Thursday, March 5

"वर्तमान"04 मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-675
विषय वर्तमान
दिनांक-4/03/2020

भीषण त्रासदी से गुजर रहा है वर्तमान
संभल जा मानव वर्ना मृत्यु सच मान।

सारे जंगल काटकर तूने घर बनाया
नदियाँ गंदी करने में तू न शर्माया।

मूक पशुओं को मारकर खाता रहा
इंसानियत को जिंदा जलाता रहा।

भारत आज फिर से थरथरा गया
हमारे घर भी कोरोना वायरस आ गया।

आज ही संभल प्रायश्चित कर गलती का
वरना भगवान ही जाने क्या होगा तेरी गलती का।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)
दिनांक- ०४ /०३/२०२९
आज का विषय-#वर्तमान*

विधा-काव्य
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गया गर्त में भूत कभी प्रतिकार नहीं ढोना है।
आशंका से नहीं मनुज को कभी चिन्त्य होना है।।
जिसका वर्तमान अच्छा है वह वैभव शाली है।
कहलाता नरश्रेष्ठ वही नर स्वयं प्रीतिपाली है।।
उर चेतना प्रफुल्लित होकर प्रेम वरण करती है।
उस मानव की प्रणय पीठ का आलिंगन करती है।।
वर्तमान उपरान्त काल आएगा जय बोलेगा।
मानव की वैभवता के पट वह बढ़कर खोलेगा।।
विद्यमान जो काल मनुज उसको संभालकर रख ले।
स्वयं प्रेरणाभूत हुआ जो फल इच्छित का चख ले।।
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'अ़क्स' दौनेरिया

4//3//2020
बिषय,, वर्तमान,,

वर्तमान संवारो भविष्य संवर जाएगा
स्वयं को सुधारो जग सुधर जाएगा
वन ,जंगल हम काट रहे हैं
स्वयं दुख हम छांट रहे हैं
यदि चिंतन हम नहीं करेंगे
भावी पीढ़ी क्या देखेगी
आपत्तियों की झोली खुद भरेंगे
जो नहीं रहेंगे प्रकृति के अनुकूल
अवश्य ही पड़ेगा प्रभाव प्रतिकूल
भीषण त्रासदियों को झेलना पड़ेगा
कभी आग कभी पानी से खेलना पड़ेगा
जिसने वर्तमान को जिया वह विजयी होगा
वरना गर्त में मिल कठनाइयों का बोझ ढोगा
दंगा फसादों में कब तक फंसे रहेंगे
मुठ्ठीभर लोगों से कब तक डरेंगे
ऐसे आतताइयों को जड़ से उखाड़ फेकना है
भारत का भविष्य सुदृढ़ कर सहेना है
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार

विधा काव्य
04 मार्च 2020,बुधवार

कालचक्र न कभी रुका है
पल पल आगे बढ़ता रहता।
वर्तमान हर क्षण कीमती है
जीवन है नित आगे बढ़ना।

वर्तमान शुभ मङ्गलमय हो
चलो सदा सुपथ पर वीरों।
जीवन संघर्षो का मेला है
करो उपकार सदा अमीरों।

लोकतंत्र के प्रिय शासकों
जन प्रगति के डग चल लो।
दीन हीन को गले लगाकर
सुख शांति जीवन में भरदो।

वर्तमान अति कठिन परीक्षा
पौध लगाओ फूल खिलाओ।
निर्मल विशुद्ध पर्यावरण हो
लो संकल्प ,मशाल उठाओ।

वर्तमान इतिहास रचयिता है
स्वर्गीम सुन्दर अक्षर लिखदो।
विश्व मानचित्र अंक भारत में
नवरंग विकास शुद्ध भर दो

यह भरत का देश है भारत
हमने वर्तमान नित पकड़ा।
धूल चटा दी आतंकियों को
रिपु समूह आगे बढ़ जकड़ा।

पल पकड़ो हर क्षण जकड़ो
वर्तमान कंही निकल न जावे।
खून पसीना सदा बहाता जो
वह भविष्य को सुखद बनावे।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - वर्तमान
प्रथम प्रस्तुति


वर्तमान को पढ़ना सीख
वर्तमान को गढ़ना सीख!
भविष्य को किसने देखा
वर्तमान में बढ़ना सीख!

अकर्मण्य नही पल भर रह
विपदाओं को हँस कर सह !
मौसम बदला दिन बदलेंगे
स्वयं समझ दुनिया से कह!

बीता पल ये कल न आए
क्यों न हर पल जिया जाए!
पलक झपकते अतीत बने
वर्तमान को सिंया जाए!

बदल रहा है सब कुछ यार
फिर कैसी ये सोच विचार!
कर्म किए जा सतत 'शिवम'
आएगी निश्चित बहार!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
वर्तमान में जीना सीखों, वर्तमान में मरना.
वर्तमान में रहना सीखों, वर्तमान में करना.

वर्तमान से ही बनता है, जीवन अपना सुंदर
वर्तमान के रंग रंगता, है भविष्य अविचल.
वर्तमान पर ही खड़ा है, भविष्य का महल.
वर्तमान को ठीक करेंगे, होगा ठीक भविष्य
वर्तमान ही तो बनता है, बीता हुआ अतीत.
वर्तमान का रोना धोना ठीक नहीं है भाई
वर्तमान की सीढ़ी चढ़कर आयेगा भविष्य
वर्तमान संघर्ष बनता इतिहासों की लीक
वर्तमान अंकुर बनता भविष्य का वटवृक्ष
वर्तमान से क्या घबड़ाना?
वर्तमान भविष्य का खज़ाना!
वर्तमान में करके दिखाना!
आयेगा फिर अपना जमाना!

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन

विषय--वर्तमान
_______________
न भूत में और ना ही वर्तमान
मिला कब नारी को सम्मान?
अपनों ने ही छला सदा
कभी कुल कभी राष्ट्र की मर्यादा
कभी हार-जीत के पासों में
कभी अपनों से मिले झाँसों मे
अपमान के आगे होंठ सिये
अपनों की खातिर गरल पिये
जिसने चाहा जैसा चाहा
अपना उसपर हुक्म चलाया
जब पानी सिर के पार हुआ
सरका पल्लू प्रतिकार हुआ
उठ खड़ी हुई चण्डी बनकर
सम्मान के लिए लड़ी तनकर
बार-बार फिर दमन हुआ
जोश और जज्बा न कम हुआ
ज़िंदगी बँधी कभी शर्तों पे
अब आशाएं जन्मी उन पर्तों से
उम्मीदें उड़ाने भरने लगी
सपनों को आकार देने लगी
रोक लगी,टोक लगी
मुश्किल पग-पग पे आन पड़ी
जब किया इरादा उड़ने का
फिर डर छोड़ दिया मरने का
यह नारी आज की नारी है
जिसकी लड़ाई सदा जारी है
नहीं डरती किसी के त्याग से
नहीं माने किसी के दाँव ये
यह जीवन उसका अपना है
अपनी मर्जी,अपना सपना है।
अनुराधा चौहान स्वरचित 

भावों के मोती ।
विषय-वर्तमान।
स्वरचित।
वर्तमान को पी ले तू ।
अपने मन की जी ले तू ।
बीत गया जो फिकर ना कर ।
उसका अब तू जिकर न कर।।
वर्तमान को पी ले तू ।
अपने मन की जी ले तू।।....

वर्तमान ही सच्चा सुख
आगे सोच मिलेगा दुःख।
छोटी छोटी खुशियां चुन।
बड़ी के चक्कर की ना धुन।।
वर्तमान को पी ले तू ।
अपने मन की जी ले तू।।....

जिएगा जो मन की तू
भविष्य पाएगा अच्छी तू
दुनिया की तू फिक्र न कर
अपनी दुनिया जी जीभर।।
वर्तमान को पी ले तू ।
अपने मन की जी ले तू।।.....
***
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
दिनांक-4-3-2020
विषय-वर्तमान



बीते कल की बात
कल में ही रहने दो
आने वाले कल को
स्वतः ही आने दो

वर्तमान ही अपना है
उसमें स्वयं को बहने दो
वही हमारा अपना है
उसे ही संवरने दो

कल जो बीत गया
उसकी क्या चिंता करना
आने वाले कल को ले
घुट घुट कर क्या मरना

वर्तमान को गले लगा के
सजग रहो हर पल
सुंदर इस जीवन का
है आज सुनहरा पल।

ईश्वर का उपहार मिला है
बनाओ जीवन सफल
सुखद बनाओ आज का दिन
मत करो अब 'कल','कल'।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय-*बर्तमान*
विधा-गीत

सबक सीखकर भूतकाल से, अब बर्तमान में जागो जी।
तुम्हें गालियां देंगी पीढ़ी, कुछ तो भविष्य सुधारों साथी,अपना आलस्य त्यागो जी।
सबक सीखकर भूतकाल से------

धर्म सिखाए न जो मानवता, उसको वही अधर्मी मानते।
जिनके मन बसती है घृणा,
सच सभी गहराई जानते
सब सही सही क्या समझो जी।
सबक सीखकर भूतकाल से----------

भूतकाल का होम लगाओ, बर्तमान पर नजर गडाओ।
भावी पीढि़यों को समझाओ।
अब नहीं आग को सुलगाओ।
मत घर घर को जलवाओ जी।
सबक सीखकर भूतकाल से----------

हम रक्षक संस्कृति के सारे।
पाए संस्कार हमने प्यारे।
हम भारतीय भारतवासी,
सब जनजन के राजदुलारे।
कहीं अच्छी राह दिखाओ जी।
सबक सीखकर भूतकाल से---------

जब बर्तमान से भागोगे,
फिर आगे क्या कर पाओगे।
पूरे जल जाओगे मानो,
अगर कहीं पीठ दिखाओगे।
नहीं क्षमा करती संतांने
कुछ हमें मंतव्य जताओ जी।
सबक सीखकर-----

सबक सीखकर भूतकाल से
बर्तमान में जागो जी
तुम्हें गालियां देंगी पीढ़ी,
बर्तमान में जागो जी।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
जयजय श्रीराम रामजी

भा*बर्तमान*गीत
4/3/2020/बुधवार

शीर्षक -वर्तमान
दिनांक -04/03/2002।


आज वर्तमान सिसक रहा है
कहां खो गया अपनापन।
हरे-भरे मैदानों में भी
दिखता है विरानापन।
लोग बहुत ,पर नहीं है अपने
जाने कहां गए वो सपने
घोर उदासी मायूसी है
यह कैसी खामोशी है।
तूफान कहीं क्या आनेवाला
नजर ना आता है रखवाला
हांफ रहे हैं चलते जन- जन
यह कैसा विरानापन है।
सब के सब अनजान बड़े हैं
जैसे कि एहसान बड़े हैं
औलादों पर ऐतबार नहीं है
कोई भी तैयार नहीं है।
सुनसान है गलियां सूने वन
ये कैसा है वर्तमान ।
सरहद पर तो शांति नहीं है
चेहरे पर भी कांति नहीं है
भूखे नंगे मरते कृषक
शहरों की गलियां है जग जग
अपना अंतर्मन रोता है
एक अकेले ही सोता है
कोई नहीं आधार है मिलता
नई क्रांति का बिगुल है बजता
जागेगा जब अपना जन- जन
तभी वर्तमान सुदृढ़ होगा । ।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
विषय : वर्त्तमान
विधा : हाईकू

तिथि : 4.3.2020

कहां है भान
भटके वर्त्तमान
मनु दे ध्यान।

क्यों वर्त्तमान
धरता क्यों न ध्यान
निरा अज्ञान!

रमी विज्ञान
ये पीड़ी वर्त्तमान
खोया अध्यात्म!

सुस्वस्थ ज्ञान
बन निरभिमान
सुवर्त्तमान।

युग बवाल
ये वर्त्तमान काल
कीचड़ ताल।

धर्म संहार
असुरक्षा अपार
रो वर्त्तमान।

है वर्त्तमान
करोना वायरस
अभिशापित?

पर्व कुपित
वर्त्तमान शापित
होली केरोना।

--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
04/03/2020
**वर्तमान**

(16,14 अंत-तीन गुरु)

कहकर तुम कड़वे अतीत को, हमको तो भरमाओगे।
आँखों पर पट्टी जो बाँधी, कैसे उसे हटाओगे?

पुरखों की वैसी करनी को, हम कैसे सुलझावेंगे।
मकड़ जाल है प्यारे ये तो, उलझन में रह जावेंगे।

अपने जीवन के बारे में, वो अगली पीढ़ी जानें।
वर्तमान अपना है भैया, तेरी बातें क्यों मानें।

निरे पुजारी मंगल-मोद के, सोम-सरस बस पीना है।
भूत-भविष्यत से क्या लेना, वर्तमान में जीना है ।

तुम तो बस छलनी करते हो, उलटे सीधे तानों से।
दिलावरी जिसने दिखलाई, बिंधे गये वो बाणों से।

पुरखे तो परख नहीं पाये, बेमौत गये वो मारे ।
घमासान से किसको लेना, अपने को तो वारे-न्यारे।

अरे सबक उनको मिलती है, इतिहास की किताबों से।
जो जगकर बाहर निकले हैं, अपने मीठे ख्वाबों से।

तुम ही कहो जगायें कैसे, नौटंकी अधजागे को।
माटी कैसे माफ करेगी, ऐसे अधम अभागे को।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विधा कविता
दिनाँक 4.2.2020
दिन बुधवार

वर्तमान
💘💘💘💘

भविष्य की आपाधापी में,खो देते हम वर्तमान
और मजे़ की बात एक दिन,कहलाते फिर निवर्तमान
समय बीते या ना बीते,कर देते एक दिन प्रस्थान
छोटे से बडे़ तक के,जीवन का है यही बखान।

कोरोना ये नया आगया ,खडे़ कर दिये प्रश्न
वर्तमान और भविष्य के,उल्टे कर दिये ज़श्न
शेयर सब औंधे गिरे,त्रस्त हुआ बाजा़र
बढ़ते बढ़ते एकदम गिरे,कैसे आयी यह मार।

हम जीयें आज में जीयें,और अभी में जीयें
जो रस उपलब्ध हो,उसी को मजे़ से पीयें
भविष्य तो बस सबके लिये,जलेबी लटकाता है
शंकाओं के बीच बताओ,कौन कितना उछल पाता है।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर

विषय-वर्तमान
विध
ा-छंदमुक्त कविता


पथिक जीवन के देखो
उस ज्योती को जो
जल रही है लगातार
एक निरंतर पथ पर
उसी तरह तुम्हें भी
चलना होगा ऐसे ही
जैसे क्षण क्षण पिघल
रही है मोम वैसे ही
और जड़ होते हुए
मिट कर भी अपने
आप को कर्म को
बदला नहीं वर्तमान
जो उसका है उस
उम्मीद मैं खुद मिट
कर अपने भविष्य को
बनाने की धुन सवार है
उसी तरह अपने कर्म
पथ को हृदय चेतना को
जलाए रखना ही होगा
तुम्हें भी पिघलना तो नियति है।
उस अवचेतन मन की चेतना
की लौ निरंतर जलाना
उसे बुझने नहीं देना


स्वरचित

नीलम शर्मा#नीलू
दिनांक- 4/3/020
शीर्षक- "वर्तमान"
विधा- कविता
*************
भारत की वर्तमान स्थिति,
क्यों हो रही अब बेकार,
जिम्मेदार कौन बनेगा?
कितनी हो रही तकरार |

पार्टियां बना ली सबने,
काम से कर रहे इनकार,
देश के गद्दारों ने देखो,
लूट ली भारत सरकार |

भूत तो बीता जैसे-तैसे,
वर्तमान स्थिति बड़ी खराब,
भविष्य में जाने क्या होगा,
किससे करें सोच-विचार?

स्वरचित- संगीता कुकरेती
तिथि-04/03/2020
दिन- बुधवार

विषय- वर्तमान
विधा- स्वतंत्र

अबला असहाय वर्तमान,
सिसक सिसक कर
अपना हाल सुना रहा है .....
दुर्गति हो रही है मेरी
कोख में मारी जातीं हैं बेटियाँ ...
कहीं धधकती अनल में जिंदा जलाई जातीं हैं बेटियाँ ...
कभी सरे आम अपमानित की जातीं हैं बेटियाँ !!
और भी कई बातें कहते-कहते
वर्तमान संवेदनाओं में घिर जाता है......
कहीं मज़हबी उग्रवादियों का दवाब
कभी वंदेमातरम् का अपमान ....
देश के मौजूदा हालात पर ....
असहाय वर्तमान!!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद-झारखंड

दिनांक, ४,३,२०२०.
विषय , वर्तमान .


आगे पीछे कम ही झांको ,
बस राह सामने देखो जी ।

कल का नहीं कोई भरोसा,
फिर क्यों इतना सोचो जी ।

तुम इतिहास के पन्ने पलटो,
गर सीख मिले तो ले लो जी।

वक्त मिले जो तुम्हें आज से,
तो नजरें कल पर डालो जी ।

तेरी वर्तमान की गागर में ही,
सभी कल के भरे हैं सपने जी।

संभल संभल कर ढ़ोना गागर,
कहीं बिखर न जायें सपने जी।

सिक्के के दो पहलू सा जीवन ,
कल आज फिर कल है जी।

जन्म मरण और कोख की यात्रा,
इस संसार में सबको करना जी।

सजग रहा तीनों काल जिया वो,
रह न गया वर्तमान का रोना जी।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .

आज का विषयः- वर्तमान

इतनी बात बन्दे ले तू भली भांती जान।
बदल गया भूत से बहुत अधिक वर्तमान।।

पहले होती बहुत कीमती हरेक की जान।
वर्तमान में रहा नहीं जान का कोई मान।।

दोनो मां लक्ष्मी व सरस्वती होती लड़ाई।
हो गई वर्तमान में उन दोनों मे मिलाई।।

मूछ का बाल गिरवी रख लेते थे उधार ।
वर्तमान में पूरी मूंछो का रहा नहीं भार।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनांक 04/03/20
विषयः वर्तमान

विधा:कविता

वर्त्तमान वह पल है
जो है तेरे साथ ।
बीते पल को सोच कर
संवरेगा न तेरा आज।
कल की चिंता मे युवा
बिखेर देता है आज।
आज के काज सँवार ले
स्वर्णिम होगा तेरा कल।
वर्तमान साथी तेरा
पकड ले उसका हाथ ।
समय बहुत बलवान है
उसका रख तू मान ।
कल के मान अभिमान मे
हो जावे न कोई चूक ..।
वर्तमान की चुनौतियाँ
मेल मिलाप और स्वस्थ
यदि ये आज सँवर गई
मनभावन होगा कल।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय-वर्तमान
दिनांक ४-३-२०२०


जिंदगी हर पल,बड़े आनंद से बिताया।
न ही बिगड़ा वर्तमान,भविष्य सजाया।

कहाँ क्या बोलना,ये बहुत ध्यान रखा।
चुप वहाँ न रही,गुनहगार मुझे बताया।

सब वर्तमान हकीकत,लेखनी बताया।
स्वार्थी मानव,कुछ भी समझ न पाया।

ऊंची दुकान,फीके पकवान सजाया।
तभी कुछ दिनों में,ताला खुद लगाया।

हार मान लू मैं,पर यह मेरे बस में नहीं।
प्रभु श्रेष्ठ रचना को,मैंने ना बिसराया।

करती अच्छा,बड़ों का आशीष पाया।
तभी भरी महफिल,सुनने जहां आया।

कहती वीणा, छोड जाना सब यहाँ।
फिर फालतू बातों,क्यूं समय गवाँया।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय - वर्तमान

जीवन के सारे आयाम को
करता पुरा वर्तमान ही ।
खोना पाना, जीना मरना
सब कुछ सहता वर्तमान ही।

सोते भी हम वर्तमान में,
जगते भी हैं वर्तमान में।
सफल तभी हो पाते हैं
जब तन मन रहता वर्तमान में।

भूत भला कैसे पहचाने
वो तो केवल अतीत है।
जिसने भूत को पकड़े रखा
बिगड़ा उसका ही नसीब है।

आने वाला कल क्या होगा
जाने कौन यहाँ बतलाओ।
जैसा होगा जो भी होगा
अच्छा होगा इतना मानो।

वर्तमान ही भूत है बनता
समझो तो सरल बहुत है।
आज अगर अच्छा गुजरा
कल बोलेगे भला भूत है।

वर्तमान सर्वोत्तम होता
चलते जो इसके संग संग।
तय भविष्य का उत्तम होना
जीवन में रहता आनंद।


स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
दिनांक 4 मार्च 2020
विषय वर्तमान


एक कल था बीत गया और एक कल है आना बाकी
कल का कुछ भी पता नही, वर्तमान मे जीना साथी

खोना पाना मिलना बिछडना भाग्य का खेल सब
जितना आनंद ले सको लेलो, वक्त निकल रहा साथी

चिंता क्यों जिसका हल हो, चिंता क्यो जब हल नही
चिंता से केवल निराशा मिले, निश्चिंत हो जीना साथी

जिंदगी वही जो आज मै जी, कल किसने देखा प्यारे
बंधी गठरी धरी रह गई, प्राण पखेरु उड गया साथी

कब तक रहोगे बंद कमरों मे, आभासी दुनियां मे खोए
निकलो घर से मिलो उनसे, जिनसे प्रेम बहुत रहा साथी

ये ना हो कि वक्त निकल जाए और बाते केवल रह जाए
बचपन जवानी कितने दिन, जी भर कर जीना साथी

भूत भविष्य की छोड दे चिंता, वर्तमान मे जीकर देख
कितनी खुशियां बिखरी पडी, बस आनंद उठाना साथी

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक ४/३/२०२०
शीर्षक-वर्तमान


बुद्धि विवेक से ले हम काम
तभी सुधरेगा हमारा वर्तमान
भविष्य की चिंता है बेकार
पहले वर्तमान को ले सुधार।

कृत्घन है जो देश के प्रति
उनसे क्यों हम ले सहमति
स्मरण करें हम उन वीरों को
जिन्होंने सींचा लहू से देश को।

उजार कर अपना ही चमन
कैसे आये?सुख व अमन
एक लड़ाई और हम लड़ेंगे
देश के गद्दार को खदेर कर रहेंगे।

कसक नही तब दिल में होगा
ठीकरा नहीं फिर दूसरों पर फुटेगा
एक प्रतिज्ञा हम आज लेंगे
वर्तमान देश का सुधार कर रहेंगे।

सौहार्द देश का फिर खिलेगा
हर पल यहां अमन बरसेगा
शुभ समाचार जल्द फैलेगा
विश्व पटल पर भारत फिर चमकेगा।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय- वर्तमान
विधा-हाईकु

तिथि-4/3/20

बुरी संगत
वर्तमान बिगड़े
भविष्य रोये

खुशी कलियाँ
वर्तमान बगिया
भविष्य फूल

विवेक सीढ़ी
वर्तमान हिम्मत
भविष्य नभ
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त

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"अंदाज"05मई2020

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