें भूल गया।।
दुष्ट घमंडी लाज न आए,
ईश्वर को भी भूल गया।
भाई बहिन संग सरेआम,
तू करै लड़ाई है।।
सच्चाई--------------------
-------
गीतकार-राज़ बदायूँनी
बाजार कलां उझानी
बदायूँ उ.प्र
----राज़ बदायूँनी
सच्चाई विश्वासघात की,
खुली लड़ाई है।
मानस के अंतर्मन में,
यह पड़त दिखाई है।।
द्वापर त्रेता सतयुग में ही तो,
इसका निर्माण हुआ।
कलयुग में अब नंगे नांच,
पर बजत बधाई है।।
पांडवों के संग कौरवों ने,
भी तो विश्वासघात किया।
धोखे से हर ले गया रावण,
सीता का परिहास किया।।
विभीषण ने भाई के संग में,
कुछ ऐसा ही घात किया।
महाभारत रामायण में भी,
पड़त दिखाई है।।
सच्चाई----------------
जब भी रचना की तेरी मानव,
सोचा तू ही प्यारा है।
हाथ पांव बल बुद्धि जगत में,
हर प्राणी से न्यारा है।।
भोजन भजन भाव से,
तुझको जिसने दिया सहारा है।
जाति धर्म के नाम से फिर क्यों,
तूने लूट मचाई है।।
सच्चाई-------------------
पशु पक्षी जो बोल न जाने,
उसका हलाहल पान किया।
पेड़ रुख कटवाय दिए सारे,
प्राकृतिक आपमान किया।।
दया भाव गया भूल समस्या,
का नहीं कोई निदान किया।
तेरे सिर जब गाज पड़ी फिर,
अब क्यों रुदन मचाई है।।
सच्चाई------------------
जिस माँ ने तुझे कोख में पाला,
उसको ही लतियाय रहा।
पिता को जीते जी तूने मारा,
उसका गला दबाय रहा।।
भोग विलास में अंधा होकर,
दुर्बल को ही सताय रहा।
हटधर्मी अन्यायी तूने,
फिर औकात दिखाई है।।
सच्चाई---------------------
धन दौलत की प्यास में सारे ,
रिश्ते नाते भूल गया।
माँ की ममता बचपन की वो,
सारी बातें भूल गया।।
दुष्ट घमंडी लाज न आए,
ईश्वर को भी भूल गया।
भाई बहिन संग सरेआम,
तू करै लड़ाई है।।
सच्चाई--------------------
-------
गीतकार-राज़ बदायूँनी
बाजार कलां उझानी
बदायूँ उ.प्र
आज का शीर्षक-धोखा/विश्वास घात/फ़रेब
विधा-मुक्तकात
===============================
(1)धोखा
जिसकी फ़ित्रत धोखा देना उसकी तरफ ध्यान कब जाता ।
जिसकी चाहत वफ़ा नहीं है उसकी तरफ मान कब जाता ।
उसका ज़िक्र न कीजे यारो ! बार बार मत लाड़ बाँटकर,
जिसकी बातें सुनूँ चाव से उसकी तरफ कान कब जाता ।।
(2)विश्वास घात
कसर नहीं छोड़ी कहने बस एक बात वाक़ी है ।
अब क्या तुम पर शेष बचा विश्वास घात वाक़ी है ।
नहीं कोई बे दर्द जहाँ में जो मेरा दुःख दर्द बाँट ले,
एक तुम्हारा चकमा खाकर हादिसात वाक़ी है ।।
(3) फ़रेब
दिल को तेरी चाह पैमाई ने धोखा दे दिया ।
बस्ल का क्या ज़िक्र तन्हाई ने धोखा दे दिया ।
शिकवा करूँगा बाद में तेरे फ़रेब ए नाज़ का,
इस वक़्त मुझको ख़ुद की रुश्बाई ने धोखा दे दिया ।।
============================
"अ़क्स " दौनेरिया
विधा-मुक्तकात
===============================
(1)धोखा
जिसकी फ़ित्रत धोखा देना उसकी तरफ ध्यान कब जाता ।
जिसकी चाहत वफ़ा नहीं है उसकी तरफ मान कब जाता ।
उसका ज़िक्र न कीजे यारो ! बार बार मत लाड़ बाँटकर,
जिसकी बातें सुनूँ चाव से उसकी तरफ कान कब जाता ।।
(2)विश्वास घात
कसर नहीं छोड़ी कहने बस एक बात वाक़ी है ।
अब क्या तुम पर शेष बचा विश्वास घात वाक़ी है ।
नहीं कोई बे दर्द जहाँ में जो मेरा दुःख दर्द बाँट ले,
एक तुम्हारा चकमा खाकर हादिसात वाक़ी है ।।
(3) फ़रेब
दिल को तेरी चाह पैमाई ने धोखा दे दिया ।
बस्ल का क्या ज़िक्र तन्हाई ने धोखा दे दिया ।
शिकवा करूँगा बाद में तेरे फ़रेब ए नाज़ का,
इस वक़्त मुझको ख़ुद की रुश्बाई ने धोखा दे दिया ।।
============================
"अ़क्स " दौनेरिया
===========
सेठजी घी क्या भाव है ? ग्राहक के पूछने पर सेठ जी ने जवाब दिया - रु. 700/ किग्रा. I ठीक है तीन किलो इस डिब्बे में भर दो l
सेठ जी ने 3 किलो घी डिब्बे में तौलकर दिया और ग्राहक से 2100/रु. प्राप्त किये I चार -छः दुकान आगे जाकर ग्राहक वापस लौट आया और हाथ जोड़कर बोला - सेठ जी , बुरा न मानें तो मुझे 2000/रु दे दीजिये l बहुत जरूरी काम पड़ गया है l ( झोले से डिब्बा निकालते हुये ) यह घी अलग रख दीजिये मैं आधा घण्टे बाद आकर ले लूँगा और आपके रुपये दे दूँगा , 100 रु जमा रहने दीजिये l सेठ जी ने कहा - ठीक है, डिब्बा उधर कोने में रख दो l ये लो रुपये , जल्दी आना l
रात के 9 बज चुके थे , दुकान बन्द करने का समय था लेकिन अपरिचित ग्राहक का कोई अता-पता नहीं था I सेठ जी ने नौकर से कहा - इस घी को बडे़ कनस्तर में डाल दो l कल आयेगा तो फिर तौलकर दे देंगे , नहीं तो वे 100 रु.भी जब्त l
नौकर ने कनस्तर में डिब्बा उड़ेला तो चिल्ला पड़ा - सेठ जी इसमें तो गोबर भरा है I सुनते ही होश उड़ गये , हाय राम ! मैं तो बरबाद हो गया l इतना बड़ा विश्वासघात l 2000रु , 3 किलो घी उसके बाद 7-8 किलो घी यह भी बर्बाद हो गया l
जो भी सुन रहा था दाँतों तले उँगली दबा रहा था ,ओह कितना बड़ा धोखा I आजकल किसी का विश्वास नहीं है ,आँखों में धूल झोंक गया कहते हुये सेठ जी बेहोश हो गिर पड़े ۔۔۔۔۔۔۔
#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई , महोबा ( उ. प्र. )
सेठजी घी क्या भाव है ? ग्राहक के पूछने पर सेठ जी ने जवाब दिया - रु. 700/ किग्रा. I ठीक है तीन किलो इस डिब्बे में भर दो l
सेठ जी ने 3 किलो घी डिब्बे में तौलकर दिया और ग्राहक से 2100/रु. प्राप्त किये I चार -छः दुकान आगे जाकर ग्राहक वापस लौट आया और हाथ जोड़कर बोला - सेठ जी , बुरा न मानें तो मुझे 2000/रु दे दीजिये l बहुत जरूरी काम पड़ गया है l ( झोले से डिब्बा निकालते हुये ) यह घी अलग रख दीजिये मैं आधा घण्टे बाद आकर ले लूँगा और आपके रुपये दे दूँगा , 100 रु जमा रहने दीजिये l सेठ जी ने कहा - ठीक है, डिब्बा उधर कोने में रख दो l ये लो रुपये , जल्दी आना l
रात के 9 बज चुके थे , दुकान बन्द करने का समय था लेकिन अपरिचित ग्राहक का कोई अता-पता नहीं था I सेठ जी ने नौकर से कहा - इस घी को बडे़ कनस्तर में डाल दो l कल आयेगा तो फिर तौलकर दे देंगे , नहीं तो वे 100 रु.भी जब्त l
नौकर ने कनस्तर में डिब्बा उड़ेला तो चिल्ला पड़ा - सेठ जी इसमें तो गोबर भरा है I सुनते ही होश उड़ गये , हाय राम ! मैं तो बरबाद हो गया l इतना बड़ा विश्वासघात l 2000रु , 3 किलो घी उसके बाद 7-8 किलो घी यह भी बर्बाद हो गया l
जो भी सुन रहा था दाँतों तले उँगली दबा रहा था ,ओह कितना बड़ा धोखा I आजकल किसी का विश्वास नहीं है ,आँखों में धूल झोंक गया कहते हुये सेठ जी बेहोश हो गिर पड़े ۔۔۔۔۔۔۔
#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई , महोबा ( उ. प्र. )
विधा- चोका
सौ सौ फरेब
नयनों मे समाये
नेह दिखाये
आता नहीं यकीन
बातों पे तेरी
याद पुरानी आए
विश्वास करूँ
भूलूँ अतीत सारा
पैने से बोल
सिहरन तीरों सी
मिल न जाये
वही विश्वासघात
चिन्तित मन
मिलने से पहले
सोचे यही दुबारा
मीना भारद्वाज
(स्वरचित एवं मौलिक)
सौ सौ फरेब
नयनों मे समाये
नेह दिखाये
आता नहीं यकीन
बातों पे तेरी
याद पुरानी आए
विश्वास करूँ
भूलूँ अतीत सारा
पैने से बोल
सिहरन तीरों सी
मिल न जाये
वही विश्वासघात
चिन्तित मन
मिलने से पहले
सोचे यही दुबारा
मीना भारद्वाज
(स्वरचित एवं मौलिक)
आ0कंचनलता प्रजापति जी
==========================
धोखा ,फ़रेब या ठगी ,. विश्वासों के घात।
पाप बड़ा इससे नहीं ,और न घटिया बात।।
-------------------------
धोखे और फ़रेब से, . . भरे हुये सब लोग।
सजा बनाकर ज़िन्दगी ,लोग रहे हैं भोग।।
------------------------
धोखे और फरेब से ,.. भरे हुये इन्सान।
नकली सबकी चाहतें ,और प्रेम ईमान।।
-------------------
एक दूजे को ठग रहे ,फ़रेब की हर बात।
और चाहते दूसरा,... हमें न दे आघात।।
========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
==========================
धोखा ,फ़रेब या ठगी ,. विश्वासों के घात।
पाप बड़ा इससे नहीं ,और न घटिया बात।।
-------------------------
धोखे और फ़रेब से, . . भरे हुये सब लोग।
सजा बनाकर ज़िन्दगी ,लोग रहे हैं भोग।।
------------------------
धोखे और फरेब से ,.. भरे हुये इन्सान।
नकली सबकी चाहतें ,और प्रेम ईमान।।
-------------------
एक दूजे को ठग रहे ,फ़रेब की हर बात।
और चाहते दूसरा,... हमें न दे आघात।।
========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
किस रास्ते पर आज बढ़ रहा है आदमी ,
हर क्षेत्र में फरेब कर रहा है आदमी ।
शिक्षा ,कला या खेल-सभी में है छल-कपट ,
अब मन्दिरों में छद्म कर रहा है आदमी।
पैसा ही आज धर्म और पैसा ही मर्म है ,
पैसे पर अब ईमान तज रहा है आदमी।
रिश्तों का कोई मूल्य न दीखता समाज में,
अपनों के दिल पर घाव कर रहा है आदमी।
वे सत्य, अहिंसा के सब आदर्श कहाँ है ,
क्यों अपनी संस्कृति को छल रहा हैआदमी।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
हर क्षेत्र में फरेब कर रहा है आदमी ।
शिक्षा ,कला या खेल-सभी में है छल-कपट ,
अब मन्दिरों में छद्म कर रहा है आदमी।
पैसा ही आज धर्म और पैसा ही मर्म है ,
पैसे पर अब ईमान तज रहा है आदमी।
रिश्तों का कोई मूल्य न दीखता समाज में,
अपनों के दिल पर घाव कर रहा है आदमी।
वे सत्य, अहिंसा के सब आदर्श कहाँ है ,
क्यों अपनी संस्कृति को छल रहा हैआदमी।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
----- रिश्तों का बाजार ------
देखो आजकल
लगते हर जगह
रिश्तों के बाजार
अपने ही घर में माँ-बाप हुए पराये,
रिश्तों की भीड़ अब कम होती जाये,
छोटी-छोटी बातों पर
घर -घर होती तकरार
दोस्तों की दोस्ती अब डूब गई,
रिश्तों की अमानत कहीं लूट गई,
भाई को भाई आज
#धोखे से रहा मार
भ्रूणहत्या बलात्कार बेटी घुट-घुट जी रही,
पग-पग पर नारी खून के आँसू पी रही,
देख मानव का कुकृत्य
ईश्वर भी लाचार
खरीदा था बाजार से खुशियों का भंडार,
खोला तो निकले उसमें दुःख अपार,
कैसे चलता हैं यहाँ
#धोखे का व्यापार
रचनाकार
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा, सिरसा (हरियाणा)
देखो आजकल
लगते हर जगह
रिश्तों के बाजार
अपने ही घर में माँ-बाप हुए पराये,
रिश्तों की भीड़ अब कम होती जाये,
छोटी-छोटी बातों पर
घर -घर होती तकरार
दोस्तों की दोस्ती अब डूब गई,
रिश्तों की अमानत कहीं लूट गई,
भाई को भाई आज
#धोखे से रहा मार
भ्रूणहत्या बलात्कार बेटी घुट-घुट जी रही,
पग-पग पर नारी खून के आँसू पी रही,
देख मानव का कुकृत्य
ईश्वर भी लाचार
खरीदा था बाजार से खुशियों का भंडार,
खोला तो निकले उसमें दुःख अपार,
कैसे चलता हैं यहाँ
#धोखे का व्यापार
रचनाकार
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा, सिरसा (हरियाणा)
आज का विषय , धोखा , विश्वासघात , फरेब ,
दिन , शुक्रवार ,
दिनांक, 22, 3, 2019,
एक सुहाना धोखा है ये दुनियाँ , जिसको सब जीवन भर अपनाते हैं,
इस दुनियाँ में इस धोखे को , हम हस हस कर जानबूझ कर खाते हैं |
होता है अनिश्चित जीवन अपना , मालूम सभी को एक दिन चले जाना है ,
जब नहीं है साथी तन भी अपना , फिर कौन यहाँ पर अपना है |
हों भाई बंधु चाहे सखा पडोसी ,सबको ही तो निशि दिन छलना है,
धोखा हम खायें चाहें जितना भी , हमें दामन उनका ही पकड़ना है|
यहाँ कुछ कहते कुछ करते हैं सब , सबको बस फरेब ही तो भाता है,
गोल होती है जब दुनियाँ सारी , हर कोई लौट वहीं फिर आता है |
ये विश्वासघात उपहार है ऐसा , जो बिन चाहे ही मिल जाता है ,
तुम गले लगाओ या न लगाओ , झटपट सीने से यह लग जाता है |
बड़ा खतरनाक है धन का मामला , फरेब का साथी यह कहलाता है ,
कदम कदम पर देता धोखा , जरूर ही विश्वासघात से मिलवाता है |
होता प्रेम जगत का यह दुश्मन , हमें बड़े प्रेम से धोखा मिलता है ,
यहाँ कुछ समझ नहीं पाता इन्सा ,चुपके से खंजर सीने में चुभ जाता है |
विश्वासघात का एक बड़ा समुदंर , राजनीति का दरिया बन जाता है ,
धीरे धीरे आगे चलकर सेवक ही यहाँ पर , मालिक का सौदाई बन जाता है |
हों क्षेत्र भले ही अलग अलग , जीवन में धोखा सबको ही मिलता है ,
कोई खिलाड़ी बना कोई मौहरा बना ,बदल बदल कर चक्र यूँ ही चलता है |
होता है भाग्यवान समझ जाओ वही , संसार में जो इससे बच जाता है ,
हो भाग्यशाली हर कोई यहाँ , सदा मन मेरा यही दुआ बस करता है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
विधा-हाइकु
1.
प्यार ने जोड़े
दो दिल अनजान
धोखे ने तोड़े
2.
खाकर धोखा
भटका पथ से
कौन है जीता
3.
चुनावी वादे
हर पाँच साल में
बनते धोखा
4.
भारत स्तब्ध
पुलवामा का धोखा
मलते हाथ
5.
पेड़ काटना
प्रदूषण फैलाना
खुद को धोखा
6.
नशा करना
अनपढ़ रहना
जीवन धोखा
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
1.
प्यार ने जोड़े
दो दिल अनजान
धोखे ने तोड़े
2.
खाकर धोखा
भटका पथ से
कौन है जीता
3.
चुनावी वादे
हर पाँच साल में
बनते धोखा
4.
भारत स्तब्ध
पुलवामा का धोखा
मलते हाथ
5.
पेड़ काटना
प्रदूषण फैलाना
खुद को धोखा
6.
नशा करना
अनपढ़ रहना
जीवन धोखा
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
हाइकु
विषय:-"धोखा"
(1)️🔪
दोहरा मन
"धोखे" की शिकायत
स्वयं न कम
(2)🔪
दर्द की राह
आँसू ने दिया "धोखा"
छोड़े नयन
(3)🔪
टूटा भरोसा
अपना बनाकर
"धोखा" परोसा
(4)🔪
भरोसा क़त्ल
"धोखे" ने खोली आँखे
किया सजग
(5)🔪
गरीब भूखा
वादों से भरा पेट
थाली में "धोखा"
(6)🔪
जीवन धन
समय "धोखेबाज"
ले गया उड़ा
(7)🔪
विश्वास झूठा
स्वार्थ को मिला मौका
झोली में धोखा
✍ऋतुराज दवे,राजसमंद(राजस्थान)
विषय:-"धोखा"
(1)️🔪
दोहरा मन
"धोखे" की शिकायत
स्वयं न कम
(2)🔪
दर्द की राह
आँसू ने दिया "धोखा"
छोड़े नयन
(3)🔪
टूटा भरोसा
अपना बनाकर
"धोखा" परोसा
(4)🔪
भरोसा क़त्ल
"धोखे" ने खोली आँखे
किया सजग
(5)🔪
गरीब भूखा
वादों से भरा पेट
थाली में "धोखा"
(6)🔪
जीवन धन
समय "धोखेबाज"
ले गया उड़ा
(7)🔪
विश्वास झूठा
स्वार्थ को मिला मौका
झोली में धोखा
✍ऋतुराज दवे,राजसमंद(राजस्थान)
धोखा
किस-किस से बचेगा
रखेगा तू कहाँ ध्यान
पग-पग पर है धोखेबाज़
भरा पड़ा है जहान।
खून धोखेबाज़ हुआ
समाज भी तो कम नहीं
परिवेश भी भटका
खाता धोखा हर कहीं।
संभल ले कितना इन्सान
जमाना बना है बईमान
देती है जिन्दगी कई बार धोखा
टूट जाता है इन्सान।
राकेशकुमार जैनबन्धु
किस-किस से बचेगा
रखेगा तू कहाँ ध्यान
पग-पग पर है धोखेबाज़
भरा पड़ा है जहान।
खून धोखेबाज़ हुआ
समाज भी तो कम नहीं
परिवेश भी भटका
खाता धोखा हर कहीं।
संभल ले कितना इन्सान
जमाना बना है बईमान
देती है जिन्दगी कई बार धोखा
टूट जाता है इन्सान।
राकेशकुमार जैनबन्धु
विश्वास घात :-
धूर्तता ने छल
लिया विश्वास को,
सत्य से उजले
हुये आकाशको .।
डस गया गहरा
अंधेरा आस को,
दिवस के हर्षित
हुये उल्लास को ।
पोत कर स्याही
स्वयं प्रतिमान को
कालिमा ने भर
दिया अपमान को ।
प्रदूषित दूषण
हुआ था संग में
अवतरितहोकर
निशा के रंग में ।
तमिस्त्रा ने कालिमा
देकर कहा -
होगया सम्मान
तेरा ये रहा।
धूर्तता ने छल
लिया विश्वास को,
सत्य से उजले
हुये आकाशको .।
डस गया गहरा
अंधेरा आस को,
दिवस के हर्षित
हुये उल्लास को ।
पोत कर स्याही
स्वयं प्रतिमान को
कालिमा ने भर
दिया अपमान को ।
प्रदूषित दूषण
हुआ था संग में
अवतरितहोकर
निशा के रंग में ।
तमिस्त्रा ने कालिमा
देकर कहा -
होगया सम्मान
तेरा ये रहा।
टूट जाती हूँ जब दुनियां के फरेब से
अपना ही अक्स ढूँढ लेती हूँ शीशे में
ना हमारी मोहब्बत में फरेब हैं ना धोखा
बस तुमने ही नहीं समझा ना हमें एतबार के लिये रोका .
इतने धोखे खाये हैं दुनियाँ में
अब मोहब्बत में यकीन नहीं
मैं खुद ही कश्मकश में हूँ
मोहब्बत पर एतबार करूं कैसे .
ये धोखा करने वाले भी हुनर रखते
कभी इस दिल से कभी उस दिल से खेलते हैं
फिर भी मासूम बनकर चहेरा छुपाये फिरते हैं
हर दिन धोखे का एक नया चहेरा लगाये फिरते हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
अपना ही अक्स ढूँढ लेती हूँ शीशे में
ना हमारी मोहब्बत में फरेब हैं ना धोखा
बस तुमने ही नहीं समझा ना हमें एतबार के लिये रोका .
इतने धोखे खाये हैं दुनियाँ में
अब मोहब्बत में यकीन नहीं
मैं खुद ही कश्मकश में हूँ
मोहब्बत पर एतबार करूं कैसे .
ये धोखा करने वाले भी हुनर रखते
कभी इस दिल से कभी उस दिल से खेलते हैं
फिर भी मासूम बनकर चहेरा छुपाये फिरते हैं
हर दिन धोखे का एक नया चहेरा लगाये फिरते हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
१
साफ हृदय
कर अंधविश्वास
मिलता धोखा
२
धोखे के काँटे
दिल लहुलुहान
शब्दों के वार
३
पढ़ाई दूर
भविष्य अंधकार
स्वयं को धोखा
४
दर्द के रंग
यादें बनी सहारा
धोखे के संग
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
22/3/19
साफ हृदय
कर अंधविश्वास
मिलता धोखा
२
धोखे के काँटे
दिल लहुलुहान
शब्दों के वार
३
पढ़ाई दूर
भविष्य अंधकार
स्वयं को धोखा
४
दर्द के रंग
यादें बनी सहारा
धोखे के संग
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
22/3/19
लघु कविता
दुनियाँ का बाजार मन
धोखा मीला दोस्त बन ।
दोस्ती की कसमें खाते,
लोमडी़ के आँसू बहाते ,
गंगा , गोदावरी में नहाते ।
कभी विश्वास नहीं होता !
इंसान धोखा कैसे खाता ?
बाद दुनियाँ में मीला
हर जगह शिकवा गिला !
हर तराजू बन्दर बाट,
जो खाए रूखा सूखा
उसको मिलता धोखा !
हर पग गुर्गो की जमात,
सफेद पोश करते ऐश!
शासन उनका, ऐसा देश ।
नागरिकों से झूठे वादे ,
मुआवजे की कवायद,
सरकार से फरियाद!
शेष बस धोखे की याद!
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल
दुनियाँ का बाजार मन
धोखा मीला दोस्त बन ।
दोस्ती की कसमें खाते,
लोमडी़ के आँसू बहाते ,
गंगा , गोदावरी में नहाते ।
कभी विश्वास नहीं होता !
इंसान धोखा कैसे खाता ?
बाद दुनियाँ में मीला
हर जगह शिकवा गिला !
हर तराजू बन्दर बाट,
जो खाए रूखा सूखा
उसको मिलता धोखा !
हर पग गुर्गो की जमात,
सफेद पोश करते ऐश!
शासन उनका, ऐसा देश ।
नागरिकों से झूठे वादे ,
मुआवजे की कवायद,
सरकार से फरियाद!
शेष बस धोखे की याद!
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल
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