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ब्लॉग संख्या :-681
🌹🌹~ होली ~ 🌹🌹*
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
जीवन को रंगो से रंगायी रे ,
मन मे पुलकित पंख लगायी रे,
लाल हरा रंग रंगाई रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
मन तन के दिल मे आग लगायी रे ,
जीवन को मदहोश करायी रे ,
मन मे बसंत बहार लायी रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
जीवन को सातों रंगो से रंग मे मिलाई रे ,
प्यार और भाई चारे का नदियाँ बहायी रे ,
हिंदू मुस्लिम का भेदभाव मिटायी रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
रिश्ते नाते को एक डोरे मे बाधि रे ,
मंदिर मस्जिद को अपनाई रे ,
दिल मे दुनिया-जहान को समायी रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे !
~ रुपेश कुमार
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
जीवन को रंगो से रंगायी रे ,
मन मे पुलकित पंख लगायी रे,
लाल हरा रंग रंगाई रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
मन तन के दिल मे आग लगायी रे ,
जीवन को मदहोश करायी रे ,
मन मे बसंत बहार लायी रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
जीवन को सातों रंगो से रंग मे मिलाई रे ,
प्यार और भाई चारे का नदियाँ बहायी रे ,
हिंदू मुस्लिम का भेदभाव मिटायी रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे ,
रिश्ते नाते को एक डोरे मे बाधि रे ,
मंदिर मस्जिद को अपनाई रे ,
दिल मे दुनिया-जहान को समायी रे ,
होली आई रे आई रे होली आई रे !
~ रुपेश कुमार
विषय मन पसन्द विषय लेखन
विधा काव्य
11 मार्च 2020,बुधवार
उठो जागो अब सोओ मत
मन में थोड़ा उत्साह भरलो।
जग जीवन में नहीं हो सका
वह काज स्व कर से करलो।
जीवन में नयी राह बनाओ
काँटो में नित फूल बिछाओ।
भूल हुई है कई इतिहासों में
सभी कलंक आज मिटाओ।
जीवन अति संघर्षमयी मेला
यह फूलों का नहीं बिछौना।
खून पसीना सदा बहा कर
स्वच्छ करो जग कोना कोना।
अवतारी बन सुर मुनि आये
शुभ सीख दी इस जग को।
अंगद के सम पैर उठाकर
प्रगति पथ बढाओ पद को।
माना, आना जाना जीवन
अति अमूल्य होता जीवन।
प्रगति पथ बढ़ते रहो आगे
नव पौध सजाओ उपवन।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
11 मार्च 2020,बुधवार
उठो जागो अब सोओ मत
मन में थोड़ा उत्साह भरलो।
जग जीवन में नहीं हो सका
वह काज स्व कर से करलो।
जीवन में नयी राह बनाओ
काँटो में नित फूल बिछाओ।
भूल हुई है कई इतिहासों में
सभी कलंक आज मिटाओ।
जीवन अति संघर्षमयी मेला
यह फूलों का नहीं बिछौना।
खून पसीना सदा बहा कर
स्वच्छ करो जग कोना कोना।
अवतारी बन सुर मुनि आये
शुभ सीख दी इस जग को।
अंगद के सम पैर उठाकर
प्रगति पथ बढाओ पद को।
माना, आना जाना जीवन
अति अमूल्य होता जीवन।
प्रगति पथ बढ़ते रहो आगे
नव पौध सजाओ उपवन।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-11/03/2020
स्वतंत्र सृजन
दमक उठी वसुंधरा प्रभाकर के आने से......
फैल रही है नई ताजगी
नए भोर के आने से।
बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।
हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।
प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।
प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठा है कमल दल।
ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।
खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।
एक नन्ही कली भी
बाट देख रही है दिनकर की।
मन उद्वेलित होता मधुरस
में प्रभाकर के अरुणोदय की।
स्वर्णिम में सूर्य उदय होने लगता मस्त पहाड़ों पे।
और गुनगुनाने लगे भंवरे प्रभाकिरन के आने से।
स्वरचित .....
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
स्वतंत्र सृजन
दमक उठी वसुंधरा प्रभाकर के आने से......
फैल रही है नई ताजगी
नए भोर के आने से।
बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।
हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।
प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।
प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठा है कमल दल।
ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।
खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।
एक नन्ही कली भी
बाट देख रही है दिनकर की।
मन उद्वेलित होता मधुरस
में प्रभाकर के अरुणोदय की।
स्वर्णिम में सूर्य उदय होने लगता मस्त पहाड़ों पे।
और गुनगुनाने लगे भंवरे प्रभाकिरन के आने से।
स्वरचित .....
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
विषय - मन पसंद लेखन
!! गल्तियों में भी क्या मज़ा है !!
!! इंसा चोट खाकर समझा है!!
गलती करना इंसान का
जन्म सिद्ध अधिकार है!
एक ने अगर की है तो
दूजे को आय बुखार है!
ये वायरल इंफेक्सन
समाज का बेहद बेकार है!
कोई नही बचा इससे
सभी ने खायी मार है!
अच्छाई की गरज नही
बुराई की हिड़स हजार है!
रिश्ते नाते ताक में होंय
बगावत जैसी रार है!
जिसने छेड़ा वो बना शत्रु
जब छाये यह खुमार है!
बहतर है बच जाओ अभी
आपे में न व्यवहार है!
कौन कहाँ सीखा बड़ों से
कि सबने भूल स्वीकार है!
जन्मजात जो हैं मरीज
उनकी जीत न हार है!
स्वाभिमानी पछताय यहाँ
मिले न कोई गमख्वार है!
निपट अकेला रह जाए
बन जाय वो लाचार है!
बड़े अनुभवी बड़ों से सिखो
वक्त की तेज रफ्तार है!
वक़्त गंवाया जो 'शिवम'
वो रोया आँसू डार है!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/03/2020
!! गल्तियों में भी क्या मज़ा है !!
!! इंसा चोट खाकर समझा है!!
गलती करना इंसान का
जन्म सिद्ध अधिकार है!
एक ने अगर की है तो
दूजे को आय बुखार है!
ये वायरल इंफेक्सन
समाज का बेहद बेकार है!
कोई नही बचा इससे
सभी ने खायी मार है!
अच्छाई की गरज नही
बुराई की हिड़स हजार है!
रिश्ते नाते ताक में होंय
बगावत जैसी रार है!
जिसने छेड़ा वो बना शत्रु
जब छाये यह खुमार है!
बहतर है बच जाओ अभी
आपे में न व्यवहार है!
कौन कहाँ सीखा बड़ों से
कि सबने भूल स्वीकार है!
जन्मजात जो हैं मरीज
उनकी जीत न हार है!
स्वाभिमानी पछताय यहाँ
मिले न कोई गमख्वार है!
निपट अकेला रह जाए
बन जाय वो लाचार है!
बड़े अनुभवी बड़ों से सिखो
वक्त की तेज रफ्तार है!
वक़्त गंवाया जो 'शिवम'
वो रोया आँसू डार है!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/03/2020
विषय - मनपसंद
द्वितीय प्रस्तुति
!! रूठी पत्नि!!
!! टूटा पति !!
पत्नी का भी रोल बड़ा है
राम ने भी युद्ध लड़ा है!!
कब किस चीज को रूठे पत्नी
पत्नी से कौन नही डरा है !!
कौन किया है उसको खुश
जब भी देखो वो नाखुश!!
पड़ोसन ने नई साड़ी ली
पत्नी को हो रहा है दुख !!
दूजे दिन पति से बोली
उस साड़ी पर नियत डोली!!
पति बोला रूक जा थोड़ी
आ जाने दे अभी तूँ होली!!
बोनस मेरा आना है
तुझको साड़ी लाना है!!
उसे चैन न पड़ा पल का
उसकी आँख का आँसु छलका!!
सारी सारी रात न सोयी
उसे रूलाया खुद भी रोयी!!
एक नही हजार हैं किस्से
कहे भला पति वो किस से!!
कोल्हू का बैल बना 'शिवम'
हिस्से में रहा उसके ग़म!!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/03/2020
द्वितीय प्रस्तुति
!! रूठी पत्नि!!
!! टूटा पति !!
पत्नी का भी रोल बड़ा है
राम ने भी युद्ध लड़ा है!!
कब किस चीज को रूठे पत्नी
पत्नी से कौन नही डरा है !!
कौन किया है उसको खुश
जब भी देखो वो नाखुश!!
पड़ोसन ने नई साड़ी ली
पत्नी को हो रहा है दुख !!
दूजे दिन पति से बोली
उस साड़ी पर नियत डोली!!
पति बोला रूक जा थोड़ी
आ जाने दे अभी तूँ होली!!
बोनस मेरा आना है
तुझको साड़ी लाना है!!
उसे चैन न पड़ा पल का
उसकी आँख का आँसु छलका!!
सारी सारी रात न सोयी
उसे रूलाया खुद भी रोयी!!
एक नही हजार हैं किस्से
कहे भला पति वो किस से!!
कोल्हू का बैल बना 'शिवम'
हिस्से में रहा उसके ग़म!!
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/03/2020
होली के रंग
होली के त्यौहार में
हमने रंग लगा दिया
हरा पीला लाल गुलाबी
उनको रंग लगा दिया
रंग-बिरंगा हाथ देखकर
वो बड़े हैरान
आईने में चेहरा देखकर
वो बहुत परेशान
लग रहा था मुझको आज
कुछ गड़बड़ घोटाला है
हाथ लगाकर देखा चेहरा
लाल पीला काला है
इतना गहरा रंग चढ़ाकर
हिम्मत किसने पाई
साबुन लगा-लगा फेस पर
खूब करी धुलाई
ऐसा गहरा रंग चढ़ा कि
रंग उतर न पाया
आग बबूला हो गए
उनका चढ़ गया पारा
उनका चढ़ गया पारा
हमको खूब डांट लगाई
अब ऐसी होली खेलेंगे न
कसम ये हमने खाई।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
होली के त्यौहार में
हमने रंग लगा दिया
हरा पीला लाल गुलाबी
उनको रंग लगा दिया
रंग-बिरंगा हाथ देखकर
वो बड़े हैरान
आईने में चेहरा देखकर
वो बहुत परेशान
लग रहा था मुझको आज
कुछ गड़बड़ घोटाला है
हाथ लगाकर देखा चेहरा
लाल पीला काला है
इतना गहरा रंग चढ़ाकर
हिम्मत किसने पाई
साबुन लगा-लगा फेस पर
खूब करी धुलाई
ऐसा गहरा रंग चढ़ा कि
रंग उतर न पाया
आग बबूला हो गए
उनका चढ़ गया पारा
उनका चढ़ गया पारा
हमको खूब डांट लगाई
अब ऐसी होली खेलेंगे न
कसम ये हमने खाई।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
विषय*ये मेरी जिंदगी है*
छंदमुक्त रचना,
जैसे चाहूं जी लूं इसे
ये मेरी जिंदगी है
ईश्वरीय प्रदत्त निधि
वरदान रूप मिली है।
किसी परोपकार में लगाऐं, मिट्टी में मिलाऐं
हमारी इच्छा जैसे जिएं।
समय थोडा है
काम करना चाहें तो हमें अनगिनत हैं।
स्वप्न जो भी देखे
उन्हें पूरे करें
अपनी और दूसरों की झोली चलो
खुशियों से भरें।
जिंदगी ऐसे जिऐं कि लोग हमें और हमारे कर्मों को अनंत तक अपने स्मृति पटल पर अंकित रखें।
मैं जिंदगी मेरी है ऐसे विचारों से नहीं बल्कि
समाजोपयोगी इस मानवता के लिए है
कुछ ऐसे जिएं।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
जयजय श्रीराम रामजी
गुना म प्र
सो
*ये मेरी जिंदगी है*
छंदमुक्त रचना
छंदमुक्त रचना,
जैसे चाहूं जी लूं इसे
ये मेरी जिंदगी है
ईश्वरीय प्रदत्त निधि
वरदान रूप मिली है।
किसी परोपकार में लगाऐं, मिट्टी में मिलाऐं
हमारी इच्छा जैसे जिएं।
समय थोडा है
काम करना चाहें तो हमें अनगिनत हैं।
स्वप्न जो भी देखे
उन्हें पूरे करें
अपनी और दूसरों की झोली चलो
खुशियों से भरें।
जिंदगी ऐसे जिऐं कि लोग हमें और हमारे कर्मों को अनंत तक अपने स्मृति पटल पर अंकित रखें।
मैं जिंदगी मेरी है ऐसे विचारों से नहीं बल्कि
समाजोपयोगी इस मानवता के लिए है
कुछ ऐसे जिएं।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
जयजय श्रीराम रामजी
गुना म प्र
सो
*ये मेरी जिंदगी है*
छंदमुक्त रचना
मनपसन्द विषय।
होली।
स्वरचित।
आजा नंद किशोर, किशोर
बुलावै राधा प्यारी।
हां बुलावे राधा प्यारी,
बुलावे राधा प्यारी।।
अरे आजा नंद किशोर, किशोर
बुलावे राधा प्यारी।।
यमुना के तट पर आ जइयो
डार कदम्ब पीछे छुप जइयो
ना खेलियो किसी से गुलाल,गुलाल
बुलावे राधा प्यारी ।।....
मैं तेरा रास्ता देखूंगी,
आएगा जब रंग फेंकुंगी
मैं तेरा रस्ता देखूंगी
आएगा जब रंग फेंकुंगी।
नहीं आया तो करियो मलाल,मलाल
बुलावै राधा प्यारी।।......
ग्वाल बाल सब छोड़ के अइयो
गोपियन को ना खबर बतइयो
ग्वाल बाल सब छोड़ के अइयो
गोपियन को ना खबर बतइओ
हम खेलें संग होली कमाल, कमाल
बुलावै राधा प्यारी।।..
आजा नंद किशोर,किशोर
बुलावे राधा प्यारी।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा "
11/03/2020
होली।
स्वरचित।
आजा नंद किशोर, किशोर
बुलावै राधा प्यारी।
हां बुलावे राधा प्यारी,
बुलावे राधा प्यारी।।
अरे आजा नंद किशोर, किशोर
बुलावे राधा प्यारी।।
यमुना के तट पर आ जइयो
डार कदम्ब पीछे छुप जइयो
ना खेलियो किसी से गुलाल,गुलाल
बुलावे राधा प्यारी ।।....
मैं तेरा रास्ता देखूंगी,
आएगा जब रंग फेंकुंगी
मैं तेरा रस्ता देखूंगी
आएगा जब रंग फेंकुंगी।
नहीं आया तो करियो मलाल,मलाल
बुलावै राधा प्यारी।।......
ग्वाल बाल सब छोड़ के अइयो
गोपियन को ना खबर बतइयो
ग्वाल बाल सब छोड़ के अइयो
गोपियन को ना खबर बतइओ
हम खेलें संग होली कमाल, कमाल
बुलावै राधा प्यारी।।..
आजा नंद किशोर,किशोर
बुलावे राधा प्यारी।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा "
11/03/2020
11 /3 /2020
बिषय स्वतंत्र लेखन
भाई दूज का पावन पर्व
है आया आई बहिन टीका लगाने
तन न्यौछावर मन न्यौछावर
दौड़ जाती प्यार बरसाने
भाई बहिन का अद्भभुत संगम
सब रिश्तों से न्यारा है
भाई के लिए ईश्वर से भी लड़ जाती
दुनिया में भाई सबसे प्यारा है
भैया के दुख में दुखी सुख में सुखी
बहिनें हमेशा रहतीं हैं
बनें छोटे भइया की ढाल धूप छांव ए सहती हैं
भाई भी बहिनों के लिए सदा
ही तत्पर रहते हैं
जरा सी तकलीफ क्या हुई
चिंतित अक्सर रहते हैं
अमर रहे भाई बहिनों का अपनत्व भरा प्यार
भाई दूज के अवसर पर बधाइयां सभी को बेसुमार
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय स्वतंत्र लेखन
भाई दूज का पावन पर्व
है आया आई बहिन टीका लगाने
तन न्यौछावर मन न्यौछावर
दौड़ जाती प्यार बरसाने
भाई बहिन का अद्भभुत संगम
सब रिश्तों से न्यारा है
भाई के लिए ईश्वर से भी लड़ जाती
दुनिया में भाई सबसे प्यारा है
भैया के दुख में दुखी सुख में सुखी
बहिनें हमेशा रहतीं हैं
बनें छोटे भइया की ढाल धूप छांव ए सहती हैं
भाई भी बहिनों के लिए सदा
ही तत्पर रहते हैं
जरा सी तकलीफ क्या हुई
चिंतित अक्सर रहते हैं
अमर रहे भाई बहिनों का अपनत्व भरा प्यार
भाई दूज के अवसर पर बधाइयां सभी को बेसुमार
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
विषय : मनपसंद लेखन
विधा : कविता
तिथि : 11.3.2020
निराशा का संसार था
घना अंधकार
भयावना
बंद गली, बंद द्वार था।
खो गया प्यार था
कष्ट
पीड़ा
अवसाद बेशुमार था।
अकेलापन अपार था
न साथी
न संगी
कहीं न करार था।
अश्रु धार-धार था
ज़ख्म
नासूर
दिल तार-तार था।
जीवन जब भार था
सांसें बोझिल
शक्ति अपोषित
मृत्यु का इंतज़ार था।
तब, जो हुआ, वो चमत्कार था
प्रकाश किरण
प्रकाश स्तम्भ
यह कौन सा किरदार था!
भीतर से एक पुकार था
युद्ध जो हुआ नहीं
हथियार जो लड़ा नहीं
यह आत्मसमर्पण, हार था।
जीवन का एक उधार था
पलायन!
समर्पण!
यह तो नहीं इकरार था।
कर्त्तव्य क्यों बीमार था?
नैतिकता
साहस
कहां खोया यह विस्तार था?
हाय! यह कैसा फटकार था
अहसास
ग्लानि
कटु सत्य से दो चार था।
नवूर्जा का संचार था
आशा
संकल्प
जाग्रति का उपहार था।
पुनर्जीवन बहार था
विश्वास
उत्साह
आस्था का संसार था।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 11.3.2020
निराशा का संसार था
घना अंधकार
भयावना
बंद गली, बंद द्वार था।
खो गया प्यार था
कष्ट
पीड़ा
अवसाद बेशुमार था।
अकेलापन अपार था
न साथी
न संगी
कहीं न करार था।
अश्रु धार-धार था
ज़ख्म
नासूर
दिल तार-तार था।
जीवन जब भार था
सांसें बोझिल
शक्ति अपोषित
मृत्यु का इंतज़ार था।
तब, जो हुआ, वो चमत्कार था
प्रकाश किरण
प्रकाश स्तम्भ
यह कौन सा किरदार था!
भीतर से एक पुकार था
युद्ध जो हुआ नहीं
हथियार जो लड़ा नहीं
यह आत्मसमर्पण, हार था।
जीवन का एक उधार था
पलायन!
समर्पण!
यह तो नहीं इकरार था।
कर्त्तव्य क्यों बीमार था?
नैतिकता
साहस
कहां खोया यह विस्तार था?
हाय! यह कैसा फटकार था
अहसास
ग्लानि
कटु सत्य से दो चार था।
नवूर्जा का संचार था
आशा
संकल्प
जाग्रति का उपहार था।
पुनर्जीवन बहार था
विश्वास
उत्साह
आस्था का संसार था।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
यूँ तो ज़िदंगी मे मेरी
दुखों की कोई कमी नहीं
मगर खुश हूँ मैं क्युँकि
जानती हूँ तरीक़ा कि कैसे
हिम्मत से झेलते हुए कम करती हूँ
दुखों को अपने
लेकिन,आज जब मिली मैं
तन्हाईयों से अपनी
तो अपने से भी ज़्यादा दुखी पाया
न तो यादें थी संग उसके
न ख्वाब और न ही कोई उम्मीद
फिर तरीक़ा भी तो नहीं था
तन्हाईयों के पास
दुखों से पार पाने का
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
दुखों की कोई कमी नहीं
मगर खुश हूँ मैं क्युँकि
जानती हूँ तरीक़ा कि कैसे
हिम्मत से झेलते हुए कम करती हूँ
दुखों को अपने
लेकिन,आज जब मिली मैं
तन्हाईयों से अपनी
तो अपने से भी ज़्यादा दुखी पाया
न तो यादें थी संग उसके
न ख्वाब और न ही कोई उम्मीद
फिर तरीक़ा भी तो नहीं था
तन्हाईयों के पास
दुखों से पार पाने का
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
दिन- बुधवार
आज का विषय - मन पसंद पर मेरी प्रस्तुति
शीर्षक है "मौसम "
विधा - कविता
आज कह रहा है धनबाद का मौसम,
अभी हम होली के रंग में ही रहेंगे ...
अभी मन भरा नहीं ....आसमान कह
रहा है ... हम बरस के ही रहेंगे!!
आसमान पर बादलो का पहरा है ...
न जाने कौंन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है!
अलसाई पत्तियों में भंग रंग का खुमार है,
जिधर देखो उधर बहार ही बहार है !!
धूप भी धुआँ हो गया , मौसम के रंग से !
मन मचल रहा है महुए के रस गंध से !!
बौराया आम का बौर है... कोयल की कूक से!
पत्तियों में गज़ब सरसराहट मंदार के फूल से !!
पलाश धधक रहा है, अंग अंग में!
गुलाब,डहेलिया, चंपा चमेली ....
खुशबू लुटा रहें हवाओं में ...
गज़ब का शोर -गुल फिज़ाओं में!!
प्रकृति सौन्दर्य का रूप और निखर गया है !
मेरा मन दिल दीवाना भी मचल गया है ......!!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद-झारखंड
आज का विषय - मन पसंद पर मेरी प्रस्तुति
शीर्षक है "मौसम "
विधा - कविता
आज कह रहा है धनबाद का मौसम,
अभी हम होली के रंग में ही रहेंगे ...
अभी मन भरा नहीं ....आसमान कह
रहा है ... हम बरस के ही रहेंगे!!
आसमान पर बादलो का पहरा है ...
न जाने कौंन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है!
अलसाई पत्तियों में भंग रंग का खुमार है,
जिधर देखो उधर बहार ही बहार है !!
धूप भी धुआँ हो गया , मौसम के रंग से !
मन मचल रहा है महुए के रस गंध से !!
बौराया आम का बौर है... कोयल की कूक से!
पत्तियों में गज़ब सरसराहट मंदार के फूल से !!
पलाश धधक रहा है, अंग अंग में!
गुलाब,डहेलिया, चंपा चमेली ....
खुशबू लुटा रहें हवाओं में ...
गज़ब का शोर -गुल फिज़ाओं में!!
प्रकृति सौन्दर्य का रूप और निखर गया है !
मेरा मन दिल दीवाना भी मचल गया है ......!!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद-झारखंड
दिनांक, ११,३,२०२०
दिन, बुधवार
विषय, स्वतंत्र
वंदना
मनमोहन छवि आपकी,
नयन बसी सरकार।
मूरत मन को मोहती ,
तू ही मेरा यार।।
तजकर मैं संसार को,
आई तेरे पास।
नयन बिछाकर राह में,
मन में रखकर आस।।
चरण कमल रज चाहती,
जनम जनम का साथ।
नयन झुकाकर मैं खड़ी,
पकड़ो मेरा हाथ।।
मुझ में अवगुण बहुत हैं,
नयन बीच है नीर।
ज्ञानी जग में कौन है,
समझें मेरी पीर।।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
दिन, बुधवार
विषय, स्वतंत्र
वंदना
मनमोहन छवि आपकी,
नयन बसी सरकार।
मूरत मन को मोहती ,
तू ही मेरा यार।।
तजकर मैं संसार को,
आई तेरे पास।
नयन बिछाकर राह में,
मन में रखकर आस।।
चरण कमल रज चाहती,
जनम जनम का साथ।
नयन झुकाकर मैं खड़ी,
पकड़ो मेरा हाथ।।
मुझ में अवगुण बहुत हैं,
नयन बीच है नीर।
ज्ञानी जग में कौन है,
समझें मेरी पीर।।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
विषय -स्वतंत्र लेखन
दिनांक 11-3-2020
जरूरतमंद मदद कर,चैन जिंदगी जिया कर।
है यह महान कार्य,हर जरूरतमंद मदद कर।
बिना दिखावे,हर कार्य को अंजाम दिया कर।
करता रह नित भला,ऊंचाइयों को छुआ कर।
मरहम लगाए, तो गरीब जख्म ही लगाया कर।
राह में बहुत खड़े,अमीरों के इलाज खातिर।
परोपकार कार्य सदा कर,मन अंहकार ना भर।
गरीब सेवा ईश्वर सेवा, मान कर तू कार्य कर।
वास्तविक स्नेह सम्मान,गरीब मदद पाया कर।
उनकी दुआओं का दम,वक्त आने पर देखा कर।
हर इंसान और जर्रे जर्रे में,तू नजर आया कर।
अपना पराया भूल,बस मदद सब किया कर।
मौका मिला,स्वार्थी नहीं बस सारथी बनाकर,
प्रभु श्रेष्ठ रचना,अंहकार वशीभूत ना हुआ कर।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 11-3-2020
जरूरतमंद मदद कर,चैन जिंदगी जिया कर।
है यह महान कार्य,हर जरूरतमंद मदद कर।
बिना दिखावे,हर कार्य को अंजाम दिया कर।
करता रह नित भला,ऊंचाइयों को छुआ कर।
मरहम लगाए, तो गरीब जख्म ही लगाया कर।
राह में बहुत खड़े,अमीरों के इलाज खातिर।
परोपकार कार्य सदा कर,मन अंहकार ना भर।
गरीब सेवा ईश्वर सेवा, मान कर तू कार्य कर।
वास्तविक स्नेह सम्मान,गरीब मदद पाया कर।
उनकी दुआओं का दम,वक्त आने पर देखा कर।
हर इंसान और जर्रे जर्रे में,तू नजर आया कर।
अपना पराया भूल,बस मदद सब किया कर।
मौका मिला,स्वार्थी नहीं बस सारथी बनाकर,
प्रभु श्रेष्ठ रचना,अंहकार वशीभूत ना हुआ कर।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
भावों के मोती
दिनांक 11 मार्च 2020
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन
विधा- कविता
शीर्षक- नफरतें भी जलाना तुम
नफरतें भी जलाना तुम
होली अबकी जब जलाना तुम
दूरियां दिलों की मिटाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
राग- द्वेष सभी मिटाना तुम
मीत दुश्मन को भी बनाना तुम होली अबकी जब मनाना तुम।
शिकवे-गिले सभी भुलाना तुम
दिल से दिल मिलाना तुम
होली अबकी जब मानाना तुम।
रंग में भंग न मिलाना तुम
दिल किसी का न दुखाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
अबीर-गुलाल उड़ाना तुम
रंग प्रेम का लगाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
स्नेह छोटों पर लुटाना तुम
आशीष बड़ों का पाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
दिनांक 11 मार्च 2020
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन
विधा- कविता
शीर्षक- नफरतें भी जलाना तुम
नफरतें भी जलाना तुम
होली अबकी जब जलाना तुम
दूरियां दिलों की मिटाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
राग- द्वेष सभी मिटाना तुम
मीत दुश्मन को भी बनाना तुम होली अबकी जब मनाना तुम।
शिकवे-गिले सभी भुलाना तुम
दिल से दिल मिलाना तुम
होली अबकी जब मानाना तुम।
रंग में भंग न मिलाना तुम
दिल किसी का न दुखाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
अबीर-गुलाल उड़ाना तुम
रंग प्रेम का लगाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
स्नेह छोटों पर लुटाना तुम
आशीष बड़ों का पाना तुम
होली अबकी जब मनाना तुम।
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
11/3/20
मुस्कुराना ही जिंदगी है।
मुस्कुरा के जो बिताए।
वही असल जिंदगी है।
न मुमकिन कुछ नही।
सब कुछ है यही।
यही तो जिंदगी है।
खुदा से पा लेना ही
सब कुछ नही।
पाकर के खोना
यही तो जिंदगी है।
हँसना ही तो जिंदगी है।
हँस कर जो विताये साथ
यही तो जिंदगी है।
अपनो को तनहा से दूर करो।
सपनो को अपने पूर्ण करो।
दर्द में मुस्कुराते रहो।
यही तो जिंदगी है।
कुछ दिनों की जिंदगी।
मिल कर गुजारो
क्योकि यही तो जिंदगी है।
स्वरचित
मीना तिवारी
मुस्कुराना ही जिंदगी है।
मुस्कुरा के जो बिताए।
वही असल जिंदगी है।
न मुमकिन कुछ नही।
सब कुछ है यही।
यही तो जिंदगी है।
खुदा से पा लेना ही
सब कुछ नही।
पाकर के खोना
यही तो जिंदगी है।
हँसना ही तो जिंदगी है।
हँस कर जो विताये साथ
यही तो जिंदगी है।
अपनो को तनहा से दूर करो।
सपनो को अपने पूर्ण करो।
दर्द में मुस्कुराते रहो।
यही तो जिंदगी है।
कुछ दिनों की जिंदगी।
मिल कर गुजारो
क्योकि यही तो जिंदगी है।
स्वरचित
मीना तिवारी
11.3.2020
बुधवार
मनपसंद विषय लेखन
भक्तिमय गीत
होली
🌹🌹
होली के रंग मत डारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
मोहे अपने रंग में रंग डारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
लाल नहीं भावे,बसंती नहीं भावे
श्याम रंग ,रंग डारो,साँवरिया होली के रंग मत डारो।।
अबीर-गुलाल से खेलूँ नहीं होली
श्यामल रंग मोपे डारो,साँवरिया होली के रंग मत डारो।।
पनघट आवत-जावत रोको
मटकी फोड़ सब डारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
भर पिचकारी मोपे रंग मत डारो
डारो तो डारो रंग कारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
श्याम सुन्दर मेरी अर्ज़ी यही है दरस दिखा दो न्यारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार ‘
बुधवार
मनपसंद विषय लेखन
भक्तिमय गीत
होली
🌹🌹
होली के रंग मत डारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
मोहे अपने रंग में रंग डारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
लाल नहीं भावे,बसंती नहीं भावे
श्याम रंग ,रंग डारो,साँवरिया होली के रंग मत डारो।।
अबीर-गुलाल से खेलूँ नहीं होली
श्यामल रंग मोपे डारो,साँवरिया होली के रंग मत डारो।।
पनघट आवत-जावत रोको
मटकी फोड़ सब डारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
भर पिचकारी मोपे रंग मत डारो
डारो तो डारो रंग कारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो।।
श्याम सुन्दर मेरी अर्ज़ी यही है दरस दिखा दो न्यारो साँवरिया
होली के रंग मत डारो ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार ‘
विधा- हाईकु
परिवर्तन
१
अच्छे विचार
परिवर्तन फूल
खुशी महके
२
छँटे बादल
परिवर्तन धूप
प्रेम किरनें
३
आज के युवा
सोच परिवर्तन
सुखी संसार
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
परिवर्तन
१
अच्छे विचार
परिवर्तन फूल
खुशी महके
२
छँटे बादल
परिवर्तन धूप
प्रेम किरनें
३
आज के युवा
सोच परिवर्तन
सुखी संसार
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
दिन– बुधवार
विषय– मन पसंद
शीर्षक –‘रात भर'
“ तारों के नीचे बैठीं ,सपने सजाती रात भर ।
ओंस की आगोश में, मदहोश रही रात भर ।।
ढूंढ़ती हूॅ॑ खुद को ,खुद की आवाज में ।
आॅ॑खों में सुरमई, ख्वाब लिए रात भर ।।
जिस्म की लम्स में, शव सी पड़ी ।
कोई तो मखमली सी, आवाज दें ।।
सन्नाटें के शोर में,हवाओं ने छेड़ा रातभर ।
कोई तो जगाएं इन, सपनों को राग से ।।"
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
विषय– मन पसंद
शीर्षक –‘रात भर'
“ तारों के नीचे बैठीं ,सपने सजाती रात भर ।
ओंस की आगोश में, मदहोश रही रात भर ।।
ढूंढ़ती हूॅ॑ खुद को ,खुद की आवाज में ।
आॅ॑खों में सुरमई, ख्वाब लिए रात भर ।।
जिस्म की लम्स में, शव सी पड़ी ।
कोई तो मखमली सी, आवाज दें ।।
सन्नाटें के शोर में,हवाओं ने छेड़ा रातभर ।
कोई तो जगाएं इन, सपनों को राग से ।।"
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
II मनपसंद लेखन II नमन भावों के मोती....
विधा : काव्य.... "धड़कनें"...
मुझ से न पूछ...
बीते पलों के रुतबे...
भीगे हुए पलों में भी थे...
ख़ुशी के कुनबे....
तुम तुम नहीं थे...
मैं मैं भी नहीं था...
'हम' की साँसों में थे...
खुशबू के सिलसिले....
कुछ झूठ था...कुछ सच था...
फिर भी अपनापन था...
न जाने फिर...
न दिखने वाली दीवार उठी हम में...
जिसे तुम छोड़ नहीं पायी...
मैं तोड़ नहीं पाया....
दीवार ने चाँद को...
आग का गोला बना दिया...
सूरज को अमावस में डुबो दिया...
लहरें सांसों की...
किनारों को तोड़ अलग बहने लगीं...
ज़िन्दगी अपने ही कफ़न में...
दफ़न हो गयी...
ढूंढ रहा हूँ अपने अणुओं को...
दीवार से टकरा कर बिखरे थे जो...
इधर उधर....
ईंट-पत्थरों के मकान में...
ख़ुशिओं का कुनबा नहीं है अब...
बस धड़कनें हैं...
सिसकियों की....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
११.०३.२०२०
विधा : काव्य.... "धड़कनें"...
मुझ से न पूछ...
बीते पलों के रुतबे...
भीगे हुए पलों में भी थे...
ख़ुशी के कुनबे....
तुम तुम नहीं थे...
मैं मैं भी नहीं था...
'हम' की साँसों में थे...
खुशबू के सिलसिले....
कुछ झूठ था...कुछ सच था...
फिर भी अपनापन था...
न जाने फिर...
न दिखने वाली दीवार उठी हम में...
जिसे तुम छोड़ नहीं पायी...
मैं तोड़ नहीं पाया....
दीवार ने चाँद को...
आग का गोला बना दिया...
सूरज को अमावस में डुबो दिया...
लहरें सांसों की...
किनारों को तोड़ अलग बहने लगीं...
ज़िन्दगी अपने ही कफ़न में...
दफ़न हो गयी...
ढूंढ रहा हूँ अपने अणुओं को...
दीवार से टकरा कर बिखरे थे जो...
इधर उधर....
ईंट-पत्थरों के मकान में...
ख़ुशिओं का कुनबा नहीं है अब...
बस धड़कनें हैं...
सिसकियों की....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
११.०३.२०२०
दिनांक_११/३/२०२०
मनपसंद लेखन
शीर्षक-सफर
निकल पड़े हम जीवन के सफर में
मुड़कर न पीछे देखना है
चाहे कितनी भी दुष्कर हो राहे
हँसकर चलते जाना है
कितने अपने मिल जाते है
कितने अपने छूट जाते है
चलते रहता यह सफर जीवन का
यही हमें सीख दे जाते है।
अनभिज्ञ रहते हम आनेवाले पर से
बस ईश पर भरोसा रखते हैं
धर्य ना छूटे हिम्मत ना हारे
अधिर ना एक पल होना है
सफर तो पूरा करना है।
धन संपदा का मोह नही
बस हो अपना सरल व्यवहार
सफर आसान करना है
सफर तो पूरा करना है।
मंजिल सबका एक है
राहे हो भले अलग अलग
पर सबका मालिक एक है
सबका मालिक एक है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
मनपसंद लेखन
शीर्षक-सफर
निकल पड़े हम जीवन के सफर में
मुड़कर न पीछे देखना है
चाहे कितनी भी दुष्कर हो राहे
हँसकर चलते जाना है
कितने अपने मिल जाते है
कितने अपने छूट जाते है
चलते रहता यह सफर जीवन का
यही हमें सीख दे जाते है।
अनभिज्ञ रहते हम आनेवाले पर से
बस ईश पर भरोसा रखते हैं
धर्य ना छूटे हिम्मत ना हारे
अधिर ना एक पल होना है
सफर तो पूरा करना है।
धन संपदा का मोह नही
बस हो अपना सरल व्यवहार
सफर आसान करना है
सफर तो पूरा करना है।
मंजिल सबका एक है
राहे हो भले अलग अलग
पर सबका मालिक एक है
सबका मालिक एक है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
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