Saturday, March 28

"समय/वक्त"24मार्च 2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-692
24/3/2020
समय/वक्त
**********💐

बीते समय या बीते वक्त
की कहानी
लम्हाँ लम्हाँ गुजरती जिन्दगानी

पलकों के चिलमन पर
ठहरे कुछ ख्वाब बनकर
तो कुछ गिरे बन कर पानी ।

तेरी मुठ्ठी में कुछ लम्हें
खुशी के
तो खुली हथेली पर बिखरे
हों जैसे गमों की निशानी ।

मन की मिट्टी से उठती सोंधी खुशबू ज्यूँ
मेरे अपनों के प्यार की बदरी गुजरी हो मुझ पर से ।

बीता एक पल ज्यूँ बीता साल
न जाने कितने बीते सालों की
कहानी ।

मोम से पिघलते लम्हों के साथ पिघलता वक्त
तो वक्त के साथ पिघलती
जिंदगानी ।

रेत की मानिंद फिसलन को जुबां देते पल
कुछ तन्हा कुछ खिलखिलाते
रूह को छूकर खामोश रह जाते
मैं खुद सिमट रह जाऊँ इनमें
या सहेज कर रख लूँ सारे ।

बीता वक्त या बीते समय की कहानी
लम्हाँ लम्हाँ गुजरती जिंदगानी ।।

अंजना
विषय समय,वक्त
विधा काव्य

24 मार्च 2020,मंगलवार

समय चक्र नित घूम रहा है
ऐसा समय कभी नहीं देखा।
सुख दुःख तो चलते रहते हैं
सभी खड़े खतरे की रेखा।

माना जीवन अति संघर्ष है
कभी खेद है कभी हर्ष है।
काल का ग्रास बने हुये सब
कैसा अद्भुत यह वर्ष है ?

कोई ऐसा नहीं है विश्व मे
जिसने समय पकड़ लिया।
काल आज कुकाल बना है
विश्व जगत भी जकड़ लिया।

जब भी कुसंकट जग आया
रब अवतारी बन कर आया।
लक्ष्मण पर जब लगी शक्ति
खुद हनुमंत संजीवनी लाया।

जीवन रक्षक स्वयं बनना
कर प्रक्षालन करो निरन्तर।
घर निवास करो अब मित्रों
एक मीटर का रखो अंतर।

वक्त बदलता है जब प्यारों
परछाई निज साथ न देती।
कुसमय धरती पर आता
उजड़ जाती हरीभरी खेती।

स्वरचित मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक- 24/03/2020
विषय- समय/वक्त


सब कुछ था
न तम था
न अहम था
फिर भी
हवा का रुख
बदला था
सच मानिए
तब मैं पहली
बार सँभला था
ये वक़्त की
ही है हवा
कब बने जहर
कब बने दवा
कब बने मित्र
कब बने चरित्र
है इसका ही
राज और
इसका ही मजा
इंसा यहाँ कुछ न
यह जाना
पहचाना
आँख मला
खुला गला
अंधा चला
बहरा सुना
गूँगा बोला
कामयाबियों
का परचम डोला
किया करो
कभी इंतजार
आती है
आएगी 'शिवम'
कभी न कभी
ये बहार!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित

दिनांक- 24/03/20
विषय - समय/वक्त

द्वितीय प्रस्तुति

रहो सदा वक्त के पाबंद
रखो मन को चाक-चौबंद!!
वक़्त ने बजाया कभी डंका
वक्त का है हमसे अनुबंध!!

की जिसने भी इसकी पहचान
किया वर्तमान का जो मान!!
सच मानिए हुआ एक दिन
दुनिया में उसका सम्मान!!

वक़्त हमसे बहुत कुछ कहता
खो भी गया फिर भी रहता!!
जानिए कोई अकेला ही
नहि वक्त की मार सहता!!

सबके साथ रहा यह सलूक
कहे यह कबीर कहे मलूक!!
सच्चाई सबने यह जानी
कहता हूँ बात यह दो टूक!!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित

दिन - मंगलवार
दिनांक - 24/03/2020

विषय - समय
विधा - कविता
---------------------------------------
समय करता है मेरे साथ चल
दुनियां बदलती है तु भी बदल
न रूक तु पल भर यहां
बस तु चल और चलते चल
रास्ते में तेरे कांटे मिले या फूल
जो लगे सही उसे तु चुन
समय है यारों ये रूकता नहीं
कभी दोबारा मिलेगा नहीं
भला कर या बुरा करेगा
ईश्वर तेरा हिसाब लिखेगा
अब भी वक्त है संभल जाओ
नेक करके कुछ नाम कमाओ
कल जो समय नहीं मिलेगा
फिर तु अपना हाथ मलेगा ।

दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
स्वरचित
बिषय -वक्त

वक्त की तराजू में जब खुद को तोलते है।
प्यार से बनाये रिश्ते खुदबखुद डोलते हैं।

न हम है न तुम हो और न ही अपनापन,
अपने भी पराये हो जाते हम सच बोलते है।

गलतफहमी के चलते हमारे रिश्ते टूट गये,
अब तो बस यादों के सिर्फ़ पन्ने पलटते है।

एक-दूजे के दरम्यां फा़सले बन गये इसकदर,
सोचकर पुरानी यादें मन में जहर घोलते है।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
वक्त वक्त की बात है प्यारे, वक्त बुरा है आज।
जो कल साथ में रहते थे करे, दूर से अब प्रणाम।


इसमें उनकी कुछ ना गलती, चीन का ये है पाप,
कोरोना से रहो सुरक्षित, रहो घर मे ही सब आप।

शेर की कविता पढो साथ मे, कर लो मुझको काॅल।
वो रिश्ते जो छुट रहे है उनसे भी कर लो बात।

क्या जाने कल क्या होगा, कल पर है कई सवाल,
आज अगर है वक्त तो ले लो, जीवन रस का स्वाद।

शेर सिंह सर्राफ

दिनांक- 24/03/2020।

कल क्या समय था आज क्या समय है,
साहब यही है वक्त का तकाजा ...

मानव सज- धज कर घोड़े पर सवार ,
शिकार करने जाता जीवो का,
आज मास्क लगाए घरों में मुंह छुपाए बैठा है,
साहब यही है वक्त का तकाजा.....

अपने ,अपनों से दूर रहकर खूब धन कमाया ,
गाड़ियां और आलीशान बंगले भी बनवाया , आज बंद है घरों में साहब यही है वक्त का तकाजा.....

ईद के चांद थे तुम अपने घर वालों के लिए,
पराए हो गए थे तुम अपने ही मां-बाप के लिए,
यह उनकी खुशकिस्मती है कि उनकी नजर में हो ,साहब यही है वक्त का तकाजा........

थोड़े दिन की ही तो बात है कि अपने घर में ही रहो ।।
साहब यही है वक्त का तकाजा ....

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
किताब के पन्नों के बीच
रखा है आज भी
तेरा दिया वो लाल गुलाब,
आज भी बसती है उसमें
सुगंध तेरे प्यार की।
समेटे है ना जाने कितनी यादें तुम्हारी,
वक्त ठहरता नहीं,कहीं भी,,, कभी भी।
पर जम गये हैं मेरे हृदय पटल पर
वो बीते हुए प्यारे लम्हें,
जो कभी संग बिताये थे हमने।
कभी हम दो जिस्म एक जान थे
और खाते कसमें साथ निभाने के,
पर वक्त ने हमें जुदा किया
खो गये तुम ना जाने किस
घुप्प गलियारे में,
दिल पुकारता है तुम्हें हर पल
मन खोजता है तुम्हें आज भी
उसी लाल गुलाब में
जो तुमने दिये थे मुझे
कभी प्यार में!

अनिता निधि
*समय/वक्त*काव्य

समय नहीं है दास किसी का नहीं किसी को रुकने वाला।
नहीं धरोहर समय किसी का नहीं कभी भी थकने वाला।

समय समय पर काम करें सब समय सदा ही चलने वाला।
जो समय के साथ चलेंगे नहीं प्रगतिपथ रूकने वाला।

आज नहीं सभी कल करेंगे ऐसा तो हम कभी न सोचें।
जाने कल कब कैसा होगा इसका मतलब आंखें भींचे।

रावण ने यही सोचा था कल सीढ़ी मै स्वर्ग लगाऊं।
करूं समंदर सारा मीठा खुशबू सारी पवन में लाऊं।

मरे काम रह गए अधूरे क्योंकि उसका कल कभी न आया।
इसीलिए कहते हैं सबसे जानो समय जो न जान पाया।

आज समय पर काम करें हम सदा समय पर काम करेंगे।
ऐसी ही कुछ बात करें तो बच्चों को आगाह करेंगे।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
जय-जय श्री राम राम जी

*समय/वक्त*काव्य
24/3/2020/मंगलवार

दिनांक-24/03/2020
विषय-समय


मुस्कानें अब लूट रही
घुटन भरा है अनुराग।
बटोही निद्रा से अब जाग
समय हो गया है खराब।।

कब तक काला धुआं पियोगे
चीख चीख कर यहां जियोगे।
जीने की अभिलाषा में
कंठो की रह गई प्यास।।
समय हो गया है अब खराब.......

कोयल चुप बैठी छज्जे पर
शोर मचाते है काग।
आंसू का कोई मूल्य नहीं
सतियों के लुटे सुहाग।।
समय हो गया है अब खराब.....

पतझड़ की बात कहे हम क्या
जलते मधुमास ओं में पराग।
चारों तरफ धधकती ज्वाला
सबके मन में बसते नाग।।
समय हो गया है अब खराब.......

विषय भोग से ग्रसित काया
कब छूटेगा वसन का दाग।
चारों तरफ है कहर की आधी
धूल धूसरित अपने भाग।।
बटोही अब निद्रा से जाग
समय हो गया है बड़ा खराब.....

मौलिक रचना सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

सादर मंच को समर्पित -

🌻🌸 समय 🌸🌻
*********************************
🍒🍒🍒🍒🍒🌲🍒🍒🍒🍒🍒🍒

जीवन में हो गतिमय लय ,
मन में हो आनन्द अभय,
पाने को , निकालना होगा समय ।

मानव के शत्रु दो ,
ऊब और थकान को ,
त्याग दें , नष्ट करते जो समय ।

सीखें हर पल से नित जीवन में ,
लक्ष्यों के प्रयास हों चिन्तन में ,
साकार करने , तत्पर हों हर समय ।

समय जो जा रहा बीता ,
न लौटेगा पुनः मीता ,
पछितायेंगे , यदि गवाँ दिया समय ।।

🍇🌻🌲🌸🌷

🌹🌻🌺** .....रवीन्द्र वर्मा , आगरा

दिनांक 24मार्च 2020
विषय वक्त


वक्त कितना
तेरा और मेरा
मुट्ठी भर रेत सा
झरता अनवरत

वक्त बीता
तेरा और मेरा
किसी कहानी सा
कभी अच्छा कभी बुरा

वक्त छलिया
तेरा और मेरा
अनबुझी पहेली सा
सुलझता - उलझता

वक्त मिले
तेरा और मेरा
मीठी मुलाकात सा
चलता रहे बस

वक्त का क्या
तेरा और मेरा
बदलते मौसम सा
गर्माहट या शीतलता

वक्त चले
तेरा और मेरा
काश अपने मन सा
जीवन पाए निश्चिंतता

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
कार्य:-शब्दलेखन
बिषय:- समय/वक्त
विधा:-मुक्त गज़ल (बिना मापनी )
काफ़िया- नहीं
रदीफ़-आता है

मुझे किस्मत को पहचानना आता है।
कैसे बताऊं कोई हुनर नहीं आता है।।

छोड़कर डर से अपने यारों को
इस तरह भागना मुझे नहीं आता है

मरना होगा तो मरेंगे मौत से सभी
समय से पहले होश खोना नहीं आता है

याद आता है खुदा बुरे वक्त में सबको
जब कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आता है

डूब जाते हैं आशिक मुहब्बत में
उन्हें खुद का पता भी याद नहीं आता है

स्वरचित: 24-3-2020
विषय-समय/वक्त
स्वरचित।




बीत गईं वो बातें,एक समय
गांवों के बारे में अच्छी थीं।
भोले-भाले सरल हृदय की,
सच्चे दिलवालों की थीं।।

चली हवा कुछ ऐसी ऐसी,
स्वार्थ में सब डूब गए।
सरकारी लाभ उठाने खातिर
लालच में मशगूल भये।।

मोह और लालच है ऐसा
बेईमानी पर मजबूर हुए ।
छोड़ी ईमानदारी सच्चाई
भ्रष्टाचारी भरपूर हुये।।

अब ना किसी को कोई सुहाता
फैशन में सब रंगे हुए ।
पूछे ना कोई ठंडा-मीठा
मेहमाननवाजी भूल गए।।

भोले-भाले सरल हृदय अब
सब ख्वाबों की बातें हैं।
वह चौपाल और चबूतरे
बेगानेपन में चूर हुए।।

जैसे-जैसे बदली काया
नव विकास की आंधी में।
समय का चक्र में गये बदल
गांव शहर से मशहूर हुये।।
****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
24/03 /2020

विषय-समय/वक्त
मंगलवार/24.3.20
विधा --दोहे

1.
मनुष्य का बीता समय, खुद स्मृति बन जाय।
गुजरा समय समाज का, खुद इतिहास कहाय ।।
2.
बिना काम के काम में, समय चूक पछतायँ।
अगर साध लें समय को, सभी काम सध जायँ।।
3.
सबसे कम मिलता समय, संसाधन ये न्यून।
बिना समय प्रबंधन के, अन्य प्रबंधन सून ।।
4.
पल पल के उपयोग को, जो समझे हैं मीत।
सही समय उपयोग से,पा जाते वो जीत।।
5.
बाट जोहते वक्त की, स्वयं उलझते लोग।
दास बनाते समय को, वही भोगते भोग ।।

******स्वरचित ************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक 24 मार्च 2020
विषय वक्त

वक्त नही हास परिहास का
वक्त नही किसी के उपहास का
वक्त नही हंसी ठिठोली का
वक्त नही टालम टोली का
वक्त है सजग होने का
वक्त साथ चलने का
वक्त कोरोना से लड़ने का
वक्त खुद को सजग करने का
वक्त समझने समझाने का
वक्त एकांत मे जाने का
वक्त नही किसी से उलझने का
वक्त स्थितियों से सुलझने का
वक्त, वक्त को समझने का
वक्त मिलकर आगे बढ़ने का
वक्त अपने खयाल का
वक्त जीवन के सवाल का
तो आओ वक्त के साथ चले
सब मिलकर कोरोना से लडे
हम बचे, देश बचे, विश्व बचे
यह जीवनचक्र आगे बढे
यह जीवनचक्र आगे बढे

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
२४/३/२०२०
समय जब साथ होता है,
जीवन सुहाना लगता है,
समय तब साथ होता है,
जब कर्तव्य पे भरोसा हो,
ये भरोसा तब परवान चढ़ता है,
बाधाओं को काटते हुए,
जो समक्ष हो कर गुजरना है।
हिम्मत , धैर्य एंव आत्मबल ,
ये तब होगा जब ये सोच मन को,
शातं कर दे,
जो होगा अच्छा होगा ।
या कर्मों का लेखा जोखा।
जो बोयेंगे सो काटेंगे ।

सत्य जीवन का जान लेना है,
झेलना है ,हँसकर झेलें, दुखी क्यों?
यूँ तो समय हर मर्ज़ की दवा है।
वक़्त को खोना नहीं,बहुत क़ीमती है।
समय का सदुपयोग ही सफलता की पहली सीढ़ी है ।
स्वरचित
आज का विषय : समय / वक्त
दिन : मंगलवार
दिनांक : 24.03.2020
विधा : स्वतंत्र

गीत

हम तुम सारे दौड़ा करते ,
चैन किसे मिलता है !
समय यहाँ पर भरे कुलाँचे ,
पग पग पर छलता है !!

कुछ पाने की सदा लालसा ,
मन में जागा करती !
अभिलाषाएं संभल संभल कर ,
इसीलिये डग भरती !
उम्र तो बस बदले पड़ाव है ,
जैसे दिन ढलता है !!

जन जीवन क्या और नियति भी ,
नित को दौड़ लगाते !
जितना पाओ उतना थोड़ा ,
ज्यादा से न अघाते !
तन थक जाये , मन दौड़े है ,
अवसर कब टलता है !!

बचपन , यौवन और बुढापा ,
हाय हाय कर बीते !
जाने कितने प्रश्न न सुलझे ,
सदा रहे मनचीते !
क्या हासिल ना कर पाये बस ,
वही हमें खलता है !!

धन , वैभव , पद , कुर्सी चाहो ,
आन , बान और शान !
धर्म , सभ्यता और संस्कृति ,
फैशन , मद और मान !
राह रुके ना राही रुकता ,
मन टेढ़ा चलता है !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

24/3 /2020
बिषय, समय, वक्त
संकट की घड़ी में करना है नियम पालन
स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है चिंतन
समय रहते जागरूक हो नहीं बाहर निकलना
दूरियाँ बढ़ाकर बात है करना
विकराल समस्या का समाधान यही है
स्वयं हमारे पास निदान यही है
वक्त बुरा है गुजर जाएगा
फिर वही अपना अच्छा समय आएगा
थोड़ा बहुत जो भी हो स्वीकार करें
शासन के नियमों को अंगीकार करें
जिंदगी रही तो मिलना जुलना भी हो जाएगा
नहीं तो सब कुछ यूँ ही पड़ा रह जाएगा
घूमने फिरने के मौसम भी बहुत आऐंगे
वर्तमान संभाल लें तो भविष्य 
दिनांक-२४/३/२०२०
शीर्षक_समय

समय कभी रूके नही
समय सदा अनमोल
समय पर सब काम कर
जीवन में रस घोल।
समय की महिमा जाने
समय को न भुलावे
अपने पराये सभी को
समय भान करावे
समय समय की बात है
सोच मनु नादान
आज नही तो फिर कभी
सुधरे बिगड़े काम
समय सुखद जब होता है
भूले मत भगवान
जब सतावे विपत्ति
क्यों सुने भगवान
समय पुकारे आप को
किये अनसुना आप
काम बिगड़े जो आपका
फिर पछताये आप।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
24/03 /2020 --मंगलवार
विषय --समय /वक़्त
विधा --दोहा छंद
=================================
"समय/ वक़्त"
''''''''''''''''''''''''''''''''''''
सिकंदरों का भी दिया, मिला धूल में मान।
वही वीर सबसे बड़ा ,.समय बड़ा बलवान।।
----------------------
पद पैसे से हों बड़े ,अगर समय का साथ।
होना बड़ा विचार से,केवल अपने हाथ।।
-----------------
घड़ी भले ही बाँध तू ,. .. लाखों की इठलाय।
मूर्ख नहीं पर जानता,समय हाथ कब आय।।
-----------------------------
समय हाथ में रेत सा,सदा फिसलता जाय।
जितना चाहे भींचिये,नहीं कभी थम पाय।।
--------------------
जीवन में वो कुछ नहीं,. वक़्त न उलझा पाय।
उलझन कोई भी नहीं,वक़्त न सुलझा जाय।।
----------------------
कभी बता आता नहीं ,.. . . बुरा हमारा वक़्त।
लेकिन ये हम को सदा,सबक सिखाये सख़्त।।
----------------------
इज़्ज़त होती समय की ,पता रहे श्रीमान।
पर मूरख मानव उसे ,अपनी लेता मान।।
----------------------
असफलता या सफलता, सदा समय के हाथ।
यत्न आपके हाथ में,. . करिये मन के साथ।।
------------------
ज्ञान हमें सिखला गया , . शब्द हजारों व्यर्थ।
किन्तु समय सिखला गया,उन शब्दों के अर्थ।।
--------------------
नहीं समय के पास है ,. स्याही और किताब।
लेकिन रखता वो सदा,सब का यहाँ हिसाब।।
--------------------
समय जगत में मनुज को,जलवा अगर दिखाय।
हाथ लिया जो कौर है ,. मुँह तक ना जा पाय।।
-----------------------------
आज हमारे जगत में ,समय गया वो आय।
काँच मुकुट में सोहता,..हीरा ठोकर खाय।।
-------------------
सही समय का कीजिये ,इंतज़ार बस आप।
सही समय जब आय तो,दूर सभी संताप।।
--------------------
समय दिखाता है हमें ,.. . कैसे कैसे रूप।
कभी छाँव होती घनी ,और कभी है धूप।।
-------------------
कभी धूप या छाँव है ,. कभी दिवस या रात।
समय बदलता हैं यहाँ ,. ये है असली बात।।
-------------------
इस जीवन में समय का,कैसा अद्भुत रूप।
कभी छाँव होती घनी ,और कभी है धूप।।
===============================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी

विषय-समय
दिनाँक-14/03/2020

समय चक्र चले निरंतर,
कभी नहीं ये रुकता है।
कितना कोई करे परिश्रम,
इसे थाम नहीं सकता है।

बड़े -बड़े साम्राज्य ढहे,
महल दुमहले ध्वस्त हुए।
समयचक्र में फँस कर जाने,
सूरज कितने ही अस्त हुए।

समय न छोड़े किसी को भी,
एक दिन सबको मरना है।
यही सोच कर हम सबको,
काम समझकर करना है।

कुछ काम करें हम ऐसे भी,
जो इस जग में रह पाएँ।
समय मिटा न पाए जिसको,
वह नाम अमर हम कर जाएँ।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक, २४,३,२०२०
दिन, मंगलवार
विषय, समय, वक्त

आया वक्त बढ़ा बेढ़ंगा ,
बात-बात में झगड़ा दंगा।

मानव नहीं मानवों जैसा,
जाने हुआ अवतरण कैसा।

व्यवहार हुआ दानवों जैसा।
नहीं किसी का रहा भरोसा,

चलते हैं सब पहन मुखौटा,
कौन कहाँ पर निकले खोटा।

बन गया है देवता पैसा ,
दिखे न कुछ लज्जा के जैसा।

कोई भी दे सकता धोखा ,
दिल भावों का खाली खोखा।

चाल समय की लिखे कहानी,
कुछ अनहोनी कुछ रूहानी।

मति अनुरूप गह रहा प्राणी,
करनी होगी यहीं चुकानी।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश 

विषय-समय/वक़्त

कीमत दोनों की
चुकानी पड़ती है
बोलने की भी
और चुप रहने की भी

सीता चुप रही
तो उन्हें
अग्निपरीक्षा का दंश मिला
पांचाली ने मुँह खोला
तो उनके सिर
महाभारत युद्ध का
इल्ज़ाम लगा

सीता यदि
अपने हक में बोलतीं
तो गृह निष्कासन से बच जाती
द्रोपदी यदि
भरी सभा मे हुंकार भरतीं
तो चीरहरण से बच जाती

समय पर बोलना
प्रभाव दिखाता है
किसी समय पर चुप रहना भी
पीड़ा,अपमान कष्ट से
हमें बचाता है ।।

कीमत बोलने की
या चुप रहने की नहीं
कीमत उचित समय पर
मुँह खोलने की या
मौन की होती है
उचित समय पर
उचित कदम उठाने की होती है..!!


**वंदना सोलंकी **©स्वरचित®
कुंडलिनी छंद



1
पीड़ित सकल समाज है,कोरोना से आज |
ड्रैगन की करतूत से, गिरी सभी पर गाज |
गिरी सभी पर गाज ,विश्व को इसने मारा |
जीना है दुस्वार,#समय की बदली धारा |

2
संयम सद्संकलप से, बनते काम तमाम |
बार बार धों हाथ को,लें विवेक से काम |
लें विवेक से काम ,रहें अपने ही घर पर |
कोरोना मर जाए, नहीं यदि मिले उसे नर |

3
हाथ मिलाना छोड़ के ,नमन करो चितलाय |
सच्ची प्रीत दिखाइये ,भय को दूर भगाय |
भय को दूर भगाय,उचित जो हो अपनाओ |
उर में दृढ़ता धार,कॅरोना मार भगाओ |

4
पीड़ित देश विदेश है,बंद पड़े सब काम |
विकट वायरस है बड़ा ,कोरोना है नाम |
कोरोना है नाम, बांटता मौत फिर रहा |
कैसे छूटे जान ,खोज यह विश्व कर रहा |

5
समय यही बतला रहा ,लो संयम से काम |कोरोना के कहर पे होगा तभी विराम |
होगा तभी विराम,समूहों में मत जाओ |
मल मल धोओ हाथ ,रोग को दूर भगाओ |

मंजूषा श्रीवास्तव 'मृदुल'.
विषय- # समय/ वक़्त
विधा - काव्य

समय चक्र के आगे,
सबको झुकना पड़ता है।
मान, अभिमान , श्रम से -
चूता पसीना, सबसे जूझना
पड़ता है ।
समय चक्र के आगे
सबको झुकना पड़ता है !!

पेट की भूख, ख्वाबों से जंग
हरदम चलता रहता है ।
कभी महामारी, कभी चिंगारी-
से ज़ख्म हर दम उगलता
रहता है।
समय चक्र के आगे
सबको झुकना पड़ता है!!

आज का वक़्त कैसा आया है,
हर तरफ़ प्रभु की बिगड़ी माया है।
जैसे सदियों से रुका रोग ,
कोरोना ने सबको डराया है ।
समय चक्र के आगे
सबको झुकना पड़ता है !!

कभी अच्छा समय भी आता है ,
तब इंसान महत्व समझ नहीं पाता है ।
आपस में ही उलझ जाता है...
तब समय बढ़ चढ़ कर गुस्सा
दिखलाता है ।
समय चक्र के आगे
सबको झुकना पड़ता है !!

सवरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड

विषय-समय
दिनांक 24-3-2020




समय की चाल समझ ले,क्यूं बन रहा नादान है।
गलत पद चिन्हों पर चल,दूर जा रहा इंसान है।।

समय गति जो नाप ले,वो ही तो बनता महान है।
पर गैरों की बातों से,बहकता सदा वो इंसान है।।

समय को पकड़ पाना,तो बहुत मुश्किल काम है।
समय कद्र नहीं कर रहा,और बन रहा शैतान है।।

समय साथ चलने का,राज जो जाना वो इंसान है।
समय तो बीत गया,बस छोड़ा अमूल्य निशान है।।

बच्चों संग बच्चा बना ,नहीं उम्र का उसे भान है।
समय हाथ से फिसल रहा,वो बन रहा अंजान है।।

समय मूल्य जिसने पहचाना,वो बना भगवान है।
नर बीच नारायण बसा,नहीं उसे प्रभु पहचान है।।



वीणा वैष्णव
कांकरोली

विधा कविता
दिनाँक 24.3.2020
दिन मंगलवार

समय/वक्त
💘💘💘💘

समय के पृष्ठ पर नाम उनके ही चमकते
सूर्य सा जो तेज लेकर सबके हित में दमकते
उनकी बातें समय भी सदा ही सम्भालता है
और पीढि़यों को उस चेतना में ढालता है।

तब ही तो कृष्ण की गीता अमर है
तब ही तो आज भी रामायण मुखर है
तब ही तो मीरा भजन अब भी वक्त गुनगुनाता
तब ही तो कबीर का हर कथन मुस्कराता।

समय किसी का एक सा रहता कहाँ है
आज कोई है यहाँ तो कल मिलता वहाँ है
एक कोरोना ने ही गिरा दिया मँच सारा
असहाय नज़रें लिये उलझा हुआ सारा ज़हाँ है।

समय के वक्ष पर जो नाम लिख दे वह सफल है
समय के कक्ष पर जो दे दे दस्तक वह सबल है
हम तो सब आये हैं जाने के लिये
क्या पता कब बुझें हम जैसे दिये।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा : कविता
तिथि : 24.3.2020

समय का पल
पल में बने कल
कर ले सदुपयोग
वरना जाए निकल।

समय न अचल
बहता नदी जल
बांधे भी न बंधे-
चाहे लगा ले बल।

आया बन बुरा तो
क्यों रहा है खल,
अच्छा न रहा तो-
बुरा भी जाए गा ढल।

सोच सोच न घुल
समय संग चल,
जब दे समय बहल
लपक ले फल।

कभी कभी समय, देता दहल
हंस कर बुद्धि.से झल,
जब भी प्रयास हों विफ़ल
कर नए सिरे से नई पहल।

समय की सीख को
स्वीकार, उत्तम हल,
निकल गया जो पल
रहेगा बस हाथ मल।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
आज का विषय-समय/वक्त
तिथि- 24/03/2020
दिवस-मंगलवार
**************************************
समय बड़ा बलवान है
समय बड़ा धनवान है
समय से निकलता सूरज
समय से निकलता चांद है
समय से होता हर काम है।
आज नहीं कल पर टालता जो काम है
मंजिल उसकी होती नहीं आसान है समय से करता जो हर काम है मंजिल होती उसी की गुलाम है।
*************************************
समय को जिसने न पहचाना उसको पड़ेगा धोखा खाना
दिन-रात चलना इसका काम
करता नही एक पल ये आराम समय को जिसने है पहचाना
जीवन का हर सुख है उसने जाना समय के साथ चलना जिसे न आता जीवन भर वह है पछताता
समय के संग चलना जिसे है आता जीवन की हर खुशियां वह है पाता।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
24/03/2920
मंगलवार
विषय . समय
विधा छंदमुक्त
*****************

अंतिम होगी श्वाँस मेरी
जब नाम तेरा
क्षीण स्वर में लूँ
विस्मृत होगें भाव सारे
जब अतृप्ति से
स्वः को श्राप दूँ ।
दिगंतर में होगी
प्रातः लालिमा
जब कुंतल में सजेगी कवरी
जीवन का मध्यान्ह
होगा समाप्त जब
स्नायुओं से उतरेगी तावरी ।

अवसादों को
स्पर्श करेंगी मेघमालाएँ,
श्मशान की ध्वनि में
होगा श्लेष
प्राण के आरोहण में
होगी सूक्ष्मता,
तीव्र होगा समय का आश्लेष ।
मैं क्रूरतम क्षण से
याचना करूँगी मुक्ति की,
होगा चंद्राभास श्वेतिमा में
तू मुक्त होगा
मोह के बाहुपाश से,
प्रज्वलित होगा प्रदीप कालिमा में ।

अवरुद्ध होगा वो पथ
जो गतिमान होगा
क्षितिज पर्यंत प्रिय
हृदयों में होगा
एक विश्वास परिश्लेष का
और प्रेम अत्यंत प्रिय ।
मंद नाद में
आत्माएँ होगीं उन्मुक्त
स्वरित होगी संगम गीति
मैं नृत्य करूँगी
साथ पंचभूतों के ,
तेरे आलिंगन में होगी
संतृप्ति ।

ये समय है
आत्मोत्सर्ग का,
संकल्प का एवं स्निग्ध समीपता का
निवेदन है पुनर्मिलन का ,
नव यौवन से मुखरित भवितव्यता का ।

#पूर्णतःस्वरचित

विषय:- वक्त/समय
दिनांक:-24/03/2020


इटली चिकित्सा बहुत बडी़।
टेक दिए घुटने निढाल पड़ी।

लाशों का हाय जाल बडा़ है।
देखके इटली बेहाल खडा़ है।

हैकिसका बेटा किसका भाई।
किसकी बहना किसकी माई।

देखों तड़पे रहे नर और नारी।
बढती जारही येआपदा भारी।

कोरोना कहर है निरंतर जारी।
आगे जाने अब किसकी बारी।

सबके सब मायुस खडे़ अब।
प्रभु कोरोना से कैसे लडेअब।

कैसी मुश्किल घड़ी ये है आई।
कैसे काँटे हमें मार्ग दो दिखाई।

वक्त की नजा़कत समझोभाई।
हुआ कोरोना तो नही है दवाई।

चाहे हो गलियाँ सड़केंभी सुनी।
पर ना हो किसी की गोद सुनी।

प्रशासन का भी साथ निभाओं।
घर से बिल्कुल बाहर न आओं।

घर मैं ही बैठे रहना सब भाई।
रक्षक खड़े है डॉक्टर सिपाही।

"मधु" सहयोग आभार बडा़ है।
करने मदद देश तैयार खडा़ है।

भला बुरा ना किसी को कहना।
स्वरक्षा खातिर दुख को सहना।

स्वयं बचो साथ सबको बचाओ।
राष्ट्रभक्ति प्रेमभाईचारा दिखाओं।

मधु पालीवाल
स्वरचित

विषय:-वक्त
विधा कविता

वो जो रुकता नहीं किसी के लिए,
वो जिसका अपना दौर होता है|
वो जो कभी एक सा नहीं रहता,
उसका ही नाम वक्त होता है|

वक्त सर्वशक्तिमान होता है,
वक्त से सभी हार जाते हैं|
चांद सूरज तारे धरती हवा पानी,
इसके आगे सभी सिर झुकाते हैं|

वक्त के साथ जो चला करते,
सफलता उनके कदम चूमती है|
वक्त के साथ जो न चल पाया,
मंजिलें उनसे दूर रहती हैं|

वक्त शहीदों की गाथा गाता है,
उनके सम्मान में सिर झुकाता है|
वक्त से नजरें मिलाने वालों का,
नाम इतिहास में लिक्खा जाता है|


जि़न्दगी की भीअजीब एक कहानी है,
वक्त इसका बचपन बुढ़ापाऔर जवानी है|
हार जीत ग़म खुशी इसकी मेहरबानीहै,
ज़िन्दगी वक्त की मुहताज एक कहानी है|

मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह
मेंरी मौलिक रचना है

विजय श्रीवास्तव
मालवीय रोड
गांधी नगर
बस्ती
उ०प्र०
वक्त

जीवन पल -पल बीता जायें,
समय भाग फिर हाथ न आयें।
वक्त का पहिया चलता जायें,
हाथ से रेत- सा फिसता जायें।।

समझ गया जो,
वहीं मूल्य पा जायें।
न समझा जो,
बाद वक्त पछतायें।
समय तो,
हर पल चलता जायें।
रोकने से भी वो,
न रूके ,न रूकने पायें।।

जीवन अर्थ -मर्म -कर्म- धर्म को,
जो मनुज सार्थक कर जायें।
वहीं मनुज निज धरा को,
स्वर्ग सम-तुल्य बनायें।।
स्वरचित रचना
@प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
विषय - समय , वक्त

यह समय विशेष है,
मुझमें इतिहास के
बाकी कुछ अवशेष हैं ।
वैश्विक महामारी हूँ
क्यों
तुमने ना जाना , हूँ मैं कोरोना
लेकर आया हूँ मौत का अफसाना ।
तुम जो घर पर रहो, मै भी छुपने को
ढूँढता फिरूं कोई कोना ,

मैं भी हूँ तन्हा , तुम भी तन्हा रहो
सोचो गर साथ हम हों तो क्या हो ।
सुनो ना सुनो ना सुन लो ना
घर पर ही रहोगे ज्यादा
कर लो खुद से ये वादा ।

फोन से ही जानो, अपने अपनों का हाल
जोड़ लो दोनों हाथ ,हाथ ना किसी से मिलाना ।बड़ा घातक हूँ मैं
कोरोना, कोरोना, कोरोना ।

हाथ धो कर पड़ा हूँ पीछे मै दुनिया के
हाथ तुम भी बार बार धुलाना
मुन्ना और मुनिया के ।
पड़ा हूँ पीछे मै दुनिया के
सुनो ना सुनो ना सुन लो ना ।

जिद पर अपनी मै अड़ा हूँ
तन कर के खड़ा हूँ
सर्दी जुकाम, बुखार से बचकर रहना
खांसी की आवाज मेरे कानों मे पडे़ ना ।
ढक लो मुँह अपने
देखो जीवन के सुंदर सपने ।
दूर-दूर ही रहना ,
देखो मुझसे यारी करो ना ,
सुनो ना सुनो ना सुन लो ना ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
वक्त

इक दूजे की होड़ में
भाग रहे हैं सब।
मंजिल नजर आती नहीं
लक्ष्य सधेगा कब।

आपाधापी का है मंजर
पैसा बन गया है रब।
रिश्तों का कत्लेआम हो रहा
मद में चूर हुए हैं सब।

थाली में खाकर करते छेद
सोचो, देख रहा है रब।
सच्चाई और नेकी दम तोड़ रही
मूकदर्शक बनोगे कब तक सब।

उठो, जागो और जगाओ
आलोकित कर दो सबका पथ।
कतरे-कतरे का होगा हिसाब
कह रहा है वक्त।


- विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
उससे ही हैं दिन और रात
मौसम भी उसके गुलाम
फिसले हाथ से रेत समान
वक्त है प्यारे उसका नाम

हंसाना रुलाना इसका काम
जो न करता इसका सम्मान
तोड़ ये दे उसका अभिमान
वक्त है प्यारे इसका नाम

खुद पे न करना अभिमान
दिखा देगा ये तेरी औकात
अच्छा बुरा है इसके हाथ
वक्त है प्यारे इसका नाम

पल में बदले इसका मिज़ाज़
चले न इस पे किसी का राज
बिगाड़े बनाये सारे काज
वक्त है प्यारे इसका नाम
 समय/ वक्त

संकट का समय है आन पड़ा, है विपदा विश्व के द्वार खड़ा.

घबड़ाओं न भाई डरो नहीं, यह तो है परीक्षा की विषम घड़ी.
विपदा जब भी तो आती है, कायर को ही दहलाती है.
न धैर्य खोओं न धीरज को, ईश्वर को न भूलों क्षण भर को.
हिम्मत से ही जीता जाता है, सोना तपकर कुन्दन कहलाता है.
अब आयी है संयम की घड़ी, घर से तुम न निकलो तो विपदा टली.
अपने लिए जीये तो खाक जीये, अब आन पड़ी राष्ट्र धर्म की घड़ी.

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली, सिवान, बिहार 841239
विषय- समय/ वक्त
"समय"
समय के सागर में,
सुख-दुख की लहरें हैं,
थाम कर प्रिय तेरा हाथ,
सब दुखों से परें हैं,
थाम हाथ मन मीत का,
रखा नवजीवन में कदम,
प्रेम की स्वर्णिम किरणों से,
रस्ता हुआ था सुगम,
आज भी यादें उस समय की,
मारती हैं हिलोरे दिल में,
तन्हा बैठे रहते हैं ,
आज भी हम महफिल में।
**
स्वरचित- रेखा रविदत्त
तिथि-24/3/20
वार- मंगलवार

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...