Tuesday, March 10

" होलिकोत्सव/होलिकादहन/रंग/गुलाल09,10मार्च 2020

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ब्लॉगसंख्या :-680
शीर्षक-होलिकोत्सव/होलिकादहन/रंग/गुलाल
०९०३२०२००६४१
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होलिकोत्सव की पावनबेला.
सकलधरा पर छायी भायी.
किंशुक कुसुम की अगुवाई में.
वसुधा मानो हरषायी.
होलिकोत्सव प्रकृति रंगसंग
बात बाल गोपाल सुरक्षा की.
भारतीय संस्कृति संस्कार.
निर्भय करते आरोग्य देते
पलाशप्रसून तनमन रंजित
अंशुघात से वर्ष सुरक्षा.
क्रतिम रंग से बचियों बंधु
तनमन और स्वास्थ्य हानि.
घृणा द्वेष भूलकर अब
मेलजोल ऐक्य रहो
गुड़ रोटी गाय के उपले
होलिकादहन मे पकाया बनाऐ
बाल बंधु कुटुबं सह
निर्भय होकर खाऐ
वायु परीक्षा कृषक हित में.
पुरे वर्ष का भान कराऐ
जयतु सर्वदा भारतीय संस्कृति
जयतु सर्वदा होलिकोत्सव.
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स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा

विषय होली,होलिका दहन,रंग,गुलाल,हास्य,व्यंग्य
विधा काव्य

09 मार्च 2020,सोमवार

सतयुग की अद्भुत गाथा को
कलियुग में अब तक दोहराते।
हिरण्यकश्यप भक्त प्रह्लाद को
होली दहन कर जग रंग उड़ाते।

होली के डंडे के चारों ओर
कंडे लकड़ी हम करें इकठ्ठी।
रंग बिरंगी रंगोली बन रही है
गुलाल डाल रहे भर भर मुठ्ठी।

अर्चन पूजन करें होलिका का
शुभ मुहुर्त पर दहन हम करते।
डीजे वादन पताका उड़ रही है
अति स्नेह एक दूजे को मिलते।

आसमान छू रही चिंगारियां
धू धू कर जल रही होलिका।
देख रहे सब उड़ती लपटों को
नर्तन कर रही नन्हीं बालिका।

होली प्रति वर्ष सीख सिखाती
ये दुराचार स्थायी नहीं होते।
समय आने पर अत्याचारी भी
मिलकर फूट फ़ूट कर ही रोते।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विधा काव्य
10 मार्च 2020,मंगलवार

हँसी खुशी त्यौहार होली का
सब हिलमिल कर होली खेले।
सब डूबे हैं रँगों की मस्ती में
रंग बौछारें मिलकर सब झेंले।

गुलाल चूम रही कोमल गाल
घर घर सज रहे मृदु मालताल।
ढोल नगाड़े अति शौर मचाते
पड़ रही चंग पे हाथ की थाप।

गाकर नाचे युवक युवतियां
ठुमके मारे कर रहै हैं मस्ती।
रंग गुलाल से खेल रहे होली
मचा शोरगुल है बस्ती बस्ती।

मदमस्त यँहा कौंन नहीं हैं ?
सब कर रहे हैं शोरशराबा।
बालक बालिका सब नाचते
डूबे मस्ती में नाच रहे बाबा।

होली अर्थ है दहन बुराई का
द्वेष ईर्ष्या त्यागो सब मिल।
चार दिनों की यह जिंदगानी
हँसी खुशी से रहो हिलमिल।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनाँक-09/03/2020
शीर्षक-होली


*******
प्यार प्रेम का संदेश लेकर होली आई है
नफ़रत का चश्मा हटाकर होली आई है
हँसी खुशी गले मिलाने होली आई है
होली आई है रे भैया आज होली आई है ।

बाग़ बगीचे महक उठे आज होली आई है
तन भी भीगा मन भी भीगा होली आई है
इंसान को इंसान बनाने आज होली आई है
होली आई है रे भैया आज होली आई है ।

गुलाल लगाते देवर भाभी होली आई है
बिछड़े रूठे लोगों को मनाने होली आई है
रंग बिरंगे गुलाल निराले पिचकारी लाई है।
होली आई है रे भैया आज होली आई है ।

मन में लेकर उमंग आज होली आई है
बच्चे जवान बूढ़े सब में मस्ती छाई है
बाल गोपाल संग में राधा खेलन आई है
होली आई है रे भैया आज होली आई है ।
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
विषय होली/रंग/गुलाल
दिनांक-9/03/2020

जब से फागुनी हवा गुनगुनाने लगी
माईरी देहरी तेरी याद आने लगी

वो गांव के चबूतरे में तितली पकड़ना
इक इमली की मांग पर पैर पटकना
वो चुपके से भैया की गुझिया चुराना
रंग अबीर से होली मनाना
कुओं से आती आवाज रहट की
कानों में मिश्री मिलाने लगी।
माईरी देहरी तेरी याद आने लगी।

वो पिचकारी की मांग पर लड़ना झगड़ना
गालों में माँ के #गुलाल रगड़ना
वो टेसू के फूल से चोटी सजाना
पंखुरी गुलाब से लाली लगाना
बाबुल करे हैं प्यार कितना
मैं चित-पट से किस्मत आजमाने लगी।
माईरी देहरी तेरी याद आने लगी।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)

शीर्षक-होली/रंग/गुलाल।
स्वरचित।
महीना आया फाग का,रंगों की मस्ती है होली।
भूलो पिछले गिले-शिकवे, गले मिलो, है होली।।

मस्ती लाई,लाई उमंग,खूब धरा रंगीन हुई।
सतरंगी साड़ी पहन धरा खूब मगन, है होली।।

उपवन में तितलियां मगन,औ फूलों पर भंवरे।
गलियन में बढ़ा हुरियारों का हुरदंग, है होली।।

बच्चों ने संभाली पिचकारी,बूढ़ों ने मला गुलाल
और मस्त हुये रंगों में पोर-पोर जवान, है होली।।

कामिनी का मुख लाल,सांवरे ने मला गुलाल।
अंगों से अंग लगा प्रिय का रंग चढ़ा,है होली।।

प्रीति रंग भीग गये,गोरी-साजन इक संग भये।
अंग-अंग रंग लगा,फाग का रंग चढा,है होली।।

*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

भावों के मोती।
विषय-होली।
स्वरचित।



महीना आया फाग का,रंगों की मस्ती है होली।
भूलो पिछले गिले-शिकवे, गले मिलो, है होली।।

मस्ती लाई,लाई उमंग,खूब धरा रंगीन हुई।
सतरंगी साड़ी पहन धरा खूब मगन, है होली।।

उपवन में तितलियां मगन,औ फूलों पर भंवरे।
गलियन में बढ़ा हुरियारों का हुरदंग, है होली।।

बच्चों ने संभाली पिचकारी,बूढ़ों ने मला गुलाल
और मस्त हुये रंगों में पोर-पोर जवान, है होली।।

कामिनी का मुख लाल,सांवरे ने मला गुलाल।
अंगों से अंग लगा प्रिय का रंग चढ़ा,है होली।।

प्रीति रंग भीग गये,गोरी-साजन इक संग भये।
अंग-अंग रंग लगा,फाग का रंग चढा,है होली।।

*****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

भावों के मोती।
विषय- होली।

स्वरचित।

बैरभाव को
होलिका में जलायें
होगा सद्भाव।

पावन पर्व
मदमस्त पवन
होली है हो ली।।

रंगों में डूबे
सब हुये मगन
होली है हो ली ।।

खुशियों वाला
रंग अंगप्रत्यंग
होली है हो ली।।
****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
09/03/2020
होली के त्यौहार में
हमने रंग लगा दिया
हरा पीला लाल गुलाबी
उनको रंग लगा दिया
रंग-बिरंगा हाथ देखकर
वो बड़े हैरान
आईने में चेहरा देखकर
वो बहुत परेशान
लग रहा था मुझको आज
कुछ गड़बड़ घोटाला है
हाथ लगाकर देखा चेहरा
लाल पीला काला है
इतना गहरा रंग चढ़ाकर
हिम्मत किसने पाई
साबुन लगा-लगा फेस पर
खूब करी धुलाई
ऐसा गहरा रंग चढ़ा कि
रंग उतर न पाया
आग बबूला हो गए
उनका चढ़ गया पारा
उनका चढ़ गया पारा
हमको खूब डांट लगाई
अब ऐसी होली खेलेंगे न
कसम ये हमने खाई।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
दिनाँक-09/03/2020
शीर्षक-होली


*******
होली

आयी है आयी होली आयी
के माने नही मेरा ये जियरा
रंग बिरंगे हो गये सारे
रंग बिरेंगे हो गये सारे
पीकर भांग गाये सरारे
पिया भी करे है, शरारत
की माने नही बिलुआ की भाभी
तनिक भी लाज़ न आवे की
छेड़े मोहे ननदवा दुलारी
तीखे मीठे पकवान सजे है
पानी मे हर रंग घुले है,
की फ़ाल्गुन का गीत है गावे
काहे करें हम भी शरमवा
आयी है आयी होली आयी
के माने नही मेरा ये जियरा

लेखिका
कंचन झारखण्डे
मध्यप्रदेश।
स्वरचित व मौलिक
09/03/20
होलिका दहन

***

प्रत्येक युग का सत्य ये कह गए ज्ञानी प्रज्ञ
होलिका की अग्नि समझ जीवन का यज्ञ।
होलिका प्रतीक अज्ञान अहंकार का
विनाश काल में बुद्धि विकार का।
प्रह्लाद रूप धरे निष्ठा विश्वास का
कालखंड का सत्य,भक्ति अरु आस का ।
होलिका दहन है,अंत राग द्वेष का
प्रतीक है परस्पर सौहार्द परिवेश का।
होलिका की अग्नि में डाल दे समिधा
अहम त्याग कर ,मिटा दे सारी दुविधा
रक्षा कवच अब सत्कर्म का धारण कर
जीवन के यज्ञ में कर्म की आहुति भर
रंगोत्सव संदेश दे जीवन सृजन का
फागुन है मास अब कष्ट हरण का
पलाश के वृक्ष में निवास देवता का
लाल चटक रंग है मन की सजीवता
टेसू के रंग से तन मन भिगो दो
अबीर गुलाल से द्वेष को भुला दो ।
अब कहीं होलिका में घर न जले
पलाश के रंग सा रक्त न बहे ।
पलाश के रंग सा रक्त न बहे...

स्वरचित
अनिता सुधीर


होली गीत
दोहा छन्द
**
होली के त्यौहार में,जीवन का उल्लास ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास।।

बहन होलिका गोद में, ले बैठी प्रहलाद।
रहे सुरक्षित आग में ,ये था आशीर्वाद ।।
अच्छाई की जीत में ,हुई अहम् की हार ।
दहन होलिका में करें ,अपने सभी विकार ।।

अभिमानी के अंत का ,सदा रहा इतिहास
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।
टेसू लाली फैलती ,उड़ता रंग गुलाल ।
मन बासंती हो रहा ,फागुन रक्तिम गाल ।।

पीली सरसों खेत में,कोयल कुहुके डाल।
लगे झूलने बौर अब ,मस्त भ्रमर की चाल।।
बच्चों की टोली करे,पिचकारी की आस ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

होली के हुडदंग में ,बाजे ढोल मृदंग।
नशा भांग का बोलता,तन पर चढ़े तरंग।।
रंग लगाती सालियां, छिड़ी मनोरम जंग।
दीदी देखें क्रोध में,पड़ा रंग में भंग ।।
करें गली के लोग भी,भौजी सँग परिहास,
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

होली क्या खेलें सखी ,मन में उठती पीर ।
देखा खूनी फाग जो,धरी न जाये धीर ।।
हुआ रंग आतंक का ,छिड़ी धर्म की रार ।
दहन संपत्ति का किया ,लगी आग बाजार।।
जन जन में सद्भावना,मिल कर करें प्रयास।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

अनिता सुधीर "आख्या"
बुरा न मानो होली है

🤣!! होली पर पत्नि की हिदायत!!😛

होली आयी होश न खोना
अपना कपड़ा आप ही धोना!!

रंग गुलाल तुम्हे सब भाये
हम तो सोयें डार बिछोना!!

तुम में भरे हजारों ऐब
बुरा मान गयी थी वो मोना!!

इश्क विश्क प्यार व्यार सब
हमें लगवें यह जादू टोना!!

हम नही पड़वे ई चक्कर में
सबसे सुन्दर श्याम सलोना!!

पिछले बरस वो बुढ़िया रोयी
इस बरस न उसे डुबोना!!

आप ही पहले छेड़े सबै
बुढ़िया है बैठे इक कोना!!

करे मजाक मुहल्ले भर सें
जैसे अबहुँ भया हो गोना!!

रामू शायामू दीनू मीनू
सबके घर है रंग भगोना!!

तुम भी बाजार से ले आओ
रंग दो तोला या पोना!!

खेल ले है अपनो भी प्यारो
नीको लागे घर में छोना!!

मगर तुम्हे न खेलन दें हैं
'शिवम' बुराई हमें न ढोना!!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 09/03/2020


विषय - होली
द्वितीय प्रस्तुति


🤣बुरा न मानो होली है 😛

गुजिया खालो रँग लगालो
और लगालो तुम व्हिस्की!
पर नही भूलो पत्नी को
वो जाने तुम्हारे नस नस की !

अच्छा है जो रंग जाओ
उसके ही तुम रंग में!
कुछ न रखा है इक दिन
की दारू और भंग में!

होली है होली जानो
अपनी खुशी को पहचानो!
क्या अन्तर्निहित इसमें
मानो 'शिवम' सनमानो!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 08/03/2020


विषय - होली
तृतीय प्रस्तुति


कुछ तुम पागल हो जाओ
कुछ हम पागल हो जायें!
होली का त्योहार है ये
चलो रंग में हम नहायें!

बैर भाव भुला कर सारे
कुछ हँसलें कुछ बतियायें!
भूलें सारी नाराज़गी हम
क्योंकर किसी को खिसियायें!

सबके अपने रंग मिज़ाज
एक दूजे को अपनायें!
अपने में तो सदा रमते
दूजे में रम कर बतायें !

होली जैसे त्योहार सिर्फ
भारत में ही कहलायें !
कदर करो सबके भावों
की हित इसमें समझ आयें!

गुमान भला किसका करें
कुछ भी नही अपना पायें!
बहतर है समझें 'शिवम' हम
मिलकर के होली मनायें!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 10/03/2020


विषय - होली
चतुर्थ प्रस्तुति


🌹बुन्देलखंडी लोकगीत🌹

गोरी आजा मैं आया हूँ द्वार
काहे बैठी है घूँघट को डार
नैन से नैन कर ले दो चार
काहे बैठी है घूँघट को डार ---

तेरे दरश को तरसें अँखियाँ
बतलाती होगीं तोहे सखियाँ
आज मौका है सुनले मनुहार
काहे बैठी है घूँघट को डार---

चंचल चितवन चैन चुराये
बरसों बरस न देखन पाये
आज कर न तुँ मोसें किनार
काहे बैठी है घूँघट को डार----

ऐसो मौका कबहुँ है आवे
चूक जाए तो वो पछतावे
देख कैसी है चल रही बयार
काहे बैठी है घूँघट को डार---

गली गलिन फगुआरे घूमें
मोरो जियरा तो पर झूमें
अर्ज करले 'शिवम' स्वीकार
काहे बैठी है घूँघट को डार----

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 10/03/2020
दिनांक-09/03/2020
विषय-होली


अनावृत आलिंगन में कैद क्यों गुलाल
ढोल थाप में है ऊष्मा की आज मलाल।।
रंगों के वर्षा रूह, गोरी के दमकते भाल।
शाम सिंदूरी भीगे,गोरी चले मद मस्त चाल।।
एकाएक आग्नेय संकर्षण प्रद्युम्न प्रति वेश
रंगो का प्रेम प्रलाप मंजुला आकर्षण समावेश।
टपकता पानी, चुंबन बेहाल, कमर का कटाव
केशों का झटका ,अपलक पलके ,रंगों का बहाव।।
भाल से गिरती जल की कुछ अगणित बूंदें
तक्षण अग्नि की मदमती जलती बयार।।
गुलाल मग्न है आलिंगन करने को
केशों के ......................उस पार।।
आसक्त प्रेम का तेज ज्वर..........
......आज है रंगो का एकाधिकार।।
ए प्रेम रखना है तुझको मुझे आज
रंगों में मेरा जो ये अर्पण है.........।।
हे प्रियतम तुझको मेरा.............
..........आज सब कुछ समर्पण है।।
शाम सिंदूरी होठों पर..............
मचलने को गुलाल बेताब विभोर।
रंगों की नदियां ऐसे चढ़े...........
यौवन गोरी का हो जाए बरजोर

स्वरचित मौलिक रचना सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

दिनांक- 9-3-2020
विधा- कविता

स्वरचित कविता-
"होली का गुलाल"

लो भैया फिर आई होली-
भू पर सजी पुष्प- रंगोली,
उपवन में रंगों का वैभव-
लाई रवि-किरणों की टोली.

बरपा कहर 'कोरोना' है-
मजा किरकिरा होना है,
रंगपर्व की धूम है गायब-
सूना घर का कोना है.

हाथ जोड़ कर नमन करेंगे-
गीत फाग का श्रवण करेंगे,
चुटकी भर गुलाल ले देकर-
तन मन को सब मगन करेंगे.

भावों के मोती चमकेंगे-
नयनों में सब आ धमकेंगे,
इस होली पर भैया मेरे-
नव नूतन सब बात करेंगे.

गुझिया, पापड़,दही-बड़े-
मुंह में पानी आय भरे,
चलो उड़ाएं खूब गुलाल-
होली पर हों सब खुशहाल.
_____
स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
9/3/20
विषय होली



कान्हा खेलत होली
करत सङ्ग जोर जोरी
पकड़ कलाई मोरी
बंधी प्रेमरस डोरी
बंधे सारे अनुबंध
श्याम मनाए राधा रूठी
बृन्दावन में रहस रचा
भीगी राध्ये भीगी चुनरिया
भीग गए सब अंग सङ्ग
प्रेम रस में भीगे आज
बृन्दावन के नंद लाल

स्वरचित
मीना तिवारी

9/3/2020
विषय-होली


तू कैसो रंगरेज

ना खेरू होली तोरे संग सांवरीया
बिन खेले तोरे रंग रची मैं
कछु नाही मुझ में अब मेरो
किस विधि च्ढ्यो रंग छुडाऊं
तू कैसो रंगरेज ओ कान्हा
कौन देश को रंग मँगायो
बिन डारे मैं हुई कसुम्बी
तन मन सारो ही रंग ड़ारयो
ना खेलूं होरी तोरे संग ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी ।

शीर्षक -- होली, रंग, गुलाल

" सब मिलकर खेलें रंग"

राधा जी के मथुरा आने से, कान्हा हुए प्रशन्न ।
वृंदावन की गोपियां सब , मिल कर करें हुड़दंग।।

ढोल बजे ढोलक बजे,अब बजने लगा है चंग।
फागुन की दस्तक सुनकर, थिरके सबके अंग।।

मथुरा से ले अवधपुरी तक, बरस रहा है रंग।
बच्चे से ले बूढ़े तक को, चढ़ी हुई है भंग।।

होली राधा श्याम की , देख के हैं सब दंग।
बरसाने की गोपियों ने, कर दिया सबको तंग।।

फागुन की इस मृदु हवा में, बढ रहा बसंती प्रेम।
रंग अबीर तन पर लगने से, मिटे हैं सबके भेद।।

राधा रानी की नगरी में हुई, प्रेम भक्ति की जीत।
तुलसी और रसखान भी, मिलके निभाएं प्रीत।

ब्रज की होली का करूँ , क्या मैं आज बखान।
कृष्ण भक्ति में आज फिर ,व्याकुल हैं रसखान।।

जाति धर्म का भेद भुला, सब मिल कर खेलें रंग।
इन्हें देख देव सब बोलें, कोई करे न इनको तंग।।
(अशोक राय वत्स) ©® स्वरचित
होली
होली होली होली, कैसी हँसी ठिठोली.
कान्हा ने जो मल दी, गुलालों की होली.

राधा भी तो ढूँढें,गली गली वो भोली.
मस्तानों की टोली, होली होली होली.
जीवन के रंगों में, होनी थी जो होली.
फागुन में चढ़ आया, सबके मन ये बोली.
आओ सब मिल जाए, एक रंग की होली.
भेदभाव मिटाती, सबका मन हरषाती.
ऐसी है ये होली, रंगों की रंगोली.
हम सब मिलकर मनाए, रंगों की ये होली.

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
भावों के मोती
दिन-9/3/2020

विधा- हाइकु
विषय- होली
-----------------------------
1)
फागुन पूनी~
टोल गेट बनाये
राह पे बच्चे
2)
पलाश फूल ~
रंग गयी धरती
होली रंग से
2)
भांग का घोल~
नगाड़ा थाप पर
वृद्ध भी नाचे
3)
सेना की होली~
पिचकारी छोड़ के
भागा पड़ौसी
4)
काश्मीरी मिर्ची ~
जला गयी बदन
रंग डाल के
5)
होलीका राख~
बच के प्रहल्लाद
आग से आया
6)
होली उत्सव ~
सफेद वस्त्र पर
रक्तिम दाग
7)
बस्ती में होली ~
नाली में गिरकर
रंग लगाया
8)
फागुन सांझ~
रसायन होली से
फैला पलास
9)
होली के भोर~
मुखौटे में आदमी
राह में खड़ा
10)
रंग गुलाल ~
तन का मैल धुला
होली की सांझ
11)
हली का होली ~
श्वेद तर तन में
बहा गुलाल
-------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
शीर्षक ..होली हास्य
****************

मन के भावों को अपने रंगो से छुपा लेते है।
देख पडोसन को खुद ही हम रंग लगा लेते है।
सीधे साधे से बन कर उसके सामने हम जाते है।
हैप्पी होली कहकर उसको हम रंग लगा देते है।
**
मन के भाव को हम चेहरे पर आने ना देते है।
शेर का मन चंचल है कितना ये हम बतलाते है।
कोई कुछ भी कहे मगर हम यू ही चिल्लाते है।
डी जे की मस्ती मस्त हो नागिन डाँस दिखाते है।
**
शेर सिंह सर्राफ

दिनांक-09/03/ 2020
वार-सोमवार
होली विशेष आयोजन
विषय- होली
शीर्षक- रंग पर्व मनाना तुम
विधा- कविता
रचनाकार-सुनील कुमार
***************************
रंग पर्व अबकी जब मनाना तुम एक रंग स्नेह का भी लगाना तुम राग- द्वेष सभी मिटाना तुम
रंग पर्व अबकी जब मनाना तुम शिकवे- गिले सभी भुलाना तुम दिल से दिल मिलाना तुम
रंग पर्व अबकी जब मनाना तुम मदिरापान न करना न कराना तुम दिल किसी का न दुखाना तुम
रंग पर्व अबकी जब मनाना तुम गोबर कचरा न किसी को लगाना तुम
रंग प्रीत का बरसाना तुम
रंग पर्व अबकी जब मनाना तुम
आशीष बड़ों का पाना तुम
स्नेह छोटों पर लुटाना तुम
रंग पर्व अबकी जब मनाना तुम।

स्वरचित-सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।

विषय : होली पर्व
विधा : पद (छंदबद्ध कविता)

इतना रंग लगाएँगे हम

सभी एक हो जाएँगे हम, इतना रंग लगाएँगे हम ।
ऊँच-नीच व जात-पात से,नहीं पहचाने जाएँगे हम।।

क्षमा, दया दान में दे कर,
गलती सारी माफ करेंगे।
मनमुटाव व मैलेपन को,
पिचकारी से साफ करेंगे।
भाईचारा के भाव से ,मन आँगन महक आएँगे हम ।
ऊँच-नीच व जात-पात से,नहीं पहचाने जाएँगे हम।।

सांप्रदायिक भेद-भाव से ,
मिल हम सब ऊपर आएँगे।
बालों ऊपर रंग लगाकर ,
जन गण मन हम सब गाएँगे।
बाहें फैला कदम बढ़ाकर , सबको गले लगाएँगे हम।
ऊँच-नीच व जात-पात से,नहीं पहचाने जाएँगे हम।।

मानवता से भी ऊपर उठ ,
हम प्रकृति से प्यार करेंगे ।
धड़कन सब हिंद-हिंद बोले,
ऐसा हृदय तैयार करेंगे ।
होली के संग सभी बुराई ,अग्नि बीच जलाएँगे हम ।
ऊँच-नीच व जात-पात से,नहीं पहचाने जाएँगे हम।।

नाचें , गाएँ , मौज मनाएँ,
होली का हुड़दंग मचाएँ ।
खुश हो सबको रंग लगाएँ,
ह्रदय से हिंद को हर्षाएँ ।
लाल शहीदों की शहादत का,माथे तिलक लगाएँगे हम ।
ऊँच - नीच व जात-पात से , नहीं पहचाने जाएँगे हम ।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक

दिनांक-9/3/2020
विषय-होलिका दहन

. "अथ कथा होली"
~~~~~~~
ऋषि कश्यप व उनकी पत्नी दिति से असुर
हिरणाकश्यपु व हिरणाक्ष का जन्म हुआ था
इनकी एक बहिन थी जिसका नाम होली
(ढूण्डी)था होली पर एक चुनरी थी जिसे शीतल
चूनरी कहते थे होली उसै ओढ़ कर अग्नि में
बैठ जाती तो उससे जल नहीं पाती थी असुर
हिरणाकुश ने भक्त प्रह्लाद स्व पुत्र को तरह
तरह से मारने का असफल प्रयास किया पर
किन्तु प्रह्लाद भगवद कृपा से हर बार बचता
ही रहा
तब हिरणाकशिपु ने होली से कहा तू इसे
अपनी गोद में ले होली (चिता)में ले बैठ जा
जिसमें आग लगाने से तू तो शीतल चुन्नी से बच
जायेगी और ये दूष्ट उसमें जल जायेगा ऐसा
ही किया गया कि्तु कहते हैं जाको राखे
साइंया बाल न बांका होय जैसे ही होली में
आग लगाई ईश्वरीय वायु से शीतल चुन्नी उड़
प्रह्लाद पर हो गयी और होलिका उघारी हो कर
होली में जल गयी
भक्त प्रह्लाद होली में से सकुशल निकल
हरि कीर्तन गाने लगा।

तब हिरणाकुश ने लोहे का गर्म खम्भ करबाके
प्रह्लाद को मारने उससे बंधवा दिया

हिरणाक्ष को प्रभु ने वाराह अवतार लेकर
हन डाला था तब हिरणाकश्यपु ने भाई का
बदला लेने ब्रह्मा का तप करके अजेय वर
प्राप्त कर लिया था इसी लिए प्रह्लाद के साथ
अत्याचार किया

तब प्रभु ने
हिरणाकुश हन डारौ नरसिंह रूप हरि ने धरके।
भक्त प्रह्लाद को तारौ नरसिंह रूप प्रभु ने धरके।

थे हिरणाकुश हिरणाक्ष दौनौं ये भाई।
अति के थे बलवान व अति के कुराई
मारा हिरणाक्ष को प्रभु ने वाराह बन
इससे रखता हिरणाकुश मन जलन।
लेना बदवा निज भाई का उसने चहा।
मांगूं वरदान ब्रह्मा से यौं मन कहा।
तप ब्रह्मा का हिरणाकश्पु ने किया
खुश होकर के वर ब्रह्मा ने दिया।
तब ब्रह्मा से हिरणाकशिपु ने कहा।
वर दे दो तुम मेरे मन का चहा

असुर ने ये वर मांगे-
मरूं न घर के भीतर मरूं न घर के बाहर।
न मारे नर कोई मुझको न मारे जिनावर।
न धरती न अम्बर न दिन हो न रैना
और हथियार मुझ पर किसी का चले ना।

ऐसा ही होगा ब्रह्मा ने कह दिया।
वर पा उसने उत्पात अति का किया।
इसी से तो प्रह्लाद को था सताया।
पर हरि ने भी मौके का फाइदा उठाया ।

हिरणाकशिपु प्रह्लाद को लोहे के गर्म खम्भे से बांध
कर कहने लगा।

प्रह्लाद मिटाऊं मैं तेरी अब नामो निशानी है।
कौन बचा सकता तेरी अब यहां जिंदगानी है।

अब कहां है राम तेरा तू क्यौं नहीं बुलाता है।
तेरे राम का दीवाना अब जीवन से जाता है।
ले कर कर में तेग कहे ऐसे अभिमानी है।

हरि भक्त ने देखा है कि खम्भे पर राम चले।
बन चींटीं घूम रहे प्रभु अगनी से नहीं जले।
कह पुत्र पिता अपने से सुन ले अभिमानी है

रग रग में राम रमा है वो तो आजन्मा है।
मेरे राम बिना तो ये खाली नहीं खम्मा है।
मेरे राम की सूरत तो तेरी तेग समानी है।

सुन राम को खम्भे में झट दुष्ट ने बार किया।
हरि निकले खम्भे से नरसिंह अवतार लिया।
घौंटुन पर धर खल कहते की खत्म कहानी है

हिरणाकुश सुन तेरे वरदान इनमें से एक भी
नहीं हैं

वक्त संध्या का था घर की चौखट तले।
धर घौंटुन पै हिरणाकुश को नरसिंह बोले।
न निशि है न दिन है न घर है न बाहर।
मैं नरसिंह हूं नही नर नहीं जिनावर।
ये हाथौं के नख हैं नहीं है कोई खंजर।
ब्रह्मा के वरदान जो सब बच गये।
नख नरसिंह के खल के तन धंस गये ।

बोलौ नरसिंह भगवान की जै।
बोलौ भक्त प्रह्लाद की जै।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)

दिनांक-10/3/2020
. होली है होली है बुरा मत मानो होली है

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
होली का हुड़दंग

होदी के हुड़दंग में बहू जेठ के संग में,
चाची ने भतीजे संग रंग जंग खोली है।
भैया ने भावी पै हावी हो कर उड़ेलौ रंग,
देवर ने भावज की रंग डारी चोली है।
डोकरा ने डोकरी के गाल गुलाल मलौ,
डोकरी ने हंस मारी ठट्टा नैन गोली है।
रंगोली होली होली में ठिटोली टोली टोली में,
होली है होली है बुरा मत मानो होली है।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विषय
होली
*****************

पल पल सिमटती क्यूँ होली की रीत है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

फाल्गुन सिसकता है,हँसी अपनी खोता हैं
होलिका के हाथो आज प्रह्लाद प्राण खोता है

धर्म का अधर्म से अब होती नही जीत है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

होलिका जलाऊ कहाँ होलिका है पूछती
प्रहलाद जीवित कैसे होलिका है सोचती

दो गज जमी के लिए सब में मची चीख है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

होलिका दहन में आज सारा सोया समाज है
मानव है जिन्दा पर मानवता का ही हास है

सब की जुबा पर दुपकी झूठे रंगो के पीस है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

आज रंग फीका दिखा जब की रंगो में हाथ है
अलग अलग रंग है सब अलग थलग साज है

आँगन ,गली में रंगो से होती नही कीच है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

हाथो में गुलाल लिए अब दिल में मलाल है
भाई अब भाई का ही आज बने हुए काल है

होली में गले मिल, रोती रिश्तो की प्रीत है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

होली की हुड़दंग अब बीती कहानी क्यूँ
मिलते है गले लिए आँखों में फिर पानी क्यूँ

हम किसी से कम नही , यही सब की टीस है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

ननद और भाभी की आज होली बिखर गई
देवर और भाभी की आज होली किधर गई

हँसी और ठिठौली में होती रिश्तो में खींझ है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

सब हाथो का रंग सूख गया इंतजार में
रिश्तो में रंग फीके आज के क्यूँ बयार में

नोक झोक रिश्तो में आज बढ़ रही कुरीत है
होली की वेदना में आज होली के गीत है

खान पकवान सारे स्वाद हीन ही लग रहे
प्रेम में मिलावट अब रिश्तो में चल रहे

रंगो से लेता नही क्यूँ आज मानव भी सीख है
होली की वेदना में आज होली के गीत है


छबिराम यादव छबि
लोटाढ मेजा प्रयागराज

09 - 03 - 2020 - - दोहे
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*बुरा न मानो होली है*

#चुनौती
----------
तंज मार 'साली' गई, क्यों बैठे चुपचाप।
जीजाजी के नाम पर,तुम तो हो अभिशाप।

खुली चुनौती है तुम्हें, आओ खेलें रंग।
ध्यान रहे जीजा तुम्हें, पी ली मैंने भंग।।

पिचकारी है हाथ में, मारूँ ऐसी धार।
एक धार में तुम गिरो, जमुना जी के पार।।

#समर्पण
-----------

सिट्टी-पिट्टी गुम हुई, सुन साली की बात।
कान पकड़ बोला यही, करना मत उत्पात।

आँखें तेरी लाल हैं, चढ़ा भंग का रंग।
मैं भोला सा आदमी,कर मत मुझको तंग।।

~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
9 /3//2020
बिषय,, होलिकोत्सव,, होलिका दहन,, रंग गुलाल

बुंदेलखंड का होली गीत
मत मारो पिचकारी मोहे लग जे है 2
भर पिचकारी मोरे घुंघटा पे मारो
.लाल चुनरिया भीग जे है। मत मारो,,
भर पिचकारी मोरे नैनों पे मारी
नैना सै नैना लड़ जै है
जो सुन पावै मोरी सास ननदिया
घर सै मोहे निकार दै है ।।मत।।
जो सुन पावै पति हमारे
मोसै मुखई न बोलै हजार कै है
मत मारो पिचकारी मो लग जै है(बीच का अंतरा छूट गया है जो मैं पीछे लगा रही हूँ)
भर पिचकारी मेरे सनमुख मारी
मोरी अंगिया की शोभा बिगड़ जै है
मत मारो पिचकारी मोहे लग जै है
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

10 /3 /2020
बिषय ,,होली

बुंदेलखंड का होली गीत
होरी खेलन आ गए बनवारी 2
एक हाथ में रंग अबीरा दूजे कनक की पिचकारी।(होरी खेलन)
भर पिचकारी मोहे मारी
भीग गई मोरी गुलसारी।होरी खेलन
रंगों में सराबोर म़े हो गई
बैठ गई शरम की मारी
होरी खेलन आ गए वनवारी
नगर के सब लोग जो देखें
खूबई हँसे दैदै तारी
होरी खेलन आ गए बनवारी
लोग हँसे तो हँसने दइयो
हम हैं पुरुष और तुम नारी
होरी खेलन आ गए बनवारी
मोहे हरो रंग भावै न पीरो रंग भावे
श्याम रंग पे जाऊँ वारी
होरी खेलन आ गए बनवारी
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

दिनांक-९/३/२०२०
शीर्षक-होली


आया होली का त्योहार
लाया जीवन में बहार
मस्ती घुली फिजाओं में
झूमे भैया फागुन में
गुझिया पकवान बने घर घर
कूके कोयल ,चहके चहूं ओर
श्याम नाचे राधा संग
आया सुखद संयोग
होली में सभी मदमस्त
छाई मस्ती जबरदस्त
बुढ़ऊ भी खेले रंग
पड़ोस के भौजाई के संग
होली में मन बौड़ाये
बिन साजन रहा ना जाये
आओ साजन ना हो देर
राह निहारत ना हो सबेर।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
होली

होली के रंग करो न बदरंग

आओ खेलें होली संग संग
होली खेले ऐसे अब
भय शोक को दूर करे जो
सबमें एक विश्वास जगा दे,
आओ खेलें होली ऐसे
अंहकार को छोड़ दें
गले लगा ले एक दूसरे को
भांग का क्या होली में काम?
प्यार सद्भावना का नशा
चढ़े होली में
गुझिया पकवान खूब खाओ
मिलकर सबको गुलाल लगाओ
सालभर रहे उत्सव सा माहौल
ऐसे चढ़े प्रीत का रंग
होली का रंग करो ना बदरंग
आओ खेलें होली संग संग।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

होली_एक संस्मरण

बचपन के होली याद आते ही,मन छपरा के गलियारों में घुमने लगता है, जहां मेरा बचपन बीता था,मन मधुर स्मृतियों से भर जाता है।

होली तब और अब में बहुत अंतर आ गया है। मुझे आज भी याद है माँ बाबूजी और भैया दीदी के साथ हमलोग एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले मिलो दूरी तय कर दूर के रिश्तेदार से मिलने जाते थे, क्योंकि नजदीक के रिश्तेदार तो एक हफ्ता पहले ही हमारे घर आ जाते थे।
सुबह सादगी से (बिना हुड़दंग) होली खेलने के बाद शाम को नहा धोकर नया कपड़ा पहनना बहुत ही सुखद एहसास देता था,आज जैसा नही था, अलमीरा कपड़ों से भरा होने पर भी मन अतृप्त हो।
शाम को गुलाल लेकर हम अपने से सभी बड़ों के पैर पर गुलाल डालते थे,और वे हमें उसका टीका लगा हमें आशिर्वाद देते थे साथ ही देते थे एक रू० का सिक्का जो हमारे लिए "कारूं का खाजाना" से कम नहीं होता था।
पुआ पूरी, दही-बड़े व आलूदम होली के प्रमुख व्यंजन होते थे,आज जैसा अनगिनत पकवान का जमाना नहीं था। अब बस नहीं तो लंबी संस्मरण हो जायेगी, समय की कमी जो है हम सभी के पास।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक, ९,३,२०२०
दिन, सोमवार

विषय, होली

त्यौहार हमारे लेकर आते, सहज सरल संस्कार,
मेल जोल से संभव होता, विश्वास प्यार विस्तार।

पावन उत्सव जब होली का, करे रंगों की बौछार,
आभा नेकी की बढ़ी, हुआ बदी का दाह संस्कार।

भाई चारा बढ़े हमारा, और रिश्तों में बढ़े मिठास,
कोशिश छोटी सी यही, कराये होली में एहसास।

हो दहन बुराई का होली में, प्रतीक से न लें काम,
साया न रहे हिरण्याक्ष का , रहे प्रहलाद का नाम।

नहीं दिखावा करे सुरक्षित, धर्म पालन दे सम्मान,
अति उन्नत संस्कृति है हमारी,हम करते अभिमान।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

दिनांक, १०, ३, २०२०
दिन, मंगलवार

विषय, होली
विधा, हाइकु

फाल्गुन विदा
हुडदंग होली का
रिश्ता प्यार का।

रंग गुलाल
भांग करे धमाल
होली का हाल।

चली बुराई
आगमन अच्छाई
होली बताई ।

दिल की बात
होली की मुलाकात
रंगों का साथ ।

खेलते कीच
खोटी नीयत नीच
होली के बीच।

शुभकामना
बधाई औ मिठाई
लो होली आई।

छोड़ो मलाल
देखो प्रीत कमाल
होली का ख्याल।

नमन होली
रंग बिरंगी टोली
एकता बोली।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

दिनांक9/03/20

बोल रहे सारे रंगरशिया

दिखता सब में चंचल चितवन
मस्ती का राग उठाता तनमन
बढ़ाती दिलों में गहरा उल्लास
थकी सी जिंदगी में डालती प्रकाश
खुशियां रंगों की देती नया विश्वास
अंखियों में मिला के अंखिया
बोल रहे मस्त होके सारे रंगरशिया ।

नशे में नाच रहा बूढ़ा और जवान
बच्चे पिचकारी से दिखा रहे तान
गीतों से रजनी गाती गीत मल्हार
निशा भी रंगों के रूप में देती उपहार
प्रभा ने भी रंगों से डाली अंखिया
बोल रहे मस्त होके सारे रंगरशिया

गली गली में धूम मची है
होली भी क्या खूब दिखी है
दिखा रंग बहुत मनभावन
लगता सारा आलम बहुत सुहावन
बता रही सखियों से सखियां
बोल रहे मस्त होके सारे रंगरशिया।।
स्वरचित
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
विषय-होली
दिनांक 9-3 2020





होली के रंगों की तरह,देखो बदल रहा है आदमी।
अनेक रंग चेहरे लगा,पहचान छुपा रहा है आदमी।

अपनों में छुपे गैर को,नहीं पहचान रहा है आदमी।
तीज त्योहारों बहाने,बस ठगा जा रहा है आदमी।

पुरानी रंजिश ,रंग बहाने पूरी कर रहा है आदमी।
होली का असली महत्व,भूला जी रहा है आदमी।

सीमित दायरे रह,सोच छोटी बना रहा है आदमी।
बस मौके की तलाश में ही,भटक रहा है आदमी।

अनमोल मनुष्य जन्म को,यू गवाँ रहा है आदमी।
गिरगिट की तरह यूं रंग बदल,जी रहा है आदमी।

राग द्वेष हृदय,दिखाने को गले मिल रहा है आदमी।
होलिका जला,मन द्वेष नहीं जला रहा है आदमी।

बस दिखाने ,रस्मो रिवाज निभा रहा है आदमी।
अपने ही कारण अपनों से,दूर जा रहा है आदमी।

पर प्रभु पारखी नजर,नही बच पा रहा है आदमी।
अपने कर्मों की सजा,इसी जन्म पा रहा है आदमी।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
मंच को नमन🙏
शीर्षक- होली/होलिका दहन/रंग गुलाल

***********************
फागुन सुहाना आया रे,
होली भी संग लाया रे।
फागुन सुहाना आया रे,
होली भी संग लाया रे।

मंन मचल मचल जाए,
रंग बिखर बिखर जाए,
राधा रह नही पाए,
कृष्णा बासुरी बजाए,
हर्षोल्लास छाया रे।

फागुन सुहाना आया रे,
होली भी संग लाया रे।

होली के रंग में रंगा है संसार,
प्रीत के रंग का पहन कर हार।
राधा बने मोहन,मोहन बने नार,
सब पर उमंग छाया रे।

फागुन सुहाना आया रे,
होली भी संग लाया रे।

उड़े है अबीर उड़े है गुलाल,
सब साखियों के चुनर हुए लाल।
राधिका के संग खेंले नन्दलाल,
ब्रजमंडल ने धूम मचाया रे।

फागुन सुहाना आया रे,
होली भी संग लाया रे।

कृष्ण संग राधा करे ठिठोली,
खेंले अपने सजन संग होली।
आगे चले मोहन पीछे है टोली,
राधा को पास बुलाया रे।

फागुन सुहाना आया रे,
होली भी संग लाया रे।

स्वरचित
मोनिका गुप्ता
शीर्षक- होली

बस यूं होली मनाया जाए।
सब बैरभाव मिटाया जाए।
भर-भर पिचकारी रंगों से
हरेक पर रंग डाला जाए।।

होगा तभी तो मस्ती भरा
ये होली का पावन त्योहार।
दुःख-सुख जन-जन के
बस एक रंग में ढ़ाला जाए।।

ना हो भेद ऊंच-नीच का
ना हो बात जात-पात की।
ये भेदभाव भूलाकर बस
सबको गले लगाया जाए।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
विषय--होली
_______________
भीगी बरसाने की छोरी,
आई होली आई है।
लिए गुलाल आज खेले,
देखो टोली आई है।

घेरे राधा ले पिचकारी
लगा रंग श्री मुरारी
अबीर लाल गुलाल लगाए
आँखें काली कजरारी
भीग रही रंगीली राधा,
हौले से मुस्काई है।
लिए गुलाल आज खेले,
देखो टोली आई है।

भीगी बरसाने की छोरी,
आई होली आई है।

कोयल कूकी पुरवा झूमी,
फाग रंग की धूम मची।
ग्वाल बाल सब नाच नचाए,
भंग ठंडाई की धूम मची।
सुर्ख पलाश झूमते डाली,
फागुनी चली आई है।
लिए गुलाल आज खेले,
देखो टोली आई है।

भीगी बरसाने की छोरी,
आई होली आई है।

छेड़े मुरली तान मनोहर,
भीगे तन भीगे हर मन,
बजे मृदंग ढोल रंग संग
रास रचाए वृंदावन।
झूमे राधा संग मुरारी,
फागुनी धूम मचाई है।
लिए गुलाल आज खेले,
देखो टोली आई है।

भीगी बरसाने की छोरी,
आई होली आई है।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

विषय_ होली
*************

आओ होली मनाएं
-----------------------

प्यार की गुलाल उडाएं
प्रेम का सबको रंग लगाए,
नफरत की दीवारें तोड़े
सद्भाव के हम धागे जोड़े,
भ्रष्टाचार को इसमें जलाएं,
आओ हम होली मनाएं।

दुश्मन को भी गले लगाएं,
वैमनस्यता को दूर भगाएं ‌
इंसानों में ना हम भेद करें
मनुष्य मात्र से प्रेम करें,
मानवता का पाठ पढ़ाए,
आओ हम होली मनाएं।

कान्हा के हाथों पिचकारी,
और राधा की भीगे साड़ी ,
द्रोपदी का चीर बढ़ाएं
मीरा को मोहन मिल जाए ,
फागुन की मस्ती छाएं,
आओ हम होली मनाएं।

शोक,संताप ना विषाद हो,
ना कोई दंगा ना फसाद हो,
यहां मंदिर में आरती हो
वहां मस्जिद में अज़ान हो ,
भाईचारे का हाथ बढ़ाएं
आओ हम होली मनाएं।

रामगोपाल आचार्य
विषय-*होली, होलिका दहन,रंग गुलाल*
विधा-काव्य,

प्रेम रंग से होली खेलूं,
ऊंच नीच मैं सभी मिटाऊं।
रहें सरावोर सभी प्यारे,
वैर भाव की कीच मिटाऊं।

रंगबिरंगी दुनिया अपनी,
यहां विविध रंग के पुष्प खिले।
एक डोर से बंधे सभी हम,
कुछ बहुरंगी यहां धर्म मिले।

होली है रंगों का त्यौहार।
अबीर गुलाल से रंगते यार।
गरीब अमीर न मानें इसमें,
सभी करें रंगों की बौछार।

सिर्फ प्रेम की चाहत मुझको,
राधेश्याम के रंग रंग जाऊं।
ममता समता जहां मिलें वहीं
सुप्रीत कुटीर में बस जाऊं।

जीवन उधार में मुझे मिला।
ईश कृपा से उपहार मिला।
रंगो गुलाल अबीर उडा लें
हमें नहीं किसी से है गिला।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र


विषय-*हास्य व्यंग्य*अतुकान्त
काव्य

होली में मचते हुड़दंग।
सब खाते पकोड़े गुजिया
पीते रहते हैं भंग।
होश खोते ‌कहीं, छोड़ जाते बस्ती
भूलें अपनी औकात ढंग।
भंग पीकर एक दिन हमारे साथी,
भूलकर अपना घर द्वार।
डोलते डोलते
पहुंचे गये दूसरे मोहल्ले,
एकघर में दिखे बाल बिखरे
नहाते सरदार जी
अपनी पिनक में
ज़ोर ज़ोर से आवाज लगाई
सुनती नहीं हरजाई
तू यहां कैसे चलकर आई
जल्दी बता
यहां क्या कर रही है
तू कैसी है लुगाई
जो खुलेआम यहां बैठी
आंगन में नहा रही है।
क्या तेरी पीठ में साबुन लगा दूं।
सरदार जी ने सोचा
अच्छा खवास आया
मेरी सेवा करेगा
रंग छुड़ाकर पीठ का
फिर मालिश भी करेगा।
सरदार जी बोले नहीं
हाथ के इशारे से बुलाया
बिठाकर खूब साबुन
अपनी पीठ पर लगवाया
पत्थर पकड़ाकर पीठ घिसबाई
रंग गुलाल निकाला
सरदार जी को मज़ा आया
बोलें कुछ नहीं
मदहोश मित्र बोला
तू कैसी है जो पीठ रगड़बा रही
और बोल नहीं रही
मेहनत इतनी की
अब तू जल्दी से नहा
और मेरी पीठ में साबुन लगा
जल्दी हाथ चला कर मुझे नहला।
सरदार जी ने मुड़कर नहीं देखा
पानी उंडेला
लुंगी लपेटे ही अन्दर भागे
फिर अपने असली रूप में प्रगट हुए
आकर यार सुरेंद्र से पूछा
तू कौन यहां कैसे आया
सुरेन्द्र सरदार देखकर सकपकाया
बोला पहले तू बता ये दाडी क्यों लगाई
तू कैसी है लुगाई
अच्छा होली में मुझे बता रही
मेरा मज़ाक उडा रही
सरदार बोला तूनेआवाज नहीं सुनी
मैं तेरी घरवाली नहीं इस घर में रहने वाला हूं।
सुरेन्द्र बोला मेरे घर कैसे घुसा
जरा मेरी लुगाई को बुला
सरदार जी बोले ये मेरा घर है तेरा नहीं
यहां तेरी लुगाई कहां जब मेरा घर है
सुरेन्द्र बोला
मुझे बेबकूफ मत बना
मैंने अभी अभी उसे नहलाकर
अंदर भगाया है
और मुझे नहलाने उसे बुलाया है।
सरदार बोला तू नशे में
तूने अपनी लुगाई नहीं मुझे नहलाया है
अपने घर जा
नहीं मारकर भगाऊंगा
तेरा नशा अभी उतर जाएगा
जब चार छै डंडे लगाऊंगा।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
जयजय श्रीराम रामजी



अतुकांत
*हास्य व्यंग्य*
*कैसे अधीर*छंदमुक्त
हास्य व्यंग्य

मुझे कुछ
भनक तो लगी थी कि
रायता फैलाने की
कुछ तैयारी चल रही है
परंतु मैं निश्चिंत था
अपने अपनों के संग
होली खेलने की उमंग उम्मीद थी
लेकिन सब धरा का धरा रह गया
सच मानिए मेरा रायता
ठीक होली जैसे त्योहार
पर बखर गया।
मैं किसी को भी अपने रंग में
नहीं रंग पाया
कोई उल्टा सीधा
मुझे ही रंग गया।
मेरी गुलाल क्या ,वो सभी
लाल पीली हो रही
सीने पर कहीं
छुरियां सी चल रही।
हमारे बेचारे
रंजन अधीर हो रहे
पप्पू की छवि कुछ ज्यादा चमकाने
जनता जनार्दन को
झूठे सब्जबाग दिखाने
कुछ अधिक ही
तलवे चाटने अधीर हो रहे।
अब क्या करें समेटना हुआ
हमें बहुत मुश्किल
मेंढक हमारे बार बार उछल रहे थे
यहां वहां फुदक रहे थे
अब शायद इन्हें हमें
कुछ सुख चैन मिले,
रंगपंचमी हमारी क्या
अब तो उनकी ही मने
जिन्हें हम घास नहीं डाल रहे थे
बहुत समय से मूर्ख बना रहे थे।
पप्पू हमारा मानते कि
सचमुच बड़ा गधा है
लेकिन हम कैसे कहें
कितना करता पढ़ा लिखा है।
यात्राओं की उसे खुली छूट है।
जब जहां चाहें उसकी
लूटम लूट है।
होली दीवाली से
उसे कोई मतलब नहीं
वैसे भी वो
जानता कुछ नहीं।
तिलक उसे हम गुलाल या
मिट्टी का लगा दें
जनेऊधारी हम
जब चाहे बना दें
रंग जैसा चढ़ाएं
चढ़ जाऐ इस पर
मगर बेचारा फिर भी
कोरा ही रह जाता है।
अब हम अपनी पप्पी को रंगेंगे
इसको यहां वहां नचाऐंगे।
कैसे भी अपनी
डूबती नैया बचाऐंगे।
गुलाल लाल
गालो पर लगाएंगे
पप्पू को अब जल्दी ऊंचे से
खच्चर पर बिठाऐंगे।
बताएं सही अब हम
अधीर को
रंज 'न' कराएंगे।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

*कैसे अधीर*
छंदमुक्त, हास्य व्यंग्य


दिनांक- 9/03/2020
शीर्षक-"होली"
वि
धा- कविता
************
रंगों का त्यौहार ये होली,
खुशियों से झूमे हर टोली,
बूढ़े, बच्चे और जवान,
चेहरे सबके हुए गुलाल |

तरह-तरह के पकवान बने हैं,
थाल के थाल खूब सजे हैं,
ठंडई दे ताजगी बेमिसाल,
होली में हो रहा है कमाल |

गिले-शिकवे सब मिटा दो,
एक-दूजे को गले लगा लो,
होली मिलन हो जाये आज,
सार्थक हो जायेगा त्यौहार |

स्वरचित- संगीता कुकरेती

विषय-होलिका दहन--
दिनांक-9.3.2020

विधा -दोहे

1.
फागुन में होली जले, कूड़ा कंडा जार।
स्वच्छ स्वच्छ सन्देश की, बहने लगी बयार।।
2.
हिरण्यकश्यप मानता, खुद को ही भगवान।
उसका सुत प्रह्लाद तक, कहे इसे अभिमान।।
3.
मान लिया प्रह्लाद ने, विष्णु खरे भगवान।
प्राणी के पोषक वही, वही करें कल्याण।।
4.
ये विचार प्रह्लाद का, माना निज अपमान।
हिरण्यकश्यप ने रचा, पुत्र दहन अभियान।।
5 .
भगिनी को वरदान था, आग जला नहिं पाय।
गोदी ले प्रह्लाद को, अग्नि बैठी जाय।।
6.
देव कृपा से 'होलिका ', जली हुई वो राख।
विष्णुभक्त प्रह्लाद की, बढ़ी इस तरह साख।।
7.
बहन होलिका दहन से , होली की शुरुआत।
खरे प्रह्लाद भक्त ने , किया अहं को मात।।
8.
अच्छाई की विजय का, होली पावन पर्व।
मेल जोल अरु रंग से, खुश होते हैं सर्व।।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
9.3.2020
सोमवार
विषय -होली /रंग-गुलाल

होली
🌹🌹

होली रंगों का त्योहार,हमारे जीवन का आधार
हो रही ख़ुशियों की बौछार,
सिखाए नेह-प्रेम,मनुहार ।।

नीले-पीले,लाल-बसंती,रंग से भरी पिचकारी
सखी सहेलियाँ,यार-दोस्त सब,
खेलें बारी-बारी
रंग डालें आपस में सबको, नहीं जीत और हार
होली रंगों का त्योहार,हमारे जीवन का आधार ।।

भेद-भाव सब वैर त्याग कर,
खेलें सब मिल होली
भूलें सब अतीत की बातें, नई बना लें टोली
गले मिलें सब भीगे तन-मन,
बरसे प्रेम अपार
होली रंगों का त्योहार,हमारे जीवन का आधार ।।

हर बाला राधा बन जाए,बने बाल हर कान्हा
नाचें -गाएँ,गीत सुनाएँ,घर-घर अलख जगाना
उड़ता रंग-गुलाल गगन में,
ख़ुशियों की भरमार
होली रंगों का त्योहार,हमारे जीवन का आधार ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

दिनांक-9-3-2020
विषय-होली/हास्य रचना

एक दिन पत्नी पर चढ़ा खुमार
बहुत हुआ हम पर अत्याचार
होली के बहाने अंदर बुलाई
अब तुम्हें पीटू ,सजनी बतलाई
लठ मार वृदांवन की आज मनाऊं होली

तब तक न छोड़ूँ जब तक थक न जाऊँ
सूँत सूँत के पीठ पे लट्ठ जमाऊं
फिक्र न करना,दुर्गति न करूँगी
बस मन की भड़ास पूरी करूँगी
इसके आगे फीकी रंगों की होली

तुम तो बड़ा ही गजब हो करती
बस इतना रखना ध्यान जिज्जी
बेशक तर कर देना जीजा को
मगर देखना कहीं तर ही न जाए
दया की मूरत छोटी साली बोली

रोज रोज कब ऐसा मौका आये
जब पति नाम के प्राणी हाथ में आये
बरसों से ये हम पर तनते थे
बिन मूँछ के ताव दिया करते थे
देखो,कैसे इनकी मूछें नीची हो ली

पिया ने लट्ठ छुड़ा कर परे हटाया
बाहों का फिर शिकंजा बनाया
मल मल कर रंग गुलाल लगाया
सजनी का दिल साजन पर आया
गिले शिकवे भुला कर दोनों खेले होली।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय -होलिका दहन /रंग गुलाल दिनांक-९/३/२०२०

चलो बने प्रहलाद
जलाकर उर दूषण
कहीं ना होवे बैर
जगत हो मुक्त प्रदूषण।
जगत हो मुक्त प्रदूषण,
बरसे मीठी बोली
बुरा न मानो भाय
चढ़ी है सिर पर होली
भर -भर पिचकारी
रंग बरसायें.........
भीगे अंगिया सारी।

स्वरचित ,
रंजना सिंह। प्रयागराज

विषय: होली
दिनांक: 09.03 2029

*होली नेता संग*
**************

😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

खेलें सब मिलकर चलो,
होली नेता संग।
पोतें इनके मुँह पर,
पकड़-पकड़ कर रंग।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

जनता बैठी ताक में,
लेकर हाथ गुलाल ।
छोड़ेंगे न अब तुमको,
बीते पांचों साल ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

केजरी के दुकान में,
मुफ्त मिले सब माल ।
मनोज तिवारी बैठ कर,
नोंचे अपने बाल ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

मैडम राहुल से कहे,
बेटा कर लो ब्याह ।
पीएम बनने के सभी,
बंद हो चुके राह ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

अखिलेश बुआ से कहे,
भूल पुरानी बात ।
दिखाएं दोनों मिलकर,
योगी को औकात ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

लालू बैठा जेल में,
सोचे हैं चुपचाप ।
भाजपा के साबुन से,
कैसे धोएं पाप ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

एक हाथ में ले हरा,
दूजे भगवा रंग ।
चालू बड़े नितीश हैं,
दोनों रखते संग ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

ममता दी ललकारती,
ले पिचकारी हाथ ।
भगवा रंग ले निकले,
मोदी-योगी साथ ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

दर-दर ईमरान फिरे,
लिए कटोरा हाथ ।
पंगा लेना छोड़ दो,
तुम भारत के साथ ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....

मोदी जी अरु ट्रम्प में,
डील हुई है खास ।
वोट बैंक के खेल में,
इक दूजे से आस ।।
😀🤣जोगीरा सारा रा रा रा.....
 *विनय कुमार "बुद्ध" न्यू बंगाईगांव, असम,

दिनांक- 9मार्च 2020
विषय - होली के रंग

विधा - पद

बन उपवन चहुँ ओर धुआँ .....
होलिका के संग !
बच्चे जवान बूढ़े ....
सभी पे चढ़ा इसका रंग!!
कहीं गुलाबी रंग चढ़ा,
कहीं कोलतार हुई शाम !
मरघट के कंकाल भी ....
देखते गुलाबी गाल !!
कहीं छन -छन कर छनते पुए,
कहीं जूठें पत्तल ताकते नैन !!
रंग- रंग के रंग से ....
रंग गए सबके तकदीर !!
मनवा संग खिलवाड़ करे,
अंदर की पीर ......!
देख बदले की आग में,
बिखर रही तस्वीर!!
छोड़ नफरत की आग को,
आ गले मिल ....!!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड

दिनांक ९/३/२०२०
दिन - सोमवार
िषय - होली
विधा - कविता
***************
फागुन के दिन आज सखी
रंग बसन्ती खेल
बरसाने मे हो रहा
राधा माधव मेल।

भरकर लाई रंग को
लेकर प्रीत तरंग.
होली खेले श्याम जी,
राधा जी के संग।

बरसाने में धूम है, होली का हुड़दंग .
मधुमास मधुदिवस बने
हो प्रीतम जब संग।

सोंधी मिट्टी की महक ,
ले होली का रंग।
सुरभित मन उपवन करे
पी जब थोड़ी भंग।
झाल मजीरा बज रहे, गाते होरी गीत
नाच झूमते सब रहे, सबके दिल को जीत।

तनुजा दत्ता( स्वरचित)

शीर्षक- होली

*मनभावन होली*


जब दिल का मैल सभी मिट जाएं।
जब ह्रदय सभी हर्षित हो जाएं।
तो समझो मनभावन होली है।
जब अंहकार दिल से मिट जाएं।
मुस्कान हर लब को भिगो जाएं।
तो समझो मनभावन होली है।
जब वैरभाव मन से मिट जाएं।
जाति धर्म से ऊपर उठ जाएं।
तो समझो मनभावन होली है।
उमंग उत्साह सभी मन भाएं।
प्रेम रंगों में रंगते जाएं।
तो समझो मनभावन होली है।
माथे पर शोभित तिलक लगाएं।
हर चेहरा गुलाबी हो जाएं।
तो समझो मनभावन होली है।
अभिमान के दिलों से हट जाएं।
एकता के सूत्र में बंध जाएं।
तो समझो मनभावन होली है।
एकता कोचर रेलन

दिनाँक - 08/03/2020
शीर्षक - होली
विधा - मुक्तक
==============

मची हुड़दंग है देखो ,
गली हर गाँव टोली में I
अजब हुल्लड़पना भाये ,
नयन के साथ बोली में Il
छिपा है आज सूरज भी ,
गुलालों रंग रोली से l
गगन में दिख रहा सुरधनु ,
बिना बरसात होली में ll

बुराई कब भला टिकती ,
भलाई के कठिन मग में I
यही उत्सव सिखाते हैं ,
करो दुष्कर्म मत जग में Il
भुला दो नफ़रतें मन की ,
सभी इस बार होली में l
बड़ा पावन मिला मौका ,
बहा सौहार्द्र रग- रग में ll

#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा (उ. प्र. )
विषय.. होली
पिछले बरस की होली आज भी याद है।

कितनी मिली थी दाद आज भी याद है।
हुआ कुछ इस तरह, खेलने चले थे हम होली
देख हमे, गली की सभी वीरांगनाएं, हमारे संग हो.... ली।
ये हम पर बिफराये.... शरम क्या बेच खाई।
हम ना घबराये..... ना रूकने की कसम हमने थी खाई... बोले इनसे हम कुछ तरह... डर लाज को रख परहे।
क्या है? आज होली है......
हमारे संग पूरी टोली है..... साल का पहला त्योहार है...... रंगो का अम्बार है।
हंसेगे खेलेगे,. दुख सारे भूलेगे।
आज निर्भय होकर सारे बदले ले... लेगे।
पर ये ना.. समझ फिर भी हमारे संग हो.. लिये।। हमने भी इन्हे सताने के लिये अपने होठ सी.. लिये।
जैसे ही शुरू हुआ, पुरूषो का जमावडा़
हमने भी निकाल लिया अचूक अस्त्र....
एक मोटी रस्सी का कोरडा़........
लगे बरसाने धडाधड कोरडे,,, जब हम इन पर।। ये उडे, मानो
बिन पंख लगाये ही।।
तंग किया था साल भर,, लगे हम इन्हे बताने
हमने भी लिया था उसका बदला, आज होली के बहाने।
अब जब भी यह हम पर गुस्साते है।
अगली होली पर, देख लेने की धोस हम
इन पर जमाते हैं।
ये बेचारे, किस्मत के मारे, आज भी पछताते है.... अब की होली पर बाहर ना निकलने की कसमे खाते हैं।
रीतू गुलाटी..ऋतंभरा
स्वरचित व मोलिक

09/03/2020सोमवार
विषय-रंग/अबीर/गुलाल
विधा-हाइकु
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
होली के दिन

रंगारंग गुलाल

रंग धमाल👌

होली का रंग

हुरियारों के संग

रंग-बेरंग👍

रंग बरसे

होलिका मिलन को

मन तरसे💐

होली उमंग

गुलाल सङ्ग-सङ्ग

रंग बिरंगा🏆

होली उमंग

भांग की होली खेली

रंग में भङ्ग🎖️

श्रीराम साहू अकेला


विषय-होली की शुभकामना है
विधा-कविता
10/03/2020मंगलवार
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌷होली की शुभकामना है🌷
🏵️🌹🌺🏵️🌹🌺
झूठ नहीं बोलना है,पर
सच भी कहना मना है
अभिव्यक्ति के खतरे बड़े
बीच का मार्ग अपनाना है
होली की शुभकामना है🍁

जो कोई भी दलाली करे
चुल्लू भर पानी में डूब मरे
पेट में लात मारना ही मत
भले पीठ में छूरा घोंपना है
होली की शुभकामना है🌺

एकता के पुजारी हम
मिल-जुलकर रहना है
सबकी सुनों मन की करो
मनमानी ही करना है
होली की शुभकामना है🌷

जनसेवा की आड़ में-
जनता तो गई भाड़ में
ईमानदारी से बेईमानी कर
देश को चूना लगाना है
होली की शुभकामना है🌼

पार्टी के जो सिपाही हैं
देश के लिए तबाही हैं
रक्षक ही बन बैठे भक्षक
निवाले ही बस छीनना है
होली की शुभकामना है🌸

नेताओं की दुधमलाई है
खाली तिजोरी भराई है
यही जनसेवा,देशभलाई है
जनता के हाथ झुनझुना है
होली की शुभकामना है💐

तालमेल तो रखना है
घालमेल भी करना है
खिलापिलाके काम बनाना
बस यही मनोकामना है
होली की शुभकामना है🌹

यहीं जीना यहीं मरना है
मगर से बैर नहीं करना है
बिल्ली को ले गया चूहा-
कहें तो हाँ में हाँ भरना है
होली की शुभकामना है🏵️

देशहित के जो काम करे
बिना मौत वही मरा करे
मर-मर के क्या जीना अकेला
जीतेजी ठाठ से मरना है
होली की शुभ कामना है🍂

कहने को तो आजादी है
ये आदमी का बड़ा भरम है
मीठे बोलके फायदे अनेक
चाहे मिठलबरा कहलाना है
होली की शुभकामना है🌻
🤡🏆🤡🏆🤡🏆🤡
🎖️श्रीराम साहू"अकेला"

🌳🌲🌳🌲🌳

दिनांक:- 9/3/2020
विषय :- होली

"आओ होली का त्यौहार मनाये"

देखो मन में उठी हैं फुहार,
चारों ओर उड़े रंग गुलाल।
खुशियों की बहार फैलाये,
आओ होली का त्यौहार मनाये।

गुझिया पापड़ और मिठाई,
पकवानों से सजी हैं रसोई।
दौड़ भागकर उधम मचाए,
आओ होली का त्यौहार मनाये।

रूठे हुए को आज मना ले,
प्यार से सबको अपना बना ले।
राग द्वेष को दूर भगाए,
आओ होली का त्यौहार मनाये।

जाति पाति का भेद मिटाकर,
एक दूजे में एकीकृत हो जाये।
बच्चे बूढ़े मिलकर गाये,
आओ होली का त्यौहार मनाये।

नफरत को होली में दहन करे,
प्रेम से जीवन को भरे।
गले लग एक दूजे के प्यार जताये,
आओ होली का त्यौहार मनाये।

ना कोई भूख से तड़पता रहे,
ना आँखों में किसी के आंशू आये।
हर गरीब को खुशियां दे जाये,
कुछ इस तरह होली का त्यौहार मनाये।

शशि कुशवाहा

लखनऊ,उत्तर प्रदेश🌲

विषय- होलिका -दहन
विधा-स्वतंत्र

दिनांक--09 /03 /2020

भूला के राग-द्वेष मन के
होली मनाओ जी भर के
अबीर-गुलाल ना सही
रंग मिलाओ प्रेम-प्रीत के

है दिवस होलिका दहन का
दहन करो विकार मन के
खुशियां मनाओ जी भर के
आपसी जात-पात भूल के।

डा.नीलम



दिनांक:09/03/2020
विषय होली

विधा:छंद-मुक्त
🎋🎋🎋🎋🎋🎋🎋🎋🎋🎋🎋
रंगों का त्यौहार है होली का यह पर्व
आओ खुशियाँ बाँट ले मिल बैठे सब संग ।
फाल्गुन की बयार भी करती सबको मस्त
आमों की बौर महका रही बगिया हुई मदमस्त ।
खेत भी सजधज खडे कही हरे कही पीले
महुआ भी महकन लगा कटहल शोभा देत।
आलू की खेती सजी यूँ पहाड़ चहुंओर
पापड चिप्स घर घर बनता स्वागत होली आय।
रंगों का......
रंग भरे पिचकारिया बच्चे करते खेल
गले मिल गुलाल लगा बडे बढाते मेल।
कही ढोल संग टोलियाँ , नाचे घर घर घूमे आज
कही पे गुझिया, कही पे पापड खाते घूमे आज।
रंगों ....
रंग बिरंगे रंगे पुते लगते प्यारे सब लोग
इस होली सब ध्यान दो रंगना न कोई जीव
पर्यावरण संरक्षण भी रखना सब कोई ध्यान
एक जगह सब बैठ कर करना मस्ती खूब ।



रंगीन धरा
गुलाबी हूई धूप
फाल्गुन फिज़ा


पलाश फूल
टेसू के रंगों संग
बृज की होली

मुट्ठी गुलाल
रंग भरे गुब्बारे
मेल मिलाप ।

भंग पी धरा
लाल पीले पोशाक
हो ली रंगीली।

होली उत्सव
हर्षित परिवार
शुभकामनायें ।

नीलम अमित
काव्या देवव्रत
दिनांक 9 मार्च 2020
विषय होली


होली रे होली
रंगो की होली
भर पिचकारी
खेले रे गौरी
उडे रे गुलाल
मस्तों की टोली
खेलो रे खेलो
बन हमजोली
फागुनी बहार
करे सीना जोरी
अबीर गुलाल
स्नेह की डोरी
भूलों नफरतें
प्रेम की बोली
हिलमिल खेलें
आओ रे होली

कमरेश जोशी
कांकरोली राजसमंद



दिनांक 9 मार्च 2020
एक प्रयास

विषय होलिकादहन

हरि हरि जप करे बालक प्रहलाद
मन को मिलता अनुपमेय आह्लाद
डूबा रहता निशदिन भक्तिभाव मे
रहता दूर सब दुख शोक विषाद

देख देख हिरण्यकश्यप विचलित
भटक न जाए बालक यह कश्चित
किस भांति रोका जाए ये बालक
पुत्र मोह भी था अंतर्मन मे किंचित

भय रहता जब तक भीतर मन मे
क्या कर पाए कोई भला जीवन मे
कर करके प्रयास अथक वो हारा
पर अडिग प्रहलाद अपने पथ में

सोचे अहर्निश योजनाएं कई सारी
बुरे समय में सदा मति जाए मारी
मारने के करता रहता नित उपाय
करम गति पर जाए ना कभी टारी

राक्षस फेंक आए गहरी खाई मे
बाल न बांका हुआ पर ऊंचाई मे
बालक हरि जप कर बाहर आया
दानवदल पडा देख सकुचाई मे

पागल हाथियों के झुंड जा पटका
गज कोई पर वहां पास न फटका
हरि हरि कर प्रहलाद हरि भजन
सुन सुन समाचार हिय बहु खटका

किस विधि रोका जाए यह बालक
ये दानवकुल जन्मा ये कुलघातक
समझे नही मन जो होवे अभिमान
हरि चरणों में मिट जाए हर पातक

मतिमारी वह होलिका वहां आई
पाकर वरदान थी अति भरमाई
बोली भैया करूं दूर तेरी मै पीडा
ले बैठुं आग बीच,दूं उसे जलाई

बोला दानवराज कैसे यह संभव
हरिकृपा बिन सब काज असंभव
जो तुम भी जल जाओगी भीतर
अग्नि मे पाता हर कोई पराभव

कर अट्टहास होलिका तब गरजे
आग कभी न मेरे तन को लिपटे
तुम बस कहो ले बैठुं वह बालक
तेरे मन को भ्राता दुख सब निपटे

सुन उपाय दानव मन हुआ हर्षित
की घोषणा बालक तुझे समर्पित
चाहे जैसे करना तू यह सब काम
राह न आएगी बाधा,मै संकल्पित

जानि सब मन की वह हर हलचल
अनंत अगोचर अज नियंता निश्चल
रचता रहता वह नित नई नई लीला
हाथ मे वर्तमान भूत भविष्य कल

घासफूस काठ की वेदी गई बनाई
मंत्र पूजा कर होलिका जाए बिठाई
गोद मे बालक नाम हरि हरि जपता
बचा प्रहलाद, होलिका जा लपटाई

लिपटी अग्निशिखा, होलिका घबराई
वरदान विफल किस भांति हुए जाई
प्रभु भक्ति सम्मुख अधर्म नही टिकता
देख देख खेल ये जग सकल मुसकाई

अधर्म की हार ,हुई धर्म की सदा जीत
होलिकादहन की चली तभी से ये रीत
सब कुल मिलकर मनाते यह त्योहार
हो मंगलमय विश्व सदा गाते यह गीत

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय : विशेष होली आयोजन
विधा : 1- हाईकू, 2- कविता

तिथि : 9 व 10.3.2020

1

कैरोना वार
होली दुशवार
फ़ीका त्योहार।

होली पर्वम
रंग मां चरणम
आशीर्वादम।

दाह होलिका
बुराई तिरोहिता
हित योगिता।

उड़े गुलाल
अबीर लशकार
रंग फ़ुहार।

होली की टोली
मस्तिओं की है झोली
हैं हमजोली।

--रीता ग्रोवर
--स्वरचित

2

होली है शब्द, रंगोली आत्मा
प्रेम और प्यार ही है परमात्मा,

परमात्मा को तूं गले लगा ले
रंगोली से निजआत्मा सजाले,

भेदभाव को जड़ से ही मिटादे
वैर भाव को तो परे ही भगा दे,

तूं प्रेम का रंग फैला दे हर ओर
हर ओर होअति, हर्षोन्मत शोर ,

हर हृदय और हर एक निगाह में-
दीखे बस उजली भोर ही भोर।

होली की रोली, भोर का मस्तक
करो स्वागत खुशियों की दस्तक।

--रीता ग्रोवर
--स्वरचित

विषय-होलिका दहन
दिनाँक-10/03/2020



होलिका दहन-दोहे


,,🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
लिया अंक प्रह्लाद को, गई आग की गोद।
प्रमुदित अति ही होलिका,अतिशय मन में मोद।।

पर कलुषित थी आत्मा,व्यर्थ रहा आह्लाद।
स्वयं जल मरी होलिका,साफ बचा प्रह्लाद।।

दहन बुराई का हुआ,हुई भक्ति की जीत।
ईश्वर ही रक्षक बने, हुए भक्त के मीत।।

तबसे मनता आ रहा,होली का त्यौहार।
रंग लगे बस प्रेम का,नहीं कपट व्यवहार।।

चले वसंती पवन जब,फूले किंशुक लाल।
समझो होली आ गई,ले सतरंगी जाल।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश



विषय-रंग,गुलाल
दिनाँक10/03/2020



लाल पलाश सँग झूमे
हवा कलियों को चूमे
महकी फूलों की डोली है
कि आई होली है।
छूटे रंँग की पिचकारी
रंगी है दुनिया सारी
रंग खेले हम जोली है
कि आई होली है।
अरे कोई बुरा ना माने
हम तो रंँगने की ठाने
गाली भी मीठी बोली है
कि आई होली है।
पकवानों की धूम जँची
रंगों की क्या होड़ मची
माथे पर गुलाल की रोली है
कि आई होली है।
ये मेल मिलाप का पर्व है
निज संस्कृति का गर्व है
प्रीति हवा ने घोली है
कि आई होली है।

आशा शुक्ला
उत्तरप्रदेश


विषय:- होली
पागलपन की बाते कर ले,
मस्ती में खुद को भर ले,
रंग लगाकर इक दूजे को,
हैप्पी हैप्पी होली कर ले।

नाच नाच माहौल बना दें,
हुड़दंगी सा हाल बना दें,
भूलके सारी चिंताओं को,
रंग रंगीले गाल बना दें,
पचपन को तू बचपन करले,
हैप्पी हैप्पी होली कर ले।

भाड़ में जाये दुनियादारी,
भूल जाओ तुम टेंशन सारी,
आज खेल ले दीवानों सा,
छोड़ छाड़ सब जिम्मेदारी,
खुशियों से तू झोली भर ले,
हैप्पी हैप्पी होली कर ले।

थोड़ी थोड़ी भांग चढ़ा के,
मुंह मे मीठा पान दबा के,
यारो संग त्योहार मना के,
रंगों से फिर खुद को सजाके,
बहकी बहकी बाते कर ले,
हैप्पी हैप्पी होली कर ले।

मन के सारे द्वेष मिटाकर,
सबको अपना यार बनाकर,
गले लगाकर इक दूजे को,
हिलमिलकर त्योहार मनाकर,
मुंह को लालमलाल तू करले,
हैप्पी हैप्पी होली कर ले।
स्वरचित 🖊️ #प्रकाश_जांगिड़_प्रांश

होली/होलिका दहन/रंग/गुलाल/हास्य-व्यंग्य

नमन मंच भावों
के मोती समूह। गुरुजनों, मित्रों।

होली कैसे मैं खेलूं।
कान्हा करें बरजोरी।
डारे मोपे रंग,गुलाल।

पनियां भरण गई यमुना किनारे।
कान्हा ने पकड़ी मोरी कलाई।
सारे रंग दियो डाल।
होली कैसे...........

लाल,हरे,पीले,नीले, गुलाबी।
जाने कितने रंगों की भरे पिचकारी।
सब रंग दियो मोपे डाल।
होली कैसे.................

भीगी मोरी नई चुनरिया।
धानी,धानी सतरंगी चुनरिया।
ऐसों कियो मोरे हाल।
होली कैसे..................

आज ना छोड़ूंगी तुझे,
कहूंगी मैया यशोदा से।
जाती हूं घर,
तुम भी आओ यमुना तट से।
मैया भी हंस,हंस हो गई बेहाल।
बोली,
कान्हा कैसी होली खेली।
राधा पूरी हुई नहीं लाल।
होली कैसे............

वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी
II रंग II

मोहे रंग दे ऐसे साँवरिया...
मैं भूलूँ अपनी सुरतिया....
मैं भूलूँ अपनी सुरतिया...
तेरे चरण हो मेरी नगरिया....

'मोहन रस' भीतर भर दे...
तेरा नाम जपूँ राधा-रमणे...
तेरा नाम जपूँ राधा-रमणे...
रहूँ बन के तेरी जोगनिया...

तन श्याम रंग तू रंगना...
मन के भीतर तू खिलना...
मन के भीतर तू खिलना...
हर रोम कहे मैं साँवरिया...

कर जोड़ कहे ये 'चन्दर'...
मैं बूँद हूँ तेरी समंदर....
मैं बूँद हूँ तेरी समंदर...
सुध लो मेरी भी छलिया...

चौखा रंग ऐसा है तेरा...
सब को तू लगता है मेरा...
सब को तू लगता है मेरा...
तेरा प्यार भी है बहरूपिया...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१०.०३.२०२०





नमन मंच
दिनांकः-10-3-2020

वारः- मंगलवार
विधाः- छन्द मुक्त

शीर्षकः-भंग की तरंग (हास्य-व्यंग)

कल रात स्वपन में थीं सजनी जी हमारे संग।
कह रहीं थी हो गई थी तुमसे मैं तो बड़ी तंग।।

देख के व्यवहार तुम्हारा हो जाती बहुधा में दंगं।
पिला रही हूँ तुमको आज इसीलिये मैं ही भंग।।

पी करके भंग हमारी तो मति ही गई थी मारी।
पहुँच गई थी ससुराल व्यथित हृदय की सवारी।।

पहुँच गये कूदते फाँदते नाचते गाते हम ससुराल।
फाड़ कर कपड़े कर दिया बड़ा बुरा हमारा हाल।।

पिला धी सब ने हमको फिर से छक कर भंग।
पीकर भंग रंग गये हम भी फिर अपने ही रंग।।

हो कर मस्त फाड़ गला हम लगे मल्हार गाने।
सुन मधुर स्वर हमारा लगे गधे एकत्र हो रेंकने।।

बोले मतलब होने पे आदमी बनाता गधे को बाप।
गधे हैं जो आदमी को बना रहे बिना मतलब बाप।।

होकर दुखी जा रहा हूँ मैं तो अब गुफा हिमालया।
करूंगा जा कर वहाँ पर मैं दस दिन तक तपस्या।।

दस दिन बाद हिमालय से मैदान पर मैं आऊंगा।
उसके बाद सुना केकविता आपको बोर करूंगा।।

दस दिन तक के लिये मेरी है सबको ही राम राम।
आकर दस दिन बाद करूंगा फिर आपको प्रणाम।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी
स्वरचित

विषय:-होली के रंग
🌹
🌹रंग के ढंग🌹
🌹
आँखो देखा मैने देखा।
होली का ये रंग देखा।
पीकर मैने भंग देखा।
झुमने का ढंग देखा।
रेखा अमिताभ देखा।

आँखों देखा मैने देखा।
राधा संग कृष्णा देखा।
भीगा हुआ अंग देखा।
प्रेम अद्भुत रंग देखा।
फागुन का उमंग देखा।

आँखों देखा मैने देखा।
ढपली संग चंग देखा।
अजब नैना ढंग देखा।
भाभी संग देवर देखा।
होली मैं ये रंग देखा।

आँखो देखा मैने देखा।
यारों का भी यार देखा।
झूमता हुआ प्यार देखा।
सजनी का श्रृगांर देखा।
हाँ गलबहियाँ हार देखा।

मधु पालीवाल
स्वरचित
10/03/2020
विषय:-होली
विधा:-रुचिरा छंद


1212, 11 112 1212
उड़ा रहे, मदन गुलाल फाग का।
लुटा रहे, सहज सुवास राग का।
चले सभी, लिपट मिले गले यहाँ।
बढ़े सभी, पलट दिखे रँगे यहाँ।


मिलें गले, जतन करो रँगीन हों।
बढ़े चलें, जघन नहीं सँगीन हो।
विचार लो,समय अभी पुनीत है।
सुधार लो,करम यहीं सु गीत हैं ।


खिल गई,मधुर छटा प्रतीत वो।
मिल गई,सकल सखी समीप वो।
उड़ेलते,मगन बने गुलाल को।
बिखेरते,सकल मिले सु जाल को ।

स्वरचित10/3/2020
नीलम शर्मा# नीलू

दिनांक---१०--०३--२०२०
विषय----रंग
विधा हाइकु

##################

राधा के संग
मुरली मनोहर
रंग - गुलाल


हल्दी तिलक
रंगोत्सव मनाया
केरोना डर

बृज की छोरी
खेले रंग गुलाल
देवकी लाल


रानी कोष्टी गुना म प्र स्वरचित एवं मौलिक


विषय: होली / होलिका दहन
दिन : मंगलवार
दिनांक : 10.03.2020
विधा : गीत


रंग गुलाल उड़ा है ऐसा ,
मदमाती बयार है !
सभी रंग में डूबे डूबे ,
रंगों की बौछार है !!

पुलक रहे हैं गात सलोने ,
भीगा भीगा तन मन है !
नज़रों की तीरंदाजी है ,
अधरों पर भी लरजन है !
रंग बिखेरे टेसू ऐसे ,
मौसम की मनुहार है !!

उम्र के टूट गये हैं बंधन ,
मस्ती में सारे जन हैं !
इक सुरूर में भीगे सब हैं ,
भेद नहीं कोई मन है !
अलबेले से गीतों की भी ,
पड़ती रहती मार है !!

कहीं राग है , कहीं भाग है ,
मचती है कहीं रार भी !
कहीं मची है छेड़छाड़ तो ,
उपजे है कहीं प्यार भी !
सभी रंग बिखरे हैं धरा पर ,
रंगों की भरमार है !!

खिले रंग चेहरों पर अनगिन ,
कोई है परहेज करे !
पलता है उत्साह , उमंग तो ,
कहीं वेदना भी उभरे !
फाग नचाये गली गली है ,
झूमे यह संसार है !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
10-3-2020
"ग़ुलाल"(गीत)
******************
गुलाबी गुलाबी ग़ुलाल लई ले
अपने ही रंग में सजन रंग ले।

राधा की सखियाँ, कान्हा की गोपी,
वरसाने की गोरी को आज रंग दे।
कान्हा तू मोसे ग़ुलाल लई ले
अपने ही रंग में... .............।
गुलाबी,गुलाबी ग़ुलाल लई ले,
अपने ही रंग................।।
थोड़ा ग़ुलाल मेरे गालों से लई ले,
थोड़ा ग़ुलाल मेरे होठों से लई ले
फिर उसमें थोड़ा सा प्यार भर दे
अपने ही रंग में सजन रंग ले।
गुलाबी,गुलाबी...... .. . ..।।
सजन खेलन होली,ससुराल चले रे,
हमरी ही बहना को ग़ुलाल मले रे,
हमको भी हमरे देवर संग कर दे,
अपने ही रंग में सजन रंग ले।
गुलाबी,गुलाबी.............।।। गीतांजली वार्ष्णेय

2- "साली"बनाम "देवर"
***********?*************
सजन कहते आधी घरवाली होती साली है।
मैंने कहा देवर भी तो आधा घरवाला है।
सजन चले ससुराल खेलने होली साली के साथ।
मैं बोली सजन संभल के लगाना रंग,देवर भी है हमारे साथ।
सजन कहे मुझ पर शक करती हो,देवर को भाई समझती हो।
हम बोले भाई तुम्हारे,लगते बस देवर हमारे,
तुमभी क्या मजाक करते हो।
बहन तुम्हारी लगती हमारी भी साली है,
कुछ तो मजाक करने दो,
थोड़ा तो गालों पे गुलाल मलने दो,
मैं बोली मुझको भी तो खेलनी होली है,
देवर भी मेरा हमजोली है,
बुरा न मानो होली है।।
गीतांजली वार्ष्णेय

3- "होली और होलिका दहन"
*************************
जला के नफरत,
प्यार का रंग लगा दो।
मिट जाएगी रोगों की जननी,
थोड़ा कपूर साथ जला दो।
होली की पावन बेला में,
दुश्मन को भी मित्र बना,गले लगा लो।
कृषि प्रधान ये देश है मेरा,
फसल की पहली वाली,
अग्नि देव को भोग लगा दो।
मेहनत कर खेतों में किसान,
हो गया श्रांत है,धूप से
रंग पड़ गया श्वेत श्याम है।
रंगों की गरिमा से चमक उसकी लौटा दो।
जौ पकेंगें तब खेत खिलेंगें,
सूर्यदेव को मना अन्न की बेर लिखेंगें,
खेतों में फिर वो फसल लहरा दो।
सरसों फूली संग गेहूँ के,
देख सरसों की सुंदर छटा
कीटों ने भी जुगत लगा ली,
जल के होली गुलरी संग कपूर
जायफलऔर सामग्री,
कीटों की बाट लगा दो।
जला के नफरत प्यार का रंग लगा दो।।
गीतांजली वार्ष्णेय
आज का विषय है- होली/ फागुन का महीना
विधा- कविता
रंग रंगीला फागुन का महीना आ गया रे
प्रकृति ने कर लिया टेसू से श्रंगार
वसुंधरा के संग हम भी खेले फाग

धरा के सुंदर मनोभाव,
प्रस्फुटित हो गए आम के बोरों में
सरसराती गेहूं की बाली
एक दूजे संग गलबैया,
लहलहाती फसलें ला रही संदेशा
होली आई देखो आई होली आई रे
खेलो खेलो रंग अनुराग के संग
होली के पंचों उत्सव का त्यौहार ,
मना लो सखी

प्रथम दिवस चलो सहेली,
होलिका माता की पूजा करकरें प्रणाम
होलिका दहन में भस्म हो
सामाजिक कुप्रथाये
असत्य पर सत्य की जीत का पर्व मनाए
द्वितीय दिवस चलो सहेली,
होली खेले मनभावन के संग
जैसी होली कान्हा ने खेली राधा के संग
तन रंग डालो, मन रंग डालो
प्रेम प्रीत के रंग ऐसे डालो ,
चढ़े न दूजो रंग
तृतीय दिवस सखी भाई दूज
दूज माता से करें मनौती
प्यारा भैया चिरंजीवी हो
विजय तिलक लगाते मुंह मीठा करवाते
कलम दवाद की पूजा करते ,
करें चित्रगुप्त की आरती
चतुर्थ दिवस करें गणपति वंदना
हे गजानन मेरी भव बाधा हर लेना
पंचम दिवस सखी रंग पंचमी
खेलो खेलो रंग पिचकारी के संग
साल के आखिरी मास का अंत
खुशहाली के संग,
जैसा आगाज वैसा ही अंत
खेलो खेलो होली अनुराग के संग
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई उत्तर माध्यमिक विद्यालय नरसिंहपुर
दिनांक-१०/३/२०२०
वार- मंगलवार
िषय- होली
विधा-कविता ( हास्य)

मोहल्ले में होली का चल रहा था आयोजन रंगा रंग।
होली की हुल्लड़ में मैंने भी पी ली ठंडाई संग भंग।

मन झूम रहा था और पाँव भी कर रहे थे खूब नर्तन।
राधे-कृष्ण के प्रेममय भजन गा कर रही थी मैं कीर्तन।

परिवार वाले समझ रहे बहु को आज चढ़ी खूब होली।
पर मेरी दशा को अच्छे से समझे मेरा प्यारा हमजोली।

पतिदेव से बोली आओ पियाजी होली खेले लठमार।
घबराये से पतिदेव बोले ना देवी सह न पायेंगे आज तुम्हारा वार।

बोले बीस साल बाद कैसे चढ़ा मेरे संग लठमार होली खेलने का खुमार।
फिर मन में बोले कर कुछ जतन पत्नी देवी का
उतारना पड़ेगा ये बुखार।

पतिदेव ने तुरंत रंग की बाल्टी से रंग दिया मेरा अंग- अंग।
और उड़ा गुलाल,कर रंगों की बारिश नहलाने लगे मुझे संग- संग।

मैं कब पीछे हटनेवाली थी मार पानी के गुब्बारे किया हाल- बेहाल।
नैनों से नैना टकराये, मन- मन मुस्काये चलने लगे दोनों प्रेमचाल।

सोच-सोच आज भी मैं मुस्काती हूँ अच्छा हुआ जो पी ली थोड़ी भंग।
यादगार बन गया सदा के लिए होली का रंग हमजोली के संग।

स्वरचित
©सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर ( महाराष्ट्र)
होली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ मेरी पहली रचना
विषय- रंग
विधा- हाईकु

होली के रंग
खुशियों की चादर
बैर मिटाए

प्रेम का रंग
वृंदावन की होली
राधा दिवानी

प्रेम बादल
रंगों की बरसात
खुशियाँ खिली
**
स्वरचित- रेखा रविदत्त

दूसरी रचना
विषय-रंग
विधा-वर्ण पिरामिड़

ये
रंग
तरंग
प्रेम धार
जीवन सार
सपने साकार
खुशियों की बौछार
**
स्वरचित- रेखा रविदत्त


तीसरी रचना
होली व्यंग्य

सारा बाजार घूम गए,
लाला जी परेशान हुए,
सामान कुछ ना मिल सका,
कैसे खाएँगें मिठे पुए,
होली के रंग में रंगकर,
पी ली भाँग छक कर,
धरती ऊपर नीचे अंबर,
गिर पड़े फिर थक कर,
सुबह उठे तो दुखी काया,
खर्च करदी जोड़ी माया,
होली के इस त्यौहार ने,
लाला जी को खूब छकाया,
लाला जी ने फिर जोड़े हाथ,
भाँग जैसी ना लेनी सौगात,
होकर नशे में चूर,
बिता दी होली की रात।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त

चौथी रचना
विषय-होली

विधा- मुक्तक

बरसाने की होली,
खुशियों ये भरी झोली,
झूम उठी गलियों में,
मस्तानों की टोली।
**

पिचकारी की धार,
खुशियों की बहार,
बैर भाव सब मिटाए,
होली का त्यौहार।
**

फाल्गुन का आगमन,
भिगे तन बदन,
होली के रंगों के साथ,
आए याद सजनी को सजन।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त

दिनाँक - 10/3/2020
विषय - होली

हास्य व्यंग्य कविता


---जीजा की पहली होली---

बूट सूट टाई लगा के
आये जीजा जी ससुराल
मन में थी बड़ी उमंग
होली का था पहला साल

साली पानी लेकर आई
कुर्सी देकर इन्हें बिठाया
देख पास में सालियों को
मन ही मन खूब मुस्काया

सभी सालियाँ एक स्वर में
आओ जीजा खेलें होली
हाथ पकड़ कर खींचातानी
आई फिर सालों की टोली

उठा ले गए सभी मिलकर
दिया पटक फिर गंदे नाले
क्या हुआ कुछ समझ न आया
हो गए कपड़े सारे काले

रंग की बाल्टी लाये भरकर
सिर पर दिया सारा डाल
बारी-बारी से सबने मिलकर
लगाया गालों पर गुलाल

बोलेबगुस्से में जीजा जी
कैसी-कैसी ये मजाक है
आये हुए मेहमान संग
कैसी नादानी धाक है

जीजा मन में रहा कचोट
इक साली फट से बोली है
जीजा जी माफ करना हमको
बुरा न मानों होली है

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा "वागीश"
सिरसा (हरियाणा)
आई आई आई प्यारी होली
रंग हवाओ में है
रंग फिजाओ में है
उड़ने लगे है रंग
चारों दिशा में
कहीं उड़े अबीर
कहीं उड़े गुलाल
फागुन का छाया
कुदरत में खुमार
थिरके है देखो
बसंती बयार
मीठे पकवानों की
घर घर सौगात
भेद मिटाओ मन के
सब आज
दिल तो है चाहे
प्रितम का साथ
धड़के है जिया
जोरो से आज
ओ रे पिया
आ जा रे पिया
आया होली का दिन ये
आया मस्ती भरा
नैनों में कजरा है
बालों में गजरा है
होठो पे छाया है
तेरा ही अफसाना है
मिल के सजन
संग तो गुनगुनाना है
रह न जाए अधूरा
अरमान ये मेंरा
मन मेंरा तेरे ही
प्रेम रंग में ही है भीगा
ओ रे पिया, आजा रे पिया,
आजा रे अब तो, अब तो आजा पिया
आया होली का दिन ये आया ,आया मस्ती भरा
****************************************
स्वरचित,प्रीति राठी

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