Monday, November 5

"अहंकार "03नवम्बर 2018

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अहंकार
जब नाश मनुज का आता है।
तब अहंकार छा जाता है।
कितनों का नाश किया इसने।
कितने घर को फूँक डाले।
जब अहंकार आ गया रावण में।
तो हनुमान ने लंका जला डाले।
चाहे कितने भी बड़े हो जाओ।
या फिर हो जाओ महान।
अहंकार कभी ना करना।
जपना केवल हरिनाम।।
वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी

जहाँ प्रेम नहीं होता, 
वहीं अहंकार होता है, 
ये ही मनुष्य के नाश का
कारण बन जाता |

जो करता है अहंकार ,
पतन उसका करे इंतजार ,
मन को कुंठित करता है, 
"मैं" भाव जगाता है |

अहंकार की आग से तो, 
लंका रावण की जल जाये,
चमकता हुआ वो सोना, 
पलभर में राख बन जाये |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


न मुंह से कुछ कह पाया, न कागज़ पे लिख पाया।
चराग ए इश्क यूं दिल का, जल पाया न बुझ पाया। 


गुमां उनका न सर से उतरा, न हम गैरत गवां पाये। 
एक हैरान है दिल अपना, न रो पाया न हंस पाया। 

ख्वाबों ख्यालों की दुनिया का एक खोया शहर हूँ।
बयानी है करते निशां यूं, उजड़ पाया न बस पाया। 

सजा़ क्या खूब की है तजवीज गुनाह ए इश्क की। 
अजब हालत है मुल्जिम, न मर पाया न बच पाया। 

मुकम्मल हो सकती थी दास्ताने मुहब्बत हमारी भी। 
कहीं तुम लड़खड़ाए, और कहीं पर मै न चल पाया। 

विपिन सोहल



गहरी नदिया बनी जिंदगानी, भटक रहा है इसमें प्राणी, 

आशा तृष्णा लोभ सतावै, अहंकार ने डुबोने की ठानी, 

फिरे अकडता मद में डूबा, प्रेम नेह ममता नहीं पहचानी, 

अपनों का कुछ ख्याल न करता, करता रहता मनमानी, 

अंहकार का पथ पथरीला समझ सके तो समझ ले प्राणी,

दीप प्यार का एक जला ले, कर ले दूर अंधेरा अभिमानी, 

सेवा का एक फूल खिला ले, सुरभित होगा मन अज्ञानी, 

शुभ कर्मों का बाग लगा ले,महक जायेगी तेरी जिदंगानी |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश, 3,11,2018,


सब कुछ विखर सा गया है,
जीवन भी, रिश्ते भी।


क्योंकि-
तुम जिद पर हो, मैं अभिमान/स्वाभिमान पर।।

.....पृथक है कसौटी सबकी जीवन मे,
तुम्हारी अपनी, हमारी अपनी।

इसी के इर्द-गिर्द बुनते हैं ताना-बाना,
मैं भी, तुम भी।।

हावी है क्रोध प्रेम में,
तुमपर भी, हमपर भी।

....क्यों नही ? ऐसा होता है,
हम तुम एक होते,
एक कसौटी होती,
होता एक ताना बाना।।

तोड़ देते वैमनस्य का जाल,
गिर जाता मेरा अहम,
टूट जाती तुम्हारी जिद.......

राकेश पांडेय स्वरचित,



एक नही दो नही , हैं विकार हजार 
सब विकारों में बड़ा होता अहंकार ।।

धराशायी करदे यह बनी हुई मीनार 
समझ न पाये कोई आये जब विकार ।।

ज्ञानी हो ध्यानी सबकी मति जाये मार 
बनते बनते ही आवे यह बीमारी यार ।।

उत्थान पतन का पाठ पढ़ाये करे रार
खुद पर न काबू रहे जब करवे यह वार ।।

बीमारी ये बड़ी बुरी करवाये नरसंहार 
रावण को ही लगी थी नष्ट हुआ परिवार ।।

देवता भी आये चपेट में जीत बनी हार 
बचकर रहना सदा ''शिवम" मायावी संसार ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



1)सर्व समाप्त 
करता अंहकार 
माने संसार 

(2)भीम अंहम 
तोड़े हनुमानजी 
ले वृद्ध रूप

(3)रखिए पास
अंहकार भी आप
माँ के पास मैं 

(4)चले ना कभी 
अंहकार की नाव
जग सागर

(5)गलत धन
अंहकार को देता
सदैव जन्म

(6) रहे सतर्क
ये अंहकारी फ़ूल 
चुभोते शूल

स्वरचित 
मुकेश भद्रावले 


अंहकार को पाला मैंने
किया एक गुनाह
खाद पानी देकर मैंने
किया उसे तैयार
और उसने दिया मुझे

"मै उत्तम"का एहसास
मैं था अकेला
अपने अहंकार के साथ
जब हटा अहंकार का परदा
सबने लुटाया अपना प्यार

अंहकार हैं एहसास
होने का कुछ खाश
अंहकारी मन मानने को
नही है तैयार

अंहकार तो टूट कर रहेगा
आम हो या खास
अंहकार के चलते
दुनिया हो रही बर्बाद


सभी तनाव का जड़ है
ये हमारा अंहकार
अंहकार को छोड़ कर
बिनम्रता को हम ले अपना

दुनिया की तस्वीर बदल जाये
अपने आप
आज हुआ मुझे यह एहसास
अंहकार नही, प्यार हैं जीवन का सार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।




अहंकार टकराया आज गर्व से
बोला तु अच्छा और में बुरा क्यूँ?

"मैं श्रेष्ठ हूँ" ये मैं कहूँ बोला गर्व
पर तूने स्वयं को ही श्रेष्ठ बोला क्यूँ?

मेरी मेहनत से मुकाम पाया है मैंने
बता किसी के आगे मैं क्यों झुकूं?

तू मेहनती अकेला नहीं दुनियां में
बस मैं मेहनत करके संतोष रखूं।।

मुझे मेरी काबिलियत पर शक नहीं
मैं काबिल, सशक्त हूँ, बुजदिल नहीं।

तू कबिल है तू सशक्त है ये माना मैंने
तू ही काबिल है, ये नीति सही नहीं।

मेरे पास कोई तर्क नही मैं हार गया हूँ
"मैं" अब नहीं रहा अब बाकी मुझ में।

बस अब तू भी गर्व है और मैं भी गर्व
अब जिंदा है तू मुझ में और मैं तुझ में।।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा # 9460914014



नदियाँ निरंतर बहती
तरु सदैव फलते 
चांद सूरज अमिट रोशन
ना कोई नाज ना अहम 
अहंकार से टूटते रिश्ते
नहीं जोड़ सकते फरिश्ते
काम न आते कोई दूजे 
मान लो बात यह सब बूझे
समाज घर परिवार बिखरे
अहंकारी को कोई ना पूछे
धन दौलत ईश्वर दान
योग्यता पद भाग्य मान
फिर किस चीज का अहम 
ना पालो ये वहम 
यह सब केवल खेल ही खेल
माटी निर्मित इंसान
जीवन असार
फिर क्यों इतना अहम 
छोड़ो अहम करो कार 
इस से होगा जीवन पार

स्वरचित-आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद



अहंकार किस बात का, 
रे मूरख, अनजान। 
क्या लेकर के जाएगा,
पहले तू ये जान।

अहंकार शत्रु बड़ा,
करता सद्गुण नाश। 
अहंकार जिसने किया,
हुआ उसका सर्वनाश। 

जन्म-मरण न हाथ में ,
यश-अपयश विधि हाथ।
लाभ-हानि की चिंता करे,
क्या है तेरे पास। 

बड़े-बड़े चले गए,
अहंकार के दास।
अहंकार ऐसा अनल, 
जिसे सद्गुण आए न रास। 

बचिए अहंकार से सदा,
रहिए जल के समान। 
मिल जाए जिसके संग,
होता उसी समान।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


धरती देखी अंबर देखा देख लिया सारा संसार
नष्ट हो गया वह समूल जिसमें व्यापित था अहंकार।
रावण जो ज्ञानी महान था भूल गया था सदाचार
अहंकार के वशीभूत वो बना पथिक अति दुराचार
जली बड़ी सोने की लंका खत्म हुआ सारा परिवार
जब रावण का नहीं रहा फिर रहेगा किसका अहंकार।
अहंकार ने कुरुक्षेत्र में युद्ध कराया महाभारत का
लहूलुहान हुई धरती मन दुखा बड़ा था भारत का।
अहंकार मानव के लिए सदा विनाश मार्ग बनाता है
वह सदैव रहता है सुखी जो इसे नहीं अपनाता है।
"पिनाकी"
धनबाद(झारखंड)
#स्वरचित_मौलिक


काश अहंकार का कोई पैमाना होता
हर कोई अपना अहंकार नाप लेता
टूटते रिश्तों को अपने बचा पाता 

काश अहंकार का कोई पैमाना होता
अपनी प्रतिभा का सदुपयोग कर पाता
छल कपट की भावना से उबर पाता

काश अहंकार का कोई पैमाना होता
जन मानस में अपना स्वाभिमान बनाता
उबर जाता अपने अंतर्भाव से
लड़ पाता हर दूर्भाव से

काश अहंकार का कोई पैमाना होता
"मैं" का मुझसे नाता समझ पाता
इस "मैं" ने कितने घर फूंके
कितने रिश्ते जलाए....बनके अंजान

काश अहंकार का कोई पैमाना होता
अनाचार कर ना पाता
अनाचार का उद्भाव अहंकार से
ये सब कोई समझ पाता

काश अहंकार का कोई पैमाना होता
जहाँ अहंकार भाव नहीं
जीवन में कोई अभाव नहीं
कहता "मुकेश" सबसे यही
अहंकार का त्याग करो आज अभी

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


आकंठ अहंकार में डूबा हूँ मै,
सबकुछ खुद में सिमट गया हूँ।
नहीं दिखे मुझसे कोई अच्छा,
स्वयं के भीतर सिमट गया हूँ।

स्वयं से भला श्रेष्ठ मुझे नहीं दिखता।
मुझसे भला कोई मुझे नहीं दिखता।
ये जीवन भले क्षणभंगुर हो अपना,
अपने सिवाय अमर मुझे नहीं दिखता।

पहलवान वलवान सब शोषक हूँ मै।
अपने इस अहंकार का पोषक हूँ मै ।
निरंकुश हुआ इसी कारण मैं अब,
विध्वंसक और दुष्ट विनाशक हूँ मैं।

कंस हिरण्यकश्यप रावण सब हारे।
मुझसे अंधकार और दुश्मन सब हारे।
नाम अहंकार मेरा तुम सुन लो भैया,
मुझसे कुंभकर्ण खरदूषण सब हारे।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



श्री कृष्ण का,
अनुग्रह पाकर,

गोपियां,खुद को,
विश्व की सबसे,
सौभाग्य वान,स्त्रियां समझने लगी,
अभिमान, अंहकार,
होने लगा,
भगवान कृष्ण,
उनके व्यक्तिगत संग,
सौभाग्य का कारण,
जगे अभिमान, अंहकार को,
ताड़ गये,
उन पर अपनी,
अहैतुकी कृपा,दिखाने,
तथा मिथ्या अभिमान को,
चूर करने हेतु,
अपने ऐश्र्वर्य का,
त्याग का, प्रर्दशन न करतेविद्य


अदृश्य हो 
व्यक्ति अपने,
धन,बल,ज्ञानशक्ति,

जो भी कौशल है,
उसका अभिमान सबव्यर्थहै।
ये सभी उधार के पंख है,
सारे ऐश्र्वर्य,
भगवान प्रदतहै,
लघुता सेप्रभुता मिले,
विद्या विनयं ददाति।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना।


जिन्दगी-मौत के दरम्याँ , निकटता ला रहा हूँ मै ।
उम्र का कोष खाली कर , सिमटता जा रहा हूँ मै ।।

-1-
कमाया जो यही रह जायेगा सब जानकर भी तो ,
घमण्डी बनके अपनों से , बिछुडता जा रहा हूँ मै ।

-2-
सदा शेखी बघारूँ और करू उपहास ही सबका ,
अहम अंदाज से सबको , खटकता जा रहा हूँ मै ।

-3-

मशविरा न किसी से भी करूँ न राय ही मानूँ ,
अहंकारी कर्म पथ पर , फिसलता जा रहा हूँ मै ।

-4-
ख्वाब की ही पतंगों को उडाया है खयालों मे ,
तमन्नाओं के जंगल मे , भटकता जा रहा हूँ मै ।

-5-
न समझा जिन्दगी के लक्ष्य को फँस मोह-माया मे ,
गया न वक्त आ पाये , ये लिखता जा रहा हूँ मै ।

राकेश तिवारी " राही " स्वरचित



अहंकार एक हुंकार, अस्तित्व की टंकार,
गर्व से परे आसार-
अपने ही विचारों का जागीरदार।

स्वंय को सर्वश्रेष्ठ 
मानने की होड़,
सर्व स्वयं- भू समझनेका भ्रम अहंकार ।

अहंकार निगल लेता 
शनैः -शनैः सारा विवेक, 
तोड़ देता मर्यादा की महीन दिवारें,
और मनचाहे कर्मो को देता अंजाम ।

बन जाता है अहंकार, ग्रसित व्यक्ति
कभी रावण ,
कभी दुर्योधन ,
हिरण्यकषिपु 
और,
कभी कंस जैसे
महा आततायी।

काम- क्रोध को जनम देता अहंकार। उच्चश्रृंखलता की 
पराकाष्ठा छूते मानव के 
अपकर्ष का कारण बनता ।

इंसान को इंसानियत सदभाव से दूर कर क्रूरता पूर्वक अट्हास करता है 
मद में लिपटा अहंकार अंततः पराजित ही होता है।

स्वरचित 
सुधा शर्मा 



अहंकार जब आता है, 
विवेक चला जाता है,
मन होता जाता लघु ,
दुर्भाव गुरु हो जाता है l

न कोई समझा पाता है, 
रिश्ता हाथों से जाता है,
सँस्कार चुप रह जाते हैं,
ज्ञान धरा रह जाता है l

विनाश को देआमंत्रण, 
स्वधर्म को ठुकराता है,
शंका, क्रोध के मित्रों संग,
सत्विचार दुत्कारता है l

आत्मप्रशंसा के घर में 
चाटुकारिता से घिर जाता है 
सद्गुणों पर चोट कर 
व्यक्तित्व चूर कर जाता है

अहंकार जब आता है.....

स्वरचित  
ऋतुराज दवे


[1]
हमें अहंकार तक होने लगा था 
किसी बफा पर, पर 
उनकी बेबफाई ने
अहंकारी होने से बचा लिया।

[2]
अहंकार का रास्ता लोग जानते है
कि वो मृत्यु लोक तक चलता है
लेकिन पता नहीं क्यो लोगों में
अब मौत का ख़ौफ नहीं...

[3]
है मनुष्य उस अहंकारी
रावण की मौत भी सफल हो गयी
राम के हाथों मर कर,
लेकिन आज के युग मे अहंकार करेगा
तो तुझे मरना भी एक अहंकारी के ही
हाथों से होगा...इसलिए आज के युग मे
अहंकार करना भी, एक मूर्खता मात्र है...

स्वरचित
सुखचैन मेहरा


अहंकार उत्पन्न होता है
छल कपट ईर्ष्या घमंड
इन सभी के मिश्रण से
अहंकार जन्म लेता है
आज हर मानव के अंतर्मन में
छल कपट ईर्ष्या का बीज पनप रहा है
जिसको नकारा नहीं जा सकता
आज मानव अपने अहम की वजह से
चोट खा रहा है दर्द सह रहा है
ना जाने कितने रिश्ते दाव पर लगा बैठा है
लेकिन अपने अहम, मैं, अहंकार को त्यागने को
तैयार नहीं , कोई ऊँची पोस्ट पर गया नहीं
की अहंकार पहले ही उसके अंदर हावी हो जाता है 

और वह अपने नीचे वाले लोगों को चींटी के समान देखता है 
इस कलयुग में अहंकार अभिमान 
का ही तो मोल रह गया है 
सत्यता कही ओझल सी हो गयी ह्रै
जहाँ देखो अहंकार ही चरम सीमा छू रहा है
मैं तो तरस गई हूँ ,सत्यता के मुखौटे पहन
छल कपट को देख रही हूँ , बहुत हुआ
अब तो मानव तु सुधर जा, नही तो 
रावण ,कंस ,दुर्योधन,की तरह अपने ही 
अहंकार में मारा जायेगा ,
तेरे पास कुछ नहीं बचेगा और बाद में पछतायेगा
🙏 स्वरचित हेमा उत्सुक  



🙏 सबके मन में पाॅव पसार
मस्ती में रहता अहंकार 
शक्ति के मद में फैलता
मारता रहता है फुफकार। 

अहंकारी का उड़ता चैन
बोझिल हो जाती है रैन
जब किस्मत फेर लेती है
अपने आशीर्वादी नैन।

भगवान ने भी यह कहा
अहंकार में जो भी बहा
उसने अपने बुरे दिन में 
हर ज्वाला को ही सहा। 

अहंकार का कर दो त्याग 
कभी न गाओ इसकी राग
वह ही सदा प्रसन्न रहता
जिसको होती इसकी जाग। 

अहंकार एक धब्बा है
गन्दगी से भरा डब्बा है
सारे गुण मिल जायें फिर भी
ऐसे का मालिक तो रब्बा है।

स्वरचित 


सुमित्रा नन्दन पन्त 

जयपुर


अन्तर्मन में जब वितृष्णाएं बहुत बढ़ जाती हैं,
उसे पूरा करने को लिप्साएं जोर दिखाती हैं।
निज मन पर जब भी देवत्व का भाव घट जाता है,
तब हृदय में दम्भी रावण सा अंहकार आता है।

मानवता बिसरा कर प्राणी दानव बन जाता है,
स्वयं को धोखा देकर आसुरी वृत्ति अपनाता है।
झूठे अहम का लालच कर बनता है होशियार,
अंहकार के वशीभूत हो पाता संकट हजार।

अंहकार ही तो मानव का विवेक मिटाता है,
वफा की राह में उसका कोई साथी न कहलाता है।
बदनामी का दाग स्व आचरण पर लगवाता है,
जग मे मुफ्त में ही अपना उपहास करवाता है।

अंहकार त्याग, सब्र, नम्रता का जीवन अपना लो
व्यभिचार त्याग, दिल में विश्वास का दिया जला लो।
अंहकार के हुंकार का अब तो नाश करो तुम,
सद्भावना ,सदाचार व सत्य की राह चलो तुम।

चंंचल पाहुजा
दिल्ली
स्वरचित

करा जिसने भी बल पर अहंकार।
बताया जब स्वयं को ही करतार।।
अहं वश किये जिसने अत्याचार। 
किया शीघ्र उस पर मौत ने वार।।
रावण को हुआ था बड़ा अहंकार।
सब देवता सामने उसके लाचार।।
माता सीता को लाया जाकर हर ।
कोई हानि उसकी पाया नही कर।।
एक लाख थे पुत्र सवा लाख नाती।
बचा न करने को कोई दिया बाती।।
जिसने सारे सुरों, को मार भगाया।
राम ने बानरों साथ ही मार गिराया।।
कंस को भी था बहुत बड़ा अहंकार ।
पिता को ही अपने पहुँचाया कारागार।।
भर गई मगर उसके पापों की गागर।
11 वर्षके बालक कान्हा ने दिया मार।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

अहंकार की सलाखों में जकड़ा जीवन
सौम्यता खो देता है।
अपनी ही कठोरता का दर्द 
जब स्वयं को सताता है,
मनुज छुप कर रो लेता है ।
अहंकार का घुन 
व्यक्तित्व खोखला कर जाता है ।
अपनी अकड़ में मस्त प्राणी 
हो एकाकी एक दिन 
भावों के झंझावात में पस्त हो जाता है ।
फलों से लदा लचीला वृक्ष 
तूफानों में भी हँसता गाता है ।
शाखाओं के संग
नाचता मुस्कुराता है
अकड़ा खड़ा पेड़ ठूंठ बन जाता है ।
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह

जब सफलता पास आने लगी, 
मै मन मन घबराने लगी,
दी अहंकार ने मुझको दस्तक, 
बस चिंता मुझको खाने लगी ll

माँ बोली अब क्या हो गया, 
दिल तेरा क्यों उदास हो गया, 
कक्षा में प्रथम स्थान मिला है, 
फिर क्यों तेरा मन विचलित हुआ l

बोली मम्मी सब कहते है, 
सफल लोग अहंकारी होते है, 
मुझे प्रथम नहीं आना है, 
गर दूर इससे अपने होते है l

माँ बोली.. .ना चिंता करना, 
सबकी तुमको सेवा करना 
बिटिया मेरी है संस्कारी 
अब अमल तुझको करना l
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून 
उत्तराखंड

आकर अंहकार की कैद में,
साथी सारे खो दिए,

देख आईना आज,
तन्हाई में हम रो दिए,
अंहकार की चोट ने,
हृदय मेरा तोड़ दिया,
बिछड़ी खुशियाँ सारी,
दुखों से नाता जोड़ दिया,
मदहोशी का पीकर जहर,
जीवन नष्ट हो जाता है,
फन फैला अंहकार का,
जीवन में विष घुल जाता है,

स्वरचित-रेखा रविदत्त

अहंकार की चादर से
स्प्ष्ट नही दिख पाता है
मन है कितना मैला अपना
देख नही खुद पाता है।

अहंकार से भरी ये नैया
हिचकोले खाती रहती है
दम्भ, गर्व से भरी-भरी यह
सागर -विलीन हो जाती है।

आज जन्म तो मृत्यु कल है
अहंकार क्यों पाला है
शान-शौकतऔ झूठी वाह
जीवन का यह हाला है।

अहंकार है जब भी आया
तन-मन क्षीण हुआ है तब
सब कुछ मेरा-मेरा लगता
रिश्ता हुआ पराया सब।

अहंकार का छाता लेकर
कब तक चलते जाओगे
अंत समय मे मानव खुद
मिट्टी में मिल जाओगे।।

वीणा शर्मा 'वशिष्ठ '
स्वरचित

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