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ब्लॉग संख्या :-338
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जिन्दगी एक अदालत है,
जहाँ रोज फैसले होते हैं,
कुछ फैसले हम लेते हैं,
कुछ तकदीर पर छोड़ते है |
कुछ फैसले दिल से होते हैं ,
कुछ दिमाग़ से किये जाते हैं,
सही वक्त पर सही फैसला,
जिन्दगी आसान बना देता है |
फैसले सोच समझ कर लेना,
रिश्तों पर हावी न होने देना,
बचे रहें रिश्ते यह सोचकर,
फैसलों को लचीला बना देना |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
जिन्दगी एक अदालत है,
जहाँ रोज फैसले होते हैं,
कुछ फैसले हम लेते हैं,
कुछ तकदीर पर छोड़ते है |
कुछ फैसले दिल से होते हैं ,
कुछ दिमाग़ से किये जाते हैं,
सही वक्त पर सही फैसला,
जिन्दगी आसान बना देता है |
फैसले सोच समझ कर लेना,
रिश्तों पर हावी न होने देना,
बचे रहें रिश्ते यह सोचकर,
फैसलों को लचीला बना देना |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
समझ न पाये फैसला उनकी आँखों का
समझ न पाये फैसला उनकी बातों का ।।
कितनी रातें गुजरीं सोचते अब सोचूँ श्रेय
उन्हीं को जाता कलम से मुलाकातों का ।।
काश वो मेरी जिन्दगी में न होते आये
तकदीर के चमन यूँ न होते मुस्कुराये ।।
बेशक फैसले आज फासले कहलाये
पर इसी जद्दोजहद ने ये गुल खिलाये ।।
फैसले रब के मानो सदा ही ''शिवम"
जो होता अच्छा होता वक्त आता नरम ।।
नसीबा सबका चमकता कभी न कभी
मायूस कभी मत हो करते रहो करम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/03/2019
समझ न पाये फैसला उनकी बातों का ।।
कितनी रातें गुजरीं सोचते अब सोचूँ श्रेय
उन्हीं को जाता कलम से मुलाकातों का ।।
काश वो मेरी जिन्दगी में न होते आये
तकदीर के चमन यूँ न होते मुस्कुराये ।।
बेशक फैसले आज फासले कहलाये
पर इसी जद्दोजहद ने ये गुल खिलाये ।।
फैसले रब के मानो सदा ही ''शिवम"
जो होता अच्छा होता वक्त आता नरम ।।
नसीबा सबका चमकता कभी न कभी
मायूस कभी मत हो करते रहो करम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/03/2019
आज का शीर्षक-🌴फैसला🌴
विधा- मुक्तक
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(01)
आप कुछ मेरी तरफ़ यूँ फैसला रख लीजिए ।
शाख जिस पर मैं रखूँ तुम घोंसला रख लीजिए ।
जीने न देंगे इस क़दर से ये जहाँ वाले तुम्हें ,
रोज़ करनी है बग़ावत हौसला रख लीजिए ।।
(02)
कुछ हैं बेपरवाह कुछ बे हौसले हैं ।
निभ रहे दोस्त सबके सब भले हैं ।
उनको तुहमत मैं न दूँगा साथियो! यूँ ,
जिनके नखरे एक अरसे से पले हैं ।।
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"अ़क्स " दौनेरिया
विधा- मुक्तक
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(01)
आप कुछ मेरी तरफ़ यूँ फैसला रख लीजिए ।
शाख जिस पर मैं रखूँ तुम घोंसला रख लीजिए ।
जीने न देंगे इस क़दर से ये जहाँ वाले तुम्हें ,
रोज़ करनी है बग़ावत हौसला रख लीजिए ।।
(02)
कुछ हैं बेपरवाह कुछ बे हौसले हैं ।
निभ रहे दोस्त सबके सब भले हैं ।
उनको तुहमत मैं न दूँगा साथियो! यूँ ,
जिनके नखरे एक अरसे से पले हैं ।।
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"अ़क्स " दौनेरिया
साहस और धैर्य के बल पर
जनहित फैसले लेने पड़ते
श्रम वारि बिन्दुफल से नित
हिलमिल सब आगे ही बढ़ते
कर्म करने से पूर्व सदा ही
श्रेष्ठ फैसला करना होगा
शुभ अशुभ भावी क्या है
मूर्ख सदा देते जग धोखा
वर्तमान में रहकर हम नित
शुभ भविष्य फैसला लेते है
सद्कर्मो की चले डगरिया
मधुर फलों को हम चखते हैं
हम स्वार्थ के सब मतवारे
घूम रहे और झूम रहे सब
कालचक्र नियमित चलता
सदा फैसला लेता है रब
अब परिवार बिखर रहे सब
लोकलाज मर्यादा तार तार
निज फैसले नेक नहीं अब
बिलखे मातपिता बार बार
संसद के मंदिर में मिलकर
जनहित फैसले लेने पड़ते
करें कल्पना उज्ज्वल भावी
सदा मुल्क वे आगे ही बढ़ते
जनहिताये परम् शांति हो
हिय स्नेह के सुमन खिले
करें फैसला सारे मिलकर
हिलमिल कर सब गले मिंले।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
जनहित फैसले लेने पड़ते
श्रम वारि बिन्दुफल से नित
हिलमिल सब आगे ही बढ़ते
कर्म करने से पूर्व सदा ही
श्रेष्ठ फैसला करना होगा
शुभ अशुभ भावी क्या है
मूर्ख सदा देते जग धोखा
वर्तमान में रहकर हम नित
शुभ भविष्य फैसला लेते है
सद्कर्मो की चले डगरिया
मधुर फलों को हम चखते हैं
हम स्वार्थ के सब मतवारे
घूम रहे और झूम रहे सब
कालचक्र नियमित चलता
सदा फैसला लेता है रब
अब परिवार बिखर रहे सब
लोकलाज मर्यादा तार तार
निज फैसले नेक नहीं अब
बिलखे मातपिता बार बार
संसद के मंदिर में मिलकर
जनहित फैसले लेने पड़ते
करें कल्पना उज्ज्वल भावी
सदा मुल्क वे आगे ही बढ़ते
जनहिताये परम् शांति हो
हिय स्नेह के सुमन खिले
करें फैसला सारे मिलकर
हिलमिल कर सब गले मिंले।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा-मुक्त छंद
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दुनिया झूठ पर टिकी
सच सब हवा हो गए
कहाँ है आज युधिष्ठिर
शकुनी आज बहुत हो गए।
लड़े जब झूठ के खिलाफ हम
सब गिदड़ एक हो गए
भरी सभा में दोस्त भी
आज हमारे दुश्मन हो गए।
हुए जब भी सच फैसले
तो फासले बन गए
सजा मिली हमें सच बोलने की
अपने ही आज हमसे खफा हो गए।
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राकेशकुमार जैनबन्धु
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दुनिया झूठ पर टिकी
सच सब हवा हो गए
कहाँ है आज युधिष्ठिर
शकुनी आज बहुत हो गए।
लड़े जब झूठ के खिलाफ हम
सब गिदड़ एक हो गए
भरी सभा में दोस्त भी
आज हमारे दुश्मन हो गए।
हुए जब भी सच फैसले
तो फासले बन गए
सजा मिली हमें सच बोलने की
अपने ही आज हमसे खफा हो गए।
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राकेशकुमार जैनबन्धु
विषय=फैसला
विधा=हाइकु
=========
(1)रहेंगे साथ
बिछड़े पति-पत्नी
हुआ फैसला
(2)फैसला आज
करना है समाप्त
आतंकवाद
(3)है हरबार
फैसला दरकार
कोई भी वाद
(4)राम मंदिर
कब तक फैसला
करेगा तंत्र
(5)न्याय प्रक्रिया
बहुत लम्बा वक्त
करे फैसला
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
विधा=हाइकु
=========
(1)रहेंगे साथ
बिछड़े पति-पत्नी
हुआ फैसला
(2)फैसला आज
करना है समाप्त
आतंकवाद
(3)है हरबार
फैसला दरकार
कोई भी वाद
(4)राम मंदिर
कब तक फैसला
करेगा तंत्र
(5)न्याय प्रक्रिया
बहुत लम्बा वक्त
करे फैसला
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
शब्द:- फैसला
हम थे मुसाफिर बस यहाँ, तुमको ठिकाना मिल गया।
खुशियाँ भी मेरी बीन लो,दिल आज दुआ ये दे रहा।।
तारे न टूटो अब यहाँ, दामन ये जर्जर हो गया।
तुम तो छुपे थे सीने में,परदा ये क्यों अब उठ रहा।।
सुबहा को ढूंढे हम कहाँ, दिल-ए-खाक अंधेरा हो गया।
सांसें मुकम्मल बच गईं,सीना ये क्यों अब फट रहा।।
टुकड़ों में बंट गई जिंदगी,अरमानों का हो गया फैसला।
तुमको पिया की सेज मिली,समझो सबेरा हो गया।।
डॉ. स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना (म.प्र.)
हम थे मुसाफिर बस यहाँ, तुमको ठिकाना मिल गया।
खुशियाँ भी मेरी बीन लो,दिल आज दुआ ये दे रहा।।
तारे न टूटो अब यहाँ, दामन ये जर्जर हो गया।
तुम तो छुपे थे सीने में,परदा ये क्यों अब उठ रहा।।
सुबहा को ढूंढे हम कहाँ, दिल-ए-खाक अंधेरा हो गया।
सांसें मुकम्मल बच गईं,सीना ये क्यों अब फट रहा।।
टुकड़ों में बंट गई जिंदगी,अरमानों का हो गया फैसला।
तुमको पिया की सेज मिली,समझो सबेरा हो गया।।
डॉ. स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना (म.प्र.)
दौराहे पर
अटक जाती है
जिन्दगी कभी-कभी
एक तरफ कुआं
तो दूसरी तरफ
होती है खाई
यहीं फैसले
होते है अहम
जो अविरल गति दे
जिन्दगी को
लिए गये
फैसले हो ऐसे
परिवार में
जो न बढ़ाए
फासले
माता-पिता के
त्याग और
फैसलों से
ही पहुँचते है
बच्चे ऊँचाईयों तक
उन्हें न पहुंचे
दुःख और कष्ट
लेना है ये फैसला
उन नादानो को
चलती है गाड़ी
सड़क पर
चंद सेकेन्ड के
गलत फैसले
उजाड़ देते है
हँसते खेलते
परिवार को
पहुँचो चाहे
कितने भी
आसमां की
ऊँचाईयों पर
पर फैसले हो
जमी पर
दिल की
तन्हाईयों से
रखों ध्यान एक
इस बात का
जिन्दगी के
फैसले हो दिमाग से
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
अटक जाती है
जिन्दगी कभी-कभी
एक तरफ कुआं
तो दूसरी तरफ
होती है खाई
यहीं फैसले
होते है अहम
जो अविरल गति दे
जिन्दगी को
लिए गये
फैसले हो ऐसे
परिवार में
जो न बढ़ाए
फासले
माता-पिता के
त्याग और
फैसलों से
ही पहुँचते है
बच्चे ऊँचाईयों तक
उन्हें न पहुंचे
दुःख और कष्ट
लेना है ये फैसला
उन नादानो को
चलती है गाड़ी
सड़क पर
चंद सेकेन्ड के
गलत फैसले
उजाड़ देते है
हँसते खेलते
परिवार को
पहुँचो चाहे
कितने भी
आसमां की
ऊँचाईयों पर
पर फैसले हो
जमी पर
दिल की
तन्हाईयों से
रखों ध्यान एक
इस बात का
जिन्दगी के
फैसले हो दिमाग से
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
एक नादान फैसला
कहीं एक तलैया के किनारे
एक छोटा सा आशियाना
फजाऐं महकी महकी
हवायें बहकी बहकी
समा था मदहोशी का
हर आलम था खुशी का
न जगत की चिंता
ना दुनियादारी का झमेला
बस दो जनों का जहान था
वह जाता शहर लकड़ी बेचता
कुछ जरूरत का सामान खरीदता
लौट घर को आता
वह जब भी जाता
वह पीछे से कुछ बैचेन रहती
जैसे ही आहट होती
उस के पदचापों की
वह दौड द्वार खोल
मधुर मुस्कान लिये
आ खडी होती
लेकर हाथ से सब सामान
एक गिलास में पानी देती
गर्मी होती तो पंखा झलती
हुलस हुलस सब बातें पूछती
सुन कर शहर की रंगीनी
उड़ कर पहुंचती उसी दायरे में
जीवन बस सहज बढा जा रहा था
एक दिन जिद की उसने भी
साथ चलने की
उसने लाख रोका न मानी
दोनो चल पडे
शहर में खूब मस्ती की
चाट, झूले, चाय-पकौड़े
स्वतंत्र सी औरतें
उन्मुक्त इधर उधर उडती
बस वही मन भा गया
मन शहर पर आ गया
नही रहना उस विराने में
इसी नगर में रहना
था प्रेम अति गहरा
पति रोक न पाया
उसे लेकर शहर आया
किसी ठेकेदार को सस्ते में
गांव का मकान बेचा
शहर में कुछ खरीद न पाया
किराये पर एक कोठरी भर आई
हाथ में धेला न पाई
काम के लिये भटकने लगा
भार ठेला जो मिलता करता
पेट भरने जितना भर
मुश्किल से होता
फिर कुछ संगत बिगडी
दारू की लत लगी
अब करता ना कमाई
भुखा पेट, पीने को चाहिऐ पैसा
पहले तूं-तूं मैं-मैं फिर हाथा पाई
आखिर वो मांजने लगी बरतन
घर घर में भरने लगी पानी
जो अपने घर की थी रानी
अपनी नादानी से बनी नौकरानी
ना वो मस्ती के दिन रात
और आँख में था पानी
ये एक छोटी नादान कहानी।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
कहीं एक तलैया के किनारे
एक छोटा सा आशियाना
फजाऐं महकी महकी
हवायें बहकी बहकी
समा था मदहोशी का
हर आलम था खुशी का
न जगत की चिंता
ना दुनियादारी का झमेला
बस दो जनों का जहान था
वह जाता शहर लकड़ी बेचता
कुछ जरूरत का सामान खरीदता
लौट घर को आता
वह जब भी जाता
वह पीछे से कुछ बैचेन रहती
जैसे ही आहट होती
उस के पदचापों की
वह दौड द्वार खोल
मधुर मुस्कान लिये
आ खडी होती
लेकर हाथ से सब सामान
एक गिलास में पानी देती
गर्मी होती तो पंखा झलती
हुलस हुलस सब बातें पूछती
सुन कर शहर की रंगीनी
उड़ कर पहुंचती उसी दायरे में
जीवन बस सहज बढा जा रहा था
एक दिन जिद की उसने भी
साथ चलने की
उसने लाख रोका न मानी
दोनो चल पडे
शहर में खूब मस्ती की
चाट, झूले, चाय-पकौड़े
स्वतंत्र सी औरतें
उन्मुक्त इधर उधर उडती
बस वही मन भा गया
मन शहर पर आ गया
नही रहना उस विराने में
इसी नगर में रहना
था प्रेम अति गहरा
पति रोक न पाया
उसे लेकर शहर आया
किसी ठेकेदार को सस्ते में
गांव का मकान बेचा
शहर में कुछ खरीद न पाया
किराये पर एक कोठरी भर आई
हाथ में धेला न पाई
काम के लिये भटकने लगा
भार ठेला जो मिलता करता
पेट भरने जितना भर
मुश्किल से होता
फिर कुछ संगत बिगडी
दारू की लत लगी
अब करता ना कमाई
भुखा पेट, पीने को चाहिऐ पैसा
पहले तूं-तूं मैं-मैं फिर हाथा पाई
आखिर वो मांजने लगी बरतन
घर घर में भरने लगी पानी
जो अपने घर की थी रानी
अपनी नादानी से बनी नौकरानी
ना वो मस्ती के दिन रात
और आँख में था पानी
ये एक छोटी नादान कहानी।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
फैसला
है लब खिले-खिले मगर दिल में उसके कुहराम भी है
है मौत का मंज़र गली में, मोहल्ले में धूमधाम भी है
मेरा ही क़तल हुआ है मुझी पर लगा इल्ज़ाम भी है
मेरी मैयत का किए वो कितना हसीं इंतेजाम भी है
मैं मुफलिसी का मारा हूँ,मेरे सिर कितने इनाम भी है
सब जानते है फितरत मेरी,वजूद मेरा गुमनाम भी है
तफ़तीश की तैयारी है सामने थैली में भरा दाम भी है
जो मौका-ए-वारदात नही,चश्मदीदों में वो नाम भी है
है मुंसिफ़ मशरुफ़ मशवरे में,इधर सुबूत तमाम भी है
फैसले का मजमूँ क्या,मुझको तो मालूम अंजाम भी है
है राज दफन सीने में ,जहाँ में चर्चा सरेआम भी है
नवल जो मशहूर हुये,बंद कमरे में वो बदनाम भी है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
है लब खिले-खिले मगर दिल में उसके कुहराम भी है
है मौत का मंज़र गली में, मोहल्ले में धूमधाम भी है
मेरा ही क़तल हुआ है मुझी पर लगा इल्ज़ाम भी है
मेरी मैयत का किए वो कितना हसीं इंतेजाम भी है
मैं मुफलिसी का मारा हूँ,मेरे सिर कितने इनाम भी है
सब जानते है फितरत मेरी,वजूद मेरा गुमनाम भी है
तफ़तीश की तैयारी है सामने थैली में भरा दाम भी है
जो मौका-ए-वारदात नही,चश्मदीदों में वो नाम भी है
है मुंसिफ़ मशरुफ़ मशवरे में,इधर सुबूत तमाम भी है
फैसले का मजमूँ क्या,मुझको तो मालूम अंजाम भी है
है राज दफन सीने में ,जहाँ में चर्चा सरेआम भी है
नवल जो मशहूर हुये,बंद कमरे में वो बदनाम भी है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
परीक्षा समकक्ष ही तो है जीवन
चुनौतियों से नित होता साक्षात्कार
किंकर्तव्यविमूढ जब हो जाते
फ़ैसलों संग बात आगे बढ़ाते
पर फ़ैसला कोई लेना भी
कितना अजीब होता है
कभी बनता दिमाग़ का नज़ीर
कभी हृदय की पीर होता है
कभी तनाव की मुक्ति कहलाता
कभी अपेक्षाओं की युक्ति
कोई टूटकर बिखर जाता
कोई बिखराव से सिमट जाता
कोई हार जीत बन ज़ाती
कोई जीत हार में बदल जाती
फ़ैसले की प्रक्रिया बड़ी जटिल
कितने भाव विचार आंदोलित होते
साक्ष्य कितने जुटाने पड़ते
अंगारों पर चलना सा होता
करना होगा दूध का दूध पानी का पानी
ऐसे फ़ैसलों का नही होता कोई सानी
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
चुनौतियों से नित होता साक्षात्कार
किंकर्तव्यविमूढ जब हो जाते
फ़ैसलों संग बात आगे बढ़ाते
पर फ़ैसला कोई लेना भी
कितना अजीब होता है
कभी बनता दिमाग़ का नज़ीर
कभी हृदय की पीर होता है
कभी तनाव की मुक्ति कहलाता
कभी अपेक्षाओं की युक्ति
कोई टूटकर बिखर जाता
कोई बिखराव से सिमट जाता
कोई हार जीत बन ज़ाती
कोई जीत हार में बदल जाती
फ़ैसले की प्रक्रिया बड़ी जटिल
कितने भाव विचार आंदोलित होते
साक्ष्य कितने जुटाने पड़ते
अंगारों पर चलना सा होता
करना होगा दूध का दूध पानी का पानी
ऐसे फ़ैसलों का नही होता कोई सानी
संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित
------------ग़ज़ल-----------
लग रही ग़र तुम्हे ये जुदाई सही ।
तो मुझे भी तेरी बेवफ़ाई सही ।
साहिलों पे तू ला या तू किश्ती डुबो ।
रहनुमा आपकी रहनुमाई सही ।
इश्क़ मे तू सही मै गुनेहगार हूँ ।
बेवफ़ा आपकी बेवफ़ाई सही ।
इंतिहां तो न ले सब्र का तू मेरे ।
ऐ ख़ुदा जानता हूँ खुदाई सही ।
उम्रभर हुश्न का ज़ोर चलता कहाँ ।
चार पल की यहाँ दिलरुबाई सही ।
ज़िन्दगी आँसुओं से रही तरबतर ।
याद अपनी रहे या पराई सही ।
ख़ामियाज़ा वफ़ा का मिला प्यार मे ।
इक क़सम आपने जो निभाई सही ।
झूठ रकमिश मेरे इश्क़ का हैं जुनूँ ।
सच तेरा #फ़ैसला हमवफ़ाई सही ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी
लग रही ग़र तुम्हे ये जुदाई सही ।
तो मुझे भी तेरी बेवफ़ाई सही ।
साहिलों पे तू ला या तू किश्ती डुबो ।
रहनुमा आपकी रहनुमाई सही ।
इश्क़ मे तू सही मै गुनेहगार हूँ ।
बेवफ़ा आपकी बेवफ़ाई सही ।
इंतिहां तो न ले सब्र का तू मेरे ।
ऐ ख़ुदा जानता हूँ खुदाई सही ।
उम्रभर हुश्न का ज़ोर चलता कहाँ ।
चार पल की यहाँ दिलरुबाई सही ।
ज़िन्दगी आँसुओं से रही तरबतर ।
याद अपनी रहे या पराई सही ।
ख़ामियाज़ा वफ़ा का मिला प्यार मे ।
इक क़सम आपने जो निभाई सही ।
झूठ रकमिश मेरे इश्क़ का हैं जुनूँ ।
सच तेरा #फ़ैसला हमवफ़ाई सही ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी
"शीर्षक-फैसला"
दोराहे पर खड़ा है वह
कर रहा विचार
ले फैसला आगे बढ़े
या मैदान छोड़ जाय भाग
संकल्प ले वह आगे बढ़ा
छोड़ निराशा का गहन साथ
जड़ नही ,चेतन है वह
उसे रखना होगा याद
नायक है वह समाज का
बिटिया उसे बताती है
लिया फैसला, कर हिम्मत आज
कर दिया वह एलान
नही करनी बिटिया की अभी सगाई
करनी है उसे बाकी की पढ़ाई
जब होगी वह पैर पर खड़ी
तभी होगी सगाई
सुन पिता की अद्भुत फैसला
बिटिया हुई निहाल
सही मायने में नायक है पिता
अब होगा समाज में सुधार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दोराहे पर खड़ा है वह
कर रहा विचार
ले फैसला आगे बढ़े
या मैदान छोड़ जाय भाग
संकल्प ले वह आगे बढ़ा
छोड़ निराशा का गहन साथ
जड़ नही ,चेतन है वह
उसे रखना होगा याद
नायक है वह समाज का
बिटिया उसे बताती है
लिया फैसला, कर हिम्मत आज
कर दिया वह एलान
नही करनी बिटिया की अभी सगाई
करनी है उसे बाकी की पढ़ाई
जब होगी वह पैर पर खड़ी
तभी होगी सगाई
सुन पिता की अद्भुत फैसला
बिटिया हुई निहाल
सही मायने में नायक है पिता
अब होगा समाज में सुधार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
लघु कविता
#############
मिट्टी का है यह तन हमारा
मिट्टी में ही मिल जाना है
इस मिट्टटी में ही चलना है
मिट्टटी संग मिले जो कंकड़ है
पाँवों में अक्सर चुभ जाते हैं
भूलकर उस चुभन को
मिट्टटी के हित में सदैव
हो अपना फैसला।
दुनिया की रंगीनियों में..
कभी मन को ना भटकाना
ईश्वर का जैसा हो फैसला
मन ने इसे है स्वीकार किया
स्नेह का हो यदि घरौंदा
मुश्किल होता है लेना फैसला
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
#############
मिट्टी का है यह तन हमारा
मिट्टी में ही मिल जाना है
इस मिट्टटी में ही चलना है
मिट्टटी संग मिले जो कंकड़ है
पाँवों में अक्सर चुभ जाते हैं
भूलकर उस चुभन को
मिट्टटी के हित में सदैव
हो अपना फैसला।
दुनिया की रंगीनियों में..
कभी मन को ना भटकाना
ईश्वर का जैसा हो फैसला
मन ने इसे है स्वीकार किया
स्नेह का हो यदि घरौंदा
मुश्किल होता है लेना फैसला
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
जैसे किया हो फैसला, सिक्का उछाल कर।
आखों में उसने देखा था यूं, आखें डालकर।
दीवाने तो हम जैसे मिलेगें , हरेक मोड़पर।
तुम चलना जरा बाहोश दुपट्टा सम्हाल कर।
वो जो आ गये आगोश में तो सुकून आ गया।
फिर जो हुए रुखसत के बैचेनी बहाल कर।
बस इश्क को समझोगे तो तुम भी उसी रोज।
रख देगा जिन्दगी का, जब जीना मुहाल कर।
कुछ नये हैं उनके पैतरे हथियार है कुछ नये।
नश्तर चला दिया बेदर्द ने लफ्जों में डालकर।
लिखता है हरेक रात वो एक कशमकश नई।
कागज पे रख दिया है, कलेजा निकाल कर।
विपिन सोहल
आखों में उसने देखा था यूं, आखें डालकर।
दीवाने तो हम जैसे मिलेगें , हरेक मोड़पर।
तुम चलना जरा बाहोश दुपट्टा सम्हाल कर।
वो जो आ गये आगोश में तो सुकून आ गया।
फिर जो हुए रुखसत के बैचेनी बहाल कर।
बस इश्क को समझोगे तो तुम भी उसी रोज।
रख देगा जिन्दगी का, जब जीना मुहाल कर।
कुछ नये हैं उनके पैतरे हथियार है कुछ नये।
नश्तर चला दिया बेदर्द ने लफ्जों में डालकर।
लिखता है हरेक रात वो एक कशमकश नई।
कागज पे रख दिया है, कलेजा निकाल कर।
विपिन सोहल
शीर्षक-फैसला
विधा-हाइकु
1.
फैसला होगा
राम मंदिर पर
सहमति से
2.
सही फैसला
खुश पक्ष विपक्ष
सुरक्षा पर
3.
फैसला आज
किसको मिले ताज
इंतज़ार है
4.
कैसा फैसला
जब बढ़े विवाद
न हो संवाद
5.
हुआ फैसला
पति और पत्नी में
ले के तलाक
6.
लिया फैसला
प्रकृति की सुरक्षा
वृक्षारोपण
7.
नेक फैसला
स्वच्छता अभियान
सहयोग से
8.
बजा नँगाड़े
सुनाते थे फैसला
दरबार में
9.
अच्छा फैसला
सहमति सबकी
मिलता न्याय
10.
फैसला लेंगे
सोच समझकर
भ्रष्टाचार पे
11.
करो फैसला
आतंकवाद पर
सोच विचार
12.
सही चुनाव
फैसला आप पर
वक्त की मांग
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विधा-हाइकु
1.
फैसला होगा
राम मंदिर पर
सहमति से
2.
सही फैसला
खुश पक्ष विपक्ष
सुरक्षा पर
3.
फैसला आज
किसको मिले ताज
इंतज़ार है
4.
कैसा फैसला
जब बढ़े विवाद
न हो संवाद
5.
हुआ फैसला
पति और पत्नी में
ले के तलाक
6.
लिया फैसला
प्रकृति की सुरक्षा
वृक्षारोपण
7.
नेक फैसला
स्वच्छता अभियान
सहयोग से
8.
बजा नँगाड़े
सुनाते थे फैसला
दरबार में
9.
अच्छा फैसला
सहमति सबकी
मिलता न्याय
10.
फैसला लेंगे
सोच समझकर
भ्रष्टाचार पे
11.
करो फैसला
आतंकवाद पर
सोच विचार
12.
सही चुनाव
फैसला आप पर
वक्त की मांग
***********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विषय:-"फैसला"
(1)
कौन है बड़ा
वक़्त की अदालत
फैसला पड़ा
(2)
रंजिशे, लहू
विभाजन फैसला
देश नासूर
(3)
द्वंन्द परीक्षा
बदल दे जीवन
सही फैसला
(4)
हँसता पाप
सुरक्षित फैसला
वक़्त के पास
(5)
स्वार्थ सबूत
प्रकृति का फैसला
समेटा हरा
(1)
कौन है बड़ा
वक़्त की अदालत
फैसला पड़ा
(2)
रंजिशे, लहू
विभाजन फैसला
देश नासूर
(3)
द्वंन्द परीक्षा
बदल दे जीवन
सही फैसला
(4)
हँसता पाप
सुरक्षित फैसला
वक़्त के पास
(5)
स्वार्थ सबूत
प्रकृति का फैसला
समेटा हरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
ऋतुराज दवे
लघु कविता
दुनियाँ के हाथ पसरे
कई-कई के सपूत बिसरे
हर जगह विषवमन
लहलहाती फसलों का दहन
ये फूलों का चमन
लूट लेते दुष्ट माँ का दामन,
कैसा घिनौना कृत्य
हाथों में तलवारें
सड़क पर नंगे नृत्य ।
अबोध बालाऔं से दुष्कृत्य
हिंसा , बलात्कार, बेइज्जत, अपमान का जहरीला घूंट
राज नेता भ्रष्ट,
नोट से वोट
सस्ता लहू , मंहगी जिंदगी
ह्रदयहीनता मानवता कहाँ ?
असली वस्तुओं के लाले
व्यापारी मिलावट खौर
सारे के सारे चोर!
समाज में बदलाव
फैल गयी हर तरफ गंदगी !
कोई पार्टी बदलता
कोई अपना चोला
मिटा दे उसको जिसने मुंह खोला
दया मानवता सहमी
डरी -डरी
आँखे नम
भरी-भरी !
कोई बोले हरि -हरि
कोई बोले राम-राम
यहाँ क्या हो गया ?
ईमान कहाँ खो गया ?
यह देश सेवा का ढकौंसला ,
हमारा ख्याल तक नहीं
हम दर्दे दिल का नहीं हौंसला ,
हमारा कब सुरक्षित होगा घोंसला ?
कब मिटेगा लूट का चस्का
क्या कभी हमारा होगा फैसला ?
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',
दुनियाँ के हाथ पसरे
कई-कई के सपूत बिसरे
हर जगह विषवमन
लहलहाती फसलों का दहन
ये फूलों का चमन
लूट लेते दुष्ट माँ का दामन,
कैसा घिनौना कृत्य
हाथों में तलवारें
सड़क पर नंगे नृत्य ।
अबोध बालाऔं से दुष्कृत्य
हिंसा , बलात्कार, बेइज्जत, अपमान का जहरीला घूंट
राज नेता भ्रष्ट,
नोट से वोट
सस्ता लहू , मंहगी जिंदगी
ह्रदयहीनता मानवता कहाँ ?
असली वस्तुओं के लाले
व्यापारी मिलावट खौर
सारे के सारे चोर!
समाज में बदलाव
फैल गयी हर तरफ गंदगी !
कोई पार्टी बदलता
कोई अपना चोला
मिटा दे उसको जिसने मुंह खोला
दया मानवता सहमी
डरी -डरी
आँखे नम
भरी-भरी !
कोई बोले हरि -हरि
कोई बोले राम-राम
यहाँ क्या हो गया ?
ईमान कहाँ खो गया ?
यह देश सेवा का ढकौंसला ,
हमारा ख्याल तक नहीं
हम दर्दे दिल का नहीं हौंसला ,
हमारा कब सुरक्षित होगा घोंसला ?
कब मिटेगा लूट का चस्का
क्या कभी हमारा होगा फैसला ?
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',
विधा=हाइकु
============
(1)फैसला इंद्र
चिंतित हैं इंसान
कहा हो वर्षा
(2)कृष्ण फैसला
कंस का किया वध
प्रसन्न जग
(3)देश हित में
नोट बंदी फैसला
मोदी जी द्वारा
(4)आज के वक्त
बहुत ही कठिन
फैसला देना
(5)थमी थी सांसे
फैसला आने तक
मिली विजय
===रचनाकार===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
============
(1)फैसला इंद्र
चिंतित हैं इंसान
कहा हो वर्षा
(2)कृष्ण फैसला
कंस का किया वध
प्रसन्न जग
(3)देश हित में
नोट बंदी फैसला
मोदी जी द्वारा
(4)आज के वक्त
बहुत ही कठिन
फैसला देना
(5)थमी थी सांसे
फैसला आने तक
मिली विजय
===रचनाकार===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
फैसला
/////
रोहन ...मां तुम मुझे बताओ मैं क्या करूं !
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । मैं क्या फैसला करूँ!
एक तरफ आजकल लोग नौकरी के लिए
परेशान हैं और मैं अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करूं जिसमें सब कुछ अनिश्चित है। बहुत दुविधा है मां ..!
प्रमिला.....बेटा मैं इतना तो नहीँ जानती कि तुम्हें राय दूँ ।जीवन में बहुत से ऐसे दुविधा के पल आयेंगे जब तुम्हें कठोर फैसले लेने होंगे। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह तो किसी को नहीं पता होता ।फैसला गलत या सही होगा यह भी नहीं पता होता है ,परन्तु जो भी निर्णय लो उसे सही साबित करो ।इसके लिए पूर्ण रूप से सजग और एकाग्र हो कर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करो, जिससे भविष्य में तुम्हें या हम सबको कभी पछतावा ना हो ।
रोहन अपनी मां की बात गांठ बांध अपने फैसले को सही साबित करने में एकाग्र चित्त हो जुट गया और नौकरी से त्यागपत्र दे प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठा।
आज परिणाम आया है , रोहन की आंखों में खुशी के आंसू हैं और उसे अपने फैसले पर आज गर्व है।
माँ की ये बात हमेशा ध्यान रखूँगा , अपने फैसले को सही सिद्ध करने का प्रयत्न करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
/////
रोहन ...मां तुम मुझे बताओ मैं क्या करूं !
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । मैं क्या फैसला करूँ!
एक तरफ आजकल लोग नौकरी के लिए
परेशान हैं और मैं अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करूं जिसमें सब कुछ अनिश्चित है। बहुत दुविधा है मां ..!
प्रमिला.....बेटा मैं इतना तो नहीँ जानती कि तुम्हें राय दूँ ।जीवन में बहुत से ऐसे दुविधा के पल आयेंगे जब तुम्हें कठोर फैसले लेने होंगे। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह तो किसी को नहीं पता होता ।फैसला गलत या सही होगा यह भी नहीं पता होता है ,परन्तु जो भी निर्णय लो उसे सही साबित करो ।इसके लिए पूर्ण रूप से सजग और एकाग्र हो कर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करो, जिससे भविष्य में तुम्हें या हम सबको कभी पछतावा ना हो ।
रोहन अपनी मां की बात गांठ बांध अपने फैसले को सही साबित करने में एकाग्र चित्त हो जुट गया और नौकरी से त्यागपत्र दे प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठा।
आज परिणाम आया है , रोहन की आंखों में खुशी के आंसू हैं और उसे अपने फैसले पर आज गर्व है।
माँ की ये बात हमेशा ध्यान रखूँगा , अपने फैसले को सही सिद्ध करने का प्रयत्न करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
फैसला तुम्हारे हाथ में भगवन,
हमें ठुकराऐं अथवा अपनालें।
सोंपा सबकुछ प्रभु चरणों में,
जब जैसा चाहें हमसे करबालें।
ये दुखसुख सब तुमको देना है।
क्यों किसी से हमको लेना है।
जब जनम मरण इन्हीं हाथों मे,
सुखद फैसला तुमको लेना है।
जो होगा यहां अच्छा ही होगा,
हम मिलजुल के जीवन काटेंगे।
छोड दिया फैसला सभी तुम्हें ये,
सुखदुख आपस में हम्हीं बांटेंगे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
हमें ठुकराऐं अथवा अपनालें।
सोंपा सबकुछ प्रभु चरणों में,
जब जैसा चाहें हमसे करबालें।
ये दुखसुख सब तुमको देना है।
क्यों किसी से हमको लेना है।
जब जनम मरण इन्हीं हाथों मे,
सुखद फैसला तुमको लेना है।
जो होगा यहां अच्छा ही होगा,
हम मिलजुल के जीवन काटेंगे।
छोड दिया फैसला सभी तुम्हें ये,
सुखदुख आपस में हम्हीं बांटेंगे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
"फैसला"
जग न्यायालय जीवन एक मुकदमा
ईश्वर न्यायाधीश है
कर्मों की गवाही से सुनाए जाते हैं फैसले
बहुत से फैसले देते हैं खुशियाँ अपरिमित
बहुत से फैसले देते हैं परिणाम अनापेक्षित
कुछ फैसले तो रह जाते हैं अनिर्णीत
कभी अपरिमित ख़ुशी ,कभी निराशा
कभी आत्मचिंतन कभी जिज्ञाषा
कभी उसके फैसलों को कोसते नहीं थकते
कभी उसके फैसलों पर धन्यवाद देते नहीं थकते
कुछ भी हो इन फैसलों को करना होता है हमें स्वीकार
क्योंकि ये फैसले और कुछ नहीं हैं ये हमारे कर्मों के आधार ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
जग न्यायालय जीवन एक मुकदमा
ईश्वर न्यायाधीश है
कर्मों की गवाही से सुनाए जाते हैं फैसले
बहुत से फैसले देते हैं खुशियाँ अपरिमित
बहुत से फैसले देते हैं परिणाम अनापेक्षित
कुछ फैसले तो रह जाते हैं अनिर्णीत
कभी अपरिमित ख़ुशी ,कभी निराशा
कभी आत्मचिंतन कभी जिज्ञाषा
कभी उसके फैसलों को कोसते नहीं थकते
कभी उसके फैसलों पर धन्यवाद देते नहीं थकते
कुछ भी हो इन फैसलों को करना होता है हमें स्वीकार
क्योंकि ये फैसले और कुछ नहीं हैं ये हमारे कर्मों के आधार ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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