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ब्लॉग संख्या :-342
"उपकार"
दोहे (समीक्षार्थ)
उपकारों की आड़ में,करना नही अधर्म
सबको मिलता फल यहाँ, जीवन का ये मर्म।।
मधुर प्रेम के भाव ले,करना तुम उपकार
दुखियों के दुख दूर हो,कर्म करो साकार।।
दया-प्रेम,उपकार के,अद्भुत ऐसे रूप
विस्तृत नभ में छा रहे,तारे सुखद स्वरूप।।
उपकारी हो मन सदा,निश्छल शांत विचार
राह सत्य की चल पकड़,सत्युग हो विस्तार।।
उपकारों की खाद का,फल तू मीठा जान
तन मन जो अर्पित करें,जीवन बने महान।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
दोहे (समीक्षार्थ)
उपकारों की आड़ में,करना नही अधर्म
सबको मिलता फल यहाँ, जीवन का ये मर्म।।
मधुर प्रेम के भाव ले,करना तुम उपकार
दुखियों के दुख दूर हो,कर्म करो साकार।।
दया-प्रेम,उपकार के,अद्भुत ऐसे रूप
विस्तृत नभ में छा रहे,तारे सुखद स्वरूप।।
उपकारी हो मन सदा,निश्छल शांत विचार
राह सत्य की चल पकड़,सत्युग हो विस्तार।।
उपकारों की खाद का,फल तू मीठा जान
तन मन जो अर्पित करें,जीवन बने महान।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
जिन्दगी के दिन दो चार
करले बन्दे परोपकार ।।
कहाँ शाम हो जाये कब
साथ जायें ये पुन्य हमार ।।
कोई न साथी कोई न मीत
पुन्य ही हमें दिलायें जीत ।।
लोक परलोक इससे बने
परमार्थ से करले ले प्रीत ।।
माँगे यहाँ न कुछ मिला
सोच का अंकुर ही खिला ।।
सोच सुधार सदा ''शिवम"
पुन्य का जड़ पाताल चला ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/03/2019
करले बन्दे परोपकार ।।
कहाँ शाम हो जाये कब
साथ जायें ये पुन्य हमार ।।
कोई न साथी कोई न मीत
पुन्य ही हमें दिलायें जीत ।।
लोक परलोक इससे बने
परमार्थ से करले ले प्रीत ।।
माँगे यहाँ न कुछ मिला
सोच का अंकुर ही खिला ।।
सोच सुधार सदा ''शिवम"
पुन्य का जड़ पाताल चला ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/03/2019
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
लोक पर उपकार में आतिथ्य और सत्कार में।
प्राणों को अर्पित किया ऋषियों ने भी बलिहार में।
शूर- वीरो की गाथाओं के भी जहाँ अम्बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
गौतम और नानक है देते प्रेम का सन्देश है।
शश्य- श्यामल इस धरा का भक्ति भाव वेश है।
किंचित डिगे न मन कभी यही भान हर बार है।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
करूणा दया का भाव हो शान्त शीतल छांव हो।
धर्म, सेवा, कर्म, निष्ठा से सुशोभित हर गांव हो।
ऐसा ही पावन सदा पावनी गंगा मां का धार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
जिस धरा पर जन्मे प्रभु राम कृष्ण अवतार हैं।
शत शत नमन हे पुण्य भूमि कोटिषः नमस्कार है।
विपिन सोहल
किसी के काम हम आते
वह उपकार होता है
पराया दर्द खुद सहले
पर हित बीज बोता है
चिलचिलाती धूप में पथिक
त्रसित जल नीर ही देदो
दुःखी जन हीन दीन जग में
उन्हें बस आसरा देदो
ऋषि दधिची कर्ण महादानी
बलि हरिश्चंद्र क्या कम थे
परोपकार बस लक्ष्य उनका
सुदामा कृष्ण क्या कम थे
परोपकार पुण्य जीवन
परोपकार शांति देता
परोपकार के बल पर
नर श्रेष्ठ पुण्य ही लेता
दीन रक्षा हेतु नारायण
वे अवतारी स्वयं बने थे
धर्म की रक्षार्थ हेतु हमेशा
जन जनार्दन प्रिय बने थे
अजर अमर न देह हमारी
सबको एक दिन तो जाना है
परोपकार के बल पर ही
सन्तोषमयी जीवन जीना है
आत्मा सो परमात्मा होती
परोपकार जग की थाती
परहित जीवन अर्पण करते
गीत गाएँ मिल भांति भांति
तेरा मेरा कुछ भी नहीं है
लोभ मोह थोड़ा तो छोड़ो
दीन बन्धु स्वयं बन जाओ
परोपकार के पथ पर दौड़ो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
वह उपकार होता है
पराया दर्द खुद सहले
पर हित बीज बोता है
चिलचिलाती धूप में पथिक
त्रसित जल नीर ही देदो
दुःखी जन हीन दीन जग में
उन्हें बस आसरा देदो
ऋषि दधिची कर्ण महादानी
बलि हरिश्चंद्र क्या कम थे
परोपकार बस लक्ष्य उनका
सुदामा कृष्ण क्या कम थे
परोपकार पुण्य जीवन
परोपकार शांति देता
परोपकार के बल पर
नर श्रेष्ठ पुण्य ही लेता
दीन रक्षा हेतु नारायण
वे अवतारी स्वयं बने थे
धर्म की रक्षार्थ हेतु हमेशा
जन जनार्दन प्रिय बने थे
अजर अमर न देह हमारी
सबको एक दिन तो जाना है
परोपकार के बल पर ही
सन्तोषमयी जीवन जीना है
आत्मा सो परमात्मा होती
परोपकार जग की थाती
परहित जीवन अर्पण करते
गीत गाएँ मिल भांति भांति
तेरा मेरा कुछ भी नहीं है
लोभ मोह थोड़ा तो छोड़ो
दीन बन्धु स्वयं बन जाओ
परोपकार के पथ पर दौड़ो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
छंद मुक्त कविता
विषय-उपकार
🌻🌷🌻
हर अदा लगती मुझे उसकी कुछ खास है
माँ जगत जननी है जो करती सभी पर उपकार है
🌷🌻🌷
प्यार से नित हाथ रखती करते सब सत्कार हैं
दुष्ट के दुष्कर्मों का करती तू संहार है
🌷🌻🌷
पापियों का बनकर तू रखती नित आकार है
दूर से तू देखती सबके कर्मो के प्रकार है
🌷🌻🌷
दुर्गा, काली ,लक्ष्मी, चण्डी तेरेत्र कितने नाम हैं
हर दिल में तू है बसती वो तेरा एक धाम है
🌷🌻🌷
भक्त जोडें हाथ तेरे करती तू उपकार है
लगा गले जब तू है. लेती होता सुख संचार है
🌷🌻🌷
रख हाथ मेरे सर पर तू माँ खडे सभी दरबार हैं
लाज मेरी रख ले तू माँ " नीलू"की पुकार है
🌷🌻🌷
🍁स्वरचित🍁
विषय-उपकार
🌻🌷🌻
हर अदा लगती मुझे उसकी कुछ खास है
माँ जगत जननी है जो करती सभी पर उपकार है
🌷🌻🌷
प्यार से नित हाथ रखती करते सब सत्कार हैं
दुष्ट के दुष्कर्मों का करती तू संहार है
🌷🌻🌷
पापियों का बनकर तू रखती नित आकार है
दूर से तू देखती सबके कर्मो के प्रकार है
🌷🌻🌷
दुर्गा, काली ,लक्ष्मी, चण्डी तेरेत्र कितने नाम हैं
हर दिल में तू है बसती वो तेरा एक धाम है
🌷🌻🌷
भक्त जोडें हाथ तेरे करती तू उपकार है
लगा गले जब तू है. लेती होता सुख संचार है
🌷🌻🌷
रख हाथ मेरे सर पर तू माँ खडे सभी दरबार हैं
लाज मेरी रख ले तू माँ " नीलू"की पुकार है
🌷🌻🌷
🍁स्वरचित🍁
नीलम शर्मा#नीलू
नदी के उपकार मानव पर
दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते
कैसे तूं राह बनाती कंटक कंकर पाथर में
चलती बढती निरबाध निरंतर मस्ती में
कितने उपकार धरा पर, मानव पशु पाखी पर भी
उदगम कहां कहां अंत नही सोचती पल को भी
बांध ते तुझ को फिर भी वरदान विद्युत का देती
सदा प्यासो को नीर और खेतो को जीवन देती
तूं कर्त्तव्य की परिभाषा तूं वरदायनी सरिते
नमन तूझे है जगजननी निर्झरी सारंग सरिते ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते
कैसे तूं राह बनाती कंटक कंकर पाथर में
चलती बढती निरबाध निरंतर मस्ती में
कितने उपकार धरा पर, मानव पशु पाखी पर भी
उदगम कहां कहां अंत नही सोचती पल को भी
बांध ते तुझ को फिर भी वरदान विद्युत का देती
सदा प्यासो को नीर और खेतो को जीवन देती
तूं कर्त्तव्य की परिभाषा तूं वरदायनी सरिते
नमन तूझे है जगजननी निर्झरी सारंग सरिते ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
और क्या उपकार चाहिए मुझको
प्रभु तुमने सबकुछ तो दे डाला।
मानव जीवन दिया हम सबको तूने,
अमृत बांट हमें पिया हलाहल हाला।
एक उपकार यही करना हे भगवन,
कुछ पुरूषार्थ परोपकार कर पाऊं।
जब तक रहूं मातृभूमि पर जीवित,
सदा निस्वार्थ सदोपकार कर पाऊं।
तनमनधन सब लगे किसी काम में
करूणा दया प्रेम प्रीत जाग्रत हो।
हर जन मन खुशहाल रहे जगत में,
ज्ञानवान हों सब उर प्रकाशित हो।
स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
प्रभु तुमने सबकुछ तो दे डाला।
मानव जीवन दिया हम सबको तूने,
अमृत बांट हमें पिया हलाहल हाला।
एक उपकार यही करना हे भगवन,
कुछ पुरूषार्थ परोपकार कर पाऊं।
जब तक रहूं मातृभूमि पर जीवित,
सदा निस्वार्थ सदोपकार कर पाऊं।
तनमनधन सब लगे किसी काम में
करूणा दया प्रेम प्रीत जाग्रत हो।
हर जन मन खुशहाल रहे जगत में,
ज्ञानवान हों सब उर प्रकाशित हो।
स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
वृद्धाश्रम में खड़ी
आँखों में हैं नमी
दिया था जन्म कभी
आज वह बोझ लगी
किये हैं उपकार कई
बात जो भूले सभी
खुद गीले में सोई
सुखे में सुलाती रही
नौ महीने गर्भ में
बोझ वह उठाती रही
गिरने दिया नहीं
चलाना सिखाती रही
न पढ़ी न लिखी
स्कूल भेजती रही
बड़ा आदमी बच्चा बने
दुआएं मांगती रही
सदा ही बच्चों की खातिर
समाज से लड़ती रही
पति की मुत्यु के बाद
बहुत असहाय लगी
वृद्धाश्रम में छोड़कर
जाते बेटा बहू कहीं
क्या सोच रही हो
बेटी से पूछा यही
आपको और मां को
छोड़ना हैं एक दिन यही
जैसी करनी वैसी भरनी
मां ने सिखाया यही
डॉ स्वाति श्रीवास्तव
आँखों में हैं नमी
दिया था जन्म कभी
आज वह बोझ लगी
किये हैं उपकार कई
बात जो भूले सभी
खुद गीले में सोई
सुखे में सुलाती रही
नौ महीने गर्भ में
बोझ वह उठाती रही
गिरने दिया नहीं
चलाना सिखाती रही
न पढ़ी न लिखी
स्कूल भेजती रही
बड़ा आदमी बच्चा बने
दुआएं मांगती रही
सदा ही बच्चों की खातिर
समाज से लड़ती रही
पति की मुत्यु के बाद
बहुत असहाय लगी
वृद्धाश्रम में छोड़कर
जाते बेटा बहू कहीं
क्या सोच रही हो
बेटी से पूछा यही
आपको और मां को
छोड़ना हैं एक दिन यही
जैसी करनी वैसी भरनी
मां ने सिखाया यही
डॉ स्वाति श्रीवास्तव
ईश्वर
*****
गीतिका
÷÷÷÷÷
हरिगीतिका छ॔द में ,,,
2212,2212 2212 2212
**************************
ईश्वर जगत की चेतना,संसार के आधार हैं /
निर्गुण सगुण हर रूप में छाए हुए साकार हैं/
~~
मनु मोह-माया से ग्रसित,भूले सभी अनुदान को,
जो मिल रहा,जो मिल चुका,भगवान के #उपकार हैं/
~~
सब धर्म की वाणी वही,सदज्ञान के हरि रूप हैं ,
करुणा दया-सागर वही,प्रभु प्रेम के अवतार हैं/
~~
सूरज गगन,धरती चमन,संसार के मालिक वही,
सबके हृदय मे बास करते,जग-सृजन सूत्राधार हैं/
~~
हम कर्म-पथ पे चल रहे,शुभ कर्म कर लें हम सभी,
बस जिंदगी में कर्मफल पर ही हमे अधिकार है/
~~
हरि आदि हैं आगोचरा,भव-सिंधु का प्रारूप हैं,
जब जिंदगी-नौका फंसे,प्रभु नाँव खेवनहार हैं/
~~
मस्जिद,इसाई धर्म,मंदिर -साधना प्रभु रूप हैं,
पाहन अगर मानो शिवालय,हृदय मे ओंकार हैं//
~~
वो राम हैं वो श्याम हैं,साईं-गुरू -सतज्ञान में,
अनजान हम प्राणी सभी,प्रभु ज्ञान के आगार हैं //
****************************
*****
गीतिका
÷÷÷÷÷
हरिगीतिका छ॔द में ,,,
2212,2212 2212 2212
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ईश्वर जगत की चेतना,संसार के आधार हैं /
निर्गुण सगुण हर रूप में छाए हुए साकार हैं/
~~
मनु मोह-माया से ग्रसित,भूले सभी अनुदान को,
जो मिल रहा,जो मिल चुका,भगवान के #उपकार हैं/
~~
सब धर्म की वाणी वही,सदज्ञान के हरि रूप हैं ,
करुणा दया-सागर वही,प्रभु प्रेम के अवतार हैं/
~~
सूरज गगन,धरती चमन,संसार के मालिक वही,
सबके हृदय मे बास करते,जग-सृजन सूत्राधार हैं/
~~
हम कर्म-पथ पे चल रहे,शुभ कर्म कर लें हम सभी,
बस जिंदगी में कर्मफल पर ही हमे अधिकार है/
~~
हरि आदि हैं आगोचरा,भव-सिंधु का प्रारूप हैं,
जब जिंदगी-नौका फंसे,प्रभु नाँव खेवनहार हैं/
~~
मस्जिद,इसाई धर्म,मंदिर -साधना प्रभु रूप हैं,
पाहन अगर मानो शिवालय,हृदय मे ओंकार हैं//
~~
वो राम हैं वो श्याम हैं,साईं-गुरू -सतज्ञान में,
अनजान हम प्राणी सभी,प्रभु ज्ञान के आगार हैं //
****************************
किस किस उपकार को...
गिनूँ...या करून औरों पर...
या ..जताऊँ...
कितने उपकार मैंने किये हैं....
इंसान कर्मों से बंधा है....
कर्म है तो जीवन है....
सृष्टि अपने कर्म कर रही...
इंसान क्या हर कोई....
पेड़ पौधे हों...जीव जंतु हों....
सब सृष्टि में जी रहे हैं...
क्या सृष्टि ने उपकार जताया....
या इसके रचयिता ने....
कि तुम सिर्फ मेरी वजह से सांस ले रहे हो....
फिर भी....
हम अपने कर्मों को करते हुए...
भूल जाते हैं ये सब...
कि हम को उपकार...
जताने का हक़ नहीं हैं...
फिर भी जताते हैं...
क्योंकि साहस नहीं है हम में...
शुक्रिया अदा करने का....
माँ बाप का...गुरु का...
बंधू...सखा... कोई भी...
किसी का शुक्रिया नहीं करते....
जब उनका शुक्रिया नहीं करते तो...
भगवान् का सृष्टि का कैसे याद आये...
इसीलिए हम परेशान हैं...
सुकून खो रहे हैं....
इंसान को ही नहीं....
बल्कि भगवान् को धोका दे रहे हैं....
*देते हैं भगवान् को धोका इंसान को क्या छोड़ेंगे*
'मलंग बाबा' के मुख से जो गीतकार और गायक ने
"उपकार" में कटु सत्य कहा....
आज भी हमारी आत्मा को झिंझोड़ता है...
पर क्या हम जगे ?
नहीं जग सकते....
क्योंकि हम अपने ऊपर उपकार नहीं कर रहे...
औरों पर क्या उपकार किये...वो जता रहे हैं...
मैंने ये किया वो किया...सब कुछ दिया...
पर क्या सच में दिया कुछ ? क्या था अपना जो दिया ?
"श्री गीता" के वचनों को भी अनदेखा कर दिया?
इसी लिए हम शान्ति से सोये नहीं हैं...
और जब सोये नहीं शांति से तो जागेंगे कैसे?
अपने ऊपर उपकार किया ही नहीं....
अपने ऊपर उपकार कीजिये...
दूसरों को खोजना और पाना छोड़....
अपने को खोजिये....
सुकून का उपहार दीजिये...
अपने आप को पा कर...
और सच कहता हूँ....
फिर हर तरफ सृष्टि के उपकार नज़र आएंगे....
रिश्तों में मधुरता नज़र आएगी...
आप का सर...
सजदे में झुक जाएगा...
शुक्रिया करने को...
उपकारों का...
सोचिये...
फिर...
देखिये...
☺️
*पंक्ति उपकार फिल्म के लिए श्री इन्दीवरजी के लिखे गीत से है...संगीत श्री कल्याणजी आनंदजी... गायक श्री मन्नाडे जी... और मलंग बाबा - ग्रेट प्राण जी*
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२९.०३.२०१९
गिनूँ...या करून औरों पर...
या ..जताऊँ...
कितने उपकार मैंने किये हैं....
इंसान कर्मों से बंधा है....
कर्म है तो जीवन है....
सृष्टि अपने कर्म कर रही...
इंसान क्या हर कोई....
पेड़ पौधे हों...जीव जंतु हों....
सब सृष्टि में जी रहे हैं...
क्या सृष्टि ने उपकार जताया....
या इसके रचयिता ने....
कि तुम सिर्फ मेरी वजह से सांस ले रहे हो....
फिर भी....
हम अपने कर्मों को करते हुए...
भूल जाते हैं ये सब...
कि हम को उपकार...
जताने का हक़ नहीं हैं...
फिर भी जताते हैं...
क्योंकि साहस नहीं है हम में...
शुक्रिया अदा करने का....
माँ बाप का...गुरु का...
बंधू...सखा... कोई भी...
किसी का शुक्रिया नहीं करते....
जब उनका शुक्रिया नहीं करते तो...
भगवान् का सृष्टि का कैसे याद आये...
इसीलिए हम परेशान हैं...
सुकून खो रहे हैं....
इंसान को ही नहीं....
बल्कि भगवान् को धोका दे रहे हैं....
*देते हैं भगवान् को धोका इंसान को क्या छोड़ेंगे*
'मलंग बाबा' के मुख से जो गीतकार और गायक ने
"उपकार" में कटु सत्य कहा....
आज भी हमारी आत्मा को झिंझोड़ता है...
पर क्या हम जगे ?
नहीं जग सकते....
क्योंकि हम अपने ऊपर उपकार नहीं कर रहे...
औरों पर क्या उपकार किये...वो जता रहे हैं...
मैंने ये किया वो किया...सब कुछ दिया...
पर क्या सच में दिया कुछ ? क्या था अपना जो दिया ?
"श्री गीता" के वचनों को भी अनदेखा कर दिया?
इसी लिए हम शान्ति से सोये नहीं हैं...
और जब सोये नहीं शांति से तो जागेंगे कैसे?
अपने ऊपर उपकार किया ही नहीं....
अपने ऊपर उपकार कीजिये...
दूसरों को खोजना और पाना छोड़....
अपने को खोजिये....
सुकून का उपहार दीजिये...
अपने आप को पा कर...
और सच कहता हूँ....
फिर हर तरफ सृष्टि के उपकार नज़र आएंगे....
रिश्तों में मधुरता नज़र आएगी...
आप का सर...
सजदे में झुक जाएगा...
शुक्रिया करने को...
उपकारों का...
सोचिये...
फिर...
देखिये...
☺️
*पंक्ति उपकार फिल्म के लिए श्री इन्दीवरजी के लिखे गीत से है...संगीत श्री कल्याणजी आनंदजी... गायक श्री मन्नाडे जी... और मलंग बाबा - ग्रेट प्राण जी*
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२९.०३.२०१९
-विधा :/पद्य
ज़िंदगी में कभी
किसीके उपकार
को,मत भूलो ।
अपने कर्तव्य
को समझो पर
कभी अधिकार
को ,मत भूलो ।
न्याय के पलड़े
पर रख तौलो
हुआ अन्याय
तो,मत भूलो ।
किसी से यदि
लिया कभी कुछ
उसे उपकृत हो
देना नही भूलो ।
यह जीवन है यहां
लेना और देना है
समझ लो बात
जो इतनी कभी
उपकार मत भूलो ।
स्वरचित:/उषासक्सेना
ज़िंदगी में कभी
किसीके उपकार
को,मत भूलो ।
अपने कर्तव्य
को समझो पर
कभी अधिकार
को ,मत भूलो ।
न्याय के पलड़े
पर रख तौलो
हुआ अन्याय
तो,मत भूलो ।
किसी से यदि
लिया कभी कुछ
उसे उपकृत हो
देना नही भूलो ।
यह जीवन है यहां
लेना और देना है
समझ लो बात
जो इतनी कभी
उपकार मत भूलो ।
स्वरचित:/उषासक्सेना
शीर्षक उपकार
विधा--लावणी छंद-आधारित गीतिका
काट मुझे तूने तो मानव,कितना अत्याचार किया
मेरे तन को बेच बेच कर, फिर अपना व्योपार किया
नीड़ बना रहते थे नभचर,पथिक बैठता था दो पल
दे देता था शीतल छाया, उससे भी लाचार किया
फूट पड़ी अब नई कोपलें,मेरे ठूँठ हुए तन पर
नव संचारी आशा ने है, मेरा फिर उद्धार किया
नव जीवन पाकर अब फिर से, लहराऊंगा झूम झूम
आज प्रकृति ने बदला है रुख़, मुझ पर भी उपकार किया
जब जब मेरी महता समझी,और संरक्षण दिया मनुज
प्रेम किया मेघों से मैंने,धरती को रस धार किया
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विधा--लावणी छंद-आधारित गीतिका
काट मुझे तूने तो मानव,कितना अत्याचार किया
मेरे तन को बेच बेच कर, फिर अपना व्योपार किया
नीड़ बना रहते थे नभचर,पथिक बैठता था दो पल
दे देता था शीतल छाया, उससे भी लाचार किया
फूट पड़ी अब नई कोपलें,मेरे ठूँठ हुए तन पर
नव संचारी आशा ने है, मेरा फिर उद्धार किया
नव जीवन पाकर अब फिर से, लहराऊंगा झूम झूम
आज प्रकृति ने बदला है रुख़, मुझ पर भी उपकार किया
जब जब मेरी महता समझी,और संरक्षण दिया मनुज
प्रेम किया मेघों से मैंने,धरती को रस धार किया
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
शीर्षक :- उपकार
उपकार मानिए प्रकृति का...
है ये नवजीवन संस्कृति का..
ये प्राणवायु करे उत्सर्जित..
है ये आधार स्तंभ सृष्टि का...
उपकार मानिए प्रकृति का..
निस्वार्थ करे ये परोपकार..
अमृत है इसका कण-कण...
सहे सदैव मानवीय प्रतिकार..
उपकार मानिए प्रकृति का...
सरिता सी कलकल इसकी..
निर्झर निर्झरणी सी प्रवृत्ति..
पंछियों सी कलरव इसकी..
उपकार मानिए प्रकृति का...
है आयुर्वेद की ये जन्मदात्री...
पावन पुनिता आँचल इसका..
तपस्वियों की है सिद्धीदात्री..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
उपकार मानिए प्रकृति का...
है ये नवजीवन संस्कृति का..
ये प्राणवायु करे उत्सर्जित..
है ये आधार स्तंभ सृष्टि का...
उपकार मानिए प्रकृति का..
निस्वार्थ करे ये परोपकार..
अमृत है इसका कण-कण...
सहे सदैव मानवीय प्रतिकार..
उपकार मानिए प्रकृति का...
सरिता सी कलकल इसकी..
निर्झर निर्झरणी सी प्रवृत्ति..
पंछियों सी कलरव इसकी..
उपकार मानिए प्रकृति का...
है आयुर्वेद की ये जन्मदात्री...
पावन पुनिता आँचल इसका..
तपस्वियों की है सिद्धीदात्री..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
मैं तेरे आँगन की चिङिया
एक दिन उङ जाऊँंगी
माँ बाँध ले अपने आँचल से
फिर न लौट के आऊँगी
बहुत लुटाया प्यार मुझपर
नया दिया संसार मुझे
ब्याह दिया परदेश मुझको
कैसा था ये बैर तुझे
भर लेना आँखों में मुझको
कर देना इतना उपकार
आँसू बनकर जो गिरी तो
उठ न सकूंगी मैं इस बार
तेरा मान रखूँगी हरदम
अपने फ़र्ज निभाऊंगी
माँ बांध ले अपने आँचल से
फिर न लौट के आऊँगी।।
स्वरचित
***सीमा आचार्य***
एक दिन उङ जाऊँंगी
माँ बाँध ले अपने आँचल से
फिर न लौट के आऊँगी
बहुत लुटाया प्यार मुझपर
नया दिया संसार मुझे
ब्याह दिया परदेश मुझको
कैसा था ये बैर तुझे
भर लेना आँखों में मुझको
कर देना इतना उपकार
आँसू बनकर जो गिरी तो
उठ न सकूंगी मैं इस बार
तेरा मान रखूँगी हरदम
अपने फ़र्ज निभाऊंगी
माँ बांध ले अपने आँचल से
फिर न लौट के आऊँगी।।
स्वरचित
***सीमा आचार्य***
होता उपकार बड़ा हम पर माता का , हमको जिसने दुनियाँ में जन्म दिया |
पिता तुल्य नहीं कोई उपकारी , बनकर आकाश जो छाया करता आया |
बिस्तार ज्ञान का करने वाला , गुरू सम भला कौन है उपकारी |
हम ईश्वर का उपकार न भूलें , जिसने बुध्दि और काया दे डाली |
उपकार बहुत हैं हम पर दुनियाँ मे, वृक्षों ,नदियों और धरती माता के |
हम भूलें न उपकार किसी का ,अपने दायित्वों का हमेशा निर्वहन करें |
कर्म करें हम सब अपना अपना , परहित के लिऐ ही दुनियाँ में जियें |
जुड़े हैं परस्पर जब हम सब दुनियाँ में, सहयोग सबका करते रहें |
उपकार सभी का है इक दूजे पर ,यह बात सदा हम याद रखें |
खुद से स्वार्थीपन को दूर भगाये , हम कहीं कृतघ्न न बन
जायें |
मानव जीवन का मकसद हम समझें , बिस्तार मानवता का कर जायें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
पिता तुल्य नहीं कोई उपकारी , बनकर आकाश जो छाया करता आया |
बिस्तार ज्ञान का करने वाला , गुरू सम भला कौन है उपकारी |
हम ईश्वर का उपकार न भूलें , जिसने बुध्दि और काया दे डाली |
उपकार बहुत हैं हम पर दुनियाँ मे, वृक्षों ,नदियों और धरती माता के |
हम भूलें न उपकार किसी का ,अपने दायित्वों का हमेशा निर्वहन करें |
कर्म करें हम सब अपना अपना , परहित के लिऐ ही दुनियाँ में जियें |
जुड़े हैं परस्पर जब हम सब दुनियाँ में, सहयोग सबका करते रहें |
उपकार सभी का है इक दूजे पर ,यह बात सदा हम याद रखें |
खुद से स्वार्थीपन को दूर भगाये , हम कहीं कृतघ्न न बन
जायें |
मानव जीवन का मकसद हम समझें , बिस्तार मानवता का कर जायें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
विषय-उपकार
तू कर ले उपकार
बन्दे
तू कर ले पूरा मानव धर्म बन्दे
ईश्वर ने तुझे सक्षम बनाया
ये उसका उपकार
है,कर शुक्रिया उसका ,ये कर्तव्य
तेरा है।
तुझे गढ़ा उसने न
सिर्फ अपना सोच
कर कुछ ऐसा कार्य
हो हर इंसान का
भला कुछ ऐसा सोच ।
न कर विचार तू
इतना
तू करेगा उपकार
तो कौन उससे क्या पायेगा हां
इतना आवश्यक
समझ जो होगा
लायक वही तेरे
उपकार का फल
पायेगा ।
अंजना सक्सेना
तू कर ले उपकार
बन्दे
तू कर ले पूरा मानव धर्म बन्दे
ईश्वर ने तुझे सक्षम बनाया
ये उसका उपकार
है,कर शुक्रिया उसका ,ये कर्तव्य
तेरा है।
तुझे गढ़ा उसने न
सिर्फ अपना सोच
कर कुछ ऐसा कार्य
हो हर इंसान का
भला कुछ ऐसा सोच ।
न कर विचार तू
इतना
तू करेगा उपकार
तो कौन उससे क्या पायेगा हां
इतना आवश्यक
समझ जो होगा
लायक वही तेरे
उपकार का फल
पायेगा ।
अंजना सक्सेना
उपकार हम दूसरो पर करें
यह मानव धर्म सीखलाता है
प्रकृति भी ,पल पल करती
हम मानव पर उपकार,
दधीचि ने प्राण त्यागे
किये देवों पर उपकार
उपकार करें सदा दूसरों पर
यही है मानव जीवन का सार,
खंडित है जिनकी मानसिकता
वे नही करते उपकार
उपकार करनेवाले को
स्वयं होता सुखद एहसास,
उपकार किया है प्रभु ने हम पर
दिया हमें श्रेष्ठ जीवन का उपहार
माँ-बाप है प्रभु का श्रेष्ठतम उपहार
इन्हें न दे कभी जीवन में डार
इनकी सेवा करने से मिल जाये हमे परमधाम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
यह मानव धर्म सीखलाता है
प्रकृति भी ,पल पल करती
हम मानव पर उपकार,
दधीचि ने प्राण त्यागे
किये देवों पर उपकार
उपकार करें सदा दूसरों पर
यही है मानव जीवन का सार,
खंडित है जिनकी मानसिकता
वे नही करते उपकार
उपकार करनेवाले को
स्वयं होता सुखद एहसास,
उपकार किया है प्रभु ने हम पर
दिया हमें श्रेष्ठ जीवन का उपहार
माँ-बाप है प्रभु का श्रेष्ठतम उपहार
इन्हें न दे कभी जीवन में डार
इनकी सेवा करने से मिल जाये हमे परमधाम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
शीर्षक-उपकार
विधा-हाइकु
1.
सृष्टि करती
उपकार अनेक
निःस्वार्थ भाव
2.
सपूत बेटा
भूले न उपकार
माता पिता का
3.
गुरु व चेला
मानते उपकार
सरस्वती का
4.
पति व पत्नी
उपकारी जीवन
निभाते साथ
**********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरियामुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विधा-हाइकु
1.
सृष्टि करती
उपकार अनेक
निःस्वार्थ भाव
2.
सपूत बेटा
भूले न उपकार
माता पिता का
3.
गुरु व चेला
मानते उपकार
सरस्वती का
4.
पति व पत्नी
उपकारी जीवन
निभाते साथ
**********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरियामुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विषय उपकार
विधा हाइकु
1
पाप व पुण्य
उपकार तराजू-
धर्म आधार
2
साधु जीवन
उपकार ही लक्ष्य-
मानव हित
3
वृक्ष करते
जीवन उपकार-
परम सत्य
4
अनोखा प्यार
प्रकृति उपकार-
जीव सुरक्षा
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
विधा हाइकु
1
पाप व पुण्य
उपकार तराजू-
धर्म आधार
2
साधु जीवन
उपकार ही लक्ष्य-
मानव हित
3
वृक्ष करते
जीवन उपकार-
परम सत्य
4
अनोखा प्यार
प्रकृति उपकार-
जीव सुरक्षा
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
उपकार
अच्छे कार्य का फल सुखद होता हैं !
बुरे कार्यों का ह्श्र भी दुखद होता हैं।
जैसा बोएगा बीज वह वैसा काटेगा
दयालु अपना सुख -दुख सब बाँटेगा ।
सब करो भलाई हरदम फल मीठा होगा
आज दिया कुछ कल तो लिखा होगा ।
इंसान बन देवों के उपकार किया करते थे
काट हाथ से मांस शिवि पेट दिया करते थे।
प्यासे को पानी दे प्राण रक्षा मानवता हैं
अन्न दबा गोदाम में भूखें रखना दानवता हैं।
करो सहायता जन-जन फिर बेडा़पार हैं
हर दुखी की मदद करो यही उपकार हैं।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल'
अच्छे कार्य का फल सुखद होता हैं !
बुरे कार्यों का ह्श्र भी दुखद होता हैं।
जैसा बोएगा बीज वह वैसा काटेगा
दयालु अपना सुख -दुख सब बाँटेगा ।
सब करो भलाई हरदम फल मीठा होगा
आज दिया कुछ कल तो लिखा होगा ।
इंसान बन देवों के उपकार किया करते थे
काट हाथ से मांस शिवि पेट दिया करते थे।
प्यासे को पानी दे प्राण रक्षा मानवता हैं
अन्न दबा गोदाम में भूखें रखना दानवता हैं।
करो सहायता जन-जन फिर बेडा़पार हैं
हर दुखी की मदद करो यही उपकार हैं।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल'
"उपकार"
क्षणिका
1
काम अगर आ सकूँ किसी के
जीवन मेरा धन्य हो जाए,
हर्षित ये मन हो जाए,
कहना न 'उपकार' इसे
ऐसा मिला सुअवसर यदि,
आनंदित वो पल होगा।
2
ईश्वरीय उपहार स्वरूप,
मानव स्वरुप मिला मुझको,
इस ऋण को मैं कैसे
परिशोध करुँ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
क्षणिका
1
काम अगर आ सकूँ किसी के
जीवन मेरा धन्य हो जाए,
हर्षित ये मन हो जाए,
कहना न 'उपकार' इसे
ऐसा मिला सुअवसर यदि,
आनंदित वो पल होगा।
2
ईश्वरीय उपहार स्वरूप,
मानव स्वरुप मिला मुझको,
इस ऋण को मैं कैसे
परिशोध करुँ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
विधा-दोहा
जन्म दिया पोषण किया, दिखलाया संसार
मात पिता है देव सम,सदा किया उपकार।
वृक्ष है उपकारी बड़े,परहित फल उपजाय
सरिता नित परमार्थ ही, अपना सलिल बहाय।
जल वायु और ये धरा,जीवन का आधार
प्रकृति मानव पर सदा करती हैं उपकार।
ले कुल्हाड़ी हाथ तू करता रहा प्रहार
शुद्ध हवा देकर मगर,पेंड़ करें उपकार।
जीवन मानव का दिया,भरा ह्रदय संस्कार
हे ईश्वर तुमको नमन, किया बड़ा उपकार।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
जन्म दिया पोषण किया, दिखलाया संसार
मात पिता है देव सम,सदा किया उपकार।
वृक्ष है उपकारी बड़े,परहित फल उपजाय
सरिता नित परमार्थ ही, अपना सलिल बहाय।
जल वायु और ये धरा,जीवन का आधार
प्रकृति मानव पर सदा करती हैं उपकार।
ले कुल्हाड़ी हाथ तू करता रहा प्रहार
शुद्ध हवा देकर मगर,पेंड़ करें उपकार।
जीवन मानव का दिया,भरा ह्रदय संस्कार
हे ईश्वर तुमको नमन, किया बड़ा उपकार।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
विषय। उपकार
विधा। हाइकु
****
परोपकार
अति उत्तम धर्म
जीवन मर्म
रक्षा का भार
सेना का उपकार
करें आभार
निर्मल धार
नदी का उपकार
जीवनदायी
दाता अपार
प्रकृति उपकार
जीव आधार
माँ पिता प्यार
ईश्वर उपकार
खुशी अपार
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
विधा। हाइकु
****
परोपकार
अति उत्तम धर्म
जीवन मर्म
रक्षा का भार
सेना का उपकार
करें आभार
निर्मल धार
नदी का उपकार
जीवनदायी
दाता अपार
प्रकृति उपकार
जीव आधार
माँ पिता प्यार
ईश्वर उपकार
खुशी अपार
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
बिषय- उपकार
मानो उपकार उस प्रभु का
जिसने मानुष तन दिया।
मात-पिता, भाई-बहन
प्यारा सा परिवार दिया।
खाने को अन्न, रहने को घर
प्रकृति का संसार दिया।
हवा, पानी,सुरज, चन्द्रमा
फूलों का उपहार दिया।
माना शिकायतें बहुत है।
मगर उनका प्यार भी देखो।
नित शीश झुका झुका कर
उनका शुक्रिया अदा करो।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
मानो उपकार उस प्रभु का
जिसने मानुष तन दिया।
मात-पिता, भाई-बहन
प्यारा सा परिवार दिया।
खाने को अन्न, रहने को घर
प्रकृति का संसार दिया।
हवा, पानी,सुरज, चन्द्रमा
फूलों का उपहार दिया।
माना शिकायतें बहुत है।
मगर उनका प्यार भी देखो।
नित शीश झुका झुका कर
उनका शुक्रिया अदा करो।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय- उपकार
१
भोले मानुष
भूलते उपकार
संतोषी मन
२
जीवन दान
माँ का है उपकार
मौत को हरा
३
विपदा घड़ी
गैरों का उपकार
दोस्त लजाए
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/3/19
शुक्रवार
१
भोले मानुष
भूलते उपकार
संतोषी मन
२
जीवन दान
माँ का है उपकार
मौत को हरा
३
विपदा घड़ी
गैरों का उपकार
दोस्त लजाए
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/3/19
शुक्रवार
सादर नमन्
विषय=उपकार
विधा=हाइकु
🌻🌻🌻🌻
भूले है युवा
उपकार करना
कैसी है शिक्षा
🌹🌹🌹
कहें संस्कार
सबसे बड़ा धर्म
है उपकार
🌹🌹🌹
प्रभु की माया
मुझ पे उपकार
करे हजार
🌹🌹🌹
धर्म कहता
करके उपकार
भूलिए आप
🌹🌹🌹🌹
लगा के दौड़े
उपकार के चक्के
चले संसार
🌹🌹🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
29/03/2018
विषय=उपकार
विधा=हाइकु
🌻🌻🌻🌻
भूले है युवा
उपकार करना
कैसी है शिक्षा
🌹🌹🌹
कहें संस्कार
सबसे बड़ा धर्म
है उपकार
🌹🌹🌹
प्रभु की माया
मुझ पे उपकार
करे हजार
🌹🌹🌹
धर्म कहता
करके उपकार
भूलिए आप
🌹🌹🌹🌹
लगा के दौड़े
उपकार के चक्के
चले संसार
🌹🌹🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
29/03/2018
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