ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-316
आँचल में मधुमास
-----------------------
मुझे एक मिलन की आस सखि
तन में , मन में , मेरे नैनन में
चहुँ ओर पिया का वास सखि
मेरे तन का चंदन बोल रहा
मौसम बसंत रस घोल रहा
लो मस्त पवन भी ले आई
आँचल में एक मधुमास सखि
अधरों पर गीत सजन का है
पलकों में बंद सपन सा है
हौले हौले मनुवा बोले
निकसे न तन से प्राण सखि
मुझे एक मिलन की आस सखि ।।
तनुजा दत्ता (स्वरचित )
-----------------------
मुझे एक मिलन की आस सखि
तन में , मन में , मेरे नैनन में
चहुँ ओर पिया का वास सखि
मेरे तन का चंदन बोल रहा
मौसम बसंत रस घोल रहा
लो मस्त पवन भी ले आई
आँचल में एक मधुमास सखि
अधरों पर गीत सजन का है
पलकों में बंद सपन सा है
हौले हौले मनुवा बोले
निकसे न तन से प्राण सखि
मुझे एक मिलन की आस सखि ।।
तनुजा दत्ता (स्वरचित )
पिरामिड
"जय जवान"
1
हो
वीर
महान
शौर्यवान
#जय जवान
राष्ट्र का गौरव
रक्षक स्वाभिमान
2
तू
धीर
प्रहरी
पराक्रमी
#जय जवान
तिरंगे की शान
भारत अभिमान
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
"जय जवान"
1
हो
वीर
महान
शौर्यवान
#जय जवान
राष्ट्र का गौरव
रक्षक स्वाभिमान
2
तू
धीर
प्रहरी
पराक्रमी
#जय जवान
तिरंगे की शान
भारत अभिमान
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
========================
रचना -देश प्रेम
देश अपना प्यारा मिलकर इसे सजायेंगे।
वंदना भारत माँ की गुण सदा ही गायेंगे।।
तोड़ न पाये कोई एकता की जंजीरों को।
सेवा में भारत माता के कर्त्वयों को निभायेंगे।।
मिटा देंगे राग द्वेष मन के सारे भेद अब।
मिलकर मानवता का दीप हम जलायेंगे।।
वंदन माँ भारती का हमने गुणगान किया।
रक्षा को इसकी हम वीर सपूत बन जायेंगे।।
बढ़े तिरंगे का मान हो रक्षा संविधान की।
इसके सम्मान से ही मान हम भी पायेंगे।।
देश भारत बन जाये जग में विश्व गुरू सदा।
आओ एकता की झलक हम जग को दिखायेंगे।।
नई सोच नई उमंग का मन में संचार हो।
प्रेम भाव की नदियाँ मन में सदा बहायेंगे ।।
.........भुवन बिष्ट
रानीखेत (अल्मोड़ा)
उत्तराखंड
रचना -देश प्रेम
देश अपना प्यारा मिलकर इसे सजायेंगे।
वंदना भारत माँ की गुण सदा ही गायेंगे।।
तोड़ न पाये कोई एकता की जंजीरों को।
सेवा में भारत माता के कर्त्वयों को निभायेंगे।।
मिटा देंगे राग द्वेष मन के सारे भेद अब।
मिलकर मानवता का दीप हम जलायेंगे।।
वंदन माँ भारती का हमने गुणगान किया।
रक्षा को इसकी हम वीर सपूत बन जायेंगे।।
बढ़े तिरंगे का मान हो रक्षा संविधान की।
इसके सम्मान से ही मान हम भी पायेंगे।।
देश भारत बन जाये जग में विश्व गुरू सदा।
आओ एकता की झलक हम जग को दिखायेंगे।।
नई सोच नई उमंग का मन में संचार हो।
प्रेम भाव की नदियाँ मन में सदा बहायेंगे ।।
.........भुवन बिष्ट
रानीखेत (अल्मोड़ा)
उत्तराखंड
मोहब्बत के चिराग़ों को जलाया गया
‘हवा’ का रूख इस और वो मोड़ गया
चिराग़ न बुझे प्रेम का मेरी आरज़ू थी
पता नहीं क्यूँ दिल लगाकर छोड़ गया
फिरभी मैं हमेशा रिश्ता निभाना चाहा
पर वो हमेशा के लिए दिल तोड़ गया
दिल लगाकर के मैं ऊन से प्रेम किया
प्यार भरे इस दिल को भी फोड़ दिया
जो रिश्ता बनाया साथ मिलकर हमने
उन सब रिश्तों को आज निचोड़ दिया
______________________________
✍🏻..राज मालपाणी ... ( शोरापुर )
‘हवा’ का रूख इस और वो मोड़ गया
चिराग़ न बुझे प्रेम का मेरी आरज़ू थी
पता नहीं क्यूँ दिल लगाकर छोड़ गया
फिरभी मैं हमेशा रिश्ता निभाना चाहा
पर वो हमेशा के लिए दिल तोड़ गया
दिल लगाकर के मैं ऊन से प्रेम किया
प्यार भरे इस दिल को भी फोड़ दिया
जो रिश्ता बनाया साथ मिलकर हमने
उन सब रिश्तों को आज निचोड़ दिया
______________________________
✍🏻..राज मालपाणी ... ( शोरापुर )
मैं हो रहा था देख विस्मित
रोम रोम था उसका पुलकित
इस नन्हीं प्यारी बाला में
हुई मानों प्रकृति सारी कुसुमित।
सम्मोहित करती चाल थी
निश्छलता मालामाल थी
एक अनोखे आनन्द से सराबोर
यह झूमती नौनिहाल थी।
मेरे बुलाने पर भी वह नहीं आई
पर मुस्कान अपनी उसने बरसाई
मुझे लगा मेरे मन की मरुभूमि पर
खुशी की सरसों मानों लहराई।
यह बाल सम्पदा हमको भी यदि मिल जाये
तो अशान्ति की विपदा जड़ से हिल जाये
मन हो जाये एक निर्मल तपोभूमि
और फूल मानवता का खिल जाये।
रोम रोम था उसका पुलकित
इस नन्हीं प्यारी बाला में
हुई मानों प्रकृति सारी कुसुमित।
सम्मोहित करती चाल थी
निश्छलता मालामाल थी
एक अनोखे आनन्द से सराबोर
यह झूमती नौनिहाल थी।
मेरे बुलाने पर भी वह नहीं आई
पर मुस्कान अपनी उसने बरसाई
मुझे लगा मेरे मन की मरुभूमि पर
खुशी की सरसों मानों लहराई।
यह बाल सम्पदा हमको भी यदि मिल जाये
तो अशान्ति की विपदा जड़ से हिल जाये
मन हो जाये एक निर्मल तपोभूमि
और फूल मानवता का खिल जाये।
कई कविता हमने लिख दी
नर नारी के जीवन पर
एक कविता दिल से लिखता
हिय प्रिय भारत माता पर
ऋण इतने हैं माता के
माँ देती है लेती नही है
वह अंचल हमे सुलाती
सुखदा है दुख दा नहीं है
रेशम सी प्यारी हरियाली
रंग बिरंगे सुमन खिले
चँदा सूरज जगमग करते
सुबह श्याम नित गले मिले
षड् ऋतुओं का काल चक्र
भारत माता पर ही संभव
शस्यश्यामल वसुधा पर
परिवर्तन नित नव नव है
तुंग उत्तुंग हिम गिरी से आकर
पावन निर्मल नदियां बहती
रंग बिरंगे रंग आकर्षित हैं
कथा पुराणों की वह कहती
नीलाम्बर नित छाया करता
संध्या उषा लाली अति प्यारी
स्वर्गमयी जननी अति सुखदा
कश्मीरी खिलती नित क्यारी
अमन शांति की प्रेरक माँ
सत्य अहिंसा परम् पुजारिन
सत्यमेव जयते पथ चलती
निष्ठा ममतामयी वह मालिन
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
एक कविता दिल से लिखता
हिय प्रिय भारत माता पर
ऋण इतने हैं माता के
माँ देती है लेती नही है
वह अंचल हमे सुलाती
सुखदा है दुख दा नहीं है
रेशम सी प्यारी हरियाली
रंग बिरंगे सुमन खिले
चँदा सूरज जगमग करते
सुबह श्याम नित गले मिले
षड् ऋतुओं का काल चक्र
भारत माता पर ही संभव
शस्यश्यामल वसुधा पर
परिवर्तन नित नव नव है
तुंग उत्तुंग हिम गिरी से आकर
पावन निर्मल नदियां बहती
रंग बिरंगे रंग आकर्षित हैं
कथा पुराणों की वह कहती
नीलाम्बर नित छाया करता
संध्या उषा लाली अति प्यारी
स्वर्गमयी जननी अति सुखदा
कश्मीरी खिलती नित क्यारी
अमन शांति की प्रेरक माँ
सत्य अहिंसा परम् पुजारिन
सत्यमेव जयते पथ चलती
निष्ठा ममतामयी वह मालिन
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
लड़ते लड़ते थक ही जाती सच्चाई
हर तरफ हैं काँटे हर तरफ है खाई ।।
वफा की उम्मीद कर कितने रोये
वफा तो सिर्फ किताबों में कहाई ।।
कौन छोड़ना चाहे अपने मूल को
फूलों ने भी माली से गुहार लगाई ।।
बहतर है इन काँटों भरे जीवन से
नही फिकर कुचलूँ या इठलाऊँ भाई ।।
ले चल तूँ इस कंटक भरे जीवन से
मुझे ये जिन्दगी कतई न रास आई ।।
कहने को किस्मत वाला मैं कहलाऊँ
मगर पीर ये किसने 'शिवम' समझ पाई ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
वफा की उम्मीद कर कितने रोये
वफा तो सिर्फ किताबों में कहाई ।।
कौन छोड़ना चाहे अपने मूल को
फूलों ने भी माली से गुहार लगाई ।।
बहतर है इन काँटों भरे जीवन से
नही फिकर कुचलूँ या इठलाऊँ भाई ।।
ले चल तूँ इस कंटक भरे जीवन से
मुझे ये जिन्दगी कतई न रास आई ।।
कहने को किस्मत वाला मैं कहलाऊँ
मगर पीर ये किसने 'शिवम' समझ पाई ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
हे वर्धमान,
तू वर्तमान,
अभिन्नदन तेरा है,
दुश्मन की छाती रौंद
दिया,
तू रग रग चंदन है,
सांपों की बस्ती
उनकी हस्ती
उनकी मस्ती
लूट लिया,
भारत मां का जो कर्ज था
वो तूने पाट दिया,
मौत भी तुझसे
देखो डर के भाग गयी,
सौभाग्य देश का तुम्हें
नयी जिंदगी मिली,
जिस वक़्त दुश्मनों
के घेरे में फस गये थे
तुम,
मौत सामने थी
घायल थे तुम,
फिर भी देश धर्म
राष्ट्र मर्म,
तुम न भूले,
तुम हो असली
पूत धरा के
तेरा शत शत
वंदन
अभिनंदन।।।
भावुक
अभिन्नदन तेरा है,
दुश्मन की छाती रौंद
दिया,
तू रग रग चंदन है,
सांपों की बस्ती
उनकी हस्ती
उनकी मस्ती
लूट लिया,
भारत मां का जो कर्ज था
वो तूने पाट दिया,
मौत भी तुझसे
देखो डर के भाग गयी,
सौभाग्य देश का तुम्हें
नयी जिंदगी मिली,
जिस वक़्त दुश्मनों
के घेरे में फस गये थे
तुम,
मौत सामने थी
घायल थे तुम,
फिर भी देश धर्म
राष्ट्र मर्म,
तुम न भूले,
तुम हो असली
पूत धरा के
तेरा शत शत
वंदन
अभिनंदन।।।
भावुक
1
पिया मिलन
दिल करे प्रतीक्षा
ताके दुल्हन
2
कृष्ण दीवानी
राधा रानी प्रतीक्षा
कैसी परीक्षा
3
तन है बस
साँसों की है प्रतीक्षा
स्वर्ग गंतव्य
4
सैनिक वधु
कर रही प्रतीक्षा
हुआ शहीद
5
जीवन यात्रा
कर्मो की है परीक्षा
मनु प्रतीक्षा
6
गर्भ में बच्चा
करता है प्रतीक्षा
देता परीक्षा
कुसुम पंत उत्साही
सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित
देहरादून
पिया मिलन
दिल करे प्रतीक्षा
ताके दुल्हन
2
कृष्ण दीवानी
राधा रानी प्रतीक्षा
कैसी परीक्षा
3
तन है बस
साँसों की है प्रतीक्षा
स्वर्ग गंतव्य
4
सैनिक वधु
कर रही प्रतीक्षा
हुआ शहीद
5
जीवन यात्रा
कर्मो की है परीक्षा
मनु प्रतीक्षा
6
गर्भ में बच्चा
करता है प्रतीक्षा
देता परीक्षा
कुसुम पंत उत्साही
सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित
देहरादून
विधा - गजल
लोगों के दिल में अब प्यार कहाँ है
मिलजुल रहते वो परिवार कहाँ है
देखो न रही अब माँ बाप की कदर
बड़े बुजुर्गों का वो सत्कार कहाँ है,
हर दुख-सुख में होते थे शामिल जो
अब वो शैतानी नटखट यार कहाँ है
पैसे कमाने में हो गए मशगूल इतने
मौज-मस्तियों भरा रविवार कहाँ है,
ना झूठ ना दिखावा सबको सम्मान
वो सादा जीवन उच्च विचार कहाँ है,
जीत से ज्यादा हार में जो सुकून था
अपनों के लिए वो अब हार कहाँ है,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
लोगों के दिल में अब प्यार कहाँ है
मिलजुल रहते वो परिवार कहाँ है
देखो न रही अब माँ बाप की कदर
बड़े बुजुर्गों का वो सत्कार कहाँ है,
हर दुख-सुख में होते थे शामिल जो
अब वो शैतानी नटखट यार कहाँ है
पैसे कमाने में हो गए मशगूल इतने
मौज-मस्तियों भरा रविवार कहाँ है,
ना झूठ ना दिखावा सबको सम्मान
वो सादा जीवन उच्च विचार कहाँ है,
जीत से ज्यादा हार में जो सुकून था
अपनों के लिए वो अब हार कहाँ है,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
🌺अभिसार🌺
खिलते पलाश जागे अनुराग
एक सुघड़ नार लिये मिलने की आस
चली राह निहार , पिय की पुकार
मन महक रहा ,तन बहक रहा
संध्या घिरे, उठे मन में हूक
मीठी सी मिलन की मधुर आस
मुख पर लटे झाँकता हो चाँद बादलों से,
उडे आँचल बना मन पतंग
दिखने लगा मुख प्रिय का
होने लगा मन अधीर सा
लग कर गले, दोनों मिले
पुलकित हुआ मकरंद मन
घिरने लगी अधियारी रात
घबराने लगा मन विहंग
उठी प्रिये , चली छोड़ कर
हाथों का मधुर साथ
बहने लगी जब अश्रु धार
मुँख कुमह्लाया ,छूटा साथ
कर फिर मिलनन का वादा
चलने लगी फिर वो नार
🌺स्वरचित🌺
नीलम शर्मा#नीलू
खिलते पलाश जागे अनुराग
एक सुघड़ नार लिये मिलने की आस
चली राह निहार , पिय की पुकार
मन महक रहा ,तन बहक रहा
संध्या घिरे, उठे मन में हूक
मीठी सी मिलन की मधुर आस
मुख पर लटे झाँकता हो चाँद बादलों से,
उडे आँचल बना मन पतंग
दिखने लगा मुख प्रिय का
होने लगा मन अधीर सा
लग कर गले, दोनों मिले
पुलकित हुआ मकरंद मन
घिरने लगी अधियारी रात
घबराने लगा मन विहंग
उठी प्रिये , चली छोड़ कर
हाथों का मधुर साथ
बहने लगी जब अश्रु धार
मुँख कुमह्लाया ,छूटा साथ
कर फिर मिलनन का वादा
चलने लगी फिर वो नार
🌺स्वरचित🌺
नीलम शर्मा#नीलू
जय हिन्द वन्देमातरम
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया
मां की आंखों का इकलौता दुलारा चला गया
बाप के बुढ़ापे का वो सहारा चला गया
तीन बहनों का इक भाई था जो चला गया
मांग सूनी करके आज हरजाईं चला गया
मासूम बच्चों को वो बिलखता छोड़ चला गया
सबसे रिश्ते और नातों को वो तोड़ चला गया
भारत मां का अपना कर्ज चुकाकर चला गया
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया।
उसके अरमान रह गए हैं सब धरे के धरे
कोई बताए की वो परिवार अब क्या करें
ग़म इतने की आंख के सारे आंसू सूख गए
इस संतरंगी जीवन से सब सुख और दुःख गए
पूछो ना गमों ने उनको कितना जकड़ लिया
जीने की दुनिया में झूठी चाह ने पकड़ लिया
इतिहास के पन्नों पर कुछ दर्ज कर चला गया
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया।
जाते-जाते भी सारे वतन को ये कह गया
ख़ुश रहें सदा ये मेरा चमन ये कह गया
सच्चा सिपाही एक तिरंगे में लिपट गया
अपनी मां मातृभूमि में अब वो सिमट गया
बना है आसमान का सितारा आसमानी
भूल न पाएगा कभी वतन तुम्हारी कुर्बानी
एकता को हम में वो चार्ज करके चला गया
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया।।
जय हिन्द वन्देमातरम
स्वरचित
बिजेंद्र सिंह चौहान
चंडीगढ़
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया
मां की आंखों का इकलौता दुलारा चला गया
बाप के बुढ़ापे का वो सहारा चला गया
तीन बहनों का इक भाई था जो चला गया
मांग सूनी करके आज हरजाईं चला गया
मासूम बच्चों को वो बिलखता छोड़ चला गया
सबसे रिश्ते और नातों को वो तोड़ चला गया
भारत मां का अपना कर्ज चुकाकर चला गया
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया।
उसके अरमान रह गए हैं सब धरे के धरे
कोई बताए की वो परिवार अब क्या करें
ग़म इतने की आंख के सारे आंसू सूख गए
इस संतरंगी जीवन से सब सुख और दुःख गए
पूछो ना गमों ने उनको कितना जकड़ लिया
जीने की दुनिया में झूठी चाह ने पकड़ लिया
इतिहास के पन्नों पर कुछ दर्ज कर चला गया
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया।
जाते-जाते भी सारे वतन को ये कह गया
ख़ुश रहें सदा ये मेरा चमन ये कह गया
सच्चा सिपाही एक तिरंगे में लिपट गया
अपनी मां मातृभूमि में अब वो सिमट गया
बना है आसमान का सितारा आसमानी
भूल न पाएगा कभी वतन तुम्हारी कुर्बानी
एकता को हम में वो चार्ज करके चला गया
वो सैनिक था अपना फर्ज निभाकर चला गया।।
जय हिन्द वन्देमातरम
स्वरचित
बिजेंद्र सिंह चौहान
चंडीगढ़
विषय .. स्वतन्त्र लेखन
विधा .. लघु कविता
*********************
🍁
सृष्टि हुई एकात्मा ,
मिलन की है ये रात ।
शिव शक्ति के योग मे,
सृष्टि का कल्याण ।
🍁
बहने लगी हवा मादकता,
प्रेम का है आगाज।
पीली-पीली पुष्प खिल गया,
पुलकित है संसार ।
🍁
वृक्ष नये पत्तो को धारे,
शीत त्याग ऊर्जा मन भावें।
नया कलेवर नया रंग मे,
भारत के नर-नारी लागे ।
🍁
फागुन के दिन थोडे रह गए,
मन मे उडे उमंग।
काम काज मन ना लागे,
चढा शेर पर रंग।
🍁
अंग बसंती रंग बसंती,
ढंग बसंती लागे।
ढुलमुल ढुलमुल चाल चले,
मोरा हाल बसंती लागे।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
विधा .. लघु कविता
*********************
🍁
सृष्टि हुई एकात्मा ,
मिलन की है ये रात ।
शिव शक्ति के योग मे,
सृष्टि का कल्याण ।
🍁
बहने लगी हवा मादकता,
प्रेम का है आगाज।
पीली-पीली पुष्प खिल गया,
पुलकित है संसार ।
🍁
वृक्ष नये पत्तो को धारे,
शीत त्याग ऊर्जा मन भावें।
नया कलेवर नया रंग मे,
भारत के नर-नारी लागे ।
🍁
फागुन के दिन थोडे रह गए,
मन मे उडे उमंग।
काम काज मन ना लागे,
चढा शेर पर रंग।
🍁
अंग बसंती रंग बसंती,
ढंग बसंती लागे।
ढुलमुल ढुलमुल चाल चले,
मोरा हाल बसंती लागे।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
हाइकु
नृत्य / नाच
****
1)
अदृश्य हस्त
कठपुतली नृत्य
जन सदृश
2)
नाच नचाना
अद्भुत बाल क्रीड़ा
मनभावन
3)
नाचती गाती
अल्हड़ बालिकाएं
आया है फाग
4)
नृत्य साधना
तन मन तरंग
जीवन रंग
5)
हैवानियत
वहशी नंगा नाच
कड़वा सत्य
***
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
****
1)
अदृश्य हस्त
कठपुतली नृत्य
जन सदृश
2)
नाच नचाना
अद्भुत बाल क्रीड़ा
मनभावन
3)
नाचती गाती
अल्हड़ बालिकाएं
आया है फाग
4)
नृत्य साधना
तन मन तरंग
जीवन रंग
5)
हैवानियत
वहशी नंगा नाच
कड़वा सत्य
***
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
शीर्षक, संत
आज तक एक गुरु या संत ही
शिष्य की परीक्षा लेते आये है
लेकिन अब शिष्यों को भी गुरु की
परीक्षा लेनी अत्यंत जरूरी हो गयी है
क्योंकि गुरु भी मुखौटा लगाये घूम रहे है
चलो सन्तजन की पहचान कराये
कितने गुण सन्तो मे समाये ,
पौथी पढ़ पढ़ ज्ञानी सन्त
सन्त नही कहलाता है
अनुभवी सन्त ही सबसे बड़ा
सन्त कहलाता है ....
एक उपाय हम बतलाते
सन्तो के कुछ भाव जगाते है
सन्तो की हम परख कराते
सन्तो को क्रोध दिलाअो तुम
जिस सन्त को क्रोध ना आये
समझ लेना वही सन्त कहलाये
सन्त वही जो क्रोध को वंश मे करले
धैर्य को अपने चित्त मे धर ले
प्रेम की वर्षा हर पल करते
दया भाव मन मे धरते
दुखीजन की सन्त सेवा करते
सबकी पीड़ा को सन्त समझते
नही किसी से बैर भावना
सन्त के हदय मे प्रेम की सतभावना
शान्त स्वभाव सन्त का होता
वही एक सच्चा सन्त कहलाता
सन्तो की महिमा अपार
धैर्य ,शान्त ,नर्म व्यवहार ही है
सन्तो की सबसे बड़ी साधना
जिन सन्तो ने इन गुणो को साधा
वही सच्चा सन्त है आपका
कही मिल जाये ऐसा सन्त
तो ,चरण पकड़ नतमस्तक
हो जाओ तुम ....
🙏🏻स्वरचित हेमा जोशी
आज तक एक गुरु या संत ही
शिष्य की परीक्षा लेते आये है
लेकिन अब शिष्यों को भी गुरु की
परीक्षा लेनी अत्यंत जरूरी हो गयी है
क्योंकि गुरु भी मुखौटा लगाये घूम रहे है
चलो सन्तजन की पहचान कराये
कितने गुण सन्तो मे समाये ,
पौथी पढ़ पढ़ ज्ञानी सन्त
सन्त नही कहलाता है
अनुभवी सन्त ही सबसे बड़ा
सन्त कहलाता है ....
एक उपाय हम बतलाते
सन्तो के कुछ भाव जगाते है
सन्तो की हम परख कराते
सन्तो को क्रोध दिलाअो तुम
जिस सन्त को क्रोध ना आये
समझ लेना वही सन्त कहलाये
सन्त वही जो क्रोध को वंश मे करले
धैर्य को अपने चित्त मे धर ले
प्रेम की वर्षा हर पल करते
दया भाव मन मे धरते
दुखीजन की सन्त सेवा करते
सबकी पीड़ा को सन्त समझते
नही किसी से बैर भावना
सन्त के हदय मे प्रेम की सतभावना
शान्त स्वभाव सन्त का होता
वही एक सच्चा सन्त कहलाता
सन्तो की महिमा अपार
धैर्य ,शान्त ,नर्म व्यवहार ही है
सन्तो की सबसे बड़ी साधना
जिन सन्तो ने इन गुणो को साधा
वही सच्चा सन्त है आपका
कही मिल जाये ऐसा सन्त
तो ,चरण पकड़ नतमस्तक
हो जाओ तुम ....
🙏🏻स्वरचित हेमा जोशी
ग़ज़ल
सबब उदासी का बताना ठीक नही
जिन्दगी जियो जिन्दगी भीख नही ।।
उदासी का सबब बता कितने उलझे
हुआ कोई उदासी में कभी सरीख नही ।।
मगर दिल तो दिल है करे तो क्या करे
और ये आँखें जिनकी आदत नीक नही ।।
बयान कर ही देतीं हैं यह उदासी
जानते हुये कोई यहाँ मनमीत नही ।।
फूलों ने उदासी 'शिवम' छुपा रखी है
फूलों से सीखो इससे बढ़ी सीख नही ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
सबब उदासी का बताना ठीक नही
जिन्दगी जियो जिन्दगी भीख नही ।।
उदासी का सबब बता कितने उलझे
हुआ कोई उदासी में कभी सरीख नही ।।
मगर दिल तो दिल है करे तो क्या करे
और ये आँखें जिनकी आदत नीक नही ।।
बयान कर ही देतीं हैं यह उदासी
जानते हुये कोई यहाँ मनमीत नही ।।
फूलों ने उदासी 'शिवम' छुपा रखी है
फूलों से सीखो इससे बढ़ी सीख नही ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
विधा - गीत
आधार छंद - लावणी
मात्रा विधान- १६,१४ की यति से ३० मात्रा अंत १ या २ या ३ गुरु वाचिक
आदरणीया मंच को निवेदित
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
*******************************************
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!
सोचा करता हूँ मैं तो बस, तुमको दिन औ रात प्रिये!!
बिठा रखूँगा सर आँखों पर, बातें तेरी मानूँगा
गलती चाहे जो तू कर ले, तुझसे रार न ठानूँगा।
जब भी रूठेगी तू मुझसे, नित मैं तुझे मनाऊँगा
सुनले सजनी मैं तो तेरे, नखरे सभी उठाऊँगा।
सदा करूँगा मैं तो तुम पर, फूलों की बरसात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
अगर कहेगी तू मुझसे तो, चाँद तोड़कर लाऊँगा
होगी जब भी तेरी इच्छा, जन्नत तुझे दिखाऊँगा।
प्यार करूँगा हरपल तुमको,कसम खुदा की खाता हूँ
कर लो मेरा एतबार तुम, सच्ची बात बताता हूँ।
साथ नहीं छोडूँगा तेरा, जो भी हो हालात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
नाम पुकारूँ बस मैं तेरा, जब तक मुख में नाँद रहें
प्यार करूँगा तब तक तुमको,जब तक सूरज चाँद रहें।
तेरे सब दुख, होंगे मेरे, मेरी सब खुशियाँ तेरी
प्रणय निवेदन मानो मेरा, अब तनिक न करना देरी।
रखूँ बसाकर आँखों में नित, तेरा सुन्दर गात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
ख्वाबों में दिखती तू ही तू, अक्सर मुझको रातों में
बातें करता हूँ तो तेरा, जिक्र रहें हर बातों में।
जबसे प्यार हुआ है तुमसे, खोया-खोया रहता हूँ
साँझ-सँकारे निशि-वासर बस, तुमको सोचा करता हूँ।
बिन तेरे हैं जीना मुश्किल, समझ जरा जज़्बात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
जिसको देखूँ, तू ही दिखती, नहीं रहा काबू में मन
बिन तेरे सूना लगता है, मेरा तो सारा जीवन।
बिन तेरे मैं सुनले इक पल, यहाँ नहीं जी पाऊँगा
मिली नहीं जो तू मुझको तो,मैं तो मर ही जाऊँगा।
सजा रखी है तेरे खातिर, यादों की बारात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे,सुन लो मेरी बात प्रिये!!
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)
मात्रा विधान- १६,१४ की यति से ३० मात्रा अंत १ या २ या ३ गुरु वाचिक
आदरणीया मंच को निवेदित
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
*******************************************
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!
सोचा करता हूँ मैं तो बस, तुमको दिन औ रात प्रिये!!
बिठा रखूँगा सर आँखों पर, बातें तेरी मानूँगा
गलती चाहे जो तू कर ले, तुझसे रार न ठानूँगा।
जब भी रूठेगी तू मुझसे, नित मैं तुझे मनाऊँगा
सुनले सजनी मैं तो तेरे, नखरे सभी उठाऊँगा।
सदा करूँगा मैं तो तुम पर, फूलों की बरसात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
अगर कहेगी तू मुझसे तो, चाँद तोड़कर लाऊँगा
होगी जब भी तेरी इच्छा, जन्नत तुझे दिखाऊँगा।
प्यार करूँगा हरपल तुमको,कसम खुदा की खाता हूँ
कर लो मेरा एतबार तुम, सच्ची बात बताता हूँ।
साथ नहीं छोडूँगा तेरा, जो भी हो हालात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
नाम पुकारूँ बस मैं तेरा, जब तक मुख में नाँद रहें
प्यार करूँगा तब तक तुमको,जब तक सूरज चाँद रहें।
तेरे सब दुख, होंगे मेरे, मेरी सब खुशियाँ तेरी
प्रणय निवेदन मानो मेरा, अब तनिक न करना देरी।
रखूँ बसाकर आँखों में नित, तेरा सुन्दर गात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
ख्वाबों में दिखती तू ही तू, अक्सर मुझको रातों में
बातें करता हूँ तो तेरा, जिक्र रहें हर बातों में।
जबसे प्यार हुआ है तुमसे, खोया-खोया रहता हूँ
साँझ-सँकारे निशि-वासर बस, तुमको सोचा करता हूँ।
बिन तेरे हैं जीना मुश्किल, समझ जरा जज़्बात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे, सुन लो मेरी बात प्रिये!!
जिसको देखूँ, तू ही दिखती, नहीं रहा काबू में मन
बिन तेरे सूना लगता है, मेरा तो सारा जीवन।
बिन तेरे मैं सुनले इक पल, यहाँ नहीं जी पाऊँगा
मिली नहीं जो तू मुझको तो,मैं तो मर ही जाऊँगा।
सजा रखी है तेरे खातिर, यादों की बारात प्रिये!
प्रणय निवेदन करता तुमसे,सुन लो मेरी बात प्रिये!!
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)
रोटी पर जब घी लगा , आया अधिक स्वाद |
नाम संग जब जी जुड़ा, जागा जन अनुराग ||
सुखदायी वाणी बड़ी , मधुर रहें जो बोल |
मन से मन की लय जुडी, पूँजी है अनमोल ||
दौलत जोड़ी जगत में , कोशिश कर दिन रैन |
काम न आयी अंत में , चित्त रहा बैचैन ||
मानव मन चंचल बड़ा , घूमे चारों ओर |
हित अनहित ही में पड़ा , तोडे हरि से डोर ||
उड़ता पंछी गगन में , मस्त मगन मन मोर |
शाम देख दुखी मन में , पाप तमस घनघोर ||
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
नाम संग जब जी जुड़ा, जागा जन अनुराग ||
सुखदायी वाणी बड़ी , मधुर रहें जो बोल |
मन से मन की लय जुडी, पूँजी है अनमोल ||
दौलत जोड़ी जगत में , कोशिश कर दिन रैन |
काम न आयी अंत में , चित्त रहा बैचैन ||
मानव मन चंचल बड़ा , घूमे चारों ओर |
हित अनहित ही में पड़ा , तोडे हरि से डोर ||
उड़ता पंछी गगन में , मस्त मगन मन मोर |
शाम देख दुखी मन में , पाप तमस घनघोर ||
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
लघु कविता
करूंँ नमन उन वीरों को,
जिनके बल पर हम जीवित हैं।
है पुण्य प्रताप उन्हीं का यह,
जो भारत हिमगिरी सा उज्जवल है।
नमन सहादत को उनकी
जो छोड़ धरा को चले गए।
हम रहें सदा खुशहाल यहाँ,
वो मौन चिता पर लेट गए।
नमन वीरता को उनकी,
जो लम्बे सफर पर चले गए।
खुद चूम लिया बलि वेदी को,
पर देश सुरक्षित छोड़ गए।
स्वागत मैं करता हूं उनका,
जो लिपट तिरंगे में आए।
अभिनन्दन गाता हूं उनका,
जो खून की होली खेल गए।
देखो वीरों यदि सुन सकते हो,
मैं गौरव गान तुम्हारा गाता हूं।
अमर रहे वैभव यह तुम्हारा,
बस गीत यही मैं गाता हूँ।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
हे रणधीरों नमन है नमन है..
नमन है तुम्हारी वीरता को..नमन है तुम्हारे समर्पण को..
नमन है तुम्हारी समरसता को..
हे रणधीरों नमन है नमन है..
नमन है हर उस क्षण को,
जो जिया तुमने सरहद पर..
नमन है हर उस फैसले को,
जो लिया तुमने सरहद पर..
हे रणधीरों नमन है नमन है...
नमन है तुम्हारे धैर्य को,
जब सहे तुमने आघात अपनों के..
नमन तुम्हारे बलिदानों को..
जो दिए तुमने अपने सपनों के..
हे रणधीरों नमन है नमन है...
सरहद की रखवाली में..
खेले अपनी जान पर..
परवाह न की कभी तुमने अपनी...
मिट गए मातृभूमि की आन पर..
हे रणधीरों नमन है नमन है...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
* विडम्बना *
एक सपूत के स्वागत में
पलक पाँवड़े बिछाते हो
दूजे वीर की शहादत को
अनदेखा कर जाते हो
यह कैसी छद्म राष्ट्रभक्ति है
यह कैसा दोगला चरित्र है
एक के लिए हृदय पुलकित
पर अन्य के लिए विरक्त है
शत्रु की क़ैद में वीर है सुन
हर भारतीय का रक्त खौला
पर छः वीरों की वीरगति पर
किसी एक का भी मन न डोला
वे भी थे किसी पत्नी के सुहाग
किसी मात-पिता के नन्दन थे
उतने ही देश के प्रिय वे थे
जितने प्यारे अभिनन्दन थे
जब काँधे पर वृद्ध पिता ने
जनाज़ा लाल का ढोया होगा
पीड़ा से हृदय फटता होगा
वह बिलख-बिलख रोया होगा
मिलन के निनाद में बिछोह का
क्यों आर्तनाद न सुनाई दिया
आनन्दोत्सव में मग्न अंधों को
उनका सन्ताप न दिखाई दिया
उन छः शहीदों की पुण्यस्मृति में
दो अश्रु तक ढलकाए नहीं
क्यों छद्म राष्ट्रभक्तों ने उन्हें
कुछ श्रद्धासुमन भी चढ़ाए नहीं
यह कैसी विडम्बना है भारत की
कि एक वीर का तो करें सम्मान
अनादर करें अन्य योद्धाओं का
विस्मृत करके उनका बलिदान
************************
स्वरचित
नीतू राजीव कपूर
*अभिशाप*
लालसा....
किसी से जीतने की अत्याधिक लालसा
कभी-कभी बर्बादी की वजह बन जाती है
हम अपना सबकुछ हार जाते हैं
लालसा मानव जीवन का अभिशाप बन जाती है
गरीबी...
गरीब करते हैं मजदूरी
दिन-रात पसीना बहाते
कड़ी मेहनत के बाद भी
सिर्फ रूखी-सूखी खाते
दुःख की रात ढलती नहीं
गरीबी मानव जीवन का अभिशाप बनी
बरोजगारी...
माँ-बाप खून-पसीना बहाते
और बच्चे करते कड़ी मेहनत
होड़ में सब हैं कामयाबी की
डिग्री लिए घूमते मिलती नहीं नौकरी
बेरोजगारी मानव जीवन का अभिशाप बनी
प्रेम....
प्रेम दिलों को जोड़ता है
जीवन में रिश्तों के रंग भरता है
कभी-कभी प्रेम जनून बन जाता है
नाकाम इंसान कुछ ग़लत कर जाता है
तो प्रेम मानव जीवन का अभिशाप बन जाता है
आतंक....
आतंक ने जीना हराम किया
कभी कहीं तो कभी कहीं
अपने कारनामों को अंजाम दिया
दिल को सबके दहला जाती हैं
आतंकियों की नापाक हरकतें
आतंक मानव जीवन का अभिशाप बना
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
-----------------------------------------------------------------
छेड़ दिया है तूने, मेरे मन के सितार को।
गीत जो बन गया, सँवार दिया मेरे प्यार को।।
बेचैन- सी नजरें ढूँढती, इक झलक यार की-
ऐ हवा! सुनो, पहुँचा दे यह खबर दिलदार को।
होश रहा नहीं अब मुझे, खुद के ही वजूद का-
आ, प्रेम बारिस से सरसा मेरे संसार को।
सबसे सुंदर लगता सनम, तेरे दिल का महल-
आ, प्रेम पराग से महका दे मेरे बहार को।
तेरी अदाएं वफ़ा की, दिल में उतर गई है-
तरसने लगे हैं नैन तेरे ही दीदार को।
किए थे जो वादा जनम-जनम साथ निभाएंगे-
भूलना न कभी यारा किए प्रेम इकरार को।
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )
विधा-हाइकु
1.
मौन पड़े हैं
दिल तरकश में
प्रेम के बाण
2.
नाजुक दिल
संभाल के रखना
टूट न जाए
3.
छोड़ चली तू
दिल दिया ही क्यों था
तड़फाने को
4.
तुम्हें पाने को
सपने संजोय थे
सच्चे दिल से
5.
रोता अकेला
जीना दूभर हुआ
तेरी याद में
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
क्षत विक्षत थे शव पडे
शोर मचा कश्मीर वादी मे
शांतिपाठ को ठुकराया
आतंकवाद की परिपाटी ने
था स्तब्ध वतन सारा
हर नयन उस ओर देख रहा
क्या होगा प्रतिकार पुन:
हर हृदय उस ओर देख रहा
हुआ हुक्म आगे बढो
नामोनिशान तुम मिटा देना
जो देश की ओर उठे
वो हाथ और धड गिरा देना
तड तड चली गोलियां
रणवीरों की टोलियां चली
सिर पर बांधे कफन को
जयहिंद की बोलियां चली
जा घूसे नापाक ठिकानों मे
एक एक कर सब तबाह किए
छिपकर बैठे गीदडों के सब
मंसूबे एक एक कर खाक किए
था जुनून बहुत हर दिल मे
शहीदों का बदला चुकाना था
जो शीश कटे गिरे धरा पे
एक के बदले दस सिर लाना था
थे उडे मिराज कई गगन मे
तबाह किए कई ठिकानो को
कुछ सुकून मिला हर दिल मे
प्रतिकार के मतवालों को
है सबक यह दुश्मन को
अब ना कोई समझौता होगा
आंख उठाई हिंद की ओर
तो रण होगा बस रण होगा
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
यह सोचो तो ख्याल अच्छा है।
जो गुजरा वोह साल अच्छा है।
जो तेरा हुआ वो गया ईमान से।
चलो इससे तो मलाल अच्छा है।
कहो बेकार कटती जिन्दगी कैसे।
तेरे गम में जीना मुहाल अच्छा है।
नौजवानों का इसमें क्या कसूर।
अब भी तेरा ये जाल अच्छा है।
कहो क्या हाल है वो ये पूछते हैं।
खैर फिर भी ये सवाल अच्छा है।
विपिन सोहल
No comments:
Post a Comment