Friday, March 20

" मनपसंद विषय लेखन"20मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-689
विषय-- मन पसंद

😆कॅरोना का रोना😭

होश उड़ा दिए घूमने वालों के
विदेशी धरती चूमने वालों के!!

छदम वेश में छुपे जो शैतान हैं
निरीह का खून चूसने वालों के !!

हाथ मिलाना भूले अब सदियों तक
मोटी रकम वसूलने वालों के!!

परम्परायें अपनी ही सार्थक हैं
पाश्चात्य में झूलने वालों के!!

नमस्ते कर झुक जाना तर्क संगत
झूठे अहम में फूलने वालों के!!

सबक सदा सिखाती है हमें कुदरत
नेक सबक 'शिवम' भूलने वालों के!!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 20/03/2020
विषय मन पसंद लेखन
विधा काव्य

शीर्षक जिंदगी
20 मार्च 20 20,शुक्रवार

अरी जिन्दगी तू अद्भुत है
नित नव खेल खिलाती हो।
कब क्या हो जावे जीवन ?
नित नव सीख सिखाती हो।

जिंदगी भी जीना कला है
यह जीवन एक साधना है।
जिंदगी सोना न कदापि
पल पल जीवन जागना है।

शिशु यौवन बुढ़ापा आता
रंगबिरंगा कौतूहल जीवन।
जो बोता वही फल पाता
सद्कर्मों से सजता उपवन।

जिंदगी नव सीख सिखाती
जीवन अनुभव से चलता है।
भिन्न भिन्न सोच मानव की
स्वविवेक प्रश्न हल करता है।

चँचल चित्त पल पल डोलता
रंगीन स्वप्न अनवरत बुनता।
जीवन बाती होती दीपक की
हल्का झोंखा आता बुझता।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
मनपसंद लेखन
विषय - बिटिया

दिनांक - 20/03/2020

आओ! सुनाए तुम्हें एक बिटिया की कहानी
जन्नत से उतर आयी, माँ की गोद में एक परी नुरानी ।

दादा बाट रहे रसगुल्ले, दादी भी दे रही बधाई
पापा भी हो गए प्रफुल्लित, एक राजदुलारी जब घर पर आई।

सावन की पहली बारिश में, नाचते है मोर जैसे
छायी है खुशियाँ, घर में भी चारो ओर वैसे।

बिटिया की नादानियों पर है सब खिलखिलाते
बिटिया के साथ खेलते हुए खुद भी बच्चे बन जाते।

बड़े नाज़ो से है उसे पाला, सब दुखों से भी उसे रखा दुर
हर ख्वाईश करी उसकी पुरी, अश्कों को भी उसकी नैनो से रखा दुर

एक दिन बिटिया भी हो गई सयानी
बिटिया को भी अब पडे़गी ब्याहनी।

जग को भी लगेगी वो खलने अपने ही घर में
पिता ने भी कर दिया कन्यादान इसी डर में।

हो गई विदा वो बिटिया अब अपने ही घर से
लेकर आँखों में आँसू चल पड़ी वो अपने ही घर से।

जिसकी बातों से गुँजता था जो घर, आज वही घर उसके बिना सुना है
बिटिया की जिंदगी भी यू बदल गयी, बच्चों के हाथ से छीनते जब कोई खिलौना है।

सबको पहली नज़र में जो थी भाति, आज वही सबको अखरती है
पापा की जो शान थी, घर के एक कोने में बैठ सिसकती है।

जीद से जो खाती थी, खाना अब वो जी मार के खाती है
सजती थी आईने में जो कभी, अब वो आईने से मुँह छिपाती है।

पापा के घर की थी जो परी, आज बन गई वो दासी है
छोटी सी बात पर भी जो रो जाती थी, आज वो बिना कहे गमो को सह जाती है।

करती थी जो मनमानियाँ घर पर, अब वो उनकी मोहताज हो गई है
बिटिया अब बड़ी हो गई, वो बिटिया अब पराई हो गई है ।

चमकती थी जो आँखें वो अब सुख गई है, उन होंठो की हँसी अब कही घूम हो गई
बाबुल के आंगन की वो आजाद चिड़िया, अब पिंजरे में कैद हो गई है।

नहीं चाहिए दिखावा, नहीं चाहिए ये लालच
मुझे चाहिए पापा का साया, वही चाहिए माँ का आँचल।

- प्रतिक सिंघल

दिनांक-20/03/2020
स्वतंत्र लेखन



दुआ ऐसी ईश्वर से मांगे
हम दोनों ही पास रहे।
कभी दरार ना आने पाये
जब तक तन में सांस रहे।।
दो हथेलियों के मिलने से
ताली मन को भाती।
दिल के वीराने उपवन में
तितलि ज्यों- ज्यों इठलाती।।
हर पल प्यार में ऐसा गुजरे
जैसे नित मधुमास रहे।
कभी दरार ना आने पाये
जब तक तन में सांस रहे।।
एक नहीं दोनों ही किनारे
गूंजे बन संगीत ।
एक सपनों की शहजादी
तो एक बने मनमीत।।
पुष्पित पल्लवित आंगन
ऊपर छतरी सा आकाश रहे।
कभी दरार ना आने पाए
जब तक तन में सांस रहे।।


स्वरचित
मौलिक रचना
सत्यप्रकाश सिंह प्रयागराज

विषय: निर्भया को इंसाफ़

दरिन्दगी को पोषण देने वालों
आज तुम्हारी भ्रान्ति मिटी होगी
हुई विजय सच की आख़िर हर पीड़ित
रूह को ‘ कृती ‘ शान्ति मिली होगी।

निर्भया अब हम शर्मिंदा नहीं हैं
क्यूँकि कातिल तुम्हारे ज़िन्दा नहीं हैं।

‘सत्यमेव जयते ‘ इस
उक्ति का मतलब साफ़ हुआ
हुआ देर से ‘ कृती ‘
पर आखिर में इंसाफ़ हुआ।
📝 वेदस्मृति ‘ कृती 

विषय : मनपसंद लैखन
विधा : कविता

तिथि : 20.3.2020

निर्भया की चीख
-------------------

न बने किसी का वर्तमान-
जो निर्भया का था अतीत,
समाज बने स्वस्थ व सुंदर
हर जीवन बन जाए संगीत।

यही होगा वास्तविक न्याय
कभी न लौटे,जो गया बीत;
हर महिला सदासुरक्षित हो
ऐसे संस्कारों का गूंजे गीत।

बालपन से ही बीजो संस्कार
दरिंदगी कभी नहीं पाए जीत,
न दरिंदगी पनपे और सिंचे-
न निकले पुनः निर्भया चीख।

-रीता ग्रोवर

-स्वरचित

विषय : मनपसंद लैखन
विधा : कविता

तिथि : 20.3.2020
कविता
इश्क शर्मिला होता है,

उनके नजरानों के उल्फत
ये कहाँ से आये
मुहब्बत के नाजो नियम
याद आए
तौबा,
उनकी मुस्कुराहट के
ये कौन से मंजर चले आये
कोई सम्भालों मुझें
की जां निकल जाये
सोला भड़की सी
दिल्लगी करतें हैं
हम भी कम कहाँ
सादगी से मिलते हैं
हमनें सराफत के मेड़
क्या बांध रखे
तौबा,
शुकुन ऐ सोकात
हमारे रहम में कहाँ खिलते हैं

लेखिका
कंचन झारखण्डे
मध्यप्रदेश।

स्वरचित व मौलिक

विषय स्वैच्छिक
विधा कविता

दिनाँक 20.3.2020
दिन शुक्रवार

मोदी जी का सँदेश
💘💘💘💘💘💘

है बदला हुआ सारा परिवेश
मोदी जी ने दिया अच्छा संदेश
नपे तुले शब्द सधी हुई भाषा
नहीं कोई उहापोह नहीं निराशा।

खाने का मिलेगा पूरा सामान
नहीं होगा इसमें कोई व्यवधान
न रखें कोई ऐसा अज्ञात भय
खाने की चीजों का न करें सँचय।

बाइस मार्च को रखें स्वतः नियन्त्रण
घर में ही बितायें अपने मधुर क्षण
यह कोरोना सावधानी का ही है हिस्सा
न बननें दें जीवन का इसे एक किस्सा।

शाम पाँच बजे अपने द्वारे पर आयें
अपने कर्मवीरों के प्रति सम्मान जतायें
ये हमें तहेदिल से अपना सहयोग दे रहे
इनके लिये शुभकामनाओं भरी तालियाँ बजायें।

इस सँकट की घडी़ में ये लगे हुए हैं
हमारे लिये दिन रात जगे हुए हैं
ये डाक्टर हैं,पुलिस है,और भी हैं देवदूत
बिना रक्त सम्बन्ध ही ये कितने सगे हुए हैं।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि
20,3,2020
शुक्रवार

दोहा गीत - कोरोना

कोरोना की मार से आहत है संसार।
दोष नहीं कोई यहाँ करता है स्वीकार।।

रीत प्रकृति की छोड़कर जब करते आहार।
गलत नहीं क्यों मानते ये है अत्याचार।
कृत्य घृणित ऐसा नहीं करना है व्यवहार।
कोरोना की मार से आहत है संसार।

सावधान होकर रहें केवल शाकाहार।
साफ सफाई साथ में नहीं मानना हार।
औषधि देशी ही अभी केवल है आधार।
कोरोना की मार से आहत है संसार।

मानव जीवन के लिए मानवता से प्यार।
जागरूकता ही सदा दूर करे है खार।
कर्मों का फल सर्वदा देता है करतार।
कोरोना की मार से आहत है संसार।

स्वरचित , मधु शुक्ला.
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक २०/३/२०२०
मनपसंद लेखन

जनता कफर्यू

जनता कफर्यू है जरूरी
समझे नही इसे मजबूरी
वैश्विक महामारी को रोकना जरूरी
हो पूरा सहयोग,नही अधूरी।

गर मिले नही कोरोना को कोई मानव
फिर भाग जाये , महामारी का दानव
स्वच्छता का रखे ध्यान
तभी होगा हमारा कल्याण।

है हमारा नैतिक कर्तव्य
रहे सुरक्षित व दे सहयोग
करें आज हम ये संकल्प
जनता कफर्यू में दे सहयोग।

एक एक व्यक्ति करे स्व़ंय को सुरक्षित
तभी सफल होगा हमारा अभियान
सुरक्षित मानव का बने चेन
टूटे फिर कोरोना का चेन।

रविवार २२मार्च को रखे याद
जनता कफर्यू का पालन करें आज
नही रखे कदम घर से बाहर
कर जोड़ मैं करूं अपिल।

देश के भविष्य हैं हमारे हाथ
स्वंय सुरक्षित रह,करें सहयोग
तभी भागेगा महामारी का रोग
करूं अपिल दे सहयोग।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
स्वतंत्र लेखन
शीर्षक -गौरैया

दिनांक 20/03/2020

मेरी सोनी गौरैया
मेरी प्यारी गौरैया
अंगना में तू आजा रे.......

तेरा -मेरा ये है रिश्ता पुराना
तू जाने कहां गई रे ?
अंगना में तू आजा रे.....
कई रंग से मैं तुझे रगूंगी
आने पर मैं तुझे पहचानूंगी
तेरा मधुर संगीत सुनूंगी
अंगना में तू आजा रे....

मेरी सोनी गौरैया
मेरी प्यारी गौरैया
अंगना में तू आजा रे......

दाना चुगाऊंगी ,
पानी पिलाऊंगी,
तेरा- मेरा है बचपन का रिश्ता
अंगना मेरे आजा रे.....
मेरी सोनी गौरैया
मेरी प्यारी गौरैया
अंगना में तू आजा रे...।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज

भावों के मोती।
विषय-मनपसंद।

शीर्षक-कोरोना मेरी हाय लगे। स्वरचित।
दहशत में सारा संसार,
मेरा जीना हुआ दुश्वार,
कोरोना तुझे हाय लगे,
हो मेरी हाय लगे।
दहशत में सब सरकार,
सबका जीना हुआ रे मुहाल
कोरोना तुझ पै मार पड़े,
कोरोना तुझ पै मार पड़े।।

पिया मेरा जो मुझपै कुर्बां था,
अब तो दूर-दूर रहता है।
एक ही घर में रहकर वो
अजनबियों सा दिखता है।
मेरा मन हुआ जाए बेकरार
कोरोना तुझे हाय लगे,हो मेरी हाय लगे...

ना कहीं आते ना कहीं जाते
घर में रहकर ही कैद भुगतते
मेरा गुलशन हुआ रे उजाड़
मेरी नैया बीच मंझधार
मेरी खुशियां हुईं बर्बाद
कोरोना तुझे हाय लगे,हो मेरी हाय लगे...

बच्चे मेरे डरे-सहमे से
आपस में सब खिंचे-खिंचे से।
परहेजों में फंसे-फंसे से
दिखने लगे खिजे-खिजे से।
नहीं मिलना किसी से होशियार
कोरोना तुझे हाय लगे,हो मेरी हाय लगे
हो मेरा जीना हुआ रे मुहाल
कोरोना तुझ पै मार पड़े,
कोरोना तुझपै बज्र गिरे।।
*****

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
19/03/2020

गौरैया दिवस, 20 मार्च पर अपनी कलम से.......

घर के आँगन के पार

कहीं दूर बैठी
एक अकेली गौरैया ने
मुझसे पूछा
मुझको मारा क्यों?
घर की समृद्धि की प्रतीक
ओसारे के किसी कोने में
घोसला था मेरा
उसे उजाड़ा क्यों?

कर दिया वातावरण को
इतना प्रदूषित
कि दम घुटने लगा मेरा
तुम्हारे घर में
मर गये मेरे बच्चे और
मेरा जीवनसाथी
वहीँ दालान में तुम्हारे
मै बच गयी
क्योंकि मादा थी
सहना मेरा स्वभाव है
मगर कब तक?
तुमने प्रकृति का संतुलन
इतना बिगाड़ा क्यों?

एक अकेली गौरैया ने
मुझसे पूछा
मुझको मारा क्यों?

मौलिक रचना सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

20.3.2020
शुक्रवार

मनपसंद विषय लेखन
विषय -कोरोना
विधा - चतुष्पदी

कोरोना

कोरोना से ना डरें, यह बीमारी आम
भयाक्रांत, दुष्प्रचार से, दहशत भरे तमाम
जनता कर्फ़्यू लग गया, जनता है तैयार
जनता,जनता के लिए, जनता द्वारा वार।।

जन जागृति जगा रही,जनता है सावधान
आत्मसुरक्षा से मिले, हर पल जीवनदान
चलो हटाएँ वायरस,कोरोना का क़हर
दहशत से भी मुक्त हो, स्वदेश, समाज, शहर।।

जनता कर्फ़्यू के लिए ,
नियमों का निर्देश
दहशत पर क़ाबू करें,
अपनाएँ आदेश
अभिवादन से नमन की,
अपनाएँ फिर रीत
यही सभ्यता,संस्कृति,
भारत की शुभकामनाएँ प्रीति।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार 
भावों को मोती
20/03/2020

विषय मनपसंद
हाइकु क्षणिकाएं
```````````````````
1~
करोना तू जा
आतंकियों को मार
पाप को मिटा
2~
रेपिस्ट हारे
लटके फांसी पर
निर्भया खुश
3~
जनता कर्फ्यू
पारिवारिक खुशी
कोरोना दुखी
~विजय कांत वर्मा

20/03/2020

विषय स्वतंत्र
दिनांक २०-३-२०२०


नारी से सारा जगत,नारी से ही नर नारायणी है।
नारी गंगा सी पावन ,नारी ममता का सागर है।

नारी समाज का दर्पण,जिसमें संपूर्ण समर्पण है।
नारी कुदरत का तोहफा,जो प्रगति का संबल है।

कुल की मर्यादा खातिर,वो विष प्याला पीती है।
सुख-दुख परछाई बन,वो अर्धांगिनी कहलाती है।

नारी बिन नर अधूरा ,वो कल्पतरु की छाया है।
नारी से नर उपजे,उसने ही नारी को लजाया है।

कभी त्याग की बलि चढ़ी,कभी जिंदा जलाई है।
नोंच नोंच खाया कुत्तों ने,पर दया उन्हें ना आई है।

कर्ज चुकाया नारी ने,पर सीता कलंक बची नहीं।
अग्नि परीक्षा दी,पर उसको मुक्ति कहां मिली है।

नारी महिमा बखान,पुरुष समाज न कर पाएगा।
उसके उपकार गिनते,वो यूं हर युग हार जाएगा।

दुर्गा लक्ष्मी रूप नारी,नारी ही कुल की मर्यादा है।
फिर भी नारी का जीवन, भोग विलास साधन है।

रोज संस्कार ताकत,इंसानियत को तोड़ा जाता है
नारी मान कामुक,बस खिलौना बन खेला जाता है।

पुरुष प्रधान युग मेरा,नारी को अधिकार नहीं है।
उसके सतीत्व रक्षा हो,ऐसा कोई माँ लाल नहीं है।



वीणा वैष्णव
कांकरोली
19/3/2020
बिषय, स्वतंत्र लेखन

भगवान बचाओ महामारी से
दूर रखो इस बीमारी से
हे प्रभु कैसा संकट आया है
हर चेहरे पर भय का साया है
दोनों ओर से पड़ रही है मार
प्रकृति की नाराजगी के आसार
ओले पानी से आदमी परेशान है
जाए तो जाए कहाँ बहुत ही हैरान है
अब तुम्हे ही प्रभु कोई रास्ता निकालना है
बिचलित है इंसान इनको संभालना है
कैद हैं बच्चे खेल नहीं सकते
इतनी कठिन त्रासना राम झेल नहीं सकते
जिगर के टुकड़े बाहर वहीं लगा है मन
वही हमारी आंखें वही हमारा धन
हे भगवान अब तो कृपा कीजिये
महामारी जैसी आपदा को जल्दी समेट लीजिये
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
20/3/20
विषय-मनपसंद



खयालो में मेरी जब भी तुम आये।
मुहब्बत के नाजो नियम याद आये।

सपनो में आना चुपके से जगाना।
मीठी शरारत की वो हदे याद आये।

नजरो से नजरो की दीदारे कहानी।
प्यार के पैगाम की अदा याद आये।

अभी तो यही थे अभी तो वहाँ थे।
छुपे रुस्तमगी में तुम बहुत याद आये।

वो तिरछे से नैना मुरलिया खिलौना।
गए लूट दिल को अजी याद आये।

तुम्हे बस कसम है ओ मेरे कन्हाई।
भुलाना न हमको जब हम याद आये।

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय-मनपसंद लेखन
तिथि-20/03/2020




सँभालो बेटों को

निर्भया को न्याय मिला है,
मन को एक सुकून हुआ है।
पर उलझी सी एक गाँठ है,
जिसने मन को बहुत छुआ है।


ममता के मारों अब भी चेतो,
परवरिश तुम्हारी खोटी है ।
लड़के कुछ भी कर डालें
यह सोच तुम्हारी छोटी है।

अगर बेटी से इज्जत है तो ,
बेटे क्या दाग लगाएंगे,
संभालो अपने बेटों को भी,
मरेंगे खुद तुम्हें रुलाएंगे।

दूसरे की बहन बेटी पर जो,
गिद्ध सी आंख गड़ाते हैं ।
सोचो वे क्या बच पाए हैं,
अरे!!खोकर जान क्या पाते हैं?


जब तक बेटे को भी यह,
मानवता की शिक्षा नहीं मिलेगी।
लेकर जान किसी बेटी की
खुद की जान भी भेंट चढ़ेगी।


जब बेटी को शिक्षा देते हो,
क्यों बेटे को नहीं समझाते?
अगर शुरू से समझाते तो,
आज वे जान यूँ नही गँवाते।



आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

शुक्रवार/20/03/2020
विषय- मनपसंद

विधा - काव्य
शीर्षक है " ख़ामोशी "

मैं ख़ामोश हूँ,
मजबूर नहीं !
तुम सोचते होगे
खामोश क्यूं हूँ
मैं कहती हूँ ....
मेरी ख़ामोशी
मेरी घुटन नहीं है!!
**************
मेरी खामोशी गूँगी नहीं!
तुम समझ सको तब न !
ये शब्द भी कितने प्यारे ...
होते हैं !!
*******************
कम से कम तुम आज
तो सुन ही लो इसे ........
तभी पहचान पाओगे मुझे!!
मेरे अस्तित्व को भी जान
पाओगे तुम ......
मतलब तो बहुत हैं इसके ...
और लोग भी निकाल लेते हैं...
पर समझदारी तभी है .....
तुम समझ सको मुझे!!!!

रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार -सुरक्षित
धनबाद -झारखंड
मनपसंद/पसंद अपनी अपनी
20/3/2020/शुक्रवार

*खुशी* छंदमुक्त

खुशी कहीं खरीदी
और न हीं बेची जाती खुशी हमारे मन में बसे
हमारी भावनाओं
विचारों में फलें फूले
मन चंगा
तो कठौती में गंगा
कहावत प्रसिद्ध है।
मन के मरने पर ही
मानव सचमुच विफल होता है
मन में दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति के बल पर
आदमी शिखरों पर पहुंचता है।
खुशियां हमारे आसपास ही घूमती है
सुकर्म धर्म से
फलती फूलती है ं।
हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं अपने
मनोभावों को टटोलें
अपनी अंतरात्मा में झांके ‌खुशी कहीं दबी पड़ी है।
खुशी बांटने से बढ़ती है
अपनी आत्मा की खुशी के लिए आत्म निरीक्षण आवश्यक है
हम अपनी भावनाओं को परिष्कृत करेंगे तो
निश्चित खुशी मिलेगी और दूसरों को भी।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र जयजय श्रीराम रामजी

*खुशी*छंदमुक्त
20/3/2020/शुक्रवार
29-93-2020
स्वतंत्र लेखन।

विधा- चौपाई
%%%%%%
दोहा-
आस हमें प्रभु आपकी, सुनिए आज पुकार।
पीर हरो अब विश्व की, लेकर नव अवतार।।

रोग विकट फैला जग माँही।
है प्रभु सुधि लेते क्यों नहीं।।
जन जन विनय करें कर जोरी।
हरो आप यह संकट मोरी।।
आर्तनाद करती है जनता ।
करते कुछ न किसी से बनता।।
ले अवतार पुनः प्रभु आओ।
भक्तों पर अब दया दिखाओ।।
सुरसा जस मुँह खोल कोरोना।
लीले बूढ़ा हो या छौना।।
हुई भयावह स्थिति सारी।
जूझ रहे जग के नर नारी।।
बिलख रहीं घर घर अबलाएँ।
सुत भगिनी अरु हर माताएँ।।
त्राहि माम चहुँ ओर सुनाए।
तुम बिन प्रभु अब कौन बचाए।।

दोहा-
प्रीतम करता है विनय, चरणन शीश नवाय।।
सृष्टि घिरी है विपत्ति में, लीजै इसे बचाय।।

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)


"तुम आओगे एक दिन"

तुम आओगे एक दिन

मुझे ये यकीं है l

उज़ाले के नशे से निकलकर
अट्ठालिकाओं से भागकर,
ठहरा हुआ शरीर लेकर
मन में गहरी पीड़ लेकर
तुम आओगे एक दिन
मुझे ये यकीं है l

कि तुम्हारे छोड़े ये निशान
तुम्हें याद आएंगे बार-बार
तुम्हारे गुजरे निस्वार्थ पल
बुलाएंगे तुम्हे हजार बार,
तुम थक जाओगे
दौड़-दौड़ के चमकती दुनियां में,
सिमट जाओगे तुम
चकाचौंध की संकरीली गलियों में,
धुंधला जाएगी चेहरे की रौनक
ऊंची काली चिमनियों में,
पत्थरों के शहर में
खुली हवा के लिए तरसना होगा,
भीड़ भरी गलियों में
पग-पग सरकना होगा,
जीने के लिए रूकना चाहोगे
पर रूक न सकोगे
मन की बहकती आशाओं से
साफ-साफ बच न सकोगे,
शरीर का कोना-कोना
दे देगा जब रूखा सा जबाब
नहीं देख सकोगे तब
आस को उलझाते ख्वाब,
तुम आओगे एक दिन
मुझे ये यकीं है l

पर मुझे ये यकीं नहीं है,
कि वो पल तुम्हें मिल सकेंगे
जिसकी आस तुम्हें होगी,
वो उजाले तुम्हें मिल सकेंगे
जिसकी प्यास तुम्हें होगी,
जीवन का बचा हुआ हिस्सा
खुले में बिता सकोगे
विचारों के उमड़ते ज्वार को
शायद ही तुम दबा सकोगे,
मुझे ये भी यकीं नहीं है
कि आशाओं को विराम दे सकोगे
ज़हर जो चढा है
मतलब का मन पर
उसका अंजाम सह सकोगे,
क्यों कि---
अब गांव वो गांव नहीं है
अब शाम वो शाम नहीं है
जहां झूले थे तुमने
सावन के झूले,
अब दोस्त वो दोस्त नहीं है
तुम जो भूले
वो भी तुम्हे भूले l

फिर भी मुझे ये यकीं है
तुम आओगे एक दिन , क्यों कि

ये गांव तुम्हारा है
ये शाम तुम्हारी है
पीढीयां जहां पे ठहरी, सोई
पेड़ों की वो शाम तुम्हारी है,
ये डालियों संग गाती हवाएं
अब भी तुम्हें याद करती है,
मिट्टी के जर्रों की खुश्बू
मिलनें की फरियाद करती है,
झूले शायद हो न हो,
दोस्त तुम्हें मिले न मिलें,
रिश्ते गले लगे न लगे,
जितना चाहे जी लो यहां
हर लम्हा मेहरबान तुम्हारा है,
जर्रा-जर्रा है तुम्हारा
तुम हो हर जर्रे के,
ले लो कुछ विश्राम यहां
गांव के कूंए के पिछवाडे़ में
आखिर वो 'शमशान' भी तुम्हारा है,
तुम आओगे एक दिन
मुझे ये यकीं है,
यमुझे ये यकीं है l

श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूरू)

भावों के मोती
विषय- मनपसंद विषय लेखन दिनांक- 20/03/ 2020

दिन- शुक्रवार

शब हो गई बहुत चलो अब सो जाएं सपनों की रंगीन दुनिया में खो जाएं मैं खोजूं तुम्हें तुम खोजो हमें
एक दूजे में ऐसे खो जाएं
शब हो गई बहुत चलो अब सो जाएं।
कुछ तुम अपनी कहो कुछ हम अपनी सुनाएं
जिंदगी के सारे गम हंसकर भुलाएं
किसी को नहीं मिलता यहां मुकम्मल जहां
तुम अपने दिल को, हम अपने दिल को समझाएं
सब हो गई बहुत चलो अब सो जाएं।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।

भावों के मोती
तिथि : 20/03/2020

विषय : मनपसंद लेखन
विधा : कविता

शीर्षक : प्यार की अगन

ये प्यार की अगन
ये तपते बदन
तुम्हारे लिये
ये कैसी लगन!

ये होठों का कम्पन
ये नैनों की थिरकन
तुम्हारे लिये
नैनों में झिलमिलाते स्वपन!

ये दिल की धड़कन
ये सांसों की सिसकन
तुम्हारे लिये
यह कैसा स्पंदन!

तुम मेरे भगवन
मैं तुम्हारी पुजारिन
तुम्हारे लिये
ये भाव औ समर्पण!

अनिता निधि

दिनांक- 20/03/2020
शीर्षक- जागरूकता
िधा- छंदमुक्त कविता
*******************
भय से बढ़ती है बीमारी,
कॉरोना जैसी महामारी,
जागरूकता लानी होगी,
अफवाह न फैलानी होगी |

भीड़-भाड़ से दूर रहना,
बार-बार हाथों को धोना,
गले किसी के नहीं लगना,
हाथ जोड़ नमस्ते करना |

स्वच्छता का रखें ध्यान,
घर के ही खायें पकवान,
जागरूक हो जाओ इंसान,
कॉरोना से बचाओ जान |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय - मनपसंद
20/03/20

शुक्रवार
गज़ल

इंसान के जीवन का आधार ख़ुदा है,
सुख -शान्ति और प्रेम का एक सार ख़ुदा है।

विपदा में सबकी आस उसी से लगी हुई,
दुख-दर्द में करता जो चमत्कार ख़ुदा है।

सब पर दया की दृष्टि वह रखता है हर समय,
करता नहीं जो भेद का व्यवहार खुदा है।

उसको नहीं ख्वाहिश कभी पुष्पों के हार की,
अंतर की साधना का तलवगार खुदा है।

कितने भी धन-वैभव के लोग कोष जुटा लें,
पर आखिरी साँसों का बस उच्चार ख़ुदा है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक 20 मार्च 2020

उम्र भर भटका बुढापा,फिर जान ढूंढता है
इंसान एक अदद अपनी पहचान ढूंढता है

रत्नों की ख्वाहिश थी, दूर तक चलता गया
एक से दिल न भरा, वो पूरी खान ढूंढता है

अच्छा न कहे कोई,तो कोई बुरा भी ना कहे
महफिल मे बैठ सके इतनी सी आन ढूंढता है

हुनर था कुछ ,जुनून था कुछ और चंद सपने
कुछ दिल की जुत्सजु, बस वही शान ढूंढता है

बहुत पढा किताबों मे, बहुत सुना जाना भी
दिल को जो सुकून दे सके वो ज्ञान ढूंढता है

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

दिनांक – 20/03/2020
विषय कोरोना


मास्क ऊंचे दामो मे बिकने लगा है
कोरोना तेरा असर दिखने लगा है ॥

हर ओर छाया बस तेरा ही चर्चा
खौफ नजरों मे दिखने लगा है ॥

खोज रही बचने के उपाय दुनिया
हर कोई भय से छिपने लगा है ॥

चीन से निकल दुनिया मे फैला
इंसान तकलीफ से गिरने लगा है ॥

सितम कितने और तेरे है बाकी
मौत का तांडव फिरने लगा है ॥

सोचे और क्या करे तू ही बता
नही कोई अब मिलने लगा है ॥

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

दिनांक-20-3-2020
विषय-मनपसंद लेखन

विधा-छंदमुक्त कविता

"हमारी मित्र गौरैया"

मेरे आँगन में नीम के पेड़ पर
इक नन्हीं गौरैया आती थी
चीं चीं करके चहक चहककर
मुझको रोज जगाती थी।

फुदक फुदक कर चलना उसका
मेरे दिल को बड़ा सुहाता था
मैं भी संग उसके चहकूँ
सोच के मन ललचाता था।

बड़ी चतुर बड़ी चंचल थी
फुदक कर पास आ जाती थी
जब भी पकड़ने को हाथ बढाऊँ
फुर्र से वो उड़ जाती थी।

धरा गगन की रानी थी वो
पिजड़े में न रहती थी
आजादी अनमोल जगत में
बात यही सिखलाती थी

हम सबकी परम मित्र ये
पहले दिखती थी हर घर आँगन में
डाली डाली फुदका करती थी
कुंज गली और कानन में।

मोबाइल टॉवर,ऊँची इमारतें
जानलेवा सिद्ध हो रहे हैं
अतिआधुनिकता के मारे मनुज
मानुष रूपी गिद्ध हो रहे हैं।

विलुप्त हो रहा ये सुंदर पक्षी
गौरैया का अस्तित्व खो रहा है
इसे बचाने हेतु अभी भी
उपाय न पर्याप्त हो रहा है।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय- मनपसंद लेखन
विधा-मुक्तक

20/3/20
***
मोहब्बत का जब साया था,
खुशियों को हमने पाया था,
दर्द तन्हाई के सब भूली,
दिल मे जब से तू आया था ।
***
साथ तेरा जब से पाया था,
नैनों ने सपना सजाया था,
जीवन के हर एक मोड़ पर,
तुमको साथ अपने पाया था।
***
दूर अपना भी जब साया था,
वादा तब अपना तुमने निभाया था,
उजड़ी मेरी जीवन की बगिया को,
तूने ही तो महकाया था।
****
स्वरचित- रेखा रविदत्त

दिनांक - 20/3/2020
विषय -मनपसंद


16 दिसंबर 2012 की वह काली रात
देश की एक बेटी से किया जघन्य बलात्कार
मानवता की सारी हद को लाँघा था जिन्होनें
आज फाँसी का फंदा मिला उन्हे उपहार ।

देकर अपना बलिदान हमारा साथ छोड़ गई
संदेश,मानवता के नाम अपना छोड़ गई
कब तक अस्मत बेटियों की इस तरह लुटेगी ?
कानून की मोटी किताब में एक पन्ना जोड़ गई ।

देश के कोने-कोने से हर आवाज़ उठी थी
हुए धरनें और कैडिल मार्च की लौ उठी थी
नारों संग सर्वत्र हुआ था जबर्दस्त विरोध
सामाजिक संगठनों ने भी लड़ाई लड़ी थी ।

उसके माता-पिता ने वह मार्मिक वेदना जानी
अपनी बेटी को इन्साफ दिलाने की ठानी
अदालतों के चक्कर उन्होनें लगाए बहुत
पर हार तनिक भी उन्होनें नहीं थी मानी ।

असत्य हर हाल में परम सत्य से हारता है
संविधान का हर पृष्ठ खुद को ही आँकता है
न्याय की पूज्या देवी की जब कृपा हुई
सज़ा फाँसी की न्यायाधीश तब बाँचता है ।

20 मार्च 2020 बना ऐतिहासिक दिन
उन बलात्कारियों का वह निर्धारित
मरण दिन
निर्भया के नाम यह न्याय दिवस
घोषित हुआ
अब रहेगी ना कोई बेटी इंसाफ के बिन ।

देश की एक बेटी ही नहीं,प्रेरणा हो तुम
कभी अबला खुद को ना समझना तुम
अन्याय,अत्याचार का सदा विरोध करना
हिम्मत हारकर चुपचाप नही बैठना तुम ।

अब जिन्मेदारी एक और हम सभी को निभानी है
संस्कारिता बेटों को हमें खुद ही सिखानी है
किसी की बेटी का ना करें कभी तिरस्कार
उनकी मानसिकता नेक और उदार बनानी है ।

संतोष कुमारी संप्रीति
मंच को नमन
भावों के मोती

विषय - मनपसंद लेखन
20/3/2020

अनबूझी प्यास
************####

आलिंग्न था या प्रेमपाश,
बाँहों के घेरे या मधुमास
साँसों की तपीश थी या
तेरे मन की अनबूझी प्यास ?

प्रिय तुम मधुमास तो
मैं बसंत हूं।
तुम सागर तो मै अनंत हूं।
मै तेरे जीवन के साथ,
सपनो के साथ,
साँसों के साथ
मै तेरे जीवन पर्यन्त हूं ।

फिर सावन आया
घुमड़ -घुमड़ बादल छाए
रिमझिम पानी बरसा भी,
तन झूम उठा मन झूम उठा
सावन के साथ तुम आते काश !
मन मयूर नाचता बरबस,
सावन के साथ खुशियाँ मनाते हर्षोल्लास।।

आ जाओ प्रिये तुम एक बार
फिर दे दो आलिंग्न और प्रेमपाश,
वो मधुर शान्ति और वही मधुमास,
साँसों की तपीश और अनबूझी प्यास।
आ जाओ प्रिये तुम बार
बस एक बार बस एक बार ।।

माधुरी मिस्र
बिषय:-मन पसन्द रचना
विधा:- गीत

तुम जो आए जिंदगी में,
फूल सारे खार हो गये|
जीने की चाह जाग उठी,
ख्वाहिशों के द्वार खुल गये।

सारी गुत्थियां सुलझ गयीं,
जीत सारे हार हो गये।
दिल की हर उम्मीद जाग उठी,
स्वप्न सब साकार होगये।

कल्पना को गीत की सौगात,
पंख को परवाज़ मिल गये।
बेकली को चैन मिल गया,
ग़ज़ल को अश आर मिल गये।

धरतीऔर आकाश कीदूरी
बाहों में सिमट के आ गयी।
धड़कनों में जान आ गयी,
गीतों को अंदाज़ मिल गये।

कल्पना को मिल गया यथार्थ,
लेखनी को मार्ग मिल गये।
और हमें काव्य के अनमोल,
कीमती उपहार मिल गये।

मेरी मौलिक रचना
विजय श्री वास्तव
मालवीय रोड
गांधी नगर
बस्ती


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