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ब्लॉग संख्या :-687
विषय मन पसन्द लेखन
शीर्षक कर्म
विधा काव्य
18 मार्च 2020,बुधवार
सद्कर्मो के फल मीठे हैं
कर्महीन ही जग में रोता।
दिव्य मोती उसे मिला है
जो सागर में खावे गोता।
कर्म प्रधान होते जीवन में
कर्मो से ही नित फल पाते।
कर्म नहीं जीवन शून्य है
कर्म सदा सौभाग्य बनाते।
दुःख सुख कर्मो पर निर्भर
कोई रोता कोई हँसता है।
कुछ अपराधी होकर जीते
भक्तप्रभु कोई कहलाता है।
कर्मो का होता जग जीवन
कर्मो से खिलता है उपवन।
कर्मो का व्यापार करें सब
कर्मो पर निर्भर है तनमन।
कर्म बनते लक्ष्य साधन
कर्म नरक है कर्म स्वर्ग है।
कर्म करे नित बढ़ते आगे
कर्मशील जग महापर्व है।
जीवन है कर्मो का गुच्छा
कर्म समस्या की चाबी है।
सद्कर्मों से जो भटका है
अशुभ जीवन में बर्बादी है।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक कर्म
विधा काव्य
18 मार्च 2020,बुधवार
सद्कर्मो के फल मीठे हैं
कर्महीन ही जग में रोता।
दिव्य मोती उसे मिला है
जो सागर में खावे गोता।
कर्म प्रधान होते जीवन में
कर्मो से ही नित फल पाते।
कर्म नहीं जीवन शून्य है
कर्म सदा सौभाग्य बनाते।
दुःख सुख कर्मो पर निर्भर
कोई रोता कोई हँसता है।
कुछ अपराधी होकर जीते
भक्तप्रभु कोई कहलाता है।
कर्मो का होता जग जीवन
कर्मो से खिलता है उपवन।
कर्मो का व्यापार करें सब
कर्मो पर निर्भर है तनमन।
कर्म बनते लक्ष्य साधन
कर्म नरक है कर्म स्वर्ग है।
कर्म करे नित बढ़ते आगे
कर्मशील जग महापर्व है।
जीवन है कर्मो का गुच्छा
कर्म समस्या की चाबी है।
सद्कर्मों से जो भटका है
अशुभ जीवन में बर्बादी है।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन मंच
किस्मत के किस्से
क्या-क्या शायरी में शुमार हो गया
अलहदा सा जीवन हमार हो गया।।
कहाँ चाहा था हटकर के चलना पर
अपना कहाँ रब का इख़्तियार हो गया।।
लिखी थी स्क्रिप्ट ऐसी मेरी
आज उससे साक्षात्कार हो गया।।
पढ़कर स्क्रिप्ट अपनी हँसी आय है
कहीं फरिश्ता कहीं गुनहगार हो गया।।
मैं तो सीधा ही चल रहा था मगर
कहीं बेवजह ही टकरार हो गया।।
कभी ये जिन्दगी सौगात लगी तो
कभी लगा जैसे कि खुमार हो गया।।
प्यार पहला किसको नही रूलाया है
मेरे अन्दाज़े बयां का सार हो गया।।
कैसे कैसे अहसास हैं किस्मत से
खासा अनुभवी समझदार हो गया।।
देख ही सकते लेखन कहीं किस्सा
तीखा कहीं जायकेदार हो गया।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 18/03/2020
किस्मत के किस्से
क्या-क्या शायरी में शुमार हो गया
अलहदा सा जीवन हमार हो गया।।
कहाँ चाहा था हटकर के चलना पर
अपना कहाँ रब का इख़्तियार हो गया।।
लिखी थी स्क्रिप्ट ऐसी मेरी
आज उससे साक्षात्कार हो गया।।
पढ़कर स्क्रिप्ट अपनी हँसी आय है
कहीं फरिश्ता कहीं गुनहगार हो गया।।
मैं तो सीधा ही चल रहा था मगर
कहीं बेवजह ही टकरार हो गया।।
कभी ये जिन्दगी सौगात लगी तो
कभी लगा जैसे कि खुमार हो गया।।
प्यार पहला किसको नही रूलाया है
मेरे अन्दाज़े बयां का सार हो गया।।
कैसे कैसे अहसास हैं किस्मत से
खासा अनुभवी समझदार हो गया।।
देख ही सकते लेखन कहीं किस्सा
तीखा कहीं जायकेदार हो गया।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 18/03/2020
दिनांक-18 /03/2020
"मनपसंद विषय लेखन के तहत"
विधा- ग़ज़ल
मापनी-1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया- बरकात (आता स्वर)
रदीफ़- लिख देना।
========================
खुशी की बात बन जाए उसे बरकात लिख देना।
नहीं मिलती खुशी की रौशनी ज़ुलमात लिख देना।।
********************************
महरबानी अगर तुम कर सको तो मुझ को बहतर है,
गुज़ारिश फिर सनम हक़ में मेरे बरसात लिख देना।।
*********************************
जिसे मैं ढूँढ़ता फिरता ज़रूरी काम है उससे,
नहीं पाया कहीं मैंने कुठाराघात लिख देना।।
*********************************
गया है ख़त उन्हें देने को कासिद आ रहा होगा,
अगर लौटा नहीं तो बद मेरे हालात लिख देना।।
*********************************
मुहब्बत टूट जाए तो मुहब्बत मत उसे कहना,
बिना पर नफ़रतों की फिर उसे आघात लिख देना।।
===========================
'अ़क्स' दौनेरिया
"मनपसंद विषय लेखन के तहत"
विधा- ग़ज़ल
मापनी-1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया- बरकात (आता स्वर)
रदीफ़- लिख देना।
========================
खुशी की बात बन जाए उसे बरकात लिख देना।
नहीं मिलती खुशी की रौशनी ज़ुलमात लिख देना।।
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महरबानी अगर तुम कर सको तो मुझ को बहतर है,
गुज़ारिश फिर सनम हक़ में मेरे बरसात लिख देना।।
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जिसे मैं ढूँढ़ता फिरता ज़रूरी काम है उससे,
नहीं पाया कहीं मैंने कुठाराघात लिख देना।।
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गया है ख़त उन्हें देने को कासिद आ रहा होगा,
अगर लौटा नहीं तो बद मेरे हालात लिख देना।।
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मुहब्बत टूट जाए तो मुहब्बत मत उसे कहना,
बिना पर नफ़रतों की फिर उसे आघात लिख देना।।
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'अ़क्स' दौनेरिया
18/3/2020
बिषय स्वतंत्र लेखन
ए दिल जबसे उनका दीवाना हुआ
जीने का मुझको बहाना हुआ
घर में मेरे आने जाने लगे
तभी से ए मौसम सुहाना हुआ
मुझे अपने से वो लगने लगे
दुनिया से रिश्ता पुराना हुआ
लोग ताने मुझे अब देने लगे
दुश्मन ए सारा जमाना हुआ
घड़ी दो घड़ी जो ठहर जाओगे
अभी अभी है मैंने पहचाना हुआ
कहीं छोड़ न देना तुम साथ मेरा
फिर तो दिल को दुखाना हुआ
तेरे पकड़े चरण न छोड़ूंगी कन्हैया
मेरी भक्ति का ए नजराना हुआ
बस तुम ही तुम बसे हो दिल में
जबसे तेरे दर पे शीश झुकाना हुआ
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय स्वतंत्र लेखन
ए दिल जबसे उनका दीवाना हुआ
जीने का मुझको बहाना हुआ
घर में मेरे आने जाने लगे
तभी से ए मौसम सुहाना हुआ
मुझे अपने से वो लगने लगे
दुनिया से रिश्ता पुराना हुआ
लोग ताने मुझे अब देने लगे
दुश्मन ए सारा जमाना हुआ
घड़ी दो घड़ी जो ठहर जाओगे
अभी अभी है मैंने पहचाना हुआ
कहीं छोड़ न देना तुम साथ मेरा
फिर तो दिल को दुखाना हुआ
तेरे पकड़े चरण न छोड़ूंगी कन्हैया
मेरी भक्ति का ए नजराना हुआ
बस तुम ही तुम बसे हो दिल में
जबसे तेरे दर पे शीश झुकाना हुआ
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
विषय स्वैच्छिक
विधा कविता
दिनाँक 18.3.2020
दिन बुधवार
मेरी बहना
💘💘💘💘
पूरी गर्मजोशी उसने, अपनी मुस्कान में ही ढाल दी,
दर्द झेलते हुए भी मेरी ओर,अपनी खुशियाँ उछाल दी,
नज़र उतारने की मुद्रा में, उसने तत्काल मुझ पर,
कुछ अनमोल ऑसू निकाले, झर झर झर,
फिर हाथों को अपने, उसने हवा में उछाल दिया,
बुरी नज़रों का बोझ,पूरी हवा में डाल दिया।
वो लेटी लेटी, एकदम उठ बैठी,
बावज़ूद इसके कि, उसकी पीड़ा थी ऐंठी ऐंठी,
बावली हो गई, मुझे निहारती ही रही,
समृध्दि के मन्त्र मुझ पर, वारती रही,
उसके चेहरे पर , वात्सल्य के सारे भाव थे,
मुझ पर न्योछावर होने के, पूरे बहाव थे।
मैं किम् कर्तव्य की मुद्रा में, सोच रहा था,
अपनी ठोड़ी को, खरोंच रहा था,
यदि ये स्वस्थ होती तो क्या करती,
मेरे उपर हर चीज की बौछारें करती ।
भावुकता ने उसके माथे पर, टीका अवश्य किया होगा,
उसने अपने आपको भी,
गर्वित महसूस किया होगा।
क्योंकि मिलने वाला भाई भी,अधूरा था,
अपने आप में वह भी,कहाँ पूरा था,
उसके ऊपर भी ,कहाँ थी ठण्डी छाँव,
आया था लेकर वह भी,केवल एक पाँव।
चाहे कुछ भी हो,बहन की छाया माँ से कम नहीं होती,
पीड़ा कितनी भी हो,इतनी विषम नहीं होती।
बहनें अमर रहें
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 18.3.2020
दिन बुधवार
मेरी बहना
💘💘💘💘
पूरी गर्मजोशी उसने, अपनी मुस्कान में ही ढाल दी,
दर्द झेलते हुए भी मेरी ओर,अपनी खुशियाँ उछाल दी,
नज़र उतारने की मुद्रा में, उसने तत्काल मुझ पर,
कुछ अनमोल ऑसू निकाले, झर झर झर,
फिर हाथों को अपने, उसने हवा में उछाल दिया,
बुरी नज़रों का बोझ,पूरी हवा में डाल दिया।
वो लेटी लेटी, एकदम उठ बैठी,
बावज़ूद इसके कि, उसकी पीड़ा थी ऐंठी ऐंठी,
बावली हो गई, मुझे निहारती ही रही,
समृध्दि के मन्त्र मुझ पर, वारती रही,
उसके चेहरे पर , वात्सल्य के सारे भाव थे,
मुझ पर न्योछावर होने के, पूरे बहाव थे।
मैं किम् कर्तव्य की मुद्रा में, सोच रहा था,
अपनी ठोड़ी को, खरोंच रहा था,
यदि ये स्वस्थ होती तो क्या करती,
मेरे उपर हर चीज की बौछारें करती ।
भावुकता ने उसके माथे पर, टीका अवश्य किया होगा,
उसने अपने आपको भी,
गर्वित महसूस किया होगा।
क्योंकि मिलने वाला भाई भी,अधूरा था,
अपने आप में वह भी,कहाँ पूरा था,
उसके ऊपर भी ,कहाँ थी ठण्डी छाँव,
आया था लेकर वह भी,केवल एक पाँव।
चाहे कुछ भी हो,बहन की छाया माँ से कम नहीं होती,
पीड़ा कितनी भी हो,इतनी विषम नहीं होती।
बहनें अमर रहें
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय-मनपसंद लेखन ।
शीर्षक -कह रहा है कोरोना।
स्वरचित।
चलो अब लौट आओ अपनी जड़ों में तुम।
कह रहा है कोरोना.... हंस-हंसकर.. हंस-हंसकर।।
बहुत तुम विदेशों में थे भरमाए तुम।
पाश्चात्य सभ्यता में मन हर्षाए।
चलो अब मां के आंचल में विश्राम पाए।
कह रहा है कोरोना... हंस हंस कर.. हंस हंस कर।।
भूल गए खानपान सात्विकता का मूल तुम।
अहिंसा ही है मूल भारतीयता को अपनायें।
चलो अब लौट शाकाहारी पर आएं।
कह रहा है कोरोना... हंस हंस कर... हंस-हंस कर।।
भूले संस्कार और संस्कृति पहचान तुम।
हाय, हेलो के, झप्पी-पप्पी के विकार तुम।
चलो अब नमस्ते,प्रणाम, राम-राम दोहराएं।
कह रहा है कोरोना हंस हंस कर..., हंस-हंसकर।।
चलो अब लौट आओ अपनी जड़ों में तुम।
दे दो मात अपनी प्रवृत्ति मनोवृत्ति से।
प्रकृति है वरदान जुड़ इसी से जायें।
चला जाएगा खाली हाथ कोरोना रो रो कर...रो रो कर..।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
17/03/20 20
शीर्षक -कह रहा है कोरोना।
स्वरचित।
चलो अब लौट आओ अपनी जड़ों में तुम।
कह रहा है कोरोना.... हंस-हंसकर.. हंस-हंसकर।।
बहुत तुम विदेशों में थे भरमाए तुम।
पाश्चात्य सभ्यता में मन हर्षाए।
चलो अब मां के आंचल में विश्राम पाए।
कह रहा है कोरोना... हंस हंस कर.. हंस हंस कर।।
भूल गए खानपान सात्विकता का मूल तुम।
अहिंसा ही है मूल भारतीयता को अपनायें।
चलो अब लौट शाकाहारी पर आएं।
कह रहा है कोरोना... हंस हंस कर... हंस-हंस कर।।
भूले संस्कार और संस्कृति पहचान तुम।
हाय, हेलो के, झप्पी-पप्पी के विकार तुम।
चलो अब नमस्ते,प्रणाम, राम-राम दोहराएं।
कह रहा है कोरोना हंस हंस कर..., हंस-हंसकर।।
चलो अब लौट आओ अपनी जड़ों में तुम।
दे दो मात अपनी प्रवृत्ति मनोवृत्ति से।
प्रकृति है वरदान जुड़ इसी से जायें।
चला जाएगा खाली हाथ कोरोना रो रो कर...रो रो कर..।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
17/03/20 20
मनपसंद विषय
18/03/2020
×××××××××××
कोरोना का जब चला डंडा
अवेयरनेस का मिला फंडा
स्वच्छता सहयोग का अब
गाड़ रहे लोग मिलकर झंडा
जो अभी तक पड़ा था ठंडा
अब कोई ना खाए मांस अंडा
अंधविश्वास आज भी हैं जिंदा
कोरोना भगाओ बिकता गंडा
बच्चें नहीं खेल रहें गुल्ली-डंडा
सभी को डरा रहा कोरोना गुंडा
सोच रहें है कौनसा करे उपाय
अपनाओं हाथ धोने का हथकंडा
डाॅ.मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
विधा : कविता
तिथि : 18.3.2020
नींद मेरी
सपने तेरे,
नींद तेरी
सपने मेरे,
पूरे करेंगे दोनों मिल कर-
तेरे हों या हों मेरे।
मिट जाए गा तेरा-मेरा
जब वे बन जाएंगे हमारे,
दोनों मिल कर इन्हें संवारे-
हो जाएंगे वारे न्यारे,
खिल जाएंगे चांद तारे
रिश्ते बनेंगे और प्यारे।
आओ मिल कर कसम ये धारें
सदा जुड़े रहेंगे हाथ हमारे,
इक दूजे पर सब कुछ वारें-
बाधाओं से कभी न हारें,
पलटवार मिल देंगे करारे-
देखें गे रब भी सारे।
जो भी पल होंगे खारे
बनाएं गे उन्हें मीठे छुहारे,
भाग्य को लगा कर लारे-
उतारें गे किस्मत के पारे,
मिलजुल कर पतवार चला रे-
नौका वही जो पार उतारे।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
तिथि : 18.3.2020
नींद मेरी
सपने तेरे,
नींद तेरी
सपने मेरे,
पूरे करेंगे दोनों मिल कर-
तेरे हों या हों मेरे।
मिट जाए गा तेरा-मेरा
जब वे बन जाएंगे हमारे,
दोनों मिल कर इन्हें संवारे-
हो जाएंगे वारे न्यारे,
खिल जाएंगे चांद तारे
रिश्ते बनेंगे और प्यारे।
आओ मिल कर कसम ये धारें
सदा जुड़े रहेंगे हाथ हमारे,
इक दूजे पर सब कुछ वारें-
बाधाओं से कभी न हारें,
पलटवार मिल देंगे करारे-
देखें गे रब भी सारे।
जो भी पल होंगे खारे
बनाएं गे उन्हें मीठे छुहारे,
भाग्य को लगा कर लारे-
उतारें गे किस्मत के पारे,
मिलजुल कर पतवार चला रे-
नौका वही जो पार उतारे।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
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18 - 03 - 2020, बुधवार,
मन पसंद रचना
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गद्दारों की भीड़ है, देना उनको दंड।
लोगों को भड़का रहे, मन में बहुत घमंड।।
गृह-मंत्री बनना मुझे, करना है यह काम।
रहे देश की एकता, सुखद मिलें परिणाम।।
अमन चैन के वासते, पुलिस रहे मुस्तैद।
स्वस्थ रहें सब आदमी, लाखों होंगे वैद।।
झगड़े झंझट जो करे, उसको डालूँ जेल।
सावधान सब ही रहें, नहीं चले यह खेल।।
18 - 03 - 2020, बुधवार,
मन पसंद रचना
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गद्दारों की भीड़ है, देना उनको दंड।
लोगों को भड़का रहे, मन में बहुत घमंड।।
गृह-मंत्री बनना मुझे, करना है यह काम।
रहे देश की एकता, सुखद मिलें परिणाम।।
अमन चैन के वासते, पुलिस रहे मुस्तैद।
स्वस्थ रहें सब आदमी, लाखों होंगे वैद।।
झगड़े झंझट जो करे, उसको डालूँ जेल।
सावधान सब ही रहें, नहीं चले यह खेल।।
दिनांक, 18, 3, 2020.
वार, बुधवार
मन पसंद लेखन
विषय - कोरोना
चीन देश से चलकर आया,
घातक बड़ा रोग कोरोना।
दुनियाँ भर में फैल रहा है,
लोगों को भय सता रहा है।
बात नहीं है डरने वाली,
सेहत की करना रखवाली।
साफ सफाई खास रहेगी,
वैदिक पद्धति काम करेगी।
शाकाहारी भोजन होगा,
खतरा पास नहीं फटकेगा।
गिलोय वनस्पति अपना लो,
बल रोग प्रतिरोधक बढ़ा लो।
अदरक तुलसी को मत भूलो,
चाय संग इनको भी पी लो ।
हाथ जोड़ अभिवादन करना ,
श्वांस रोग से बचकर रहना।
सावधानी हमें है रखना ,
भाग खड़ा होगा कोरोना।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
वार, बुधवार
मन पसंद लेखन
विषय - कोरोना
चीन देश से चलकर आया,
घातक बड़ा रोग कोरोना।
दुनियाँ भर में फैल रहा है,
लोगों को भय सता रहा है।
बात नहीं है डरने वाली,
सेहत की करना रखवाली।
साफ सफाई खास रहेगी,
वैदिक पद्धति काम करेगी।
शाकाहारी भोजन होगा,
खतरा पास नहीं फटकेगा।
गिलोय वनस्पति अपना लो,
बल रोग प्रतिरोधक बढ़ा लो।
अदरक तुलसी को मत भूलो,
चाय संग इनको भी पी लो ।
हाथ जोड़ अभिवादन करना ,
श्वांस रोग से बचकर रहना।
सावधानी हमें है रखना ,
भाग खड़ा होगा कोरोना।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
बड़ी बदहाल सी दुनिया।
बड़ी बदहवास सी दुनिया।
मची है धूम कोरोना की।
अजीब हैरान सी दुनिया।
समय के फेर में दुनिया।
अजी बर्बाद सी दुनिया।
कोई आबाद है जग में।
किसी की लूट गई दुनिया।
बड़ी मायूस सी दुनिया।
बड़ी चुपचाप सी दुनिया।
नजरबंद हो गए घरपर।
अकेली सी पड़ी दुनिया।
न हँसने दे रही दुनिया।
न रोने दे रही दुनिया।
मिलाना हाथ है भूली।
नमस्ते धूम की दुनिया।
स्वरचित
मीना तिवारी .
18 मार्च 2020
ख्वाहिशों को अपनी कभी न दफ्न होने दो
जिंदगी बडी अनमोल कभी न खत्म होने दो ....
बनाए है बडी मुश्किल से ,ये रिश्ते प्यार के
बातों से अपनी इनमे कभी न जख्म होने दो ....
कौन है ऐसा यहां जो झोली भर कर ले गया
बांट कर खुश रह लो कभी न जश्न होने दो .....
वहम से बिखर गए ताज और तख्त सभी
हम न बिखर जाए, ऐसा कभी न हश्र होने दो .....
किसी को सब मिला ,कोई खाली चला गया
मायूस रहने का यहां कभी न वक्त होने दो ......
मंजिल मिलती है यार बहुत दूर तक चलके
हौंसलो को अपने 'कमल'कभी न पस्त होने दो ...
.......कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
ख्वाहिशों को अपनी कभी न दफ्न होने दो
जिंदगी बडी अनमोल कभी न खत्म होने दो ....
बनाए है बडी मुश्किल से ,ये रिश्ते प्यार के
बातों से अपनी इनमे कभी न जख्म होने दो ....
कौन है ऐसा यहां जो झोली भर कर ले गया
बांट कर खुश रह लो कभी न जश्न होने दो .....
वहम से बिखर गए ताज और तख्त सभी
हम न बिखर जाए, ऐसा कभी न हश्र होने दो .....
किसी को सब मिला ,कोई खाली चला गया
मायूस रहने का यहां कभी न वक्त होने दो ......
मंजिल मिलती है यार बहुत दूर तक चलके
हौंसलो को अपने 'कमल'कभी न पस्त होने दो ...
.......कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक 18 मार्च 2020
विषय अफवाह
किसके मन में,किसके लिए कहां परवाह चलती है
खबरों से तेज तो साहब यहां अफवाह चलती है
किसने कहा, कब कहा, जानने की कोशिश नही
भीड तो भेड चाल सी हो यहां लापरवाह चलती है
डर भगाता इंसान को, इधर से उधर यहां दुनिया में
सबकी परवाह करती ये दुनिया बेपरवाह चलती है
सोचे,समझे, जाने कि हकीकत क्या है, क्या सच है
मुसीबत की घडियों मे कारगर यहां सलाह चलती है
जन्मभूमि यह पवित्र संतो की, मंत्रों से पूजित 'कमल'
नफरतों के दौर में भी मौहब्बते यहां बेपनाह चलती है
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय अफवाह
किसके मन में,किसके लिए कहां परवाह चलती है
खबरों से तेज तो साहब यहां अफवाह चलती है
किसने कहा, कब कहा, जानने की कोशिश नही
भीड तो भेड चाल सी हो यहां लापरवाह चलती है
डर भगाता इंसान को, इधर से उधर यहां दुनिया में
सबकी परवाह करती ये दुनिया बेपरवाह चलती है
सोचे,समझे, जाने कि हकीकत क्या है, क्या सच है
मुसीबत की घडियों मे कारगर यहां सलाह चलती है
जन्मभूमि यह पवित्र संतो की, मंत्रों से पूजित 'कमल'
नफरतों के दौर में भी मौहब्बते यहां बेपनाह चलती है
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
तिथि- 18/03/2020
दिन- बुधवार
आज मन पसंद विषय पर हमारी प्रस्तुति .....
विषय - "कोरोना "
विधा -- स्वतंत्र कविता
जागो देश के कर्णधार,
आया है तूफ़ान ।
मातृभूमि पुकार रही,
करो इसका निदान।।
कोरोना है नाम जिसका,
मचाया है कोहराम ।
चीन ने फैलाई है ये दहशत ,
दुनिया में तबाही का मंजर।।
खांसी आती हम डर जाते ,
पता नहीं कैसे बचेगी अब जान।
सेना -नेता कुछ नहीं कर पाते ,
डाक्टर को दवा की नहीं पहचान।।
हो साधु संयम बरतो खुद ही,
मांस मदिरा का सेवन छोड़ो
साफ़ सफाई का रखो ध्यान
जागो हे देश के कर्णधार ।।
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
दिन- बुधवार
आज मन पसंद विषय पर हमारी प्रस्तुति .....
विषय - "कोरोना "
विधा -- स्वतंत्र कविता
जागो देश के कर्णधार,
आया है तूफ़ान ।
मातृभूमि पुकार रही,
करो इसका निदान।।
कोरोना है नाम जिसका,
मचाया है कोहराम ।
चीन ने फैलाई है ये दहशत ,
दुनिया में तबाही का मंजर।।
खांसी आती हम डर जाते ,
पता नहीं कैसे बचेगी अब जान।
सेना -नेता कुछ नहीं कर पाते ,
डाक्टर को दवा की नहीं पहचान।।
हो साधु संयम बरतो खुद ही,
मांस मदिरा का सेवन छोड़ो
साफ़ सफाई का रखो ध्यान
जागो हे देश के कर्णधार ।।
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
तिथि-18/3/2020/बुधवार
विषय-*कोरोना वायरस*
विधा-छंदमुक्त
कोई मुंह ढंके घूम रहा
कोई कहीं छींक रहा
यहां कोई बुखार में दबा
भीड़ से भी नहीं बच रहा।
प्रदूषित प्रर्यावरण हो गया
ऊपर से कोरोना आ रहा
पूरी दुनिया में ही देख रहे
हमको ये सता रहा।
कोरोना वायरस का डर
फैला घर घर।
परेशान आदमी डरकर रहता।
कोई छिपकर कहीं छिपा कर रखा हुआ है।
फिर भी कोरोन ढूंढ रहा है।
हर गली मोहल्ले
नगर शहर गांव में
आतंक मचा है।
चीन ने छोड़ा तो दुनिया में पहुचा,
ये तो सबको नचा रहा है
एक देश से देश भगाए रहा है।
इसके कैदियों की संख्या बढ़ रही है
धीरे-धीरे जनसंख्या भी घट रही है।
मानवीयता मर रही है
अवसर का लाभ उठा
आज भी कुछ विचारधारा अपनी
तिजोरियां भर रही है।
उपकरण औषधियों का अकाल पड़ गया
महामारी का प्रकोप बढ़ गया
चीन की चाल चल गई
मगर इंसानियत गल रही।
बचाव ही इलाज है
सफाई बड़ा रंज है
दिखे नहीं कहां छुपा
इसका भी बड़ा राज है।
नजरबंद हम हुए
इसी में बहुत घोटाले हुए
सज्ञझ नहीं सकें हम कोई
आदमी यहां बेहाल हुए।
अबतक हम यूंही रहेंगे
कोरोना क्या हम आपस में ही डरेंगे।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
विषय-*कोरोना वायरस*
विधा-छंदमुक्त
कोई मुंह ढंके घूम रहा
कोई कहीं छींक रहा
यहां कोई बुखार में दबा
भीड़ से भी नहीं बच रहा।
प्रदूषित प्रर्यावरण हो गया
ऊपर से कोरोना आ रहा
पूरी दुनिया में ही देख रहे
हमको ये सता रहा।
कोरोना वायरस का डर
फैला घर घर।
परेशान आदमी डरकर रहता।
कोई छिपकर कहीं छिपा कर रखा हुआ है।
फिर भी कोरोन ढूंढ रहा है।
हर गली मोहल्ले
नगर शहर गांव में
आतंक मचा है।
चीन ने छोड़ा तो दुनिया में पहुचा,
ये तो सबको नचा रहा है
एक देश से देश भगाए रहा है।
इसके कैदियों की संख्या बढ़ रही है
धीरे-धीरे जनसंख्या भी घट रही है।
मानवीयता मर रही है
अवसर का लाभ उठा
आज भी कुछ विचारधारा अपनी
तिजोरियां भर रही है।
उपकरण औषधियों का अकाल पड़ गया
महामारी का प्रकोप बढ़ गया
चीन की चाल चल गई
मगर इंसानियत गल रही।
बचाव ही इलाज है
सफाई बड़ा रंज है
दिखे नहीं कहां छुपा
इसका भी बड़ा राज है।
नजरबंद हम हुए
इसी में बहुत घोटाले हुए
सज्ञझ नहीं सकें हम कोई
आदमी यहां बेहाल हुए।
अबतक हम यूंही रहेंगे
कोरोना क्या हम आपस में ही डरेंगे।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
🙏कोई समझ ना पाया🙏
माँ ममता की गहराई को,कोई समझ न पाया है।
नो माह दर्द सहा,और मनु को उसने ही बनाया है।
सब कुछ किया समर्पित,पर सम्मान ना पाया है।
माँ का दिल कितना बड़ा, सब उसमें समाया है।
रख होठों पर मुस्कुराहट,दर्द को उसने छुपाया है।
ममता आगे मजबूर,किसी को कुछ ना बताया है।
आँख में आया आसुं,कचरे का बहाना बनाया है।
रोते-रोते हंसने लगी,बेटे को जब सामने पाया है।
पर पत्नी आते ही, क्यूं कोहराम घर मचाया है।
किसका दोष इसमें, अब भी समझ ना आया है।
हर घर हाल यही,संस्कार अभाव नजर आया है।
सास को माँ माना,पर सम्मान नजर ना आया है।
तू भी तो एक औरत ,ये बस मैंने याद दिलाया है।
बनेगी तू भी सास ,तूने भी तो एक बेटा जाया है।
बच्चों की खुशियों में शामिल,हर गम यूं भूलाया है।
प्रभु नहीं आते धरा,माँ को उन्होंने ही भिजवाया है।
कहती वीणा माँ ममता, बखान नहीं हो पाया है।
किस्मत वाला जग में वो, जिसने माँ प्रेम पाया है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
माँ ममता की गहराई को,कोई समझ न पाया है।
नो माह दर्द सहा,और मनु को उसने ही बनाया है।
सब कुछ किया समर्पित,पर सम्मान ना पाया है।
माँ का दिल कितना बड़ा, सब उसमें समाया है।
रख होठों पर मुस्कुराहट,दर्द को उसने छुपाया है।
ममता आगे मजबूर,किसी को कुछ ना बताया है।
आँख में आया आसुं,कचरे का बहाना बनाया है।
रोते-रोते हंसने लगी,बेटे को जब सामने पाया है।
पर पत्नी आते ही, क्यूं कोहराम घर मचाया है।
किसका दोष इसमें, अब भी समझ ना आया है।
हर घर हाल यही,संस्कार अभाव नजर आया है।
सास को माँ माना,पर सम्मान नजर ना आया है।
तू भी तो एक औरत ,ये बस मैंने याद दिलाया है।
बनेगी तू भी सास ,तूने भी तो एक बेटा जाया है।
बच्चों की खुशियों में शामिल,हर गम यूं भूलाया है।
प्रभु नहीं आते धरा,माँ को उन्होंने ही भिजवाया है।
कहती वीणा माँ ममता, बखान नहीं हो पाया है।
किस्मत वाला जग में वो, जिसने माँ प्रेम पाया है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक_१८/३/२०२०
मनपंसद लेखन
कुंडलियां
"काजल"
काजल लगाकर नारी,करे रूप श्रृंगार।
देखन में भली लगे, पिया करे मनुहार।
पिया करे मनुहार, कि हरषित होती नारी
सजी सँवर कर स्वंय,घर सँवारती नारी
कह"आर"सुन नार,सजी रहना हर पल।
साजन को मन भाये,नैनो में रहे काजल।
सड़क
बापू तेरे देश का,हाल हुआ बेहाल
जान माल की क्षति यहाँ, सुविधा नही मुहाल।
सुविधा नही मुहाल,की रोएं जनता सारी।
सड़कों के गढ़े भरे,दूर हो बेरोजगारी।
कहे कवि समुझाये,सड़क सुरक्षा सदा जापू
रहे सुरक्षित सदा,कहते हमारे बापू।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
मनपंसद लेखन
कुंडलियां
"काजल"
काजल लगाकर नारी,करे रूप श्रृंगार।
देखन में भली लगे, पिया करे मनुहार।
पिया करे मनुहार, कि हरषित होती नारी
सजी सँवर कर स्वंय,घर सँवारती नारी
कह"आर"सुन नार,सजी रहना हर पल।
साजन को मन भाये,नैनो में रहे काजल।
सड़क
बापू तेरे देश का,हाल हुआ बेहाल
जान माल की क्षति यहाँ, सुविधा नही मुहाल।
सुविधा नही मुहाल,की रोएं जनता सारी।
सड़कों के गढ़े भरे,दूर हो बेरोजगारी।
कहे कवि समुझाये,सड़क सुरक्षा सदा जापू
रहे सुरक्षित सदा,कहते हमारे बापू।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
आयोजन- मनपसंद लेखन एवं ऑडियो वीडियो प्रस्तुति
दिनांक-18/ 03/ 2020
दिन- बुधवार
विधा-कविता
शीर्षक-चलता चला गया
रचनाकार-सुनील कुमार
जिंदगी की राह पर
चलता चला गया
राह की मुश्किलों से
लड़ता चला गया
सोचा था मेरे दुश्मनों ने
मंजिल कहां ये पाएगा
थक- हार कर एक दिन
वापस आ जाएगा
पर मैंने भी कभी हार न मानी
मुश्किलों से हमेशा लड़ने की ठानी देख हौसले मेरे कुहासा राह का छंटता चला गया
मंजिल दिखी सामने
और मैं बढ़ता चला गया।
स्वरचित-सुनील कुमार
जिला-बहराइच, उत्तर प्रदेश।
दिनांक-18/ 03/ 2020
दिन- बुधवार
विधा-कविता
शीर्षक-चलता चला गया
रचनाकार-सुनील कुमार
जिंदगी की राह पर
चलता चला गया
राह की मुश्किलों से
लड़ता चला गया
सोचा था मेरे दुश्मनों ने
मंजिल कहां ये पाएगा
थक- हार कर एक दिन
वापस आ जाएगा
पर मैंने भी कभी हार न मानी
मुश्किलों से हमेशा लड़ने की ठानी देख हौसले मेरे कुहासा राह का छंटता चला गया
मंजिल दिखी सामने
और मैं बढ़ता चला गया।
स्वरचित-सुनील कुमार
जिला-बहराइच, उत्तर प्रदेश।
दिनाँक-18/03/2020
विधा-चौपाई
विषय-मनपसंद लेखन
सागर
सागर अतिशय होता गहरा।
नहीं उर्मियों पर है पहरा।
गुण महान सागर में आया।
तभी मान भी इसने पाया। (1)
निज अंतर में रतन छिपाए।
रत्नाकर तब नाम कहाए।
विविध रूप है उदधि दिखाता।
जीवन के सब रूप जताता।(2)
कभी क्रुद्ध हो गर्जन करता।
लहरों की फुँफकारें भरता।
मानो जलधि क्रोध दर्शाता।
फेंक भँवर अरि को दहलाता।(3)
जब जहाज इस मे फँस जाते।
दिशा भूल कर चक्कर खाते।
जब सागर संयमित हो जाता।
सौंदर्य राशि अनुपम बिखराता।(4)
सागर से लें शिक्षा भाई।
मन मे रखें अतल गहराई।
ओछापन है मान गिराता।
धीर मनुज ही पूजा जाता।(5)
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विधा-चौपाई
विषय-मनपसंद लेखन
सागर
सागर अतिशय होता गहरा।
नहीं उर्मियों पर है पहरा।
गुण महान सागर में आया।
तभी मान भी इसने पाया। (1)
निज अंतर में रतन छिपाए।
रत्नाकर तब नाम कहाए।
विविध रूप है उदधि दिखाता।
जीवन के सब रूप जताता।(2)
कभी क्रुद्ध हो गर्जन करता।
लहरों की फुँफकारें भरता।
मानो जलधि क्रोध दर्शाता।
फेंक भँवर अरि को दहलाता।(3)
जब जहाज इस मे फँस जाते।
दिशा भूल कर चक्कर खाते।
जब सागर संयमित हो जाता।
सौंदर्य राशि अनुपम बिखराता।(4)
सागर से लें शिक्षा भाई।
मन मे रखें अतल गहराई।
ओछापन है मान गिराता।
धीर मनुज ही पूजा जाता।(5)
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक-18/03/2020
मनपसंद लेखन
शीर्षक-हाय कोरोना
हाय कोरोना
हाय कोरोना हाय कोरोना
तुम कोरोना से डरो ना
माना विश्व में तबाही मचाई है इसने
पर तुम भी सुरक्षा अपनाओ ना।
बचपन से सिखाया गया हमें
जब भी बाहर से आओ तो
हाथ पैर धो कर अंदर आओ
स्वच्छता की आदत अपनाओ ना।
हमेशा रुमाल रखो अपने साथ
लगाओ अपने मुहँ पर मास्क
जब तक ना हो जरुरी
भीड़भाड़ से तुम बचो ना।
भारतीयता का मूल अहिंसा
अहिंसा परमो धर्म:
सिखाया हमें बुद्ध महावीर ने
बन अहिंसक तुम शाकाहारी बनो ना।
पश्चिमी संस्कृति बड़ी अच्छी लगती है तुम्हें
हाय,हेल्लो,पप्पी,झप्पी में भरमाए तुम
हाथ जोड़ कर करो नमस्ते,करो प्रणाम
अपनी श्रेष्ठ संस्कृति अपनाओ ना।
अनिता निधि
न्यू बाराद्वारी साक्ची
जमशेदपुर
मनपसंद लेखन
शीर्षक-हाय कोरोना
हाय कोरोना
हाय कोरोना हाय कोरोना
तुम कोरोना से डरो ना
माना विश्व में तबाही मचाई है इसने
पर तुम भी सुरक्षा अपनाओ ना।
बचपन से सिखाया गया हमें
जब भी बाहर से आओ तो
हाथ पैर धो कर अंदर आओ
स्वच्छता की आदत अपनाओ ना।
हमेशा रुमाल रखो अपने साथ
लगाओ अपने मुहँ पर मास्क
जब तक ना हो जरुरी
भीड़भाड़ से तुम बचो ना।
भारतीयता का मूल अहिंसा
अहिंसा परमो धर्म:
सिखाया हमें बुद्ध महावीर ने
बन अहिंसक तुम शाकाहारी बनो ना।
पश्चिमी संस्कृति बड़ी अच्छी लगती है तुम्हें
हाय,हेल्लो,पप्पी,झप्पी में भरमाए तुम
हाथ जोड़ कर करो नमस्ते,करो प्रणाम
अपनी श्रेष्ठ संस्कृति अपनाओ ना।
अनिता निधि
न्यू बाराद्वारी साक्ची
जमशेदपुर
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