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ब्लॉग संख्या :-334
आजा- आजा कर लें हम-तुम प्यार होली में।
रंग दें गोरे गोरे गाल अबकी बार होली में।
लाल कलर है हाथ में मेरे और लिए तुम काला
कैसे खुद को समझाऊं मैं, पड़ गया तुमसे पाला
पूरा है रंगने का अब अधिकार होली में।
आजा-आजा कर लें हम-तुम प्यार होली में।
आज नहीं छोडूंगी तुझको सुन लो बात हमारी।
बहुत दिनों के बाद मिली है रंग भरी पिचकारी।
यूं न भागो खोलो दिल के द्वार होली में।
आजा-आजा कर लें हम-तुम प्यार होली में।
इति शिवहरे
औरैया उत्तरप्रदेश
रंग दें गोरे गोरे गाल अबकी बार होली में।
लाल कलर है हाथ में मेरे और लिए तुम काला
कैसे खुद को समझाऊं मैं, पड़ गया तुमसे पाला
पूरा है रंगने का अब अधिकार होली में।
आजा-आजा कर लें हम-तुम प्यार होली में।
आज नहीं छोडूंगी तुझको सुन लो बात हमारी।
बहुत दिनों के बाद मिली है रंग भरी पिचकारी।
यूं न भागो खोलो दिल के द्वार होली में।
आजा-आजा कर लें हम-तुम प्यार होली में।
इति शिवहरे
औरैया उत्तरप्रदेश
😁🐴🐂सजीवों की बैठक🐂🐴😁
भूल हुई जो अन्जाने में माफ करो
मेरे साथ प्रभु थोड़ा इंसाफ करो ।।
इतना बड़ा शरीर डरूँ चींटी से
लाज लगे मेरा बजन हाफ करो ।।
हाथी की आवाज सुन ऊँट दौड़ा
मेरे सामने तेरा दुख बहुत थोड़ा ।।
इतना बड़ा शरीर गर्दन भी ऊँची
हंसी का पात्र बनाकर मुझे छोड़ा ।।
लग लाइन सबसे आगे इंसान था
इंसान को देख हतप्रभ भगवान था ।।
तूँ कौन सी कमियों का रोना रोये
माफ कर तुझे बनाकर मैं हैरान था ।।
तुझे नही अब मैं कुछ भी दे सकता
सारे जीव खुश एक तूँ नही हंसता ।।
कुछ पाने के लिये कुछ खोना होता
सब पाकर भी इंसा दिक्कत रखता ।।
काश दिमाग न तुझको मैं दिया होता
आज न तूँ यह अपनी कमियाँ रोता ।।
ऐसा कर तूँ दिमाग अपना लौटा दे
फिर देख सुख कैसे न तूँ संजोता ।।
सारे जीव हंसे इंसान हैरान हुआ
बेवजह ही उसका अपमान हुआ ।।
सोच वो दिमाग का यूस कम करें
पूरा कहाँ किसका हर अरमान हुआ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
भूल हुई जो अन्जाने में माफ करो
मेरे साथ प्रभु थोड़ा इंसाफ करो ।।
इतना बड़ा शरीर डरूँ चींटी से
लाज लगे मेरा बजन हाफ करो ।।
हाथी की आवाज सुन ऊँट दौड़ा
मेरे सामने तेरा दुख बहुत थोड़ा ।।
इतना बड़ा शरीर गर्दन भी ऊँची
हंसी का पात्र बनाकर मुझे छोड़ा ।।
लग लाइन सबसे आगे इंसान था
इंसान को देख हतप्रभ भगवान था ।।
तूँ कौन सी कमियों का रोना रोये
माफ कर तुझे बनाकर मैं हैरान था ।।
तुझे नही अब मैं कुछ भी दे सकता
सारे जीव खुश एक तूँ नही हंसता ।।
कुछ पाने के लिये कुछ खोना होता
सब पाकर भी इंसा दिक्कत रखता ।।
काश दिमाग न तुझको मैं दिया होता
आज न तूँ यह अपनी कमियाँ रोता ।।
ऐसा कर तूँ दिमाग अपना लौटा दे
फिर देख सुख कैसे न तूँ संजोता ।।
सारे जीव हंसे इंसान हैरान हुआ
बेवजह ही उसका अपमान हुआ ।।
सोच वो दिमाग का यूस कम करें
पूरा कहाँ किसका हर अरमान हुआ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
(एक पुरानी हास्य रचना)
वरदान
वरदान
एक हिप्पी कट भक्त ने
खूब करी भगवान की सेवा
चाँदी के चकमक सिक्के चढ़ाए
और नैवेद्य-भोग में खिलाये
दूध,मलाई और मेवा
मौन तपस्या में लीन थे प्रभु
कि नारद कानों में बोल गया
आखिर कबतक टिकते प्रभु
नारद की बातें आँखे खोल गया
भक्त के घनघोर तप से
सिंहासन उनका डोल गया
या चढ़ावे की चकमक से
मन उनका हो डांवाडोल गया
हम गदगद हुए तेरी भक्ति से
प्रसन्न हो प्रभु, भक्त से बोले
माँग, तुझे कैसा वर चाहिये
यथासंभव, शब्दों में शक्कर घोले
भक्त हुआ हैरान,परेशान
देख प्रभु का रूप महान
पलभर प्रसंग को तोला
दोनों हाथ जोड़कर वो बोला
प्रभु,मेरे हिप्पी कट बालों को देख
कुछ यूँ न भरमाइये
वर तो मैं खुद ही हूँ
कहीं से एक कन्या दिलवाइये
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
खूब करी भगवान की सेवा
चाँदी के चकमक सिक्के चढ़ाए
और नैवेद्य-भोग में खिलाये
दूध,मलाई और मेवा
मौन तपस्या में लीन थे प्रभु
कि नारद कानों में बोल गया
आखिर कबतक टिकते प्रभु
नारद की बातें आँखे खोल गया
भक्त के घनघोर तप से
सिंहासन उनका डोल गया
या चढ़ावे की चकमक से
मन उनका हो डांवाडोल गया
हम गदगद हुए तेरी भक्ति से
प्रसन्न हो प्रभु, भक्त से बोले
माँग, तुझे कैसा वर चाहिये
यथासंभव, शब्दों में शक्कर घोले
भक्त हुआ हैरान,परेशान
देख प्रभु का रूप महान
पलभर प्रसंग को तोला
दोनों हाथ जोड़कर वो बोला
प्रभु,मेरे हिप्पी कट बालों को देख
कुछ यूँ न भरमाइये
वर तो मैं खुद ही हूँ
कहीं से एक कन्या दिलवाइये
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विषय :- होली
***********होली********
होली के त्यौहार का अजब चढ़ा था रंग,
भैया मैंने पी ली बस थोड़ी सी भंग ।
बस थोड़ी सी भंग नशा कुछ ऐसा छाया,
गली मोहल्ला सभी जगह हुड़दंग मचाया।
डाला रंग किसी पर , किसी को मला गुलाल,
हरा किसी को कर दिया, किया किसी को लाल।
था अजीब सा हाल न कुछ भी सूझे भाई,
जहां था पक्का रोड वहाँ दिखती थी खाई।
बदली मेरी चाल ये कैसी हालत होली,
पकड़े दोनों कान न खेलूं ऐसी होली।
******************************
शिवेन्द्र सिंह चौहान (सरल)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
***********होली********
होली के त्यौहार का अजब चढ़ा था रंग,
भैया मैंने पी ली बस थोड़ी सी भंग ।
बस थोड़ी सी भंग नशा कुछ ऐसा छाया,
गली मोहल्ला सभी जगह हुड़दंग मचाया।
डाला रंग किसी पर , किसी को मला गुलाल,
हरा किसी को कर दिया, किया किसी को लाल।
था अजीब सा हाल न कुछ भी सूझे भाई,
जहां था पक्का रोड वहाँ दिखती थी खाई।
बदली मेरी चाल ये कैसी हालत होली,
पकड़े दोनों कान न खेलूं ऐसी होली।
******************************
शिवेन्द्र सिंह चौहान (सरल)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
देखिए कि सब गधे घोड़े बने है ससुराल में।
सर कड़ाही में है इनका दोनों हाथ डूबे माल में।
देख कर हंसते पडोसी खैर करना मेरे खुदा।
देखे हैं ऐसे एक मगरमच्छ बैठा है जैसे ताल में।
साले हैं करते सेवा खाते है उस पर गालियाँ।
जीजा को प्यारी लगे ताजी कली सी सालियां।
वे भी करें पूरी चिरौरी मस्ती मैं है गाने लगी।
जैसे के हींग मिर्ची का छौका लगा हो दाल मे।
मुफ़्त मे खुशियों भरे लड्डू हो जैसे बंट रहे।
ससुराल में दामाद के दिन कुछ है ऐसे कट रहे।
कुछ तवज्जो कम, फिर खातिर कुछ नम हुई।
लगने लगा सबको के जां फंस गई जंजाल में।
एक दिन फिर सामना जो हुआ एक बूढ़े शेर से।
कहा है लाली के फूफा गौर किया बडी देर से।
बोले कि अब रवायते दामादी तुम्हारे पास होगी।
रखो बनाए ज्यों की त्यों मिट ना सकी काल से।
कहने लगे वाकिफ हो ना दामादी के दस्तूर से।
हफ्ते से कम रुकना नहीं आए हो इतनी दूर से।
पूरा निचोडो माल दिल न बिलकुल भी पसीजे।
बाल न बांका होगा तुम्हारा किसी भी हाल में।
कर रहे जो सेवा है तो अहसान क्या है कर रहे।
इनकी खताओं को मै और तुम ही तो है भर रहे।
तुनक - मिजाजी मे जरा भी कमी आने न पाए।
पीतल ही समझो परोंसे ये जो सोने के थाल में।
सुन वचन उस्ताद के दामाद को जोश आ गया।
घर चलने की गफलत मे था कि होश आ गया।
रुखसती का फैसला मुल्तवी यों कर दिया के।
चल चलेंगे दो चार दिन की ही कमी है साल में।
देख कर सोचें कि कैसे परिवार है ये घुट रहा।
एेसे दामादो के हाथों देश कितना है ये लुट रहा।
रिश्तेदारी है कि हरामखोरी का ये लाइसेंस है।
चलाते हैं ये बस आरियां बैठे है ये जिस डाल में।
देख कर हरदम सोचें कि हम बिचारे क्यूं हुए।
जो हो गये पैदा तो फिर हम ही कंवारे क्यू हुए।
सुन के दामादो की मौजे हम से रहा जाता नहीं।
हो जाए कही अपनी बुकिंग है लगे इस ताल में।
स्वरचित विपिन सोहल
सर कड़ाही में है इनका दोनों हाथ डूबे माल में।
देख कर हंसते पडोसी खैर करना मेरे खुदा।
देखे हैं ऐसे एक मगरमच्छ बैठा है जैसे ताल में।
साले हैं करते सेवा खाते है उस पर गालियाँ।
जीजा को प्यारी लगे ताजी कली सी सालियां।
वे भी करें पूरी चिरौरी मस्ती मैं है गाने लगी।
जैसे के हींग मिर्ची का छौका लगा हो दाल मे।
मुफ़्त मे खुशियों भरे लड्डू हो जैसे बंट रहे।
ससुराल में दामाद के दिन कुछ है ऐसे कट रहे।
कुछ तवज्जो कम, फिर खातिर कुछ नम हुई।
लगने लगा सबको के जां फंस गई जंजाल में।
एक दिन फिर सामना जो हुआ एक बूढ़े शेर से।
कहा है लाली के फूफा गौर किया बडी देर से।
बोले कि अब रवायते दामादी तुम्हारे पास होगी।
रखो बनाए ज्यों की त्यों मिट ना सकी काल से।
कहने लगे वाकिफ हो ना दामादी के दस्तूर से।
हफ्ते से कम रुकना नहीं आए हो इतनी दूर से।
पूरा निचोडो माल दिल न बिलकुल भी पसीजे।
बाल न बांका होगा तुम्हारा किसी भी हाल में।
कर रहे जो सेवा है तो अहसान क्या है कर रहे।
इनकी खताओं को मै और तुम ही तो है भर रहे।
तुनक - मिजाजी मे जरा भी कमी आने न पाए।
पीतल ही समझो परोंसे ये जो सोने के थाल में।
सुन वचन उस्ताद के दामाद को जोश आ गया।
घर चलने की गफलत मे था कि होश आ गया।
रुखसती का फैसला मुल्तवी यों कर दिया के।
चल चलेंगे दो चार दिन की ही कमी है साल में।
देख कर सोचें कि कैसे परिवार है ये घुट रहा।
एेसे दामादो के हाथों देश कितना है ये लुट रहा।
रिश्तेदारी है कि हरामखोरी का ये लाइसेंस है।
चलाते हैं ये बस आरियां बैठे है ये जिस डाल में।
देख कर हरदम सोचें कि हम बिचारे क्यूं हुए।
जो हो गये पैदा तो फिर हम ही कंवारे क्यू हुए।
सुन के दामादो की मौजे हम से रहा जाता नहीं।
हो जाए कही अपनी बुकिंग है लगे इस ताल में।
स्वरचित विपिन सोहल
I गधे जी.... II
बचपन में हम गए एक मेले में...
बन-ठन ठुम्मक ठुम्मक ठेले में...
हर तरफ थी खूब चहल पहल...
लोग भी थे बड़े रंग बिरंगे से...
कोई लाल कोई पीला...
हम थे नीले में...
हर तरह के स्टाल थे लगे हुए...
कहीं बर्तन...कहीं कपडे सज्जे हुए...
खाने पीने के स्टाल पे थी भीड़ भारी...
कचोरी पूरी और चने की चाहत सब को भारी...
एक तरफ था खूब शोरगुल हो रहा...
ताली पे ताली थी रह रह के बज रही...
हम भी उत्सुक से वहां जा पहुंचे...
देखा बीचो-बीच गधे को मालिक उसका लेके खड़ा हुआ...
गधा भी बड़ा अजीब सा गधा था....
जो भी कहो कान में सिर्फ 'हाँ' में सर हिलाता था...
शर्त थी मालिक की जो 'ना' में गधे की गर्दन हिलवा देगा...
जितना लगाएगा १० गुना इनाम उसको वो देगा...
देखते देखते कई लुट गए...
सब हैरान ऐसा ही क्यूँ है...
गधा सर हाँ में ही हिलाता क्यूँ है...
हमने फिर एक तरकीब लगाई...
और फट से शर्त दे लगाई...
दिया मालिक को ५० का नोट...
बोला अब तैयार रखो १०० के पांच खरे नोट...
हमने गधे के पास जा कान में...
यूं मुंह में मिश्री रख के बोला....
हे गधे जी.....
इतना सुनना था...कान गधे के खड़े हो गए...
हमारी तरफ देख यूं मुस्कुराया....
जैसे मेले में बिछड़ा भाई हो पाया....
हमारे दिल में भी कुछ था होने लगा...
संभाल अपने को फिर गधे के कान में बोला....
गधेजी...मन हमारा नहीं आपको गधा बोलने का...
इतने ग्यानी हो...मेहनती हो...
आप गधे तो हो नहीं सकते...
खुद देख लो मेहनत तो आप कर रहे हो...
मालिक आराम से खा रहा...
"आप" तो धूप में जल रहे हो...
वो मजे में शरबत उड़ा रहा...
आप सच में गधे हो क्या...
जैसे ही मैंने ये कहा....
गधे ने जो ना में गर्दन दे हिलाई....
मालिक की तो जैसे सब मुंह को आयी...
लोग ताली पे ताली बजा रहे थे...
हम मालिक से अपने पैसे मांग रहे थे...
वो पूछा ऐसा बोला क्या तुमने कि गधा...
ना में ही सर हिलाया....
मैंने फिर सब उसको बताया..
लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे...
और मालिक खिसियाने से हो...
'गधे जी' को नोच रहे थे....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
बचपन में हम गए एक मेले में...
बन-ठन ठुम्मक ठुम्मक ठेले में...
हर तरफ थी खूब चहल पहल...
लोग भी थे बड़े रंग बिरंगे से...
कोई लाल कोई पीला...
हम थे नीले में...
हर तरह के स्टाल थे लगे हुए...
कहीं बर्तन...कहीं कपडे सज्जे हुए...
खाने पीने के स्टाल पे थी भीड़ भारी...
कचोरी पूरी और चने की चाहत सब को भारी...
एक तरफ था खूब शोरगुल हो रहा...
ताली पे ताली थी रह रह के बज रही...
हम भी उत्सुक से वहां जा पहुंचे...
देखा बीचो-बीच गधे को मालिक उसका लेके खड़ा हुआ...
गधा भी बड़ा अजीब सा गधा था....
जो भी कहो कान में सिर्फ 'हाँ' में सर हिलाता था...
शर्त थी मालिक की जो 'ना' में गधे की गर्दन हिलवा देगा...
जितना लगाएगा १० गुना इनाम उसको वो देगा...
देखते देखते कई लुट गए...
सब हैरान ऐसा ही क्यूँ है...
गधा सर हाँ में ही हिलाता क्यूँ है...
हमने फिर एक तरकीब लगाई...
और फट से शर्त दे लगाई...
दिया मालिक को ५० का नोट...
बोला अब तैयार रखो १०० के पांच खरे नोट...
हमने गधे के पास जा कान में...
यूं मुंह में मिश्री रख के बोला....
हे गधे जी.....
इतना सुनना था...कान गधे के खड़े हो गए...
हमारी तरफ देख यूं मुस्कुराया....
जैसे मेले में बिछड़ा भाई हो पाया....
हमारे दिल में भी कुछ था होने लगा...
संभाल अपने को फिर गधे के कान में बोला....
गधेजी...मन हमारा नहीं आपको गधा बोलने का...
इतने ग्यानी हो...मेहनती हो...
आप गधे तो हो नहीं सकते...
खुद देख लो मेहनत तो आप कर रहे हो...
मालिक आराम से खा रहा...
"आप" तो धूप में जल रहे हो...
वो मजे में शरबत उड़ा रहा...
आप सच में गधे हो क्या...
जैसे ही मैंने ये कहा....
गधे ने जो ना में गर्दन दे हिलाई....
मालिक की तो जैसे सब मुंह को आयी...
लोग ताली पे ताली बजा रहे थे...
हम मालिक से अपने पैसे मांग रहे थे...
वो पूछा ऐसा बोला क्या तुमने कि गधा...
ना में ही सर हिलाया....
मैंने फिर सब उसको बताया..
लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे...
और मालिक खिसियाने से हो...
'गधे जी' को नोच रहे थे....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
जीजा गये ससुराल
खेलवे होली
जीजा आ गओ
जीजा आ गओ
सालीयाँ जोर से बोली
कोई ने फोड़ रंग भरा
गुब्बारा तो कोई ने
उड़ेली बाल्टी
जीजा बेचारे तंग आकर
बैठे मारके पालटी
जीजा बिगाड़वे जाये
सालीयाँ छुप जाये
आज तो बनाबेगे
जीजाजी तुम्हे लुका
ये सुन जीजा भय हक्का बकका,
पैर महावर , आँखन काजल
घाघरा देओ पहनाय
सारीयन ने जीजा सजाये
बनाकर टोली
जीजा बुरो मत मानीयों
आज है होली
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
खेलवे होली
जीजा आ गओ
जीजा आ गओ
सालीयाँ जोर से बोली
कोई ने फोड़ रंग भरा
गुब्बारा तो कोई ने
उड़ेली बाल्टी
जीजा बेचारे तंग आकर
बैठे मारके पालटी
जीजा बिगाड़वे जाये
सालीयाँ छुप जाये
आज तो बनाबेगे
जीजाजी तुम्हे लुका
ये सुन जीजा भय हक्का बकका,
पैर महावर , आँखन काजल
घाघरा देओ पहनाय
सारीयन ने जीजा सजाये
बनाकर टोली
जीजा बुरो मत मानीयों
आज है होली
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
हास्यव्यंग्य
1)
होली के रंग में
मिलती जब भंग है
उठती है दिल मे
उमंग और तरंग है
रंग की खुमारी मे
भंग की प्याली है
जीजा साली खेले
संग संग पिचकारी हैं
बीबी खड़ी सोच रही
दीदी खड़ी सोच रही
भंग मे रंग है
या रंग मे भंग है ।
भंग मे रंग है
या रंग में भंग है ।
2)
एक बात की कसक
रह गयी अब होली मे,
पीत रंग नहीं चढ़ा है
नेताओं की टोली मे
तन तो इनके नहीँ रंगे
मन इनके काले है
बात बात पर करे बवाल
होते लाल पीले हैं ।
3)
होलिका दहन की तैयारी है
नीरव की आज गिरफ्तारी है
बुराई खत्म हो रही देखो
राजनीति में चर्चा जारी है ।
4)
कलयुग में ये दिन आया
बुआ जी का दिल घबराया
कुछ कठोर फैसले लेने पड़े
चुनाव न लड़ने का मन बनाया
बुआ ने होलिका दहन का
एक बार फिर महत्व बताया ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
1)
होली के रंग में
मिलती जब भंग है
उठती है दिल मे
उमंग और तरंग है
रंग की खुमारी मे
भंग की प्याली है
जीजा साली खेले
संग संग पिचकारी हैं
बीबी खड़ी सोच रही
दीदी खड़ी सोच रही
भंग मे रंग है
या रंग मे भंग है ।
भंग मे रंग है
या रंग में भंग है ।
2)
एक बात की कसक
रह गयी अब होली मे,
पीत रंग नहीं चढ़ा है
नेताओं की टोली मे
तन तो इनके नहीँ रंगे
मन इनके काले है
बात बात पर करे बवाल
होते लाल पीले हैं ।
3)
होलिका दहन की तैयारी है
नीरव की आज गिरफ्तारी है
बुराई खत्म हो रही देखो
राजनीति में चर्चा जारी है ।
4)
कलयुग में ये दिन आया
बुआ जी का दिल घबराया
कुछ कठोर फैसले लेने पड़े
चुनाव न लड़ने का मन बनाया
बुआ ने होलिका दहन का
एक बार फिर महत्व बताया ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
कविता
विषय:-और हंसी निकल गई....😁(हास्य-व्यंग्य)
दाल पूरी गली नहीं
जबान पूरी फिसल गई
पाक में शांति का नोबेल !
और हंसी निकल गई....😁
चुनाव देखो आये पास
नेताजी को वोट की प्यास
बदले रंग बदले दल
विचारधारा बदल गई
और हंसी निकल गई....😁
हंगामा और हुड़दंग
संसद में भी देखी जँग
माइक फेंके,लांघी मर्यादा
राजघाट श्रद्धांजलि दी गई
और हंसी निकल गई....😁
फोटो देख कर की सगाई
शादी में जो बारिश आई
उतरा मेकअप आई रुलाई
पति की घिग्घी बंध गई
और हंसी निकल गई....😁
सोचा था ये सब है मेरा
रिश्ते नाते दौलत- पैसा
क्षण में बदला मंजर ऐसा
सब मौत छीन कर ले गई
और हंसी निकल गई....😁
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-और हंसी निकल गई....😁(हास्य-व्यंग्य)
दाल पूरी गली नहीं
जबान पूरी फिसल गई
पाक में शांति का नोबेल !
और हंसी निकल गई....😁
चुनाव देखो आये पास
नेताजी को वोट की प्यास
बदले रंग बदले दल
विचारधारा बदल गई
और हंसी निकल गई....😁
हंगामा और हुड़दंग
संसद में भी देखी जँग
माइक फेंके,लांघी मर्यादा
राजघाट श्रद्धांजलि दी गई
और हंसी निकल गई....😁
फोटो देख कर की सगाई
शादी में जो बारिश आई
उतरा मेकअप आई रुलाई
पति की घिग्घी बंध गई
और हंसी निकल गई....😁
सोचा था ये सब है मेरा
रिश्ते नाते दौलत- पैसा
क्षण में बदला मंजर ऐसा
सब मौत छीन कर ले गई
और हंसी निकल गई....😁
स्वरचित
ऋतुराज दवे
दुर्गुण तो कुछ भी कम हो न सके ,
हर बार होलिका दहन सब करते रहे |
यहाँ खूब गुव्वारे बुराई के भर भर के ,
होलिका दहन होते ही जी भर के फूटे |
टोलियाँ चल पड़ी हैं खूब सजधज के ,
ढोलक ,मजीरा ,घुँघरू ,करताल ,लिऐ |
घूमते है सब राधा कृष्णा का रूप धर के ,
मन में भरे भंग के गोला की तंरग लिये |
सब मदमस्त मगन नचते थे ता था थैया ,
खोये तभी होली की हुड़दंग में वलमा |
उनके अम्मा बाबा चाचाचाची भाभीभैया ,
थक गये सबही पर कँहू नहीं मिले वलमा |
जब शाम भई आ गये तभी हमारे भैया ,
हम तैयार भये मैके को चले संग में भैया |
आधी रस्ता ही में रोके रस्ता ठाढे रहे सैंया ,
काहे चलीं मायके सजनी लौटा देओ भैया |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
हर बार होलिका दहन सब करते रहे |
यहाँ खूब गुव्वारे बुराई के भर भर के ,
होलिका दहन होते ही जी भर के फूटे |
टोलियाँ चल पड़ी हैं खूब सजधज के ,
ढोलक ,मजीरा ,घुँघरू ,करताल ,लिऐ |
घूमते है सब राधा कृष्णा का रूप धर के ,
मन में भरे भंग के गोला की तंरग लिये |
सब मदमस्त मगन नचते थे ता था थैया ,
खोये तभी होली की हुड़दंग में वलमा |
उनके अम्मा बाबा चाचाचाची भाभीभैया ,
थक गये सबही पर कँहू नहीं मिले वलमा |
जब शाम भई आ गये तभी हमारे भैया ,
हम तैयार भये मैके को चले संग में भैया |
आधी रस्ता ही में रोके रस्ता ठाढे रहे सैंया ,
काहे चलीं मायके सजनी लौटा देओ भैया |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
बुरा न मानो होली है!!
प्रगति मैदान में
शायद कोई मेला लगा था।
एक ओर,
एक नेता
भारत की प्रगति पर,
भाषण दे रहा था।
एक ओर,एक बच्चा
हाथ में कटोरा लिए खड़ा था।
नेता ने कहा,
देश के विकास की ,
योजनाएं बनाई हैं।
विकास कार्य जोरों पर है।
आर्थिक विकास के प्रयत्न
किए जा रहे हैं,
अभी कटोरों की संख्या कम है,
और कटोरे बनाए जा रहे हैं,
लोगों !!!
एक दिन ऐसा आएगा,
जब सभी भेदभाव मिट जाएंगे,
आज कुछ के हाथ में कटोरा है,
कल सबके हाथ में कटोरा थमाएंगे।
इस तरह,
देश का भविष्य बनाएंगे।
देश को उन्नति के ,
चरम शिखर पर पहुंचाएंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
प्रगति मैदान में
शायद कोई मेला लगा था।
एक ओर,
एक नेता
भारत की प्रगति पर,
भाषण दे रहा था।
एक ओर,एक बच्चा
हाथ में कटोरा लिए खड़ा था।
नेता ने कहा,
देश के विकास की ,
योजनाएं बनाई हैं।
विकास कार्य जोरों पर है।
आर्थिक विकास के प्रयत्न
किए जा रहे हैं,
अभी कटोरों की संख्या कम है,
और कटोरे बनाए जा रहे हैं,
लोगों !!!
एक दिन ऐसा आएगा,
जब सभी भेदभाव मिट जाएंगे,
आज कुछ के हाथ में कटोरा है,
कल सबके हाथ में कटोरा थमाएंगे।
इस तरह,
देश का भविष्य बनाएंगे।
देश को उन्नति के ,
चरम शिखर पर पहुंचाएंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
---जीजा की पहली होली---
बूट सूट टाई लगा के
जीजा जी आये ससुराल
मन में थी बड़ी उमंग
होली का था पहला साल
साली पानी लेकर आई
कुर्सी देकर इन्हें बिठाय
देख पास में सालियों को
मन ही मन खूब मुस्काय
सभी सालियाँ एक स्वर में
आओ जीजा खेलें होली
हाथ पकड़ कर खींचातानी
आई इतने में सालों की टोली
उठा ले गए सभी मिलकर
दिया पटक फिर गंदे नाले
क्या हुआ समझ न आया
हो गए कपड़े सारे काले
रंग की बाल्टी लाये भरकर
सिर पर दिया सारा डाल
बारी बारी से सबने मिलकर
गालों पर दिया लगा गुलाल
गुस्से में बोले जीजा जी
ये कैसी कैसी मजाक है
आये हुए मेहमान के साथ
कैसी नादानी धाक है
जीजा दिल में रहा कचोट
एक साली फट से बोली है
जीजा जी माफ करना हमको
बुरा न मानों होली है
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
बूट सूट टाई लगा के
जीजा जी आये ससुराल
मन में थी बड़ी उमंग
होली का था पहला साल
साली पानी लेकर आई
कुर्सी देकर इन्हें बिठाय
देख पास में सालियों को
मन ही मन खूब मुस्काय
सभी सालियाँ एक स्वर में
आओ जीजा खेलें होली
हाथ पकड़ कर खींचातानी
आई इतने में सालों की टोली
उठा ले गए सभी मिलकर
दिया पटक फिर गंदे नाले
क्या हुआ समझ न आया
हो गए कपड़े सारे काले
रंग की बाल्टी लाये भरकर
सिर पर दिया सारा डाल
बारी बारी से सबने मिलकर
गालों पर दिया लगा गुलाल
गुस्से में बोले जीजा जी
ये कैसी कैसी मजाक है
आये हुए मेहमान के साथ
कैसी नादानी धाक है
जीजा दिल में रहा कचोट
एक साली फट से बोली है
जीजा जी माफ करना हमको
बुरा न मानों होली है
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
विधा - मनहरण घनाक्षरी
==========
आधी रात बारा बजे , जोर - जोर घण्टा बजे ,
दौड़के महन्त आये , सोचा कोई चोर है |
दुर्गा ,काली,भोलेनाथ ,ब्रह्मा ,विष्णु जी थे साथ ,
गरुड़ जी , नन्दी , शेर , चूहा और मोर हैं |
देख बड़ा खुश हुआ , भाग्य का उदय हुआ ,
आधी रात जायें कहाँ , पूँछा करजोर है |
बोले लखनऊ जायें , जाति का प्रमाण लायें ,
घपला चलेगा नहीं , राजनीति घोर है |
#स्वरचित
#सन्तोष_कुमार_प्रजापति_माधव
#कबरई_महोबा_उत्तर_प्रदेश
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आधी रात बारा बजे , जोर - जोर घण्टा बजे ,
दौड़के महन्त आये , सोचा कोई चोर है |
दुर्गा ,काली,भोलेनाथ ,ब्रह्मा ,विष्णु जी थे साथ ,
गरुड़ जी , नन्दी , शेर , चूहा और मोर हैं |
देख बड़ा खुश हुआ , भाग्य का उदय हुआ ,
आधी रात जायें कहाँ , पूँछा करजोर है |
बोले लखनऊ जायें , जाति का प्रमाण लायें ,
घपला चलेगा नहीं , राजनीति घोर है |
#स्वरचित
#सन्तोष_कुमार_प्रजापति_माधव
#कबरई_महोबा_उत्तर_प्रदेश
विषय-" होली पर काव्यपाठ"
गली में होली की मंच रही थी धूम,
मोहल्ले के सारे नर हो रंगीले रहे थे झूम।
नुक्कड़ पर एक मंच बनाया,
जमकर सब ने फिर भांग घुटाया।
कविता का सबने दौर चलाया,
कर काव्य पाठ फिर रंग जमाया।
पी शर्मा जी ने जैसे ही भांग ठंडाई,
करने लगे अपनी बीवी की बढ़ाई।
पत्नी रानी तो मेरी बड़ी ही है समझदार,
भूले से ना करती वह लड़ने का विचार।
सुबह सवेरे मैं जल्दी उठ जाता हूँ,
बना चाय उसे बिस्तर पर दे आता हूँ।
देख मुझे वो मंद-मंद मुस्कुराती है,
फिर चादर तान के वो सो जाती है।
खाना जब बनाती ,प्रेम से मुझे बुलाती,
कर के मीठी-मीठी बात हुकुम ये सुनाती।
प्रिये आपसे सब्जी मस्त कटती है,
कह कर सब्जी काटने सरका जाती है।
गूंद आटा देती बड़े प्रेम से बेलन हाथ,
आओ पियाजी हम-तुम रोटी बेले साथ।
पत्नी मेरी सीधी साधी करती प्यारी बात,
पत्नी पर ही हमेशा मेरा मन है गीत गात।
मायके नहीं कभी घरवाली जाती है,
पियर वालों को हमेशा यही बुलाती है।
करती मुझसे देखो कितना प्यार,
छोड़ कर कभी नही जाती वह मेरा साथ।
सुन शर्मा जी की बात सभी मित्रगण बोले,
हां में हां मिलाते हुए अपने मन पिटारी खोलें।
यह आम नहीं बड़ी ही है खास बात,
हर घर में होती हर पति के साथ।
अगर शांति से चलाना है घर संसार,
जो कहती करो,घर की अलबेली सरकार।
भांग घोट रहा काका सोचे बस बात यही,
हर आदमी क्यों कर रहा है बात सही।
लगता है ठंडाई में भांग कम है हुआ,
इसलिए सबको नशे ने अभी नहीं छूआ।
लौट सिंहनी की माद में फिर जाना है,
फिर उसकी हां में हां ही मिलाना है।
शायद इसलिए चली है यह नई रीत,
हर कोई गाता है अब तो पत्नी प्रेम गीत।
©सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर ( महाराष्ट्र)
गली में होली की मंच रही थी धूम,
मोहल्ले के सारे नर हो रंगीले रहे थे झूम।
नुक्कड़ पर एक मंच बनाया,
जमकर सब ने फिर भांग घुटाया।
कविता का सबने दौर चलाया,
कर काव्य पाठ फिर रंग जमाया।
पी शर्मा जी ने जैसे ही भांग ठंडाई,
करने लगे अपनी बीवी की बढ़ाई।
पत्नी रानी तो मेरी बड़ी ही है समझदार,
भूले से ना करती वह लड़ने का विचार।
सुबह सवेरे मैं जल्दी उठ जाता हूँ,
बना चाय उसे बिस्तर पर दे आता हूँ।
देख मुझे वो मंद-मंद मुस्कुराती है,
फिर चादर तान के वो सो जाती है।
खाना जब बनाती ,प्रेम से मुझे बुलाती,
कर के मीठी-मीठी बात हुकुम ये सुनाती।
प्रिये आपसे सब्जी मस्त कटती है,
कह कर सब्जी काटने सरका जाती है।
गूंद आटा देती बड़े प्रेम से बेलन हाथ,
आओ पियाजी हम-तुम रोटी बेले साथ।
पत्नी मेरी सीधी साधी करती प्यारी बात,
पत्नी पर ही हमेशा मेरा मन है गीत गात।
मायके नहीं कभी घरवाली जाती है,
पियर वालों को हमेशा यही बुलाती है।
करती मुझसे देखो कितना प्यार,
छोड़ कर कभी नही जाती वह मेरा साथ।
सुन शर्मा जी की बात सभी मित्रगण बोले,
हां में हां मिलाते हुए अपने मन पिटारी खोलें।
यह आम नहीं बड़ी ही है खास बात,
हर घर में होती हर पति के साथ।
अगर शांति से चलाना है घर संसार,
जो कहती करो,घर की अलबेली सरकार।
भांग घोट रहा काका सोचे बस बात यही,
हर आदमी क्यों कर रहा है बात सही।
लगता है ठंडाई में भांग कम है हुआ,
इसलिए सबको नशे ने अभी नहीं छूआ।
लौट सिंहनी की माद में फिर जाना है,
फिर उसकी हां में हां ही मिलाना है।
शायद इसलिए चली है यह नई रीत,
हर कोई गाता है अब तो पत्नी प्रेम गीत।
©सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर ( महाराष्ट्र)
रंग भरे उमंग*
आओ खेलें रंग गुलाल।
मन से त्यागें भरे मलाल।।
रंगों का त्योहार है आया।
हर दिल में है प्रेम जगाया।।
नहीं किसी से बैर रखेगे।
मन में हर दम धैर्य रखेगे।।
रंग बिरंगी सजी है टोली।
भरी उमंगों की ले झोली।।
सभी एक सम दिखते है।
रंग तराना सब लिखते है।।
होली यही सिखाती नीर।
हर दिल का समझो पीर।।
मन में टीस कभी न पालें।
बहके न मन स्वयं सम्भालें।।
खुशियों की ये होली आई।
आप सभी को सदा बधाई।।
*रंग भरे उमंग* ये पावन।
लगे कितना ये मन भावन।।
नीर
आओ खेलें रंग गुलाल।
मन से त्यागें भरे मलाल।।
रंगों का त्योहार है आया।
हर दिल में है प्रेम जगाया।।
नहीं किसी से बैर रखेगे।
मन में हर दम धैर्य रखेगे।।
रंग बिरंगी सजी है टोली।
भरी उमंगों की ले झोली।।
सभी एक सम दिखते है।
रंग तराना सब लिखते है।।
होली यही सिखाती नीर।
हर दिल का समझो पीर।।
मन में टीस कभी न पालें।
बहके न मन स्वयं सम्भालें।।
खुशियों की ये होली आई।
आप सभी को सदा बधाई।।
*रंग भरे उमंग* ये पावन।
लगे कितना ये मन भावन।।
नीर
"बुरा न माने होली है"
खाकर भांग की गोली
होली खेलने निकली टोली
लाल,पीले रंग रंगीले
मानो उड़े तितली जैसे
पिया मिलन की लेकर आस
सखी पहूचीँ अपने पी के पास
लाल,पीला देखकर पिया ने
फरमाई एक बात
रंगी पुती बंदरिया लग रही हो आज
सखी ने तुंरत कमान संभाली
और बोली एक ही बात
बंदर के साथ बंदरिया ही
भली लगती है आज।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
खाकर भांग की गोली
होली खेलने निकली टोली
लाल,पीले रंग रंगीले
मानो उड़े तितली जैसे
पिया मिलन की लेकर आस
सखी पहूचीँ अपने पी के पास
लाल,पीला देखकर पिया ने
फरमाई एक बात
रंगी पुती बंदरिया लग रही हो आज
सखी ने तुंरत कमान संभाली
और बोली एक ही बात
बंदर के साथ बंदरिया ही
भली लगती है आज।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
Sher Singh Sarraf
विषय.. विडंबना
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
विडंबना पर मत लिखवाओ, मै तो इसका मारा हूँ।
सुबह-सुबह की इक विडंबना, तुमको मै बतलाता हूँ।
****
चली गयी बिजली थी बाप घर, रात को लौट ना आयी।
रात कटी मच्छर के संग और, खूब बजायी ताली ।
****
बाथरूम मे घुसा तो नल मे, पानी ही ना आयी।
विडंबना थी बाप के घर से, बिजली जो ना आयी।
****
बोला अच्छी चाय पिला दो, बच्चो की महतारी।
दूध फट गया फ्रिज बन्द है, बिजली से मै हारी।
****
बिजली पर मै नही लिख रहा, विडंबना पर भाई।
शेर हृदय पर विडंबना है, बिजली ने नाच नचाई।
****
***
**
स्वरचित... Sher Singh Sarraf
विषय.. विडंबना
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विडंबना पर मत लिखवाओ, मै तो इसका मारा हूँ।
सुबह-सुबह की इक विडंबना, तुमको मै बतलाता हूँ।
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चली गयी बिजली थी बाप घर, रात को लौट ना आयी।
रात कटी मच्छर के संग और, खूब बजायी ताली ।
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बाथरूम मे घुसा तो नल मे, पानी ही ना आयी।
विडंबना थी बाप के घर से, बिजली जो ना आयी।
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बोला अच्छी चाय पिला दो, बच्चो की महतारी।
दूध फट गया फ्रिज बन्द है, बिजली से मै हारी।
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बिजली पर मै नही लिख रहा, विडंबना पर भाई।
शेर हृदय पर विडंबना है, बिजली ने नाच नचाई।
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स्वरचित... Sher Singh Sarraf
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