Thursday, March 12

" भूल "12मार्च 2020

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ब्लॉग संख्या :-682
विषय भूल
विधा काव्य

12 मार्च 2020,गुरुवार

भूतकाल भूलों की गठरी है
जिसको कहते हम इतिहास।
नायक बना गया नालायक
लोकतंत्र अब हो रहा उदास।

पृथ्वीराज ने की थी ग़लती
उस ग़लती की सज़ा भोगते।
पाक विभाजन कँहा जरूरी
क्यों सीमा पर तार जोड़ते?

स्वस्वार्थ वश होती है भूलें
पछतावा से क्या होता है?
जनजीवन है बड़ा कीमती
आजीवन ही मन रोता है।

एक फूल काफ़ी होता है
स्नेह आभार जताने को।
एक भूल ही काफी होती
जीवन भर पछताने को।

भूल से गर भूल हुई हो
भूल समझकर भूल जाना।
भूल जाना मेरी भूल को
गोविंद को मत भूल जाना।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय - भूल
प्रथम प्रस्तुति


भूल क़ुबूल कर लिया करो
चाहे जाम भर लिया करो!!

रिश्ते बड़े कीमती होते
इनमें नही तूल दिया करो!!

जमाने के दस्तूर समझ
गुनाह माफ कर दिया करो!!

किसी की खुशी की खातिर
कभी दरियादिल जिया करो!!

गलती बेशक अगले की हो
अपने सर पर लिया करो!!

कामयाबियाँ यूँ न आए
कभी गम के घूँट पिया करो!!

सदा नफ़ा कब मिला कभी
घाटे का सौदा किया करो!!

रिश्तों की चादर 'शिवम' ये
प्रेम के सूत्र से सिंया करो!!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम

विषय - भूल
द्वितीय प्रस्तुति


🌹🌹🌹🌹🌹

उसके बाद तो जैसे की
दिल ने हँसी ही नही देखी!
उसके बाद तो जैसे की
दिल ने खुशी ही नही देखी!

क्या कहें इसको अपनी भूल
क्या कहें इसको झूठा ख्वाब!
क्या कहें इसे सच्ची चाहत
या हुस्न को इश्क का अदाब!

वो दिल का कोरा सा कागज
वो दिल की पहली अँगड़ाई!
जो दे गयी दिल को ताज़ीस्त
तन्हाई एक लंबी जुदाई!

कितने सवालात हैं जिह्न में
नही ये भूल नही हो सकती!
ये सच्चा प्यार ही है 'शिवम'
जिसे समझा है दिल ने भक्ती!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 12/03/2020

है भूल करना प्यार भी है भूल यह इजहार भी.
पर भूल है सबसे बड़ी करना किसी का आसरा.

भूल को भूल माने वह सरल इंसान, भूल करके भी न माने, वह बड़ा शैतान.
जो भूल के प्रति जागरूक है, लगा है सतत सुधार में.
वह निश्चित सफलता पायेगा, दुनिया के इस बाजार में.
जो भूल करके अकड़ दिखाये, वह अडियल इंसान.
जो भूल होने पर पश्चाताप करें, ईश्वर भी करें उस पर विचार.
उसकी गलती को परमात्मा भी करते विचार कर व्यवहार.
भूल सीखाता भी है, भूल जगाता भी है, भूल इंसान को परिपूर्ण बनाता भी है.
भूल सुधार से जीवन में मिलती है उन्नति, वही चढ़ता है सफलता की जन्नत.
ईश्वर भी पूरी करता है उसकी मन्नत

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली, सिवान, बिहार
दिनांक-12/03/2020
विषय-भूल


एक छोटी सी भूल इतनी बड़ी सजा..

क्या खता मेरी थी जालिम
क्यों तूने तोड़ा मुझे
क्यों न मेरी उम्र तक
उस शाख में छोड़ा तूने
तितलियां बेचैन होंगी
जब न मुझको पाएंगी
पत्ते-पत्ते पत्ते रोएंगे
भवंरे चिल्लायेगें
मेरी खुशबू से बिछायेगा
बिछौना रात भर
सुबह होते ही तूँ यू
मुझे मिला देगा खाक में

स्वरचित
मौलिक रचना सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
शीर्षक- भूल

काश कि वो गुजरा हुआ कल
मैं फिर लौटा पाती।
नादानी में हुई एक भूल को
मैं आज सुधार पाती‌।।

मगर सोचने से क्या होगा
गुज़रा वक्त लौट कर नहीं आता।
पछतावे के सिवाय हाथ हमारे
कुछ नहीं रह जाता।।

छलक जाती अनायास ही आँख
याद आती जब बीती बात।
दर्द ही दर्द भर गया दिल में
खाई ऐसी खुद से ही मात।।

जीते जी मर जाना क्या होता
कोई आकर हमसे सीखे।
मुस्कुरा कर गम को छुपाना
कोई आकर हमसे सीखे।।

इसी तरह जीए जाने के सिवा
नहीं चारा और कोई ।
अपने अलावा बदनसीबों का
नहीं सहारा और कोई।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

दिनांक_१२/३/२०२०
शीर्षक_भूल

संस्मरण_"जब की मैंने भूल, फिर काढ़ा लम्बा घूंघट।",

बात बहुत पुरानी करीब ढ़ाई दसक पुरानी है, मेरे शादी के सिर्फ पाँच साल हुए थे मेरा मैके ससुराल एक ही शहर में है।
मुझे बस इतना पता था कि मेरे पति तीन भाई व तीन बहन है बाकी इनके ममेरे,मौसैरे भाई बहन से मैं परिचित नही थी,क्योकि मैं कभी गॉंव गई नही थी,ना ही वे शादी में आये थे।मैंअपने ससुराल में ससुर जी,जेठ जेठानी,उनके तीन छोटे बच्चें मैं मेरे पतिऔर अपने दो बच्चों के साथ रहती थी।मेरी जेठानी सामने के कमरे में रहती थी और मै उससे सटे दूसरे कमरे में,मेरे दोनो बच्चे बहुत छोटे थे,वे बाहर बगान में खेलते रहते थे,अत:मैं उनपर निगरानी रखने के लिए उनके खेलने के समय खिड़की का परदा हटा कर मैंगजिन पढ़ते हुये अपना टाइम पास करती थी।
मेरी जेठानी बहुत ही कजूंस थी,अत:जो भी माँगने वाला आता,वह मेरी खिड़की के तरफ दिखा कर बोलती उससे माँगो,इसबात पर मैं काफी चिढ़ी हुई रहती,क्योंकि मुझेअपने बच्चोंपर निगरानी रखने के लिए खिड़की के पास बैठना और परदा खिसकाना मेरी मजबूरी थी।,एकदिन मैं अपनी खिड़की के पास बैठकर मैंगजिन का पन्ना पलट रही थी,कोई इंसान गेट खोलकर अंदर आयाऔर सीधे मेरी खिड़की के पास आकर कुछ पूछना चाहा मैं आव देखी ना ताव सीधे उनपर बरस पड़ी,"कैसे इंसान हैं आप जरा भी मैनर्स नही खिड़की खुला देखकर चले आते हैं, इतना भी नही जानते कि मेन डोर का बेल बजाना चाहिए,वह आदमी अपना सा मुंह लेकर मेन डोर की तरफ बढ़ गया,मेन डोर की बेल बजाते ही,भैया आये भैया आये का शोर हुआ,अब तो मुझे काटो तो खून नही, दरअसल इनके ममेरे भाई गाँव से आकर पता पूछते हुए मेरे पास आये थे,अब मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ कि पहले मुझे उनकी बात सुननी चाहिए थी फिर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी,अभी मैं इसी उधेड़बुन में थी कि अब आगे मुझे करना है तभी दूसरे कमरे में मुझे बुलाया जाने लगा आओ , भैया आये हैं,आकर पैर छू लो,वैसे तो मेरे ससुराल में पर्दा प्रथा नही था , परन्तु मैंने एक लंबा सा घूंघट काढ़ा और उनकी चरण स्पर्श कर अपने कमरे में भागी,पता नही वे मुझे पहचान पाये या नहीं,इसकी जानकारी मुझे आज तक नहीं है,, वैसे मन ही मन उनसे क्षमा माँग ली थी,और बाद में इसकी जानकारी अपने पति को भी दे दी थी,और उन्होंने सिर्फ एक ही बात कही अन्जान में हुई भूल को भूल नहीं कहते,और अपनी भूल से जो सबक ले उसे ही इंसान कहते है।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
भावों के मोती।
विषय-भूल।

स्वरचित।
भूल की थी मैंने,
भरोसा किया जो तुम पर
माना था जां-जिगर।
दिल में जगह यूं दी
जैसे कोई मोती हो सीप में,
जैसे कि धड़कनें हों दिल में,
जैसे खुशबू हो चन्दन में,
कि जैसे बूंदें बदली में,
कि जैसे चांदनी चांद में,
कि जैसे किरणें सूरज में,
कि जैसे पराग सुमन में,
अफ़सोस इक पल में ही तोड़ दिया
भरोसा किया जो तुम पर
भूल की थी मैंने।।
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
12/03/2020
विषय -भूल
दिनांक -12.3.2020

विधा -दोहे

1.
भूल सबक की डगर है, सीखे गर इंसान।
सोच समझ कर कार्य का, करें सदा संधान।।
2.
अगर किसी से भूल हो, हत न करें उत्साह।
कमजोरी वरना बढ़े, बढ़ जाएगी आह।।
3.
सकारात्मक चिंतन औ, आशावादी सोच।
भूल दूर होती सदा,अभ्यास बने कोच।।
4.
भूल भूल है सोचकर, बनायँ उसे न शूल।
समझ भूल के बिंदु को, करें न फिर वो भूल।।

*****स्वरचित ************
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
12 /3 /2020
बिषय,, भूल,,

बड़ी भूल होगी आँख बंद भरोसा करना
पछतावा कर पड़ेगा हाथ मलना
मीठी छुरी बन हृदय तल पर छा जाते
अपनत्व बता घर में ही सेंध लगाते
जिस पत्तल में खाया उसी में छेद करते
बिन पेंदे के लोटे की तरह इधर उधर लुढ़कते
ऐसे चमचे बहुतायत पाए जाते
किसी को गिराने में पूर्ण ताकत आजमाते
जो.भूलकर समझा वह सदा ही जागा है
जो भूल करके न संभला वह तो स्वयं ही अभागा है
ठोकर खा संभलने बाले बुद्धिमान कहलाते हैं
दूसरे पर आश्रित स्वावलंबी नहीं बन पाते हैं
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

शीर्षक -भूल
दिनांक 12/03/2020।


भूल , शूल सी लगी सालने
उर के गहरे अंतस्थल में
विकल चांदनी खड़ी हुई है
घायल एक मरुस्थल में।

चंचल ,चितवन व्यथित चांदनी
अपलक नैनो से निहारती
रूप लावण्य से भरी हुई ........
छिन पलछिन रूप संवारती।।

आतुर सी खड़ी चांदनी
तत्पर अंक लगाने को
अगणित बूंदे गिरी पृष्ठ पर
छू लेने नव अभ्यंतर को ।

टूटी तंद्रा भंग हुई कल्पना
धरा पर बिखरी .. ...
दिवाकर की किरणें
सतरंगी आयाम बनाती
बोझिल कदमों से लौटी
भूल का एहसास कराती

स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
विषय-*भूल*
विधा-काव्य

भूल कर भी भूल नहीं करना हमें,
क्या पता कैसी वहर लिखेंगे लोग।

जिंदगी जिऐं सब मेहनत से भले,
जान के भी ये जहर लिखेंगे लोग।

भूलने की णहै जिन्हें बीमारी बहुत,
शांति भी अपनी कहर लिखेंगे लोग।

भूले भटक पहुंचते जो गांंवों में,
सब देखें यही शहर लिखेंगे लोग।

करें भूल तो क्यों उजागर कराऐं।
तालाब को सच नहर लिखेंगे लोग।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
जयजय श्रीराम रामजी

12/3/2020/गुरुवार
*भूल*काव्य
दिनांक-12/3/2020
विषय-भूल

विधा-छन्दमुक्त कविता

कभी गलती को
गलती की तरह
देखना सीखो
फिर देखो
गलती ,गलती नहीं लगेगी...

गर मैंने माना मेरी गलती है
तो आत्म ग्लानि होगी
जब जाना तेरी गलती है
तो क्रोध की ज्वाला भड़केगी...

पर यदि जो ये माना
कि गलती तो बस गलती है
हो ही जाती है..
कभी मुझसे ,कभी तुझसे
कभी उससे ,तो कभी किसी से..

अरे छोडो ,ना तूल दो..
कौन है ऐसा
जिससे न होती भूल हो..
हम समझेंगे तो दुनियां भी समझेगी..

हम इंसान हैं
देवता नहीं
गलती तो गलती है
ये तो होती ही रहेगी
कभी तुमसे,कभी मुझसे
कभी किसी से ।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
भावों के मोती
12/03/20


क्षमा करें सब भूल"
***
धर्म कर्म का हो विषय, समझें इसका मूल।
हम बालक नादान !प्रभु, क्षमा करें सब भूल ।।


तर्पण पितरों का करें,दें श्रद्धा के फूल ।
हाथ जोड़ विनती करें,क्षमा करें सब भूल।।


छोटी छोटी बात को, क्यों देते हैं तूल ।
कटुता आपस की मिटा ,क्षमा करें सब भूल ।।


चित्त शुद्ध उर प्रेम हो ,शंका है निर्मूल ।
सहज भाव रहिये सदा,क्षमा करें सब भूल।।

क्षमा एक उपहार है,खुद को दें ये फूल।
सुखमय जीवन राज ये, क्षमा करें सब भूल।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
दिनांक , १२,३,२०२०.
दिन , गुरुवार

विषय , भूल

होती है भूल सबसे जरूर,
ज्ञानी कोई पैदा होता नहीं ।
जीवन पथ पर चलने के लिए ,
शिक्षा बनतीं हैं गलतियाँ कई।

यहाँ दीक्षित हो पाता है वही ,
होता एहसास जिसे भूल का।
स्वीकारता नहीं जो गलती को ,
उलझाता रहा वही जीवन को।

गलतियाँ अपनी हों या गैरों की ,
दृष्टिकोण नकारात्मक रखें नहीं।
हों कोशिशें भूलों को सुधारने की ,
हिम्मत हौंसला कभी छोडें नहीं।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश 
विषय - भूल
12/03/20

गुरुवार

तुम्हारे बिन न एक पल भी कभी अब हम गुजारेंगे,
हुई हैं भूल पिछली जो उन्हें अब हम सुधारेंगे।

मेरी गुस्ताखियों को तुम अगर फिर माफ कर दोगी,
तो यह एहसान जीवन भर न मन से हम निकालेंगे।

यही है आरजू दिल में कि अब बिछड़ें न हम दोनों,
सदाएं अब खुदा से हम यही दिन -रात मागेंगे।

हमारी जिंदगी में फिर कोई हसरत नहीं होगी,
अगर हम प्यार के लम्हे सदा एक संग बिताएंगे

हमारे इश्क के चर्चे सदा होंगे जुबानों पर ,
कुछ ऐसा आशियाना प्यार का मिलकर बनाएँगे।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय.. भूल
भूल हुई थी मुझसे सासू माँ

कहने से आपके मैने छोडी थी पढाई।
क्योंकि सासू माँ ने,बहू से,
घर का काम जो कराना था।
लगी रहती बैल सी सारा दिन,
दम तोड़ रहा था कही वजूद मेरा।
एकाएक मैं जागी कुछ इस तरह
लिया फैसला पढाई पूरी करने का।
देकर जन्म सुत सुता को मैने।
अब कुछ फैसला था लिया,
विवाहोपरांत बीत गये दस बरस
मैनै आँखे खोली,विद्या की जोत लगा ली।
पूरी करली अपनी शिक्षा,अब ना सहूँगी
किसी से अनपढ बहू का लेबल।
पढलिख कर छोड़ दिया सबको पीछे
पाकर नौकरी सरकारी ,सासू माँ को पीछे।
भूल जो गयी थी पढाई छोडने की मुझसे
अब सादर यश मिला जग से मुझे।

स्वरचित
रीतू ऋतंभरा
विषय निर्दिष्ट
विधा कविता

दिनाँक 12.3.2020
दिन गुरुवार

भूल
💘💘💘

निरन्तर होती जब रहती भूल
बिछ जाते जीवन में शूल
आपसी द्वेष और मनमुटाव ने
हमारी स्वतँत्रता की कर दी धूल।

भूल नहीं करता यदि जयचन्द
तो क्यों नहीं रहते हम स्वच्छन्द
राणा बेचारे अकेले ही जूझे जीवन भर
उनके समकक्षों ने नहीं ली किंचित भी ख़बर।

अभी भी होती रहती यहाँ पर भूल
राष्ट्रवाद का लगता कईयों को शूल
बातों को तोड़ते मरोड़ते रहते
अपनी उलझी बातों को ही देते तूल।

अच्छा नहीं राजनीतिकरण
यह बिगाड़ता समीकरण
भूलों का पिछडी़ हो क्षरण
बन्द हो अब ये वर्गीकरण।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
शीर्षक - भूल
विधा - हाइकु


1-
देती सबक,
एक छोटी सी भूल,
जियो संभल ।

2-
बन के शूल,
दर्द दे न जिंदगी,
करो न भूल ।

3-
हुई जो भूल,
मिली न कोई सजा,
वो ख्वाब था ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

भावों के मोती
विषय-भूल

__________________
भूल से भी भूल हो तो,
कहीं भूल ना जाना।
साथी मेरे जन्मों के,
मेरा साथ निभाना।।

हो दिल की गहराई में,
हर धड़कन ये कहती।
बदले मौसम तुम बदले,
ये पायल भी कहती।
बहती हौले पुरवाई,
नवगीत गुनगुनाना।
भूल से भी भूल हो तो,
कहीं भूल ना जाना।

साथी मेरे जन्मों के,
मेरा साथ निभाना।
भूल से भी भूल हो तो,
कहीं भूल ना जाना।।


खन खनकी चूड़ी मेरी,
बिंदिया है दमकती।
सखियों की सुन-सुन बातें,
छुप-छुपकर में हँसती।
बीते दिन पलछिन रातें,
सुन के नया बहाना।
भूल से भी भूल हो तो,
कहीं भूल ना जाना।

साथी मेरे जन्मों के,
मेरा साथ निभाना।
भूल से भी भूल हो तो,
कहीं भूल ना जाना।।
अनुराधा चौहान स्वरचित
तिथि- 12/03/2020
दिन- गुरुवार

आज का शीर्षक-" भूल "

पेश है एक गज़ल

सफ़र के दौर अज़नबी जो मिला ,
अब उसकी सूरत तू भूल जा ।

इन हादिसों ने मेरा रंग उड़ा डाला ,
कोसों दूर वाला मूरत तू भूल जा।

उसी का नाम खोजता तू क्यूँ ,
अब उसकी जरूरत तू भूल जा।

आईने की तरह सब देखते हैं तुझको ,
अब उसकी शराफ़त तू भूल जा ।

जितनी थी गर्म हवा अब खत्म हुई,
अब उसकी अदावत तू भूल जा ।

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड
दिनांक 12 मार्च 2020
शीर्षक भूल


अंगारों पर नंगे पांव चले, नही जले, यह भूल है
आंख बंद कर किसी पे भरोसा करे, यह भूल है

राह चलते कई सबक मिले, अनुभव कई मिले
गलतियों से सबक नही लिया करे, यह भूल है

झूठ को सच बताने के लिए, दुनिया सारी खडी
सच के संग कभी हम नही रहे खडे, यह भूल है

कौन जग मे बताओ जिससे कोई भूल नही हुई
भूल को भूलकर चलते जाना आगे, यह भूल है

जिंदगी को पाठ पढाती है नया हर एक मोड पर
दोस्त कभी,हमराह कभी,गुरू कभी, यह भूल है

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय-भूल

मानव की आदत नहीं,पर होती है भूल।
खटके जीवन मे सदा,बनकर तीखा शूल।।

दण्ड मिलेगा भूल का,यही नियति की चाल।
करनी फल चखना पड़े,,नत करके निज भाल।।

भूल हुई थी सिया से,पाए कष्ट महान।
लाँघी रेखा लखन की, तिल-तिल खोई जान।।

कार्य कोई भी करो, सोचो सौ सौ बार।
भूल चूक करना नहीं,मन की सुनो पुकार।।

जो भी करते है करम, देख रहा है ईश।
भूल गए इस बात को,कृपा करें जगदीश।।

आशा शुक्ला
उत्तरप्रदेश
विषय - भूल
ग़ज़ल


यह कैसे लोग हैं वादे निभाना भूल जाते हैं
किसी के दर्द को अपना बनाना भूल जाते हैं

चले हैं रास्ते पे वे न सोचों में कोई मंज़िल
तिलक मंज़िल का माथे पर लगाना भूल जाते हैं

मसीहा बनने से पहले तू इतना याद रक्ख लेना
यह पत्थरबाज नहीं अपना निशाना भूल जाते हैं

सितारे, चांद, सूरज भी न उनके पक्ष में रहते
जो अपनी सोच में जुगनुं जलना भूल जाते हैं

किसी का दर्द,गम, दुश्वारियों में साथ नहीं देते
जो आंखों से सहज आंसू बहाना भूल जाते हैं

बड़े बेशरम हैं जो देखते हैं बस्तियां जलती
वे अपने घर में भी खुशियां सजाना भूल जाते हैं

आर बी सोहल
गुरदासपुर
पंजाब
विषय-भूल
दिनांक १२-३-२०२०




भूल कर भी,किसी गलती को तू न दोहराना।
जहां बेदर्द,मुश्किल कर देगा तेरा रह पाना।

अतीत भूल बता,हर कदम रोकेगा जमाना।
फूंक-फूंक रखना कदम,हर कदम बढ़ाना।

अच्छाई भूला,भूल को याद रखेगा जमाना।
अपनी पहचान बनानी,तू कुछ कर दिखाना।

लोगों की बातों में,तू ज्यादा नहीं आना।
सुख में सब रहेंगे, दुख में पास ना आना।

गलत राह,तू भूलकर भी कभी ना जाना।
तन्हा रोएगा,ना कोई तुझे ढांढस बंधाना।

भूल सुधार, उदाहरण सदा समाज बनाना।
गुनहगार बन गया,तो प्रभु मुंह ना दिखाना।

तिल ताड़ जहां बनाता,सावधान तू रहना।
ना समझो पर,ताकत कभी ना आजमाना।

भाईचारा स्नेह भाव ,सब संग तू रखना।
भूल शूल एक समान,संभल सदा रहना।


वीणा वैष्णव
कांकरोली
भावों के मोती
दिनांक- 12/03/ 2020

दिन-गुरुवार
विषय- भूल

सबक देती है हर एक भूल
फिर न करना तुम ऐसी चूक
निरंतर करोगे जो तुम भूल
सुअवसर से जाओगे चूक।

अहम के वश जो हो जाओगे
भूल बड़ी से बड़ी करते जाओगे अपने ही हाथों पथ अपने
शूल अनेक बिछाओगे।

एहसास भूल का जिस दिन तुम कर जाओगे
जीवन पथ पर बढ़ते जाओगे
आज नहीं तो कल निश्चित मंजिल पाओगे
भूल से जो बचते जाओगे।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय : भूल
विधा : कविता

तिथि : 12.3.2020

करना न कभी तूं ऐसी भूल
जीवन भर जो चुभोए शूल।

दिल न कभी किसी का दुखाना
किसी जीव को कभी न सताना
सब ज्ञानों का बस एक ही मूल
बोना न कभी कार्मिक बबूल।

करना न कभी तूं ऐसी भूल
जीवन भर जो चुभोए शूल।

कर्तव्यों को अपने सदा निभाना
जि़म्मेदारियों से तूं जी न चुराना
तभी तो जीवन बने सफ़ल समूल
खुशियों के उसमें खिलें नए फूल।

करना न कभी तूं ऐसी भूल
जीवन भर जो चुभोए शूल।

कुछ भूलें कभी मिटाए न मिटतीं
जीवन भर आत्मा इनसे पिटती
पछतावे को चाहे जितना दो तूल-
हिला देतीं जीवन की हर चूल।

करना न कभी तूं ऐसी भूल
जीवन भर जो चुभोए शूल।

--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विषय- भूल
विधा- मुक्त

दिनांक--12 /03 /2020

भूले से भूल कर बैठे
बेवफा से इश्क़ कर बैठे
रातें हमने तो काटी
करवटों में
वो आराम से रकीब के
पहलू में सोते रहे
आँसूओं से लबरेज़
आँखें मेरी रहीं
वो गैर की आँखों से
काजल चुराते रहे
देकर फूल अपनी
प्रीत का
हम दिल को उनके
होने का अहसास
दिलाते रहे
वो गुलाब किसी और के
गेसूओं में जाते रहे
भूल से भूल कर बैठे।

डा.नीलम
------
नमन मंच भावो के मोती

विषय--- भूल
विधा--- कविता
दि०-12-3-2०2०

भूल सेभी भूल करिएगा नहीं|
वरना फिर परिणाम भूल न पायेंगे|
याद रखना भूल ना जाना कहीँ|
वरना अपनी भूल पर पछतायेगे|

भूल भी एक तरह का शूल है|
जब कभी होता समय प्रतिकूल है|
भूली बिसरी भूल याद आती बहुत,
और मन में बेकली भर जाती है|

याद रखने, भूल जाने की उमर है ज़िन्दगी|
खट्टे मीठे स्वाद चखती इसी से है ज़िन्दगी|
खुशी ,ग़म को भूला देता अगरचे ना वक्त तो|
कैसे कटती रोते गाते ये सभी की ज़िन्दगी|

मैं प्रमाणित करता हूँ की
यह मेरी मौलिक रचना है|

विजय श्रीवास्तव
मालवीय रोड
गांधी नगर
बस्ती
उ०प्र०


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"अंदाज"05मई2020

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