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ब्लॉग संख्या :-679
नारी सशक्तिकरण
************
नारी तुम अभ्युदय आधार हो
जीवन का अदभुत चमत्कार हो
राग ,अनुराग का कोष बनी
निर्विवाद करुणामय सार हो।।
घर-आँगन गठबंधन मंजरी हो
संस्कारों से भरी लाजवंती हो
कठिन राहों को पार करती सदा
दुर्गा,अहिल्या,कल्पना,रानी हो।।
तुम ही तीज ,त्योहार हो
सशक्तिकरण भरा हार हो
नारी बिना तुम मानों न मानों
धरती बनती जैसे श्मशान हो।।
तुम स्वाभिमान हो,अभिमान हो
नेह,गगरी से भरा महायान हो
बंदिशें,नकाबों को हटाती हुई
धरा की महामाया अवतार हो।।
पुरातन काल से आदिशक्ति हो
भविष्य संवारती मातृत्व भक्ति हो
निःस्वार्थ भाव से कार्यरत रहती
भावों,विचारों की अभिव्यक्ति हो।।
नारी को कम क्यों आंकते हो
स्वयं अंतर्मन में नही झांकते हो
नारी भी बनी आधारशिला है
क्यों नही रक्षार्थ खड़े हो जाते हो।।
तुम जल,थल,नभ की शक्ति हो
अस्त्र-शस्त्र में भी रखती भक्ति हो
नर सँग कदम मिलाती नारी तुम
समस्त धरा की अनुपम कृति हो।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
************
नारी तुम अभ्युदय आधार हो
जीवन का अदभुत चमत्कार हो
राग ,अनुराग का कोष बनी
निर्विवाद करुणामय सार हो।।
घर-आँगन गठबंधन मंजरी हो
संस्कारों से भरी लाजवंती हो
कठिन राहों को पार करती सदा
दुर्गा,अहिल्या,कल्पना,रानी हो।।
तुम ही तीज ,त्योहार हो
सशक्तिकरण भरा हार हो
नारी बिना तुम मानों न मानों
धरती बनती जैसे श्मशान हो।।
तुम स्वाभिमान हो,अभिमान हो
नेह,गगरी से भरा महायान हो
बंदिशें,नकाबों को हटाती हुई
धरा की महामाया अवतार हो।।
पुरातन काल से आदिशक्ति हो
भविष्य संवारती मातृत्व भक्ति हो
निःस्वार्थ भाव से कार्यरत रहती
भावों,विचारों की अभिव्यक्ति हो।।
नारी को कम क्यों आंकते हो
स्वयं अंतर्मन में नही झांकते हो
नारी भी बनी आधारशिला है
क्यों नही रक्षार्थ खड़े हो जाते हो।।
तुम जल,थल,नभ की शक्ति हो
अस्त्र-शस्त्र में भी रखती भक्ति हो
नर सँग कदम मिलाती नारी तुम
समस्त धरा की अनुपम कृति हो।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
दिनांक - 08/03/2019
विषय - नारी/महिला
प्यारी सी महिलाओं के सम्मान में
कभी मीठी सी मुस्कान हूं मैं
कभी किसी की अरमान हूं मैं
कभी किसी के दिल की जान हूं मैं
कभी किसी की जहान हूं मैं
कभी मुझमें दुनिया समायी है
कभी मैंने इतिहास रचायी है
इस धरा की क्या बात करूं मैं
तीनों लोक में मेरी महिमा छायी है
मैं हूं एक नारी जो नहीं है बेचारी
अब न कोई अबला कहना
हमको भी है आगे रहना
हां हमको भी है आगे रहना
**************************
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
दीपमाला पाण्डेय
रायुर छ.ग.
विषय - नारी/महिला
प्यारी सी महिलाओं के सम्मान में
कभी मीठी सी मुस्कान हूं मैं
कभी किसी की अरमान हूं मैं
कभी किसी के दिल की जान हूं मैं
कभी किसी की जहान हूं मैं
कभी मुझमें दुनिया समायी है
कभी मैंने इतिहास रचायी है
इस धरा की क्या बात करूं मैं
तीनों लोक में मेरी महिमा छायी है
मैं हूं एक नारी जो नहीं है बेचारी
अब न कोई अबला कहना
हमको भी है आगे रहना
हां हमको भी है आगे रहना
**************************
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
दीपमाला पाण्डेय
रायुर छ.ग.
बिधा - कबिता ।
बिषय -नारी ।
नारी तुम हो निर्मल नयनी ,
तूम ही जननि जन्म कि दैनी ॥
आदि तुहीं अन्नत तुहीं ।
रती तुहीं रति मान तुहीं ॥
सती तुहीं सतबान तुहीं ।
आन तुहीँ कुल शान तुहीं ॥
नारी साक्षात नारायणी ॥
नारी तुम हो निर्मल नयनी ॥
नारी है जा कितनी भारी ।
न ही कभी फर्ज से हारी ।
नारी है जो नर की नारी ॥
नारी ही है बहिना प्यारी ।
काम साधना तू कामायनी ।
नारी तुम हो निर्मल नयनी ॥
मदनगोपाल शाक्य ।पान्चाली ,कम्पिल ।फर्रूखाबाद ॥ उ .प्र .॥
बिषय -नारी ।
नारी तुम हो निर्मल नयनी ,
तूम ही जननि जन्म कि दैनी ॥
आदि तुहीं अन्नत तुहीं ।
रती तुहीं रति मान तुहीं ॥
सती तुहीं सतबान तुहीं ।
आन तुहीँ कुल शान तुहीं ॥
नारी साक्षात नारायणी ॥
नारी तुम हो निर्मल नयनी ॥
नारी है जा कितनी भारी ।
न ही कभी फर्ज से हारी ।
नारी है जो नर की नारी ॥
नारी ही है बहिना प्यारी ।
काम साधना तू कामायनी ।
नारी तुम हो निर्मल नयनी ॥
मदनगोपाल शाक्य ।पान्चाली ,कम्पिल ।फर्रूखाबाद ॥ उ .प्र .॥
8 /3 /2020
बिषय ,,नारी
नारी तुझमें समुद्र सी गहराई
तेरे गुणों की कभी थाह न पाई
धरती सम सहने की क्षमता है
आंचल में तेरे ममता ही ममता है
तेरे अंर्तर्मन में खुशियां हैं वेदना है
हृदयपटल पर जागृति है चेतना है
पर्वत से कष्टों को झेलने की अद्भभुत शक्ति है
तुझमें मीरा जैसी अद्वितीय भक्ति है
राधा जैसा अनंत प्रेम समाया है
निःस्वार्थ सेवा भाव बस तुझमें ही आया है
पुरुषों के लिए सदैव ही रही आधार है
सामंजस्य समरसता का तुझमें ब्यवहार है
ईश्वर द्वारा रची गई अनुपम कृति हो
अनुराग करुणा स्वभिमान की आकृति हो
लज्जा मर्यादा क्षमाशील की कामिनी हो
कभी माँ,बहिन कभी बनी अर्धांगनी हो
अलौकिक शक्ति ,तुझमें अन्नपूर्णा माँ भवानी हो
लक्ष्मी राधा सीता सम
बन जाती वामांगनी हो
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
बिषय ,,नारी
नारी तुझमें समुद्र सी गहराई
तेरे गुणों की कभी थाह न पाई
धरती सम सहने की क्षमता है
आंचल में तेरे ममता ही ममता है
तेरे अंर्तर्मन में खुशियां हैं वेदना है
हृदयपटल पर जागृति है चेतना है
पर्वत से कष्टों को झेलने की अद्भभुत शक्ति है
तुझमें मीरा जैसी अद्वितीय भक्ति है
राधा जैसा अनंत प्रेम समाया है
निःस्वार्थ सेवा भाव बस तुझमें ही आया है
पुरुषों के लिए सदैव ही रही आधार है
सामंजस्य समरसता का तुझमें ब्यवहार है
ईश्वर द्वारा रची गई अनुपम कृति हो
अनुराग करुणा स्वभिमान की आकृति हो
लज्जा मर्यादा क्षमाशील की कामिनी हो
कभी माँ,बहिन कभी बनी अर्धांगनी हो
अलौकिक शक्ति ,तुझमें अन्नपूर्णा माँ भवानी हो
लक्ष्मी राधा सीता सम
बन जाती वामांगनी हो
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
दिनांक - ०८/०३/२०२०
दिन - रविवार
विषय - नारी
-------------------------------------
नारी के रुप अनेक
धरती है, प्रकृति है, सृष्टि है
उद्गम है, स्नेह वृष्टि है
जननी है, पालक है
गुरु है, संरक्षक है
संस्कार है, आत्मविश्वास है
जीवन का उजास है
धैर्य का भंडार है
संस्कृति का संचार है
सुखों का सागर है
ममता का गागर
आँगन की तुलसी है
अमृत की कलसी है
नारी आदर्श है शक्ति है
जीवन की अभिव्यक्ति है
स्नेह है त्याग है नारी
रंग है राग है नारी
भीनी सबा है
महकती दुआ है
रौनक है, मुस्कान है
नारी मान है अभिमान है स्वाभिमान है
नारी ईश्वर का दिया अकाट्य अभेद्य वरदान है।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
दिन - रविवार
विषय - नारी
-------------------------------------
नारी के रुप अनेक
धरती है, प्रकृति है, सृष्टि है
उद्गम है, स्नेह वृष्टि है
जननी है, पालक है
गुरु है, संरक्षक है
संस्कार है, आत्मविश्वास है
जीवन का उजास है
धैर्य का भंडार है
संस्कृति का संचार है
सुखों का सागर है
ममता का गागर
आँगन की तुलसी है
अमृत की कलसी है
नारी आदर्श है शक्ति है
जीवन की अभिव्यक्ति है
स्नेह है त्याग है नारी
रंग है राग है नारी
भीनी सबा है
महकती दुआ है
रौनक है, मुस्कान है
नारी मान है अभिमान है स्वाभिमान है
नारी ईश्वर का दिया अकाट्य अभेद्य वरदान है।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
भावों के मोती
विषय--नारी
_____________
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
प्रीत की मूरत बनी,
पीती रही है गरल।
अँधेरों में डूबती,
रोती रहती अविरल।
भस्म सारा दर्द हो,
लौ अखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
खंड-खंड बिखरी सदा,
दिखा न कोई रास्ता।
पग-पग पे बबूल-थे,
मार्ग कँटक से भरा।
काट इन्हें फेंक दें,
महा चण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
दाँव पे हरदम लगी,
लाज नारी की सदा।
बैठे आँख मूँद के,
भीष्म से सभी यहाँ।
वार इन पे कर सके,
वो शिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
चीर हरण की पुकार,
कौन सुनता है भला।
आँख कान बंद करे,
मौन कान्हा ने धरा।
पाप को जो मार दे,
वो त्रिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय--नारी
_____________
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
प्रीत की मूरत बनी,
पीती रही है गरल।
अँधेरों में डूबती,
रोती रहती अविरल।
भस्म सारा दर्द हो,
लौ अखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
खंड-खंड बिखरी सदा,
दिखा न कोई रास्ता।
पग-पग पे बबूल-थे,
मार्ग कँटक से भरा।
काट इन्हें फेंक दें,
महा चण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
दाँव पे हरदम लगी,
लाज नारी की सदा।
बैठे आँख मूँद के,
भीष्म से सभी यहाँ।
वार इन पे कर सके,
वो शिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
चीर हरण की पुकार,
कौन सुनता है भला।
आँख कान बंद करे,
मौन कान्हा ने धरा।
पाप को जो मार दे,
वो त्रिखण्डी चाहिए।
काल को जो ग्रास ले,
शक्ति चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए,
इक शिखण्डी चाहिए।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय स्त्री ,नारी ,महिला,महिला शक्ति
विधा काव्य
08 मार्च,2020,रविवार
नारी शक्ति जगत शान है
आन मान और सम्मान है।
अति अद्भुत सृजन है तेरा
जग जननी प्रिय महान है।
नारी तुम जग बहु स्वरूपा
दया ममता करुणा सागर।
भरी पड़ी गौरव मयी गाथा
प्रभु दासी रही नटवर नागर।
महिला शक्ति पुनर्जागरण
इस अवसर अति जरूरी।
झेल रही हैं दुःख आपदायें
पद पद पर अति मजबूरी।
नारी जग की सीता सावित्री
तू अनुसूया कौशल्या देवकी।
माँ तुम अब जग कल्याणक
अखिल जगत तुम्हें ही सेवती।
तुम देती लेती नहीं कुछ भी
इसीलिए प्रिय माँ कहलाती।
सब कुछ देती प्रिय शिशु को
निजअंक नित मन बहलाती।
हृदय फ़ाड़कर सबकुछ देती
सिर्फ शीश झुका सकते हम।
विमल स्नेह सुधामय सागर
बस ,आँसू कर सकते अर्पण।
तुम दाता ज्ञाता हो जग की
नारी तुम हो दिव्य स्वरूपा।
तेरा जग में न कोई सानी है
धन्य धन्य जग प्रिय अनूपा।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
08 मार्च,2020,रविवार
नारी शक्ति जगत शान है
आन मान और सम्मान है।
अति अद्भुत सृजन है तेरा
जग जननी प्रिय महान है।
नारी तुम जग बहु स्वरूपा
दया ममता करुणा सागर।
भरी पड़ी गौरव मयी गाथा
प्रभु दासी रही नटवर नागर।
महिला शक्ति पुनर्जागरण
इस अवसर अति जरूरी।
झेल रही हैं दुःख आपदायें
पद पद पर अति मजबूरी।
नारी जग की सीता सावित्री
तू अनुसूया कौशल्या देवकी।
माँ तुम अब जग कल्याणक
अखिल जगत तुम्हें ही सेवती।
तुम देती लेती नहीं कुछ भी
इसीलिए प्रिय माँ कहलाती।
सब कुछ देती प्रिय शिशु को
निजअंक नित मन बहलाती।
हृदय फ़ाड़कर सबकुछ देती
सिर्फ शीश झुका सकते हम।
विमल स्नेह सुधामय सागर
बस ,आँसू कर सकते अर्पण।
तुम दाता ज्ञाता हो जग की
नारी तुम हो दिव्य स्वरूपा।
तेरा जग में न कोई सानी है
धन्य धन्य जग प्रिय अनूपा।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
~~~~~~~~~
दिनांक-8/3/2020
सबसे नवती वेस कीमती सिर्फ मां (महिला)है
+++++++
स्नेहिल गोद मां की ऊष्मा मयी में बैठ के,
थपथपी का आनंद ऐसा और कहां हैं।
राग मृदु तरंग का सरगम सुसुरीली,
गुदगुदी सहराट मां ममता की छां है।
जहां जहां जहान में जिस जिस की भी मां है,
एक पलड़े में मां व एक पलड़े में जहां है।
तुलना तराजू से करी मां की तौल कर तो,
सबसे नवती वेश कीमती मेरी मां है।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
दिनांक-8/3/2020
सबसे नवती वेस कीमती सिर्फ मां (महिला)है
+++++++
स्नेहिल गोद मां की ऊष्मा मयी में बैठ के,
थपथपी का आनंद ऐसा और कहां हैं।
राग मृदु तरंग का सरगम सुसुरीली,
गुदगुदी सहराट मां ममता की छां है।
जहां जहां जहान में जिस जिस की भी मां है,
एक पलड़े में मां व एक पलड़े में जहां है।
तुलना तराजू से करी मां की तौल कर तो,
सबसे नवती वेश कीमती मेरी मां है।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
दिनांक-8/3/2020
पावन पवित्र प्रेम धार नारी भारती
छन्द-मनहरण-:
पुष्म सम हृदि कंद भावना में समर्पण,
मन ही मन मन की वेदना को धारती।
सहन शील बृहद से बृहद कलेष की,
हृदि सागर में दर्द दरिया को पालती।
सर्वश्व को पुरुष स्व पर निछार कर,
ता उम्र मूर्ति त्याग से दौनौं कुल तारती।
गांठ गठ बंधन की को रष्म रीतौं में निभा।
पावन पवित्र प्रेम धार नारी भारती।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
पावन पवित्र प्रेम धार नारी भारती
छन्द-मनहरण-:
पुष्म सम हृदि कंद भावना में समर्पण,
मन ही मन मन की वेदना को धारती।
सहन शील बृहद से बृहद कलेष की,
हृदि सागर में दर्द दरिया को पालती।
सर्वश्व को पुरुष स्व पर निछार कर,
ता उम्र मूर्ति त्याग से दौनौं कुल तारती।
गांठ गठ बंधन की को रष्म रीतौं में निभा।
पावन पवित्र प्रेम धार नारी भारती।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विषय महिला दिवस
विधा कविता
दिनाँक 8.3.2020
दिन रविवार
प्रणाम नारी
💘💘💘💘💘
प्रकृति
💟💟💟
मेरे साष्टाँग स्वीकार करो
प्रकृति मुझ पर उपकार करो
तुम्हारे विविध रुप मैं देख रहा
मेरे सपने भी साकार करो।
माँ
💟💟
माँ की नरम गोद में सोया
गिरा मैं उसका हृदय रोया
अब पास नहीं तो लगता है
मैंने अपना सब कुछ खोया।
तेरी ममता सागर से भी गहरी है
तू बच्चों की सजग प्रहरी है
मैं बीमार हुआ तू लगी रही
भूल गई साँझ है या दोपहरी है।
माँ सबसे महत्व पूर्ण तेरी पारी
मैं करता प्रणाम तुम्हें नारी।
बहन
💟💟💟
तुम मित्र भी और प्रदर्शक
तुम मेरी छोटी सी शिक्षक
तुमसे पीडा़ बताई अपनी
तुम आ गईं बन के रक्षक।
भैय्या दूज व राखी का त्योहार
उमड़ता प्यार और सुन्दर मनुहार
तुम्हारी निष्ठा प्रशँसनीय
जीवन्त रहते हैं परिवार।
माँ की तरह ही तुम अवतारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
भाभी
💘💘💘
तुम आ गईं घर में भाभी,
समस्या निदान की लेकर चाबी
भाई के अन्तरतम में
उठने लगीं उमंग अनुरागी।
अलँकृत हुए हम हो गये देवर
तुम्हारे स्वर ,जैसे घेवर
एक नई चमक, हुई घर में
फीके दिखते,सारे जेवर।
तुम्हारे स्नेह पर,सब कुछ वारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
पत्नी
💘💘💘💘
पागल मन की ,पगली आशा
समझती न थी,कोई भाषा
आयु के इस ,नाजु़क मोड़ पर
पूछती प्रेम की परिभाषा।
नींद चिढा़ती,थका जागरण
होठ पर ,हँसी का आवरण
उद्विग्न मन,तपन,जलन
अजी़ब था मन का चलन।
मन में बजी ,शहनाई थी
अपने अन्दाज़ में,आई थी
लावण्य था,तरुणाई थी
सब ओर वही,बस छाई थी।
घर में आई,नई किरन
लेकर उमंगों,वाला मन
मन से बना,सजा उपवन
कली फूल,नये बन्धन।
महकी बगिया,फुलवारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
बेटी
💘💘
रिमझिम रिमझिम फुहार मिली
मुझे एक मस्त बहार मिली
तुम आईं बगिया महक उठी
तुतलाते सम्बोधन की झंकार मिली।
रिश्तों ने नये श्रँगार किये
खुशी के कई उपहार दिये
तुम प्रकृति की धरोहर हो
ये तथ्य मैंने स्वीकार किये।
कहते जिसे हम कन्या दान
प्रकृति के प्रति यह है सम्मान
उसके हैं सिद्धान्त महान
वह कहाँ लेती विश्राम।
बेटी तुम तो सबसे न्यारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
बहू
💘💘💘
तुम दो वंशों का संगम हो
मिलन धार की सरगम हो
तुम प्रकृति की स्नेह किरन
तुम नये वंश का उदगम हो।
बाबुल की चिन्ता पिय का ध्यान
इसका मान उसका सम्मान
नये जीवन के प्रथम द्वार पर
तुम कर लेतीं कर्तव्य भान।
तुम आशा की गूँज प्यार की अधिकारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 8.3.2020
दिन रविवार
प्रणाम नारी
💘💘💘💘💘
प्रकृति
💟💟💟
मेरे साष्टाँग स्वीकार करो
प्रकृति मुझ पर उपकार करो
तुम्हारे विविध रुप मैं देख रहा
मेरे सपने भी साकार करो।
माँ
💟💟
माँ की नरम गोद में सोया
गिरा मैं उसका हृदय रोया
अब पास नहीं तो लगता है
मैंने अपना सब कुछ खोया।
तेरी ममता सागर से भी गहरी है
तू बच्चों की सजग प्रहरी है
मैं बीमार हुआ तू लगी रही
भूल गई साँझ है या दोपहरी है।
माँ सबसे महत्व पूर्ण तेरी पारी
मैं करता प्रणाम तुम्हें नारी।
बहन
💟💟💟
तुम मित्र भी और प्रदर्शक
तुम मेरी छोटी सी शिक्षक
तुमसे पीडा़ बताई अपनी
तुम आ गईं बन के रक्षक।
भैय्या दूज व राखी का त्योहार
उमड़ता प्यार और सुन्दर मनुहार
तुम्हारी निष्ठा प्रशँसनीय
जीवन्त रहते हैं परिवार।
माँ की तरह ही तुम अवतारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
भाभी
💘💘💘
तुम आ गईं घर में भाभी,
समस्या निदान की लेकर चाबी
भाई के अन्तरतम में
उठने लगीं उमंग अनुरागी।
अलँकृत हुए हम हो गये देवर
तुम्हारे स्वर ,जैसे घेवर
एक नई चमक, हुई घर में
फीके दिखते,सारे जेवर।
तुम्हारे स्नेह पर,सब कुछ वारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
पत्नी
💘💘💘💘
पागल मन की ,पगली आशा
समझती न थी,कोई भाषा
आयु के इस ,नाजु़क मोड़ पर
पूछती प्रेम की परिभाषा।
नींद चिढा़ती,थका जागरण
होठ पर ,हँसी का आवरण
उद्विग्न मन,तपन,जलन
अजी़ब था मन का चलन।
मन में बजी ,शहनाई थी
अपने अन्दाज़ में,आई थी
लावण्य था,तरुणाई थी
सब ओर वही,बस छाई थी।
घर में आई,नई किरन
लेकर उमंगों,वाला मन
मन से बना,सजा उपवन
कली फूल,नये बन्धन।
महकी बगिया,फुलवारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
बेटी
💘💘
रिमझिम रिमझिम फुहार मिली
मुझे एक मस्त बहार मिली
तुम आईं बगिया महक उठी
तुतलाते सम्बोधन की झंकार मिली।
रिश्तों ने नये श्रँगार किये
खुशी के कई उपहार दिये
तुम प्रकृति की धरोहर हो
ये तथ्य मैंने स्वीकार किये।
कहते जिसे हम कन्या दान
प्रकृति के प्रति यह है सम्मान
उसके हैं सिद्धान्त महान
वह कहाँ लेती विश्राम।
बेटी तुम तो सबसे न्यारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
बहू
💘💘💘
तुम दो वंशों का संगम हो
मिलन धार की सरगम हो
तुम प्रकृति की स्नेह किरन
तुम नये वंश का उदगम हो।
बाबुल की चिन्ता पिय का ध्यान
इसका मान उसका सम्मान
नये जीवन के प्रथम द्वार पर
तुम कर लेतीं कर्तव्य भान।
तुम आशा की गूँज प्यार की अधिकारी
मैं करता तुम्हें प्रणाम नारी।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
08/03/2020
विधा - छंदमुक्त
शीर्षक - नारी
नारी.......
शक्ति स्वरूपा
सौन्दर्य अनूपा
सतत् प्रयत्नशील
संभाले दो गेह,
प्रथम कर्म
सर्व हित धर्म
प्रतिपल चिंतन
दीपशिखा सी देह,
लुटाये सर्वस्व,
परिवार की खुशी में
ढूँढे अपनी खुशी,
उनके स्वप्नों में
जिए जिंदगी;
ढूँढे अपना आकाश,
कभी- कभी
दिनभर की
मुस्कान को सींचे
रात्रि के अश्रुओं से;
सिर्फ तकिया
बनता गवाह,
आसान कहाँ
उसकी डगर ?
जवानी से
झुर्रियों का सफर,
कट जाए यूँ ही
स्व को विस्मृत कर ;
समर्पण की मूरत
मायके, ससुराल की
पुरवायी,
बस अरमान यही
कहलायी न जाये
परायी................!
-- नीता अग्रवाल
विधा - छंदमुक्त
शीर्षक - नारी
नारी.......
शक्ति स्वरूपा
सौन्दर्य अनूपा
सतत् प्रयत्नशील
संभाले दो गेह,
प्रथम कर्म
सर्व हित धर्म
प्रतिपल चिंतन
दीपशिखा सी देह,
लुटाये सर्वस्व,
परिवार की खुशी में
ढूँढे अपनी खुशी,
उनके स्वप्नों में
जिए जिंदगी;
ढूँढे अपना आकाश,
कभी- कभी
दिनभर की
मुस्कान को सींचे
रात्रि के अश्रुओं से;
सिर्फ तकिया
बनता गवाह,
आसान कहाँ
उसकी डगर ?
जवानी से
झुर्रियों का सफर,
कट जाए यूँ ही
स्व को विस्मृत कर ;
समर्पण की मूरत
मायके, ससुराल की
पुरवायी,
बस अरमान यही
कहलायी न जाये
परायी................!
-- नीता अग्रवाल
महिला दिवस पर विशेष
दिनांकः- 8-3-2020
वारः- रविवार
विधाः- छन्द मुक्त
विषयः-यत्र नारीयस्य पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता
यत्र नारीयस्य पूज्यन्ते, रमन्ते हैं तत्र ही देवता।
यत्र नारीस्य न पूज्यन्ते, रमन्ते न तत्र देवता ।।
बोलो भारत माता की जय,गौमाता की भी जय ।
भूमाता की जय,सभी देवियों व माताओं की जय।।
दिया जाता भारत में नारी को देवी का ही स्थान।
रोका जाता पर जाने से उनको, देवों के ही स्थान।।
जा तो सकता है पूत उनका, करने को पूजा जहाँ ।
जा नहीं सकती परन्तु माता, करने को पूजा वहाँ ।।
भगवान शिव करते प्रदान, नारियों को वांछित वर ।
जाने देते हैं नहीं नारियों को, त्रियंबकम के ही दर ।।
करते हैं भगवान शनिदेव तो, सभी के साथ न्याय ।
देते हैं दंड उनको ही वह, करते रहते जो अन्याय ।।
डरते क्यों हो जाती वह मांगने, शनि देव से न्याय ।
बचायेंगे शनिदेव उन्हें, करोगे उन पर जब अन्याय।।
रोको तभी उनको,जायो जब वह किसी गलत स्थान ।
मूर्खता है रोकना उन्हें जाने से, रहते जहाँ भगवान ।।
रोकेगा जो भी भक्तों को, पास भगवान के जाने से ।
जायेगा घोर नरक में वह,उन्हीं भगवानों के शाप से ।।
करते रहोगे तुम यदि, ऐसे ही अमानवीय अत्याचार ।
पड़ेगी भगवान शिव एवं शनि दोनों की,तुम पर मार।।
किया है माताओं आपने तो, अनेकों असुरों का संहार ।
थे मुख्य जिनमें,भयंकर शंभु,ऩिशुम्भ तथा महिषासुर ।।
पा नहीं सकेंगे मिलकर, सारे दरिन्दे कभी आपसे पार ।
आपको रोकने वाले, सहेंगे समस्त भगवानों का कहर ।।
प्रथा के नाम पर चलतीं भारतवर्ष में अनेकों कुप्रथायें ।
थी मुख्य जिनमें,बाल विवाह व बहुत सी गलत प्रथायें ।।
था नहीं कहीं भी सम्पत्ति पर, महिलाओं का अधिकार ।
मायके तथा ससुराल दोनों में ही, दिया जाता था नकार।।
हो गयीं समाप्त, ऐसी सभी समस्त कुप्रथायें व अन्याय ।
चलती नहीं प्रथा के नाम पर, कोई कुप्रथा या अन्याय ।।
है राय व्यथित हृदय की यही,करती रहें मातायें प्रतिकार ।
कृपा से भगवान की ही,मिलेगा उन्हें भी उनका अधिकार।।
जाने न दो माताओं पुत्रों को अपने,पूजा के उन स्थानों पर।
रोका जाता है आप को जाने से, पूजा के जिन स्थानों पर।।
रहता नहीं है भगवान भी श्रीमान,ऐसे किसी भी स्थान पर ।
रोका जाता जाने से, उनके भक्तों को ही जिस स्थान पर।।
माताओं से प्रार्थना मेरी,करें मिलकर वह ऐसी कोई युक्ति।
मिले भगवानों को भी हमारे, जालिमों के बन्धन से मुक्ति।।
दर पर प्रभु के स्थानों पर जाने का दूसरा भी है एक दस्तूर ।
हँसा दें किसी मजबूर को, हो हँसी लबों से जिसके बड़ी दूर ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनांकः- 8-3-2020
वारः- रविवार
विधाः- छन्द मुक्त
विषयः-यत्र नारीयस्य पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता
यत्र नारीयस्य पूज्यन्ते, रमन्ते हैं तत्र ही देवता।
यत्र नारीस्य न पूज्यन्ते, रमन्ते न तत्र देवता ।।
बोलो भारत माता की जय,गौमाता की भी जय ।
भूमाता की जय,सभी देवियों व माताओं की जय।।
दिया जाता भारत में नारी को देवी का ही स्थान।
रोका जाता पर जाने से उनको, देवों के ही स्थान।।
जा तो सकता है पूत उनका, करने को पूजा जहाँ ।
जा नहीं सकती परन्तु माता, करने को पूजा वहाँ ।।
भगवान शिव करते प्रदान, नारियों को वांछित वर ।
जाने देते हैं नहीं नारियों को, त्रियंबकम के ही दर ।।
करते हैं भगवान शनिदेव तो, सभी के साथ न्याय ।
देते हैं दंड उनको ही वह, करते रहते जो अन्याय ।।
डरते क्यों हो जाती वह मांगने, शनि देव से न्याय ।
बचायेंगे शनिदेव उन्हें, करोगे उन पर जब अन्याय।।
रोको तभी उनको,जायो जब वह किसी गलत स्थान ।
मूर्खता है रोकना उन्हें जाने से, रहते जहाँ भगवान ।।
रोकेगा जो भी भक्तों को, पास भगवान के जाने से ।
जायेगा घोर नरक में वह,उन्हीं भगवानों के शाप से ।।
करते रहोगे तुम यदि, ऐसे ही अमानवीय अत्याचार ।
पड़ेगी भगवान शिव एवं शनि दोनों की,तुम पर मार।।
किया है माताओं आपने तो, अनेकों असुरों का संहार ।
थे मुख्य जिनमें,भयंकर शंभु,ऩिशुम्भ तथा महिषासुर ।।
पा नहीं सकेंगे मिलकर, सारे दरिन्दे कभी आपसे पार ।
आपको रोकने वाले, सहेंगे समस्त भगवानों का कहर ।।
प्रथा के नाम पर चलतीं भारतवर्ष में अनेकों कुप्रथायें ।
थी मुख्य जिनमें,बाल विवाह व बहुत सी गलत प्रथायें ।।
था नहीं कहीं भी सम्पत्ति पर, महिलाओं का अधिकार ।
मायके तथा ससुराल दोनों में ही, दिया जाता था नकार।।
हो गयीं समाप्त, ऐसी सभी समस्त कुप्रथायें व अन्याय ।
चलती नहीं प्रथा के नाम पर, कोई कुप्रथा या अन्याय ।।
है राय व्यथित हृदय की यही,करती रहें मातायें प्रतिकार ।
कृपा से भगवान की ही,मिलेगा उन्हें भी उनका अधिकार।।
जाने न दो माताओं पुत्रों को अपने,पूजा के उन स्थानों पर।
रोका जाता है आप को जाने से, पूजा के जिन स्थानों पर।।
रहता नहीं है भगवान भी श्रीमान,ऐसे किसी भी स्थान पर ।
रोका जाता जाने से, उनके भक्तों को ही जिस स्थान पर।।
माताओं से प्रार्थना मेरी,करें मिलकर वह ऐसी कोई युक्ति।
मिले भगवानों को भी हमारे, जालिमों के बन्धन से मुक्ति।।
दर पर प्रभु के स्थानों पर जाने का दूसरा भी है एक दस्तूर ।
हँसा दें किसी मजबूर को, हो हँसी लबों से जिसके बड़ी दूर ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनांक-०८/०३/२०२०
आज का शीर्षक- 🙏नारी 🙏
विधा-रचना
=======================
नारी मन की अनुभूति समूचा विश्वभार नारी में।
सम्मोहन आधार समोन्नति का प्रसार नारी में।।
जितने हैं उत्कर्ष सभी का केन्द्र विन्दु नारी है।
कवियों का आह्लाद कल्पना लोक इन्दु नारी है।।
कृत्यशील संसार कभी नारी बिन नहीं अछूता।
मानुष को नग उत्तुंग चढ़ाना नारी का है बूता।।
आदिम युग से रही मनुज के साथ-साथ नारी है।
मानवता का मूल धर्म-ध्वज लिए हाथ नारी है।।
सागर मंथन हुआ रत्न चौदह में यह नारी थी।
जल-प्लावन जब हुआ साथ मनु के श्रद्धा नारी थी।।
प्रेंखा-दोला में सुला दिए त्रिदेव यही नारी थी।
हवन-कुण्ड में हव्य बनी पति हेत यही नारी थी।।
ब्रह्मवादिनी गर्ग गोत्र उत्पन्न यही नारी थी।
मर्दानी बनकर गोरों से लड़ी यही नारी थी।।
अथवा नारी यह कहाँ नहीं नारी से भरी कथाएँ।
भू मण्डल में घूम रहीं नारी की अनुशंशाएँ ।।
सत्य कर्म का आदि यही नारी स्वस्तिवाचन है।
नारी को है नमन हमारा नारी को वन्दन है।।
========================
'अ़क्स' दौनेरिया
आज का शीर्षक- 🙏नारी 🙏
विधा-रचना
=======================
नारी मन की अनुभूति समूचा विश्वभार नारी में।
सम्मोहन आधार समोन्नति का प्रसार नारी में।।
जितने हैं उत्कर्ष सभी का केन्द्र विन्दु नारी है।
कवियों का आह्लाद कल्पना लोक इन्दु नारी है।।
कृत्यशील संसार कभी नारी बिन नहीं अछूता।
मानुष को नग उत्तुंग चढ़ाना नारी का है बूता।।
आदिम युग से रही मनुज के साथ-साथ नारी है।
मानवता का मूल धर्म-ध्वज लिए हाथ नारी है।।
सागर मंथन हुआ रत्न चौदह में यह नारी थी।
जल-प्लावन जब हुआ साथ मनु के श्रद्धा नारी थी।।
प्रेंखा-दोला में सुला दिए त्रिदेव यही नारी थी।
हवन-कुण्ड में हव्य बनी पति हेत यही नारी थी।।
ब्रह्मवादिनी गर्ग गोत्र उत्पन्न यही नारी थी।
मर्दानी बनकर गोरों से लड़ी यही नारी थी।।
अथवा नारी यह कहाँ नहीं नारी से भरी कथाएँ।
भू मण्डल में घूम रहीं नारी की अनुशंशाएँ ।।
सत्य कर्म का आदि यही नारी स्वस्तिवाचन है।
नारी को है नमन हमारा नारी को वन्दन है।।
========================
'अ़क्स' दौनेरिया
शीर्षक- नारी
प्रथम प्रस्तुति
नारी भी आज चाहती है
पूर्ण स्वतंत्रता का अधिकार!
क्या नर कर पाएगा कभी
इस बात को सहर्ष स्वीकार!
शायद नही में बात होगी
जो दिख भी जाती मिरे यार!
बड़ी ही उलझन से भरा है
प्रश्न आज जो खड़ा है द्वार!
नारी का बाहर निकलना
अच्छा है मगर डर हजार!
नारी ऐसा रूप है जो
करता नर पर नशा खुमार!
मतवाला नर समझ न पाए
कर नही पाए सोच-विचार!
अपना घर तो अच्छा चाहे
मगर दूजे का कहाँ विचार!
कितनी घरेलू हिंसा की
होए नारी आज शिकार!
धन दौलत तो खूब कमाया
पर है कुंठाओं की कतार!
रेत पे महल बने दिखते
रिश्तों में दिखती दरार!
बाहर की सुन्दरता बाँकी
अन्दर की पीड़ायें रार!
रिश्ते आज छलावा दिखते
चमक दमक है बेशक अपार!
कितनी करले सूझबूझ पर
नारी आज भी है लाचार!
कंधे से कंधा मिलायी
किए हजार उसने उपकार!
फिर भी 'शिवम' एक भूल पर
विसार दे नर सारा प्यार!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम
प्रथम प्रस्तुति
नारी भी आज चाहती है
पूर्ण स्वतंत्रता का अधिकार!
क्या नर कर पाएगा कभी
इस बात को सहर्ष स्वीकार!
शायद नही में बात होगी
जो दिख भी जाती मिरे यार!
बड़ी ही उलझन से भरा है
प्रश्न आज जो खड़ा है द्वार!
नारी का बाहर निकलना
अच्छा है मगर डर हजार!
नारी ऐसा रूप है जो
करता नर पर नशा खुमार!
मतवाला नर समझ न पाए
कर नही पाए सोच-विचार!
अपना घर तो अच्छा चाहे
मगर दूजे का कहाँ विचार!
कितनी घरेलू हिंसा की
होए नारी आज शिकार!
धन दौलत तो खूब कमाया
पर है कुंठाओं की कतार!
रेत पे महल बने दिखते
रिश्तों में दिखती दरार!
बाहर की सुन्दरता बाँकी
अन्दर की पीड़ायें रार!
रिश्ते आज छलावा दिखते
चमक दमक है बेशक अपार!
कितनी करले सूझबूझ पर
नारी आज भी है लाचार!
कंधे से कंधा मिलायी
किए हजार उसने उपकार!
फिर भी 'शिवम' एक भूल पर
विसार दे नर सारा प्यार!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम
शीर्षक - ''नारी/वीरांगना"
द्वितीय प्रस्तुति
नारियों की वीरता से इतिहास भरा पड़ा है
ये वो देश जहाँ नारियों ने भी युद्ध लडा़ है ।।
भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का मुकुट
ऐसे अनेकानेक हीरे मोतियों से जडा़ है ।।
रानी लक्ष्मी बाई रानी दुर्गावती अबंतीबाई
जिन्होने शौर्य की परिभाषा जग को बताई ।।
युद्ध के मैदान में अँग्रेजों के दांत खट्टे किये
मरकर भी जिनकी कहानी अमर कहाई ।।
जीजाबाई , शिवाजी जैसे बेटे को जन्म दिया
वीरता क्या है नारी का सर गर्व से ऊँचा किया ।।
नारी का योगदान किसी माने कम न 'शिवम'
नारी ने भी नर के साथ जहर का घूँट पिया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"तृतीय प्रस्तुति
द्वितीय प्रस्तुति
नारियों की वीरता से इतिहास भरा पड़ा है
ये वो देश जहाँ नारियों ने भी युद्ध लडा़ है ।।
भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का मुकुट
ऐसे अनेकानेक हीरे मोतियों से जडा़ है ।।
रानी लक्ष्मी बाई रानी दुर्गावती अबंतीबाई
जिन्होने शौर्य की परिभाषा जग को बताई ।।
युद्ध के मैदान में अँग्रेजों के दांत खट्टे किये
मरकर भी जिनकी कहानी अमर कहाई ।।
जीजाबाई , शिवाजी जैसे बेटे को जन्म दिया
वीरता क्या है नारी का सर गर्व से ऊँचा किया ।।
नारी का योगदान किसी माने कम न 'शिवम'
नारी ने भी नर के साथ जहर का घूँट पिया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"तृतीय प्रस्तुति
🌷## नारी ##🌷
करना है जो प्रभु से यारी
पहले पूजना होगा नारी ।।
प्रभु न मंदिर मस्जिद में
यही भूल इंसान की भारी ।।
जहाँ मान नारी का होता
वहाँ होती समृद्धि सारी ।।
नारी को रचकर प्रभु ने
ये सुन्दर श्रृष्टि विस्तारी ।।
उसकी अनुपम रचना पर
गलत दृष्टि मानव ने डारी ।।
सारी लोक लज्जा को तज
मानव हुआ अब व्यभिचारी ।।
कैसे हो कल्याण ''शिवम"
नारी को बढ़ गई लाचारी ।।
भले कहें हम आज तरक्की
मानव मूल्य में लगी बीमारी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/03/2019
नारी शक्ति
नारी शक्ति अब तो जागो, हम अपनी लाज बचाएंगे।
कब तक डरोगी शैतानों से, वो कभी बाज न आएंगे।
किससे रक्षा माँग रही हो, कोई नहीं आता यहाँ पर,
देख नजारा हंस रहे लोग, तेरी रक्षा कैसे कर पाएंगे।
बातें करते बड़ी-बड़ी, बहला फुसलाते लोगों को,
स्वयं डरे हुए है फिर अब किसको क्या समझायेंगे।
कल तक डरती थी नारी, अब मजबूत बन जाएंगे,
मीडिया वाले अखबारों में, कबतक न्यूज छपवायेंगे।
बचकर रहना नारी तुम, अब इन दुष्ट नरपिशाचों से,
धोखे में नहीं आना इनके वरना बहुत पछतायेगे।
छोड़ो दया भावना नारी, तुम्हें दुर्गा रूप दिखाना है,
घात लगाए बैठे रावण, उसको सबक सिखाएंगे।
उठो नारी आँसू पौछों अपना रौद्र रूप दिखाना है,
हैवानों को सबक सिखा, उन्हें सही राह दिखाएंगे।।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
नारी शक्ति अब तो जागो, हम अपनी लाज बचाएंगे।
कब तक डरोगी शैतानों से, वो कभी बाज न आएंगे।
किससे रक्षा माँग रही हो, कोई नहीं आता यहाँ पर,
देख नजारा हंस रहे लोग, तेरी रक्षा कैसे कर पाएंगे।
बातें करते बड़ी-बड़ी, बहला फुसलाते लोगों को,
स्वयं डरे हुए है फिर अब किसको क्या समझायेंगे।
कल तक डरती थी नारी, अब मजबूत बन जाएंगे,
मीडिया वाले अखबारों में, कबतक न्यूज छपवायेंगे।
बचकर रहना नारी तुम, अब इन दुष्ट नरपिशाचों से,
धोखे में नहीं आना इनके वरना बहुत पछतायेगे।
छोड़ो दया भावना नारी, तुम्हें दुर्गा रूप दिखाना है,
घात लगाए बैठे रावण, उसको सबक सिखाएंगे।
उठो नारी आँसू पौछों अपना रौद्र रूप दिखाना है,
हैवानों को सबक सिखा, उन्हें सही राह दिखाएंगे।।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
विधा-हाइकु
विषय-नारी/महिला दिवस
××××××××××××
1)
मार्च की भोर~
बलत्कार मामला
थाना में दर्ज
2)
नारी स्लोगन ~
आरोप पत्र पर
आठ तारिख
3)
नारी दिवस ~
बन्दूक स्वर संग
खनकी चूड़ी
4)
नारी दिवस~
चून्नी पैराशूट ले
छत से कूदी
5)
नव कोपल~
नारी के हस्ताक्षर
दस्तावेज में
6)
नारी के स्वर~
कार्यालय मेज में
बिन्दी चिपकी
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
विषय-नारी/महिला दिवस
××××××××××××
1)
मार्च की भोर~
बलत्कार मामला
थाना में दर्ज
2)
नारी स्लोगन ~
आरोप पत्र पर
आठ तारिख
3)
नारी दिवस ~
बन्दूक स्वर संग
खनकी चूड़ी
4)
नारी दिवस~
चून्नी पैराशूट ले
छत से कूदी
5)
नव कोपल~
नारी के हस्ताक्षर
दस्तावेज में
6)
नारी के स्वर~
कार्यालय मेज में
बिन्दी चिपकी
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
बिषयःः*नारी/स्त्री/महिला/महिला दिवस*
विधाःःकाव्यःः
नारी में सब सृष्टि समाई।
नारी अलौकिक दृष्टि पाई।
नारी नहीं है हमें अमान्या।
नारी है हम सबकी जन्या।
नारी है हम सबकी जननी।
नारी हमारी माता बहनी।
नारी हृदय से धवला है।
नारी सवला नहीं अवला है।
नारी हैं ममता की मूरत।
नारी है समता की सूरत।
नारी अद्भुत अजब पहेली।
नारी संगत गजब सहेली।
नारी सारे जगत की माता।
नारी सबकी सच्ची माता।
नारी संस्कृति संस्कार देती है।
नारी प्रकृति श्रंगार देती है।
नारी नहीं रही अज्ञानी।
नारी हस्ती जानीमानी।
नारी नर रथ दो पहिया।
नारी नर हैं नाव चलैया।
नारी सच गंगाजल धारा।
नारी नर का बडा सहारा।
नारी ने नारायण पाले।
नारी त्रिदेव झूले में डाले।
नारी होती बहुत शुभांगी।
नारी होती कभी वीरांगी।
नारी कभी कम नहीं पडती है।
नारी सदैव दम से लडती है।
नारी नभचर जलचर थलचर।
नारी हर प्रकार से बलभर।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधाःःकाव्यःः
नारी में सब सृष्टि समाई।
नारी अलौकिक दृष्टि पाई।
नारी नहीं है हमें अमान्या।
नारी है हम सबकी जन्या।
नारी है हम सबकी जननी।
नारी हमारी माता बहनी।
नारी हृदय से धवला है।
नारी सवला नहीं अवला है।
नारी हैं ममता की मूरत।
नारी है समता की सूरत।
नारी अद्भुत अजब पहेली।
नारी संगत गजब सहेली।
नारी सारे जगत की माता।
नारी सबकी सच्ची माता।
नारी संस्कृति संस्कार देती है।
नारी प्रकृति श्रंगार देती है।
नारी नहीं रही अज्ञानी।
नारी हस्ती जानीमानी।
नारी नर रथ दो पहिया।
नारी नर हैं नाव चलैया।
नारी सच गंगाजल धारा।
नारी नर का बडा सहारा।
नारी ने नारायण पाले।
नारी त्रिदेव झूले में डाले।
नारी होती बहुत शुभांगी।
नारी होती कभी वीरांगी।
नारी कभी कम नहीं पडती है।
नारी सदैव दम से लडती है।
नारी नभचर जलचर थलचर।
नारी हर प्रकार से बलभर।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
-- मैं पत्थर हूं --
मैं पत्थर हूं
अहल्या नहीं
जो राम कंहा से मिले
मुझे तो गौतम
की जगह
इंद्र मिले
औरत पीड़ा की
मिट्टी से बनी
और प्रेम बाटती रही
इसे तुमने मेरी
कमजोरी समझा
जीवन भर
मुझे दर्द सालता रहा
मेरे हक की लड़ाई
किसने लड़ी
राम तुम्हारा मुझ पर
इतना भी विस्वास न रहा
जो ली मेरी
अग्नि परीक्षा
जिस अवस्था में
घर की
देहरी लांघी
नहीं जाती वंहा
मर्यादा पुरुषोत्तम
तुमने वनवास दिया
क्या माँ बनना
अपराध था
द्रोपदी का
चीरहरण होता रहा
और सब
चुपचाप देखते रहे
सहसा मुट्टी भर
सपने लाऊंगी
उन्हें कांच सा
तोड़ देना
मेरे बचे खुचे
विस्वास को
रेत में बिखेर देना
तुम मेरे
अरमान हो
आँचल में भरी चांदनी
पर रात में उड़ेल देना
मेरा अंहकार हो तुम
तुम्हारा साथ हो तो
रात में भी
सूरज लपेट लुंगी
और तुम
दिन में
हर एक नारी
जलता हुआ
सवाल है
ससुराल डोली में आना
और अर्थी में जाना
यही मेरी नियति हैं
तुम्हारा विस्वास
मैं नहीं
पर तुम
अपने हो ।
भूपेश भ्रमर
08-03-2020
**हे नारी तुझे नत नमन**हे नारी तुझे नत नमन।
तुमसे ही अर्जित यह जीवन।।
किलक पुलक भरे मंगल मोद में।
पोषित बाल निहाल तव गोद में।।
जननि-आँचल की सुखद छाया।
सुरक्षित शैशव खूब लहराया।।
उँगलियों को तेरी लिए जो थाम।
डगमग-पग संबल बने निष्काम।।
जनकजननि जयति जय जगदीश।
अगणित अतिवृष्टि नित आशीष ।।
भगिनी भाव भरी बलिहारी।
रक्षा-सूत-अद्भुत की अधिकारी।।
लेप ललाट ललित अक्षत चंदन।
विघ्न-हरण हेतु नित प्रभु-वंदन।।
पौरुष-प्रखर की प्रवर अभिव्यक्ति।
हे संगिनी तू संबल औ’ शक्ति।।
गृहस्थी-अंग, अभिन्न अनिवार्य।
धुरी अचल, सबल केंद्रविंदु धार्य।।
ऋद्धि-सिद्धि अरु सकल समृद्धि ।
सृजन सारांश अरु वंशवेल-वृद्धि।।
तनया तव तुनक-तरंग अनुतान।
जीवन-बोध भरे विभव मुस्कान।।
फुदक फुदक गौरैया सम चहके।
सुता सुरभि-सी आँगन में महके।।
साधित, संधित नवल कुल-गोत्र।
अनुगुंजित सकल धवल स्तोत्र।।
सृष्टि-चक्र का अनवरत घूर्णन।
हे नारी तुझे नत नमन।।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
**हे नारी तुझे नत नमन**हे नारी तुझे नत नमन।
तुमसे ही अर्जित यह जीवन।।
किलक पुलक भरे मंगल मोद में।
पोषित बाल निहाल तव गोद में।।
जननि-आँचल की सुखद छाया।
सुरक्षित शैशव खूब लहराया।।
उँगलियों को तेरी लिए जो थाम।
डगमग-पग संबल बने निष्काम।।
जनकजननि जयति जय जगदीश।
अगणित अतिवृष्टि नित आशीष ।।
भगिनी भाव भरी बलिहारी।
रक्षा-सूत-अद्भुत की अधिकारी।।
लेप ललाट ललित अक्षत चंदन।
विघ्न-हरण हेतु नित प्रभु-वंदन।।
पौरुष-प्रखर की प्रवर अभिव्यक्ति।
हे संगिनी तू संबल औ’ शक्ति।।
गृहस्थी-अंग, अभिन्न अनिवार्य।
धुरी अचल, सबल केंद्रविंदु धार्य।।
ऋद्धि-सिद्धि अरु सकल समृद्धि ।
सृजन सारांश अरु वंशवेल-वृद्धि।।
तनया तव तुनक-तरंग अनुतान।
जीवन-बोध भरे विभव मुस्कान।।
फुदक फुदक गौरैया सम चहके।
सुता सुरभि-सी आँगन में महके।।
साधित, संधित नवल कुल-गोत्र।
अनुगुंजित सकल धवल स्तोत्र।।
सृष्टि-चक्र का अनवरत घूर्णन।
हे नारी तुझे नत नमन।।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
स्वतंत्र सृजन
दिनांक-08/03/2020
कविता -स्वयं युद्ध करो नारी.... एक ध्रुव सत्य
चल उठ स्त्री बांध कफन
बचा ले स्वयं तू अपना वसन
कोई रक्षक अब नहीं आएगा
हत्या ,शोषण, बलात्कार से अब
कोई तुझे नहीं बचाने आयेगा
स्नेह की आस किससे लगाओगी
स्तन पर नजरें टिकाए बैठे हैं सब
दुःशासन से ना बच पाओगी
कैसी आस लगा रखी है तुमने
जिस्म के ठेकेदारों से
खुद की रक्षा ,खुद के सिर है
कब तक【 बेचारी 】कहलाओगी
समाज के इजारेदारो से
व्यूह की रचना कर चुके हैं शकुनि
स्वयं को कितना सताओगी
खुद ही अपनी शील बचा लो
बेदर्दी हथियारों से
छोड़ो संताप, उठ जा अब भोग्या
कोई नहीं अब बचाने आएगा
रावण के पहरेदारों से
हे नारी.......
तुम हो कंचन कामिनी
तुम हो अतुल्य दामिनी
तुम हो भाव भंगिनी
तुम हो राग रागिनी
तुम हो जीवन संगिनी
आगाज के साथ करो सामना
साध्य को भेदो , साधन को छोड़ो
ईश्वर भी चरणों में शीश नवायेगा
तुम ही हो लक्ष्य की अतुल साधना
स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
दिनांक-08/03/2020
कविता -स्वयं युद्ध करो नारी.... एक ध्रुव सत्य
चल उठ स्त्री बांध कफन
बचा ले स्वयं तू अपना वसन
कोई रक्षक अब नहीं आएगा
हत्या ,शोषण, बलात्कार से अब
कोई तुझे नहीं बचाने आयेगा
स्नेह की आस किससे लगाओगी
स्तन पर नजरें टिकाए बैठे हैं सब
दुःशासन से ना बच पाओगी
कैसी आस लगा रखी है तुमने
जिस्म के ठेकेदारों से
खुद की रक्षा ,खुद के सिर है
कब तक【 बेचारी 】कहलाओगी
समाज के इजारेदारो से
व्यूह की रचना कर चुके हैं शकुनि
स्वयं को कितना सताओगी
खुद ही अपनी शील बचा लो
बेदर्दी हथियारों से
छोड़ो संताप, उठ जा अब भोग्या
कोई नहीं अब बचाने आएगा
रावण के पहरेदारों से
हे नारी.......
तुम हो कंचन कामिनी
तुम हो अतुल्य दामिनी
तुम हो भाव भंगिनी
तुम हो राग रागिनी
तुम हो जीवन संगिनी
आगाज के साथ करो सामना
साध्य को भेदो , साधन को छोड़ो
ईश्वर भी चरणों में शीश नवायेगा
तुम ही हो लक्ष्य की अतुल साधना
स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
08/03/2020रविवार
विषय-नारी/स्त्री/महिला
विधा-हाइकु
🤡👘🤡👘🤡👘
नारी महिमा
करते गुणगान
वेद-पुराण👌
स्त्री महिमा
बखानी नहीं जाए
लिखेगा कौन?👍
नारी श्रृंगार
बजती पायलिया
बाजे चूड़ियाँ💐
सधवा स्त्री की
पहचान चूड़ियाँ
माथे बिंदिया🌷
सारी दुनिया
उतारे न उतरे
ऋण जिसका🔥
नारी सम्मान
सब दिन करना
आज ही क्यों जी?
🌲🌲🌲🌲🌲🌲
श्रीराम साहू अकेला
विषय-नारी/स्त्री/महिला
विधा-हाइकु
🤡👘🤡👘🤡👘
नारी महिमा
करते गुणगान
वेद-पुराण👌
स्त्री महिमा
बखानी नहीं जाए
लिखेगा कौन?👍
नारी श्रृंगार
बजती पायलिया
बाजे चूड़ियाँ💐
सधवा स्त्री की
पहचान चूड़ियाँ
माथे बिंदिया🌷
सारी दुनिया
उतारे न उतरे
ऋण जिसका🔥
नारी सम्मान
सब दिन करना
आज ही क्यों जी?
🌲🌲🌲🌲🌲🌲
श्रीराम साहू अकेला
विधा- कविता।
जग में भी देवलोक में भी मिले
मुझे सम्मान इतना ज्यादा।
कहतेभी देते सभी उच्च स्थान
नारी तू नारायणी सुख प्रदाता।।
नारी हूं ,नारी हूं ,मैं नारी हूं
नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं ।
जग में इक पहचान मिले,
मान मिले ,सम्मान मिले,
मैं भी हूं ,अभिमान जगे।
मस्तक स्वाभिमान सजे।
मैं हूं इसकी अधिकारी ।।
नारी हूं ....
ना ही हूं भूखी दौलत की,
ना भूखी शौहरत की,
बस थोड़ा अपनापन हो
और हो थोड़ा भरोसा।
बस चाहूं इतनी हकदारी।।
नारी हूं.....
सुख-दुख सबका अपना मानूं,
हर कर्तव्य निबाहूं,
गृहस्थ संजोए,जान लगा दूं,
कुछ न फिर भी चाहूं।
हर रात सुबह की करती,मैं तैयारी।।
नारी हूं.....
संघर्षों से मैं ना घबराऊं,
मुश्किल में मैं डट जाऊं,
घर-संसार बचाने को मैं
तूफानों से भी भिड़ जाऊं।
चाहे आजाये कोई प्रलयंकारी।।
नारी हूं, नारी हूं ,मैं नारी हूं।
नर को जननेवाली मैं ही नारी हूं।।
*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
जग में भी देवलोक में भी मिले
मुझे सम्मान इतना ज्यादा।
कहतेभी देते सभी उच्च स्थान
नारी तू नारायणी सुख प्रदाता।।
नारी हूं ,नारी हूं ,मैं नारी हूं
नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं ।
जग में इक पहचान मिले,
मान मिले ,सम्मान मिले,
मैं भी हूं ,अभिमान जगे।
मस्तक स्वाभिमान सजे।
मैं हूं इसकी अधिकारी ।।
नारी हूं ....
ना ही हूं भूखी दौलत की,
ना भूखी शौहरत की,
बस थोड़ा अपनापन हो
और हो थोड़ा भरोसा।
बस चाहूं इतनी हकदारी।।
नारी हूं.....
सुख-दुख सबका अपना मानूं,
हर कर्तव्य निबाहूं,
गृहस्थ संजोए,जान लगा दूं,
कुछ न फिर भी चाहूं।
हर रात सुबह की करती,मैं तैयारी।।
नारी हूं.....
संघर्षों से मैं ना घबराऊं,
मुश्किल में मैं डट जाऊं,
घर-संसार बचाने को मैं
तूफानों से भी भिड़ जाऊं।
चाहे आजाये कोई प्रलयंकारी।।
नारी हूं, नारी हूं ,मैं नारी हूं।
नर को जननेवाली मैं ही नारी हूं।।
*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
स्वरचित, दूसरी रचना।
त्याग,समर्पण, संयम,नारी की पहचान।
सद्गगुणों काअद्भुत संगम,नारी की है जान।।
********
जो न होते ये सब उसमें,पृथ्वी कैसे बनती।
होता न सर्वभाव शांत तो प्रकृति कैसे बुनती।।
********
जननी है वो वीर-धीरों , गंगाजल सी बहती।
खुशहाली का अंकुर उसमें,उर्वराशक्ति वो बनती।।
********
चाहे गर,घर स्वर्ग बने और बच्चे हों संस्कारी।
न हो नारीत्व के गुण सम्पूरण,आत्मा बने कुविचारी।।
********
दो थोड़ा सम्मान-मान,जिसकी है अधिकारी।
दो मौका जनमने-खिलने का महके बगिया सारी।।
********
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
त्याग,समर्पण, संयम,नारी की पहचान।
सद्गगुणों काअद्भुत संगम,नारी की है जान।।
********
जो न होते ये सब उसमें,पृथ्वी कैसे बनती।
होता न सर्वभाव शांत तो प्रकृति कैसे बुनती।।
********
जननी है वो वीर-धीरों , गंगाजल सी बहती।
खुशहाली का अंकुर उसमें,उर्वराशक्ति वो बनती।।
********
चाहे गर,घर स्वर्ग बने और बच्चे हों संस्कारी।
न हो नारीत्व के गुण सम्पूरण,आत्मा बने कुविचारी।।
********
दो थोड़ा सम्मान-मान,जिसकी है अधिकारी।
दो मौका जनमने-खिलने का महके बगिया सारी।।
********
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
शीर्षक -नारी/ महिला/शक्ति/
०८/०३/२०२०
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नारी नारी न कहो |
नारी नर से महान|
सकल जगत में पूज्य है|
उपकारी वरदान स्वरूप|
माँ की ममतामयी आभा|
बहन का उत्तम आशीष|
पत्नी का कल्याणी भाव|
नारी से उपजै सभी है|
जगकारी कल्याणी आशीर्वचन||
शुभाशया नारी दिवस
शुभाशया नारी शक्ति|
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार# अमरा
०८/०३/२०२०
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नारी नारी न कहो |
नारी नर से महान|
सकल जगत में पूज्य है|
उपकारी वरदान स्वरूप|
माँ की ममतामयी आभा|
बहन का उत्तम आशीष|
पत्नी का कल्याणी भाव|
नारी से उपजै सभी है|
जगकारी कल्याणी आशीर्वचन||
शुभाशया नारी दिवस
शुभाशया नारी शक्ति|
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार# अमरा
विषय। नारी/महिला
दिनांक 8/032020
नारी तू माँ के रुप में
शीतल मधुर छाया है
जिसमें पल्लवित होता
बचपन और काया है।
नारी तू बेटी के रुप में
एक सुखद अहसास है
जिसके इर्द गिर्द खेलती
सुखानुभूति पराई आस है
नारी तू पत्नी के रूप में
दुर्गा, सावित्री, सीता है
जिसने यमराज से लड़कर
पति के प्राणों को जीता है
नारी तू ननद के रुप में
चुलबुली,शरारती थोड़ी है
जिससे घर में महकती
ननद,भाभी की जोड़ी है
जब तू ने कलम संभाली
एक जोरदार किरदार निभाया
जिसकी लेखनी की छत्रछाया
समाज घर परिवार आया।
स्वरचित
दिनांक 8/032020
नारी तू माँ के रुप में
शीतल मधुर छाया है
जिसमें पल्लवित होता
बचपन और काया है।
नारी तू बेटी के रुप में
एक सुखद अहसास है
जिसके इर्द गिर्द खेलती
सुखानुभूति पराई आस है
नारी तू पत्नी के रूप में
दुर्गा, सावित्री, सीता है
जिसने यमराज से लड़कर
पति के प्राणों को जीता है
नारी तू ननद के रुप में
चुलबुली,शरारती थोड़ी है
जिससे घर में महकती
ननद,भाभी की जोड़ी है
जब तू ने कलम संभाली
एक जोरदार किरदार निभाया
जिसकी लेखनी की छत्रछाया
समाज घर परिवार आया।
स्वरचित
नारी
ए नारी तू,शक्तिदिखा दे--2
चलती है, तेरे ही तो दमपे, ये सारी दुनिया, हैना
(01)
घूंघट के परदों से,पनघट के रस्तो से
सदियों की बेड़ी को तूने तोड़ दिया
घूँघट के परदों से ,पनघट के रस्तो से
सदियों की बेडी को तूने तोड़ दिया
तूने बढ़ाया हैं शिखर को हर कदम
लाss ला ss ला ss
फहरा दिया है, हैं हिमाला परचम
ए नारी........ दिखादे
चलती.........
हैना
ए शक्ति....
(02)
मन् में ठानी हैं, गहराइयां नापी हैं
तू ही तो श्रद्धा हैं, तू ही तो *प्रिया* हैं
मन में जो ठानी हैं, गहराइयाँ नापी हैं
तू ही श्रद्धा हैं, तू ही तो *प्रिया* हैं
तेरा तो नाताsss, एक पहेली हैं sss
ला ला ला ssss
पूजा की थाली से युद्व को चली
ए नारी ........ दिखादे--2
हैं शक्ति
ला ला ला ssss
ला ला ला ला ला ला--2
हैं ना
ए नारी तू शक्ति दिखादे
शक्ति दिखादे
शक्तिदिखादे
*******************
प्रीति राठी,स्वरचित
ए नारी तू,शक्तिदिखा दे--2
चलती है, तेरे ही तो दमपे, ये सारी दुनिया, हैना
(01)
घूंघट के परदों से,पनघट के रस्तो से
सदियों की बेड़ी को तूने तोड़ दिया
घूँघट के परदों से ,पनघट के रस्तो से
सदियों की बेडी को तूने तोड़ दिया
तूने बढ़ाया हैं शिखर को हर कदम
लाss ला ss ला ss
फहरा दिया है, हैं हिमाला परचम
ए नारी........ दिखादे
चलती.........
हैना
ए शक्ति....
(02)
मन् में ठानी हैं, गहराइयां नापी हैं
तू ही तो श्रद्धा हैं, तू ही तो *प्रिया* हैं
मन में जो ठानी हैं, गहराइयाँ नापी हैं
तू ही श्रद्धा हैं, तू ही तो *प्रिया* हैं
तेरा तो नाताsss, एक पहेली हैं sss
ला ला ला ssss
पूजा की थाली से युद्व को चली
ए नारी ........ दिखादे--2
हैं शक्ति
ला ला ला ssss
ला ला ला ला ला ला--2
हैं ना
ए नारी तू शक्ति दिखादे
शक्ति दिखादे
शक्तिदिखादे
*******************
प्रीति राठी,स्वरचित
8/3/2020/रविवार
*स्त्री/नारी/महिला/महिला दिवस*
काव्य
नारी तुम मान,सम्मान, अभिमान हो।
तुम स्वयं ही स्वयं का उपमान हो।
तुम सेवा की मूरत देवी की सूरत,
अपना ही स्वाभिमान हो।
ममताभरी, समतामयी
करुणा भरी दयामयी
दामिनी सा भान हो।
तुम ही शक्ति सामर्थ्य
सदैव वलवान हो।
नारी तुम नारायणी
सुखदा हो कल्याणी
दुर्गा मात भवानी
इस क्षितिज में उड़ान हो।
तुम स्वर्णिम इतिहास रचो विश्व की पहचान हो।
प्रेम से ओत प्रोत जीवन की ज्योत
गृह लक्ष्मी महान हो।
नारी जगताधार इस संसार में समाज की
समाधान वरदान हो।
तुम धीर वीर गंभीर
शील मर्यादाओं का चीर,
आस विश्वास हंस परिहास के पास हो।
तुम गगन विहारनी
गुरु माता सुहागिनी
प्रतिस्पर्धाओं में खास हो।
सहनशील विवेकशील
सामान्य प्रशासन में सफलता का रूप हो।
प्रेरणापरक प्रतिस्पर्धी
कहीं छांव धूप का स्वरूप हो।
नारी तुम वलिदानी बुद्धिदानी, खानदानी शान हो।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
जयजय श्रीराम रामजी
भा,2*स्त्री/नारी/महिला/महिला दिवस*काव्य
8/3/2020/रविवार
*स्त्री/नारी/महिला/महिला दिवस*
काव्य
नारी तुम मान,सम्मान, अभिमान हो।
तुम स्वयं ही स्वयं का उपमान हो।
तुम सेवा की मूरत देवी की सूरत,
अपना ही स्वाभिमान हो।
ममताभरी, समतामयी
करुणा भरी दयामयी
दामिनी सा भान हो।
तुम ही शक्ति सामर्थ्य
सदैव वलवान हो।
नारी तुम नारायणी
सुखदा हो कल्याणी
दुर्गा मात भवानी
इस क्षितिज में उड़ान हो।
तुम स्वर्णिम इतिहास रचो विश्व की पहचान हो।
प्रेम से ओत प्रोत जीवन की ज्योत
गृह लक्ष्मी महान हो।
नारी जगताधार इस संसार में समाज की
समाधान वरदान हो।
तुम धीर वीर गंभीर
शील मर्यादाओं का चीर,
आस विश्वास हंस परिहास के पास हो।
तुम गगन विहारनी
गुरु माता सुहागिनी
प्रतिस्पर्धाओं में खास हो।
सहनशील विवेकशील
सामान्य प्रशासन में सफलता का रूप हो।
प्रेरणापरक प्रतिस्पर्धी
कहीं छांव धूप का स्वरूप हो।
नारी तुम वलिदानी बुद्धिदानी, खानदानी शान हो।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
जयजय श्रीराम रामजी
भा,2*स्त्री/नारी/महिला/महिला दिवस*काव्य
8/3/2020/रविवार
आज का शीर्षक-
🙏नारी ऋण🙏
विधा-रचना
=======================
कौन कहता है कि अबला हैं नारियाँ
हर समय सबला रही हैं नारियाँ।
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
नारी और पुरुष
इसीलिए अर्धांगिनी भी
कहलाती हैं नारियाँ।
दिल में करुणा, प्रेम प्यार,
मुहब्बत और स्नेह का भण्डार,
रखतीं हैं नारियाँ।
माँ, बहन ,बेटी, प्रेयसी और पत्नी,
हर रूप में पुरुषों का साथ,
निभातीं हैं नारियाँ।
नहीं हैं किसी भी क्षेत्र में,
पुरुषों से वो कभी पीछे,
जौहर सा बलिदान,
दिखतीं हैं नारियाँ।
झूठ यदि मानो ,
हमारी बात को,
तो इतिहास के पन्नों को,
उठाकर के देख लो।
जब हारा पुरुष।,
तो तेग भी उठातीं हैं नारियाँ।
पर हे! पुरुष प्रधान समाज
नारी को क्या दिया तूने।
पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण,
सभी तो है बनाये।
पर क्यों नहीं नारी ऋण,
बनाया तूने।
विधाता की रचना को,
नौ माह गर्भ में धारण करके,
जिसने जन्म दिया तुझको।
क्या?उसका भी ,
कभी कोई ऋण,
चुकाया तूने।
========================
स्वरचित
शिवेंद्र सिंह चौहान"सरल"
ग्वालियर मध्यप्रदेश
🙏नारी ऋण🙏
विधा-रचना
=======================
कौन कहता है कि अबला हैं नारियाँ
हर समय सबला रही हैं नारियाँ।
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
नारी और पुरुष
इसीलिए अर्धांगिनी भी
कहलाती हैं नारियाँ।
दिल में करुणा, प्रेम प्यार,
मुहब्बत और स्नेह का भण्डार,
रखतीं हैं नारियाँ।
माँ, बहन ,बेटी, प्रेयसी और पत्नी,
हर रूप में पुरुषों का साथ,
निभातीं हैं नारियाँ।
नहीं हैं किसी भी क्षेत्र में,
पुरुषों से वो कभी पीछे,
जौहर सा बलिदान,
दिखतीं हैं नारियाँ।
झूठ यदि मानो ,
हमारी बात को,
तो इतिहास के पन्नों को,
उठाकर के देख लो।
जब हारा पुरुष।,
तो तेग भी उठातीं हैं नारियाँ।
पर हे! पुरुष प्रधान समाज
नारी को क्या दिया तूने।
पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण,
सभी तो है बनाये।
पर क्यों नहीं नारी ऋण,
बनाया तूने।
विधाता की रचना को,
नौ माह गर्भ में धारण करके,
जिसने जन्म दिया तुझको।
क्या?उसका भी ,
कभी कोई ऋण,
चुकाया तूने।
========================
स्वरचित
शिवेंद्र सिंह चौहान"सरल"
ग्वालियर मध्यप्रदेश
विषय -स्त्री /नारी/ महिला
दिनांक- 08/03/2020
नारी तुम केवल श्रद्धा हो....
त्याग तपस्या ममता की मूरत
आत्मविश्वास से भरी हुई
घर- घर कि तुम शोभा हो।
सुबह से शाम तक दौड़ लगाती
तुम अपना ध्यान न रख पाती
पति की चादर ,बच्चों का बिछौना
रातों को भी तुम सो न पाती ।
पूजा की घंटी जब बजती
तभी सुबह होती है सबकी
रहते तुमसे सब आस लगाए
तुमको कोई समझ ना पाए।
सम -स्थित में देवी बन जाती
विषम परिस्थिति दुर्गा बन जाती
पत्नी ,प्रेयसी, दादी ,नानी,.......
मां बहना बन हर रिश्ता निभाती।
हर ख्वाब अधूरे रखती ....
पीयूष स्रोत सी बहा करती
कलियों की तरह खिलती रहती
सब की खुशियों में खुश रहती।
नारी तुम केवल................
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
दिनांक- 08/03/2020
नारी तुम केवल श्रद्धा हो....
त्याग तपस्या ममता की मूरत
आत्मविश्वास से भरी हुई
घर- घर कि तुम शोभा हो।
सुबह से शाम तक दौड़ लगाती
तुम अपना ध्यान न रख पाती
पति की चादर ,बच्चों का बिछौना
रातों को भी तुम सो न पाती ।
पूजा की घंटी जब बजती
तभी सुबह होती है सबकी
रहते तुमसे सब आस लगाए
तुमको कोई समझ ना पाए।
सम -स्थित में देवी बन जाती
विषम परिस्थिति दुर्गा बन जाती
पत्नी ,प्रेयसी, दादी ,नानी,.......
मां बहना बन हर रिश्ता निभाती।
हर ख्वाब अधूरे रखती ....
पीयूष स्रोत सी बहा करती
कलियों की तरह खिलती रहती
सब की खुशियों में खुश रहती।
नारी तुम केवल................
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
शीर्षक ... ''मोहिनी नारी''
*************************
आयुद्धों से भरे हुए भण्डार है मोहिनी नारी के।
नयना तीर कमान बिछाये जाल है मोहिनी नारी के।
माया ममता महबूबा से भाव है मोहिनी नारी के।
अभी तो है शुरूवात अनेको रंग है मोहिनी नारी के।
**
शतरूपा से शुरू हुआ संसार है मोहिनी नारी के।
त्रिदेवी का नाम हुआ अवतार है मोहिनी नारी के।
जटिला भामा भोगदा यह सृष्टि है मोहिनी नारी के।
शेर करे शुरूवात लिखे काव्य है मोहिनी नारी के।
**
उदित भाग्य बाबुल करे श्रृँगार है मोहिनी नारी के।
बेटी बने सौभाग्य गढे सम्मान है मोहिनी नारी के।
दो घर जोडे आप बढाए मान है मोहिनी नारी के।
ईश्वर का वरदान बनाए भाग्य है मोहिनी नारी के।
**
सृजन करे संघार दे जीवनदान है मोहिनी नारी के।
धरा समाहित आचँल मे सृष्टि है मोहिनी नारी के।
शेर कहे इक बात हृदय से मान है मोहिनी नारी के।
त्याग की है भंडार नही लाचार है मोहिनी नारी के।
शेर सिंह सर्राफ
*************************
आयुद्धों से भरे हुए भण्डार है मोहिनी नारी के।
नयना तीर कमान बिछाये जाल है मोहिनी नारी के।
माया ममता महबूबा से भाव है मोहिनी नारी के।
अभी तो है शुरूवात अनेको रंग है मोहिनी नारी के।
**
शतरूपा से शुरू हुआ संसार है मोहिनी नारी के।
त्रिदेवी का नाम हुआ अवतार है मोहिनी नारी के।
जटिला भामा भोगदा यह सृष्टि है मोहिनी नारी के।
शेर करे शुरूवात लिखे काव्य है मोहिनी नारी के।
**
उदित भाग्य बाबुल करे श्रृँगार है मोहिनी नारी के।
बेटी बने सौभाग्य गढे सम्मान है मोहिनी नारी के।
दो घर जोडे आप बढाए मान है मोहिनी नारी के।
ईश्वर का वरदान बनाए भाग्य है मोहिनी नारी के।
**
सृजन करे संघार दे जीवनदान है मोहिनी नारी के।
धरा समाहित आचँल मे सृष्टि है मोहिनी नारी के।
शेर कहे इक बात हृदय से मान है मोहिनी नारी के।
त्याग की है भंडार नही लाचार है मोहिनी नारी के।
शेर सिंह सर्राफ
दिनांक-8-3-2020
विषय-नारी/महिला दिवस
"महादेवियां"
तुम ही दुर्गा तुम ही लक्ष्मी
तुम ही तो हो शारदे
महादेवी तुम हो नारी
हर प्राणी को प्यार दे
संकट में बन जाती दुर्गा
गृह लक्ष्मी बन घर सँवारे
बुद्धिदात्री निज संतान की
सहनशीला सबको स्वीकारे
सबला हुई है बेटियां
लेती है प्रतिकार अब
रानी झाँसी सी बन जाती
होके सिंह सवार पर
भरत की माता शकुंतला
गौरवान्वित है आज मही
महादेवियां हैं आज की नारी
नवदुर्गा का आशय यही ।
अदम्य साहस की धनी
प्रज्ञा विद्या से भरपूर है
अधिकार औ कर्तव्य को
स्त्री जानती जरूर है ।।
बह रही बदलाव की हवा
बदल रही है अब नारी
घर बनता स्वर्ग समान
सम्मानित हो जहाँ नारी ।।
**वंदना सोलंकी**©®स्वरचित®
विषय-नारी/महिला दिवस
"महादेवियां"
तुम ही दुर्गा तुम ही लक्ष्मी
तुम ही तो हो शारदे
महादेवी तुम हो नारी
हर प्राणी को प्यार दे
संकट में बन जाती दुर्गा
गृह लक्ष्मी बन घर सँवारे
बुद्धिदात्री निज संतान की
सहनशीला सबको स्वीकारे
सबला हुई है बेटियां
लेती है प्रतिकार अब
रानी झाँसी सी बन जाती
होके सिंह सवार पर
भरत की माता शकुंतला
गौरवान्वित है आज मही
महादेवियां हैं आज की नारी
नवदुर्गा का आशय यही ।
अदम्य साहस की धनी
प्रज्ञा विद्या से भरपूर है
अधिकार औ कर्तव्य को
स्त्री जानती जरूर है ।।
बह रही बदलाव की हवा
बदल रही है अब नारी
घर बनता स्वर्ग समान
सम्मानित हो जहाँ नारी ।।
**वंदना सोलंकी**©®स्वरचित®
आज का विषय है- मैं भारत की नारी हूं
मैं भारत की नारी हूं
मैं ही ब्रह्मा की ब्रह्माणी ,
मैं ही रुद्र की रुद्राणी,
मैं ही विष्णु की विष्णु प्रिया
भारत की अर्थव्यवस्था थामें
मैं ही सीतारमण हूं
मैं ही सतयुग की आदिशक्ति,
त्रेता की मैं ही वैदेही,
परम प्रेम की पराकाष्ठा मैं द्वापर की राधा हूँ
दुष्टों का मर्दन करने वाली मैं ही महिषासुरमर्दिनि हूं
दुश्मन जिससे थरथर काँपे
वह चामुंडा में ही हूं
निस दिन अग्निपरीक्षा देती राम की सीता में ही हूं
मैं ही विदुषी गार्गी मैत्रयी
मैं कामदेव की कामिनी
मैं कवियों की कविता हूं
मैं सुंदरता में रंभा हूं
मैं ही पद्मिनी का जौहर हूं
मैं वीरता की परिचायक
लक्ष्मी दुर्गा अहिल्याहूँ
कल कल कर बहती पापनाशिनी
जान्हवी मैं ही हूं
जीवन देने बहती जीवन रेखा रेवा में ही हूं
धन धान्य का भंडार अन्नपूर्णा में ही हूं
अखिल विश्व में परचम लहराती
मैं भारत की गुरुतर नारी
रणक्षेत्र में लोहा लेती
लड़ाकू वायुयान उड़ाती
अवनी चतुर्वेदी मैं ही हूँ
अंतरिक्ष में परचम लहराया कल्पना चावला में ही हूं
वर्ल्ड कप में दुनिया देखेगी भारत की शक्ति
वह हरमनप्रीत कौर में ही हूं
मैं ही संस्कृति में ही सभ्यता
मैं ही सत्य सनातन धर्म हूं
मैं ही आदि अनादि,
मैं ही भूत वर्तमान भविष्य हूं
मैं ही जननी जन्मभूमि हूं
मैं ही ममता ममतामयी हूँ
मैं भारत की नारी हूं
यह रचना मेरी स्वरचित है एवं मौलिक है
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या शाला नरसिंहपुर
मैं भारत की नारी हूं
मैं ही ब्रह्मा की ब्रह्माणी ,
मैं ही रुद्र की रुद्राणी,
मैं ही विष्णु की विष्णु प्रिया
भारत की अर्थव्यवस्था थामें
मैं ही सीतारमण हूं
मैं ही सतयुग की आदिशक्ति,
त्रेता की मैं ही वैदेही,
परम प्रेम की पराकाष्ठा मैं द्वापर की राधा हूँ
दुष्टों का मर्दन करने वाली मैं ही महिषासुरमर्दिनि हूं
दुश्मन जिससे थरथर काँपे
वह चामुंडा में ही हूं
निस दिन अग्निपरीक्षा देती राम की सीता में ही हूं
मैं ही विदुषी गार्गी मैत्रयी
मैं कामदेव की कामिनी
मैं कवियों की कविता हूं
मैं सुंदरता में रंभा हूं
मैं ही पद्मिनी का जौहर हूं
मैं वीरता की परिचायक
लक्ष्मी दुर्गा अहिल्याहूँ
कल कल कर बहती पापनाशिनी
जान्हवी मैं ही हूं
जीवन देने बहती जीवन रेखा रेवा में ही हूं
धन धान्य का भंडार अन्नपूर्णा में ही हूं
अखिल विश्व में परचम लहराती
मैं भारत की गुरुतर नारी
रणक्षेत्र में लोहा लेती
लड़ाकू वायुयान उड़ाती
अवनी चतुर्वेदी मैं ही हूँ
अंतरिक्ष में परचम लहराया कल्पना चावला में ही हूं
वर्ल्ड कप में दुनिया देखेगी भारत की शक्ति
वह हरमनप्रीत कौर में ही हूं
मैं ही संस्कृति में ही सभ्यता
मैं ही सत्य सनातन धर्म हूं
मैं ही आदि अनादि,
मैं ही भूत वर्तमान भविष्य हूं
मैं ही जननी जन्मभूमि हूं
मैं ही ममता ममतामयी हूँ
मैं भारत की नारी हूं
यह रचना मेरी स्वरचित है एवं मौलिक है
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या शाला नरसिंहपुर
8-03-2020
पद्य
#महिला
मेरे जीवन में किसी दिन छुट्टी नहीं है
हर दिन करती हूँ घर का हर काम
बच्चों की ख़ुशी के लिए ख़ुद की ख़ुशी
भूल जाती हूँ नहीं करती हूँ किसी दिन आराम।।
बच्चों का भविष्य हो उज्ज्वल और बेहतर
इसलिए ख़ुद सहन करती हूँ हर पल कष्ट
नहीं कहती हूँ कभी भी कुछ भी बच्चों से
नहीं देखना चाहती हूँ उदास अपनी संतान को।।
यदि मिल जाए अपनों का साथ तो
मैं भी कर सकती हूँ बहुत कुछ
बना सकती हूँ अपनी एक अलग पहचान
है विश्वास मुझे ख़ुद पर हर काम करना है आसान।।
जानते हैं आप सभी कि मैं कौन हूँ
हाँ मैं एक महिला हूँ जिसे यदि न बांधी जाए
बेवजह की बंधनों में तो कर सकती हूँ
मैं भी कड़ी मेहनत से हर असंभव काम।।
©कुमार संदीप
मौलिक,स्वरचित
पद्य
#महिला
मेरे जीवन में किसी दिन छुट्टी नहीं है
हर दिन करती हूँ घर का हर काम
बच्चों की ख़ुशी के लिए ख़ुद की ख़ुशी
भूल जाती हूँ नहीं करती हूँ किसी दिन आराम।।
बच्चों का भविष्य हो उज्ज्वल और बेहतर
इसलिए ख़ुद सहन करती हूँ हर पल कष्ट
नहीं कहती हूँ कभी भी कुछ भी बच्चों से
नहीं देखना चाहती हूँ उदास अपनी संतान को।।
यदि मिल जाए अपनों का साथ तो
मैं भी कर सकती हूँ बहुत कुछ
बना सकती हूँ अपनी एक अलग पहचान
है विश्वास मुझे ख़ुद पर हर काम करना है आसान।।
जानते हैं आप सभी कि मैं कौन हूँ
हाँ मैं एक महिला हूँ जिसे यदि न बांधी जाए
बेवजह की बंधनों में तो कर सकती हूँ
मैं भी कड़ी मेहनत से हर असंभव काम।।
©कुमार संदीप
मौलिक,स्वरचित
दिनांक, ८,३,२०२०.
दिन, रविवार .
विषय, स्त्री, नारी, महिला, महिला दिवस।
माँ जगजननी तुम हो नारी,
देवी दुर्गा वाणी काली।
कमजोर नहीं हो बलशाली,
ममता दात्री गौरवशाली।
अभिमान नहीं मन में कोई,
अपनी सत्ता खुद ही खोई।
घर आँगन चार दिवारी में,
खुश रहती सब के हँसने में।
तुम से ही है घर का उपवन,
तुलसी माता सा पावन मन।
है चाह नहीं धन दौलत की ,
भूखी है केवल इज्जत की।
दृढ़ निश्चय वाली तबियत की,
प्रतिभाशाली कृति नारी की।
बेटी बहना पत्नी माता,
निभाती प्रेम से हर नाता।
शिक्षा विज्ञान सब में आगे,
हर क्षेत्र में सरपट भागे।
मत रोको राहें नारी की ,
करना सराहना साहस की।
कल्पना नहीं इस दुनियाँ की ,
जो छाया मिले न नारी की ।
स्वरचि
दिन, रविवार .
विषय, स्त्री, नारी, महिला, महिला दिवस।
माँ जगजननी तुम हो नारी,
देवी दुर्गा वाणी काली।
कमजोर नहीं हो बलशाली,
ममता दात्री गौरवशाली।
अभिमान नहीं मन में कोई,
अपनी सत्ता खुद ही खोई।
घर आँगन चार दिवारी में,
खुश रहती सब के हँसने में।
तुम से ही है घर का उपवन,
तुलसी माता सा पावन मन।
है चाह नहीं धन दौलत की ,
भूखी है केवल इज्जत की।
दृढ़ निश्चय वाली तबियत की,
प्रतिभाशाली कृति नारी की।
बेटी बहना पत्नी माता,
निभाती प्रेम से हर नाता।
शिक्षा विज्ञान सब में आगे,
हर क्षेत्र में सरपट भागे।
मत रोको राहें नारी की ,
करना सराहना साहस की।
कल्पना नहीं इस दुनियाँ की ,
जो छाया मिले न नारी की ।
स्वरचि
भावों के मोती
नारी
नवगीत 16/16
अग्निशिखा
दीपशिखा बनकर सदा जली ,मेरे पथ पर रहा अंधेरा,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
कितने धागे टूटा करते ,सूखे अधरों को सिलने में,
पहर आठ अब तुरपन करते,क्षण लगते कुआं भरने में,
रिसते घावों की पपड़ी से,पल पल बखिया वही उधेरा ,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
पुष्प बिछाये और राह पर,शूल चुभा वो किया बखेरा
दुग्ध पिला कर पाला जिसको,वो बाहों का बना सपेरा ।
पीतल उसकी औकात नहीं,गढ़ना चाहे स्वर्ण ठठेरा
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
बन कर रही मोम का पुतला,धीरे धीरे सब पिघल गया
अग्निशिखा अब बनना चाहूँ,कोई मुझको क्यों कुचल गया
अब अंतस की लौ सुलगा कर,लाना होगा नया सवेरा ।
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा था चैन लुटेरा ।
दीपशिखा,....
स्वरचित
अनिता सुधीर
नारी
नवगीत 16/16
अग्निशिखा
दीपशिखा बनकर सदा जली ,मेरे पथ पर रहा अंधेरा,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
कितने धागे टूटा करते ,सूखे अधरों को सिलने में,
पहर आठ अब तुरपन करते,क्षण लगते कुआं भरने में,
रिसते घावों की पपड़ी से,पल पल बखिया वही उधेरा ,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
पुष्प बिछाये और राह पर,शूल चुभा वो किया बखेरा
दुग्ध पिला कर पाला जिसको,वो बाहों का बना सपेरा ।
पीतल उसकी औकात नहीं,गढ़ना चाहे स्वर्ण ठठेरा
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।
बन कर रही मोम का पुतला,धीरे धीरे सब पिघल गया
अग्निशिखा अब बनना चाहूँ,कोई मुझको क्यों कुचल गया
अब अंतस की लौ सुलगा कर,लाना होगा नया सवेरा ।
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा था चैन लुटेरा ।
दीपशिखा,....
स्वरचित
अनिता सुधीर
द्वितीय प्रस्तुति
कुंडलिनी
नारी
1)
वनिता ,नव्या ,नंदिनी, निपुणा बुद्धि विवेक ।
शिवा,शक्ति अरु अर्पिता ,नारी रूप अनेक ।
नारी रूप अनेक, रहे अविरल सम सरिता ।
सकल जगत का मान,सृजनकारी है वनिता ।
2)
नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज।
पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
निर्बल करता आज,बनो मत अब बेचारी
अपनी रक्षा आप ,सदा तुम करना नारी।।
3)
सहना मत अन्याय को,इससे बड़ा न पाप।
लो अपना अधिकार तुम,छोड़ो अपनी छाप ।
छोड़ो अपनी छाप ,यही है उत्तम गहना ।,
मत करना अब पाप,कभी मत इसको सहना ।
4)
सरिता सम नारी रही,अविरल रहा प्रवाह।
जन्म मरण दो ठौर की ,बनती रहीं गवाह ।
बनती रहीं गवाह,इन्हीं से जीवन कविता ।
सदा करें सम्मान ,रहे निर्मल ये सरिता ।
5)
नारी तुम हो श्रेस्ठतम,तुम जीवन आधार ।
एक दिवस में तुम बँधी,माँगों क्यों अधिकार।
माँगों क्यों अधिकार,निभाओ भागीदारी ।
परम सत्य ये बात ,रहे पूरक नर नारी।
अनिता सुधीर
कुंडलिनी
नारी
1)
वनिता ,नव्या ,नंदिनी, निपुणा बुद्धि विवेक ।
शिवा,शक्ति अरु अर्पिता ,नारी रूप अनेक ।
नारी रूप अनेक, रहे अविरल सम सरिता ।
सकल जगत का मान,सृजनकारी है वनिता ।
2)
नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज।
पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
निर्बल करता आज,बनो मत अब बेचारी
अपनी रक्षा आप ,सदा तुम करना नारी।।
3)
सहना मत अन्याय को,इससे बड़ा न पाप।
लो अपना अधिकार तुम,छोड़ो अपनी छाप ।
छोड़ो अपनी छाप ,यही है उत्तम गहना ।,
मत करना अब पाप,कभी मत इसको सहना ।
4)
सरिता सम नारी रही,अविरल रहा प्रवाह।
जन्म मरण दो ठौर की ,बनती रहीं गवाह ।
बनती रहीं गवाह,इन्हीं से जीवन कविता ।
सदा करें सम्मान ,रहे निर्मल ये सरिता ।
5)
नारी तुम हो श्रेस्ठतम,तुम जीवन आधार ।
एक दिवस में तुम बँधी,माँगों क्यों अधिकार।
माँगों क्यों अधिकार,निभाओ भागीदारी ।
परम सत्य ये बात ,रहे पूरक नर नारी।
अनिता सुधीर
08/03/2020 --रविवार
विषय ---स्त्री /नारी /महिला /महिला दिवस
=================================
त्याग और वलिदान की,.. . . . मूर्ति युगों से एक,
माँ है कभी कभी वो पत्नी,. . कभी बहन वो नेक,
नहीं प्रकृति की रचना कहिये,नारी स्वयं प्रकृति है,
धरती पर प्रतिरूप ईश का,. . जिसके रूप अनेक।
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
कड़ी धूप में छाँव सी,. . . . . और ठंड में धूप,
धरती पर है ईश की,.. . . . रचना एक अनूप,
जगजननी पोषणकर्ता है,. वो सारे ही जग की,
नारी अगर न होती,जग का होता विकृत रूप।
================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
विषय ---स्त्री /नारी /महिला /महिला दिवस
=================================
त्याग और वलिदान की,.. . . . मूर्ति युगों से एक,
माँ है कभी कभी वो पत्नी,. . कभी बहन वो नेक,
नहीं प्रकृति की रचना कहिये,नारी स्वयं प्रकृति है,
धरती पर प्रतिरूप ईश का,. . जिसके रूप अनेक।
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
कड़ी धूप में छाँव सी,. . . . . और ठंड में धूप,
धरती पर है ईश की,.. . . . रचना एक अनूप,
जगजननी पोषणकर्ता है,. वो सारे ही जग की,
नारी अगर न होती,जग का होता विकृत रूप।
================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर....
ग़ज़ल
नज़ाकत हूँ तमाज़त हूँ इबादत हूँ मैं औरत हूँ,
मुसन्निफ़ रब है जिसका वो इबारत हूँ मैं औरत हूँ ।
हक़ीक़त हूँ अक़ीदत हूँ मसर्रत हूँ मैं औरत हूँ,
मुझे है नाज़ ख़ुद पर मैं वजाहत हूँ मैं औरत हूँ ।
मिले सौगात में नफ़रत का सहरा चाहे रिश्तों से,
रवाँ कौसर सा दरिया-ए-मुहब्बत हूँ मैं औरत हूँ ।
बड़े कमज़र्फ़ हैं वो जो कहें दोजख़ का दर मुझको,
समझना मत मुझे कमतर मैं जन्नत हूँ मैं औरत हूँ ।
बिना मेरे ये दुनिया दो क़दम भी बढ़ नहीं सकती,
मैं माज़ी, हाल मुस्तकबिल की रग़बत हूँ मैं औरत हूँ ।
लगाओ तोहमतें इस कद्र मत इस्मत पे ए लोगो,
हूँ माँ ईशा की मरियम सी नफ़ासत हूँ मैं औरत हूँ ।
हवा वो दिन हुए जब मैं फ़क़त महदूद थी घर तक,
ज़मीं अंबर समंदर की मैं वुस'अत हूँ मैं औरत हूँ ।
किया सजदा हिमालय ने मेरी हिम्मत को झुक झुक के,
वतन की सरहदों की मैं हिफाज़त हूँ मैं औरत हूँ ।
मुअत्तर है मेरा किरदार ये रब की इनायत है,
करें गुल 'आरज़ू' जिसकी वो निक़हत हूँ मैं औरत हूँ ।
-अंजुमन 'आरज़ू' ©®✍
छिंदवाड़ा मप्र
__________________
अदक़ लफ़्ज़ :-
नज़ाकत = कोमलता
तमाज़त = तेज़ी, तीव्रता
मुसन्निफ़ = लेखक
अकीदत = श्रद्धा
मसर्रत = प्रसन्नता
वजाहत = प्रतिष्ठा, आब ओ ताब
सहरा = मरुस्थल
रवाँ = प्रवाह बहाव
कौसर = स्वर्ग की एक नदी
रग़बत = चाह
इस्मत = सतीत्व, सम्मान
नफ़ासत = पवित्रता
महदूद = सीमित
वुस'अत = विस्तार, फैलाव
मुअत्तर = खुशबूदार
निक़हत = महक खुशबू
ग़ज़ल
नज़ाकत हूँ तमाज़त हूँ इबादत हूँ मैं औरत हूँ,
मुसन्निफ़ रब है जिसका वो इबारत हूँ मैं औरत हूँ ।
हक़ीक़त हूँ अक़ीदत हूँ मसर्रत हूँ मैं औरत हूँ,
मुझे है नाज़ ख़ुद पर मैं वजाहत हूँ मैं औरत हूँ ।
मिले सौगात में नफ़रत का सहरा चाहे रिश्तों से,
रवाँ कौसर सा दरिया-ए-मुहब्बत हूँ मैं औरत हूँ ।
बड़े कमज़र्फ़ हैं वो जो कहें दोजख़ का दर मुझको,
समझना मत मुझे कमतर मैं जन्नत हूँ मैं औरत हूँ ।
बिना मेरे ये दुनिया दो क़दम भी बढ़ नहीं सकती,
मैं माज़ी, हाल मुस्तकबिल की रग़बत हूँ मैं औरत हूँ ।
लगाओ तोहमतें इस कद्र मत इस्मत पे ए लोगो,
हूँ माँ ईशा की मरियम सी नफ़ासत हूँ मैं औरत हूँ ।
हवा वो दिन हुए जब मैं फ़क़त महदूद थी घर तक,
ज़मीं अंबर समंदर की मैं वुस'अत हूँ मैं औरत हूँ ।
किया सजदा हिमालय ने मेरी हिम्मत को झुक झुक के,
वतन की सरहदों की मैं हिफाज़त हूँ मैं औरत हूँ ।
मुअत्तर है मेरा किरदार ये रब की इनायत है,
करें गुल 'आरज़ू' जिसकी वो निक़हत हूँ मैं औरत हूँ ।
-अंजुमन 'आरज़ू' ©®✍
छिंदवाड़ा मप्र
__________________
अदक़ लफ़्ज़ :-
नज़ाकत = कोमलता
तमाज़त = तेज़ी, तीव्रता
मुसन्निफ़ = लेखक
अकीदत = श्रद्धा
मसर्रत = प्रसन्नता
वजाहत = प्रतिष्ठा, आब ओ ताब
सहरा = मरुस्थल
रवाँ = प्रवाह बहाव
कौसर = स्वर्ग की एक नदी
रग़बत = चाह
इस्मत = सतीत्व, सम्मान
नफ़ासत = पवित्रता
महदूद = सीमित
वुस'अत = विस्तार, फैलाव
मुअत्तर = खुशबूदार
निक़हत = महक खुशबू
विषय-नारी शक्ति
दिनांक ८-३-२०२०
नारी हूँ मैं नारी हूँ,पर जुल्मों से मैं ना हारी हूँ।
हर कदम दी अग्नि परीक्षा,क्योंकि मैं नारी हूँ।
कर्म पथ पर ना रूकी,और ना हिम्मत हारी हूँ।
अपने हौसलों से सदा, देखो मैं बाजी मारी हूँ।
झाँसी रानी पन्ना का, त्याग मैं कभी ना भूली हूँ।
मेवाड़ धरा रहती,और एक मर्दानी बन जीती हूँ।
हर क्षेत्र परचम लहराती,और न कभी हारी हूँ।
नर नारायण जननी हूँ ,और सृष्टि पर भारी हूँ।
मैं अबला नहीं,ना ही मैं दबी पहचान रखती हूँ।
रखती हूँ खुद्दारी,और स्वाभिमान से जीती हूँ।
पुरुष प्रधान समाज,हौसलों से सम्मान पाती हूँ।
खामोश तब न रही,गुनहगार ठहराई जाती हूँ।
कमजोर ना समझो मुझे,संपूर्ण जगत जननी हूँ।
कभी मोम बन पिघली,कभी जोत बन जली हूँ।
महादेवी सुभद्रा बन,साहित्य सृजन मैं करती हूँ।
राजसमंद काव्य मंच पर,एक पहचान रखती हूँ।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक ८-३-२०२०
नारी हूँ मैं नारी हूँ,पर जुल्मों से मैं ना हारी हूँ।
हर कदम दी अग्नि परीक्षा,क्योंकि मैं नारी हूँ।
कर्म पथ पर ना रूकी,और ना हिम्मत हारी हूँ।
अपने हौसलों से सदा, देखो मैं बाजी मारी हूँ।
झाँसी रानी पन्ना का, त्याग मैं कभी ना भूली हूँ।
मेवाड़ धरा रहती,और एक मर्दानी बन जीती हूँ।
हर क्षेत्र परचम लहराती,और न कभी हारी हूँ।
नर नारायण जननी हूँ ,और सृष्टि पर भारी हूँ।
मैं अबला नहीं,ना ही मैं दबी पहचान रखती हूँ।
रखती हूँ खुद्दारी,और स्वाभिमान से जीती हूँ।
पुरुष प्रधान समाज,हौसलों से सम्मान पाती हूँ।
खामोश तब न रही,गुनहगार ठहराई जाती हूँ।
कमजोर ना समझो मुझे,संपूर्ण जगत जननी हूँ।
कभी मोम बन पिघली,कभी जोत बन जली हूँ।
महादेवी सुभद्रा बन,साहित्य सृजन मैं करती हूँ।
राजसमंद काव्य मंच पर,एक पहचान रखती हूँ।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
वारः- रविवार
विधा छन्द मुक्त
विषयः- अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अम्मा की व्थथा
अम्मा अम्मा सब कहें जब कष्ट कोई होय।
कष्ट पड़े जब किसी पे बाबा कहे नहीं कोय।।
अम्मा के दरबार में अम्मा की चलन न देय।
अम्मा के दरबार में यारो बाबा कहे सो होय।।
अम्मा रहे तकलीफ में और बाबा मौज उड़ाय।
अम्मा की तकलीफ पर तरस कोउ नहीं खाय।।
अम्मा रात दिन काम करे कोई छुट्टी न पाय।
बीमारी में बेचारी अम्मा से काम कराया जाय।।
अम्मा को इंसा माने न कोउ देवी बनाया जाय।
देवी को हक इन्सान का भला दिया क्यों जाय।।
बचपन में नारी पिता तथा भाई पर आश्रित होय।
युवावस्था मे उस बेचारी की चलने नहीं दे कोय।।
प्रत्येक बात में केवल पति ही कहे सो ही होय।
पति के सामने में यहाँ उसकी चलन न दे कोय।।
वृध्दावस्था में अम्मा की इच्छा ही रहे न कोय।
बहु बेटे की जो इच्छा वही अम्मा की भी होय।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी
स्वरचित
विधा छन्द मुक्त
विषयः- अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अम्मा की व्थथा
अम्मा अम्मा सब कहें जब कष्ट कोई होय।
कष्ट पड़े जब किसी पे बाबा कहे नहीं कोय।।
अम्मा के दरबार में अम्मा की चलन न देय।
अम्मा के दरबार में यारो बाबा कहे सो होय।।
अम्मा रहे तकलीफ में और बाबा मौज उड़ाय।
अम्मा की तकलीफ पर तरस कोउ नहीं खाय।।
अम्मा रात दिन काम करे कोई छुट्टी न पाय।
बीमारी में बेचारी अम्मा से काम कराया जाय।।
अम्मा को इंसा माने न कोउ देवी बनाया जाय।
देवी को हक इन्सान का भला दिया क्यों जाय।।
बचपन में नारी पिता तथा भाई पर आश्रित होय।
युवावस्था मे उस बेचारी की चलने नहीं दे कोय।।
प्रत्येक बात में केवल पति ही कहे सो ही होय।
पति के सामने में यहाँ उसकी चलन न दे कोय।।
वृध्दावस्था में अम्मा की इच्छा ही रहे न कोय।
बहु बेटे की जो इच्छा वही अम्मा की भी होय।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी
स्वरचित
विषय - नारी
दिनांक- 08/03/2020
नारी
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
है गंगा जल सी पावन तू
सागर सा विशाल हृदय लिए
कलियों सी खिलती आँगन में
महेकाती घर ख़ुशियाँ से तू
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
ख़ुशियाँ आती घर में तेरे आना से
माता-पिता का है अभिमान तू
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
शादी कर के जब तू विदा हुई
दो परिवारों का मान बढ़ाती है
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
नया जीवन तू देने वाली
संसार तू ही चलाती है
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला है कमज़ोर कहाँ
शक्ति का स्वरूप है तू
माँ दुर्गा रूप कहेलती है
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
डॉक्टर प्रियंका
दिनांक- 08/03/2020
नारी
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
है गंगा जल सी पावन तू
सागर सा विशाल हृदय लिए
कलियों सी खिलती आँगन में
महेकाती घर ख़ुशियाँ से तू
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
ख़ुशियाँ आती घर में तेरे आना से
माता-पिता का है अभिमान तू
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
शादी कर के जब तू विदा हुई
दो परिवारों का मान बढ़ाती है
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
नया जीवन तू देने वाली
संसार तू ही चलाती है
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला है कमज़ोर कहाँ
शक्ति का स्वरूप है तू
माँ दुर्गा रूप कहेलती है
पहेचान ख़ुद को हे नारी
तू अबला और कमज़ोर कहाँ
डॉक्टर प्रियंका
मंच को नमन
विषय..(विश्व महिला दिवस अवसर पर)
नारी,स्त्री,औरत
जिसके आगे झुके ये दुनिया सारी है
वो भारत की ही नारी है।
ईश्वर ने पवित्रता को जन्म दिया,
श्रृंगार समझ नारी ने इसको ग्रहण किया।
मधुरिमा,रूपमयी,ममतामयी इसको मिली अनेक संज्ञाएँ हैं।
माँ, पुत्री, बहन,सभी रिश्ते इसने बखूबी निभाये हैं।
जिसके कर्मो से हर जन उसका आभारी है,
वो भारत की ही नारी है||
पूरा काल मे जहां सीता,दमयंती ने,नारी का गौरव बढ़ाया है।
वही वर्तमान की नारी ने,इसे शीर्ष पर पहुंचाया है।
है कौन सा क्षेत्र जहां,नारी की पहचान नहीं,
है कौन सी वो रात,बाद जिसके प्रभात नहीं।
ध्वनि प्रधान इस दुनिया मे,अब जिसके शब्दों की बारी है,वो भारत की ही नारी है।
किन्तु ....जब जब यह सृष्टि नारी का अपमान करती है,गांडीव की प्रत्यंचा तब तब तड़पा करती है।
स्वयं कृष्ण प्रगट हो,मानव रूप मे सिद्ध स्वर मे कहते हैं,युध्यसव भारत(अर्थात अर्जुन युद्ध करो) और महाभारत हुआ करती है।
मत करो !उपहास इसकी शालीनता का,यह मौन स्वर से हर जख्म सहा करती है।
यह कोमलंगी,पर वक़्त पड़े तो दुर्गा भी बन जाती है।
पार कर हर दुर्गम राह,अपने अधिकारों को पाती है।
जिसके साहस प्रेम की परिचायक ,यह दुनिया सारी है।
वो भारत की ही नारी है।।
रीतू गुलाटी..ऋतंभरा
विषय..(विश्व महिला दिवस अवसर पर)
नारी,स्त्री,औरत
जिसके आगे झुके ये दुनिया सारी है
वो भारत की ही नारी है।
ईश्वर ने पवित्रता को जन्म दिया,
श्रृंगार समझ नारी ने इसको ग्रहण किया।
मधुरिमा,रूपमयी,ममतामयी इसको मिली अनेक संज्ञाएँ हैं।
माँ, पुत्री, बहन,सभी रिश्ते इसने बखूबी निभाये हैं।
जिसके कर्मो से हर जन उसका आभारी है,
वो भारत की ही नारी है||
पूरा काल मे जहां सीता,दमयंती ने,नारी का गौरव बढ़ाया है।
वही वर्तमान की नारी ने,इसे शीर्ष पर पहुंचाया है।
है कौन सा क्षेत्र जहां,नारी की पहचान नहीं,
है कौन सी वो रात,बाद जिसके प्रभात नहीं।
ध्वनि प्रधान इस दुनिया मे,अब जिसके शब्दों की बारी है,वो भारत की ही नारी है।
किन्तु ....जब जब यह सृष्टि नारी का अपमान करती है,गांडीव की प्रत्यंचा तब तब तड़पा करती है।
स्वयं कृष्ण प्रगट हो,मानव रूप मे सिद्ध स्वर मे कहते हैं,युध्यसव भारत(अर्थात अर्जुन युद्ध करो) और महाभारत हुआ करती है।
मत करो !उपहास इसकी शालीनता का,यह मौन स्वर से हर जख्म सहा करती है।
यह कोमलंगी,पर वक़्त पड़े तो दुर्गा भी बन जाती है।
पार कर हर दुर्गम राह,अपने अधिकारों को पाती है।
जिसके साहस प्रेम की परिचायक ,यह दुनिया सारी है।
वो भारत की ही नारी है।।
रीतू गुलाटी..ऋतंभरा
कविता
** महिला
————-
रूप धरे जब तू प्रेयसी का
प्रियतम में हो ऊर्जा संचार
और बने जब भार्या किसी की
इक घर का बन जाती आधार
हँस कर सहती पीड़ा प्रसव की
करने को सृष्टि का विस्तार
कर्तव्यों की भट्टी में तप कर
करती सबके सपने साकार
स्रोत शक्ति का कहते तुझे सब
फिर भी दिखती है क्यूँ लाचार ?
करके ख़त्म लाचारी अपनी
ख़ुद को भी तू दे आकार
है साथी, प्रतिद्वंद्वी नहीं तू
क्यूँ उलझे द्वन्दों में बेकार?
बढ़ अब आगे हो के सबल तू
निर्बलताओं का कर सहांर।
पूरक होंगे महिला पुरुष जब
होगा सुन्दर फिर ये संसार।
📝 वेदस्मृति ‘ कृती ‘
** महिला
————-
रूप धरे जब तू प्रेयसी का
प्रियतम में हो ऊर्जा संचार
और बने जब भार्या किसी की
इक घर का बन जाती आधार
हँस कर सहती पीड़ा प्रसव की
करने को सृष्टि का विस्तार
कर्तव्यों की भट्टी में तप कर
करती सबके सपने साकार
स्रोत शक्ति का कहते तुझे सब
फिर भी दिखती है क्यूँ लाचार ?
करके ख़त्म लाचारी अपनी
ख़ुद को भी तू दे आकार
है साथी, प्रतिद्वंद्वी नहीं तू
क्यूँ उलझे द्वन्दों में बेकार?
बढ़ अब आगे हो के सबल तू
निर्बलताओं का कर सहांर।
पूरक होंगे महिला पुरुष जब
होगा सुन्दर फिर ये संसार।
📝 वेदस्मृति ‘ कृती ‘
मंच को सादर प्रणाम 🙏
दिनांक :08.03.2020वार : शनिवार
विषय : नारी
विधा : पद (छंदबद्ध कविता)
नारी नर की नाव है ,करती सागर पार ।
रस्ते में रुकती नहीं,अड़चन अड़ें अपार।।
नारी नाजुक है नहीं , दूजा दुर्गा रूप ।
काम करे देखे नहीं ,कांटे कंकर धूप ।।
नारी रूप सरस्वती , जो विद्या का धाम ।
जिस घर नारी मान ना,वो घर है शमशान।।
मैं हूँ इक साधारण नारी
मैं हूँ इक साधारण नारी , कैसे सीता बन दिखलाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ??
कोई भी ना जगह सुरक्षित , नहीं जहाँ पर घात लगी है ।
जिक्र फिक्र में होते मेरे ,जब - जब होने रात लगी है ।।
सब मौके की ताक में बैठे , सोच - सोचकर दंग रहजाऊँ।
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
लेखन में नारी को कहते ,कि प्रेम की ये साकार मूर्ति ।
पर देखन में भाव अलग हैं , तिरछी नजर कटार घूरती।।
जगह - जगह जहरीले बिच्छू , कैसे अपनी जान बचाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
बची कोंख से , फँसी प्रेमछल ,और ऊपर से दहेज दानवी।
उत्पीड़न की पीड़ पचासों , बींध गए दिल तीर मानवी ।।
काँटों भरी कंटीली राही , कैसे आगे कदम बढ़ाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
बेटी बचाओ लिखते हैं सब , कार्ड और परिवहनों पर ।
अपने हाथों आप तमाचा , मारते अपनी बहनों पर ।।
इतनी नीचे सोच गिरी है , कैसे ऊपर कहो उठाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर ,बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
दिनांक :08.03.2020वार : शनिवार
विषय : नारी
विधा : पद (छंदबद्ध कविता)
नारी नर की नाव है ,करती सागर पार ।
रस्ते में रुकती नहीं,अड़चन अड़ें अपार।।
नारी नाजुक है नहीं , दूजा दुर्गा रूप ।
काम करे देखे नहीं ,कांटे कंकर धूप ।।
नारी रूप सरस्वती , जो विद्या का धाम ।
जिस घर नारी मान ना,वो घर है शमशान।।
मैं हूँ इक साधारण नारी
मैं हूँ इक साधारण नारी , कैसे सीता बन दिखलाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ??
कोई भी ना जगह सुरक्षित , नहीं जहाँ पर घात लगी है ।
जिक्र फिक्र में होते मेरे ,जब - जब होने रात लगी है ।।
सब मौके की ताक में बैठे , सोच - सोचकर दंग रहजाऊँ।
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
लेखन में नारी को कहते ,कि प्रेम की ये साकार मूर्ति ।
पर देखन में भाव अलग हैं , तिरछी नजर कटार घूरती।।
जगह - जगह जहरीले बिच्छू , कैसे अपनी जान बचाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
बची कोंख से , फँसी प्रेमछल ,और ऊपर से दहेज दानवी।
उत्पीड़न की पीड़ पचासों , बींध गए दिल तीर मानवी ।।
काँटों भरी कंटीली राही , कैसे आगे कदम बढ़ाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर , बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
बेटी बचाओ लिखते हैं सब , कार्ड और परिवहनों पर ।
अपने हाथों आप तमाचा , मारते अपनी बहनों पर ।।
इतनी नीचे सोच गिरी है , कैसे ऊपर कहो उठाऊँ ?
चोर खड़े हर चौराहे पर ,बचकर कैसे घर को जाऊँ ??
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
दिनांक- 8/03/2020harishan
शीर्षक- "नारी शक्ति"
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
समय कर रहा है पुकार,
नारी तुम हो जाओ तैयार,
अपनी शक्ति को पहचानो,
नव युग का करो निर्माण |
अबला या कमजोर नहीं,
दुर्गा हो,लक्ष्मी हर घर की,
जननी हो सम्पूर्ण जगत की,
करती वो, जो होता सही |
कृष्ण की तुम हो गीता,
रामायण की तुम हो सीता,
द्रोपदी सी साहसी नारी,
कौरवों से जो न हारी |
आत्मसम्मान पर न ठेस सहो,
गलत का तुम विरोध करो,
पुरूष जाति भी देन तुम्हारी,
संसार की तुम फुलवारी |
जो नारी का अपमान करेगा,
पाप का वो भागीदार बनेगा,
नाजुक,कोमल इसकी काया,
नारी ने ही ये संसार बसाया |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
शीर्षक- "नारी शक्ति"
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
समय कर रहा है पुकार,
नारी तुम हो जाओ तैयार,
अपनी शक्ति को पहचानो,
नव युग का करो निर्माण |
अबला या कमजोर नहीं,
दुर्गा हो,लक्ष्मी हर घर की,
जननी हो सम्पूर्ण जगत की,
करती वो, जो होता सही |
कृष्ण की तुम हो गीता,
रामायण की तुम हो सीता,
द्रोपदी सी साहसी नारी,
कौरवों से जो न हारी |
आत्मसम्मान पर न ठेस सहो,
गलत का तुम विरोध करो,
पुरूष जाति भी देन तुम्हारी,
संसार की तुम फुलवारी |
जो नारी का अपमान करेगा,
पाप का वो भागीदार बनेगा,
नाजुक,कोमल इसकी काया,
नारी ने ही ये संसार बसाया |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
विषय : नारी, महिला आदि
विधा : कविता
तिथि : 8.3.2020
नारी
उडारी
बलिहारी,
प्यारी
मनोहारी
संवारी,
संस्कारी
सत्कारी
हितकारी,
दुर्गा
सीता
गांधारी,
लक्ष्मी बाई
इंदिरा गांधी
वेलेंतीना
कल्पना
मदर टेरेसा
अनगिनत जगतारी,
न बीमारी
बेकसूरवारी
मासूम पुकारी।
………..
………..
………..
कोख दुलारी
किलकारी-
क्यों अस्वीकारी???
विधा : कविता
तिथि : 8.3.2020
नारी
उडारी
बलिहारी,
प्यारी
मनोहारी
संवारी,
संस्कारी
सत्कारी
हितकारी,
दुर्गा
सीता
गांधारी,
लक्ष्मी बाई
इंदिरा गांधी
वेलेंतीना
कल्पना
मदर टेरेसा
अनगिनत जगतारी,
न बीमारी
बेकसूरवारी
मासूम पुकारी।
………..
………..
………..
कोख दुलारी
किलकारी-
क्यों अस्वीकारी???
नमन भावों के मोती
दिनांक - 08/03/2020
विषय - नारी
विधा - छंदमुक्त कविता
----नारी----
नारी माँ की ममता
नारी पत्नी का प्यार
नारी बेटी सी दमकती
नारी बहन का दुलार
नारी ही दुर्गा, सरस्वती
नारी काली का अवतार
नारी पर ही टिकी सृष्टि
नारी से ही घर परिवार
नारी अबला नहीं सबला है
नारी उड़े पंख पसार
नारी त्याग बलिदान की मूर्त
नारी नारी ही है पालनहार
नारी रामायण, महाभारत, वेद पुराण
नारी ही गीता का सार
नारी घर आँगन की शोभा
नारी सृष्टि का आधार
नारी कविता नारी कवयित्री
नारी ही रस छंद अलंकार
नारी ईश्वरीय शक्ति है
नारी तेरे रूप हजार
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा "वागीश"
सिरसा (हरियाणा)
दिनांक - 08/03/2020
विषय - नारी
विधा - छंदमुक्त कविता
----नारी----
नारी माँ की ममता
नारी पत्नी का प्यार
नारी बेटी सी दमकती
नारी बहन का दुलार
नारी ही दुर्गा, सरस्वती
नारी काली का अवतार
नारी पर ही टिकी सृष्टि
नारी से ही घर परिवार
नारी अबला नहीं सबला है
नारी उड़े पंख पसार
नारी त्याग बलिदान की मूर्त
नारी नारी ही है पालनहार
नारी रामायण, महाभारत, वेद पुराण
नारी ही गीता का सार
नारी घर आँगन की शोभा
नारी सृष्टि का आधार
नारी कविता नारी कवयित्री
नारी ही रस छंद अलंकार
नारी ईश्वरीय शक्ति है
नारी तेरे रूप हजार
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा "वागीश"
सिरसा (हरियाणा)
शीर्षक :- नारी : अनेक रूप
"नारी :अनेक रूप "
ना समझो मुझको अब अबला ,
सबला बन दुनिया को दिखाया है।
हर दुःख तकलीफ को सहकर भी,
कर्तव्यों और आदर्शों को निभाया है।
बन माँ धरा पर नवजीवन को लायी,
सरस्वती बन ज्ञान का भंडार दिया।
देवो पर भी जब संकट आया ,
चंडी बन दुष्टों का संहार किया ।
अतीत से लेकर वर्तमान तक ,
हर युग में अपना लोहा मनवाया है।
माँ ,बहन ,पत्नी और पुत्री बन ,
हर फर्ज को बखूबी निभाया है।
सीमा पर चाहे जान गवानी हो,
खेल में कौशल दिखलाना हो।
हार कभी ना मानी है ,
आगे ही आगे कदम बढ़ाया है।
लेखिका और कवियत्री बनकर ,
समाज को भी आईना दिखाया है ।
अंधविशवास और भ्रस्टाचार के खिलाफ,
दृढ़शक्ति के साथ लड़ना सिखाया है।
पुरुष प्रधान इस समाज में भी ,
कदम से कदम मिला चलकर दिखाया है।
धरा से लेकर आसमान तक ,
हर जगह अपना परचम लहराया है।
स्वरचित और मौलिक©
शशि कुशवाहा
लखनऊ , उत्तर प्रदेश
"नारी :अनेक रूप "
ना समझो मुझको अब अबला ,
सबला बन दुनिया को दिखाया है।
हर दुःख तकलीफ को सहकर भी,
कर्तव्यों और आदर्शों को निभाया है।
बन माँ धरा पर नवजीवन को लायी,
सरस्वती बन ज्ञान का भंडार दिया।
देवो पर भी जब संकट आया ,
चंडी बन दुष्टों का संहार किया ।
अतीत से लेकर वर्तमान तक ,
हर युग में अपना लोहा मनवाया है।
माँ ,बहन ,पत्नी और पुत्री बन ,
हर फर्ज को बखूबी निभाया है।
सीमा पर चाहे जान गवानी हो,
खेल में कौशल दिखलाना हो।
हार कभी ना मानी है ,
आगे ही आगे कदम बढ़ाया है।
लेखिका और कवियत्री बनकर ,
समाज को भी आईना दिखाया है ।
अंधविशवास और भ्रस्टाचार के खिलाफ,
दृढ़शक्ति के साथ लड़ना सिखाया है।
पुरुष प्रधान इस समाज में भी ,
कदम से कदम मिला चलकर दिखाया है।
धरा से लेकर आसमान तक ,
हर जगह अपना परचम लहराया है।
स्वरचित और मौलिक©
शशि कुशवाहा
लखनऊ , उत्तर प्रदेश
नारी
नहीं तो नहीं जाना मुझे तुमसे आगे
मैं साथ तुम्हारे चलना चाहती हूँ
नारी हूँ बहुत खुश हूँ...
नारी होने का अधिकार तो
जन्म से लेकर आईं हूँ...
तुम इंसान कहो न मुझको भी...
न ज्यादा न दो कम...
मैं तो तुमको एक पल में
अर्पित कर दूँगी तन और मन...
सशक्त होकर भी मैं
सम्पूर्ण नहीं हो पाऊँगी
जिनको मैंने अपना माना...
उनके बिना अपूर्ण ही मैं पाऊँगी
मैं स्वछंद नहीं होना चाहती..
मैं सम्पूर्ण होना चाहती हूँ...
नहीं जाना तुमसे आगे...
मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ
पूजा नबीरा काटोल नागपुर
नहीं तो नहीं जाना मुझे तुमसे आगे
मैं साथ तुम्हारे चलना चाहती हूँ
नारी हूँ बहुत खुश हूँ...
नारी होने का अधिकार तो
जन्म से लेकर आईं हूँ...
तुम इंसान कहो न मुझको भी...
न ज्यादा न दो कम...
मैं तो तुमको एक पल में
अर्पित कर दूँगी तन और मन...
सशक्त होकर भी मैं
सम्पूर्ण नहीं हो पाऊँगी
जिनको मैंने अपना माना...
उनके बिना अपूर्ण ही मैं पाऊँगी
मैं स्वछंद नहीं होना चाहती..
मैं सम्पूर्ण होना चाहती हूँ...
नहीं जाना तुमसे आगे...
मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ
पूजा नबीरा काटोल नागपुर
8 मार्च 2020
विषय नारी
नारी तुम गौरव हो जग का
जीवन का आधार हो तुम
जीवजगत संरचना तुमसे
निर्मात्री सृष्टि संसार हो तुम
बेटी बहिन मां पत्नी रुपा
हर घर की मुस्कान हो तुम
तुमसे महके हरेक आंगन
घर का स्वाभिमान हो तुम
तुम शक्ति हो, तुम भक्ति हो
ईश्वर प्रदत्त उपहार हो तुम
हिम्मत ताकत जुनून जोश
सुंदर अनुपम विचार हो तुम
तुम हो राधा,तुम हो रुक्मण
तुम सीता हो, गीता हो तुम
तुम अहिल्या, तुम उर्मिला
परम पावन पुनीता हो तुम
तुम झांसी रानी सी मर्दानी
पद्मावती सी स्वाभिमानी तुम
तुम कल्पना, तुम हो भावना
तुम कविता, कहानी हो तुम
तुम निर्मात्री,तुम अधिष्ठात्री
संघर्ष शौर्य की कहानी तुम
तुम सौन्दर्य, तुम हो ऐश्वर्य
मीरा कृष्ण प्रेम दिवानी तुम
तुम कवि की कोमल कविता
चित्रकार की सुंदर रचना तुम
तुम संगीत, तुम गीत मनोहर
सृष्टि की सुंदर संरचना तुम
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय नारी
नारी तुम गौरव हो जग का
जीवन का आधार हो तुम
जीवजगत संरचना तुमसे
निर्मात्री सृष्टि संसार हो तुम
बेटी बहिन मां पत्नी रुपा
हर घर की मुस्कान हो तुम
तुमसे महके हरेक आंगन
घर का स्वाभिमान हो तुम
तुम शक्ति हो, तुम भक्ति हो
ईश्वर प्रदत्त उपहार हो तुम
हिम्मत ताकत जुनून जोश
सुंदर अनुपम विचार हो तुम
तुम हो राधा,तुम हो रुक्मण
तुम सीता हो, गीता हो तुम
तुम अहिल्या, तुम उर्मिला
परम पावन पुनीता हो तुम
तुम झांसी रानी सी मर्दानी
पद्मावती सी स्वाभिमानी तुम
तुम कल्पना, तुम हो भावना
तुम कविता, कहानी हो तुम
तुम निर्मात्री,तुम अधिष्ठात्री
संघर्ष शौर्य की कहानी तुम
तुम सौन्दर्य, तुम हो ऐश्वर्य
मीरा कृष्ण प्रेम दिवानी तुम
तुम कवि की कोमल कविता
चित्रकार की सुंदर रचना तुम
तुम संगीत, तुम गीत मनोहर
सृष्टि की सुंदर संरचना तुम
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
आज का विषय-स्त्री/ नारी/ महिला/ महिला दिवस
नारी तू नारायणी
जीवन भर कष्ट उठाती है
मां बहन बेटी बहू सबका फर्ज निभाती हैं।
सुख हो चाहे दुःख साथ सदा निभाती है
नारी तू नारायणी
जीवन भर साथ निभाती है।
बेटी रूप घर बाबुल का चहकाती है
पत्नी रूप घर पति का सजाती है नारी तू नारायणी
जीवन भर साथ निभाती है।
बांध भाई की कलाई पर
स्नेह का धागा
रक्षा कवच बन जाती है
वक्त पड़े तो दुर्गा- चंडी-काली भी बन जाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर साथ निभाती है।
ईश्वर का तू उपहार अनोखा
सृष्टि का आधार कहलाती है
नारी तू नारायणी
जीवन भर साथ निभाती है।
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
नारी तू नारायणी
जीवन भर कष्ट उठाती है
मां बहन बेटी बहू सबका फर्ज निभाती हैं।
सुख हो चाहे दुःख साथ सदा निभाती है
नारी तू नारायणी
जीवन भर साथ निभाती है।
बेटी रूप घर बाबुल का चहकाती है
पत्नी रूप घर पति का सजाती है नारी तू नारायणी
जीवन भर साथ निभाती है।
बांध भाई की कलाई पर
स्नेह का धागा
रक्षा कवच बन जाती है
वक्त पड़े तो दुर्गा- चंडी-काली भी बन जाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर साथ निभाती है।
ईश्वर का तू उपहार अनोखा
सृष्टि का आधार कहलाती है
नारी तू नारायणी
जीवन भर साथ निभाती है।
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय: नारी
विधा:छंदमुक्त
शक्ति हो तुम
-------
उड़ने की है चाह मगर,पंखों को बाँध के रखा है,
पैरों में है थाप मगर घुंघरू को तोड़ के रखा है,
क्यों हरबार दिखाती हो,जो मुस्कान तुम्हारी है ही नहीं,
क्यों हरबार सिखाती हो,जो सीख तुम्हारी है ही नहीं,
कभी तो बाहर आओ इन नियमों की चादर से,
कभी तो जी के दिखाओ पूरे मान और आदर से,
नारी हो तुम कोई अभिशाप नहीं,
जन्मदात्री हो,परिहास या पाप नहीं,
संस्कारों की मूरत हो,
श्रेष्ठता की सूरत हो,
फिर क्यों बाँधती हो खुद को बंधन में,
भरपूर जीओ इस जीवन में,
करना होगा खुद का सम्मान तुम्हें ,
तभी मिल पायेगा इस जग का मान तुम्हें ॥
-निधि सहगल
दिनाँक-08/03/2020
शीर्षक-स्त्री ,नारी ,महिला
विधा-हाइकु
1.
शिक्षित नार
उज्ज्वल घरबार
घर की शान
2.
शिक्षित नारी
घर की फुलवारी
लगती प्यारी
3.
शिक्षित नारी
दो घरों का आधार
सजाती द्वार
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
शीर्षक-स्त्री ,नारी ,महिला
विधा-हाइकु
1.
शिक्षित नार
उज्ज्वल घरबार
घर की शान
2.
शिक्षित नारी
घर की फुलवारी
लगती प्यारी
3.
शिक्षित नारी
दो घरों का आधार
सजाती द्वार
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
विषय :- नारी
विधा :-स्वतंत्र
नारी हूँ मैं बिखर कर भी सम्भल जाती हूँ
टूट कर भी मुश्किलों में मुस्करा लेती हूँ
अपनों के अपनी ख़ुशी कर देती हूँ बलिदान
फिर भी निभाती हूँ नारी होने का मान .
नारी हूँ क्या हैं मेरी पहचान
खुद से ही हूँ अनजान
भोर का रोशन उगता उजाला हूँ
निशा में महकता रजनीगंधा का खिलता पुष्प हूँ .
गृहस्थी का मान-सम्मान हूँ
गायत्री मंत्र और वेद पुराण हूँ
नदियों का पवित्र संगम हूँ
फिर भी अपने ही रूप से पाषाण हूँ .
आँचल में मेरी ममता की छांव हैं
मातृत्व की फुलवारी हूँ मैं
कभी कोमल कभी कठोर
नारी हूँ मैं जिससे चलती हैं दुनियां सारी.
स्वरचित :- रीता बिष्ट
विधा :-स्वतंत्र
नारी हूँ मैं बिखर कर भी सम्भल जाती हूँ
टूट कर भी मुश्किलों में मुस्करा लेती हूँ
अपनों के अपनी ख़ुशी कर देती हूँ बलिदान
फिर भी निभाती हूँ नारी होने का मान .
नारी हूँ क्या हैं मेरी पहचान
खुद से ही हूँ अनजान
भोर का रोशन उगता उजाला हूँ
निशा में महकता रजनीगंधा का खिलता पुष्प हूँ .
गृहस्थी का मान-सम्मान हूँ
गायत्री मंत्र और वेद पुराण हूँ
नदियों का पवित्र संगम हूँ
फिर भी अपने ही रूप से पाषाण हूँ .
आँचल में मेरी ममता की छांव हैं
मातृत्व की फुलवारी हूँ मैं
कभी कोमल कभी कठोर
नारी हूँ मैं जिससे चलती हैं दुनियां सारी.
स्वरचित :- रीता बिष्ट
विषय:-नारी
विधा :-कुण्डलिनी
( 1 )
ममता से नारी भरी , कोई नहीं समान ।
नारी होती स्वयम् ही , अपना ही उपमान ।।
अपना ही उपमान , कौन कर सकता समता ।
मधुर मृदुल सुकुमार , भरी नारी में ममता ।।
( 2 )
नारी तीनों लोक में , प्रभु का सृजन महान ।
फिर भी करें प्रताड़ना , होते जो नादान ।
होते जो नादान , उसे देते दुख भारी ।
पाती है सम्मान , सिर्फ़ मंचों पर नारी ।
(3 )
नारी जब माता बने , पाती हैं सम्मान ।
घर बाहर दोनों जगह ,रखती सबका ध्यान ।।
रखती सबका ध्यान ,बने सबकी हितकारी ।
दुग्ध करे जब दान , बने वह पूरी नारी ।।
( 4 )
नारी वही समाज में , रखती ऊँचा स्थान ।
शील धर्म के तन सजे , भूषण पहने जान ।।
भूषण पहने जान , रहे तन लिपटी सारी ।
पाए ऊँचा मान , नहीं ओछी हो नारी ।
( 5 )
नारी की स्वच्छंदता , आज़ादी के नाम ।
गरिमा इससे घट रही , मिलें कई उपनाम ।
मिलें कई उपनाम , चुकाती क़ीमत भारी ।
करें लोग बदनाम , देख एकाकी नारी ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
विधा :-कुण्डलिनी
( 1 )
ममता से नारी भरी , कोई नहीं समान ।
नारी होती स्वयम् ही , अपना ही उपमान ।।
अपना ही उपमान , कौन कर सकता समता ।
मधुर मृदुल सुकुमार , भरी नारी में ममता ।।
( 2 )
नारी तीनों लोक में , प्रभु का सृजन महान ।
फिर भी करें प्रताड़ना , होते जो नादान ।
होते जो नादान , उसे देते दुख भारी ।
पाती है सम्मान , सिर्फ़ मंचों पर नारी ।
(3 )
नारी जब माता बने , पाती हैं सम्मान ।
घर बाहर दोनों जगह ,रखती सबका ध्यान ।।
रखती सबका ध्यान ,बने सबकी हितकारी ।
दुग्ध करे जब दान , बने वह पूरी नारी ।।
( 4 )
नारी वही समाज में , रखती ऊँचा स्थान ।
शील धर्म के तन सजे , भूषण पहने जान ।।
भूषण पहने जान , रहे तन लिपटी सारी ।
पाए ऊँचा मान , नहीं ओछी हो नारी ।
( 5 )
नारी की स्वच्छंदता , आज़ादी के नाम ।
गरिमा इससे घट रही , मिलें कई उपनाम ।
मिलें कई उपनाम , चुकाती क़ीमत भारी ।
करें लोग बदनाम , देख एकाकी नारी ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
भूमिका नारी की
कितनी दुखद
ढेरो प्रश्नचिह्न
सृस्टि रोपण
जीवन आनंद
आदिकाल से ले
अब तक निरंतर
त्याग प्रेम
और बलिदान
न जी सकी
स्वयं के लिए
कोई विराम
न कोई पूर्ण विराम
ढेरो यातनाएं
उपहास अत्याचार
सहती व्यभिचार
भूमिकाएं साकार
नव सृजन का
करती निर्माण
हर काल मे
हर हाल में
विकास का
इतिहास का
विरोध के रूप का
गहन अंधकार में
उजाले के दृश्यका
मनोरम सृंगार
स्वरचित
मीना तिवारी
कितनी दुखद
ढेरो प्रश्नचिह्न
सृस्टि रोपण
जीवन आनंद
आदिकाल से ले
अब तक निरंतर
त्याग प्रेम
और बलिदान
न जी सकी
स्वयं के लिए
कोई विराम
न कोई पूर्ण विराम
ढेरो यातनाएं
उपहास अत्याचार
सहती व्यभिचार
भूमिकाएं साकार
नव सृजन का
करती निर्माण
हर काल मे
हर हाल में
विकास का
इतिहास का
विरोध के रूप का
गहन अंधकार में
उजाले के दृश्यका
मनोरम सृंगार
स्वरचित
मीना तिवारी
दिन - रविवार
दिनाँक - 08/03/2020
विषय - नारी दिवस
विधा - ग़ज़ल
मापनी - 2122 2122 2122
===================
पैर में जंजीर मेरे डालता क्यों ?
वक्ष में तुझको सुलाया सालता क्यों ?
माँ, बहिन, बेटी, तुम्हारी संगिनी हूँ ,
साथ रहती मैं सदा सच टालता क्यों ?
एक ही दिन दे दिया भारी मिला सुख,
छोड़ता मत गालियाँ उर पालता क्यों ?
कौन सा क्षेत्र बाकी मैं नहीं हूँ,
रोक तू मेरे कदम क्षय ढालता क्यों ?
#स्वरचित,मौलिक
#सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
#कबरई जिला - महोबा (उ.प्र.)
दिनाँक - 08/03/2020
विषय - नारी दिवस
विधा - ग़ज़ल
मापनी - 2122 2122 2122
===================
पैर में जंजीर मेरे डालता क्यों ?
वक्ष में तुझको सुलाया सालता क्यों ?
माँ, बहिन, बेटी, तुम्हारी संगिनी हूँ ,
साथ रहती मैं सदा सच टालता क्यों ?
एक ही दिन दे दिया भारी मिला सुख,
छोड़ता मत गालियाँ उर पालता क्यों ?
कौन सा क्षेत्र बाकी मैं नहीं हूँ,
रोक तू मेरे कदम क्षय ढालता क्यों ?
#स्वरचित,मौलिक
#सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
#कबरई जिला - महोबा (उ.प्र.)
दिनांक 08-03-2020
विषय- नारी
उठे आँख जब अन्याय दमन की,
नारी काली रणचंडी बन जाती है l
अस्मिता की संरक्षक स्वयं की,
नारी मातृ शक्तिरूपा कहलाती है।
नहीं अब सिर्फ उपभोग की वस्तु,
अन्याय से वह टकरा जाती है l
संघर्षों में भी विचलित न होती,
शोषण अत्याचार न झेल पाती है।
बहुत हो चुकी अबला की बातें,
सशक्त, सबल है आज की नारी l
युगों- युगों से निन्दा है झेलती ,
तानाशाह नीति पर अब है भारी।
हर समाज में दंश सहती है आई ,
दुनिया में आ कुचली छली गयी l
पढ़ लिख हुनरमंद हुई अब नारी,
मिसाल बन अंतरिक्ष में चली गयी l
ममता, वत्सलता की है मूरत नारी ,
दक्ष हो हरफनमौला बन जाती है l
असंख्य थपेड़ों को हँसकर सहती ,
शिक्षा का पथ प्रशस्त कराती है।
ऋचा पुराणों वेदों की सहगामिनी ,
पुरुष की अर्द्धांगिनी बनती है नारी l
भेदभाव शोषण विरोध है करती,
अधिकार जानती है आज की नारी।
तू शक्ति रूपा एक तेरे रूप अनेक ,
तुझसे ही अस्तित्व मनुज का नारी l
समाहित तुझमें रिश्तों की बगिया,
रिश्तों को संवेदना से सहेजती नारी।
स्वाभिमान से नारी सर ऊँचा करती,
करुणा की सौम्य प्रतिमूर्ति है नारी l
अपमानित करता जब भी कोई ,
आहत हो हिम्मत रखती है नारी।
आज हर क्षेत्र में परचम लहराती है ,
शिक्षित आत्मनिर्भर बनती है नारी l
नभ, जल,थल में नारी की महिमा,
निर्बल नहीं सशक्त सबल है नारी।
कुसुम लता 'कुसुम'
आर के पुरम नई दिल्ली
विषय- नारी
उठे आँख जब अन्याय दमन की,
नारी काली रणचंडी बन जाती है l
अस्मिता की संरक्षक स्वयं की,
नारी मातृ शक्तिरूपा कहलाती है।
नहीं अब सिर्फ उपभोग की वस्तु,
अन्याय से वह टकरा जाती है l
संघर्षों में भी विचलित न होती,
शोषण अत्याचार न झेल पाती है।
बहुत हो चुकी अबला की बातें,
सशक्त, सबल है आज की नारी l
युगों- युगों से निन्दा है झेलती ,
तानाशाह नीति पर अब है भारी।
हर समाज में दंश सहती है आई ,
दुनिया में आ कुचली छली गयी l
पढ़ लिख हुनरमंद हुई अब नारी,
मिसाल बन अंतरिक्ष में चली गयी l
ममता, वत्सलता की है मूरत नारी ,
दक्ष हो हरफनमौला बन जाती है l
असंख्य थपेड़ों को हँसकर सहती ,
शिक्षा का पथ प्रशस्त कराती है।
ऋचा पुराणों वेदों की सहगामिनी ,
पुरुष की अर्द्धांगिनी बनती है नारी l
भेदभाव शोषण विरोध है करती,
अधिकार जानती है आज की नारी।
तू शक्ति रूपा एक तेरे रूप अनेक ,
तुझसे ही अस्तित्व मनुज का नारी l
समाहित तुझमें रिश्तों की बगिया,
रिश्तों को संवेदना से सहेजती नारी।
स्वाभिमान से नारी सर ऊँचा करती,
करुणा की सौम्य प्रतिमूर्ति है नारी l
अपमानित करता जब भी कोई ,
आहत हो हिम्मत रखती है नारी।
आज हर क्षेत्र में परचम लहराती है ,
शिक्षित आत्मनिर्भर बनती है नारी l
नभ, जल,थल में नारी की महिमा,
निर्बल नहीं सशक्त सबल है नारी।
कुसुम लता 'कुसुम'
आर के पुरम नई दिल्ली
विषय -- नारी
एक दिन की ताजपोशी
क्यों
स्त्री नारी औरत,
सृष्टि के सृजन काल से...
आदि से अंत तक
कदम- कदम पर साथ निभाती..
अपनी ख्वाहिशें भूल ....
अपनों की चाहत में ...
सदैव खो जाती ।
हर परिस्थितियों का ...
सरलता से वहन कर जाती...
कहीं देवी की पूजा,
कहीं भोग की वस्तु समझी जाती...
कहीं कोख में मारी जाती ,
कहीं दहेज की बलि बन जाती....
नौकरी कर निभाती दोहरी जिम्मेदारी..
फिर भी उँगली उस पे ही उठाई जाती।
समाज में सम्मान ,घर में अपमान
दोहरे नकाबपोशों के बीच...
आस व साँसें उखड़ जाती.. ..
फिर भी जीना तो है मरकर ?
मरकर जीती जाती ।
अब समाज और जहाँ से . .
मुझे ये हैै कहना अपना ...
महत्व मुझे समझ आने लगा है...
अपने सभी दायित्वों को ..
पहले की तरह ही निभाऊँगी ...
अत्याचारों को सहन कर
अपमान के घूँट अब पी न पाऊँगी ।
त्याग ,सरलता, सहजता ...
सहनशीलता की मूरत हूँ ...
पर जरूरत पड़ी तो,
रजिया और लक्ष्मी बन जाऊँगी।
झूठी बधाइयाँ मुझे न देना .
अंतस से मुझे समझना और
सम्मान कर सको तो तुम..
बेशक अपनी मुझे शुभकामनाएँ
देना।
आशा पंवार
एक दिन की ताजपोशी
क्यों
स्त्री नारी औरत,
सृष्टि के सृजन काल से...
आदि से अंत तक
कदम- कदम पर साथ निभाती..
अपनी ख्वाहिशें भूल ....
अपनों की चाहत में ...
सदैव खो जाती ।
हर परिस्थितियों का ...
सरलता से वहन कर जाती...
कहीं देवी की पूजा,
कहीं भोग की वस्तु समझी जाती...
कहीं कोख में मारी जाती ,
कहीं दहेज की बलि बन जाती....
नौकरी कर निभाती दोहरी जिम्मेदारी..
फिर भी उँगली उस पे ही उठाई जाती।
समाज में सम्मान ,घर में अपमान
दोहरे नकाबपोशों के बीच...
आस व साँसें उखड़ जाती.. ..
फिर भी जीना तो है मरकर ?
मरकर जीती जाती ।
अब समाज और जहाँ से . .
मुझे ये हैै कहना अपना ...
महत्व मुझे समझ आने लगा है...
अपने सभी दायित्वों को ..
पहले की तरह ही निभाऊँगी ...
अत्याचारों को सहन कर
अपमान के घूँट अब पी न पाऊँगी ।
त्याग ,सरलता, सहजता ...
सहनशीलता की मूरत हूँ ...
पर जरूरत पड़ी तो,
रजिया और लक्ष्मी बन जाऊँगी।
झूठी बधाइयाँ मुझे न देना .
अंतस से मुझे समझना और
सम्मान कर सको तो तुम..
बेशक अपनी मुझे शुभकामनाएँ
देना।
आशा पंवार
विषय- नारी-वजूद
विधा-स्वतंत्र
दिनांक-08 /03 /2020
रिश्तों के बहिखाते में
एक पन्ना तो क्या
एक पंक्ति का भी
खाता मेरे नाम नहीं
हर बार सहेजा
हर कीमत पर,
हर बार मगर
रिश्तों का खाता
रीता ही रहा
बिटिया,बहना,माँ,
दादी-नानी
सब बनकर सबको
सबका दाय दिया
भर भर झोली
सबको प्यार दिया
हर रिश्ते का खाता
फिर भी खाली रहा
पत्नी,प्रेयसी,रुपसी
उर्वशी,मेनका सब बनी
फिर भी लुभा ना
किसी को सकी
सदियों से चर्चे में रही
चर्चा बनकर
फिर भी अपनी
किसी की ना कह लाई
रिश्ते की रेजगारी
भी ना बन पाई
बाबा ने जब जब
खोली रिश्ते की तिजोरी
पाई-पाई बेटे-भाई के
विदेश- गमन के
नाम लगाई
बेटे गये विदेश
बेटी ही बुढ़ापे में
काम आई
आसरा तो बनी
अंत समय की
मगर...सहारा नहीं
बेचारी ही कहलाई
बनी सदा औरत
ओढ़ रिश्तों की चादर
आज भी ढूँढती हूँ
सारे ही रिश्तों में
नारी होने का वजूद।
डा.नीलम
विषय- हाँ मैं नारी हूँ
विधा- पद
दिनांक-08 /03 /2020
मैं शिवी,मैंं रति,मैं दुर्गा
महाकाली हूँ
मैं वाणी-वाग्देवी
सृष्टा की सहगामिनी हूँ
मैं महामाया,मैं सावित्री,
मैं ही कल्याणी हूँ
मैं अन्नपूर्णा,मैं कात्यायनी
मैं भवानी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ
असूरों की संहारिणी
देवाधिदेवों की जननी
सुरों की रक्षादायिनी हूँ
मैं नीरा,मैं अगन
मैं मदमाती पवन हूँ
मैं धरित्री,मैं अनंत-
शून्याकाश हूँ
मैं श्रद्धा,मैं कामना
मैं तृष्णा ,पीयूष हूँ
रचनाकार की
अनुपम कृति मैं
मैं ही जगजननी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ
पंचभूत तत्व-निरुपा
प्रकृति की अनुपम
उपमा हूँ मैं
प्रीत की प्रतिरुपिणी
करुणा की प्रतिच्छाया हूँ
हर्ष का निनाद मैं
मैं ही कण-कण व्यापिनी हूँ
दिवस की उजियारी धूप
तारकभरी रजनी हूँ मैं
कलकल निनादित सरिता मैं
मैं ही मरमर भौंरो की गूँजन
हाँ नारी हूँ मैं
सार तत्व रसधारिणी मैं
मदमस्त,मनमोहक
मादक,मदभरी मदिरा
हूँ मैं
मनु की श्रद्धा मैं हूँ
मैं ही मनु-मानस ईड़ा
मैं सम्मोहिता स्वर्णमृग
की सीता
मैं ही सतीत्व-प्रतिका
मैं सृष्टि की संचालिका
मैं पुरुष सहगामिनी हूँ
मैं ही लास्या नर्तकी
मैं ही संहारिका भी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ
जग से जीती
पर अपनों से
ही हारी हूँ मैं।
डा.नीलम
समूह के सभी सदस्यों को महिला दिवस की शुभकामनाएँ।
महिला दिवस पर आज मैं कुछ पंक्तियाँ लिखना चाहूँगी।
गृहस्थी में रमी महिला को एक दिन हैपी महिला दिवस कह कर बहका दिया जाता है, और वो भी बहुत खुश हो जाती है कि सब उसे वीश कर रहे हैं। वैसे तो नारी का हर दिन उसका अपना होता है। अपनी अहमियत दर्शाने के लिए उसे एक चूने हुए दिन की आवश्यकता नही है। फिर भी नारी सम्मान में यह दिवस अपनी एक अहमियत रखता है, वो है महिला की अपनी खुशी, सुबह उठते ही वो अपनी दिनचर्या में लग जाती है। " माँ मेरा नाश्ता,
बहू चाय, अखबार कहाँ है, यह सुनकर उसके दिन का आगाज़ होता है। 8 मार्च को बच्चों की खनकती आवाज कानों में रस घोल देती है। "माँ हैपी वूमेनस ड़े " पर बच्चों व पति के उपहार उसमें और उत्साह पैदा करता है। उसको उपहार की लालसा नही होती बस
अपनों का सानिध्य पाकर खुश हो जाती है। नारी छोटी -छोटी बातों में अपनी खुशियाँ ढूँढ लेती है और अपने सभी गमों को छूपाकर मुस्कुराती रहती है और पूरे घर में खुशियाँ महकाती रहती है और पूरी तरह अपने परिवार में रम जाती है।
अत: महिला दिवस इनके प्रेम की प्यास बुझाता है और सम्मान दिलाता है।
स्वरचित- रेखा रविदत्तविषय - नारी
" नारी"
जीवन की तू मूरत प्यारी,
कष्टों पर तू पड़ती भारी,
समझ के तूझको समझ ना पाए,
पहेली ऐसी है ये नारी,
**
ले आँखों में आँसू ये मुस्कुराती,
आदर में ये नैन झुकाती,
दे जन्म एक नव जीव को,
ममतामयी माँ कहलाती,
***
मन मे इसके कितना शोर है,
रिश्तों को बाँधे प्रेम की ड़ोर ह
विधा-स्वतंत्र
दिनांक-08 /03 /2020
रिश्तों के बहिखाते में
एक पन्ना तो क्या
एक पंक्ति का भी
खाता मेरे नाम नहीं
हर बार सहेजा
हर कीमत पर,
हर बार मगर
रिश्तों का खाता
रीता ही रहा
बिटिया,बहना,माँ,
दादी-नानी
सब बनकर सबको
सबका दाय दिया
भर भर झोली
सबको प्यार दिया
हर रिश्ते का खाता
फिर भी खाली रहा
पत्नी,प्रेयसी,रुपसी
उर्वशी,मेनका सब बनी
फिर भी लुभा ना
किसी को सकी
सदियों से चर्चे में रही
चर्चा बनकर
फिर भी अपनी
किसी की ना कह लाई
रिश्ते की रेजगारी
भी ना बन पाई
बाबा ने जब जब
खोली रिश्ते की तिजोरी
पाई-पाई बेटे-भाई के
विदेश- गमन के
नाम लगाई
बेटे गये विदेश
बेटी ही बुढ़ापे में
काम आई
आसरा तो बनी
अंत समय की
मगर...सहारा नहीं
बेचारी ही कहलाई
बनी सदा औरत
ओढ़ रिश्तों की चादर
आज भी ढूँढती हूँ
सारे ही रिश्तों में
नारी होने का वजूद।
डा.नीलम
विषय- हाँ मैं नारी हूँ
विधा- पद
दिनांक-08 /03 /2020
मैं शिवी,मैंं रति,मैं दुर्गा
महाकाली हूँ
मैं वाणी-वाग्देवी
सृष्टा की सहगामिनी हूँ
मैं महामाया,मैं सावित्री,
मैं ही कल्याणी हूँ
मैं अन्नपूर्णा,मैं कात्यायनी
मैं भवानी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ
असूरों की संहारिणी
देवाधिदेवों की जननी
सुरों की रक्षादायिनी हूँ
मैं नीरा,मैं अगन
मैं मदमाती पवन हूँ
मैं धरित्री,मैं अनंत-
शून्याकाश हूँ
मैं श्रद्धा,मैं कामना
मैं तृष्णा ,पीयूष हूँ
रचनाकार की
अनुपम कृति मैं
मैं ही जगजननी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ
पंचभूत तत्व-निरुपा
प्रकृति की अनुपम
उपमा हूँ मैं
प्रीत की प्रतिरुपिणी
करुणा की प्रतिच्छाया हूँ
हर्ष का निनाद मैं
मैं ही कण-कण व्यापिनी हूँ
दिवस की उजियारी धूप
तारकभरी रजनी हूँ मैं
कलकल निनादित सरिता मैं
मैं ही मरमर भौंरो की गूँजन
हाँ नारी हूँ मैं
सार तत्व रसधारिणी मैं
मदमस्त,मनमोहक
मादक,मदभरी मदिरा
हूँ मैं
मनु की श्रद्धा मैं हूँ
मैं ही मनु-मानस ईड़ा
मैं सम्मोहिता स्वर्णमृग
की सीता
मैं ही सतीत्व-प्रतिका
मैं सृष्टि की संचालिका
मैं पुरुष सहगामिनी हूँ
मैं ही लास्या नर्तकी
मैं ही संहारिका भी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ
जग से जीती
पर अपनों से
ही हारी हूँ मैं।
डा.नीलम
महिला दिवस पर आज मैं कुछ पंक्तियाँ लिखना चाहूँगी।
गृहस्थी में रमी महिला को एक दिन हैपी महिला दिवस कह कर बहका दिया जाता है, और वो भी बहुत खुश हो जाती है कि सब उसे वीश कर रहे हैं। वैसे तो नारी का हर दिन उसका अपना होता है। अपनी अहमियत दर्शाने के लिए उसे एक चूने हुए दिन की आवश्यकता नही है। फिर भी नारी सम्मान में यह दिवस अपनी एक अहमियत रखता है, वो है महिला की अपनी खुशी, सुबह उठते ही वो अपनी दिनचर्या में लग जाती है। " माँ मेरा नाश्ता,
बहू चाय, अखबार कहाँ है, यह सुनकर उसके दिन का आगाज़ होता है। 8 मार्च को बच्चों की खनकती आवाज कानों में रस घोल देती है। "माँ हैपी वूमेनस ड़े " पर बच्चों व पति के उपहार उसमें और उत्साह पैदा करता है। उसको उपहार की लालसा नही होती बस
अपनों का सानिध्य पाकर खुश हो जाती है। नारी छोटी -छोटी बातों में अपनी खुशियाँ ढूँढ लेती है और अपने सभी गमों को छूपाकर मुस्कुराती रहती है और पूरे घर में खुशियाँ महकाती रहती है और पूरी तरह अपने परिवार में रम जाती है।
अत: महिला दिवस इनके प्रेम की प्यास बुझाता है और सम्मान दिलाता है।
स्वरचित- रेखा रविदत्तविषय - नारी
" नारी"
जीवन की तू मूरत प्यारी,
कष्टों पर तू पड़ती भारी,
समझ के तूझको समझ ना पाए,
पहेली ऐसी है ये नारी,
**
ले आँखों में आँसू ये मुस्कुराती,
आदर में ये नैन झुकाती,
दे जन्म एक नव जीव को,
ममतामयी माँ कहलाती,
***
मन मे इसके कितना शोर है,
रिश्तों को बाँधे प्रेम की ड़ोर ह
विषय- नारी
विधा- गीत
**************************************
ब्रम्हाण्ड की #हर_शक्ति को #शक्ति_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
🌹🌹🌹🌹🌹
सत्ता दे दो नारी को तुम ,, सब कुछ यदि अच्छा करना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा, भाषण से क्या मन भरना है।
**********************************************
नर ,नारायण, जग झुकता है , करें वंदना नित त्रिपुरारी।
घर से रण तक कब कुछ छूटा , नारी रही सभी पर भारी।
मधुर भाव से सौदा करती, बिना मोल के करे चाकरी-
जननी, भगिनी और सुकन्या , रिश्तों में भरती किलकारी।
नारी स्वयं शक्ति पहचाने उसको रंच न अब डरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
*********************************************
पत्थर को यह मोम बना दे , नेह मान की है अधिकारी।
भोर निशा में फर्क न करती , खुशियाँ हैं सब अपनी वारी।
दर्द देख जिसको मुस्का दे , दर्पण है यह बनती प्रभु का-
घायल पंखों से उड़ लेती , डरती है इससे लाचारी ।
कसम उठाओ मिलकर सब ये, हमको दुख अपने हरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
*********************************************
खुद को कतरा कतरा बाँटे , कभी न माँगें हिस्सेदारी।
रानी , दासी जो भी कह दो, पुरुषों की रहती आभारी।
सीता मीरा और अहिल्या, त्याग समर्पण प्रेम दे गईं-
इंदिरा, रानी औ कल्पना , संघर्षों से कभी न हारी।
जो जग में भयभीत हो गया उसको तो निश्चित मरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
*********************************************
मरु में भी जो पुष्प खिला दे , ममता की है ये अवतारी।
हर पल अपनी इच्छा मारे , समझौतों की करे सवारी।
विनय करे ये "आशा" मन से , भोग न समझें इस अमृत को-
वेद ग्रंथ आयत में बसती , अद्भुत शक्ति स्वरूपा नारी ।
अन्यायी जो अत्याचारी उसका कब सम्भव तरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
********************************************
आशा अमित नशीने
राजनांदगाँव
विधा- गीत
**************************************
ब्रम्हाण्ड की #हर_शक्ति को #शक्ति_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
🌹🌹🌹🌹🌹
सत्ता दे दो नारी को तुम ,, सब कुछ यदि अच्छा करना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा, भाषण से क्या मन भरना है।
**********************************************
नर ,नारायण, जग झुकता है , करें वंदना नित त्रिपुरारी।
घर से रण तक कब कुछ छूटा , नारी रही सभी पर भारी।
मधुर भाव से सौदा करती, बिना मोल के करे चाकरी-
जननी, भगिनी और सुकन्या , रिश्तों में भरती किलकारी।
नारी स्वयं शक्ति पहचाने उसको रंच न अब डरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
*********************************************
पत्थर को यह मोम बना दे , नेह मान की है अधिकारी।
भोर निशा में फर्क न करती , खुशियाँ हैं सब अपनी वारी।
दर्द देख जिसको मुस्का दे , दर्पण है यह बनती प्रभु का-
घायल पंखों से उड़ लेती , डरती है इससे लाचारी ।
कसम उठाओ मिलकर सब ये, हमको दुख अपने हरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
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खुद को कतरा कतरा बाँटे , कभी न माँगें हिस्सेदारी।
रानी , दासी जो भी कह दो, पुरुषों की रहती आभारी।
सीता मीरा और अहिल्या, त्याग समर्पण प्रेम दे गईं-
इंदिरा, रानी औ कल्पना , संघर्षों से कभी न हारी।
जो जग में भयभीत हो गया उसको तो निश्चित मरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
*********************************************
मरु में भी जो पुष्प खिला दे , ममता की है ये अवतारी।
हर पल अपनी इच्छा मारे , समझौतों की करे सवारी।
विनय करे ये "आशा" मन से , भोग न समझें इस अमृत को-
वेद ग्रंथ आयत में बसती , अद्भुत शक्ति स्वरूपा नारी ।
अन्यायी जो अत्याचारी उसका कब सम्भव तरना है,
व्यर्थ दिवस का स्वांग तुम्हारा भाषण से क्या मन भरना है।
********************************************
आशा अमित नशीने
राजनांदगाँव
दिनांक ८/३/२०२०
शीर्षक_नारी
प्यार चाहती हूँ
सम्मान चाहती हूँ
तुम्हारी दुनिया में
अपना स्थान चाहती हूँ
क्योंकि_
"मैं ही बेटी
मैं ही बहू
मैं ही घर की जान
मैं ही घर की शान हूँ
शोभित है धरा मुझसे
मुझे ना निर्बल जान
मैं ही दुर्गा
मैं ही काली
मैं ही धरा की अधिष्ठात्री
मैं ही पालनहार
उपेक्षित ना करना मुझे
मैं सृष्टि की जान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
जिसने नर को जना,जिसने ममता है पायी।
जिसके आँचल तले ही जिन्दगी मुस्कुरायी।
जिसके अमृत सा दुग्ध को पान करके हम।
जिसकी ममता की छाँवमें शिक्षा जो पायी।
आज नारी की दशा दुर्दशा में बदल गयी है।
कहीं जलती है नारी, कहीं मरती है नारी।
कभी अपने जन्म पर ही बिफरती है नारी।
आज नर ने जो उसका ये हश्र जो किया है।
आज कोख में ही अपने बिलखती है नारी।
कभी वेदों की रचना जो करती थी नारी।
कभी शासन भी तो संभालती थी नारी।
कभी लक्ष्मीबाई, कभी जीजाबाई तो कभी
मीराबाई रुप में दिखाई देती है नारी।
कभी राधा बनी तो कभी सीता बनी।
कभी दुर्गा बनी तो कभी काली बनी।
इस सृष्टि की रचना में साधक बनी।
कभी धरती की नारी,कभी जिंदगी सँवारी। आज आओं हम इसका तो वंदन करें।
अपने जीवन में शामिल कर अभिनंदन करें
विश्व महिला दिवस पर सादर समर्पित
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
दिनाँक - 08/03/2020
विषय - नारी दिवस
विधा - कविता
शीर्षक: ग्रामीण स्त्रियाँ
मुझे प्रेम करना नही आता
मैं निर्जीव जीव हूँ
मुझें आदेश दिए जाते हैं
मैं केवल निभाती हूँ उन्हें
मुझे अधिकार नही की
मैं खुद से प्रेम करूँ
कुछ गलत कहा मैंने
नही-नही
शायद कोई कठपुतली हूँ मैं
कठपुतली ही तो हूँ
बर्तनों की गूंज में
आवाज़ मेरी विलीन हो चुकी
करवटों की मोड़ में
परवाह की आह है
कभी सोचा है,
उन स्त्रियों के बारे में
जिनके जीवन मे नवीनतम आवरण विलुप्त है
वे शायद चूल्हों के धुओं में
धुंधली सी पड़ चुकी हैं
वे अपने गांव और जंगल से
कभी मुक्त नहीं हुई
लकड़ियों को ढोते-ढोते
लकड़ी सी हो चुकी हैं
एक कुआँ खेत में है
पानी खीचने के लिए
एक कुआँ आँखों तले
रखे बैठी है,
आँसुओं के मोती भरने के लिये
पर न जाने कहाँ से फिर भी
उनके अंतर्मन में
साहस की ज्वाला जलती रहती
वे तनिक भी नही थकती
वे कड़ी धूप में जूती जाती हैं
खेत मे फसलों की कटान के लिए
फिर भी थकान की उफ्फ तक
नही करती
वे स्त्रियाँ जो शहर से अज्ञात हैं
वे स्त्रियाँ जो ग्रामीण हो गई
@अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।
लेखिका🙏
कंचन झारखण्डे✍
स्वरचिय व मौलिक
शीर्षक_नारी
प्यार चाहती हूँ
सम्मान चाहती हूँ
तुम्हारी दुनिया में
अपना स्थान चाहती हूँ
क्योंकि_
"मैं ही बेटी
मैं ही बहू
मैं ही घर की जान
मैं ही घर की शान हूँ
शोभित है धरा मुझसे
मुझे ना निर्बल जान
मैं ही दुर्गा
मैं ही काली
मैं ही धरा की अधिष्ठात्री
मैं ही पालनहार
उपेक्षित ना करना मुझे
मैं सृष्टि की जान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
जिसने नर को जना,जिसने ममता है पायी।
जिसके आँचल तले ही जिन्दगी मुस्कुरायी।
जिसके अमृत सा दुग्ध को पान करके हम।
जिसकी ममता की छाँवमें शिक्षा जो पायी।
आज नारी की दशा दुर्दशा में बदल गयी है।
कहीं जलती है नारी, कहीं मरती है नारी।
कभी अपने जन्म पर ही बिफरती है नारी।
आज नर ने जो उसका ये हश्र जो किया है।
आज कोख में ही अपने बिलखती है नारी।
कभी वेदों की रचना जो करती थी नारी।
कभी शासन भी तो संभालती थी नारी।
कभी लक्ष्मीबाई, कभी जीजाबाई तो कभी
मीराबाई रुप में दिखाई देती है नारी।
कभी राधा बनी तो कभी सीता बनी।
कभी दुर्गा बनी तो कभी काली बनी।
इस सृष्टि की रचना में साधक बनी।
कभी धरती की नारी,कभी जिंदगी सँवारी। आज आओं हम इसका तो वंदन करें।
अपने जीवन में शामिल कर अभिनंदन करें
विश्व महिला दिवस पर सादर समर्पित
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
विषय - नारी दिवस
विधा - कविता
शीर्षक: ग्रामीण स्त्रियाँ
मुझे प्रेम करना नही आता
मैं निर्जीव जीव हूँ
मुझें आदेश दिए जाते हैं
मैं केवल निभाती हूँ उन्हें
मुझे अधिकार नही की
मैं खुद से प्रेम करूँ
कुछ गलत कहा मैंने
नही-नही
शायद कोई कठपुतली हूँ मैं
कठपुतली ही तो हूँ
बर्तनों की गूंज में
आवाज़ मेरी विलीन हो चुकी
करवटों की मोड़ में
परवाह की आह है
कभी सोचा है,
उन स्त्रियों के बारे में
जिनके जीवन मे नवीनतम आवरण विलुप्त है
वे शायद चूल्हों के धुओं में
धुंधली सी पड़ चुकी हैं
वे अपने गांव और जंगल से
कभी मुक्त नहीं हुई
लकड़ियों को ढोते-ढोते
लकड़ी सी हो चुकी हैं
एक कुआँ खेत में है
पानी खीचने के लिए
एक कुआँ आँखों तले
रखे बैठी है,
आँसुओं के मोती भरने के लिये
पर न जाने कहाँ से फिर भी
उनके अंतर्मन में
साहस की ज्वाला जलती रहती
वे तनिक भी नही थकती
वे कड़ी धूप में जूती जाती हैं
खेत मे फसलों की कटान के लिए
फिर भी थकान की उफ्फ तक
नही करती
वे स्त्रियाँ जो शहर से अज्ञात हैं
वे स्त्रियाँ जो ग्रामीण हो गई
@अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।
लेखिका🙏
कंचन झारखण्डे✍
स्वरचिय व मौलिक
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