Tuesday, March 10

"सत्य "06मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-677
II सत्य II नमन भावों के मोती...

विधा : काव्य


मैं ...
जीवन मृत्यु से परे हूँ...
निरंतर गतिमान....
अपने आप में समाया...
स्वयं स्थापित सत्य हूँ....

बाहय रूप बदल बदल कर आता हूँ....
भ्रूण से जीवन...जीवन से मृत्यु रूप....
सब में आ जा रहा हूँ...
निर्विघ्न....निर्लेप...
न किसी से बंधा न कटा न जला...
दुःख और सुख भोगने में....
हर प्रकार के चरित्र को चरितार्थ करने में...
मैं समय के संग चल रहा हूँ...
पर समय...न मुझे रोक पाया...न बाँध पाया...
मनु..विशिष्ट..गौतम...वराहमिहिर ...विवेकानंद...
कबीर...नानक...बुद्ध...
न जाने कितने आवरण हैं मेरे....
मैं समय की परिधि से परे वो सत्य हूँ...
जिसे कोई झुठला नहीं सका है....
मुझे समझने की उत्कंठा में....
कोई कंदराओं में चला गया...
किसी ने अन्न त्यागा...किसी ने जल...
किसी ने देह को बंधन समझ...
कष्ट दिया...
मृत्यु का आलिंगन किया...
पर मैं अविचल...सनातन...कालजयी हूँ...
पंचभूतों में रह कर भी मैं....
पंचभूत में नहीं....

मैं न कंदराओं में मिला...
न दरिया और समंदर में...
जिसको भी मिला मैं...
भीतर ही मिला....
जब भीतर मिला तो बाहर भी दिखा...
फल...फूल...जीव...निर्जीव...
सब में फिर मैं ही दिखा...
क्यूंकि मैं भीतर रह कर भी...
चहुँ और आलोकित हो रहा हूँ....
स्वयं ही प्रमाणित सत्य हूँ....शाश्वत...
मैं ‘स्वयं’ न हो कर भी...
स्वयं में स्वयं को स्थापित करता हूँ....
तुझमें...उसमें...सबमें...
मैं स्वयं स्थापित सत्य हूँ....
शाश्वत सत्य...!!

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०६.०३.२०२०

 II सत्य 2 II नमन भावों के मोती...
विधा : काव्य


II सत्य - प्रेम II

न जाने क्यूँ....
ढ़ाई आखर का अर्थ...
समझ नहीं आता है...
वो सत्य हो या प्रेम...

प्रेम न हो तो सत्य...
चरितार्थ नहीं होता...
सत्य के बिना प्रेम से...
साक्षात्कार नहीं होता...

सत्य न परिभाषित है न अपरिभाषित...
प्रेम कैसा है...कब है...क्यूँ है...
परिभाषा की परिधि से परे है....
सत्य भी अपरिमित है...

सत्य सुख है शांति है...
प्रेम सुखद अनुभूति...
आडम्बरों..ढोंग...आवरणों से...
चहरे...मोहरों से विमुख...

पर हम...
सत्य...प्रेम से विमुख हो...
दूसरों में ढूंढ ढूंढ कर...
झूट स्थापित करने में लगे हैं...
सत्य बिखरता है तो प्रेम अपने आप...
बिखर जाता है...
फिर रिश्ते भी...
अलविदा लिख देते हैं...

सत्य हो या प्रेम....
अपने में ही विलीन होते हैं..
अपने में ही निवास करते हैं...
जैसे....
आत्मा परमात्मा में...
यही है सनातन...शाश्वत...
सत्य-प्रेम....!!

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०६.०३.२०२०
6 /3//2020
बिषय, सत्य

सत्य परेशान होता है
पराजय नहीं होता
सत्य गोते खाता है
पर किसी को नहीं डुबोता
सत्य नारियल के जैसा है
ऊपर से सख्त अंदर नरम
सत्य वो दरख्त सा है
जिसकी डालें कठोर
फूल मुलायम
सत्य वो गोली है जो कड़वी जरूर
पर फायदेमंद है
सत्य पर नहीं कोई पावंद है
सत्य चलता ही रहता रुकता नहीं है
सत्य अडिग रहता झुकता नहीं है
सत्य टूटता जुड़ता है
असत्य टूटने के बाद जुड़ता नहीं
सत्य सीधा रहता मुड़ता नहीं
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय सत्य
विधा काव्य

06 मार्च,2020,शुक्रवार

सत्य सनातन धर्म हमारा
सत्य वाचा और कर्मा हो।
सत्य में ईश्वर निवास जग
सत्य से मानव गरिमा हो।

सत्य पञ्च तत्व जगत में
सत्य सूरज चाँद सितारे।
सत्य समाहित हो जीवन
सत्य सुख मिलते हैं प्यारे।

सत्यमयी गङ्गा बहती नित
सत्य सुमन खिलते हैं सारे।
सत्य सागर विस्तृत फैला है
सत्य हिमगिरि भाग्य सँवारे।

सत्य अखंड अनंत बृह्माण्ड
सत्य प्रकृति अद्भुत जग में।
सत्य प्रकाश दृष्टा जीवन का
सत्य वास हो हर पद पद में।

सत्य आत्मा सत्य परमात्मा
सत्य से है सृष्टि अति सुन्दर।
सत्य पलायन उचित नहीं जग
सत्य पखारे दुर्गुण सब अंदर।

सत्य शिव है सत्य सुन्दर है
सत्यमयी हो जीवन आशा।
सत्य पथ नित कदम बढाओ
सत्यमयी हो मुख की भाषा।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय*सत्य*
विधा-काव्य

सत्य सनातन सत्य शाश्वत,
सत्य अजय है सत्य अमर है।
सत्य संस्कृति में बसा हुआ,
सत्य सुखद और सदवहार है।

सत्य कर्म हो सत्य धर्म हो।
सत्य सदैव महिमा मंडित हो।
सत्यमेव जयते ‌सब कहते,
सत्य अखंड नहींं खंडित हो।

सत्य रहे देखें अपने चहुंओर।
सत्य अहिंसा सद्पथ की डोर।
सत्य सनातन संस्कृति सुन्दर,
सत्य हमेशा जीवन की भोर।

सत्य रूप है सच सत्य अनूप है।
सत्य सत्य है सच सृष्टि स्वरूप है।
सत्य अगोचर छिपा अंतर्मन में,
सत्य सही ये अद्भुत ईश स्वरूप है।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
जयजय श्री राम रामजी
*सत्य*, काव्य
दिनांक 6/03/2020
विषय सत्य
विधा बालगीत

हिलना मिलना मिलकर रहना
नफ़रत कभी न घोलना
बच्चों सत्य की राह पर चलना
झूठ कभी न बोलना।

हिन्दू हो,मुस्लिम हो
चाहे कोई मराठा हो
देश धर्म हो सबकी शिक्षा
देश धर्म से नाता हो।।

सच्चाई के पथ पर चलना
#सत्य कभी न छोड़ना
हिलना मिलना मिलकर रहना
नफ़रत कभी न घोलना।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)

दिनांक- 06/03/2020
प्रदत्त शब्द-#सत्य*

विधा-रचना
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अपना प्रिय प्रभु उन्हें मानकर हाथ शीष धरते हैं।
"कहते है जो सत्य बात अनुसरण सदा करते हैं।।"
सत्य वही है जो कि धर्म पर अनुशासन करता है।
उर अन्तर प्रमुदित भावों को ओजपूर्ण भरता है ।।
नर विजयी वह हो जाता है सत्य समाता जिसमें।
प्रण गौरव का भर लाता है कमी न रखता उसमें।।
ललचाती हैं हुलस कीर्ति की शंसाएँ मरती हैं।
बढ़कर प्रेम लिए सुन्दरियाँ आलिंगन करती हैं।।
उसका मानव कभी छोड़ता साथ नहीं है भू पर।
बलिहारी वह हो जाता है छत्र तानता ऊपर।।
भव सागर में डूब रहा हूँ मैं नौका खे देना।
करबद्ध निवेदन है प्रभु! तुमसे सत्य मुझे दे देना।।
============================
'अ़क्स' दौनेरिया
विषय : सत्य
विधा : कविता

तिथि : 6.3.2020

भूख
सब से बड़ा सत्य
पेट कराता अहसास
हर पल, हर श्वास।

निर्धन की आस
रोटी की प्यास
उठती जब मरोड़
और दिखता न कुछ खास!

बच्चों का ग्रास
जुगाड़ने का त्रास
निर्धन का जीवन होम
सत्य का संताप!

--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
दिनांक-06/03/2020
विषय-सत्य





सत्य से साक्षात्कार....

संकट है जब जिन्दा लोगों के वसन की।
भला कौन पूछे हाल मुर्दों के कफ़न की।।

लूटने की होड़ सी लगी चुने हुए गद्दारों में।
फिकर किसे भला अब अपने वतन की।।

डर है अब तो फूलों को अपनी माली से।
कौन करे अब हिफाजत इस चमन की।।

हिन्दू-मुस्लिम, दंगों मे जो बंट जाये हम।
किसकी जिम्मेदारी है राष्ट्र के अमन की।।

हल चलाता अन्नदाता जब खेतों में अपनी।
कैसी हालत पसीने से तर बतर बदन की।।

जब नोटों की गड्डी उछले या चले लात घूसे।
कैसे बचे मर्यादा मर्यादित संसद सदन की।।

सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद

6/3/2020
विषय-सत्य

विधा-नवगीत

"सर के ऊपर टूटी टपरी
नही और दावा"
उर की पीड़ा बाहर फ़ूटे
बहती बन लावा ।।

सारा दिन हाड़ों को तोड़ा
जो भी काम मिला,
कभी कीच या रहे धूल में
मिलता रहा सिला ,
अवसादो के घन गहराते
साथ नही मितवा ।
उर की पीड़ा बाहर फ़ूटे
बहती बन लावा ।।

नियती कैसा खेल खेलती
कैसी ये माया
कहीं बहारों के हैं मेले
कहीं दुःख छाया
दुनिया ये आनी जानी है
झूठा दिखलावा।
उर की पीड़ा बाहर फ़ूटे
बहती बन लावा ।।

आग सुलगी हृदय में ऐसी
दहके ज्यों ज्वाला
बन बैठी है लाचारी अब
चुभती बन भाला
निर्धन कितना बेबस होता
" सत्य "यही कड़वा ।
उर की पीड़ा बाहर फ़ूटे
बहती बन लावा।।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।


विषय- सत्य
सत्य शाश्वत है

इसे न बदला जा सकता है
ना तोड़ा, मरोड़ा जा सकता है
इसी की तलाश में
बड़े-बड़े सन्त महात्मा
भटके न जाने कहां-कहां
गोतम बुद्ध ने राज्य छोड़ा
कबीर,सूर, तुलसी, मीरा ने
अपने ह्रदय को खूब निचोड़ा
अंत में यही निष्कर्ष निकाला
कि सत्य हमारे भीतर ही है
बस जरूरत है एकाग्र होकर
अपने अंदर झांकने की।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

06/03/20
सत्य

छन्द मुक्त

सत्य में सत्य की
एक सी कहानी है।
हर कालखंड ,
सम विषम ,
अनुकूल ,प्रतिकूल में
निडर ,निर्भीक डटा हुआ
एक सी कहानी लिए ।
एक सी जुबानी लिये
.....….ये तो झूठ है
पल पल बदलता स्वरूप
कितनी सच्चाई
झूठ
के परतों मे दबी ।
पर
.....झूठ का आवरण
सत्य पर बहुत दिन
तक टिकता नही ।
सत्य
झूठ का आवरण तार तार कर ,
फिर सामने खड़ा
निडर निर्भीक
युग युग का सत्य है यही ।


स्वरचित
अनिता सुधीर

नमन ‘ भावों के मोती
विषय- “ सत्य “

विधा - हाइकु
१- डाले सत्य पे
कितने आवरण
छुप न सका.

२- मिटा ही दिया
अंधकार झूँठ का
सत्य प्रकाश

३- मैं लौ सत्य की
हूँ स्वयं प्रकाशित
बिन प्रमाण.

४- उतर गईं
परतें असत्य की
सत्य विजयी.
📝वेदस्मृति ‘कृती’
दिनांक-6-3-2020
विषय-सत्य

विधा-दोहा

विधा -दोहा
वैद्य-सत्य

सत्य राह पर जो चले,
नर है वही सुजान।
सर्व प्रिय वह बना रहे,
और मिले जग नाम।।1।।

सत्य सदा ही जीतता,
चाहे देर सवेर।
दाता के घर न्याय है,
नहीं वहाँ अंधेर।।2।।

नमन करूँ माँ शारदे,
मात नवाऊँ माथ।
सुगम बने मम लेखनी,
रहे सत्य का साथ।।3।।

रीति सनातन चल रही,
सत्य मार्ग की चाह।
राग द्वेष को त्याग कर,
चले नेक पद राह।।4।।

भक्ति भाव की साधना,
संगति सुगम सुजान।
सत्य मिले सद ज्ञान से,
सरल सहज ये जान।।5।।

जगत उसी को पूजता ,
करता है गुणगान।
सत्य पर जो अडिग रहे,
मानुस उसको जान।।6।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय- सत्य
दिनांक - o6/03/2020।


मृत्यु एक अटल सत्य है,
बाकी सब असत्य है ।
ये संसार छोड़कर जाना है ,
इस सत्य को किसने माना है।

हर जीव भागता इधर-उधर
अपने -अपनों से तितर-बितर
जानते सभी अटल सत्य
फिर भी मन आसक्त है असत्य।

जीव माया में फंसा रहा
सांसारिकता में रमा रहा
मृत्यु खड़ी हुई जब आकर
सत्य से हुआ तब साक्षात्कार।।

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
शीर्षक-सत्य
दिनांक-6.2.2020

विधा --दोहे

1.
सुंदर लगता सत्य वो , जिससे हो कल्याण।
सत्य पालने से सदा, मिले व्यक्ति को त्राण।।
2.
याद हरिश्चंद्र सबको, युधिष्ठरी गुणगान ।
सेवा करके सत्य की , पाया जग में मान।।
3.
सभी पक्षधर सत्य के, भलें हों खुराफ़ाति।
आदर विवेक का करें, व्यक्ति पायँ सुख्याति।।
4.
बार बार लिखते रहो, बोलो वो ही बोल।
लोग सत्य समझें उसे, पूरी पोलम पोल।।
5.
सहस्त्र सचाइ नाश हो, बोलें गर इक झूठ।
झूठ मूठ भी झूठ से, जीवन बनता ठूंठ।।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक, ६,३, २०२०.
दिन , शुक्रवार .

विषय, सत्य .

जीवन पद्धति अब बदल रही, भौतिकता ने हमें घेरा है।

सत्य नहीं सिंचित होता , छल कपट ने हमको घेरा है।

आँधियाँ स्वार्थ की चलतीं हैं, मतलब का रहता घेरा है।

हों रिश्ते नाते या मित्र पड़ोसी, सबको झूठ ने घेरा है।

चेहरों पर तो मुस्कान रहे, पर दिल में भेद भी गहरा है।

सुनते कहते अब सत्य नहीं , कर दिया दंभ ने बहरा है।

मीठी बातें चिकनी चुपड़ीं, हर जगह इन्हीं का डेरा है।

आपाधापी है सफलता की, चमचागीरी का बसेरा है।

सत्य नहीं न्याय के मंदिर में, तारीखों का सिलसिला है।

हँसता है झूठ धड़ल्ले से , और मुँह सत्य का उतरा है।

रहनुमा आजकल अधिकतर, झूठ के रथ पर रहता है।

सत्य बंदी रहता इनके यहाँ , सूरज भी धूमिल रहता है।

जो यहाँ सत्य के अनुगामी, उनसे जमाना छिटकता है।

राही सत्य पथ का फिर भी, बेधड़क राह पर चलता है।

आशा उम्मीदें कायम हैं, घड़ा जरूर पाप का भरता है।

सत्य हमेशा निखरता है , और झूठ कभी तो मरता है।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

सत्य

हो जाता है
मजबूत
सत्य
जब
लगने लगता
झूठ
सत्य

लदा होता है
झूठ
श्रृंगार से
बेबस नंगा
रहता है
सत्य

बसता है
अटारी में
झूठ
फटेहाल
रहता है
सत्य
फिर भी
डिगता नहीं
अपनी
राह से
सत्य

होती सदा
जीत
सत्य की
एक
फरेब है
झूठ

चलते जो
जीवनपर्यन्त
सत्य सादगी से
लेता नाम
ज़माना
ईज्जत से

यूँ तो
जीते मरते
लोग करोडों
बस रहते याद
सत्यवादी
हरिश्चंद्र ही

है ये शरीर
हाड़ मांस का
मिल जायेगा
धूल ज़मीं में
दिया है
ईश ने
ये मानव जन्म
जीलो इसे
सत्य ईमान से

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिनांक -6/3/2020
विषय - सत्य


सत्य की प्रकृति होती सत्य
स्वीकार कहाँ कोई करता है
जिसको देखो वह अपने ढंग से
परिभाषित सत्य को करता है ।

स्वार्थ का बढ़ गया बोलबाला
सबसे आगे उसको ही रखता है
छल कपट के सब दाँव खेलकर
खुद से असत्य के गले लगता है ।

रिश्वतख़ोरी के चलते -दौड़ते
ईमान इंसान का डोल गया है
सबूत, गवाह सब बिक जाते
नोटों का धंधा यूँ बोल गया है ।

पग-पग पर है काला बाज़ारी
ईमानदारी का दामन छूट गया है
आलीशान बंगले कोठी वालों ने
कितना-कितना गबन किया है ।

सत्ता-गलियारों में जाकर देखो
वहाँ सत्य पल-पल आहें भरता है
न्याय के मंदिर में कितना असत्य
निर्दोषों का पूरा जीवन छलता है ।

सत्य अहिंसा का वह परम पुजारी
खुद को ठगा- सा अब माना होगा
सत्य के जितने भी प्रयोग किए थे
पुन: करने धरती पर आना होगा ।

सत्य मन का परम भाव कहलाता
जिह्वा पर भी धारण करना चाहिए
कर्म से जीत ,सदा सत्य की करेंगे
दृढ़ लक्ष्य सभी का होना चाहिए ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘

आज का शीर्षक : सत्य
वार : शुक्रवार

दिनांक : 06.03.2020
विधा : स्वतंत्र

गीत

सत्य तो है जाना पहचाना ,
फिर भी गुमसुम लगता है !!

झूँठ सदा ही अधर विराजे ,
कहने में आसान है !
बड़ी सरलता से जीते है ,
इस पर इसे गुमान है !
खोज सत्य की करना पड़ती ,
यह परदे में रहता है !!

कदर सत्य की सब जाने हैं ,
झूँठ सदा ही भारी है !
यही आचरण में आता है ,
सब जाने बीमारी है !
बड़ा लुभावन , लगे कलेवर ,
यह सबको ही ठगता है !!

कई खामियां छिप जाती है ,
जुबां हिलाना शेष है !
बहता है समीर संग देखो ,
करता असर विशेष है !
ईर्ष्या , द्वेष , घृणा जब जागे ,
झूँठ तभी तो पलता है !!

अंतिम विजय सत्य की निश्चित ,
हारेगा बस झूँठ ही !
ताकतवर , ना इठलाता है ,
बाँधे रखता मूठ ही !
सौ झूँठ पर एक सत्य ही ,
यहाँ जगेरा करता है !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

सत्य
💘💘💘

सब जानते क्या है सत्य
फिर भी झूमता है असत्य
एक मनोवृति ही बस दिखती
न दिखें हमारे खोटे कृत्य।

सत्य आत्म विश्वास देता
सत्य अलग प्रकाश देता
असत्य लेकिन यदि कभी खुलता
तो जीवन भर पीडि़त श्वास देता ।

नरोवा कुँजवा बोलने में नहीं बिल्कुल दाग
जब दुष्ट उगलते हों अपनी आग
फिर भी सुनाई देती सत्य की अलग एक राग
जब पोर पोर इसमें रहता अपना जाग।

इसलिये शिव ही सुन्दर है सत्य है
शरीर का अन्त तो केवल मृत्य है
इसलिये आत्मा को भगवान् महत्व देते
सत्य निष्ठा और सरलता को ही अपनत्व देते।
तिथि- 06/03/2020
दिन - शुक्रवार

विषय - सत्य
विधा - लेख

जैसे सुबह- शाम, रात - दिन,हवा पानी सभी तो सत्य है, राधा कृष्ण का प्यार भी तो सत्य है। जीवन - मृत्यु भी तो अटल सत्य है।
जीवन का अत्यंत मार्मिक घाव ,
जिन्हें कभी मातृत्व का अनुभव नहीं किया येभी तो एक तथ्य सत्य है।
प्रेम करने के बजाय प्रेम हो जाने की घटना में सात्विकता होनी चाहिए। यह भी तो एक सत्य है। समर्पण भी तो सत्य है। झूठ की नींव पर सत्य की इमारत नहीं खड़ी हो सकती ।
सबसे बड़ा समय ही सत्य है
जो सबको अपने भीतर समेट कर रखता है ।
संध्या प्रतिदिन ढलती है ।साहित्य के माध्यम से हम रोज कुछ न कुछ
लिखते हैं। विचारों भावनाओं की
अभिव्यक्ति। इश्वर को कण-कण में
देखना आत्म चिंतन के द्वारा उनसे बातें करना बहुत कठिन सत्य है ।
सत्य को समझ पाना आसान नहीं है, हम जब
मृत्यु को प्राप्त होते हैं ऐसी स्थित में हमारी आत्मा
सबकुछ देखती है सुनती है सिर्फ बोल नहीं पाती ,
उस अनुभूति को व्यक्त नहीं कर पाती सोचिए -
उस वक्त सत्य को महसूस करना एक आम आदमी की
बात नहीं !!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
दिनांक ६/३/२०२०
शीर्षक-"सत्य"


सत्य के राह पर
निकल पड़े जो कदम
लोभ,क्रोध से दूर रह
बढ़ते चले वो कदम।

अधिर न हो वो कभी
तम का चादर चीरे वहीं
उम्मीद का दामन थाम कर
मद को ललकार कर।

सत्य के राह पर बढ़े क़दम
प्रगति के राह पर
कृष्ण को सारथी मानकर
बढ़ते रहे वो कदम।

वेदना को भूलकर
निरंतर चले वो कदम
अधर्म को त्याग कर
सदैव चले सत्य मार्ग पर।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय-सत्य
"सत्य"

सत्य पर है टिका,
जीवन का आधार,
खुशियों के पहने हार,
काटकर झूठ के तार,
मतलबी दुनिया में ,
करते झूठ का वरण,
करके पाप भरपूर,
जाते ईश्वर की शरण,
मन का पंछी जानता,
क्या सत्य क्या झूठ,
नकार जीवन सत्य को,
रिश्तों से जाते रूठ।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
6/3/20
शुक्रवार

नमन बंधुजनों!
आज का विषय-"सत्य"

दिनांक-०६/०३/२०२०
वार-शुक्रवार

#सत्य
सत्य की धुरी पर
टिका है जीवन का सार
अगर बढ़ना है-आगे
ऊँचाइयों पर चढ़ना है-आगे
तो बनाओ हृदय को
सत्यरूपी आईना
कर लो पवित्र
मनरूपी मंदिर को,और
तब देखोगे कि
हर एक व्यक्ति
सहृदय तुम्हारे हृदय में
प्रवेश करता चला जाता है
और तब तुम्हारी आत्मा
पुण्य होती चली जाती है।

विषय-सत्य

सत्य वचन धारण करो, सत में रख विश्वास।
गर सच्चे पथ पर चलें,जीवन भरे उजास।।

सच्चाई की जीत है , सदा बुराई
हार।
मन में दृढ़ विश्वास रख,सच का पलड़ा भार।।

कठिन राह सच की प्रिय, कभी न जाना भूल।
सत-पथ पर बढ़ते रहो, चाहे बिछे
हों शूल।।

सच्चाई की इस डगर,रखो कदम सम्भाल ।
जीतोगे तुम ही सदा ,तिलक लगेगा भाल।।

सरिता गर्ग



०६/०२/२०२०
*सत्य*

टुकड़े हुए दिल के आईने में,
तस्वीरें सभी आज तार-तार।

झूठ की ढ़ाल बड़ी पक्की थी,
खा गया सत्य जहाँ मार

नहीं जिंदा है अब ज़मीर यहाँ
कर रहे लोग बस व्यापार

दायरे बढ़ रहे दरारों में
उठती रही हर ओर से दीवार

छुप के बैठे रहे मतलब-परस्त
घाव देते रहे वो सैंकड़ों-हजार

बहुरूपिया छलते रहे अपने बनकर
जान लेने के हुए आज तलबगार

लिए सिर-आँखों पर फिरते थे जिन्हें
असह्य हो गए हैं रिश्तों के वह भार

खिलाया प्यार से थाली में बार-बार जिन्हें
कर गए छेद बेशुमार-बेशुमार

स्वरचित"पथिक रचना"

06/03/20
सत्य का सूर्य

--------
छंद मुक्त

पुराने खड़े दरख़्तों की दरारें,
चटक चुकें है जिनके अब किनारे,
झांकती है जिनमें से अब वो रोशनी,
देती है जो उम्मीद की किरण घनी,
इन दरख़्तों में छिपे‌ हैं हज़ारों राज़,
जो अब झांकने लगे हैं,बदल कर अपना मिजाज़,
एक सा वक्त कब रहता है,इस जीवन के संसार का,
कभी झूठ,तो कभी भारी रहता है पलड़ा सच के विचार का,
कल जो मिथ्या का बीज बोकर इतराते थे,
आज चटकती दरख़्तों से‌ आती रोशनी से घबराते हैं,
मिथ्या कितनी भी परतें बना खड़ा रहे विशाल,
सत्य की एक छोटी सी किरण उसे कर देती है निढाल,
परत दर परत गिरती जाती हैं ,मिथ्या की खोखली दीवारें,
सत्य का विशाल सूर्य जब चमकता है,लेकर नव उजियारे।

स्वरचित
निधि सहगल

सत्य
आज न्याय बहुत मँहगा हो चुका है.यह धनपशुओं और बाहूबलियों का चेला हो चुका है.
आज न्याय की बात करना बेमानी है.

बेशर्मी और मक्कारी ही आज पूज्य है.
कैसा युगधर्म आ चला है, सत्य को जैसे लकवा मार दिया हो.
इंसाफ़ पसंद लोग इस धरती पर तो ढूढ़ने से भी नहीं मिलते.
चोरो, उच्चकों, धूर्त और चापलूस सत्ता पर काबिज हो चले है.
वह ऐनकेन प्रकारेण सत्ता बनाये रखना चाहते है.
सत्य और न्याय का दीपक बुझ चुका है.
बेशर्मी चरमोत्कर्ष पर है.
मात्स्यन्याय हो रहा है, आज जिसकी लाठी उसकी ही भैंस है.
प्रभु आपको पुनः अवतरित होना ही होगा इस घोर अंधियारे में सत्य का सूर्य उगाना ही होगा.
तभी न्याय की राह देख रहे लोगों को न्याय मिल पायेगा.
उनके साथ तभी इंसाफ़ होगा और दूध का दूध और पानी का पानी होगा.
सत्य की प्रत्याशा में मर रहे लोगों का बलिदान रंग लायेगा.
शेर की खाल पहने भेड़िये, सत्ता छोड़ हाशिये से बाहर होगे.
हे प्रभु! तेरे आने में देर मगर अंधेर नहीं है.
वह सत्य न्याय का सूरज अवश्य प्रकाशित होगा.
तभी न्याय और सत्य का राज्य स्थापित होगा.
ऐसा कब होगा? ऐसा कब होगा? ऐसा कब होगा?

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली,

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