Saturday, November 24

"नसीब "23 नवम्बर 2018



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नसीब लिखने वाले ने ,
हमारा नसीब लिख दिया,
जो हमारे हिस्से का होगा,
वो कैसे भी मिल जायेगा |

खुद से कुछ अच्छा कर ले,
वरना अपाहिज बन जायेगा,
दुआओं से बिगड़ा हुआ तेरा,
नसीब कुछ तो सुधर जायेगा |

चाहने से कोई चीज यूँ हीं,
कहाँ अपनी हो जाती है,
जब वक्त साथ होता है ,
तब तकदीर रूठ जाती है |

माथे पर जो लिखा नसीब,
उसका हिसाब क्यों लेता है,
मेहनत थोड़ी तु भी कर बंदें,
हाथों में तेरे किस्मत की रेखा है |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


नसीब शीर्षक पर आधारित है में रही रचना --आशा है आप सबको पसंद आएगी !

सहर हरेक के नसीब में सही मगर,रोशनी सबका मुक़द्दर नहीं होती
रात सबके हिस्से में आती जरुर है,पर,नींद सबको मयसर नहीं होती ।
हम सुनाना भी चाहे तो फ़ुरसत किसे? जो सुनें दास्ताँ अपनी
ज़िंदगी छोटी सही पर रुदादे - ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती ।
ये राह आज ले जाए हमें मंज़िल की जानिब ,भले ही मगर
कल क़िस्मत कहाँ,किस ओर ले जाए इसकी ख़बर नही होती ।
साहिल से टकराकर क्यों लौट जाती हैं लहरें , किसे पता ?
जो हलचल सी है मँझधारें में वो शायद साहिल पर नहीं होती ।
किसके रोके वक़्त रुका है? वक़्त गुज़रते कब वक़्त लगा है ? 
क्यों दम लेने की फ़ुरसत यहाँ किसी को दमभर नहीं होती ?
बँधे - बंधाये दायरे से कभी बाहर निकलकर सोचो तो सही,
दुनिया जैसी ख़ूबसूरत है हमारी सोच ऐसी क्योंकर नहीं होती ।
मसले ज़िंदगी के सुलझ ही जाएँगे गर इंसान हिम्मत न हारे,
यूँ दामन न बचा ,खार न हो तो फूलों की क़दर नहीं होती ।
स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र 
All rights reserved Bhargavi Ravindra
मयससर - प्राप्त , रुदाद ए ज़िंदगी - ज़िंदगी की कहानी , मुख़्तसर -छोटी सी 
ज़ानिब - की ओर , साहिल - किनारा , मसले -समस्याएँ



१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
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नसीबों से यहाँ ज्यादा कभी भी मिल नहीं सकता।
बिना कीचड़ कमल कोई कभी भी खिल नहीं सकता।
नहीं बजती कभी ताली अकेले हाथ से देखो-
हवा के बिन यहाँ पत्ता कभी भी हिल नहीं सकता।

नसीबों में लिखा है जो तेरे वो छिन नहीं सकता।
है कितनी चाँदनी नभ पर कोई भी गिन नहीं सकता।
लिखा है जो मिलेगा वो नसीबों में तुम्हारे‌ बस-
मिली हो रेत में चांदी कोई भी बिन नहीं सकता।

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट(म.प्र.)




नसीब हम बनाते हैं नसीब हम बनायेंगे
आज नही तो कल परचम हम लहरायेंगे ।।

हौंसला रखना होता संघर्ष सब सिखाते हैं
हौंसले मुस्कुराये हैं एक दिन मुस्कुरायेंगे ।।

आत्मविश्वास जगाइये आत्म बल बढ़ाइये 
यही सच्चे साथी जो सदा साथ निभायेंगे ।।

संघर्ष से घबड़ाना न आते हैं ये आयेंगे
यही एक दिन बाजुओं में ताकत बढ़ायेंगे ।।

माना कि नसीब है पर इतने न गरीब हैं
अवसर किसे न देता वो अवसर भुनायेंगे ।।

नसीब अपना अपना है मनन कर देखेंगे 
नकल में न अकल कभी हम भिडा़येंगे ।।

मेहनत लगन ऊँची सोच पूँजी है ''शिवम"
रोते हुये आये थे हम हंसते हुये जायेंगे ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/11/2018




कहते है सब यही जगत में निज कर्म ही नसीब बन जाते 

अपनी अपनी करनी का फल सब इस दुनियाँ में ही पाते 

यहाँ कर्महीन जन ही घड़ी घड़ी किस्मत का रोना हैं रोते 

जग में कर्मवीर जन मेहनत करके अपनी तकदीर बनाते 

किए गए सत्कर्म हमारे जग में सर्वदा यश सम्मान दिलाते

इस दुनियाँ में कुकर्म हमेशा दुख अपयश के कारक बनते 

नहीं होता जनम है एक हमारा होते हैं कई जन्मों के नाते

ये कर्म हमारे जनम जनम तक साथ सदा ही चलते रहते 

लेखा जोखा ही कर्मों का संसार में सबके नसीब कहलाते 

सुख दुख तो जीवन में आता रहता क्यों देख देख घबराते 

कर्म प्रधान ये जग है सुन मन कर ले बस कर्मों से ही नाते 

पार लगा ले नैयाअपनी जोड़ले अपने ऊपर वाले से नाते |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


सेदोका नसीब पर,
१/कड़ी धूप में,
अपने नसीब को,
अपने हाथों हम,
सुबह-शाम,
हर पल लिखते,
जीवन को हंसाते।।१।।
२/रोज कमाते,
सुख दुख बांटते,
अपना नसीब को,
हम बनाते,
अपने हाथो हम,
हर पल हंसाते।।२।।
३/प्राण हंसा ले,
समय के साथ ही,
चलना भी सीख ले,
वक़्त को कभी,
तोहमत तू न दें,
संवारते ले नसीब।।


नसीब में लिखा उसे कोई छीन नहीं सकता।
ये ललाट की लकीरें कोई मिटा नहीं सकता।
सदकर्म कर परोपकार करें अगर हम यहाँ,
कोई इस हाथ की रेखाऐं मिटा नहीं सकता।

नसीब में जो लिखा वो होकर ही रहेगा।
फंसा काल चक्र में वो होकर ही रहेगा।
मगर क्यों पडें हम इन झंझटों में भाईयो,
जब कर्म भाग्य साथ वो होकर ही रहेगा।

कसरत करेंगे तो जरूर पहलवान बनेंगे।
करते रहें मेहरबानी हम मेहरबान बनेंगे।
भाग्यवान ही अगर हमें किसी ने बनाया,
परमार्थ करते रहेतो जरूर दयावान बनेंगे।

मैं अपने अंतस में प्रतिदिन झांकता रहूँ।
नहीं इधरउधर की कुछ यूंही फांकता रहूँ।
इसी में मुझे अपने भगवान भाग्य दिखेंगे,
कहीं सत्य प्रेम की बुहारी से बुहारता रहूँ।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



विषय"नसीब"ये
धर्म 
विधाता 
विलक्षण
अवलोकित
अधिकार कर्म 
परिणाम नसीब

ये
भाग्य
सर्वस्व 
नैमित्तिक 
अथक श्रम
प्रफुल्लित मन 
पुरखों का सम्मान 

स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद




विधि का लेखा
कब,किसने देखा?
कहते लोग
होते कुछ संयोग
राजा की आह
मीन जल-प्रवाह
मुठ्ठी का चना
सुदामा की याचना
कातर भाव
वैरागी सा सुभाव
उद्यम-हीन
बनके रहे दीन
कल्प कथाएँ
ये तिर्यक् सी रेखायें
जगत स्तब्ध
हेलेन का प्रारब्ध
भीख न दान
हौसले की उड़ान
श्रम-साधना
कर्म की उपासना
निज भाग्य-रचना
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित



दिल में जो दर्द हैं गहरा उसकी दास्तान किसे बतायें
बेइंतहा दर्द भरे घाव किसे दिखायें
सूरत से लगते हैं हम नसीबवाले 

पर दर्द भरा हाले-ऐ नसीब किसे सुनायें.

अजीबो गरीब हैं नसीब मेरा 
जमाने की भीड़ में दर्द के बिलकुल करीब हैं 
हर राह में मेरी किस्मत नसीब की ठोकरें खा रही हैं 
राह की पत्थर तो बस अपना फर्ज अदायगी कर रहे हैं .

नसीब में नहीं हैं मेरी उजालों की रोशनी
चिराग लेकर भी अँधेरा मेरी राह देख रहा हैं 
जिंदगी मेरी कटी उड़ती पतंग सी बन गई हैं 
नसीब मेरा भयंकर सैलाब बन गया हैं .

मंजिले भी अपनी जिद पर अड़ी हैं आज मेरी 
हासिल करने अपना किस्मत और नसीब 
भयंकर तूफ़ान भी अपना रुख मोड़ लेंगे 
जहां हर तूफ़ान से टकराने की जिद होती हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट



नसीब का नियन्ता ईश्वर हमारे कर्मों की स्याही से किस्मत की किताब पर जो लिख देता है , वह भोगना हमारी नियति है । हम चाहें या न चाहें , मिलेगा वही जो नसीब में है।
कुछ लोग नसीब को मानते हैं , कुछ नहीं मगर माने वाले यही कहते हैं-

जो था नहीं नसीब में,मुझको वो मिल गया
पाकर तुम्हारा साथ , मेरा प्यार खिल गया
मन था बहुत उदास , जीवन भी भार था
हाथों में चाँद आ गया ,दामन भी भर गया

नसीब से ही डूबता तर जाता है , भूखे को भोजन मिल जाता है ,इंसान चाँद छू लेता है , खोया प्यार मिल जाता है । अक्सर हम भगवान से मांगते हैं , थोड़ी सी मोहलत,कुछ काम पूरे करने के लिए, कुछ पल और जीने के लिये । मगर मांगने से सब कुछ नही मिल जाता ।नसीब में अगर है तो इंद्र धनुषी रंग भर जाते हैं , जीवन में। बहते प्रवाह का रुख मोड़ देता है नसीब, दूरियाँ सिमट जाती हैं और जी उठता है मृतक भी नसीब से।

नसीब से ही गुल खिलते चमन में
चाहत भरा संसार पनपता मन में
गर्दिश में अगर हों इंसा के सितारे
तकदीर लगाती है डूबे को किनारे

तू ना इतरा कभी , मन भर न अहम से
पल भर में मिटा दे तुझे , भरे अंधियारे
फलक से पटके धरा पे , धरे अरमां सारे
मिलता यहां सब कुछ नियन्ता के इशारे

सरिता गर्ग
( स्व- रचित )



विधा :- छंद मुक्त

नसीब अपना अपना
सबका अलहदा है
क्यूं रोता है गैर के नसीब को
जो तेरा नसीब है
नहीं मिला किसी और को
नसीब बनते कर्म से
मत कोस अपने नसीब को
कर सद्कर्म अपने
संवार अपने नसीब को
दुनिया ठुकराती है
हर बदनसीब को
अज्ञानता के अंधकार से
उबार अपने नसीब को
कर परोपकार परहित में
संवार अपने नसीब को
सद्कर्म ही सोपान है
मंजिल ए नसीब का
पग पग बिगड़ता खेल है
जनाब ए नसीब का

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


शीर्षक:" नसीब "
बड़े नसीब से मिले थे हम
पल ठहर गया था यों
राहें रुक गई हो ज्यों
हम गुम हो गये थे क्यों

बड़े नसीब से मिले थे हम
लफ्ज़ सीले थे यों
जज़्बात थम से गए हो ज्यों
नज़रें झुकी हुई थी क्यों

बड़े नसीब से मिले थे हम
दिल धड़कता था यों
बादल गरजते हैं ज्यों
कदम बहके से थे क्यों

बड़े नसीब से मिले थे हम
सांसें महकी थी यों
बेला महकती है ज्यों
मन मिले थे क्यों

बड़े नसीब से मिले थे हम
दिल रौशन हुआ था यों
शमां जलती हैं ज्यों
चांद हंसा था क्यों

बड़े नसीब से मिले थे हम
हम भीगे थे यों
पत्ते ओस से नहाये हो ज्यों
फूहार सी चाहत जगी थी क्यों

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल



संस्मरण 
हम कहते है नसीब या किस्मत या भाग्य कुछ नहीं होता पर जब स्वयं पर घटित हो जाये तो लगता है कि 99प्रतिशत कर्म है तो 1प्रतिशत भाग्य भी है l
ऐसा ही मेरे साथ हुआ, जब मैं बारहवीं कक्षा की छात्रा थी और बोर्ड परीक्षाएं चल रही थी l
खुश थी बहुत क्युकी परीक्षाओं के बाद छुट्टिया पड़नेवाली थीl 
मुझे खूब स्मरण है दो शिफ्ट में होते परीक्षा l उस दिन मै खुश थी मेरा नागरिकशाश्त्र का पेपर था बहुत अच्छा हुआ घर में भी ख़ुशी का माहौल था l 
उस दिन बहुत ज्यादा हँसी मजाक हुआ घर में l लेकिन कहते हैं हँसने के बाद रोना पड़ता है मुझे शाम को पता चला की मेरा music लिखित पेपर उसी दिन था और मेरा वो पेपर छूट गया था मेरी डेट शीट में ठीक से प्रिंट नहीं था l उस दिन मै बहुत रोई थी l पर मेरी किस्मत कि..... फिर अगले दिन भी वो ही पेपर ll था संगीत का..... फिर जैसे तैसे परीक्षा समाप्त हुई l पास होने की कोई उम्मीद नहीं थी हार गयी थी उस दिन l पर माँ ने समझाया कि पास हो जाउंगी l
इंतजार के बाद परिणाम आया, मैने समाचार पत्र में देखने से मना किया कि पास नहीं हो सकती पर मेरी दी ने रिजल्ट देखा और मुझे कहा कि पास हो गयी थी l उस दिन शायद भाग्य पर विश्वास हो गया था कि 1प्रतिशत ही सही भाग्य मेरे साथ था l उस घटना को याद कर आज भी आँसू आ जाते हैं पर ख़ुशी के..... 
आपसे साझा कर अति प्रसन्नता हुई 
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित 
देहरादून


हाथों की रेखाओं में
माथे की लकीरों में
सुना है मैंने
लिखा होता है नसीब।

यदि यह सच है,
तो फिर...
क्यों फिरता इंसान
मारा-मारा !

क्यों करता है ?
रात-दिन परिश्रम,
नसीब को मानकर
सब कुछ बैठे रहना
है अपने आप से धोखा ।

मैंने मेहनत से बदलते देखे,
लोगों के नसीब ।
रोना रोते जो नसीब का,
वो होते हैं कायर

करते रहते,
अक्सर बातें नसीब की।
सच तो ये है, 
नसीब नहीं सब कुछ 
कर्म ही है सब कुछ

अगर उसके बाद भी,
न मिले फल।
तो कह सकते हैं,
उसे नसीब।

जैसे बन जाते है,
राजा से रंक,
और रंक से राजा,
जब बदले नसीब।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

नसीब में जो है नहीं वो फल नहीं सकता
नसीब में जो लिखा है वो टल नही सकता
जो लिखा नसीब में क्योंकर ना रहेगा
नसीब में जो है लिखा वो मिलकर रहेगा
खुशी लिखी तो खुशी मिलेगी 
गम लिखा तो गम
नसीब से ना थोड़ा ना ज्यादा ना कम
मानती हूँ मैं की मेहनत रंग लाती है 
जानती हूँ मैं कि कर्म रास्ता दिखाता है
नसीब ही तो है जो हर खेल दिखाता है 
हम एक दूसरे पर दोष लगाते हैं 
व्यर्थ में लड़कर दुश्मन बनाते हैं
ये तो नियति का लिखा हुआ चक्रव्यू तो है
खोना था तुझे अपनी प्रेमिका को
जो थी नहीं नसीब में तो मिलती कह्राँ
प्रेम हो या धन हो या मान-सम्मान
मिलता नसीब से
नसीब राजा को रंक 
रंक से राजा बनाता है
मेहनत भी तब ही रंग लाता है 
जब नसीब अलख जगाता है
इंसान आसमान को छू ले
तो नसीब की लीला न्यारी है
यदि रोटी को तरसे तो 
नसीब को मिलती गाली है
हाथ कितने मारे पैर
कितने भी पटके जो नसीब में 
लिखा है सब उसी पर अटके
नसीब से बड़ा कुछ हो नहीं सकता
नसीब दुख और सुख दोनों से मिलाता है 
जो नसीब में लिखा है
वो होकर रहेगा वो होकर रहेगा
नसीब का लिखा टल नहीं सकता है
ये मैं नहीं कहती 
कहता है जमाना नसीब को सभी ने है माना 
स्वरचित हेमा उत्सुक (जोशी)

वीणा के तार
वादक के हाथ
तरंगित सरगम से
भाग्य खिला।।

वीणा मुस्काई
हर पोर खिलखिलाई
खुद के भाग्य पर
इठलाई,हरषाई।।

टूटा गया तार
भाग्य लेख माना
तार से वीणा का
तारतम्य था जाना।।

सार जीवन का समझ
स्वयं हाथों
भाग्य बनाया
एक तार नया डलवाया।।

भाग्य,स्व कर्म से बना
तारों से जीवन रचा 
सुर ले ताल बना
भाग्य लेख,स्व बल सजा।।

वीणा शर्मा वशिष्ट

हम मिंले हैं सब नसीब से
बिन नसीब क्या मिलता है
कोई धारण करे ताज को
कोई झोपड़ियों में रोता है
भिन्न भिन्नं नसीब सबका
कोई रोता कोई हँसता
कोई महलों में अठखेली
कोई फुटपाथ पे सोता
पांडव खुद दर दर भटके
स्वयं राम वनवास गये
हरिश्चंद्र बिके काशी में
परहित कष्ट क्या न सहे
कोई अमीर कोई गरीब है
अपना अपना ही नसीब है
आंहे भरता कोई विदेश में
कोई अपने प्रिया करीब है
हाथ फफोले पड़ जाते हैं
काली काया पड़ जाती है
रात जागते लहू बहाते
विजय श्री तब ही मिलती है
जो सोया नसीब सो गया
जो जगा नसीब जग गया
कर्म प्रधान इस जगति में
कर्मशील जगमग हो गया
कर्मठ खुद निज नसीब लिखते
आस पराई वे न करते ।
सीना ताने लक्ष्य सन्धान कर
वे जीवन मे कभी न डरते।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


कौन किससे मिलेगा
कौन किसको मिलेगा
कौन कहाँ, कैसे ,कब मिलेगा
यह अपना -अपना नसीब है
मेरे नसीब में तू था
ये जहाँ था,ये जमीं थी
यह आसमान था
यह हवा पानी और 
खुशबू थी
और जहाँ की तमाम बंदिशें थी
यदि यह मेरा नसीब था
तू मेरा रकीब है
तो हाँ मुझे स्वीकार है
कैसा भी तेरा प्यार है
मैं खुशियाँ तमाम वार दूँ
आ मैं तुझको प्यार दूँ
यह जिन्दगी सँवार दूँ
मैं बहुत खुशनसीब हूँ
यही मेरा नसीब है 
यही मेरा नसीब है

नसीब से मिला आज नसीब का आँसू,
आँखों में आज आ गया बीते दिन का आँसू।

नसीब में जो ना लिखा था वो ना मांगा ख़ुदा से,
पर जो मांगा नसीब में वो भी ना मिला दुआ से।

जो मिला हमे वो बहुतों के नसीब में ना था,
जो नही मिला उसका भी कोई गिला ना था।

वक़्त भी बड़ी अजीब कहानी लेकर आया था,
जो नसीब लिखता है वो भी नसीब लेकर आया था।

उसने भी गुज़ारे कुछ दिन इस जहांन में,
देकर सीख जीवन की चला गया आसमां में।

कर्म फल तू पाएगा यही बनेगा तेरा नसीब,
जो जैसा कर्म करेगा वो बनेगा वैसा जीव।

मेहनत, लगन और सच्चाई की जिसने की कमाई,
ख़ुदा ने नसीब लिखने की कलम उसके हाथ पकड़ाई।

स्वरचित
मोनिका गुप्ता

कैसा नसीबा है 
यह कैसा नसीब
जहां से चला था
वहीं आज पँंहुचा
झूठे यह रिश्ते नाते
झूठा सब दिखावा
सहेजा जिन्हें जीवनभर
निकले वो छलावा
किस पर करें अब यकीं
धोखे की है दुनियां
दौलत के मद में डूबी
रिश्तों की यह दुनिया
अच्छा है भ्रम यह टूटा
आंखें जरूर नम हैं
जियो ज़िंदगी अपने लिए
नहीं कोई ग़म है
मिलते नहीं रिश्ते जिन्हें
वो होते बदनसीब है
करलो कदर रिश्तों की
सारी खुशियां इन्हीं से हैं
सबसे बड़ी यह दौलत
मिलती जो नसीब से
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना

नसीब में.लिखा जो है
कर्म रेखाओं का लेखा
हताश हो न नर नारी 
कर्म फल मिलेगा चोखा

श्रम से बनता है नसीब 
बदले हाथ की भी रेखा 
भाग्यहीन पाता नहीं जो 
कर्म हीन खो देता है वो.।

कौन पढ सका लिखा नसीबा 
ब्रह्मा ने अलग अलग सब लिखा
कथनी करनी में भेद जो करते 
रोते भाग्य ,कोसते वो नसीबा ।
****************************(
पाखी

जीवन है सुख दुःख का संगम
कभी ख़ुशियों का उगे सवेरा
कभी दुखों की घनेरी छाया
विधाता ने जीवन का वरदान दिया
बल बुद्धि संग अंगों का नाम दिया
पुरुषार्थी अपने पुरुषार्थ पर इतराते
भाग्यवादी नसीब का राग ही सुनाते
वासुदेव का गीता ज्ञान कर्म बोध बतलाता है
फल इंसान के कर्मों का ही नसीब नाम बन जाता है
जीवन में नसीब के बूते कौन फूला फला
कर्मवाद ही मानव का संगी नसीब होता है
संघर्ष से जो लड़ा पाकर विजय अपना नसीब ख़ुद उसने ही लिखा 
अरुणिमा सिन्हा की गौरव गाथा को
उद्धृत करना बहुत ज़रूरी है
रेल दुर्घटना में भले ही पैर अपंग हुआ
नए जोश से नए शोर से केवल पर्वतारोहण पर ध्यान धरा
वॉलीबॉल की त्यागी लोकप्रियता
माउंट एवरेस्ट को एक टाँग से फ़तह किया 
ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व आदर्श बनकर 
यह सिखलाते
कर्मभोगी बनो और अपना नसीब
ख़ुद ही लिखो
स्वरचित
संतोष कुमारी

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