Sunday, March 1

"फ़ुर्सत मिले तो"29फरवरी2020

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ब्लॉग संख्या :-671
तिथि-29/2/20
विषय -कभी फुर्सत मिले हुए तो


कभी फुर्सत मिले तो बाँहों में,अपनी समा लेना।
गुजरती जिन्दगी जो बेवजह, उसको सदा देना।।

कभी फुर्सत मिले तो प्यार थोड़ा सा हमें करना।
चूम कर मेरी पलकों को,जरा सा मुस्कुरा देना।।

कभी फुर्सत मिले तो दिल की कुंडी
खटखटा देना।
छेड़ कर तार इस दिल के,मेरे दिल में समा जाना।।

कभी फुर्सत मिले तो, जिंदगी मेरी सजा देना।
राह के बीन कर काँटे सनम कलियाँ बिछा देना।।

कभी फुर्सत मिले तो तुम मेरी मुस्कान बन जाना।
न अपनी बेरुखी से तुम कभी हमको रुला देना।।

कभी फुर्सत मिले तो तुम मेरा एक काम कर देना।
बहारों को चुरा कर तुम हमारे नाम कर देना।।

कभी फुर्सत मिले तो ,सेज फूलों की सजा देना।
सितारे मांग में भर कर हमें दुल्हन बना देना।।

सरिता गर्ग

विषय फुर्सत मिले तो
विधा काव्य

29 फरवरी 2020,शनिवार

स्वस्वार्थ से मिले फुर्सत तो
परम् पिता गुण गान करूं मैं।
अद्भुत जीवन जगत दिखाया
नयन मूंद नित ध्यान धरू मैं।

गृहस्थ जीवन मिले फुर्सत तो
मातृभूमि पर बलि बलि जाऊं।
अद्भुत प्रकृति लूमी झूमि प्रिय
भारतमाता!मैं यश गुण गाऊँ।

फुर्सत मिले तो धर्म कट्टरता
जो फैली जग उसे मिटाऊँ।
एक पिता हम सब सन्ताने
भ्रातृ भाव से जगत जगाऊँ।

जग मायावी मिले फुर्सत तो
इस धरती को स्वर्ग बनाऊं।
पौध लगाऊं सुमन खिलाऊँ
प्राणवायु नित विश्व फैलाऊँ।

कुछ पल फुर्सत के मिले तो
वीर सिपाही बनूं सीमा पर।
छ्लनी करदूँ आतंकी रिपु
हो शहादत मेरी सीमा पर।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम!
दिनांक-29/02/2020
शनिवार
विषय-फुर्सत मिले तो

"फुर्सत मिले तो"आ जाना
सरकार हमारी बस्ती में
देखना कैसे जली फातिमा
कैसे यशोधरा रोई थी
नाच रहीं थी आग की लपटें
जब सारी बस्ती सोई थी
था हुड़दंगी आततायी
ले गया जान वह मस्ती में

फुर्सत मिले तो आ जाना
सरकार हमारी बस्ती में

जल रहे थे जब मंदिर, मस्जिद
सारी भीड़ मवाली थी
दंगाई के बीच से निकली
एक न गोली खाली थी।
अब्दुल ने थामी थी गीता
मोहन ने कुरान संभाली थी।
कितने हो गये शहीद
जवान वतनपरस्ती में

फुर्सत मिले तो आ जाना
सरकार हमारी बस्ती में।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)
विषय - कभी फुर्सत मिले तो
प्रथम प्रस्तुति


🌹♥️🌹♥️🌹♥️🌹♥️🌹

कभी फुर्सत मिले तो इस गली आना
इंतजार है दिल को बन गया अफ़साना।।

सुकून मिलेगा इन नैनों को थोड़ा
आकर इन नैनों की प्यास बुझाना।।

बड़ा अहसान होगा दिल पर तुम्हारा
दिल नादां होता ये सबने जाना।।

आ गया ये तुम पर बहुत समझाया
इसको मगर बेचारा नही माना।।

आज भी इसे इंतजार रहता है
गाता है वही प्यार का तराना।।

जो छेड़ा था कभी तुमने नैनों के जरिए
खुद सुनना इसे और मुझे सुनाना।।

सीख गया है ये दिल हुनर नैनों को
पढ़ने का खुद पढ़ना और पढ़ाना।।

आशिकी का बुखार है दवा मिलेगी
शिफागर हो तुम अहसान फरमाना।।

नैनों का नेह निमंत्रण है ये 'शिवम'
दिल पुर-खुलूस है इसे आजमाना।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 29/02/2020
विषय फुर्सत मिले तो
विधा कविता

दिनाँक 29.2 2020
दिन शनिवार

फु़र्सत मिले तो
💘💘💘💘💘

फुर्सत मिले तो आँखों में निमन्त्रण दे देना
फुर्सत मिले तो पुराना स्पन्दन दे देना
फुर्सत मिले तो अपनी ठण्डी मुस्कान लुटा देना
फुर्सत मिले तो यादों से झीना पर्दा उठा देना।

फुर्सत मिले तो शब्दों को देना तरुणाई
फुर्सत मिले तो गीतों को लेने देना अंगडा़ई
फुर्सत मिले तो भर देना उनमें शहनाई
दूर हो जायेगी शायद मन की कुछ तो तन्हाई।

फुर्सत मिले तो अधखुली जुल्फें लिये चले आना
फुर्सत मिले तो साँझ ढले तुम आ जाना
दिखा दूँगा तुम्हें सूना पडा़ है आकाश
चाँद भी देख लेना किस तरह है पडा़ उदास।

आज अपनी फुर्सत मेरे नाम कर दो
उल्फ़त भरी एक हँसी शाम कर दो
वक्त कहाँ रहता अपना हमेशा
यह तो देता है बस सदा ही अंदेशा।

स्व रचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
29/2 /2020
बिषय,, फुरसत मिले तो

फुरसत मिले तो चले आना
न आने का करना न बहाना
द्वार पर खड़ी देखती हूँ राह
मिलने की मन में बड़ी चाह
देखो कहीं भूल न जाना
कुछ मैं सुनूंगी कुछ सुनाऊंगी
डाल गले बैंयां तुमको रिझाऊंगी
फैलाए हुए हूँ अपना आंचल
देखते ही कहीं न हो जाऊं पागल
हाथ सिर पर रख मुझे समझाना
तुम मेरे स्वामी मैं तेरी दासी
जन्म जन्म से अँखियाँ थी प्यासी
चरणों से अपने प्रभु अब हटाना
तुम्ही मेरे सब हो प्यारे सावरिया
अब लो हरी मेरी खबरिया
तुम्हारे लिए मैंने छोड़ा जमाना
स्वरचित,सुषमा ब्यौहार
29/2 /2020

दिनांक-29/02/2020
विषय- फुर्सत


अरे साकिया आज इतना पिला

फुर्सत के पल मे पैमाना भरने के बाद

काम की बातें करूंगा।

होश में आने के बाद ......................

ऐ साकिया फुर्सत मे कुछ दर्द पिला दे

तभी मजा है पीने में।

वरना गम की इस दुनिया में वरना

फुर्सत से कहां मजा है जीने में।।

फुर्सत के कुछ पल में भी

कम हो जाती मदिरा पैमाने में।।

मैं पीता अधरों की नूरो को

ठहर जाती नजरे मैखाने में।।

हर नुक्कड़ पर प्रेम सजा

हर नाटक का मंचन यहां।

निगाहें ढूंढती है तुम्हें ऐ प्रेम

प्रेम पथिक का कंचन कहां।।

प्रेम पथिक की शाम ढलती

फुर्सत से साकी के मयखाने में।

प्रेम के आशिक तू बता,

तू रहता किसके आशियाने में।।

कर इनायत प्रेम की,

हाल दिल बेकरार हुआ।

हुस्न की इस बाजार में

मदिरालय का हर आशिक
शर्मसार हुआ।।

स्वरचित

सत्य प्रकाश सिंह
प्रयाग राज

विषय फु़र्सत मिले तो
विधा छंदमुक्त


फ़ुर्सत मिले तो
तो बसंत बहार के पल चुराकर
पतझड़ को सजा आना
तुम एक गिरा पत्ता उठा .
कॉपी में छुपा आना

फ़ुर्सत मिले तो
तो गीत बनकर
किसी भी बेसुरी जिंदगी में
उतर जाना
बेवक्त के अंधेरों में डूबे हुए आँगन में
कुछ दिए जुगनुओं से जला आना

फ़ुर्सत हो तो
याद दिलाना खुद को
खून लाल है सबका
राग द्वेष से उठ
सभी को याद दिलाना

फुर्सत मिले तो
इंसानियत के वजू़द पर
एक दिया जला आना
मशालों को रौशनी को गीत सिखाना
धधकती नफरतों की आग
ना लगाने की गुजारिश कर आना
फ़ुर्सत हो तो....

मीनाक्षी भटनागर

ग़ज़ल

आसमान को छूने का ख्वाब सजाये बैठे हैं

भविष्य में कैसे सुंदर नज़ारे दिखाये बैठे हैं।

अपनी थोड़ी सी खुशी के खातिर लोग
कितने लोगों का दिल दुखाये बैठे हैं।

तुम्हें फुर्सत मिलेगी तभी तो तुम देखोगे
मंदिर के बाहर लोग हाथ फैलाये बैठे हैं।

खुशियों का माहौल बना हुआ है चहुँओर
कुछ लोग हैं जो अभी भी दुखियाये बैठे हैं।

चुनाव आ जाने पर विनती करे कर जोड़
सत्ता मिलते ही कुर्सी पे हक जमाये बैठे हैं।

अपने ही गुनाहों को हज़म करके लोग
दूसरे के गुनाहों पर सज़ा दिलाये बैठे हैं।

हौसला बुलंद है और इरादा है मजबूत
फिर भी लोग अपना हुनर छुपाये बैठे हैं।

 सुमन अग्रवाल सागरिका
आगरा

तिथि-29/2/2020/शुक्रवार
विषय*फुर्सत मिले तो*

विधा-काव्य

कभी फुर्सत मिले तो प्रभु हमें,
कोई अच्छी राह दिखा देना।
पकडें सभी हम सुधर्म रास्ते,
जो भूलें तुम राह बता देना।

फुर्सत में बैठे ठाले कुछ तो,
निशदिन दंगे ही भड़काते हैं।
नहीं कोई काम इन्हें होता,
सभी हरामखोर हो जाते हैं।

आगजनी करें सब लूटमार ये,
बेरोजगारी भत्ता पाते हैं।
फुर्सत ही फुर्सत मिलती इनको,
देखें कारखाने जलाते हैं।

मुल्ले मौलवी भाषण देकर,
नित भारत में जहर उगलते हैं।
सुनकर समझें तकरीरें इनकी,
ये हम सबको ही लड़वाते है।

निम्न प्रवचन दें जो साधु संत,
नहीं धर्म परायण होते हैं।
कठमुल्ले ढोंगी भाषण देकर,
क्या अपनी गरिमा नहीं खोते हैं।
फुर्सत पलों का दुरूपयोग करें,
वो सारे जीवन ही रोते हैं।

करें इंतजाम इन कठमुल्लों का,
जो यहां वैर भाव फैलाते हैं।
सरेआम हों बेइज्जती उनकी,
जो अपना भारत सुलगाते है।

क्या धर्म जो रागद्वेष सिखलाए।
नहीं धर्म जो कटुता वतलाऐ।
देखो फुर्सत मिले तो संस्कृति,
सदा प्रेम से रहना समझाऐ।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 29/02/2020

विषय :- फुर्सत मिले तो

फुर्सत मिले तो

जाना चाहूँ फिर बचपन में,
खेलना चाहूँ वही खेल सारे।
ढूँढ रहा यादों के गलियारों में!
पर दोस्त वही फिर मिले तो?
या वैसी ही फुर्सत मिले तो?

थक गया जिम्मेदारियों से,
फंस गया मोह के भँवर में।
चाहूँ म़ै निकलना यहाँ से!
पर कोई सद्गुरु मिले तो?
या वैसी ही फुर्सत मिले तो?

खामोश हर दर्द सह लेता हूँ,
दर्द को अपनो से कहना चाहूँ।
दे कोई साथ इस स्वार्थी जहां में!
ऐसा कोई अपना मिले तो?
या वैसी ही फुर्सत मिले तो?

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक-29-2-2020
विषय-कभी फुर्सत मिले तो

विधा-छन्दमुक्त कविता

बहुत वर्ष बीते
तुमने मुझे न याद किया
कभी दुःख में तो
मुझे पुकारा करते थे
सुख में तनिक न याद किया
मैं कब से प्रतीक्षारत हूँ
कि कब सुध लोगे तुम मेरी
जैसे मैं लेता हूँ तेरी
पर सब कुछ पाकर तो
तुमने मुझे भुला ही दिया
सुबह तुम उठे
सबसे पहले मोबाइल चेक किया
जल्दी जल्दी तैयार हो
दफ्तर की ओर रुख किया
साँझ हुई तुम थके व्यथित घर आये
मैंने सोचा अब तो मेरा ख्याल आएगा
पर तुमने मुझे भुला ही दिया
फिर मैंने सोचा मेरी संतान
सोते समय अवश्य मुझे याद करेगी
पर तुमने मुझे गलत साबित कर दिया
तुम टी वी चैनल बदलते रहे
फिर नींद आने पर
करवट बदल कर सो गए
तब भी तुमने मेरा
जरा भी न ध्यान किया
खैर,*जब फुर्सत मिले*
तब याद कर लेना मुझे
मैं तो हर पल तेरे साथ हूँ
सभी प्राणियों का नाथ हूँ
जिसे तुम ईश्वर,अल्लाह,जीसस
न जाने किन नामों से पुकारते हो
तुम मुझे याद करो न करो
पर मैं सदैव तुम्हें याद करता हूँ।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
शीर्षक- फुर्सत मिले तो
सादर मंच को समर्पित -


🌺🌻 मुक्तक 🌻🌺
************************
🍀 फुर्सत मिले तो 🍀


कभी चाहे निगोड़ा मन उड़ू नीले गगन तक ,
जमाने की हवा से दूर यदि फुर्सत मिले तो ।

यहाँ देखो निगाहें बस टिकी होतीं बदन तक ,
रहूँ स्वच्छंद जलवे-नूर यदि फुर्सत मिले तो ।

दिले नादान प्यासा रह लखे मितवा डगर तक,
कहीं से आ मिले साजन चढ़े घोड़े सवारी --

गुलों की सुरभि सौंधी हिय बसे चंचल चुभन तक,
पिया को चूम लूँ लव भींच यदि फुर्सत मिले तो ।।

🍊🍀🌻🍋🍎

🌺🌻.. रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
29/2/2020
"फुर्सत मिले तो"
*
****************
फुर्सत मिले तो यारों, शहीदों को याद रखना
तन-मन पर दिए गहरे जख्मों को याद रखना
सुलग रहा क्यों अमन पसन्द देश मेरा भारत
नजरअंदाज न करें वहशीपन को याद रखना।

सदियों से झेले ज़ख्म, चुप का है ये नतीजा
" अतिथि देवो भवः " उसका है ये नतीजा
फुर्सत मिले तो देखो,इतिहास दे रहा गवाही
अनदेखा करके सहते उसका है ये नतीजा।

फुर्सत मिले तो यारों,वेदों को मन रमाना
गीता के मर्म समझों जन को सब बताना
सनातन संस्कृति ने सबको गले लगाया
विश्व भारती शिवा की,सत्यम शिवम समाना।।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ

29/02/2020(दूसरी प्रस्तुति)
"फुर्सत मिले तो"
फुर्सत मिले तो एक कहानी लिखना
दिल के जज्बातों को
पानी पर तराशती
तेरे मेरे बीच की कहानी लिखना
हाँ... ऐसी प्रेम कहानी
जिसको लिखते ही पानी जम जाए
अनन्त काल तक स्थिर हिमखंड बन जाए
जैसे...अंटार्टिका के हिमखंड।
जिस पर विरोधी दृष्टि न जा पाए
अमर प्रेम कहानी वह बन जाए।
सूर्य की तपित किरणें, तीखी चुभन भरी
प्रेम को हमारे नही बहा पाए।
फुर्सत मिले तो प्रियवर,
पानी पर तराशती प्रेम कहानी लिखना।।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ

विषय : फुर्सत मिले तो
विधा : कविता

तिथि : 29.2.2020

फुर्सत मिले तो चले आना-
मिल बैठ बतियाएं गे।
कुछ गिले-शिकवे होंगे,
कुछ हाल चाल सुनाएंगे।

चाय के दौर पर-
हंसे मुस्कराएंगे,
कुछ मैं कहूं कुछ, तुम कहना-
बस, यूंही एकसाथ समय बिताएंगे।

फ़ुर्सत मिले तो चले आना
कुछ पुरानी यादें दोहराएंगे,
मिल कर भविष्य के-
कुछ नए सपने सजाएंगे।

इक दूजे के ज़ख्मों को-
कुछ सिएं सिलाएंगे,
इक दूजे के अकेलेपन को हम-
भरें-भराएं गे।

फुर्सत हो तो चले आना,
पुराने उलाहनों से-
इक दूजे को सताएंगे,
इक दूजे के ज़ख्मों को सिएं सिलाएंगे।

पुरानी स्मृतियों के हिंडोले-
झूलें झुलाएंगे,
अतीत को इक बार फिर-
वर्तमान बनाएंगे।

--रीता ग्रोवर

विषय- फुर्सत मिले तो
अय नादान इंसानों!

फुर्सत मिले तो सोचना कभी
जाने-अनजाने में की गई
अपनी गलतियों के बारे में।
अगर वश में हो तुम्हारे तो
सुधार लेना अपनी भूलों को।
सर झुका कर मान लेना
सहर्ष अपनी हर कमियों को।
अपनी गलती या कमी मानकर
कोई छोटा हुआ नहीं आज तलक
दुनिया उन्हीं का लोहा मानती
जो न हिचकिचाता तनिक भी
अपनी भूलें स्वीकार करने से।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
दिनांक 29-02-2020
विषय-फुर्सत मिले तो


हो गये बहुत हो व्यस्त सुनो!
फुर्सत जो मिले तो आ जाना
बैठेंगे साथ करेंगे मन की बातें
पर देखो इससे न तुम घबराना...
तुमको भी तो कुछ कहना होगा
पर देखो न तुम मुझसे शरमाना
करते रहे हो तुम सच में संकोच
छोड़ो गर चाहत को अपने पाना..

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही

विषय -" फुर्सत मिले तो"
दिनांक - 29/02/ 2020

कभी फुर्सत मिले तो आ जाना ,
तन -मन को तुम महका जाना।
विरह, व्यथा कुछ सुन लेना,
कुछ अपनी भी सुना जाना।

राह देख रही प्रियवर तेरी ,
आंखें नहीं थकती हैं मेरी ,
आंखों को झलक दिखा जाना।
कभी फुर्सत मिले तो आ जाना।।

छिन्न-भिन्न मकरंद लुटी सी ,
ज्यों मुरझाई हुई कली सी ,
इस बगिया को महका जाना ।
कभी फुर्सत मिले तो आ जाना।।

प्रियवर तुम प्राणों से प्यारे,
जग में हो तुम सबसे न्यारे,
कभी अपना अक्स दिखा जाना।
कभी फुर्सत मिले तो आ जाना ।।

कभी ह्रदय को तुम छू लेना,
कभी अंतर्मन को सहला देना,
कभी अपना हाल सुना जाना ।
कभी फुर्सत मिले तो आ जाना।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह। प्रयागराज
विषय-फुर्सत मिले तो ।
स्वरचित।
फुर्सत मिले तो कभी
कर लेना यार याद।
पिछले बीते हर पल के
मेरे-तुम्हारे जज़्बात।।

फुर्सत मिले तो कभी
लेना अपने बचपन में झांक
जी लेना फिर से उमंग भरे दिन
चुलबुली शरारतें कर याद।।

फुर्सत मिले तो कभी
झांकना अपने अंदर
देखना-ढूंढना क्या बची है,
इंसानियत अभी भी??

फुर्सत मिले तो कभी
बांट देना कुछ मुस्कान
इधर-उधर,यहां-वहां
बिखेर देना हंसी।।

फुर्सत मिले तो कभी
देख लेना आस-पास
किसी के सुख दुख लेना बांट।
थोड़े सी दे देना हमदर्दी
पा लेना अपनापन।।

फुर्सत मिले तो कभी
जान लेना मां-बाप की
तमन्नाओं के बारे में
क्या थे उनके ख्वाब
अपने होनहार के लिए
और क्या बन गए तुम।।

फुर्सत मिले तो कभी
डाल लेना एक निगाह
देश में हो रहे घटनाओं पर
भरना तुम भी कुछ रंग
अपने इरादों से इसकी
विविधता भरी संस्कृति में ।।

फुर्सत मिले तो कभी
कोशिश करना कोई चिंगारी
आग ना बन जाए
लग रही आग हो कहीं
किसी तरह बुझ जाए।।

फुर्सत मिले तो.कभी....
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
29/02 /2020
विषय - फुर्सत मिले तो

जीवन के आपा-धापी में,
नून-तेल-लकड़ी-बाती में।
पैसौं के खातिर दौड़-भाग में,
कठिनाई के घने मोड़ में।
बस केवल चिंता ही घेरे,
जाने खुशियां गई कहाँ खो।
मैं भी हंसना चाहूँ खुलकर,
कभी काश फुर्सत मिले तो।

झंझावात में उलझ गया हूँ,
राह न कोई सरल है दिखता।
हाथ-पैर जितना भी मारूँ,
घनी धूप भी अंधेरा लगता।
रौशनी का नहीं पता है,
आँखों के आगे अंधियारा जो।
नवल दीप जलाना चाहूँ,
कभी काश फुर्सत मिले तो।

वक्त है जाता छुड़ा के दामन,
पीछे केवल यादें रह जाती।
यादों संग भी कहाँ मिल पाता,
आगे से आवाज है आती।
शोर मचाती जिम्मेदारी,
कहता मुझको आओ पकड़ो,
चाहूँ लूँ आराम की सांसें,
कभी काश फुर्सत मिले तो।


स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
दिनांक , २९,२,२०२०
दिन , शनिवार

विषय, "फुर्सत मिले तो"

#फुर्सत मिले तो हमें मिलना ।
दर्द जरा तुम आकर सुनना ।।

सुन लाड़ले पास जो होते।
चैन नहीं हम अपना खोते।।

दोष न देते दुनियाँ वाले।
नहीं बचे मेरे रखवाले।।

आग धुऑ सब झेल रही हूँ।
खून से लथपथ मैं पड़ी हूँ।।

रौंद रहे हैं अत्याचारी ।
चहुँ और हैं यहाँ व्यभिचारी।।

दारुण दशा निहारो मेरी ।
रुलाती है व्यस्तता तेरी ।।

शर्मशार होती आजादी ।
देख रहा है तू बर्बादी ।।

फुरसत मिले तो चले आना।
फिर गीत प्रेम के तुम गाना।।

डोर प्रीत की पकड़े रहना ।
तुझसे केवल इतना कहना।।


स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
विषय- फुर्सत मिले तो
दिनांक २९-२-२०२०


फुर्सत मिले तो,अपने भीतर भी झाँकना।
गैरों को निहारने में,वक्त यूं ना गुजारना।

बहुत शौक है तुझे, गैरों पर लिखने का,
तू भी बहन बेटी वाला,यह मत भूलाना।

फुर्सत मिले तो,कभी अपने घर झांकना।
रोटी के लिए रोती माँ,उसको संभालना।

बड़ी बातें करने से,कुछ हासिल ना होगा।
अपनों के संग रह ले,वक्त बर्बाद ना करना।

फुर्सत मिले तो,बच्चे संस्कारवान बनाना।
बिगड़ जाएगा भविष्य,फिर ना कहना।

रोएगा तन्हा,कोई ना तझे ढाँढस बंधाना।
जैसा बोया कल,वैसा ही आज काटना।

कहती वीणा फुर्सत मिले,माँ संग रहना।
प्रभु मान माँ आशीष,तू वंचित ना रहना।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
कोई गीत गाएं जो फुरसत मिले तो
कहीं घूम आएं जो फुरसत मिले तो


मुद्दत से थी आरज़ू आप ही की
करम फरमाएं जो फुरसत मिले तो

कहना था कुछ और सुनना था कुछ
दिल की सुनाएं जो फुरसत मिले तो

अजब कशमकश में हैं मसरुफियत
खुद को ढूंढ लाएं जो फुरसत मिले तो

थका सा लगा है उदासी में चेहरा
जरा मुस्कुराएं जो फुरसत मिले तो

विपिन सोहल। स्वरचित
तिथि- 29/02/2020
दिन- शनिवार

विषय-" फुर्सत मिले तो "
विधा - गीत

फुर्सत मिले तो बगिया प्रेम की महका देना !
टूटते बिखरते रिश्तों पर दो फूल चढ़ा देना !
जो सो गयीं हैं सांसे आवाज़ दे कर जगा देना ।
बिखरे फूलों को सेजो पर सज़ा देना।

जो मर रहीं हैं हसरतें चाह उसमें जगा देना ।
फुर्सत मिले तो गुजरे इश्क़ की राह बता देना ।
उसके नाज़ुक पैरों में न फिर घुंघरू सजा देना।
बस प्यार से नाज़ुक रिश्ते को निभा देना ।

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वा धिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड

विषय :-फुर्सत मिले तो
विधा:-कविता

कभी फुर्सत मिले तो
बीते दिन याद करना
वह अमुवा की छैंया
के नीचे से गुजरना।
गीतो को गाकर के
फिर सुरों में सजाना
नदिया की लहरों में
लहर कर मचलना।
बीते दिनों की है
यादें सब पुरानी
फुर्सत के पलोंमें
उन्हें याद करना ।
उषासक्सेना:-,स्वरचित
दिनांक २९/२/२०२०
शीर्षक-"फुर्सत मिले तो"


कभी अज्ञानता से "फुर्सत मिले तो"
ज्ञान चक्षु को खोलना सीखो
जीवन भर जो संदेह में जीये
सदगुरु पर विश्वास करना सीखो।

विष घोलने से "फुर्सत मिले तो"
अमृत बाणी बोलना सीखो,
दूसरों के बहकावे में क्यों?
कभी आत्मनिरिक्षण करना सीखे।

"फुर्सत मिले तो"कभी रिश्ते नाते
सहेजना सीखो
हरपल फुर्सत नही का राग क्यो?
कभी "फुर्सत मिले तो" मुस्कुराना सीखो।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
स्वरचित29/02/2020शनिवार
विषय-फुर्सत मिले तोविधा-हास्य-व्यंग्य
💥🇮🇳💥🇮🇳💥🇮🇳
उसने मुझे
प्रणाम किया
और मैंने उसे
आशीष दिया-
"चुस्त-दुरुस्त रहना,
मस्त व व्यस्त रहना"
और फुर्सत मिले तो...
मिलते रहना👌
और वो अक्सर
चुस्त-दुरुस्त,मस्त-
व्यस्त रहने लगे
तथा मिलना ही
भूल गए👍
फिर मैं खुद उनसे
एक दिन मिलने गया
बोला-तुम तो ऐसे
व्यस्त हो गये कि
मिलना भी भूल गए
वे सफाई देते बोले
क्या करूँ---
आपका आशीष
काम कर गया
मरने तक को
फुर्सत नहीं मिल रहा💐
मैं सहसा बोल बैठा-
यह घड़ी भी जल्द आए
वो मेरी बात ताड़ गये
और बोले-आपने यह
क्या कह दिया👌
कहीं आपकी बात
पहले की भाँति
फलीभूत हो गया तो...
मैं तो जीते जी मर जाऊँगा
मुझे अपनी भूल का
अहसास हुआ,और
ईश्वर से कामना
करने लगा,
हे प्रभु ! मेरी इस बात को
फलने न देना
सच न होने देना
मुझे माफ़ करना💐
💥💥💥💥💥💥
श्रीराम साहू अकेला

दिनाँक-29/02/2020
विषय:-फुर्सत मिले तो......
िधा-कविता

फुर्सत मिले तो......
फिर बचपन को जी लूँ,
ढूँढूँ फिर वो चित्र कथाएँ,
तोडूं बेर, इमली,अमियाएँ,
बच्चों संग बच्चा हो लूँ l

फुर्सत मिले तो......
फिर से खुद की तलाश करूँ,
क्या खोया, क्या पाया,
कितनी दूर निकल आया,
जीवन का हिसाब करूँ..l

फुर्सत मिले तो......
तकनीक से दूर मैं खो जाऊं,
प्रकृति की बाँहों में सो जाऊं,
भूल जाऊं जो याद किया,
हो मौन अहसास,बुद्ध हो जाऊंl

फुर्सत मिले तो......
देखूँ आँसूं कितने सच्चे कितने झूठे,
धर्म के नाम आग लगाई और घर हैं टूटे,
रूठे हैं मानवता से,न जाने कितने भाई,
अपना दर्द किसी को बाँटू...
फुर्सत मिले तो......

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद l



फुर्सत मिले तो
वृन्दावन आ जाना
कान्हा
करती राधा इन्तजार
गोपियन संग

है फुहार
होली की
रंगों में डूबा है
वृन्दावन सारा

मिटें है सारे
भेदभाव मन के
मिले गले
लगाये गुलाल सब

है गुजिया की
सुगंध चहुंओर
खाते
बैठ सब लोग
है भाईचारे का
मिलन

होता
अत्याचारी का अंत
होती जीत सत्य की
देती है संदेश
होली सब को

दुनियां है
रंगों का सैलाब
स्पनिल सपनों
का फैलाव
फुर्सत मिले तो
आ जाना
पिचकारी लिये
जिन्दगी में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
फुर्सत मिले तो
फुर्सत मिले तो आ जाना, दुनिया के गम भूला जाना.
खुला है मेरा दरवाजा, बिना कहे ही तो आ जाना.

जैसे बादल घुमड़ता है आँसमा को, जैसे चंदा चमकता है पूर्णिमा को.
वैसे आकर के तूम भी तो मेरे तन मन को अपने प्यार के आँचल में सुला जाना.
फुर्सत मिले तो आ जाना, दुनिया के गम भूला जाना.
तेरी चाहत जगी है इस तन मन को, मेरा दिल भी मचलता है साजन को.
इन अँखियों की प्यास बुझा जाना, मेरे दिल को जरा तुम बहला जाना..
फुर्सत मिले तो आ जाना, दुनिया के गम भूला जाना.


स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार 841239






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