Friday, March 27

" मनपसंद विषय लेखन"23मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-691
दिनांक - 23/03/2020 - सोमवार
नपसंद विषय लेखन
विषय - " माँ "

हमें रोता देख वो खुद रो जाए
हमें हंसाने के लिए भी वो रो जाए
हमारे दुख को भी वो अपना दुख समझे
हमारे दुख में वो अपने गम भुल जाए।

ये ही माँ की करुणा कहलाए.............

खुद भूखा रहकर वो हमारे लिए खाना बनाए
हमें खिलाकर फिर वो खाना खाए
अपने पसंद का खाना छोड़ हमारे पसंद का खाना बनाए
अपनी पसंद नापसंद को वो हमारे लिए भुल जाए।

ये ही माँ की करुणा कहलाए.............

खुद बिमार होकर भी वो सारा काम कर जाए
हमारे बिमार होने पर वो सारा काम भुल जाए
खुद की सेहत छोड़ हमारी सेहत की चिंता कर जाए
अपनी जिंदगी भी वो हमारे नाम कर जाए।

ये ही माँ की करुणा कहलाए..............
दोस्तों माँ का हमेशा ख्याल रखना क्योंकि

हमें जिंदगी देने के लिए वो कितने दर्द सह जाए
हमें दुनिया में लाने के लिए वो अपने प्राण छोड़ जाए
खुद दुखी रहकर हमारे लिए खुशहाली दे जाए
अपना सब कुछ वो हमारे नाम कर जाए ।

ये ही माँ की करुणा कहलाए................
और ये महान हस्ती ही माँ कहलाए।

- प्रतिक सिंघल
"भावों के मोती"
23/3/2020

मनपसंद विषय लेखन

हम तुम
---------
सुनो कभी तुम
कहें कभी हम
सुनूँ कभी मैं
कहो कभी तुम।

न हो जीवन में
सूनापन
यूँ ही चलता रहे अविरल
जिंदगी धार में
यूँ ही बहते रहें
हम तुम ।

होती रहे यूँ ही प्रगति
इसी गति में कुछ तुम रहो कुछ रहें हम
आओ जीवन संघर्ष करें
हो मुश्किलें जो थक
जायें तो
हम तुम्हें संभालें
हमें सम्भाल लेना तुम ।

इस संसार के हर जीवन गीत को अपना बना लो
समझो जरा स्वरों को साध लो
हम मानें अपना मीत तुम्हें
तुम हमें अपना मनमीत मान लो ।

नहीं मैं नहीं समझना चाहती क्या हार क्या जीत
न चाहती हूँ कभी
जीतना तुमसे
बस चाहती हूँ इतना
आये कोई गम तो
हम तुम्हें थाम लें
हमें थाम लेना तुम ।।।
अंजना सक्सेना

विधा काव्य
शीर्षक कोरोना
23 मार्च 2020,सोमवार

हम विविध हैं, पर एक सब
कोरोना से बन गए निर्बल।
कर्म प्रधान होता है जीवन
दूर सदा रहते जग विप्लव।

पाँच बार धोलो हाथों को
एक मीटर की दूरी रखो।
सदा स्वच्छता बनाये रखो
सोच समझ कर्म करलो।

कभी नहीं हुआ था ऐसा
जैसा अब हम देख रहे हैं।
कभी नहीं देखा संक्रमण
द्रुतगति वायरस फेल रहे हैं।

विश्वयुद्ध से बदतर स्थिति
अब सारा ही जग समाया।
अतिदयनीय है जनजीवन
जन कर्फ्यू साथ मनाया।

विश्व शांति की करें कामना
स्वस्थ निरोगी हर मानव हो।
फिर से जागे मुख पे मुस्कान
कोई नहीं जग में दानव हो।

स्वरचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-23/03/3020
स्वतंत्र सृजन


चुने प्रेरणा के बिखरे फूल
कोरोना है मानवता की शूल।
नकारात्मक विचारों का त्याज करें
यह है भूमंडलीकरण की भूल।।

संपूर्ण विश्व में है संक्रमण
पालन करें मन से अंतःकरण।
इस महमारी के है तो कई चरण
स्वच्छता से ले गांव शहर में शरण।।

एक राष्ट्र ,एक लय, एक ताल
सहिष्णुता वैश्विक प्रतीक की भाल।
धर्म के दीवार भरभरा गये
शोर युद्ध के लिए था सन्नद्ध ललकार।।

तालियों ,थालियों का स्वर भंडार
चहुंओर ओर गूंज उठा हाहाकार।
संकल्प सूत्र में बांध दिया
एकांतवास का था यह अहंकार।।

रोमांचित हो उठे छतों के दीवार
यह तो था संकट का प्रतिकार।
टूट गया वर्गीय अहंकार
यह था अनुष्ठान का आभार।।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
कुछ याद उन्हें भी करलें‼️

मातृभूमि की बलिवेदी पर,
शीश लिये, हाथ जो चलते थे।
हाथों में अंगारे ले कर,
ज्वाला में जो जलते थे ।
अग्नि ही पथ था जिनका ,
अलख जगाये चलते थे।
जंजीरों में जकड़ी मां को,
आजाद कराना सपना था ।
शिकार खोजते रहते थे ,
जब सारी दुनिया सोती थी ।
जिनकी हर सुबहो ,
भाल तिलक रक्त से होती थी ।
आजादी का शंख नाद जो ,
बिना शंख ही करते थे ।
जब तक मां का आंचल ,
कांटो से मुक्त ना कर देगें।
तब तक चैन नही लेंगे,
सौ सौ बार शीश कटा लेंगे।
दन-दन बंदूकों के आगे ,
सीना ताने चलते थे ।
जुनून मां की आजादी का,
सर बाँध कफ़न जो चलते थे।
न घर की चिंता न मात -पिता,
न भाई बहन न पत्नी की।
कोई रिश्ता न बांध सका,
जिनकी मौत प्रेयसी थी ।
ऐसे देशभक्तों पर हर एक,
देशवासी को है अभिमान।
नमन करें उनको जो ,
आजादी की नीव का पत्थर थे।
एक विशाल भवन के
निर्माण हेतु हुए बलिदान।
नमन उन्हें हम करते हैं,
नमन उन्हें सब करते हैं ‼️

स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
शहीद दिवस पर मेरी रचना
**

अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में,
भले ही वो जकड़े थे,
विचार आजादी के ले दिलों में,
लाखों देशभक्त खड़े थे,
देश के तीनों फूलों ने,
महक देशप्रेम की महकाई थी,
हँसते-हँसते हुए शहीद,
मातृभूमि उनको प्यारी थी,
राजगुरू सुखदेव भगतसिंह,
ऐसी खूब उनकी यारी थी,
इंकलाब के नारों संग,
रूखसत करने की तैयारी थी,
हुए शहीद जब तीनों वीर,
सारी दूनियाँ रोई थी,
कैसे भूलें उस दिन को,
तारीख उस दिन तेईस थी।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
२३/३/२०
मनपसंद विषय लेखन।
शीर्षक-शहीद दिवस, श्रद्धांजलि।
स्वरचित।
नमन हृदय की गहराइयों से 🙏🙏🙏
कुर्बानी तुम्हारी व्यर्थ न जाए। 😭😭
तुम आदर्श हमारी पीढी के।।💐 🌹🌹
डर है ये देश फिर बंट ना जाये।।🤔😭

कर्ज उनका कभी चुका नहीं सकते।
शामिल यादों में,नमन ह्रदय से करदो।।

नाम भगतसिंह काम भी
भक्ति का साकार किया।
देश के लिए तत्पर शेर सदा
बलिदान देह का दिया।।

राजगुरू कहलाते थे देश में
सभी के दिलों में राज करते थे।
क्रांति की ज्वाला दिल में जलती
निरन्तर देशहित रत रहते थे।।

सुखदेव नाम पाया जिसने
सुख माना देश की सेवा को।
देवों ने भी सलाम किया होगा
जब गया स्वर्ग में रहने को।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
दिनांक, २ ३,३,२०२०
सोमवार

विषय, कोरोना संकट

कोरोना का संकट आया,
घिरी मौत की काली छाया।

जन मानस दिखता घबराया,
छुआछूत का रोग बताया।

जागरूकता हम अपनायें,
दूर रहें अति निकट न आयें।

घर पर रहना उचित रहेगा,
कोरोना वायरस घटेगा।

खोज रहे हैं अभी दवाई,
औषधि अभी नहीं मिल पाई।

आवश्यक है साफ सफाई,
देखभाल बूढ़ों की भाई।

बच्चों को घर में ही रखना,
घर में ही रहकर है पढ़ना।

जनता कर्फ्यू कायम रखना ,
मिलकर इस विपदा से लड़ना।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश,

मानव मन अपने स्वाद हेतु
कितने जीवो को खाया है
फिर प्रकृति न्याय कर देती है
परिणाम उसी का आया है ।

संहारक है पीड़ादायक है
सुरसा सा मुख फैलाया है
देश -देश करते -करते ,
इस भारत भूमि में आया है ।

कल समूचा भारत गूंज उठा
घंटा और घड़ियालों से ।
विविधता में एकता की झलक
झंकृत शंखनाद की गूजों से ।

है देशभक्ति का समय यही
तो देशभक्ति भी दिखला दो
यह सत्य सनातन की धरती
दुनिया को फिर से बतला दो।

इस समय देश की मांग यही
इसका पालन करना होगा
राष्ट्र -धर्म की परिभाषा में
साथ -साथ चलना होगा।

जो चक्र बना है चक्रव्यूह
वह चक्र तोड़ना ही होगा
तुम घर में ही रहना केवल
उसे देश छोड़ना ही होगा ।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
०००००००००००००
23 - 03 - 2020

मन पसंद विषय लेखन
~~~~~~~~~~~
दोहे,
......
(समसामयिक)
०००००००००

कोरोना से डर गया, सारा ही संसार।
ईश्वर से है प्रार्थना, नाव उतारो पार।।

ताली थाली भी बजी, गूँजा सारा देश।
एकजूटता स्पष्ट थी, बदलेगा परिवेश।।

नेता के आह्वान पर, हुए सभी हैं एक।
राह धर्म की है यही,जागा पुण्य विवेक।।

सेवा हित लाखों खड़े, लख-लख उन्हें प्रणाम।
आशा हम सब कर रहे, पाएँ शुभ परिणाम।।

कोरोना का वायरस, जाएगा अब भाग।
बात खुशी की है यही, विश्व गया है जाग।।

संक्रामक यह रोग है, जान गये सब लोग।
सावधान सब हो रहे, आये सुखद सुयोग।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

23 /3 2020
बिषय स्वतंत्र लेखन

वर्तमान की स्थिति में थम सी गई है जिंदगी
बंधनों के दायरे में बंध सी गई है जिंदगी
मन ही मन मेंसशंकित है आदमी
कालकवलित बीमारी से भयभीत है आदमी
राम जाने अचानक ए क्या हो गया
क्यों भगवान हमसे खफा हो गया
एक दूसरे से दूर दूर रहने लगे हैं लोग
एकांत अपनों की जुदाई सहने लगे हैं लोग
अकेले ही रहना अब रास आने लगा है
चूंकि कोरोना का भय सताने लगा है
प्रकृति का नियम अब समझ आ रहा है
प्रभु भी जनसंख्या का माप बना रहा है
स्वछता संस्कृति से जुड़ गया है आदमी
पुनः पुराने रीति रिवाजों में मुड़ गया है आदमी
जो स्वयंभू थे उन्हें दिन में तारे दिखाई देने लगे
पाॅच बजते ही घंटा शंख सुनाई देने लगे
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय : मन पसंद लेखन
विधा : कविता

तिथि : 23.3.2020

ऐसे तो न मांगे थे
फुरसत के पल!
सुख चैन खुशियां
बन गए कल!

न मांगे थे हमने
कोरोना के दल,
लदा लॉकआउट-
हाय रहा खल।

निभाना तो होगा
बुद्धि के बल,
मान सूरक्षा नियम-
साहस से बड़ चल

भविष्य असुरक्षित
वर्तमान रहा गल,
प्रकृति प्राणियों को-
रही भरपूर छल।

विज्ञान औ दुआ का
ऐसा बनाओ संगम,
कोरोना हो छिन्न-भिन्न-
हो सुरक्षित जल थल।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
कोशिशें हजार की तुमको मनाने की।
फिर भी रहे नाकाम अजी हम तो क्या करे।

उम्र भर जहान से लड़ते रहे तुम्हारी खातिर।
फिर भी होगये बदनाम तो हम क्या करे।

हाथ जोड़ कर माँगी थी कितनी मन्नते।
टूट गए सारे मन्नत के धागे तो हम क्या करे।

वफ़ा का अंजाम पा बिक गए हम यारो।
चर्चायें अखबार गर्म जोशी पर तो हम क्या करे।

वक्त ने मुकद्दर को इस कदर शर्म सार किया।
बिगड़ा है जब नसीब तो यार क्या करे।

स्वरचित
मीना तिवारी
23/3/2020
*************
"
प्रिय को पाती"

प्रिय,घर मे चहल-पहल है
बच्चों का शोर,हँसी ठिठोली फिर गूंज रही है,
घर के सभी दरवाजे संकले लगा चुपचाप खड़े है
पर....मैं मन से उदास आपकी चिंता में अंदर से घुंटती, ऊपर से हँसती,
दरवाजे को देखती रहती हूँ।
शायद आप आओ....
पर,माहौल की गर्मजोशी ने
आपको लॉक्ड डाउन कहाँ किया...
आपको अपने कर्तव्य के लिए,देशहित के लिए,
दिन-रात अब खुद को
नकाब से घेर...
मशीनों सँग रहना है।
रातों की नींद,आराम भी अब
कहाँ मिल रहा है...
पहले दूर होकर भी जब-तब
फोन पर घण्टो लगे रहते थे,
अब...
अब जब भी बात करना चाहूं तो,
समय नही है...
बड़ी संख्या में दवाइयों को बनाना....
एक फॉर्मूला गलत होते ही कितना नुकसान...
न जाने कितनी बातें एक सांस में सुनने को मिलती है मुझे।
कितना बदल दिया कोरोना ने सब।
सजग प्रहरी...इस शब्द का अर्थ
पहले भी समझती थी प्रिय मैं...
पर अब,अहमियत समझने लगी हूँ...
मैं खुश हूँ...आपके लिए
देश सेवा में लगे हर उस व्यक्ति के लिए...
जो तन-मन से कोरोना को हराने के लिए
दिन-रात एक कर रहें हैं।
बस,गुजारिश है मेरी..
हर एक व्यक्ति से..
सुरक्षा अपनी स्वयं की कीजिए..
स्वयं की सुरक्षा ही
परिवार,देश की सुरक्षा है।
जो बैठे है...
जान को अपनी
हाथों में लेकर आपके लिए..
उनके लिए भी हम प्रार्थना करें
...
कुछ चिंता उनकी भी करें।

स्वरचित
२३/३/२०२०
शहीद दिवस पर कुछ पंक्तियाँ


आज़ादी के दीवाने कब माने लहू बहाने से,
रोक नहीं सके युद्ध में निज बलिदान चढ़ाने से,
तोड़ ग़ुलामी की ज़ंजीरें,जीत का तिलक लगाया,
पहन बसंती चोला हिन्द का तभी तिरंगा लहराया ।

वीर जवानों के हाथों में मिट्टी हिन्दुस्तान की,
रणभूमि में डरे नहीं , क़ुर्बानी देते जान की,
नमन शहीद जवानों को,गाथा उनके सम्मान की,
शंखनाद से गूंजे धरती,भारत देश महान की ।
23/3/20

थकने लगे लोग
इस बेहाली जिंदगी से
छिप कर कोरोना से
दुखदाई जिंदगी से
जीवन सरल था।
सुखमय मीठा मीठा
रुक गई सबकी गाड़ी
रफ्तार भी थमा सा
हाले बेहाल दिल से
झांके हम खिड़कियों से
शंका भरी मन मे
धोते हाथ साबुन से
मिलते थे जिनसे दिल से
अब दूरी बना के चलते
करते थे भरोसा
अब दूर कई कोसा
नौकर का काम खुद कर
नही आती है थकावट
सावधान बड़ी पूंजी
ये मंत्र ही तंत्र
प्रदूषण का पुजारी
फैला कर महामारी
व्हाट्सएप में बन डॉ
बन गए है ज्ञानी
बिगड़ा जो संतुलन
सुधरेगा वक्त लेकर
जो कर चुका पहले
अब उसको न दोहराना
जन जन बनेगा सुरक्षित
जब स्वयं हो रक्षित
सहयोग बड़ी पूंजी
इसके बिना जीत अधूरी
कुछ मरेंगे कोरोना से
कुछ भुखमरी, गरीबी


स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक २३/३/२०२०
मनपसंद लेखन


नमन है मेरा उन शहिदों को
जिसने देश आजाद कराया
भूल नहीं सकते उन बलिदानों को
देशहित जो शीश कटा दिया।

तिंरगे में लिपटी कितनो की वीरता
बलिदान व योगदान उन वीरों की
ऐश्वर्य आकांक्षा को त्याग दिये जो
देश हित में काम करने को।

भूल नही सकते उन बलिदानों को
जो हँसते हँसते चूम गये, फांसी के फंदे को
देश के दुश्मन से किये जो दो दो हाथ
ऐसे शहिदों को हमारा बारम्बार नमस्कार।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

दिनाँक 23.3.2020
दिन सोमवार

पेडो़ं पर बच्चों जैसा कुछ ध्यान दे दें
🎻🎻🎻🎻🎻🎻🎻🎻

हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे खूब शिक्षित हों
उनमें अच्छे अच्छे सँस्कार परिलक्षित हों
थोडा़ ये भी सोचें कि हमारे आसपास पेड़ विकसित हों
इनके सुन्दर विविध रुप भी हमारे बीच संचित हों।

एक पेड़ यानि!अपरिमित संचित धन
एक पेड़ यानि!असीमित प्रचुर औक्सीजन।
एक पेड़ यानि! स्वस्थ होने की चिर निशानी
एक पेड़ यानि!सूरज की क्षीण होती मनमानी।

एक पेड़ यानि!पंछियों के लिये सुरक्षित घर
एक पेड़ यानि!पंछियों के मधुर गूँजते स्वर
एक पेड़ यानि!बेजु़बानों की तृप्ति का प्रबन्ध
एक पेड़ यानि!प्रकृति की अनुपम सुगन्ध।

एक पेड़ यानि!झूमते बसन्त का उल्लास
एक पेड़ यानि!प्राणायाम की अद्भुत श्वास
एक पेड़ यानि!धरती का सम्भलता क्षरण
एक पेड़ यानी!जल का सुन्दर संग्रहण।

एक पेड़ यानि!सबके ही लिये सुखद पनाह
एक पेड़ यानि!सबके लिये ही शीतल छाँह
एक पेड़ यानि!प्रकृति की सुदृड़ बाँह
एक पेड़ यानि!सुस्ताने की सुन्दर ठाँह।

एक पेड़ यानि!फल फूलों का अनुपम भण्डार
एक पेड़ यानि!पूजा के लिये अत्युत्तम उपहार
एक पेड़ यानि!यज्ञ की सफलता के लक्षण
एक पेड़ यानि!हर पूजन होता तत्क्षण।

एक पेड़ यानि! जन्म से मृत्यु का सँस्कार
एक पेड़ यानि!सुविधाएं उपलब्ध अपार
एक पेड़ यानि!प्रकृति का अद्भुत श्रँगार
एक पेड़ यानि!यज्ञ से सुगन्धित घर सँसार।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय-मनपसंद
दिनाँक-23/03/2020


बसंती रंग में रंग चोले को,
जो फांसी पर झूल गए ।
जो लाल किसी के प्यारे थे,
क्या उनको हम भूल गए ?

लड़ी लड़ाई आजादी की ,
नहीं गुलामी थी मंजूर।
सहना कठिन था जुल्मों का,
पर मंजिल थी अतिशय दूर।

शीश बांँधकर कफन लड़े,
अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।
चिंता थी भारत माता की,
लोहे के पंजे लड़ा दिए ।

आज दिन अति पावन है,
याद वीरों को करने का।
प्रेरणा लेकर उनसे उर में ,
देशभक्ति को भरने का।

भारत मांँ के वीर लाल ,
जो चिर निद्रा में सोए हैं ।
बसी कहानी इनकी मन में,
गाथा में इनकी खोए हैं।

मेरे देश के अमर सपूतों
शत-शत तुम्हें नमन है ।
बलिदान तुम्हारा व्यर्थ नहीं,
आज तुम्हीं से देश चमन है।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय-स्वतंत्र लेखन
दिनांक 23-3-2020



सुकून की उड़ान,देखो आज परिंदों के परों में है।
क्योंकि शिकारी सारे बंद पडे़,अपने ही घरों में है।

दहशत का वातावरण,चहुँओर फैला कर्मों से है
भुगत रहा नादानी, और आज दुबका घरों में है।

बेजुबान जीवों की, आज लगी सब को हाय है।
कुछ ने ही किया गुनाह ,और डरा सारा जहां है।

थोड़ी सी दे कर सजा,प्रभु सदा आगाह किया है।
फिर भी ना समझा,तभी तो आज पड़ा घरों में है।

प्रभु घर देर अंधेर नहीं,यह यथार्थ देखो हुआ है।
जानवर बेफिक्र घूम रहे,इंसान सारे कैद घरों में है।

मौत करीब देख,इंसा आज बहुत ज्यादा डरा है।
खाता था जीवों को, आज भूखा पड़ा घरों में है।

प्रकृति का यह चक्र ,देखो कभी भी नहीं रुका है।
करे कोई भरे कोई, देखो यही तो आज हुआ है।

कहती वीणा दी सदा चोट ,लालच अंधा रहा है।
कलयुग अपराध घड़ा भरा,प्रभु रट रहा घरों में है।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
23/03/2020
छंदमुक्त रचना


विषय :-22मार्च
वक़्त की मार
आपदा कहर
किया शंखनाद
और उतर गए समर
दिखलाई एकजुटता
और जीवन गया ठहर

थम गए चक्के और
थम गया व्यापार
संक्रमण को रोकने को
संकल्प का चमत्कार

एक दिन के बंद का
ये भी हुआ असर
प्रकृति स्वछन्द थी
मनु बंद था अपने घर

जब खामोश हुई सड़कें,
तो हवा गुनगुनाने लगी,
शहर में भी देखो फिर,
चिड़िया चहचहाने लगी l

संक्रमण के बीच में,
जो अपनी ड्यूटी निभा रहे,
कहने को नहीं शब्द है,
कर्तव्य मिसाल वो बना रहे l

ये विराम,अल्प विराम है,
जागरूकता से लेना काम है,
है सामना रक्तबीज से,
शत्रु को पहुँचाना अंजाम है l

स्वरचित
ऋतुराज दवे
शहीद -दिवस (भगतसिंह)काव्य

शत-शत नमन करें अभिनंदन
वीर सपूतों शीश नवाऐं।
भगतसिंह सुखदेव राजगुरु,
आजाद आपको शीश झुकाऐं।

तुम भगतसिंह आजाद रहोगे।
चंद्र शिखर पर चढ़े रहोगे।
उत्सर्ग किया प्राणों का तुमने,
जन्म जन्म तक याद रहोगे।

शहीद भगत लायलपुर जन्मे,
अट्ठाइस सितंबर उन्नीस सात।
चूमे फांसी तेइस मार्च,
उन्नीस इकतीस किया घात।

लड़ें स्वतंत्रता लेने आजादी।
किए अंग्रेज राज बर्बादी।
तुम भगतसिंह आजाद कहाऐ,
तजे प्राण पाने आजादी।

बर्ष चौबीस में वलिदान किया,
वीर भगतसिंह शहीद हुऐ।
तुम अमर क्रांति के अग्रदूत,
संग राजगुरु सुखदेव लिऐ।

नमन शहीदों शहीद दिवस पर,
वीर शहादत याद रखेंगे।
अमर जवान ज्योति जलेगी,
सदा भारत के दिल में बसेंगे।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

शहीद दिवस (भगतसिंह)
शीर्षक- मिलन

मिलन की आस में जिये जाता हूँ
कितने गम के घूँट पिये जाता हूँ ।।

जख्मों से छलनी दिल सियें जाता हूँ
आयेगी वो घड़ी इंतजार किये जाता हूँ ।।

बेवजह इल्जाम भी लिये जाता हूँ
तरन्नुम बनी है गीत लिखे जाता हूँ ।।

कोई सुने न सुने खुद सुने जाता हूँ
प्यार भी क्या चीज है बहे जाता हूँ ।।

''शिवम्" साज छेड़े हैं बजे जाता हूँ
गीत और गजल नित रचे जाता हूँ

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
23/03/2020

दिनांक 23 मार्च 2020
विषय मनपसंद


जीना है तो
कुछ दिन दूर रह ले
मित्रों से,मोहल्ले से,सब से
संक्रमण से देश लड रहा है
वो भी लड रहे हैं
जिनको हम नही जानते
जो हमे नही जानते
वो लड रहे रात दिन
डॉक्टर, पुलिस, प्रशासन
सफाईकर्मी, नर्स वगैरह सब
सबका एक लक्ष्य
कि हम सब स्वस्थ रहे
लेकिन हम तुम क्या कर रहे
सब मजाक समझ रहे
सबको यह खेल लग रहा
मैसेज विडियो चुटकुले
इधर से उधर कर रहे बस
या देखने निकल रहे बाहर
बिना किसी काम के ही
कि कौन क्या कर रहा है
अपनी व दूसरो की
जान को जोखिम में डालने
क्या होगा इससे सबका भला
नही कभी नही
अच्छा है इससे
एकांत मे रह ले
कुछ दिन अलग रह ले
अपने घर मे बंद रह ले
आओ सब सहयोग करे
छोटी सी कोशिश रंग लाएगी
बीमारी कोरोना दूर हो जाएगी

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
था मेरा जीवन एक सूखी नदी
जलप्लावन बन कर आये तुम।
चल रही थी मैं जलते रेगिस्तान में
बन शीतल फुहार आये तुम।
था चारों तरफ मेरे घुप्प अन्धेरा
जुगनू की रोशनी सा जगमगाए तुम।
जब भी जी घबराया मेरा
हिम्मत की बयार बन कर आये तुम।
चलती रही इन कंटीली राहों पर
रहों में मेरे फूल बिखराये तुम।
था मेरा जीवन सूना-सूना
आशा की किरण बन झिलमिलाये तुम।
जब भी तेरी यादों का साया लहराया
फूलों सा जीवन महकाये तुम।
बदल दी दुनिया मेरी, बोलो कौन हो तुम?
हाँ,,, मेरे जीवन में वरदान बन कर आये हो तुम!

अनिता निधि
न्यू बाराद्वारी,साक्ची
जमशेदपुर
मनपसंद विषय लेखन एवं ऑडियो वीडियो प्रस्तुति
दिनांक- 23/03/ 2020
दिन- सोमवार
विधा- कविता
शीर्षक- सारे सवालों के जवाब
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सारे सवालों के जवाब
खुद न खोजिए जनाब
कुछ सवालों के जवाब
वक्त पर भी छोड़िए जनाब।
कभी तो उलझनों से
किनारा कीजिए
सुकून से दो पल
गुजारा तो कीजिए।
उलझनों को सुलझाने में
न इतना उलझ जाइए
सुकून के दो चार- पल
कभी तो बताइए।
कुछ मेरी सुनिए
कुछ अपनी सुनाइए
जिंदगी के सारे गम
हंसकर बुलाइये।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच उत्तर प्रदेश।

दिनांक-२३-३-२०सोमवार
आयोजन - स्वतंत्र
शीर्षक -रागिनी 

सभी रागों के अनुराग में है रागिनी,
नभ वायु जल थल आग में है रागिनी ।

सुर स्वांस के आलाप में है रागिनी,
सुख हर्ष और विलाप में है रागिनी।

तब रागिनी है जब चराचर डोलता,
वन बाग उपवन भी यही है बोलता।

कुछ बोलतीं हैं चूड़ियाँ भी राग में,
कुछ गेसुओं के चाल में है रागिनी।

घुंघरूओं की थाप विह्वल ये कहे,
पाँव के "थिरकन" में भी है रागिनी।

इक रागिनी है बेड़ियों की श्रृंखला ,
"तलवार" की टंकार में है रागिनी।

जो मानता नहीं मेरी इस बात को ,
वो देख ले धड़कन में अपने रागिनी।

है छेंड़ती इक राग पायल भी सुनो ,
है दे रही पपीहा भी घायल रागिनी।

रागिनी की है अनन्त सर्जना,
"गर्जना" में भी है एक रागिनी।

है रागिनी जबतक समझ लो जिन्दगी,
नहीं जिन्दगी तो अलविदा है रागिनी।

जिस देश के परिवेश में सन्तोष है,
उस देश के हर भेष में है रागिनी।
सन्तोष परदेशी

आज का कार्यक्रम मन पसंद के तहत
एक--प्रार्थना गीत

**********************************
तुम्ही काट दो मौत के फंद घेरे।
कैसी ये आफ़त है दुनियाँ को घेरे।
*
करुँ आज वंदन दोउ कर को जोड़े।
सुनो प्रार्थना मेरी हे कृष्ण मोरे।
*
फँसी जान सबकी है मझधार नैया।
तुम्ही पार कर दो हे मोहन कन्हैया।
*
नहीं अब सहारा कोई बिन तुम्हारे।
तुम्हे आज दुनियाँ है दिल से पुकारे।
*
महि डोलती है गगन चुप निहारे।
बचाओ हे मोहन तुम्हे सब पुकारे।
*
मिटा दो धरा पर जो छाया अँधेरा।
मनुज की लाचारी वीरानी घनेरा।
*
रचा काल का दंश संकट में डूबा।
चला चक्र काटो ये फंदा मुरारी।
@ मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी
विषय--शहीद
विधा-मुक्त

दिनांक--23 /03 /2020

दीपक की तरह वो जलते रहे
काल को दबा कांख में
गुलामियत से लड़ते ही रहे
भूख क्या,प्यास किसे कहते हैं
भूल स्वतंत्रता की तृष्णा लिए
दर दर भटकते ही रहे
गुलामी की श्रृखंला में जकड़ी
थी मात भारती
काटने हर कड़ी दमन की हर चोट
मुस्कराकर झेलते ही रहे
हँस हँस कर खाई सीने पे गोलियां
अपनों ने भी सताने में ना रखीं कोई कमियां
मिलती आजादी गर बिना हथियार के
तो समय से पहले ही क्यों दे दी उन्हें फाँसी की सजा
चूम कर फंदा फाँसी का हँसकर मौत को गले लगा लिया
मगर दीपक की तरहा जल
रौशन जहान कर दिया।
(आज शहीद दिवस पर)
प्रकृति

ईश्वर की अनमोल कृति,

सुसज्जित चित्र प्रकृति ।
प्रकृति का हर एक रंग,
प्रकृति की हर अदा निराली ।
यहां कोई जगह नहीं खाली ।
उँचे पर्वत, बहती नदियां ।
मधुर झरनों का शोर ।
पवन पुरवाई, निरभ्र गगन ।
मनोहारी जंगल का आंगन ।
कितना सुंदर, कितना सुहावन ।
इस सुहावन प्रकृति को देखकर ।
डोलने लगा इनसान का मन ।
अनमोल प्रकृति का ,
लगने लगा मोल ।
मोल देकर, निकला लेकर ।
बारुद,जेसीबी,डंपर ।
बारूद की आवाज का शोर ।
सहम गई नदियां,
थम गया झरनों का शोर ।
उँजडे हुए जंगल लगने लगे बोर.।
पहाड़ो से उँचे बनने लगे भवन ।
अपनी कृति पर ,
इतराता इनसान मन ही मन ।
इनसान को इतराता देख,
खत्म हुवा प्रकृति का अवसान ।
करने लगी बार सावधान ,
फिर भी इन्सान ,
नही दे रहा ध्यान ।
तो,स्वायं फ्ल्यू,कोरोना से,
भेज रही आखरी पैगाम ।
अब तो ले सज्ञान हे इनसान ।
इतना ना कर,
अपनी कृति पर गुमान ।
नहीं तो ना रहेंगी प्रकृति,
ना रहेगी तेरी कृति ।
ना रहेगा इन्सान,ना खानदान ।

स्वरचित-प्रदीप सहारे
सादर मंच को समर्पित -

🍏 दोहावली 🍏
************************
🕊🌷 कोरोना🌷🕊
💧💧💧💧💧💧💧💧💧


धैर्य परीक्षा हो रही , जीवन को हर ओर ।
कोरोना को मात दें , संयम पर दें जोर ।।

🌺🙏🌻🍎🌷

दूरी रखनी है हमें , बन्दी पर दें ध्यान ।
लापरवाही मत करें , सबसे पहले जान ।।

💧🍎🕊🐦

अथक बचाव उपाय है , करें न कोई भूल ।
बन्दी में कर साधना , खोदें विषाणु चूल ।।

🌺🌻🌷💧🌸

अर्थ हानि मत सोचिये , जान बचाना कर्म ।
भीड़ नहीं दूरी रखें , अभी यही है धर्म ।।

🌹🌴🍀🍎

संक्रमण पहचानिये , मन में कर विश्वास ।
रखें सावधानी सभी , राखें दूरी खास ।।

🌴🌹🌸💧🌷🌻

🍎🍀...रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा

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