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ब्लॉग संख्या :-341
"मौका/अवसर"
तांका
1)
मौका न चूक
जिंदगी अनमोल
तोल के बोल
सत्य पथ की ज्योति
सदा साथ रहती।।
२)
बुजुर्ग सेवा
परोपकार कार्य
भाग्य उजास
कर्तव्य ही कुंदन
अंधेरे में उजाला ।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
तांका
1)
मौका न चूक
जिंदगी अनमोल
तोल के बोल
सत्य पथ की ज्योति
सदा साथ रहती।।
२)
बुजुर्ग सेवा
परोपकार कार्य
भाग्य उजास
कर्तव्य ही कुंदन
अंधेरे में उजाला ।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
विषय -मौका/अवसर🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
विधा-छंद मुक्त कविता
🍁🍀🍁मौका 🍁🍀🍁
बनी दुनिया जोकर लगी जब
हंसाने
कहाँ किसने देखा उसकी आँखों
का पानी
मौका मिला जिसे भी वो भूल
गया मैहरबानी
ये तेरी और मेरी सबकी है कहानी
दुनिया एक रंग मंच है
सबकी अलग कहानी
हर किरदार एक कठपुतली
ये बात मैंने जानी
कोइ हँस रहा, किसी आँख
का सूख गया पानी
कोइ नचा रहा , कोइ भूल
गया जवानी
कोइ दे गया रवानी, कोइ
दे गया निशानी
ठहर जुस्तजू पर निकली
मौजे बयानी
तंग दिल थे निकले चापलूस
और सयानी
बातों की जो हैं खाते नेताओं
की मैहरबानी
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विधा-छंद मुक्त कविता
🍁🍀🍁मौका 🍁🍀🍁
बनी दुनिया जोकर लगी जब
हंसाने
कहाँ किसने देखा उसकी आँखों
का पानी
मौका मिला जिसे भी वो भूल
गया मैहरबानी
ये तेरी और मेरी सबकी है कहानी
दुनिया एक रंग मंच है
सबकी अलग कहानी
हर किरदार एक कठपुतली
ये बात मैंने जानी
कोइ हँस रहा, किसी आँख
का सूख गया पानी
कोइ नचा रहा , कोइ भूल
गया जवानी
कोइ दे गया रवानी, कोइ
दे गया निशानी
ठहर जुस्तजू पर निकली
मौजे बयानी
तंग दिल थे निकले चापलूस
और सयानी
बातों की जो हैं खाते नेताओं
की मैहरबानी
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
((कटी पतंगों को भी लूटना पड़ता ))
""''''''''''''''''''''''''''''''’"""'''''''"'''’'"'''''''''''"'"
तकदीर ने तो
खूब अवसर दिया
कुछ हाथ आए नहीं
कुछ हाथ हमनें
बढ़ाएे नहीं
रिश्ते चल कर आए दोस्तों
हम ने उन्हें दिल से
निभाएे नहीं |
मेला सजा खुशियों का था
कुछ भी खरीद के
लाए नहीं |
खुशियाँ
मुफ्त में भी
मिल जाया करती थी
दोस्तों
बीच राहों मे
कभी कभी
गुम कर बीच रास्तों से
जहाँ थे '
फिर आए वहीं |
कटी पतंगों को
भी लूटना
पड़ता है यारों
अाज
कोसतें तकदीर को
मुकम्मल ठिकाने
बताये नहीं |
चीखा तो था "
समय ने भी
कान मे आकर
गहरी नींद मे थे "
जाग पाये नहीं|
तकदीर ने
बहूत कुछ दिया
कुछ हाथ आए नहीं
कुछ हाथ हमनें
बढ़ाएे नहीं |
स्वरचित
P rai rathi
""''''''''''''''''''''''''''''''’"""'''''''"'''’'"'''''''''''"'"
तकदीर ने तो
खूब अवसर दिया
कुछ हाथ आए नहीं
कुछ हाथ हमनें
बढ़ाएे नहीं
रिश्ते चल कर आए दोस्तों
हम ने उन्हें दिल से
निभाएे नहीं |
मेला सजा खुशियों का था
कुछ भी खरीद के
लाए नहीं |
खुशियाँ
मुफ्त में भी
मिल जाया करती थी
दोस्तों
बीच राहों मे
कभी कभी
गुम कर बीच रास्तों से
जहाँ थे '
फिर आए वहीं |
कटी पतंगों को
भी लूटना
पड़ता है यारों
अाज
कोसतें तकदीर को
मुकम्मल ठिकाने
बताये नहीं |
चीखा तो था "
समय ने भी
कान मे आकर
गहरी नींद मे थे "
जाग पाये नहीं|
तकदीर ने
बहूत कुछ दिया
कुछ हाथ आए नहीं
कुछ हाथ हमनें
बढ़ाएे नहीं |
स्वरचित
P rai rathi
अवसर तो आते जाते हैं
जो अवसर को पहिचाने
जो सम्भल उसे पकड़ता
वह रहस्य जीवन का जाने
शैशव बचपन युवा अवसर
जीवन मे हर बार न आता
यादें रह जाती जीवन भर
रह न पाते पिता और माता
अवसर एक बहती नदी
हाथ मे आती नही वह
भागती ही जा रही है
दूर भी जाती नहीं यह
जीवन एक कड़ी परीक्षा
अवसर बार बार नहीं आते
हर पल होता तप तपस्या
परीक्षार्थी श्रम मंजिल पाते
यह मायावी जगत अनौखा
भौतिकता की चमक दमक
लोभ ईर्षा द्वेष निर्दयता रत
विवेकहीन हो गए नासमझ
शुभअवसर हाथों से पकड़ो
शुभअवसर का लाभ उठाओ
अशुभ अवसर को जाने दो
सुख शांति जीवन नित लाओ
मानव जीवन अद्भुत मौका
इसे व्यर्थ में मत जाने दो
अमृतमय सुन्दर जीवन में
पावन ज्ञान विवेक आने दो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा, राजस्थान।
जो अवसर को पहिचाने
जो सम्भल उसे पकड़ता
वह रहस्य जीवन का जाने
शैशव बचपन युवा अवसर
जीवन मे हर बार न आता
यादें रह जाती जीवन भर
रह न पाते पिता और माता
अवसर एक बहती नदी
हाथ मे आती नही वह
भागती ही जा रही है
दूर भी जाती नहीं यह
जीवन एक कड़ी परीक्षा
अवसर बार बार नहीं आते
हर पल होता तप तपस्या
परीक्षार्थी श्रम मंजिल पाते
यह मायावी जगत अनौखा
भौतिकता की चमक दमक
लोभ ईर्षा द्वेष निर्दयता रत
विवेकहीन हो गए नासमझ
शुभअवसर हाथों से पकड़ो
शुभअवसर का लाभ उठाओ
अशुभ अवसर को जाने दो
सुख शांति जीवन नित लाओ
मानव जीवन अद्भुत मौका
इसे व्यर्थ में मत जाने दो
अमृतमय सुन्दर जीवन में
पावन ज्ञान विवेक आने दो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा, राजस्थान।
विधा-छंदमुक्त कविता
नींद नहीं आती मुझको
जाने क्या हो जाता है
दुश्मन की ललकार पर
जब बेटा रण में जाता है
जल्दी आना मेरे बच्चे
मन बहुत घबराता है
नींद नहीं आती लेकिन
बस ख्वाब तेरा ही आता है।
मत घबराना मेरी माँ
ये पाठ तुम्हीं से सीखा है
एक एक माता गंगा है
नारी में एक एक सीता है
तुझसे भी पहले एक माँ
भारत माँ का फ़र्ज मुझे बुलाता है
आज मुझे मेरा बेटा
एक माँ बनकर समझाता है
नहा लिया जो गंगा में
तो तेरा कर्ज चुकाऊंगा
दूषित हो गई गर गंगा
तो चेहरा कहाँ छुपाऊंगा
जाओ बेटा तुम आज
ये "अवसर" न गंवा देना
एक माँ के सम्मान में आज
लहू भी अपना बहा देना ।
है कहाँ ये त्याग किसी में
ये तो हिंद की माता है
जो सीता,सावित्री, पन्ना का
भारत देश कहाता है।
जय भारत, जय हिन्दुस्तान।
****स्वरचित****
--सीमा आचार्य--
नींद नहीं आती मुझको
जाने क्या हो जाता है
दुश्मन की ललकार पर
जब बेटा रण में जाता है
जल्दी आना मेरे बच्चे
मन बहुत घबराता है
नींद नहीं आती लेकिन
बस ख्वाब तेरा ही आता है।
मत घबराना मेरी माँ
ये पाठ तुम्हीं से सीखा है
एक एक माता गंगा है
नारी में एक एक सीता है
तुझसे भी पहले एक माँ
भारत माँ का फ़र्ज मुझे बुलाता है
आज मुझे मेरा बेटा
एक माँ बनकर समझाता है
नहा लिया जो गंगा में
तो तेरा कर्ज चुकाऊंगा
दूषित हो गई गर गंगा
तो चेहरा कहाँ छुपाऊंगा
जाओ बेटा तुम आज
ये "अवसर" न गंवा देना
एक माँ के सम्मान में आज
लहू भी अपना बहा देना ।
है कहाँ ये त्याग किसी में
ये तो हिंद की माता है
जो सीता,सावित्री, पन्ना का
भारत देश कहाता है।
जय भारत, जय हिन्दुस्तान।
****स्वरचित****
--सीमा आचार्य--
विधा-मुक्तक
अवसरों की राह नही तकते
खुदी अपनी को बुलन्द रखते
विजय वरण करती है उनका
कर्मठता की नित राह चलते
हर दम बिसूरते रहते हो क्यों
खुद को देखते नही हो क्यों
हिम्मत रखो कदम बढ़ाओ
मौका तुम्हे चाहिए और क्यों
मीना भारद्वाज
(स्वरचित एवं मौलिक)
अवसरों की राह नही तकते
खुदी अपनी को बुलन्द रखते
विजय वरण करती है उनका
कर्मठता की नित राह चलते
हर दम बिसूरते रहते हो क्यों
खुद को देखते नही हो क्यों
हिम्मत रखो कदम बढ़ाओ
मौका तुम्हे चाहिए और क्यों
मीना भारद्वाज
(स्वरचित एवं मौलिक)
मौका ' दिया है रब ने
ये ज़िन्दगी देकर,
हम भी इसे गवां न दे
खेल समझ कर।
कहते है कितने योनियों पर
मिलता ये जन्म,
हम सोच समझ कर-
करते रहे करम।
न खुद बुरा करे
बुराई से दूर हो
जितना भी बन सके
नेकी ही हम करे।
ऋण कुछ तो चुक सकेगा
ए मालिक मेरे, तेरा,
अपनो को संग दे सके
दुःख उनके कम करे।
💐💐💐💐💐
स्मृति श्रीवास्तव
सूरत
ये ज़िन्दगी देकर,
हम भी इसे गवां न दे
खेल समझ कर।
कहते है कितने योनियों पर
मिलता ये जन्म,
हम सोच समझ कर-
करते रहे करम।
न खुद बुरा करे
बुराई से दूर हो
जितना भी बन सके
नेकी ही हम करे।
ऋण कुछ तो चुक सकेगा
ए मालिक मेरे, तेरा,
अपनो को संग दे सके
दुःख उनके कम करे।
💐💐💐💐💐
स्मृति श्रीवास्तव
सूरत
कोई अवसर नहीं गवाऊँ,
हे मात शारदे ऐसा वर दे।
शुभ मौके लाभ उठाऊँ,
ऐसी बुद्धि मेरी कर दे।
ये ज्ञानचक्षु खुल जाऐं मेरे,
जब भी माँ सुअवसर आऐ।
संयम और विवेक से माता
कोई अवसर ही छूट न पाऐ।
षडयंत्रों की सतरंजी चालें,
अच्छी तरह समझ में पाऊँ।
समयानुसार ही ज्ञानबृद्धि हो,
मै पाखंडों में उलझ न पाऊँ।
मौका निकला यदि एकबार तो,
फिर कभी वापिस नहीं मिलता।
चाहत यही प्रेमपात्र बन पाऊँ मै
ये जीवन बारबार नहीं मिलता।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना, म.प्र.
हे मात शारदे ऐसा वर दे।
शुभ मौके लाभ उठाऊँ,
ऐसी बुद्धि मेरी कर दे।
ये ज्ञानचक्षु खुल जाऐं मेरे,
जब भी माँ सुअवसर आऐ।
संयम और विवेक से माता
कोई अवसर ही छूट न पाऐ।
षडयंत्रों की सतरंजी चालें,
अच्छी तरह समझ में पाऊँ।
समयानुसार ही ज्ञानबृद्धि हो,
मै पाखंडों में उलझ न पाऊँ।
मौका निकला यदि एकबार तो,
फिर कभी वापिस नहीं मिलता।
चाहत यही प्रेमपात्र बन पाऊँ मै
ये जीवन बारबार नहीं मिलता।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना, म.प्र.
"मौका/अवसर"
################
रंजिशों को भूलकर यारों
दिल से दिल मिलाना सीखो
दीवार नफरतों की तोड़कर
गले तो लगाना सीखो यारों।
इर्ष्या, द्वैष त्याग कर मन में
प्यार पालना सीखो यारों
अकड़कर न चलना राहो में
थोड़ा सा झुक जाना यारों।
मौका है अवसर है
इसको यूं ही न गंवाओ यारो
दो दिन की है जिंदगानी
खुशियां तो लुटाओ यारो।
गर हासिल हो मुकाम कोई
खुद पर न इतराओ यारो
गुरुजनों के चरणों में झुक के
शुकराना करना सीखो यारों।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
################
रंजिशों को भूलकर यारों
दिल से दिल मिलाना सीखो
दीवार नफरतों की तोड़कर
गले तो लगाना सीखो यारों।
इर्ष्या, द्वैष त्याग कर मन में
प्यार पालना सीखो यारों
अकड़कर न चलना राहो में
थोड़ा सा झुक जाना यारों।
मौका है अवसर है
इसको यूं ही न गंवाओ यारो
दो दिन की है जिंदगानी
खुशियां तो लुटाओ यारो।
गर हासिल हो मुकाम कोई
खुद पर न इतराओ यारो
गुरुजनों के चरणों में झुक के
शुकराना करना सीखो यारों।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
"मौका/अवसर"
चलो कुछ नया करें
जिंदगी कहां होती है मेहरबान
रोज रोज,--
कहां मिलता है अवसर --किस्मत
को रोज रोज
जाने कल रहें,न रहे
आज है--तो चलो कुछ नया करें
चांद की थामें उंगली
चांदनी को ओढ लें
जिस्म में सूरज उतारें
जुगनुओं को छोड़ दें
चलो कुछ नया करें
होने दें प्रवाहित दरया को
रोम रोम में देह के
समंदर के खारे पन से
अँखियों के दो प्याले भरें
चलो कुछ नया करें
पांव में पहन जुगनू की झांझर
भ्रम में डाल दे कुछ देर
उजालों को
बढ़ाकर तपन ख्वाहिशों की
चढ़ते रहे मोम की सीढ़ियां
वक्त के द्वार से----
चलो कुछ नया करें
आजाद कर दें खुशबुओं को
उन
कैद मुद्दत से जो किताबों में
खोल दें मुट्ठियां अपनी-अपनी
छू लेने दे आकाश तितलियों को
चलो कुछ तो नया करें
एक दर्द ओढ़ ले मिट्टी के जिस्म पर
और ---
मुस्कुराने की वजह दे जमाने को बेवजह
चलो कुछ तो नया करें
पार क्षितीज के -- जहां हो आलिंगनबद्ध
धरती गगन से ,चांद सूरज से
हम भी खो जाएं आगोश में
अनछुई ,अनदेखी, अनकही कहानियों में
चलो कुछ नया करें
चलो कुछ तो नया करें
वंदना मोदी गोयल
चलो कुछ नया करें
जिंदगी कहां होती है मेहरबान
रोज रोज,--
कहां मिलता है अवसर --किस्मत
को रोज रोज
जाने कल रहें,न रहे
आज है--तो चलो कुछ नया करें
चांद की थामें उंगली
चांदनी को ओढ लें
जिस्म में सूरज उतारें
जुगनुओं को छोड़ दें
चलो कुछ नया करें
होने दें प्रवाहित दरया को
रोम रोम में देह के
समंदर के खारे पन से
अँखियों के दो प्याले भरें
चलो कुछ नया करें
पांव में पहन जुगनू की झांझर
भ्रम में डाल दे कुछ देर
उजालों को
बढ़ाकर तपन ख्वाहिशों की
चढ़ते रहे मोम की सीढ़ियां
वक्त के द्वार से----
चलो कुछ नया करें
आजाद कर दें खुशबुओं को
उन
कैद मुद्दत से जो किताबों में
खोल दें मुट्ठियां अपनी-अपनी
छू लेने दे आकाश तितलियों को
चलो कुछ तो नया करें
एक दर्द ओढ़ ले मिट्टी के जिस्म पर
और ---
मुस्कुराने की वजह दे जमाने को बेवजह
चलो कुछ तो नया करें
पार क्षितीज के -- जहां हो आलिंगनबद्ध
धरती गगन से ,चांद सूरज से
हम भी खो जाएं आगोश में
अनछुई ,अनदेखी, अनकही कहानियों में
चलो कुछ नया करें
चलो कुछ तो नया करें
वंदना मोदी गोयल
अवसर बस बीता जाता
पता है कुछ तेरा ना मेरा
कैसी भी दुखद या सुहानी
ये जगती सिर्फ़ रैन बसेरा
फिर भी हर पल
एक शिकायत
ये छूटा वो ना मिला
ऐसी आपा धापी लगी
कि खुद से भी रहे अंजान
एक घङी भी नही जो
स्वयं की करें पहचान
अवसर बस बीता जाता
मंजिल से अंजान
टुकड़ों में बस जीवन बीते
रहे हाथ बस रीते
अंत तक ये जान न पाऐ
क्या हारे क्या जीते ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
पता है कुछ तेरा ना मेरा
कैसी भी दुखद या सुहानी
ये जगती सिर्फ़ रैन बसेरा
फिर भी हर पल
एक शिकायत
ये छूटा वो ना मिला
ऐसी आपा धापी लगी
कि खुद से भी रहे अंजान
एक घङी भी नही जो
स्वयं की करें पहचान
अवसर बस बीता जाता
मंजिल से अंजान
टुकड़ों में बस जीवन बीते
रहे हाथ बस रीते
अंत तक ये जान न पाऐ
क्या हारे क्या जीते ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
गुरुवार
मुक्तक
मिला है जब हमें अवसर सतत संघर्ष करने का।
प्रयासों से कठिनतम लक्ष्य पा उत्कर्ष करने का।
तो फिर अवसर सुनहरा हम क्यों यूँ ही व्यर्थ जाने दें-
यही एक रास्ता है योग्य बनकर हर्ष करने का।
मानव को था मिला सुअवसर कुछ कर्तव्य निभाने का ।
लेकिन वह कर रहा यत्न अपना भवितव्य बनाने का।
कैसे इस समाज का फिर उत्थान सही हो पाएगा-
जब परहित का नहीं रहा कोई मंतव्य जमाने का।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
मुक्तक
मिला है जब हमें अवसर सतत संघर्ष करने का।
प्रयासों से कठिनतम लक्ष्य पा उत्कर्ष करने का।
तो फिर अवसर सुनहरा हम क्यों यूँ ही व्यर्थ जाने दें-
यही एक रास्ता है योग्य बनकर हर्ष करने का।
मानव को था मिला सुअवसर कुछ कर्तव्य निभाने का ।
लेकिन वह कर रहा यत्न अपना भवितव्य बनाने का।
कैसे इस समाज का फिर उत्थान सही हो पाएगा-
जब परहित का नहीं रहा कोई मंतव्य जमाने का।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
ये अवसर
अस्मिता बचाने का
आया चुनाव।।
मौकापरस्त
धोखे में सिद्धहस्त
जनता पस्त।।
मौके-बेमौके
आतंकी घुसपैठ
कौन ले जिम्मा??
मौका निकालें
करें निरीह सेवा
आत्म संतोष।।
मौका है अच्छा
बढ़ाएं भाईचारा
बढ़ी अशांति।।
भावुक
अस्मिता बचाने का
आया चुनाव।।
मौकापरस्त
धोखे में सिद्धहस्त
जनता पस्त।।
मौके-बेमौके
आतंकी घुसपैठ
कौन ले जिम्मा??
मौका निकालें
करें निरीह सेवा
आत्म संतोष।।
मौका है अच्छा
बढ़ाएं भाईचारा
बढ़ी अशांति।।
भावुक
अवसर सबको मिलता रहता जीवन में ,नादान हैं जो ये न समझें |
रहते हैं परम आलसी जो जन हरदम , मौका वो बस बैठे रहने का ढूंढें |
अवसर के मोतियों की माला गूँथकर ,ज्ञानी जन जीवन में अपने पहनें |
अक्ल का अर्जीणन जिनको होता , अपनी किस्मत को वही तो बैठे कोसें |
फिर से दुनियाँ में यह मानुष जीवन , हमको नहीं मिलेगा हम ये सोचें |
कल का किसको पता है आखिर , क्यों न अवसर हम आज ही खोजें |
हम चरितार्थ करें मानव जीवन को , मानवता के लिऐ भी कुछ करलें |
मंजिल हमको मिल ही जायेगी , अगर अवसर गढ़ना हम
सीखें |
कष्ट क्लेश जीवन में आते ही रहते , इनसे घबरा कर हम अवसर न चूकें |
जो भी करना है आज ही कर लें , हम कभी कल पर बात न टालें |
कुछ अच्छा काम करने के लिऐ भी , क्यों हम सब सोचें विचारें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
रहते हैं परम आलसी जो जन हरदम , मौका वो बस बैठे रहने का ढूंढें |
अवसर के मोतियों की माला गूँथकर ,ज्ञानी जन जीवन में अपने पहनें |
अक्ल का अर्जीणन जिनको होता , अपनी किस्मत को वही तो बैठे कोसें |
फिर से दुनियाँ में यह मानुष जीवन , हमको नहीं मिलेगा हम ये सोचें |
कल का किसको पता है आखिर , क्यों न अवसर हम आज ही खोजें |
हम चरितार्थ करें मानव जीवन को , मानवता के लिऐ भी कुछ करलें |
मंजिल हमको मिल ही जायेगी , अगर अवसर गढ़ना हम
सीखें |
कष्ट क्लेश जीवन में आते ही रहते , इनसे घबरा कर हम अवसर न चूकें |
जो भी करना है आज ही कर लें , हम कभी कल पर बात न टालें |
कुछ अच्छा काम करने के लिऐ भी , क्यों हम सब सोचें विचारें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
सादर मंच को समर्पित -
🐚 दोहा गजल 🐚
*******************************
🌷 अवसर /मौका 🌷
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
बजे बाँसुरी चैन की , जीवन है संगीत ।
हिल-मिल बाँटें प्यार हम, यह वसुधा ही मीत ।।
मन का रावण मार कर , दिल के अन्दर झाँक ,
पहचानें निज राम को , घट को करें पुनीत ।
अवसर को जाने न दें , बिखरीं खुशियाँ नेक ,
लक्ष्य भेदती साधना , अवरोधों में जीत ।
जागरण का समय है , जगें, जगायें आज ,
शंखनाद अब चाहिए , यही राष्ट्र का गीत ।
चला न जाये व्यर्थ ही , मौका यह अनमोल ,
कर लें कुछ सत्कर्म भी , वक्त न जाये बीत ।।
🏵🌴🌺🍀🌸🌹
🐚☀️☀️**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
अवसर मिले तो चूको मत यारो
अहं को त्याग दो आज तो
एक एक लम्हा जो बीत जायेंगे
वे न लौटेंगे पास मे
कुछ अपनी कहो ,कुछ उनकी सुनो
मत रूठो बेकार मे
जिंदगी कितनी दूर ले जायेगी
बिन अपनो के साथ में
ऐसा मौका फिर न आयेगा
जिंदगी के बाजार में
मिल बैठ साथ बुन लो
सपनों के संसार को
है ये सुनहरा मौका
दो कदम तुम बढ़ो
दो कदम वे बढ़ेंगे
एक एक मौका सब देगें
एक दूसरे को साथ मे
हे भगवान दो उन्हें एक मौका
सब बिछुड़े मिले साथ मे
सब बैठे हैं इस एक मौके की आस मे।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
अहं को त्याग दो आज तो
एक एक लम्हा जो बीत जायेंगे
वे न लौटेंगे पास मे
कुछ अपनी कहो ,कुछ उनकी सुनो
मत रूठो बेकार मे
जिंदगी कितनी दूर ले जायेगी
बिन अपनो के साथ में
ऐसा मौका फिर न आयेगा
जिंदगी के बाजार में
मिल बैठ साथ बुन लो
सपनों के संसार को
है ये सुनहरा मौका
दो कदम तुम बढ़ो
दो कदम वे बढ़ेंगे
एक एक मौका सब देगें
एक दूसरे को साथ मे
हे भगवान दो उन्हें एक मौका
सब बिछुड़े मिले साथ मे
सब बैठे हैं इस एक मौके की आस मे।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
झूठा लम्पट बन रहा, लूटे देश समाज
स्वार्थ सँजोता दूर से ,बन बैठा है बाज
सत्यवादिता थी
घूँघट सी
जरा हटी क्या चोर हो गया ।
मानव आदमखोर हो गया ।1
चुन चुन कर खाता रहा,चिड़ियों सा वह घूस
#अवसर देखा रच प्रपंच,लिया सभी को मूस
चुहचुहिया से
बना छछुंदर
लगा नाचने मोर हो गया ।
मानव आदम खोर हो गया ।2
लेकर विष बोता रहे , जाति धर्म का नाम
मन उपजी है नीचता ,करता काम तमाम
जैसे देखी
सुन्दर काया
हवसी भावविभोर हो गया
मानव आदमखोर हो गया ।3
करता फिरे ढ़कोसला, करे कुटिल अपमान
लगा मुखौटा दोगला, छुपा हुआ हैवान
चाटुकारिता
करते करते
मुँह काला तन गोर हो गया ।
मानव आदमखोर हो गया ।4
पिछलग्गू ,चुप्पा बने ,लूट रहे है देश
तोड़ मरोड़ के नीचता, कर देते है पेश
उठ जागो सब
करो सामना
आखिर कब का भोर हो गया ।
मानव आदमखोर हो गया ।5
✍रकमिश सुल्तानपुरी
स्वार्थ सँजोता दूर से ,बन बैठा है बाज
सत्यवादिता थी
घूँघट सी
जरा हटी क्या चोर हो गया ।
मानव आदमखोर हो गया ।1
चुन चुन कर खाता रहा,चिड़ियों सा वह घूस
#अवसर देखा रच प्रपंच,लिया सभी को मूस
चुहचुहिया से
बना छछुंदर
लगा नाचने मोर हो गया ।
मानव आदम खोर हो गया ।2
लेकर विष बोता रहे , जाति धर्म का नाम
मन उपजी है नीचता ,करता काम तमाम
जैसे देखी
सुन्दर काया
हवसी भावविभोर हो गया
मानव आदमखोर हो गया ।3
करता फिरे ढ़कोसला, करे कुटिल अपमान
लगा मुखौटा दोगला, छुपा हुआ हैवान
चाटुकारिता
करते करते
मुँह काला तन गोर हो गया ।
मानव आदमखोर हो गया ।4
पिछलग्गू ,चुप्पा बने ,लूट रहे है देश
तोड़ मरोड़ के नीचता, कर देते है पेश
उठ जागो सब
करो सामना
आखिर कब का भोर हो गया ।
मानव आदमखोर हो गया ।5
✍रकमिश सुल्तानपुरी
मौका मिला है जनता को,
नेताजी पाँव पड़ते हैं।
पिछली गलती माफ करो,
चरण छूकर कहते हैं।
वोट देकर दास बनाओ,
कदम को चुमलूँ।
काम तुम्हारे पूर्ण कर,
सत्य राह चुनलूँ।
जनता भी नादान नहीं,
समझती है सब।
कौन हितैषी कौन पराया
जान लेगी सब।
वोट का समय आने दो,
ध्यान तुम्हारा रखेंगे।
जो कुछ भी है हमें करना,
मत देते वक्त करेंगे।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
नेताजी पाँव पड़ते हैं।
पिछली गलती माफ करो,
चरण छूकर कहते हैं।
वोट देकर दास बनाओ,
कदम को चुमलूँ।
काम तुम्हारे पूर्ण कर,
सत्य राह चुनलूँ।
जनता भी नादान नहीं,
समझती है सब।
कौन हितैषी कौन पराया
जान लेगी सब।
वोट का समय आने दो,
ध्यान तुम्हारा रखेंगे।
जो कुछ भी है हमें करना,
मत देते वक्त करेंगे।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
अवसर
इस तालीम का ये असर देखो
बिन रुपयों के भी बसर देखो
दिनभर फकत खाक छानते रहे
निबाले भी नहीं मयस्सर देखो
मिट्टी से इनके प्यार गज़ब
जमीं पर कैसे रहे पसर देखो
भरे है नामुराद यूँ ही कितने
किए बंद दरवाजे दफ़्तर देखो
इक कागज का यूँ पतंग बना
हवा में लहराते अफ़सर देखो
कमी कुछ इन कागजों में भी
लेकर दूरबीन कोई कसर देखो
नकारा नहीं नवल बेरोजगार है
कहीं तो यारों एक अवसर देखो
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
इस तालीम का ये असर देखो
बिन रुपयों के भी बसर देखो
दिनभर फकत खाक छानते रहे
निबाले भी नहीं मयस्सर देखो
मिट्टी से इनके प्यार गज़ब
जमीं पर कैसे रहे पसर देखो
भरे है नामुराद यूँ ही कितने
किए बंद दरवाजे दफ़्तर देखो
इक कागज का यूँ पतंग बना
हवा में लहराते अफ़सर देखो
कमी कुछ इन कागजों में भी
लेकर दूरबीन कोई कसर देखो
नकारा नहीं नवल बेरोजगार है
कहीं तो यारों एक अवसर देखो
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
है
बहुत
बेईमान
जिन्दगी
अपनी कम
पराई ज्यादा है
जिन्दगी
जाने मत दो
मौकों को
हाथ से
कब रूठ
ये जिन्दगी
मौकों की है
अजब कहानी
अपने कम
बेगाने ज्यादा है
ये मौके
मांगे दुआ
मौला से इतनी
किन्ही भी
मौकों पर
न रहे खाली
झोली
फकीर की
ऐ
इन्सान
तम बन तू
इतना खुदगर्ज़
घोटाले दे गला
दूसरों का
अपने मौकों
के लिए
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
बहुत
बेईमान
जिन्दगी
अपनी कम
पराई ज्यादा है
जिन्दगी
जाने मत दो
मौकों को
हाथ से
कब रूठ
ये जिन्दगी
मौकों की है
अजब कहानी
अपने कम
बेगाने ज्यादा है
ये मौके
मांगे दुआ
मौला से इतनी
किन्ही भी
मौकों पर
न रहे खाली
झोली
फकीर की
ऐ
इन्सान
तम बन तू
इतना खुदगर्ज़
घोटाले दे गला
दूसरों का
अपने मौकों
के लिए
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
येअवसर फिर नहीं मिलेगा,
इस मौके का लाभ उडाऊं।
भावी पीढियों को संसाधन,
क्यों नहीं सब अभी जुटाऊं।
खूब हराम की खाता हूं मै,
हरामखोर ही पैदा करता।
हुआ आलसी अब इतना कि,
सभी मुफ्त में सौदा करता।
जब नेताओ के बडे होंसले,
दोनों हाथों से हमें उलीचते।
टैक्स भरे कोई नहीं मतलब,
ये हाथ लेने में नहीं पसीजते।
वेनेजुएला बनाऐंगे भारत को
हम विनाश करके ही छोडेंगे।
भुखमरी मुफ्तखोरी से फैली,
मौका मदहोशी नहीं छोडेंगे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
इस मौके का लाभ उडाऊं।
भावी पीढियों को संसाधन,
क्यों नहीं सब अभी जुटाऊं।
खूब हराम की खाता हूं मै,
हरामखोर ही पैदा करता।
हुआ आलसी अब इतना कि,
सभी मुफ्त में सौदा करता।
जब नेताओ के बडे होंसले,
दोनों हाथों से हमें उलीचते।
टैक्स भरे कोई नहीं मतलब,
ये हाथ लेने में नहीं पसीजते।
वेनेजुएला बनाऐंगे भारत को
हम विनाश करके ही छोडेंगे।
भुखमरी मुफ्तखोरी से फैली,
मौका मदहोशी नहीं छोडेंगे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
अँधेरे से उजालों की ओर भी एक दुनियाँ हैं
वहाँ भी खुशियों का एक प्यारा जहाँ हैं
हौसलों के पंख तो फैलाओ हे राह के मुसाफिर
जिंदगी में आगे बढ़ने का हर दिन एक नया मौका खड़ा हैं .
इस मौके को एक बार जरा आजमा कर तो देखो
एक मौके को एक बार पहचान लो जज्बे के संग
जीने और उम्मीद के मिलेंगे कई रंग
चलो फिर से ढूंढे आगे मौके और ढंग .
मौके बार बार नहीं मिलते हैं
अनकही बातों को छोड़कर
अब तो दो जिंदगी को एक नया अवसर
चल पढ़ो जिंदगी का एक नये सफर .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
वहाँ भी खुशियों का एक प्यारा जहाँ हैं
हौसलों के पंख तो फैलाओ हे राह के मुसाफिर
जिंदगी में आगे बढ़ने का हर दिन एक नया मौका खड़ा हैं .
इस मौके को एक बार जरा आजमा कर तो देखो
एक मौके को एक बार पहचान लो जज्बे के संग
जीने और उम्मीद के मिलेंगे कई रंग
चलो फिर से ढूंढे आगे मौके और ढंग .
मौके बार बार नहीं मिलते हैं
अनकही बातों को छोड़कर
अब तो दो जिंदगी को एक नया अवसर
चल पढ़ो जिंदगी का एक नये सफर .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"मौका/अवसर"
(1)👥
मौका जो मिला
शराफत समेटी
स्वार्थ को जगा
(2)👨🎓
समस्या बड़ी
मौक़े की तलाश में
प्रतिभा खड़ी
(3)♥️
निष्ठा का त्याग
अवसरवादिता
बदला प्यार
(4)🌈
लुप्त अँधेरा
रवि को मिला मौका
रंग बिखेरा
(5)🇮🇳
मौकापरस्त
गीत गाये विदेशी
खायें स्वदेशी
(6)👷♂️
विकास धर्म
समान अवसर
एकता स्वर
(7)✍️
भुनाया मौका
सफलताएँ चख
जीवन लिखा
(8)🇮🇳
सौभाग्यवान
देश औ माता-पिता
सेवा का मौका
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-"मौका/अवसर"
(1)👥
मौका जो मिला
शराफत समेटी
स्वार्थ को जगा
(2)👨🎓
समस्या बड़ी
मौक़े की तलाश में
प्रतिभा खड़ी
(3)♥️
निष्ठा का त्याग
अवसरवादिता
बदला प्यार
(4)🌈
लुप्त अँधेरा
रवि को मिला मौका
रंग बिखेरा
(5)🇮🇳
मौकापरस्त
गीत गाये विदेशी
खायें स्वदेशी
(6)👷♂️
विकास धर्म
समान अवसर
एकता स्वर
(7)✍️
भुनाया मौका
सफलताएँ चख
जीवन लिखा
(8)🇮🇳
सौभाग्यवान
देश औ माता-पिता
सेवा का मौका
स्वरचित
ऋतुराज दवे
मौके की तलाश में
उम्र भर चलता रहा
जाड़ा,बारिस,तेज धूप में
राहें निरखता रहा
बचपन में खेल में
अवसर तलासता रहा
पढ़ने लिखने की उम्र में
मौके मैं खोता रहा
प्यार की नैया में
गोते लगाता रहा
रोजगारढूँढने में
अवसर गंवाता रहा
एक नए आसरा में
यूं ही भटकता रहा
जीवन की राहों में
कुछ मौकों को भुनाता रहा
दुनिया के रंगमंच में
अक्सर खुश होता रहा
ईश्वर की इस सृष्टि में
खुद को खुसनसीब समझता रहा
पर आज भी मानवता की तलाश में
मन मेरा भटकता रहा
मौके की तलाश में
उम्र भर चलता रहा
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
लघु कविता
अवसर होता अवसर
रह जाती थोडी कसर
मौके पर देखे मौका
धोखे को देते धोखा
नेता देखे वोट खातिर
धन पूंजी चोर शातिर
चूहे, बिल्ली, कुत्ते सब
निडर बेधडक होगें कब?
किसान आषाढी बावणियाँ
पत्नी भी सम्भाले चाबियाँ ।
मिजाजपुर्सी से माँगे पैसा
बेटा आज्ञाकारी श्रवण जैसा ।
कामचोर को मिल जाए बहाना
दंगाईयों के हाथ खून बहाना ।
एक दूझे को ताके हर कोई
करे बुरा दुष्ट चाहे भरता कोई।
मानवता को चकमा देती दानवता
निडरता को डरा रही कायरता ।
मौका देखे जनता का अधिकारी
शेर निकलता सावधान शिकारी !
साकार को दबा देता निराकार
प्रशासन से दबते नेता सरकार ।
हर जगह मौके की तलाश हैं
आसमानी कदम तले लाश हैं।
व्यापारी भी ठगने को आतुर हैं
जनता भी भोली नहीं चातुर हैं।
वतन पर गिद्ध नजर दुश्मन की
आँख तीसरी युवा अनुशासन की।
गद्धारों को अधिक मौका न मीले
देशभक्ति का जज्बा धोखा न मीले।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल
अवसर होता अवसर
रह जाती थोडी कसर
मौके पर देखे मौका
धोखे को देते धोखा
नेता देखे वोट खातिर
धन पूंजी चोर शातिर
चूहे, बिल्ली, कुत्ते सब
निडर बेधडक होगें कब?
किसान आषाढी बावणियाँ
पत्नी भी सम्भाले चाबियाँ ।
मिजाजपुर्सी से माँगे पैसा
बेटा आज्ञाकारी श्रवण जैसा ।
कामचोर को मिल जाए बहाना
दंगाईयों के हाथ खून बहाना ।
एक दूझे को ताके हर कोई
करे बुरा दुष्ट चाहे भरता कोई।
मानवता को चकमा देती दानवता
निडरता को डरा रही कायरता ।
मौका देखे जनता का अधिकारी
शेर निकलता सावधान शिकारी !
साकार को दबा देता निराकार
प्रशासन से दबते नेता सरकार ।
हर जगह मौके की तलाश हैं
आसमानी कदम तले लाश हैं।
व्यापारी भी ठगने को आतुर हैं
जनता भी भोली नहीं चातुर हैं।
वतन पर गिद्ध नजर दुश्मन की
आँख तीसरी युवा अनुशासन की।
गद्धारों को अधिक मौका न मीले
देशभक्ति का जज्बा धोखा न मीले।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल
है।
यकीं नहीं मगर सच्चाई बहुत है।
लगती जरूर है फैसले में देरी।
उस के दर पर सुनवाई बहुत है।
मै तुम्हें बहुत पहले भूल जाता।
मगर तेरी याद आई बहुत है।
यूं हम इतने खासे मशहूर न थे।
हमारी दुश्मनो ने उडाई बहुत है।
मै मौके पर भी ईमान खो न सका।
मुझे मेहनत की कमाई बहुत है।
दिल फिर भी यकीन रखता है।
इल्म है तेरे वादे हवाई बहुत है।
चाहो तो अब भी नहा के देख लो।
दिले दरिया की गहराई बहुत है।
तुम फिर सलामत किस तरह बचे।
जो पकड़े गये हुई पिटाई बहुत है।
मै तो लंगोटी ही बचा पाया विपिन।
कहते हैं कि इश्क में कमाई बहुत है।
विपिन सोहल
लगती जरूर है फैसले में देरी।
उस के दर पर सुनवाई बहुत है।
मै तुम्हें बहुत पहले भूल जाता।
मगर तेरी याद आई बहुत है।
यूं हम इतने खासे मशहूर न थे।
हमारी दुश्मनो ने उडाई बहुत है।
मै मौके पर भी ईमान खो न सका।
मुझे मेहनत की कमाई बहुत है।
दिल फिर भी यकीन रखता है।
इल्म है तेरे वादे हवाई बहुत है।
चाहो तो अब भी नहा के देख लो।
दिले दरिया की गहराई बहुत है।
तुम फिर सलामत किस तरह बचे।
जो पकड़े गये हुई पिटाई बहुत है।
मै तो लंगोटी ही बचा पाया विपिन।
कहते हैं कि इश्क में कमाई बहुत है।
विपिन सोहल
शीर्षक-अवसर , मौका
विधा-हाइकु
1.
बड़ी मूर्खता
अवसर गवांना
व्यर्थ बैठना
2.
अच्छी लगती
विवाह के मौके पे
मीठी गालियाँ
3.
आता जरूर
जीत का अवसर
ले के खुशियाँ
4.
देख के मौका
चोर और लुटेरे
डालते डाका
5.
दुल्हन मिली
सफलता पाकर
खुशी का मौका
6.
शिक्षा का मौका
नहीं देता ये धोखा
बड़ा अनोखा
7.
जीवन मौका
दिया भगवान ने
हर जीव को
8.
किसको मिला
अवसर जीने का
संघर्ष बिना
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विधा-हाइकु
1.
बड़ी मूर्खता
अवसर गवांना
व्यर्थ बैठना
2.
अच्छी लगती
विवाह के मौके पे
मीठी गालियाँ
3.
आता जरूर
जीत का अवसर
ले के खुशियाँ
4.
देख के मौका
चोर और लुटेरे
डालते डाका
5.
दुल्हन मिली
सफलता पाकर
खुशी का मौका
6.
शिक्षा का मौका
नहीं देता ये धोखा
बड़ा अनोखा
7.
जीवन मौका
दिया भगवान ने
हर जीव को
8.
किसको मिला
अवसर जीने का
संघर्ष बिना
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विषय - मौका/अवसर
(1)
है
स्तुत्य
स्वर्णिम
अवसर
परहिताय
सेवा-कृशकाय
मनुज समुदाय
(2)
हां
मौका
सौभाग्य
है दुर्लभ
मधु- मिलन
रम्य पर्यटन
निरोगी तन-मन
_____
#स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
(1)
है
स्तुत्य
स्वर्णिम
अवसर
परहिताय
सेवा-कृशकाय
मनुज समुदाय
(2)
हां
मौका
सौभाग्य
है दुर्लभ
मधु- मिलन
रम्य पर्यटन
निरोगी तन-मन
_____
#स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
मौका/अवसर
जाग जा ए नादान,
ये वक्त फिर ना आएगा,
मुट्ठी की मिट्टी है ये मौका,
हाथ से फिसल जाएगा,
मिलेंगे ना मौके बार-बार,
दिखला कुछ ऐसा कमाल,
झूठ जैसे दानव की खातिर,
सच का चाबूक संभाल,
भ्रष्टाचार के काँटों को,
समाज से निकालना होगा,
मौके की छत्र-छाया में,
सच्चाई को पालना होगा,
प्रलय की घोर घटाओं में,
बन सितारा चमकना होगा,
कदमों के नीच चाहे हों अंगारे,
विश्वास को अपने जीना होगा।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/3/19
वीरवार
जाग जा ए नादान,
ये वक्त फिर ना आएगा,
मुट्ठी की मिट्टी है ये मौका,
हाथ से फिसल जाएगा,
मिलेंगे ना मौके बार-बार,
दिखला कुछ ऐसा कमाल,
झूठ जैसे दानव की खातिर,
सच का चाबूक संभाल,
भ्रष्टाचार के काँटों को,
समाज से निकालना होगा,
मौके की छत्र-छाया में,
सच्चाई को पालना होगा,
प्रलय की घोर घटाओं में,
बन सितारा चमकना होगा,
कदमों के नीच चाहे हों अंगारे,
विश्वास को अपने जीना होगा।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/3/19
वीरवार
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