Monday, March 2

"ठोकर"02 मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-673
विषय ठोकर
विधा काव्य

02 मार्च 2020,सोमवार

ठोकर लगना स्वाभाविक है
पद पद पर संघर्ष बहुत हैं।
भौतिकवादी इस दुनियां में
स्वस्वार्थ जग अति मशहूर है।

ठोकर तो सबको लगती है
ठोकर खाकर है सम्भलना।
जिस ग़लती से गिरे हैं मित्रों
उस त्रुटि को कभी न करना।

ठोकर सदा सीख सिखाती
गिरकर उठना होता जीवन।
जीवन सत्संग अति जरूरी
खिलजाता है जीवनउपवन।

डाकू रत्ना बना वाल्मीकि
दानव से मानव कहलाया।
रामायण सद्ग्रन्थ बनाकर
मुक्ति का सन्मार्ग दिखाया।

मानव गल्ती का पुतला है
जो ठोकर से नहीं संभलता।
कर्मों का जग खेल तमाशा
अतः कुकर्मी मिले हताशा।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - ठोकर
प्रथम प्रस्तुति


ठोकर ही ठोकर थीं
मेरे दिल के वास्ते!
बन्द थीं हर गलीं और
बन्द थे हर रास्ते!

सुकून का न साया था
हर लम्हे उदास थे!
पर दिल के फैसले कुछ
बेहद ही खास थे!

अन्तर्मुखी हुआ था
असफल कई प्रयास थे!
जिन्दगी थी बेसुरी
उर के छेड़े साज थे!

चोट हो या ठोकरें
यही तो हैं तरास्ते!
जानिए 'शिवम' इन्हें
इनमें छुपे राज थे!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'

2 /3/ 2020
बिषय,, ठोकर

जिसने जिंदगी में ठोकर खाईं उसने बहुत कुछ पाया
कट्टे मीठे अनुभवों ने बहुत कुछ सिखाया है
सरस अनुभूति दिल पर छाप छोड़ देतीं हैं
कटुता जीवन की राह मोड़ देतीं हैं
सुखद पल को सृजित कर लेना है
.कठिनाइयों से सदैव सबक लेना है
जिसने ठोकर खाई उसने जीना सीख लिया
ठोकर खाकर संभल गया उसने जग को जीत लिया
ठोकर असंभव को संभव बनाती है
ठोकर हमें दुनियादारी सिखलाती है
स्वरचित, सुषमा ,ब्यौहार

विषय : ठोकर
विषय : हाईकू

तिथि : 2.3.2020

बुद्धि गंवाई
अहम भरपाई
ठोकर खाई।

ईश्वर लाठी
है ठोकर लगाती
राह दिखाती।

होती ठोकर
नवीन पहचान
सदैव ध्यान।

कैसा गुमान
ठोकर अभिमान
टूटता मान।

-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित

2/3/2020
विषय-ठोकर


मौत की शै पे हर एक फ़ना होता है,
जज़्बातों की 'ठोकर' में
क्यों फिर रुसवा होता हैं।
इंसा है नसीब का पायेंगे ही,
बस इस बात से क्यों अंजान होता है।
ख़्वाब देखो कुछ बुरा नही,
पर हर ख़्वाब पुरा हो यही मत देखो।
सब की क़िस्मत एक नही होती,
एक ही गुलिस्ता के हर फूल का
अंज़ाम अलग होता है।
एक कली सेहरे में गूंथती
एक मय्यत पर सजती है।
एक फूल चढता श्रद्धा से
दूजा बाज़ार में रौंदा जाता है।
एक बने गमले की शोभा
एक कचरे में फैंका जाता है।
कुछ तो कुछ भी नही सहते
पर डाली पर मुरझा जाते है।
बस जीने का एक बहाना
ढूंढलो कोई अच्छा सा।
एक ढूंढोगे लाख मिलेगे
सप्त सुर है सरगम में ।

स्वरचित

...........कुसुम कोठारी

दिनांक-2-3-2020
विषय-ठोकर

विधा-छन्दमुक्त काव्य

खुद को ज्ञानी और
सयाना समझने वाले
अक्सर मुंह की खाते हैं..!

ऐसे लोग ही तो
जग के सामने
उपहास के पात्र बन जाते हैं..!

हमारी शराफत और
सच्चाई का
गलत फायदा उठाते हैं
फिर अलग थलग पड़ जाते हैं..!

अच्छी सीख को
अनसुना करते हैं
फिर दर दर की ठोकरें खाते हैं..!

फिर भी अपनी
गलती नही मानते
अमन शांति की दुहाई
दिए चले जाते हैं..!

ऐसी बचकाना
हरकतें करके
आखिर किसको
ये बहलाते हैं.?

सजा स्वरूप वे
पल पल ठोकर खाते हैं
फिर भी
स्वयं को संभाल न पाते हैं।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

दिनांक-02/03/2020
विषय-ठोकर....


ठोकर खाकर जो पाव अनल पर रखता है।
शैशव का स्वप्नन ,सच यथार्थ होता है।।

इतिहास उन्हीं का होता है
जो पांव अंबर पर रखता है
तप कर अगणित चोटें सहकर
तब स्वर्ण खरा उतरता है

बीच भंवर में पतवार को थामो
लहरों में जरा उतरकर
चलो निरंतर तुम मत बैठो
हाथों को यूं मल मलकर।।

गगन चूमने के खातिर
निज पंखों का विस्तार करो
लक्ष्य को भेदने वाले
कंटक संघर्षों का पथ स्वीकार करो

जुल्फों को ढक लेते हैं......
अंतर्मन की साया को
मन की मादकता को डस लेते हैं
जीवन पथ की काया को
जीवन की इस आपाधापी को......
तुम स्वीकार करो
आर करो या पार करो
हर कंटक पथ स्वीकार करो
कष्टों के आलिंगन को
अंगीकार करो या तो तेज धार करो......

स्वरचित.....

सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

2/3/20

आ जाती परिस्थितिया
लेने को परीक्षायें
देकर ठोकरे
छ। जाती हताशाये
मन मनमस्तिष्क पर
कभी अंधेरा
कभी उजाला
कभी जीत कभी हार
ढेरो सीखो का
होता आदान प्रदान
जिंदगी की समीक्षाओं
बेहतरीन उतार चढ़ाव
बढ़ता यकीन
खुद के खुदा पर
या मिटता भरोसा
खुदा के यकीन पर
सफलता असफलता
का लाजवाब प्रतिफल
स्वरचित
मीना तिवारी

विषय- ठोकर
ठोकर लगती जब अपनों से

सम्भलना हमको आ जाता है।
ख़ून का घुंट को पी-पीकर भी
जीये जाना हमको आ जाता है।।

जख्मों पर नमक छिड़क के वे
हाल कैसा है? हमसे पूछते हैं।
बातों-बातों में आकर अक्सर
ज़िदादिली का राज़ पूछते हैं।
हंसी तले ग़म छुपाना आ जाता है।।

कैसे खोले हम रूबरू उनके,
इस दर्द- ए-दिल की किताब।
मेरे आँसुओं को देखकर ही,
जिन्हें खुशी मिलती बेहिसाब।
ऐसों से दामन बचाना आ जाता है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

तिथि -2/3/2020/सोमवार
तिथि-*ठोकर*

विधा-गीत(30)

आग लगाऐं आग लगाना,इनको तुम सिखलादो जी।
भीड़ बढ़ाते भीड़ बढ़ाना,इनको अब बतलादो जी।
पाले कहीं जो गलतफहमी उनको सच सच समझाना,
भीड़ न माने साथी कोई,वलवा क्या दिखलादो जी।
आग लगाऐं------------

ठोकर खाकर अगर न समझें, ऐसे कुछ तो देखो जी।
पागल हुऐ यहां कुछ अपने,ढूंढो समझो इनको जी।
प्रेमभाव नहीं समझते जो, तुम इनको जूते मारो,
भाषा जैसी समझें जानें,वैसे ही पढवाओ जी।
आग लगाऐं------

भूत लात के बात न मानें, जैसे समझें समझाना।
कहीं चाहते ठोकर मारें,बस ठोकर से समझाना।
गोली चाहें गोली मारो, अपनी बोली समझाओ,
उठो उठो जी समय नहीं है,अब तो झट उठजाओ जी।
आग लगाऐं--------

लोकतंत्र अच्छा नहीं लगता, भीडतंत्र ही भाता है।
ठोकर मारें प्रजातंत्र को,सुख मंत्र नहीं भाता है।
कटुता की बोली ही बोलें,आग लगाते भारत में,
इनको भी ऐसे सुलगाओ, कुछ तो राह सुझाओं जी।

आग लगाऐं आग लगाना,इनको तुम सिखलादो जी।
भीड़ बढ़ाऐं भीड़ बढ़ाना,इनको अब बतलादो जी।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
दिनांक 02-03-2020

विषय-ठोकर

ठोकर ने हर कदम मोड़ पर ,
कई सबक जीवन में सिखाए।
गिरकर उठना ही जिंदगी है,
ठोकर ने नव पंथ दिखाए ।

जाने अनजाने मिली ठोकरें,
जीवन मार्ग प्रशस्त हुआ।
सबक सिखाए ठोकरों ने ही,
हौंसला नहीं कभी ध्वस्त हुआ।

नासमझी यदि तनिक भी है,
राह में ठोकर मिलती है।
हर ठोकर कुछ शिक्षा देती,
कोशिश से राह संभलती है।

गलती का पुतला है इंसान ,
लापरवाही बहुत है करता।
धूर्तता वंचना भी कर जाता,
बिन ठोकर के नहीं संभलता।

पग पग पर जीवन के अक्सर,
कमी दोष हम नहीं छोड़ पाते।
अकर्मण्यता बिन श्रमसाधन,
असफलता भी हम पा जाते ।

स्वयं को श्रेष्ठ मानें यदि हम,
अतिआत्मविश्वासी कहलाते ।
अगणित ठोकर खाते हैं फिर,
कंटक पथ पर बढ़ते जाते ।

ठोकरें अक्सर सीख सिखाती,
प्रगति मार्ग पर फिर बढ़ जाते।
अभिमान धराशायी हो जाता,
सफलता शिखर पर चढ़ पाते।

कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली

विषय- ठोकर
विधा-स्वतंत्र

दिनांक-02/03/2020

सदियों से खा रहा ठोकर
मगर इंसान समझता नहीं
बार-बार गिरता दोज़ख़ में
मगर इंसान संभलता नहीं

कभी इश्क़ में पागल होता
कभी जुनून- ए- धर्म में गाफिल
कभी हवस में हो गिरफ्त
वहशीपन पर है उतरता

हर सीमा,हर हद से गुजरता
बार-बार रिश्तों को तार-तार करना
इंसानियत से गिरकर
भाई की पीठ में खंजर घोंपता है

ठोकर खा कर भी इंसान......

डा.नीलम
02-03-2020
**ठोकर**

ठोकर, सरपट गति पर लगाम।
ठोकर, सजग रहने का पैगाम ।

मदहोश मगन जो फिरता है।
पथ में वो ही तो गिरता है ।
यह तो मुफ्त में ही बदनाम।

मानुष को इंसान बनाती है।
सँभल के चलना सिखाती है।
दे सफलता का नव आयाम।

उठते हैं, गिरकर सीखते हैं।
पथपर वो ही तो दिखते हैं।
पलभर का उत्प्रेरक विराम।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

विषय-ठोकर
दिनांक २-३-२०२०
ईमानदारी की राह चलते,ये कहां पहुंच गई हूँ।
बेईमान शहर,हर कदम बस ठोकर खा रही हूँ।

हर कदम ठोकर खाकर भी, मैं खामोश रही हूँ।
बस कुछ नहीं,अपनी बारी इंतजार कर रही हूँ।

हर ठोकर से सबक ले,सदा आगे बढ़ रही मैं,
तभी तो आजकल, मंजिल करीब जा रही हूँ।

पत्थर दिल लोगों से,ज्यादा उम्मीद नहीं मुझे,
अपने ही दम, देखो आगे बढ़ती जा रही हूँ।

मतलबी लोगों से,अब थोड़ी दूरी बना रही हूँ।
सत्य राह भीड़ नहीं,तभी अकेली चल रही हूँ।

गीदडो़ का झुंड पसंद नहीं,शेर बन जी रही हूँ।
ठोकर डर,हर कदम यूं फूंक-फूंक रख रही हूँ।

कुछ नहीं समझा,बहु नसीहत दी जिसने मुझे।
आज भरी महफिल,अपनी कीमत बता रही हूँ।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय ठोकर
विधा कविता

दिनाँक 2.3.2020
दिन सोमवार

ठोकर
💘💘💘💘

ठोकरेंं खाई बहुत ,और युगों तक दास रहे
जिनमें राष्ट्रभक्ति रही, वो सदा उदास रहे
पहचान न पाये कभी, हमारी आस्तीन में साँप रहे
देर से समझ पाये कि वे, हमारी मौत से दूरी नाप रहे।

अब तो देश का,सीना ही बस दहल गया
कहीं पर कुछ लुट गया,और कहीं जल गया
फिर षणयन्त्र हुआ सफल,और कोई छल गया
सूर्य देखता रहा,और विवश हो ढल गया।

इतनी ठोकरों पर न सम्भले,तो हमें धिक्कार है
फिर तो रोने चिल्लाने का,नहीं कोई हमें अधिकार है
हर दिन ही किसी न किसी,रुप में पड़ती मार है
हम इतने विभक्त हैं कि,बिल्कुल न हम में प्यार है।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
तिथि-02 मार्च 2020
दिन - सोमवार

विषय - "ठोकर"
विधा- हाइकु

रंग गम के
कई होते जहाँ में
नज़र आती

जब अपनों
की नज़र बिगड़
जाती पल में

सबने आस
लगाई थी उससे
एक आवाज़

मानवता की
पुकार न समझ
पाया विचार

ठोकर लगा
गिरा औंधे मुँह वो
उठ न पाया

आग की ढेर
में सुलगती रही
वोह चिंगारी

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद-झारखंड

विषय - ठोकर
द्वितीय प्रस्तुति


खाकर ठोकर ज़माने की
देखें राह मयखाने की!!

जैसे कोई दवा बोतल
ले लो आने दो आने की!!

कैसे कोई बताए उन्हें
कोशिश भी की समझाने की!!

आदत तब तक बन गयी थी
नित पौवा उन्हें लगाने की!!

कुछ वो हैं जो करवें नही
जिदें कभी वहाँ जाने की!!

बल्कि इससे इतर होकर के
जुगत की मंजिल पाने की!!

ठोकर एक परीक्षा भी है
हो इच्छा कर दिखाने की!!

ठोकर को जानो 'शिवम' ये
कोशिश करे आजमाने की!!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 02/03/2020
आजका विषयः- ठोकर

खाओगे तुम जब भी जीवन में कोई ठोकर।
उठोगे हर ठोकर से नया ही अनुभव पाकर।।

सिखायेगी सबक आपको प्रत्येक नयी ठोकर।
करोगे सामना उसका तुम दोबारा खड़े होकर।।

चलोगे यदि आप आँखे भली भाँति खोलकर।
खायेंगे नहीं फिऱ आप भी आसानी से ठोकर।।

ऐसा नहीं कोई इंसा खायी नहीं जिसने ठोकर।
ठोकर से ही निकलता मानव अधिक निखरकर।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

तिथि 02 मार्च 2020
दिन सोमवार

विषय ठोकर

ऊंच नीच का फर्क समझाती है ठोकर
जीवन मे पाठ नये नित पढाती है ठोकर

गुमान कर क्या चलना अपने अहं पर
पह पग पर अहसास दिलाती है ठोकर

रास्ते अनजान हो गर भागना नही कभी
अच्छे भलो को यहां पे गिराती है ठोकर

किसी को जीना सीखा देती पल भर मे
लापरवाह को जिम्मेदार बनाती है ठोकर

संभल कर चलना ही समझदारी है दोस्त
गिर कर उठना फिर सीखाती है ठोकर

सोच पर निर्भर सब, सोचता क्या इंसान
सोच सही हो तो विजेता बनाती है ठोकर

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

शीर्षक - ठोकर
दिनांक- 02/03 /2020


लगी ठोकर संभल जाओ
अभी तो दूर जाना है ।
इतनी आसान नहीं राहें,
गली के पार जाना है।

कठिन हो मार्ग भी जितने,
बिछे हो कांटे भी कितने।
हमें तो पतवार लेकर के ,
किनारे तक तो जाना है।।

गिर -गिर करके उठना है,
उठ -उठ कर के संभालना है।
इस जगत में हमें कुछ ,
नया इतिहास रचना है।।

लगी हर एक- एक ठोकर ,
सच से रूबरू कराती है।
कर्म के पथ पर भटके हुए को,
कर्म की याद दिलाती है।।

स्वरचित , मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
दिनांक २/३/२०२०
शीर्षक-"ठोकर"


राह में पड़ा था जो पत्थर
उसे ठोकते चले मंजिल की ओर
देखा जो मुझे वह मुड़ कर पत्थर
कहा मुझसे एक ही बात
"न जाने कितनों को मैंने उनकी
मंजिल पहुंचाई।
मुझे वे देकर ठोकर पहुंच जाते
अपनी मंजिल के ऊपर,
और छोड़ जाते मुझे राह में।
मुझे तो है ठोकर खाने की आदत
पर मनुज तुम संभल जाओ
गर कोई दे तुम्हें ठोकर
स्वाभिमान पर दे कोई ठेस
भूलकर न जाना कभी उस गली।
संभल कर गर रखोगे कदम
तो मंजिल नही होगी दूर
आसान होंगे कदम जरूर।
मैं तो पत्थर हूं
पर तुम नही हो पत्थर दिल
उठाने को कोई उचित कदम
राह में पड़े पत्थर को करें खत्म
ठोकर खाने से तुम बच जाओगे
और हम बदनामी से बच जायेंगे।
दिनांक, २,३,२०२०
दिन, सोमवार

विषय, ठोकर

ठोकर खाकर जो उठा,हुई उसी की जीत।
हिम्मत जिसने हार दी ,कौन यहाँ फिर मीत।।

जीवन की यह रीत है,टाँग खीचते लोग।
दुख देकर सुख पा रहे,लगा मानसिक रोग।।

समझदार हैं जो यहाँ,लेता रहता सीख ।
पिरे कोल्हू में तभी ,मीठी लगती ईख।।

कदम कदम पर ठोकरें,राहें लेतीं रोक।
चलते रहते वीर हैं,करते नहीं हैं शोक।।

ठोकर में नफरत रखें,हृदय बसायें नेह ।
बैरी को ठोकर मिले,तभी काम की देह।।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

विषय - ठोकर

बिन शिक्षा संसार में, मिले नहीं सम्मान।
ठोकर खा कर ही सदा, सीखें हर इंसान।।

भूखे ,बेघर दीन को, ठोकर मारें लोग।
ऊँचे महलों में रहे, करते छप्पन भोग।।

ठोकर में जिसका सदा ,रहता है सम्मान।
ऐसे दुर्बल दीन को,आप दीजिए
मान।।

ठोकर जब-जब भी लगे,उठता हर इंसान।
ठोकर खाकर सीखता,बनता तभी महान।।

कदम -कदम पर ठोकरें ,खाता है इंसान।
तभी सफलता के सदा, चढ़ पाता सोपान।।

सरिता गर्ग
विषय - ठोकर
02/03/20

सोमवार
कविता

ठोकर मिली जमाने की तब मैंने सही राह पाई,
सुख की किरणें फूट पड़ीं और दुख की मिटी स्याह काई।

बोध हुआ मुझको रिश्तों में अपने और पराए का,
उचित लक्ष्य पाने की मन में अद्भुत सुखद चाह आई।

मन के सब भ्रम दूर हुए,मग निज भविष्य का स्वच्छ बना,
नवल सुनहरे कल का जैसे पनप उठा हो वृक्ष घना।

लिया तभी संकल्प कि पथ में कदम न अब रुक पाएँगे,
दृढ़ प्रतिज्ञ बनकर जीवन के सपने सत्य बनाएँगे।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
अभी न कुछ हुआ है राही!
अभी तो तुमने खाई ठोकर
अभी तो तुमको चलना है
विघ्न राहों से हो-होकर!

क्या हार मान लोगे अबसे?
नहीं,तो क्यों मुँह उतर गया है?
एक छोटी सी आंधी से प्यारे!
क्या कोई वृक्ष झर गया है?

अभी तो तुमको डटकर के
हिम्मत,साहस भर-भर के।
बाधाओं का संहार करना हैं
जीवन का उद्धार करना है।।

फिर लाओ उमंग जीवन में।
निज गौरव का आह्वान करो
आगे ही आगे बढ़ने को
नदियों-सा सन्धान करो।।

- परमार प्रकाश
#स्वरचित
विषय- ठोकर
विधा- हाईकु

तिथि-2/3/20

धोखा ठोकर
दिल लहुलुहान
रिश्तों में गाँठ

झूठ का साथ
संभलता इंसान
खाके ठोकर

दहेज-प्रथा
ठोकर में पगड़ी
बाबुल रोए
***
स्वरचित- रेखा रविदत्त
दिनाँक-02/03/2020
विषय:-"ठोकर"
िधा-हाइकु(5/7/5)
(1)
टूटे भरम
वक़्त की ठोकर से
झुके अहम
(2)
हार न मान
ठोकरों ने दिलाया
जीवन ज्ञान
(3)
ठोकरें गुरु
संभलना सीखाती
दृढ़ बनाती
(4)
धैर्य परीक्षा
कोई टूटा या उठा
ठोकरें खा के
(5)
डरी अवनि
बादलों की ठोकर
गिरी बिजली

स्वरचित
ऋतुराज दवे

ठोकर

जिन्दगी में
सबक देती है
ठोकर

सड़क पर
पड़ा पत्थर
यहाँ वहाँ
लुटकता रहता है
ठोकरों से
शिकायत
करता नहीं
गुमनाम जिन्दगी
जीता है

लेते जो
सबक ठोकर से
आसान होती
जिन्दगी
उनकी आगे

जमाना देता
इन्सान को
ठोकर बहुत
और देती
पहचान
अपने पराये की

समझो मत
ठोकर को दुश्मन
लो सीख
जीवन में इससे

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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"अंदाज"05मई2020

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