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ब्लॉग संख्या :-343
मानव के अपने उसूल हैं
जो मंज़िल पर पहुँचाते
सत्य अहिंसा देश भक्ति से
सदमार्ग जग स्वयं बनाते
हर नर के अपने उसूल हैं
प्रगति पथ मार्ग बनाते
सद्स्नेह से जग जीवन को
दया स्नेह ममता बहाते
सिद्धान्त लक्ष्य जीवन का
खून पसीना बहता रहता
निशदिन परिश्रम के बल से
सदा स्वस्थ मंजिल बढ़ता
गर उसूल नहीं जीवन के
वह जीवन नरक कहाता
पशुवत जीवन जीता मात्र
वह जीवन मे कुछ न पाता
दीन दुःखी के सेवा करना
जीव जंतु पर दया बरसाना
मानवता के पथ पर चलना
स्नेह ममता से गले लगाना
भाग्यशाली मानव जीवन
कभी दुबारा नहीं मिलता
नश्वर जीव कब नष्ट हो
नर श्रेष्ठ जग पीड़ा हरता
मात्रभूमि पर जन्म लिया
अन्न नीर वायु जग देती
भारत माता सब कुछ देती
बदले में हमसे क्या लेती?
स्व0रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
जो मंज़िल पर पहुँचाते
सत्य अहिंसा देश भक्ति से
सदमार्ग जग स्वयं बनाते
हर नर के अपने उसूल हैं
प्रगति पथ मार्ग बनाते
सद्स्नेह से जग जीवन को
दया स्नेह ममता बहाते
सिद्धान्त लक्ष्य जीवन का
खून पसीना बहता रहता
निशदिन परिश्रम के बल से
सदा स्वस्थ मंजिल बढ़ता
गर उसूल नहीं जीवन के
वह जीवन नरक कहाता
पशुवत जीवन जीता मात्र
वह जीवन मे कुछ न पाता
दीन दुःखी के सेवा करना
जीव जंतु पर दया बरसाना
मानवता के पथ पर चलना
स्नेह ममता से गले लगाना
भाग्यशाली मानव जीवन
कभी दुबारा नहीं मिलता
नश्वर जीव कब नष्ट हो
नर श्रेष्ठ जग पीड़ा हरता
मात्रभूमि पर जन्म लिया
अन्न नीर वायु जग देती
भारत माता सब कुछ देती
बदले में हमसे क्या लेती?
स्व0रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
उसूल हमने भी अपने बनाये हैं
कुचलने पर भी पैर मंहकाये हैं ।।
खिताब यूँ न मिलता किसी को
कभी दैवालय में भी जगह पाये हैं ।।
आज उसूल वालों के नाम कहाये हैं
बृक्षों से पूछो क्या खुद फल खाये हैं ।।
माता पिता के कहने पर श्री राम ने
चौदह बर्ष वियावान वन में बिताये हैं ।।
मर्यादा पुरूषोत्तम के अलंकरण को
वह ऐसे ही नही ''शिवम" पाये हैं ।।
सूर्य चाँद सिद्धान्तों पर अडिग हैं
एक मानव ने ही सिद्धान्त गंवाये हैं ।।
मानवता पर कितने धब्बें हैं आज
ये सिद्धान्त से मुकर के ही आये हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/03/2019
कुचलने पर भी पैर मंहकाये हैं ।।
खिताब यूँ न मिलता किसी को
कभी दैवालय में भी जगह पाये हैं ।।
आज उसूल वालों के नाम कहाये हैं
बृक्षों से पूछो क्या खुद फल खाये हैं ।।
माता पिता के कहने पर श्री राम ने
चौदह बर्ष वियावान वन में बिताये हैं ।।
मर्यादा पुरूषोत्तम के अलंकरण को
वह ऐसे ही नही ''शिवम" पाये हैं ।।
सूर्य चाँद सिद्धान्तों पर अडिग हैं
एक मानव ने ही सिद्धान्त गंवाये हैं ।।
मानवता पर कितने धब्बें हैं आज
ये सिद्धान्त से मुकर के ही आये हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/03/2019
उसूल बनाये थे जब हमने , कभी सोचा ही नहीं था कि मुश्किल भी होगी |
कदम कदम पर इस जीवन में , मेरे सिध्दांतों की बेहद ही तौहीन होगी |
मेरा भोर का उठना और पूजन बंदन से , घरवालों की नींद खराब होगी |
सत्य बोलकर जीवन में जाने किस किससे , दुआ सलाम ही बंद होगी |
मेरे शाकाहारी भोजन करने से भी , कुछ मित्रों को बड़ी तकलीफ होगी |
घास फूस और निर्धन भोजन से अलंकृत , मेरी जीवन शैली भी प्रभावित होगी |
शादी विवाह उत्सव आयोजन में , निर्धारित समय पर पहुँचने से वोरियत होगी |
व्यवस्था में व्यस्त भाई बहिनों को भी , मुझे देख बड़ी ही तकलीफ होगी |
सरकारी दफ्तरों में जाने से , भ्रष्टाचारियों को काम करने में बड़ी कोफ्त होगी |
छोटे छोटे से काम करवाने में ही , मुझको शायद पूरी उम्र ही बितानी होगी |
निष्कर्ष यही निकला जीवन में , उसूलों की जरूरत तो जरूर ही होगी |
सत्य अहिंसा प्रेम सहयोग ही में , हमको आपनी तमाम उम्र बितानी होगी |
जो उसूल बोझ बन जायें जीवन में , परहित में उनसे हमको तौबा करनी होगी |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
कदम कदम पर इस जीवन में , मेरे सिध्दांतों की बेहद ही तौहीन होगी |
मेरा भोर का उठना और पूजन बंदन से , घरवालों की नींद खराब होगी |
सत्य बोलकर जीवन में जाने किस किससे , दुआ सलाम ही बंद होगी |
मेरे शाकाहारी भोजन करने से भी , कुछ मित्रों को बड़ी तकलीफ होगी |
घास फूस और निर्धन भोजन से अलंकृत , मेरी जीवन शैली भी प्रभावित होगी |
शादी विवाह उत्सव आयोजन में , निर्धारित समय पर पहुँचने से वोरियत होगी |
व्यवस्था में व्यस्त भाई बहिनों को भी , मुझे देख बड़ी ही तकलीफ होगी |
सरकारी दफ्तरों में जाने से , भ्रष्टाचारियों को काम करने में बड़ी कोफ्त होगी |
छोटे छोटे से काम करवाने में ही , मुझको शायद पूरी उम्र ही बितानी होगी |
निष्कर्ष यही निकला जीवन में , उसूलों की जरूरत तो जरूर ही होगी |
सत्य अहिंसा प्रेम सहयोग ही में , हमको आपनी तमाम उम्र बितानी होगी |
जो उसूल बोझ बन जायें जीवन में , परहित में उनसे हमको तौबा करनी होगी |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
हाइकु
टूटे उसूल
खुद हों भुक्तभोगी
अपना स्वार्थ।।
नियम बने
ग़रीबो की ख़ातिर
तोड़ें अमीर।।
नियम बद्ध
चले समस्त जग
कौन नियंता??
सिद्धांतवाद
एक जीवनशैली
कठिन ध्येय।।
उसूल बने
टूटने की ख़ातिर
अमीरी शौक।।
भावुक
टूटे उसूल
खुद हों भुक्तभोगी
अपना स्वार्थ।।
नियम बने
ग़रीबो की ख़ातिर
तोड़ें अमीर।।
नियम बद्ध
चले समस्त जग
कौन नियंता??
सिद्धांतवाद
एक जीवनशैली
कठिन ध्येय।।
उसूल बने
टूटने की ख़ातिर
अमीरी शौक।।
भावुक
विधा --मुक्त
------------^^^^^-------------
टांग आए हैं
अपने सिद्धांत
कालेज की उन दरोदीवारों
लौबियों,बगीचों,सभागारों में
जहाँ अव्वल आने के
जुनून में
देते थे धमाकेदार
तकरीरें औ'
युवा जोश में
खाते थे कसमें
सभी दीवारों को तोड़
गिराने की
कसम तो ये भी खाई
कि नया समाज
लायेंगे
जाति-भेद मिटायेंगे
क्या होती है गरीबी
नामोनिशां मिटायेंगे
क्या हुआ फिर
सारे उसूल रह गये धरे के धरे
क्योंकि हम भी
नेता बन गये।
डा.नीलम.अजमेर
------------^^^^^-------------
टांग आए हैं
अपने सिद्धांत
कालेज की उन दरोदीवारों
लौबियों,बगीचों,सभागारों में
जहाँ अव्वल आने के
जुनून में
देते थे धमाकेदार
तकरीरें औ'
युवा जोश में
खाते थे कसमें
सभी दीवारों को तोड़
गिराने की
कसम तो ये भी खाई
कि नया समाज
लायेंगे
जाति-भेद मिटायेंगे
क्या होती है गरीबी
नामोनिशां मिटायेंगे
क्या हुआ फिर
सारे उसूल रह गये धरे के धरे
क्योंकि हम भी
नेता बन गये।
डा.नीलम.अजमेर
चाहे भले लगे या बुरे लगे ,
मेरे उसूल कुछ हैं तो हैं ।
राहें भले ही हो कैसी भी ,
चलना इन पर मुझ को ही है ।
निर्णय गर लिए समझ बूझ ,
परिणाम मेरे अपने ही हैं ।
फिसल गया कभी पैर कहीं ,
तो टूटन का फिर दुख क्यों है ।
रोने से नही कुछ भी हासिल ,
मेरे सिद्धांत कुछ ऐसे ही है ।
उठूं संभलूं और बढ़ू आगे
फैसला मेरा खुद का तो है ।
मीना भारद्वाज
(स्वरचित एवं मौलिक
मेरे उसूल कुछ हैं तो हैं ।
राहें भले ही हो कैसी भी ,
चलना इन पर मुझ को ही है ।
निर्णय गर लिए समझ बूझ ,
परिणाम मेरे अपने ही हैं ।
फिसल गया कभी पैर कहीं ,
तो टूटन का फिर दुख क्यों है ।
रोने से नही कुछ भी हासिल ,
मेरे सिद्धांत कुछ ऐसे ही है ।
उठूं संभलूं और बढ़ू आगे
फैसला मेरा खुद का तो है ।
मीना भारद्वाज
(स्वरचित एवं मौलिक
सिद्धांत गर ऊँचे है तेरे..
व्यक्तित्व अपने आप निखर जाएगा...
उसूलों पर खुद के गर चल लिया तूने...
भविष्य तेरा संवर जाएगा..
लाख बुरा हो जमाना..
कदम कभी न डगमगाना..
चलते रहना सदा संमार्ग पर...
लक्ष्य का बनाकर ठिकाना..
बाधाएं तो आएगी..
पर सफलता भी लाएगी..
बना चलने को ही सिद्धांत अपना..
शिखर पर विजय पताका लहराएगी..
हौसलों की सीढ़ी बना..
आत्मविश्वास की वेदिका (railing) थामकर...
कदम दर कदम बढ़ाते जा...
सफलता का स्वाद चखते जा...
क्षणिक असफलताओं को भुलकर...
असत्य के भ्रमजाल तोड़कर...
नित कदम बढ़ाए जा...
छोड़ परवाह जमाने की...
नजर लक्ष्य पर टिकाए जा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
व्यक्तित्व अपने आप निखर जाएगा...
उसूलों पर खुद के गर चल लिया तूने...
भविष्य तेरा संवर जाएगा..
लाख बुरा हो जमाना..
कदम कभी न डगमगाना..
चलते रहना सदा संमार्ग पर...
लक्ष्य का बनाकर ठिकाना..
बाधाएं तो आएगी..
पर सफलता भी लाएगी..
बना चलने को ही सिद्धांत अपना..
शिखर पर विजय पताका लहराएगी..
हौसलों की सीढ़ी बना..
आत्मविश्वास की वेदिका (railing) थामकर...
कदम दर कदम बढ़ाते जा...
सफलता का स्वाद चखते जा...
क्षणिक असफलताओं को भुलकर...
असत्य के भ्रमजाल तोड़कर...
नित कदम बढ़ाए जा...
छोड़ परवाह जमाने की...
नजर लक्ष्य पर टिकाए जा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने "सिद्धांत "बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
मनोवृत्ति में पोषित
होते रहे दशानन
राम पुरुषोत्तम के सद्गुण
स्थापित कर गये जग में
साथ ही रावण भी कहीं गहरे
अपने तमोगुण के बीज बो चला
और अब देखो जिधर
राम बस संस्कारों की
बातो, पुस्तकों और ग्रंथों में
या फिर बच्चों को
पुरुषोत्तम बनाने का
असफल प्रयास भर है,
और रावणों की खेती
हर और लहरा रही है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने "सिद्धांत "बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
मनोवृत्ति में पोषित
होते रहे दशानन
राम पुरुषोत्तम के सद्गुण
स्थापित कर गये जग में
साथ ही रावण भी कहीं गहरे
अपने तमोगुण के बीज बो चला
और अब देखो जिधर
राम बस संस्कारों की
बातो, पुस्तकों और ग्रंथों में
या फिर बच्चों को
पुरुषोत्तम बनाने का
असफल प्रयास भर है,
और रावणों की खेती
हर और लहरा रही है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
सिद्धांतों को ताक में रख कर
शक की सूई जो मुझतक आई थी,
उसूलों पर पड़ रही भारी थी
पागलपन की हद तक बन आई थी।
जा रही अब दर से तेरे
कभी किसी के बीच न आई थी,
जब-जब विश्वास खोया है
रिश्तों पर पड़ी दरारें हैं
जज्बात जी भर रोया है।
दिल ने बाजी हारी थी,
प्रीत की लौ जो जलाई थी
सीने में दफन कर आई हूँ
यादों को लेकर चलना है
दूर तलक अब जाना है।
खता गर हुई हो कोई तो
नादान समझ भूल जाना
प्रीत दिल की न खोने देना
मिठी मुस्कान लबों पे रखना
घर सबका आबाद रहे
खुशियों से भरा दामन रहे
सिद्धांत भी एक कायम रहे
#सुकून से है जिंदगी जीना
गैरों को भी जीने देना#!
जिंदगानी सबकी खुशहाल रहे।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
शक की सूई जो मुझतक आई थी,
उसूलों पर पड़ रही भारी थी
पागलपन की हद तक बन आई थी।
जा रही अब दर से तेरे
कभी किसी के बीच न आई थी,
जब-जब विश्वास खोया है
रिश्तों पर पड़ी दरारें हैं
जज्बात जी भर रोया है।
दिल ने बाजी हारी थी,
प्रीत की लौ जो जलाई थी
सीने में दफन कर आई हूँ
यादों को लेकर चलना है
दूर तलक अब जाना है।
खता गर हुई हो कोई तो
नादान समझ भूल जाना
प्रीत दिल की न खोने देना
मिठी मुस्कान लबों पे रखना
घर सबका आबाद रहे
खुशियों से भरा दामन रहे
सिद्धांत भी एक कायम रहे
#सुकून से है जिंदगी जीना
गैरों को भी जीने देना#!
जिंदगानी सबकी खुशहाल रहे।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
"शीर्षक-उसूल/सिद्धांत"
सिद्धांत के बात मत पूछो
सिद्धांतवादी तो होते हम
शत्रु लाख बुरा चाहे
सदा भलाई करते हम।
बुद्ध के सिद्धांत के हम पूजारी
अंहिसा को अपनाये हम
अनिष्ट ना चाहे हम किसी का
शांति के पूजारी हम।
अधर्मी हम नही
पर अन्याय के विरुद्ध लड़ते हम
इतने भी हम अज्ञ नही
आगामी पल पहचानते हम।
अंहकारी हम नही
पर स्वाभिमान मे जीते हम
सिद्धांत का बात मत पूछो
सिद्धांतवादी तो होते हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव
सिद्धांत के बात मत पूछो
सिद्धांतवादी तो होते हम
शत्रु लाख बुरा चाहे
सदा भलाई करते हम।
बुद्ध के सिद्धांत के हम पूजारी
अंहिसा को अपनाये हम
अनिष्ट ना चाहे हम किसी का
शांति के पूजारी हम।
अधर्मी हम नही
पर अन्याय के विरुद्ध लड़ते हम
इतने भी हम अज्ञ नही
आगामी पल पहचानते हम।
अंहकारी हम नही
पर स्वाभिमान मे जीते हम
सिद्धांत का बात मत पूछो
सिद्धांतवादी तो होते हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव
उसूल /सिद्धांत
सुना था बुरी नज़र वालों का मुँह काला होता है
सियासत में कैसे सिद्धांतों का दिवाला होता है
डगरे का बैगन अभी पलटकर हुआ भी न वापस
उससे पहले ही इनका बदल गया पाला होता है
पक्के उसूल है, मौकापरस्ती भला कौन सी बला
जन सेवा में ही कभी, कोई एक घोटाला होता है
हिकमत भी रखते, बड़े खिदमतगार है गरीबों के
उसकी थाली का कौर तो इनका निवाला होता है
नवल बड़े नादां हैं हम फिर भी न समझ पाते हैं
वजह नादानियों की है जो ये गड़बड़झाला होता है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
सुना था बुरी नज़र वालों का मुँह काला होता है
सियासत में कैसे सिद्धांतों का दिवाला होता है
डगरे का बैगन अभी पलटकर हुआ भी न वापस
उससे पहले ही इनका बदल गया पाला होता है
पक्के उसूल है, मौकापरस्ती भला कौन सी बला
जन सेवा में ही कभी, कोई एक घोटाला होता है
हिकमत भी रखते, बड़े खिदमतगार है गरीबों के
उसकी थाली का कौर तो इनका निवाला होता है
नवल बड़े नादां हैं हम फिर भी न समझ पाते हैं
वजह नादानियों की है जो ये गड़बड़झाला होता है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
सिद्धांत /उसूल
अंत नहीं जिसका पहले
जो डर के आगे नहीं दहले,
उसूल के लिए कष्ट सह ले ,
सिद्धांतो को दिल में धरले ।
चाहे यह हो सत्य- धर्म क्षेत्र में ,
इसको मानें क्या कुरूक्षेत्र में ?
किसी को कठिन यह नहीं पलते ,
थक जाते सुझाव तत्व नहीं मिलते।
अज्ञान बेतुकी बातें सिंद्धात नहीं हैं ,
हर विषय का अंतिम निचोड वही हैं।
ज्ञान की आखिरी तह बताता है ,
सिद्ध हो गया वह जो अपनाता हैं।
सिंद्धांत समीक्षा अंतिम अद्वितीय,
वही सत्य सार तत्व अतुलनीय।
जो नियम बने बरसों -तरसों से ,
नहीं पकडे़ जाते मुट्ठी में सरसों से !
उसूल का पक्का रूपया हैं सक्का ,
हर कोई मुसिबत में हक्का-बक्का ।
राह चले थे बहुत त्यागी -तपस्वी ,
अमर सिद्धांतक चले छोड़ यशस्वी ।
उसूल पालन में सुख-दुख आते हैं,
सिद्धांतों के सहारे चोटी चढ़ जाते हैं।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल'
अंत नहीं जिसका पहले
जो डर के आगे नहीं दहले,
उसूल के लिए कष्ट सह ले ,
सिद्धांतो को दिल में धरले ।
चाहे यह हो सत्य- धर्म क्षेत्र में ,
इसको मानें क्या कुरूक्षेत्र में ?
किसी को कठिन यह नहीं पलते ,
थक जाते सुझाव तत्व नहीं मिलते।
अज्ञान बेतुकी बातें सिंद्धात नहीं हैं ,
हर विषय का अंतिम निचोड वही हैं।
ज्ञान की आखिरी तह बताता है ,
सिद्ध हो गया वह जो अपनाता हैं।
सिंद्धांत समीक्षा अंतिम अद्वितीय,
वही सत्य सार तत्व अतुलनीय।
जो नियम बने बरसों -तरसों से ,
नहीं पकडे़ जाते मुट्ठी में सरसों से !
उसूल का पक्का रूपया हैं सक्का ,
हर कोई मुसिबत में हक्का-बक्का ।
राह चले थे बहुत त्यागी -तपस्वी ,
अमर सिद्धांतक चले छोड़ यशस्वी ।
उसूल पालन में सुख-दुख आते हैं,
सिद्धांतों के सहारे चोटी चढ़ जाते हैं।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल'
विधा - कविता
अब होते शर्मिंदा क्यों न
क्यों नाता न रहा का,
जिंदगी के उसूलों से।
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
क्यों मन खिन्न नहीं होता,
पाप कर्म हो जाने से।
क्यों आंखों को लाज न आए
उनको आंख मिलाने में ।
दहेज के लिए प्रताड़ित करते,
पूछो तो इन दूल्हों से,
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
मानवता क्यों लापता है,
दया धर्म बीते युग की बातें।
क्यों न सोचते हम गरीब की,
भूखे पेट कैसे कटती रातें।
कितने दिन से नहीं जला है,
पूछो तो उन चूल्हों से,
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
संस्कार सब हो गये धूमिल,
अब कैसी पहचान है।
चरण बंदना, नमन को भूले,
हैलो, हाय में शान है।
कितना हम प्रभावित हो गये,
गोरों के ऊल जलूलों से,
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब।
अब होते शर्मिंदा क्यों न
क्यों नाता न रहा का,
जिंदगी के उसूलों से।
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
क्यों मन खिन्न नहीं होता,
पाप कर्म हो जाने से।
क्यों आंखों को लाज न आए
उनको आंख मिलाने में ।
दहेज के लिए प्रताड़ित करते,
पूछो तो इन दूल्हों से,
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
मानवता क्यों लापता है,
दया धर्म बीते युग की बातें।
क्यों न सोचते हम गरीब की,
भूखे पेट कैसे कटती रातें।
कितने दिन से नहीं जला है,
पूछो तो उन चूल्हों से,
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
संस्कार सब हो गये धूमिल,
अब कैसी पहचान है।
चरण बंदना, नमन को भूले,
हैलो, हाय में शान है।
कितना हम प्रभावित हो गये,
गोरों के ऊल जलूलों से,
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
अब होते शर्मिंदा क्यों न,
हम अपनी ही भूलों से।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब।
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"सिद्धांत/उसूल"
(1)🌵
परीक्षा बड़ी
उसूल की डगर
कांटो से भरी
(2) ☹️
संस्कृति बलि
सँस्कार तिलांजलि
सिद्धांत दुःखी
(3)🤓
रुपैया बाप
सिद्धांत औ आदर्श
रखें हैं ताक
(4)🌅
दिखाई राह
उसूलों पे चल के
चमका रवि
(5)🤔
कौन रखता?
उसूल है महंगे
जमाना सस्ता
(6)😇
अडिग रहे
सिद्धांत और सूत्र
हम बदले
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-"सिद्धांत/उसूल"
(1)🌵
परीक्षा बड़ी
उसूल की डगर
कांटो से भरी
(2) ☹️
संस्कृति बलि
सँस्कार तिलांजलि
सिद्धांत दुःखी
(3)🤓
रुपैया बाप
सिद्धांत औ आदर्श
रखें हैं ताक
(4)🌅
दिखाई राह
उसूलों पे चल के
चमका रवि
(5)🤔
कौन रखता?
उसूल है महंगे
जमाना सस्ता
(6)😇
अडिग रहे
सिद्धांत और सूत्र
हम बदले
स्वरचित
ऋतुराज दवे
शीर्षक - उसूल, सिद्धांत
विधा हाइकु।
आदर्श मेरा
निभाने हैं सिद्धांत
हर हालात।
उसूल भारी
कर्मण्यता ईमान
इंसा महान।
सिद्धांतों पर
अडिग स्थिर प्राणी
जीत हासिल।
शुभ्र सिद्धांत
धारण कर प्राणी
बन अमर ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
विधा हाइकु।
आदर्श मेरा
निभाने हैं सिद्धांत
हर हालात।
उसूल भारी
कर्मण्यता ईमान
इंसा महान।
सिद्धांतों पर
अडिग स्थिर प्राणी
जीत हासिल।
शुभ्र सिद्धांत
धारण कर प्राणी
बन अमर ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
उसूलों पर अब कोई चला नही करता
पाप और पुण्य की कोई चिन्ता नही करता
झूठ की बिसात पर सत्य डरा करता
सत्य और न्याय की कोई बात नही करता
पैसों के लालच में हर वक्त रहा करता
अपने सिद्धान्तों की तिलांजलि दिया करता
नैतिकता बोध को ताखे पर रखा करता
ईमानदारी की केवल बात किया करता
प्यार में भी आजकल झांसा दिया करता
माँ बाप को भी धोके में रखा करता
कभी कभी कोई उसूलों का मसीहा दिखा करता
शायद दुनिया का साम्राज्य उसी से ही चला करता
कत्ल होती मानवता का रक्षक बना करता
सागर में वो बूंद के समान हुआ करता
जिन्दगी में सबका सम्मान रहा करता
उसूलों पर अब कोई चला नही करता
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
पाप और पुण्य की कोई चिन्ता नही करता
झूठ की बिसात पर सत्य डरा करता
सत्य और न्याय की कोई बात नही करता
पैसों के लालच में हर वक्त रहा करता
अपने सिद्धान्तों की तिलांजलि दिया करता
नैतिकता बोध को ताखे पर रखा करता
ईमानदारी की केवल बात किया करता
प्यार में भी आजकल झांसा दिया करता
माँ बाप को भी धोके में रखा करता
कभी कभी कोई उसूलों का मसीहा दिखा करता
शायद दुनिया का साम्राज्य उसी से ही चला करता
कत्ल होती मानवता का रक्षक बना करता
सागर में वो बूंद के समान हुआ करता
जिन्दगी में सबका सम्मान रहा करता
उसूलों पर अब कोई चला नही करता
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
विधा लघु कविता
**
ये महापुरुषों की धरती है
इसकी विशिष्ट संस्कृति है
सिद्धांतों पर ये अडिग रहे
इनकी कहानी कहती है ।
कैसी भी हो परिस्थिति
मूल्यों पर विश्वास किया
सत्य का साथ ले हरिश्चंद्र
ने राज पाट सब छोड़ दिया ।
अहिंसा के सिद्धांत पर चल
देश को स्वतंत्र करवाया,
दशरथ ने त्यागे थे प्राण
वचन हेतु वन को गए राम ।
ऐसी माटी में जन्म लेकर
उसूलों पर न चल पाये हम
कठिन परिस्थिति हो राह में
टूट कर बिखर जाये हम ।
इच्छाशक्ति की हो रही कमी
लालच अपने पैर रहा पसार
नैतिकता हो रही तार तार
सिद्धांतों की बलि बार बार ।
एक पक्ष ये भी
बदलते समय के साथ बदले नहीँ
कुरीतियों को सिद्धांत समझ बैठे है
झूठी शान ,दिखावे ,जिद के लिए
खुशियों को दांव पर लगाते देखे हैं ।
आत्ममंथन का समय आ गया
अब चिरनिद्रा से जगना होगा
सत्य को जान,उसूलों पर अडिग रह
एक नया इतिहास रचना होगा ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
**
ये महापुरुषों की धरती है
इसकी विशिष्ट संस्कृति है
सिद्धांतों पर ये अडिग रहे
इनकी कहानी कहती है ।
कैसी भी हो परिस्थिति
मूल्यों पर विश्वास किया
सत्य का साथ ले हरिश्चंद्र
ने राज पाट सब छोड़ दिया ।
अहिंसा के सिद्धांत पर चल
देश को स्वतंत्र करवाया,
दशरथ ने त्यागे थे प्राण
वचन हेतु वन को गए राम ।
ऐसी माटी में जन्म लेकर
उसूलों पर न चल पाये हम
कठिन परिस्थिति हो राह में
टूट कर बिखर जाये हम ।
इच्छाशक्ति की हो रही कमी
लालच अपने पैर रहा पसार
नैतिकता हो रही तार तार
सिद्धांतों की बलि बार बार ।
एक पक्ष ये भी
बदलते समय के साथ बदले नहीँ
कुरीतियों को सिद्धांत समझ बैठे है
झूठी शान ,दिखावे ,जिद के लिए
खुशियों को दांव पर लगाते देखे हैं ।
आत्ममंथन का समय आ गया
अब चिरनिद्रा से जगना होगा
सत्य को जान,उसूलों पर अडिग रह
एक नया इतिहास रचना होगा ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विधा-लघु कविता
सिद्धान्तों की लग रही बोली है
झूठ फरेब आज इसके हमजोली हैं
करते हैं बातें सिद्धान्तों की
रहती है नज़र फायदे मुनाफों पर
रिश्तों में भी आई खटास है
फ़िर भी सिद्धान्तों पर लगी आस है
कि शायद जीवन मूल्यों पर फिर विश्वास जागे
और सिद्धान्तों पर लोग बढे आगे
यह गिरावट आगे न बढ़ पाए
फिर जीवन मधुमय बन जाए।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
सिद्धान्तों की लग रही बोली है
झूठ फरेब आज इसके हमजोली हैं
करते हैं बातें सिद्धान्तों की
रहती है नज़र फायदे मुनाफों पर
रिश्तों में भी आई खटास है
फ़िर भी सिद्धान्तों पर लगी आस है
कि शायद जीवन मूल्यों पर फिर विश्वास जागे
और सिद्धान्तों पर लोग बढे आगे
यह गिरावट आगे न बढ़ पाए
फिर जीवन मधुमय बन जाए।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
जिंदगी का यही हैं एक उसूल
संभलना भी खुद ही हैं
गिरना भी खुद ही हैं
फिर जिंदगी का एक फलसफा ढूँढना हैं .
इन्सान के जीने का भी अजब उसूल हैं
दोस्त बना लेता हैं दिल में तस्वीर बना लेता हैं
दुश्मन बना लेता हैं नजरों से उतार लेता हैं
यही जिंदगी का दस्तूर उसूल हैं .
उसूल तो बहुत हैं जिंदगी के
कभी डरकर जीना पड़ता हैं
कभी मुस्करा कर चलना पड़ता हैं
उसूल के नाम पर चलना ही तो जिंदगी हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
संभलना भी खुद ही हैं
गिरना भी खुद ही हैं
फिर जिंदगी का एक फलसफा ढूँढना हैं .
इन्सान के जीने का भी अजब उसूल हैं
दोस्त बना लेता हैं दिल में तस्वीर बना लेता हैं
दुश्मन बना लेता हैं नजरों से उतार लेता हैं
यही जिंदगी का दस्तूर उसूल हैं .
उसूल तो बहुत हैं जिंदगी के
कभी डरकर जीना पड़ता हैं
कभी मुस्करा कर चलना पड़ता हैं
उसूल के नाम पर चलना ही तो जिंदगी हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
सिद्धांत सभी ताक में रखकर,
अब राजनीति में उतर गया हूँ।
अच्छी प्रकार से इसमें घुलकर,
सच पूरी तरह से निचुड गया हूँ।
रंगरूप बदलने में माहिर हूँ मै,
नित गिरगिट जैसा रंग बदलता।
किसी स्वरूप में नजर आऊं मै,
फिर करवट बदले रंग बदलता।
अभी तुम्हारी तारीफ करूँ मै।
दूजे घर पहुंच बुराई करूँ मै।
सच्ची चिकना घडा बन गया,
नाटक कर के लडाई करूँ मै।
जब चाहूं बन जाऊँ खिलाड़ी।
चौके छक्कों की बरसात करूँ।
उसूल बदलकर पाक पहुंचता,
मै स्वछंद स्वदेश से घात करूँ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
अब राजनीति में उतर गया हूँ।
अच्छी प्रकार से इसमें घुलकर,
सच पूरी तरह से निचुड गया हूँ।
रंगरूप बदलने में माहिर हूँ मै,
नित गिरगिट जैसा रंग बदलता।
किसी स्वरूप में नजर आऊं मै,
फिर करवट बदले रंग बदलता।
अभी तुम्हारी तारीफ करूँ मै।
दूजे घर पहुंच बुराई करूँ मै।
सच्ची चिकना घडा बन गया,
नाटक कर के लडाई करूँ मै।
जब चाहूं बन जाऊँ खिलाड़ी।
चौके छक्कों की बरसात करूँ।
उसूल बदलकर पाक पहुंचता,
मै स्वछंद स्वदेश से घात करूँ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
मैं उसूलों का पक्का ,
सिद्धांतो का चारण।
इन्हे पालने का बस
एक ही कारण
ये कर देते
हर समस्या का निवारण ।
कबाड़ हो चुके
उसूलों का ठेला ,
झूठे कमजोर सिद्धांतो का
लगा रखा है
भारी-भरकम मेला ।
मैं नेता
भला मैं कहां हूँ अकेला ।
देखना तुम बह जाएगी जनता
लाया अबकी मैं
सुनामी वादों का रेला ।
सत्य की पथरीली जमीन पर
उगा रखी है मैंने अलबेली घास
नाम है उसका कुछ खास
झमेला ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
सिद्धांतो का चारण।
इन्हे पालने का बस
एक ही कारण
ये कर देते
हर समस्या का निवारण ।
कबाड़ हो चुके
उसूलों का ठेला ,
झूठे कमजोर सिद्धांतो का
लगा रखा है
भारी-भरकम मेला ।
मैं नेता
भला मैं कहां हूँ अकेला ।
देखना तुम बह जाएगी जनता
लाया अबकी मैं
सुनामी वादों का रेला ।
सत्य की पथरीली जमीन पर
उगा रखी है मैंने अलबेली घास
नाम है उसका कुछ खास
झमेला ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विधा-हाइकु
1.
मिले मंजिल
उसूलों पर चल
जीवन भर
2.
सत्य, अहिंसा
सिद्धांत गांधी जी के
बने अमर
3.
झूठे उसूल
पतन का कारण
अपनाएं क्यों
4.
अच्छे उसूल
अतिथि देवो भव
सोच हमारी
5.
नेक सिद्धांत
आदर्श सनातन
प्यारी संस्कृति
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
1.
मिले मंजिल
उसूलों पर चल
जीवन भर
2.
सत्य, अहिंसा
सिद्धांत गांधी जी के
बने अमर
3.
झूठे उसूल
पतन का कारण
अपनाएं क्यों
4.
अच्छे उसूल
अतिथि देवो भव
सोच हमारी
5.
नेक सिद्धांत
आदर्श सनातन
प्यारी संस्कृति
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
कुछ नियमों का केवल कोरा निर्धारण
उसूल कदापि कहा जा सकता नही
यह शब्द बड़ा सामान्य भले ही लगता
प्रतिपादन इसका जटिल बन जाता
यह महज़ एक शब्द भर भी नही
नियमों को नियमित बनाना पड़ता
स्थिति चाहे कैसी भी हो
उसूलों पर अटल रहना ही पड़ता
ये क्षणिक नही हुआ करते है
निरंतरता के बोधक मापांक होते हैं
व्यावहारिक रूप उसूल का होता
सजगता से व्यवहार में अपनाना पड़ता
इच्छाशक्ति की परीक्षा लेते है उसूल
अपने पराये का भेद मिटाकर
समरूपी सदा रहना हितकारी होता
विवेकी होने का दे देते प्रमाण
सकारात्मकता का पर्याय बनते उसूल
उसूल व्यक्तिवादी नही समाजवादी होते
उद्देश्य इनका समाजोन्मुखी हुआ करता
उसूलों से होती इंसान की पहचान
पूर्ति उसूलों की बना देती महान
नैतिकता का प्रत्यक्ष दृष्टांत बनते
कालजयी आदर्श उसूल तब बनते ।
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
उसूल कदापि कहा जा सकता नही
यह शब्द बड़ा सामान्य भले ही लगता
प्रतिपादन इसका जटिल बन जाता
यह महज़ एक शब्द भर भी नही
नियमों को नियमित बनाना पड़ता
स्थिति चाहे कैसी भी हो
उसूलों पर अटल रहना ही पड़ता
ये क्षणिक नही हुआ करते है
निरंतरता के बोधक मापांक होते हैं
व्यावहारिक रूप उसूल का होता
सजगता से व्यवहार में अपनाना पड़ता
इच्छाशक्ति की परीक्षा लेते है उसूल
अपने पराये का भेद मिटाकर
समरूपी सदा रहना हितकारी होता
विवेकी होने का दे देते प्रमाण
सकारात्मकता का पर्याय बनते उसूल
उसूल व्यक्तिवादी नही समाजवादी होते
उद्देश्य इनका समाजोन्मुखी हुआ करता
उसूलों से होती इंसान की पहचान
पूर्ति उसूलों की बना देती महान
नैतिकता का प्रत्यक्ष दृष्टांत बनते
कालजयी आदर्श उसूल तब बनते ।
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
विषय-
उसूल/सिद्धांत
न बदल जीवन के
उसूलों को
जैसे बदलतेमौसम
कभी ठंडा तो कभी
गर्म,है कभी सुखा
तो कभी पतझड़।
मिलेंगे रास्ते भटकने को बहुत
होंगे सपने साकार
जब चलेंगे एक राह होकर एकाकार ।
लिया जो तूने संकल्प चलने का
अपने उसूलों पर
अपने सिद्धांतों पर
चल होकर एकाग्र
है दिव्य ज्योति तेरे
भीतर ।
मेहनत की हवा में
अन्तस् के प्रकाश
को बढ़ा मजबूती से अपने कदम
कर दूर मन का अंधकार ।
जो करेगा मन की
ज्योति प्रज्वलित
असम्भव दृढ़ संकल्प से सम्भव
कर पायेगा जीवन
लक्ष्य ।।
अंजना सक्सेना
उसूल/सिद्धांत
न बदल जीवन के
उसूलों को
जैसे बदलतेमौसम
कभी ठंडा तो कभी
गर्म,है कभी सुखा
तो कभी पतझड़।
मिलेंगे रास्ते भटकने को बहुत
होंगे सपने साकार
जब चलेंगे एक राह होकर एकाकार ।
लिया जो तूने संकल्प चलने का
अपने उसूलों पर
अपने सिद्धांतों पर
चल होकर एकाग्र
है दिव्य ज्योति तेरे
भीतर ।
मेहनत की हवा में
अन्तस् के प्रकाश
को बढ़ा मजबूती से अपने कदम
कर दूर मन का अंधकार ।
जो करेगा मन की
ज्योति प्रज्वलित
असम्भव दृढ़ संकल्प से सम्भव
कर पायेगा जीवन
लक्ष्य ।।
अंजना सक्सेना
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