Thursday, March 7

"नारी/वीरांगना " 08मार्च 2019

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             ब्लॉग संख्या :-321

नारी:साक्षात नवदुर्गा का रूप

दूर्गा है,काली है,हर देवी का रूप नारी है।
कैसी भी आए विपदा,कभी ना हारी नारी है। 

मान है,अभिमान है,हर घर की जान नारी है। 
आँधी आए,चाहे तूफाँ आए,हर हाल में खुश रहती नारी है। 

दु:ख सहे,दर्द सहे,फिर भी अपनों को सुख देती नारी है।जैसा चाहे संग उसके बर्ताव करे कोई,फिर भी सबका भला चाहती नारी है। 

बेटी हो,बहन का हो,पत्नी हो चाहे माँ का हो अपने हर रिश्ते को बखूबी निभाती नारी है। 
इनकी रक्षा की खातिर सारे जहाँ से भी लड़ जाती नारी है। 

डाँटे भी,फँटकारे भी,फिर भी हरएक घर का गौरव नारी है। खफा होने का ढोंग करे,पर मन ही मन सबसे प्रेम करती नारी है। 

लोरी गाए,गीत सुनाए,अपनी मधुर वाणी से घर वातावरण शुद्ध बनाती नारी है।हम सबको तो माँ सरस्वती का साक्षात स्वरूप नज़र आती नारी है। 

परिवार ये है,संसार ये है,मेरा तो मूल-आधार भी ये नारी है।नारी से ही घर,घर है,नारी बिना तो बेकार ये दुनियाँ सारी है। 

नवदुर्गा के सारे गुण विद्यमान हैं हर नारी में,
इसलिए मैं कहती हूँ कि नारी :-- साक्षात नवदुर्गा का रूप है। 

रौशनी अरोड़ा (रश्मि)


**** नारी हैं नर की शक्ति ***

नारी हैं नर की शक्ति 
नारी हैं नर का आधार,
नारी पर ही टिकी सृष्टि 
बिन नारी सूना संसार,

जग जननी, सर्व सुखदायिनी,
माँ रूप नारी का प्यारा,
मातृत्व व ममता के आगें 
नतमस्तक होता जग सारा,
माँ के आँचल में खेलन को 
वो ईश्वर भी तरसे बारम्बार,
नारी हैं नर की शक्ति 
नारी हैं नर का आधार,

घर की देवी , लक्ष्मी कहलाए 
हर सुख-दुःख में साथ निभाती हैं,
दया, त्याग, समर्पण की मूर्त 
अर्द्धाग्नि कहलाती हैं,
छोड़ लाड़ प्यार माँ-बाप का
कहलाती वो पतिव्रता नार ,
नारी हैं नर की शक्ति 
नारी हैं नर का आधार,

बेटे की खातिर, बेटी की हत्या ,
होता घर वो नरक समान,
होती जिस घर बेटी की परवरिश 
वो घर होता स्वर्ग समान,
तू ही दुर्गा, तू ही काली
नारी तेरे रूप हजार,
नारी हैं नर की शक्ति 
नारी हैं नर का आधार,
नारी पर ही टिकी सृष्टि 
बिन नारी सूना संसार,

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा रिसालियाखेड़ा,सिरसा(हरियाणा




**********************
"सहनशील नारी"

देखा गया हमको
फिल्म गानों की तरह
ललचाई दृष्टि से।

पढा गया हमको 
रूक-रूककर
भीगे कागज पर स्याह अक्षर सम।

चीर-हरण हुआ मेरा 
पौरुष प्रधान समाज में
बेईज्जत किया भरी सभा में।

जलाई गई
मैं गृहलक्ष्मी 
दहेज लोभियों द्वारा।

दब गए 
मेरे सब अरमान 
जिन्दगी के।

फैंका गया मुझे कभी
कचरे में
फालतू समझ।

जान ली होगी 
सहनशीलता #नारी की
न टूटी फिर भी मैं।

अब भी खड़ी हूँ
मैं सुख-दुख में तेरे
हरदम संग।

पर बुरा वक्त निकल गया है
नजरें बदलनी पड़ेगी तुम्हें
मैं भी हूँ शक्तिस्वरूपा।

शान्त रही अभी तक
न समझ तू मुझे
शीतल जल सम।

फूट पड़ेगा यदा-कदा
मेरे हृदय का लावा
मिट जाएगा तेरा सारा पौरुषत्व।
*********************
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,


मैंने आदिकाल से ,
संघर्षों को देखा है, सहा है,
मेरे ही आंखों से पानी,
आँचल से दुध बहा है,
मैं 'स्त्री' हूँ,
ये किसे नही पता है...???

पुरातन में जब,
तुम बिना वस्त्र ,
उदर-छुधा मिटाने को,
भटकते थे कंदराओं में,
और फिर जब थककर,
खोजते थे आश्रय तुम,
तब मैंने ही तुम्हे,
प्रश्रय दिया था अपने,
गन्धवाही केशों के छाँव में,

जब विकशित हुई धरा,
तब तुम ही तो थे,
जो भूल गये थे मेरे अस्तित्व को,
और लगा देते थे दांव पर,
जैसे कोई वस्तु हूँ मैं....

विनोद तुम्हारा, क्रीड़ा तुम्हारी,
अहम तुम्हारा, प्रतिशोध तुम्हारा,
पर प्रताड़ित मैं होती,
अपने सारे गुणों को समेटे,
मैं अबतक तुम्हारे जीवन,
को सम्हालती, संवारती आयी हूँ,
पर तुमने तो मेरे अस्तित्व,
को ही नकारा,
मुझे दुत्कारा...

जब काम-अग्नि,
हावी होती तुम पर
तब तुम मुझसे,
करते हो अभिनय प्रेम का,
पर मैं भले कामवश ही सही,
पर जब भी मिला मैंने,
सृजन के वीज को,
अंकुरित किया, सींचा-
रक्त से, स्नेह से,
और इस धरा को,
भविष्य के लिये ---
अग्रसारित किया,

पर तुम्हे क्या पता,
की, हर प्रसव पर,
पुनः जन्मी हूँ मैं,
पर इस पीड़ा को,
कभी बोझ न समझा,
पर तुम कहाँ समझोगे,
तुम तो मासिक धर्म को भी,
समझते हो अभिशाप,
जो की प्रक्रिया है,
सृष्टि के नव-पौध के,
अंकुरण का---

.....जब से विकशित हुये हो,
तब से ज्ञान इतना बढ़ा की,
बेटी के बाप से जो,
अपना वर्षों का संचित-रत्न,
तुम्हे सौंप रहा है,
उससे तुम गाड़ी,बंगला,
मांगते हो,
इस मानवीय मेल को,
जार-जार बना दिया
समाज के सबसे पवित्र रीति को,
बैल-बाजार बना दिया,

तुमने क्या नही किया,
डराया, धमकाया,
रुलाया, जलाया,
हमने इसे अपनी,
नियति मान लिया,
पर तेरा मन न भरा,
तूने मुझे गर्भ में ही मार दिया,

...ऐ निष्ठुर नियति,
तू ही बता क्या,
विधि का यही विधान है,
हर छण नारी जीवन,
मृत्यु के समान है,

मृत्यु के समान है.........

© राकेश पांडेय,


(#दीप) की कलम से 

कभी मीठी सी मुस्कान हूं मैं 
कभी किसी की अरमान हूं मैं 
कभी किसी के दिल की जान हूं मैं 
कभी किसी की जहान हूं मैं 
कभी मुझमें दुनिया समायी है 
कभी मैंने इतिहास रचायी है 
इस धरा की क्या बात करूं मैं 
तीनों लोकों में मेरी महिमा छायी है 
मैं हूं एक नारी जो नहीं है बेचारी
अब न कोई अबला कहना 
हमको भी है आगे रहना 
हां हमको भी है आगे रहना 
**************************
#महिला_दिवस_हार्दिक_शुभकामनायें

दीपमाला पाण्डेय 
रायुर छ.ग।


नारियों की वीरता से इतिहास भरा पड़ा है
ये वो देश जहाँ नारियों ने भी युद्ध लडा़ है ।।
भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का मुकुट 
ऐसे अनेकानेक हीरे मोतियों से जडा़ है ।।

रानी लक्ष्मी बाई रानी दुर्गावती , अबंतीबाई 
जिन्होने शौर्य की परिभाषा जग को बताई ।।
युद्ध के मैदान में अँग्रेजों के दांत खट्टे किये 
मरकर भी जिनकी कहानी अमर कहाई ।।

जीजाबाई , शिवाजी जैसे बेटे को जन्म दिया
वीरता क्या है नारी का सर गर्व से ऊँचा किया ।।
नारी का योगदान किसी माने कम न 'शिवम'
नारी ने भी नर के साथ जहर का घूँट पिया ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


नारी रुप अनूप

मातृशक्ति के अनेक रुप
कार्यशैली इसकी अनूप ।
घर- आंगन की स्वच्छता 
और सेवा का गुण खूब ।।

माँ,बहन,बेटी,पत्नी रुप
दोनों कर है दस अनुरुप ।
पढने -लिखने में है आगे
मुकाम पाकर होय खुश ।।

समझें खुद को अनुज
कुल को दें छांव सहे धूप ।
ममता,समता का सागर
पूजे बेटी पग,धन्य मनुज ।।

गोपाल कौशल 
नागदा जिला धार मध्यप्रदेश
99814-67300
स्वरचित ~~÷ 21-2-18


कौन कहता है कि नारी अकेली है, अबला है, बेचारी है।
हर क्षेत्र में एक-एक नारी,सौ-सौ पुरूषों पर पड़ी भारी हैं।।
आखिर क्यों उन्हें बेबश, लाचार और हीन समझा जाता है,
जबकि नारी ही पुरुष की, जन्मदाता भाग्य विधाता हैं।
नारी श्रद्धा है, प्रेम है ,विश्वास है, और सबसे खास है।
नारी जन्म ही नहीं देती,हर इंसान के जीने की आस है।
दया, क्षमा, सहनशीलता की यूं तो ये प्रतिमा है,
मगर बन जाती दूर्गा, काली जब बढ़ जाती यातना है।
जुल्म अगर करना गलत है,तो सहना महापाप है।
चुप्पी भी एक हदतक सही है वरना यह भी तो शाप है।।
जबतक नारी समझती रहेगी, खुद को पुरूष की दासी,
कौई कभी-भी ना दूर कर सकेगा, उसके जीवन की उदासी।
अपने हक के लिए नारी को खुद ही आगे बढ़ना होगा।
अन्याय अत्याचार के खिलाफ, डटकर लडना होगा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल ,खड़कपुर


कोमल ह्रदय मनमोहक मुस्कान,
आत्म विश्वास जिसमें हैं खूब भारी

त्याग तपस्या , दृढ़ निश्चय से,
सर्वगुण सम्पन्न है नारी

पंखों को जब ये अपने खोले,
गगन भेद चहूँदिश विचर आती

चांद पर भी पहुँच गई है,
एवरेस्ट पर विजय ध्वज फहराती

लक्ष्मी बाई बन युद्ध मे होती खड़ी,
क्रूर शत्रुओं को धूल चटा जाती

सब खेलों में अव्वल रही है,
स्वर्ण रजत पदक सब ले आती

सेना हो संसद हो टीवी हो ,
या हो राजनीति घर व्यापार

हर क्षेत्र सुशोभित होते है इससे,
जब ये बनती शिक्षक, मंत्री , पत्रकार

ऑटो से लेकर हवाई जहाज तक,
सबको बेझिझक हो चला लेती

थके नही सब भागदौड़ करके भी ,
ये ठीक समय पर खाना पका देती

माँ, बेटी, पत्नी, बहु सब रूपों में,
अपना फर्ज खूब अच्छे निभा पाती

भले हो इसकी कोमल सी काया,
पर काम तो ये बड़े बड़े कर जाती।

सुमन जैन
नई दिल्ली


किसी छंद की 
भांति मनमोहिनी बन
दिल लुभाती है नारी

हर मापदंड पर 
खरी उतरकर
निर्धारित गति से
सम्पूर्णता को समेटे
अपने लक्ष्य पर शनै शनै 
चलती है नारी

धारती सारे रूप और
बिना किसी भेदभाव के
अपने अस्तित्व के लिए 
सब के समक्ष 
स्वाभीमान से
प्रस्तुत होती है नारी 

बिना किसी 
स्पष्टीकरण के 
जिंदगी के हर 
पहलू के अर्थ 
नितांत कुशलता से
गढ़ती है नारी

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के 
मुखमंडल पर 
स्वर्णिम आभा सी
सुशोभित होकर 
हर तम को हरती है नारी

स्वरचित
सुमनजीत कौर
जयपुर


प्रकृति की अनुपम कृति, हो तुम नारी,
तुम्हारी तो अदभुत होती , हर पारी,
अविस्मरणीय होती ,जब तुम होतीं महतारी,
इसे तो नमन स्वयम् करते ,वो प्यारे सुदर्शन धारी।

तुमसे ही मिलता ,जीवन को घूर्ण,
तुम ही तो करती ,घर को पूर्ण,
तुम्हारी स्नेहिल द्रष्टि,से ही,
पुरुष उमंग से,होता परिपूर्ण।

मातृ रुप तुम्हारा,ममता है,
बहन रुप,उसका ही प्रवक्ता है,
पत्नी में मन जोगी, रमता है,
भाभी प्रेम की एक, सघनता है,
बेटी तो,अदभुत निश्छलता है,
बहू स्नेह की , प्रबल तरलता है,
पौत्री तो भाव विभोर, विव्हलता है।

नारी ! तुम तो पल पल में ,व्याप्त हो,
इतने मधुर सम्बन्धों में, प्राप्त हो,
केवल महिला दिवस में ही तुम्हारा गान
नहीं नहीं ऐसे तो सिमट जाता सम्मान ।

नारी तुम्हारे ,गहरे अर्थ,
कई बातों में,तुम्हीं समर्थ,
जो नहीं समझते ,करते अनर्थ,
सम्भावनायें कई, कर देते व्यर्थ ।

तुम तो प्रेरणा स्त्रोत ,हो नारी,
इसी तरह,खेलना बस अपनी पारी।
08 03 2019,शुक्रवार
नारी जीवन मे न हारी
नारी जीवन अद्भुत होता
नारी के अंचल नव शिशु
कभी हँसता कभी रोता
नारी ममता मान समर्पण
नारी से जग सारा हारा
नारी त्याग तपस्या मूरत
वह् जग की पालनहारा
नारी दुर्गा नारी लक्ष्मी
नारी संस्कारित करती
नारी जग पावन जननी
हर संताप स्वयं हरती
नारी वीर धीर गंभीर है
नारी खुद रण चंडी है
नारी मान अगर हरण हो
कर खडग स्वयं खड़ी है
नारी रण में न कोई सानी
लक्ष्मीबाई वह दुर्गावती
आंच अगर आवे मर्यादा
तो फिर वह पद्मावती
नारी बहिना नारी पति व्रत
कोई नही नारी पहिचाना
नारी अतुलनीय जग में है
साजन की प्रिय है सजना
शत् शत् नमन है नारी को
नारी जैसा दूजा नहीं जग में
सुमन बिछा मखमल करदें
उसके पावन प्रिय पगतळ में
नारी की महिमा सागर है
सर्वगुण अतुलनीय सम्पन्ना
मात अहिल्या वह् सीता है
गौरवशाली वह् अति धन्या।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


घनाक्षरी एक प्रयास
नारी

नारी ज्ञान का झरना
नारी नर की प्रेरणा,
नारी से बना संसार
नारी को है प्रणाम

तू है दुर्गा तू है काली
हम है फूल तू माली
पूँजे तूझे नर नारी
तेरी दया प्रसादी

माँ का रूप है निभाती
बच्चों को गोद सुलाती
पीड़ा देख नहीं पाती
ऐसी है नारी भक्ति

दुष्टो का नाश करती
सुखी संसार करती
नारी वह माँ भारती
नारी नर की शक्ति

डाँ मुकेश भद्रावले हरदा


उठो जागो हे मातृशक्ति,
स्वयं की तुम पहचान बनो। 
रहो न अबला बनकर तुम, 
भाग्य स्वयं का तुम ही बुनो।। 
नारी जग जननी कहलाती, 
बांधे पावनता की डोर। 
मिटाती जग के अंधकार को, 
उजियारा तुम से चहुँ ओर।।
फैलाने प्रकाश जगत में, 
तुम ही अब रवि पुंज बनो।।... 
उठो जागो हे मातृशक्ति,
स्वयं की तुम पहचान बनो। ...
खुशियाँ संपन्नता है तुमसे, 
जग जननी जग का आधार। 
सहो न अत्याचार भी तुम,
शक्ति का स्वरूप बनो।। 
विद्या संपन्न शक्ति स्वरूपा, 
मिले लक्ष्य मंजिलें चुनो। 
उठो जागो हे मातृशक्ति,
स्वयं की तुम पहचान बनो। ....
....भुवन बिष्ट, 
रानीखेत, उत्तराखंड
(स्वरचित/मौलिक)


, "नारी अस्तित्व "
, *************
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नारी सृष्टि की अनुपम कृति है।
जिसकी महिमा व गरिमा,
अतुलित व अवर्णनीय है 
नारी का अस्तित्व,
सर्वथा पूज्यनीय है 
महिमामयी देवि सदैव वंदनीय है 
जननी की सारभौम शक्ति,
मातृत्व से परिपूर्ण है 
धरणी सी महान है ।
अन्नपूर्णा है मानव जीवन की !
कोमल काया है संसृति की !
फिर भी अपार सहनशीला है !
दयानी है शिवानी है कल्याणी है।
शीतल चंदन सी !
किन्तु, हिमालय सी दृढ़ भी ! 
नारी अम्बे है नारी जगदम्बे है 
नारी सृजन है नारी गंगे है !
पुरुष के समग्र अस्तित्व में समाहित,
अर्धनारीश्वर रूप है शिव की !
पार्वती, सरस्वती भवानी है जग की !
नारी की महिमा का अंतहीन शब्द है 
किन्तु, देखती हूँ ,,,&&&&&&&&&&
इतनी महानता के बावजूद ,
नारी अस्मिता असहाय क्यों? 
आज नारी- उत्थान के परिवेश में,
स्त्री को अपनी गरिमामयी
विशिष्ट , पहचान चाहिए !
बदल गया है जमाना ,
बदल गया सम्मान का पयमाना
अब परदे के पीछे रहने की आन ,बान शान ,
उसको भाती नहीं ।
सिर्फ घर की गृह देवी बनना,
उसको सुहाता नहीं ।
बाहर की विकसित दुनिया में,
उसे लक्ष्य का अनुपम द्वार चाहिए /
जो अपनी अन्तर्व्यथा में,
चुप चुप सहती थी रोती थी,
उसे अब अपने हृदय पट खोलकर,
खुलकर जीने की,
अनंत में उड़ने की,
खुली बयार चाहिए,सपने साकार चाहिए /
माँ ,बहन ,पत्नी का गौरव पद पाकर,
जो करती रहीं सदा न्योछावर ,
आज इसी तिरस्कृत,पीड़ित नारी को,
स्वयंसिद्धा बनने का,
सम्पूर्ण अधिकार चाहिए //
**************************
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प्रस्तुतकर्ता,,,,,,,,,,,,,

रचनाकार =ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार



स्वरचित
नारी शक्ति पन्नाधाय 
कवि जसवंत लाल खटीक
राजसमन्द , राजस्थान

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई । नारी शक्ति पन्नाधाय को समर्पित मेरी रचना ।

स्वामिभक्ति की मिसाल हो तुम माता ,
तुम्हारा बलिदान कोई भूल नही पायेगा ।
जब-जब याद करेंगे इतिहास को ,
पन्नाधाय-पन्नाधाय हर कोई गायेगा ।।

राणा सांगा के देहांत के बाद में ,
बनवीर को कुँवर उदयसिंह सौंप दिया ।
लालन-पालन करती थी पन्नाधाय ,
उदयसिंह को अपने पुत्र सा स्नेह दिया ।।

एक दिन जब पन्नाधाय को खबर लगी ,
बनवीर उदयसिंह को मारना चाहता है ।
राणा के वंशज को रास्ते से हटाकर ,
बनवीर मेवाड़ का राजपाट चाहता है ।।

घुस गया बनवीर कुँवर के कक्ष में ,
नंगी तलवार और गंदी नियत को लेकर ।
वंश का सर्वनाश करना चाहता था ,
पागल हो गया सत्ता का लालच देखकर ।।

सीने पर पत्थर रख दिया तूने माता ,
उदयसिंह की जगह चंदन को सुला दिया ।
तुम्हारे साहस और त्याग को नमन है ,
मेवाड़ के लिए ममता को भुला दिया ।।

बनवीर की तलवार चली जब चंदन पर ,
पन्नाधाय के मुँह से उफ्फ तक नहीं निकला ।
कलेजे के टुकड़े के टुकड़े हो गए पर ,
पन्नाधाय का दिल तो देशभक्त निकला ।।

आंसुओं को अंदर ही अंदर मार दिया ,
लेकिन मेवाड़ का भावी राजा बचा दिया ।
जूठी पत्तलों की टोकरी में उदयसिंह ,
राणा के वंश को सुरक्षित बचा लिया ।।

राणा के पुत्र को नया जीवन देकर ,
कमेरी की पन्ना तूने मान बढ़ा दिया ।
नारी शक्ति के त्याग और बलिदान से ,
स्वामिभक्ति का तूने पाठ पढा दिया ।।

तेरा नाम हमेशा अमर रहेगा माता ,
तेरे गुणगान पूरा भारतदेश गायेगा ।।
"जसवंत" लिखे पन्नाधाय की महिमा ,
पन्नाधाय-पन्नाधाय हर कोई गायेगा ।।


नारी पर मेरे हाइकु,
१/भरे चौपाल,

नारी चीर हरण,
पुलिस चुप।।
२/नारी सृष्टि की,
अनुपम रचना,
प्रेम प्रतिमा।।२।।
३/प्रकृति चित्र,
सबसे मनोहर,
रुपसी नारी।।३।।
४/चौराहे पर,
दुशासन लूटता,
लाज नारी का।।४।।
५/धरती पर,
बड़ी दीन है नारी,
युगों-युगों से।।५।
६/हर तूफान,
से लड़ सकती है,
आज की नारी।


मैं नारी हूँ
सृष्टा की सर्वोत्तम रचना 
हर साँचें में
ढलने वाली
सौंधी सी माटी हूँ
अंधेरी राहों का दीपक हूँ
गुलाब की पंखुड़ी
कांटों की डाली हूँ
मैं ही फूल हूँ 
मैं ही खुशबू हूँ
शीतल पवन का झोंका हूँ
मीठी मदिर बयार हूँ
शमा सी पिघलती हूँ
मन्दिर के दीये की
जोत सी जलती हूँ
बारिश की पहली फुहार हूँ
शबनम का मोती हूँ
बालक की मीठी लोरी हूँ
ममता की डोरी हूँ
कवि की कविता और
शायर की रुबाई हूँ
बांसुरी की तान और
मैं ही शहनाई हूँ
घर की मर्यादा और
प्रणय का वादा हूँ
पावन जलधार हूँ
मेघ मल्हार हूँ
रंग भरी होली हूँ
सजन की हमजोली हूँ
हृदय का सम्बंध हूँ
प्रणय का अनुबंध हूँ
सरस्वती हूँ , सीता हूँ
मैं ही रामायण गीता हूँ
मां दुर्गा का रूप हूँ
लक्ष्मी का स्वरूप हूँ
आज की नारी हूँ
कमजोर नहीं बलशाली हूँ
धरती से आकाश तलक
लोहा मनवाने वाली हूँ
गौरान्वित हूँ मैं नारी हूँ
किसी तुला में न तोलो मुझको
नर से भारी मैं नारी हूँ
मैं नर से भारी नारी हूँ

सरिता गर्ग
स्वरचित


यह भारत की वीरांगनाएं
भारत की भाग्य विधाता
वीर क्षत्राणी रानियाँं थीं
गुणी साहसी धर्मनिष्ठ योद्धा
रण में काली कल्याणी बन
दुश्मन के छक्के छुड़ाती थी
था ममता से परिपूर्ण हृदय
सीने में स्वाभिमान की ज्वाला थी
पति विमुख न हो कर्त्तव्य से
शीश काट उसे भेंट किया
वीर क्षत्राणी रानी हांडी ने
गौरवशाली इतिहास रचा
सीता सी थी कोमलता इनमें
आँंखों में पदमिनी सी ज्वाला
स्वाभिमान की रक्षा करने
मिलकर जौहर कर डाला
धधक-धधक कर जलता था तन
मुख पर चीख नहीं जयकारे थे
इनकी वीरता के आगे
दुश्मन के हौंसले हारे थे
आंँखों से शोले बरसाती
तलवार चलाती बिजली सी
झांँसी की वह रानी थी
खूब लड़ी मर्दानी बन
दुश्मन को ललकारती थी
दोनो हाथ तलवार चला उसने
दुश्मनों के सिर को काटा था
इतिहास गवाह है इनकी
गौरवशाली गाथा का
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित


🌸हां हम नारी हैं🌸
नारी को बेचारी समझना
यह भूल तुम्हारी है
हां हम नारी हैं तूफानों से टकरातीं हैं
कभी न रुकना फितरत हमारी है
गर्व हमें है खुद पर कि हम नारी हैं
नारी पर आश्रित यह दुनिया सारी है
इच्छाओं को मारते हँसते मुस्कुराते
माँ बहन बेटी और पत्नी 
कितने रुपों को हम जीते
संकट परिवार आए तो पीछे न हटते
हम ही दुर्गा हैं काली कल्याणी हैं
हां हम नारी हैं
हम हड़ताल पर जब भी उतर जाए
सारे घर में फिर उथल-पुथल मच जाए
करते कई काम यही हमारी पहचान है
कितने भी बीमार हो करते फिर भी काम है
मुस्कान मुख पर हरदम नहीं कभी आराम है
फिर भी सबसे ज्यादा नाकारा हम ही समझे जाते
थकान से चूर है फिर भी काम करते हैं
घर बैठे सारे दिन हम ही आराम करते हैं
क्यों किसी से झुकें खुद को कम समझे
हां हम नारी हैं पर यह मत समझो
हम अबला बेचारी हैं हम नहीं किसी से कम
हम तो वो नारी हैं जो पुरुषों पर भारी है
हर क्षेत्र मेंआगे रहती मुश्किल में नहीं घबराती
हरदम टूटते सपने कष्ट भी सहनें पड़ते
फिर भी न हताश होते मुश्किलों में अटल खड़े
यही खूबी हमारी है हां हम नारी हैं
कभी न रुकना फितरत हमारी है
***अनुराधा चौहान***स्वरचित




जगत जननी हो नारी तुम, 
सौम्य, कोमल प्यारी तुम, 

सृष्टि का सरताज हो तुम, 
ईश्वर का वरदान है तुम |

जमाने के साथ हो तुम, 
सूर्य का प्रकाश हो तुम, 
हर घर की लाज हो तुम, 
कल भी थी आज भी तुम |

सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा 
इनका अवतार हो तुम, 
सवाल का जवाब हो तुम, 
स्वयं की पहचान हो तुम |

ममता की खान हो तुम, 
चांद की कल्पना हो तुम, 
एवरेस्ट की बछेन्द्री पाल हो तुम, 
मैरीकॉम सी मुक्केबाज हो तुम |

तेरी गाथा बड़ी पुरानी, 
सीता सी पवित्र हो तुम, 
गीता का पाठ हो तुम, 
कविता में भी हो तुम |

रूप तेरे हैं अनेक, 
घर में सम्पन्नता तुमसे आती,
पायलट बन जहाज तुम उड़ाती,
सारे फर्ज तुम खूब निभाती |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


नारी तुम जीवन आधार हो,
विस्तृत हो जगत का भार हो,
काल के मस्तक पर लिखा हुआ,
वृहद अनोखा सार हो !

सुगंधित अविभक्त माल हो,
करुणा से भरा ताल हो,
मधुमास हो,वसन्तदूत हो,
कोई लिखी गजल कमाल हो !

प्यार,स्नेह का गागर हो,
त्याग ,दया का सागर हो,
ममता निरंतर रहती जहां,
वह पवित्र सा आगर हो !

प्रेम शक्ति का मनुहार हो,
तुम घर का मोहित द्वार हो,
हरदम साथ रहती जो,
प्रेम बसन्त बहार हो !

हर पिता का अभिमान हो ,
माँ की ममता का आन हो ,
पिया हृदय का सम्मान हो ,
हर सुंदर रिश्तों की शान हो !

तुलसी हो हर आंगन की,
मूरत हो अपनेपन की,
उठती हुई उमंग हो तुम,
हर युग के तन-मन की !

मर्यादा ,मान, प्रतिष्ठा हो,
मनोभाव प्रकटती चेस्टा हो,
हर घर की डोर बंधी तुझसे,
गौरवशाली विशेषता हो!

तुम सिंह की गर्जना हो,
आफत की तर्जना हो,
मुश्किल मासिक चक्र हो,
पांच दिनों की वर्जना हो !

मन मे उठती तरंग हो,
निश्छल बहती उमंग हो,
जीवन सार्थक होता है,
हे नारी जब तुम संग हो !

**************************************
रचनाकार:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )


नारी तुम अपनी हुनर को पहचानो।
उठो,काम पे लग जाओ और सबको जगाओ।
तुम्हीं हो दुर्गा,तुम्हीं हो काली।
तुम्हीं से चलती दुनियाँ सारी।
तुम्हीं जगत्माता हो जननी हो।
घर की भी शान तुम्हीं हो।

पर जब वक्त आया तो।
बन गई झाँसी की रानी।
तलवार लेकर निकल गई।
दुश्मनों का नाश करने।

लड़ते,लड़ते जान दे दी।
पर पीछे नहीं हटी।
सब नारियों के लिये मिसाल बन गई।
वो लड़ाकू,हठी।

दुर्गा,काली ने वक्त आने पर।
जमकर युद्ध किया।
नाश करके राक्षसों का।
जग में अपना नाम किया।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सबको महिला दिवस की शुभकामनाएं।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी.


तृतीय प्रस्तुति
-----------------
नारी का जीवन
जैसे नदिया की धारा
उनसे अपेक्षा का
नहीं कोई किनारा
बेटों को सीने से लगाते
उनको किनारा कर देते
बेटी पराया धन होती
यह सीख सदा उनको देते
प्यार सदा उनको मिलता
वह एहसास नहीं मिलता
उस घर को अपना कह सके
वह अधिकार नहीं मिलता
ब्याह कर के वह जब भी
अपने ससुराल जाती हैं
गृहलक्ष्मी बन कर भी
वह सम्मान न पाती हैं
सुबह से उठ कर काम करे
रखे सभी का खूब ख्याल
फिर भी बात बात में मिलता
उनको पराए होने का एहसास
नारी के जीवन की
यह कड़वी सच्चाई है
कितना भी समर्पण कर लें
फिर भी कहलाती पराई हैं
नारी बिना घर स्वर्ग नहीं
यह बात सभी स्वीकार करें
उनसे अपेक्षाएं रखते हो
उन्हें उनके अधिकार भी दें
**अनुराधा चौहान***©स्वरचित



दोहे----

1.
नारी है नारायणी , इस जग की आधार ।
नारी के अवतरण से , मिला जगत को प्यार।।
2.
जितनी उन्नत नार हो, उतना उन्नत देश ।
नारी की अवनति सदा, रचे निम्न परिवेश।।
3.
पुरुष अगर शिक्षित करे ,खुद होते तैयार ।
नारी को शिक्षित करें , हो पीढ़ी उद्धार ।।
4.
नारी न दूर प्यार से , नारी न तज दुलार ।
माँ, बेटी व बहन बनी , किया जगत उद्धार।।
5.
नारी का सम्मान जब , घर घर में यदि होय ।
लक्ष्मी का हो वास तहँ , सदा भला संजोय ।।
6.
सुखी परिवार की सदा , नारी है आधार ।
पर दिखाउ संसार में, न्यून हुए संस्कार ।।
7.
लज्जा मर्यादा रखें ,ये जीवन का सार ।
जिन मर्यादा पार की , उनका बंटाढार।।
8.
आधी सेहत, अध्ययन ,आधे पोषण बीच ।
करें संघर्ष नारियां , सभी तरफ है कीच ।।
9.
नारी तब आरी बनी ,हुआ जु अत्याचार ।
भोगा भी व खूब सहा , चले न अब ये धार ।।
10.
प्रतिभा रहती अग्र सदा , नर हो या फिर नार।
प्रतिभा का सम्मान हो , यही सत्य है सार ।।

*********स्वरचित*********
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
85, सुख विलास कॉलोनी ,
बड़वानी (म. प्र .)451-551
मो. 94259--81988


नारी/वीरांगना
****
ये खामोश ,मूक औरतें
ख्वाहिशों का बोझ ढोते 
सदियों से वर्जनाओं मे जकड़ी 
परम्पराओं और रुढियों 
की बेड़ियों मे बंधी 
नित नए इम्तिहान से गुजरती
हर पल कसौटियों पर परखी जाती 
पुरुषों के हाथ का खिलौना बन 
बड़े प्यार से अपनों से ही छली जाती 
बिना अपने पैरों पर खड़े 
बिना रीढ़ की हड्डी के,
ये अपने पंख पसारती 
कंधे से कंधा मिला कर चलती 
सभी जिम्मेदारियाँ निभाती 
खामोशी से सब सह जाती
आसमान से तारे तोड़ लाने 
की हिम्मत रखती है
तभी नारी वीरांगना कहलाती है ।
ये क्या एक दिन की मोहताज है..
नारी !गलती तो तुम्हारी है 
बराबरी का अधिकार माँग 
स्वयं को तुम क्यों कम आँकती 
तुम पुरुष से श्रेष्ठ हो
बाहुबल मे कम हो भले 
बुद्धि ,कौशल ,सहनशीलता 
मे श्रेष्ठ हो तुम
अद्भुत अनंत विस्तार है तुम्हारा 
पुष्प सी कोमल हो 
चट्टान सी कठोर हो 
माँ की लोरी ,त्याग मे हो 
बहन के प्यार में हो 
पायल की झंकार हो तुम
बेटी के मनुहार मे हो 
नारी !नर तुमसे है 
सृजनकारी हो तुम 
अनुपम कृति हो तुम
आत्मविश्वास से भरी 
अविरल निर्मल हो तुम 
चंचल चपला 
मंगलदायिनी हो तुम
नारी !वीरांगना हो तुम।

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव


नारी तेरे रूप अनेक 

नारी के हैं 

रूप अनेक

कभी माँ तो 

कभी होती 

बेटी , बहन 

करती पूरे 

हर रूप में 

अपने कर्तव्य 

अनेक 

हरीभरी धरा 

सा है रूप 

अनेक

मौन सदा रहती है 

पर कह जाती

बात अनेक

बच्चों संग 

बच्चे बन जाती

माँ बन शिक्षा देती

पत्नी हो 

परिवार संजोती

ईश्वर की अनोखी 

रचना है नारी

सहनशीलता,

त्याग की

मूरत है नारी

खुद रह जाती है

भूखी 

परिवार को रखती है

सुखी

हर जगह 

फैहरा रही

सफलता के 

परचम , नारी

आसमां को 

छू रही नारी

देश , समाज में

योगदान 

देती है नारी

तूझे सत सत 

नमन है नारी

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव 

भोपाल


स्वरचित लघु कविता
दिनांक 8.3.2019
दिन शुक्रवार
विषय नारी/वीरांगना
रचयिता पूनम गोयल

गुरूर है मुझे स्वंय पर कि मैं नारी-शक्ति हूँ ! 
एक पुरुष को जो जन्म दे , मैं ऐसी शक्ति हूँ !!
मेरे हैं अनेकों रूप , उन सभी में मैं सशक्त हूँ !
मैं माँ हूँ , एक बहन हूँ , एक पत्नी हूँ !
और ऐसे , न जानें , कितने रिश्तों में विभक्त हूँ !!
अपने परिवार की धुरी हूँ मैं , उसके लालन-पालन को सम्भालती हूँ मैं !
जब पुरुष व्यस्त हो कारोबार में , तो अपने अपनों की रक्षा करती हूँ मैं !!
कहता है संसार मुझे अबला फिर भी , क्योंकि अपनी शक्ति नहीं जताती हूँ मैं !
वरना तो वज्र-सम सीना है मेरा , हिमालय भी हंसते-हंसते , पार कर जाती हूँ मैं !!


ईश्वर ने भी इस नारी का सदा किया सम्मान 
धन की देवी लक्ष्मी शक्ति दुर्गा की पहचान

हर परीवार का अनमोल गहना है नारी शक्ति 
हर घर को स्वर्ग बनाए करके अब हरी भक्ति 

बलिदान जिनकी भावना है उनको नारी कहते
नारी शक्ति का सम्मान स्वयं ईश्वर भी करते 

अजन्मे बालकों का पालन अपने पेठ में करती
अपने ममता तले हर बच्चों का ब्रह्ममंड रचाती

नौ महीने तक हर कष्ट उठाकर सहेती है नारी 
कभी बेटी तो कभी पत्नी और कभी माँ है नारी 

श्रुष्ठी की जीवित देवी 'माँ' हर नारी कहलाती 
लाल ख़ून परिवर्तित कर सफ़ेद दूध है पिलाती 

शरीर का पोषण कर के बच्चों को बड़ा बनती 
मर्दोको बनाने से मर्द बनाने तक रिश्ता निभाती 

माँ रूपी नारी शक्ति को "राज" प्रणाम करता 
भू-मंडल के सभी 'माताओं' को वंदन मैं करता 

.
-: रचनाकार का नाम :- 
✍️ राज मालपाणी
शोरापुर - कर्नाटक


विधा .. लघु कविता 
***********************
🍁
ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है,
नारी जिसका नाम ।
सम्पूर्ण धरा धारण करती जो,
तुमको मेरा प्रणाम।
🍁
सौम्य सुहासिनी समधुर वाणी,
तू है दुर्गा तू ही काली।
धर्म नही जिन्दा बचता गर,
धरती पर ना होती नारी।
🍁
नही बेचारी आत्म संयमी,
कोमल पर विविधा भंडारी।
मात पुत्री भगनी सौभाग्यी,
दो कुल की मर्यादा बाँधी।
🍁
शब्द नही तू है कुल गौरव,
तनया वीरसूता विरांगनी।
शेर लिखे क्या तुम पर देवी,
भाव तुम्ही मे तुम मे मोती।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf


* मैँ हूँ समायी *
(1) संस्कृती में , संस्कार में 
आचरण और व्यवहार में 
प्यार में दुलार में 
मैँ हूँ समायी ll 
(2) तीज में ,त्यौहार में 
रूप में , श्रृंगार में 
दो कुलो के द्वार में 
मै हूँ समायी ll 
(3) राखी की मौली में 
रंगो भरी होली में 
सजी हुयी डोली में 
मैँ हूँ समायी ll 
(4)दया में ,ममता में 
त्याग की क्षमता में 
शांति में ,चंचलता में 
मैँ हूँ समायी ll 
(5) साथी में ,संगिनी में 
सुता में ,भगिनी में 
सीता सी तपस्विनी में 
मैँ हूँ समायी ll 
दुर्गा में , काली में
भोर की , लाली में
सांँझ की थाली में
मैँ हूँ समायी ll 
(6)लता सी कोकिला में
प्यारी मांँ, वसुंधरा में
परी में ,अप्सरा में
मैं हूंँ समायी।।
(7)झांँसी सी मर्दानी में
पन्ना की कुर्बानी में 
लैला सी दीवानी में
मैं हूंँ समायी।।
(8) आदर में ,सत्कार में 
हर -एक किरदार में 
सर्वस्व संसार में 
मैँ हूँ समायी ll

स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश


क्या लिखूँ आज नारी दिवस पर..
हर कोई लिख रहा नारी सम्मान आज..
शब्द नहीं मेरे शब्दकोश में इतने..
लिखे जो नारी महानता आज..
नारी है महान सदियों से..
पूजी जाती रही सदियों से..
पर क्या आज वो सम्मान है?
पग पग पर खड़े है रावण..
क्या आज नारी सुरक्षित है?
दहेज दानव ले रहे जान इनकी..
क्या हल कोई समुचित है?
क्यों नन्हीं कली मसली जा रही हवस में?
क्यों नहीं नारी का सम्मान है बस में?
ऊंचे लेख वो लिखे नारी सम्मान में..
लिख रहा खूब मर्यादा मान में..
क्या आज उसके घर में नारी का सम्मान है..
सोशल मिडिया में फब्तियाँ कसता वो..
गंदे भद्दे कमेंट करता वो..
फिर नारी कहाँ सुरक्षित है..
सम्मान करना है तो सिर्फ एक दिन ही क्यों??
क्यों नहीं हर बालिका बेटी लगती?
क्यों नहीं हर नारी बहन लगती?
काश हर दिन महिला दिवस हो...
हर दिन हो सम्मान इनका..
आओ दिलाए हर नारी को मान..
आओ करें इनका सम्मान..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


आज की नारी इतनी कमजोर
नही जो झुक जायेगी।

करो चाहे पुरजोर जतन तुम, 
नही वो रुक पायेगी।

दिल की सुंदरता कब भला,
तेजाब से खत्म हो पायेगी।

शक्ति रूप है नारी ,नही 
मोंम जो पिघल जायेगी।

बंद करो तुम अब 
जिस्मो का व्यापार चलाना।

नारी कोई वस्तु नही जो 
बाजार में बिक जायेगी।

कब तक करोगे अब आनाकानी,
खत्म करो ये मनमानी।

तस्वीर देश की अब बदलेगी,
अब ना नारी जुल्म सहेगी।

कोई निर्भया अब ना मरेगी,
प्रचंड रूप चंडी का धरेगी।

दुष्टो के सर की भेंट चढ़ेगी,
अब घुँघट की ओट हटेगी।

जा सीमा पर युद्ध लड़ेगी,
अब ना नारी कमजोर बनेगी।

उड़ा वायु यान,अब (कल्पना)
अंतरिक्ष की सैर करेगी।

कल तक थी जो बंद घरों में,
आज संसद का रुख करेगी।

खत्म करो अपनी राजनीति 
अब नारी तुम पर राज करेगी।

इंदिरा गांधी,प्रतिमासिंह ,कल्पना चावला ,
सानिया मिर्जा, सानिया नेहवाल,
गीता बबिता फोगोट भी नारी ही थी।

और कितने नाम सुनोगे,
नही कमजोर जो जुल्म सहेगी।।

संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात


नारी/वीरांगना
==========================
शोभा सारे घरों की,.. सारे घर की छाँव।
नारी घर रोशन करे,जान लगा कर दाँव।।
---------------------------
दीपक में वो रोशनी,.. ... . .नारी बाती तेल।
दीप्त ज्योति रखने सदा ,जाये जां पर खेल।।

बेटा केवल दे सका ,. अपने कुल को मान।
लेकिन बेटी ने दिया ,दो कुल को सम्मान।।
--------------------------
दो दो कुल उज्ज्वल करे ,देती सब को नेह।
बेटी ऎसे मानिये ,.. .. कुदरत धर ले देह।।
=========================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी


नारी घर संसार नारी प्यार।
नारी ममता है नारी दुलार।
बिन बनिता घर लगता सूना,
नारी से ही यह सब संसार।

नारी से ही नर नारायण है।
नारी से ही जग पारायण है।
नारी बिन सब यहां अधूरा,
नारी से ही यह रामायण है।

उमा रमा कमला बृह्माणी,
नहीं अबला नारी सबला है।
वीरांगना थी रानी लक्ष्मीबाई,
महिला बिगडी बडी बला है।

नारी संस्कृति संस्कार है नारी ।
नारी बहन अपनी बेटी है नारी।
नारी जननी सत्य प्रीति है नारी।
नारी दुर्गा ये महाकाली है नारी।

स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

"नारी"
छंद मुक्त सृजन
*******************
नारी को मिलता कैसा जीवन
पुरुषों के बनाए पथ में...
चलता है जीवन का संग्राम

पति के रुप में......
भाई सम पुरुष ......
कितनों को मिलते हैं
और कितनों को मिलता
पिता का द्वितीय रुप....
होता गर ऐसा.......
तो मन ये कहके झूम उठता
#स्वामी सुहागिनी,
#प्रेम अनुरागिनी...

बहुतों को है मिलता....
बर्बरता से परिपूर्ण..
अमानवीय व्यवहार
मन में उसके ......
पुरुष के नाम से ही...
आता है संत्रास।।

चौका-चूल्हा में ही....
जल रही दिन-रात....
मन से स्वाधीन होने की ..
चाहत ही है,उसका अपराध

एक नारी को ......
जितनी सहजता से.
कुलटा कहा जाए...
क्या किसी पुरुष को
कहना है आसान....।

माँ,बहनों और सखि....
जागो...उठो......!!
सब मिलकर इस समाज को
बदलो...
अंदर की दुनिया से बाहर आकर
इस दुनिया की हाल हकीकत जानो...
नारी मन की व्यथा को समझो
उसकी आवाज बनो....!!!
एक दूजे कि थामके हाथ..
कंधे से कंधा मिला...
ताकि पुरुष वर्ग..
कलुषित ना कर सके
कोई नारी का तन!!!

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

विधा कुण्डल छन्द
विषय नारी
*****
द्वितीय प्रयास
****
कुण्डल छन्द 
मात्रिक छन्द है 
चार चरण ,दो दो चरण समतुकांत
12,10 पर यति
यति के पूर्व और पश्चात त्रिकल 
चरणान्त में दो गुरु
***
नारी गुणों की खान ,सभी की दुलारी ।
दिवस मे न बाँध इसे ,बात है निराली ।।
माँ बहन पत्नी सुता, रूप सभी भाये ।
बुद्धि कौशल से सदा ,मान उच्च पाये ।।

माँ के रूप में सदा,त्याग को समाये।
रिश्ता बहन रूप में ,प्यार से सजाये।।
पत्नी का रूप सदा,पिया को लुभाये।
सुता का ऐसा रूप ,धूप से बचाये ।।

मन मे उल्लास भरे,शक्ति है हमारी।
नारी का रखो मान , रीति है हमारी ।।
जीव का सृजन करे , पूज्य कहलाये।
सभी का सम अधिकार,जगत को बतायें।।
***
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव

नारी हूँ इसलिये अपने कर्तव्यों को जानती हूँ
घर हो या बाहर हर कार्य मे पारंगत हूँ
हर कार्य को वक़्त के साथ करती हूँ
समय के महत्व को बखूबी पहचानती हूँ
कभी बेटी, कभी बहन
कभी बहु, कभी सास 
कभी माँ ,कभी पत्नी
कभी ननद,कभी किसी की दोस्त
हर रिश्ते को खूबसूरती से निभाती हुँ
किसी से किसी तरह की उमीद नही रखती हूं
बाद थोड़ा सा सम्मान नजरों में चाहती हु

अपना दुःख भूल औरो के सुख में हँसती हूँ
अपने आंसुओ को छुपा कर दिल से मुस्कुराती हूं
हर पल दुसरो की खुशी में खुशी ढुढती हु
क्या सिर्फ इतना सब के लिए बस एक दिन?

आज जब सारा जहा नारी दिवस माना रहा हैं
नारियो को सम्मानों से नवाजा जा रहा है
ये सिर्फ बस एक दिन के लिए ही होता है

फिर शुरू हो गा गर्भ में बेटियों की हत्या
दहेज के लिए बहुयो को जलाना
स्कूल कॉलेज में लड़कियों को छेड़ना
उनकी इज्जतो से खेलना
क्या कभी रुक पायेगा ये

मत दीजिये ये एक दिन के झूठे सम्मान
देना है तो आखो में इज्जत दीजिये
दिलो में स्नेह दीजिये
आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दीजिये
बहु को बेटी का सम्मान दीजिये
अपने घर की लक्ष्मी खिताब दीजिये
अपने दिलो में नारी के प्रति आदर रखिये

यही होगा हर नारी के लिए नारी दिवस का सम्मान
उनके दयारा किये गए कामो का फल
नारी ही नारी का मान कर तो 
गरिमा और बढ़ जाएगी 
नारी की जिंदगी खुशियो से खिल जाएगी
नारी दिवस की शुभकामनाएं
स्वरचित
दीपिका मिश्रा


मैं औरत नहीं सदी हूँ, अनवरत बहती नदी हूँ। 

शिशु की प्रथम बोली हूँ, गृहस्थ की रंगोली हूँ
बाबुल के आँगन की तुलसी हूँ, माँ की ममता से हुलसी हूँ। 
नवयौवना जब बनती, तो बन जाती लजवंती हूँ। 

पीहर से जब नैहर जाती हूँ 
छोड़ बाबुल की गलियाँ नए रिश्ते निभाती हूँ 
साजन के दिल की धड़कन बनकर, मन ही मन इतराती हूँ 
दोनों कुल का संगम करती मैं वो महानदी हूँ।

राम कृष्ण और लवकुश को मैंने ही जन्म दिया है
भक्ति रस में डूब गई, तो मीरा बन गरल पिया है
जाने कितनी विभूतियाँ, कोख में मैंने पाले हैं 
चीरकर देखो मेरा कलेजा, जाने कितने छाले हैं 
मैं ही राधा मैं ही दुर्गा, मैं ही तो सरस्वती हूँ। 

देवकी बनकर मैंने कितने लाल कुर्बान किए
बड़े-बड़े वीरों ने मेरी शक्ति को प्रणाम किए
मर्यादा की खातिर, कर्ण जैसे सुत खोती हूँ 
ओंठों पर मुस्कान सजाए चुपके-चुपके रोती हूँ
कैकयी जैसी माता बनकर भी, मैं कालजयी हूँ। 

तुलसी की रत्ना हूँ, मैं बाल्मिकी की रामायण हूँ 
लड़ती रही जनम से मैं, करती नहीं पलायन हूँ 
कठोरता की बात करो, तो धरती- सी कठोर हूँ मैं 
त्याग, तपस्या और बलिदान की अंतिम छोर हूँ मैं 
सत्य मार्ग पर चली हमेशा, मैं वो तारामती हूँ।

वीरता की बात आई तब, जौहर मैं ही दिखलाई 
हौसला बुलंद किया है सदा बनकर लक्ष्मी बाई
ईश्वर को भी झुकाया मैंने जब-जब गुहार लगाई 
महाभारत के चीरहरण की, निसहाय द्रोपदी हूँ 
तो यमराज को झुकाती, सत्यवान की सावित्री हूँ।

जीवन के महासमर में जीत का वरदान हूँ 
पति का अभिमान हूँ मैं पुत्रों का सम्मान हूँ 
अबला मुझे कभी ना समझो मैं शक्ति की खान हूँ 
जीत सका ना कोई मुझे, मैं वो अनवरत संग्राम हूँ 
आ जाऊँ अपने पर तो कराल क्रोध रणचंडी हूँ।

दहेज वेदी पर जलती हूँ, फूल-काँटों में पलती हूँ 
जाने कितने जन्म गुज़रे, फिर भी आती हूँ 
नित नूतन रूप दिखाती, अपना फ़र्ज़ निभाती हूँ 
अखिल विश्व की जन्मदात्री, मैं ही तो गायत्री हूँ 
पतिव्रता बन चिता सेज पर जलती वही सती हूँ।

स्वरचित 
सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़ 

नारी के सम्मान के लिये हर जगह सम्मानित समारोह किये जा रहे है।
मैं एक बात पूछना चाहती हूँ
पुरुष प्रधान से
क्या ?
एक दिन ही नारी को सम्मानित करके वो प्रसन्न हो जायेगी, कदाचित कभी नही।
आज हम पुरुष प्रधान से एक वचन लेना चाहते है एक संकल्प। क्या देते हो हमे वचन , क्या आप नारी का प्रतिदिन सम्मान करेंगे , उसके साथ अपमानित जैसा घृणित व्यवहार नही करेंगे ।
नारी माँ बहन पत्नी बेटी मित्र हर रूप में पुरुष के लिए उपेक्षित होती है,
नारी को हर पल अपमानित किया जाता है, नारी को सम्मानित नजरों से कभी नही
देखा जाता ।
चाहे नारी हाउसवाइफ हो या वर्किंग वुमेन
शक की नजरो से पुरुष उसे ताड़ता है 
कहने को तो सभी कहते हैं की नारी का अपमान एक शक्ति का अपमान होता है,
लेकिन अपमानित हर रोज की जाती है।
चाहे कोई भी रूप हो ,माँ, बहन ,बेटी, मित्र हर रूप में अपमान के घुट सिर्फ नारी ही सहती है क्यो नारी सब सहती है।
क्या ? 
नारी की ये गलती है की वो पुरुष की जननी है ,सृष्टि रचयिता है, नारी प्रेम है, विश्वास है ,श्रद्धा है ,सहनशीलता है, क्षमा और दया की प्रतिमा है ।
आज मैं पुरुष प्रधान से नारी के सम्मान की गुहार लगाती हूँ ,कि एक दिन नही हर रोज नारी का सम्मान किया जाये
और उसे अपमानित जीवन से मुक्ति प्रदान करे। 
नारी पर वही शोषण अत्याचार बराबर होते जा रहे है आज तक उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लग पाया , क्योंकि पुरुष अपने अहम के कारण झुकने को तैयार नही अपने अहम में डूबा पुरुष स्त्री को कमजोर समझ बैठता है ।
आज हम आप सभी पुरुष प्रधान से वचन माँगते हैं कि
क्या? 
एक बेटा अपने माता पिता को वृद्ध आश्रम जाने के लिए मजबूर नही
करेगे।
क्या ? 
एक पिता अपनी बेटी के कोख मे होने पर उसकी हत्या नही करेगा।
क्या ?
एक पिता लड़की और लड़के मे कोई भेदभाव नही करेगा। दोनों को समान मानकर उनकी शिक्षा का दायित्व उठायेगा।
क्या? 
एक पुरुष अपनी मानसिकता में बदलाव ला सकता है, समाज मे बलात्कार जैसी घटनाये ना उत्पन्न हो।
क्या? 
पुरुष अपने बेटों की बोलियां लगानी बंद करेगा दहेज जैसी कुरीतियों से समाज को मुक्त करेगा।
नारी के अस्तित्व को बचाने के लिये
क्या आप सभी पुरुष प्रधान हम सब नारियों को वचन देते है ,संकल्प देते है कि नारी की रक्षा के लिए आप हमेशा तत्पर रहेंगे।
कही भी नारी के साथ हाे रहे अत्याचार को आप रोक सकेंगे।
क्या आप वचन देते है कि नारी की भावनाओं को आप समझेगे नारी के हृदय को कभी भी आघात नही पहुंचायेगे ।
नारी के गुण प्रेम ,स्नेह ,धैर्य, त्याग ,उदार,
दयावान ,भावनात्मक गुणों की खान है नारी।
नारी को ना समझो तुम बेचारी 
वो तो प्रेम के वशीभूत होकर जाती है मारी , नही तो ,नारी से बड़ी नही जगत में कोई शक्तिशाली महाकाली।
स्वरचित ,हेमा जोशी
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की 
शुभकामनायें।


*************************
नारी ऋण

कौन कहता है किअबला हैं नारियाँ।
हर समय रहीं सबला हैं नारियाँ।
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,
नारी और पुरुष,
इसीलिए अर्धांगिनी भी कहलातीं हैं नारियाँ।
दिल में करूणा ,प्रेम, प्यार
मुहब्बत और स्नेह का भंडार।
रखतीं हैं नारियाँ।
माँ , बहन, बेटी ,प्रेयसी और पत्नी,हर रूप में, 
पुरुषों का साथ निभातीं हैं नारियाँ।
नहीं हैं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से वो कभी पीछे।
बलिदान का जौहर भी दिखातीं हैं नारियाँ।
झूठ यदि मानो हमारी बात को,
तो इतिहास के पन्नों को,
उठाकर के देख लो।
जब हारा पुरूष तो तेग भी,
उठातीं हैं नारियाँ।
पर हे पुरूष प्रधान समाज,
नारी को क्या दिया तूने!
पित्र ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण,
सभी तो हैं बनाये।
पर क्यों नहीं नारी ऋण बनाया तूने?
विधाता की रचना को,
नौ माह गर्भ में धारण करके,
जिसने जन्म दिया तुझको,
क्या उसका भी कभी कोई,
ऋण चुकाया तूने?
******************************
स्वरचित,
शिवेन्द्र सिंह चौहान "सरल"
ग्वालियर मध्यप्रदेश


आज का शीर्षक - नारी /वीरांगना 
वार - शुक्रवार 
विधा - ग़ज़ल 
काफिया - आती 
रदीफ़ - है 
वज्न - 1222 - 1222 - 1222 - 1222 
-----------------------------------------------------

यहाँ नारी जमीं को स्वर्ग से, बेहतर बनाती है ।। 
मुहब्बत औ जतन से रोज, घर-आंगन सजाती है।। 

बढ़े जब दूरियां दिल की, यहाँ खुदगर्ज लोगों में, 
निहायत ही नफासत से, सभी रिश्ते निभाती है।। 

लगा कर दांव पर हस्ती, रखे बाहर कदम घर से, 
बुझाने पेट की ये आग, चूल्हा भी जलाती है।। 

खिलौना ही समझता है इसे, हर मर्द बिस्तर पर, 
भले हो जिस्म मुर्दा सा ,हवस फिर भी मिटाती है।। 

कहाँ मिलता कभी सम्मान, हक वाजिब जमाने में? 
नहीं लाती शिकन, हंस कर, मगर आँसू छिपाती है।। 

भले परवाह करता हो नहीं, कोई जरा इसकी, 
सभी तकलीफ सह कर खुद, मुसीबत को भगाती है।। 

मकां की चारदीवारी, इसे मंजूर है लेकिन, 
जरा सी आँच जो आये, अना खुद ही बचाती है।। 

#पूर्णतः_मौलिक एवं_स्वरचित 

विनीत मोहन औदिच्य 
सागर, मध्य प्रदेश ।
दिनांक - 08-03-2019

सृष्टि सृजन तुम्हारा
शुभाशीष मिलता हमें माता का
तुम्हें नित वंदन है हमारा।
माँ, बहन,पत्नी बेटी ।
नारी जननी 
सास बहू स्वयं में ही समेटी।
तू अबला सबला।
लक्ष्मी स्वरूपा
तू ही कहलाती है कमला।
नारी से ही नर बना।
ये जगत कहां
तुम बिन सुहावना।
नारी प्रीति रीति।
हर घर की होती है 
इससे सुयश और कीर्ति।
आशा प्रत्याशा हमारी संस्कृति
परंम्पराओं की नारी है मूर्ति।
बनिता विश्व तुझसे
नहीं है नारी सुरक्षित हमसे।
सबकी सुनती सहनशील महिला
दुखसुख सहती रहती
फिर भी नहीं गिला।
रूखा सूखा खाना 
जैसा भी मिल जाऐ 
अपना जीवन जीना।
सचमुच नारी त्याग तपस्या
फिर भी भ्रूण हत्या जैसी
बडती जा रही विकराल समस्या।

स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

5भा.#नारी/वीरांगना#
8/3/2019( गुरुवार)

क्षणिकाएं - नारी 

जीत उसी पर
जो जीतने को तत्पर, 
नारी ........ !
कब चाहे जीतना ?
कब चाहे आधिपत्य पुरुष पर ?
वो चाहे आत्म सम्मान, 
थोड़ा सा आसमान, 
और इसलिए 
उसे कोई हरा नहीं सकता ।

मन्नतों,
दुआओं,
पूजा विधान,
जप दान,
इन सबके बिना 
जन्म लेने वाली 
नारी...!
जगत नियन्ताओं की जननी,
अनंत वर्जनाओं, 
विषमताओं,
सीमाओं से आबद्ध ,
जब छूती है 
अनंत आसमान, 
अपनी बची हुई 
ऊर्जा समेटकर,
पाती है उन्मुक्त मुकाम,
यही संसार उसे
झुक कर करता है सलाम ।

-- नीता अग्रवाल 
#स्वरचित

विषय-नारी/वीरांगना
पाँचवी रचना
नारी है इसलिए अटल खड़ी है
------------------
आँंखों में उसके चंचलता
बातों में उसके मोहकता
चलती है जब बल खाकर
लगती जैसे हो मधुशाला

हो स्वर्ग से उतरी हूर कोई
इतनी सुन्दर जैसे हो परी
दिल ममता से भरा हुआ
आंखों में दर्द है कहीं छुपा

तन से कोमल मन से कोमल
चंचल चितवन जैसे कमल नयन
गाल गुलाबी फूलों जैसे
पर चुभती सबको शूलों जैसी

नारी बिना कोई मर्द नहीं
फिर भी दिखता उसका दर्द नहीं
चंचल मन वो सबको दिखाती
अपनी मजबूरी सबसे छुपाती

कुदरत का वो अनमोल नगीना
जिसने की सृष्टि की रचना
सदियों से मन में चाह लिए
उसको भी पूरा मान मिले

औरत है नहीं कोई खिलोना
क्यों उसका सुख-चैन है छीना
देदो उसको भी अधिकार सभी
होंठों पर खिल उठे चंचल हंसी

अपने आत्मसम्मान की खातिर
लड़ती रही और लड़ती रहेगी
चंचल,ज्वाला दोनों रूपों में
नारी है इसलिए अटल खड़ी है
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित रचना 

विषय - नारी

नारी 

नारी तुम युगो से 
तुम्हे पूजे वेद पुराण
मानव स्वार्थ की बलिवेदी पर 
हुई शोशित 
बना शोषण तेरा इतिहास 
बस ,बहुत हो चूका 
तुम पर पशुता का आत्याचार 
अब मौन त्याग 
खीच म्यान से तलवार 
देख जागरण का विगुल बजा 
तू महा समर का साज सजा 
न कुरीतियो की बलि चढ़े 
न दामन छूने गंदे हाथ बढे
देख अतित के पन्नों पर
चिन्हित तेरी गाथा का गान 
कमर कस 
अब कम न हो तेरी आन प्रलयंकारिणी !
असुर संहारिणी !
रण चंडी का रूप तू धर 
'अबला' नही
'सबला' हो तुम 
आज यह सब जाने नर !

स्व रचित डॉ उषा किरण


विधा :-सार छंद

अनुपम रचना मैं स्रष्टा की , पहचान करो मेरी ।
प्रकृति रूप स्वरूप है मेरा , स्तुति गान करो मेरी ।।

नारी जननी सब जीवों की , सजल मूर्ति करुणा की ।
पूजा हो नारी की वैसे , जैसे हो अरुणा की ।।

नर की हूँ आह्लादिनी शक्ति , होता मुझसे पूरा ।
धरती कोख न देती अपनी , रहता बीज अधूरा ।।

नदियों जैसी करुणा भर कर , सागर तक बहती हूँ ।
अबला शब्द व्यथित करता है , कभी न कुछ कहती हूँ ।।

ऋतु संहार प्रकृति जो करती , वह भी है इक नारी ।
मुष्टिमध्यमा की रचना पर , स्वयम् ईश बलिहारी ।।

सामंजस्य के दो पहियों से , चलती दुनिया सारी । 
रिश्तों को भूकम्प हिलाते , अलग दिखें नर नारी ।।

नारी अगर निरर्थक होती , ईश्वर नहीं बनाता ।
जड़ चेतन के कण कण में , उसको नहीं सजाता ।।

सजल हृदय से आग्रह करती , हक़ मत छीनो मेरा ।
प्रकृति रूप जननी नारी है अस्ति चिह्न हो मेरा ।।

*अरुणा =लाल रंग की गाय 

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


द्वितीय प्रस्तुति

अलसाई कली सी...
गुमसूम सी मुस्काती कहीं...
मृगनयनी चंचल सी..
निज सौंदर्य पर इठलाती कहीं...
मधुरिम संगीत सी...
लहर लहर लहराती कहीं...
चंचल सरिता सी....
कलकल नाद करती कहीं...
छन छन करती पायल सी...
करती हृदय स्पंदित कहीं..
उमड़ती जलधि तरंग सी..
लेकर उमंग मन में कई..
प्रकृति की हरितिमा सी...
नयनों में लहलहाती कहीं..
सुरभित करती गुलशन को...
बन बुलबुल चहचहाती कहीं..
अनुपम कृति है ईश्वर की..
रूप नारी काया नश्वर की..
संसार पलता है इसके आँचल...
महकता इन्हीं से हर घर आँगन...
जहाँ बसती है नारी...
हरती वहाँ विपदा सारी..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


 पुष्प सी कोमल काया
सबको देती हैं अपनी छाया 
शक्ति का नाम हैं नारी 

ममता क्षमा प्रेम का नाम हैं नारी .

प्रेम समर्पण अर्पण हैं नारी 
उदारता त्याग की परिभाषा हैं नारी 
जीवन में खुशियों की अमृत बरसाती नारी
जिसके कदमों में हैं दुनियाँ सारी.

शक्ति का अनुपम रूप हैं नारी 
बंजर धरा पर महकते फूलों की क्यारी हैं नारी 
अजेय हैं नारी जिस पर चलती हैं दुनियाँ सारी
संसार का मजबूत स्तम्भ हैं नारी .
स्वरचित:- रीता बिष्ट


द्वितीय प्रस्तुति

8 मार्च महिला - दिवस पर सार्थक संदेश,,,महिलाओं के अधिकारों के प्रति,,,,,,,,,,

, स्वयंसिद्धा "
, **********
आज नारी- उत्थान के परिवेश में,
स्त्री को अपनी गरिमामयी
विशिष्ट पहचान चाहिए
बदल गया है जमाना
बदल गया सम्मान का पयमाना
अब परदे के पीछे रहने की आन ,बान शान ,
उसको भाती नहीं ।
सिर्फ घर की गृह देवी बनना,
उसको सुहाता नहीं ।
बाहर की विकसित दुनिया में,
उसे लक्ष्य का अनुपम द्वार चाहिए
जो अपनी अन्तर्व्यथा में,
चुप चुप सहती थी रोती थी,
उसे अब अपने हृदय पट खोलकर,
खुलकर जीने की,
अनंत में उड़ने की,
खुली बयार चाहिए,सपने साकार चाहिए
माँ ,बहन ,पत्नी का गौरव पद पाकर,
जो करती रहीं सदा न्योछावर ,
आज इसी तिरस्कृत,पीड़ित नारी को,
स्वयंसिद्धा बनने का सम्पूर्ण अधिकार चाहिए //


आधार छंद - आल्हा छंद
आदरणीय मंच को निवेदित

अपने बूते पर ही करती, अपने सब सपने साकार।
अबला नही रही नारी अब,उठा लिए उसने औजार।।

बुरी नजर मत डालो उस पर,
करो जरा तुम थोड़ी लाज।
मत समझो कमजोर जरा तुम,
भूले से नारी को आज।

खुद की रक्षा करने को अब,नारी खुद ही है तैयार।
अबला नहीं रही नारी अब, उठा लिए उसने औजार।।

हर मुश्किल से लड़ना सीखा,
बदला जीने का अंदाज।
छोड़ सभी अब शर्म हया को,
करती नारी सारे काज।

नारी बल के आगे झुकता, है अब तो सारा संसार।
अबला नहीं रही नारी अब, उठा लिए उसने औजार।।

हर गम को सहती हैं हँसकर,
लाती है खुशियों का काल।
करे सामना डटकर सबका,
चाहें जितना मुश्किल हाल।

दुनिया चाहें नफरत बाँटे, वह करती हैं सबसे प्यार।
अबला नही रही नारी अब,उठा लिए उसने औजार।।

सज-धज कर रहती है हरपल,
मत समझो उनको कमजोर।
अच्छे-अच्छे बलवानों का,
चले न उनके आगे जोर।

नारी बिन सब शून्य यहाँ पर, नारी जीवन का आधार।
अबला नही रही नारी अब, उठा लिए उसने औजार।।

घर का भी संचालन करती,
कर्म करो हैं दिन अरु रात।
करें देश की रक्षा लड़कर,
सीमा पर होकर तैनात।

देश चला कर भी दिखलाई,उसके दम चलता परिवार।
अबला नही रही नारी अब,उठा लिए उसने औजार।।

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)


विषय-नारी/वीरांगना
ईश्वर ने जब ब्रह्मांड रचाया
नारी की अनुपम छवि को बनाया
सृष्टि की आदिशक्ति कहलाई
नर की वह नारायणी बन पाई
दुर्गा , काली शक्तिरूपा नारी
विविधा रूपा कहलाई नारी
जग जननी का ताज है नारी
मानव पोषिता कहलाई नारी
इसके अस्तित्व का विषय
आज के संदर्भ में नही नया
नारी अस्मिता और शक्ति को
इतिहास ख़ुद करता आया बयाँ
नारी सम्मान पूजा जाता जहाँ
निवास देवताओं का होता वहाँ
वेद . शास्त्र और पौराणिक काल की आयी जब बारी
देवी अनुसूया के रूप में साकार हुई है नारी
कान्हा की मुरली की तान बनी हाई नारी
शुचिता की अग्नि परीक्षा ,राम की सीता है नारी
मृत्युदेवता से प्राण हरकर लानेवाली
सत्यवान की पतिव्रता सावित्री यह नारी
प्रभु चरणों में ध्यान लगा दासी कहलाई
विष प्याला पी गई एक मीराबाई नारी
आज़ादी की जंग जब शुरू हुई
नारी भी नर के संग में खड़ी हुई
मर्दों के सम्मुख जो बन गई मर्दानी
वीरांगना कहलाई झाँसी की रानी
आज़ादी का इतिहास जब पढा जाएगा
रमाबाई,बेसेंट,नायडू का नाम याद आएगा
सल्तनत की बागडोर थामने वाली
रज़िया सुल्ताना नाम की नारी
मन में त्याग-सेवा का भाव जगाकर
दीन-हीन का ख़ूब किया सत्कार
मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार मिला
नारी गरिमा का जग मे सम्मान हुआ
देश की पहली प्रधानमंत्री बनने वाली
सशक्त नारी इंदिरा गांधी कहलाई
लेखन प्रतिभा से निज संसार बसाया
साहित्य साधिका महादेवी वर्मा नारी
अपनी गायिकी और कंठ माधुर्य से
जिसने स्वर कोकिला की उपाधि पाई
विश्व विख्यात लता मंगेशकर नारी
बनकर धाविका राष्ट्र मान बढ़ाने वाली
पी०टी० उषा नारी उड़न परी कहलाई
मुक्केबाज़ी का जटिल पंच लगाया
मैरी कोम ने तिरंगे का मान बढ़ाया
अंतरिक्ष में उड़ान भरक शोध का इतिहास रचा
कल्पना चावला,सुनीता विलियम्स नाम अग्रणी रहा
नारी रूप चंद शब्दों में ना आएगा
स्वर्णिम अतुलनीय इसकी गौरव गाथा
जीवन के विविध रूपों रिश्तों में
जीवन का शृंगार है नारी
अब तो तुम कैसे कह पाओगे
हाय !अबला बेचारी यह नारी
माँ की ममता,पिता का अभिमान
जीता जागता एक प्रमाण है नारी
भाई की कलाई पर बँधी राखी
बहन भाई का पवित्र पर्व है नारी
जीवन साथी की संगिनी बनकर
अटूट रिश्ते का विश्वास है नारी
हर पड़ाव पर खड़ी मुस्कुराने वाली
कर्तव्य और त्याग का पर्याय है नारी
जीवन के हर दुख को सह लेती
सहनशीलता की मूर्त है नारी
नारी तुम केवल शब्द नही हो
मानवता का करती हो जयगान
कर लो ख़ुद पर ख़ूब अभिमान
ख़ुद से बनाती आयी पहचान
आज इस महिला दिवस पर
उसके शक्ति रूपों का बोध कराएँ
पग पग पर इसका सम्मान क़ायम रहें
इसको आज हम निज ध्येय बनाएँ
आज मैं उस दंभी पुरुष को कहना चाहती
जगा लो तुम भी अब स्वाभिमान
उन्मुक्त उर से करो गुणगान
दिव्या रूपा का करो सम्मान ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित


विषय-नारी/वीरांगना

वीरांगनाओं से है सुशोभित देश हमारा,
इनकी वीरता के समक्ष
शत्रु भी हारा।
बन काली-दुर्गा जब ये रौद्र रूप दिखाए,
हो पाप का नाश ,तांडव
मच जाए।
इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों से शोभित,
गाथाएं अनुपम उत्तम नारी चरित।
सीता बिन राम का क्या है अस्तित्व,
शक्ति के बिना शिव भी कहां
हैं पूरित।
नारी- पुरुषमय ये संसार है सारा,
नारी ने ममत्व से सृष्टि को
संवारा।
कर जौहर अपना सतीत्व बचाए,
शत्रु के लिए चंडिका बन जाए।
अंतरिक्ष तक परचम फहराए,
सीमा पर शत्रु को धूल चटाए।
है कौन सा काम जो उसके लिए है भारी,
सृष्टि-सृजन की भूमिका
निभाए नारी।
अर्द्धांगिनी बन पुरूष को
संपूर्ण करे,
धर्म-कर्म में सहभागिनी बने।
जननी बन कर अपना हर
कर्त्तव्य निभाए,
अपने जीवन को परिजनों
के लिए लुटाए।
मत समझो अबला और कमजोर उसे,
मत समझो भोग्या या दासी उसे।
जो संसार की बनकर बैठी है
धुरी,
उसके हितों पर न चलाना तुम
छुरी।
चुप्पी का यूं तुम लाभ न
उठाना
उसके बिना नहीं तुम्हारा
कोई ठिकाना।
असंभव को संभव जो कर जाए,
नारी बन वीरांगना अपना मान बढ़ाए।

सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

अभिलाषा चौहान
स्वरचित, मौलिक


नारी

वो सोचती थी
कि, परिचय उसका
बस इतना ही है
वो उनकी बेटी है
इनकी पत्नी है
और उसकी माँ है

वो सोचती थी
कि, झाड़ू से बुहार देगी
अपनी अभिलाषायें ,
कपड़ों के साथ धो डालेगी,
सफेदपोशों के काले मन
आलू प्याज़ की तरह ,
छाँट लेगी ,अपना सुख !

वो सोचती थी
बटन की तरह टांक लेगी ,
अनंत मौन प्रतीक्षा
बर्तनों की खटपट में
ढूँढ़ लेगी ,मधुर संगीत
और गुनगुनाते हुए ,
बिता देगी यह जीवन !

एक रोज़,चाय की तरह
खौल गई ,सहनशक्ति !
उसने भी ली ,
एक फुर्सत की चुस्की
अधखुली खिड़की से
थोड़ी सी रौशनी,उसके लिए बच गई
कल्पना उसकी , कुछ नया रच गई

उलझनों के पिंजरे से
आज़ाद हुई इस #नारी का
इतना साथ आप देना
वो गाए ,तो आलाप लेना
वो नाचे ,तो ताली की थाप देना
वो लिखे ,तो बेझिझक छाप देना

स्वरचित ,मौलिक
संध्या बक्शी
जयपुर।


हे नारी तुझे नत नमन

हे नारी तुझे नत नमन
तुमसे ही अर्जित है यह जीवन
किलक पुलक भरे मंगल मोद में
बचपन के पल बीते तेरी गोद में
जननि-आँचल की सुखद छाया
सुरक्षित शैशव है खूब लहराया
उँगलियों को तेरी जो लिए थाम
डगमग-पग संबल बने निष्काम
जनकजननि जयति जय जगदीश
अगणित अतिवृष्टि नित आशीष
भगिनी भाव भरी बहुल बलिहारी
रक्षा-सूत-अद्भुत एकल अधिकारी
लेप ललाट ललित अक्षत चंदन
विघ्न-हरण हेतु नित प्रभु-वंदन
पौरुष-प्रखर की प्रवर अभिव्यक्ति
हे संगिनी तू संबल औ’ शक्ति
गृहस्थी अंग अभिन्न अनिवार्य
धुरी अचल सबल केंद्रविंदु धार्य
है ऋद्धि-सिद्धि सकल समृद्धि
सृजन सारांश औ’ वंशवेल-वृद्धि
तनया तव तुनक-तरंग अनुतान
जीवन-बोध भरे विभव मुस्कान
फुदक फुदक गौरैया सम चहके
सुता सुरभि-सी आँगन में महके
साधित संधित नवल कुल-गोत
अनुगुंजित सकल धवल स्त्रोत
सृष्टि-चक्र का अनवरत घूर्णन
हे नारी तुझे नत नमन
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

नमन -- भावों के मोती 
दिनांक ---- 08/03/2019
विषय ----- नारी 


==== मैं नारी हू ====

मैं करूणा की मूर्ति हू , प्रेम की प्रतिमा हूँ। 
परिवार और समाज की , मैं ही गरिमा हूँ। 
मुझसे ही बनती है , ये दुनिया सारी। 
मुझसे होती है रात , मैं हूँ सुबह प्यारी। 
माँ की ममता मुझमे है ,मैं बिटिया भी तुम्हारी। 
मैं ही दुर्गा ,मैं ही काली , मैं लक्ष्मी रूप धारी। 
अँधेरी रातों में भी '''दीपमाला''' सी जगमगाती। 
हर घर के आँगन में , खुशियां ही बिखराती। 
अब न हमको अबला समझो , न समझो बेचारी। 
इक्कीसवी सदी की नारी है हम ,ना किसी से हारी। 
गर्व से कहते हैं हा '' हम हैं नारी , हा हम हैं नारी। '' 
----------------------------------------------दीपमाला पाण्डेय 
(रायपुर छ.ग)
08/03/2019

नारी तुम केवल श्रध्दा हो , ऐसा कवियों ने गाया नारी तुमको ,

ऑचल में दूध ऑख में पानी , कभी कहा गया नारी जीवन को |

कहीं कहीं पर तो पाप का द्वार भी , कह डाला नारी को ,

किसी ने लड़ाई झगड़े की जड़ भी , बेहिचक कह दिया नारी को |

नारी तुम तो बस केवल नारी हो , पड़ती हर एक पर भारी हो ,

नारी तुम ही जन्म दात्री हो , तुम वंश बेल बढाया करती हो |

तुम ही सुख दुख की साथी हो , सहचरी तुम्ही कहलाती हो ,

दो कुल की लाज बनी तुम हो , तुम अन्नपूर्णा भी कहलाती हो |

बनकर के माता इस जग में तुम , ममता छलकाया करती हो ,

जग में करूणा की मूरत बनकर तुम , सर्वस्य लुटाया करती हो |

जब बहिन रूप में होती हो तुम , स्नेह सुधा को बरसाती हो ,

पत्नी जब बन जाती हो तुम , जीवन को सुगम बनाती हो |

बनकर के बेटी जब आ जाती तुम , तब त्याग सिखा कर जाती हो ,

जीवन पथ पर बिखरे काँटों को , तुम फूल बनाती रहती हो |

बन जाती कभी सरस्वती हो , तुम ज्ञान की ज्योति जलाती हो ,

कभी शक्ति रूप दिखलाती हो , हल हर मुश्किल को कर लेती हो |

सामाना दुष्ट से हो जाये तो , तुम रणचंडी भी बन जाती हो ,

काया बनी चाहे कोमल हो , तुम कमजोर नहीं हो सकती हो |

जब हाथों में हथियार उठा लो , तुम रानी लक्ष्मीबाई कहलाती हो ,

कभी दुर्गावती बन जाती हो , कहीं पर पन्ना धाय कहलाती हो |

जब भी दुश्मन से सामना हो , नारी तुम कुछ भी कर सकती हो ,

चाहे राजनीत का दलदल हो , नारी तुम उसमें भी मुस्काई हो |

देश विदेश में है नाम तुम्हारा , तुम चाँद भी देखकर आई हो ,

इस दुनियाँ के रंगमंच पर , अब तुम रही नही कठपुतली हो |

बना पात्र बड़ा मजबूत तुम्हारा , बडे़ गौरव से इसे निभाई हो ,

रहो सदा विजयी हो सम्मान तुम्हारा , यह आशीष साथ में लाई हो

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,


ताकत नहीं कलम में इतनी
जो नारी का गुणगान करे।
जिसने है हमको जन्म दिया
बस हम उसका सम्मान करें ।

वह सृष्टि सृजित करने वाली
वह वृहद हृदय रखने वाली
क्यों ना उसका सम्मान करें
सब दुखों को है वह हरने वाली।

दुख सह कर भी सुख देती है
वह कभी नहीं घबराती है।
जब आती विपदा अपनो पर,
वह काल से भी भिड़ जाती है।

वह ही दुर्गा वह ही लक्ष्मी ,
वह ही तो प्यार लुटाती है।
उसका वैभव गुण गान करे
ऐसी न बनी है कलम अभी।

आओ उसका सत्कार करें
उसकी मर्यादा का ध्यान रखें
हाथ जोड़ अभिनन्दन गाएं
कुछ ऐसे नारी का सम्मान करें।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर


#विधा - मनहरण घनाक्षरी
==========

नारी एक किसान की, खेत में जो चलती है,
हाथ में भी नारी एक , जीवन चलाये जो l

नारी शाक खाते सब , बनती रसोई जब ,
ना री मना करना है , आपस बतायें जो l

नारी एक सावित्री थी , यम से छु़ड़ाया पति,
तुलसी कालीदास भी , नारी ही बनाये जो I

जहाँ देखो वहाँ नारी , महाभारत नारी है ,
"माधव" आल्हा नारी से,सारा जग गाये जो I

#स्वरचित
#सन्तोष_कुमार_प्रजापति_माधव
#कबरई_महोबा_उ_प्र_



द्वितीय प्रस्तुति।
🌿🌿🌿🌿🌿
नारी तुम सृष्टि की रचना करती हो।
फिर किसीसे क्यूँ डरती हो।
तुम्हीं होदुर्गा,तुम्हींहोकाली।
तुम हो बहुत शक्तिशाली।

झाँसी की रानी हो तुम।
राक्षसों के संहारक हो तुम।
तुम्हीं करती घर की रखबाली।
बच्चों के पालक हो तुम।

जब,जब भीड़ बढ़ी दुष्टों की।
तुमने आगे बढ़के प्रतिशोध लिया।
नाश करके दुश्मनों का।
पताका विश्व में फहरा दिया।

जगदम्बा हो या हो काली।
सब तेरे हीं रूप हैं।
फिर क्यूँ डरती हो किसीसे।
सब तेरे हीं प्रतिरूप हैं।।

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी


विधा----क्षणिका
रचना क्रमांक-1)

1)
बच्चों का पेट पालने के लिए,
होना पड़ा उसे देह व्यापार में लिप्त,
क्योंकि......
पुरुष प्रधान समाज में,
उसे मिल रही थी नारी होने की सजा।

2)
नौकरीपेशा स्त्री संभाल रही,
घर-बहार की जिम्मेदारी,
खो रही स्वास्थ्य, सुख-चैन,
क्योंकि........
पुरूष का अहम उसे घर में,
नारी की मदद करने की इजाजत नहीं देता....

©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर(महाराष्ट्र)


''नारी"

करना है जो प्रभु से यारी 
पहले पूजना होगा नारी ।।

प्रभु न मंदिर मस्जिद में
यही भूल इंसान की भारी ।।

जहाँ मान नारी का होता
वहाँ होती समृद्धि सारी ।।

नारी को रचकर प्रभु ने
ये सुन्दर श्रृष्टि विस्तारी ।।

उसकी अनुपम रचना पर
गलत दृष्टि मानव ने डारी ।।

सारी लोक लज्जा को तज
मानव हुआ अब व्यभिचारी ।।

कैसे हो कल्याण''शिवम "
नारी की बढ़ गई लाचारी ।।

भले कहें हम आज तरक्की
मानव मूल्य में लगी बीमारी ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


1.
सुंदर मूर्ति
गढ़ी भगवान ने
नारी रूप में
2.
सुंदर नारी
फूलों से लदी डाली
लगती प्यारी
3.
प्यार नारी का
उपेक्षाओं से नहीं
दिल से होता
4.
घर में नारी
बच्चों की किलकारी
होती है प्यारी
5.
चार दीवारी
कैद हुई वो नारी
बन बेचारी
6.
घर में नारी
खिलती फुलवारी
शोभा निराली
7.
नारी सम्मान
करे न अपमान
देश महान
8.
प्रथम नारी
सृष्टि की फुलवारी
सोच हमारी
9.
धरा पे नारी
कुदरती रचना
सबसे प्यारी
10.
घर में नारी
बहुत जरूरी है
खेल में पारी
11.
घर की शोभा
सहनशील नारी
फूलों की क्यारी
12.
हैं वीरांगना
ये भारतीय नारी
युद्ध भूमि में
13.
वो वीरांगना
लड़ी थी लक्ष्मीबाई
रण क्षेत्र में
14.
आठ मार्च को
है महिला दिवस
नारी सम्मान
********
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा


"नारी"(2)
क्षणिका
1
पृथ्वी स्वरुपा मैं नारी
जगत जननी
परिधी के दायरे में घूमती
धुरी में अपनी नाचती
ज्या आधार ..
यही मेरा संसार।
2
नारी ना चीज है,
बाजार में बिकने वाली
कंधे से कंधा मिलाके
संग तेरे है चलने वाली
बनके...
माँ ,बेटी और सहेली
दु:खों को तेरे समझने वाली

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


**नारी**
नारी एक शब्द नहीं,एक अविरल धारा है।

जग को जिसने सींचा,पाला- पोसा तुम वो आराध्या हो।
तुमको शब्दों में बांध सके,ऐसा कोई विदुषी हो नही सकता।
तेरा आंकलन चंद शब्दों से हो नहीं सकता।
इस सूने वीरान जगत की तुम प्राण-दायिनी।
तुमसे ही ये जग महका है तुम हो माँ दुर्गा जगत-वाहिनी।
तुमने ही ये सृष्टि रची,तुमसे महका जग-उपवन।
जो ना होती तुम इस धरा पर,होता निर्जन-जीवन।
प्राणदायिनी हो जग की तुम,तुमसे ही हम सबका जीवन।
प्रेम,ममता,वात्सल्य,दुलार तुमसे ही जन्में हैं।
तुम बिन जग के सारे सपने अजन्में हैं।
तुम क्या हो पूछो किसी विधुर से।
तुम क्या हो पूछो बिन माँ के रोते लाल से।
तुमको परिभाषित करने का साहस नहीं हैं मुझमें।
तुम जीवन का एहसास हो,उमंग हो, तरंग हो।
तुमसे ही जग जिंदा है,वर्ना सब श्मशान है।
श्रद्धा की हे देवी! तुम्हें शत-शत प्रणाम है।।
(स्वरचित) ***"दीप"***


विषय -नारी/ वीरांगना(3)
--नारी अस्तितव पर कुछ बिहंगम दृष्टि,,,,,,
हाइकु विधा मे, ,,,,5 +7+5 वर्ण आधा शब्द गिनती नहीं ,,,
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
****************************
---नारी श्रद्धा है
---मानव जीवन की
---विश्वासमयी /
🌹
---नारी गंगा है
---बहती प्रेम- धारा
---ज़ीवन- तट //
🌹
---नारी जननी
---मानव जीवन की
---सृष्टि रचिता //
🌹
---नारी निर्मला
---प्रेम की निर्झरणी
---झरे ममता //
🌹
--- सीप- नारियाँ
--- मुक्ता गर्भधारणी
---जगत्जननी //
🌹
---खिलेंगे फूल
---स्त्री मन के भीतर
---सम्मान हो तो //
🌹
---घर अँगना
----चमकें ज्यों चपला
----प्यारी बहना //
🌹
--- कुलतारनी
----दो कुल संवारे
----बनती सेतु //
🌹
----कन्या से नारी
----त्यागमय बेचारी
----नर ना जाने //
🌹
---माँ का स्वरूप
---सारभौमिक रूप
--- ईश वंदिता //
🌹
---दीप-बेटियाँ
---जीवन की रौशनी
---- होती कल्याणी //
🌹
***************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
रचनाकार- ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार



पुरुष तुम स्त्री की थाह न पा पाओगे,
धीर गंभीर मर्यादित तुम,
पर धरा सी सहनशीलता कहाँ से लाओगे?
कद्दावर मजबूत बाजुओं के हकदार तुम!
पर शिशु को जो जन्म दे सके ...
पचासों हड्डियों के टूटने के दर्द सम,
ताकत कहां से लाओगे ?
पुरुष तुम स्त्री की थाह न पा पाओगे।
छोड़ दे सांसे जो जीवनसंगिनी, जीवन पथ पर,
दे दुहाई व्यवहारिकता की दूजी संगनी लाओगे।
पाओगे जाने कितनी विधवा समाज में ,
जी रही अकेले परवरिश बच्चों के वास्ते।
किंचित मुट्ठी भर विधुर ही अकेले पाओगे।
प्रेम की पराकाष्ठा बोलो कैसे लाओगे?
पुरुष तुम स्त्री की थाह न पा पाओगे।
जननी ही प्रथम गुरु, छोड़े मोह काया, नींद ,नौकरी का। बोलो दूध का कर्ज क्या कभी चुका पाओगे ?
विषमतम हालातों में कई थामते हैं हाथ गुनाहों का, कदाचित ऐसी स्त्रियां पाओगे..
तन मन धन सब अर्पण कर दे..
दुर्गा ,काली, अन्नपूर्णा ऐसा मेल विरले ही पाओगे।
पुरुष तुम स्त्री की थाह न पा पाओगे।

नीलम तोलानी
स्वरचित
इंदौर


🙏नारी की परिभाषा

क्या बांधेगी नारी तुझको कोई एक परिभाषा ।
सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥

स्नेहमयी ममता की मूरत, प्रेम की छाया ठंडी ।
पतन पाप पाखंड जले जब,बन जाती रंणचण्डी।
अबला नहीं है नारी, तू तो हर निर्बल की आशा ॥1॥
क्या बांधेगी नारी तुझको कोई एक परिभाषा ।
सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥

सतयुग में तारा त्रेता में सीता पर भी बीता ।
द्वापर में द्रौपदी तो कलयुग भी है कहाँ ये रीता ।
आसिफा,दामिनी,निर्भया,कितनी रोज़ी, नताशा ॥2॥
क्या बांधेगी नारी तुझको कोई एक परिभाषा ।
सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥

अन्नपूर्णा, गृहलक्ष्मी बन सारे फ़र्ज़ निभाती है ।
पूजनीय है पर घर में भी सम्मान कहाँ पाती है ।
मंदिर की देवी बनना नहीं नारी की अभिलाषा ॥3॥
क्या बांधेगी नारी तुझको कोई एक परिभाषा ।
सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥

स्वरचित एवं मौलिक रचना
काॅपीराइट सुरक्षित है 
©®🙏
-सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
विषय-नारी
विधा-हाइकू
रचना-3

1)
देवी स्वरूपा
सारा जग पूजता,
कष्ट मिटाए।

2)जादूगरनी,
नारी मनमोहनी,
चित्त चोरनी।

3)गुणों की खान,
सहस्त्र भुजा नारी,
पीड़ा हरती।

4)निःस्वार्थ प्रेम,
ममता की मूरत,
नारी ही सृष्टि।

5)प्रेम की भाषा,
नारी की परिभाषा,
मनवा प्यासा।
@सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर(महाराष्ट्र)



हाइकु(4)
1
नारी अस्तित्व
एहसास मातृत्व
दर्द की खुशी
2
जौहर प्रथा
मेवाड़ वीरांगना
सतीत्व रक्षा
3
शक्ति की देवी
असुर संहारिणी
नारी स्वरुपा
4
नारी चरित्र
माँ,बेटी व सहेली
कभी ना भूली
5
नव जीवन
अंकुर प्रस्फुटन
नारी स्वरुप

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


हाइकु 
"नारी"
(1)
प्रेम बसता
नारी सम्मान जहां
सुख टिकता
(2)
रस्सी पे चाल
पीहर -ससुराल
नारी कमाल
(3)
अभिन्न मित्र
मुस्कान और श्रम
नारी के इत्र
(4)
शर्म है धन
नारी हृदय बसा 
कोमल मन
(5)
मेहंदी नारी 
जिम्मेदारी के पाट 
पिस के रची
(6)
रूप हज़ार 
भक्ति,शक्ति या प्रेम 
नारी अपार 
(7)
नारी ने लिखा 
वीरता इतिहास 
जग गवाह 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


विधा - गीत
----------------------------------------

वंदनीय हर रूप नारी का, 
नारी है जग का आधार |
दिया विधाता ने दुनिया को, 
नारी है अनुपम उपहार || 

सृष्टि का श्रृंगार नारी से |
प्रकृति का विस्तार नारी से |
नारी बिन सब कुछ सूना है-
चलता यह संसार नारी से |
दुनिया के इस रंग मंच पर,
बहुत बड़ा इसका किरदार |
वंदनीय हर रूप नारी का,
नारी है जग का आधार ||

माँ बन कर ममता ये लुटाती |
पत्नी बन परिवार सजाती |
बहिन और बेटी के रूप में -
मान और सम्मान दिलाती |
सब रूपों में त्याग,समर्पण,
और देती सच्चा मनुहार |
वंदनीय हर रूप नारी का, 
नारी है जग का आधार ||

नारी का सम्मान जहाँ है |
सच मानो उत्थान वहाँ है |
जहाँ मान इसको न मिलता-
पतन और अवसान वहाँ है |
बात बहुत सीधी सच्ची ये,
करें सभी इसको स्वीकार |
वंदनीय हर रूप नारी का. 
नारी है जग का आधार ||

इसका हम सम्मान सहेजें |
आए गौरव गान सहेजें |
आन बान ये शान हमारी -
नारी का अभिमान सहेजें |
दूर करें हर व्यथा वेदना, 
मानें नित इसका आभार |
वंदनीय हर रूप नारी का, 
नारी है जग का आधार ||

वंदनीय हर रूप नारी का,
नारी है जग का आधार |
दिया विधाता ने दुनिया को
नारी है अनुपम उपहार ||

*************************
प्रमोद गोल्हानी सरस 
कहानी सिवनी म.प्र.
#स्वरचित

विधा --मुक्त
*************************
सृष्टि के आरंभ से गवाह
कण कण है
रचनाकार की रचना मैं
नारी ही रही

बिना नारी के नर अधूरा
कर ना सकता नव संतति
निर्माण
सृष्टि सरंचना में सृष्टा को
थी मेरी ही कामना

शिव भी शव हैं शिवी बिन
नर निष्काम नारायणी बिन 
ब्रह्मा भी अपूर्ण ब्रह्माणी बिन
देवों का अस्तित्व भी नगण्य
रहा सदैव देवियों बिन

आकाश भी है निराधार
धरती बिन
सागर की रसता में सरिता का समर्पण
सूरज की गरिमा किरण हैं
चाँद की महता चाँदनी बनी

फिर भी नर की नज़रों में
नारी की कीमत कुछ नहीं
पग की धूली मान सदा
दुत्कारी गई

कभी भरी सभा में केश
पकड़ खींची गई
कभी सरे बाजार आबरु लूटी गई

मौन तब भी वृद्ध संस्कार थे
मूक आज की संतती है 
चंद मशाल जलाकर, कुछ
सवाल उछलते हैं

पर वो भी तो बस सवाल 
खड़ा करते हैं
समाधान में गर नर प्रण कर
घर में ही देने लगे मान नारी को
तो स्वर्ग धरा पर उतर आयेगा
नारी को वास्तविक सम्मान
मिल जायेगा ।

डा.नीलम.अजमेर

फिर आया नारी दिवस !
हर वर्ष की तरह,
फिर आया नारी दिवस!
नारी हो नारी से माँगू,
आज कुछ अनमोल वचन।
तुम प्रखर मुखरा,
वाणी सारे परिवार की ।
बोलो आज से बोलोगी ,
खुद के भी वास्ते ।।
अन्नपूर्णा तुम ,
अमृत की रसोई ,
बनाओ सब के वास्ते ,
खाओगी खुद भी ,
साथ सभी के,
ना निर्भर बचे कुचे 
अन्न के वास्ते ।।
तुम शक्ति स्वरूपा ,
कर्म शीलता की पर्याय तुम ,
करोगी ना अनदेखा खुदी को ,
रोज ही जियोगी...
तुम खुदाया खुद के भी वास्ते ।।
नारी हो नारी से माँगू,
आज कुछ अनमोल वचन,
नारी के ही वास्ते।।
नीलम तोलानी
स्वरचित


नारी जीवनदायिनी ,ममतामयी 
अति विविधता में जीती ,हर्षित होती 
तन मन लुटाती,कभी कुछ भी न पाती 
कभी शक्ति का भंडार बन दुर्गा कहलाती 
कभी निःसहाय अबला बन जाती 
कभी प्रतिशोध की ज्वाला में जल
छलना बन बदला लेती 
मन में दबाए अरमानों का बवंडर 
कभी मंथरा बन उलाहना बन जाती 
कभी सब कुछ तज प्रतीक्षारत रह जीवन गुजारती,शबरी बन जाती ,
कभी छलती नहीं छली जाती 
कभी जीवन की ऊँची नीची राहों में 
अडिग हो अपना परचम लहराती
नारी विविध रूप धर जीवन के सब रसों को साकार करती ,जीवन के विविध आयामों को जीती 
सच में तुम सृष्टि की अदभुद कृति कहलाती ।
स्वरचित 
मोहिनी पांडेय


नमन है तुम्हें नारी , तुम जग का आधार 
तेरी ही चरण पड़ने से, घर बनता मकान 

प्रेम की सागर , करुणा की देवी 
नारी में छुपा , समस्त ब्रम्हाण्ड 

हर क्षेत्र में तुमने,शाख़ अपनी जमाई है 
कोई भी काम ऐसा ना ,जहाँ तू डगमगाई है 

शून्य को आकार दिया , पराये सपने को साकार किया 
बहुमुखी क्षेत्रों में , काम तुमने महान किया 

कभी बेटी , कभी बहन , कभी पत्नी तो कभी माँ कहेलती 
हर रिश्तों को जीते जीते , नारी स्वयं को ही झुटलाती

उन्नति होती है वहाँ तो, जहाँ नारी पूजी जाती है
सच मानो तो समाज को, यही सही राह दिखती है

तुम्हें परिभाषित करने की , कोई भी परिभाषा कहाँ 
नारी वो शक्ति है पृथ्वी में , जिसके बिना संसार कहाँ

डॉक्टर प्रियंका अजित कुमार 
स्वरचित


शीर्षक नारी.. क्या लिखूं 

नारी क्या तेरा सम्मान लिखूं, 
लिखूं जमीं.. या आसमान लिखूं, 
गोदी में खेले जिसके देवता, 
उसको क्या पुराण लिखूं ll
नारी क्या.... 

ये जग पूरा सम्पूर्ण लिखूं, 
नारी तू है अवतार लिखूं, 
प्रभु भी है कर्जदार तुम्हारे, 
क्या स्वर्ग क्या पाताल लिखुँ? 
नारी क्या.... 

लेखनी की धार लिखूं, 
लक्ष्मी की तलवार लिखूं, 
धैर्य की अविस्मित मूर्ति सी, 
क्या सीता का अवतार लिखूं? 
नारी..... 

पन्ना धाय का त्याग लिखूं, 
चावला का अंतरिक्ष गंतव्य लिखू, 
या आतंकियों से भिड़ने वाली, 
उस नीरजा का बलिदान लिखूं ll
नारी.... 

राधा रानी का प्रेम लिखूं, 
ललिता का इंतज़ार लिखूं, 
पी गयी जो विष का प्याला, 
उस मीरा की भक्ति लिखूं ll
नारी.... 
नारी...... 
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून


सर पे हाथ मां का,कलाई पर स्नेह का बंधन है
बिटिया मेरी मन्नत सी, तुझसे जन्मों का गठबंधन है
बिन तुम सबके कल्पना नहीं , इस संसार की
नारी दिवस पर प्रणाम तुम सबको और सभी का
अभिनंदन है

जब कभी महिला की बराबरी की खबर आती है
तू पुरुषों से कई पायदान ऊपर नज़र आती है

चित्रित तुझे कर सकूं, वो रंग कहां से लाऊंगा मैं
नारी तेरी महिमा का, गीत भला क्या गाऊंगा मैं
चंद उपमाओं से बेशक तुझको संदर्भित कर लूं
तेरी व्याख्या करने को, शब्द कहां से पाऊंगा मैं

है साथ तेरा किसी रूप में, तभी मेरी सल्तनत है
ईंट का मकान मंदिर,फूस की झोपड़ी जन्नत है

स्वरचित-अभिमन्यु कुमार


--नारी----

नारी माँ की ममता
नारी पत्नी का प्यार
नारी बेटी सी दमकती
नारी बहन का दुलार
नारी ही दुर्गा सरस्वती
नारी काली का अवतार
नारी पर ही टिकी सृष्टि 
नारी से ही घर परिवार
नारी अबला नहीं सबला है
नारी उड़े पंख पसार
नारी त्याग बलिदान की मूर्त
नारी नारी नहीं ये है नार
नारी रामायण महाभारत वेद पुराण
नारी ही गीता का सार
नारी घर आँगन की शोभा
नारी सृष्टि का आधार
नारी कविता नारी कवयित्री
नारी ही रस छंद अलंकार
नारी ईश्वरीय शक्ति है
नारी तेरे रूप हजार

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)


नारी....हे मानिनी 
तूने कब हार मानी 
तू क्षमामयी ,तू दयामयी 
तू जगजननी 
तू नहीं अबला !
चाँद की दुधिया चाँदनी सी शीतल
सूरज सा अंगारे उगलती दावानल
तू अवनी भी तू अंबर भी।
तू संस्कारी ,परोपकारी
पग के सारे काँट चुनती
फूल बिछाती निरंतर
विघ्न बाधाओं को ललकारती 
बढ़ती निज कर्तव्य पथ पर आगे 
चट्टान सी दृढ़ ,अडिग कभी 
जलधारा सी चंचल चपल
तो सागर सी गंभीर कभी
तू काली का अवतार धारण कर
धरती के महिषासुर का संहार करती ।
राम, कृष्ण ,गौतम की जननी
झाँसी की रानी की हुँकार तुझमें 
जीवन के मरुथल में रिमझिम फुहार,
जेठ की तपती दोपहरी में शीतल बयार सी ।
कल्पना की उड़ान ,शस्यशामल वसुंधरा की शान
तेरे हर रुप को नमन
हे वीर बाला !तेरे शौर्य ,पराक्रम का 
चिर ऋणी ये संसार 
हे माँ भारती ! हे नारी 
करे तुझे नमन 
तेरे हज़ारों,लाखों ,करोड़ों ‘अभिनंदन ‘ 
स्वरचित(c)भार्गवी रविन्द्र ....बेंगलूर
८/३/२०१९


*****************
वो भूली -बिसरी बाते,
तुझ संग गुजारी जो ,
वो यादें याद आती है।
वो तेरा पहला स्पर्श,
वो तेरा पहला छुअन,
अंतर्मन को मेरा प्रिये,
ममत्व से भर गया।
पाकर तुझे लाड़ली,
रोम-रोम मेरा पुलकित हो उठा।
आई जो गोद मे तू मेरी,
लगे जैसे कोई मुराद हुई पूरी।
पा तुझे बन गई मैं #नारी
सम्पूर्ण #नारीत्व को प्रिये मैने पा लिया।
मैंने अपनी रातों की नींद,
दिन का चैन बिटिया,
तुझको समर्पित किया।
तेरा प्यार से तुतलाकर बुलाना,
वो नर्म बाहों का आलिंगन
तेरा, बड़ा ही याद आता है।
शनै:शनै ज्यों तुम बढ़ती गई,
वैसे - वैसे माँ तुम मेरी बनती गई।
बन सखा,सहेली मुझे बहलाया,
जब रोती थी ,मैं तो,
तुमने ही मुझे हँसाया 
पर कहते है ये दुनिया की रीत
बेटी तो जाती वहाँ,जहाँ उसका मीत
मेरे आँगन की परी भी न जाने ,
कब हो गई सयानी,
बनकर किसी के दिल की रानी,
संग उसी के घर चली।
पर पास है ,तू मेरे हमेशा,
कभी ख़्वाबों में,कभी यादों में।
याद कर तुझ संग बिताए वो पल,
जी उठती मैं फिर हरपल।
..........जी उठती मैं फिर हरपल।

@सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)

"नारी"
हाँ, मैं नारी हूँ,
पैदा हुई मैं,
यहाँ किसी की नन्ही परी,
वहाँ बना शैया कूड़ेदान का पात्र
हाँ, मैं नारी हूँ,
थोड़ी सी बड़ी हुई,
यहाँ किसी की विधालय की जाती बेटी,
वहाँ किसी की रोटी बनाने में सहायक,
हाँ, मैं नारी हूँ,
बड़े होते होते,
यहाँ किसी की स्वपन्नपूरक बिटिया,
वहाँ किसी के कँधे का बोझ,
हाँ, मैं नारी हूँ,
पढ़ाई खत्म जो की,
यहाँ आत्मनिर्भर बनी नारी,
वहाँ शादी अभियान की प्रतियोगी,
हाँ, मैं नारी हूँ,
शादी कर मैं,
यहाँ किसी की जीवन साथी बनी,
वहाँ किसी की बँधुआ पीड़िता,
हाँ, मैं नारी हूँ,
मातृत्व में कदम रख,
यहाँ नवजीवन को साँस दी,
वहाँ हो उत्पीड़ित वंश बढाया,
हाँ, मैं नारी हूँ,
नया जीवन धरती पर लाती,
मैं हर नारीत्व का फर्ज निभाती,
फिर भी जन्म से मृत्यु तक प्रताडित होती,
हाँ, मैं नारी हूँ,
किसी की माँ किसी की बहन,
किसी की सखी,किसी की संगनी,
हर कदम तुम्हारा साथ निभाती,
हाँ, मैं नारी हूँ
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
8/3/19
शुक्रवार


अनारी नारी
अशिक्षा की पिटारी
बड़ी बीमारी।।


शिक्षित नारी
परिवारी जेवर
फूलों की क्यारी।।

नारी महान
देती जीवन दान
करो सम्मान।।

नारी जनक
पीढ़ियों की पोषक
छुये फ़लक।।

नारी दिवस
लड़े अधिकार को
मारे गर्भ को।।

सशक्त नारी
हर क्षेत्र पे कब्जा
तोड़ती भ्रम।।

क्रांति जगाती
भ्रांतियां झुठलाती
दिये की बाती।।

केवल बेटा
दकियानूसी सोच
गर्भ में हत्या।।

बेटी महान
छू रही आसमान
देश की शान।।
भावुक



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