Tuesday, March 17

"जड़"17मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-686
विषय जड़
विधा काव्य

17 मार्च,2020,मंगलवार

मैं जड़ हूँ बुनियाद वृक्ष की
मैं जड़ हूँ रहती तम धरती।
मैं जड़ नहीं विटप जननी हूँ
मैं विपदा तरुवर की हरती।

जड़ बन चुका एक मुहावरा
जड़ हूँ फिर भी रहती चेतन।
अंधियारे में चरण पसारकर
देती प्राणवायु जग हर जन।

जड़ पौध जलपान कराती
नित हरा वृक्षों को रखती मैं।
हवा प्रभंजन चले तीव्र गति
उन्हें सदा पकड़ कर रखूं मैं।

हरीयाली प्रकृति को करती
पत्ते कलियां पुष्प खिलाती।
शस्य श्यामला माँ धरा को
नव पुष्पों का हार पहनाती।

मैं जड़ हूँ कानन वृक्षों की
शीतल मन्द समीर बहाती।
संवहन की क्रिया कर के
जन हित हेतु वर्षा कराती।

मैं विकास की जड़ मूल हूँ
औषध रंग वसन मैं देती।
मैं विश्वासों में हूँ समाहित
जग कृषक करता है खेती।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
17 /3/2020
बिषय,, जड़

जड़ अगर गहरी हो तो डाली मजबूत होती है
कलियों के खिलते ही ओस फूलों का मुख धोती है
बैसे ही परिवार में जड़ जैसी मुखिया की जिम्मेदारी
चाहे वो ब्यवहारिक हो अथवा आर्थिक तैयारी
जड़ जैसी गहराई हो
समानता की अगुवाई हो
देते सबको शीतल छाया
आश्रितों ने सब सुख पाया
मन हो निर्मल तन हो निर्मल
पारिवारिक जीवन हो निर्मल
हों जैसे होता है हर सिंगार जिसकी खुशबू से आ जाती चमन में बहार
स्वयं खड़ा महका देता परिवेश सारा
और यदि जड़ बुद्धि हो तो परिवार कैसे संभालेंगे
जो स्वयं तैरना न जाने वो क्या पार उतारेंगे
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक-17-3-2020
विषय-जड़

विधा-दोहा

दोहे-जड़

जड़-चेतन में देखते,
भाव भक्ति औ प्राण।
यही सनातन रीत है,
कहते वेद पुराण।।1।।

जड़ों से जो जुड़ा रहे,
नर है वही सुजान।
गुरु पिता और मात को,
पूजे सम भगवान।।2।।

भाव हीन जड़ता न हो,
समझो जीवन सार।
दिल का झरना बह रहा,
वृहद लुटाओ प्यार।।3।।

जड़ को जब हैं सींचते,
लहराता है पेड़।
नव अंकुर तब फूटते,
चेतन माटी मेड।।4।।

जड़ मूरत भी बोलती,
मन में हो विश्वास।
सब जीवों में देखिए,
भगवन का ही वास।।5।।

हर इक नारी का करें,
उचित मान सम्मान।
प्राणवान है जड़ नहीं,
उसकी भी पहचान।।6।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
शीर्षक- जड़
सादर मंच को समर्पित -

🍀🌹 गीतिका -पर्या0 🌹🍀
🌷आधार छंद- गीतिका 🌷
**************************
🌴🌺 जड़ 🌺🌴
मापनी- 2122 2122 2122 212
🍊🍀🍊🍀🍊🍀🍊🍀🍊🍀

बन्धु पर्यावरण का अब ध्यान करिये तो जरा ।
क्यों करें हम नष्ट , जड़ यह भान करिये तो जरा ।।

थे जहाँ हरियालियों के बाग मीलों महकते ,
काट डाले वृक्ष क्यों , संज्ञान करिये तो जरा ।

कर रहे थे संतुलन जंगल जमीं आकाश जड़ ,
खो दिये जल स्रोत खुद ही ज्ञान करिये तो जरा ।

दौड़ अंधी चल रही है आज शहरीकरण की ,
नष्ट पर्यावरण हो न , निदान करिये तो जरा ।

हानिकारक गैस भेदी पर्त भी ओजोन की ,
साँस लेंगें अब कहाँ ,अनुमान करिये तो जरा ।

पेड़ ही होंगे नहीं , बरसात कैसे हो सके ?
बूँद को तरसें , समय पहचान करिये तो जरा ।

हो गये हम सुलभ भोगी , भा रहीं पौलीथिनें ,
घोर घातक बस्तु दिल बैठान करिये तो जरा ।

स्वच्छ घर आँगन रहें , कूड़ा न फेंकें सड़क पर ,
पीक भी थूकें न बाहर , मान करिये तो जरा ।

क्यों न समझें कीमती यह जल, न धोयें सड़क को ,
बूँद नहिं हो व्यर्थ जल , मित पान करिये तो जरा ।

रोपने हैं पेड़ पर यह ध्यान रखना चाहिए ,
कौन सींचेगा जड़ें , अनुदान करिये तो जरा ।

फिर सुखद हो स्वस्थ पर्यावरण हरियाली यहाँ ,
साथ मिल जड़ सींचये ,शुभ गान करिये तो जरा ।।

🌹🌴🌺🌻🌷🍋🌺


🌴🐦🍋🌹**.... रवीन्द्र वर्मा आगरा

17/3/20
विषय-जड़


विचारो की आंधियों में
मची हो जब हाहाकार
मन मस्तिष्क
में बेदम सा चीत्कार
यह पटल की स्थिति
अंतर्द्वंद्व के हो उत्पाद
वृक्ष की शाखाओं
की तरह
झूमते हो विचार प्रवाह
ऐसे मानस पटल पर
जब मन पर हो
अपना संयम आधार
न डर हो थपेड़ो का
जड़ पर अपना अधिकार
विचारो को मिलती थाह
हौसलों को आधार

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय- जड़
विधा-स्वतंत्र

दिनांक--17 /03/2020

जीते जी अब
माँ ममी,बाबा डैड
हो गये
चाचा-चाची,मामा-मामी
ताया-ताई,काका-काकी
बुआ-मौसी ,फुफा-मौसा
सब आंट(कीड़े)
आंटी हो गये
रिश्ते सारे जड़ हो गये

दो गज जमीं के लिए
बेटा और बाप
दुश्मन हो गये
एक नार और
चार बीमार हो गये
श्वान के लिए
मकान और
वृद्ध माँ-बाबा के लिए
वृद्धाश्रम हो गये
रिश्ते सारे जड़ हो गये

बेटे जरा पढ़ क्या गये
नीलामी का सामान
हो गये
भूख कागज के
टुकड़ो की
बेशर्मी की हद
पार कर गई
माँ की मामता
दियासलाई बन गई
घर की लक्ष्मी
बनाकर जिसे लाई थी
अग्नि में होम कर
अट्टहास लगा
नई तलाश शुरु कर दी
यूं सात जन्म के रिश्ते
स्वार्थ की बलि
चढ़ गए
रिश्ते सारे जड़ हो गये।

*शेषांस*

डा.नीलम

दिनांक, 17,3,2020
दिन , मंगलवार

विषय, जड़

जड़ वृक्ष को सींचती,
रहकर के चुपचाप।
श्रम सारा जड़ ने किया,
यश लूटते आप।।

भूल गए माँ बाप को ,
करें अकेले भोग ।
पनप कभी पाये नहीं,
जड़ें छोड़ कर लोग ।।

जड़ मति से मुर्दा भला,
हो सकता संतोष ।
जीते जी ना मारता,
मन में पलता रोष ।

हरदम जड़ जो सींचते,
रहते मालामाल ।
ठंड़ी गर्मी कुछ नहीं,
हर मौसम खुशहाल।।

पुख्ता जड़ को कीजिए ,
बना रहे आधार ।
हरा भरा जीवन रहे ,
यही सृष्टि का सार ।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
17 मार्च 2020, मंगलवार
विषय- जड़

विधा - काव्य

उस बरगद की जड़े,
बेहद मजबूत थीं ।
पर अंदर ही अंदर
दीमक खाए जा रहें थें उन्हे!!

क्या पता था घर में क्या
गुल खिल रहें हैं उनके ,
जड़े हिलती जा रही थी ।।
लोगों की निगाहें बेशक ,
छिली जा रही थी !!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड

भावों के मोती।
शीर्षक-जड़।

स्वरचित।

हमारी जड़ हैं हमारी पहचान।
बिना जड़ के हम हैं क्या?
जड़ ही देती हैं पहचान,
हमारे अस्तित्व को।
जैसे कि एक बीज हो अंकुरित,
मिट्टी को फाड़कर निकलता है।
जब अस्तित्व बढ़ाता है तने के रूप में
और लेने लगता है एक आकार पौधे का।
आती हैं डालियां,निकलती हैं पत्तियां।
और फिर खिलती हैं कलियां।
बन फूल बिखेरती है सुगंध सारे वातावरण में।
झुक डालियां बांटती हैं फल जमाने को
देती हैं कई संदेश अपने क्रिया-कलापों में।।

उसी तरह है हमारा भी
अस्तित्व इस जहान में
हमारी जान है हमारी संस्कृति,
हमारी सनातन सभ्यता
भारतीयता की पहचान,
हिंदुस्तानी होने का मान।
जिन में बसते हैं हमारे प्राण।

सबसे पहले आती है हमारी प्रवृत्ति।
जो भरी हुई है मानवीय गुणों
की दिव्य अनुभूतियों से।
करुणा, दया, मानवता,
जिसका है आधार।
भाईचारा, सद्भाव, समानता
है जिसका विस्तार।
हमारी जड़ है जो सींचती हैं
अगली पीढ़ी को।
पिछली पीढ़ी, जो देती है,
धरोहर संभालने को।।

कहां हैं हमारी जड़?
हमारा अस्तित्व क्या है?
कैसे कोई पाएगा जान,
पहचान?
इस बिन तो हैं हम अधूरे।
जैसे डाल से गिरे पत्ते।
या फिर झर गए फूल??

कुछ दिनों बाद जैसे फूल से झरे
बीज मिट्टी में मिल जाए।
अपने अस्तित्व को फिर बसाएं
और फैलायें अपनी जड़।
जो पहुंचायें पोषण तने के माध्यम से
पत्तियों,कलियों को,फूलों को
फूलों में बने पराग,पराग से बने शहद।
उल्लास मिठास से गुजरता सफर के मानिंद।
हवाओं के जरिए फैल जाता सारे वातावरण में
समाज,देश में और फिर विश्व में, ब्रह्माण्ड में।।

यही है हमारी पहचान!
हमारी सांस्कृतिक विविधता
में एकता की अद्भुदत मिशाल
सनातनी सभ्यता विशाल
जुड़िये अपनी जड़ों से
लौटिये अपने-आप में
उड़िये ऊंची उड़ान।।
*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

विषय निर्दिष्ट
विधा कविता

दिनाँक 17.3.2020
दिन मंगलवार

जड़
💘💘💘

जड़ को सुदृड़ होना चाहिये
विचारों का गढ़ होना चाहिये
हमारी सँस्कृति जीवन्त है
तब ही तो सब ओर बसन्त है।

कोरोना के आगे हाथ जुड़ गये
लोग हमारे सँस्कारों की ओर मुड़ गये
साग सब्जी खाने में प्रधान हो गई
शाकाहारी होना पहचान हो गई।

अब भी जो न समझे वो जड़ है
जिद्दी है और पूरा खड़ है
कोरोना ने मचा दिया हँगामा
खर्च करवा दिया तगडा़ नामा।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
दिनांक १७/३/२०२०
शीर्षक-जड़।


जड़ छोड़ भागे नहीं
यह नही उत्तम व्यवहार
देश की मिट्टी है अपनी पहचान
बढ़ाये इसका सम्मान।

जुड़े रहे जो जड़ से अपने
सदा रहे खुशहाल
अपकारी बन क्यों छोड़ चले?
नीज गोकुल धाम।

माँ बाप को छोड़ दिये
जागा नही अनुराग
दूसरों के दुःख से
नही हमारा सरोकार।

चेतना तभी जागती हमारी
जब स्वंय पर टूटे पहाड़
जड़ नही, चेतन है हम
स्वार्थ नही हो आचार।

चेतन जगत से हम है
नही प्राणी मात्र है आप
सौहार्द, विवेक सौम्यता
रहे हमारे साथ।

धर्य नय छूटे, विवेक नय रूठे
हो न कटू व्यवहार
परनिंदा हमारा लक्ष्य नहीं
हो सुंदर संस्कार।

जड़ हुआ अर्जुन कुरुक्षेत्र में
देख स्वजन अपार
श्री कृष्ण ने दिये गीता का ज्ञान
जागी चेतना, भागा तम अज्ञान।

पंचतत्व से बना शरीर
आत्मा निर्विकार
कमलनयन है परमपिता
उनसे ही सकल जहान।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

शीर्षक- जड़
दिनांक -17/03/2020


जड़ में है पेड़ों की जान
नित्य निरंतर कर्म वो करते
पेड़ों को हरा भरा वो रखते
पेड़ों से है हम सबकी जान ।

जड़ पेड़ों को बांधे रखती
उचित इनका वो पोषण करती
तना, पत्ती ,कली और फूल ,
बीजों का निर्माण भी करती।

इन्हीं की पत्तियां और शाखाएं,
लेकर हमने है अपने घर बनाए
विज्ञान की शुरुआत इन्हीं से,
इन्हीं से पहला पहिया बनाए ।

ये हमें प्राण वायु ऑक्सीजन देते
ये ध्वनि प्रदूषण को कम करते
ये हमें फल, फूल पानी भी देते
ये स्वच्छ सुंदर पर्यावरण है देते।

पेड़ एक बहुमूल्य संपदा
इन्हें हरा सोना भी कहते
अधिक मात्रा में पेड़ लगाएं
आओ सब मिलकर इन्हें बचाएं। ।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

"जड़"

"पिताजी,तुम थे एक घटादार,छायादार पीपल के तरू।


माँ थी जड़,जिन्होंने मजबूती से थामकर रखा था तुम्हें।

छुपाकर,मिटाकर अपना अस्तित्व बस तुम्हेंही थामा।

काल ने चली कुटिल चाल,बनाया बिना भूख तुम्हें ग्रास।

सूख गया,उजड़ गया,बनकर ठूँठ रह गया,

वो घटादार,छायादार पीपल का तरू।

पर -------वो 'जड़' ,आज भी तुम्हारे उन अवशेषों को,

उतनी ही मजबूती से थामे हुए है ,संभाले हुए है,

छिपाकर,मिटाकर अपना अस्तित्व"।

"सरिता विधुरश्मि"

दिनांक 17 मार्च 2020
विषय जड


जड़
तना बनी
तना ऊपर बढ़ा
शाखाओ में बदला
शाखाओ से उप शाखाएँ
उन पर हरी पत्तियाँ
पत्तियाँ लहराने लगी
हवाओं के साथ साथ . . . .

पत्तियाँ
टकराने लगी
वो इतराने लगी
अपने रंग रूप पद पर
ऊँचाई पे पहुँच कर
पत्तियाँ भूली शाखाओं को
शाखाएँ तने को भूली
तना भी जड़ को शायद . . .

पत्तियाँ
अलग अलग
जड़ पर एक
जड़ की जमीन एक
पत्तियों का रंग तक एक
शिराओँ में बहता तरल एक . . .

फिर
दंभ कैसा
ऊँचे होने का
मगर कब तक
जड़ के होने तक
क्या वजूद इनका . . .

पत्तियाँ
कब समझेगी
जड़ों का दर्द
जो दबी जमीँ में
फिर भी सीँच रही
अभी तक उनको
हरा भरा रखने के लिए
आखिर कब काम आएगा
जमी की जड़ो का बलिदान . . .

. . . . . कमलेश जोशी
काँकरोली राजसमंद
विषय : जड़
विधा : कविता

तिथि : 17.3. 2020

हमारी जड़ें हैं हमारी संस्कृति
जड़ों मे छिपी,रचनात्मक कृति।

जड़ों में ही संस्कार हैं
जड़ें ही तो आधार हैं
जड़ें ही देती उत्कर्ष है
जड़ों में भावी आकृति-

हमारी जड़ें ही हमारी संस्कृति
जड़ों मे छिपी,रचनात्मक कृति।

घोर आंधी तूफ़ानों में
जड़ें ही तो सहार हैं,
निर्बल जड़ों की दुर्गति
दें ढहार और विकृति।

हमारी जड़ें ही हमारी संस्कृति
जड़ों मे छिपी,रचनात्मक कृति।

जड़ें यदि सिंचित हों
पेड़ आपदा वंचित हो
हरियाली की चमत्कृति
लाओजीवन में जाग्रति।

हमारी जड़ें ही हमारी संस्कृति
जड़ों मे छिपी,रचनात्मक कृति।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विषय-जड़
दिनांक १७-३-२०२०


राह कंटीली,अकेला में खड़ा हूँ।
उम्र अंतिम पड़ाव, में लड़ा हूँ ।

कई आए कई गए,सबसे बड़ा हूँ।
जड़ मजबूती,क्योंकि मैं बड़ा हूँ।

रखी हिम्मत,किया सामना सदा,
वट वृक्ष भांति,आज मैं खड़ा हूँ।

मजबूत परिवार,प्यार संग लड़ा,
आई आंधीयाँ,पर मैं ना हिला हूँ।

बहकावे में,साथ छोड़ा अपनों ने,
आया पतझड़,मैं वीरान खड़ा हूँ।

ठूंठ बना,फिर भी उम्मीद अड़ा हूंँ।
सावन आएगा, मैं आस खड़ा हूं।

धरा संभाला,माँ आशीष खड़ा हूँ।
नहीं की कद्र,तो भी सब जुड़ा हूँ।

जड़ जुड़ा रह,सावन हरा हुआ हूँ।
तोड़े हौसले,झंझावतों ना डरा हूँ।

लौट आए सब, क्योंकि खड़ा हूँ।
आधार बना,सब संग मैं खड़ा हूँ।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

विषय जड़

जड़ बन खड़ी रही उर्मी
लिए थाल हाथ में
वन से कब लौटेंगे लखन
गए भ्राता साथ में

राम, लखन संग सीय है
वामांग सीता पीछे पिय है
वानर,भालू, राक्षस वन में
धक् धक् उर्मी जिय है।

सास, ससुर की सेवा में
लखन उर्मी को छोड़ गए
छाया बन श्रीराम की
नारायण के साथ गये।

है फिर सूनी आज अयोध्या
जड़ उर्मी कलश लिए खड़ी
कब आयें राम,लखन,सीय
न रूकती आँखों से झड़ी।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)
तिथि-17/3/2020/मंगलवार
विषय-*जड*

विधा-दोहे

ये सब महिमा ईश की
जिससे ही संसार।
जब चेतन जहां देखें,माया अपरंपार।

सभी मानते क्या शक्ति
कैसा है करतार।
अपने राम जी करते, सबका बेड़ा पार।

जड जमीं है अगर यहां,
रहें सदा मजबूत।
परेशान न होंय कभी,
पाऐं पूत सपूत।

मजदूर की बात नहीं,
रहते यहां फकीर।
जड़ खोदकर खाते हैं,
होते जो मजबूर।

रामनाम कहीं गाऐं
हो अपना कल्याण।
राम नाम ही हम जपें,
जड चेतन की जान।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
17/03/2020
शीर्षक - जड़

विधा - हाइकु

1-
बांध के मिट्टी,
पौधे को दे पोषण,
अनूठी जड़ ।

2-
सुरक्षा दुर्ग,
जड़ सम बुजुर्ग,
सर्व उत्कर्ष ।

3-
फैला कोरोना,
स्व संस्कृति का ह्वास,
जड़ पाश्चात्य ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

भावों के मोती
दिनांक-17/03/ 2020

दिन- मंगलवार
विषय-जड़ (आधार)

ईश्वर तुल्य माता-पिता हमारे
जीवन आधार हैं हमारे
खुशियों पर हमारी
अपना सब कुछ वारे
माता-पिता हमारे,जीवन आधार हमारे।
कष्ट कभी तुम इनको न देना
ये पालनहार हमारे
खुशियों के खातिर हमारी सब कुछ अपना है वारे
माता- पिता हमारे,जीवन आधार हमारे।

स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच उत्तर प्रदेश।

दिनांक -17/3/2020
विषय - जड़


मैं मात्र जड़ हूँ
ख़ुद को छिपाया है मैंने
फिर भी धर्म निभाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
ख़ुद को रखती हूँ अंधेरे में
फिर भी पेड़ को उगाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
धरा के पोषक तत्व खाती
फिर भी पेड़ को खिलाया है।
मैं मात्र जड़ हूँ
ज़मीन से बाहर नहीं आती
फिर भी पेड़ को बढ़ाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
हरी भरी नही रहती
फिर भी पेड़ को हरा बनाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
छाया नही दी है मैंने
फिर भी पेड़ पल्लवित बनाया है।
मैं मात्र जड़ हूँ
तूफ़ानों को नही झेलती
फिर भी पेड़ को बचाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
हवा नही दी मैंने ,मगर
पेड़ को इस लायक बनाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
कल्पना करते हो मेरी
पेड़ में मैंने अस्तित्व छिपाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
अपनी अनुभूति को आज
मैंने तुम सबको सुनाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
त्याग-समर्पण का पाठ
आज तुमको सिखलाया है ।
मैं मात्र जड़ हूँ
समरसता की गाथा को
मैंने भी तो अमर बनाया है ।
हाँ, मुझे गर्व है और रहेगा
मैं जड़ मात्र हूँ
तुम्हारे विवेक को जगाया है ।


संतोष कुमारी ‘ संप्रीति 


दिनाँक-17/03/2020

विषय-जड़

जड़ से जुड़े है हम देश की,
निज संस्कृति से प्यार है।
हमारी मान्यताओं का भी
वैज्ञानिक ही आधार है।

इन शुचि मान्यताओं की ,
जड़ में आप जो जाएँगे।
इनमें छिपा एक गूढ़ तथ्य,
आप अवश्य ही पाएँगे।

गले मिलना, हाथ मिलाना
रास नहीं अब आता है।
हाथ जोड़ कर करो नमस्ते
यही सबको अब भाता है।

खाने से पहले हाथों को धोना,
बचपन से हमने सीखा था।
प्यार किया था जीव -जंतु से
उनमें अपना साथी दीखा था।

मांसाहार है वर्जित यहाँ
शाक पात से बने रसोई।
साफ सफाई ,छुआछूत है
कैसे भी रूप में समझे कोई।

इन बातों की जड़ को अब,
सारी दुनिया ने पकड़ा है।
वह भी तब जब कोरोना ने,
सारी दुनिया को जकड़ा है।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

दिनांक- 17/03/2020
शीर्षक -जड़
जड़ से वृक्ष जुड़कर ही जीवित रहता है
फलता है ,फूलता है, पल्लवित होता है
जड़ से उखड़ा वृक्ष कभी नही टिकता है
यही संदेश हमारे जीवन को भी देता है
जुड़े रहो अपनी जड़ों से ,अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति से
जुड़े रहो अपने कुटुंब ,अपने बुजुर्गों से, उनकी सीखों से
तभी तुम्हारे प्रयास फलित होंगे ,तुम भी पुष्पित पल्लवित होगे
तुम भी बढ़ोगे आयु ,ऐश्वर्य ,बल एवं धन से ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय

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"अंदाज"05मई2020

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