Tuesday, March 3

"भूमिका"03 मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-674
विषय - भूमिका
प्रथम प्रस्तुति


कौन सा किरदार है
कौन का तलबगार है!
कर ले फ़र्क जल्दी वक्त
की तेज रफ्तार है!

भटके नही मन ये हो-
चुनौती स्वीकार है!
जिन्दगी की बागडोर
पकड़े वो दातार है!

उससे तार मिला ले
उसका ये संसार है!
भूमिका उसी ने दी
कर तूँ एतवार है!

जैसा वो नचाये नच
अपना न अधिकार है!
उस रंग में रंग 'शिवम'
होगी जय जयकार है!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 03/03/2020

विषय भूमिका
विधा काव्य

03 मार्च 2020,मंगलवार

महति भूमिका परमपिता
अद्भुत यह संसार बनाया।
जल थल नभ और प्रकृति
रंगबिरंगे स्वरूप सजाया।

रवि शशि का दिव्य प्रकाश
तारे निशा सुसज्जित करते।
मलय पवन के चलते झौंखे
दुनियां की विपदाएँ हरते।

प्रिय भूमिका मात पिता की
संस्कारित स्व बालक करते।
हर पीड़ा विपदा हँस सहलेते
सुयोग्य हित क्या न करते?

जय जवान जय किसान है
तेरी भूमिका अति अद्भुत ।
स्व खातिर कभी न जिया रे
भाग्य विधाता है तू सचमुच।

मातृभूमि नित जय सदा हो
अति भूमिका जगत में तेरी।
पालनहारा तारनहारा प्रिय
सारी जगति तेरी प्रिय चेरी।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

03 मार्च 2020

" भूमिका "

अपनी अपनी भूमिका ईमानदारी से इस देश के विकास में लगाइये

आइये हमारे द्वारा अपने देश को विश्व में सिरमौर बलशाली धनवान बनाने में भूमिका निभाइये

सभी तरह के सोत्रों से है भरपूर हमारा देश
प्रचुर खनिज ..बड़ी बड़ी विशाल जल भरी नदियाँ ..उन्नत हरे भरे पहाड़.. रेगिस्तान ..बर्फ़ यहाँ है क्या नहीं

अफसोस तो यह है कि हम बस आपस में ही लड़ते रहे कभी देश का सोंचा ही नहीं

अब तो कम से कम अपनी अपनी भूमिका समझ उसे ईमानदारी से पूरी तरह निभाइये

यह विश्व गुरु था सारे संसार से भी धनी था इसे उसी शीर्ष पर शीघ्रता से पहुंचाइये

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

दिनांक-03/02/2020
विषय-भूमिका


स्त्री की भूमिका पर.. उद्भूत कविता

हे स्त्री तू कभी पन्नाधाय बनी
कभी जीजाबाई कहलायी।
राष्ट्रहित में अंग्रेजों से लड़कर
झलकारीबाई कहलायी।।
उदर अंश को पीठ पर रखकर
रण में लड़ी तो लक्षमीबाई कहलायी।
औलादों को तिलांजलि देकर तूफानी
फैलादों से टकराई तो अहिल्याबाई कहलायी।
देवत्व को स्वयं में झुकना पड़ा, !
सतीत्व की कसौटी पर खरी उतरी तो सीतामाई कहलायी।।

सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
दिनांक, ३,३,२०२०.
वार, मंगलवार

विषय, भूमिका

यह रंगमंच जो जीवन का,
भूमिका निभाते यहाँ सभी।

बनती सहायक परवरिश ही,
ये बात गलत होती न कभी।

यहाँ शिक्षा जिसने जो पाई है,
विस्तार उसी को वह देगा।

हो सपना खलनायक बनने का,
वाहवाही उसी में तो लेगा ।

भूमिका को समझ लें हम अपनी,
अभी पुकार रहा है वतन हमको।

चलो हाथों से हाथ मिला लें हम ,
करना है एकता को स्वीकार हमें।

कभी भूमिका न अपनी ऐसी हो ,
जो लज्जित कर दे मानवता को।

यहाँ पे जो कर्म करे नित राष्ट्र हित ,
होता है गौरव उस पर ही माता को।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

तिथि-3/3/2020/मंगलवार
विषय-*भूमिका*

विधा-काव्य

मेरी भूमिका नगण्य यहां पर,
सब कुछ ये किया धरा तेरा।
तू जैसा चाहे वैसा करता,
प्रभु चाहे तभी शाम सबेरा।

सभी बिगाड रहे अपनी दुनिया,
रागद्वेष यहां जहर फैलाकर।
प्रेम प्रीत का नाम नहीं लेते,
हम रहते हैं नफरत फैलाकर।

नित यही भूमिका लोग बांधते,
कैसे बीज द्वेषता के बोऐं।
आग यहां पर कैसे लग पाऐ,
हम बहुत देश को क्षति पहुंचाऐं।

आओ तुम रघुनंदन जी फिर से,
अब सर्वनाश दुष्टों का करने।
जो बना रहे विध्वंशक भूमिका,
उद्धार इन्हीं लोगों का करने।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
जयजय श्रीराम रामजी

भा,*भूमिका*काव्य
3/3/2020/मंगलवार
विषय - भूमिका

संसार एक रंगमंच है
हम नाटक के पात्र
निभाते भूमिका
जो सौंपी करतार ने
खुदा के आदेश पर
बाप, बेटा भाई, बन
रक्षा करें हम नार की
माँ, बहन , भाभी बने
संसार सींचें प्यार कर
हर कदम पर नया रिश्ता
इस जहां में जी रहे
नए रिश्तों का सुधा-रस
मस्त हो हम पी रहे
जिंदगी की भूमिका हर
सहजता से जी रहे
सम्बन्ध कुछ उधड़े हुए
बस प्रेम से हम सी रहे
भूमिका सरहद पे सैनिक की
निभानी है हमें
गाड़ अरि सीने तिरंगा
माँ सजानी है हमें
जी चुके जब पात्र अपना
और निभा कर भूमिका
चले जायेंगे जहां से
फिर गिरेगी यवनिका

सरिता गर्ग

3 /2 /2020
बिषय,, भूमिका

ए दुनिया एक रंगमंच हैं
भूमिका सभी की भिन्न भिन्न है
यहाँ कोई प्रशन्न तो किसी का मन खिन्न है
कोई इंसानियत को शर्मसार कर रहा
जानवरों सा ब्यवहार कर रहा
कब किसकी भूमिका समाप्त हो जानता नहीं
मद में चूर ईश्वर को भी पहचानता नहीं
जब भी ऊपर से बुलावा आएगा
धन दौलत माल खजाना यहीं रह जाएगा
खाली हाथ आया है खाली हाथ जाएगा
सत्कर्मों का थैला भर ले जाएगा
स्वर्ण अक्षरों में तेरा नाम लिखा जाएगा
अति बिशिष्ट भूमिका अदा कर जाएगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
मंगलवार-3-3-2020
विषय-भूमिका

विधा-छन्दमुक्त काव्य

इस जीवन में हम
पल पल,हर क्षण
न जाने कितनी
भूमिकाएं निभाते हैं

प्रायः हम मुखौटे पहनकर
जीवन में विविध भूमिकाओं
में स्वयं को ढाल लेते हैं

कभी सच मानकर
अंधश्रद्धा में पड़े रहते हैं
तो कभी धर्म को धारण कर
अंत तक उसे निभाते रहते हैं

जब जीवन के
अनुभव मिलने लगते हैं
तब बिना किसी भूमिका
या बिना औपचारिकता के
दुनिया के समक्ष सहजता से
व्यवहार करने लगते हैं

तब हम स्व में जी रहे होते हैं
बिना कोई और बने
बस कर्तव्य पथ पर
बिन प्रयास सरलता से
चलते चले जाते हैं
भूमिका विहीन हो
निजत्व को निभाते हुए
तब हम द्वैत से
अद्वैत में रहने लगते हैं।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय : भूमिका
विधा : कविता

तिथि : 3.3.2020

मैं भूमिका नहीं पुस्तक हूं,
मात्र भूमिका पढ़ना पर्याप्त नहीं।
पुस्तक भी पढ़ो,
हर अध्याय हर विवरण पढ़ो।

तभी जानो समझोगे मुझे
तभी पहचानोगे मुझे।
वरना तुम्हारा ज्ञान अधूरा रहेगा
तुम्हारी निगाह में
मेरा चित्र कसूरा रहेगा।

चाहे वह पुस्तक हो या मैंं हूं
सार्थकता अधूरेपन मे नहीं संपूर्णता में है
कमी तो अपूर्णता में है।
आओ पढ़ो मुझे, समझो मुझे
अपनी भूमिका अपने पृष्ठ भी परसो मुझे।

भूमिका महत्वपूर्ण है
पुस्तक संपूर्ण है;
संपूर्ण रस पियो
संपूर्णता में जियो।

-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
विषय- भूमिका
भूमिका भारतीय नारियों की

पुरुषों से न कभी कम रही है।
प्रेम, त्याग और धैर्य की वजह से
वे हमेशा ही हर दिल में रही हैं।
सीता और उर्मिला सा त्याग ना
विश्व की किसी नारी में होगा।
राधा और मीरा का प्रेम व विश्वास
बेमिसाल था बेमिसाल रहेगा।
पन्नाधाय की देशभक्ति ने देखो
हँसते-हँसते पुत्र के प्राण दिए।
रानी पद्मिनी ने सखीयों सहित
जोहर में शील रक्षा के लिए प्राण दिए।
आज भी विश्व में वे देश का
गौरव हर क्षेत्र में बढ़ा रही हैं।
लता,सायना,कल्पना बनकर
संगीत,खेल,अंतरिक्ष में हुनर दिखा रही है।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
दिनांक - 03-03-2020
विषय - भूमिका

इस जहाँ में हम सभी,
अपनी भूमिका निभाते हैं,
कुछ भूमिका अच्छे होते,
कुछ बहुत बुरे बन जाते हैं ।

कभी माँ बनकर बच्चों पे,
अपना वात्सल्य लुटाती हैं,
पत्नी बनकर पति सेवा में,
अपना सर्वस्व लुटाती है ।

पुरूष तो पल पल यहाँ,
अपना भी रंग बदलते हैं,
कभी पिता कभी भाई रूप में,
कभी वहसी दरिंदे बन जाते हैं ।

हर वक्त इंसान को अपनी,
भूमिका बदलना पड़ता है,
कभी अपने दुश्मन की खातिर,
कभी हक की ख़ातिर लड़ता है ।
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दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
विषय..भूमिका

जी रहे है सब
बांध भूमिका

निभा रहे फर्ज
बांध भूमिका

करते उपकार
बांध भूमिका

स्वार्थ भरा है
भीतर दिखावा

बांध भूमिका
घुटन अनुभव

हंसता चेहरा
बांध भूमिका

दिन गुजारते
बांध भूमिका

रात दिन खटते
बांध भूमिका

सरकार ढ़ीली
बांध भूमिका

आमदनी कम
खर्च ज्यादा

जीता आदमी
बांध भूमिका।।

स्वरचित
रीतू..ऋतंभरा
दिनांक ३/३/२०२०
शीर्षक_"भूमिका"


नये साल का पार्टी का
चल रहा था डांस,
बच्चे बुढ़े सभी वहां
मचा रहे थे धमाल।
एक किशोरी थी बड़ी खुशहाल
नये साल का स्वागत का
उसे भी था उत्साह।
पर देखकर रह गई दंग,
अपने पिता की बातें
दूसरों के संग।
नही रही वह अब छोटी बच्ची
समझने लगी है समाज के ढंग।
सुन्दर छवि पिता का,
हुआ यूं चकनाचूर
पीड़ा हुई अनन्त
छोड़ चली वह पार्टी
घर लौटी तुरंत।
वार्षिक परीक्षा सर पर था
कर न सकी कमाल
होनहार बिटिया रहने लगी परेशान।
गर निभा नही सकते
अच्छे पिता की भूमिका
तो मत बनो बिटिया के बाप
हर बेटी को चाहिए
सुन्दर छवि का बाप।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
3/3/20

भूमिका नारी की
कितनी दुखद
ढेरो प्रश्नचिह्न
सृस्टि रोपण
जीवन आनंद
आदिकाल से ले
अब तक निरंतर
त्याग प्रेम
और बलिदान
न जी सकी
स्वयं के लिए
कोई विराम
न कोई पूर्ण विराम
ढेरो यातनाएं
उपहास अत्याचार
सहती व्यभिचार
भूमिकाएं साकार
नव सृजन का
करती निर्माण
हर काल मे
हर हाल में
विकास का
इतिहास का
विरोध के रूप का
गहन अंधकार में
उजाले के दृश्यका
मनोरम सृंगार

स्वरचित
मीना तिवारी


विषय-भूमिका
दिनांक ३-३-२०२०


कुटुंब समाज बहुआयामी,भूमिका नारी निभाती।
शिकारी तिक्ष्ण नजर से, खुद को सदा बचाती।

खुद को बलिदान कर,घर परिवार को सजाती।
पुरुष प्रधान समाज में,नारी सम्मान कहाँ पाती।

अबला नादान यही पहचान,वो समाज में पाती।
अपनी अहम भूमिका को,समाज से ही छुपाती।

शक्ति स्वरूपा रणचंडी,एहसास वीणा दिलाती।
ईश्वर की तुम अद्भुत रचना,क्यूं जग से छुपाती।

घर आंगन को रोशन करती ,श्रेष्ठ भूमिका तेरी।
सह असह्य प्रसव वेदना ,तू मनु को धरा लाती।

संस्कारों की शाला बन,सत्कर्म निर्वाहिनी बनती।
हर क्षेत्र परचम लहरा,अब समाज स्थान पाती।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
🌹 शीर्षक :- भूमिका 🌹

फूलो
ं की बाग में,
सुरों की राग में।
शिक्षा की किताब में,
खुशबू की गुलाब में।
जो है भूमिका,
वही तेरी मेरे जीवन में है!!
मूर्ति की मंदिर में,
आस्था की प्रार्थना में।
विश्वास की मन में,
आत्मा की तन में।
जो है भूमिका,
वही तेरी मेरे जीवन में है!!
सूरज की दिन में,
चंदा की रैन में।
तारों की गगन में,
मेघों की बरसात में।
जो है भूमिका,
वही तेरी मेरे जीवन में है!!
प्रीत की प्रणय में,
नेह की आलिंगन में।
अश्क की नयन में,
लहर की सागर में।
जो है भूमिका,
वही तेरी मेरे जीवन में है!!
खाने में नमक की,
चुड़ियों में खनक की।
सितारों में चमक की,
इत्र में महक की।
जो है भूमिका,
वही तेरी मेरे जीवन में है!!

स्वरचित :- "राठौड़ मुकेश"
विषय -- भूमिका
द्वितीय प्रस्तुति


भूमिका समझो सबकीं
करो सदा सम्मान है!
हरेक का सम्मान ही
सचमुच प्रभु का गान है!

रिश्तों में दूरी न हो
रिश्तों से मुस्कान है!
जिसे काम जो है उसमें
लगन समाज उत्थान है!

अपने को जाना मगर
और का न अनुमान है!
ऐसा पथ गर्त में जाय
जिसका नही निदान है!

सभी प्रभु के बन्दे हैं
सबसे उसका अरमान है!
उनको चोट पहुंचाना
तीर प्रभु पर संधान है!

सोचो औ समझो 'शिवम'
क्यों भूला ये इंसान है!
क्या तरक्की की हमने
झूठा सभी गुमान है!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 03/03/2020

तिथि- 03/03/2020
दिन - मंगलवार

विषय - भूमिका
विधा - काव्य

अखण्डता में
खंडता की
भूमिका
बेस्वाद है।
हर किसी का
जीवन हो रहा
बर्बाद है।
ईष्या द्वेष
की भूमिका में
बढ़ रहा
अंधकार है ।
उसके पीछे
मानव पर
हो रहा
घात है।
नफ़रत की
भूमिका में
खो रहा
रिश्तों का
विश्वास है।
झूठ की
भूमिका में
आदमी
मालामाल है ।।

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड


ईश्वर रचित संसार में हर जीव की भूमिकाए विशेष ।
कोई बडा न कोई छोटा सबकी अहम हैं भागीदारी ।

मानव प्राणी उनकी विशेष रचना रखता प्रतिभाएँ अनेक ।
इस संसारिक भव सागर मे पति-पत्नी गठबंधन विशेष ।

जब मिलन हुआ तो उत्पत्ति हुई नये जीवन की
नई भूमिका मिली उन्हें तब मात पिता बनने की।
जहाँ माँ बनी प्रथम गुरु नन्हे बालक की
वही पिता ने संरक्षक की भूमिका निभाई ।
नन्हा बालक ज्यो ज्यो बडा हुआ छाँव मे
बेटे की जिम्मेदारी धीरे से उस पर आई।
ज्यो बहना ने लिया जन्म उसके आँगन में ।
त्यों ही भाई बहन का प्यार के अंंकुर फूटे।

देश के संचालन मे हर नागरिक करता अपना काम
कोई नेता की भूमिका मे तो कोई बनता अभिनेता ।
देश की रक्षा मे तत्पर सैनिक नभ जल और थल में
तो डाक्टर इंजीनियर अध्यापक लगे देश निर्माण मे।

हर मानव के लिए ईश्वर ने तय कर दिए उनके कार्य
हर जीव अपनी भूमिका मे हो गया लीन जीवन काल मे।
धरती गगन और सागर भी नित करते अपने कार्य
पेड पत्ती खेत खलिहान का भी अपना है विशेष स्थान ।

सृष्टि विधाता लिखते आए हम सबका पथमार्ग .....
चलते रहना करते रहना अपने चरित्र विशेष का ध्यान ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव-
शीर्षक -भूमिका
दिनांक- 03/03 /2020


जीवन की पग -पग पर,
अहम भूमिका नारी की।
बन बेटी आंगन में महके,
जैसे फूल क्यारी की।

पथ साथी बन जीवन महाकाये
जैसे खुशबू रजनीगंधा की ।
मां बन जीवन को सवारें ,
जैसे मालिनी बगिया की ।

नारी तो घर की शोभा होती,
आपस में सब को बांधे रखती
बन भगिनी नसीहत देती ,
विस्मित स्मृतियों को संजोती।।

अनेक रूपों में जग में आकर
हैं महती भूमिका निभाती।
जीवन के सुंदर समतल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करती।।

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज






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