Friday, November 16

"संयम "15नवम्बर 2018

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मन होकर सदा
सवार हवा के घोड़े पर
जा पहुंचता दिग-दिगंत
जैसे चंचल पवन।

पंच विकार

स्वामी इसके
ये बनकर दास
उनके राग अलापता
मायावी चकाचौंध 
करती भ्रमित
अस्थिर, चंचल।

तब बुद्धि संयम

के चाबुक से
नियंत्रित करती ,
संयम का हथौड़ा
करता चूर-चूर,
पंच-विकारों को।

छंटती धुंध

दिखता सत्य
जाग्रत विवेक
माया -मोह का
हटता आवरण
ध्यान-योग से।

संयमित होता मन

होता उजला जीवन,
अनंत इच्छाओं
का उपचार,
एकमात्र संयम।

अभिलाषा चौहान

स्वरचित



ऊर्जा का भण्डार है

ये मस्तिष्क जो हमार है ।।
संयम से सहेजे रखना 
आती अड़चन हजार है ।।

संयम से विपत्ति से बचते 
संयम से सदगुण से सजते ।।
संयम एक साधना है 
संयम वाले सदा ही हंसते ।।

बाहर भले दुखी दिखें 
अन्तर्मन में वो टिकें ।।
अन्तर्मन में खुशी अपार
बरकरार वो खुशी रखें ।।

संयम शील विनम्र स्वभाव
अलग छोड़े ''शिवम" प्रभाव ।।
नैया भले लगे डगमग 
मगर रहे न कोई आभाव ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 1511/2018

संयम

संयम तन मन का

संयम राजा और रंक का
संयम भी है एक कला
तमोगुण, क्रोध,मद, मोह है बला।।

कलह कली का अंतरात्मा से

घर उजाड़े भले भलों के
बेरोजगारी में संयम खोया
चोर, लुटेरा ही बन पाया।।

राजनीति के तूफ़ान में

संयम जब डगमगाता
वचन बोल जिव्हा के 
आपा खो देता।।

मदिरा के गलियारे में

जब संयम टूटता
तहस,नहस,आबरु,घरदार
कही का वो न रहता
आवेग रोककर पालन हो मर्यादा।।

मन ऊर्जा ,विवेक बढ़ाता

पढ़ाई की एकाग्रता
धंधे की सहनशीलता
सदगुणों की एकरूपता।।

संयम की राहपर है

प्रगति की जीवन रेखा
संयम पथपर खड़ा भाग्य
गुरु तेज़, ओजस्विता आमंत्रित करता ।।

डॉ नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी)




बहुत कठिन है मन का श्रम
कहते जिसको हम संयम
आज वही हम भूल रहे
तोड़ रही मानवता दम। 

भाषा अमर्यादित हो गई 

सौहार्दता बाधित हो गई 
शब्द मुॅह में ही ऊफ़न गये
सभ्यता प्रताड़ित हो गई। 

मानवता ऐसी बीमार हो गई

अबोधा हवस का शिकार हो गई
विश्वास का आॅचल फट गया
संयम की करारी हार हो गई। 

संयम बेचारा फटेहाल हो गया

माली जब खुद दलाल हो गया
पत्थर की चोट खाते खाते
सीमा पर न्योछावर लाल हो गया।

संयम मन का ही आभूषण है

उज्ज्वलता का उच्च लक्षण है
हम खो रहे दिन पर दिन संयम
सौम्यता का चटक रहा दर्पण है। 

स्वरचित 

सुमित्रा नन्दन पन्त 
जयपुर
हथेली पे फिर शौक से जान रख।
थोड़ा सा सब्र और इत्मीनान रख।


कोई शै नही दूर रहें पावं जमीं पे।
निगाहों में चाहे तो आसमान रख।

जन्नत कहां अगर जो नहीं है यहाँ।
तू बस एक ख्यालों में अमान रख।

नंगी है तो कभी भरोसा न करना। 
साथ में ही तलवार के मयान रख।

ना कुछ न छिपेगा लाख छिपा ले।
तू सच्चा करम सच्चा बयान रख।

दोस्त को ये दुश्मन बना सकती है। 
सोच ले फिर तोल कर जबान रख।

किससे निभेगी छोड तुझे सोहल। 
ऐसे नामुराद का ना अरमान रख। 

माना कि मुश्किल ठहरना हवा में। 
हैं शर्त इरादों के आगे उडान रख। 

विपिन सोहल



अधैर्यता का नाच
रंगमंच बना कलह
संयमित आचरण
खोलता राह सुलह

संयम बाँध टूटता जब

रिश्ते बहते तिनके सम
अहंकार का भाव उपजे
बिखरे असंयमित मन

क्षणिक सी अधैर्यता

करे अवसर का नाश
संयमित बन करो उद्यम
हो हर सफलता पास

वाणी जब असंयमित 

खोती निज सम्मान
जीवन के पथ पर
अधैर्यता देता अपमान

संयम जागृत विवेक

सकारात्मक विचारशील
संयम चढ़ाता सोपान
बनाता मन प्रगतिशील

स्वरचित :- मुकेश राठौड़



विधा-चोका
विषय-संयम

चंचल मन 
निर्बन्ध विचरण
भावों का घड़ा
मद-रस से भरा
निज पहरा
नीति का ककहरा
विवेक बोध
विषय परिशोध
दबी वृतियाँ
उसकी आकृतियाँ
सूक्त मनस्थ
इन्द्रिय हो तटस्थ
ज्योतिर्गमन
मोह का आवरण
सत्य विचार
सर्वदा सदाचार
कृत संकल्प 
सजीवन विकल्प
दृढ़ सम्बल
अचल आत्मबल
प्रवृत्ति शुध्द
संयम-एक युद्ध
स्वयमेव-विरुद्ध

-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित




हमें सिखाती,
त्याग,तप,संयम,

भिन्नता में एकता
भाव भरती,
मनुज ता के गीत,
सिखाती है संस्कृति।।१।।

वाणी संयम,
बोलने और देखने,
शक्ति ह्रासहोता है,
मौन साधना,
एक चुप सौ सुख,
कटुता से बचाव।।२।।

आत्म संयम,
आहार में संयम,
विहार में संयम,
निरोगी काया,
जीवन में आनंद
सुख-शांति जी वन।३।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,




हौसला और उम्मीद बुलंद कर लो 
साहस के सदैव संग कदम मिलाकर चलो 


निडर निर्भय होकर आत्मविश्वास के संग आगे बढ़ो 
सयंम और धैर्य के सीढ़ी पर अपने पग रखो.

जमाने में पहचान बनाने के लिये लड़ना होगा 
राह में हर कठिन डगर से गुजरना होगा 

शिखर पर पहुँचने के लिये अपना वर्चस्व बनाना होगा
हर कदम पर अपना सयंम बनाना होगा .
स्वरचित:- रीता बिष्ट




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संयम टूटने लगता है
जब लोग झूठ को
लग जाते हैं सच
साबित करने में
संयम तब भी टूटने लगता है
जब आप ग़लत न हो
फिर भी ग़लत
ठहराए जाने लगते हो
संयम तब और टूट जाता है
जब आप किसी पर
अपने से ज्यादा
यकीन करते हो
वो यकीं तोड़ जाए
संयम तब भी खोने लगता है
जब अपनों से
मिलता धोखा है
तब टूटता है दिल
बहुत मायूस होता है
संयम बिखरने लगता है
जब कोई अनायास
आपको अकेले छोड़
किसी और का हो जाता है
संयम रखना पड़ता है
जब दिल व्यथित हो
अपनों की खुशियों के लिए
जबरन मुस्कुराना पड़े
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना

Neelima Tigga
संयम तन मन का
संयम राजा और रंक का
संयम भी है एक कला
तमोगुण, क्रोध,मद, मोह है बला।।
कलह कली का अंतरात्मा से
घर उजाड़े भले भलों के
बेरोजगारी में संयम खोया
चोर, लुटेरा ही बन पाया।।
राजनीति के तूफ़ान में
संयम जब डगमगाता
वचन बोल जिव्हा के
आपा खो देता।।
मदिरा के गलियारे में
जब संयम टूटता
तहस,नहस,आबरु,घरदार
कही का वो न रहता
आवेग रोककर पालन हो मर्यादा।।
मन ऊर्जा ,विवेक बढ़ाता
पढ़ाई की एकाग्रता
धंधे की सहनशीलता
सदगुणों की एकरूपता।।
संयम की राहपर है
प्रगति की जीवन रेखा
संयम पथपर खड़ा भाग्य
गुरु तेज़, ओजस्विता आमंत्रित करता ।।

डॉ नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी)
स्वरचित



संयम को अपना कर के
बगिया में पौध लगाई थी
एक-एक कर कली-कली
मेरे आँगन ने मुस्काई थी।।


पल-पल नेह की धारा से
स्नेह-सुधा बरसाया था
उमंग भरी मुस्कानों से
आँगन को महकाया था।।
संयम ,धैर्य,क्षमाशीलता
जब तक मन मे साथ रहे
अपनेपन के गठबंधन पर
मुस्कानों का वास रहे।।
संयम की बाती से मैंने
प्रेम की जोत जलाई थी
थाल सजा कर जोत की मैंने
प्रेम आरती प्रिय को सुनाई थी।।
डोर बना कर संयम की
चलना साथी साथ सदा
छूट मेरा संयम जब जाए
हाथों में लेना हाथ मेरा।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ


चंद हाइकु
विषय संयम
1
मन है मस्त
संयम मूल मंत्र
ख़ुशी है अस्त्र
2
चरित्र वान
संयम बाँटे ज्ञान
ह्रदय शांत
3
संयम मित्र
अहम् की आहुति
ज्ञान विभूति
4
त्याग अहम्
संयमित है मन
भागे वहम
5
धरती दुखी
सयंमित प्रकृति
हुई क्रोधित
कुसुम पंत उत्साही

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