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ब्लॉग संख्या :-318
तंद्रा की नगरी
खो ना जाये प्रभात भारत के सूर्य उदित हो
मंदार मन मुदित हो ।
स्वार्थ की नींद बड़ी गहरी
जागो वतन के प्रहरी ।
ना आना लपेटे में
कपटी नेताओं के झमेले में ।
देश रो रहा खो कर सपूत
अकेले में ।
कपूतों की टोली
खेल रही खूनी होली ।
क्या झकझोरती नहीं आत्मा ?
देशद्रोह का करो खात्मा ।
भंग हुई तंद्रा
टूटी दिवास्वप्नों की कंद्रा ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय - नींद
निंदिया सजे
तन मन प्रफुल्ल
थकान मिटे
मन प्रसन्न
भरपूर निंदिया
बलिष्ट तन
समग्र नींद
परम आवश्यक
तन सौष्ठव
नशा सेवन
निष्क्रिय तन मन
गहरी नींद
बाधित निद्रा
संवेगी गतिविधि
पुनरावृति
सम्पूर्ण निद्रा
भरपूर सेहत
तन आराम
चिर निंदिया
पंच तत्व विलीन
अंतिम सत्य
सरिता गर्ग
स्व रचित
निंदिया सजे
तन मन प्रफुल्ल
थकान मिटे
मन प्रसन्न
भरपूर निंदिया
बलिष्ट तन
समग्र नींद
परम आवश्यक
तन सौष्ठव
नशा सेवन
निष्क्रिय तन मन
गहरी नींद
बाधित निद्रा
संवेगी गतिविधि
पुनरावृति
सम्पूर्ण निद्रा
भरपूर सेहत
तन आराम
चिर निंदिया
पंच तत्व विलीन
अंतिम सत्य
सरिता गर्ग
स्व रचित
🍁🌿नींद🌿🍁
नींद मे भी ख्वाब बनके छाए होख्वाब बन आँखों में तुम समाए हो
किताब बन गया इश्क पढ लेना
हर हर्फ की दासता मे तुम समाए हो
नींद जब आए तो उसे आने देना
जगी आँखों में अक्स बन समाए हो
होगा आँखों पर पहरा बंद पलकों का
बडी फुरसत से आँखों मै तुम समाए हो
चाँद भी उतरे गा जमीन पर साथ चाँदनी के
ऐसा आशियाना दिल-ए-जमीन पर बनाए हो
रात ने लगाएं पैबंद बना काफिले खुशियों के
दुनिया से छुपाकर घरोंदा दिल मे बनाए हो
🌷स्वरचित🌷
नीलम शर्मा,#नीलू
छुप जा चाँद
************
चल छुप जा अब चाँद गगन में,
नींद की बेला आयी रे,
सपनो में पी को देखूंगी,
हृदय ने बात बढ़ाई रे,
कितने बरस तक इन नयनन में,
नींद नही कोई आयी रे,
रिमझिम-रिमझिम- बरस-बरस कर,
कितनी रात बिताई रे,
आज जो देखी छवि बाँके पी की,
तो अँखियाँ अलसायी रे,
सपनो में पी को देखूंगी,
हृदय ने बात बढ़ाई रे,
मोरी सखी सुन लाल परी तू
बस इतना कर जाना रे,
सरल-सजीले मधुर-स्वपन में,
साजन को ले आना रे,
कितना मधुर पल होगा फिर,
जब बांह मेरी वो धर लेंगे,
छुई-मुई सी मैं सिमटुंगी,
वो आलिंगन में भर लेंगे,
एक अभिनय की छूट पडूँ हाय,
पर मन चाहे की छूटूँ ना,
मन चाहे पी लुँ इस रस को,
हाय शर्म से घूंटूँ ना,
तारागंण देख हो पुलकित,
मन्द बहे पुरवाई रे,
क्षीण हुई जग की स्मृति,
ऋतु मधुर मिलन की आयी रे,
सपनो में पी को देखूंगी,
हृदय ने बात बढ़ाई रे,
हाय प्रेम में गति क्या मेरी,
सर्दी में भी ताप लगे,
धूप में थर-थर देंह है काँपे,
वर्षा में तन आग जले,
जब देखूँ तो मौन रहूँ मैं,
बिन देखे सौ बात करूँ,
प्रेम-विरह की पीड़ा में पड़,
हृदय पर आघात सहुँ,
जग कहता की प्रेम का पथ तो,
होता है दुखदाई रे,
राधा हो या फिर मीरा हो,
सबने पीर उठाई रे,
सपनो में पी को देखूंगी,
हृदय ने बात बढ़ाई रे,
.....स्वरचित...राकेश पांडेय,
फूलों ने नींद गंवायी शूलों के करीब में ।।
नींद तो है बचपन में माँ की गोद
उसके हाथ की थाप लोरी गीत में ।।
जीभ भी शायद दुखी है यह रोये है
रहना होता उसको दांतों के बीच में ।।
मौसम भी रूलाता है किसान को
पानी फेरे उसकी सारी तरकीब में ।।
गलत काम करके नींद जाये जाये
चैन की नींद 'शिवम' सच की प्रीत में ।।
इश्क वालों की नींद का हाल बुरा
आधी रात कटती उनकी संगीत में ।।
बाकी रात में स्वप्न या जागरण
यही देखा पाया नींद की रीत में ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जो नर सोता वह खोता है
जो उठ गया भाग्य उठ गया
कर्महीन जीवन भर रोता है
नींद हमें विश्राम दिलाती
श्रम थकावट सदा मिटाती
दिवास्वप्न नर देखे मिथ्या
उनकी चाहत धूल मिलाती
माया ममता जाल नींद है
मकड़ जाल में घुसते सब
झूठे सपने सदा देखते नर
सबका मालिक एक है रब
सपना होता एक छलावा
सपने में हम क्या न पाते
नींद टूटती सपना गायब
झूठे गीत खुशी हम गाते
मरु मरीचिका जीवन नींद है
भौतिक साधन में सब उलझे
धर्म सत्य जीवन जो पकड़े
वे उलझे नहीं वे जग सुलझे
जन्म मृत्यु मध्य नींद है
रंगबिरंगे अद्भुत सपने
प्रिय परिवार और हितेषी
हँसने वाले न नर अपने
नींद छलावा नींद दिखावा
जगकर भी जो सोते रहते
कर्महीन जीवन नित खोते
कर्मवीर जग जीवन हँसते।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नींद आती नही है मुझे रात भर,
क्या तेरे साथ भी ऐसा होता है क्या।
आँखो मे तेरी तस्वीर हर पल मेरे,
तेरे सपनो मे मै भी रहता हूँ क्या ।
🍁
पूछना है यही तुम बता दो मुझे,
मन की बेचैनी शायद तो कम हो मेरी।
प्यार जिन्दा है शायद अभी तक मेरा,
तुम कभी थी मेरी या अभी है मेरी ।
🍁
बात वर्षो पुरानी तुम्हारी तुम्हारी मेरी,
वो जवानी तुम्हारी रही ना मेरी।
अब मिलो हो मोहब्बत के उस मोड पर।
बाल है खिजाबी कुछ तेरी कुछ मेरी।
🍁
यादें जाती नही नीद आती नही।
यू पुरानी मोहब्बत भूलाती है।
शेर की कल्पना मे हकीकत नही।
सच कही दिल से तुम ये हकीकत नही।
🍁
स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
दिन पुराने
वो नींद के तराने
भूलते नहीं
बचपन की यादें
परियों की कहानी |
नींद सुहानी
फरार आजकल
नया जमाना
अनवरत खोज
नयनों से है दूर |
पूछते बैद्य
लुटाते दौलत को
रूठी है नींद
श्रम से अनजान
तनाव पहचान |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
*****
उठो, उड़ो चिड़ियों के संग,
भर आँखों में इन्द्रधनुषी रगं।
जगो नींद से लो अंगड़ाई,
भोर नई संदेशा लाई।
आँखें तेरी सपने तेरे,
राहें तेरी मंजिल तेरे।
आँधी कभी न तुझे डराए,
हार कभी न पथ में आए।
रहो हमेशा अडिग - अविचल,
अपने पथ पर अटल - अचल।
हो तेरा हर मार्ग प्रशस्त,
न हो तेरे सपनें अस्त।
मन में जीत की आस हो,
तुम मंजिल के पास हो।
डॉ उषा किरण
(1)मिले है नैन
नींद में भी बैचैन
ख्वाबों की रैन
(2)ख्वाब दुल्हन
आंखो की बनी डोली
नींद कहार
(3)चिंता का घर
प्रतिबंधित नींद
रहती यहाँ
(4)गुम हो गई
लगा तुमसे दिल
मेरी तो नींद
(5)महकी निशा
रातरानी जो खिली
नींद भी उड़ी
(6)नैनों की झील
सपनों के कमल
नींद में खिले
(7)ठंड की रात
घर का माल साफ
नींद में सभी
(8)चैन की नींद
सोता सम्पूर्ण देश
फौज सतर्क
(9)है मंहगाई
चीरनिंद्रा में सोया
आज का तंत्र
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
क्यो इतना दुलराते हो,
आंखों से नींद उड़ाते हो,
सपनों में आकर जगाते हो,
बांहों के झूलते हो,
क्यो इतना दुलाराते हो।।१
सर्द मौसम में तड़पाते हो,
रातों को हमें जगाते हो,
कपड़े बदल रहा है मौसम,
प्रियतम प्राण हंसाते हो,
क्यो इतना दुलराते हो।।२।।
मिलन के सपने सजने दो,
मन में मिस्री घुलने दो,
सब दिन पीड़ा में प्रीत पली,
प्राण कुमुद को खिलने दो,
क्यो इतना दुलराते हो।।३।।
जगत के सारे झंझट छोड़ो,
पढ़ लो दिल की बात,
आंखों की बातें दिल समझे,
फिर होती नहीं है बात,
क्यो इतना दुलराते हो।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,
नींद उड़ जाती है चैन खो जाता है,
सपनों में वो ही आता है ,
बस उसका ही ख्याल आता है |😴
सुबह-सुबह खूब नींद आती है,
पर मम्मी चादर खींच जाती है 😁
डाट-फटकार खूब लगाती है ,
फिर इश्क़ की कहानी अधूरी रह जाती है |😢
चैन की नींद सोना चाहते हो गर,
मन को मत दौड़ाओ इधर-उधर,
परिश्रम करते रहो दिन भर,
सुकून की नींद लो रात भर |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
लघु कविता
😴😴😴😴😴😴😴😴
निगाहों में जब से समाये हो तुम
नींद रातों को आती नहीं
ख्वाब तेरी ही देखती रही
उनींदी पलकों से
तस्वीर तेरी देखती रही
चैन की नींद लुटाती रही
देख मुझे चाँदनी भी
मुस्कुराती रही....
चाँद से शिकायत करती रही
इन बातों से तुम बेखबर हो
तुम तो नींद के आगोश में हो
भुलाकर दास्तान हमारी
सपनो की दुनिया में
खो जाते हो।
सपनों में कौन है ?
जिससे बातें करते हो
ये बातें भी नहीं बताते हो।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
आज गहरी नींद मे है,
खोले अपने काले बाल
विषाद की झुर्रियों से भरे गाल
आँखो में गम का समन्दर समेटे
आँधिया तूफान सहते सहते
ऊबड खाबड़रास्तों पर चलते,
गहरी काली रात
कई दिनों से नींद को तरसी है
आज उसे जी भर सो लेने दो
अंधेरी रात आज, गहरी नींद में है ।
सूरज जरा आहिस्ता आना
रात की नींद पूरी हो जाये
आने वाले कल के सपने देख रही वो,
तुम आ कर रात के गमों को हटाना
जीवन की कालिमा को ,लालिमा से भगाना
पीली सुनहरी चादर से श्रृंगार करना
नीले अम्बर का दर्पण बनाना
सूरज अब रात को नींद से जगाओ
उसे आने वाले कल की
सुनहरी तस्वीर दिखाओ ।
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
बचपन से वो मेरी साथी थी
लगती मुझे बहुत अच्छी थी
न उसको रूठना आता था
न मुझको रूठना आता था।
मैं उसके बिना बेचैन रहता
वह रहती बेचैन मुझ बिना
गहरा मुझसे उसका नाता था
मैं उसके बिना न रह पाता था।
जब मैं पढ़ने बैठ जाता था
वह चुपके चुपके आ जाती
खिड़की दरवाजे ताक झाक
मुझसे मिलने को वह आतुर।
वह किसी से न डरती थी
सिवाए मेरे पिता प्यारे से
देख पिता को मेरे कक्ष में
वह रफूचक्कर हो जाती थी।
पिता मेरे के जाते ही वह
आ जाती मेरे शयनकक्ष में
मुझे भी बहला लेती थी वो
तुरन्त साथ सुलाने के लिए।
शायद आप जानना चाहते हैं
वह कौन थी बता ही देता हूँ
वह और कोई नहीं थी दोस्तों
वह मेरी प्यारी प्यारी नींद थी।
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शीर्षक :- नींद
नींद मेरी...
ख्वाब तुम..
तसव्वुर मेरे...
एहसास तुम...
धड़कन मेरी...
दिल तुम..
जिंदगी मेरी....
श्वांस तुम..
कलम मेरी...
अल्फाज़ तुम...
सफर मेरा...
मंजिल तुम..
हौसला मेरा...
प्रेरणा तुम..
लफ्ज मेरे...
गज़ल तुम..
तुम ही तुम..
जिंदगी मेरी...
इबादत तेरी..
बंदगी मेरी..
हाइकु
विषय:-"नींद"
(1)
"नींद" ने बुने
सतरंगी सपने
भोर उधड़े
(2)
"नींद" असर
तन निकल मन
घूमे डगर
(3)
हाथों से छीन
बचपन की "नींद"
उम्र ले भागी
(4)
सुकूँ मिलता
नींद परोसे स्वप्न
खाकर चिंता
(5)
बैठता दिल
सरहद पे बेटा
उड़ती "नींद"
(6)
धरा शरीर
रजनी ने ओढ़ाई
चादर "नींद"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
हाइकु
1
निंदिया रानी
करे है मनमानी
बड़ी सयानी
2
निंदिया रोई
इन्सोम्निया बीमारी
रात्रि हंसती
3
नींद का तेल
स्वास्थ्य बनी है रेल
दिल इंजन
4
व्यस्त जिंदगी
नींद है उपहार
प्राणी प्रहार
5
सीमा सैनिक
निंदिया घबराये
रहे चिढ़ाए
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित
देहरादून
नींद
हरी दूब के कालीन पर
स्याह रात का चादर ताने
ऊँघते-जगते तारों से बाते
झींगुरों के रसभरे वो गाने
आया खद्योत लिए टिमटिम
भटके सपनों को दर्शाने
संचय नहीं,कोई भय नहीं
फूटे बर्तन या भाग्य पुराने
पल में,नींद से बोझिल आँखें
महज निज बाँहों के सिरहाने
कक्ष-दक्ष,मखमली सेज समक्ष
वैभव से भरे अनगिन तराने
तृप्त उदर क्षुधातुर आँखें
कोलहलमय हिय भरे वीराने
दिन,मास,बरस तड़पन में
निद्रा के नित नये बहाने
कशमकश लिए आवर्ती करवटें
नींद क्यूँ यूँ हुये बेगाने?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
बड़े बड़े ऊँचे सपनों से , सहमी सहमी रहती है |
दूर खड़ी रहती ऑंखों से , कितने इशारे करती है ,
कष्ट हो रहा दूर रहने में , सान्निध्य पाना चाहती है |
ठिठक रही वो ऑंखों से , ईष्या द्वेष से डरती है ,
बैर भाव न हो ऑंखों में , इच्छा ऐसी ही रखती है |
शांति भावना हो मन में , ये सुकून थोड़ा चाहती है ,
प्रेम रस बरसे हृदय में , यही नींद कामना करती है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
बेखौफ मस्त होकर वही नींद के आगोश में जाते हैं जिनके पास किसी की याद नहीं होती हैं .
जाने कितनी नींदें लूट ली मेरी
जो इश्क जता कर मिलने का वादा करके चली गई .
जिंदगी के सफर में नींद मेरी खो गई हैं
सोये हुये तन से मन की आँखों से जागे सी हूँ मैं .
आपकी चाहत मेरे दिल में घर गई हैं
आपका मेरे ख्वाब मेरे नींद में आना आदत सी हो गई हैं .
आपका मेरे ख्वाब में आना मेरे अरमान जगा गई हैं
मेरे दिल का सुख चैन और नींद ले गई हैं
स्वरचित:- रीता बिष्ट
रात के मेहमानों की
चमकदमक
और प्रतीक्षारत नैन
कब नींद अपने
आगोश में ले ले।
ख्याबों का क्या
आते जाते रहते है
मुसाफिरों की तरह
जिन्दगी को न जाने
किस दिशा में मोड़ दे।
हजारों जुगनुओं की
टिमटिमाहट,
मन्द मन्द लहराती हवा
लोरियाँ सुनाती है
,सुकून देती है
और नींद थपकी
देकर सुलाती है
पर आँखों में पल रहे सपने
बोझिल आँखों पर
रख देते है
चिन्ता का पहाड़
और नींद छोड़ देती है
साथ आँखों का
और फिर शुरू हो जाती है
येन केन प्रकारेण
नींद की जद्दोजहद...
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
दिन बीता रात गहराई
मजबूरी की फिर बिछी चारपाई
चिंता की ओढ़कर चादर
आँखों में नमी है छुपाई
बच्चों के मन को बहलाते
बातों के फिर बताशे बनाकर
कल खिलाएंगे दूध-मलाई
मुश्किल से रोककर रुलाई
नींद आँखो से कोसो दूर
ग़रीबी को कोसते होकर मजबूर
होंठों पर मीठे लोरी के सुर
बच्चों को बहलाकर सुलाते
हिसाब की गठरी को
खोलते बांधते कटती रातें
कभी मजदूरी तो कभी मजबूरी में
कट ही जाती गरीब की ज़िंदगी
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
आँखिन भारी हो रही , निंदवा हमहु आय
पंखा झल दो साजना ,हमका दओ सुलाय
नींदों में सजना मिले , उठ बैठी घबराय
धड़कन सखि ऐसी बढ़ी ,का तुमका बतलाय
सजना हैं परदेस मा , नींद न हमका आय
सखि उन्हें सन्देस दे , बैरन रात सताय
अंधकार से हम डरै ,निंदिया खुल खुल जाय
थोड़ी घनी अवाज भी, हमका दई डराय
दिनभर डट कर काम कर , खटिया रात बिताय
मनवा जब थक सोयगा , नींदहु बढ़िया आय
सरिता गर्ग
स्व रचित
छोड़ आया मैं
चिर-परिचित आशियाना
रह गई माँ अकेली
आँखें भर आई सोचकर
जिन हाथों में गुजरा था बचपन
मैं छोड़ आया उसे
गाँव में अकेला
नौकरी मुझे मिल गई
पर समय नहीं
माँ से दो बातें करने का
हाथ से बना खाना-खाने का
डाकिया छोड़ गया
माँ का लिखा पत्र
दिल भर आया पढकर
नींद न आई रात को
रखा फिर माँ का पत्र सिरहाने
लगा मुझे ऐसे
माँ बालों में उंगलियाँ
घूमा रही है
और समा गया
मैं नींद के आगोश में।
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,
मुझे मखमली बिछौने
नहीं चाहिए!
मैं मिट्टी के ढे़ले पर,
हाथों में किताब लिए कुर्सी ,
बस, कार और रेलगाडी़ ,
कथा पाँडाल में ,
भक्ति भजन भरे गीतों ,
दादी -नानी की कहानी में हूँ ।
मैं आत्मसुख चैन,
संतोष भरोसे में ,
किसी निर्धन की कुटिया में हूँ।
कभी बड़बड़ाती , हँसती
खर्राटे भरती , खाँसती ,
बंद तो खुली आँखो में
सिमटी गठरी से बदन में
सड़कों पर अखबारों पर
नींद की गोली से ,
मज़दूर के टूटते क्लांत तन में
आजाती हूँ ।
सब मेरी स्तुती करते हैं ।
मैं सबकी चहेती
आराध्य आरामदायनी
नींद हूँ कल की उम्मीद हूँ।
सभी की सुखकारी हूँ ,
बच्चों बुड्ढों को प्यारी हूँ ,
नयन पलक सवारी हूँ !
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा
'निश्छल',
" नींद"
विश्वास की ओढ़कर चादर,
सोए थे रिश्ते चैन की नींद,
झूठ की चिंगारी से,
रिश्ते हुए शहीद,
त्याग नींद को जगना होगा,
हटाकर बेरूखी का पर्दा,
बसा दिल में अपनों को,
करें मोहब्बत का सजदा,
मधुर शब्दों के तार से,
पिरो रिश्तों के मोती,
कर श्रंगार जीवन का,
हो प्रज्वलित नव ज्योति
द्वेष भाव मिटा हृदय से,
बढ़ा दोस्ती का हाथ,
मिटा भ्रम तू मन से,
ले विश्वास का साथ,
जाग नींद से ओ प्यारे,
हुई भोर खुशियों की,
संगीतमय हुआ जीवन,
जैसे गुंज पपीहों की,
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
नींद कहीं खोई मेरी
दिवास्वप्न देखता
मै प्रधान बन गया
समझें उत्तीर्ण हो गया।
नींद जनता की उडाऊं
पांच साल मौज कराऊं
अपने परिवार चमचों के लिए
नींद की दवाई पिलाऊं
जनता जनार्दन के लिए।
2)
नींद उडाना मेरा काम
चैन की नींद सोऊं मै।
देश के दुश्मनों को गले लगाऊं
सेना का सम्मान घटाऊं मै।
चीथड़े जिनके उडे
उनसे मुझे मतलब नहीं
विपक्ष में हूं अभी
नींद उडाना जारी है
चैन से सोऊंगा मगर
किसी को सोने नहीं दूंगा।
पांच बर्ष तक लगातार
धरने यहीं दूंगा।
ना खाऊंगा पता नहीं
पर खाने वालों की नींद उडा
सुख से रहने नहीं दूंगा।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
2भा.5/3/2019( मंगलवार)
परी लोक से लेकर नींदें , दे सपनों को जाती है ।
रंग सुनहरे भर आँखों में , इन्द्र धनुष बो जाती हैं ।।
प्रेम दीप जब जलते मन में ,नयन अश्रु बह जाते हैं ।
मुखरित बोल मौन होकर भी ,बेचैनी कह जाते हैं ।
रोती रूठी टूटी नींदें , रोक न सपने पाती हैं ।
खुले नयन बुनते सपने जब , यादें बहुत सताती हैं ।।
नींद विरह की शरशैया पर , चुपके से आ जाती है ।
बेदर्दी से मेल करा कर , धीरे से खुल जाती है ।।
ताना बाना मस्तक बुनता , स्वप्न जाल बुनती नींदें ।
भग्न हृदय के अवशेषों से , बातों को सुनती नींदें ।।
नींद क्षणिक हो या लम्बी हो , सपनों को तो बुन लेती ।
तारे गिनते रात कटे जब , सिर अपना है धुन लेती ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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