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ब्लॉग संख्या :-320
बसंत की बहार हूँ
फागुन की धूप हूँ
मधुमास का प्यार
और होली का रंग हूँ
आकाश का मौन हूँ
पंछियों का कलरव हूँ
लय बद्ध गीत हूँ
हवा का झोंकें में
जीवन की सरगम हूँ
फागुन बसंत मै
रंगों से सराबोर हूँ
भोर के आँगन में
बिखरी हुई धूप हूँ
आँखों में लगे गहरे
काजल-सी रात हूँ
बादलों के आँगन में
तारों की झिलमिल हूँ
समंदर की लहरों
का छुपा हुआ क्रौध हूँ
चाँद की मैं चाँदनी
मैं ही ओस की बूंद हूँ
पतझड़ का सूनापन
बरखा की बहार हूँ
मैं प्रकृति का अद्भुत
अनुपम सौंदर्य हूँ
धरती हूँ आकाश हूँ
हवा मैं पानी मैं
मुझसे ही ज़िंदगी है
हाँ मैं सृष्टि हूँ
सहेज लो समेट लो
मुझको संवार लो
बिखर गया रूप तो
मैं ही प्रलय हूँ
***अनुराधा चौहान*** ©स्वरचित
फागुन की धूप हूँ
मधुमास का प्यार
और होली का रंग हूँ
आकाश का मौन हूँ
पंछियों का कलरव हूँ
लय बद्ध गीत हूँ
हवा का झोंकें में
जीवन की सरगम हूँ
फागुन बसंत मै
रंगों से सराबोर हूँ
भोर के आँगन में
बिखरी हुई धूप हूँ
आँखों में लगे गहरे
काजल-सी रात हूँ
बादलों के आँगन में
तारों की झिलमिल हूँ
समंदर की लहरों
का छुपा हुआ क्रौध हूँ
चाँद की मैं चाँदनी
मैं ही ओस की बूंद हूँ
पतझड़ का सूनापन
बरखा की बहार हूँ
मैं प्रकृति का अद्भुत
अनुपम सौंदर्य हूँ
धरती हूँ आकाश हूँ
हवा मैं पानी मैं
मुझसे ही ज़िंदगी है
हाँ मैं सृष्टि हूँ
सहेज लो समेट लो
मुझको संवार लो
बिखर गया रूप तो
मैं ही प्रलय हूँ
***अनुराधा चौहान*** ©स्वरचित
*******************
🍁
शब्द बनकर सामने था,
मै खडा निःशब्द था।
आँखे उसकी बोलती थी,
पर मेरा तो मौन था ।
🍁
जिसके मन जो भी आया,
बोल कर वो चल दिया ।
कुछ ने आँखो से कहाँ,
कुछ मौन को ही जड दिया।
🍁
टूटती तंद्रा मेरी पर,
कुछ ना मेरे पास था।
सब सबूतो पे टिका था,
शेर बिल्कुल मौन था।
🍁
ऐसे ही हालात उभरे,
देश मे तुम देख लो।
राजनीति छल करे है,
सत्य लेकिन मौन है।
🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
🍁
शब्द बनकर सामने था,
मै खडा निःशब्द था।
आँखे उसकी बोलती थी,
पर मेरा तो मौन था ।
🍁
जिसके मन जो भी आया,
बोल कर वो चल दिया ।
कुछ ने आँखो से कहाँ,
कुछ मौन को ही जड दिया।
🍁
टूटती तंद्रा मेरी पर,
कुछ ना मेरे पास था।
सब सबूतो पे टिका था,
शेर बिल्कुल मौन था।
🍁
ऐसे ही हालात उभरे,
देश मे तुम देख लो।
राजनीति छल करे है,
सत्य लेकिन मौन है।
🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
पिंजरे का पंछी बन जाये
दर्द आँखों से छलकाये
हमने देखा है ये जहान
मौन रह गया हर इंसान ...
आँखों में दिखे नमी है
धन की न कोई कमी है
अधूरे हैं कुछ अरमान
मौन रह गया हर इंसान ....
पाठशाला में सिखाये थे
गुरू जी मौनव्रत कराये थे
हकीकत ली अब ये जान
मौन रह गया हर इंसान ....
पांडवों का अज्ञात वास
घोर निराशा और परिहास
सबके साथ 'शिवम' ये मान
मौन रह गया हर इंसान ..
चाँद भी आस्मां में दुखी है
सिर्फ एक दिन ही सुखी है
ये कुदरत का कानून जान
मौन रह गया हर इंसान ..
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/03/2019
दर्द आँखों से छलकाये
हमने देखा है ये जहान
मौन रह गया हर इंसान ...
आँखों में दिखे नमी है
धन की न कोई कमी है
अधूरे हैं कुछ अरमान
मौन रह गया हर इंसान ....
पाठशाला में सिखाये थे
गुरू जी मौनव्रत कराये थे
हकीकत ली अब ये जान
मौन रह गया हर इंसान ....
पांडवों का अज्ञात वास
घोर निराशा और परिहास
सबके साथ 'शिवम' ये मान
मौन रह गया हर इंसान ..
चाँद भी आस्मां में दुखी है
सिर्फ एक दिन ही सुखी है
ये कुदरत का कानून जान
मौन रह गया हर इंसान ..
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/03/2019
गीत मैं कैसे लिखूं
है,लेखनी लाचार
बद्ध कैसे भाव हों
जब कल्पना साकार ।
भावनायें मापने को
शब्द भी तो चाहिये
वह जो बन सकें
इस हृदय के उद्गार ।
हृद्य के उद्गार का
आगार विपुलित
पा न सकता थाह
कोई ,चाह.कर भी ।
चाह की चाहत
अलंकृत शब्द से
कर दूं कहाँ पर
छोर वह मिलता नही ।
लेखनी बस !मौन रह
करती सृजन क्या ?
चल रहा जब मूक ही
मौन का व्यापार ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
है,लेखनी लाचार
बद्ध कैसे भाव हों
जब कल्पना साकार ।
भावनायें मापने को
शब्द भी तो चाहिये
वह जो बन सकें
इस हृदय के उद्गार ।
हृद्य के उद्गार का
आगार विपुलित
पा न सकता थाह
कोई ,चाह.कर भी ।
चाह की चाहत
अलंकृत शब्द से
कर दूं कहाँ पर
छोर वह मिलता नही ।
लेखनी बस !मौन रह
करती सृजन क्या ?
चल रहा जब मूक ही
मौन का व्यापार ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
🌹मौन / मूक🌹
आज बदनाम हम फिर हुए,चर्चा-ए,-आम फिर हुए
लब्जों से बया कुछ न हुआ मौन शब्द रजा हुए
देखे थे ख्वाब जो कभी ,टूटे सब अरमान हुए
रह गए मकान खाली ,उडते परिंदे अरमान हुए
लाँघना चाहा जिसे वो फासले भी परवान हुए
बेडियों के बंद दरबाजे सिसकते अहसास हुए
ले गया खामोश मंजर चाहतो को जब बहाए
लहरों. ने भी टूटने के सौ बहाने जब किये
रह गया तनहा सफर दिलकश नजारे कम हुए
रुठी बहारें फाग की होली के रंग फीके हुए
मौन भी अब दर्द है जख्मी दरार सिला किये
मुस्कराने की वजह ढूँढने जाने कहाँ फिरा किये
🌺स्वरचित🌺
नीलम शर्मा#नीलू
आज बदनाम हम फिर हुए,चर्चा-ए,-आम फिर हुए
लब्जों से बया कुछ न हुआ मौन शब्द रजा हुए
देखे थे ख्वाब जो कभी ,टूटे सब अरमान हुए
रह गए मकान खाली ,उडते परिंदे अरमान हुए
लाँघना चाहा जिसे वो फासले भी परवान हुए
बेडियों के बंद दरबाजे सिसकते अहसास हुए
ले गया खामोश मंजर चाहतो को जब बहाए
लहरों. ने भी टूटने के सौ बहाने जब किये
रह गया तनहा सफर दिलकश नजारे कम हुए
रुठी बहारें फाग की होली के रंग फीके हुए
मौन भी अब दर्द है जख्मी दरार सिला किये
मुस्कराने की वजह ढूँढने जाने कहाँ फिरा किये
🌺स्वरचित🌺
नीलम शर्मा#नीलू
मौनव्रत रख सकूं प्रभुजी,
मुझे इतना संबल देना।
रख पाऊं शब्दों की मर्यादा,
इतना गुरूवर बल देना।
धीर वीर गंभीर बनूं मैं,
सदा निश्छल भाव रखूं।
वाद विवाद नहीं करूं किसी से,
सदैव स्वस्थ संवाद रखूं।
मूक रहूं सुन आलोचना,
आवश्यक वही बात करूं।
मन निर्मल हो जाऐ मेरा,
जीवनभर नहीं घात करूं।
मौन रहूं अधिकांश यदि मैं,
विवाद कहीं ना हो पाऐं।
शांत चित्त रह पाऊं गर तो,
नहीं झगडे झंझट हो पाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
मुझे इतना संबल देना।
रख पाऊं शब्दों की मर्यादा,
इतना गुरूवर बल देना।
धीर वीर गंभीर बनूं मैं,
सदा निश्छल भाव रखूं।
वाद विवाद नहीं करूं किसी से,
सदैव स्वस्थ संवाद रखूं।
मूक रहूं सुन आलोचना,
आवश्यक वही बात करूं।
मन निर्मल हो जाऐ मेरा,
जीवनभर नहीं घात करूं।
मौन रहूं अधिकांश यदि मैं,
विवाद कहीं ना हो पाऐं।
शांत चित्त रह पाऊं गर तो,
नहीं झगडे झंझट हो पाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
मूक मौन है सद साधना
अन्तर्मन परम आराधना
निश्छल प्रेम भक्ति भाव
देते दर्शन खुद परमात्मा
बालक जब कोई त्रुटि करता
मातपिता गुरु मौन हो जाते
वाणी से वे कुछ न बोलकर
मुखाकृति उंगली समझाते
वाचाली के सम्मुख रहकर
मौन रहना अति उत्तम है
अपनी ढपली सदा बजाते
दूजों की सुनते वे कम हैं
मौनव्रती जैन मुनियों के
निज अपने संयम होते
गर्मी सर्दी बरखा सहकर
अनवरत जीवन वे हँसते
मौन शांत सैनिक सीमा पर
रिपुमर्दन उसका लक्ष्य है
बढ़ता चढ़ता आगे रहता
सदा वीरता पूर्ण दक्ष्य है
मूक बघिर अपना जीवन
अभिव्यक्ति वे इंगित करते
जग जीवन जीते हँसकर
कर उंगली इशारे करते ।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
अन्तर्मन परम आराधना
निश्छल प्रेम भक्ति भाव
देते दर्शन खुद परमात्मा
बालक जब कोई त्रुटि करता
मातपिता गुरु मौन हो जाते
वाणी से वे कुछ न बोलकर
मुखाकृति उंगली समझाते
वाचाली के सम्मुख रहकर
मौन रहना अति उत्तम है
अपनी ढपली सदा बजाते
दूजों की सुनते वे कम हैं
मौनव्रती जैन मुनियों के
निज अपने संयम होते
गर्मी सर्दी बरखा सहकर
अनवरत जीवन वे हँसते
मौन शांत सैनिक सीमा पर
रिपुमर्दन उसका लक्ष्य है
बढ़ता चढ़ता आगे रहता
सदा वीरता पूर्ण दक्ष्य है
मूक बघिर अपना जीवन
अभिव्यक्ति वे इंगित करते
जग जीवन जीते हँसकर
कर उंगली इशारे करते ।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
है मूक जैसे रमणी,
रजनी पिघल रही है।
अंतर्मन की व्यथा,
शबनम में ढल रही है।
मन का अंबर सूना,
नैना हैं रीते - रीते।
बैठी अकेली कब से,
प्रहर ये कितने बीते।
रात की नीरवता,
तन-मन पर है छायी।
निष्ठुरता प्रिये ये तेरी,
मुझको तनिक न भायी।
मुग्ध होकर कैसे,
हरशृंगार झड़ रहा है।
महकी हुई फिजाएँ,
सौरभ बिखर रहा है।
करता पल को बोझिल,
ये इन्तजार तेरा।
देख टूटती आशाएँ,
आता हुआ सवेरा।
डॉ उषा किरण
रजनी पिघल रही है।
अंतर्मन की व्यथा,
शबनम में ढल रही है।
मन का अंबर सूना,
नैना हैं रीते - रीते।
बैठी अकेली कब से,
प्रहर ये कितने बीते।
रात की नीरवता,
तन-मन पर है छायी।
निष्ठुरता प्रिये ये तेरी,
मुझको तनिक न भायी।
मुग्ध होकर कैसे,
हरशृंगार झड़ रहा है।
महकी हुई फिजाएँ,
सौरभ बिखर रहा है।
करता पल को बोझिल,
ये इन्तजार तेरा।
देख टूटती आशाएँ,
आता हुआ सवेरा।
डॉ उषा किरण
*****************
जाने क्यों अचानक वो मूक हो गयी
ऐसी भी उस अबला क्या से चूक हो गयी
निहारती रहती है शून्य में हर वक़्त
बन्द उस कोयल की कूक हो गयी
न आँखें छलकती हैं न होंठ खुलते हैं
पीड़ादायी उसके दिल की हूक हो गयी
खिली रहती थी बगिया के फूल सी
आज वो बेबस सूखा रूख हो गयी
ज़िंदा लाश बनकर रह गयी ज़िन्दगी
ऐसी भी क्या ज़िस्म की भूख हो गयी।
सविता गर्ग "सावी"
स्वरचित
जाने क्यों अचानक वो मूक हो गयी
ऐसी भी उस अबला क्या से चूक हो गयी
निहारती रहती है शून्य में हर वक़्त
बन्द उस कोयल की कूक हो गयी
न आँखें छलकती हैं न होंठ खुलते हैं
पीड़ादायी उसके दिल की हूक हो गयी
खिली रहती थी बगिया के फूल सी
आज वो बेबस सूखा रूख हो गयी
ज़िंदा लाश बनकर रह गयी ज़िन्दगी
ऐसी भी क्या ज़िस्म की भूख हो गयी।
सविता गर्ग "सावी"
स्वरचित
1-
मुखर मौन,
कहे अनकहा भी,
अमोघ अस्त्र ।
2-
भ्रूण प्रहार,
अपने भी निर्मोही,
मूक चीत्कार ।
3-
रक्षा कवच,
मौन पहरेदार,
एकाग्र मन ।
-- नीता अग्रवाल
मौन की भाषा
स्वीकार के लक्षण
शास्त्र कथन।।
मौनाभिव्यक्ति
शोर से है प्रभावी
अमूल्य शक्ति।।
मौन पर्याय
अत्यधिक धीरता
साधे न सधे।।
केवल मौन
टली बला हजार
सत्य अकाट्य।।
मौन साधना
अति कठिन योग
सहें वेदना।।
भावुक
II मौन II नमन भावों के मोती....
१.
राधा सा मौन
समाधिपाद कुञ्ज
कृष्णा मिलन
२.
मौन वरण
जग का विस्मरण
चिंता हरण
३.
बाहर मौन
नाद गूंजे भीतर
मन 'पागल'
४.
ब्रह्म मुहूर्त
मन मौन सागर
सूर्य वरण
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
जब धरा पर खेले दुश्मन, वीरों के ख़ून से होली
कैसे मैं कविता लिखू,.. स्याही भर लाल-काली
मैं भारत खंड का वासी हूँ, गहन मौन में खोया हूँ
वीर शहीदों के यादो में, लिखते-लिखते रोया हूँ
आतंकियो ने धरती को,... वीरों के लहू से रंगाये
न जाने कितने लालों को,.. मौत की नींद सुलाये
टूट गयी लाल चूड़ियाँ,... लाली भी होंठो से छूटी
मंगलसूत्र के कितने धागों की,.. ये माला भी टूटी
बहनों की राखी दबीगई, शहीदों के साथ घाटी में
कुम कुम भी धरा रहागा,.. आरतीयों की थाली में
परीवार जानो के आंसूओ,. से सातों सागर है हारे
मेंहदी रचे हाथों से ही ख़ुद, अपने मंगलसूत्र उतारे
वीर माताओं के श्री चरणो में ‘राज’ शीश झुकाए
वीर पत्नीया भी माथे रोज़, वीरों का टिका लगाए
✍️ राज मालपाणी,.’राज’
शोरापुर-कर्नाटक
#मूक
(1)क्यों?
#मूक
शैतान
जयहिन्द
मिथ्या बखान
राष्ट्र-अपमान
दुष्ट की पहचान
(2)
है
#मौन
जांबाज
परवाज
जुदा अंदाज
कल और आज
शहीद पर नाज
_____
#स्वरचित
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
रचयिता पूनम गोयल
बर्बरता ने फैलाए
पंख इतने
कि क्षणभर के लिए ,
मानवता मूक हो गयी ।
फिर , न चाहकर भी ,
वह अव्यावहारिक हो गयी ।।
हिंसा-प्रतिहिंसा का ,
भयावह दौर चलता रहा ।
एवं आए दिन ,
असंख्य मानवों का
हनन होता रहा ।।
कोई भी पक्ष न था तैयार ,
रुकने के लिए ।
क्योंकि ठान ली थी दोनों ने ही ,
न झुकने के लिए ।।
यूँ लगा कि
मानवों के साथ-साथ ,
आज मानवता भी
होगी विध्वंस ।
प्रलयकाल के समय ,
जैसे सृष्टि का ,
न बचा था कोई अंश ।।
क्या वास्तव में ?
प्रलय इसी का नाम है !
जब मानवता पर
हो जाता ,
दानवता का राज है ।।
नहीं , कदापि नहीं ,
मानवता कभी हार नहीं सकती ।
मूक भले ही
हो जाए वह ,
दानवता उससेजीत नहीं सकती ।।
है भाव अनंत...कलम है मौन..
शब्द उच्चारित है,मर्म जाने कौन?
भावना उमड़ रही..ख्वाब पल रहे..
कागज उतावले से,फड़फड़ा रहे..
सृजन की आस लिए..
पर कलम फिर भी मौन है..
कैसे समझाउं..क्या लिखूँ..
मर रहे जमीर यहाँ,
इंसानियत मौन है..
लूटती आबरू पर..
हर शख्सियत मौन है..
गर इंसान रूप है देवों का
तो फिर दानव कौन....
भ्रूण मिट रहे कोख में..
फिर मानव कौन..
भटक रही गरीबी,फुटपाथ पर..
तब मानवता क्यों मौन..
तड़फ रहे माँ बाप,
वृद्धाश्रम की दहलीज पर..
संतान क्यों मौन है...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
1
नैना वाचाल
अधर हुए मौन
कहें कहानी
2
मूक दर्शक
घायल हुए शब्द
चीखते वाक्य
3
मौन साधना
जागृत आत्म ज्ञान
वीणा झंकार
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
कौन जाने यह मौन,
जाने क्या क्या बोलता है।
पढ़ने वाले पढ़ ही लेते ,
भाव भंगिमा, नजरों को,
झुकती नजरें जो पल-पल उठे,
लज्जा, प्रेम ,आमंत्रण ,
सभी तो कहे !
बेजुबा अश्क़ बयां करते ,
दास्ताने सुख-दुख की !
कभी वियोग, कभी मिलन ,
ये आंसू सब भाषा जानते।
मुस्कुराहटें भी प्रतिपल
यूँ रंग बदलती है ।
प्रेम ,तिरस्कार, दर्प ,
स्वागत, नमस्कार ।
जाने क्या क्या,
सभी कुछ तो बोलती हैं।
कहने को मुखर यह जिह्वा,
सुनने का हो जो सलीका ,
अंग प्रत्यंग सभी का ही
मौन कुछ ना कुछ बोलता है!!
नीलम तोलानी
स्वरचित
II मौन 2II
उम्र की सांझ में....
जीवन के हर पल का...
बोझ लदा है...
कांधों पर होता तो...
उतार देता मैं...
मन का क्या करून....
बहुत से अनकहे सवाल...जवाब...
तुमसे पूछने थे...कहने थे....
पर तुम्हारी चुप्पी ने...
उनपर भी ताला लगा दिया....
मौन...चुप्पी हर जगह ठीक नहीं होती....
शब्द अगर तीर का काम करते हैं तो...
मौन..चुप्पी...ज़हर का...
धीमे सही मगर...
रिश्तों को खा जाती है...
तुम मौन हो गयी....
मैं बोलता रहा...बेसुध...पागल सा...
फिर बेबस हो...मैं भी मौन हो गया....
मौन की खायी...अमावस बनी...
हमारे रिश्तों को निगल गयी....
जिसे न तो अब शब्द पाट सकते हैं...
न ही...मौन.....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
मूक निमंत्रण
हृदय-तृष-चातक अति प्यासा
स्वाति-सरस-बरस अभिलाषा
नेह-बूंद चाहत लिए मन तरसे
तड़प तड़ित स्फुलित अंबर से
विहँसे चाँद गगन, मगन चकोर
संधि-वेला रुचिर पवन झकोर
तन ताप भाप धरामुख निःसृत
मन आप कल्प गल्प में विस्मृत
अवलंब-आकांक्षी हरित वल्लरी
विकल कली केसर कलित भरी
अधर मौन कंपित द्युति स्पंदन
नयनों का मृदुल मूक निमंत्रण
भाव-भ्रमर शब्दों में कहाँ समाते
निपट नादान काश तुम पढ़ पाते
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
लघु कविता
#############
भारतीय किसान...
हमारे अन्नदाता.....
सारी कमाई दाँव पे लगाके
मूक नजरों से गगन निहारा करे
टूट जाये चाहे कमर
इन्द्र का ना कहर टूटे
हाथ जोड़ मौन निगाहों से
मन ही मन नमन करे..
इसबार आस हो पूरी
परिवार की ख्वाहिशें ....
ना रह जाये अधूरी..
मूक रहकर अपने ...
कर्मों का अर्पण करे.
खेतों में ही सजते सपने
खेती से ही जीवन अपना
निर्वहान करे.......
देख फसलों को लहलहाते
मूक आँखों में आस जगे
इस बार तमन्नाएँ ना रहे अधूरी
फसल सूद-मूल में ना बिक जाये
सूद का समापन होकर......
साहूकारों से छुटकारा मिल जाये
हर वक्त मन से यही दुआ करे
इस बार बच्चों की मुस्कान...
ना मौन रहे.........।।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
मौन रहकर भी बहुत कुछ,
कह जाते हैं नयन तुम्हारे।
प्राणी भाव भंगिमाओं से ,
करें पेश जैसे वचन हमारे।
कुछ लोग कहते हैं यहां तक
मूर्ख के लिए मौन अच्छा है।
सयाने मानते इस जमाने में,
सुसंगति साथ मौन बच्चा है।
निशब्द रहना कोई बात नहीं।
क्या वाणी मधुर सौगात नहीं।
पशुओं को मूक कहते हैं मगर,
क्या सच इनके जज्बात नहीं।
गर मैत्री करुणा भाव आ जाऐं।
मन में सुमधुरम भाव आ जाऐं।
मृदुता वाणी में मिश्री घुली हो,
मूक स्वमेव सुखद भाव पा जाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
माँ खड़ी है मूक
मूक है माँ का हृदय
हृदय बड़ा विचलित
विचलित हैं विचार
विचारों का द्वंद्व जारी
जारी है बहते अश्रु
अश्रु करते पुकार
पुकार रही पुत्र
पत्र हो गया दूर
दूर गया विदेश
विदेश से समाचार नहीं
नहीं उसका पता
पता कहाँ ढूँढे
ढूँढे न मिला कागज
कागज से जलाया चूल्हा
चूल्हा पकड़ गया अग्न
अग्न बड़ा गम्भीर
गम्भीर से गमगीन
गमगीन हुई माँ
माँ बहाए अश्रु
अश्रु करे इंतज़ार
इंतज़ार में दिन-रात बीते
बीते हैं साल
सालों बाद आया बेटा
बेटा चरणों में है गिरा
गिरे हैं माँ के अश्रु
अश्रु हैं मूक।
रचनाकार:-
राकेशकमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
द्वितीयप्रस्तुति
बोलने से ज्यादा वो बिन बोले कह गये
हम निशब्द उनकी सूरत देखते रह गये ।।
मौसम के मिजाज न समझ सके हम
मौसम क्या क्या नही हमसे कह गये ।।
पलक झपकते बदलते हैं मौसम यहाँ
मौन रहने के कैसे जुल्म हम सह गये ।।
मौनत रूलाये यह जाना हमने आज
मगर कलम पाते चमत्कार दिख गये ।।
एक क्या दो क्या और क्या सेकड़ों
'शिवम' हजारों नज्म गीत लिख गये ।।
मौन में शक्ति है और मौन में भक्ति है
कभी कभी इससे संकट भी छट गये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
हाइकु
विषय:-"मौन"
(1)
घटिया सोच
शब्द जहाँ हो सस्ते
कीमती "मौन"
(2)
चहका जग
रवि हटाये तम
समेटा "मौन"
(3)
सुनता कौन?
हाशिये नसीहतें
बुजुर्ग "मौन"
(4)
निःस्वार्थ दान
"मौन" साधनारत
वृक्ष महान
(5)
चढ़ा सन्यास
संसार को समझ
उतरा "मौन"
(6)
धरा की गोद
पर्यावरण आँसू
स्वार्थ है "मौन"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
क्या हुआ है आज दर्पण
न कोई प्रतिबिम्ब दिखता
मौन सी है ये कलम क्यूँ
दर्द भी तुझको न दिखता।
शब्दों का अकाल है या
धुंध में सब खो गए
जोश जो भरते थे हर क्षण
शब्द मौन हो गए।
भावों का उफ़ान है,
इंद्रिया बेचैन है
नवसृजन की आस है
विचलित ये नैन है
चेहरों पर मुखौटे है
कितने प्रतिबिम्ब है
मानवता सिसक रही
अश्रु अवलम्ब है।
द्वन्द्व है विचारों का
ये खेल सरकारों का
बर्बरता हावी है,
अब विनाश होना भावी है
ये मौन एक सन्देश है
आज बदले से वेश है।
अब ये हवा बदलेगी
कलम आग उगलेगी।
बस खत्म होगा आज ये
बरसों बरस का मौन....!
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
मूक/मौन
तुमने इच्छा के विरूद्ध
बहला-फूसला कर
मेरा दामन थामा
हाथ में हाथ दिया ,
तुम्हारी हर बात पर मोहर,
यकीन किया प्राणों से प्रिय,
बनाया तुमको शोहर! भरोसा किया बहुत अधिक,
पर तुम जैसे वधिक!
सास-ननंद थी प्यारी ,
मैं पराये घर की न्यारी !
तुम्हारी पहले भूख दहेज,
फिर कांटों की सेज!
देह का दर्द तुम बेखबर!
खुद को समझे मर्द?
मैं केवल वस्तु भोग-सी
रजनीश के योग -सी ,
मैं छटपटाती रही
बाहों में फड़फड़ाती रही
कल के उजाले के लिए
रोशनी की किरण ढूंढ़ती,
बेबसी लिए लाचार
पँखों से झूलती तो
विष पान करती
अपने को लूटाती
अमानवीय अत्याचार
मौन, मूक सहती रही ,
नदी की तरह शांत बहती रही !
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
नारी तेरे रूप अनेक
कभी माँ तो
कभी होती बेटी , बहन
करती पूरे हर रूप में
अपने कर्तव्य अनेक
हरीभरी धरा सा है
तेरा रूप अनेक
मौन सदा रहती
तू है
पर कह जाती
बात अनेक
बच्चों संग
बच्चे बन जाती
माँ बन शिक्षा देती
पत्नी हो के
परिवार संजोती
ईश्वर की अनोखी
रचना है नारी
सहनशीलता, त्याग की
मूरत है नारी
खुद भूखी
रह जाती है
परिवार को
सुखी रखती है
हर जगह फैहरा रही
सफलता के
परचम नारी
आसमां को
छू रही तू नारी
देश के विकास में
सहायक बन
रही नारी
तूझे सत सत
नमन है नारी
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
मन और चित मे आज ,फिर छिड़ा है इक द्वन्द ,
प्रतिकार हो अन्याय का ,या उचित है रहना मौन ।
भेदभाव को जब जब देखा धधकी मन में ज्वाला ,
चित बोला ये ही है परम्परायें , बस देख रह के मौन ।
जब तिरस्कार ने पार की हदे ,आक्रोश से भर गया मन ,
चित ने कहा ,बच्चों के भविष्य के लिये ,धारण कर ले मौन ।
मन ने उठाया सवाल ,बहस के बग़ैर क्या मिल सकेगा सम्मान ,
ज़्यादा गई थोड़ी बची है , चित ने समझाया तू और तप ले मौन ।
निन्दा और इल्ज़ाम भी सहे , सोच कर कि उनके है ये कर्म ,
हम क्यों पड़े उलझन में , हमारे वश में तो है केवल रहना मौन ।
मन की शान्ति से बड़ी नही होती , कोई भी बहस या लडाई ,
समय सबको देता न्याय ,गर हम रख पाये धैर्य व उत्तम मौन ।।
कुन्ना .
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
प्यार की मीठी गज़ल तुम।
खुशियों का हरेक पल तुम।
कल तुम्ही से होगा रोशन।
और सुनहरा आज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
है वास्ता तुम को हमारा।
प्यार का तुम ही सहारा।
जीने की तुम ही तमन्ना।
जिन्दगी का नाज़ तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
विपिन सोहल
विधा-हाइकु
1.
मौन पड़े हैं
दिल तरकश में
प्रेम के बाण
2.
मौन आकाश
धरती मिलन को
गिराता आँसू
3.
बचाए कौन
गिरती मानवता
भ्रूण हैं मौन
4.
होते मर्डर
तांडव आतंक का
फिर मौन क्यों
5.
मौन क्यों खड़े
भ्रष्टाचार सह के
हताश लोग
6.
रोते पादप
मानव की सोच पे
खड़े हैं मूक
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
🌷☀️ दोहे ☀️🌷
🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵
मौन साधना प्रबल है , आत्म शुद्धि का भान ।
झाँकें मन-मन्दिर सदा , सच्चाई पहचान ।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
शब्दों से भी गूढ़ है , मौन भाव का ज्ञान ।
बढ़े आत्मबल हृदय में , बद्धि विवेक महान ।।
🌴🌴🌴🌴🌴🌴
अन्तर्मन की चेतना , मौन जगाये मर्म ।
मितभाषी ही सफल है , विवेक से सत्कर्म ।।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
ऋषि , मुनि , संत प्रवीण जो , मौन साधते रोज ।
आत्म ज्ञान में लीन हों , करें सत्य की खोज ।।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀
मौन व्रती संयम रखे , बनता चिन्तक धीर ।
हिये तराजू तोल के , शब्द निकलते तीर ।।
🌺🌴🌻🍀☀️🏵
🌲🌹***....रवीन्द्र वर्मा ,आगरा
मो0- 8532852618
विधा--मुक्त
----^----^----^----^----
मूक कहुँ या मौन रहूँ
मेरे मन के भावों को
कहो कैसे व्यक्त करुँ
बहुत घुटन बेचैन धड़कने
रोम रोम मेरा सन्न हो रहा
मेरे देश के बागबानों को
रब्बा ये क्या हो रहा
सत्ता के मोहांध में सब
धृतराष्ट्र हो रहे
कौरवों से संख्याबल में सब
दुर्योधन दुःशासन बन रहे
देवत्व के वसन में असूर
हर ओर हैं खड़े हुए
नवनिर्माण के नाम पर
विनाश लीला रच रहे
मूक कहुँ या मौन रहूँ
अक्षर मेरे सुलग रहे
पर अग्निशिखा बन
ज्वलंत ज्वाल बनने से
विवश हैं
कुर्सी की चाहत में सब
मातृभू को फिर कुरुक्षेत्र
बना रहे
विदेशी ताकतों के लिए
फिर द्वार अपने खोल रहे
इतिहास में जयचंद एक ही था
पर आज यहाँ हृ दूजा शख्श
जयचंद नज़र आता है
वाणी में पर मंथरा से भी अधिक मुखर है
मूक रहुँ या मौन कहुँ
मन की पीड़ा को कैसे
व्यक्त करुँ।
डा.नीलम.अजमेर
****
मौन श्रेयस्कर है
सब सदा सुनते आये हैं
मौन स्वयं प्रखर हो
मुखर हो बोले
तो मौन श्रेयस्कर है ।
कैसे मौन रहे
कैसे मूक बन जाये
जब
अत्याचार का हो बोलबाला
भ्रष्टाचार फलता फूलता रहे
निर्भया जन्मती रहे
वृद्धाश्रम मे पालनहार रहने लगे
सरकारों की मनमानी चलती रहे
बेरोजगार भटकते रहे
पेट की भूख कोठे तक ले जाये
शहीदो के परिवार का
विलाप सहा न जाये
माना मूक रहना
श्रेयस्कर है ,पर
कैसे मौन हो जाये ।
इन हालात के जिम्मेदार
वो मौन ही है
जो समय पर मुखर नही होता ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
विषय-मौन।
१)
मन का मौन,
परमानन्द प्राप्ति,
आत्मिक शांति।
२)
शाब्दिक मौन,
झंझटों से आराम,
कलह मुक्ति।
३)
मौन पसरा,
भावों की बही गंगा,
जग सुनता।
©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर(महाराष्ट्र)
मौन गहना
जिसने भी पहना
हर्षित मन |
रिश्तों में मौन
उपजती दरार
चाहिऐ प्यार |
मौन समाज
लेन देन विवाह
गरीब दुखी |
अन्याय जहाँ
खतरनाक मौन
बीमारी बढ़ी |
मौन साधना
मिलन परमात्मा
योग की बात |
मौन है नारी
मर्यादा परिवार
सहती बात |
मौन जनता
लचर प्रसाशन
अंधेरगर्दी |
थका शरीर
मौन विवशता
प्रार्थना ईश |
मौन कलम
चाटुकारिता बढ़ी
भूला कर्तव्य |
मौन घातक
जब पेट में दाढ़ी
विश्वासघात |
मौन सहर्ष
सुख शांति भावना
समझदारी |
मौन जरूरी
बहुमत प्रधान
रहे सम्मान |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
मै और मेरा मौन
एक दूजे को बख़ूबी समझते
हाँ! मैं मौन में खो गई
आजकल मेरे शब्द भी मौन
क्यों चाहते हो तुम पूछना ?
मौन का कारण है कौन
मै ना बोलूँगी चाहे
पर शब्द बोल उठेंगे
इस अवांछित मौन की हक़ीक़त
शब्द बयाँ भी कर देंगे
शब्दों की माया
कहीं धूप
कहीं छाया
दिल में किसी के उतरे
किसी को दिल से उतारे
मुझे अपने शब्दों को समझाना होगा
शब्दों को मौन धारण कराना होगा
मेरे शब्दों !तुम ख़ामोश रहो
अपने भावों विभावों को ना प्रकट करो
बड़ी ज़ालिम है ये दुनिया
ना जाने कौन क्या मतलब निकाल ले
तेरी कही गई किसी बात का ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित
मुखर मौन,
कहे अनकहा भी,
अमोघ अस्त्र ।
2-
भ्रूण प्रहार,
अपने भी निर्मोही,
मूक चीत्कार ।
3-
रक्षा कवच,
मौन पहरेदार,
एकाग्र मन ।
-- नीता अग्रवाल
मौन की भाषा
स्वीकार के लक्षण
शास्त्र कथन।।
मौनाभिव्यक्ति
शोर से है प्रभावी
अमूल्य शक्ति।।
मौन पर्याय
अत्यधिक धीरता
साधे न सधे।।
केवल मौन
टली बला हजार
सत्य अकाट्य।।
मौन साधना
अति कठिन योग
सहें वेदना।।
भावुक
II मौन II नमन भावों के मोती....
१.
राधा सा मौन
समाधिपाद कुञ्ज
कृष्णा मिलन
२.
मौन वरण
जग का विस्मरण
चिंता हरण
३.
बाहर मौन
नाद गूंजे भीतर
मन 'पागल'
४.
ब्रह्म मुहूर्त
मन मौन सागर
सूर्य वरण
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
जब धरा पर खेले दुश्मन, वीरों के ख़ून से होली
कैसे मैं कविता लिखू,.. स्याही भर लाल-काली
मैं भारत खंड का वासी हूँ, गहन मौन में खोया हूँ
वीर शहीदों के यादो में, लिखते-लिखते रोया हूँ
आतंकियो ने धरती को,... वीरों के लहू से रंगाये
न जाने कितने लालों को,.. मौत की नींद सुलाये
टूट गयी लाल चूड़ियाँ,... लाली भी होंठो से छूटी
मंगलसूत्र के कितने धागों की,.. ये माला भी टूटी
बहनों की राखी दबीगई, शहीदों के साथ घाटी में
कुम कुम भी धरा रहागा,.. आरतीयों की थाली में
परीवार जानो के आंसूओ,. से सातों सागर है हारे
मेंहदी रचे हाथों से ही ख़ुद, अपने मंगलसूत्र उतारे
वीर माताओं के श्री चरणो में ‘राज’ शीश झुकाए
वीर पत्नीया भी माथे रोज़, वीरों का टिका लगाए
✍️ राज मालपाणी,.’राज’
शोरापुर-कर्नाटक
#मूक
(1)क्यों?
#मूक
शैतान
जयहिन्द
मिथ्या बखान
राष्ट्र-अपमान
दुष्ट की पहचान
(2)
है
#मौन
जांबाज
परवाज
जुदा अंदाज
कल और आज
शहीद पर नाज
_____
#स्वरचित
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
रचयिता पूनम गोयल
बर्बरता ने फैलाए
पंख इतने
कि क्षणभर के लिए ,
मानवता मूक हो गयी ।
फिर , न चाहकर भी ,
वह अव्यावहारिक हो गयी ।।
हिंसा-प्रतिहिंसा का ,
भयावह दौर चलता रहा ।
एवं आए दिन ,
असंख्य मानवों का
हनन होता रहा ।।
कोई भी पक्ष न था तैयार ,
रुकने के लिए ।
क्योंकि ठान ली थी दोनों ने ही ,
न झुकने के लिए ।।
यूँ लगा कि
मानवों के साथ-साथ ,
आज मानवता भी
होगी विध्वंस ।
प्रलयकाल के समय ,
जैसे सृष्टि का ,
न बचा था कोई अंश ।।
क्या वास्तव में ?
प्रलय इसी का नाम है !
जब मानवता पर
हो जाता ,
दानवता का राज है ।।
नहीं , कदापि नहीं ,
मानवता कभी हार नहीं सकती ।
मूक भले ही
हो जाए वह ,
दानवता उससेजीत नहीं सकती ।।
है भाव अनंत...कलम है मौन..
शब्द उच्चारित है,मर्म जाने कौन?
भावना उमड़ रही..ख्वाब पल रहे..
कागज उतावले से,फड़फड़ा रहे..
सृजन की आस लिए..
पर कलम फिर भी मौन है..
कैसे समझाउं..क्या लिखूँ..
मर रहे जमीर यहाँ,
इंसानियत मौन है..
लूटती आबरू पर..
हर शख्सियत मौन है..
गर इंसान रूप है देवों का
तो फिर दानव कौन....
भ्रूण मिट रहे कोख में..
फिर मानव कौन..
भटक रही गरीबी,फुटपाथ पर..
तब मानवता क्यों मौन..
तड़फ रहे माँ बाप,
वृद्धाश्रम की दहलीज पर..
संतान क्यों मौन है...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
1
नैना वाचाल
अधर हुए मौन
कहें कहानी
2
मूक दर्शक
घायल हुए शब्द
चीखते वाक्य
3
मौन साधना
जागृत आत्म ज्ञान
वीणा झंकार
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
कौन जाने यह मौन,
जाने क्या क्या बोलता है।
पढ़ने वाले पढ़ ही लेते ,
भाव भंगिमा, नजरों को,
झुकती नजरें जो पल-पल उठे,
लज्जा, प्रेम ,आमंत्रण ,
सभी तो कहे !
बेजुबा अश्क़ बयां करते ,
दास्ताने सुख-दुख की !
कभी वियोग, कभी मिलन ,
ये आंसू सब भाषा जानते।
मुस्कुराहटें भी प्रतिपल
यूँ रंग बदलती है ।
प्रेम ,तिरस्कार, दर्प ,
स्वागत, नमस्कार ।
जाने क्या क्या,
सभी कुछ तो बोलती हैं।
कहने को मुखर यह जिह्वा,
सुनने का हो जो सलीका ,
अंग प्रत्यंग सभी का ही
मौन कुछ ना कुछ बोलता है!!
नीलम तोलानी
स्वरचित
II मौन 2II
उम्र की सांझ में....
जीवन के हर पल का...
बोझ लदा है...
कांधों पर होता तो...
उतार देता मैं...
मन का क्या करून....
बहुत से अनकहे सवाल...जवाब...
तुमसे पूछने थे...कहने थे....
पर तुम्हारी चुप्पी ने...
उनपर भी ताला लगा दिया....
मौन...चुप्पी हर जगह ठीक नहीं होती....
शब्द अगर तीर का काम करते हैं तो...
मौन..चुप्पी...ज़हर का...
धीमे सही मगर...
रिश्तों को खा जाती है...
तुम मौन हो गयी....
मैं बोलता रहा...बेसुध...पागल सा...
फिर बेबस हो...मैं भी मौन हो गया....
मौन की खायी...अमावस बनी...
हमारे रिश्तों को निगल गयी....
जिसे न तो अब शब्द पाट सकते हैं...
न ही...मौन.....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
मूक निमंत्रण
हृदय-तृष-चातक अति प्यासा
स्वाति-सरस-बरस अभिलाषा
नेह-बूंद चाहत लिए मन तरसे
तड़प तड़ित स्फुलित अंबर से
विहँसे चाँद गगन, मगन चकोर
संधि-वेला रुचिर पवन झकोर
तन ताप भाप धरामुख निःसृत
मन आप कल्प गल्प में विस्मृत
अवलंब-आकांक्षी हरित वल्लरी
विकल कली केसर कलित भरी
अधर मौन कंपित द्युति स्पंदन
नयनों का मृदुल मूक निमंत्रण
भाव-भ्रमर शब्दों में कहाँ समाते
निपट नादान काश तुम पढ़ पाते
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
लघु कविता
#############
भारतीय किसान...
हमारे अन्नदाता.....
सारी कमाई दाँव पे लगाके
मूक नजरों से गगन निहारा करे
टूट जाये चाहे कमर
इन्द्र का ना कहर टूटे
हाथ जोड़ मौन निगाहों से
मन ही मन नमन करे..
इसबार आस हो पूरी
परिवार की ख्वाहिशें ....
ना रह जाये अधूरी..
मूक रहकर अपने ...
कर्मों का अर्पण करे.
खेतों में ही सजते सपने
खेती से ही जीवन अपना
निर्वहान करे.......
देख फसलों को लहलहाते
मूक आँखों में आस जगे
इस बार तमन्नाएँ ना रहे अधूरी
फसल सूद-मूल में ना बिक जाये
सूद का समापन होकर......
साहूकारों से छुटकारा मिल जाये
हर वक्त मन से यही दुआ करे
इस बार बच्चों की मुस्कान...
ना मौन रहे.........।।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
मौन रहकर भी बहुत कुछ,
कह जाते हैं नयन तुम्हारे।
प्राणी भाव भंगिमाओं से ,
करें पेश जैसे वचन हमारे।
कुछ लोग कहते हैं यहां तक
मूर्ख के लिए मौन अच्छा है।
सयाने मानते इस जमाने में,
सुसंगति साथ मौन बच्चा है।
निशब्द रहना कोई बात नहीं।
क्या वाणी मधुर सौगात नहीं।
पशुओं को मूक कहते हैं मगर,
क्या सच इनके जज्बात नहीं।
गर मैत्री करुणा भाव आ जाऐं।
मन में सुमधुरम भाव आ जाऐं।
मृदुता वाणी में मिश्री घुली हो,
मूक स्वमेव सुखद भाव पा जाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
माँ खड़ी है मूक
मूक है माँ का हृदय
हृदय बड़ा विचलित
विचलित हैं विचार
विचारों का द्वंद्व जारी
जारी है बहते अश्रु
अश्रु करते पुकार
पुकार रही पुत्र
पत्र हो गया दूर
दूर गया विदेश
विदेश से समाचार नहीं
नहीं उसका पता
पता कहाँ ढूँढे
ढूँढे न मिला कागज
कागज से जलाया चूल्हा
चूल्हा पकड़ गया अग्न
अग्न बड़ा गम्भीर
गम्भीर से गमगीन
गमगीन हुई माँ
माँ बहाए अश्रु
अश्रु करे इंतज़ार
इंतज़ार में दिन-रात बीते
बीते हैं साल
सालों बाद आया बेटा
बेटा चरणों में है गिरा
गिरे हैं माँ के अश्रु
अश्रु हैं मूक।
रचनाकार:-
राकेशकमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
बोलने से ज्यादा वो बिन बोले कह गये
हम निशब्द उनकी सूरत देखते रह गये ।।
मौसम के मिजाज न समझ सके हम
मौसम क्या क्या नही हमसे कह गये ।।
पलक झपकते बदलते हैं मौसम यहाँ
मौन रहने के कैसे जुल्म हम सह गये ।।
मौनत रूलाये यह जाना हमने आज
मगर कलम पाते चमत्कार दिख गये ।।
एक क्या दो क्या और क्या सेकड़ों
'शिवम' हजारों नज्म गीत लिख गये ।।
मौन में शक्ति है और मौन में भक्ति है
कभी कभी इससे संकट भी छट गये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
हाइकु
विषय:-"मौन"
(1)
घटिया सोच
शब्द जहाँ हो सस्ते
कीमती "मौन"
(2)
चहका जग
रवि हटाये तम
समेटा "मौन"
(3)
सुनता कौन?
हाशिये नसीहतें
बुजुर्ग "मौन"
(4)
निःस्वार्थ दान
"मौन" साधनारत
वृक्ष महान
(5)
चढ़ा सन्यास
संसार को समझ
उतरा "मौन"
(6)
धरा की गोद
पर्यावरण आँसू
स्वार्थ है "मौन"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
क्या हुआ है आज दर्पण
न कोई प्रतिबिम्ब दिखता
मौन सी है ये कलम क्यूँ
दर्द भी तुझको न दिखता।
शब्दों का अकाल है या
धुंध में सब खो गए
जोश जो भरते थे हर क्षण
शब्द मौन हो गए।
भावों का उफ़ान है,
इंद्रिया बेचैन है
नवसृजन की आस है
विचलित ये नैन है
चेहरों पर मुखौटे है
कितने प्रतिबिम्ब है
मानवता सिसक रही
अश्रु अवलम्ब है।
द्वन्द्व है विचारों का
ये खेल सरकारों का
बर्बरता हावी है,
अब विनाश होना भावी है
ये मौन एक सन्देश है
आज बदले से वेश है।
अब ये हवा बदलेगी
कलम आग उगलेगी।
बस खत्म होगा आज ये
बरसों बरस का मौन....!
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
मूक/मौन
तुमने इच्छा के विरूद्ध
बहला-फूसला कर
मेरा दामन थामा
हाथ में हाथ दिया ,
तुम्हारी हर बात पर मोहर,
यकीन किया प्राणों से प्रिय,
बनाया तुमको शोहर! भरोसा किया बहुत अधिक,
पर तुम जैसे वधिक!
सास-ननंद थी प्यारी ,
मैं पराये घर की न्यारी !
तुम्हारी पहले भूख दहेज,
फिर कांटों की सेज!
देह का दर्द तुम बेखबर!
खुद को समझे मर्द?
मैं केवल वस्तु भोग-सी
रजनीश के योग -सी ,
मैं छटपटाती रही
बाहों में फड़फड़ाती रही
कल के उजाले के लिए
रोशनी की किरण ढूंढ़ती,
बेबसी लिए लाचार
पँखों से झूलती तो
विष पान करती
अपने को लूटाती
अमानवीय अत्याचार
मौन, मूक सहती रही ,
नदी की तरह शांत बहती रही !
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
नारी तेरे रूप अनेक
कभी माँ तो
कभी होती बेटी , बहन
करती पूरे हर रूप में
अपने कर्तव्य अनेक
हरीभरी धरा सा है
तेरा रूप अनेक
मौन सदा रहती
तू है
पर कह जाती
बात अनेक
बच्चों संग
बच्चे बन जाती
माँ बन शिक्षा देती
पत्नी हो के
परिवार संजोती
ईश्वर की अनोखी
रचना है नारी
सहनशीलता, त्याग की
मूरत है नारी
खुद भूखी
रह जाती है
परिवार को
सुखी रखती है
हर जगह फैहरा रही
सफलता के
परचम नारी
आसमां को
छू रही तू नारी
देश के विकास में
सहायक बन
रही नारी
तूझे सत सत
नमन है नारी
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
मन और चित मे आज ,फिर छिड़ा है इक द्वन्द ,
प्रतिकार हो अन्याय का ,या उचित है रहना मौन ।
भेदभाव को जब जब देखा धधकी मन में ज्वाला ,
चित बोला ये ही है परम्परायें , बस देख रह के मौन ।
जब तिरस्कार ने पार की हदे ,आक्रोश से भर गया मन ,
चित ने कहा ,बच्चों के भविष्य के लिये ,धारण कर ले मौन ।
मन ने उठाया सवाल ,बहस के बग़ैर क्या मिल सकेगा सम्मान ,
ज़्यादा गई थोड़ी बची है , चित ने समझाया तू और तप ले मौन ।
निन्दा और इल्ज़ाम भी सहे , सोच कर कि उनके है ये कर्म ,
हम क्यों पड़े उलझन में , हमारे वश में तो है केवल रहना मौन ।
मन की शान्ति से बड़ी नही होती , कोई भी बहस या लडाई ,
समय सबको देता न्याय ,गर हम रख पाये धैर्य व उत्तम मौन ।।
कुन्ना .
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
प्यार की मीठी गज़ल तुम।
खुशियों का हरेक पल तुम।
कल तुम्ही से होगा रोशन।
और सुनहरा आज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
है वास्ता तुम को हमारा।
प्यार का तुम ही सहारा।
जीने की तुम ही तमन्ना।
जिन्दगी का नाज़ तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
विपिन सोहल
1.
मौन पड़े हैं
दिल तरकश में
प्रेम के बाण
2.
मौन आकाश
धरती मिलन को
गिराता आँसू
3.
बचाए कौन
गिरती मानवता
भ्रूण हैं मौन
4.
होते मर्डर
तांडव आतंक का
फिर मौन क्यों
5.
मौन क्यों खड़े
भ्रष्टाचार सह के
हताश लोग
6.
रोते पादप
मानव की सोच पे
खड़े हैं मूक
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵
मौन साधना प्रबल है , आत्म शुद्धि का भान ।
झाँकें मन-मन्दिर सदा , सच्चाई पहचान ।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
शब्दों से भी गूढ़ है , मौन भाव का ज्ञान ।
बढ़े आत्मबल हृदय में , बद्धि विवेक महान ।।
🌴🌴🌴🌴🌴🌴
अन्तर्मन की चेतना , मौन जगाये मर्म ।
मितभाषी ही सफल है , विवेक से सत्कर्म ।।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
ऋषि , मुनि , संत प्रवीण जो , मौन साधते रोज ।
आत्म ज्ञान में लीन हों , करें सत्य की खोज ।।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀
मौन व्रती संयम रखे , बनता चिन्तक धीर ।
हिये तराजू तोल के , शब्द निकलते तीर ।।
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🌲🌹***....रवीन्द्र वर्मा ,आगरा
मो0- 8532852618
विधा--मुक्त
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मूक कहुँ या मौन रहूँ
मेरे मन के भावों को
कहो कैसे व्यक्त करुँ
बहुत घुटन बेचैन धड़कने
रोम रोम मेरा सन्न हो रहा
मेरे देश के बागबानों को
रब्बा ये क्या हो रहा
सत्ता के मोहांध में सब
धृतराष्ट्र हो रहे
कौरवों से संख्याबल में सब
दुर्योधन दुःशासन बन रहे
देवत्व के वसन में असूर
हर ओर हैं खड़े हुए
नवनिर्माण के नाम पर
विनाश लीला रच रहे
मूक कहुँ या मौन रहूँ
अक्षर मेरे सुलग रहे
पर अग्निशिखा बन
ज्वलंत ज्वाल बनने से
विवश हैं
कुर्सी की चाहत में सब
मातृभू को फिर कुरुक्षेत्र
बना रहे
विदेशी ताकतों के लिए
फिर द्वार अपने खोल रहे
इतिहास में जयचंद एक ही था
पर आज यहाँ हृ दूजा शख्श
जयचंद नज़र आता है
वाणी में पर मंथरा से भी अधिक मुखर है
मूक रहुँ या मौन कहुँ
मन की पीड़ा को कैसे
व्यक्त करुँ।
डा.नीलम.अजमेर
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मौन श्रेयस्कर है
सब सदा सुनते आये हैं
मौन स्वयं प्रखर हो
मुखर हो बोले
तो मौन श्रेयस्कर है ।
कैसे मौन रहे
कैसे मूक बन जाये
जब
अत्याचार का हो बोलबाला
भ्रष्टाचार फलता फूलता रहे
निर्भया जन्मती रहे
वृद्धाश्रम मे पालनहार रहने लगे
सरकारों की मनमानी चलती रहे
बेरोजगार भटकते रहे
पेट की भूख कोठे तक ले जाये
शहीदो के परिवार का
विलाप सहा न जाये
माना मूक रहना
श्रेयस्कर है ,पर
कैसे मौन हो जाये ।
इन हालात के जिम्मेदार
वो मौन ही है
जो समय पर मुखर नही होता ।
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
विषय-मौन।
१)
मन का मौन,
परमानन्द प्राप्ति,
आत्मिक शांति।
२)
शाब्दिक मौन,
झंझटों से आराम,
कलह मुक्ति।
३)
मौन पसरा,
भावों की बही गंगा,
जग सुनता।
©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर(महाराष्ट्र)
मौन गहना
जिसने भी पहना
हर्षित मन |
रिश्तों में मौन
उपजती दरार
चाहिऐ प्यार |
मौन समाज
लेन देन विवाह
गरीब दुखी |
अन्याय जहाँ
खतरनाक मौन
बीमारी बढ़ी |
मौन साधना
मिलन परमात्मा
योग की बात |
मौन है नारी
मर्यादा परिवार
सहती बात |
मौन जनता
लचर प्रसाशन
अंधेरगर्दी |
थका शरीर
मौन विवशता
प्रार्थना ईश |
मौन कलम
चाटुकारिता बढ़ी
भूला कर्तव्य |
मौन घातक
जब पेट में दाढ़ी
विश्वासघात |
मौन सहर्ष
सुख शांति भावना
समझदारी |
मौन जरूरी
बहुमत प्रधान
रहे सम्मान |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
मै और मेरा मौन
एक दूजे को बख़ूबी समझते
हाँ! मैं मौन में खो गई
आजकल मेरे शब्द भी मौन
क्यों चाहते हो तुम पूछना ?
मौन का कारण है कौन
मै ना बोलूँगी चाहे
पर शब्द बोल उठेंगे
इस अवांछित मौन की हक़ीक़त
शब्द बयाँ भी कर देंगे
शब्दों की माया
कहीं धूप
कहीं छाया
दिल में किसी के उतरे
किसी को दिल से उतारे
मुझे अपने शब्दों को समझाना होगा
शब्दों को मौन धारण कराना होगा
मेरे शब्दों !तुम ख़ामोश रहो
अपने भावों विभावों को ना प्रकट करो
बड़ी ज़ालिम है ये दुनिया
ना जाने कौन क्या मतलब निकाल ले
तेरी कही गई किसी बात का ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित
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