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ब्लॉग संख्या :-317
विधा- कविता
***************
महाशिवरात्रि का त्यौहार मनायें,
पुष्प,बेलपत्र,चंदन से थाल सजायें,
महादेव की सब आरती उतारें,
भक्तों की लगी हैं लम्बी कतारें |
शिव ही सत्य हैं,शिव ही सुंदर हैं,
समस्त सृष्टि शिवमय है,
महिमा शिव की अनंत है,
न आदि है न कोई अंत है |
रूप शिव का बड़ा निराला,
गले में सजे नागों की माला,
सिर पर चंदा सुशोभित होता,
जटाओं से निकले गंगा की धारा |
आज का दिन देवलोक में भी खास,
शिव,गौरा का विवाह हुआ आज,
पूरी रात्रि भजन कीर्तन होगा,
भोले बाबा दर्शन देंगे आज |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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महाशिवरात्रि का त्यौहार मनायें,
पुष्प,बेलपत्र,चंदन से थाल सजायें,
महादेव की सब आरती उतारें,
भक्तों की लगी हैं लम्बी कतारें |
शिव ही सत्य हैं,शिव ही सुंदर हैं,
समस्त सृष्टि शिवमय है,
महिमा शिव की अनंत है,
न आदि है न कोई अंत है |
रूप शिव का बड़ा निराला,
गले में सजे नागों की माला,
सिर पर चंदा सुशोभित होता,
जटाओं से निकले गंगा की धारा |
आज का दिन देवलोक में भी खास,
शिव,गौरा का विवाह हुआ आज,
पूरी रात्रि भजन कीर्तन होगा,
भोले बाबा दर्शन देंगे आज |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
चले भोले भंडारी विवाह रचाने
तन पर भस्म लपेटे सिर पर जटाएं
सर्पों की गले में पहने मालाएं
रूप अनोखा है भोले बाबा का
चोड़ा है ललाट कमर में मृगछाल
कर बैल पर सवारी आए भोले भंडारी
बलशाली काया बाबा त्रिनेत्र वाला
देख रूप उनका मूर्छित हुई माता
कोमल सुकुमारी कन्या मेरी गौरी
कैसे जोगी से विवाह रचाने चली
औघड़ दानी है यह जटा जूट धारी
भूत प्रेत जिसके हैं संगी साथी
बिच्छु,सर्प,बैल चलत शोर करें
अज़ीब बाराती लिए साथ में नाचें
डम-डम-डम डमरू बाजे
डरे देख जन आया यह वर है कैसा
जिसका तो है रूप भयंकर
समझ नहीं पाए लीला कोई
यह देवों के देव हैं शिवशंकर
भयभीत नयन देख मुस्काए
बदला महादेव ने रूप अनूपम
छवि आलौकिक देख कर
सारे जन हो रहे अभिभूत
महादेव के विवाह के लिए
विधि ने रचा विधान
सोलह श्रृंगार कर आई पार्वती
मंत्र-मुग्ध सब देखें मात छवि मोहनी
शुरू हुई शिव-शक्ति की विवाह विधि
देवगण पुष्प बरसाते हो प्रसन्नचित
सृष्टि का कण-कण हुआ हर्षित
सम्पूर्ण हुईं विवाह की विधि
शिव की बनी गौरी अर्द्धांगिनी
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
तन पर भस्म लपेटे सिर पर जटाएं
सर्पों की गले में पहने मालाएं
रूप अनोखा है भोले बाबा का
चोड़ा है ललाट कमर में मृगछाल
कर बैल पर सवारी आए भोले भंडारी
बलशाली काया बाबा त्रिनेत्र वाला
देख रूप उनका मूर्छित हुई माता
कोमल सुकुमारी कन्या मेरी गौरी
कैसे जोगी से विवाह रचाने चली
औघड़ दानी है यह जटा जूट धारी
भूत प्रेत जिसके हैं संगी साथी
बिच्छु,सर्प,बैल चलत शोर करें
अज़ीब बाराती लिए साथ में नाचें
डम-डम-डम डमरू बाजे
डरे देख जन आया यह वर है कैसा
जिसका तो है रूप भयंकर
समझ नहीं पाए लीला कोई
यह देवों के देव हैं शिवशंकर
भयभीत नयन देख मुस्काए
बदला महादेव ने रूप अनूपम
छवि आलौकिक देख कर
सारे जन हो रहे अभिभूत
महादेव के विवाह के लिए
विधि ने रचा विधान
सोलह श्रृंगार कर आई पार्वती
मंत्र-मुग्ध सब देखें मात छवि मोहनी
शुरू हुई शिव-शक्ति की विवाह विधि
देवगण पुष्प बरसाते हो प्रसन्नचित
सृष्टि का कण-कण हुआ हर्षित
सम्पूर्ण हुईं विवाह की विधि
शिव की बनी गौरी अर्द्धांगिनी
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
मेरे भाव करुं कैसे संलग्न
तुम सदा ही रहते ध्यान मग्न
ओ निर्मल ओ निर्विकार
तुमसे ही निकलती गंगाधार ।
तुम नीलकंठ रखते विषधर
तुम भोले से पर प्रलयंकर
तुम सत्य ही नहीं तुम परम सत्य
तुम जानते हो सब मेरे कृत्य।
तुम्हारा ही सारा है विधान
ओ कृपानिधान ओ दया निधान
अपनी कृपा अवश्य बरसा देना
जब भी निकलेंगे मेरे प्रान।
तुम हो चाहे महाकाल
पर तुम्ही कर सकते निहाल
आवागमन का फैला जंजाल
मुक्ति दो मुझे निकाल।
सत्यम शिवम सुन्दरम
तुम सदा ही रहते ध्यान मग्न
ओ निर्मल ओ निर्विकार
तुमसे ही निकलती गंगाधार ।
तुम नीलकंठ रखते विषधर
तुम भोले से पर प्रलयंकर
तुम सत्य ही नहीं तुम परम सत्य
तुम जानते हो सब मेरे कृत्य।
तुम्हारा ही सारा है विधान
ओ कृपानिधान ओ दया निधान
अपनी कृपा अवश्य बरसा देना
जब भी निकलेंगे मेरे प्रान।
तुम हो चाहे महाकाल
पर तुम्ही कर सकते निहाल
आवागमन का फैला जंजाल
मुक्ति दो मुझे निकाल।
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव, शिव ही सुंदर, सुंदरता चहुं ओर
गजानन विराजे मूषक संग कार्तिकेय संग मोर
कंठ नीला होता इनका नंदी बैल इनकी सवारी
युगों युगों से करे पूजा आरती हर कन्या कुँवारी
तिखा इनका भाला और मुख से है भोले भंडारी
निलकंठ माहदेव हमारे दुःख दरिद्र हरे त्रीपुरारी
धरती की रक्षा करने विष को अपने गले उतारा
देवों के देव शिव हर हर महादेव सभी ने पुकारा
पशु पक्षियों के प्राणनाथ जय हो पशुपतिनाथ
तीनो लोकों के स्वामी शिव नमन् त्रिलोकीनाथ
✍🏻 राज मालपाणी
शोरापुर - कर्नाटक
गजानन विराजे मूषक संग कार्तिकेय संग मोर
कंठ नीला होता इनका नंदी बैल इनकी सवारी
युगों युगों से करे पूजा आरती हर कन्या कुँवारी
तिखा इनका भाला और मुख से है भोले भंडारी
निलकंठ माहदेव हमारे दुःख दरिद्र हरे त्रीपुरारी
धरती की रक्षा करने विष को अपने गले उतारा
देवों के देव शिव हर हर महादेव सभी ने पुकारा
पशु पक्षियों के प्राणनाथ जय हो पशुपतिनाथ
तीनो लोकों के स्वामी शिव नमन् त्रिलोकीनाथ
✍🏻 राज मालपाणी
शोरापुर - कर्नाटक
हे शिव ध्याऊँ नाम तिहारा,
करदो निशाचरो का संहारा,
आज राक्षस बसे है घर में,
बस अब तुम ही अधारा l
प्रकृति अति शोकाकुल है,
रक्त से बहुत ही व्याकुल है,
प्रीत की रीत खत्म हो चली,
पूरी दुनिया बड़ी आकुल है ll
अब तो मै तुमको ध्याऊँ,
चरणों में शीश झुकाऊं,
कर दो दूर आप अँधेरे,
तेरी ही मै महिमा गाऊँ ll
शिव -शक्ति है जग आधारा,
क्यों कर रहे सब इसका संहारा,
अब समय आ गया नटराज,
करदो जगत का अब उद्धारा ll
ॐ नमः शिवाय
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून
करदो निशाचरो का संहारा,
आज राक्षस बसे है घर में,
बस अब तुम ही अधारा l
प्रकृति अति शोकाकुल है,
रक्त से बहुत ही व्याकुल है,
प्रीत की रीत खत्म हो चली,
पूरी दुनिया बड़ी आकुल है ll
अब तो मै तुमको ध्याऊँ,
चरणों में शीश झुकाऊं,
कर दो दूर आप अँधेरे,
तेरी ही मै महिमा गाऊँ ll
शिव -शक्ति है जग आधारा,
क्यों कर रहे सब इसका संहारा,
अब समय आ गया नटराज,
करदो जगत का अब उद्धारा ll
ॐ नमः शिवाय
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून
भोले भाले बाबा लीला अपरम्पार तुम्हारी
हर बरस ही करते हो तुम शादी की तैयारी ।।
सांप तुम्हारे कण्ठी माला डूड़ा बैल सवारी
भाँग धतूरा भाया तुम्हे आखिर क्या लाचारी ।।
क्यों ये भेष बनाया तुमने बोलो जटाधारी
अजब गजब के काम तुम्हारे नाम त्रिपुरारी ।।
वरदान भी ऐसे दिये पड़ गये खुद पर भारी
तुम सा दयावान न कोई ओ भोला भंडारी ।।
हम पर भी रखना कृपा विनती एक हमारी
तुमसे ही नादान 'शिवम' हम रखना बलिहारी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
हर बरस ही करते हो तुम शादी की तैयारी ।।
सांप तुम्हारे कण्ठी माला डूड़ा बैल सवारी
भाँग धतूरा भाया तुम्हे आखिर क्या लाचारी ।।
क्यों ये भेष बनाया तुमने बोलो जटाधारी
अजब गजब के काम तुम्हारे नाम त्रिपुरारी ।।
वरदान भी ऐसे दिये पड़ गये खुद पर भारी
तुम सा दयावान न कोई ओ भोला भंडारी ।।
हम पर भी रखना कृपा विनती एक हमारी
तुमसे ही नादान 'शिवम' हम रखना बलिहारी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
नमन🙏🙏भावों के मोती
विषय-शिव/सृष्टि
विधा-छंद मुक्त कविता
🌹🌹हर हर महादेव🌹🌹
बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
हे अर्धनारीश्वर तू दुनिया का प्रहरी
तू कालेश्वर, तू महादेव तू आदि अंत
तूने लपेट नागो की माला , तू दुनिया का प्रहरी
बगडबंब बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
तू भूतादिक, तू रोद्र रूप तू भूतेश्वर शिव
लटों मे सम्भाले गंगा की धार
बगडबंब ,बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
तू भूतों को पछाड , तू शक्ति के साथ
तूने धारण किया है चंद्रमा को सिर
बगडबंब, बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
हाथों में डमरू बाजे हे नाथ , तू देवों का देव
भस्म लपेट कर खेला ह़ोली ,देख तुझे दुनिया बोली
बगडबंब, बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
🌷🌷स्वरचित🌷🌷
नीलम शर्मा#नीलू
विषय-शिव/सृष्टि
विधा-छंद मुक्त कविता
🌹🌹हर हर महादेव🌹🌹
बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
हे अर्धनारीश्वर तू दुनिया का प्रहरी
तू कालेश्वर, तू महादेव तू आदि अंत
तूने लपेट नागो की माला , तू दुनिया का प्रहरी
बगडबंब बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
तू भूतादिक, तू रोद्र रूप तू भूतेश्वर शिव
लटों मे सम्भाले गंगा की धार
बगडबंब ,बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
तू भूतों को पछाड , तू शक्ति के साथ
तूने धारण किया है चंद्रमा को सिर
बगडबंब, बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
हाथों में डमरू बाजे हे नाथ , तू देवों का देव
भस्म लपेट कर खेला ह़ोली ,देख तुझे दुनिया बोली
बगडबंब, बगडबंब बंमबंम लहरी शिव
🌷🌷स्वरचित🌷🌷
नीलम शर्मा#नीलू
हे शिव,हे औघड़दानी।
तुम हो अन्तर्यामी।
बहुत तपस्या की मैंने तेरी।
हे मेरे शिवदानी।
धुप,दीप, नैवेद्य अर्पण किये।
गंगाजल भर,भर चढ़ाया।
फिर भी तुमने नेत्र ना खोले
मेरी गलती क्या भोले।
एक बार जो नेत्र खोल दो।
तर जाऊँ मैं बमभोले।
जटा में बहती गंगा की धारा।
अर्धनारीश्वर बम,बम भोला।
जब,जब खोले त्रिनेत्र तूने।
विनाश हुआ सृष्टि का भोला।
तुम्हीं हो दानी,तुम्हीं विधाता।
कृपादृष्टि रखो सबपर बमभोला।
🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
तुम हो अन्तर्यामी।
बहुत तपस्या की मैंने तेरी।
हे मेरे शिवदानी।
धुप,दीप, नैवेद्य अर्पण किये।
गंगाजल भर,भर चढ़ाया।
फिर भी तुमने नेत्र ना खोले
मेरी गलती क्या भोले।
एक बार जो नेत्र खोल दो।
तर जाऊँ मैं बमभोले।
जटा में बहती गंगा की धारा।
अर्धनारीश्वर बम,बम भोला।
जब,जब खोले त्रिनेत्र तूने।
विनाश हुआ सृष्टि का भोला।
तुम्हीं हो दानी,तुम्हीं विधाता।
कृपादृष्टि रखो सबपर बमभोला।
🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
महा कालेश्वर ओम कारेश्वर
सोमनाथ श्री नागेश्वर
बेघनाथ त्र्यम्बकेश्वर
भक्ति भाव पूजन रामेश्वर
घुश्मेश्वर मल्लिकार्जुन
पशुपतिनाथम है केदारं
जग वैतरणी हाथ तुम्हारे
प्रभु आप करदो उद्धारम
आक धतूरा सेवन करते
नील कण्ठ में प्रिय भुजंगा
जटा जूट से निर्मल बहती
पावन मनोहारी श्री गङ्गा
शिवरात्रि दिन अति पावन
गौरीशंकर आप सुसज्जित
परिणय सूत्र बंधे दोनों मिल
गिरिजा वदन अति लज्जित
मृगछाला आप विराजित
शीश सुशोभित भव्य चँदा
गौरीशंकर श्री गणपति सह
बैल सदा नित रहता संगा
महादेव श्री भोले शंकर
भक्तिभाव प्रभु तुमको पाये
सब मिलकर एक स्वर बोले
नमः शिवायः नमः शिवायः
बम बम भोले हो त्रिनेत्री
नटराजन ओ तांडव कर्ता
एक आसरा है प्रभु तेरा
प्रिय आप खुद पीड़ा हर्ता।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
सोमनाथ श्री नागेश्वर
बेघनाथ त्र्यम्बकेश्वर
भक्ति भाव पूजन रामेश्वर
घुश्मेश्वर मल्लिकार्जुन
पशुपतिनाथम है केदारं
जग वैतरणी हाथ तुम्हारे
प्रभु आप करदो उद्धारम
आक धतूरा सेवन करते
नील कण्ठ में प्रिय भुजंगा
जटा जूट से निर्मल बहती
पावन मनोहारी श्री गङ्गा
शिवरात्रि दिन अति पावन
गौरीशंकर आप सुसज्जित
परिणय सूत्र बंधे दोनों मिल
गिरिजा वदन अति लज्जित
मृगछाला आप विराजित
शीश सुशोभित भव्य चँदा
गौरीशंकर श्री गणपति सह
बैल सदा नित रहता संगा
महादेव श्री भोले शंकर
भक्तिभाव प्रभु तुमको पाये
सब मिलकर एक स्वर बोले
नमः शिवायः नमः शिवायः
बम बम भोले हो त्रिनेत्री
नटराजन ओ तांडव कर्ता
एक आसरा है प्रभु तेरा
प्रिय आप खुद पीड़ा हर्ता।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा भजन
रचयिता पूनम गोयल
हरि ऊँ० नम: शिवाय ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
बोलो , ऊँ० नम: शिवाय ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !!
१)--शिव की महिमा , सबसे न्यारी !
जाने है , ये दुनिया सारी !!
हर बंधन कट जाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०.............
२)--डम-डम बाजे , शिव का डमरू !
नाचे पग में , बांधे घुंघरू !!
भक्तों के मन भाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०..............
३)--बायें अंग में, गौरा सोहे !
और दायें में , गणपति सोहे !!
शिव देवों के देव , कहलाएं ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०...........
४)--शिव को मन से , जो भी ध्यावे !
मनचाहा वर , वो पा जावे !!
महिमा हर कोई गाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०..........
५)--बहुत दयालु हैं , शिवशंकर !
कृपा के सागर , हैं शिवशंकर !!
बिन माँगे , सब पाएं ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०............
६)--लेकिन जब शिव , क्रोध में आएं !
ताण्डव-नृत्य , वो दिखलाएं !!
सब-कुछ भस्म हो जाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०..........
७)--ऐसी महिमा है , शिवजी की !
पार नहीं पाया , कोई भी !!
सभी देव भी शीश झुकाएं ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०.........
रचयिता पूनम गोयल
हरि ऊँ० नम: शिवाय ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
बोलो , ऊँ० नम: शिवाय ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !!
१)--शिव की महिमा , सबसे न्यारी !
जाने है , ये दुनिया सारी !!
हर बंधन कट जाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०.............
२)--डम-डम बाजे , शिव का डमरू !
नाचे पग में , बांधे घुंघरू !!
भक्तों के मन भाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०..............
३)--बायें अंग में, गौरा सोहे !
और दायें में , गणपति सोहे !!
शिव देवों के देव , कहलाएं ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०...........
४)--शिव को मन से , जो भी ध्यावे !
मनचाहा वर , वो पा जावे !!
महिमा हर कोई गाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०..........
५)--बहुत दयालु हैं , शिवशंकर !
कृपा के सागर , हैं शिवशंकर !!
बिन माँगे , सब पाएं ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०............
६)--लेकिन जब शिव , क्रोध में आएं !
ताण्डव-नृत्य , वो दिखलाएं !!
सब-कुछ भस्म हो जाए ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०..........
७)--ऐसी महिमा है , शिवजी की !
पार नहीं पाया , कोई भी !!
सभी देव भी शीश झुकाएं ,
हरि ऊँ० नम: शिवाय !
हरि ऊँ०.........
तन माया मन काशी वंदन
प्रभु तुम हो इक सुरभित चंदन
तुम हो अजर -अमर विधाता
कालजयी हो जीवन- दाता
जग जीवन के महासमर का
पृष्ठ रचाता संपादक हो
तन माया मन----
जग की हर कृति तुम्हीं से
अनुरक्ति और विरक्ति तुम्हीं से
प्रेम की पराकाष्ठा हो तुम
वैराग्य और भक्ति तुम्हीं से
तन माया मन-------
तुम सृष्टि के कमल खिलाते
जीवन का अधखिला फूल मैं
तेरे बाग का ही फूल हूँ तेरे चरणों की धूल मैं
प्रभु तुम वसुधा और गगन हो
तन माया मन----
जीवन है इक बहती सरिता
तुम हो पावन परम पुनीता
मन कामी मद लोभ का धोतक
तुम पापनाशिनी गंगाजल हो
तन माया मन---
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
प्रभु तुम हो इक सुरभित चंदन
तुम हो अजर -अमर विधाता
कालजयी हो जीवन- दाता
जग जीवन के महासमर का
पृष्ठ रचाता संपादक हो
तन माया मन----
जग की हर कृति तुम्हीं से
अनुरक्ति और विरक्ति तुम्हीं से
प्रेम की पराकाष्ठा हो तुम
वैराग्य और भक्ति तुम्हीं से
तन माया मन-------
तुम सृष्टि के कमल खिलाते
जीवन का अधखिला फूल मैं
तेरे बाग का ही फूल हूँ तेरे चरणों की धूल मैं
प्रभु तुम वसुधा और गगन हो
तन माया मन----
जीवन है इक बहती सरिता
तुम हो पावन परम पुनीता
मन कामी मद लोभ का धोतक
तुम पापनाशिनी गंगाजल हो
तन माया मन---
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
शिव, शिव शाश्वत है,
शिव, शिव आदि है अनन्त है,
शिव, शिव गंगाधारी है,जटाधारी है,
शिव, शिव मुण्डमालाधारी, विषधारी है,
शिव, शिव दयालु है,
शिव, शिव कृपालु है,
शिव, शिव करते बेड़ा पार,
शिव, शिव ही करते है संहार,
शिव, शिव ही सब संकट हरता,
शिव, शिव ही ज्ञानी,शिव ही विधाता,
शिव, शिव महाकाल, शिव उमापति,
शिव, शिव से बड़ा न कोई संन्यासी,
शिव, शिव ही शंकर , शिव ही भोलेनाथ,
शिव, शिव नीलकंठ, शिव ही कैलाश वासी,
शिव, शिव से होते पूरे काम,
शिव, शिव के चरणों मे सारे धाम,
शिव, शिव ही त्रिलोचन, चंद्रधारी,
शिव, शिव जगत के आधार,
शिव, शिव देवों के देव महादेव,
शिव, शिव की महिमा अपरम्पार
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
"दोहे"
'''''''''''''
उन सा सन्यासी नहीं ,हैं नाथों के नाथ।
दानी ना उनसे बड़ा ,. जैसे भोलेनाथ।।
-------------------
अवढरदानी देव वो ,.. दें भक्तों का साथ।
तनिक भक्ति में खुश रहें , ऎसे भोलेनाथ।।
-------------------
शीश सुधाकर सोहते ,जटा गंग की धार।
गले नाग का वास है ,संग शिवा हरबार।।
--------------------
जग का संकट काटने,किया जहर स्वीकार।
ऎसे भोलेनाथ को ,.... ... वंदहुँ बारम्बार।।
=========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
'''''''''''''
उन सा सन्यासी नहीं ,हैं नाथों के नाथ।
दानी ना उनसे बड़ा ,. जैसे भोलेनाथ।।
-------------------
अवढरदानी देव वो ,.. दें भक्तों का साथ।
तनिक भक्ति में खुश रहें , ऎसे भोलेनाथ।।
-------------------
शीश सुधाकर सोहते ,जटा गंग की धार।
गले नाग का वास है ,संग शिवा हरबार।।
--------------------
जग का संकट काटने,किया जहर स्वीकार।
ऎसे भोलेनाथ को ,.... ... वंदहुँ बारम्बार।।
=========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
🍁
शक्ति का शिव से मिलन की,
रात है शिवरात्रि ।
माँ प्रकृति और शिव पुरूष का,
योग है शिवरात्रि।
🍁
शरद का ऋतु गीष्म से,
संयोग है शिवरात्रि।
सत्य शिव का सृष्टि से,
सह योग है शिवरात्रि ।
🍁
इस चराचर जगत की,
उत्पती है शिवरात्रि ।
शेर के परमात्मा का,
मिलन है शिवरात्रि ।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
शक्ति का शिव से मिलन की,
रात है शिवरात्रि ।
माँ प्रकृति और शिव पुरूष का,
योग है शिवरात्रि।
🍁
शरद का ऋतु गीष्म से,
संयोग है शिवरात्रि।
सत्य शिव का सृष्टि से,
सह योग है शिवरात्रि ।
🍁
इस चराचर जगत की,
उत्पती है शिवरात्रि ।
शेर के परमात्मा का,
मिलन है शिवरात्रि ।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
शिव का ईकार ही शक्ति है
शिव साक्ष्य साधन मुक्ति है
शिव सूक्ष्म चिंतन युक्ति है
शिव साधना ही भक्ति है।
शिव व्याप्त व्यापक सृष्टि में
जग जीव जैविक पुष्टि मे
कण कण तिरोहित समष्टि मे
अंतरनिहित वृण वृष्टि मे
शिव चेतना साकार है
शिव मे शिवी आकार है
रति-काम भस्मागार है
साकार मे निराकार है
🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱
रागिनी नरेंद्र शास्त्री
शिव साक्ष्य साधन मुक्ति है
शिव सूक्ष्म चिंतन युक्ति है
शिव साधना ही भक्ति है।
शिव व्याप्त व्यापक सृष्टि में
जग जीव जैविक पुष्टि मे
कण कण तिरोहित समष्टि मे
अंतरनिहित वृण वृष्टि मे
शिव चेतना साकार है
शिव मे शिवी आकार है
रति-काम भस्मागार है
साकार मे निराकार है
🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱
रागिनी नरेंद्र शास्त्री
विधा - गीत ( भजन)
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
भोले बाबा का नित गुणगान करे |
लेकिन पहले मन से स्नान करे ||
हैं अविनाशी घट-घट वासी शंकर ,
पैर नहीं लगने दें हमको कंकर ,
सच्ची श्रद्धा भक्ति से ही ध्यान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
चाहे अर्पण कर दो भाँग- धतूरा ,
संकल्प लिया जो भी करते पूरा ,
भक्तों की हरदम ऊँची शान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
दानव - देव सभी को लगते प्यारे ,
कष्ट न भोगे जो भी रहे सहारे ,
जो भी शरणागत हो सम्मान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
बीच भँवर में नैया हो पार करे ,
देखे सपने जो हो साकार करे ,
कैलाशी का तो - मन से ध्यान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
एल एन कोष्टी गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
भोले बाबा का नित गुणगान करे |
लेकिन पहले मन से स्नान करे ||
हैं अविनाशी घट-घट वासी शंकर ,
पैर नहीं लगने दें हमको कंकर ,
सच्ची श्रद्धा भक्ति से ही ध्यान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
चाहे अर्पण कर दो भाँग- धतूरा ,
संकल्प लिया जो भी करते पूरा ,
भक्तों की हरदम ऊँची शान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
दानव - देव सभी को लगते प्यारे ,
कष्ट न भोगे जो भी रहे सहारे ,
जो भी शरणागत हो सम्मान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
बीच भँवर में नैया हो पार करे ,
देखे सपने जो हो साकार करे ,
कैलाशी का तो - मन से ध्यान करे |
भोले बाबा का नित गुणगान करे ||
एल एन कोष्टी गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक
II छंद – भुजंगप्रयात II
( यमाता x 4 / 122×4 )
नमामी महांदेव गंगा धराये...
जटाजूट शंभू पिनाकी धराये...
नमामी कपाली भक्तवतसलाये...
नमामी नमामी मृतुन्जय शिवाये...
(नमन करता हूँ मैं देवों के देव महादेव जिन्होंने गंगा को धारण कर रखा है….जिनके सर पे जटाओं का जूड़ा बना है और पिनाकी नाम का धनुष धारण कर रखा है….. भक्तों के प्यार के वशीभूत उनको भय से मुक्त करने हेतु कपाली रूप को मैं नमन करता हूँ….. मैं कण कण में विद्यमान मृत्यु को जीतने वाले शिव का नमन करता हूँ…..)
नमो देव भोले नमो देवनाथं...
नमो शंकरा सर्व भूताधिवासं...
नमो शूलपाणी विरूपाक्ष रूद्रं...
नमो अंबिकानाथ पादार्विन्दं...
(नमन करता हूँ मैं उस शिव को जो भोले हैं जो देवों के नाथ हैं…नमन करता हूँ मैं उस शंकर को जो सब का भला करते हैं सब में निवास करते हैं….नमन मेरा त्रिशूल धारी विचित्र आँख वाले (तीन नेत्र वाले) रूद्र को….नमन मेरा गौरी…अम्बिका नाथ को जिनके चरण कमल जैसे हैं….)
हरो देव दैहिक च मनसा विषादं...
प्रसीद: शिवा शंकरा शम्भुनाथं...
प्रसीद: महादेव हे विश्वनाथम...
प्रसीद शिवा हे करुणावतारम...
(हे देव सभी के शारीरिक मानसिक कष्टों का.... दुखों का हरण करो...हे शंकर..शम्भुनाथ...महादेव... विश्वनाथ.... आप करुणावतार हैं.... प्रसन्न होईये... हे शिव.... हम पर प्रसन्न होईये....)
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
( यमाता x 4 / 122×4 )
नमामी महांदेव गंगा धराये...
जटाजूट शंभू पिनाकी धराये...
नमामी कपाली भक्तवतसलाये...
नमामी नमामी मृतुन्जय शिवाये...
(नमन करता हूँ मैं देवों के देव महादेव जिन्होंने गंगा को धारण कर रखा है….जिनके सर पे जटाओं का जूड़ा बना है और पिनाकी नाम का धनुष धारण कर रखा है….. भक्तों के प्यार के वशीभूत उनको भय से मुक्त करने हेतु कपाली रूप को मैं नमन करता हूँ….. मैं कण कण में विद्यमान मृत्यु को जीतने वाले शिव का नमन करता हूँ…..)
नमो देव भोले नमो देवनाथं...
नमो शंकरा सर्व भूताधिवासं...
नमो शूलपाणी विरूपाक्ष रूद्रं...
नमो अंबिकानाथ पादार्विन्दं...
(नमन करता हूँ मैं उस शिव को जो भोले हैं जो देवों के नाथ हैं…नमन करता हूँ मैं उस शंकर को जो सब का भला करते हैं सब में निवास करते हैं….नमन मेरा त्रिशूल धारी विचित्र आँख वाले (तीन नेत्र वाले) रूद्र को….नमन मेरा गौरी…अम्बिका नाथ को जिनके चरण कमल जैसे हैं….)
हरो देव दैहिक च मनसा विषादं...
प्रसीद: शिवा शंकरा शम्भुनाथं...
प्रसीद: महादेव हे विश्वनाथम...
प्रसीद शिवा हे करुणावतारम...
(हे देव सभी के शारीरिक मानसिक कष्टों का.... दुखों का हरण करो...हे शंकर..शम्भुनाथ...महादेव... विश्वनाथ.... आप करुणावतार हैं.... प्रसन्न होईये... हे शिव.... हम पर प्रसन्न होईये....)
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
विषय :-"शिव "
(1)🌿
शिव विवाह
भूत-प्रेत बाराती
सवारी नंदी
(2)🌿
विरह अग्नि
शिव का अलंकार
सती की भस्म
(3)🌿
राख़ विरक्ति
शिव एक तपस्वी
झूठी आसक्ति
(4)🌿
शिव का सत्य
काया क्षणभंगुर
आत्मा अनंत
(5)🌿
दृष्टि त्रिकाल
काल के कपाल पे
है महाकाल
(6)🌿
डमरू बजा
व्याकरण प्रकृट
शिव ताँडव
(7)
शिव श्रृंगार
भस्म, नाग व चंद्र
जटा विशाल
स्वरचित
ऋतुराज दवे
(1)🌿
शिव विवाह
भूत-प्रेत बाराती
सवारी नंदी
(2)🌿
विरह अग्नि
शिव का अलंकार
सती की भस्म
(3)🌿
राख़ विरक्ति
शिव एक तपस्वी
झूठी आसक्ति
(4)🌿
शिव का सत्य
काया क्षणभंगुर
आत्मा अनंत
(5)🌿
दृष्टि त्रिकाल
काल के कपाल पे
है महाकाल
(6)🌿
डमरू बजा
व्याकरण प्रकृट
शिव ताँडव
(7)
शिव श्रृंगार
भस्म, नाग व चंद्र
जटा विशाल
स्वरचित
ऋतुराज दवे
जय भंडारी डमरुधारी
हम प्रभु शरण तिहारी।
कणकण में बसते तुम,
शिव लेलें सुधि हमारी।
भस्मी तुमको रोज लगाऐं
हम भांग धतूरे तुम्हें चढाऐं।
भोले तुम सचमुच ही भोले,
बेलपत्र कुछ कुसुम चढाऐं।
उमापति गौरी शिवशंकर।
तुम ज्ञानेश्वर हो परमेश्वर।
गंगा तुमरी जटा बिराजी,
जय जय जय हे सोमेश्वर।
स्वरचितः ः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
हम प्रभु शरण तिहारी।
कणकण में बसते तुम,
शिव लेलें सुधि हमारी।
भस्मी तुमको रोज लगाऐं
हम भांग धतूरे तुम्हें चढाऐं।
भोले तुम सचमुच ही भोले,
बेलपत्र कुछ कुसुम चढाऐं।
उमापति गौरी शिवशंकर।
तुम ज्ञानेश्वर हो परमेश्वर।
गंगा तुमरी जटा बिराजी,
जय जय जय हे सोमेश्वर।
स्वरचितः ः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
कालों के काल
आराध्य महाकाल
दर्शी त्रिकाल।।
देवों के देव
शंकर महादेव
औघरदानी।।
इशों के ईश
त्रिनेत्र धारी प्रभु
निर्वाण रूप।।
तांडव नृत्य
सृष्टि विनाश कारी
रौद्र स्वरूप।।
शिव अर्चन
है महाशिवरात्रि
शिव प्रसन्न।।
मस्तक चंद्र
हाथ त्रिशूल नँग
कंठ भुजंग।।
भावुक
आराध्य महाकाल
दर्शी त्रिकाल।।
देवों के देव
शंकर महादेव
औघरदानी।।
इशों के ईश
त्रिनेत्र धारी प्रभु
निर्वाण रूप।।
तांडव नृत्य
सृष्टि विनाश कारी
रौद्र स्वरूप।।
शिव अर्चन
है महाशिवरात्रि
शिव प्रसन्न।।
मस्तक चंद्र
हाथ त्रिशूल नँग
कंठ भुजंग।।
भावुक
शिव भजन
सिर पर गंगा की धार,
कर चाँद का श्रंगार,
होके नंदी पर सवार,
चले गौरा के द्वार,
बन बराती गण ये सारे,
भोले के सब ये प्यारे,
पी भाँग ये नाचे सारे,
महाकाल के लगा जयकारे,
चले लेने गौरा को सारे,
दक्ष ने जो फिर ताने मारे,
हुए क्रोधित भोले हमारे,
खुला त्रिनेत्र निकले अंगारे,
शांत करने को भागे देवता,
आई याद फिर गौरा माता ।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
सिर पर गंगा की धार,
कर चाँद का श्रंगार,
होके नंदी पर सवार,
चले गौरा के द्वार,
बन बराती गण ये सारे,
भोले के सब ये प्यारे,
पी भाँग ये नाचे सारे,
महाकाल के लगा जयकारे,
चले लेने गौरा को सारे,
दक्ष ने जो फिर ताने मारे,
हुए क्रोधित भोले हमारे,
खुला त्रिनेत्र निकले अंगारे,
शांत करने को भागे देवता,
आई याद फिर गौरा माता ।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
शिव सृष्टि नियंता महादेव प्रभु ,हैं जन जन के हितकारी जग में |
तीन लोक के स्वामी शिव जी , बन गये हिमालय वासी जग में |
श्री भोले नाथ प्रभु पार्वती पति , घट घट के वासी हैं जग में |
महिमा शिव की सबने ही गायी ,शिव हैं अंनंत अविनाशी जग में |
जग कल्याण हेतु गरल पान कर , शिव नीलकंठ भी कहलाये जग में
शिव और शक्ति का अदुभुत संगम ही , सृष्टि को सुदंरतम बनाया जग में |
आसक्ति रहित हैं शिव सत्य घोष भी , भोले अति पावन रूप धराये जग में |
शिव के भाल चंद्रमा, गंग धार सिर , गले सर्प हार, बाघम्बर सोहे तन में |
नट नागर हैं शिव अर्धनारीश्वर भी , डमरू बजा जीवन संगीत सजाये जग में |
औघढ रूप धर भूत पिशाच संग रह , जीवन दर्शन समझाया हमको जग में |
विसंगतियों में भी निर्मल रख मन , जीवन ज्योति उजागर रख पाना जग में |
आक धतूरा और वेल की पाती, बिषपान सहजता से करना जग में |
जीवन में सुख और दुख दोनों को , शिव समान कहकर दिखलाये जग में |
उनका मन आराध्य में रहा सदा ही , किये तीन लोक संचालित जग में |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
तीन लोक के स्वामी शिव जी , बन गये हिमालय वासी जग में |
श्री भोले नाथ प्रभु पार्वती पति , घट घट के वासी हैं जग में |
महिमा शिव की सबने ही गायी ,शिव हैं अंनंत अविनाशी जग में |
जग कल्याण हेतु गरल पान कर , शिव नीलकंठ भी कहलाये जग में
शिव और शक्ति का अदुभुत संगम ही , सृष्टि को सुदंरतम बनाया जग में |
आसक्ति रहित हैं शिव सत्य घोष भी , भोले अति पावन रूप धराये जग में |
शिव के भाल चंद्रमा, गंग धार सिर , गले सर्प हार, बाघम्बर सोहे तन में |
नट नागर हैं शिव अर्धनारीश्वर भी , डमरू बजा जीवन संगीत सजाये जग में |
औघढ रूप धर भूत पिशाच संग रह , जीवन दर्शन समझाया हमको जग में |
विसंगतियों में भी निर्मल रख मन , जीवन ज्योति उजागर रख पाना जग में |
आक धतूरा और वेल की पाती, बिषपान सहजता से करना जग में |
जीवन में सुख और दुख दोनों को , शिव समान कहकर दिखलाये जग में |
उनका मन आराध्य में रहा सदा ही , किये तीन लोक संचालित जग में |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
1
उमड़ी भीड़
जलाभिषेक हेतु
शिवालयों में
2
बेल पत्र से
शिवलिंग शोभित
भांग धतूरा
3
पुष्प अर्पित
शिव जी के ऊपर
घंटा टंकार
4
पावन पर्व
महाशिवरात्रि का
फाल्गुन माह
5
जयकारा है
बम बम भोले का
भक्ति दर्शन
6
नाग गले में
त्रिपुण्ड सिर पर
त्रिनेत्रधारी
7
नंदी के संग
गणपति विराजें
मन्दिर शोभा
8
शिव के हाथों
त्रिशूल व डमरू
रौद्र रूप में
9
माँ गौरी संग
महादेव विराजें
अनादि शक्ति
मनीष श्री
स्वरचित
उमड़ी भीड़
जलाभिषेक हेतु
शिवालयों में
2
बेल पत्र से
शिवलिंग शोभित
भांग धतूरा
3
पुष्प अर्पित
शिव जी के ऊपर
घंटा टंकार
4
पावन पर्व
महाशिवरात्रि का
फाल्गुन माह
5
जयकारा है
बम बम भोले का
भक्ति दर्शन
6
नाग गले में
त्रिपुण्ड सिर पर
त्रिनेत्रधारी
7
नंदी के संग
गणपति विराजें
मन्दिर शोभा
8
शिव के हाथों
त्रिशूल व डमरू
रौद्र रूप में
9
माँ गौरी संग
महादेव विराजें
अनादि शक्ति
मनीष श्री
स्वरचित
विधा -हाइकु
1.
सच्ची श्रद्धा से
करें शिव पूजन
शिव हाजिर
2.
प्रथम पूजा
शिव पुत्र गणेश
कार्यसिद्धि को
3.
ये जटाधारी
ले नाग विषधारी
बम लहरी
4.
रुद्राक्ष माला
पहन मृगछाला
शिव तांडव
5.
शिव रिझाय
बेलपत्र चढाय
नमः शिवाय
6.
त्रिनेत्रधारी
महादेव सबके
कल्याणकारी
7.
भंग का घोटा
शिव को पसन्द था
छाल लंगोटा
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
1.
सच्ची श्रद्धा से
करें शिव पूजन
शिव हाजिर
2.
प्रथम पूजा
शिव पुत्र गणेश
कार्यसिद्धि को
3.
ये जटाधारी
ले नाग विषधारी
बम लहरी
4.
रुद्राक्ष माला
पहन मृगछाला
शिव तांडव
5.
शिव रिझाय
बेलपत्र चढाय
नमः शिवाय
6.
त्रिनेत्रधारी
महादेव सबके
कल्याणकारी
7.
भंग का घोटा
शिव को पसन्द था
छाल लंगोटा
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
औघड़दानी, शिव त्रिपुरारी अद्भुत रूप बनाए हैं
व्याघ्रचर्म तन पर धारण कर,कंठ भुजंग
लिपटाए हैं
भाल चंद्रमा, जटा में गंगा, अंग पे भस्म रमाए हैं
नन्दी पर होकर सवार गौरा को ब्याहने आए हैं
सकल देवता और गणादि बारात की शोभा बढ़ाए हैं
संग पिशाच, भूत और प्रेत भी हुड़दंग मचाए हैं
नरमुंडों की माला पहने, हाथ कपाल उठाए हैं
लेकर यह विचित्र बारात शिव द्वार हिमालय आए हैं
अगवानी को आए हिमालय, मैना को संग में लाए हैं
दृश्य भयंकर शिवदल का देख दोनों घबराए हैं
आनन फानन मैना ने नारद मुनि बुलवाए हैं
आड़े हाथों लिया मुनि को, कड़वे वचन सुनाए हैं
कौन जन्म का बदला लिया, पुत्री मेरी भरमाए हैं
क्या इसी बावले वर के लिए कठोर तप करवाए हैं
सुनकर हंसे मुनिवर , प्रेम से मैना को समझाए हैं
साक्षात सती का रूप है गौरा, तभी शिव ब्याहने आए हैं
सुनकर मिटे विषाद सभी के, मन ही मन हर्षाए हैं
हरि ने स्वयं अपने हाथों से अब आशुतोष
सजाए हैं
कामदेव सा मनमोहक शंकर का वेश बनाए हैं
दिव्य, मनोहर छवि धर भोले चंद्रशेखर कहलाए हैं
मंगल गान कर आरती उतार वर को भीतर लाए हैं
आदरपूर्वक सभी बारातियों को पकवान जिमाए हैं
लावण्यमयी गौरा और शिव को मंडप में बिठाए हैं
मंत्रोच्चार प्रारंभ कर विप्र वर के पिता को बुलवाए हैं
बोले नारद शिव हैं अजन्मे अतएव स्वयम्भू कहलाए हैं
मात-पिता न गोत्र न सम्बंधी, शून्य से शिव प्रकटाए हैं
सुनकर चकित हुए सभी श्रोता, श्रद्धा से शीश नवाए हैं
देख महेश्वर कुछ न बोले बस मन ही मन मुस्काए हैं
हुआ सम्पन्न शुभविवाह ,वर वधु माला पहनाए हैं
परमानन्दित हुआ ब्रह्मांड, तीनों लोक हर्षाए हैं
मंगल ध्वनि के साथ सभी ने नाना पुष्प बरसाए हैं
शिव- गौरा के मिलन को सृष्टि शिवरात्रि के रूप में मनाए है
स्वरचित
नीतू राजीव कपूर
पालमपुर(हिमाचल प्रदेश)
व्याघ्रचर्म तन पर धारण कर,कंठ भुजंग
लिपटाए हैं
भाल चंद्रमा, जटा में गंगा, अंग पे भस्म रमाए हैं
नन्दी पर होकर सवार गौरा को ब्याहने आए हैं
सकल देवता और गणादि बारात की शोभा बढ़ाए हैं
संग पिशाच, भूत और प्रेत भी हुड़दंग मचाए हैं
नरमुंडों की माला पहने, हाथ कपाल उठाए हैं
लेकर यह विचित्र बारात शिव द्वार हिमालय आए हैं
अगवानी को आए हिमालय, मैना को संग में लाए हैं
दृश्य भयंकर शिवदल का देख दोनों घबराए हैं
आनन फानन मैना ने नारद मुनि बुलवाए हैं
आड़े हाथों लिया मुनि को, कड़वे वचन सुनाए हैं
कौन जन्म का बदला लिया, पुत्री मेरी भरमाए हैं
क्या इसी बावले वर के लिए कठोर तप करवाए हैं
सुनकर हंसे मुनिवर , प्रेम से मैना को समझाए हैं
साक्षात सती का रूप है गौरा, तभी शिव ब्याहने आए हैं
सुनकर मिटे विषाद सभी के, मन ही मन हर्षाए हैं
हरि ने स्वयं अपने हाथों से अब आशुतोष
सजाए हैं
कामदेव सा मनमोहक शंकर का वेश बनाए हैं
दिव्य, मनोहर छवि धर भोले चंद्रशेखर कहलाए हैं
मंगल गान कर आरती उतार वर को भीतर लाए हैं
आदरपूर्वक सभी बारातियों को पकवान जिमाए हैं
लावण्यमयी गौरा और शिव को मंडप में बिठाए हैं
मंत्रोच्चार प्रारंभ कर विप्र वर के पिता को बुलवाए हैं
बोले नारद शिव हैं अजन्मे अतएव स्वयम्भू कहलाए हैं
मात-पिता न गोत्र न सम्बंधी, शून्य से शिव प्रकटाए हैं
सुनकर चकित हुए सभी श्रोता, श्रद्धा से शीश नवाए हैं
देख महेश्वर कुछ न बोले बस मन ही मन मुस्काए हैं
हुआ सम्पन्न शुभविवाह ,वर वधु माला पहनाए हैं
परमानन्दित हुआ ब्रह्मांड, तीनों लोक हर्षाए हैं
मंगल ध्वनि के साथ सभी ने नाना पुष्प बरसाए हैं
शिव- गौरा के मिलन को सृष्टि शिवरात्रि के रूप में मनाए है
स्वरचित
नीतू राजीव कपूर
पालमपुर(हिमाचल प्रदेश)
दोहे :-
आत्मा होती सत्य है , होय ब्रह्म का रूप ।
शिव का दर्शन ही बने , सुंदर सृष्टि रूप ।।१।।
शिव होता सुंदर सदा , जो करता कल्याण ।
नेक कर्म करिए सदा , जीवन का हो त्राण ।।२।।
सत्यम् शिवम् सुंदर का , बहुत उच्च विज्ञान ।
शिव सुंदर दोनों मिलें , रखते सच का मान ।।३।।
पतझड़ महके जब कहीं , आती दिखे सुगंध ।
दर्शन सत का कीजिए , दिखता ब्रह्म अमंद ।।४।।
ब्रह्म पर्याय सत्य का , ध्वनि गूँजे आकाश ।
शिव सुंदरम् सत्य मिले , तुलसी सुंदर कांड ।।५।।
सुंदर हो जो देह से , सुंदर होय ज़रूर ।
मन सुंदर तन से अधिक , रहे देह से दूर ।।६।।
मिलते तत और सत जब , बनता है तब सत्य ।
कर पालित सदनीति से , बनते सुंदर कृत्य ।।७।।
स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )
आत्मा होती सत्य है , होय ब्रह्म का रूप ।
शिव का दर्शन ही बने , सुंदर सृष्टि रूप ।।१।।
शिव होता सुंदर सदा , जो करता कल्याण ।
नेक कर्म करिए सदा , जीवन का हो त्राण ।।२।।
सत्यम् शिवम् सुंदर का , बहुत उच्च विज्ञान ।
शिव सुंदर दोनों मिलें , रखते सच का मान ।।३।।
पतझड़ महके जब कहीं , आती दिखे सुगंध ।
दर्शन सत का कीजिए , दिखता ब्रह्म अमंद ।।४।।
ब्रह्म पर्याय सत्य का , ध्वनि गूँजे आकाश ।
शिव सुंदरम् सत्य मिले , तुलसी सुंदर कांड ।।५।।
सुंदर हो जो देह से , सुंदर होय ज़रूर ।
मन सुंदर तन से अधिक , रहे देह से दूर ।।६।।
मिलते तत और सत जब , बनता है तब सत्य ।
कर पालित सदनीति से , बनते सुंदर कृत्य ।।७।।
स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा १२५०५५ ( हरियाणा )
शिव तो भोले भंडारी ,
दुनियाँ में बस अविकारी। शांत चित्त नदिंश्वर सवारी,
शिव शंकर रूद्रावतारी ।
खुश हो जाते अल्प सेव,
समस्त लोक देवाधि देव ।
जगती तल के सरलेश्वर
नर-नारी अर्द्धनारिश्वर ।
सरल-सहज भाव निराला,
गले लटका साँप विकराला ।
दया कर वरदान दे देते हैं,
कभी-कभी अभयदान देते हैं।
शशिधर नाम शीस गंग बहती हैं,
निवास पार्वती अभाव संग रहती हैं।
आशुतोष दयावतारी हलाहल पीते हैं,
शिलाखण्ड मृगछाल् पहन जीते हैं ।
सरल मानव सदैव उपहार पाते हैं,
क्रूर राक्षस उनसे संहारे जाते हैं ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
दुनियाँ में बस अविकारी। शांत चित्त नदिंश्वर सवारी,
शिव शंकर रूद्रावतारी ।
खुश हो जाते अल्प सेव,
समस्त लोक देवाधि देव ।
जगती तल के सरलेश्वर
नर-नारी अर्द्धनारिश्वर ।
सरल-सहज भाव निराला,
गले लटका साँप विकराला ।
दया कर वरदान दे देते हैं,
कभी-कभी अभयदान देते हैं।
शशिधर नाम शीस गंग बहती हैं,
निवास पार्वती अभाव संग रहती हैं।
आशुतोष दयावतारी हलाहल पीते हैं,
शिलाखण्ड मृगछाल् पहन जीते हैं ।
सरल मानव सदैव उपहार पाते हैं,
क्रूर राक्षस उनसे संहारे जाते हैं ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
हे शिव शंकर,हे रूद्र अवतारी,
हे महादेव त्रिपुरारी,जय जय शिव
शंम्भू ,भोले भण्डारी
अर्धनारीश्वर आप कहलाते आप
जगत के पालन हारी
शीश पर गंगधारा ज्ञान का
संचार करो तुम ,हे गंगाधर हम
पर कृपा निधान करो तुम
केशचंद्र की सुख शान्ति
इस जगत पर उपकार करो
हे विषधर नीलकंठ जगत का
विकार हर दो तुम
पूरे जगत मे काम, क्रोध,
मोह, लोभ, मद,जो समाया
उसका आप संहार करो
हे शिवशंकर देवत्व प्रेम भावना
हम सबके मन मे भर दो
नयी सृष्टि का घोष करो तुम
हे भोले भण्डारी
आदिशक्ति को जागृत कर,
भक्तो को शक्तिशाली कर दो,
हे गजानन हर मानव के अंतर्मन में ,
सद्गुण शांति सद्धिवेक का
संचार कर दो
कार्तिकेय सा देह में साहस भर दो
काल के काल महाकाल
आपके पास देव भूत प्रेत असुर
. सभी सुख पाते है
सत्यम शिवम सुंदरम इन
सबका ध्यान लगाते है
ओम नमः शिवाय के जाप से
सभी पाप मुक्त हो जाते है
पशु पक्षी जीव जन्तु पंचदेव
शरण तुम्हारे आते है
मूषक, मृग, सर्प, सिंह, वृष,
सहज साथ रह जाते है
हे शिव शम्भू तुमने सबको
प्रेम से रहने का एक शुभ संदेश दिया सबको सत्यता का मार्ग दिखाया
भटके हुये को रोक दिया
हम सबको ये कृति सिखा दो
हम पर ये उपकार करो
जन-जन के हृदय में बसे हो
पशु पक्षी के प्राण नाथ तुम
शत शत नमन त्रिलोकी तुमको
सत्य ही शिव है शिव ही सुंदर
सुंदरता चारो ओर,
🙏स्वरचित, हेमा जोशी 🙏
हे महादेव त्रिपुरारी,जय जय शिव
शंम्भू ,भोले भण्डारी
अर्धनारीश्वर आप कहलाते आप
जगत के पालन हारी
शीश पर गंगधारा ज्ञान का
संचार करो तुम ,हे गंगाधर हम
पर कृपा निधान करो तुम
केशचंद्र की सुख शान्ति
इस जगत पर उपकार करो
हे विषधर नीलकंठ जगत का
विकार हर दो तुम
पूरे जगत मे काम, क्रोध,
मोह, लोभ, मद,जो समाया
उसका आप संहार करो
हे शिवशंकर देवत्व प्रेम भावना
हम सबके मन मे भर दो
नयी सृष्टि का घोष करो तुम
हे भोले भण्डारी
आदिशक्ति को जागृत कर,
भक्तो को शक्तिशाली कर दो,
हे गजानन हर मानव के अंतर्मन में ,
सद्गुण शांति सद्धिवेक का
संचार कर दो
कार्तिकेय सा देह में साहस भर दो
काल के काल महाकाल
आपके पास देव भूत प्रेत असुर
. सभी सुख पाते है
सत्यम शिवम सुंदरम इन
सबका ध्यान लगाते है
ओम नमः शिवाय के जाप से
सभी पाप मुक्त हो जाते है
पशु पक्षी जीव जन्तु पंचदेव
शरण तुम्हारे आते है
मूषक, मृग, सर्प, सिंह, वृष,
सहज साथ रह जाते है
हे शिव शम्भू तुमने सबको
प्रेम से रहने का एक शुभ संदेश दिया सबको सत्यता का मार्ग दिखाया
भटके हुये को रोक दिया
हम सबको ये कृति सिखा दो
हम पर ये उपकार करो
जन-जन के हृदय में बसे हो
पशु पक्षी के प्राण नाथ तुम
शत शत नमन त्रिलोकी तुमको
सत्य ही शिव है शिव ही सुंदर
सुंदरता चारो ओर,
🙏स्वरचित, हेमा जोशी 🙏
#गीतिका_छंद
विधान :- 2122 2122 2122 212
आपको प्यारा धतूरा, बेल पाती भा रही ।
आरती की थाल ले के, पूजने मैं आ रही ॥
आपसे सीखूं सदा मैं, सादगी को ही वरो ।
दूसरों के काम आऊं, मैं सदा ऐसा वरो ॥
चंद्र सोहे भाल पे औ, है शिखा पे धार भी ।
दूसरों के वासते ये, धारते हैं ख़ार भी ।
मांगती हूं जोड़ हाथों, को झुका माथा सदा ।
हे कला के देवता तू, दे मुझे ऐसी अदा ॥
नीलकंठी हे विधाता, ज्ञान ऐसा दीजिए ।
ये निराशा छू न पाए, शक्ति ऐसी सींचिए ॥
पी सकूँ मैं जिंदगी की, कालकूटी वेदना ।
प्रेरणा पाऊँ सदा ही, हो कभी भी खेद ना ॥
रचना तिथि 04/03/2019
स्वरचित एवं मौलिक रचना
©®🙏
-सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍
छिंदवाड़ा मप्र
______________________
शब्दकोष:-
वरो = चयन करो
वरो = वरदान दो
ख़ार= कांटा
विधान :- 2122 2122 2122 212
आपको प्यारा धतूरा, बेल पाती भा रही ।
आरती की थाल ले के, पूजने मैं आ रही ॥
आपसे सीखूं सदा मैं, सादगी को ही वरो ।
दूसरों के काम आऊं, मैं सदा ऐसा वरो ॥
चंद्र सोहे भाल पे औ, है शिखा पे धार भी ।
दूसरों के वासते ये, धारते हैं ख़ार भी ।
मांगती हूं जोड़ हाथों, को झुका माथा सदा ।
हे कला के देवता तू, दे मुझे ऐसी अदा ॥
नीलकंठी हे विधाता, ज्ञान ऐसा दीजिए ।
ये निराशा छू न पाए, शक्ति ऐसी सींचिए ॥
पी सकूँ मैं जिंदगी की, कालकूटी वेदना ।
प्रेरणा पाऊँ सदा ही, हो कभी भी खेद ना ॥
रचना तिथि 04/03/2019
स्वरचित एवं मौलिक रचना
©®🙏
-सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍
छिंदवाड़ा मप्र
______________________
शब्दकोष:-
वरो = चयन करो
वरो = वरदान दो
ख़ार= कांटा
प्रकृति और पुरुष के आध्यात्मिक मिलन की रात है
शिवरात्रि का पावन पर्व आया लिये बड़ी सौगात है ।
शिव प्रगट हुए रूप धरि अग्नि शिवलिंग
द्वादश स्थान प्रसिद्ध हुये द्वादश ज्योतिर्लिंग ।
शिव का न अंत है ,न शिव का आदि है
ब्रह्मा विष्णु थाह पा न सके,शिव ऐसे अनादि है।
सृष्टि के रचयिता ये ,तीन लोक के स्वामी है
कालों के महाकाल ये,बाबा औगढ़ अविरामी हैं।
जो सत्य है वो शिव है ,जो शिव वो है सुंदर
शिव हो जाना आसान मगर, शिवत्व पाना है मुश्किल
पांच तत्व का संतुलन, है शिवत्व का आधार
मस्तक पर चाँद विराजे ,गले साँपो का हार ।
संग गौरा पार्वती है,पर शिव है वीतरागी
दो विरोधी शक्तियों का संतुलन बाबा वैरागी ।
विराजे संग पार्वती कैलाश पर,हाथ में त्रिशूल लिये
दैहिक ,दैविक भौतिक ताप ,शिव का त्रिशूल हरे ।
त्रिशूल प्रतीक है तीन नाड़ियो की साधना का
साध इन्हें ध्येय है प्राणिक ऊर्जा को पाना ।
गरल रस पान कर, सदाशिव नीलकंठ कहलाये
डमरू बजा कर शिव कल्याणकारी कहलाये ।
भक्तों के लिए शिव का हर रूप निराला है ,
चिता की राख को अपने तन पर डाला है
भस्म हुआ जीवन है ,नही बचा भस्म मे दुर्गुण
पवित्रता का सम्मान कर ,मृतात्मा से स्वयं को जोड़ा है।
प्रकृति और पुरुष के आध्यात्मिक मिलन की रात है
शिवरात्रि का पावन पर्व आया लिये बड़ी सौगात है ।
©anita_sudhir
शिवरात्रि का पावन पर्व आया लिये बड़ी सौगात है ।
शिव प्रगट हुए रूप धरि अग्नि शिवलिंग
द्वादश स्थान प्रसिद्ध हुये द्वादश ज्योतिर्लिंग ।
शिव का न अंत है ,न शिव का आदि है
ब्रह्मा विष्णु थाह पा न सके,शिव ऐसे अनादि है।
सृष्टि के रचयिता ये ,तीन लोक के स्वामी है
कालों के महाकाल ये,बाबा औगढ़ अविरामी हैं।
जो सत्य है वो शिव है ,जो शिव वो है सुंदर
शिव हो जाना आसान मगर, शिवत्व पाना है मुश्किल
पांच तत्व का संतुलन, है शिवत्व का आधार
मस्तक पर चाँद विराजे ,गले साँपो का हार ।
संग गौरा पार्वती है,पर शिव है वीतरागी
दो विरोधी शक्तियों का संतुलन बाबा वैरागी ।
विराजे संग पार्वती कैलाश पर,हाथ में त्रिशूल लिये
दैहिक ,दैविक भौतिक ताप ,शिव का त्रिशूल हरे ।
त्रिशूल प्रतीक है तीन नाड़ियो की साधना का
साध इन्हें ध्येय है प्राणिक ऊर्जा को पाना ।
गरल रस पान कर, सदाशिव नीलकंठ कहलाये
डमरू बजा कर शिव कल्याणकारी कहलाये ।
भक्तों के लिए शिव का हर रूप निराला है ,
चिता की राख को अपने तन पर डाला है
भस्म हुआ जीवन है ,नही बचा भस्म मे दुर्गुण
पवित्रता का सम्मान कर ,मृतात्मा से स्वयं को जोड़ा है।
प्रकृति और पुरुष के आध्यात्मिक मिलन की रात है
शिवरात्रि का पावन पर्व आया लिये बड़ी सौगात है ।
©anita_sudhir
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