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ब्लॉग संख्या :-685
!!रब का साथ!!
रोज रोज कौन चले साथ
खुद से करना सीखो बात!!
सच मानो ये ही प्रयास
रब से कहाय मुलाकात!!
कण-कण में जो है समाया
उसी की सारी कायनात!!
नर जीवन पाकर न सँभले
रब से क्या खुद से है घात!!
सहज सरल जीवन जिया कर
जाने वो सबकी औकात!!
धोखा क्या किसी को देगा
खुद को बढ़ाये मुश्किलात!!
नही फरेबियाँ रख तूँ पास
रब की तुझे मिलेगी दाद!!
'शिवम' सार्थक करले ज़ीस्त
मुश्किल से आती ये हाथ!!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 16/03/2020
रोज रोज कौन चले साथ
खुद से करना सीखो बात!!
सच मानो ये ही प्रयास
रब से कहाय मुलाकात!!
कण-कण में जो है समाया
उसी की सारी कायनात!!
नर जीवन पाकर न सँभले
रब से क्या खुद से है घात!!
सहज सरल जीवन जिया कर
जाने वो सबकी औकात!!
धोखा क्या किसी को देगा
खुद को बढ़ाये मुश्किलात!!
नही फरेबियाँ रख तूँ पास
रब की तुझे मिलेगी दाद!!
'शिवम' सार्थक करले ज़ीस्त
मुश्किल से आती ये हाथ!!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 16/03/2020
विषय मन पसंद लेखन
कोरान वायरस
विधा काव्य
16 मार्च2020,सोमवार
त्राहि त्राहि मची जगत में
जन समुदाय भयभीत है।
कालग्रास प्रतिदिन हो रहे
पीड़ित जन अपरिमित हैं।
सभी स्वस्थ सुखी रहें जग
भारत का प्रिय है सन्देशा।
स्व राष्ट्र सुरक्षित रखते हम
भेजें राहत जँहा हो अंदेशा।
एक पिता की सब सन्ताने
परमपिता सभी का एक है।
यह रोग है ,अति संक्रामित
विश्वजगत दुःखी अन्येक हैं।
स्वच्छ पर्यावरण है जरूरी
बिन स्वच्छ जीवन अधूरा।
साफ़ सफ़ाई निदान इसका
तब सपना हो जग का पूरा।
भीड़भाड से बचो सदा ही
बारम्बार निज कर धोलो।
ज्वरजुकाम खांसी हो जावे
शीघ्रशरण चिकित्सक लेलो।
विश्व शांति संदेशक भारत
विश्व कुटुंब अपना ही माने।
विश्व वाटिका सौरभ भरता
नित गावे सुख शांति तराने।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
कोरान वायरस
विधा काव्य
16 मार्च2020,सोमवार
त्राहि त्राहि मची जगत में
जन समुदाय भयभीत है।
कालग्रास प्रतिदिन हो रहे
पीड़ित जन अपरिमित हैं।
सभी स्वस्थ सुखी रहें जग
भारत का प्रिय है सन्देशा।
स्व राष्ट्र सुरक्षित रखते हम
भेजें राहत जँहा हो अंदेशा।
एक पिता की सब सन्ताने
परमपिता सभी का एक है।
यह रोग है ,अति संक्रामित
विश्वजगत दुःखी अन्येक हैं।
स्वच्छ पर्यावरण है जरूरी
बिन स्वच्छ जीवन अधूरा।
साफ़ सफ़ाई निदान इसका
तब सपना हो जग का पूरा।
भीड़भाड से बचो सदा ही
बारम्बार निज कर धोलो।
ज्वरजुकाम खांसी हो जावे
शीघ्रशरण चिकित्सक लेलो।
विश्व शांति संदेशक भारत
विश्व कुटुंब अपना ही माने।
विश्व वाटिका सौरभ भरता
नित गावे सुख शांति तराने।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
१६/०३/२०२०
स्वतंत्र विषय
"रण कौशल ऐसा दिखलाना"
अरि दल ने आँख दिखा कर के, जरा देख हमें ललकारा है,
जिसने था कुमकुम तिलक किया, उसने भी आज पुकारा है।
उठ समर भूमि में जाने को,दुश्मन को धूल चटाने को,
जो पला हमारे टुकड़ों पर,उसने ही हमें ललकारा है।
क्या देख रहा है खड़ा-खड़ा, यह मातृ भूमि है पूछ रही,
जिसने पाला था नाजों से,आगे बढ़कर है पूछ रही।
यदि कोख लजानी थी मेरी, क्यों जन्म लिया मेरे तन से।
क्यों न रह गई निपूती मैं,है बिलख -बिलख कर पूछ रही।
पूछ रही बहना की राखी,तिलक है उसका पूछ रहा,
जो जान छिड़कती है तुझ पर, है प्यार भी उसका पूछ रहा।
यदि कायरता दिखलानी थी,क्यों स्वप्न दिखाए थे मुझको?
कर विवाह अपनाया जिसे, अब सिंदूर है उसका पूछ रहा।
रण भेरी है बज उठी ,है समर भूमि यह पुकार रही,
उठ खड़ग उठा पौरुष दिखला, रण चण्डी आज पुकार रही।
तू एड़ लगा राणा के जैसे, काट शीश पर शीश आज,
रण बीच हरा शत्रु दल को, है मातृ भूमि यह पुकार रही।
लहू तेरी रगों में में राणा का, फिर आज खड़ा क्यों सोच रहा,
आगे बढ़ अपने पौरुष से, तू बाट है किसकी जोह रहा।
जो रहा सोचता ऐसे ही, अरि दल आगे बढ़ जाएगा,
तेरा प्रताप है अर्जुन सा, क्यों मन में विष है घोल रहा।
शमशीर उठा और कर ताण्डव, रण चण्डी को लहू पिलाना है,
अरि दल में हाहाकार मचे, वह रौद्र रूप दिखलाना है।
उठ दिखा चपलता रण भूमि में, भारत माँ का मान बढ़ा,
करें देव बढ़ अगवानी, रण कौशल ऐसा दिखलाना है।
(अशोक राय वत्स)©® स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश
स्वतंत्र विषय
"रण कौशल ऐसा दिखलाना"
अरि दल ने आँख दिखा कर के, जरा देख हमें ललकारा है,
जिसने था कुमकुम तिलक किया, उसने भी आज पुकारा है।
उठ समर भूमि में जाने को,दुश्मन को धूल चटाने को,
जो पला हमारे टुकड़ों पर,उसने ही हमें ललकारा है।
क्या देख रहा है खड़ा-खड़ा, यह मातृ भूमि है पूछ रही,
जिसने पाला था नाजों से,आगे बढ़कर है पूछ रही।
यदि कोख लजानी थी मेरी, क्यों जन्म लिया मेरे तन से।
क्यों न रह गई निपूती मैं,है बिलख -बिलख कर पूछ रही।
पूछ रही बहना की राखी,तिलक है उसका पूछ रहा,
जो जान छिड़कती है तुझ पर, है प्यार भी उसका पूछ रहा।
यदि कायरता दिखलानी थी,क्यों स्वप्न दिखाए थे मुझको?
कर विवाह अपनाया जिसे, अब सिंदूर है उसका पूछ रहा।
रण भेरी है बज उठी ,है समर भूमि यह पुकार रही,
उठ खड़ग उठा पौरुष दिखला, रण चण्डी आज पुकार रही।
तू एड़ लगा राणा के जैसे, काट शीश पर शीश आज,
रण बीच हरा शत्रु दल को, है मातृ भूमि यह पुकार रही।
लहू तेरी रगों में में राणा का, फिर आज खड़ा क्यों सोच रहा,
आगे बढ़ अपने पौरुष से, तू बाट है किसकी जोह रहा।
जो रहा सोचता ऐसे ही, अरि दल आगे बढ़ जाएगा,
तेरा प्रताप है अर्जुन सा, क्यों मन में विष है घोल रहा।
शमशीर उठा और कर ताण्डव, रण चण्डी को लहू पिलाना है,
अरि दल में हाहाकार मचे, वह रौद्र रूप दिखलाना है।
उठ दिखा चपलता रण भूमि में, भारत माँ का मान बढ़ा,
करें देव बढ़ अगवानी, रण कौशल ऐसा दिखलाना है।
(अशोक राय वत्स)©® स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश
16 /3 /2020
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
रोज रोज सपनों में आया न करो
मीठी मीठी बातों में लुभाया न करो
कसमें तो खाई थीं जीवन भर के लिए
बादे तोड़कर आँखें चुराया न करो
कांटों में रहकर मैंने जीना सीख लिया
तुम कलियों से मुझे बहलाया न करो
तुम्हारी मोहब्बत तुम्हें हो मुबारक
झूठी तसल्ली दिलाया न करो
मिल तुम्हें हम कभी न कभी
बार बार हमको जताया न करो
ए दिल तुम्हारा है तुम्हारा ही रहेगा
मुझे अपने दिल से हटाया न करो
तेरे दर्शन की प्यासी सुन ले कन्हैया
अपनी मोहनी सूरत छिपाया न करो
स्वरचित,, सुषमा ,ब्यौहार
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
रोज रोज सपनों में आया न करो
मीठी मीठी बातों में लुभाया न करो
कसमें तो खाई थीं जीवन भर के लिए
बादे तोड़कर आँखें चुराया न करो
कांटों में रहकर मैंने जीना सीख लिया
तुम कलियों से मुझे बहलाया न करो
तुम्हारी मोहब्बत तुम्हें हो मुबारक
झूठी तसल्ली दिलाया न करो
मिल तुम्हें हम कभी न कभी
बार बार हमको जताया न करो
ए दिल तुम्हारा है तुम्हारा ही रहेगा
मुझे अपने दिल से हटाया न करो
तेरे दर्शन की प्यासी सुन ले कन्हैया
अपनी मोहनी सूरत छिपाया न करो
स्वरचित,, सुषमा ,ब्यौहार
विबय- स्वतंत्र लेखन
16-3-2020
*****
नव सृजित रचना
गीत
===
आधार छंद = सरसी छंद ( 16 +11 अंत गुरु लघु
********************************
श्याम सलोने आय बिरज में ,नाचत है बृज मोर
देखत रूप छटा अति मोहनि, राधे मुग्ध विभोर
कुॅज गलिन मा शोर मची है,
कहाॅ नंद के लाल ?
यशुमति लाला,बृज के छैय्या!
कहाँ छुपे गोपाल?
बृज बासी सब बलि बलि जाएँ, मोह लियो चितचोर!
श्याम सोने आए बिरज में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ग्वाल बाल सब देखन दौरे,
करैं गुवालिन टेर !
आय मिलौ मन मीत हमारे,
अब ना करौं अबेर?
मुरली अधर धरे मनमोहन,मोर पँखा सिर मौर!
श्याम सलोने आए बिरज में,,,,,,,,,,,,,,,,,
यमुना तट पे बेणु बजावत,
मधु सुर बड़ी रसाल!
सुनि,दौरे तँह ग्वाल बाल सब,
दर्शन दियो गुपाल!
प्रेम-पगी मन-वीणा झंकृत ,,आए नंद किशोर!
श्याम सलोने आए बिरज में,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कोटिक काम मय॔कहि लाजत,
पीत पिताम्बर धार!
श्याम वर्ण मणिमय छवि,मोहत
नैना है,,,, रतनार !
मोहन तीन लोक भुवनेश्वर ,शरणागत कर जोर !
श्याम सलोने आए बिरज में,नाचत हैं बृज मोर !
*********************************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
16-3-2020
*****
नव सृजित रचना
गीत
===
आधार छंद = सरसी छंद ( 16 +11 अंत गुरु लघु
********************************
श्याम सलोने आय बिरज में ,नाचत है बृज मोर
देखत रूप छटा अति मोहनि, राधे मुग्ध विभोर
कुॅज गलिन मा शोर मची है,
कहाॅ नंद के लाल ?
यशुमति लाला,बृज के छैय्या!
कहाँ छुपे गोपाल?
बृज बासी सब बलि बलि जाएँ, मोह लियो चितचोर!
श्याम सोने आए बिरज में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ग्वाल बाल सब देखन दौरे,
करैं गुवालिन टेर !
आय मिलौ मन मीत हमारे,
अब ना करौं अबेर?
मुरली अधर धरे मनमोहन,मोर पँखा सिर मौर!
श्याम सलोने आए बिरज में,,,,,,,,,,,,,,,,,
यमुना तट पे बेणु बजावत,
मधु सुर बड़ी रसाल!
सुनि,दौरे तँह ग्वाल बाल सब,
दर्शन दियो गुपाल!
प्रेम-पगी मन-वीणा झंकृत ,,आए नंद किशोर!
श्याम सलोने आए बिरज में,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कोटिक काम मय॔कहि लाजत,
पीत पिताम्बर धार!
श्याम वर्ण मणिमय छवि,मोहत
नैना है,,,, रतनार !
मोहन तीन लोक भुवनेश्वर ,शरणागत कर जोर !
श्याम सलोने आए बिरज में,नाचत हैं बृज मोर !
*********************************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
16-03-2020
स्वतंत्र विषय
#कोरोना#
(16,11, चरणांत-गल)
कोरोना कटु कुटिल कुपावन,
विधि का कुपित कलाप।
बंधक जग सारा बन बिलखे,
त्राहिमाम का जाप।।
बैठ विचारहि विज्ञ विशारद
परित्राण का पंथ-
शुद्ध सनातन जीवन शैली,
राग ओम आलाप॥
मुदित मन हो मोदमय जीवन,
काया निरत निरोग।
सुख-सुविधा सगरो जगती की
सारपूर्ण उपभोग।।
खान-पान खाद्यान्न निरामिष,
मन में नेक विचार-
आधि-व्याधि हरे सजग समाधि,
साँसों का विनियोग॥
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
स्वतंत्र विषय
#कोरोना#
(16,11, चरणांत-गल)
कोरोना कटु कुटिल कुपावन,
विधि का कुपित कलाप।
बंधक जग सारा बन बिलखे,
त्राहिमाम का जाप।।
बैठ विचारहि विज्ञ विशारद
परित्राण का पंथ-
शुद्ध सनातन जीवन शैली,
राग ओम आलाप॥
मुदित मन हो मोदमय जीवन,
काया निरत निरोग।
सुख-सुविधा सगरो जगती की
सारपूर्ण उपभोग।।
खान-पान खाद्यान्न निरामिष,
मन में नेक विचार-
आधि-व्याधि हरे सजग समाधि,
साँसों का विनियोग॥
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
आयोजन-मनपसंद विषय लेखन
दिनांक-16 मार्च 2020
दिन- सोमवार
शीर्षक-मीत मेरे बचपन के
विधा-कविता
रचनाकार- सुनील कुमार
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए
छोड़ गांव की गलियां
शहर की भीड़ का
हिस्सा हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
भूल गए बचपन के
सब खेल सुहाने
शामिल जिंदगी की
दौड़ में हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
गांव की वो गलियां
कल-कल करती नदियां
बात सपनों की अब हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
मिल-जुलकर मनाना
सब तीज- त्यौहार
बांटना आपस में
खुशियां और प्यार
सीमित अब सब हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
छोड़ गांव की मदमस्त बयार
आदी कूलर- एसी के हो गए
भूल गांव के गन्नों की मिठास
प्रेमी पेप्सी-कोला के हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच, उत्तर प्रदेश।
दिनांक-16 मार्च 2020
दिन- सोमवार
शीर्षक-मीत मेरे बचपन के
विधा-कविता
रचनाकार- सुनील कुमार
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए
छोड़ गांव की गलियां
शहर की भीड़ का
हिस्सा हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
भूल गए बचपन के
सब खेल सुहाने
शामिल जिंदगी की
दौड़ में हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
गांव की वो गलियां
कल-कल करती नदियां
बात सपनों की अब हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
मिल-जुलकर मनाना
सब तीज- त्यौहार
बांटना आपस में
खुशियां और प्यार
सीमित अब सब हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
छोड़ गांव की मदमस्त बयार
आदी कूलर- एसी के हो गए
भूल गांव के गन्नों की मिठास
प्रेमी पेप्सी-कोला के हो गए
मीत मेरे बचपन के
जाने कहां खो गए।
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच, उत्तर प्रदेश।
भावों के मोती।
विषय-मनपसंद लेखन।
शीर्षक-वृक्ष।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने,परम पिता की छवि।।
कैसे तू भूला मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान,उसकी अनुपम कृति।।
तेरी रक्षा करती हूं मैं।
हरदम रत रहती हूँ मैं।
मां की तरह मैंने तुझे
आंचल की छांव दी।
और पिता की तरह मैंने
तेरी क्षुधा शांत की।।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
मेरे हर अंग का तूने
खूब इस्तेमाल किया।
चाहे जड़ हो या तना?
सबने है कमाल किया।
पत्ती-पत्ती,कलियां-कलियां
सब काम तेरे आए।
कोई बना रोग की दवाई
कोई चेहरा संवार जाए।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
हर सांस को सांस का हक,
हर प्राणी को आस।
वातावरण को शुद्ध पवित्र,
दिया सबको वरदान।।
हर कण-कण से पृथ्वी
को उर्वरा खूब किया।
ना काटो मुझे वरना,
रोगों से होगा संग्राम।।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने,परम पिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
प्रीति शर्मा," पूर्णिमा"
16/03/2020
विषय-मनपसंद लेखन।
शीर्षक-वृक्ष।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने,परम पिता की छवि।।
कैसे तू भूला मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान,उसकी अनुपम कृति।।
तेरी रक्षा करती हूं मैं।
हरदम रत रहती हूँ मैं।
मां की तरह मैंने तुझे
आंचल की छांव दी।
और पिता की तरह मैंने
तेरी क्षुधा शांत की।।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
मेरे हर अंग का तूने
खूब इस्तेमाल किया।
चाहे जड़ हो या तना?
सबने है कमाल किया।
पत्ती-पत्ती,कलियां-कलियां
सब काम तेरे आए।
कोई बना रोग की दवाई
कोई चेहरा संवार जाए।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
हर सांस को सांस का हक,
हर प्राणी को आस।
वातावरण को शुद्ध पवित्र,
दिया सबको वरदान।।
हर कण-कण से पृथ्वी
को उर्वरा खूब किया।
ना काटो मुझे वरना,
रोगों से होगा संग्राम।।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने,परम पिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
प्रीति शर्मा," पूर्णिमा"
16/03/2020
🌺🍀 गीतिका-कण 🍀🌺
*************************
☀ छंद-विष्णुपद ☀
मात्रा=26 ( यति-16,10 )चरणांत- गुरु
समांत- आऊँ, पदांत- मैं
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
कण-कण में तुम सदा व्याप्त हो ,
कहाँ बताऊँ मैं ।
कहाँ नहीं हो , मेरे भगवन ,
सोच लुभाऊँ मैं ।।
पत्ता भी हिलता न कभी है ,
जग में बिन तेरे ,
सृष्टि अनौखी , प्रकृति रुपहली ,
महिमा गाऊँ मैं ।
ऋषि मुनि ज्ञानी बहुविधि ध्यानें,
जप तप अजपा से ,
कौन जानता किसको मिलते ,
पार न पाऊँ मैं ।
मन्दिर, मस्जिद , हज, तीरथ में ,
खोज करें धर्मी ,
दीन दुखी की पुकार प्रकटो ,
बलि-बलि जाऊँ मैं ।
साँस-साँस घट , मन-मन्दिर में ,
हो अन्तर्यामी ,
जड़-चेतन हर क्रिया समाये ,
क्यों भरमाऊँ मैं ।।
🌹🍀🌺🍏🍊🌷
🌹🌻**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
*************************
☀ छंद-विष्णुपद ☀
मात्रा=26 ( यति-16,10 )चरणांत- गुरु
समांत- आऊँ, पदांत- मैं
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
कण-कण में तुम सदा व्याप्त हो ,
कहाँ बताऊँ मैं ।
कहाँ नहीं हो , मेरे भगवन ,
सोच लुभाऊँ मैं ।।
पत्ता भी हिलता न कभी है ,
जग में बिन तेरे ,
सृष्टि अनौखी , प्रकृति रुपहली ,
महिमा गाऊँ मैं ।
ऋषि मुनि ज्ञानी बहुविधि ध्यानें,
जप तप अजपा से ,
कौन जानता किसको मिलते ,
पार न पाऊँ मैं ।
मन्दिर, मस्जिद , हज, तीरथ में ,
खोज करें धर्मी ,
दीन दुखी की पुकार प्रकटो ,
बलि-बलि जाऊँ मैं ।
साँस-साँस घट , मन-मन्दिर में ,
हो अन्तर्यामी ,
जड़-चेतन हर क्रिया समाये ,
क्यों भरमाऊँ मैं ।।
🌹🍀🌺🍏🍊🌷
🌹🌻**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
दिनाँक-16/03/2020
आओ एक हो जाएं
मंदिर देखे, मस्जिद देखीं, देखे मैंने
गुरुद्वारे!
चर्च में भी जाकर देखा ,देखे दुर्गम तीरथ सारे ! !
श्रद्धा सुमन चढ़ाए जा कर ,वहां मैंने शीश झुकाया,
लेकिन मैंने सभी ईश में , कोई जरा न अंतर पाया !!
सोच कर मैं हुई बावली,मन चक्कर मे पड़ा बेचारा!
कौन से ईश्वर सच्चे हैं ,तभी किसी ने मुझे पुकारा !!
किसे ढूंढती है तू, पगली ?? मैं तो तेरे अंतर में हूं !
सच्चे दिल से मुझे पुकारे ,तो मैं तेरे ही अंदर हूं !!
वाहेगुरु ,जीसस मैं ही ,मैं ही अल्लाह मैं ही राम !
ईश्वर को भी बांट दिया यह , है इंसानों का काम !!
एक ही सृष्टि है सब,क्यों यह बात समझ नहीं आई?
क्या अलग है चंदा, सूरज,क्या हवा अलग है पाई??
स्वार्थ के इस बंटवारे पर ,हरदम मन यह रोता है !
पर सोचो?? सबको रोने से भी ,दर्द एक सा होता है!!
साजिश रची है राजनीति में,स्वार्थ के ठेकेदारों ने!
मारकाट में झोंक दिया,निगला प्रकाश अंधियारों ने!!
देश हमारा गुजर रहा है,यन्त्रणा वाली गलियों से।
चमन बनाना है हमको,सद्भाव प्रेम की कलियों से!!
तो फिर आओ!! हम सब मिलकर ध्येय यही बनाएं !
संतान है जब एक सृष्टि की,तो हम सब एक हो जाएं!!
जैसे बगिया में प्यारे सुंदर ,विविध रंग के फूल खिले है !
पर माला गुलदस्ते में सुंदर ,सभी फूल तो हिले मिले हैं!!
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
आओ एक हो जाएं
मंदिर देखे, मस्जिद देखीं, देखे मैंने
गुरुद्वारे!
चर्च में भी जाकर देखा ,देखे दुर्गम तीरथ सारे ! !
श्रद्धा सुमन चढ़ाए जा कर ,वहां मैंने शीश झुकाया,
लेकिन मैंने सभी ईश में , कोई जरा न अंतर पाया !!
सोच कर मैं हुई बावली,मन चक्कर मे पड़ा बेचारा!
कौन से ईश्वर सच्चे हैं ,तभी किसी ने मुझे पुकारा !!
किसे ढूंढती है तू, पगली ?? मैं तो तेरे अंतर में हूं !
सच्चे दिल से मुझे पुकारे ,तो मैं तेरे ही अंदर हूं !!
वाहेगुरु ,जीसस मैं ही ,मैं ही अल्लाह मैं ही राम !
ईश्वर को भी बांट दिया यह , है इंसानों का काम !!
एक ही सृष्टि है सब,क्यों यह बात समझ नहीं आई?
क्या अलग है चंदा, सूरज,क्या हवा अलग है पाई??
स्वार्थ के इस बंटवारे पर ,हरदम मन यह रोता है !
पर सोचो?? सबको रोने से भी ,दर्द एक सा होता है!!
साजिश रची है राजनीति में,स्वार्थ के ठेकेदारों ने!
मारकाट में झोंक दिया,निगला प्रकाश अंधियारों ने!!
देश हमारा गुजर रहा है,यन्त्रणा वाली गलियों से।
चमन बनाना है हमको,सद्भाव प्रेम की कलियों से!!
तो फिर आओ!! हम सब मिलकर ध्येय यही बनाएं !
संतान है जब एक सृष्टि की,तो हम सब एक हो जाएं!!
जैसे बगिया में प्यारे सुंदर ,विविध रंग के फूल खिले है !
पर माला गुलदस्ते में सुंदर ,सभी फूल तो हिले मिले हैं!!
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय स्वैच्छिक
विधा कविता
दिनाँक 16.3.2020
दिन सोमवार
मुस्कान का विस्तृत क्षेत्र
💘💘💘💘💘💘💘
मुस्कान! स्वयम् ही वन्दन है,
मुस्कान! ईश्वर काअभिनन्दन
है
मुस्कान! जीवन का चन्दन है,
मुस्कान ! मानवीय स्पन्दन है।
मुस्कान ! सुन्दर अनुष्ठान है,
मुस्कान ! महकता प्रान है,
मुस्कान ! हस्ताक्षर भरा सम्मान है,
मुस्कान ! सुनहरी मौन तान है।
मुस्कान ! सुन्दर वन्दनवार है,
मुस्कान ! स्वागत का द्वार है,
मुस्कान ! शीतल धार है,
मुस्कान ! मन से दिया उपहार है।
मुस्कान!शुभकामना भरीअभिलाषा है
मुस्कान!सहर्दयता की भाषा है,
मुस्कान!ढाढस देती आशा है,
मुस्कान ! भगा देती हताशा है।
मुस्कान ! दिव्य सुगन्ध है,
मुस्कान ! उदासी पर प्रतिबन्ध है,
मुस्कान ! स्वर्णिम छन्द है,
मुस्कान ! मनुष्य के हर्दय में मकरन्द है
मुस्कान!बेतार का तार है,
मुस्कान!स्फूर्ति का संचार है,
मुस्कान!सम्पूर्ण एक सत्कार है,
मुस्कान!अलौकिक उपहार है।
मुस्कान!वसुदेव कुटुम्बकम् का संदेश
है,
मुस्कान! सब भाषाओं में अभिप्राय
एक है,
मुस्कान!कितनी सुन्दर और नेक है,
मुस्कान!मानवता का अभिषेक है।
आओ अब सब मुस्करायें,
जटिलता सारी भगायें,
एक दूजे को गले लगायें,
दूध और पानी जैसे मिल जायें।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 16.3.2020
दिन सोमवार
मुस्कान का विस्तृत क्षेत्र
💘💘💘💘💘💘💘
मुस्कान! स्वयम् ही वन्दन है,
मुस्कान! ईश्वर काअभिनन्दन
है
मुस्कान! जीवन का चन्दन है,
मुस्कान ! मानवीय स्पन्दन है।
मुस्कान ! सुन्दर अनुष्ठान है,
मुस्कान ! महकता प्रान है,
मुस्कान ! हस्ताक्षर भरा सम्मान है,
मुस्कान ! सुनहरी मौन तान है।
मुस्कान ! सुन्दर वन्दनवार है,
मुस्कान ! स्वागत का द्वार है,
मुस्कान ! शीतल धार है,
मुस्कान ! मन से दिया उपहार है।
मुस्कान!शुभकामना भरीअभिलाषा है
मुस्कान!सहर्दयता की भाषा है,
मुस्कान!ढाढस देती आशा है,
मुस्कान ! भगा देती हताशा है।
मुस्कान ! दिव्य सुगन्ध है,
मुस्कान ! उदासी पर प्रतिबन्ध है,
मुस्कान ! स्वर्णिम छन्द है,
मुस्कान ! मनुष्य के हर्दय में मकरन्द है
मुस्कान!बेतार का तार है,
मुस्कान!स्फूर्ति का संचार है,
मुस्कान!सम्पूर्ण एक सत्कार है,
मुस्कान!अलौकिक उपहार है।
मुस्कान!वसुदेव कुटुम्बकम् का संदेश
है,
मुस्कान! सब भाषाओं में अभिप्राय
एक है,
मुस्कान!कितनी सुन्दर और नेक है,
मुस्कान!मानवता का अभिषेक है।
आओ अब सब मुस्करायें,
जटिलता सारी भगायें,
एक दूजे को गले लगायें,
दूध और पानी जैसे मिल जायें।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
16-3-2020
मन पसंद विषय लेखन
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बेमौसम बरसात
*************
(1)
बेमौसम बरसात से, भारी है नुकसान।
कुदरत की इस मार से, दुख में सभी किसान।।
(2)
ओलावृष्टि हुई जबर, फसलें सारी नष्ट।
चित्र यही बतला रहे, बातें सारी स्पष्ट।।
(3)
माथा पकड़े है खड़ा, देखो एक किसान।
घोर निराशा मन बसी, टूटे सब अरमान।।
(4)
खेती के नुकसान से, गाँव हुए बर्बाद।
राह नजर आती नहीं, कैसे हों आबाद।।
(5)
कुदरत वश में है नहीं, चिंतित सारे लोग।
इंद्र देव नाराज हैं, कैसा कुटिल कुयोग।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
मन पसंद विषय लेखन
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बेमौसम बरसात
*************
(1)
बेमौसम बरसात से, भारी है नुकसान।
कुदरत की इस मार से, दुख में सभी किसान।।
(2)
ओलावृष्टि हुई जबर, फसलें सारी नष्ट।
चित्र यही बतला रहे, बातें सारी स्पष्ट।।
(3)
माथा पकड़े है खड़ा, देखो एक किसान।
घोर निराशा मन बसी, टूटे सब अरमान।।
(4)
खेती के नुकसान से, गाँव हुए बर्बाद।
राह नजर आती नहीं, कैसे हों आबाद।।
(5)
कुदरत वश में है नहीं, चिंतित सारे लोग।
इंद्र देव नाराज हैं, कैसा कुटिल कुयोग।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
6-03-2020 सोमवार
विषय - मनपसन्द लेखन
तुम गरमी की तपतपाती धूप जैसी, मैं छाव देता पेड़ हूँ
तुम काली अंधेरी रात जैसी, मैं रोशनी करता जुगनू हूँ ।
तुम ओस की बूंद जैसी, मैं छाया घना कोहरा हूँ
तुम खिले गुलाब जैसी, मैं उस पर मंडराता भवरा हूँ।
तुम कड-कडाती बिजली जैसी, मैं गरजता बादल हूँ
तुम बरसात में नाचती मोरनी जैसी, मैं तुम्हें निहारता मोर हूँ।
तुम कौरे कागज जैसी, मैं उस पर लिखता कलम हूँ
तुम मेरी शायरी जैसी, मैं बदनाम हुआ कोई शायर हूँ ।
- प्रतिक सिंघल
विषय - मनपसन्द लेखन
तुम गरमी की तपतपाती धूप जैसी, मैं छाव देता पेड़ हूँ
तुम काली अंधेरी रात जैसी, मैं रोशनी करता जुगनू हूँ ।
तुम ओस की बूंद जैसी, मैं छाया घना कोहरा हूँ
तुम खिले गुलाब जैसी, मैं उस पर मंडराता भवरा हूँ।
तुम कड-कडाती बिजली जैसी, मैं गरजता बादल हूँ
तुम बरसात में नाचती मोरनी जैसी, मैं तुम्हें निहारता मोर हूँ।
तुम कौरे कागज जैसी, मैं उस पर लिखता कलम हूँ
तुम मेरी शायरी जैसी, मैं बदनाम हुआ कोई शायर हूँ ।
- प्रतिक सिंघल
16.3.2020
सोमवार
मन पसंद विषय लेखन
विधा - मुक्तक
(1 )
माँ के आँचल से विस्तृत हैं,देते हमको छाँव हैं
खुला,खिला आकाश धरा है
ऐसा अपना गाँव है
रहें सुरक्षित और आह्लादित
हर पल खिला-खिला सा मन
गंगा तट का निर्मल जल है,पावन अनुपम ठाँव है।।
(2)
प्रकृति का वरदान हमें,जल, वन, सघन, सुमन मन है
जीने का अरमान सदा है,हर मन आह्लादित तन है
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं बरसतीं,वृक्षों के हरषाने से
सतत सम्पदा ऊर्जा मिलती
सबल सुरक्षित जीवन है।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
सोमवार
मन पसंद विषय लेखन
विधा - मुक्तक
(1 )
माँ के आँचल से विस्तृत हैं,देते हमको छाँव हैं
खुला,खिला आकाश धरा है
ऐसा अपना गाँव है
रहें सुरक्षित और आह्लादित
हर पल खिला-खिला सा मन
गंगा तट का निर्मल जल है,पावन अनुपम ठाँव है।।
(2)
प्रकृति का वरदान हमें,जल, वन, सघन, सुमन मन है
जीने का अरमान सदा है,हर मन आह्लादित तन है
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं बरसतीं,वृक्षों के हरषाने से
सतत सम्पदा ऊर्जा मिलती
सबल सुरक्षित जीवन है।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
विषय मनपसंद लेखन
तिथि 16, 3 , 2020
ये जो जिन्दगी मे अक्सर
उदासियाँ तनहाईयाँ
अकेलापन सताने लगता है
तो बरबस ही बहने लगती हैं आँखें
और बेवजह लब मुस्कुराने लगते हैं
क्युँकि
गुज़रे वक़्त की
कुछ खट्टी मीठी यादें
घेर लेती हैं आकर
अपनो का साथ हो
या हो मंज़र कोई खुशी का
अकेलापन हो या
दुख की कोई घड़ी हो
नही लगता दिल कहीं भी
किसी भी जगह
न ही समझ आए
कि क्यूँ हँसे हम
क्यूँ मुस्कराए
ऐसे में घेर लें जब
कुछ खट्टी मीठी यादें
तो सफ़र ज़िंदगी का
सरलता से कट जाए
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
तिथि 16, 3 , 2020
ये जो जिन्दगी मे अक्सर
उदासियाँ तनहाईयाँ
अकेलापन सताने लगता है
तो बरबस ही बहने लगती हैं आँखें
और बेवजह लब मुस्कुराने लगते हैं
क्युँकि
गुज़रे वक़्त की
कुछ खट्टी मीठी यादें
घेर लेती हैं आकर
अपनो का साथ हो
या हो मंज़र कोई खुशी का
अकेलापन हो या
दुख की कोई घड़ी हो
नही लगता दिल कहीं भी
किसी भी जगह
न ही समझ आए
कि क्यूँ हँसे हम
क्यूँ मुस्कराए
ऐसे में घेर लें जब
कुछ खट्टी मीठी यादें
तो सफ़र ज़िंदगी का
सरलता से कट जाए
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
दिनांक-16/03/2020
स्वतंत्र सृजन
मेरा देश रस्मों से चमकता है.......
फिर रात के आंचल में एक चांद सवरता है।
चुपचाप इशारों में एक बात प्यार की कहता है।।
एक चांद है अंबर में, एक चांद है मेरे दिल में।
श्रृंगार सनम मेरा, तेरे प्यार से सजता है।
हाथों में सजे चूड़ी, माथे पर चमके बिंदिया।
मेरी धानी चुनर में तेरा प्यार महकता है।
मेहंदी के रंगों में हम नाम सनम लिखते हैं।
कुमकुम की चमक से अब श्रृंगार निखरता है।
मेरे बिछिये पायल हर प्रीति निभा देगें।
पैरों की महावर से दस्तूर ठहरता है।
स्वरचित......
सत्य प्रकाश सिंह इलाहाबाद
स्वतंत्र सृजन
मेरा देश रस्मों से चमकता है.......
फिर रात के आंचल में एक चांद सवरता है।
चुपचाप इशारों में एक बात प्यार की कहता है।।
एक चांद है अंबर में, एक चांद है मेरे दिल में।
श्रृंगार सनम मेरा, तेरे प्यार से सजता है।
हाथों में सजे चूड़ी, माथे पर चमके बिंदिया।
मेरी धानी चुनर में तेरा प्यार महकता है।
मेहंदी के रंगों में हम नाम सनम लिखते हैं।
कुमकुम की चमक से अब श्रृंगार निखरता है।
मेरे बिछिये पायल हर प्रीति निभा देगें।
पैरों की महावर से दस्तूर ठहरता है।
स्वरचित......
सत्य प्रकाश सिंह इलाहाबाद
आज का कार्य ,विषय मुक्त
तिथि 16/3/2020/सोमवार
विषय*,, मेरे सपने मेरे अपने*
विधा-काव्य
मेरे सपने मेरे अपने,जो चाहूं मैं नाम लिखूं।
प्यार सदा ही बांटूं जग में जनम जनम ही प्रीत लिखूं।
घूमूं आवारा बादल साइधर उधर स्नेह बिखेरता,
मैं इस भारत में सच गंगा यमुना सी जलधार वहूं।
नहीं रह पाऐं सपन अधूरे सबको ही सम्मान मिले।
गौरवगाथा सुनें राष्ट्र की सुनने राष्ट्र गान मिले।
गंगा जमुनी संस्कृति और संस्कार हैं गौरवशाली,
विश्व गुरु हो भारत अपना फिर से सुंदर मान मिले।
शीतल जलधारा मन पुलकित छाई प्रेम की बदली हो।
वैर भाव नहीं दिखे कहीं भी यहां मुहब्बत असली हो।
रामनाम की महिमा गा कर इसी नाम में लीन रहें,
सोच-विचार कर काम करें हम कुछ शरारत नकली हो।
सहयोग कर एकदूजे से जनम जनम के वैर भुलाऐं।
करें परोपकार नहीं घूमें आवारा ठौर बताऐं।
जिऐं प्रेम से अपना जीवन इतिहासों में नाम लिखे,
आओ मिलकर रहें सबजन क्यों कभी भी गैर कहाऐं।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
तिथि 16/3/2020/सोमवार
विषय*,, मेरे सपने मेरे अपने*
विधा-काव्य
मेरे सपने मेरे अपने,जो चाहूं मैं नाम लिखूं।
प्यार सदा ही बांटूं जग में जनम जनम ही प्रीत लिखूं।
घूमूं आवारा बादल साइधर उधर स्नेह बिखेरता,
मैं इस भारत में सच गंगा यमुना सी जलधार वहूं।
नहीं रह पाऐं सपन अधूरे सबको ही सम्मान मिले।
गौरवगाथा सुनें राष्ट्र की सुनने राष्ट्र गान मिले।
गंगा जमुनी संस्कृति और संस्कार हैं गौरवशाली,
विश्व गुरु हो भारत अपना फिर से सुंदर मान मिले।
शीतल जलधारा मन पुलकित छाई प्रेम की बदली हो।
वैर भाव नहीं दिखे कहीं भी यहां मुहब्बत असली हो।
रामनाम की महिमा गा कर इसी नाम में लीन रहें,
सोच-विचार कर काम करें हम कुछ शरारत नकली हो।
सहयोग कर एकदूजे से जनम जनम के वैर भुलाऐं।
करें परोपकार नहीं घूमें आवारा ठौर बताऐं।
जिऐं प्रेम से अपना जीवन इतिहासों में नाम लिखे,
आओ मिलकर रहें सबजन क्यों कभी भी गैर कहाऐं।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
16/3/20
विषय-स्वतंत्र लेख
कोने कोने में फैला
कोरोना का बुखार
मीडिया को मिला
लंबा चौडा ब्यापार
हर तरफ मची है।
संदेशो की भरमार
मीडिया हुआ गुलजार
चमकी की तरह चमका
चीन का मेहमान
मेड इन चाइना का
खूबसूरत उपहार
चेर्चाये बाजार में
गर्म जोशी का हाल
हल्की सी छी क में
कोरोना का उपचार
डर कर परेशान
जनजीवन बेहाल
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय-स्वतंत्र लेख
कोने कोने में फैला
कोरोना का बुखार
मीडिया को मिला
लंबा चौडा ब्यापार
हर तरफ मची है।
संदेशो की भरमार
मीडिया हुआ गुलजार
चमकी की तरह चमका
चीन का मेहमान
मेड इन चाइना का
खूबसूरत उपहार
चेर्चाये बाजार में
गर्म जोशी का हाल
हल्की सी छी क में
कोरोना का उपचार
डर कर परेशान
जनजीवन बेहाल
स्वरचित
मीना तिवारी
एक दुखी वृद्ध द्वारा मौत का आवाहन
( करुण रस+ शांत रस का सम्मिश्रण)
मुक्त छंद
मैं वक्त काटता हूँ अपना।
मै रोज देखता हूँ सपना।
कब आयेगी, प्रभु! मौत मुझे??
कब आएगी?
कब आएगी?
मौत मुझे???
अब चला नहीं जाता मुझसे।
कुछ करा नहीं जाता मुझसे।
मै रोज ठोंकरें खाता हूँ,
जब भी मै बाहर जाता हूँ ।
यह जीवन है दुश्वारी अब।
लगता है क्षण -क्षण भारी अब।
प्रभुवर! मुझको कुछ बतलाओ।
अब मुझको भी कुछ समझाओ।
क्यों रखा अभी तक है तूने,
प्रभु! इस जीवन से जोत मुझे??
कब आयेगी, प्रभु! मौत मुझे??
कब आएगी?
कब आएगी?
मौत मुझे??
दुत्कारें सारे, रोज मुझे ।
सब मिलकर मारें, रोज मुझे।
क्यों अभी न यह बूढ़ा मरता?
छाती पर उरद- मूँग दलता।
हर क्षण बड़ -बड़, टर -टर करता।
पर काम नहीं धेला करता।
खाकर काले कउवे आया।
यह उमर लिखा,कितनी आया?
मर जाये तो कार खरीदूँ।
बीबी को उपहार खरीदूँ।
दे क्यों नही मृत्यु न्यौत मुझे?
कब आएगी प्रभु! मौत मुझे??
कब आएगी?
कब आएगी?
मौत मुझे ।।
अमरनाथ
( करुण रस+ शांत रस का सम्मिश्रण)
मुक्त छंद
मैं वक्त काटता हूँ अपना।
मै रोज देखता हूँ सपना।
कब आयेगी, प्रभु! मौत मुझे??
कब आएगी?
कब आएगी?
मौत मुझे???
अब चला नहीं जाता मुझसे।
कुछ करा नहीं जाता मुझसे।
मै रोज ठोंकरें खाता हूँ,
जब भी मै बाहर जाता हूँ ।
यह जीवन है दुश्वारी अब।
लगता है क्षण -क्षण भारी अब।
प्रभुवर! मुझको कुछ बतलाओ।
अब मुझको भी कुछ समझाओ।
क्यों रखा अभी तक है तूने,
प्रभु! इस जीवन से जोत मुझे??
कब आयेगी, प्रभु! मौत मुझे??
कब आएगी?
कब आएगी?
मौत मुझे??
दुत्कारें सारे, रोज मुझे ।
सब मिलकर मारें, रोज मुझे।
क्यों अभी न यह बूढ़ा मरता?
छाती पर उरद- मूँग दलता।
हर क्षण बड़ -बड़, टर -टर करता।
पर काम नहीं धेला करता।
खाकर काले कउवे आया।
यह उमर लिखा,कितनी आया?
मर जाये तो कार खरीदूँ।
बीबी को उपहार खरीदूँ।
दे क्यों नही मृत्यु न्यौत मुझे?
कब आएगी प्रभु! मौत मुझे??
कब आएगी?
कब आएगी?
मौत मुझे ।।
अमरनाथ
दिनांक 16/03/2020
स्वतंत्र सृजन
जब पीड़ा पाती है कलम
तब व्यथा शब्द में बंधती है।
जब नैनो से अश्रु टपकते
आह कसकती कहती है।।
जब अपनों की चाह व्यथित
उद्वेलित करती है मन को।
तब कोई एक उपाय नहीं
जो बिसराती है तन को ।।
जब विहलता व्याकुलता हो
स्मृति अतीत ले आती है।
तब व्यथा वेदना करुणा ही
गीत ग़ज़ल बन जाती है।।
वासना हीन वात्सल्य समन्वित,
कविता बनिता लगती है ।
मधुर राग नव रस युक्त हो
मानव उर में बसती है । ।
स्वरचित ,रंजना सिंह
प्रयागराज
स्वतंत्र सृजन
जब पीड़ा पाती है कलम
तब व्यथा शब्द में बंधती है।
जब नैनो से अश्रु टपकते
आह कसकती कहती है।।
जब अपनों की चाह व्यथित
उद्वेलित करती है मन को।
तब कोई एक उपाय नहीं
जो बिसराती है तन को ।।
जब विहलता व्याकुलता हो
स्मृति अतीत ले आती है।
तब व्यथा वेदना करुणा ही
गीत ग़ज़ल बन जाती है।।
वासना हीन वात्सल्य समन्वित,
कविता बनिता लगती है ।
मधुर राग नव रस युक्त हो
मानव उर में बसती है । ।
स्वरचित ,रंजना सिंह
प्रयागराज
विषय : मनपस़ंद लेखन
विधा : कविता
तिथि : 16. 3. 2020
कैरोना का है जमाव
न डरना, न घबराना
न ही करना तनाव।
निजसंग परहित लगाव
देता सकारात्मक शक्ति
रच दुआओं का बहाव।
नकारात्मक पर कसाव
देता वर्द्धित इच्छाशक्ति-
और कैरोना पर दबाव।
कैरोना का करना थमाव
डरना,या सजगता सुरक्षा-
आओ न,करना है चुनाव।
विश्व में जो आया है पड़ाव
इसे हमें भगाना है,हराना है
रुकेगा नहीं जीवन-खिलाव।
-रीता ग्रोवर
- स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 16. 3. 2020
कैरोना का है जमाव
न डरना, न घबराना
न ही करना तनाव।
निजसंग परहित लगाव
देता सकारात्मक शक्ति
रच दुआओं का बहाव।
नकारात्मक पर कसाव
देता वर्द्धित इच्छाशक्ति-
और कैरोना पर दबाव।
कैरोना का करना थमाव
डरना,या सजगता सुरक्षा-
आओ न,करना है चुनाव।
विश्व में जो आया है पड़ाव
इसे हमें भगाना है,हराना है
रुकेगा नहीं जीवन-खिलाव।
-रीता ग्रोवर
- स्वरचित
विषय-स्वतंत्र लेखन
दिनांक १६-३-२०२०
रख हौंसला ,देख वो मंजर भी एक दिन आएगा
आज रहते हैं दूर तुमसे ,वो कल करीब आएगा।
शर्त थक कर ना बैठ ,बस अनवरत चलता जा,
तुझे अपने भी मिलेंगे, स्नेह सम्मान तू पाएगा।
नित नए सपने देख,और हौसलों से उड़ान भर तू,
लक्ष्य करीब आते ही,तेरा सपना सच हो जाएगा।
कुंठित विचार तू त्याग दे,और दूर कर मन अंधेरा,
अपनी पहचान बना,देख प्रेरणा स्रोत बन जाएगा।
मुश्किल आसां बना,थोड़ी कठिनाई सामना कर।
तेरे कार्यों से एक दिन,जग में तू पहचाना जाएगा।
मंजिल प्राप्त कर ले,बुलंद हौंसले तू राह बना दे,
फिर तू अकेला नहीं,काफिला खुद बन जाएगा।
ठोकर ना घबराना,खुद को सदा मजबूत बनाना।
कामयाबी का सूरज,एक दिन तू ही देख पाएगा।
कहती वीणा,उम्मीद दामन ना छोड़ना कभी भी ,
वरना प्रभु धरा भेजने,तुझे फिर संकोच खाएगा।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक १६-३-२०२०
रख हौंसला ,देख वो मंजर भी एक दिन आएगा
आज रहते हैं दूर तुमसे ,वो कल करीब आएगा।
शर्त थक कर ना बैठ ,बस अनवरत चलता जा,
तुझे अपने भी मिलेंगे, स्नेह सम्मान तू पाएगा।
नित नए सपने देख,और हौसलों से उड़ान भर तू,
लक्ष्य करीब आते ही,तेरा सपना सच हो जाएगा।
कुंठित विचार तू त्याग दे,और दूर कर मन अंधेरा,
अपनी पहचान बना,देख प्रेरणा स्रोत बन जाएगा।
मुश्किल आसां बना,थोड़ी कठिनाई सामना कर।
तेरे कार्यों से एक दिन,जग में तू पहचाना जाएगा।
मंजिल प्राप्त कर ले,बुलंद हौंसले तू राह बना दे,
फिर तू अकेला नहीं,काफिला खुद बन जाएगा।
ठोकर ना घबराना,खुद को सदा मजबूत बनाना।
कामयाबी का सूरज,एक दिन तू ही देख पाएगा।
कहती वीणा,उम्मीद दामन ना छोड़ना कभी भी ,
वरना प्रभु धरा भेजने,तुझे फिर संकोच खाएगा।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय- #मन पसन्द विषय लेखन के तहत*
विधा-ग़ज़ल
मापनी-212 212. 212
क़ाफ़िया- रहा (आ स्वर )
रदीफ़- कीजिए।
=================
मस्त मौला रहा कीजिए।
हसरतों में बहा कीजिए।।
********************
प्यार की इक नज़र डालकर,
यार मेरा भला कीजिए।।
*********************
दिल से कोई न छोटा-बड़ा,
करके वादा वफ़ा कीजिए।।
**********************
बात हक़ से न परहेज़ कर,
बात हक़ की कहा कीजिए।।
**********************
क़द्र बातिल की तुम मत करो,
हक़ के पीछे लड़ा कीजिए।।
**********************
बात धीमे सुरों में कहो,
शोर-ग़ुल मत वपा कीजिए।।
**********************
शख़्स जो तुम को तौक़ीर दे,
साथ उसका सदा कीजिए।।
=================
'अ़क्स' दौनेरिया
विधा-ग़ज़ल
मापनी-212 212. 212
क़ाफ़िया- रहा (आ स्वर )
रदीफ़- कीजिए।
=================
मस्त मौला रहा कीजिए।
हसरतों में बहा कीजिए।।
********************
प्यार की इक नज़र डालकर,
यार मेरा भला कीजिए।।
*********************
दिल से कोई न छोटा-बड़ा,
करके वादा वफ़ा कीजिए।।
**********************
बात हक़ से न परहेज़ कर,
बात हक़ की कहा कीजिए।।
**********************
क़द्र बातिल की तुम मत करो,
हक़ के पीछे लड़ा कीजिए।।
**********************
बात धीमे सुरों में कहो,
शोर-ग़ुल मत वपा कीजिए।।
**********************
शख़्स जो तुम को तौक़ीर दे,
साथ उसका सदा कीजिए।।
=================
'अ़क्स' दौनेरिया
दिनांक-16-3-2020
विषय-स्वतंत्र लेखन
विधा-छंदमुक्त
कौन हूँ मैं?
अंश हूँ
उस सम्पूर्ण का
जिसे भूलने से
मेरा अस्तित्व
कहीं खो गया है
बेसुध पड़ी रही
अब तक
व्यक्तित्व
जिसका सो गया है।
कौन हूँ मैं?
सागर की एक बूंद हूँ
जो माया की
गरमी से
हवा में उड़ गई है
कौन हूँ मैं
किरण हूँ
उस सूरज की
जो अज्ञानता के
बादलों में
कही छिप गई है।
कौन हूँ मैं?
अज्ञानी हूँ
जो अंधकार की
कोठरी में
पाखंड की माला
जप रही है।
सुध पाकर
जब संभली
तंद्रा से जब जागी
तो हरि नाम के
पावन जल से
अपना मैला आँचल
मल मल कर धो रही है
अपने प्यारे प्रियतम
से मिलने को
हर संभव प्रयास कर रही है
अंश हूँ मैं
उस पावन ज्योति की
जो उसके सानिध्य में
दीपित हो रही है।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-स्वतंत्र लेखन
विधा-छंदमुक्त
कौन हूँ मैं?
अंश हूँ
उस सम्पूर्ण का
जिसे भूलने से
मेरा अस्तित्व
कहीं खो गया है
बेसुध पड़ी रही
अब तक
व्यक्तित्व
जिसका सो गया है।
कौन हूँ मैं?
सागर की एक बूंद हूँ
जो माया की
गरमी से
हवा में उड़ गई है
कौन हूँ मैं
किरण हूँ
उस सूरज की
जो अज्ञानता के
बादलों में
कही छिप गई है।
कौन हूँ मैं?
अज्ञानी हूँ
जो अंधकार की
कोठरी में
पाखंड की माला
जप रही है।
सुध पाकर
जब संभली
तंद्रा से जब जागी
तो हरि नाम के
पावन जल से
अपना मैला आँचल
मल मल कर धो रही है
अपने प्यारे प्रियतम
से मिलने को
हर संभव प्रयास कर रही है
अंश हूँ मैं
उस पावन ज्योति की
जो उसके सानिध्य में
दीपित हो रही है।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
दिनांक, १६,३, २०२०.
दिन, सोमवार,
विषय, मन पसंद लेखन
* कृषक *
जीवन मुश्किल बहुत कृषक का,
नहीं भरोसा है जीवन का।
कब सूखा कब हो अति बर्षा,
परेशान रहता श्रम कर्ता।
कड़ी धूप में तन झुलसाना,
कठोर श्रम से फसल उगाना।
विनय यही बस रब से करना,
फसल सुरक्षित आप ही रखना।
कहलाता है जो अन्न दाता ,
वही भूख से लड़ता रहता ।
शिक्षा या सुख सुविधा कोई,
नहीं मिले है किस्मत सोई।
कृषक बना खाद्यान्न दाता,
सम्मान नहीं क्यों वह पाता।
सैन्य जवान और कृषक का,
ऋणी सदा वासी भारत का ।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन, सोमवार,
विषय, मन पसंद लेखन
* कृषक *
जीवन मुश्किल बहुत कृषक का,
नहीं भरोसा है जीवन का।
कब सूखा कब हो अति बर्षा,
परेशान रहता श्रम कर्ता।
कड़ी धूप में तन झुलसाना,
कठोर श्रम से फसल उगाना।
विनय यही बस रब से करना,
फसल सुरक्षित आप ही रखना।
कहलाता है जो अन्न दाता ,
वही भूख से लड़ता रहता ।
शिक्षा या सुख सुविधा कोई,
नहीं मिले है किस्मत सोई।
कृषक बना खाद्यान्न दाता,
सम्मान नहीं क्यों वह पाता।
सैन्य जवान और कृषक का,
ऋणी सदा वासी भारत का ।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक 16 मार्च 2020
विषय क्या होगा भला
तुम अपना धर्म बना लो
मै भी अपना धर्म बना लूं
जब इंसान को न समझे
तो क्या होगा भला ....
तुम अपने भगवान गढ लो
मै भी अपने भगवान गढ लूं
जब पूजा का मर्म न समझे
तो क्या होगा भला .....
तुम खुद को बडा कह दो
मै भी खुद को बडा कह दूं
बड़प्पन ही न आया हममे
तो क्या होगा भला ....
कुछ सीमाएं तुम बना लो
कुछ सीमाएं मै भी बना लूं
नफरतों की सीमित न किया
तो क्या होगा भला ....
कहने का हक तुम्हारा भी
कहने का हक कुछ मेरा भी
समझना ही ना चाहे कुछ
तो क्या होगा भला .....
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय क्या होगा भला
तुम अपना धर्म बना लो
मै भी अपना धर्म बना लूं
जब इंसान को न समझे
तो क्या होगा भला ....
तुम अपने भगवान गढ लो
मै भी अपने भगवान गढ लूं
जब पूजा का मर्म न समझे
तो क्या होगा भला .....
तुम खुद को बडा कह दो
मै भी खुद को बडा कह दूं
बड़प्पन ही न आया हममे
तो क्या होगा भला ....
कुछ सीमाएं तुम बना लो
कुछ सीमाएं मै भी बना लूं
नफरतों की सीमित न किया
तो क्या होगा भला ....
कहने का हक तुम्हारा भी
कहने का हक कुछ मेरा भी
समझना ही ना चाहे कुछ
तो क्या होगा भला .....
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक -16/3/2020
विषय -स्वतंत्र/मनपसंद
( नशा )
महज़ मादक पदार्थों का नशा
एकतरफ़ा बात यह ठीक नहीं,
दृष्टिकोण ज़रा बदल लीजिए
यूँ संकुचित रहना ठीक नहीं ।
नशे के प्रकार अनेकानेक
उन्हें छिपाना ठीक नहीं
मन के भावों में नशा अजीब
और भाव झुठलाना ठीक नहीं ।
नशा भक्ति के परम भाव का
भक्तों को भुलाना ठीक नहीं
तुलसी , सूर जैसे हुए कवि
भक्ति नशा बिसराना ठीक नहीं ।
आराध्य देव को रटते - रटते
प्राप्त मोक्ष को वे हो गए
भक्ति शक्ति का सार तत्व
ग्रंथों में लिखकर छोड़ गए ।
नशा प्रेम पुनीत भाव का भी
प्रेमियों को भुलाना ठीक नहीं
कृष्ण में राधा, राधा में कृष्ण
अनुपम प्रेम छिपाना ठीक नही ।
एक मीरा बाई थी प्रेम पुजारिन
सच उसका छिपाना ठीक नही
आराध्य देव उसके श्याम सलोने
विष प्याला झुठलाना ठीक नहीं ।
नशा मोहब्बत का भी होता है
उपेक्षित करना ठीक नहीं
लैला मजनू और सीरी फ़रहाद
झूठा दाग़ लगाना ठीक नहीं ।
हद में रहकर होता है नशा
बात यह बिल्कुल ठीक नहीं
हद में रह प्रतिमान ना बनते
कुछ नाम छिपाना ठीक नहीं ।
त्रेता युग में राम हुए थे
नशा मर्यादा का जिसने किया
हर रूप में मर्यादा दिखलाई
तब जग ने पुरुषोत्तम राम कहा ।
नशा कर्मों के कर्तव्यबोध का
द्वापर के कान्हा ने सिखलाया
बनकर अर्जुन का एक सारथी
पाठ गीता का सबको पढ़ाया ।
सत्य अहिंसा के नशे ने तो
करमचंद महात्मा बना दिया
सत्य प्रयोग के करते करते
राष्ट्रपिता नाम हमने दिया।
ऐसे नशों के सब आदी हो जाएँ
यह बात झुठलानी ठीक नहीं
लेखनी मेरी है विचार तुम्हारा
कोई निर्णय ना लेना ठीक नहीं ।
@ ........संप्रीति
विषय -स्वतंत्र/मनपसंद
( नशा )
महज़ मादक पदार्थों का नशा
एकतरफ़ा बात यह ठीक नहीं,
दृष्टिकोण ज़रा बदल लीजिए
यूँ संकुचित रहना ठीक नहीं ।
नशे के प्रकार अनेकानेक
उन्हें छिपाना ठीक नहीं
मन के भावों में नशा अजीब
और भाव झुठलाना ठीक नहीं ।
नशा भक्ति के परम भाव का
भक्तों को भुलाना ठीक नहीं
तुलसी , सूर जैसे हुए कवि
भक्ति नशा बिसराना ठीक नहीं ।
आराध्य देव को रटते - रटते
प्राप्त मोक्ष को वे हो गए
भक्ति शक्ति का सार तत्व
ग्रंथों में लिखकर छोड़ गए ।
नशा प्रेम पुनीत भाव का भी
प्रेमियों को भुलाना ठीक नहीं
कृष्ण में राधा, राधा में कृष्ण
अनुपम प्रेम छिपाना ठीक नही ।
एक मीरा बाई थी प्रेम पुजारिन
सच उसका छिपाना ठीक नही
आराध्य देव उसके श्याम सलोने
विष प्याला झुठलाना ठीक नहीं ।
नशा मोहब्बत का भी होता है
उपेक्षित करना ठीक नहीं
लैला मजनू और सीरी फ़रहाद
झूठा दाग़ लगाना ठीक नहीं ।
हद में रहकर होता है नशा
बात यह बिल्कुल ठीक नहीं
हद में रह प्रतिमान ना बनते
कुछ नाम छिपाना ठीक नहीं ।
त्रेता युग में राम हुए थे
नशा मर्यादा का जिसने किया
हर रूप में मर्यादा दिखलाई
तब जग ने पुरुषोत्तम राम कहा ।
नशा कर्मों के कर्तव्यबोध का
द्वापर के कान्हा ने सिखलाया
बनकर अर्जुन का एक सारथी
पाठ गीता का सबको पढ़ाया ।
सत्य अहिंसा के नशे ने तो
करमचंद महात्मा बना दिया
सत्य प्रयोग के करते करते
राष्ट्रपिता नाम हमने दिया।
ऐसे नशों के सब आदी हो जाएँ
यह बात झुठलानी ठीक नहीं
लेखनी मेरी है विचार तुम्हारा
कोई निर्णय ना लेना ठीक नहीं ।
@ ........संप्रीति
मन पसंद लेखन
**
मेरे मन के उपवन में,
खुशियों के फूल खिले,
रात चाँदनी सी महकी,
सपने में जब हम तुम मिले,
लिपटी बेल जब तने से,
रात रानी के फूल खिले,
झूमू सदा संग तेरे,
नीले अंबर के तले,
प्यास नदी की जब बूझे,
नदी जब सागर से मिले,
प्रेम में इतनी शक्ति है,
बंजर में भी फूल खिले।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/3/20
सोमवार
**
मेरे मन के उपवन में,
खुशियों के फूल खिले,
रात चाँदनी सी महकी,
सपने में जब हम तुम मिले,
लिपटी बेल जब तने से,
रात रानी के फूल खिले,
झूमू सदा संग तेरे,
नीले अंबर के तले,
प्यास नदी की जब बूझे,
नदी जब सागर से मिले,
प्रेम में इतनी शक्ति है,
बंजर में भी फूल खिले।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
16/3/20
सोमवार
दिनांक-१६/३/२०२०
मनपसंद लेखन
"वृक्ष"
फूल हूं मैं,फल हूं मैं
मैं प्रकृति, तुम्हारी मित्र हूं मैं
सघन वृक्ष बन छाया देती
पथिक बन जब तुम आते ।
मेरा फल है सुन्दर उपहार
जो हो भुखे पेट,हो निहाल
सुन्दर है मेरी छवि
फूल सुन्दर पत्ते मनोहर।
जितना प्यार न तुम्हे देती मैं
उतना प्यार मुझे भी दो न
उखारो न जड़ से मुझे
काटो ना डाली मेरा।
हरी भरी रहेगी मेरी जो काया
खिला रहेगा जीवन तुम्हारा
जीवन तुम्हारा सँवर जाएगा
आने वाला संतति मुझे पायेगा।
मैं अनुरागी हूं तुम्हारा
तुम भी बनो अनुरागी मेरा
करते हो यदि अपनी संतति से प्यार
रख लो तुम मेरा मान।
मैं भी तुम्हारी संतति से प्यार करूंगी
फल फूल छाया देती रहूंगी
मुझमें है इतनी चेतना
तुम भी जगाओ अपनी चेतना
तभी सँवरेगा भविष्य तुम्हारा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
मनपसंद लेखन
"वृक्ष"
फूल हूं मैं,फल हूं मैं
मैं प्रकृति, तुम्हारी मित्र हूं मैं
सघन वृक्ष बन छाया देती
पथिक बन जब तुम आते ।
मेरा फल है सुन्दर उपहार
जो हो भुखे पेट,हो निहाल
सुन्दर है मेरी छवि
फूल सुन्दर पत्ते मनोहर।
जितना प्यार न तुम्हे देती मैं
उतना प्यार मुझे भी दो न
उखारो न जड़ से मुझे
काटो ना डाली मेरा।
हरी भरी रहेगी मेरी जो काया
खिला रहेगा जीवन तुम्हारा
जीवन तुम्हारा सँवर जाएगा
आने वाला संतति मुझे पायेगा।
मैं अनुरागी हूं तुम्हारा
तुम भी बनो अनुरागी मेरा
करते हो यदि अपनी संतति से प्यार
रख लो तुम मेरा मान।
मैं भी तुम्हारी संतति से प्यार करूंगी
फल फूल छाया देती रहूंगी
मुझमें है इतनी चेतना
तुम भी जगाओ अपनी चेतना
तभी सँवरेगा भविष्य तुम्हारा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
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